लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
डाउनलोड
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

पंच केदार

सूची पंच केदार

पंचकेदार (पाँच केदार) हिन्दुओं के पाँच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है। ये मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित हैं। इन मन्दिरों से जुड़ी कुछ किंवदन्तियाँ हैं जिनके अनुसार इन मन्दिरों का निर्माण पाण्दवों ने किया था। उत्तराखंड कुमाउँ-गढ्वाल और नेपाल का डोटी भाग में असीम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने गर्भ में छिपाए, हिमालय की पर्वत शृंखलाओं के मध्य, सनातन हिन्दू संस्कृति का शाश्वत संदेश देनेवाले, अडिग विश्वास के प्रतीक केदारनाथ और अन्य चार पीठों सहित, नव केदार के नाम से जाने जाते हैं। श्रद्धालु तीर्थयात्री, सदियों से इन पावन स्थलों के दर्शन कर, कृतकृत्य और सफल मनोरथ होते रहे हैं। .

5 संबंधों: रुद्रनाथ मन्दिर, सती अनसूइया मन्दिर, उत्तराखण्ड, कुमाऊँ हिमालय, केदारनाथ मन्दिर, केदारनाथ कस्बा

रुद्रनाथ मन्दिर

रुद्रनाथ मन्दिर गुफा द्वार रुद्रनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मन्दिर है जो कि पंचकेदार में से एक है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नन्दा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं। .

नई!!: पंच केदार और रुद्रनाथ मन्दिर · और देखें »

