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निशान साहिब

सूची निशान साहिब

निशान साहिब या निशान साहब सिखों का पवित्र त्रिकोणीय ध्वज है। यह पर्चम कपास या रेशम के कपड़े का बना होता है, इसके सिरे पर एक रेशम की लटकन होती है। इसे हर गुरुद्वारे के बाहर, एक ऊंचे ध्वजडंड पर फ़ैहराया जाता है। परंपरानुसार निशान साहब को फ़ैहरा रहे डंड में ध्वजकलश(ध्वजडंड का शिखर) के रूप में एक दोधारी खंडा (तलवार) होता है, एवं स्वयं ही डंड को पूरी तरह कपड़े से लिपेटा जाता है। झंडे के केंद्र में एक खंडा चिह्न (☬) होता है। निशान साहिब खालसा पंथ का पारंपरागक प्रतीक है। काफ़ी ऊंचाई पर फ़ैहराए जाने के कारण निशान साहिब को दूर से ही देखा जा सकता है। किसी भी जगह पर इसके फहरने का दृष्य, उस मौहल्ले में खालसा पंथ की मौजूदगी का प्रतीक माना जाता है। हर बैसाखी पर इसे नीचे उतार लिया जाता है और एक नए पर्चम से बदल दिया जाता है। .

3 संबंधों: हेमकुंट साहिब, होला मोहल्ला, खंडा (सिख चिन्ह)

हेमकुंट साहिब

हेमकुंट साहिब चमोली जिला, उत्तराखंड, भारत में स्थित सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह हिमालय में 4632 मीटर (15,200 फुट) की ऊँचाई पर एक बर्फ़ीली झील के किनारे सात पहाड़ों के बीच स्थित है। इन सात पहाड़ों पर निशान साहिब झूलते हैं। इस तक ऋषिकेश-बद्रीनाथ साँस-रास्ता पर पड़ते गोबिन्दघाट से केवल पैदल चढ़ाई के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। यहाँ गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब सुशोभित है। इस स्थान का उल्लेख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ में आता है। इस कारण यह उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो दसम ग्रंथ में विश्वास रखते हैं। .

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होला मोहल्ला

होला मोहल्ला सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहाँ पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए दशम गुरू गोविंद सिंह जी ने होली के लिए पुल्लिंग शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया। गुरु जी इसके माध्यम से समाज के दुर्बल और शोषित वर्ग की प्रगति चाहते थे। होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है। इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से 'महा प्रसाद' पका कर वितरित किया जाता है। पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। कहते है गुरु गोबिन्द सिंह (सिक्खों के दसवें गुरु) ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है। .

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खंडा (सिख चिन्ह)

खंडा चिन्ह(ਖੰਡਾ) एक सिख धार्मिक, सांस्कृतिक, एवं ऐतिहासिक चिन्ह है जो कई सिख, धर्म एव वष्वदर्षण, सिद्धांतों को ज़ाहिर रूप से दर्शाता है। यह "देगो-तेगो-फ़तेह" के सिद्धान्त का प्रतीक है एवं इसे चिन्हात्मक रूप में पेश करता है। यह सिखों का फ़ौजी निशान भी है, विशिष्ट रूप से, इसे निशान साहब(सिखों का धार्मिक ध्वज) के केंद्र में देखा जा सकता है। इसमें चार शस्त्र अंकित होते हैं: एक खंडा, दो किर्पन और एक चक्र। खंडा की एक वेशेष पहचान यह भी है कि वह धार्मिक सिद्धांतों के साथ-साथ शक्ती एवं सैन्य-ताक़त का भी प्रतीक है। इसी लिये इसे खाल्सा, सिख मिस्लें एवं सिख साम्राज्य के सैन्यध्वजों में भी इसे प्रदर्षित किया जाता था। एक दोधारी खंडे(तलवार) को निशान साहब ध्वज में ध्वजडंड के कलश(ध्वजकलश) की तरह भी इस्तमाल किया जाता है। .

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