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नारीवाद

सूची नारीवाद

नारीवाद राजनैतिक आंदोलन का एक सामाजिक सिद्धांत है जो स्त्रियों के अनुभवों से जनित है। हालाकि मूल रूप से यह सामाजिक संबंधो से अनुप्रेरित है लेकिन कई स्त्रीवादी विद्वान का मुख्य जोर लैंगिक असमानता और औरतों के अधिकार इत्यादि पर ज्यादा बल देते हैं। नारीवादी सिद्धांतो का उद्देश्य लैंगिक असमानता की प्रकृति एवं कारणों को समझना तथा इसके फलस्वरूप पैदा होने वाले लैंगिक भेदभाव की राजनीति और शक्ति संतुलन के सिद्धांतो पर इसके असर की व्याख्या करना है। स्त्री विमर्श संबंधी राजनैतिक प्रचारों का जोर प्रजनन संबंधी अधिकार, घरेलू हिंसा, मातृत्व अवकाश, समान वेतन संबंधी अधिकार, यौन उत्पीड़न, भेदभाव एवं यौन हिंसापर रहता है। स्त्रीवादी विमर्श संबंधी आदर्श का मूल कथ्य यही रहता है कि कानूनी अधिकारों का आधार लिंग न बने। आधुनिक स्त्रीवादी विमर्श की मुख्य आलोचना हमेशा से यही रही है कि इसके सिद्धांत एवं दर्शन मुख्य रूप से पश्चिमी मूल्यों एवं दर्शन पर आधारित रहे हैं। हालाकि जमीनी स्तर पर स्त्रीवादी विमर्श हर देश एवं भौगोलिक सीमाओं मे अपने स्त्र पर सक्रिय रहती हैं और हर क्षेत्र के स्त्रीवादी विमर्श की अपनी खास समस्याएँ होती हैं। .

41 संबंधों: चीयर्स, एनी बेसेन्ट, एमा वॉटसन, ऐलिसवॉकर, डेविड वुडर्ड, तसलीमा नसरीन, धड़ निरावरण, निवेदिता मेनन, पितृसत्ता, फ़ेला कुटी, बेल हुक्स, बेगम रुक़य्या, महात्मा गांधी, महिला सशक्तीकरण, राष्ट्र संघ, राजनीतिक विचारधाराओं की सूची, राजा आर्थर, लैंगिक भूमिकाएँ, शेरोन स्टोन, शीला केये-स्मिथ, सत्ता, सरोजिनी साहू, सुमन राजे, स्टार ट्रेक, हर-स्टोरी, हैरिएट हर्मन, जमीला निशात, जूलिया क्रिस्टेवा, वाद, विधि, विलियम ब्लेक, वैश्वीकरण, गायत्री चक्रवर्ती स्पीवाक, आमूल नारीवाद, कमला भसीन, अदा जाफ़री, अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध, अनीता सार्कीज़ियन, अराजक नारीवाद, उदारवादी नारीवाद, उर्वशी बुटालिया

चीयर्स

चीयर्स एक अमेरिकी स्थितिपरक कॉमेडी टीवी धारावाहिक है जिसे 1982 से 1993 तक ग्यारह सीज़न तक प्रसारित किया गया। इसका निर्माण पारामाउंट नेटवर्क टेलीविजन के साथ मिलकर चार्ल्स/बुरोस/चार्ल्स प्रोडक्शन द्वारा किया गया, जिसका प्रसारण एनबीसी ब्रोडकास्टिंग में किया गया था, जेम्स बुरोस, ग्लेन चार्ल्स और लेज चार्ल्स की एक टीम द्वारा इसका निर्माण किया गया। इस शो का नाम बौस्टन, मैसाचुसेट्स के चीयर्स बार ("चीयर्स" टोस्ट के लिए नाम) पर रखा गया, जहाँ स्थानीय लोग शराब पीने, आराम करने, बातचीत करने और आनंद उठाने के लिए इकट्ठा होते हैं। इस कार्यक्रम के थीम गीत को जुडी हार्ट एंजेलो और गेरी पोर्टनोय द्वारा लिखा गया और पोर्टनोय द्वारा प्रदर्शित किया गया, इसका प्रसिद्ध समवेत गान, "व्हेयर एवरीबॉडी नोज योर नेम" शो का टैगलाइन बना। 30 सितंबर 1982 को अपने प्रीमियर के बाद, यह पहले सीज़न के दौरान लगभग बंद ही हो चुका था, क्योंकि इसके प्रीमियर के समय रेटिंग्स में इसे अंतिम स्थान दिया गया था (77 शो में से 77वां).

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एनी बेसेन्ट

डॉ एनी बेसेन्ट (१ अक्टूबर १८४७ - २० सितम्बर १९३३) अग्रणी आध्यात्मिक, थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला थीं। सन १९१७ में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा भी बनीं। .

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एमा वॉटसन

एमा चारलॉट डुएरे वॉटसन (जन्म 15 अप्रैल 1990) एक ब्रिटिश अभिनेत्री है जो ''हैरी पॉटर'' फिल्म श्रृंखला की तीन स्टार भूमिकाओं में से एक, हरमाइन ग्रेनजर की भूमिका में उभर कर सामने आई.

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ऐलिसवॉकर

ऐलिस वॉकर .

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डेविड वुडर्ड

डेविड वुडर्ड (जन्म 6 अप्रैल, 1964, सांता बारबरा, कैलिफ़ोर्निया) एक अमेरिकी लेखक और कंडक्टर है। 1990 के दशक के दौरान उन्होंने प्रीक्विम शब्द, एक रिक्ति पूर्व और शान्ति यज्ञ का सूटकेस का आविष्कार किया, जो अपने विषय की मौत से पहले या उससे पहले समर्पित संगीत को लिखने के अपने बौद्ध अभ्यास का वर्णन करने के लिए किया गया था। लॉस एंजेलिस स्मारक सेवाएं, जिसमें वुडर्ड ने कंडक्टर या संगीत निर्देशक के रूप में कार्य किया है, अब 2001 का एक नागरिक समारोह शामिल है जिसमे अब दुर्घटना में मर चुके लियोन प्रपोर्ट और उनकी घायल विधवा लोला को एन्जिल्स फ्लाइट फनिक्युलर रेलवे ने सम्मान दिया। उन्होंने एक समुद्र तट के बर्म क्रिस्ट पर कैलिफोर्निया ब्राउन पेलिकन के लिए वन्यजीवन की आवश्यकताएं आयोजित की हैं जहां जानवर मर रहे थे। वुडर्ड अपनी ड्रीममशीन की एक प्रतिकृति के लिए जाने जाते हैं, जो एक हल्के मनोचिकित्सक लैंप है, जिसे पूरे विश्व में कला संग्रहालयों में प्रदर्शित किये गए हैं। जर्मनी और नेपाल में वह साहित्यिक जर्नल डेर फ्रुंड में योगदान के लिए जाने जाते हैं, जिसमें अंतरंग कर्म, वनस्पति चेतना और पैरागुआयन निपटान Nueva Germania (न्यूवे जर्मनिया) पर लेखन शामिल हैं। .