सती अनसूइया मन्दिर, उत्तराखण्ड

सती अनसूइया मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। नगरीय कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर स्थित इन स्थानों तक पहुँचने में आस्था की वास्तविक परीक्षा तो होती ही है साथ ही आम पर्यटकों के लिए भी ये यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं होती। यह मन्दिर हिमालय की ऊँची दुर्गम पहडियो पर स्थित है इसलिये यहाँ तक पहुँचने के लिये पैदल चढाई करनी पड़ती है। मन्दिर तक पहुँचने के लिए चमोली के मण्डल नामक स्थान तक मोटर मार्ग है। ऋषिकेश तक आप रेल या बस से पहुँच सकते हैं। उसके बाद श्रीनगर और गोपेश्वर होते हुए मण्डल पहुँचा जा सकता है। मण्डल से माता के मन्दिर तक पांच किलोमीटर की खडी चढाई है जिसपर श्रद्धालुओं को पैदल ही जाना होता है। मन्दिर तक जाने वाले रास्ते के आरंभ में पडने वाला मण्डल गांव फलदार पेडों से भरा हुआ है। यहां पर पहाडी फल माल्टा बहुतायत में होता है। गाँव के पास बहती कलकल छल छल करती नदी पदयात्री को पर्वत शिखर तक पहुँचने को उत्साहित करती रहती है। अनसूइया मन्दिर तक पहुँचने के रास्ते में बांज, बुरांस और देवदार के वन मुग्ध कर देते हैं। मार्ग में उचित दूरियों पर विश्राम स्थल और पीने के पानी की पर्याप्त उपलब्धता है जो यात्री की थकान मिटाने के लिए काफी हैं। सती अनसूइया मन्दिर के निकट बहने वाली मंदाकिनी नदी। यात्री जब मन्दिर के करीब पहुँचता है तो सबसे पहले उसे गणेश की भव्य मूर्ति के दर्शन होते हैं, जो एक शिला पर बनी है। कहा जाता है कि यह शिला यहां पर प्राकृतिक रूप से है। इसे देखकर लगता है जैसे गणेश जी यहां पर आराम की मुद्रा में दायीं ओर झुककर बैठे हों। यहां पर अनसूइया नामक एक छोटा सा गांव है जहां पर भव्य मन्दिर है। मन्दिर नागर शैली में बना है। ऐसा कहा जाता है जब अत्रि मुनि यहां से कुछ ही दूरी पर तपस्या कर रहे थे तो उनकी पत्नी अनसूइया ने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए इस स्थान पर अपना निवास बनाया था। कविंदती है कि देवी अनसूइया की महिमा जब तीनों लोकों में गाए जाने लगी तो अनसूइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को विवश कर दिया। पौराणिक कथा के अनुसार तब ये त्रिदेव देवी अनसूइया की परीक्षा लेने साधुवेश में उनके आश्रम पहुँचें और उन्होंने भोजन की इच्छा प्रकट की। लेकिन उन्होंने अनुसूइया के सामने पण (शर्त) रखा कि वह उन्हें गोद में बैठाकर ऊपर से निर्वस्त्र होकर आलिंगन के साथ भोजन कराएंगी। इस पर अनसूइया संशय में पड गई। उन्होंने आंखें बंद अपने पति का स्मरण किया तो सामने खडे साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खडे दिखलाई दिए। अनुसूइया ने मन ही मन अपने पति का स्मरण किया और ये त्रिदेव छह महीने के शिशु बन गए। तब माता अनसूइया ने त्रिदेवों को उनके पण के अनुरूप ही भोजन कराया। इस प्रकार त्रिदेव बाल्यरूप का आनंद लेने लगे। उधर तीनों देवियां पतियों के वियोग में दुखी हो गई। तब नारद मुनि के कहने पर वे अनसूइया के समक्ष अपने पतियों को मूल रूप में लाने की प्रार्थना करने लगीं। अपने सतीत्व के बल पर अनसूइया ने तीनों देवों को फिर से पूर्व में ला दिया। तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई। मन्दिर के गर्भ गृह में अनसूइया की भव्य पाषाण मूर्ति विराजमान है, जिसके ऊपर चाँदी का छत्र रखा है। मन्दिर परिसर में शिव, पार्वती, भैरव, गणेश और वनदेवताओं की मूर्तियां विराजमान हैं। मन्दिर से कुछ ही दूरी पर अनसूइया पुत्र भगवान दत्तात्रेय की त्रिमुखी पाषाण मू्र्ति स्थापित है। अब यहां पर एक छोटा सा मन्दिर बनाया गया है। मन्दिर से कुछ ही दूरी पर महर्षि अत्रि की गुफा और अत्रि धारा नामक जल प्रपात का विहंगम दृश्य श्रदलुओं और साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए आकर्षण का केंद्र है क्योंकि गुफा तक पहुँचने के लिए सांकल पकडकर रॉक क्लाइम्बिंग भी करनी पडती है। गुफा में महर्षि अत्रि की पाषाण मूर्ति है। गुफा के बाहर अमृत गंगा और जल प्रपात का दृश्य मन मोह लेता है। यहां का जलप्रपात शायद देश का अकेला ऐसा जल प्रपात है जिसकी परिक्रमा की जाती है। साथ ही अमृतगंगा को बिना लांघे ही उसकी परिक्रमा की जाती है। ठहरने के लिए यहां पर एक छोटा लॉज उपलब्ध है। आधुनिक पर्यटन की चकाचौंध से दूर यह इलाका इको-फ्रैंडली पर्यटन का द्वितिय उदाहरण भी है। यहां भवन पारंपरिक पत्थर और लकडियों के बने हैं। हर वर्ष दिसंबर के महीने में अनसूइया पुत्र दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर यहां एक मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में आसपास के गांव के लोग अपनी-अपनी डोली लेकर पहुँचते हैं। वैसे पूरे वर्षभर यहां की यात्रा की जाती है। इसी स्थान से पंच केदारों में से एक केदार रुद्रनाथ के लिए भी रास्ता जाता है। यहां से रूद्रनाथ की दूरी लगभग ७-८ किलोमीटर है। प्रकृति के बीच शांत और भक्तिमय माहौल में श्रद्धालु और पर्यटक अपनी सुधबुध खो बैठता है। .

