लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

धान

सूची धान

बांग्लादेश में धान (चावल) के खेत धान की बाली (अनाज वाला भाग) धान (Paddy / ओराय्ज़ा सैटिवा) एक प्रमुख फसल है जिससे चावल निकाला जाता है। यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है। ओराय्ज़ा सैटिवा (जिसका प्रचलित नाम 'एशियाई धान' है) एक पादप की जाति है। इसका सबसे छोटा जीनोम होता है (मात्र ४३० एम.बी.) जो केवल १२ क्रोमोज़ोम में सीमित होता है। इसे सरलता से जेनेटिकली अंतरण करने लायक होने की क्षमता हेतु जाना जाता है। यह अनाज जीव-विज्ञान में एक मॉडल जीव माना जाता है। .

108 संबंधों: चम्पुआ, चावल, चिटफंड, चिवड़ा, एल्ब्यूमिन, एजोला, झाबुआ, झुलसा रोग, डांग जिला, ढाका, तिनसुकिया, तिमोर द्वीप, त्रिवेणी नहर, तृण, तेंदुआ हरकेस, तोंकिन, दरं जिला, दक्षिण अमेरिका, धान का खेत, धान की भूसी का तेल, धान उत्पादन की मेडागास्कर विधि, धालेश्वरी नदी, नगाँव, नोवाखाली, नील हरित शैवाल, पादप रोगविज्ञान, पाकुड़ जिला, पूर्णिया जिला, पोएसी, फुकुओका, फैलिन (चक्रवात), बस्तर जिला, बाँस, बासमती चावल, बांकुड़ा जिला, बिहार, बिहार का भूगोल, बुआई, बेतिया, बीज, भात, भारतमाता, भूरा चावल, भोजली देवी, मणिपुर, मदुरई जिला, मधुबनी, महकुआ, माण्डले, माजुली द्वीप, ..., मंडला ज़िला, मक्का (अनाज), मुण्डा, मौलोक जिला, मृदा, मेघालय, यांगून, रसूलपुर सैद, राधेलाल हरदेव रिछारिया, राप्ती नदी, रखाइन राज्य, लाओस, शिमोगा, शैवालीकरण, सफेद चावल, साँवा, सारस (पक्षी), सिलचर, सिंचाई, सिंहली संस्कृति, संकर धान, स्फूर घोलक जैव उर्वरक, सूक्ष्मजीव, सेर (वज़न का माप), सीढ़ीदार खेत, सीतामढ़ी, हनुमानगढ़, हरी खाद, हावड़ा, हेमिपटेरा, जावा (द्वीप), जंगली तीतर, ईसबगोल, घास, वानस्पतिक नाम, विदिशा की वन संपदा, व्हिस्की, वेहानी राइस, खनादेवी, ख़रीफ़ की फ़सल, खैरा रोग, गंगा नदी, गंगा का आर्थिक महत्त्व, गेहूँ, गोरखमुंडी, आलू, आसवन, कचिन राज्य, कटीली चौलाई, कल्लर भूमि, कुशीनगर, कुशीनगर जिला, क्षारीय भूमि, कोदो, अरहर दाल, उबला चावल, छत्तीसगढ़, छुईखदान सूचकांक विस्तार (58 अधिक) »

चम्पुआ

चम्पुआ (ओड़िया:ଚମ୍ପୁଆ) यह उड़ीसा राज्य के क्योंझरगढ़ जिले में स्थित एक छोटा सा नगर है। यह उपविभाग है और इसी में चंपुआ तहसील भी है। यह छोटा नागपुर पठार के एक भाग पर पड़ता है। यह बैतरनी नदी के तट पर क्योंझरगढ़ से ५२.७ किलोमीटर उत्तर है। यहाँ की औसत ऊँचाई समुद्रतल से लगभग ६०० मीटर है। पहले चंपुआ को 'चंपेश्वर' कहा जाता था। यहाँ पर लाल मिट्टी पाई जाती है, जो अधिक उपजाऊ नहीं है। धान की खेती यहाँ सबसे अधिक होती है। चँपुआ के बहुत से भाग वनों से आच्छादित हैं। यहाँ के लाख और लकड़ी के उद्योग बहुत प्रसिद्ध हैं। .

नई!!: धान और चम्पुआ · और देखें »

चावल

मिश्रित चावल: सफेद चावल, भूरा चावल, लाल चावल और जंगली चावल चावल विभिन्न आकार, रंग, रूप में आते हैं। धान से लेकर सफेद चावल बनाने की प्रक्रिया धान के बीज को चावल कहते हैं। यह धान से ऊपर का छिलका हटाने से प्राप्त होता है। चावल सम्पूर्ण पूर्वी जगत में प्रमुख रूप से खाए जाने वाला अनाज है। भारत में भात, खिचड़ी सहित काफी सारे पक्वान्न बनते हैं। चावल का चलन दक्षिण भारत और पूर्वी-दक्षिणी भारत में उत्तर भारत से अधिक है। इसे संस्कृत में 'तण्डुल' कहा जाता है और तमिल में 'अरिसि' कहा जाता है। इसे कभी-कभार 'षड्रस' भी कहा जाता है, क्योंकि में स्वाद के छहों प्रमुख रस मौजूद हैं। सांस्कृतिक हिंदी में पके हुए चावल को भात कहा जाता है, किन्तु अधिकतर हिन्दी भाषी 'भात' शब्द का प्रयोग कम ही करते हैं। चावल की फ़सल को धान कहते हैं। बासमती चावल भारत का प्रसिद्ध चावल जो विदेशों को निर्यात भी किया जाता है। .

नई!!: धान और चावल · और देखें »

चिटफंड

चिट फंड का अभ्यास भारत में एक बचत योजना के रूप में किया जाता है। एक कंपनी जो चिटफंड का प्रबंधन, आयोजिन और पर्यवेक्षण करता है, इस तरह के कंपनी को, चिट फंड अधिनियम की धारा १९८२ के द्वारा चिट फंड कंपनी के नाम से परिभाषित किया जाता है। चिट फंड अधिनियम, १०८२ की धारा २ (ख) के अनुसार: "चिट का मतलब लेन-देन है जो चाहे चिट, चिट फंड, चिट्टि, कुरी या किसी अन्य नाम से, जिस्के द्वारा या जिसके तहत एक व्यक्ति, व्यक्तियों के एक निर्धारित संख्या के साथ एक समझौते में प्रवेश करता है कि उनमें से हर एक पैसे की एक निश्चित राशि का सदस्यता करेगा (या अनाज की एक निश्चित मात्रा), समय-समय पर किश्तों के माध्यम से एक निश्चित अवधि तक और ऐसे प्रत्येक ग्राहक को अपनी बारी के दौरान बेतरतीब ढंग से चुनाव, या नीलामी से, या निविदा द्वारा या इस तरह के अन्य तरीकों के रूप में जो चिट समझौते में निर्दिष्ट किया गया हो, पुरस्कार राशि के हकदार बनेंगे।" इस तरह के चिट फंड योजनाओं संगठित वित्तीय संस्थाओं द्वारा आयोजित किया जा सकता है, या दोस्तों या रिश्तेदारों के बीच आयोजित असंगठित योजनाओं से भी हो सकता है।चिट फंड के कुछ रूपों में, बचत विशिष्ट प्रयोजनों के लिए किया जाता है।चिट फंड, ऋण सुविधा के लिए आसान पहुँच प्रदान करके दक्षिण भारतीय राज्य केरल के लोगों की वित्तीय विकास में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। केरल में चिट्टि (चिट फंड) एक आम घटना समाज के सभी वर्गों द्वारा अभ्यास किया जाता है।केरल राज्य वित्तीय उद्यम नामक एक कंपनी है जो केरल सरकार द्वारा चलाया जाता है जिसका मुख्य कारोबारी कार्यकलाप चिट्टि है। चिट फंड की अवधारणा १८०० में लोगों की आँखों के सामने आयी जब राजा राम वर्मा- तत्कालीन कोचीन राज्य के शासक, एक सीरियाई ईसाई व्यापारी को एक ऋण दिया था, जिसमें खुद के अन्य खर्चों के लिए उस में का एक निश्चित भाग रख कर और बाद में वह समानता के सिद्धांत के आधार पर बाकी पैसे भी ले लिय। राजा राम वर्मा .

नई!!: धान और चिटफंड · और देखें »

चिवड़ा

धान को उबालकर तथा कुछ-कुछ नम अवस्था में ही किसी चीज से 'पीटकर'या दबाकर चिवड़ा (Flattened rice या beaten rice) बनाया जाता है। यह कुछ अन्य चीजों के साथ मिलाकर नमकीन बनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार आदि में इसे दही के साथ खाया जाता है। .

नई!!: धान और चिवड़ा · और देखें »

एल्ब्यूमिन

अल्ब्यूमिन (लैटिन: ऐल्बस, श्वेत), या एल्ब्यूमेन एक प्रकार का प्रोटीन है। यह सांद्र लवण घोलों (कन्सन्ट्रेटेड सॉल्ट सॉल्यूशन) में धीमे-धीमे घुलता है और फिर उष्ण कोएगुलेशन होने लगता है। एल्ब्यूमिन वाले पदार्थ, जैसे अंडे की सफ़ेदी, आदि को एल्ब्यूमिनॉएड्स कहते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। १ जून २०१० प्रकृति में विभिन्न तरह के एल्बुमिन पाए जाते हैं। अंडे और मनुष्य के रक्त में पाए जाने वाले एल्बुमिन को सबसे अधिक पहचाने मिली है। यह मानव शरीर में कई महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। यह विभिन्न प्रकार के पौधों और जंतुओं का रचनात्मक अवयव हैं। अंडे की सफेदी में अल्ब्यूमिन होता है। ---- एल्बुमिन वास्तव में एक गोलाकार प्रोटीन होता है। इसकी संरचना खुरदरी और गोल होती है। इसके अणु जल के संग एक घोल तैयार करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के पदार्थ होते हैं। मांसपेशियों में पाए जाने वाले प्रोटीन रेशेदार होते हैं। इनकी संरचना अलग तरह की होती है और ये पानी में नहीं घुलते हैं। एल्बुमिन मनुष्य के शरीर में जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण घटक होते हैं। ये वसामय ऊतकों से शरीर में महत्वपूर्ण अम्लों का निर्माण करते हैं। ये शारीरिक क्रिया को नियंत्रित कर रक्त में हार्मोन और अन्य पदार्थो के परिसंचालन में सहयोग देते हैं। शरीर में इनका अभाव होने पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। रोगियों के शरीर में इसकी अपेक्षित कमी के लक्षण होने पर चिकित्सक कई बार एल्बुमिन के परीक्षण का परामर्श भी देते हैं। अंडे के सफेद हिस्से में पाए जाने वाले एल्बुमिन को ओवल्बुमिन कहते हैं। गर्म करने पर एल्बुमिन और प्रोटीन जम जाते हैं। इस गुण के कारण ये पकाने में अच्छे होते हैं। इसी कारण से अंडा जल्दी उबलता है। इसमें पाया जाने वाला एल्बुमिन दूसरे तत्वों को शुद्ध करने के लिए भी काम लाया जाता है। इसे सूप बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। पकाए जाने पर प्रोटीन फैल जाते हैं और इनकी संरचना में बदलाव आता है। ओवल्बुमिन इस स्थिति में आंशिक रूप से फैलते हैं, जिससे इन पर एक सतह बन जाती है। इसे अधिक गर्म करने पर उसकी वास्तविक संरचना नष्ट हो जाती है। .

नई!!: धान और एल्ब्यूमिन · और देखें »

एजोला

एजोला एजोला (Azolla) एक तैरती हुई फर्न है जो शैवाल से मिलती-जुलती है। सामान्यत: एजोला धान के खेत या उथले पानी में उगाई जाती है। यह तेजी से बढ़ती है। यह जैव उर्वरक का स्त्रोत है .

नई!!: धान और एजोला · और देखें »

झाबुआ

झाबुआ मध्य प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। समुद्र की सतह से इसकी ऊँचाई १,१७१ फुट है। यह बहादुरसागर नामक झील के किनारे स्थित है। झील के उत्तरी किनारे पर स्थित राजा का महल मिट्टी की दीवार से घिरा है। झाबुआ भूतपूर्व मध्य भारत में एक राज्य (रियासत) भी था। इसका क्षेत्रफल १,३३६ वर्ग मील था। अनस यहाँ की प्रमुख नदी है। माही नदी के आसपास के भाग में कृषि होती थी। यहाँ का 'घाटा' कहलानेवाला पर्वतीय भाग अनुपजाऊ है। मक्का, धान, चना, गेहूँ, ज्वार, कपास यहाँ की प्रमुख उपज हैं। .

नई!!: धान और झाबुआ · और देखें »

झुलसा रोग

झुलसा रोग (blight) का प्रकोप अनेक फसलों पर होता है, जैसे धान, जौ, कपास, आलू, बैगन आदि। .

नई!!: धान और झुलसा रोग · और देखें »

डांग जिला

दक्षिणी गुजरात के जिले डांग भारतीय राज्य गुजरात का एक जिला है। जिले का मुख्यालय आहवा है। इस जिले का क्षेत्रफल 1764 वर्ग किमी तथा जनसंख्या 2,26,769 (२०११ की जनगणना के अनुसार) है। यह क्षेत्र पश्चिमी घाट की उत्तरी दिशा में है। इसके उत्तर और पश्चिम में तापी, नवसारी, वलसाड तथा दक्षिण और पूर्व में नंदुरबार तथा नासिक जिले हैं। इनका केंद्रीय नगर अहवा है। पर्वतीय सँकरा क्षेत्र होने के कारण यहाँ रागी तथा अन्य धान उत्पन्न होते हैं। पहले यह गुजरात की छोटी-छोटी देशी रियासतों के समूह में था। १९४९ ई. में बंबई राज्य में इसका विलय हुआ और १९६० ई. में गुजरात राज्य बनने पर यह उसमें सम्मिलित हो पाया। इस जिले में ७२ प्रतिशत आदिवासी हैं। शबरीधाम, सापुतारा, महाल, डोन, पंपा सरोवर, पूर्णा वन्यजीव अभयारण्य यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल है। .

नई!!: धान और डांग जिला · और देखें »

ढाका

ढाका (बांग्ला: ঢাকা) बांग्लादेश की राजधानी है। बूढ़ी गंगा नदी के तट पर स्थित यह देश का सबसे बड़ा शहर है। राजधानी होने के अलावा यह बांग्लादेश का औद्यौगिक और प्रशासनिक केन्द्र भी है। यहाँ पर धान, गन्ना और चाय का व्यापार होता है। ढाका की जनसंख्या लगभग 1.1 करोड़ है (२००१ की जनसंख्या: ९,०००,०२)) जो इसे दुनिया के ग्यारहवें सबसे बड़ी जनसंख्या वाले शहर का दर्जा भी दिलाता है। ढाका का अपना इतिहास रहा है और इसे दुनिया में मस्जिदों के शहर के नाम से जाना जाता है। मुगल सल्तनत के दौरान इस शहर को १७ वीं सदी में जहांगीर नगर के नाम से भी जाना जाता था, यह न सिर्फ प्रादेशिक राजधानी हुआ करती थी बल्कि यहाँ पर निर्मित होने वाले मलमल के व्यापार में इस शहर का पूरी दुनिया में दबदबा था। आधुनिक ढाका का निर्माण एवं विकास ब्रिटिश शासन के दौरान उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ और जल्द ही यह कोलकाता के बाद पूरे बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा शहर बन गया। भारत विभाजन के बाद १९४७ में ढाका पूर्वी पाकिस्तान की प्रशासनिक राजधानी बना तथा १९७२ में बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आने पर यह राष्ट्रीय राजधानी घोषित हुआ। आधुनिक ढाका देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था, एवं संस्कृति का मुख्य केन्द्र है। ढाका न सिर्फ देश का सबसे साक्षर (६३%) शहर है- - बल्कि बांग्लादेश के शहरों में सबसे ज्यादा विविधता वाला शहर भी है। हालांकि आधुनिक ढाका का शहरी आधारभूत ढांचा देश में सबसे ज्यादा विकसित है परंतु प्रदूषण, यातायात कुव्यवस्था, गरीबी, अपराध जैसी समस्यायें इस शहर के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। सारे देश से लोगों का ढाका की ओर पलायन भी सरकार के लिए एक बड़ी समस्या का रूप लेता जा रहा है। .

नई!!: धान और ढाका · और देखें »

तिनसुकिया

तिनसुकिया भारत के असम प्रदेश का एक छोटा सा शहर, तिनसुकिया जिले का प्रशासनिक मुख्यालय तथा नगर निगम बोर्ड है। यह असम राज्य का एक प्रमुख क्षेत्रीय व्यापारिक केंद्र भी है। यह असम कि राजधानी गुवाहाटी से 486 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पूर्व में और अरुणाचल प्रदेश की सीमा से 84 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। असम के व्यापारिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध इस नगर में असमिया और अन्य भाषाई विशेषकर हिंदीभाषी, बंगाली, नेपाली और सिख लोग रहते हैं। कई नए मॉल और भवनों के निर्माण के साथ शहर एक आधुनिक शहर का रूप लेता जा रहा है। तिनसुकिया एक औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्र है जहाँ कृषि उत्पादों जैसे चाय, संतरे, अदरक और धान के भारी पैदावार के साथ साथ अनेक उद्यम भी प्रतिष्ठित हैं। तिनसुकिया में असम का सबसे बड़ा रेलवे जंक्शन है और यह जिले को देश के कई महत्वपूर्ण स्थलों से जोड़ता है। .

नई!!: धान और तिनसुकिया · और देखें »

तिमोर द्वीप

तिमोर, दक्षिण पूर्व एशिया के समुद्री छोर के दक्षिणी सिरे पर और तिमोर सागर के उत्तर में स्थित एक द्वीप है। यह द्वीप स्वतंत्र राष्ट्र पूर्वी तिमोर और इंडोनेशियाई प्रांत पूर्वी नुसा तेंगारा के एक भाग पश्चिमी तिमोर के बीच विभाजित है। द्वीप का भूक्षेत्र 30777 वर्ग किलोमीटर है। तिमोर शब्द मलय भाषा के शब्द तिमूर पर आधारित है जिसका अर्थ मलय भाषा में "पूर्व" (दिशा) होता है, ऐसा इसे इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह द्वीपों की श्रृंखला के पूर्वी छोर पर स्थित है। .

नई!!: धान और तिमोर द्वीप · और देखें »

त्रिवेणी नहर

त्रिवेनी नहर भारत में बिहार के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के चंपारन जिले में सिंचाई करने के लिये बनाई गई नहर है, जो गंडक नदी के बाएँ तट से निकाली गई है। यह प्रणाली दक्षिण-पूर्व में लगभग १०० किमी तक गई है। १९०९ ईo में इसे प्रारंभ किया गया था। पहले उपर्युक्त क्षेत्र शुष्क था, लेकिन इस नहर के कारण अब धान, गेहूँ, जौ, गन्ने आदि की कृषि यहाँ की जाने लगी है। .

नई!!: धान और त्रिवेणी नहर · और देखें »

तृण

धान की पुआल उन्नत विधि से निर्मित तृण का बण्डल धान, गेहूँ, जौ, राई आदि फसलों के डण्ठल को तृण (Straw) कहते हैं। यह कृषि का एक सह-उत्पाद है। तृण बहुत से कार्यों के लिये उपयोगी है जैसे, पशुओं का चारा, ईंधन, पशुओं का बिछौना, छप्पर बनाना, टोकरी बनाना, घर की दीवारें बनाना आदि। तृण को तरह-तरह के गुटके (बण्डल) बनाकर या एक बडी ढेरी बनाकर भण्डारित किया जाता है। .

नई!!: धान और तृण · और देखें »

तेंदुआ हरकेस

तेंदुआ हरकेस में भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद जिले का एक गाँव है। बिहार के जिले यहाँ हिन्दु सनातन धर्म के लोग खेती और गो पालन करते हैं। .

नई!!: धान और तेंदुआ हरकेस · और देखें »

तोंकिन

तांकिङ (Bắc Kỳ) तांकिङ (Tongking) वियतनाम का उत्तरी भाग है। इसके पूर्व में तांकिं की खाड़ी है। इसका क्षेत्रफल ४४,६७२ वर्ग मील तथा इसमें लाल नदी तथा सहायक नदियों, विशेषकर संग बो (काली नदी), की घाटी और डेल्टा सम्मिलित हैं। मुख्य नदी घाटियों एवं ऊँची मध्य पहाड़ियों (spurs) द्वारा यह युनेन पठार से अलग है। यहाँ कोयला, जस्ता, फॉस्फेट, टिन एवं ग्रैफाइट की खुदाई की जाती है। चूना पत्थर ही बड़ी बड़ी खानों के कारण यहाँ पर्याप्त मात्रा में सीमेंट का निर्माण होता है। मुख्य फसल धान है, जो कुल कृषि योग्य भूमि के ४/५ भाग में बोया जाता है तथा साधारणत: संपूर्ण जनसंख्या के भोजन के लिये पर्याप्त होता है। यहाँ धान की खेती के विस्तार के लिये बहुत ही कम अवसर है, क्योंकि समतल भूमि सीमित है। मक्का, गन्ना, कपास, चाय, कहवा एवं तम्बाकू अन्य उपजें हैं। यहाँ रेशम का उत्पादन काफी होता है, जिसका अधिकांश उपयोग रेशम उद्योग के कारखानों में किया जाता है। तांकिं के उपजाऊ डेल्टा प्रदेश में घनी जनसंख्या पाई जाती है। यहाँ घनत्व १,७८० व्यक्ति प्रति वर्ग मील है। हानोई प्रमुख एवं आधुनिक नगर है, हेफोंग (Hiaphong) मुख्य बंदरगाह है। श्रेणी:वियतनाम का भूगोल.

नई!!: धान और तोंकिन · और देखें »

दरं जिला

असम का '''दरं''' जिला दरं (Darrang) भारत के असम राज्य में उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र का प्रसिद्ध जिला है, जिसका मुख्यालय मंगलदोई में है। इस जिले के उत्तर में भूटान तथा दफला पहाड़ियाँ और दक्षिण में ब्रह्मपुत्र नदी है, जिससे यहाँ का व्यापार होता है। नदी द्वारा निर्मित क्षेत्र होने के कारण धान, राई, सरसों, गन्ना और जूट यहाँ अत्यधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं। इस क्षेत्र में चाय के बागानों की भरमार है। इस जिले में चाय उत्पादन के कारखाने, रेशम के कीड़े पालने का उद्योग तथा रेलवे का वर्कशॉप है। यहाँ से तिब्बत की राजधानी लाशा को जाने के लिये सुगम और कम दूरी का मार्ग है, जिसका अंतिम छोर उड़लगुड़ी में है। 1,000 ईo के लगभग पाल राजाओं की राजधानी तेजपुर में थी, इसलिये यहाँ के मंदिरों तथा खंडहरों में शिल्पकला और स्थापत्यकला के दर्शीय नमूने हैं। इस जिले का क्षेत्रफल - 3,481 वर्ग कि॰मी॰ तथा जनसंख्या - 15,03,943 (2001 जनगणना) है। दारं जिले के '''मानस राष्ट्रीय पार्क''' का मुख्यद्वार .

नई!!: धान और दरं जिला · और देखें »

दक्षिण अमेरिका

दक्षिण अमेरिका (स्पेनी: América del Sur; पुर्तगाली: América do Sul) उत्तर अमेरिका के दक्षिण पूर्व में स्थित पश्चिमी गोलार्द्ध का एक महाद्वीप है। दक्षिणी अमेरिका उत्तर में १३० उत्तरी अक्षांश (गैलिनस अन्तरीप) से दक्षिण में ५६० दक्षिणी अक्षांश (हार्न अन्तरीप) तक एवं पूर्व में ३५० पश्चिमी देशान्तर (रेशिको अन्तरीप) से पश्चिम में ८१० पश्चिमी देशान्तर (पारिना अन्तरीप) तक विस्तृत है। इसके उत्तर में कैरीबियन सागर तथा पनामा नहर, पूर्व तथा उत्तर-पूर्व में अन्ध महासागर, पश्चिम में प्रशान्त महासागर तथा दक्षिण में अण्टार्कटिक महासागर स्थित हैं। भूमध्य रेखा इस महाद्वीप के उत्तरी भाग से एवं मकर रेखा मध्य से गुजरती है जिसके कारण इसका अधिकांश भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। दक्षिणी अमेरिका की उत्तर से दक्षिण लम्बाई लगभग ७,२०० किलोमीटर तथा पश्चिम से पूर्व चौड़ाई ५,१२० किलोमीटर है। विश्व का यह चौथा बड़ा महाद्वीप है, जो आकार में भारत से लगभग ६ गुना बड़ा है। पनामा नहर इसे पनामा भूडमरुमध्य पर उत्तरी अमरीका महाद्वीप से अलग करती है। किंतु पनामा देश उत्तरी अमरीका में आता है। ३२,००० किलोमीटर लम्बे समुद्रतट वाले इस महाद्वीप का समुद्री किनारा सीधा एवं सपाट है, तट पर द्वीप, प्रायद्वीप तथा खाड़ियाँ कम हैं जिससे अच्छे बन्दरगाहों का अभाव है। खनिज तथा प्राकृतिक सम्पदा में धनी यह महाद्वीप गर्म एवं नम जलवायु, पर्वतों, पठारों घने जंगलों तथा मरुस्थलों की उपस्थिति के कारण विकसित नहीं हो सका है। यहाँ विश्व की सबसे लम्बी पर्वत-श्रेणी एण्डीज पर्वतमाला एवं सबसे ऊँची टीटीकाका झील हैं। भूमध्यरेखा के समीप पेरू देश में चिम्बोरेजो तथा कोटोपैक्सी नामक विश्व के सबसे ऊँचे ज्वालामुखी पर्वत हैं जो लगभग ६,०९६ मीटर ऊँचे हैं। अमेजन, ओरीनिको, रियो डि ला प्लाटा यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। दक्षिण अमेरिका की अन्य नदियाँ ब्राज़ील की साओ फ्रांसिस्को, कोलम्बिया की मैगडालेना तथा अर्जेण्टाइना की रायो कोलोरेडो हैं। इस महाद्वीप में ब्राज़ील, अर्जेंटीना, चिली, उरुग्वे, पैराग्वे, बोलिविया, पेरू, ईक्वाडोर, कोलोंबिया, वेनेज़ुएला, गुयाना (ब्रिटिश, डच, फ्रेंच) और फ़ाकलैंड द्वीप-समूह आदि देश हैं। .

नई!!: धान और दक्षिण अमेरिका · और देखें »

धान का खेत

तमिल नाडु में धान के खेत .

नई!!: धान और धान का खेत · और देखें »

धान की भूसी का तेल

धान की भूसी का तेल, धान के जर्म (अंकुराणु) एवं अन्दर की भूसी से निकाला जाता है। इसका धूम्र बिन्दु बहुत अधिक है (254 °C) जिसके कारण इसका प्रयोग उच्च-ताप पर भोजन बनाने के लिये किया जाता है। बहुत से एशियाई देशों में इसका प्रयोग पाचक-तेल (कुकिंग आयल) जैसे किया जाता है। धान की भूसी में अनेक प्रकार की वसायें (फैट) पाये जाते हैं जिसमें से ४७% मोनोसचुरेटेड, ३३% पॉलीसैचुरेटेड, तथा २०% सैचुरेटेड होते हैं। धान की भूसी में वसीय अम्लों की उपस्थिति निम्न सारणी में दी गयी है- .

नई!!: धान और धान की भूसी का तेल · और देखें »

धान उत्पादन की मेडागास्कर विधि

'''श्री विधि''' से तैयार धान का खेत: खेत की मिट्टी नम है किन्तु इसमें पानी नहीं लगाया गया है। मेडागास्कर विधि धान उत्पादन की एक तकनीक है जिसके द्वारा पानी के बहुत कम प्रयोग से भी धान का बहुत अच्छा उत्पादन सम्भव होता है। इसे सघन धान प्रनाली (System of Rice Intensification-SRI या श्री पद्धति) के नाम से भी जाना जाता है। जहां पारंपरिक तकनीक में धान के पौधों को पानी से लबालब भरे खेतों में उगाया जाता है, वहीं मेडागास्कर तकनीक में पौधों की जड़ों में नमी बरकरार रखना ही पर्याप्त होता है, लेकिन सिंचाई के पुख्ता इंतजाम जरूरी हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर फसल की सिंचाई की जा सके। सामान्यत: जमीन पर दरारें उभरने पर ही दोबारा सिंचाई करनी होती है। इस तकनीक से धान की खेती में जहां भूमि, श्रम, पूंजी और पानी कम लगता है, वहीं उत्पादन 300 प्रतिशत तक ज्यादा मिलता है। इस पद्धति में प्रचलित किस्मों का ही उपयोग कर उत्पादकता बढाई जा सकती है। कैरिबियन देश मेडागास्कर में 1983 में फादर हेनरी डी लाउलेनी ने इस तकनीक का आविष्कार किया था। .

नई!!: धान और धान उत्पादन की मेडागास्कर विधि · और देखें »

धालेश्वरी नदी

धालेश्वरी नदी धालेश्वरी नदी बांग्लादेश में बहनेवाली जमुना नदी की शाखा है। यह मुंशीगंज और मदनगंज होती हुई जूट और धान के सघन क्षेत्रों में प्रवाहित होती है। इसमें ब्रह्मपुत्र नदी की एक शाखा आकर ठीक नारायणगंज के पूर्व में मिल जाती है। इसकी उत्तरी शाखा का नाम 'बूढ़ी गंगा नदी' है, जिसपर प्रसिद्ध नगर ढाका स्थित है। .

नई!!: धान और धालेश्वरी नदी · और देखें »

नगाँव

कोलोंग नदी का दृष्य नगाँव भारत के असम प्रान्त के नगांव जिले का एक नगर है। यह गौहाटी से १२० किमी पूरब में कलंग नदी के तट पर स्थित है। यह असम का ५वाँ सबसे बड़ा नगर है। पहले इसका नाम 'नौगाँव' था। नगांव कृषि व्यापार केंद्र है और यहाँ गुवाहाटी विश्वविद्यालय से संबद्ध कई होमोयोपैथिक चिकित्सा महाविद्यालय स्थित हैं। नगांव से पांच किमी दक्षिण-पश्चिम में संचोआ में एक रेल जंक्शन हैं। नगांव के आसपास का क्षेत्र ब्रह्मपुत्र नदी घाटी का एक हिस्सा है और इसमें कई दलदल और झीलें हैं, जिनमें से कई मत्स्यपालन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इसके इर्द-गिर्द के जंगल सागौन व साल की इमारती लकड़ियां और लाख उपलब्ध कराते हैं कृषि उत्पादों में चावल, जूट, चाय और रेशम शामिल हैं। .

नई!!: धान और नगाँव · और देखें »

नोवाखाली

250px नोवाखाली (Noakhali) या मैजदी (Maijdi) बांग्लादेश के चटगाँव (Chittagong) मंडल में एक जिला है। इस जिले में मुख्य गंगवार क्षेत्र के अतिरिक्त मेघना नदी के मुहाने के कई द्वीप सम्मिलित हैं। इसका उत्तरी एवं मध्य भाग मेघना नदी की सतह से नीचा है, इसलिए यहाँ मकानों की बाढ़ की सतह से ऊपर उठाना पड़ता है। अधिकांश पर छोटे छोटे परवों में बसे हुए हैं। धान, जूट, लाल मिर्च, प्याज और तिलहन यहाँ की मुख्य फसलें हैं। नारियल, दाल तथा गन्ने का भी उत्पादन पर्याप्त मात्रा में होता है। नारियल से तेल निकाला जाता है। पीतल के बरतल, सूती वस्त्र तथा इत्र भी यहाँ बनाए जाते हैं। यहाँ का औसत ताप २७ डिग्री सें.

नई!!: धान और नोवाखाली · और देखें »

नील हरित शैवाल

नील हरित शैवाल (अंग्रेज़ी:ब्लू-ग्रीन ऐल्गी, सायनोबैक्टीरिया) एक जीवाणु फायलम होता है, जो प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा उत्पादन करते हैं। यहां जीवाणु के नीले रंग के कारण इसका नाम सायनो (यूनानी:κυανός अर्थात नीला) से पड़ा है। नील हरित काई वायुमंडलीय नाइट्रोजन यौगिकीकरण कर, धान के फसल को आंशिक मात्रा में की नाइट्रोजन पूर्ति करता है। यह जैविक खाद नत्रजनधारी रासायनिक उर्वरक का सस्ता व सुलभ विकल्प है जो धान के फसल को, न सिर्फ 25-30 किलो ग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर की पूर्ति करता है, बल्कि उस धान के खेत में नील हरित काई के अवशेष से बने सेन्द्रीय खाद के द्वारा उसकी गुणवत्ता व उर्वरता कायम रखने में मददगार साबित होती है। .

नई!!: धान और नील हरित शैवाल · और देखें »

पादप रोगविज्ञान

'''चूर्णिल आसिता''' (Powdery mildew) का रोग एक बायोट्रॉफिक कवक के कारण होता है कृष्ण विगलन (ब्लैक रॉट) रोगजनक का जीवनचक्र पादप रोगविज्ञान या फायटोपैथोलोजी (plant pathology या phytopathology) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक के तीन शब्दों जैसे पादप, रोग व ज्ञान से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "पादप रोगों का ज्ञान (अध्ययन)"। अत: पादप रोगविज्ञान, कृषि विज्ञान, वनस्पति विज्ञान या जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत रोगों के लक्ष्णों, कारणों, हेतु की, रोगचक्र, रागों से हानि एवं उनके नियंत्रण का अध्ययन किया जाता हैं। .

नई!!: धान और पादप रोगविज्ञान · और देखें »

पाकुड़ जिला

पाकुड़ भारत के झारखंड प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय पाकुड़ है। इसका पश्चिमी भाग पहाड़ी है जिसमें कुछ कृषि योग्य घाटियाँ भी हैं, किंतु अधिकांश भाग चट्टानी एवं अनुपजाऊ है। पूर्वी भाग चौड़ा एवं जलोढ़ मिट्टी से युक्त है और यहाँ पर धान अधिक उगाया जाता है। इस जिले में जनसंख्या का घनत्व काफी अधिक है। क्षेत्रफल - 696.21 वर्ग कि॰मी॰ जनसंख्या - 7,00,032 (2001 जनगणना) साक्षरता - एस॰टी॰डी॰ कोड - जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में) समुद्र तल से उचाई - अक्षांश - 23o 40' - 25o18' उत्तर देशांतर - 86o 25' - 87o 57' पूर्व औसत वर्षा - मि॰मी॰ .

नई!!: धान और पाकुड़ जिला · और देखें »

पूर्णिया जिला

पूर्णिया जिला पुरनिया या पूर्णियाँ बिहार राज्य का ज़िला है। इसके उत्तर में अररिया तथा किशनगंज जिला, पूर्व में पश्चिम बंगाल का दिनाजपुर, पश्चिम में मधेपुरा जिला, दक्षिण में भागलपुर तथा कटिहार जिला सीमा बनाती है। इसका क्षेत्रफल ३२२९ वर्ग किमी है। उत्तर की ओर धरातल पथरीला तथा पूर्व की ओर नदियों एवं प्राकृतिक स्रोतों से बने कभी न सूखनेवाले दलदल एवं पश्चिम की ओर रेतीले घास के मैदान मिलते हैं। गंगा के अलावा कोसी, महानंदा तथा पनार नदियाँ बहती हैं। पूर्व की ओर कहीं-कहीं उत्तम जलोढ़ मिट्टी मिलती है। वर्षा शीघ्र प्रारंभ होती तथा जोरों के साथ होती है। वार्षिक वर्षा का औसत ७१ इंच रहता है। कृषि में धान के अतिरिक्त दालें, तिलहन और तंबाकू भी पैदा हाता है। पशु छोटे तथा कमजोर हाते हैं। उद्योगों में मोटे रंगीन कपड़े, बैलगाड़ियों के पहिए, चटाइयाँ तथा जूट के सामान बनाए जाते हैं। श्रेणी:बिहार के जिले.

नई!!: धान और पूर्णिया जिला · और देखें »

पोएसी

बाँस पोएसी पौधों का एक कुल है। इस कुल के अन्तर्गत लगभग 530 वंश तथा 5200 जातियाँ मिलती हैं जिमें भारत में लगभग 830 जातियाँ उपलब्ध हैं। इसके पौधे सर्वत्र मिले हैं। परन्तु अधिकांश समशीतोष्ण प्रदेशों में तथा कुछ उष्ण प्रदेशों में पाए जाते हैं। बाँस, मक्का, गेंहूँ, जौ, बाजरा, दूब, राई, ईख, धान, ज्वार, खसखस इस कुल के कुछ सामान्य पौधें हैं। श्रेणी:वनस्पति विज्ञान.

नई!!: धान और पोएसी · और देखें »

फुकुओका

फुकुओका जापान के क्यूशू द्वीप का सबसे बड़ा नगर तथा फुकुओका प्रीफ्रैक्चर की राजधानी है। इस नगर की डिजाइन १९७२ में हुई थी। गरमी में औसत ताप लगभग २१ डिग्री सेल्सियस तथा जाड़े का औसत ताप लगभग ७ डिग्री सेल्सियस रहता है। वर्षा ६० इंच से ८० इंच के बीच होती है। इसके आसपास वाले क्षेत्र में धान, तंबाकू, शकरकंद तथा रेशम उद्योग के लिए शहतूत उगाए जाते हैं। यहाँ जलयान भी बनाए जाते हैं। यह व्यापार का केंद्र बन गया है। श्रेणी:जापान के नगर.

नई!!: धान और फुकुओका · और देखें »

फैलिन (चक्रवात)

फैलिन या पायलिन एक तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात है। अंडमान सागर में कम दबाव के क्षेत्र के रूप में उत्पन्न हुए फैलिन ने 9 अक्टूबर को उत्तरी अंडमान निकोबार द्वीप समूह पार करते ही एक चक्रवाती तूफान का रूप ले लिया।भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने भविष्यवाणी की थी कि यह तूफ़ान 12 अक्टूबर को शाम के लगभग साढ़े पांच बजे भारत के पूर्वी तटीय इलाकों तक पहुँच जायेगा। अंततः यह तूफ़ान 12 अक्टूबर 2013 को 8 बजे आन्ध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के तट पर टकराया। इस चक्रवात को फैलिन नाम (जिसका अर्थ होता है नीलम), थाईलैंड द्वारा दिया गया था। इस चक्रवात से 90 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, 2.34 लाख घर क्षतिग्रस्त हो गए जबकि 2400 करोड़ रुपये की धान की फसल बर्बाद हो गई। .

नई!!: धान और फैलिन (चक्रवात) · और देखें »

बस्तर जिला

बस्तर भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ का एक जिला है। जिले का प्रशासनीक मुख्यालय जगदलपुर है। यहां की कुल आबादी का लगभग 70% भाग जनजातीय है। इसके उत्तर में दुर्ग, उत्तर-पूर्व में रायपुर, पश्चिम में चांदा, पूर्व में कोरापुट तथा दक्षिण में पूर्वी गोदावरी जिले हैं। यह पहले एक देशी रियासत था। इसका अधिकांश भाग कृषि के अयोग्य है। यहाँ जंगल अधिक हैं जिनमें गोंड एवं अन्य आदिवासी जातियाँ निवास करती हैं। जगंलों में टीक तथा साल के पेड़ प्रमुख हैं। यहाँ की स्थानांतरित कृषि में धान तथा कुछ मात्रा में ज्वार, बाजरा पैदा कर लिया जाता है। इंद्रावती यहाँ की प्रमुख नदी है। चित्राकट में कई झरने भी हैं। जगदलपुर, बीजापुर, कांकेर, कोंडागाँव, भानु प्रतापपुर आदि प्रमुख नगर हैं। यहाँ के आदिवासी जंगलों में लकड़ियाँ, लाख, मोम, शहद, चमड़ा साफ करने तथा रँगने के पदार्थ आदि इकट्ठे करते रहते हैं। खनिज पदार्थों में लोहा, अभ्रक महत्वपूर्ण हैं। .

नई!!: धान और बस्तर जिला · और देखें »

बाँस

बाँस, ग्रामिनीई (Gramineae) कुल की एक अत्यंत उपयोगी घास है, जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती है। बाँस एक सामूहिक शब्द है, जिसमें अनेक जातियाँ सम्मिलित हैं। मुख्य जातियाँ, बैंब्यूसा (Bambusa), डेंड्रोकेलैमस (नर बाँस) (Dendrocalamus) आदि हैं। बैंब्यूसा शब्द मराठी बैंबू का लैटिन नाम है। इसके लगभग २४ वंश भारत में पाए जाते हैं। बाँस एक सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री पोएसी कुल का पादप है। इसके परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूँ, मक्का, जौ और धान हैं। यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन (२४ घंटे) में १२१ सेंटीमीटर (४७.६ इंच) तक बढ़ जाती हैं। थोड़े समय के लिए ही सही पर कभी-कभी तो इसके बढ़ने की रफ्तार १ मीटर (३९ मीटर) प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। इसका तना, लम्बा, पर्वसन्धि युक्त, प्रायः खोखला एवं शाखान्वित होता है। तने को निचले गांठों से अपस्थानिक जड़े निकलती है। तने पर स्पष्ट पर्व एवं पर्वसन्धियाँ रहती हैं। पर्वसन्धियाँ ठोस एवं खोखली होती हैं। इस प्रकार के तने को सन्धि-स्तम्भ कहते हैं। इसकी जड़े अस्थानिक एवं रेशेदार होती है। इसकी पत्तियाँ सरल होती हैं, इनके शीर्ष भाग भाले के समान नुकीले होते हैं। पत्तियाँ वृन्त युक्त होती हैं तथा इनमें सामानान्तर विन्यास होता है। यह पौधा अपने जीवन में एक बार ही फल धारण करता है। फूल सफेद आता है। पश्चिमी एशिया एवं दक्षिण-पश्चिमी एशिया में बाँस एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसका आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इससे घर तो बनाए ही जाते हैं, यह भोजन का भी स्रोत है। सौ ग्राम बाँस के बीज में ६०.३६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट और २६५.६ किलो कैलोरी ऊर्जा रहती है। इतने अधिक कार्बोहाइड्रेट और इतनी अधिक ऊर्जा वाला कोई भी पदार्थ स्वास्थ्यवर्धक अवश्य होगा। ७० से अधिक वंशो वाले बाँस की १००० से अधिक प्रजातियाँ है। ठंडे पहाड़ी प्रदेशों से लेकर उष्ण कटिबंधों तक, संपूर्ण पूर्वी एशिया में, ५०० उत्तरी अक्षांश से लेकर उत्तरी आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम में, भारत तथा हिमालय में, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्रों तथा अमेरिका में दक्षिण-पूर्व अमेरिका से लेकर अर्जेन्टीना एवं चिली में (४७० दक्षिण अक्षांश) तक बाँस के वन पाए जाते हैं। बाँस की खेती कर कोई भी व्यक्ति लखपति बन सकता है। एक बार बाँस खेत में लगा दिया जायें तो ५ साल बाद वह उपज देने लगता है। अन्य फसलों पर सूखे एवं कीट बीमारियो का प्रकोप हो सकता है। जिसके कारण किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। लेकिन बाँस एक ऐसी फसल है जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। बाँस का पेड़ अन्य पेड़ों की अपेक्षा ३० प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन छोड़ता और कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है साथ ही यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में आक्सीजन छोड़ता है। .

नई!!: धान और बाँस · और देखें »

बासमती चावल

लाल बासमती चावल बासमती (Basmati,, باسمتى) भारत की लम्बे चावल की एक उत्कृष्ट किस्म है। इसका वैज्ञानिक नाम है ओराय्ज़ा सैटिवा। यह अपने खास स्वाद और मोहक खुशबू के लिये प्रसिद्ध है। इसका नाम बासमती अर्थात खुशबू वाली किस्म होता है। इसका दूसरा अर्थ कोमल या मुलायम चावल भी होता है। भारत इस किस्म का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसके बाद पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश आते हैं। पारंपरिक बासमती पौधे लम्बे और पतले होते हैं। इनका तना तेज हवाएं भी सह नहीं सकता है। इनमें अपेक्षाकृत कम, परंतु उच्च श्रेणी की पैदावार होती है। यह अन्तर्राष्ट्रीय और भारतीय दोनों ही बाजारों में ऊँचे दामों पर बिकता है। बासमती के दाने अन्य दानों से काफी लम्बे होते हैं। पकने के बाद, ये आपस में लेसदार होकर चिपकते नहीं, बल्कि बिखरे हुए रहते हैं। यह चावल दो प्रकार का होता है:- श्वेत और भूरा। के अनुसार, बासमती चावल में मध्यम ग्लाइसेमिक सूचकांक ५६ से ६९ के बीच होता है, जो कि इसे मधुमेह रोगियों के लिये अन्य अनाजों और श्वेत आटे की अपेक्षा अधिक श्रेयस्कर बनाता है। .

नई!!: धान और बासमती चावल · और देखें »

बांकुड़ा जिला

बाँकुड़ा भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल का एक प्रशासकीय जिला है। इसके पश्चिम में पुरुलिया, दक्षिण में मेदनीपुर, पूर्व एवं पूर्वोत्तर में हुगली एवं वर्द्धमान जिले स्थित हैं। छोटा नागपुर पठार की पूर्वी श्रेणी यहाँ फैली है। यहाँ की प्रमुख नदी दामोदर उत्तरी सीमा बनाती है। निम्न वार्षिक ताप लगभग २७°सें.

नई!!: धान और बांकुड़ा जिला · और देखें »

बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

नई!!: धान और बिहार · और देखें »

बिहार का भूगोल

बिहार 21°58'10" ~ 27°31'15" उत्तरी अक्षांश तथा 82°19'50" ~ 88°17'40" पूर्वी देशांतर के बीच स्थित भारतीय राज्य है। मुख्यतः यह एक हिंदी भाषी राज्य है लेकिन उर्दू, मैथिली, भोजपुरी, मगही, बज्जिका, अंगिका तथा एवं संथाली भी बोली जाती है। राज्य का कुल क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर है जिसमें 92,257.51 वर्ग किलोमीटर ग्रामीण क्षेत्र है। 2001 की जनगणना के अनुसार बिहार राज्य की जनसंख्या 8,28,78,796 है जिनमें ६ वर्ष से कम आयु का प्रतिशत 19.59% है। 2002 में झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार का भूभाग मुख्यतः नदियों के बाढमैदान एवं कृषियोग्य समतल भूमि है। गंगा तथा इसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टियों से बिहार का जलोढ मैदान बना है जिसकी औसत ऊँचाई १७३ फीट है। बिहार का उपग्रह द्वारा लिया गया चित्र .

नई!!: धान और बिहार का भूगोल · और देखें »

बुआई

बीज को भूमि में रोपना बुआई या 'वपन' या 'बोना' कहलाती है। .

नई!!: धान और बुआई · और देखें »

बेतिया

बेतिया बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले का एक शहर है। यह पश्चिमी चंपारण जिला का मुख्यालय भी है। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है। इसके पश्चिम में उत्तर प्रदेश का कुशीनगर जिला पड़ता है। 'बेतिया' शब्द 'बेंत' (cane) से व्युत्पन्न है जो कभी यहाँ बड़े पैमाने पर उत्पन्न होता था (अब नहीं)। अंग्रेजी काल में बेतिया राज दूसरी सबसे बड़ी जमींदारी थी जिसका क्षेत्रफल १८०० वर्ग मील थी। इससे उस समय २० लाख रूपये लगान मिलता था। इसका उत्तरी भाग ऊबड़-खाबड़ तथा दक्षिणी भाग समतल तथा उर्वर है। यह हरहा नदी की प्राचीन तलहटी में स्थित प्रमुख नगर है। यह मुजफ्फरपुर से १२४ किमी दूर है तथा पहले बेतिया जमींदारी की राजधानी था। यहाँ के महाराजा का महल दर्शनीय है। महात्मा गांधी ने बेतिया के हजारी मल धर्मशाला में रहकर सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की थी। १९७४ के संपूर्ण क्रांति में भी बेतिया की अहम भुमिका थी। यहां के अमवा मझार गांव के रहने वाले श्यामाकांत तिवारी ने जयप्रकाश नारायण के कहने पर पूरे जिले में आंदोलन को फैलाया। यह एक कृषि प्रधान क्षेत्र है जहाँ गन्ना, धान और गेहूँ सभी उगते हैं। यह गाँधी की कर्मभूमि और ध्रुपद गायिकी के लिए प्रसिध है। बेतिया से मुंबई फ़िल्म उद्योग का सफ़र तय कर चुके मशहूर फ़िल्म निर्देशक प्रकाश झा ने इस क्षेत्र के लोगों की सरकारी नौकरी की तलाश पर 'कथा माधोपुर' की रचना की। .

नई!!: धान और बेतिया · और देखें »

बीज

विभिन्न पौधों के बीज बीज की परिभाषा बीज एक परिपक्व बीजाण्ड है,जो निषेचन के बाद क्रियाशिल होता है,बीज उचित परिस्थितिया जैसे जल,वायु,सूर्य प्रकास आदि मिलने पर क्रियाशिल होता है। .

नई!!: धान और बीज · और देखें »

भात

थाईलैण्ड का भात चावल को उबालकर या भाप द्वारा पकाने से भात (Cooked rice) बनता है। भारत सहित अनेक देशों में यह प्रमुखता से खाया जाता है। .

नई!!: धान और भात · और देखें »

भारतमाता

'''भारतमाता की कांस्य मूर्ति''' भारत को मातृदेवी के रूप में चित्रित करके भारतमाता या 'भारतम्बा' कहा जाता है। भारतमाता को प्राय: केसरिया या नारंगी रंग की साड़ी पहने, हाथ में भगवा ध्वज लिये हुए चित्रित किया जाता है तथा साथ में सिंह होता है। भारत में भारतमाता के बहुत से मन्दिर हैं। काशी का भारतमाता मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध है जिसका उद्घाटन सन् १९३६ में स्वयं महात्मा गांधी ने किया था। हरिद्वार का भारतमाता मन्दिर भी बहुत प्रसिद्ध है। .

नई!!: धान और भारतमाता · और देखें »

भूरा चावल

धान से जब केवल उसका बाहरी आवरण (भूसी) हटा दी जाती है तो जो दाना दिखता है उसे भूरा चावल कहते हैं। इसका रंग भूरापन लिये हुए होता है क्योंकि इसमें ब्रान बचा रहता जिसका रंग भूरा होता है। ब्रान को भी हटा देने से जो चावल मिलता है वह बिल्कुल सफेद रंग का होता है और 'सफेद चावल कहलाता है। .

नई!!: धान और भूरा चावल · और देखें »

भोजली देवी

भुजरियाँ भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को छोटी॑-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। ये दाने धान, गेहूँ, जौ के हो सकते हैं। ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे 'भुजरियाँ` कहते हैं। इन्हें अलग-अलग प्रदेशों में इन्हें 'फुलरिया`, 'धुधिया`, 'धैंगा` और 'जवारा`(मालवा) या भोजली भी कहते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं। जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं उसे घर के किसी पवित्र स्‍थान में छायादार जगह में स्‍थापित किया जाता है। उनमें रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। दाने धीरे-धीरे पौधे बनकर बढ़ते हैं, महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्‍मान में देवी-गीतों को गाकर जवांरा– जस – सेवा गीत गाया जाता है वैसे ही भोजली दाई (देवी) के सम्‍मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं। सामूहिक स्‍वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्‍तीसगढ की शान हैं। खेतों में इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निराई गुडाई का काम समापन की ओर होता है। किसानों की लड़कियाँ अच्‍छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्‍मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं। सावन की पूर्णिमा तक इनमें ४ से ६ इंच तक के पौधे निकल आते हैं। रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं। भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती है। और इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है। नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है। .

नई!!: धान और भोजली देवी · और देखें »

मणिपुर

मणिपुर भारत का एक राज्य है। इसकी राजधानी है इंफाल। मणिपुर के पड़ोसी राज्य हैं: उत्तर में नागालैंड और दक्षिण में मिज़ोरम, पश्चिम में असम; और पूर्व में इसकी सीमा म्यांमार से मिलती है। इसका क्षेत्रफल 22,347 वर्ग कि.मी (8,628 वर्ग मील) है। यहां के मूल निवासी मेइती जनजाति के लोग हैं, जो यहां के घाटी क्षेत्र में रहते हैं। इनकी भाषा मेइतिलोन है, जिसे मणिपुरी भाषा भी कहते हैं। यह भाषा १९९२ में भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ी गई है और इस प्रकार इसे एक राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हो गया है। यहां के पर्वतीय क्षेत्रों में नागा व कुकी जनजाति के लोग रहते हैं। मणिपुरी को एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य माना जाता है। .

नई!!: धान और मणिपुर · और देखें »

मदुरई जिला

मदुरई भारत के राज्य तमिलनाडु का एक जिला है। यह भारत के तमिलनाडु राज्य का एक जिला है।संगम युग, जो की 400 BCE से २०० AD तक चला, दक्षिण भारत के इतिहास में एक ऐसा युग था जब तमिलनाडु के मदुरै शहर में उस काल के सभी महान कवी और ज्ञानियों ने वहां के पंड्या राजाओं के संरक्षण में एक शैक्षिक संघ का निर्माण कर बहुत से महान तमिल काव्य ग्रंथों की रचना कियें|  इसके दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में रामनाथपुरम, उत्तर-पूर्व में तिरुच्चिरापल्लि, उत्तर-पश्चिम में कोर्यपुत्तूर जिले तथा पश्चिम में केरल राज्य स्थित है। इसका क्षेत्रफल ४,९१० वर्ग मील तथा जनसंख्या ३२,११,२२७ (१९६१) है। वार्षिक वर्षा का औसत ४० इंच है जो अधिकतर जाड़ों में होती है। वर्षा के असमान वितरण के कारण कृषि के लिये सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पैरियर नदी यहाँ की प्रमुख नदी है। कृषि में धान, कपास, मूँगफली तथा कुछ मोटे अनाज उगाए जाते हैं। मदुरई अपने प्राचीन हिंदू मंदिरों के लिये विश्व प्रसिद्ध है। क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.

नई!!: धान और मदुरई जिला · और देखें »

मधुबनी

मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन १९७२ में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। .

नई!!: धान और मधुबनी · और देखें »

महकुआ

महकुआ सामान्य नाम: गो़ट खरपतवार (Goat weed) वैज्ञानिक नाम:अजेरेटम कोनीजोइडस(Ageratum conyzoides L.) विवरण: चौड़ी पत्ती वाली श्रेणी का वार्षिक पौधा है, जो फूल आने पर एक मीटर लम्बा हो जाता है। इसमें बहुशाकीय व्यवस्था है, जिसके तने पर काफी रोएं होते हैं। यह बीज द्वारा संचरण करता है। बीज गिरने के २ सप्ताह बाद, लगभग ५०% बीज जमाव क्षमता के होते हैं, परन्तु कुछ स्थानों पर १% बीज ही जम पाते हैं (अर्थात धान की उच्च भूमियों) में बहुलता से पाए जाते हैं तथा तेजी से अपनी कालोनी बनाते है। इस खरपतवार की जीवन-अवधि कम होने से इसकी एक वर्ष में कई पीढ़ियां पूरी हो जाती हैं, जिससे फसल की तुलना में प्रतिस्पर्धा क्षमता बहुत अधिक बढ़ जाती है। बीज अत्याधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं, जो पानी से फैलते हैं। इसके बीज में विभिन्न परिस्थितियों में जमाव क्षमता होती है। एक बार काटने पर दूसरी बार फुटाव हो जाता है। इससे कभी-कभी ४०% तक धान की फसल को क्षति हो जाती है।.

नई!!: धान और महकुआ · और देखें »

माण्डले

म्यांमार के मानचित्र में माण्डले की स्थिति मांडले का विहंगम दृष्य माण्डले (Mandalay / बर्मी भाषा में: မန္တလေးမြို့; / मन्तलेःम्रों) बर्मा का दूसरा सबसे बड़ा शहर एवं बर्मा का अन्तिम शाही राजधानी है। यह रंगून से ७१६ किमी उत्तर में इरावदी नदी के किनारे बसा है। मांडले ऊपरी बर्मा का आर्थिक केन्द्र एवं बर्मी संस्कृति का केन्द्र है। मांडले की जेल में ही बालगंगाधर तिलक, बहादुरशाह जफर आदि अनेक भारतीय नेताओं एवं क्रान्तिकारियों को ब्रिटिश सरकार ने बन्दी बना रखा था। .

नई!!: धान और माण्डले · और देखें »

माजुली द्वीप

माजुली या माजोली (उच्चारित: माद्ज़ुली, mʌʤʊlɪ) (असमिया- মাজুলী) असम के ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य में बसा एक बड़ा नदी द्वीप है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के ए.जे.

नई!!: धान और माजुली द्वीप · और देखें »

मंडला ज़िला

मण्डला जिला मंडला जिला, भारत के मध्य प्रदेश राज्य में सतपुड़ा पहाड़ियों में स्थित एक जिला है। नर्मदा नदी उत्तर-पश्चिम बहती हुई इस जिले को रीवा से अलग करती है। नर्मदा की सहायक बंजार नदी की घाटी में जिले का सबसे अधिक उपजाऊ भाग पड़ता है, जिसे 'हवेली' कहते हैं। हवेली के दक्षिण बंजार की घाटी जंगलों से ढकी हुई हैं। सर्वप्रमुख इमारती पेड़ साल हैं। बाँस, टीक और हरड़ अन्य उल्लेखनीय वृक्ष हैं। नदियों की घाटियों में धान, गेहूँ और तिलहन की उपज होती है। जंगल में चीता के आखेट के लिये यह एक प्रसिद्ध जिला हैं। लाख उत्पादन, लकड़ी चीरना, पान उगाना, पशुपालन, चटाई और रस्सियों का निर्माण यहाँ के लोगों के उद्यम हैं। यहाँ के 60 प्रतिशत निवासी गौंड़ जनजाति के हें। यहाँ मैगनीज और धातु के निक्षेप हैं। मंडला नगर, नर्मदा नदी के किनारे जबलपुर के 45 मील दक्षिण-पूर्व में मंडला जिले का प्रशासनिक केन्द्र है, जो तीन ओर से नर्मदा द्वारा घिरा हुआ हैं। फुल धातु ((Bell metal) के पात्रों के लिये विख्यात है। यह गोंड़ वंश की राजधानी रह चुका है। यहाँ किले और प्रासाद के अवशेष हैं। देश का एकमात्र जीवाश्म राष्ट्रीय पार्क मंडला जिले में स्थित है। श्रेणी:मध्य प्रदेश के जिले.

नई!!: धान और मंडला ज़िला · और देखें »

मक्का (अनाज)

मक्का विभिन्न रंग और आकार के दानों वाली मकई की सूखी (पकी) बालियाँ भुट्टा सेंकते हुए ''Zea mays 'Ottofile giallo Tortonese''' मक्का (वानस्पतिक नाम: Zea mays) एक प्रमुख खाद्य फसल हैं, जो मोटे अनाजो की श्रेणी में आता है। इसे भुट्टे की शक्ल में भी खाया जाता है। भारत के अधिकांश मैदानी भागों से लेकर २७०० मीटर उँचाई वाले पहाडी क्षेत्रों तक मक्का सफलतापूर्वक उगाया जाता है। इसे सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है तथा बलुई, दोमट मिट्टी मक्का की खेती के लिये बेहतर समझी जाती है। मक्का एक ऐसा खाद्यान्न है जो मोटे अनाज की श्रेणी में आता तो है परंतु इसकी पैदावार पिछले दशक में भारत में एक महत्त्वपूर्ण फसल के रूप में मोड़ ले चुकी है क्योंकि यह फसल सभी मोटे व प्रमुख खाद्दानो की बढ़ोत्तरी दर में सबसे अग्रणी है। आज जब गेहूँ और धान मे उपज बढ़ाना कठिन होता जा रहा है, मक्का पैदावार के नये मानक प्रस्तुत कर रही है जो इस समय बढ्कर 5.98 तक पहुँच चुका है। यह फसल भारत की भूमि पर १६०० ई० के अन्त में ही पैदा करना शुरू की गई और आज भारत संसार के प्रमुख उत्पादक देशों में शामिल है। जितनी प्रकार की मक्का भारत में उत्पन्न की जाती है, शायद ही किसी अन्य देश में उतनी प्रकार की मक्का उत्पादित की जा रही है। हाँ यह बात और है कि भारत मक्का के उपयोगो मे काफी पिछडा हुआ है। जबकि अमरीका में यह एक पूर्णतया औद्याोगिक फसल के रूप में उत्पादित की जाती है और इससे विविध औद्याोगिक पदार्थ बनाऐ जाते है। भारत में मक्का का महत्त्व एक केवल खाद्यान्न की फसल के रूप मे जाना जाता है। सयुक्त राज्य अमरीका मे मक्का का अधिकतम उपयोग स्टार्च बनाने के लिये किया जाता है। भारत में मक्का की खेती जिन राज्यों में व्यापक रूप से की जाती है वे हैं - आन्ध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश इत्यादि। इनमे से राजस्थान में मक्का का सर्वाधिक क्षेत्रफल है व आन्ध्रा में सर्वाधिक उत्पादन होता है। परन्तु मक्का का महत्व जम्मू कश्मीर, हिमाचल, पूर्वोत्तर राज्यों, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, महाराष्ट्र, गुजरात व झारखण्ड में भी काफी अधिक है। .

नई!!: धान और मक्का (अनाज) · और देखें »

मुण्डा

मुंडा एक भारतीय आदिवासी समुदाय है, जो मुख्य रूप से झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र में निवास करता है| झारखण्ड के अलावा ये बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िसा आदि भारतीय राज्यों में भी रहते हैं| इनकी भाषा मुंडारी आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार की एक प्रमुख भाषा है| उनका भोजन मुख्य रूप से धान, मड़ूआ, मक्का, जंगल के फल-फूल और कंध-मूल हैं | वे सूत्ती वस्त्र पहनते हैं | महिलाओं के लिए विशेष प्रकार की साड़ी होती है, जिसे बारह हथिया (बारकी लिजा) कहते हैं | पुरुष साधारण-सा धोती का प्रयोग करते हैं, जिसे तोलोंग कहते हैं | मुण्डा, भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं | २० वीं सदी के अनुसार उनकी संख्या लगभग ९,०००,००० थी |Munda http://global.britannica.com/EBchecked/topic/397427/Munda .

नई!!: धान और मुण्डा · और देखें »

मौलोक जिला

मौलोक जिला (पुराना नाम: उच्च छिंदविन (upper Chindwin)) म्यांमार के के केन्द्रीय सागैंग मण्डल का एक जिला है। इसका मुख्यालय मौलोक नगर है। यह बर्मा के जिलों में सबसे बड़ा है। इसका क्षेत्रफल 41,536 वर्ग किलोमीटर है। मौलोक जिले का भूभाग विशेष रूप से पहाड़ी है। छिंदविन नदी, जो जिले में उत्त्र से दक्षिण प्रवाहित होती है और जिसकी मुख्य सहायक ऊयू (Uyu) है, क्षेत्रीय पर्वतों को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित करती है, जो इस नदी के पूर्व एवं पश्चिम में स्थित हैं। उत्तर-पश्चिम में वर्मा का सर्वोच्च पर्वतशिखर सारामेटी (Sarameti) अथवा वेमाकटांग (Nwemauktaung) स्थित है, जो 3829 मी.

नई!!: धान और मौलोक जिला · और देखें »

मृदा

पृथ्वी ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा (मिट्टी / soil) कहते हैं। ऊपरी सतह पर से मिट्टी हटाने पर प्राय: चट्टान (शैल) पाई जाती है। कभी कभी थोड़ी गहराई पर ही चट्टान मिल जाती है। 'मृदा विज्ञान' (Pedology) भौतिक भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें मृदा के निर्माण, उसकी विशेषताओं एवं धरातल पर उसके वितरण का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता हैं। पृथऽवी की ऊपरी सतह के कणों को ही (छोटे या बडे) soil कहा जाता है .

नई!!: धान और मृदा · और देखें »

मेघालय

मेघालय पूर्वोत्तर भारत का एक राज्य है। इसका अर्थ है बादलों का घर। २०१६ के अनुसार यहां की जनसंख्या ३२,११,४७४ है। मेघालय का विस्तार २२,४३० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में है, जिसका लम्बाई से चौडाई अनुपात लगभग ३:१ का है। IBEF, India (2013) राज्य का दक्षिणी छोर मयमनसिंह एवं सिलहट बांग्लादेशी विभागों से लगता है, पश्चिमी ओर रंगपुर बांग्लादेशी भाग तथा उत्तर एवं पूर्वी ओर भारतीय राज्य असम से घिरा हुआ है। राज्य की राजधानी शिलांग है। भारत में ब्रिटिश राज के समय तत्कालीन ब्रिटिश शाही अधिकारियों द्वारा इसे "पूर्व का स्काटलैण्ड" की संज्ञा दी थी।Arnold P. Kaminsky and Roger D. Long (2011), India Today: An Encyclopedia of Life in the Republic,, pp.

नई!!: धान और मेघालय · और देखें »

यांगून

रंगून का रेलवे स्टेशन यांगून म्यानमार देश की पुराना राजधानी है। इसका पुराना नाम रंगून था। (आधुनिक बर्मी में 'र' के स्थान पर 'य' का उच्चारण होता है।)। बहादुर शाह ज़फ़र यहीं दफ़न हैं। आजाद हिन्द फौज जिसके सर्वोच्च कमाण्डर नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे उस फौज का मुख्यालय यहीं था। रंगून दक्षिणी वर्मा के मध्यवर्ती भाग में, रंगून नदी के किनारे, मर्तबान की खाड़ी तथा इरावदी नदी के मुहाने से ३० किमी उत्तर, सागरतल से केवल २० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह बर्मा की राजधानी, सबसे बड़ा नगर तथा प्रमुख बंदरगाह है। यहाँ औसत वार्षिक वर्षा १०० इंच होती है। समीपवर्ती क्षेत्र में धान की कृषि अधिक होती है। बंदरगाह से चावल, टीक तथा अन्य लकड़ियाँ, खालें, पेट्रोलियम से निर्मित पदार्थ तथा चाँदी, सीसा, जस्ता, ताँबे की वस्तुओं का निर्यात होता है। वायुमार्ग, नदीमार्ग तथा रेलमार्ग यातायात के प्रमुख साधन हैं। विद्युत् संस्थान, रेशमी एवं ऊनी कपड़े, लकड़ी चिराई का काम, रेलवे के सामान, जलयाननिर्माण तथा मत्स्य उद्योग में काफी उन्नति हो गई है। यहाँ पर सभी आधुनिक वस्तुएँ जैसे बड़े बड़े होटल, सिनेमाघर, भंडार (storage), पगोडा, गिरजाघर, पार्क, वनस्पतिक उद्यान, अजायबघर तथा विश्वविद्यालय आदि हैं। यहाँ की सबसे प्रमुख इमारत श्वेड्रैगन पगोडा है, जो सागरतल से १६८ फुट की ऊँचाई पर बना है। यह पगोडा ३६८ फुट ऊँचा, ९०० फुट लंबा तथा ६८५ फुट चौड़ा है तथा इसके ऊपर सोने की पन्नी चढ़ी हुई है। नगर को युद्ध तथा ज्वालामुखी से काफी हानि उठानी पड़ी है। .

नई!!: धान और यांगून · और देखें »

रसूलपुर सैद

जनाब सैय्यद अशरफ उल हसन 22 नवम्बर1984.

नई!!: धान और रसूलपुर सैद · और देखें »

राधेलाल हरदेव रिछारिया

डॉ राधेलाल हरदेव रिछारिया (१९०९ - १९९६) छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक थे। वे केन्द्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक (CRRI) के निदेशक (१९५९ में) भी रहे। वे भारत में धान पर अग्रणी विशेषज्ञों में से एक थे। उन्‍होने अपने कैरियर के दौरान एक चावल की 19,000 प्रजातियाँ एकत्र की थी। उनका अनुमान था कि भारत में चावल की 200,000 प्रजातियाँ होंगी। उन्होने जीवन भर छोटे किसानों को बड़े व्यापारिक कम्पनियों से बचाने एवं उनकी विरासत को बचाने के लिये कार्य किया। .

नई!!: धान और राधेलाल हरदेव रिछारिया · और देखें »

राप्ती नदी

राप्ती नदी (या पश्चिमी राप्ती) मध्य नेपाल के दक्षिणी भाग की निचली पर्वतश्रेणियों में प्यूथान नगर के उत्तर से निकलती है। गंगा के मैदान में उतरने से पूर्व यह कुछ दूर तक शिवालिक पर्वत के समांतर पश्चिम दिशा में बहती है और मैदानी भाग में पूर्व एवं दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशाओं में प्रवाहित होकर बरहज नगर (जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश) के समीप घाघरा नदी से मिलती है। यह उत्तर प्रदेश के बहराइच, गोंडा, बस्ती एवं गोरखपुर जिलों के धान एवं गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के मध्य से होकर बहती है। बाँसी एवं गोरखपुर इस नदी पर स्थित मुख्य नगर हैं। इसकी सहायक नदियों में मुख्यत: उत्तर के तराई प्रदेश से निकलनेवाली छोटी छोटी अनेक नदियाँ हैं। नदी की कुल लंबाई ६०० किलोमीटर है। यह गोरखपुर से नीचे की ओर बड़ी नौकाओं द्वारा नौगम्य है। .

नई!!: धान और राप्ती नदी · और देखें »

रखाइन राज्य

रखाइन राज्य (बर्मी: ရခိုင်ပြည်နယ်) बर्मा के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक राज्य है। यह बंगाल की खाड़ी के साथ तटवर्ती है और पश्चिमोत्तर में बांग्लादेश से सीमावर्ती है। .

नई!!: धान और रखाइन राज्य · और देखें »

लाओस

लाओस (आधिकारिक रूप से लाओस जनवादी लोकतान्त्रिक गणतन्त्र) दक्षिण पूर्व एशिया में स्थित एक देश है। इसकी सीमाएं उत्तर पश्चिम में म्यान्मार और चीन से, पूर्व में कंबोडिया, दक्षिण में वियतनाम और पश्चिम में थाईलैंड से मिलती है। इसे हजार हाथियो की भूमि भी कहा जाता है। .

नई!!: धान और लाओस · और देखें »

शिमोगा

केलादि शिवप्पा नायक की मूर्ति शिमोगा जिले की स्थिति शिमोगा भारत के कर्नाटक प्रान्त के मध्य में स्थित एक शहर है। इसका आधिकारिक नाम 'शिवमोग्गा' है। यह शिमोगा जिले का मुख्यालय भी है। नगर तुंगा नदी के किनारे स्थित है। यह नगर पश्चिमी घाट के पर्वतीय क्षेत्र का प्रवेशद्वार है। यह नगर समुद्रतल से 569 मीटर की ऊँचाई पर है। इसके चारों ओर हरे-भरे धान के क्षेत्र और नारियल के वृक्षों के समूह हैं। २०११ की जनगणना के अनुसार नगर की जनसंख्या 322,428 है। श्रेणी:कर्नाटक श्रेणी:कर्नाटक के शहर.

नई!!: धान और शिमोगा · और देखें »

शैवालीकरण

जैव उर्वरक (biofertilizer) के रूप में बड़े स्तर पर नील हरित शैवाल की वृद्धि करने की प्रक्रिया को शैवालीकरण कहते हैं। इस संकल्पना का प्रारम्भ भारत में हुआ था लेकिन इस तकनीक का वास्तविक रूप में विकास जापान में किया गया। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वर्ष 1990 में शैवालीकरण के लिए उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल तथा नई दिल्ली में एक विशेष कार्यक्रम किया गया था। शैवालों की प्रकृति पर्यावरण-मित्र होती है जिसके कारण शैवालों को जैव उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। शैवालों के इस्तेमाल से खासकर धान की उपज में काफी वृद्धि देखी गयी है। .

नई!!: धान और शैवालीकरण · और देखें »

सफेद चावल

धान का ऊपरी छिलका निकालने के बाद उसके ठीक नीचे स्थित पतला स्तर (ब्रान या चोकर) भी निकालने के बाद जो चावल प्राप्त होता है उसे सफेद चावल कहते हैं। .

नई!!: धान और सफेद चावल · और देखें »

साँवा

सांवा घास साँवा या 'सावाँ' (Indian barnyard millet; वानस्पतिक नाम: Echinochloa frumentacea) एक मोटा अनाज है। इसके दाने या बीज बाजरे के साथ मिलाकर खाये भी जाते हैं। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में यह खूब पैदा होती है। अनुपजाऊ भूमि पर भी इसकी खेती की जा सकती है जहाँ धान की फसल नहीं होती। Echinochloa colona नामक एक प्रकार की लंबी घास इसकी पूर्वज मानी जाती है जिसकी बालें चारे के काम आती हैं। .

नई!!: धान और साँवा · और देखें »

सारस (पक्षी)

सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। इस पक्षी को क्रौंच के नाम से भी जानते हैं। पूरे विश्व में भारतवर्ष में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। सबसे बड़ा पक्षी होने के अतिरिक्त इस पक्षी की कुछ अन्य विशेषताएं इसे विशेष महत्व देती हैं। उत्तर प्रदेश के इस राजकीय पक्षी को मुख्यतः गंगा के मैदानी भागों और भारत के उत्तरी और उत्तर पूर्वी और इसी प्रकार के समान जलवायु वाले अन्य भागों में देखा जा सकता है। भारत में पाये जाने वाला सारस पक्षी यहां के स्थाई प्रवासी होते हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं। सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है। विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है। प्रातःकाल की बेला में महर्षि वाल्मीकि इसके द्रष्टा हैं तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती है। जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है। ऋषि उस आखेटक को श्राप देते हैं। अर्थात्, हे निषाद! तुझे निरंतर कभी शांति न मिले। तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के हत्या कर डाली। .

नई!!: धान और सारस (पक्षी) · और देखें »

सिलचर

शिलचर (बंगाली:শিলচর; सिलेटी:শিলচর; असमिया:শিলচৰ) असम का एक प्रमुख शहर है। यह असम का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सिलचर काछाड़ जिले में आता है। यह गुवाहाटी से ४२० किमी (२६१ मील) दूर स्थित है। यह मिजोरम और मणिपुर का अर्थनैतिक रास्ता है। इस शहर में भारत के दूर-दराज़ के इलाकों से व्यावसायिक लोग आकार बसते हैं। यहाँ की प्रमुख भाषा बंगाली और सिलेटी हैं। शिलचर बराक नदी के बाएँ किनारे पर स्थित है। भारी वर्षा (१२४ इंच) और अपेक्षाकृत उच्च औसत ताप के कारण वर्षा ऋतु में उमस रहती है। चाय, धान तथा कई जंगली उत्पादों का यह व्यवसायकेंद्र है। चूंकि यह जगह पूर्वोत्तर के शेष क्षेत्रों की अपेक्षा बहुत शांत है, इसीलिए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इस शहर "शांति का द्वीप" नाम दिया था। .

नई!!: धान और सिलचर · और देखें »

सिंचाई

गेहूं की सिंचाई पंजाब में सिंचाईसिंचाई मिट्टी को कृत्रिम रूप से पानी देकर उसमे उपलब्ध जल की मात्रा में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग फसल उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रों या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। कृषि के क्षेत्र में इसका प्रयोग इसके अतिरिक्त निम्न कारणें से भी किया जाता है: -.

नई!!: धान और सिंचाई · और देखें »

सिंहली संस्कृति

फसल पकने पर किया जाने वाला श्रीलंका का पारम्परिक नृत्य ऐसा विश्वास किया जाता है कि राजकुमार विजय और उसके 700 अनुयायी ई. पू.

नई!!: धान और सिंहली संस्कृति · और देखें »

संकर धान

दो अलग तरह के धानों के संकर (क्रासब्रीडिंग) से पैदा किए गये धान को संकर धान (Hybrid rice) कहते हैं। संकर धान से ३०% तक अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा रहा है़ .

नई!!: धान और संकर धान · और देखें »

स्फूर घोलक जैव उर्वरक

फास्फोरस घोलक जीवाणु (Phosphate solubilizing bacteria (PSB)) एक उपयोगी जीवाणुओं (बैक्टीरिया) का समूह है जो जैविक तथा अजैविक फॉस्फोरस को जल-अपघटित (हाइड्रोलाइज) करने की क्षमता रखता है। .

नई!!: धान और स्फूर घोलक जैव उर्वरक · और देखें »

सूक्ष्मजीव

जीवाणुओं का एक झुंड वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। बहुत से अन्य जीवों तथा पादपों के शिशु भी सूक्ष्मजीव ही होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवविज्ञानी विषाणुओं को भी सूक्ष्मजीव के अन्दर रखते हैं किन्तु अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान सूक्ष्मजीवियों को पोषक मीडिया (माध्यमों) पर उगाया जा सकता है, ताकि वृद्धि कर यह कालोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न नेत्रों से देखा जा सके। ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवियों पर अध्ययन के दौरान काफी लाभदायक होते हैं। .

नई!!: धान और सूक्ष्मजीव · और देखें »

सेर (वज़न का माप)

"रत्ती" एक प्रकार का बीज होता है जिसपर "रत्ती" नाम का वज़न आधारित है - एक "सेर" में ७,६८० रत्तियाँ आती हैं सेर भारतीय उपमहाद्वीप का एक पारम्परिक वज़न का माप है। आधुनिक वज़न के हिसाब से ऐक सेर लगभग ९३३ ग्राम के बराबर है, यानि एक किलोग्राम से ज़रा कम। .

नई!!: धान और सेर (वज़न का माप) · और देखें »

सीढ़ीदार खेत

वियतनाम के सा पा में सीढ़ीदार खेत सीढ़ीदार खेत, पर्वतीय या पहाड़ी प्रदेशों की ढलवां भूमि पर कृषि के उद्देश्य से विकसित क्षेत्रों को कहते हैं। इन प्रदेशों में मैदानी इलाकों के आभाव में पहाड़ों की ढलानों पर सीढ़ियों के आकार के छोटे छोटे खेत विकसित किए जाते हैं जो, मृदा अपरदन और बारिश के पानी को बहने से रोकने में सहायक होते हैं। इन खेतों में वो फसलें जिन्हें अधिक पानी की आवश्यकता होती है जैसे कि धान आदि को प्रभावी रूप से उगाया जा सकता है। जानवरों के पहाड़ी ढलानों पर चरने के फलस्वरूप हुये कम पैमाने के मृदा अपरदन के कारण प्राकृतिक रूप से छोटे आकार के सीढ़ीदार खेत विकसित हो जाते हैं। .

नई!!: धान और सीढ़ीदार खेत · और देखें »

सीतामढ़ी

सीतामढ़ी (अंग्रेज़ी: Sitamarhi,उर्दू: سيتامارهى) भारत के मिथिला का प्रमुख शहर है जो पौराणिक आख्यानों में सीता की जन्मस्थली के रूप में उल्लिखित है। त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। सीता के जन्म के कारण इस नगर का नाम पहले सीतामड़ई, फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा। यह शहर लक्षमना (वर्तमान में लखनदेई) नदी के तट पर अवस्थित है। रामायण काल में यह मिथिला राज्य का एक महत्वपूर्ण अंग था। १९०८ ईस्वी में यह मुजफ्फरपुर जिला का हिस्सा बना। स्वतंत्रता के पश्चात ११ दिसम्बर १९७२ को इसे स्वतंत्र जिला का दर्जा प्राप्त हुआ। त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। वर्तमान समय में यह तिरहुत कमिश्नरी के अंतर्गत बिहार राज्य का एक जिला मुख्यालय और प्रमुख पर्यटन स्थल है। .

नई!!: धान और सीतामढ़ी · और देखें »

हनुमानगढ़

हनुमानगढ़ भारत के राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। यह उत्तर राजस्थान में घग्घर नदी के दाऐं तट पर स्थित है। हनुमानगढ़ को 'सादुलगढ़' भी कहते हैं। यह बीकानेर से 144 मील उत्तर-पूर्व में बसा हुआ है। यहाँ एक प्राचीन क़िला है, जिसका पुराना नाम 'भटनेर' था। भटनेर, 'भट्टीनगर' का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ भट्टी अथवा भट्टियों का नगर है। .

नई!!: धान और हनुमानगढ़ · और देखें »

हरी खाद

हरी खाद के लिये सोयाबीन कृषि में हरी खाद (green manure) उस सहायक फसल को कहते हैं जिसकी खेती मुख्यत: भूमि में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने तथा उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है। प्राय: इस तरह की फसल को इसके हरी स्थिति में ही हल चलाकर मिट्टी में मिला दिया जाता है। हरी खाद से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और भूमि की रक्षा होती है। मृदा के लगातार दोहन से उसमें उपस्थित पौधे की बढ़वार के लिये आवश्यक तत्त्व नष्ट होते जा रहे हैं। इनकी क्षतिपूर्ति हेतु व मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिये हरी खाद एक उत्तम विकल्प है। बिना गले-सड़े हरे पौधे (दलहनी एवं अन्य फसलों अथवा उनके भाग) को जब मृदा की नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिये खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरी खाद देना कहते हैं। हरी खाद के उपयोग से न सिर्फ नत्रजन भूमि में उपलब्ध होता है बल्कि मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा में भी सुधार होता है। वातावरण तथा भूमि प्रदूषण की समस्या को समाप्त किया जा सकता है लागत घटने से किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है, भूमि में सूक्ष्म तत्वों की आपूर्ति होती है साथ ही मृदा की उर्वरा शक्ति भी बेहतर हो जाती है। .

नई!!: धान और हरी खाद · और देखें »

हावड़ा

हावड़ा(अंग्रेज़ी: Howrah, बांग्ला: হাওড়া), भारत के पश्चिम बंगाल राज्य का एक औद्योगिक शहर, पश्चिम बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा शहर एवं हावड़ा जिला एवं हावड़ सदर का मुख्यालय है। हुगली नदी के दाहिने तट पर स्थित, यह शहर कलकत्ता, के जुड़वा के रूप में जाना जाता है, जो किसी ज़माने में भारत की अंग्रेज़ी सरकार की राजधानी और भारत एवं विश्व के सबसे प्रभावशाली एवं धनी नगरों में से एक हुआ करता था। रवीन्द्र सेतु, विवेकानन्द सेतु, निवेदिता सेतु एवं विद्यासागर सेतु इसे हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित पश्चिम बंगाल की राजधानी, कोलकाता से जोड़ते हैं। आज भी हावड़, कोलकाता के जुड़वा के रूप में जाना जाता है, समानताएं होने के बावजूद हावड़ा नगर की भिन्न पहचान है इसकी अधिकांशतः हिंदी भाषी आबादी, जोकि कोलकाता से इसे थोड़ी अलग पहचान देती है। समुद्रतल से मात्र 12 मीटर ऊँचा यह शहर रेलमार्ग एवं सड़क मार्गों द्वारा सम्पूर्ण भारत से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहाँ का सबसे प्रमुख रेलवे स्टेशन हावड़ा जंक्शन रेलवे स्टेशन है। हावड़ा स्टेशन पूर्व रेलवे तथा दक्षिणपूर्व रेलवे का मुख्यालय है। हावड़ स्टेशन के अलावा हावड़ा नगर क्षेत्र मैं और 6 रेलवे स्टेशन हैं तथा एक और टर्मिनल शालीमार रेलवे टर्मिनल भी स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग 2 एवं राष्ट्रीय राजमार्ग 6 इसे दिल्ली व मुम्बई से जोड़ते हैं। हावड़ा नगर के अंतर्गत सिबपुर, घुसुरी, लिलुआ, सलखिया तथा रामकृष्णपुर उपनगर सम्मिलित हैं। .

नई!!: धान और हावड़ा · और देखें »

हेमिपटेरा

खटमल हेमिपटेरा (Hemiptera, हेमि (hemi) आधा, टेरॉन (pteron) एक पंख) के अंतर्गत खटमल, जूँ, चिल्लर, शल्क कीट (जैसे लाख का कीड़ा), सिकाडा (Cicada) और वनस्पति खटमल (जिसे गाँवों में लाहीं कहते हैं)। इन्हें 'मत्कुणगण' भी कहा जाता है। मत्कुण का अर्थ होता है खटमल। इस प्रकार की कीटों को हेमिप्टेरा नाम सबसे पहिले लीनियस (Linnaeus) ने 1735 ई. में दिया था। इस नाम का आधार यह था कि इस गण की बहुत सी जातियों में अग्रपक्ष (आगे के पंख) का अर्ध भाग झिल्लीमय और शेष अर्ध भाग कड़ा होता है। किंतु यह विशिष्टता इस गण के सब कीटों में नहीं पाई जाती। सबसे महत्वपूर्ण लक्षण जो इस गण की सभी जातियों में मिलता है और जिसकी ओर सबसे पहले फेब्रीसियस (Fabricius) का ध्यान सन्‌ 1775 में गया था, इन कीटों के मुख भाग हैं। मुख भाग में चोंच के आकार का शुंड होता है, यह सुई के समान नुकीला और चूसनेवाला होता है। इससे कीट छेद बना सकता है अधिकांश कीट पौधों के रस इसी से चूसते हैं। इससे ये पौधों को अत्यधिक हानि पहुंचाते हैं। हानियाँ दो प्रकार से हो सकती हैं- एक तो रस के चूसने से और दूसरी विषाणु (virus) के प्रविष्ट कराने से। इन कीटों का रूपांतरण अपूर्ण होता है। इनमें से अधिकांश कीट छोटे अथवा मध्य श्रेणी के होते हैं किंतु कोई कोई बहुत बड़े भी हो सकते हैं, जैसे जलवासी हेमिप्टेरा और सिकाडा। साधारणतया इन कीटों का रंग हरा या पीला होता है किंतु सिकाडा लालटेन मक्खी और कपास के हेमिप्टेरे के रंग प्राय: भिन्न होते हैं। .

नई!!: धान और हेमिपटेरा · और देखें »

जावा (द्वीप)

मेरबाबु पर्वत ज्वालामुखी जावा द्वीप इंडोनेशिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला द्वीप है। प्राचीन काल में इसका नाम यव द्वीप था और इसका वर्णन भारत के ग्रन्थों में बहुत आता है। यहां लगभग २००० वर्ष तक हिन्दू सभ्यता का प्रभुत्व रहा। अब भी यहां हिन्दुओं की बस्तियां कई स्थानों पर पाई जाती हैं। विशेषकर पूर्व जावा में मजापहित साम्राज्य के वंशज टेंगर लोग रहते हैं जो अब भी हिन्दू हैं। सुमेरू पर्वत और ब्रोमो पर्वत पूर्व जावा में यहां की और पूरे इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता (संस्कृत: जयकर्त) है। बोरोबुदुर और प्रमबनन मन्दिर यहां स्थित हैं। .

नई!!: धान और जावा (द्वीप) · और देखें »

जंगली तीतर

जंगली तीतर या बन तीतर (वन, बन यानि जंगल) (Swamp Francolin) (Francolinus gularis) फ़ीज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है। इसका मूल निवास गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों की घाटियों में है– पश्चिमी नेपाल की तराई से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश तक। पहले यह बांग्लादेश के चटगाँव इलाके तथा सुन्दरबन में प्रचुर मात्रा में पाया जाता था, लेकिन हाल में यह नहीं देखा गया है और अब यह अनुमान लगाया गया है कि इन इलाकों से इनका उन्मूलन हो गया है। भारत में यह सभी तराई के सुरक्षित क्षेत्रों में पाया गया है जो यह बतलाता है कि यह पूर्व अनुमानित आंकड़ों से अधिक संख्या में विद्यमान है। नेपाल में, जहाँ इसका आवास क्षेत्र २,४०० वर्ग कि॰मी॰ का है और निवास ३३० वर्ग कि.

नई!!: धान और जंगली तीतर · और देखें »

ईसबगोल

ईसबगोल का पुष्पित पौधा ईसबगोल के फूल का पास से दृष्य इसबगोल की भूसी ईसबगोल (Plantago ovata) एक एक झाड़ीनुमा पौधा है जिसके बीज का छिलका कब्ज, अतिसार आदि अनेक प्रकार के रोगों की आयुर्वेदिक औषधि है। संस्कृत में इसे ' स्निग्धबीजम् ' कहा जाता है। ईसबगोल का उपयोग रंग-रोगन, आइस्क्रीम और अन्य चिकने पदार्थों के निर्माण में भी किया जाता है 'इसबगोल' नाम एक फारसी शब्द से निकला है जिसका अर्थ है 'घोड़े का कान', क्योंकि इसकी पत्तियाँ कुछ उसी आकृति की होती हैं। इसबगोल के पौधे एक मीटर तक ऊँचे होते हैं, जिनमें लंबे किंतु कम चौड़े, धान के पत्तों के समान, पत्ते लगते हैं। डालियाँ पतली होती हैं और इनके सिरों पर गेहूँ के समान बालियाँ लगती हैं, जिनमें बीज होते हैं। इस पौधे की एक अन्य जाति भी होती है, जिसे लैटिन में 'प्लैंटेगो ऐंप्लेक्सि कैनलिस' कहते हैं। पहले प्रकार के पौधे में जो बीज लगते हैं उन पर श्वेत झिल्ली होती है, जिससे वे सफेद इसबगोल कहलाते हैं। दूसरे प्रकार के पौधे के बीज भूरे होते हैं। श्वेत बीज औषधि के विचार से अधिक अच्छे समझे जाते हैं। एक अन्य जाति के बीज काले होते हैं, किन्तु उनका व्यवहार औषध में नहीं होता। इस पौधे का उत्पत्तिस्थान मिस्र तथा ईरान है। अब यह पंजाब, मालवा और सिंध में भी लगाया जाने लगा है। विदेशी होने के कारण प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका उल्लेख नहीं मिलता। आधुनिक ग्रंथों में ये बीज मृदु, पौष्टिक, कसैले, लुआबदार, आँतों को सिकोड़नेवाले तथा कफ, पित्त और अतिसार में उपयोगी कहे गए हैं। यूनानी पद्धति के अरबी और फारसी विद्वानों ने इसकी बड़ी प्रशंसा की है और जीर्ण आमरक्तातिसार (अमीबिक डिसेंट्री), पुरानी कोष्ठबद्धता इत्यादि में इसे उपयोगी कहा है। इसबगोल की भूसी बाजार में अलग से मिलती है। सोने के पहले आधा या एक तोला भूसी फाँककर पानी पीने पर सबेरे पेट स्वच्छ हो जाता है। यह रेचक (पतले दस्त लानेवाला) नहीं होता, बल्कि आँतों को स्निग्ध और लसीला बनाकर उनमें से बद्ध मल को सरलता से बाहर कर देता है। इस प्रकार कोष्ठबद्धता दूर होने से यह बवासीर में भी लाभ पहुँचाता है। रासायनिक विश्लेषण से बीजों में ऐसा अनुमान किया जाता है कि इससे उत्पन्न होनेवाला लुआब और न पचनेवाली भूसी, दोनों, पेट में एकत्रित मल को अपने साथ बाहर निकाल लाते हैं। .

नई!!: धान और ईसबगोल · और देखें »

घास

घास का मैदान घास घास (grass) एक एकबीजपत्री हरा पौधा है। इसके प्रत्येक गाँठ से रेखीय पत्तियाँ निकलती हुई दिखाई देती हैं। साधारणतः यह कमजोर, शाखायुक्त, रेंगनेवाला पौधा है। बाँस, मक्का तथा धान के पौधे भी घास ही हैं। .

नई!!: धान और घास · और देखें »

वानस्पतिक नाम

वानस्पतिक नाम (botanical names) वानस्पतिक नामकरण के लिए अन्तरराष्ट्रीय कोड (International Code of Botanical Nomenclature (ICBN)) का पालन करते हुए पेड़-पौधों के वैज्ञानिक नाम को कहते हैं। इस प्रकार के नामकरण का उद्देश्य यह है कि पौधों के लिए एक ऐसा नाम हो जो विश्व भर में उस पौधे के संदर्भ में प्रयुक्त हो। .

नई!!: धान और वानस्पतिक नाम · और देखें »

विदिशा की वन संपदा

विदिशा भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। प्राचीन नगर विदिशा तथा उसके आस- पास के क्षेत्र को अपनी भौगोलिक विशिष्टता के कारण एक साथ दशान या दशार्ण (दस किलो वाला) क्षेत्र की संज्ञा दी गई है। यह नाम छठी शताब्दी ई. पू.

नई!!: धान और विदिशा की वन संपदा · और देखें »

व्हिस्की

व्हिस्की का एक गिलास व्हिस्की किण्वित अनाज मैश से आसवित एक प्रकार का मादक पेय है। इसके विभिन्न प्रकारों के लिए विभिन्न अनाजों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें शामिल हैं जौ, राई, मॉल्ट राई, गेहूं और मक्का (मकई).

नई!!: धान और व्हिस्की · और देखें »

वेहानी राइस

वेहानी चावल की एक प्लेट, जिसके साथ भुने हुए डैन्डेलियन के पत्ते हैं वेहानी राइस खुश्बूदार भूरे चावलों की एक किस्म है, जिसका विकास अंतिम बीसवीं शताब्दी में हुआ था। इसे रिचवेल, कैलिफोर्निया के लुंडबर्ग फैमिली फार्म्स ने विकसित किया था। इस पर उनका पंजीकृत ट्रेडमार्क होता है। इस कारण केवल वही कंपनी इसे उगा सकती है। वेहानी चावल को भारत की बासमती चावल किस्म से विकसित किया गया। इसके दाने लाली लिए भूरे रंग के होते हैं। ये कुछ कुछ जंगली चावले से प्रतीत होते हैं। पकने पर ये किस्म गर्म मक्खन डले मटर (या मूंगफली) जैसी गन्ध देता है। यह कुछ मुलायम भी होता है। .

नई!!: धान और वेहानी राइस · और देखें »

खनादेवी

खनादेवी, राजा विक्रमादित्य के नवरत्न, ज्योतिषाचार्य वराहदेव की पुत्रवधू एवं मिहिर की पत्नी थीं। इनका ज्योतिषज्ञान प्रकांड था। कृषि विषयक इनकी कहावतें बंगाल में अत्यधिक समादरित हैं। उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में भी 'खोना' या 'डाक' नाम से कृषि विषयक कुछ कहावतें पाई जाती हैं। विक्रमादित्य का काल भारतीय इतिहास में स्वर्णिम युग कहा जाता है। खना इसी युग में हुई थीं। .

नई!!: धान और खनादेवी · और देखें »

ख़रीफ़ की फ़सल

बाजरा इन फसलों को बोते समय अधिक तापमान एवं आर्द्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। उत्तर भारत में इनको जून-जुलाई में बोते हैं और इन्हें अक्टूबर के आसपास काटा जाता है। .

नई!!: धान और ख़रीफ़ की फ़सल · और देखें »

खैरा रोग

खैरा रोग (Khaira disease) धान में लगने वाला एक रोग है। इसमे पत्तियो पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते हैं जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते है। पौधा बौना रह जाता है और व्यात कम होती है। प्रभावित पौधो की जडे भी कत्थई रंग की हो जाती है। यह रोग मिट्टी में जस्ते की कमी के कारण होता है। यह रोग उत्तर प्रदेश की तराई में धान की खेती के लिए सन् १९५५ से ही एक समस्या बना हुआ है। उत्तर भारत के अन्य तराई क्षेत्रों में भी यह बीमारी पाई जाती है। अब यह रोग भारत के प्रदेशो जैसे आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, एवं बंगाल आदि में पाया जाता है। .

नई!!: धान और खैरा रोग · और देखें »

गंगा नदी

गंगा (गङ्गा; গঙ্গা) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। .

नई!!: धान और गंगा नदी · और देखें »

गंगा का आर्थिक महत्त्व

गंगा में मत्स्य पालन गंगा भारत के आर्थिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग है। उसके द्वारा सींची गई खेती, उसके वनों में आश्रित पशुपक्षी, उसके जल में पलने वाले मीन मगर, उसके ऊपर बने बाँधों से प्राप्त बिजली और पानी, उस पर ताने गए पुलों से बढ़ता यातायात और उसके जलमार्ग से होता आवागमन और व्यापार तथा पर्यटन उसे भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण साधन साबित करते हैं। गंगा अपनी उपत्यकाओं से भारत और बांग्लादेश की कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो करती ही है, यह अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवं गेहूँ हैं। जो भारत की कृषि आज का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल एवं झीलों के कारण यहां लेग्यूम, मिर्चें, सरसों, तिल, गन्ने और जूट की अच्छी फसल होती है। नदी में मत्स्य उद्योग भी बहुत जोरों पर चलता है। गंगा नदी प्रणाली भारत की सबसे बड़ी नदी प्रणाली है। इसमें लगभग ३७५ मत्स्य प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों द्वारा उत्तर प्रदेश व बिहार में १११ मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता बतायी गयी है। फरक्का बांध बन जाने से गंगा नदी में हिल्सा मछली के बीजोत्पादन में सहायता मिली है। गंगा का महत्व पर्यटन पर आधारित आय के कारण भी है। इसके तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तथा प्राकृति सौंदर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल है जो राष्ट्रीय आज का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा नदी पर रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है। जो साहसिक खेलों और पर्यावरण द्वारा भारत के आर्थिक सहयोग में सहयोग करते हैं। गंगा तट के तीन बड़े शहर हरिद्वार, इलाहाबाद एवं वाराणसी जो तीर्थ स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं। इस कारण यहाँ श्रद्धालुओं की संख्या में निरंतर बनी रहता है और धार्मिक पर्यटन में महत्वपूर्म योगदान करती है। गर्मी के मौसम में जब पहाड़ों से बर्फ पिघलती है, तब नदी में पानी की मात्रा व बहाव अच्छा होता है, इस समय उत्तराखंड में ऋषिकेश - बद्रीनाथ मार्ग पर कौडियाला से ऋषिकेश के मध्य रैफ्टिंग के शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो साहसिक खोलों के शौकीनों और पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित कर के भारत के आर्थिक सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। .

नई!!: धान और गंगा का आर्थिक महत्त्व · और देखें »

गेहूँ

गेहूँ गेहूं (Wheat; वैज्ञानिक नाम: Triticum spp.),Belderok, Bob & Hans Mesdag & Dingena A. Donner.

नई!!: धान और गेहूँ · और देखें »

गोरखमुंडी

गोरखमुंडी गोरखमुंडी (वानस्पतिक नाम: स्फ़ीरैंथस इंडिकस Sphaeranthus Indicus) कंपोज़िटी (Compositae) कुल की वनस्पति है। इसे मुंडी या गोरखमुंडी (प्रादेशिक भाषाओं में) और मुंडिका अथवा श्रावणी (संस्कृत में) कहते हैं। गोरखमुंडी एकवर्षा आयु वाली, प्रसर, वनस्पति धान के खेतों तथा अन्य नम स्थानों में वर्षा के बाद निकलती है। यह किंचित् लसदार, रोमश और गंधयुक्त होती है। कांड पक्षयुक्त, पत्ते विनाल, कांडलग्न और प्राय: व्यस्तलट्वाकार (Obovate) और पुष्प सूक्ष्म किरमजी (Magenta-coloured) रंग के और मुंडकाकार व्यूह में पाए जाते हैं। इसके मूल, पुष्पव्यूह अथवा पंचाग का चिकित्सा में व्यवहार होता है। यह कटुतिक्त, उष्ण, दीपक, कृमिघ्न (कीड़े मारने वाली), मूत्रजनक रसायन और वात तथा रक्तविकारों में उपयोगी मानी जाती है। इसमें कालापन लिए हुए लाल रंग का तैल और कड़वा सत्व होता है। तैल त्वचा और वृक्क द्वारा नि:सारित होता है, अत: इसके सेवन से पसीने और मूत्र में एक प्रकार की गंध आने लगती है। मूत्रजनक होने और मूत्रमार्ग का शोधन करने के कारण मूत्रेंद्रिय के रोगों में इससे अच्छा लाभ होता है। अधिक दिन सेवन करने से फोड़े फुन्सी का बारंबार निकलना बंद हो जाता है। यह अपची, अपस्मार, श्लीपद और प्लीहा रोगों में भी उपयोगी मानी जाती है। .

नई!!: धान और गोरखमुंडी · और देखें »

आलू

तरह-तरह के आलू आलू का पौधा आलू एक सब्जी है। वनस्पति विज्ञान की दृष्टि से यह एक तना है। इसकी उद्गम स्थान दक्षिण अमेरिका का पेरू (संदर्भ) है। यह गेहूं, धान तथा मक्का के बाद सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है। भारत में यह विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है। यह जमीन के नीचे पैदा होता है। आलू के उत्पादन में चीन और रूस के बाद भारत तीसरे स्थान पर है। .

नई!!: धान और आलू · और देखें »

आसवन

आसवन (Distillation) किसी मिश्रित द्रव के अवयवों को उनके वाष्पन-सक्रियताओं (volatilities) के अन्तर के आधर पर उन्हें अलग करने की विधि है। यह पृथक्करण की भौतिक विधि है न कि रासायनिक परिवर्तन अथवा रासायनिक अभिक्रिया। व्यावसायिक दृष्टि से आसवन के बहुत से उपयोग हैं। कच्चे तेल (क्रूड आयल) के विभिन्न अवयवों को पृथक करने के लिये इसका उपयोग किया जाता है। पानी का आसवन करने से उसकी अशुद्धियाँ (जैसे नमक) निकल जातीँ हैं और अधिक शुद्ध जल प्राप्त होता है। .

नई!!: धान और आसवन · और देखें »

कचिन राज्य

कचिन राज्य (बर्मी: ကချင်ပြည်နယ်) बर्मा का उत्तरतम राज्य है। इसके पूर्वी और उत्तरी सरहदें चीन से मिलती हैं, और इसके पश्चिमोत्तर में भारत स्थित है। प्रान्तीय राजधानी म्यित्चीना के अलावा भामो और पुताओ यहाँ के मुख्य शहर हैं। कचिन राज्य का ५८८९ मीटर ऊँचा खाकाबो राज़ी पर्वत भारत-बर्मा की सीमा पर स्थित है और बर्मा का सबसे ऊँचा पर्वत है। दक्षिणपूर्वी एशिया की सबसे बड़ी झीलों में से एक, इन्दौजी झील, भी इसी प्रान्त में पड़ती है। .

नई!!: धान और कचिन राज्य · और देखें »

कटीली चौलाई

300px कटीली चौलाई (वानस्पतिक नाम: अमेरेन्थस स्पिनोसस (Amaranthus spinosus L); सामान्य नाम: स्पाईन अमेरेन्थस) एक खरपतवार है। यह एकबीजपत्री, वार्षिक पौधा है। इसका प्रजनन बीज से होता है। इसकी पत्तियां पतली लम्बी नीचे की तरफ लाल होतीं हैं। फूल हरा, हरा-सफेद १ मिमी.

नई!!: धान और कटीली चौलाई · और देखें »

कल्लर भूमि

कल्लर भूमि तीन प्रकार की होती है-.

नई!!: धान और कल्लर भूमि · और देखें »

कुशीनगर

यह पन्ना कुशीनगर नामक स्थान और बौद्ध तीर्थ के लिये है। प्रशाशनिक जनपद के लिये देखें कुशीनगर जिला ---- कुशीनगर एवं कसिया बाजार उत्तर प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी सीमान्त इलाके में स्थित एक क़स्बा एवं ऐतिहासिक स्थल है। "कसिया बाजार" नाम कुशीनगर में बदल गया है और उसके बाद "कसिया बाजार" आधिकारिक तौर पर "कुशीनगर" नाम के साथ नगर पालिका बन गया है। यह बौद्ध तीर्थ है जहाँ गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। कुशीनगर, राष्ट्रीय राजमार्ग २८ पर गोरखपुर से कोई ५० किमी पूरब में स्थित है। यहाँ अनेक सुन्दर बौद्ध मन्दिर हैं। इस कारण से यह एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी है जहाँ विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। कुशीनगर कस्बे के और पूरब बढ़ने पर लगभग २० किमी बाद बिहार राज्य आरम्भ हो जाता है। यहाँ बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुद्ध इण्टरमडिएट कालेज तथा कई छोटे-छोटे विद्यालय भी हैं। अपने-आप में यह एक छोटा सा कस्बा है जिसके पूरब में एक किमी की दूरी पर कसयां नामक बड़ा कस्बा है। कुशीनगर के आस-पास का क्षेत्र मुख्यत: कृषि-प्रधान है। जन-सामन्य की बोली भोजपुरी है। यहाँ गेहूँ, धान, गन्ना आदि मुख्य फसलें पैदा होतीं हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर में एक माह का मेला लगता है। यद्यपि यह तीर्थ महात्मा बुद्ध से संबन्धित है, किन्तु आस-पास का क्षेत्र हिन्दू बहुल है। इस मेले में आस-पास की जनता पूर्ण श्रद्धा से भाग लेती है और विभिन्न मन्दिरों में पूजा-अर्चना एवं दर्शन करती है। किसी को संदेह नहीं कि बुद्ध उनके 'भगवान' हैं। .

नई!!: धान और कुशीनगर · और देखें »

कुशीनगर जिला

कुशीनगर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला एवं एक छोटा सा कस्बा है। इस जनपद का मुख्यालय कुशीनगर से कोई १५ किमी दूर पडरौना में स्थित है। कुशीनगर जिला पहले देवरिया जिले का भाग था। कुशीनगर जिले के पूर्व में बिहार राज्य, दक्षिण-पश्चिम में देवरिया जिला, पश्चिम में गोरखपुर जिला, उत्तर-पश्चिम में महराजगंज जिला स्थित हैं। कुशीनगर जिले में ग्रामों की संख्या 1446 हैं। .

नई!!: धान और कुशीनगर जिला · और देखें »

क्षारीय भूमि

क्षारीय भूमि (Alkali soils या alkaline soils) उस मिट्टी को कहते हैं जिनका पीएच मान ९ से अधिक होता है (pH > 9) .

नई!!: धान और क्षारीय भूमि · और देखें »

कोदो

कोदो या कोदों या कोदरा (Paspalum scrobiculatum) एक अनाज है जो कम वर्षा में भी पैदा हो जाता है। नेपाल व भारत के विभिन्न भागों में इसकी खेती की जाती है। धान आदि के कारण इसकी खेती अब कम होती जा रही है। इसका पौधा धान या बडी़ घास के आकार का होता है। इसकी फसल पहली बर्षा होते ही बो दी जाती है और भादों में तैयार हो जाती है। इसके लिये बढि़या भूमि या अधिक परिश्रम की आवश्यकता नहीं होती। कहीं-कहीं यह रूई या अरहर के खेत में भी बो दिया जाता है। अधिक पकने पर इसके दाने झड़कर खेत में गिर जाते हैं, इसलिये इसे पकने से कुछ पहले ही काटकर खलिहान में डाल देते हैं। छिलका उतरने पर इसके अंदर से एक प्रकार के गोल चावल निकलते हैं जो खाए जाते हैं। कभी कभी इसके खेत में 'अगिया' नाम की घास उत्पन्न हो जाती है जो इसके पौधों को जला देती है। यदि इसकी कटाई से कुछ पहले बदली हो जाय, तो इसके चावलों में एक प्रकार का विष आ जाता है। वैद्यक के मत से यह मधुर, तिक्त, रूखा, कफ और पित्तनाशक होता है। नया कोदो कुरु पाक होता है, फोडे़ के रोगी को इसका पथ्य दिया जाता है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में 'भगर के चावल' के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। इसके दाने में 8.3 प्रतिशत प्रोटीन, 1.4 प्रतिशत वसा तथा 65.9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट पाई जाती है। कोदो-कुटकी मधुमेह नियन्त्रण, यकृत (गुर्दों) और मूत्राशय के लिए लाभकारी है। .

नई!!: धान और कोदो · और देखें »

अरहर दाल

अरहर की दाल को तुवर भी कहा जाता है। इसमें खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह सुगमता से पचने वाली दाल है, अतः रोगी को भी दी जा सकती है, परंतु गैस, कब्ज एवं साँस के रोगियों को इसका सेवन कम ही करना चाहिए। भारत में अरहर की खेती तीन हजार वर्ष पूर्व से होती आ रही है किन्तु भारत के जंगलों में इसके पौधे नहीं पाये जाते है। अफ्रीका के जंगलों में इसके जंगली पौधे पाये जाते है। इस आधार पर इसका उत्पत्ति स्थल अफ्रीका को माना जाता है। सम्भवतया इस पौधें को अफ्रीका से ही एशिया में लाया गया है। दलहन प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है जिसको आम जनता भी खाने में प्रयोग कर सकती है, लेकिन भारत में इसका उत्पादन आवश्यकता के अनुरूप नहीं है। यदि प्रोटीन की उपलब्धता बढ़ानी है तो दलहनों का उत्पादन बढ़ाना होगा। इसके लिए उन्नतशील प्रजातियां और उनकी उन्नतशील कृषि विधियों का विकास करना होगा। अरहर एक विलक्षण गुण सम्पन्न फसल है। इसका उपयोग अन्य दलहनी फसलों की तुलना में दाल के रूप में सर्वाधिक किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसकी हरी फलियां सब्जी के लिये, खली चूरी पशुओं के लिए रातव, हरी पत्ती चारा के लिये तथा तना ईंधन, झोपड़ी और टोकरी बनाने के काम लाया जाता है। इसके पौधों पर लाख के कीट का पालन करके लाख भी बनाई जाती है। मांस की तुलना में इसमें प्रोटीन भी अधिक (21-26 प्रतिशत) पाई जाती है। .

नई!!: धान और अरहर दाल · और देखें »

उबला चावल

उबला चावल धान को छिलका सहित आंशिक रूप से उबालने के बाद उसे सुखाकर जो चावल निकाला जाता है उसे उबला चावल (Parboiled rice) कहते हैं। इसके लिये, धान को पहले पानी में कुछ समय के भिग्कर रखा जाता है, फिर उसे उबाला जाता है और अन्ततः सुखा लिया जाता है। इस प्रक्रिया को अपनाने से ढेंका या हाथ से भी चावल निकालने में आसानी होती है। इसके अलावा इस प्रक्रिया के करने से चावल में चमक आती है तथा उसमें पोषक तत्त्व अधिक रह जाते हैं। विश्व का लगभग ५०% उबला चावल खाया जाता है। भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यान्मार, मलेशिया, नेपाल, श्री लंका, गिनिया, दक्षिण, अफ्रीका, इटली, स्पेन, नाइजेरिया, थाईलैण्ड, स्विट्जरलैण्ड और फ्रांस में उबालकर चावल निकालने की विधि प्रचलित है। .

नई!!: धान और उबला चावल · और देखें »

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन १ नवम्बर २००० को हुआ था। यह भारत का २६वां राज्य है। भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। .

नई!!: धान और छत्तीसगढ़ · और देखें »

छुईखदान

छुईखदान, मध्य प्रदेश के राजनांदगाँव की एक नगर पंचायत है। यह मध्य प्रदेश का भूतपूर्व राज्य था; इसका क्षेत्रफल 154 वर्ग मील था। यह भूभाग उपजाऊ मैदान हैं। इसमें 107 गाँव थे। छुई खदान नगर प्रधान कार्यालय है। यह दक्षिण-पूर्व रेलवे के राजनाँदगाँव स्टेशन से 31 मील है। कोदो यहाँ की प्रमुख उपज है। गेहूँ एवं धान भी होते हैं। यहाँ कई स्कूल एवं अस्पताल हैं। यहाँ छुई मिट्टी (एक प्रकार की सफेद मिट्टी) की खदानें मिलने के कारण इसका नाम छुई खदान पड़ा। .

नई!!: धान और छुईखदान · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

ओराय्ज़ा सैटिवा

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »