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नादिर शाह

सूची नादिर शाह

नादिर शाह अफ़्शार (या नादिर क़ुली बेग़) (१६८८ - १७४७) फ़ारस का शाह था (१७३६ - १७४७) और उसने सदियों के बाद क्षेत्र में ईरानी प्रभुता स्थापित की थी। उसने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था और फ़ारस का शाह ही नहीं बना बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु उस्मानी साम्राज्य और रूसी साम्राज्य को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला। उसने अफ़्शरी वंश की स्थापना की थी और उसका उदय उस समय हुआ जब ईरान में पश्चिम से उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन) का आक्रमण हो रहा था और पूरब से अफ़गानों ने सफ़ावी राजधानी इस्फ़हान पर अधिकार कर लिया था। उत्तर से रूस भी फ़ारस में साम्राज्य विस्तार की योजना बना रहा था। इस परिस्थिति में भी उसने अपनी सेना संगठित की और अपने सैन्य अभियानों की वज़ह से उसे फ़ारस का नेपोलियन या एशिया का अन्तिम महान सेनानायक जैसी उपाधियों से सम्मानित किया जाता है। वो भारत विजय के अभियान पर भी निकला था। दिल्ली की सत्ता पर आसीन मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह आलम को हराने के बाद उसने वहाँ से अपार सम्पत्ति अर्जित की जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था। इसके बाद वो अपार शक्तिशाली बन गया और उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में वो बहुत अत्याचारी बन गया था। सन् १७४७ में उसकी हत्या के बाद उसका साम्राज्य जल्द ही तितर-बितर हो गया। .

24 संबंधों: दुर्रानी साम्राज्य, नादिरशाह, बामियान के बुद्ध, मध्यकालीन भारत, मिर्ज़ा नजफ खां, मुग़ल साम्राज्य, राव गुजरमल सिंह, लूटपाट, शिवाजी, जुरअत, ईरान, ईरान का इतिहास, ख़ीवा ख़ानत, खूनी दरवाजा, इराक़, कल्होड़ा राजवंश, कांधार, कोहिनूर हीरा, अफ़शारी राजवंश, अफ़ग़ानिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास, अहमद शाह अब्दाली, उर्दू साहित्य, २४ फ़रवरी

दुर्रानी साम्राज्य

दुर्रानी साम्राज्य (पश्तो:, द दुर्रानियानो वाकमन​ई) एक पश्तून साम्राज्य था जो अफ़्ग़ानिस्तान पर केन्द्रित था और पूर्वोत्तरी ईरान, पाकिस्तान और पश्चिमोत्तरी भारत पर विस्तृत था। इस १७४७ में कंदहार में अहमद शाह दुर्रानी (जिसे अहमद शाह अब्दाली भी कहा जाता है) ने स्थापित किया था जो अब्दाली कबीले का सरदार था और ईरान के नादिर शाह की फ़ौज में एक सिपहसलार था। १७७३ में अहमद शाह की मृत्यु के बाद राज्य उसके पुत्रों और फिर पुत्रों ने चलाया जिन्होने राजधानी को काबुल स्थानांतरित किया और पेशावर को अपनी शीतकालीन राजधानी बनाया। अहमद शाह दुर्रानी ने अपना साम्राज्य पश्चिम में ईरान के मशाद शहर से पूर्व में दिल्ली तक और उत्तर में आमू दरिया से दक्षिण में अरब सागर तक फैला दिया और उसे कभी-कभी आधुनिक अफ़्ग़ानिस्तान का राष्ट्रपिता माना जाता है।, Library of Congress Country Studies on Afghanistan, 1997, Accessed 2010-08-25 .

