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धारा

सूची धारा

धारा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एटा जिले के अलीगंज प्रखण्ड का एक गाँव है। धारा एक मध्यम आकार का गांव है जो उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में स्थित है, जिसमें कुल ३१५ परिवार रहते हैं। धरारा गांव की आबादी १८६० है, जिसमें ९६५ पुरुष हैं जबकि ८९५ जनसंख्या जनगणना २०११ के अनुसार महिलाएं हैं। धरारा गांव में ०-६ साल के बच्चों की जनसंख्या ३५० है जो गांव की कुल आबादी का १८।८२ प्रतिशत है। धारा गांव का औसत लिंग अनुपात ९२७ है जो उत्तर प्रदेश राज्य की औसत ९१२ से अधिक है। जनगणना के अनुसार धारा के लिए बाल लिंग अनुपात ७२४ है, उत्तर प्रदेश की औसत ९०२ से कम है। धरारा गांव में उत्तर प्रदेश की तुलना में कम साक्षरता दर है। २०११ में, उत्तर प्रदेश के ६७।६८ प्रतिशत की तुलना में धारा गांव की साक्षरता दर ६५।५० प्रतिशत थी। धारा पुरुष साक्षरता में ७७।९५ प्रतिशत है जबकि महिला साक्षरता दर ५२।८१ प्रतिशत है। भारत और पंचायत राज अधिनियम के संविधान के अनुसार, धरा गांव को सरपंच (ग्राम प्रमुख) द्वारा प्रशासित किया जाता है, जो गांव के प्रतिनिधि चुने जाते हैं। .

28 संबंधों: ऊर्जा, एम्पीयर का नियम, तापदीप्त लैम्प, निऑन लैम्प, परिनालिका, परिपथ विश्लेषण, पुलिस, प्रत्यावर्ती धारा, प्राचीन भारतीय शिक्षा, प्रवर्धक, पेंगुइन, बिजनौर, बैटरी एलिमिनेटर, मुहाना, ला नीना, शक्ति प्रणाली का संरक्षण, शक्ति प्रवर्धक, श्रीदेवनारायण, समुद्र विज्ञानी, सिलिकॉन कन्ट्रोल्ड रेक्टिफायर, सैल्मन, हाउर, वर्ग माध्य मूल, वाटमीटर, विद्युत धारा, विद्युत-मापी, विद्युतशक्ति का प्रेषण, वैद्युत अवयव

ऊर्जा

दीप्तिमान (प्रकाश) ऊर्जा छोड़ता हैं। भौतिकी में, ऊर्जा वस्तुओं का एक गुण है, जो अन्य वस्तुओं को स्थानांतरित किया जा सकता है या विभिन्न रूपों में रूपांतरित किया जा सकता हैं। किसी भी कार्यकर्ता के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा (Energy) कहते हैं। ऊँचाई से गिरते हुए जल में ऊर्जा है क्योंकि उससे एक पहिये को घुमाया जा सकता है जिससे बिजली पैदा की जा सकती है। ऊर्जा की सरल परिभाषा देना कठिन है। ऊर्जा वस्तु नहीं है। इसको हम देख नहीं सकते, यह कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया ही पड़ती है। संक्षेप में, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुधा द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है। फिर भी इसका अस्तित्व उतना ही वास्तविक है जितना किसी अन्य वस्तु का और इस कारण कि किसी पिंड समुदाय में, जिसके ऊपर किसी बाहरी बल का प्रभाव नहीं रहता, इसकी मात्रा में कमी बेशी नहीं होती। .

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एम्पीयर का नियम

विद्युत धारा, चुंबकीय क्षेत्र पैदा करती है। इस नियम का प्रतिपादन सन् १८२६ में आन्द्रे मैरी एम्पीयर (André-Marie Ampère) ने किया था। इस नियम में किसी बंद लूप पर समाकलित चुम्बकीय क्षेत्र एवं उस लूप से होकर प्रवाहित हो रही कुल धारा के बीच गणितीय संबंध स्थापित किया गया। जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने सन् १८६१ में इसे विद्युतगतिकीय सिद्धान्त से सिद्ध किया। वर्तमान में यह नियम मैक्स्वेल के चार समीकरणों में से एक है। .