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तसलीमा नसरीन

तसलीमा नसरीन (जन्म: २५ अगस्त १९६२) बांग्ला लेखिका एवं भूतपूर्व चिकित्सक हैं जो १९९४ से बांग्लादेश से निर्वासित हैं। १९७० के दशक में एक कवि के रूप में उभरीं तसलीमा १९९० के दशक के आरम्भ में अत्यन्त प्रसिद्ध हो गयीं। वे अपने नारीवादी विचारों से युक्त लेखों तथा उपन्यासों एवं इस्लाम एवं अन्य नारीद्वेषी मजहबों की आलोचना के लिये जानी जाती हैं। बांग्लादेश में उनपर जारी फ़तवे के कारण आजकल वे कोलकाता में निर्वासित जीवन जी रही हैं। हालांकि कोलकाता में मुसलमानों के विरोध के बाद उन्हें कुछ समय के लिये दिल्ली और उसके बाद फिर स्वीडन में भी समय बिताना पड़ा लेकिन इसके बाद जनवरी २०१० में वे भारत लौट आईं। उन्होंने भारत में स्थाई नागरिकता के लिये आवेदन किया है लेकिन भारत सरकार की ओर से उस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। यूरोप और अमेरिका में एक दशक से भी अधिक समय रहने के बाद, तस्लीमा 2005 में भारत चले गए, लेकिन 2008 में देश से हटा दिया गया, हालांकि वह दिल्ली में रह रही है, भारत में एक आवासीय परमिट के लिए दीर्घावधि, बहु- 2004 के बाद से प्रवेश या 'एक्स' वीज़ा। उसे स्वीडन की नागरिकता मिली है। स्त्री के स्वाभिमान और अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए तसलीमा नसरीन ने बहुत कुछ खोया। अपना भरापूरा परिवार, दाम्पत्य, नौकरी सब दांव पर लगा दिया। उसकी पराकाष्ठा थी देश निकाला। नसरीन को रियलिटी शो बिग बॉस 8 में भाग लेने के लिए कलर्स (टीवी चैनल) की तरफ से प्रस्ताव दिया गया है। तसलीमा ने इस शो में भाग लेने से मना कर दिया है। .

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धड़ निरावरण

धड़ निरावरण (टॉपलेस) उस अवस्था को कहते हैं जिसमें महिलाएँ कमर से ऊपर कोई वस्त्र धारण नहीं करती हैं। इस अवस्था में वे अपने स्तन उजागर करती हैं।  .

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निवेदिता मेनन

निवेदिता मेनन एक स्त्रीवादी लेखिका और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं। बहरीकव्हरीग सबव्हरशन्:फेमिनिस्ट बिऑण्ड द् लॉ (२००४) की लेखक; और जेंडर ऐंन्ड पॉलिटिक्स इन् इंडिया (१९९९) सेक्श्युऑलिटिज् (२००८) की संपादक है। उसकी पुस्तक सीइंग लाइक ए फेमिनिस्ट् (२०१२) का खूब स्वागत हूया.

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पितृसत्ता

पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमे पुरुषों की प्राथमिक सत्ता होती हैं। राजनैतिक नेतृत्व, नैतिक अधिकार, सामाजिक सम्मान, सम्पत्ति का नियंत्रण की भूमिकाओं में प्रबल होते हैं। परिवार के क्षेत्र में पिता या अन्य पुरुष महिलाओं और बच्चों के ऊपर अधिकार जमाते है। इस व्यवस्था में स्त्री तथा पुरुष को समाज द्वारा दिए गए कार्यो के अनुसार चलना पढता है। धर्म, समाज व रूढ़िवादी परम्पराएं पितृसत्ता को अधिक ताक़तवर बनाती हैं। सदियों से महिलाएं पितृसत्ता के कारण उत्पीड़ित हो रही हैं। .

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फ़ेला कुटी

साल 1970 में फ़ेला कुटी फ़ेला अनिकुलापो कुटी (Fela Anikulapo Kuti, जन्म: 15 अक्तूबर 1938 अबोकुटा में; मृत्यु 2 अगस्त 1997 लागोस में) सुप्रसिद्ध नाइजीरियाई सैक्सोफ़ोनिस्ट तथा बैंड लीडर थे। वे एफ़्रॉबीट के मुख्य स्थापक को माने जाते हैं। .

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बेल हुक्स

ग्लोरीया जीन वॉटकिन्स (जन्म सितंबर २५, १९५२) जो अपने उपनाम बेल हुक्स से बेहतर जानी जाती हैं, एक अमरीकी नारीवादी लेखिका एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वॉटकिन्स ने अपना नाम 'बेल हुक्स' अपनी परनानी के नाम बेल ब्लैयर हुक्स पर रखा। इनके लेखन का केंद्र- रेस, पूंजीवाद, और जेंडर एवं इन तीनों के प्रतिच्छेदन से बनने वाली वर्ग वर्चस्व और उत्पीड़न की व्यवस्था पर रहा है। इन्होंने ३० से अधिक पुस्तकों एवं अनेक विद्वतापूर्ण लेखों की रचना की है। मुख्य रूप से एक उत्तराधुनिक दृष्टिकोण से बेल हुक्स ने शिक्षण, कला, इतिहास, लैंगिकता, स्त्रीवाद, तथा संचार मीडिया के क्षेत्रों में रेस, वर्ग और जेंडर के बात की है। .

