16 संबंधों: तेली का मन्दिर, दुर्गा मन्दिर, दुर्गाकुण्ड, द्रविड़ स्थापत्य शैली, देव मन्दिर, पत्तदकल, पत्तदकल स्मारक परिसर, बैजनाथ मंदिर, भोरमदेव, हनुमान मंदिर, कनॉट प्लेस, हिन्दू मंदिर स्थापत्य, वाराणसी, वृंदावन चन्द्रोदय मंदिर, वेसर शैली, कालाराम मन्दिर, कालिंजर दुर्ग, अन्तराल (वास्तुशास्त्र)।
तेली का मन्दिर
तेली का मन्दिर मध्य प्रदेश के ग्वालियर स्थित ग्वालियर दुर्ग के परिसर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर है। यह मन्दिर विष्णु, शिव और मातृका को समर्पित है। इसका निर्माण काल विभिन्न विद्वानों द्वारा ८वीं शताब्दी से लेकर ९वीं शताब्दी के आरम्भिक काल के बीच में माना जाता है। .
नई!!: नागर शैली और तेली का मन्दिर · और देखें »
दुर्गा मन्दिर, दुर्गाकुण्ड
दुर्गा मंदिर काशी के पुरातन मंदिरॊ मॆ सॆ एक है। इस मंदिर का उल्लॆख " काशी खंड" मॆ भी मिलता है। यह मंदिर वाराणसी कैन्ट से लगभग 5 कि॰मी॰ की दूरी पर है। लाल पत्थरों से बने अति भव्य इस मंदिर के एक तरफ "दुर्गा कुंड" है। इस कुंड को बाद में नगर पालिका ने फुहारे में बदल दिया, जो अपनी मूल सुन्दरता को खो चुका है। इस मंदिर में माँ दुर्गा "यंत्र" रूप में विरजमान है। इस मंदिर में बाबा भैरोनाथ, लक्षीजी, सरस्वतीजी, एवं माता काली की मूतिॅ रूप में अलग से मंदिर है। यहाँ मांगलिक कायॅ एवं मुंडन इत्यादि में माँ के दशॅन कॆ लिये आतॆ है। मंदिर के अंदर हवन कुंड है, जहाँ रोज हवन होते हैं। कुछ लोग यहाँ तंत्र पूजा भी करते हैं। सावन महिने में एक माह का बहुत मनमोहक मेला लगता है।दुर्गा मंदिर के नजदीक आनंद पार्क है, जहाँ पर आर्य समाज का प्रथम सास्त्रार्थ काशी के विद्वानों के साथ हुआ था। श्रेणी:वाराणसी के मन्दिर.
नई!!: नागर शैली और दुर्गा मन्दिर, दुर्गाकुण्ड · और देखें »
द्रविड़ स्थापत्य शैली
'''द्रविड़ शैली''' दक्षिण भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। यह शैली दक्षिण भारत में विकसित होने के कारण द्रविड़ शैली कहलाती है। तमिलनाडु व निकटवर्ती क्षेत्रों के अधिकांश मंदिर इसी श्रेणी के होते हैं। .
नई!!: नागर शैली और द्रविड़ स्थापत्य शैली · और देखें »
देव मन्दिर
यह दर्शनीय स्थल औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह कोणार्क मन्दिर कि तर्ज पर बना सूर्य मन्दिर है। यहाँ पर प्रयाग के राजा औलिया को भयानक कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी। देव सूर्य मंदिर यह बिहार के देव (औरंगाबाद जिला) में स्थित सूर्य मंदिर है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख ना होकर पश्चिमाभिमुख है। यह मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए प्रख्यात है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। यहाँ छठ पर्व के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है। .
नई!!: नागर शैली और देव मन्दिर · और देखें »
पत्तदकल
पत्तदकल (कन्नड़ - ಪಟ್ಟದಕಲ್ಲು) भारत के कर्नाटक राज्य में एक कस्बा है, जो भारतीय स्थापत्यकला की वेसर शैली के आरम्भिक प्रयोगों वाले स्मारक समूह के लिये प्रसिद्ध है। ये मंदिर आठवीं शताब्दी में बनवाये गये थे। यहाँ द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय या आर्य) दोनों ही शैलियों के मंदिर हैं। पत्तदकल दक्षिण भारत के चालुक्य वंश की राजधानी बादामी से २२ कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हैं। चालुक्य वंश के राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में यहाँ कई मंदिर बनवाए। एहोल को स्थापत्यकला का विद्यालय माना जाता है, बादामी को महाविद्यालय तो पत्तदकल को विश्वविद्यालय कहा जाता है। पत्तदकल शहर उत्तरी कर्नाटक राज्य में बागलकोट जिले में मलयप्रभा नदी के तट पर बसा हुआ है। यह बादामी शहर से २२ कि.मि.
नई!!: नागर शैली और पत्तदकल · और देखें »
पत्तदकल स्मारक परिसर
पत्तदकल स्मारक परिसर भारत के कर्नाटक राज्य में एक पत्तदकल नामक कस्बे में स्थित है। यह अपने पुरातात्विक महत्व के कारण प्रसिद्ध है। चालुक्य वंश के राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में यहाँ कई मंदिर बनवाए। एहोल को स्थापत्यकला का विद्यालय माना जाता है, बादामी को महाविद्यालय तो पत्तदकल को विश्वविद्यालय कहा जाता है। यहाँ कुल दस मंदिर हैं, जिनमें एक जैन धर्मशाला भी शामिल है। इन्हें घेरे हुए ढेरों चैत्य, पूजा स्थल एवं कई अपूर्ण आधारशिलाएं हैं। यहाँ चार मंदिर द्रविड़ शैली के हैं, चार नागर शैली के हैं एवं पापनाथ मंदिर मिश्रित शैली का है। पत्तदकल को १९८७ में युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। विरुपाक्ष मंदिर यहाँ का सर्वश्रेष्ठ मंदिर है। इसे महाराज विक्रमादित्य द्वितीय की पत्नी लोकमहादेवी ने ७४५ ई. में अपने पति की कांची के पल्लव वंश पर विजय के स्मारक रूप में बनवाया था। यह मंदिर कांची के कैलाशनाथ मंदिर से बहुत मिलता जुलता है। वही मंदिर इस मंदिर की प्रेरणा है। यही विरुपाक्ष मंदिर एल्लोरा में राष्ट्रकूट वंश द्वारा बनवाये गये कैलाशनाथ मंदिर की प्रेरणा बना। इस मंदिर की शिल्पाकृतियों में कुछ प्रमुख हैं लिंगोद्भव, नटराज, रावाणानुग्रह, उग्रनृसिंह, आदि। इसके अलावा संगमेश्वर मंदिर भी काफी आकर्षक है। यह मंदिर अधूरा है। इसे महाराज विजयादित्य सत्याश्रय ने बनवाया था। यहाँ के काशी विश्वनाथ मंदिर को राष्ट्रकूट वंश ने आठवीं शताब्दी में बनवाया था। निकटस्थ ही मल्लिकार्जुन मंदिर है। इसे विक्रमादित्य की द्वितीय रानी त्रिलोकमहादेवी द्वारा ७४५ ई. में बनवाया गया था। यह विरुपाक्ष मंदिर का एक छोटा प्रतिरूप है। गल्गनाथ मंदिर में भगवान शिव को अंधकासुर का मर्दन करते हुए दिखाया गया है। कदासिद्धेश्वर मंदिर में शिव की त्रिशूल धारी मूर्ति है। जम्बुलिंग मंदिर में शिवलिंग स्थापित है। ये सभी नागर शैली में निर्मित हैं। यहां के जैन मंदिर पत्तदकल-बादामी मार्ग पर स्थित है। ये मयनाखेत के राष्ट्रकूटों द्वारा द्रविड़ शैली में निर्मित हैं। यहां नौवीं शताब्दी के कुछ बहुत ही सुंदर शिल्प के नमूने हैं। इन्हे अमोघवर्षा प्रथम या उसके पुत्र कृष्ण द्वितीय ने बनवाया था। यहां का पापनाथ मंदिर वेसारा शैली में निर्मित है। ६८० ई. में निर्मित यह मंदिर पहले नागर शैली में आरम्भ हुआ था, पर बाद में द्रविड़ शैली में बदला गया। यहां के शिल्प रामायण एवं महाभारत की घटनाओं के बारे में बताते हैं। इस मंदिर में आलमपुर, आंध्र प्रदेश के नवब्रह्म मंदिर की झलक दिखाई देती है। यह मंदिर भी इसी वंश ने बनवाया था। यहाँ के बहुत से शिल्प अवशेष यहाँ बने प्लेन्स के संग्रहालय तथा शिल्प दीर्घा में सुरक्षित रखे हैं। इन संग्रहालयों का अनुरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है। ये भूतनाथ मंदिर मार्ग पर स्थित हैं। इनके अलावा अन्य महत्त्वपूर्ण स्मारकों में, अखण्ड एकाश्म स्तंभ, नागनाथ मंदिर, चंद्रशेखर मंदिर एवं महाकुटेश्वर मंदिर भी हैं, जिनमें अनेक शिलालेख हैं। File:Kasivisvanatha_temple_at_Pattadakal.jpg|काशीविश्वनाथ मंदिर File:Temple_Pattadakal.JPG|पापनाथ मंदिर चित्र:Mallikarjuna_and_Kasivisvanatha_temples_at_Pattadakal.jpg|मल्लिकार्जुन एवं काशीविश्वनाथ मंदिर File:Jain_Narayana_temple_at_Pattadakal.JPG|जैन नारायण मंदिर .
नई!!: नागर शैली और पत्तदकल स्मारक परिसर · और देखें »
बैजनाथ मंदिर
बैजनाथ मंदिर बैजनाथ में स्थित नागर शैली में बना हिंदू मंदिर है। यह 1204 ईस्वी में अहुका और मन्युका नामक दो स्थानीय व्यापारियों ने बनवाया था। यह वैद्यनाथ (चिकित्सकों के प्रभु) के रूप में भगवान शिव को समर्पित है। शिलालेखों के अनुसार वर्तमान बैजनाथ मंदिर के निर्माण से पूर्व भगवान शिव के मंदिर का अस्तित्व था। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है। बाहरली दीवारों में अनेकों चित्रों की नक्काशी हुई है। .
नई!!: नागर शैली और बैजनाथ मंदिर · और देखें »
भोरमदेव
भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ के कबीरधाम जिले में कबीरधाम से 18 कि॰मी॰ दूर तथा रायपुर से 125 कि॰मी॰ दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है। मंदिर के चारो ओर मैकल पर्वतसमूह है जिनके मध्य हरी भरी घाटी में यह मंदिर है। मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब भी है। इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है जिसके कारण लोग इस मंदिर को 'छत्तीसगढ का खजुराहो' भी कहते हैं। यह मंदिर एक एतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा देवराय ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे जो कि शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पडा। .
नई!!: नागर शैली और भोरमदेव · और देखें »
हनुमान मंदिर, कनॉट प्लेस
नई दिल्ली के हृदय कनॉट प्लेस में महाभारत कालीन श्री हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर उपस्थित हनुमान जी स्वयंभू हैं। बालचन्द्र अंकित शिखर वाला यह मंदिर आस्था का महान केंद्र है।। हनुमान जयंती इसके साथ बने शनि मंदिर का भी प्राचीन इतिहास है। एक दक्षिण भारतीय द्वारा बनवाए गए कनॉट प्लेस शनि मंदिर में दुनिया भर के दक्षिण भारतीय दर्शनों के लिए आते हैं।। नवभारत टाइम्स। १८ अप्रैल २००७। पीयुष के जैन प्रत्येक मंगलवार एवं विशेषतः हनुमान जयंती के पावन पर्व पर यहां भजन संध्या और भंडारे लगाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाता है। इसके साथ ही भागीरथी संस्था के तत्वाधान में संध्या का आयोजन किया जाता है, साथ ही क्षेत्र में झांकी निकाली जाती है।। याहू जागरण। .
नई!!: नागर शैली और हनुमान मंदिर, कनॉट प्लेस · और देखें »
हिन्दू मंदिर स्थापत्य
अंकोरवाट मंदिर (कम्बोडिया) भारतीय स्थापत्य में हिन्दू मन्दिर का विशेष स्थान है। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। गर्भगृह के ऊपर टॉवर-नुमा रचना होती है जिसे शिखर (या, विमान) कहते हैं। मन्दिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा के लिये स्थान होता है। इसके अलावा मंदिर में सभा के लिये कक्ष हो सकता है। .
नई!!: नागर शैली और हिन्दू मंदिर स्थापत्य · और देखें »
वाराणसी
वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .
नई!!: नागर शैली और वाराणसी · और देखें »
वृंदावन चन्द्रोदय मंदिर
वृंदावन चन्द्रोदय मंदिर उत्तर प्रदेश के वृन्दावन में भगवान कृष्ण को समर्पित एक मंदिर है जो अभी निर्माणाधीन है। इसे इस्काॅन की बैंगलोर इकाई के संकल्पतः कुल ₹३०० करोड़ की लागत से निर्मित किया जा रहा है। इस मंदिर के मुख्य आराध्य देव भगवान कृष्ण होंगे। इस मंदिर का सबसे विशिष्ट आकर्षण यह है कि योजनानुसार इस अतिभव्य मंदिर की कुल ऊंचाई करीब ७०० फुट यानी २१३ मीटर (जो किसी ७०-मंजिला इमारत जितना ऊंचा है) होगी जिस के कारण पूर्ण होने पर, यह विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर बन जाएगा। इसके गगनचुम्बी शिखर के अलावा इस मंदिर की दूसरी विशेष आकर्षण यह है की मंदिर परिसर में २६ एकड़ के भूभाग पर चारों ओर १२ कृत्रिम वन बनाए जाएंगे, जो मनमोहक हरेभरे फूलों और फलों से लदे वृक्षों, रसीले वनस्पति उद्यानों, हरी लंबी चराईयों, हरे घास के मैदानों, फलों का असर पेड़ों की सुंदर खा़काओं, पक्षी गीत द्वारा स्तुतिगान फूल लादी लताओं, कमल और लिली से भरे साफ पानी के पोखरों एवं छोटी कृत्रिम पहाड़ियों और झरनों से भरे होंगें, जिन्हें विशेश रूप से पूरी तरह हूबहू श्रीमद्भागवत एवं अन्य शास्त्रों में दिये गए, कृष्णकाल के ब्रजमंडल के १२ वनों (द्वादशकानन) के विवरण के अनुसार ही बनाया जाएगा ताकी आगंतुकों (श्रद्धालुओं) को कृष्णकाल के ब्रज का आभास कराया जा सके। ५ एकड़ के पदछाप वाला यह मंदिर कुल ६२ एकड़ की भूमि पर बन रहा है, जिसमें १२ एकड़ पर कार-पार्किंग सुविधा होगी, और एक हेलीपैड भी होगा। .
नई!!: नागर शैली और वृंदावन चन्द्रोदय मंदिर · और देखें »
वेसर शैली
बेलूर का चेन्नकेशव मन्दिर वेसर शैली भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। नागर और द्रविड़ शैली के मिश्रित रूप को वेसर या बेसर शैली की संज्ञा दी गई है। यह विन्यास में द्रविड़ शैली का तथा रूप में नागर जैसा होता है। इस शैली के मंदिर विन्ध्य पर्वतमाला से कृष्णा नदी के बीच निर्मित हैं। मध्य भारत तथा कर्णाटक के की मन्दिरों में प्रायः उत्तरी तथा द्रविड दोनों ही शैलियों का सम्मिलित स्वरूप मिलता है। कर्णाटक के चालुक्य मन्दिर वेसर शैली के माने जा सकते हैं। चालुक्यों ने मिश्रित वेसर शैली को प्रोत्साहन दिया था। इन मन्दिरों का रूप कुछ विशिष्ट ही होता है। विमान शिखर छोटा, फ़ैले कलश, मूर्तियों का आधिक्य, अलंकरण परम्परा का बाहुल्य ही इनकी विशेषता है। अधिकांशतः दक्खिन में मिलने वाले इन मन्दिरों के शिल्प को उन्नति के शिखर पर पहुंचाने का प्रयास चालुक्यों और होयसालों ने सर्वाधिक किया है। .
नई!!: नागर शैली और वेसर शैली · और देखें »
कालाराम मन्दिर
कालाराम मन्दिर एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर है जिसमें भगवान राम की मूर्ति स्थापित है। यह मन्दिर महाराष्ट्र राज्य के नासिक ज़िले के पंचवटी के निकट स्थित है। .
नई!!: नागर शैली और कालाराम मन्दिर · और देखें »
कालिंजर दुर्ग
कालिंजर, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित एक पौराणिक सन्दर्भ वाला, ऐतिहासिक दुर्ग है जो इतिहास में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है। कलिंजर नगरी का मुख्य महत्त्व विन्ध्य पर्वतमाला के पूर्वी छोर पर इसी नाम के पर्वत पर स्थित इसी नाम के दुर्ग के कारण भी है। यहाँ का दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस पर्वत को हिन्दू धर्म के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं, व भगवान शिव के भक्त यहाँ के मन्दिर में बड़ी संख्या में आते हैं। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद यह दुर्ग यहाँ के कई राजवंशों जैसे चन्देल राजपूतों के अधीन १०वीं शताब्दी तक, तदोपरांत रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे प्रसिद्ध आक्रांताओं ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बाद भी आरम्भिक मुगल बादशाह भी कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: मुगल बादशाह अकबर ने इसे जीता व मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्त वंश के तृतीय -५वीं शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्पकला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। .
नई!!: नागर शैली और कालिंजर दुर्ग · और देखें »
अन्तराल (वास्तुशास्त्र)
अन्तराल, पारंपरिक शास्त्रीय वास्तुशास्त्र व अगमशास्त्र में, मंदिर निर्माण में गर्भगृह एवं मण्डप के बीच के स्थान को कहा जाता है। भारतीय शास्त्रीय वास्तुकला में, अधिकांशतः उत्तर भारतीय नागर शैली के मंदिरों में मण्डप और गर्भगृह के बीच अन्तराल देखने को मिलते हैं। इसे कोरिमण्डप भी कहा जाता है। उत्तर भारत में खजुराहो के कन्दारिया महादेव मन्दिर, जो पञ्चयातन वास्तुशैली में निर्मित है, तथा दक्षिण भारत के चालुक्य वास्तुकला में निर्मित मंदिरों में मण्डप और गर्भगृह के बीच अन्तराल देखा जा सकता है। इस तरह की वास्तुकला के उक्त दो मंदिर उत्तम उदाहरण हैं। .
नई!!: नागर शैली और अन्तराल (वास्तुशास्त्र) · और देखें »