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तापदीप्त लैम्प

एक उद्दीपत दीपक तापदीप्त लैम्प या इन्कैंडिसेंट लैम्प (incandescent lamp) को बोलचाल में बल्ब कहते हैं। यह तापदीप्ति के द्वारा प्रकाश उत्पन्न करता है। गरम होने के कारण प्रकाश का उत्सर्जन, तापदीप्ति (incandescence) कहलाता है। इसमें एक पतला फिलामेन्ट (तार) होता है जिससे होकर जब धारा बहती है तब यह गरम होकर प्रकाश देने लगता है। फिलामेन्ट को काँच के बल्ब के अन्दर इसलिये रखा जाता है ताकि अति तप्त फिलामेन्ट तक वायुमण्डलीय आक्सीजन न पहुँच पाये और इस तरह क्रिया करके फिलामेन्ट को कमजोर न कर सके। .

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निऑन लैम्प

ए सी से चल (जल) रही NE-2 type निऑन लैम्प इन तीन लैम्पों में से बायें एवं मध्य वाले नियान लैम्प को डी सी दी गयी है तथा दाहिने वाले को एसी दी गयी है। निऑन लैम्प का वोल्ट-ऐम्पीयर अभिलाक्षणिक निऑन लैम्प (neon lamp) एक छोटे आकार का गैस डिस्चार्ज लैम्प है। इस लैम्प में काँच की एक 'कैप्सूल' होती है जिसमें निऑन एवं अन्य गैसें कम दाब पर भरी होतीं है तथा दो एलेक्ट्रोड होते हैं। जब इन इलेक्ट्रोडों पर पर्याप्त (लगभग १०० वोल्ट) वोल्टेज लगाया जाता है तो गैस मिश्रण से होकर पर्याप्त (लगभग १०० माइक्रो अम्पीयर) धारा बहती है तो इस लैम्प से नारंगी रंग का प्रकाश निकलता है। श्रेणी:लैम्प के प्रकार.

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परिनालिका

परिनालिका परिनालिका द्वारा उत्पादित चुम्बकीय क्षेत्र परिनालिका (solenoid) एक त्रिबिमीय (three-dimensional) कुण्डली (coil) को कहते हैं। भौतिकी में परिनालिका स्प्रिंग की भांति बनाये गये तार की संरचना को कहते हैं जिसमें से धारा प्रवाहित करने पर चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित होता है। प्राय: ये तार किसी अचुम्बकीय पदार्थ (जैसे प्लास्टिक) के बेलनाकार आधार पर लिपटे रहते हैं जिसके अन्दर कोई अचुम्बकीय क्रोड, (जैसे हवा) या चुम्बकीय क्रोड (जैसे लोहा) हो सकता है। परिनालिकाएँ इसलिये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनकी सहायता से नियंत्रित चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण किया जा सकता है तथा वे विद्युतचुम्बकों की तरह प्रयोग की जा सकती हैं। .

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परिपथ विश्लेषण

विश्लेषण के लिये दो लूप वाला एक सरल परिपथ इस परिपथ में लगे सभी प्रतिरोध '''R''' हों तो इस 'घन' के आमने-सामने के दो कोनों के बीच तुल्य प्रतिरोध '''(5/6)R''' होगा। किसी परिपथ के सभी अवयवों (वोल्टता स्रोत, धारा के स्रोत, प्रतोरोध, संधारित्र, ट्रांजिस्टर आदि) के मान (या अन्य वैशिष्ट्य) दिये होने पर परिपथ की विभिन्न शाखाओं में धारा एवं नोडों की वोल्टता ज्ञात करना परिपथ विश्लेषण (Circuit analysis) कहलाती है। वैश्लेषिक औजारों का उपयोग करते हुए किसी व्यक्ति द्वारा केवल सरल और प्रायः रैखिक नेटवर्कों का विश्लेषण ही किया जा सकता है। हजारों-लाखों अवयवों वाले बड़े परिपथों या अरैखिक अवयवों से युक्त परिपथों का विश्लेषण करने के लिये संगणक द्वारा परिपथ सिमुलेशन (circuit simulation) करना पड़ता है जिसमें कम्प्यूटर प्रोग्राम 'इटरेटिव सन्निकटन विधियों' का सहारा लेकर परिपथ विश्लेषण करता है। परिपथ विश्लेषण ही परिपथ डिजाइन (सर्किट डिजाइन) का आधार है। .