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बेगम रुक़य्या

बेगम रुक़य्या रुक़य्या सख़ावत हुसैन (बंगाली: রোকেয়া সাখাওয়াত হোসেন), आम तौर पर बेगम रुक़य्या (बंगाली: বেগম রোকেয়া; 1880 – 9 दिसंबर 1932) अविभाजित बंगाल में सुप्रसिद्ध लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वे लैंगिक समानता का संघर्ष में अपना योगदान हेतु जाना जाता हैं। बेगम रुक़य्या ने मुसल्मान लड़कियों के लिए पाठशाला खोली, यह पाठशाला आज भी खुली रहती है। वे महत्त्वपूर्ण मुसल्मानी नारीवादी थीं। उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण और जानी-पहचानी कृतियाँ सुलताना का सपना व पद्दोराग हैं। समकालीन बंगाली नारीवादी तसलीमा नसरीन ने कहा कि वे बेगम रुक़य्या की कृतियाँ से काफ़ी प्रभावित हुई। उसका जन्मनाम रुक़य्या ख़ातुन था, परंतु वे सामान्य रूप से बेगम रुक़य्या नाम से कहा जाता है। .

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महात्मा गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में नमक सत्याग्रह और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। .

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महिला सशक्तीकरण

महिला सशक्तीकरण के अंतर्गत महिलाओं से जुड़े सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और कानूनी मुद्दों पर संवेदनशीलता और सरोकार व्यक्त किया जाता है। सशक्तीकरण की प्रक्रिया में समाज को पारंपरिक पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के प्रति जागरूक किया जाता है, जिसने महिलाओं की स्थिति को सदैव कमतर माना है। वैश्विक स्तर पर नारीवादी आंदोलनों और यूएनडीपी आदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने महिलाओं के सामाजिक समता, स्वतंत्रता और न्याय के राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। महिला सशक्तीकरण, भौतिक या आध्यात्मिक, शारिरिक या मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है। .

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राष्ट्र संघ

राष्ट्र संघ (लंदन) पेरिस शांति सम्मेलन के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्ववर्ती के रूप में गठित एक अंतर्शासकीय संगठन था। 28 सितम्बर 1934 से 23 फ़रवरी 1935 तक अपने सबसे बड़े प्रसार के समय इसके सदस्यों की संख्या 58 थी। इसके प्रतिज्ञा-पत्र में जैसा कहा गया है, इसके प्राथमिक लक्ष्यों में सामूहिक सुरक्षा द्वारा युद्ध को रोकना, निःशस्त्रीकरण, तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों का बातचीत एवं मध्यस्थता द्वारा समाधान करना शामिल थे। इस तथा अन्य संबंधित संधियों में शामिल अन्य लक्ष्यों में श्रम दशाएं, मूल निवासियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार, मानव एवं दवाओं का अवैध व्यापार, शस्त्र व्यपार, वैश्विक स्वास्थ्य, युद्धबंदी तथा यूरोप में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा थे। संघ के पीछे कूटनीतिक दर्शन ने पूर्ववर्ती सौ साल के विचारों में एक बुनियादी बदलाव का प्रतिनिधित्व किया। चूंकि संघ के पास अपना कोई बल नहीं था, इसलिए इसे अपने किसी संकल्प का प्रवर्तन करने, संघ द्वारा आदेशित आर्थिक प्रतिबंध लगाने या आवश्यकता पड़ने पर संघ के उपयोग के लिए सेना प्रदान करने के लिए महाशक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता था। हालांकि, वे अक्सर ऐसा करने के लिए अनिच्छुक रहते थे। प्रतिबंधों से संघ के सदस्यों को हानि हो सकती थी, अतः वे उनका पालन करने के लिए अनिच्छुक रहते थे। जब द्वित्तीय इटली-अबीसीनिया युद्ध के दौरान संघ ने इटली के सैनिकों पर रेडक्रॉस के मेडिकल तंबू को लक्ष्य बनाने का आरोप लगाया था, तो बेनिटो मुसोलिनी ने पलट कर जवाब दिया था कि “संघ तभी तक अच्छा है जब गोरैया चिल्लाती हैं, लेकिन जब चीलें झगड़ती हैं तो संघ बिलकुल भी अच्छा नहीं है”.

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राजनीतिक विचारधाराओं की सूची

यह राजनीतिक विचारधाराओं की सूची है। अनेक राजनीतिक दल अपने राजनीतिक कार्यों और चुनाव पत्र को किसी विचारधारा पर आधारित रखते हैं। सामाजिक अध्ययन में, राजनीतिक विचारधारा, किसी सामाजिक आन्दोलन, संस्था, वर्ग, और/या बड़े समूह के आदर्शों, सिद्धान्तों, उपदेशनों, मिथकों या प्रतीकों का एक नीतिशास्त्रीय समुच्चय है, जो समाज को कैसे काम करना चाहिए यह समझाती है, और किसी सामाजिक व्यवस्था के लिए कोई राजनीतिक या सांस्कृतिक ब्लूप्रिंट प्रदान करती हैं। राजनीतिक विचारधाराओं के दो आयाम होते हैं.

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राजा आर्थर

1520 के दशक में अल्ब्रेक्ट ड्यूरर द्वारा डिजाइन की गई और पीटर विस्चेर द एल्डर द्वारा कास्ट की गई इन्स्ब्रुक के होफ्किर्च में किंग आर्थर की प्रतिमा2 किंग आर्थर एक महान ब्रिटिश नेता थे, जिन्होंने मध्ययुगीन इतिहास और कल्पित-कथा के अनुसार छठी शताब्दी के प्रारम्भ में सक्सोन आक्रमणकारियों के खिलाफ ब्रिटेन की सेना का नेतृत्व किया था। आर्थर की कहानी का ब्यौरा मुख्य रूप से लोककथाओं और साहित्यिक आविष्कार से बना है और उनके ऐतिहासिक अस्तित्व को लेकर आधुनिक इतिहासकारों में विवाद और मतभेद हैं। आर्थर की विरल ऐतिहासिक पृष्ठभूमि विभिन्न स्रोतों से बटोरी गयी है, जिसमें अन्नालेस कैम्ब्रिए, हिस्टोरिया ब्रिटोनम और गिल्दस का लेखन भी शामिल है। आर्थर नाम आरम्भिक काव्य स्रोतों में पाया जाता है जैसे वाई गोडोद्दीन.

