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पक्षाघात

सूची पक्षाघात

पक्षाघात या लकवा मारना (Paralysis) एक या एकाधिक मांसपेशी समूह की मांसपेशियों के कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ होने की स्थिति को कहते हैं। पक्षाघात से प्रभावी क्षेत्र की संवेदन-शक्ति समाप्त हो सकती है या उस भाग को चलना-फिरना या घुमाना असम्भव हो जाता है। यदि दुर्बलता आंशिक है तो उसे आंशिक पक्षाघात कहते हैं। .

51 संबंधों: चयापचय की अंतर्जात त्रुटि, ट्रेजर आइलैंड, टॉम क्रूज़, एक्यूपंक्चर, ड्रूड, डेलेरियम त्रेमेंस, डेविड फेरियर, डी. डब्ल्यू. ग्रिफ़िथ, नारायण बापूजी उदगीकर, पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान, पशुओं में पागलपन, पोलियोमेलाइटिस, फल, फेदेरिको फेलिनी, बच्चन सिंह, बावड़ी, बैल अंगघात, भार प्रशिक्षण (वेट ट्रेनिंग), भारतीय इतिहास की समयरेखा, मदिरा के हानिकारक प्रभाव, मस्तिष्क ज्वर, मायाराम सुरजन, रक्त चाप, रक्ताघात, रेकी चिकित्सा, लिपिड, शरीर द्रव्यमान सूचकांक, श्रीपाद दामोदर सतवलेकर, सरल परिसर्प, सिलवेस्टर स्टैलोन, संकीर्णता (स्टेनोसिस), स्टेम कोशिका, स्टेम कोशिका उपचार, स्थानिक अरक्तता, स्वतन्त्रता के बाद भारत का संक्षिप्त इतिहास, हृदय शल्य चिकित्सा, हृदयाघात, घबड़ाहट के दौरे (पैनिक अटैक), वाचाघात, विटामिन सी, व्हिस्की, आचार्य रामदेव, आर्सेनिक, कसावा, कंधे की अकड़न, कोकेन, अलिंद विकम्‍पन, अंग तंत्र, उच्च रक्तचाप, १९२३, ..., ९ मार्च सूचकांक विस्तार (1 अधिक) »

चयापचय की अंतर्जात त्रुटि

आनुवंशिक रोग जिस में चयापचय संबंधी विकार शामिल है के संक्या के भीतर, '''चयापचय की अंतर्जात त्रुटियों ''' का एक बड़ा वर्ग गिना जाता है। अधिकांश, एकल जीन दोष के कारण होते हैं, जो एंजाइम की कोड में सहायता करता है - ताकि विभिन्न पदार्थ (सब्सट्रेट) के रूपांतरण कोई दूसरे (उत्पाद) में हो जाय.

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ट्रेजर आइलैंड

ट्रेजर आइलैंड स्कॉटिश लेखक रॉबर्ट लुई स्टीवेन्सन का एक दुस्साहसिक उपन्यास है, जो "समुद्री डाकू और गड़े सोने" की कहानी कहता है। पहली बार 1883 में एक पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ, मूलत: यह बच्चों की पत्रिका यंग फोक्स में 1881-82 के बीच धारावाहिक रूप से ट्रेजर आईलैंड या म्युटिनी ऑफ द हिसपैनीओला और छद्मवेशी कैप्टन जॉर्ज नॉर्थ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। परंपरागत रूप से इसे भविष्यकालीन कहानी के लिए माना जाता है, यह एक दुस्साहिक कहानी है जो अपने माहौल, चरित्र और कार्रवाई और साथ नैतिकता की अस्पष्टता पर व्यंग्यपूर्ण टिप्पणी के लिए जाना जाता है - जैसा कि लौन्ग जॉन सिल्वर में देखा गया - जो कि तब और अब भी बाल साहित्य के लिए असाधारण है। यह अब तक के सभी उपन्यासों में सबसे अधिक नाटकीय है। "एक्स" (X) निशान के साथ खजाने के मानचित्र, दो मस्तूलवाले जहाज, काले निशान वाली जगह, उष्णकटिबंधीय द्वीपों और कंधे पर तोते के साथ एक पैरों वाले नाविक समेत समुद्री डाकुओं की लोकप्रिय अवधारणा में ट्रेजर आईलैंड का बहुत अधिक प्रभाव है। .

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टॉम क्रूज़

थॉमस क्रूज़ मापोदर IV (जन्म: 3 जुलाई 1962), जो अपने फिल्मी नाम टॉम क्रूज़ से ज्यादा जाने जाते हैं, एक अमेरिकी अभिनेता और फ़िल्म निर्माता हैं। 2006 में फ़ोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें दुनिया के अत्याधिक प्रभावशाली लोकप्रिय व्यक्तित्व का दर्जा दिया। टॉम तीन अकादमी पुरस्कारों के लिए नामित हुए और उन्होंने तीन गोल्डन ग्लोब पुरस्कार जीते हैं। उनकी पहली प्रमुख भूमिका 1983 की फ़िल्म रिस्की बिज़नेस में थी, जिसे"एक युवा पीढ़ी की क्लासिक और अभिनेता के लिए कैरियर-निर्माता" के रूप में वर्णित किया गया है। 1986 के लोकप्रिय और आर्थिक रूप से सफल फ़िल्म टॉप गन में एक बहादुर नौसेना पायलट की भूमिका निभाने के बाद, 1990 और 2000 दशक में बनी मिशन इम्पॉसिबल एक्शन फ़िल्म श्रृंखला में एक गुप्त एजेंट की भूमिका निभाते हुए, क्रूज़ ने इस शैली को जारी रखा.

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एक्यूपंक्चर

हुआ शउ से एक्यूपंक्चर चार्ट (fl. 1340 दशक, मिंग राजवंश). शि सी जिंग फ़ा हुई की छवि (चौदह मेरिडियन की अभिव्यक्ति). (टोक्यो: सुहाराया हेइसुके कंको, क्योहो गन 1716). एक्यूपंक्चर (Accupuncture) दर्द से राहत दिलाने या चिकित्सा प्रयोजनों के लिए शरीर के विभिन्न बिंदुओं में सुई चुभाने और हस्तकौशल की प्रक्रिया है।एक्यूपंक्चर: दर्द से राहत दिलाने, शल्यक बेहोशी और उपचारात्मक उद्देश्यों के लिए परिसरीय नसों के समानांतर शरीर के विशिष्ट भागों में बारीक सुईयां चुभाने का चीना अभ्यास.

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ड्रूड

ड्रूड (मूलत: द मिस्ट्री ऑफ एडविन ड्रूड) चार्ल्स डिकेंस के अपूर्ण उपन्यास द मिस्ट्री ऑफ एडविन ड्रूड पर आधारित एक संगीत नाटक है। यह रूपर्ट होम्स द्वारा लिखा गया है और यह पहला मुख्यधारा का संगीत नाटक था, जिसका अंत विविधता लिए हुए था (दर्शकों के मत द्वारा निर्धारित).

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डेलेरियम त्रेमेंस

डेलेरियम त्रेमेंस - मद्य-व्यसन से निवर्तन का प्रलाप- यह शराब से निवर्तन के वक़्त होता है। यह एक उग्र स्थिति है, जिस में रोगी को प्रलाप होता है। यह पहली बार १८१३ में वर्णित किया गया था। बेंजोडाइजेपाइन डेलेरियम त्रेमेंस के प्रलाप के लिए खास उपचार है।.

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डेविड फेरियर

अंगूठाकार सर डेविड फेरियर (Sir David Ferrier, सन् १८४३-१९२८) अंग्रेज तंत्रिकाविद (Neurologist) थे। इनका जन्म १८४३ ई. में ऐबरडीन के समीप हुआ था। एडनबरो विश्वविद्यालय से १८७०ई.