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नादिरशाह

कोई विवरण नहीं।

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बामियान के बुद्ध

अलेक्जेंडर बर्नस द्वारा १८३२ में बना बामियान के बुद्ध का चित्रण। बामियान के बुद्ध चौथी और पांचवीं शताब्दी में बनी बुद्ध की दो खडी मूर्तियां थी जो अफ़ग़ानिस्तान के बामयान में स्थित थी। ये काबुल के उत्तर पश्चिम दिशामें २३० किलोमीटर (१४० मील) पर, २५०० मीटर (८२०० फीट) की ऊंचाई पर थे। इनमेंसे छोटी मूर्ति सन् ५०७ में और बडी मूर्ति सन् ५५४ में निर्मित थी। ये क्रमश: ३५ मीटर (११५ फीट) और ५३ मीटर (१७४ फीट) की ऊंचाई की थी। मार्च २००१ में अफ़ग़ानिस्तान के जिहादी संगठन तालिबान के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के कहने पर डाइनेमाइट से उडा दिया गया। कुछ हफ्तों में संयुक्त राज्य अमेरिका के दौरेपर अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के दूत सईद रहमतुल्लाह हाशमी ने बताया कि उन्होने विशेष रूप से मूर्तियोंके रखरखाव के लिए आरक्षित अंतर्राष्ट्रीय सहायता का विरोध किया था जबकि अफ़ग़ानिस्तान अकाल का सामना कर रहा था। .

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मध्यकालीन भारत

मध्ययुगीन भारत, "प्राचीन भारत" और "आधुनिक भारत" के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की लंबी अवधि को दर्शाता है। अवधि की परिभाषाओं में व्यापक रूप से भिन्नता है, और आंशिक रूप से इस कारण से, कई इतिहासकार अब इस शब्द को प्रयोग करने से बचते है। अधिकतर प्रयोग होने वाले पहली परिभाषा में यूरोपीय मध्य युग कि तरह इस काल को छठी शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक माना जाता है। इसे दो अवधियों में विभाजित किया जा सकता है: 'प्रारंभिक मध्ययुगीन काल' 6वीं से लेकर 13वीं शताब्दी तक और 'गत मध्यकालीन काल' जो 13वीं से 16वीं शताब्दी तक चली, और 1526 में मुगल साम्राज्य की शुरुआत के साथ समाप्त हो गई। 16वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक चले मुगल काल को अक्सर "प्रारंभिक आधुनिक काल" के रूप में जाना जाता है, लेकिन कभी-कभी इसे "गत मध्ययुगीन" काल में भी शामिल कर लिया जाता है। एक वैकल्पिक परिभाषा में, जिसे हाल के लेखकों के प्रयोग में देखा जा सकता है, मध्यकालीन काल की शुरुआत को आगे बढ़ा कर 10वीं या 12वीं सदी बताया जाता है। और इस काल के अंत को 18वीं शताब्दी तक धकेल दिया गया है, अत: इस अवधि को प्रभावी रूप से मुस्लिम वर्चस्व (उत्तर भारत) से ब्रिटिश भारत की शुरुआत के बीच का माना जा सकता है। अत: 8वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के अवधि को "प्रारंभिक मध्ययुगीन काल" कहा जायेगा। .

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मिर्ज़ा नजफ खां

मिर्ज़ा नजफ़ खां मिर्ज़ा नजफ़ खां (१७२२-१७८२) मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के दरबार में एक फारसी एडवेंचरर था। इसके सफ़ावी वंश को नादिर शाह ने १७३५ में पदच्युत कर दिया था। नजफ़ खां भारत १७४० में आया था। इसकी बहन का विवाह अवध के नवाब से हुआ था। इसे अवध के उप-वज़ीर का पद भी मिला था। मिर्ज़ा १७२२ से अपनी मृत्यु पर्यन्त मुगल सेना का सिपहसालार रहा था। अप्रैल, १७८२ में इसकी मृत्यु हुई। इसके बाद इसका मकबरा नई दिल्ली के लोधी रोड के निकट कर्बला क्षेत्र में स्थित है। दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में स्थित नजफगढ़ का नाम नजफ़ खां के नाम पर ही पड़ा है। इलाहाबाद के फौजदार मोहम्मद कुली खाँ का मामा। मोहम्मद कुली के समय में (1753-59) नजफ़ खाँ इलाहाबाद के किले का रक्षक था। .

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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राव गुजरमल सिंह

राव गुजरमल सिंह (1739-1750) राव नंदराम सिंह पुत्र थे तथा चंद्रवंशी अहीर शासक थे। राव गुजरमल के बड़े भाई राव बाल किशन 24 फरवरी 1739 को करनाल युद्ध में नादिर शाह के विरुद्ध लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुए, उनके बाद राव गुजरमल राजा बने। राव बाल किशन कि वीरता और बहादुरी को देखते हुए नादिर शाह ने राव राज घराना को "राव बहादुर" का खिताब नवाजा। राव गुजरमल के समय पर अहीर परिवार की शक्ति चरम सीमा पर थी। उनकी जागीर में रेवाड़ी, झज्जर, दादरी, हांसी, हिसार, कनौद, व नारनौल आदि प्रमुख नगर शामिल थे। गुरावडा व गोकुल गढ़ के किले इसी काल की देन है। गोकुल सिक्का मुद्रा का प्रचालन इसी काल में किया गया। अपने पिता के नाम स्तूप व जलाशय का भी निर्माण गूजरमल ने करवाया था। उन्होने मेरठ के ब्रहनपुर व मोरना तथा रेवाड़ी में रामगढ़, जैतपुर व श्रीनगर गावों की स्थापना की थी। फर्रूखनगर का बलोच राजा व हाथी सिंह का वंशज घसेरा का बहादुर सिंह दोनों राव गुजरमल के कातर शत्रु थे। बहादुर सिंह, भरतपुर के जाट राजा सूरजमल से अलग होकर स्वतंत्र शासन कर रहा था। तब राव गुजरमल ने सूरजमल के साथ मिलकर उसे मुहतोड़ जवाब दिया। गुजरमल का बहादुर सिंह के ससुर नीमराना के टोडरमल से भी मैत्रीपूर्ण सम्बंध था। सन 1750 मे, टोडरमल ने राव गूजरमल को बहादुर सिंह के कहने पर आमंत्रित किया ओर धोखे से उनका वध कर दिया। .

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लूटपाट

लूटपाट सैन्य या राजनीतिक जीत, युद्ध, प्राकृतिक आपदा या दंगे में तबाही के दौरान, बल द्वारा जान-माल का अंधाधुंध लेना होता है। लूटपाट या लूट शब्द का प्रयोग साधारण चोरी या गबन के लिये भी होता है। .

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शिवाजी

छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले (१६३० - १६८०) भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने १६७४ में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन १६७४ में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने। शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध (Gorilla War) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवाजी के जीवनचरित से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया। .

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जुरअत

शेख़ क़लन्दर अलीबख़्श "जुरअत", फ़ैज़ाबाद के प्रसिद्ध उर्दू शायर थे। इनके पूर्वज दिल्ली के निवासी थे जो नादिर शाह के आक्रमण के समय यहाँ आ गए थे। यहाँ के दरबार में मिर्ज़ा क़तील और सैयद इंशा भी थे। इनकी लतीफ़ागोई और मसख़री शीर्ष पर थी। ये सितार भी बजाते थे। ये अपने को मीर के दर्जे का समझते थे। जल्दी ही ये अमीरों के हरम तक में चुटकुला सुनाने के लिए बुलवाए जाने लगे। फिर अंधेपन का बहाना बनाकर परदे और हया की सीमा को लाँग गए। बाद में ये वास्तव में अंधे हो गए। दरबार में इसपर भी टिप्पणियाँ और फ़ब्तियाँ कसी जाने लगी। नियाज़ फ़तेहपुरी के शब्दों में जुरअत सिर्फ ग़ज़ल कहने वाले शायर थे और हुश्नओइश्क़ को उन्होंने बहुत अदने सतह पर आकर बयान किया है। इसलिए ये एक ख़ास तर्ज़ के आविष्कारक समझे जाते हैं, जिसमें शोख़ी, बेबाकी बल्कि अश्लीलता का भी असर है। .