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लैंगिक भूमिकाएँ

लैंगिक(जेंडर) भूमिकाए समाज मे स्वीकार वह व्यवहार है जो पुरुष और स्त्री के लिंग पर आधारित होते है | यह भूमिकाए नारित्व और मर्दानगी की धारनयो को विरोधी स्थापित करते है, परंतु कई अपवाद भी मौजूद है | विभिन्न संस्कृतीयो मे अलग-अगाल भूमिकाए हो सकती है | कुछ लक्षण ऐसे भी होते है जो विभिन्न संस्कृतीयो मे समान होते है | आज कल यह वाद-विवाद चल रहा है की यह भूमिकाए सामाजिक है या जैविक रूप से चुने गये है | कई समूह ने इन स्थापित भूमिकायो मे बदलाव लाने का प्रयत्न किया है क्योंकि वह बहुत ही शोषक और दमनकारी है, जिनमे नारीवाद आंदोलन प्रमुख है | श्रेणी:नारीवाद.

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शेरोन स्टोन

शेरोन य्वोन स्टोन (जन्म - 10 मार्च 1958) एक अमेरिकी अभिनेत्री, फिल्म निर्माता और पूर्व फैशन मॉडल है। एक कामुक रोमांचक फिल्म, बेसिक इंस्टिंक्ट में अपने प्रदर्शन के लिए उसने पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की.

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शीला केये-स्मिथ

200px शीला केये-स्मिथ (४ फरवरी १८८७- १४ जनवरी १९५६) एक अंग्रेज़ी लेखिका थी। क्शेत्रीय परंपरा में ससेक्स और केंट की सीमाओं पर रचित उनके उपन्यास केलिये वे जाने जाते हैं। १९२३ में लिखित "दी एंड ऑफ द हाउस ऑफ अलार्ड" पुस्तक ने उनको प्रसिद्धी दी। इसके बाद उसको बहुत सफलताएँ मिली और इनकी पुस्तकों ने दुनिया भर में बिक्री का आनंद लिया। .

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सत्ता

अगर कोई किसी से अपनी मर्ज़ी के आधार पर कुछ ऐसे काम करवा सकता है जो वह अन्यथा नहीं करता, तो इसे एक व्यक्ति की दूसरे पर सत्ता (Power) की संज्ञा दी जाएगी। सत्ता की यह सहज लगने वाली परिभाषा रॉबर्ट डाह्ल की देन है। इसका सूत्रीकरण केवल व्यक्तियों के संदर्भ में किया गया है। जैसे ही समूह और सामूहिकता के दायरे में सत्ता पर ग़ौर किया जाता है, कई पेचीदा और विवादास्पद प्रश्न खड़े हो जाते हैं। समझा जाता है कि सामूहिक संदर्भ में सत्ता का आशय ऐसे फ़ैसले करने से है जिन्हें मानने के लिए दूसरे लोग मजबूर हों। उदाहरण के लिए, अध्यापक द्वारा किये गये निर्णय उसकी कक्षा के छात्र मानते हैं और परिवार के सदस्य माता-पिता के फ़ैसलों के आधार पर चलते हैं। लेकिन, राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज-नीति के मामलों के लिए सत्ता की यह परिभाषा अपर्याप्त साबित होती है। समाज-विज्ञान के छात्र यह पूछ सकते हैं कि समाज के संदर्भ में सत्ता किस के पास रहती है, किसके पास रहनी चाहिए और किस आधार पर उसका प्रयोग किया जाना चाहिए? इन प्रश्नों के प्रकाश में आधुनिक विचार के दायरे में सत्ता के प्रश्न पर गहराई से चिंतन-मनन किया गया है। सत्ता से जुड़े अहम सवालों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि सत्ता समाज में व्यापक और समान रूप से वितरित है या किसी शासक वर्ग या किसी ‘पॉवर इलीट’ के हाथों में केंद्रित है?  सत्ता का प्रश्न उस समय और जटिल हो जाता है जब सत्ता और उसका प्रयोग करने से जुड़े इरादे के समीकरण पर ग़ौर किया जाता है। पार्टियाँ, सरकार, हित-समूह और बड़े-बड़े कॉरपोरेशन सत्ता का इस्तेमाल करते हुए देखे जा सकते हैं। यह सत्ता के इरादतन प्रयोग के उदाहरण हैं। पर क्या यही बात एक विज्ञापक के लिए भी कही जा सकती है? उसका इरादा तो महज़ अपने उत्पाद की बिक्री बढ़ाना है। तो फिर उसके द्वारा जारी विज्ञापन उपभोक्ताओं पर अपनी सत्ता किस तरह से कायम करता है? उपभोक्ता उस विज्ञापन के प्रभाव में कुछ ख़ास तरह के मूल्यों के हक में क्यों झुक जाते हैं? स्पष्ट है कि सत्ता के ‘अभिप्रेत’ रूपों के अलावा भी कुछ ऐसे रूप हैं जिन्हें सत्ता के ‘संरचनागत’ रूपों की संज्ञा दी जा सकती है। स्टीवन ल्यूक्स ने सत्ता के तीन आयामों की चर्चा करके उसके कई पहलुओं को समेटने की कोशिश की है। उनके अनुसार सत्ता का मतलब है निर्णय लेने का अधिकार अपनी मुट्ठी में रखने की क्षमता, सत्ता का मतलब है राजनीतिक एजेंडे को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए निर्णयों के सार को बदल देने की क्षमता और सत्ता का मतलब है लोगों की समझ और प्राथमिकताओं से खेलते हुए उनके विचारों को अपने हिसाब से नियंत्रित करने की क्षमता। रॉबर्ट डाह्ल यह नहीं मानते कि निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता किसी सुपरिभाषित ‘शासक अभिजन’ या रूलिंग क्लास की मुट्ठी में रहती है। 1963 में प्रकाशित अपनी रचना हू गवर्न्स? में डाह्ल ने अमेरिका के न्यू हैविंस, कनेक्टीकट का अध्ययन पेश किया। इसमें उन्होंने पहले अपने लिहाज़ से निर्णय के तीन प्रमुख क्षेत्रों (शहरी नवीकरण, सार्वजनिक शिक्षा और राजनीतिक उम्मीदवारों का चयन) को छाँटा, निर्णय-प्रक्रिया में शामिल लोगों और उनकी प्राथमिकताओं की शिनाख्त की और फिर उन लोगों द्वारा किये गये फ़ैसलों का उनकी प्राथमिकताओं से मिलान किया। डाह्ल ने यह तो पाया कि आर्थिक और राजनीतिक रूप से ताकतवर लोगों की आम लोगों के मुकाबले फ़ैसलों में ज़्यादा चलती है, पर उन्हें अभिजनों के किसी स्थाई समूह द्वारा फ़ैसले करने या उन्हें प्रभावित करने के सबूत नहीं मिले। वे इस नतीजे पर पहुँचे कि निर्णयों को प्रभावित करने में सत्ता की भूमिका तो होती है, पर सत्ता एक नहीं बल्कि कई केंद्रों में होती हैं। दाह्म की मान्यता है कि अगर इसी तरह से सत्ता के स्थानीय रूपों के अध्ययन कर लिए जाएँ तो उसके राष्ट्रीय स्वरूप के बारे में नतीजे निकाले जा सकते हैं। राजनीतिक एजेंडा अपने हिसाब से बनवाने में सत्ता के इस्तेमाल की शिनाख्त करना थोड़ा मुश्किल है। इस प्रक्रिया में ज़ोर फ़ैसले करने पर कम और दूसरों को फ़ैसलों में शामिल होने से रोकने या किसी ख़ास मत को व्यक्त होने से रोकने पर ज़्यादा रहता है। सत्ता की इस भूमिका को समझने के लिए आवश्यक है कि स्थापित मूल्यों, राजनीतिक मिथकों, चलन और संस्थाओं के काम करने के तरीकों पर ध्यान दिया जाए। इनके ज़रिये किसी एक समूह का निहित स्वार्थ दूसरे समूहों पर हावी हो जाता है और कई मामलों में उन समूहों को अपनी बात कहने या निर्णय-प्रक्रिया में हिस्सेदारी का मौका भी नहीं मिल पाता। अक्सर यथास्थिति के पैरोकार परिवर्तन की वकालत करने वालों को इन्हीं तरीकों से हाशिये पर धकेलते रहते हैं। उदार-लोकतांत्रिक राजनीति की प्रक्रियाओं को अभिजनवादियों द्वारा ऐसे फ़िल्टरों की तरह देखा जाता है जिनके ज़रिये रैडिकल प्रवृत्तियाँ छँटती चली जाती हैं। सत्ता का तीसरा चेहरा यानी लोगों के विचारों को नियंत्रित करके अपनी बात मनवाने की प्रक्रिया लोगों की आवश्यकताओं को अपने हिसाब से तय करने की करामात पर निर्भर है। हरबर्ट मारक्यूज़ ने अपनी विख्यात रचना वन- डायमेंशनल मैन (1964) में विश्लेषण किया है कि क्यों विकसित औद्योगिक समाजों को भी सर्वसत्तावादी की श्रेणी में रखना चाहिए। मारक्यूज़ के अनुसार हिटलर के नाज़ी जर्मनी में या स्टालिन के रूस में सत्ता के आतंक का प्रयोग करके सर्वसत्तावादी राज्य कायम किया गया था, पर औद्योगिक समाजों में यही काम आधुनिक प्रौद्योगिकी के ज़रिये बिना किसी प्रत्यक्ष क्रूरता के लोगों की आवश्यकताओं को बदल कर किया जाता है। ऐसे समाजों में टकराव ऊपर से नहीं दिखता, पर इसका मतलब सत्ता के व्यापक वितरण में नहीं निकाला जा सकता। जिस समाज में विपक्ष और प्रतिरोध नहीं है, वहाँ माना जा सकता है कि मनोवैज्ञानिक नियंत्रण और जकड़बंदी के बारीक हथकण्डों का इस्तेमाल हो रहा है। सत्ता की अवधारणा पर विचार करने के लिए ज़रूरी है कि उसके मार्क्सवादी, उत्तर-आधुनिक, नारीवादी आयामों और हान्ना अरेंड्ट द्वारा प्रतिपादित सत्ता की वैकल्पिक धारणा पर भी ग़ौर कर लिया जाए। मार्क्सवादी विद्वान मानते हैं कि वर्गों में बँटे समाज में (जैसे कि पूँजीवादी समाज) शासक वर्ग का उत्पादन के साधनों पर कब्ज़ा होता है और वह मज़दूर वर्ग पर अपनी सत्ता थोपता है। पूँजीवादी वर्ग की सत्ता न केवल विचारधारात्मक, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक भी होती है। मार्क्स का विचार था कि किसी भी समाज में विचारों, मूल्यों और आस्थाओं के प्रधान रूप शासक वर्ग के अनुकूल होते हैं। मज़दूर वर्ग के मानस पर उन्हीं की छाप होती है जिसका नतीजा श्रमिकों की ‘भ्रांत चेतना’ में निकलता है। चेतना के इसी रूप के कारण मज़दूर अपने शोषण की असलियत को पहचान नहीं पाते। इसीलिए उनके ‘वास्तविक’ हित यानी पूँजीवादी के उन्मूलन और उनके ‘अनुभूत’ हित में अंतर बना रहता है। लेनिन की मान्यता थी कि पूँजीवादी विचारधारा की सत्ता के कारण मेहनतकश वर्ग ज़्यादा से ज़्यादा केवल ‘ट्रेड यूनियन चेतना’ ही प्राप्त कर सकता है। अर्थात् वह पूँजीवादी व्यवस्था के दायरे के भीतर अपनी जीवन-स्थितियाँ सुधारने से परे नहीं जा पाता। मिशेल फ़ूको ने अपने विमर्श में सत्ता और विचार-प्रणालियों के बीच सूत्र की तरफ़ ध्यान खींचा है। फ़ूको विमर्श को सामाजिक संबंधों और आचरणों की ऐसी प्रणाली के रूप में देखते हैं जो अपने दायरे में रहने वाले लोगों को अपने हिसाब से तात्पर्य थमाती रहती है। चाहे मनोचिकित्सा हो, औषधि हो, न्याय प्रणाली हो, या कारागार, अकादमीय अनुशासन या राजनीतिक विचारधाराएँ हों, फ़ूको की निगाह में ये सभी विमर्श की प्रणालियाँ हैं और इस नाते सत्ता के रूप हैं। फ़ूको के मुताबिक आधुनिक युग में सत्ता किसी को कुछ करने से नहीं रोकती, बल्कि अस्मिताओं और आत्मपरकताओं की रचना करती है। सत्ता का राज्य या शासक वर्ग जैसे कोई एक केंद्र नहीं होता, बल्कि वह उसी तरह पूरी व्यवस्था में प्रवाहित होती रहती है जिस तरह शरीर में धमनियों द्वारा रक्त प्रवाहित होता है। इस प्रक्रिया का नियंत्रण ‘शासकीयता’ के ज़रिये किया जाता है। एक विशाल नौकरशाही तंत्र द्वारा अननिगनत तरीके अपना कर लोगों का वर्गीकरण किया जाता है। समाज को उत्तरोत्तर संगठित और समरूपीकृत करते हुए उन पर निगरानी के विभिन्न रूप (आइडेंटिटी कार्ड्स, पासपोर्ट आदि) थोपे जाते हैं। इस प्रक्रिया में लोग तरह-तरह की आत्मपरकताएँ (हिंदू-मुसलमान, भारतीय-पाकिस्तानी, शिक्षित-निरक्षर, स्वस्थ- रोगी, स्त्री-पुरुष) जज़्ब कर लेते हैं। इसी आत्मसातीकरण के माध्यम से व्यक्ति सत्ता को ‘नॉर्मल’ ढंग से स्वीकार करता रहता है। शासकीयता इसी ‘नार्मलाइज़ेशन’ के माध्यम से व्यक्ति को ‘सब्जेक्ट’ में बदलती है। सब्जेक्ट एक ऐसी अभिव्यक्ति है जिसका एक अर्थ है स्वतंत्र कर्त्ता और दूसरा है शासित प्रजा का सदस्य। फ़ूको का मतलब यह है कि विमर्श के ज़रिये सब्जेक्ट में बदलते ही व्यक्ति शासकीयता की कारगुज़ारियों की मातहती में चला जाता है। नारीवादी विद्वान सत्ता को पितृसत्ता की अवधारणा की रोशनी में परखते हैं। पितृसत्ता प्रभुत्व की एक ऐसी सर्वव्यापी संरचना है जो हर स्तर पर काम करती है। पितृसत्ता के तहत कोई स्त्री व्यक्तिगत स्तर पर सत्तावान भी हो सकती है। लेकिन उसे पितृसत्तात्मक शासन द्वारा तय की गयी सीमाओं में ही काम करना होगा। मसलन, घर के दायरे में स्त्री सास के रूप में तो एक हद तक सत्ताधारी हो सकती है, पर बेटी, बहू, पत्नी या बहिन के रूप में नहीं। हर जगह उसकी स्थिति पुरुष के सापेक्ष और उसके साथ संबंध के तहत ही परिभाषित होने के लिए मजबूर है। अकेली और पृथक् कोई अस्मिता न होने के कारण वह अदृश्य और सत्ता से वंचित होने के लिए अभिशप्त है।  नारीवादियों के मुताबिक पितृसत्ता की कोई ऐसी समरूप संरचना नहीं होती जो हर जगह एक ही रूप में मिलती हो।  इतिहास, भूगोल और संस्कृति के मुताबिक उसके भिन्न-भिन्न रूप मिलते हैं। इसके अलावा पितृसत्ता शोषण और प्रभुत्व के अन्य रूपों (वर्ग, जाति, साम्राज्यवाद, नस्ल आदि) के साथ परस्परव्यापी भी है। हर जगह उसके प्रभाव अलग-अलग निकलते हैं। एक अमेरिकी श्वेत स्त्री और भारतीय दलित स्त्री को पितृसत्ता का उत्पीड़न अलग-अलग ढंग से झेलना पड़ता है। हान्ना एरेंत सत्ता को केवल प्रभुत्व की संरचना के तौर पर देखने के लिए तैयार नहीं हैं। अपनी रचना ‘व्हाट इज़ अथॉरिटी?’ में वे सत्ता को एक बढ़ी हुई क्षमता के रूप में व्याख्यायित करती हैं जो सामूहिक कार्रवाई के ज़रिये हासिल की जाती है। लोग जब आपस में संवाद स्थापित करते हैं और मिल-जुल कर एक साझा उद्यम की ख़ातिर कदम उठाते हैं तो उस प्रक्रिया में सत्ता उद्भूत होती है। सत्ता का यह रूप वह आधार मुहैया कराता है जिस पर खड़े हो कर व्यक्ति नैतिक उत्तरदायित्व का वहन करते हुए सक्रिय होता है। .