नई!!: पंच केदार और सती अनसूइया मन्दिर, उत्तराखण्ड · और देखें »

कुमाऊँ हिमालय

कुमाऊँ हिमालय, हिमालय पर्वत श्रंखला के चार क्षैतिज विभाजनों में से एक है। सतलुज नदी से काली नदी के बीच फैली लगभग ३२० किलोमीटर लम्बी हिमालय श्रंखला को ही कुमाऊँ हिमालय कहा जाता है। उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश में स्थित इस पर्वत श्रंखला के पूर्व में नेपाल हिमालय तथा पश्चिम में कश्मीर हिमालय स्थित हैं। कुमाऊँ हिमालय चारों विभाजनों में सबसे छोटा है। यह अपनी झीलों तथा प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। नन्दा देवी, कामेत, त्रिशूल, केदारनाथ, बद्रीनाथ, दूनागिरी तथा गंगोत्री इत्यादि कुमाऊँ हिमालय की प्रमुख पर्वत चोटियाॅं हैं। गंगा, यमुना तथा रामगंगा नदियों का उद्गम कुमांऊँ हिमालय में ही होता है। नैनीताल, भीमताल, नौकुचियाताल तथा सात ताल इत्यादि यहाँ की प्रसिद्ध झीलें हैं। यहाँ कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी स्थित हैं, जिनमें चार धाम, पंच प्रयाग तथा पंच केदार प्रमुख हैं। .

नई!!: पंच केदार और कुमाऊँ हिमालय · और देखें »

केदारनाथ मन्दिर

केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्‍थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया। जून २०१३ के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। मंदिर की दीवारें गिर गई और बाढ़ में बह गयी। इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया। .

नई!!: पंच केदार और केदारनाथ मन्दिर · और देखें »

केदारनाथ कस्बा

केदारनाथ हिमालय पर्वतमाला में बसा भारत के उत्तरांचल राज्य का एक कस्बा है। यह रुद्रप्रयाग की एक नगर पंचायत है। यह हिन्दू धर्म के अनुयाइयों के लिए पवित्र स्थान है। यहाँ स्थित केदारनाथ मंदिर का शिव लिंग १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिन्दू धर्म के उत्तरांचल के चार धाम और पंच केदार में गिना जाता है। श्रीकेदारनाथ का मंदिर ३,५९३ मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। इतनी ऊँचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इस बारे में आज भी पूर्ण सत्य ज्ञात नहीं हैं। सतयुग में शासन करने वाले राजा केदार के नाम पर इस स्थान का नाम केदार पड़ा। राजा केदार ने सात महाद्वीपों पर शासन और वे एक बहुत पुण्यात्मा राजा थे। उनकी एक पुत्री थी वृंदा जो देवी लक्ष्मी की एक आंशिक अवतार थी। वृंदा ने ६०,००० वर्षों तक तपस्या की थी। वृंदा के नाम पर ही इस स्थान को वृंदावन भी कहा जाता है। यहाँ तक पहुँचने के दो मार्ग हैं। पहला १४ किमी लंबा पक्का पैदल मार्ग है जो गौरीकुण्ड से आरंभ होता है। गौरीकुण्ड उत्तराखंड के प्रमुख स्थानों जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून इत्यादि से जुड़ा हुआ है। दूसरा मार्ग है हवाई मार्ग। अभी हाल ही में राज्य सरकार द्वारा अगस्त्यमुनि और फ़ाटा से केदारनाथ के लिये पवन हंस नाम से हेलीकाप्टर सेवा आरंभ की है और इनका किराया उचित है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर बंद कर दिया जाता है और केदारनाथ में कोई नहीं रुकता। नवंबर से अप्रैल तक के छह महीनों के दौरान भगवान केदा‍रनाथ की पालकी गुप्तकाशी के निकट उखिमठ नामक स्थान पर स्थानांतरित कर दी जाती है। यहाँ के लोग भी केदारनाथ से आस-पास के ग्रामों में रहने के लिये चले जाते हैं। वर्ष २००१ की भारत की जनगणना के अनुसार केदारनाथ की जनसंख्या ४७९ है, जिसमें ९८% पुरुष और २% महिलाएँ है। साक्षरता दर ६३% है जो राष्ट्रीय औसत ५९.५% से अधिक है (पुरुष ६३%, महिला ३६%)। ०% लोग ६ वर्ष से नीचे के हैं। .

नई!!: पंच केदार और केदारनाथ कस्बा · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »