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नैपोलियन तृतीय

सूची नैपोलियन तृतीय

नैपोलियन तृतीय लुई नैपोलियन् बोनापार्ट (२० अप्रैल १८०८ - ९ जनवरी १८७३ ई.) फ्रांसीसी रिपब्लिक का प्रथम राष्ट्रपति तथा नैपोलियन तृतीय के रूप में द्वितीय फ्रांसीसी साम्राज्य का शासक था। वह नैपोलियन प्रथम का भतीजा तथा उत्तराधिकारी था। .

8 संबंधों: तृतीय फ्रांसीसी गणतंत्र, दूसरा फ्रांसीसी साम्राज्य, नेपोलियन (बहुविकल्पी), फ़्रांस का इतिहास, बैरॉन हॉसमान, सेडान युद्ध, विक्टर इमानुएल द्वितीय, क्रीमिया का युद्ध

तृतीय फ्रांसीसी गणतंत्र

तृतीय फ्रांसीसी गणतंत्र (The French Third Republic; फ्रांसीसी: La Troisième République) ने फ्रांस पर १८७० से लेकर १९४० तक शासन किया। इसकी स्थापना फ्रांस-प्रशा युद्ध के समय द्वितीय फ्रांसीसी साम्राज्य के समाप्त होने पर हुई तथा १९४० में नाजी जर्मनी द्वारा फ्रांस को पराजित करने के साथ इसका अन्त हुआ। 1870 ई. में सीडान (Sedan) के युद्ध में प्रशा के हाथों फ्रांस की शर्मनाक पराजय हुई थी जिसके परिणामस्वरूप फ्रांस को अपने दो बहुमूल्य प्रदेश अल्सास एवं लौरेन प्रशा को देना पड़े थे। इस पराजय के बाद फ्रांस की राजनीतिक स्थिति डवांडोल हो गई एवं तीसरी बार वहां गणतंत्र की स्थापना हुई, जिसे इतिहास में फ्रांस के तृतीय गणतंत्र के नाम से जाना जाता है। इस पराजय के बाद नैपोलियन तृतीय को बाध्य होकर आत्म-समर्पण करना पड़ा। वह बन्दी बना लिया गया। जब अगले दिन अर्थात् 3 सितम्बर को यह समाचार फ्रांस की राजधानी पेरिस पहुंचा तो पेरिस की समस्त जनता के मुख पर यह प्रश्न था कि अब क्या होगा, क्योंकि उनके द्वारा 20 वर्ष पूर्व स्थापित राज-सत्ता अकस्मात ही नष्ट हो गई। जनता अब इस निर्णय पर पहुंची कि फ्रांस में गणतन्त्र शासन की स्थापना की जानी चाहिये। उस समय व्यवस्थापिका सभा का अधिवेशन हो रहा था। जनता ने सभा से उस समय यह प्रस्ताव शीघ्र ही पास करवा लिया कि नैपोलियन तृतीय को फ्रांस के सम्राट के पद से पृथक कर दिया जाये। इस प्रकार नैपोलियन तृतीय का पतन हुआ और फ्रान्स में तीसरी बार गणतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई। .

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दूसरा फ्रांसीसी साम्राज्य

द्वितीय फ्रांसीसी साम्राज्य (French: Second Empire) फ्रांस में, दूसरे गणराज्य और तीसरें गणराज्य के बीच, 1852 से 1870 तक नैपोलियन तृतीय का शाही बोनापार्टिस्ट शासन था। .

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नेपोलियन (बहुविकल्पी)

* नैपोलियन (Napoleon) से निम्नलिखित व्यक्तियों का बोध हो सकता है-.

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फ़्रांस का इतिहास

९८५ से लेकर १९४७ तक की अवधि में फ्रांस की सीमाओं का विस्तार तथा संकुचन फ्रांस का प्राचीन नाम 'गॉल' था। यहाँ अनेक जंगली जनजातियों के लोग, मुख्य रूप से, केल्टिक लोग, निवास करते थे। सन्‌ 57-51 ई.पू.

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बैरॉन हॉसमान

बैरॉन हॉसमान बैरॉन हॉसमान (Georges-Eugène Haussmann; फ्रांसीसी उच्चारण: ​; 27 मार्च 1809 – 11 जनवरी 1891) फ्रांस का प्रसिद्ध वास्तुकार था जिसे नैपोलियन तृतीय ने पेरिस में नये पार्क, सड़कें, भवन एवं बड़े पैमाने पर अन्य सार्वजनिक कार्य करने के लिये नियुक्त किया। भारी आलोचना के कारण उसे अपना पद त्यागना पड़ा किन्तु उसकी दृष्टि ने पेरिस को वह कीर्ति दी जिससे १९वीं शताब्दी के अन्त तक पेरिस फ्रांस के लिये गर्व का विषय बन गया। यह नयी राजधानी पूरे यूरोप के लिए ईर्ष्या का विषय बन चुकी थी। पेरिस बहुत सारे ऐसे वास्तुशिल्पीय, सामाजिक और बौद्धिकक प्रयोगों का केन्द्र बन गया जो पूरी सदी तक यूरोप ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर अपना असर डालते रहे। हॉस्मान का नाम सुंदरता और व्यवस्था के नाम पर शहरों के जबरन पुनर्निर्माण का पर्याय बन चुका है। उसने शहर को सुन्दर बनाने और किसी भी तरह के विद्रोह की आशंका को दूर करने के लिए पेरिस के मध्य से गरीबों की बस्तियों को साफ करवा दिया था। सन् 1852 में लुई नेपोलियन तृतीय (नेपोलियन बोनापार्ट का भतीजा) ने खुद को सम्राट घोषित कर दिया। सत्ता सँभालने के बाद उसने पूरे जोश से पेरिस के पुनर्निर्माण का काम शुरू कर दिया। नए पेरिस के निर्माण का काम बैरॉन हॉसमान नामक वास्तुकार को सौंपा गया जो सियाँ का प्रिप़फेक्ट था। 1852 के बाद 17 साल तक हॉसमान पेरिस के पुनर्निर्माण में लगा रहा। शहर भर में सीधी, चौड़ी सड़कें (या, बुलेवर्ड्स / boulevards / छायादार सड़कें) बनाई गईं, खुले मैदान बनाए गए और बड़े-बड़े पेड़ लगा दिए गए। 1870 तक पेरिस की सड़कों में से 20 प्रतिशत हॉसमान की योजना के अनुसार बनाई जा चुकी थीं। पूरे शहर में पुलिस को तैनात किया गया, रात में गश्त शुरू की गई और बस अड्डों व टोंटी के पानी की व्यवस्था की गयी। इतने बड़े पैमाने पर काम करने के लिए बहुत सारे लोगों की जरूरत थी। 1860 के दशक में पेरिस के प्रत्येक पाँच कामकाजी लोगों में से एक निर्माण कार्यों में लगा था। इस पुनर्निर्माण अभियान में पेरिस के बीच रहने वाले 3,50,000 लोगों को उजाड़ दिया गया था। पेरिस के कुछ संपन्न निवासियों को भी लगता था कि उनके शहर को दानवी ढंग से बदल दिया गया है। उदाहरण के लिए, 1860 में गॉनकोर्ट बंधुओं ने अपने लेखन में पुरानी जीवनशैली के खत्म हो जाने और एक उच्चवर्गीय संस्कृति के स्थापित हो जाने पर गहरा दुख व्यक्त किया था। बहुतों का मानना था कि हॉसमान ने एक जैसे दिखने वाले बुलेवर्ड्स और छज्जों से भरा सुनसान, उदास शहर बनाने के लिए सड़क के जीवन और ‘सड़कों को मार डाला’ है। श्रेणी:वास्तुकार श्रेणी:पेरिस.

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सेडान युद्ध

सेडॉन युद्ध का मानचित्र सेडान युद्ध (Battle of Sedan) फ्रांस-प्रशा युद्ध के दौरान १ सितम्बर १८७० को हुआ था। नैपोलियन तृतीय और उसके बहुत सारे सैनिक पकडे गये। इस युद्ध में सभी दृष्टियों से प्रशा एवं उसके सहयोगियों की जीत हुई। इसके बावजूद नयी फ्रांसीसी सरकार ने युद्ध जारी रखा। .

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विक्टर इमानुएल द्वितीय

विक्तर इमनुएल द्वितीय विक्तर एमानुएल द्वितीय (Victor Emanuel II; इतालवी: Vittorio Emanuele Maria Alberto Eugenio Ferdinando Tommaso; १८२० - १८७८) वर्तमान इटली के 'जनक' (Father of the Fatherland; इतालवी: Padre della Patria) माने जाते हैं। उनका नाम जर्मनी के प्रिंस बिस्मार्क और भारत के सरदार पटेल के दर्जे का माना जाता है। इन्होंने अनेक राज्यों में विभक्त देश को एक कर वर्तमान इटली का रूप दिया, सीमावर्ती प्रबल देशों से उसे निर्भय बनाया और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलायी। .

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क्रीमिया का युद्ध

क्रीमिया युद्ध का रूसी भाषा में बना नक्शा। उत्तर-पूर्व में रूस और दक्षिण में तुर्की हैं। क्रीमिया का युद्ध (जुलाई, 1853 - सितंबर, 1855) तक काला सागर के आसपास चला युद्ध था, जिसमें फ्रांस, ब्रिटेन, सारडीनिया, तुर्की ने एक तरफ़ तथा रूस ने दूसरी तरफ़ से लड़ा था। 'क्रीमिया की लड़ाई' को इतिहास के सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण तथा अनिर्णायक युद्धों में से एक माना जाता है। युद्ध का कारण स्लाववादी राष्ट्रीयता की भावना थी। इसके अतिरिक्त दूसरे तरफ़ तुर्की के धार्मिक अत्याचार भी कारण बने, किंतु बेहद खून खराबे के बाद भी नतीजा कुछ भी नहीं निकला। यह युद्ध कदाचित् अकारण लड़ा गया था फिर भी यूरोपीय इतिहास में इसका विशेष महत्व आँका जाता है। उन दिनों यूरोपीय देशों में लोगों की यह धारणा हो गई थी कि रूस के पास इतने अधिक शस्त्रास्त्र हैं कि वह अजेय है। उससे लोग आतंकित थे। कुस्तंतुनिया की ओर राज्यविस्तार करने की रूस की नीति पीटर महान् के समय से ही चली आ रही थी। अपनी इस राज्यविस्तार की आकांक्षापूर्ति के लिये वह कोई न कोई बहाना ढूँढ़ता रहता था। इस युद्ध को पहला ऐसा युद्ध माना जाता है जिसमें जनता को प्रतिदिन की लड़ाई की ख़बर मिली। द टाइम्स अख़बार के विलियम रसेल और रोजर फ़ेंटन ने पत्र में इस लड़ाई का विवरण दिया था। .

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