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सरोजिनी साहू

सरोजिनी साहू (ओड़िया: ସରୋଜିନୀ ସାହୁ) ओड़िया भाषा की एक प्रमुख साहित्यकार हैं। वे स्त्री विमर्श से जुड़ी कृतियों के लिए विशेष रूप से चर्चित रही हैं। सरोजिनी चेन्नई स्थित अंग्रेजी पत्रिका इंडियन एज ('Indian AGE) की सहयोगी संपादक हैं। कोलकाता की अंग्रेजी पत्रिका “किंडल” ने उन्हे भारत की 25 असाधारण महिलाओं में शुमार किया है। .

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सुमन राजे

सुमन राजे हिंदी साहित्य से जुड़ी लेखिका, कवयित्री, और इतिहासकार हैं। .

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स्टार ट्रेक

स्टार ट्रेक एक अमेरिकी कल्पित विज्ञान मनोरंजन श्रृंखला है। मूल स्टार ट्रेक, जीन रॉडेनबेरी द्वारा निर्मित एक अमेरिकी टेलीविज़न श्रृंखला थी, जो पहली बार 1966 में प्रसारित हुई और तीन सीज़नों तक चली, जिसमें कैप्टन जेम्स टी. कर्क और फ़ेडरेशन स्टारशिप ''एंटरप्राइज़'' के चालक दल के अंतरातारकीय रोमांचक कारनामों का अनुगमन किया गया.

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हर-स्टोरी

हर-स्टोरी को एक लोग जिसमें इतिहास के महिलाओं के दृष्टिकोण को बल दिया गया है। हर-स्टोरी एक कहानी है जो नारीवाद के दृष्टिकोण से लिखी गई है और जिसमें महिलाओं के चरित्र पर बल दिया गया है या फिर विवरण औरतों के दृष्टिकोण से किया गया है। यह एक नवीन रूप से प्रयुक्त शब्द है और इतिहासकारी की यह एक नारीवादी समीक्षा है। इस धारण के अनुसार सांस्कृतिक रूप से इतिहास "हिज़-स्टोरी" या पुरुषों के दृष्टिकोण को दिखाता है और हर-स्टोरी सिक्के के दूसरे अनकहे पहलू को दिखाने का प्रयास है।Jane Mills, "Womanwords: a dictionary of words about women", 1992,, .

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हैरिएट हर्मन

हैरिएट रुथ हर्मन (जन्म: ३० जुलाई १९५०), महारानी एलिज़ाबेथ II की सलाहकार समिति की सदस्य, एक ब्रिटिश अधिवक्ता और राजनेत्री हैं। यह २०१५ से लेबर पार्टी की कार्यकारी नेता और यूनाइटेड किंगडम की संसद में नेता विपक्ष भी हैं। यह १९८२ से यूके की सांसद हैं जब यह पहली बार १९८२ में पेकहम से और फिर १९९७ में कैंबरवेल व पेकहम निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुनी गईं थीं। स्त्री अधिकारों के लिए लड़ने वाली हर्मन एक प्रखर महिलावादी नेता के रूप में भी जानी जाती हैं। इन्होंने जोर दे कर कहा है "मैं लेबर पार्टी में इसलिए हूँ क्यूंकि मैं एक महिलावादी हूँ। मैं लेबर पार्टी में इसलिए हूँ क्यूंकि मैं समानता में यकीन रखती हूँ।" लदंन में पिता डॉक्टर जॉन बी.

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जमीला निशात

जमीला निशात (जन्म 1955) उर्दू कवि, हैदराबाद, तेलंगाना, भारत से संपादक, और नारीवादी है।  .

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जूलिया क्रिस्टेवा

जूलिया क्रिस्टेवा (Юлия Кръстева; जन्म 24 जून 1941) एक बल्गेरियाई-फ्रेंच दार्शनिक, साहित्यिक आलोचक, मनोविश्लेषक, नारीवादी, और, सबसे हाल ही में, उपन्यासकार है 1960 के दशक के मध्य से फ्रांस में रह रही है। वह अब विश्वविद्यालय पेरिस डिडरोट में प्रोफेसर हैं। क्रिस्टेवा 1969 में अपनी पहली पुस्तक, सेमियोटिक्स प्रकाशित करने के बाद अंतर्राष्ट्रीय आलोचनात्मक विश्लेषण, सांस्कृतिक अध्ययन और नारीवाद में प्रभावशाली बनीं। उनके काम का बड़ा हिस्सा किताबों और निबंधों में शामिल होता है, जो भाषाविज्ञान, साहित्यिक सिद्धांतों और आलोचना के क्षेत्र में इंटर टेक्स्ट्युलिटी, सांकेतिकता, और अपकर्षन, मनोविश्लेषण, जीवनी और आत्मकथा, राजनीतिक और सांस्कृतिक विश्लेषण, कला और कला इतिहास को संबोधित करता है। वह संरचनावाद और उत्तर संरचनावाद चिन्तन में प्रमुख हैं। क्रिस्टेवा सिमोन डी बेउओवर पुरस्कार समिति की संस्थापक और प्रमुख भी हैं। .

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वाद

वाद एक प्रत्यय है जिसका प्रयोग यदि किसी भी शब्द में शामिल किया जाए तो वह उसके अर्थ में एक विशेष प्रकार का परिवर्तन कर उसकी व्याख्या को किसी विशेष पक्ष में वर्णित कर देता है। सामान्यतः यह प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त होता है जैसे - राष्ट्रवाद, नारीवाद, देववाद, उदारवाद...

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विधि

विधि (या, कानून) किसी नियमसंहिता को कहते हैं। विधि प्रायः भलीभांति लिखी हुई संसूचकों (इन्स्ट्रक्शन्स) के रूप में होती है। समाज को सम्यक ढंग से चलाने के लिये विधि अत्यन्त आवश्यक है। विधि मनुष्य का आचरण के वे सामान्य नियम होते है जो राज्य द्वारा स्वीकृत तथा लागू किये जाते है, जिनका पालन अनिवर्य होता है। पालन न करने पर न्यायपालिका दण्ड देता है। कानूनी प्रणाली कई तरह के अधिकारों और जिम्मेदारियों को विस्तार से बताती है। विधि शब्द अपने आप में ही विधाता से जुड़ा हुआ शब्द लगता है। आध्यात्मिक जगत में 'विधि के विधान' का आशय 'विधाता द्वारा बनाये हुए कानून' से है। जीवन एवं मृत्यु विधाता के द्वारा बनाया हुआ कानून है या विधि का ही विधान कह सकते है। सामान्य रूप से विधाता का कानून, प्रकृति का कानून, जीव-जगत का कानून एवं समाज का कानून। राज्य द्वारा निर्मित विधि से आज पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। राजनीति आज समाज का अनिवार्य अंग हो गया है। समाज का प्रत्येक जीव कानूनों द्वारा संचालित है। आज समाज में भी विधि के शासन के नाम पर दुनिया भर में सरकारें नागरिकों के लिये विधि का निर्माण करती है। विधि का उदेश्य समाज के आचरण को नियमित करना है। अधिकार एवं दायित्वों के लिये स्पष्ट व्याख्या करना भी है साथ ही समाज में हो रहे अनैकतिक कार्य या लोकनीति के विरूद्ध होने वाले कार्यो को अपराध घोषित करके अपराधियों में भय पैदा करना भी अपराध विधि का उदेश्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1945 से लेकर आज तक अपने चार्टर के माध्यम से या अपने विभिन्न अनुसांगिक संगठनो के माध्यम से दुनिया के राज्यो को व नागरिकों को यह बताने का प्रयास किया कि बिना शांति के समाज का विकास संभव नहीं है परन्तु शांति के लिये सहअस्तित्व एवं न्यायपूर्ण दृष्टिकोण ही नहीं आचरण को जिंदा करना भी जरूरी है। न्यायपूर्ण समाज में ही शांति, सदभाव, मैत्री, सहअस्तित्व कायम हो पाता है। .

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विलियम ब्लेक

विलियम ब्लेक (28 नवम्बर 1757 – 12 अगस्त 1827) एक अंग्रेज कवि, चित्रकार तथा प्रिंट रचयिता थे। अपने जीवनकाल में उन्हें ख्याति नहीं मिली, किंतु अब उन्हें रोमैंटिक युग की कविता और चाक्षुष कलाओं के क्षेत्र की एक महान आरंभिक हस्ती के रूप में माना जाता है। उनके भविष्यदर्शी काव्य के बारे में कहा गया है कि वह “अंग्रेजी भाषा का ऐसा काव्य है जिसे उसकी खूबियों के अनुपात से कम पढ़ा गया”.

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वैश्वीकरण

Puxi) शंघाई के बगल में, चीन. टाटा समूहहै। वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है।वैश्वीकरण का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के सन्दर्भ में किया जाता है, अर्थात, व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूंजी प्रवाह, प्रवास और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण.

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गायत्री चक्रवर्ती स्पीवाक

गायत्री चक्रवर्ती स्पीवाक (जन्म २४ फ़रवरी १९४२) एक भारतीय साहित्यिक विचारक, दार्शनिक और कोलंबिया विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय प्राध्यापिका है, जहां ये तुलनात्मक साहित्य और समाज संस्थान की एक संस्थापक सदस्य है। वर्ष २०१२ मे उन्हे कला और दर्शनशास्र में क्योटो पुरस्कार से सम्मानित किया गया। २०१३ में उन्हें भारत गणराज्य के द्वारा दिए गए तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से नवाज़ा गया। स्पीवाक उनकी समकालीन सांस्कृतिक और "उपनिवेशवाद की विरासत" को चुनौती देने वाली आलोचनात्मक सिद्धांतों के लिए प्रसिद्ध है। ये पाठकों के साहित्य और संस्कृति के साथ संलग्न पर भी चिंतन करना चाहती है। ये ज्यादातर उन लोगों के सांस्कृतिक ग्रंथों पर अपना ध्यान केंद्रित करती है जो प्रमुख पश्चिमी संस्कृति द्वारा अधिकारहीन किये गए हो: श्रमिक वर्ग, औरत, नए आप्रवासी सबाल्टर्न के अन्य स्थान। .

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आमूल नारीवाद

आमूल नारीवाद नारीवाद के भीतर का एक दृष्टिकोण है, जो समाज की आमूल पुनर्व्यवस्था का आह्वान देता है, जिस में सारे सामाजिक और आर्थिक प्रसंगों में पुरुष वर्चस्व मिट जाएँ।Willis, p. 117.

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कमला भसीन

कमला भसीन (जन्म 24 अप्रैल 1946) एक भारतीय विकास नारीवादी कार्यकर्ता, कवयित्री, लेखिका तथा सामाजिक विज्ञानी हैं। भसीन का काम, जो कि 35 साल के आरपार फैला हुआ है, लिंग, शिक्षा, मानवीय विकास और मीडिया पर केन्द्रित है। वे नई दिल्ली, भारत में रहती हैं। वे अपनी एनजीओ, संगत, जो कि नारीवादी साउथ एशियन नैटवर्क का हिस्सा है, और अपनी कविता "क्योंकि मैं लड़की हुँ मुझे पढ़ना है" के लिए बेहतरीन जाना जाता है। ग्रामीण और शहरी ग़रीबों को तगड़ा करने के लिए उनकी सरगर्मियों की शुरुआत 1972 में राजस्थान में सरगर्म एक स्वैछिक संगठन से हुई थी। बाद में वे युनाइटड नेशंस फ़ूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गनाइज़ेशन (एफ़एओ) के एनजीओ दक्षिण एशिया प्रोगराम से जुड़ी थी जहाँ उन्होंने 27 साल तक काम किया। .

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अदा जाफ़री

अदा जाफ़री एक पाकिस्तानी लेखिका और कवयित्री थीं। यह पहली मुख्य रूप से उर्दू में कविता लिखने वाली महिला बनी। इनकी कहानी के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। कवयित्री होने के साथ-साथ वे एक लेखिका भी थी और समकालीन उर्दू साहित्य मे उनका विशिष्ठ स्थान है।https://books.google.co.in/books?id.

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अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध

राष्ट्र महल (Palace of Nations): जेनेवा स्थित इस भवन में २०१२ में ही दस हाजार से अधिक अन्तरसरकारी बैठकें हुईं। जेनेवा में विश्व की सर्वाधिक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध (IR) विभिन्न देशों के बीच संबंधों का अध्ययन है, साथ ही साथ सम्प्रभु राज्यों, अंतर-सरकारी संगठनों (IGOs), अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों (INGOs), गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) की भूमिका का भी अध्ययन है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध को कभी-कभी 'अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन' (इंटरनेशनल स्टडीज (IS)) के रूप में भी जाना जाता है, हालांकि दोनों शब्द पूरी तरह से पर्याय नहीं हैं। .

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अनीता सार्कीज़ियन

अनीता सार्कीज़ियन (2011) अनीता सार्कीज़ियन (अंग्रेज़ी: Anita Sarkeesian; जन्म 1984, टोरंटो में) सुप्रसिद्ध कनाडाई-अमेरिकी नारीवादी मीडिया आलोचक एवं वीडियो ब्लॉगर हैं। वे विषेश रूप से पॉप-क्लचर (लोकप्रिय संकृति) एवं वीडियो गेमों में महिलाओं की भूमिकाओं की आलोचना करतीं हैं। उनकी परियोजना "ट्रॉप्स वर्सज़ वीमन इन विडियो गेम्ज़ / Tropes vs.

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अराजक नारीवाद

अराजक नारीवाद (Anarcha-feminism या anarchist feminism या anarcho-feminism) में अराजकता और नारीवाद इन दोनों के तत्त्वों का सम्मिश्रण होता है। श्रेणी:नारीवाद.

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उदारवादी नारीवाद

उदारवादी नारीवाद एक व्यक्तिवादी किस्म का नारीवाद हैं, जिसमे औरतें समझती है की वह अपनी सोच और करतब से समानता पा सकती हैं। उदारवादी नारीवादियों का मानना हैं की सामाजिक संस्थाओं में औरतों की आवाज़ और उनकी पहचान का सही मायने में प्रतिनिधित्व नहीं हो पता। उनका कहना है की, इसकी वजह औरतोंके के प्रति भेदभावपूर्ण नियम और क़ानून है। इसी कारण औरते विकास से वंचित रहती है। .

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उर्वशी बुटालिया

sliterated Text in Unicode उर्वशी बुटालिया भारत की पहली फेमिनिस्ट पब्लिशिंग हाउस की संस्थापक हैं और लंबे समय से महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। निर्भया कांड के बाद 2013 में इन्होंने महिला हिंसा और सुरक्षा को लेकर विभिन्न मंचों से सख्त तेवर दिखाए। सरकारी नीतियों की आलोचना की और महिलाओं के लिए नए क्राइसिस सेंटर समेत हेल्पलाइनों की स्थापना पर खास जोर दिया। दुनियाभर में प्रतिष्ठित मानी जाने वाली पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ ने वर्ष-2013 के 100 टॉप ग्लोबल थिंकर्स में उर्वशी को भी स्थान दिया है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

नारीवादी, स्त्री विमर्श, स्त्री-विमर्श, स्त्रीवाद, स्त्रीवादी

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