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डी. डब्ल्यू. ग्रिफ़िथ

डी.डब्ल्यू ग्रिफ़िथ अमरीकी फिल्म निर्देशक, लेखक और निर्माता थे। ग्रिफ़िथ को फिल्म निर्माण की आधुनिक तकनीक का जन्मदाता कहा जाता है। ग्रिफिथ को उनकी फिल्मों “द बर्थ ऑफ नेशन” (1915) और “इंटालेंस” (1916) के लिए जाना जाता है।फिल्म “द बर्थ ऑफ नेशन” में पहली बार एक नई कैमरा तकनीक और पटकथा का प्रयोग किया गया जिसने आगे आने वाली पूरी लंबाई की फीचर फ़िल्मों के लिए मार्ग प्रशस्त किया। हालांकि इस फिल्म ने अफ्रीकी मूल के अश्वेत लोगों के नकारात्मक चित्रण और कु क्लुल्स क्लान के महिमामंडन की वजह से रिलीज होते ही अमरीका में नस्लवाद पर एक नए विवाद को जन्म दे दिया।यही वजह है कि आज की तारीख में इस फिल्म को सर्वथा नवीन तकनीक की वजह से महान और ऐतिहासिक महान फिल्म माना जाता है तो वहीं नस्लवादी रुझान की वजह से इसके कथ्य की निंदा भी की जाती है। इस फिल्म को रिलीज होते ही अश्वेत लोगों के अमरीकी संगठन के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। कई जगहों पर दंगे भी हुए। यहां तक की न्यूयार्क शहर में इस शहर पर प्रतिबंध तक लगाया गया। लेकिन अगले साल ही अपनी दूसरी फिल्म इंटालरेंस के जरिए ग्रिफिथ ने अपने विरोधियों को भरसक जवाब दिया। ब्रोकेन ब्लाजम(1919), वे डाऊन ईस्ट(1920) और ऑरफन्स ऑफ दी स्टॉर्म(1920) जैसी फिल्मों के जरिए ग्रिफिथ ने सफलता के नए कीर्तिमान गढ़ दिए। लेकिन ये फिल्में अपने महंगी लागत और प्रचार के कारण व्यावसायिक रूप से सफल नहीं रहीं। बावजूद इसके ग्रिफिथ ने अपने जीवन काल में तकरीबन 500 फिल्मों का निर्माण किया। सन 1931 में प्रदर्शित हुई “द स्ट्रगल” ग्रिफिथ की आखिरी फिल्म थी। ग्रिफिथ “एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर्स आर्ट्स एंड साइन्स” के संस्थापकों में से एक थे। उन्हें सिनेमा के इतिहास के प्रमुख हस्ताक्षरों में गिना जाता है। फ़िल्म निर्माण की तकनीक में क्लोज-अप के इस्तेमाल का श्रेय ग्रिफिथ को दिया जाता है। .

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नारायण बापूजी उदगीकर

नारायण बापूजी उदगीकर (मृत्यु संवत १९३१) संस्कृत साहित्य के अन्वेषक के रूप में प्रसिद्ध थे। .

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पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान

पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान भारत ने डब्‍ल्‍यूएचओ वैश्विक पोलियो उन्‍मूलन प्रयास के परिणाम स्‍वरूप 1995 में पल्‍स पोलियो टीकाकरण (पीपीआई) कार्यक्रम आरंभ किया ' इस कार्यक्रम के तहत 5 वर्ष से कम आयु के सभी बच्‍चों को पोलियो समाप्‍त होने तक हर वर्ष दिसंबर और जनवरी माह में ओरल पोलियो टीके (ओपीवी) की दो खुराकें दी जाती हैं' यह अभियान सफल सिद्ध हुआ है और भारत में पोलियो माइलिटिस की दर में काफी कमी आई है' पीपीआई की शुरुआत ओपीवी के तहत शत प्रतिशत कवरेज प्राप्‍त करने के उद्देश्‍य से की गई थी' इसका लक्ष्‍य उन्‍नत सामाजिक प्रेरण, उन क्षेत्रों में मॉप अप प्रचालनों की योजना बनाकर उन बच्‍चों तक पहुंचना है जहां पोलियो वायरस लगभग गायब हो चुका है और यहां जनता के बीच उच्‍च मनोबल बनाए रखना है' 2009 के दौरान हाल ही में भारत में विश्‍व के पोलियो के मामलों का उच्‍चतम भार (741) था, यहां तीन अन्‍य महामारियों से पीडित देशों की संख्‍या से अधिक मामले थे' यह टीका बच्‍चों तक पहुंचाने के असाधारण उपाय अपनाने से भारत में पश्चिम बंगाल राज्‍य की एक दो वर्षीय बालिका के अलावा कोई अन्‍य मामला नहीं देखा गया जिसे 13 जनवरी 2011 को लकवा हो गया था 'आज भारत ने पोलियो के खिलाफ अपने संघर्ष में एक महत्‍वपूर्ण पड़ाव प्राप्‍त किया है, चूंकि अब पोलियो का अन्‍य कोई केन्‍द्र नहीं है' भारत में 13 जनवरी 2011 के बाद से सीवेज के नमूनों में न तो वन्‍य पोलियो वायरस और न ही अन्‍य पोलियो वायरस का मामला दर्ज किया गया है 'इसकी असाधारण उपलब्धि लाखों टीका लगाने वालों, स्‍वयं सेवकों, सामाजिक प्रेरणादायी व्‍यक्तियों,अभिनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और धार्मिक नेताओं के साथ सरकार द्वारा लगाई गई ऊर्जा,समर्पण और कठोर प्रयास का परिणाम है ' पोलियो उन्‍मूलन के प्रयास देश में सर्वाधिक मान्‍यता प्राप्‍त ब्रांड हैं, जिसमें फिल्‍म उद्योग के चर्चित सितारे जनता को संदेश देते हैं 'ग्रामीण क्षेत्रों के लिए राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन का प्रयास एक वरदान सिद्ध हुआ है ' सरकार को तकनीकी और रसद संबंधी सहायता प्रदान करने के लिए 1997 में राष्‍ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना आरंभ की गई और अब यह राज्‍य सरकारों के साथ नजदीकी से कार्य करती है और देश में पोलियो उन्‍मूलन का लक्ष्‍य पूरा करने के लिए भागीदारी एजेंसियों की एक बड़ी श्रृंखला इसमें संलग्‍न है ' .

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पशुओं में पागलपन

पशुओं में पागलपन या हलकजाने का रोग (रेबीज़) को पैदा करने वाले विषाणु हलकाये कुत्ते, बिल्ली, बन्दर, गीदड़, लोमड़ी या नेवले के काटने से स्वस्थ पशु के शरीर में प्रवेश करते हैं तथा नाड़ियों के द्वारा मष्तिस्क में पहुंच कर उसमें बीमारी के लक्षण पैदा करते हैं। रोग ग्रस्त पशु की लार में यह विषाणु बहुतायत में होता है तथा रोगी पशु द्वारा दूसरे पशु को काट लेने से अथवा शरीर में पहले से मौजूद किसी घाव के ऊपर रोगी की लार लग जाने से यह बीमारी फैल सकती है। यह बीमारी रोग ग्रस्त पशुओं से मनुष्यों में भी आ सकती है अतः इस बीमारी का जन स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्व है। एक बार पशु अथवा मनुष्य में इस बीमारी के लक्षण पैदा होने के बाद उसका फिर कोई इलाज नहीं है तथा उसकी मृत्यु निश्चित है। विषाणु के शरीर में घाव आदि के माध्य्म से प्रवेश करने के बाद 10 दिन से 210 दिनों तक की अवधि में यह बीमारी हो सकती है। मस्तिष्क के जितना अधिक नजदीक घाव होता है उतनी ही जल्दी बीमारी के लक्षण पशु में पैदा हो जाते हैं जैसे कि सिर अथवा चेहरे पर काटे गए पशु में एक हफ्ते के बाद यह रोग पैदा हो सकता है। .

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पोलियोमेलाइटिस

बहुतृषा, जिसे अक्सर पोलियो या 'पोलियोमेलाइटिस' भी कहा जाता है एक विषाणु जनित भीषण संक्रामक रोग है जो आमतौर पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति मे संक्रमित विष्ठा या खाने के माध्यम से फैलता है। इसे 'बालसंस्तंभ' (Infantile Paralysis), 'बालपक्षाघात', बहुतृषा (Poliomyelitis) तथा 'बहुतृषा एंसेफ़लाइटिस' (Polioencephalitis) भी कहते हैं। यह एक उग्र स्वरूप का बच्चों में होनेवाला रोग है, जिसमें मेरुरज्जु (spinal cord) के अष्टश्रृंग (anterior horn) तथा उसके अंदर स्थित धूसर वस्तु में अपभ्रंशन (degenaration) हो जाता है और इसके कारण चालकपक्षाघात (motor paralysis) हो जाता है। पोलियो शब्द यूनानी भाषा के पोलियो (πολίός) और मीलोन (μυελός) से व्युत्पन्न है जिनका अर्थ क्रमश: स्लेटी (ग्रे) और "मेरुरज्जु" होता है साथ मे जुड़ा आइटिस का अर्थ शोथ होता है तीनो को मिला देने से बहुतृषा या पोलियोमेरुरज्जुशोथ बनता है। बहुतृषा संक्रमण के लगभग 90% मामलों में कोई लक्षण नहीं होते यद्यपि, अगर यह विषाणु व्यक्ति के रक्त प्रवाह में प्रवेश कर ले तो संक्रमित व्यक्ति मे लक्षणों की एक पूरी श्रृंखला दिख सकती है। 1% से भी कम मामलों में विषाणु केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में प्रवेश कर जाता है और सबसे पहले मोटर स्नायु (न्यूरॉन्स) को संक्रमित और नष्ट करता है जिसके कारण मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है और व्यक्ति को तीव्र पक्षाघात हो जाता है। पक्षाघात के विभिन्न प्रकार इस पर निर्भर करते हैं कि इसमे कौन सी तंत्रिकायें शामिल हैं। मेरुरज्जु का बहुतृषा का सबसे आम रूप है, जिसकी विशेषता असममित पक्षाघात होता है जिसमे अक्सर पैर प्रभावित होते हैं। बुलबर बहुतृषा से कपालीय तंत्रिकाओं (cranial nerves) द्वारा स्फूर्तित मांसपेशियों मे कमजोरी आ जाती है। बुलबोस्पाइनल बहुतृषा बुलबर और स्पाइनल (मेरुरज्जु) के पक्षाघात का सम्मिलित रूप है। बहुतृषा को सबसे पहले 1840 में जैकब हाइन ने एक विशिष्ट परिस्थिति के रूप में पहचाना, पर 1908 में कार्ल लैंडस्टीनर द्वारा इसके कारणात्मक एजेंट, पोलियोविषाणु की पहचान की गई थी। हालांकि 19 वीं सदी से पहले लोग बहुतृषा के एक प्रमुख महामारी के रूप से अनजान थे, लेकिन 20 वीं सदी मे बहुतृषा बचपन की सबसे भयावह बीमारी बन के उभरा। बहुतृषा की महामारी ने हजारों लोगों को अपंग कर दिया जिनमे अधिकतर छोटे बच्चे थे और यह रोग मानव इतिहास मे घटित सबसे अधिक पक्षाघात और मृत्युओं का कारण बना। बहुतृषा हजारों वर्षों से चुपचाप एक स्थानिकमारी वाले रोगज़नक़ के रूप में मौजूद था, पर 1880 के दशक मे यह एक बड़ी महामारी के रूप मे यूरोप में उदित हुआ और इसके के तुरंत बाद, यह एक व्यापक महामारी के रूप मे अमेरिका में भी फैल गया। 1910 तक, ज्यादातर दुनिया के हिस्से इसकी चपेट मे आ गये थे और दुनिया भर मे इसके शिकारों मे एक नाटकीय वृद्धि दर्ज की गयी थी; विशेषकर शहरों में गर्मी के महीनों के दौरान यह एक नियमित घटना बन गया। यह महामारी, जिसने हज़ारों बच्चों और बड़ों को अपाहिज बना दिया था, इसके टीके के विकास की दिशा में प्रेरणास्रोत बनी। जोनास सॉल्क के 1952 और अल्बर्ट साबिन के 1962 मे विकसित बहुतृषा के टीकों के कारण विश्व में बहुतृषा के मरीजों मे बड़ी कमी दर्ज की गयी। विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और रोटरी इंटरनेशनल के नेतृत्व मे बढ़े टीकाकरण प्रयासों से इस रोग का वैश्विक उन्मूलन अब निकट ही है। .

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फल

फल और सब्ज़ियाँ निषेचित, परिवर्तित एवं परिपक्व अंडाशय को फल कहते हैं। साधारणतः फल का निर्माण फूल के द्वारा होता है। फूल का स्त्री जननकोष अंडाशय निषेचन की प्रक्रिया द्वारा रूपान्तरित होकर फल का निर्माण करता है। कई पादप प्रजातियों में, फल के अंतर्गत पक्व अंडाशय के अतिरिक्त आसपास के ऊतक भी आते है। फल वह माध्यम है जिसके द्वारा पुष्पीय पादप अपने बीजों का प्रसार करते हैं, हालांकि सभी बीज फलों से नहीं आते। किसी एक परिभाषा द्वारा पादपों के फलों के बीच में पायी जाने वाली भारी विविधता की व्याख्या नहीं की जा सकती है। छद्मफल (झूठा फल, सहायक फल) जैसा शब्द, अंजीर जैसे फलों या उन पादप संरचनाओं के लिए प्रयुक्त होता है जो फल जैसे दिखते तो है पर मूलत: उनकी उत्पप्ति किसी पुष्प या पुष्पों से नहीं होती। कुछ अनावृतबीजी, जैसे कि यूउ के मांसल बीजचोल फल सदृश होते है जबकि कुछ जुनिपरों के मांसल शंकु बेरी जैसे दिखते है। फल शब्द गलत रूप से कई शंकुधारी वृक्षों के बीज-युक्त मादा शंकुओं के लिए भी होता है। .

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फेदेरिको फेलिनी

फेदेरिको फेलिनी (Italian:; 20 जनवरी 1920 – 31 अक्टूबर 1993) इटालियन फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक थे। उनका नाम सर्वकालिक महानतम और प्रभावकारी फिल्मकारों में शुमार है। विश्व की महत्वपूर्ण फिल्म पत्रिकाओं ने उनकी कई फिल्मों को कालजयी घोषित किया है। साइट एंड साउंड ने उनकी फिल्म एट एंड हाफ (8½) को विश्व की महानतम 10 फिल्मों की सूची में रखा है। पचास वर्षों के अपने करियर में फेलिनी को फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ निर्माण के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले, जिनमें उनकी फिल्म ला दोल्चे विता के लिए पॉम दी ओर पुरस्कार भी शामिल है। उनकी चार फिल्मों को विदेशी भाषा फिल्म श्रेणी में ऑस्कर पुरस्कार भी मिला। .

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बच्चन सिंह

बच्चन सिंह (जन्म: 2 जुलाई 1919 जौनपुर, मृत्यु: 5 अप्रैल 2008 वाराणसी) एक हिन्दी साहित्यकार, आलोचक एवं इतिहासकार थे। हिन्दी साहित्य में बच्चन सिंह की ख्याति सैद्धान्तिक लेखन के क्षेत्र में असंदिग्ध है। .

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बावड़ी

बावड़ी श्रेणी:सिंचाई श्रेणी:भारतीय वास्तुशास्त्र श्रेणी:भारत में जल प्रबंधन श्रेणी:भारतीय स्थापत्य कला श्रेणी:बावड़ी.

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बैल अंगघात

बेल अंगघात से प्रभावित व्यक्ति का चेहरा बैल अंगघात (Bell's palsy/बेल्स पाल्सी) चेहरे के पक्षाघात का एक प्रकार है जो कपाल तंत्रिका सप्तम (cranial nerve VII) के काम करने में गड़्बड़ी के कारण होती है। इसके कारण उस तरफ की चेहरे की पेशियों को नियंत्रित करना सम्भव नहीं हो पाता। .

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भार प्रशिक्षण (वेट ट्रेनिंग)

एक सम्पूर्ण भार प्रशिक्षण व्यायाम को समायोज्य डम्बल की एक जोड़ी और भार डिस्क (प्लेट) के एक सेट के साथ किया जा सकता है। भार प्रशिक्षण, कंकालीय मांसपेशियों की शक्ति और आकार को विकसित करने के लिए एक आम तरह का शक्ति प्रशिक्षण है। संकेन्द्रिक या उत्केन्द्रिक संकुचन के माध्यम से पेशी द्वारा उत्पन्न बल का विरोध करने के लिए यह गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग करता है (भारित सलाखों, डम्बलों या वेट स्टैक के रूप में).

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भारतीय इतिहास की समयरेखा

पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं भारत एक साझा इतिहास के भागीदार हैं इसलिए भारतीय इतिहास की इस समय रेखा में सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की झलक है। .

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मदिरा के हानिकारक प्रभाव

मदिरा मानव के लिये वरदान और अभिशाप दोनों हैं। इसके अल्पमात्रिक व्यवहार से प्राय: मानसिक और शारीरिक आह्लाद होता है, जिसमें मनुष्य प्रसन्न, संतुष्ट और शांत रहता है। यदि मदिरा की मात्रा अधिक हो जाए, तो मनुष्य के मानसिक संतुलन का ह्रास होता है, सिर गरम, चेहरा लाल और कपोलास्थि प्रदेश की धमनियों का स्पंदन स्पष्ट दिखाई पड़ता है। यदि मदिरा की मात्रा और अधिक बढ़े, तो ऐल्कोहॉल विषाक्तता के लक्षण प्रकट होते हैं तथा मानसिक संतुलन पूर्णतया नष्ट हो जाता है। मद्यसेवी के पैर लड़खड़ाने लगते हैं, बातचीत अस्पष्ट, असंबद्ध तथा अनर्गल हो जाती है। उसे उचित या अनुचित का ज्ञान नहीं रहता और यही स्थिति आगे चलकर बेहोशी का रूप धारण कर लेती है। मचली और वमन भी हो सकता है तथा चेहरा पीला पड़ जाता है। पेशियाँ शिथिल पड़ जाती हैं, जिससे अनजाने में मल-मूत्र का त्याग हो सकता है। वस्तुत: इससे शरीर की प्राय: समस्त प्रतिवर्ती क्रियाएँ (reflex actions) बंद हो जाती हैं, नाड़ी मंद पड़ जाती है, शरीर का ताप गिर जाता है, साँस में घरघराहट होने लगती है तथा श्वसनकेंद्र का कार्य बंद हो जाने से मृत्यु तक हो सकती है। परिणाह तंत्रिका (peripheral nerves) पर मदिरा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, पर दीर्घकालीन मदात्यय (alcoholism) की दशा में आँतों द्वारा विटामिन बी का पूरा अवशोषण न हो सकने का कारण परिणाह शोथ और हृत्पेशी विस्तारण (myocardial dilatation) के लक्षण मिलने लगते हैं। कुछ व्यक्तियों में प्रमस्तिष्क-मेरु-द्रव (cerebro-spinal fluid) का स्राव दबाव को बढाता है, जिससे प्रमस्तिष्क शोथ की अवस्था उत्पन्न हो सकती है। मदिरासेवन से यक्ष्मा और न्यूमोनिया सदृश रोगों से और शल्य क्रियाओं के परिणाम से बचने की क्षमता घट जाती है। कुछ रोग भी उत्पन्न हो सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं: (1) जीर्ण आमाशय शोथ (gastritis) में ऐल्कोहॉल से आमाशय का शोथ होता है, जिससे वह स्थायी रूप में क्षतिग्रस्त हो जाता है, पाचनशक्ति का ह्रास हो जाता है और व्यक्ति दिन प्रति दिन दुबला पतला होता जाता है तथा (2) यकृत का सूत्रण रोग (cirrhosis of the liver)। ऐसे रोग उत्पन्न करने में विभिन्न व्यक्तियों को ऐल्कोहॉल की विभिन्न मात्रा प्रभावित करती है। कुछ व्यक्ति अल्प मात्रा में ही शीघ्र आक्रांत होते हैं और कुछ लोगों के आक्रांत होने में वर्षों लग जाते हैं। मदिरा से यकृत का जीर्ण प्रदाह होता है, जिससे रेशेदार ऊतक बहुत बढ़ जाता है। रेशेदार ऊतक के संकोचन (contraction) से यकृत की कोशिकाएँ दबाव पड़ने से नष्ट हो जाती हैं, जिससे शिराओं (veins) में रुधिर का बहाव अवरुद्ध हो जाता है। इससे यकृत का आकार साधारणतया छोटा हो जाता है। इस संकोचन का परिणाम यह होता है कि विस्तारित और संपीडित शिराओं से द्रव का स्पंदन (effusion) पर्युदर्या गुहा (peritoneal cavity) में होता है, जिससे एक प्रकार का जलोदर रोग हो जाता है। मद्यसेवी धीरे धीरे अधिक रोगी होने लगता है और जलोदर होने के कुछ मास बाद उसकी मृत्यु हो जाती है। .

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मस्तिष्क ज्वर

HSV मस्तिष्कशोथ से ग्रसित किसी रोगी के मस्तिष्क का MRI स्कैन। इसमें टेम्पोरल लोब्स में तथा दाहिने-निचले-सामने-के गाइरस में उच्च सिगनल दिख रहे हैं। मस्तिष्कशोथ या मस्तिष्क ज्वर या इन्सेफ्लाइटिस रोग (Encephalitis) विषाणु के प्रकोप से होता है। इसमें मस्तिष्क में अत्यधिक सूजन आ जाती है। .

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मायाराम सुरजन

मायाराम सुरजन (29 मार्च 1923 - ३१ दिसम्बर १९९४) भारत के एक पत्रकार थे। वे `नवभारत' के प्रथम सम्पादक थे। उन्होंने 'देशबन्धु' नामक समाचार पत्र आरम्भ किया।। पत्रकारिता जगत के मध्यप्रदेश राज्य के मार्गदर्शक के रूप में ख्यात श्री मायाराम सुरजन सही मायनों में स्वप्नदृष्टा और कर्मनिष्ठ तथा अपने बलबूते सिद्ध एक आदर्श पुरुष थे। वे बहुपठित और जनप्रिय राजनैतिक टिप्पणीकार थे और अनेक कृतियों के लेखक भी। उन्हें पूरे साठ वर्ष (१९४४-१९९४) की पत्रकारिता का अनुभव रहा। वे अनेक सामाजिक और साहित्यिक संस्थाओं के साथ-साथ मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन से भी वे जुड़े रहे, जिसके वे १८ वर्ष तक अध्यक्ष रहे। .

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रक्त चाप

स्फिगमोमनोमीटर, धमनीय दाब के मापन में प्रयुक्त एक उपकरण. रक्त चाप (BP), रक्त वाहिकाओं की बाहरी झिल्ली पर रक्त संचार द्वारा डाले गए दबाव (बल प्रति इकाई क्षेत्र) है और यह प्रमुख जीवन संकेतों में से एक है। संचरित रक्त का दबाव, धमनियों और केशिकाओं के माध्यम से हृदय से दूर और नसों के माध्यम से हृदय की ओर जाते समय कम होता जाता है। जब अर्थ सीमित ना हो, तब सामान्यतः रक्त चाप शब्द से तात्पर्य '''बाहु धमनीय दाब''' है: अर्थात् बाईं या दाईं ऊपरी भुजा की मुख्य रक्त वाहिका, जो रक्त को हृदय से दूर ले जाती है। तथापि, रक्त चाप को कभी-कभी शरीर के अन्य भागों में भी मापा जा सकता है, जैसे टखनों पर.

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रक्ताघात

एम्आरई मस्तिष्क की कोशिकाओं के कार्य में रक्तस्राव या अन्य कारणों से उत्पन्न रक्त की कमी के फलस्वरूप विक्षोभ होने पर रक्ताघात या रक्तमूर्च्छा (Apoplexy) होती है। मस्तिष्क में धमनी काठिन्य के कारण तीव्ररक्तचाप होने पर धमनी की दीवारें कभी-कभी टूट जाती हैं, जिससे रक्तस्राव होने लगता है। इसी को रक्तमूर्च्छा कहते हैं। तीव्र रक्तचाप के अतिरिक्त स्कर्वी (scurvy), फिरंगरोग (syphilis), मस्तिष्क आघात इत्यादि कारणों से भी रक्तमूर्च्छा उत्पन्न होती है। .

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रेकी चिकित्सा

100px रेकी चिकित्सा प्रगति पर 2-ch'i4 |j.

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लिपिड

शरीर में लिपिड लिपिड एक अघुलनशील पदार्थ हैं, जो कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन के साथ मिलकर प्राणियों एवं वनस्पति के ऊतक का निर्माण करते है। लिपिड को सामान्य भाषा मे कई बार वसा भी कहा जाता है परंतु दोनो मे कुछ अंतर होता है। लिपिड प्राकृतिक रूप से बने अणु होते हैं, जिनमें वसा, मोम, स्टेरॉल, वसा-घुलनशील विटामिन (जैसे विटामिन ए, डी, ई एवं के) मोनोग्लीसराइड, डाईग्लीसराइड, फॉस्फोलिपिड एवं अन्य आते हैं। इनका प्रमुख कार्य शरीर में उर्जा संरक्षण करना, ऊतकों की कोशिका झिल्ली बनाना और हार्मोन और विटामिन के अभिन्न अवयव निर्माण करना होता है। शरीर में कोलेस्ट्रोल तथा ट्राईग्लीसराईड की मात्रा ज्ञात करने हेतु लिपिड प्रोफाईल नामक परीक्षण करवाया जाता है। इसकी जांच से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि रोगी की धमनियों मे कोलेस्ट्राल जमा होने और रक्त प्रवाह अवरुद्ध होने की कितनी सम्भावना है? लिपिड अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे कि कोलेसटेरोल, काईलोमाईक्रोन इत्यादि। इनका भिन्न प्रकार से उपयोग होता है। कुछ लिपिड आहार के द्वारा प्राप्त होते हैं, तो कुछ लिपिड शरीर में निर्मित होते हैं। फोस्फैटीडाईकोलाइन हैं।स्ट्रायर ''et al.'', पृ. ३३० लिपिड को सारे शरीर में रक्त द्वारा भेजा जाता है। शरीर में पूरे लिपिड का एक संतुलन रहता है और अत्याधिक लिपिड को भविष्य प्रयोग हेतु जमा कर लिया जाता है, या फिर मल त्याग के द्वारा निकाल दिया जाता है। यदि रक्त में किसी कारण से बहुत अधिक लिपिड हो तो, तो यह रक्तवाहिकाओं में जमा होकर उसे संकुचित कर देता है या फिर अवरोधित भी कर देता है। इसको एथ्रोसक्लेरोसिस कहते हैं और यह समय के साथ और बढते जाता है। अंत में यह विभिन्न अंगों में रक्त-प्रवाह को कम करके हानि पहुँचाता है, जैसे कि हृदयाघात या पक्षाघात आदि। .

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शरीर द्रव्यमान सूचकांक

एक शरीर द्रव्यमान सूचकांक का ग्राफ़ यहां दिखाया गया है। डैश वाली रेखा प्रधान श्रेणी के खण्ड दिखाती है। कम भार के उपखण्ड हैं: अत्यंत, मध्यम एवं थोड़ा। ''विश्व स्वास्थ्य संगठन के http://www.who.int/bmi/index.jsp?introPage.

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श्रीपाद दामोदर सतवलेकर

वेदमूर्ति श्रीपाद दामोदर सातवलेकर (19 सितंबर 1867 - 31 जुलाई 1968) वेदों का गहन अध्ययन करनेवाले शीर्षस्थ विद्वान् थे। उन्हें 'साहित्य एवं शिक्षा' के क्षेत्र में सन् 1968 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। .

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सरल परिसर्प

सरल परिसर्प (हर्पीज़ सिम्प्लेक्स) (ἕρπης - herpes, शाब्दिक अर्थ - "धीरे-धीरे बढ़ता हुआ") एक विषाणुजनित रोग है जो सरल परिसर्प विषाणु 1 (एचएसवी-1 (HSV-1)) और सरल परिसर्प विषाणु 2 (एचएसवी-2 (HSV-2)) दोनों के कारण होता है। परिसर्प विषाणु से होने वाले संक्रमण को संक्रमण स्थल पर आधारित कई विशिष्ट विकारों में से एक विकार के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मौखिक परिसर्प, जिसके दिखाई देने वाले लक्षणों को बोलचाल की भाषा में शीतल घाव कहते हैं, चेहरे और मुंह को संक्रमित कर देते है। मौखिक परिसर्प, संक्रमण का सबसे सामान्य रूप है। जननांगी परिसर्प, जिसे आमतौर पर सिर्फ परिसर्प के रूप में जाना जाता है, परिसर्प का दूसरा सबसे सामान्य रूप है। अन्य विकार जैसे ददहा बिसहरी, परिसर्प ग्लैडायटोरम, नेत्रों में होने वाला परिसर्प (स्वच्छपटलशोथ), प्रमस्तिष्क में परिसर्प के संक्रमण से होने वाला मस्तिष्ककलाशोथ, मोलारेट का मस्तिष्कावरणशोथ, नवजात शिशुओं में होने वाला परिसर्प और संभवतः बेल का पक्षाघात सभी सरल परिसर्प विषाणु के कारण होते हैं। परिसर्प के विषाणु किसी व्यक्ति के रोगग्रस्त होने की स्थिति में अपना प्रभाव दिखाना शुरू करते हैं अर्थात् ये रोगग्रस्त व्यक्ति में छाले के रूप में प्रकट होते हैं जिसमें संक्रामक विषाणु के अंश होते हैं जो 2 से 21 दिनों तक प्रभावी रहते हैं और उसके बाद जब रोगी की हालत में सुधार होने लगता है तो ये घाव गायब हो जाते हैं। जननांगी परिसर्प, हालांकि, प्रायः स्पर्शोन्मुख होते हैं, तथापि विषाणुजनित बहाव अभी भी हो सकता है। आरंभिक संक्रमण के बाद, विषाणु संवेदी तंत्रिकाओं की तरफ बढ़ते हैं जहां वे चिरकालिक अदृश्य विषाणुओं के रूप में निवास करते हैं। पुनरावृत्ति के कारण अनिश्चित हैं, तथापि कुछ संभावित कारणों की पहचान की गई हैं। समय के साथ, सक्रिय रोग के प्रकरणों की आवृत्ति और तीव्रता में कमी आ जाती है। सरल परिसर्प, एक संक्रमित व्यक्ति के घाव या शरीर द्रव के सीधे संपर्क में आने पर बड़ी आसानी से फ़ैल जाता है। स्पर्शोन्मुख बहाव के समय के दौरान त्वचा से त्वचा के संपर्क के माध्यम से भी संचरण हो सकता है। अवरोध संरक्षण विधियां, परिसर्प के संचरण की रोकथाम की सबसे विश्वसनीय विधियां हैं लेकिन वे जोखिम को ख़त्म करने के बजाय सिर्फ कम करते हैं। मौखिक परिसर्प की आसानी से पहचान हो जाती है यदि रोगी के घाव या अल्सर दिखाई देने योग्य हो। ओरोफेसियल परिसर्प और जननांगी परिसर्प के प्रारंभिक चरणों का पता लगाना थोड़ा कठिन हैं; इसके लिए आम तौर पर प्रयोगशाला परीक्षण की आवश्यकता है। अमेरिका की जनसंख्या का बीस प्रतिशत के पास एचएसवी-2 (HSV-2) का रोग-प्रतिकारक हैं हालांकि उन सब का जननांगी घावों का इतिहास नहीं है।आतंरिक दवा के प्रति हरिसन के सिद्धांत, 16वां संस्करण, अध्याय 163, सरल परिसर्प के विषाणु, लॉरेंस कोरी परिसर्प का कोई इलाज़ नहीं है। एक बार संक्रमित होने जाने के बाद विषाणु जीवन पर्यंत शरीर में रहता है। हालांकि, कई वर्षों के बाद, कुछ लोग सदा के लिए स्पर्शोन्मुख हो जाएंगे और उन्हें कभी किसी प्रकार के प्रकोप का कोई अनुभव नहीं होगा लेकिन वे फिर भी दूसरों के लिए संक्रामक हो सकते हैं। इसके टीकों का रोग-विषयक परीक्षण चल रहा है लेकिन प्रभावशाली साबित नहीं हुए हैं। उपचार के माध्यम से विषाणुजनित प्रजनन और बहाव को कम किया जा सकता है, विषाणु को त्वचा में प्रवेश करने से रोका जा सकता है और रोगसूचक प्रकरणों की गंभीरता को कम किया जा सकता है। सरल परिसर्प के सम्बन्ध में उन हालातों के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए जो परिसर्पवायरिडा परिवार जैसे परिसर्प ज़ोस्टर में अन्य विषाणुओं के कारण होते हैं जो छोटी माता या चेचक के ज़ोस्टर विषाणु के कारण होने वाला एक विषाणुजनित रोग है। त्वचा पर घावों के होने के आभास के कारण "हाथ, पैर और मुख रोग" के साथ भी भ्रमित होने की सम्भावना है। .

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सिलवेस्टर स्टैलोन

सिलवेस्टर स्टैलोन (जन्म 6 जुलाई 1946), उपनाम स्ली स्टैलोन, एक अमेरिकी अभिनेता, निर्देशक और पटकथा लेखक हैं। 1970 से 1990 के दशक में विश्व भर में बॉक्स ऑफिस में सबसे अधिक भीड़ खींचनेवालों में से एक, स्टैलोन मर्दानगी और हॉलीवुड एक्शन नायकत्व के प्रतीक हैं। उन्होंने दो ऐसे चरित्रों को निभाया, जो अमेरिकी सांस्कृतिक शब्दकोश का एक हिस्सा बन गए: रॉकी बैलबोआ, मुक्केबाज जिसने प्रेम और गौरव की राह में आयी बाधाओं के लिए लड़ाई लड़ कर जीत हासिल की और जॉन रैंबो, एक साहसी सैनिक जो हिंसा से राहत और प्रतिशोध मिशन का विशेषज्ञ था। 1980 और 1990 के दशक के बड़े हिस्से के दौरान, रॉकी और रैंबो की भूमिका के अलावा अन्य मेगा ब्लॉकबस्टर हिट फिल्मों के साथ दुनिया के बड़े फिल्म स्टारों में से वे एक थे। स्टैलोन की फिल्म रॉकी को नेशनल फिल्म रजिस्ट्री में शामिल करने के साथ-साथ ‍इस फिल्म की सामग्री को स्मिथसोनियन संग्रहालय में रखा गया है। रॉकी श्रृंखला में स्टैलोन द्वारा फिलाडेलफिया म्युजियम ऑफ आर्ट के सामने के प्रवेशद्वार का इस्तेमाल करने से उस क्षेत्र का उपनाम रॉकी स्टेप्स पड़ गया.

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संकीर्णता (स्टेनोसिस)

संकीर्णता (बहुवचन: संकीर्णताएं; प्राचीन यूनानी शब्द στένωσις, अर्थात "संकुचन" से), रक्त वाहिका या अन्य नलीदार अंगों अथवा संरचनाओं के असामान्य संकुचन को कहते हैं। इसे कभी-कभार निकोचन (स्ट्रिकचर) (जैसे कि मूत्रमार्ग निकोचन) भी कहा जाता है। निकुंचन (कोआर्कटेशन) इसका पर्यायवाची शब्द है, लेकिन इसे सामान्यतः केवल महाधमनी से संबंधित निकुंचन (एओर्टिक कोआर्कटेशन) के सन्दर्भ में ही इस्तेमाल किया जाता है। .

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स्टेम कोशिका

'''मानव भ्रूण कोशिकाएं''' ए: अभी तक विभेदित नहीं हुई कोशिका समूह बी: तंत्रिका कोशिका स्टेम कोशिका या मूल कोशिका (अंग्रेज़ी:Stem Cell) ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता मिलती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ६ जनवरी २०१० वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार यदि हृदय की कोशिकाएं खराब हो गईं, तो इनकी मरम्मत स्टेम कोशिका द्वारा की जा सकती है। इसी प्रकार यदि आंख की कॉर्निया की कोशिकाएं खराब हो जायें, तो उन्हें भी स्टेम कोशिकाओं द्वारा विकसित कर प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इसी प्रकार मानव के लिए अत्यावश्यक तत्व विटामिन सी को बीमारियों के इलाज के उददेश्य से स्टेम कोशिका पैदा करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।हिन्दुस्तान लाइव। २५ दिसम्बर २००९। लंदन-एजेंसी अपने मूल सरल रूप में स्टेम कोशिका ऐसे अविकसित कोशिका हैं जिनमें विकसित कोशिका के रूप में विशिष्टता अर्जित करने की क्षमता होती है। क्लोनन के साथ जैव प्रौद्योगिकी ने एक और क्षेत्र को जन्म दिया है, जिसका नाम है कोशिका चिकित्सा। इसके अंतर्गत ऐसी कोशिकाओं का अध्ययन किया जाता है, जिसमें वृद्धि, विभाजन और विभेदन कर नए ऊतक बनाने की क्षमता हो। सर्वप्रथम रक्त बनाने वाले ऊतकों से इस चिकित्सा का विचार व प्रयोग शुरु हुआ था। अस्थि-मज्जा से प्राप्त ये कोशिकाएं, आजीवन शरीर में रक्त का उत्पादन करतीं हैं और कैंसर आदि रोगों में इनका प्रत्यारोपण कर पूरी रक्त प्रणाली को, पुनर्संचित किया जा सकता है। ऐसी कोशिकाओं को ही स्टेम कोशिका कहते हैं। इन कोशिकाओं का स्वस्थ कोशिकाओं को विकसित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। १९६० में कनाडा के वैज्ञानिकों अर्नस्ट.ए.मुकलॉक और जेम्स.ई.टिल की खोज के बाद स्टेम कोशिका के प्रयोग को बढ़ावा मिला। स्टेम कोशिका को वैज्ञानिक प्रयोग के लिए स्नोत के आधार पर भ्रूणीय, वयस्क तथा कॉर्डब्लड में बांटा जाता है। वयस्क स्टेम कोशिकाओं का मनुष्य में सुरक्षित प्रयोग लगभग ३० वर्षो के लिए किया जा सकता है। अधिकांशत: स्टेम सेल कोशिकाएं भ्रूण से प्राप्त होती है। ये जन्म के समय ही सुरक्षित रखनी होती हैं। हालांकि बाद में हुए किसी छोटे भाई या बहन के जन्म के समय सुरक्षित रखीं कोशिकाएं भी सहायक सिद्ध हो सकती हैं। .

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स्टेम कोशिका उपचार

स्टेम कोशिका उपचार एक प्रकार की हस्तक्षेप इलाज पद्धति है, जिसके तहत चोट अथवा विकार के उपचार हेतु क्षतिग्रस्त ऊतकों में नयी कोशिकायें प्रवेशित की जाती हैं। कई चिकित्सीय शोधकर्ताओं का मानना है कि स्टेम कोशिका द्वारा उपचार में मानव विकारों का कायाकल्प कर पीड़ा हरने की क्षमता है। स्टेम कोशिकाओं में, स्वंय पुनर्निर्मित होकर अलग-अलग स्तरों में आगामी नस्लों की योग्यताओं में आंशिक बदलाव के साथ निर्माण करने की क्षमता के चलते, ऊतकों को बनाने की महत्वपूर्ण खूबी तथा शरीर के विकार युक्त एवं क्षतिग्रस्त हिस्सों को अस्वीकरण होने के जोखिम एवं दुष्प्रभावों के बगैर बदलने की क्षमता है। विभिन्न किस्मों की स्टेम कोशिका चिकित्सा पद्धतियां मौजूद है, किंतु अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के उल्लेखनीय अपवाद को छोड़ अधिकांश प्रायोगात्मक चरणों में ही हैं और महंगी भी हैं। चिकित्सीय शोधकर्ताओं को आशा है कि वयस्क और भ्रूण स्टेम कोशिका शीघ्र ही कैंसर, डायबिटीज प्रकार 1, पर्किन्सन रोग, हंटिंग्टन रोग, सेलियाक रोग, हृदय रोग, मांसपेशियों के विकार, स्नायविक विकार और अन्य कई रोगों का उपचार करने में सफल होगी.

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स्थानिक अरक्तता

शरीर के किसी भाग के ऊतकों में रक्त आपूर्ति कमी होना और उसके कारण कोशिकाओं में आक्सीजन और ग्लूकोज की कमी हो जाना, स्थानिक अरक्तता (Ischemia या Ischaemia) कहलाता है। ऊतकों को जीवित रहने के लिये आक्सीजन और ग्लूकोज बहुत आवश्यक हैं। .

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स्वतन्त्रता के बाद भारत का संक्षिप्त इतिहास

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हृदय शल्य चिकित्सा

कोरोनरी आर्टरी बाईपास सर्जरी के रूप में ज्ञात कार्डियेक सर्जरी को करते हुए दो कार्डियेक सर्जन. एक स्टील प्रतिकर्षक के उपयोग पर ध्यान दें जिसका इस्तेमाल रोगी के हृदय को जबरदस्ती खुला रखने के लिए किया जाता है. हृदय शल्य चिकित्सा हृदय और/या बड़ी वाहिकाओं की एक ऐसी शल्य क्रिया है जो हृदय शल्य चिकित्सकों द्वारा की जाती है। अक्सर, इसे स्थानिक-अरक्तता संबंधी हृदय रोग की जटिलताओं का इलाज करने के लिए (उदाहरण के लिए, कोरोनरी धमनी बाईपास ग्राफ्टिंग), जन्मजात हृदय रोग को ठीक करने के लिए, या वाल्वुलर हृदय रोग का उपचार करने के लिए किया जाता है जो विभिन्न कारणों से उत्पन्न होती है और जिसमें अन्तर्हृद्शोथ शामिल है। इसमें हृदय प्रत्यारोपण भी शामिल है। .

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हृदयाघात

रोधगलन (MI) या तीव्र रोधगलन (AMI) को आमतौर पर हृदयाघात (हार्ट अटैक) या दिल के दौरे के रूप में जाना जाता है, जिसके तहत दिल के कुछ भागों में रक्त संचार में बाधा होती है, जिससे दिल की कोशिकाएं मर जाती हैं। यह आमतौर पर कमजोर धमनीकलाकाठिन्य पट्टिका के विदारण के बाद परिहृद्-धमनी के रोध (रूकावट) के कारण होता है, जो कि लिपिड (फैटी एसिड) का एक अस्थिर संग्रह और धमनी पट्टी में श्वेत रक्त कोशिका (विशेष रूप से बृहतभक्षककोशिका) होता है। स्थानिक-अरक्तता के परिणामस्वरूप (रक्त संचार में प्रतिबंध) और ऑक्सीजन की कमी होती है, अगर लम्बी अवधि तक इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो हृदय की मांसपेशी ऊतकों (मायोकार्डियम) की क्षति या मृत्यु (रोधगलन) हो सकती है। तीव्र रोधगलन के शास्त्रीय लक्षणों में अचानक छाती में दर्द, (आमतौर पर बाएं हाथ या गर्दन के बाएं ओर), सांस की तकलीफ, मिचली, उल्टी, घबराहट, पसीना और चिंता (अक्सर कयामत आसन्न भावना के रूप में वर्णित) शामिल हैं.

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घबड़ाहट के दौरे (पैनिक अटैक)

पैनिक अटैक (घबड़ाहट के दौरे), तीव्र भय या घबड़ाहट के दौरों को कहते हैं जो अचानक पैदा होते हैं और अपेक्षाकृत छोटी अवधि के होते हैं। घबड़ाहट के दौरे आम तौर पर अचानक शुरू होते हैं, 10 मिनट के अंदर चरम अवस्था तक पहुँच जाते हैं और मुख्यतः 30 मिनट के डीएसएम-IV के अंदर ख़त्म हो जाते हैं। घबड़ाहट के दौरे 15 सेकण्ड की अल्पावधि से लेकर कभी-कभी घंटों तक जारी रहने वाले या आवर्ती (साइक्लिक) भी हो सकते हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार, उन परिस्थितियों में जहाँ पहले भी दौरे पड़ चुके हैं, पीड़ित व्यक्ति अक्सर दौरों के बीच गंभीर पूर्वाभासी आशंका और सीमित लक्षण वाले दौरों का अनुभव करते हैं। घबड़ाहट के दौरों के प्रभावों में भिन्नता होती है। कुछ, विशेष रूप से पहली-बार के पीड़ितों को आपातकालीन सेवाओं की आवश्यकता पड़ सकती है। घबड़ाहट के दौरे का अनुभव करने वाले कई लोगों को, ज्यादातर पहली बार के दौरे में दिल के दौरे या तंत्रिका अवरोध (नर्वस ब्रेकडाउन) का डर लगा रहता है। कहा जाता है कि घबड़ाहट के दौरे का अनुभव, किसी व्यक्ति की जिंदगी के सबसे भयावह, कष्टप्रद और असहज अनुभवों में से एक होता है। .

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वाचाघात

वाचाघात:एक जानलेवा रोग। '''वाचाघात''' (Aphasia) मस्तिष्क की ऐसी विकृति है जिसमें व्यक्ति के बोलने, लिखने तथा बोले एवं लिखे हुए शब्दों को समझाने या प्रकट करने में अनियमितता, अस्पष्टता, एवं स्थायी विकार उत्पन्न हो जाता है। .

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विटामिन सी

विटामिन सी या एल-एस्कॉर्बिक अम्ल मानव एवं विभिन्न अन्य पशु प्रजातियों के लिये अत्यंत आवश्यक पोषक तत्त्व है। ये विटामिन रूप में कार्य करता है। कई प्रकार की उपापचयी अभिक्रियाओं हेतु एस्कॉर्बेट (एस्कॉर्बिक अम्ल का एक आयन) सभी पादपों व पशुओं में आवश्यक होता है। ये लगभग सभी जीवों द्वारा आंतरिक प्रणाली द्वारा निर्मित किया जाता है (सिवाय कुछ विशेष प्रजातियों के) जिनमें स्तनपायी समूह जैसे चमगादड़, एक या दो प्रधान प्राइमेट सबऑर्डर, ऐन्थ्रोपोएडिया (वानर, वनमानुष एवं मानव) आते हैं। इसका निर्माण गिनी शूकर एवं पक्षियों एवं मछलियों की कुछ प्रजातियों में नहीं होता है। जो भी प्रजातियां इसका निर्माण आंतरिक रूप से नहीं कर पातीं, उन्हें ये आहार रूप में वांछित होता है। इस विटामिन की कमी से मानवों में स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।। हिन्दुस्ताण लाइव। २८ मार्च २०१० इसे व्यापक रूप से खाद्य पूर्क रूप में प्रयोग किया जाता है। .

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व्हिस्की

व्हिस्की का एक गिलास व्हिस्की किण्वित अनाज मैश से आसवित एक प्रकार का मादक पेय है। इसके विभिन्न प्रकारों के लिए विभिन्न अनाजों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें शामिल हैं जौ, राई, मॉल्ट राई, गेहूं और मक्का (मकई).

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आचार्य रामदेव

आचार्य रामदेव (जन्म: ३१ जुलाई १८८१ - मृत्यु: ९ दिसम्बर १९३९) आर्यसमाज के नेता, शिक्षाशास्त्री, इतिहासकार, स्वतन्त्रता-संग्राम सेनानी एवं महान वक्ता थे। उन्होने भारतीय इतिहास के सम्बन्ध में मौलिक अनुसन्धान कर हिन्दी में अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ भारतवर्ष का इतिहास प्रकाशित किया। आचार्य रामदेव जी ने १९२३ में देहरादून में कन्या गुरुकुल की स्थापना की जो 'कन्या गुरुकुल महाविद्यालय' नाम से जाना जाता है तथा गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का भाग है। .

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आर्सेनिक

आर्सेनिक, आवर्त सारणी के पंचम मुख्य समूह का एक रासायनिक तत्व है। इसकी स्थिति फास्फोरस के नीचे तथा एंटीमनी के ऊपर है। आर्सेनिक में अधातु के गुण अधिक और धातु के गुण कम विद्यमान हैं। इस धातु को उपधातु (मेटालॉयड) की श्रेणी में रखा जाता है। आर्सेनिक से नीचे एंटीमनी में धातुगुण अधिक हैं तथा उससे नीचे बिस्मथ पूर्णरूपेण धातु है। पंचम मुख्य समूह में नीचे उतरने पर धातुगुण में वृद्धि होती है। आर्सैनिक की कुछ विशेषताएं निम्नांकित हैं: .

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कसावा

कसावा (cassava) पृथ्वी के उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक क्षुप है जिसकी मोटी जड़ आलू की तरह मंड (स्टार्च) से युक्त होती है। चावल और मक्के के बाद, मानव-आहार में यह यह विश्व में तीसरा सबसे बड़ा कार्बोहाइड्रेट का स्रोत है। कसावा मूल-रूप से दक्षिण अमेरिका का वनस्पति था लेकिन अब विश्व-भर के गरम क्षेत्रों में मिलता है। जब इसको पीसकर पाउडर या मोती-आकार के कणों में बनाया जाय तो यह टैपियोका (tapioca) भी कहलाता है। कसावा सूखे की परिस्थिति में और कम-ऊपजाऊ धरती पर भी उग सकने वाला पौधा है। कसावा मीठी और कड़वी नसलों में मिलता है। अन्य कन्द-जड़ों की तरह इसमें भी कुछ वषैले पदार्थ उपस्थित होते है, जिनकी मात्रा कड़वी नसलों में मीठी नसलों से कई अधिक होती है। खाने से पहले इसे सही प्रकार से तैयार करना आवश्यक है वरना इससे साइनाइड विष-प्रभाव हो सकता है, जिससे घेंघा रोग, गतिभंग और लकवा होने की सम्भावना है।Food and Agriculture Organization of the United Nations, Roots, tubers, plantains and bananas in human nutrition, Rome, 1990, Ch.

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कंधे की अकड़न

फ्रोजेन शोल्डर (अकड़े हुए कंधे), जिसे चिकित्सकीय रूप से आसंजी सम्‍पुट-प्रदाह (कैप्‍सूलाइटिस) कहा जाता है, एक विकार है, जिसमें कंधे का कैप्‍सूल, कंधे के अंसगत तथा प्रगण्डिका संबंधी जोड़ को घेरने वाला संयोजी ऊतक सूजा हुआ एवं कठोर बन जाता है, जो गति को अत्यधिक नियंत्रित कर देता है एवं तीव्र दर्द उत्पन्न करता है। आसंजी सम्‍पुट-प्रदाह (कैप्‍सूलाइटिस) कष्टदायक एवं असमर्थकारी स्थिति होती है, जो धीमे स्वास्थ्य लाभ के कारण अक्सर रोगियों एवं देखभाल करने वाले व्यक्तियों के लिए निराशा उत्पन्न करती है। कंधे की गति अत्यधिक सीमित हो जाती है। दर्द आम तौर पर अनवरत होता है, जो रात के समय अधिक बुरा होता है, जब मौसम ठंडा होता है एवं सीमित गति के साथ-साथ छोटे से छोटे कार्यों को भी असंभव बना देता है। कुछ गतियां या सूजन तीव्र दर्द की अचानक शुरु हो सकते हैं एवं ऐंठन उत्पन्न कर सकते हैं, जो कई मिनटों तक जारी रह सकते हैं। यह स्थिति, जिसके सही-सही कारण का पता नहीं है, पांच महीने से तीन वर्षों या अधिक समय तक जारी रह सकती है एवं कुछ स्थितियों में इसे संबंधित हिस्से में चोट या आघात के द्वारा उत्पन्न हुआ माना जाता है। यह माना जाता है कि इसका एक स्व-प्रतिरक्षित अवयव हो सकता है, जिसमें शरीर कैप्सूल में स्थित स्वस्थ ऊतकों पर हमला करता है। जोड़ में तरल पदार्थ का भी अभाव होता है, जो गति को और अधिक सीमित करता है। रोजमर्रा के कार्यों में कठिनाई के अलावा, आसंजी सम्‍पुट-प्रदाह (कैप्‍सूलाइटिस) से प्रभावित होने वाले लोग रात के समय और भी तेज होने वाले दर्द के कारण अधिक लंबे समय तक सोने की समस्याओं एवं सीमित गतियों/स्थितियों का अनुभव करते हैं। यह स्थिति अवसाद, दर्द और गर्दन तथा पीठ में में समस्याएं भी उत्पन्न कर सकती है। फ्रोजेन शोल्डर के जोखिम वाले कारकों में मधुमेह, दौरा पड़ना, दुर्घटनाएं, फेंफड़े का रोग, संयोजी ऊतक विकार और हृदय रोग शामिल हैं। 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों में यह स्थिति शायद ही कभी दिखाई देती है। इलाज कष्टदायक एवं भार डालने वाला हो सकता है एवं इसमें शारीरिक चिकित्सा, औषधि, मालिश चिकित्सा, शोथ संबंधी फैलाव या शल्य-चिकित्सा (सर्जरी) शामिल हो सकता है। एक डॉक्टर संज्ञाहरण के बाद हेरफेर भी कर सकता है, जो गति की कुछ सीमा वापस लौटाने के लिए जोड़ में आसंजनों तथा क्षतिग्रस्त उतक को तोड़ता है। दर्द और सूजन को दर्दनाशक दवाओं और एनएसएआईडी (NSAIDs) के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इस स्थिति स्वत:-सीमित करने वाली होती है: यह आम तौर पर बिना शल्य-चिकित्सा के समय के साथ विघटित करती है, लेकिन इसमें दो वर्षों तक का समय लग सकता है। अधिकांश लोग समय के साथ लगभग 90% कंधे की गति पुन: प्राप्त करते हैं। जो लोग आसंजी सम्‍पुट-प्रदाह (कैप्‍सूलाइटिस) से पीड़ित होते हैं, उन्हें कई महीनों तक या अधिक लंबे समय तक काम करने में एवं सामान्य जीवन की गतिविधियों के संबंध में अत्यधिक कठिनाई होती है। .

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कोकेन

कोकेन (Benzoylmethylecgonine) एक क्रिस्टलीय ट्रोपेन उपक्षार है, जो कोका पौधे की पत्तियों से प्राप्त होता है।अग्रवाल, अनिल.

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अलिंद विकम्‍पन

अलिंद इसके नाम से आता है (यानी, तंतुविकसन स्पंदन) प्रांगण के दिल की मांसपेशियों की, के बजाय एक समन्वित संकुचन.

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अंग तंत्र

तंत्र का एक उदाहरण - तंत्रिका तंत्र; इस चित्र में दिखाया गया है कि यह तंत्र मूलत: चार अंगों से मिलकर बना है: मस्तिष्क, प्रमस्तिष्क (cerebellum), मेरुदण्ड (spinal cord) तथा तंत्रिकाएं (nerve) नाना प्रकार के ऊतक (tissue) मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों (organs) का निर्माण करते हैं। इसी प्रकार, एक प्रकार के कार्य करनेवाले विभिन्न अंग मिलकर एक अंग तंत्र (organ system) का निर्माण करते हैं। कई अंग तंत्र मिलकर जीव (जैसे, मानव शरीर) की रचना करते हैं। .

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उच्च रक्तचाप

(HTN) हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप, जिसे कभी कभी धमनी उच्च रक्तचाप भी कहते हैं, एक पुरानी चिकित्सीय स्थिति है जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाता है। दबाव की इस वृद्धि के कारण, रक्त की धमनियों में रक्त का प्रवाह बनाये रखने के लिये दिल को सामान्य से अधिक काम करने की आवश्यकता पड़ती है। रक्तचाप में दो माप शामिल होती हैं, सिस्टोलिक और डायस्टोलिक, जो इस बात पर निर्भर करती है कि हृदय की मांसपेशियों में संकुचन (सिस्टोल) हो रहा है या धड़कनों के बीच में तनाव मुक्तता (डायस्टोल) हो रही है। आराम के समय पर सामान्य रक्तचाप 100-140 mmHg सिस्टोलिक (उच्चतम-रीडिंग) और 60-90 mmHg डायस्टोलिक (निचली-रीडिंग) की सीमा के भीतर होता है। उच्च रक्तचाप तब उपस्थित होता है यदि यह 90/140 mmHg पर या इसके ऊपर लगातार बना रहता है। हाइपरटेंशन प्राथमिक (मूलभूत) उच्च रक्तचाप तथा द्वितीयक उच्च रक्तचाप के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 90-95% मामले "प्राथमिक उच्च रक्तचाप" के रूप में वर्गीकृत किये जाते हैं, जिसका अर्थ है स्पष्ट अंतर्निहित चिकित्सीय कारण के बिना उच्च रक्तचाप। अन्य परिस्थितियां जो गुर्दे, धमनियों, दिल, या अंतःस्रावी प्रणाली को प्रभावित करती हैं, शेष 5-10% मामलों (द्वितीयक उच्च रक्तचाप) का कारण होतीं हैं। हाइपरटेंशन स्ट्रोक, मायोकार्डियल रोधगलन (दिल के दौरे), दिल की विफलता, धमनियों की धमनी विस्फार (उदाहरण के लिए, महाधमनी धमनी विस्फार), परिधीय धमनी रोग जैसे जोखिमों का कारक है और पुराने किडनी रोग का एक कारण है। धमनियों से रक्त के दबाव में मध्यम दर्जे की वृद्धि भी जीवन प्रत्याशा में कमी के साथ जुड़ी हुई है। आहार और जीवन शैली में परिवर्तन रक्तचाप नियंत्रण में सुधार और संबंधित स्वास्थ्य जटिलताओं के जोखिम को कम कर सकते हैं। हालांकि, दवा के माध्यम से उपचार अक्सर उन लोगों के लिये जरूरी हो जाता है जिनमें जीवन शैली में परिवर्तन अप्रभावी या अपर्याप्त हैं। .

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१९२३

कोई विवरण नहीं।

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९ मार्च

९ मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ६८वॉ (लीप वर्ष मे ६९वॉ) दिन है। साल मे अभी और २९७ दिन बाकी है। .

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