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पुलिस

अमेरिकी खुफिया पुलिस सेवा के अधिकारी पुलिस (अंग्रेजी: Police, शुद्ध हिन्दी: आरक्षी या आरक्षक) एक सुरक्षा बल होता है जिसका उपयोग किसी भी देश की अन्दरूनी नागरिक सुरक्षा के लिये ठीक उसी तरह से किया जाता है जिस प्रकार किसी देश की बाहरी अनैतिक गतिविधियों से रक्षा के लिये सेना का उपयोग किया जाता है। .

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प्रत्यावर्ती धारा

प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जो किसी विद्युत परिपथ में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। इसके विपरीत दिष्ट धारा समय के साथ अपनी दिशा नहीं बदलती। भारत में घरों में प्रयुक्त प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति ५० हर्ट्स होती हैं अर्थात यह एक सेकेण्ड में पचास बार अपनी दिशा बदलती है। वेस्टिंगहाउस का आरम्भिक दिनों का प्रत्यावर्ती धारा निकाय प्रत्यावर्ती धारा या पत्यावर्ती विभव का परिमाण (मैग्निट्यूड) समय के साथ बदलता रहता है और वह शून्य पर पहुंचकर विपरीत चिन्ह का (धनात्मक से ऋणात्मक या इसके उल्टा) भी हो जाता है। विभव या धारा के परिमाण में समय के साथ यह परिवर्तन कई तरह से सम्भव है। उदाहरण के लिये यह साइन-आकार (साइनस्वायडल) हो सकता है, त्रिभुजाकार हो सकता है, वर्गाकार हो सकता है, आदि। इनमें साइन-आकार का विभव या धारा का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। आजकल दुनिया के लगभग सभी देशों में बिजली का उत्पादन एवं वितरण प्रायः प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही किया जाता है, न कि दिष्ट-धारा (डीसी) के रूप में। इसका प्रमुख कारण है कि एसी का उत्पादन आसान है; इसके परिमाण को बिना कठिनाई के ट्रान्सफार्मर की सहायता से कम या अधिक किया जा सकता है; तरह-तरह की त्रि-फेजी मोटरों की सहायता से इसको यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इसके अलावा श्रव्य आवृत्ति, रेडियो आवृत्ति, दृश्य आवृत्ति आदि भी प्रत्यावर्ती धारा के ही रूप हैं। .

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प्राचीन भारतीय शिक्षा

भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति में हमें अनौपचारिक तथा औपचारिक दोनों प्रकार के शैक्षणिक केन्द्रों का उल्लेख प्राप्त होता है। औपचारिक शिक्षा मन्दिर, आश्रमों और गुरुकुलों के माध्यम से दी जाती थी। ये ही उच्च शिक्षा के केन्द्र भी थे। जबकि परिवार, पुरोहित, पण्डित, सन्यासी और त्यौहार प्रसंग आदि के माध्यम से अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त होती थी। विभिन्न धर्मसूत्रों में इस बात का उल्लेख है कि माता ही बच्चे की श्रेष्ठ गुरु है। कुछ विद्वानों ने पिता को बच्चे के शिक्षक के रुप में स्वीकार किया है। जैसे-जैसे सामाजिक विकास हुआ वैसे-वैसे शैक्षणिक संस्थाएं स्थापित होने लगी। वैदिक काल में परिषद, शाखा और चरण जैसे संघों का स्थापन हो गया था, लेकिन व्यवस्थित शिक्षण संस्थाएं सार्वजनिक स्तर पर बौद्धों द्वारा प्रारम्भ की गई थी। गुरुकुलों की स्थापना प्रायः वनों, उपवनों तथा ग्रामों या नगरों में की जाती थी। वनों में गुरुकुल बहुत कम होते थे। अधिकतर दार्शनिक आचार्य निर्जन वनों में निवास, अध्ययन तथा चिन्तन पसन्द करते थे। वाल्मीकि, सन्दीपनि, कण्व आदि ऋषियों के आश्रम वनों में ही स्थित थे और इनके यहाँ दर्शन शास्त्रों के साथ-साथ व्याकरण, ज्योतिष तथा नागरिक शास्त्र भी पढ़ाये जाते थे। अधिकांश गुरुकुल गांवों या नगरों के समीप किसी वाग अथवा वाटिला में बनाये जाते थे। जिससे उन्हें एकान्त एवं पवित्र वातावरण प्राप्त हो सके। इससे दो लाभ थे; एक तो गृहस्थ आचार्यों को सामग्री एकत्रित करने में सुविधा थी, दूसरे ब्रह्मचारियों को भिक्षाटन में अधिक भटकना नहीं पड़ता था। मनु के अनुसार `ब्रह्मचारों को गुरु के कुल में, अपनी जाति वालों में तथा कुल बान्धवों के यहां से भिक्षा याचना नहीं करनी चाहिए, यदि भिक्षा योग्य दूसरा घर नहीं मिले, तो पूर्व-पूर्व गृहों का त्याग करके भिक्षा याचना करनी चाहिये। इससे स्पष्ट होता है कि गुरुकुल गांवों के सन्निकट ही होते थे। स्वजातियों से भिक्षा याचना करने में उनके पक्षपात तथा ब्रह्मचारी के गृह की ओर आकर्षण का भय भी रहता था अतएव स्वजातियों से भिक्षा-याचना का पूर्ण निषेध कर दिया गया था। बहुधा राजा तथा सामन्तों का प्रोत्साहन पाकर विद्वान् पण्डित उनकी सभाओं की ओर आकर्षित होते थे और अधिकतर उनकी राजधानी में ही बस जाते थे, जिससे वे नगर शिक्षा के केन्द्र बन जाते थे। इनमें तक्षशिला, पाटलिपुत्र, कान्यकुब्ज, मिथिला, धारा, तंजोर आदि प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार तीर्थ स्थानों की ओर भी विद्वान् आकृष्ट होते थे। फलत: काशी, कर्नाटक, नासिक आदि शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र बन गये। कभी-कभी राजा भी अनेक विद्वानों को आमंत्रित करके दान में भूमि आदि देकर तथा जीविका निश्चित करके उन्हें बसा लेते थे। उनके बसने से वहां एक नया गांव बन जाता था। इन गांवों को `अग्रहार' कहते थे। इसके अतिरिक्त विभिन्न हिन्दू सम्प्रदायों एवं मठों के आचार्यों के प्रभाव से ईसा की दूसरी शताब्दी के लगभग मठ शिक्षा के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गये। इनमें शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य आदि के मठ प्रसिद्ध हैं। सार्वजनिक शिक्षण संस्थाएँ सर्वप्रथम बौद्ध विहारों में स्थापित हुई थीं। भगवान बुद्ध ने उपासकों की शिक्षा-दीक्षा पर अत्यधिक बल दिया। इस संस्थाओं में धार्मिक ग्रन्थों का अध्यापन एवं आध्यात्मिक अभ्यास कराया जाता था। अशोक (३०० ई. पू.) ने बौद्ध विहारों की विशेष उन्नति करायी। कुछ समय पश्चात् ये विद्या के महान केन्द्र बन गये। ये वस्तुत: गुरुकुलों के ही समान थे। किन्तु इनमें गुरु किसी एक कुल का प्रतिनिधि न होकर सारे विहार का ही प्रधान होता था। ये धर्म प्रचार की दृष्टि से जनसाधारण के लिए भी सुलभ थे। इनमें नालन्दा विश्वविद्यालय (४५० ई.), वल्लभी (७०० ई.), विक्रमशिला (८०० ई.) प्रमुख शिक्षण संस्थाएँ थीं। इन संस्थाओं का अनुसरण करके हिन्दुओं ने भी मन्दिरों में विद्यालय खोले जो आगे चल कर मठों के रूप में परिवर्तित हो गये। .

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प्रवर्धक

एक सामान्य प्रवर्धक बक्सा जिसमें इनपुट और आउटपुट के लिए बाहर पिन दिए होते हैं। प्रवर्धक और रिपीटर जो संकेत की शक्ति को बढ़ाकर उन्हें 'उपयोग के लायक' बनाते हैं। प्रवर्धक या एम्प्लिफायर (amplifier) ऐसी युक्ति है जो किसी विद्युत संकेत का मान (अम्प्लीच्यूड) बदल दे (प्रायः संकेत का मान बड़ा करने की आवश्यकता अधिक पड़ती है।) विद्युत संकेत विभवान्तर (वोल्टेज) या धारा (करेंट) के रूप में हो सकते है। आजकल सामान्य प्रचलन में प्रवर्धक से आशय किसी 'इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धक' से ही होता है। .

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पेंगुइन

पेंगुइन (पीढ़ी स्फेनिस्कीफोर्मेस, प्रजाति स्फेनिस्कीडाई) जलीय समूह के उड़ने में असमर्थ पक्षी हैं जो केवल दक्षिणी गोलार्द्ध, विशेष रूप से अंटार्कटिक में पाए जाते हैं। पानी में जीवन के लिए अत्याधिक अनुकूलित, पेंगुइन विपरीत रंगों, काले और सफ़ेद रंग के बालों वाला पक्षी है और उनके पंख हाथ (फ्लिपर) बन गये हैं। पानी के नीचे तैराकी करते हुए अधिकांश पेंगुइन पकड़ी गयी छोटी मछलियों, मछलियों, स्क्विड और अन्य जलीय जंतुओं को भोजन बनाते हैं। वे अपना लगभग आधा जीवन धरती पर और आधा जीवन महासागरों में बिताते हैं। हालांकि सभी पेंगुइन प्रजातियां दक्षिणी गोलार्द्ध की मूल निवासी हैं, लेकिन ये केवल अंटार्कटिक जैसे ठंडे मौसम में ही नहीं पाई जातीं. वास्तव में, पेंगुइन की कुछ प्रजातियों में अब केवल कुछ ही दक्षिण में रहती हैं। कई प्रजातियां शीतोष्ण क्षेत्र में पाई जाती हैं और एक प्रजाति गैलापागोस पेंगुइन भूमध्य रेखा के पास रहती है। सबसे बड़ी जीवित प्रजाति एम्परर पेंगुइन (एप्टेनोडाईट्स फ़ोर्सटेरी): है - वयस्क की उंचाई औसतन 1.1 मी (3 फुट 7 इंच) लंबा और वजन 35 किलोग्राम (75 पौंड) होता है। सबसे छोटी प्रजाति लिटिल ब्लू पेंगुइन (यूडिपटुला माइनर), फेयरी पेंगुइन के नाम से भी जानी जाती है, की उंचाई लगभग 40 सेमी (16 इंच) और वजन 1 किलोग्राम (2.2 पौंड) होता है। वर्तमान में पाए जाने वाले पेंगुइनों में, बड़े पेंगुइन ठंडे क्षेत्रों में निवास करते हैं, जबकि छोटे पेंगुइन आम तौर पर शीतोष्ण या उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी पाए जाते हैं (इसे भी देखें बर्गमैन'ज़ रूल). कुछ प्रागैतिहासिक प्रजातियां आकार में व्यस्क मानव जितनी उंची तथा वजनी थीं (अधिक जानकारी के लिए नीचे देखें). ये प्रजाति अंटार्कटिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं थी; बल्कि इसके विपरीत, अंटार्कटिक उपमहाद्वीप के क्षेत्रों में ज्यादा विविधता मिलती थी और कम से कम एक विशाल पेंगुइन उस क्षेत्र में मिला है जो भूमध्य रेखा के 35 से 2000 किमी दक्षिण से ज्यादा दूर नहीं था तथा जहां का वातावरण आज के अपेक्षाकृत ज्यादा गरम था। .

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बिजनौर

बिजनौर भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। हिमालय की उपत्यका में स्थित बिजनौर को जहाँ एक ओर महाराजा दुष्यन्त, परमप्रतापी सम्राट भरत, परमसंत ऋषि कण्व और महात्मा विदुर की कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है, वहीं आर्य जगत के प्रकाश स्तम्भ स्वामी श्रद्धानन्द, अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक डॉ॰ आत्माराम, भारत के प्रथम इंजीनियर राजा ज्वालाप्रसाद आदि की जन्मभूमि होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। साहित्य के क्षेत्र में जनपद ने कई महत्त्वपूर्ण मानदंड स्थापित किए हैं। कालिदास का जन्म भले ही कहीं और हुआ हो, किंतु उन्होंने इस जनपद में बहने वाली मालिनी नदी को अपने प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' का आधार बनाया। अकबर के नवरत्नों में अबुल फ़जल और फैज़ी का पालन-पोषण बास्टा के पास हुआ। उर्दू साहित्य में भी जनपद बिजनौर का गौरवशाली स्थान रहा है। क़ायम चाँदपुरी को मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी उस्ताद शायरों में शामिल किया है। नूर बिजनौरी जैसे विश्वप्रसिद्ध शायर इसी मिट्टी से पैदा हुए। महारनी विक्टोरिया के उस्ताद नवाब शाहमत अली भी मंडावर,बिजनौर के निवासी थे, जिन्होंने महारानी को फ़ारसी की पढ़ाया। संपादकाचार्य पं. रुद्रदत्त शर्मा, बिहारी सतसई की तुलनात्मक समीक्षा लिखने वाले पं. पद्मसिंह शर्मा और हिंदी-ग़ज़लों के शहंशाह दुष्यंत कुमार,विख्यात क्रांतिकारी चौधरी शिवचरण सिंह त्यागी, पैजनियां - भी बिजनौर की धरती की देन हैं। वर्तमान में महेन्‍द्र अश्‍क देश विदेश में उर्दू शायरी के लिए विख्‍यात हैं। धामपुर तहसील के अन्‍तर्गत ग्राम किवाड में पैदा हुए महेन्‍द्र अश्‍क आजकल नजीबाबाद में निवास कर रहे हैं। .

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बैटरी एलिमिनेटर

बैटरी एलिमिनेटर एक एलेक्ट्रानिक युक्ति है जो प्राय: छोटे एलेक्ट्रानिक उपकरणों के लिये डीसी पैदा करता है और इसकी सहायता से बैटरी के बिना भी उस उपकरण को चलाया जा सकता है। इसीलिये इसका नाम "बैटरी एलिमिनेटर" (बैटरी की आवश्यकता को समाप्त करने वाला) पड़ा। यह प्राय: आम घरों में उपलब्ध एसी वोल्टेज से चलता है और अलग-अलग उपकरणों की आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग वोल्टेज एवं धारा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लियेधिकांश रेडियो को चलाने के लिये ६ वोल्ट का बैटरी एलिमिनेटर लगता है। श्रेणी:शक्ति एलेक्ट्रानिकी.

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मुहाना

मुहाना सभी नदियाँ किसी न किसी समुद्र में मिलती हैं। जहाँ पर नदी सागर से मिलती है, उस जगह खारे और मीठे पानी के मिलने से, नदी द्वारा बहा कर लाई गई मिट्टी आदि जमा होने लगती है। इस कारण धीरे धीरे नदी की धारा कई छोटे छोटे भागों में बँट जाती है। इस क्षेत्र को नदी का मुहाना कहते हैं।.

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ला नीना

ला नीना (La Niña) एक प्रतिसागरीय धारा है। इसका आविर्भाव पश्चिमी प्रशांत महासागर में उस समय होता है जबकि पूर्वी प्रशांत महासागर में एल नीनो का प्रभाव समाप्त हो जाता है। .

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शक्ति प्रणाली का संरक्षण

जर्मनी के एक शक्ति संयंत्र का नियंत्रण-कक्ष एक आधुनिक संरक्षा रिले; यह वितरण प्रणाली में प्रयुक्त अनेकों कार्य करने वाली एक अंकीय रिले है। यह अकेले ही कई विद्युत-यांत्रिक रिले का काम कर सकती है। इसके अलावा इसमें स्व-परीक्षण की सुविधा तथा सूचना को दूर तक पहुँचने/लेने की भी सुविधा है। शक्ति तंत्र का संरक्षण (Power system protection) विद्युत शक्ति प्रणाली की शाखा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न वैद्युत दोषों (फाल्ट्स) की स्थिति में विद्युत उपकरणों की सुरक्षा एवं विद्युत प्रदाय का सातत्य (कांटिन्युइटी) सुनिश्चित करने से समब्धित विषय आते हैं। रक्षी प्रणाली का उद्देश्य यह होता है कि दोष की स्थिति में, कम से कम समय में, केवल उन अवयवों को शेष नेटवर्क से अलग किया जाय जिनमें दोष उत्पन्न हुआ है। इससे नेटवर्क का 'स्वस्थ' भाग नेटवर्क में बना रहता है और अपना काम करता रहता है। जो युक्तियाँ विद्युत प्रणाली को दोषों से रक्षा करने के उद्देश्य से लगायी जातीं हैं उन्हें रक्षी युक्तियाँ' (प्रोटेक्टिव डिवाइसेस) कहते हैं। .

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शक्ति प्रवर्धक

शक्ति प्रवर्धक का कार्य वोल्टेज प्रवर्धक से प्राप्त आउटपुट को शक्ति प्रदान करना है। उदाहरणत: माइक्रोफोन द्वारा प्राप्त विद्युत तरंग को वोल्टेज एम्पलीफायर प्रवर्धित करता है, इसे सीधे लाउडस्पीकर को देने पर यह पुन: इन्हे ध्वनि तरंगो मे बदल नही पायेगा। अतः वोल्टेज प्रवर्धक से प्राप्त आउटपुट को एक शक्ति प्रवर्धक को दिया जाता है। जिससे लाउडस्पीकर को संचालित करने योग्य पावर प्राप्त हो जाता है। परिभाषा- "वह ट्राँजिस्टर प्रवर्धक जो ऑडियो आवृत्ति सिगनलोँ के पॉवर स्तर को बढ़ाता है, ट्राँजिस्टर आडियो शक्ति प्रवर्धक कहलाता है"। विशेषताएँ- 1.