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ईरान

ईरान (جمهوری اسلامی ايران, जम्हूरीए इस्लामीए ईरान) जंबुद्वीप (एशिया) के दक्षिण-पश्चिम खंड में स्थित देश है। इसे सन १९३५ तक फारस नाम से भी जाना जाता है। इसकी राजधानी तेहरान है और यह देश उत्तर-पूर्व में तुर्कमेनिस्तान, उत्तर में कैस्पियन सागर और अज़रबैजान, दक्षिण में फारस की खाड़ी, पश्चिम में इराक और तुर्की, पूर्व में अफ़ग़ानिस्तान तथा पाकिस्तान से घिरा है। यहां का प्रमुख धर्म इस्लाम है तथा यह क्षेत्र शिया बहुल है। प्राचीन काल में यह बड़े साम्राज्यों की भूमि रह चुका है। ईरान को १९७९ में इस्लामिक गणराज्य घोषित किया गया था। यहाँ के प्रमुख शहर तेहरान, इस्फ़हान, तबरेज़, मशहद इत्यादि हैं। राजधानी तेहरान में देश की १५ प्रतिशत जनता वास करती है। ईरान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तेल और प्राकृतिक गैस निर्यात पर निर्भर है। फ़ारसी यहाँ की मुख्य भाषा है। ईरान में फारसी, अजरबैजान, कुर्द और लूर सबसे महत्वपूर्ण जातीय समूह हैं .

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ईरान का इतिहास

सुसा में दारुश (दारा) के महल के बाहर बने "अमर सेनानी"। यह उपाधि कुछ चुनिन्दा सैनिकों को दी जाती थी जो महल रक्षा तथा साम्राज्य विस्तार में प्रमुख माने जाते थे। ईरान का पुराना नाम फ़ारस है और इसका इतिहास बहुत ही नाटकीय रहा है जिसमें इसके पड़ोस के क्षेत्र भी शामिल रहे हैं। इरानी इतिहास में साम्राज्यों की कहानी ईसा के ६०० साल पहले के हख़ामनी शासकों से शुरु होती है। इनके द्वारा पश्चिम एशिया तथा मिस्र पर ईसापूर्व 530 के दशक में हुई विजय से लेकर अठारहवीं सदी में नादिरशाह के भारत पर आक्रमण करने के बीच में कई साम्राज्यों ने फ़ारस पर शासन किया। इनमें से कुछ फ़ारसी सांस्कृतिक क्षेत्र के थे तो कुछ बाहरी। फारसी सास्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में आधुनिक ईरान के अलावा इराक का दक्षिणी भाग, अज़रबैजान, पश्चिमी अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान का दक्षिणी भाग और पूर्वी तुर्की भी शामिल हैं। ये सब वो क्षेत्र हैं जहाँ कभी फारसी सासकों ने राज किया था और जिसके कारण उनपर फारसी संस्कृति का प्रभाव पड़ा था। सातवीं सदी में ईरान में इस्लाम आया। इससे पहले ईरान में जरदोश्त के धर्म के अनुयायी रहते थे। ईरान शिया इस्लाम का केन्द्र माना जाता है। कुछ लोगों ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें यातनाएं दी गई। इनमें से कुछ लोग भाग कर भारत के गुजरात तट पर आ गए। ये आज भी भारत में रहते हैं और इन्हें पारसी कहा जाता है। सूफ़ीवाद का जन्म और विकास ईरान और संबंधित क्षेत्रों में ११वीं सदी के आसपास हुआ। ईरान की शिया जनता पर दमिश्क और बग़दाद के सुन्नी ख़लीफ़ाओं का शासन कोई ९०० साल तक रहा जिसका असर आज के अरब-ईरान रिश्तों पर भी देखा जा सकता है। सोलहवीं सदी के आरंभ में सफ़वी वंश के तुर्क मूल लोगों के सत्ता में आने के बाद ही शिया लोग सत्ता में आ सके। इसके बाद भी देश पर सुन्नियों का शासन हुआ और उन शासकों में नादिर शाह तथा कुछ अफ़ग़ान शासक शामिल हैं। औपनिवेशक दौर में ईरान पर किसी यूरोपीय शक्ति ने सीधा शासन तो नहीं किया पर अंग्रेज़ों तथा रूसियों के बीच ईरान के व्यापार में दखल पड़ा। १९७९ की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान की राजनैतिक स्थिति में बहुत उतार-चढ़ाव आता रहा है। ईराक के साथ युद्ध ने भी देश को इस्लामिक जगत में एक अलग जगह पर ला खड़ा किया है। २३ जनवरी २००८ .

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ख़ीवा ख़ानत

ख़ीवा ख़ानत​ (उज़बेक:, ख़ीवा ख़ानलीगी; अंग्रेज़ी: Khanate of Khiva) मध्य एशिया के ख़्वारेज़्म क्षेत्र में स्थित १५११ से १९२० तक चलने वाली एक उज़बेक ख़ानत​ थी। इसके ख़ान (शासक) मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज़ ख़ान के ज्येष्ठ पुत्र जोची ख़ान के पाँचवे बेटे शेयबान के वंशज थे और उनके राज में केवल १७४०-१७४६ काल में खलल पड़ा जब ईरान के तुर्क-मूल के अफ़शारी राजवंश के नादिर शाह ने आकर यहाँ ६ वर्षों के अन्तराल के लिए क़ब्ज़ा कर लिया। .

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खूनी दरवाजा

खूनी दरवाजा (उर्दू خونی دروازہ), जिसे लाल दरवाजा भी कहा जाता है, दिल्ली में बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग पर दिल्ली गेट के निकट स्थित है। यह दिल्ली के बचे हुए १३ ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है। यह पुरानी दिल्ली के लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में, फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान के सामने स्थित है। इसके पश्चिम में मौलाना आज़ाद चिकित्सीय महाविद्यालय का द्वार है। यह असल में दरवाजा न होकर तोरण है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे सुरक्षित स्मारक घोषित किया है। .

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इराक़

इराक़ पश्चिमी एशिया में स्थित एक जनतांत्रिक देश है जहाँ के लोग मुख्यतः मुस्लिम हैं। इसके दक्षिण में सउदी अरब और कुवैत, पश्चिम में जोर्डन और सीरिया, उत्तर में तुर्की और पूर्व में ईरान अवस्थित है। दक्षिण पश्चिम की दिशा में यह फ़ारस की खाड़ी से भी जुड़ा है। दजला नदी और फरात इसकी दो प्रमुख नदियाँ हैं जो इसके इतिहास को ५००० साल पीछे ले जाती हैं। इसके दोआबे में ही मेसोपोटामिया की सभ्यता का उदय हुआ था। इराक़ के इतिहास में असीरिया के पतन के बाद विदेशी शक्तियों का प्रभुत्व रहा है। ईसापूर्व छठी सदी के बाद से फ़ारसी शासन में रहने के बाद (सातवीं सदी तक) इसपर अरबों का प्रभुत्व बना। अरब शासन के समय यहाँ इस्लाम धर्म आया और बगदाद अब्बासी खिलाफत की राजधानी रहा। तेरहवीं सदी में मंगोल आक्रमण से बगदाद का पतन हो गया और उसके बाद की अराजकता के सालों बाद तुर्कों (उस्मानी साम्राज्य) का प्रभुत्व यहाँ पर बन गया २००३ से दिसम्बर २०११ तक अमेरिका के नेतृत्व में नैटो की सेना की यहाँ उपस्थिति बनी हुई थी जिसके बाद से यहाँ एक जनतांत्रिक सरकार का शासन है। राजधानी बगदाद के अलावा करबला, बसरा, किर्कुक तथा नजफ़ अन्य प्रमुख शहर हैं। यहाँ की मुख्य बोलचाल की भाषा अरबी और कुर्दी भाषा है और दोनों को सांवैधानिक दर्जा मिला है। .

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कल्होड़ा राजवंश

कल्होड़ा राजवंश (सिन्धी:, कल्होड़ा राज; या, सिलसिला कल्होड़ा) सिन्ध और आधुनिक पाकिस्तान के कुछ अन्य हिस्सों पर लगभग एक शताब्दी तक शासन करने वाला एक राजवंश था। .

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कांधार

The final phase of the battle of Kandahar on the side of the Murghan mountain कांधार या कंदहार अफ़ग़ानिस्तान का एक शहर है। यह अफगानिस्तान का तीसरा प्रमुख ऐतिहासिक नगर एवं कंदहार प्रान्त की राजधानी भी है। इसकी स्थिति 31 डिग्री 27मि उ.अ. से 64 डिग्री 43मि पू.दे.

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कोहिनूर हीरा

Glass replica of the Koh-I-Noor as it appeared in its original form, turned upside down कोहिनूर (फ़ारसी: कूह-ए-नूर) एक १०५ कैरेट (२१.६ ग्राम) का हीरा है जो किसी समय विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा रह चुका है। कहा जाता है कि यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। 'कोहिनूर' का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत। यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया, जब ब्रिटिश प्रधान मंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को १८७७ में भारत की सम्राज्ञी घोषित किया। अन्य कई प्रसिद्ध जवाहरातों की भांति ही, कोहिनूर की भी अपनी कथाएं रही हैं। इससे जुड़ी मान्यता के अनुसार, यह पुरुष स्वामियों का दुर्भाग्य व मृत्यु का कारण बना, व स्त्री स्वामिनियों के लिये सौभाग्य लेकर आया। अन्य मान्यता के अनुसार, कोहिनूर का स्वामी संसार पर राज्य करने वाला बना। .

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अफ़शारी राजवंश

अफ़शारी राजवंश (سلسله افشاریان, सिलसिला अफ़शारियान) १८वीं सदी ईसवी में तुर्क-मूल का ईरान में केन्द्रित राजवंश था। इसके शासक मध्य एशिया के ऐतिहासिक ख़ोरासान क्षेत्र से आये अफ़शार तुर्की क़बीले के सदस्य थे। अफ़शारी राजवंश की स्थापना सन् १७३६ ई में युद्ध में निपुण नादिर शाह ने करी जिसनें उस समय राज कर रहे सफ़वी राजवंश से सत्ता छीन ली और स्वयं को शहनशाह-ए-ईरान घोषित कर लिया हालांकि वह ईरानी मूल का नहीं था। उसके राज में ईरान सासानी साम्राज्य के बाद के अपने सबसे बड़े विस्तार पर पहुँचा। उसका राज उत्तर भारत से लेकर जॉर्जिया तक फैला हुआ था। .

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अफ़ग़ानिस्तान

अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी गणराज्य दक्षिणी मध्य एशिया में अवस्थित देश है, जो चारो ओर से जमीन से घिरा हुआ है। प्रायः इसकी गिनती मध्य एशिया के देशों में होती है पर देश में लगातार चल रहे संघर्षों ने इसे कभी मध्य पूर्व तो कभी दक्षिण एशिया से जोड़ दिया है। इसके पूर्व में पाकिस्तान, उत्तर पूर्व में भारत तथा चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान, कज़ाकस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान तथा पश्चिम में ईरान है। अफ़ग़ानिस्तान रेशम मार्ग और मानव प्रवास का8 एक प्राचीन केन्द्र बिन्दु रहा है। पुरातत्वविदों को मध्य पाषाण काल ​​के मानव बस्ती के साक्ष्य मिले हैं। इस क्षेत्र में नगरीय सभ्यता की शुरुआत 3000 से 2,000 ई.पू.

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अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास

प्राचीन अफ़गानिस्तान पर कई फ़ारसी साम्राज्यों का अधिकार रहा। इनमें हख़ामनी साम्राज्य (ईसापूर्व 559– ईसापूर्व 330) का नाम प्रमुख हैआज जो अफ़गानिस्तान है उसका मानचित्र उन्नीसवीं सदी के अन्त में तय हुआ। अफ़ग़ानिस्तान शब्द कितना पुराना है इसपर तो विवाद हो सकता है पर इतना तय है कि १७०० इस्वी से पहले दुनिया में अफ़ग़ानिस्तान नाम का कोई राज्य नहीं था। सिकन्दर का आक्रमण ३२८ ईसापूर्व में उस समय हुआ जब यहाँ प्रायः फ़ारस के हखामनी शाहों का शासन था। उसके बाद के ग्रेको-बैक्ट्रियन शासन में बौद्ध धर्म लोकप्रिय हुआ। ईरान के पार्थियन तथा भारतीय शकों के बीच बँटने के बाद अफ़ग़निस्तान के आज के भूभाग पर सासानी शासन आया। फ़ारस पर इस्लामी फ़तह का समय कई साम्राज्यों के रहा। पहले बग़दाद स्थित अब्बासी ख़िलाफ़त, फिर खोरासान में केन्द्रित सामानी साम्राज्य और उसके बाद ग़ज़ना के शासक। गज़ना पर ग़ोर के फारसी शासकों ने जब अधिपत्य जमा लिया तो यह गोरी साम्राज्य का अंग बन गया। मध्यकाल में कई अफ़ग़ान शासकों ने दिल्ली की सत्ता पर अधिकार किया या करने का प्रयत्न किया जिनमें लोदी वंश का नाम प्रमुख है। इसके अलावा भी कई मुस्लिम आक्रमणकारियोंं ने अफगान शाहों की मदत से हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया था जिसमें बाबर, नादिर शाह तथा अहमद शाह अब्दाली शामिल है। अफ़गानिस्तान के कुछ क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अंग थे। अहमद शाह अब्दाली ने पहली बार अफ़गानिस्तान पर एकाधिपत्य कायम किया। वो अफ़ग़ान (यानि पश्तून) था। ब्रिटिश इंडिया के साथ हुए कई संघर्षों के बाद अंग्रेज़ों ने ब्रिटिश भारत और अफ़गानिस्तान के बीच सीमा उन्नीसवीं सदी में तय की। १९३३ से लेकर १९७३ तक अफ़ग़ानिस्तान पर ज़ाहिर शाह का शासन रहा जो शांतिपूर्ण रहा। इसके बाद कम्यूनिस्ट शासन और सोवियत अतिक्रमण हुए। १९७९ में सोवियतों को वापस जाना पड़ा। इनकों भगाने में मुजाहिदीन का प्रमुख हाथ रहा। १९९७ में तालिबान जो अडिगपंथी सुन्नी कट्टर थे ने सत्तासीन निर्वाचित राष्ट्रपति को बेदखल कर दिया। इनको अमेरिका का साथ मिला पर बाद में वे अमेरिका के विरोधी हो गए। २००१ में अमेरिका पर हमले के बाद यहाँ पर नैटो की सेना बनी हुई है। .

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अहमद शाह अब्दाली

अहमद शाह अब्दाली अहमद शाह अब्दाली, जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है, सन 1748 में नादिरशाह की मौत के बाद अफ़ग़ानिस्तान का शासक और दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक बना। उसने भारत पर सन 1748 से सन 1758 तक कई बार चढ़ाई की। उसने अपना सबसे बड़ा हमला सन 1757 में जनवरी माह में दिल्ली पर किया। अहमदशाह एक माह तक दिल्ली में ठहर कर लूटमार करता रहा। वहाँ की लूट में उसे करोड़ों की संपदा हाथ लगी थी।, Library of Congress Country Studies on Afghanistan, 1997, Accessed 2010-08-25 .

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उर्दू साहित्य

उर्दू भारत तथा पाकिस्तान की आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है। इसका विकास मध्ययुग में उत्तरी भारत के उस क्षेत्र में हुआ जिसमें आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और पूर्वी पंजाब सम्मिलित हैं। इसका आधार उस प्राकृत और अपभ्रंश पर था जिसे 'शौरसेनी' कहते थे और जिससे खड़ीबोली, ब्रजभाषा, हरियाणी और पंजाबी आदि ने जन्म लिया था। मुसलमानों के भारत में आने और पंजाब तथा दिल्ली में बस जाने के कारण इस प्रदेश की बोलचाल की भाषा में फारसी और अरबी शब्द भी सम्मिलित होने लगे और धीरे-धीरे उसने एक पृथक् रूप धारण कर लिया। मुसलमानों का राज्य और शासन स्थापित हो जाने के कारण ऐसा होना स्वाभाविक भी था कि उनके धर्म, नीति, रहन-सहन, आचार-विचार का रंग उस भाषा में झलकने लगे। इस प्रकार उसके विकास में कुछ ऐसी प्रवृत्तियाँ सम्मिलित हो गईं जिनकी आवश्यकता उस समय की दूसरी भारतीय भाषाओं को नहीं थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बोलचाल में खड़ीबोली का प्रयोग होता था। उसी के आधार पर बाद में उर्दू का साहित्यिक रूप निर्धारित हुआ। इसमें काफी समय लगा, अत: देश के कई भागों में थोड़े-थोड़े अंतर के साथ इस भाषा का विकास अपने-अपने ढंग से हुआ। उर्दू का मूल आधार तो खड़ीबोली ही है किंतु दूसरे क्षेत्रों की बोलियों का प्रभाव भी उसपर पड़ता रहा। ऐसा होना ही चाहिए था, क्योंकि आरंभ में इसको बोलनेवाली या तो बाजार की जनता थी अथवा वे सुफी-फकीर थे जो देश के विभिन्न भागों में घूम-घूमकर अपने विचारों का प्रचार करते थे। इसी कारण इस भाषा के लिए कई नामों का प्रयोग हुआ है। अमीर खुसरो ने उसको "हिंदी", "हिंदवी" अथवा "ज़बाने देहलवी" कहा था; दक्षिण में पहुँची तो "दकिनी" या "दक्खिनी" कहलाई, गुजरात में "गुजरी" (गुजराती उर्दू) कही गई; दक्षिण के कुछ लेखकों ने उसे "ज़बाने-अहले-हिंदुस्तान" (उत्तरी भारत के लोगों की भाषा) भी कहा। जब कविता और विशेषतया गजल के लिए इस भाषा का प्रयोग होने लगा तो इसे "रेख्ता" (मिली-जुली बोली) कहा गया। बाद में इसी को "ज़बाने उर्दू", "उर्दू-ए-मुअल्ला" या केवल "उर्दू" कहा जाने लगा। यूरोपीय लेखकों ने इसे साधारणत: "हिंदुस्तानी" कहा है और कुछ अंग्रेज लेखकों ने इसको "मूस" के नाम से भी संबोधित किया है। इन कई नामों से इस भाषा के ऐतिहासिक विकास पर भी प्रकार पड़ता है। .

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२४ फ़रवरी

२४ फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ५५वॉ दिन है। वर्ष में अभी और ३१० दिन बाकी है (लीप वर्ष में ३११)। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

नादिर कोली, नादिर कोहली

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