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श्रीदेवनारायण

श्रीदेवनारायण, राजस्थान के गुर्जर योद्धा थे जिन्होने गुर्जर समाज की स्थापना की। वे भगवान विष्णु के अवतार हैं। इनकी पूजा मुख्यत: राजस्थान, हरियाणा तथा मध्यप्रदेश में होती है। इनका भव्य मंदिर आसीन्द में है। .

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समुद्र विज्ञानी

समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले समुद्र विज्ञानी (ओशनोग्राफर) कहलाते हैं। .

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सिलिकॉन कन्ट्रोल्ड रेक्टिफायर

"एससीआर" का प्रतीकात्मक चिन्ह ' "एससीआर" का कार्यात्मक चिन्ह ' हीट-सिंक पर लगा हुआ एक '''एससीआर''' सिलिकॉन कन्ट्रोल्ड रेक्टिफायर (Silicon-controlled rectifier) या एससीआर (SCR) या सिलिकॉन नियंत्रित दिष्टकारी एक तीन सिरों से युक्त अर्धचालक वैद्युत युक्ति है। यह सिलिकॉन से ही बनता है (जर्मेनियम से बनाना सम्भव नहीं है)। यह एक चार स्तरों वाली (PNPN) युक्ति है जो नियंत्रित दिष्टकारी के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस दृष्टि से यह डायोड से भिन्न है कि डायोड का प्रयोग करके नियंत्रित तरीके से प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में नहीं बदला जा सकता। इसमें तीन सिरे होये हैं जिन्हें धनाग्र (एनोड), ऋणाग्र (कैथोड) और गेट के नाम से जाना जाता है। एससीआर बहुत कम धारा और वोल्टेज से लेकर हजारों एम्पीयर और हजारों वोल्ट रेटिंग के उपलब्ध हैं। यह एक बहुत ही मजबूत (रग्गेड) युक्ति है जो आसानी से खराब नहीं होती। .

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सैल्मन

मुख्य पेसिफिक सैल्मन प्रजातियां: सोकाई, चम, कोस्टल, कटथ्रोट ट्राउट, चिनूक, कोहो, स्टीलहेड और पिंक सैल्मोनिडे परिवार की विभिन्न प्रजातियों की मछली के लिए दिया जाने वाला आम नाम है सैल्मन.

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हाउर

हाउर (बांग्ला: হাওর) बांग्लादेश के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित एक आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र है जिसका आकार एक कटोरे या उथली तश्तरी जैसा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण इस आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र का मुख्य फैलाव बांग्लादेश के सुनामगंज, हबीगंज और मौलवीबाज़ार जिलों और सिलहट सदर उपजिले में है, इसके अलावा इसका कुछ गौण हिस्सा किशोरगंज और नेत्रकोना जिलों में भी पड़ता है। यह एक आर्द्रभूमि पर्यावास के विभिन्न घटकों जैसे कि, नदियों, धाराओं, नहरों मौसमी बाढ़ वाले खेती के मैदानों और सैंकड़ों छोटे छोटे हाउरों और बीलों का सुंदर मिश्रण है। यहाँ पर विभिन्न आकारों वाले लगभग 400 हाउर और बील स्थित है जिनका विस्तार कुछ हेक्टेयर से लेकर हजारों हेक्टेयर तक है। .

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वर्ग माध्य मूल

गणित में वर्ग माध्य मूल (root mean square / RMS or rms), किसी चर राशि के परिमाण (magnitude) को व्यक्त करने का एक प्रकार का सांख्यिकीय तरीका है। इसे द्विघाती माध्य (quadratic mean) भी कहते हैं। यह उस स्थिति में विशेष रूप से उपयोगी है जब चर राशि धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों मान ग्रहण कर रही हो। जैसे ज्यावक्रीय (sinusoids) का आरएमएस एक उपयोगी राशि है। 'वर्ग माध्य मूल' का शाब्दिक अर्थ है - दिये हुए आंकड़ों के "वर्गों के माध्य का वर्गमूल (root)".

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वाटमीटर

वाटमीटर शक्तिमापी या वाटमीटर (Wattmeter) किसी विद्युत-लोड द्वारा ली जा रही विद्युत-शक्ति को मापने के लिये प्रयुक्त होता है। चूंकि शक्ति का मान धारा एवं वोल्टता दोनो के मान (एवं उनके बीच कलान्तर) पर निर्भर करती है, इसलिये वाटमीटर की रचना ऐसी होती है कि यह इन दोनो राशियों को नापते हुए उनका गुणनफल (कला-सहित) निकाले। इस दृष्टि से परिपथ में जोड़ने के लिये इसमें प्राय: चार-सिरे (टर्मिनल) प्रदान किये गये होते हैं। दो सिरे धारा के श्रेणीक्रम में जुड़ते हैं और अन्य दो वोल्टेज के समान्तर-क्रम में। .

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विद्युत धारा

आवेशों के प्रवाह की दिशा से धारा की दिशा निर्धारित होती है। विद्युत आवेश के गति या प्रवाह में होने पर उसे विद्युत धारा (इलेक्ट्रिक करेण्ट) कहते हैं। इसकी SI इकाई एम्पीयर है। एक कूलांम प्रति सेकेण्ड की दर से प्रवाहित विद्युत आवेश को एक एम्पीयर धारा कहेंगे। .

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विद्युत-मापी

विद्युत-मापी (Electricity meters) या 'ऊर्जामापी' सामान्यत: उन सभी उपकरणों को कहा जाता है विद्युत ऊर्जा का माप करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। विद्युत-मापी प्रायः किलोवाट-घण्टा (kWh) में अंशांकित (कैलिब्रेटेड) होते हैं। कुछ विद्युत् मापी विशेष कार्यों के लिए व्यवस्थित होते हैं, जैसे महत्तम माँग संसूचक (Maximum Demand indicator), जिसमें मीटर के साथ ऐसा काल अंशक होता है जो निश्चित अवधि में अधिकतम ऊर्जा का निर्देश करे। कुछ विद्युत-मापी ऐसे भी होते हैं जो महत्तम लोड (पीकलोड) के समय में स्वयं लोड को काट दें। .

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विद्युतशक्ति का प्रेषण

उच्च-वोल्टता प्रेषण लाइन विद्युत्शक्ति को जनित्रस्थल से उपयोगस्थल तक ले जाना प्रेषण (Transmission) कहलाता है। अधिकांश स्थानों में विद्युत्शक्ति का उत्पादन उसके उपयोगस्थलों से दूर होता है। वैसे तो जनित्रस्थल से उपयोगस्थल तक विद्युत्शक्ति को ले जाना ही प्रेषण कहलाता है, परंतु इस शब्द क व्यावहारिक अर्थ बहुधा दूरी तथा उच्च बोल्टता से संबंधित है। प्रेषण लाइनें पोल अथवा मीनारों पर आरोपित, ऊपरी लाइनों के रूप में भी तथा भूमिगत केबिलों के रूप में भी होती हैं। ऊपरी लाइनें साधारणतया ताँबे के तार की होती हैं, परंतु ऐलुमिनियम तथा इस्पात और ऐलुमिनियम के संयुक्त चालक भी विस्तृत रूप से प्रयुक्त किए जाते हैं। .

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वैद्युत अवयव

वैद्युत अवयव (Electrical components) वैद्युत अवयवयों (electrical elements) की संकल्पना (कांसेप्ट) वैद्युत नेटवर्कों के विश्लेषण में प्रयुक्त होती है। इसको वास्तविक 'वैद्युत अवयव' अथवा वास्तविक एलेक्ट्रॉनिक अवयव के बजाय 'आदर्श वैद्युत अवयव' समझना चाहिये। किसी भी वैद्युत नेटवर्क को मॉडल करने के लिये उसे विद्युत के सरलतम् अवयव के नेटवर्क के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है। ध्यान देने की बात है कि व्यावहारिक/भौतिक रूप से 'विद्युत अवयवों' का कोई अस्तित्व नहीं है। इनकी संकल्पना कुछ विद्युत के आदर्श, सरलीकृत अवयवों के रूप में की गयी है। एक या कुछ वैद्युत अवयवों की सहायता से किसी भी भौतिक (फिजिकल) एलेक्ट्रॉनिक अवयव को निरुपित किया जा सकता है। .

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