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द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम

सूची द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (शाब्दिक अर्थ."द्रविड़ प्रगति संघ") जिसे द्रमुक नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी है। इसका निर्माण जस्टिस पार्टी तथा द्रविड़ कड़गम से पेरियार से मतभेद के कारण हुआ था। इसके गठन की घोषणा १९४९ में हुई थी। इसका प्रमुख मुद्दा समाजिक समानता, खासकर हिन्दू जाति प्रथा के सन्दर्भ में, तथा द्रविड़ लोगो का प्रतिनिधित्व करना है। एम करुणानिधि अभी इसके प्रमुख है। श्रेणी:भारत के राजनीतिक दल श्रेणी:तमिल नाडु के राजनीतिक दल.

32 संबंधों: चौदहवीं लोकसभा, एम के अलगिरि, एम॰ के॰ स्टालिन, एम॰ के॰ कनिमोझी, तमिल नाडु की राजनीति, तमिलनाडू के लोकसभा सदस्य, थोल. थिरुमावलवन, पेरियार, भारत में आरक्षण, भारत सारावली, भारत के राजनीतिक दलों की सूची, भारतीय चुनाव, भारतीय आम चुनाव, 2014 के लिए चुनाव पूर्व सर्वेक्षण, भारतीय आम चुनाव, १९८०, भारतीय आम चुनाव, १९८४, भारतीय आम चुनाव, १९८९, भारतीय आम चुनाव, १९९६, भारतीय आम चुनाव, १९९९, मुरासोली मारन, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सदस्यों की सूची, सरथ कुमार, सामाजिक लोकतांत्रिक दलों की सूची, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन, सी॰एन॰ अन्नादुरै, जयललिता, जयंती नटराजन, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, करुणानिधि, क्षेत्रवाद, अंबुमणि रामदॉस, अंग्रेजी हटाओ आंदोलन, १५वीं लोक सभा के सदस्यों की सूची

चौदहवीं लोकसभा

भारत में चौदहवीं लोकसभा का गठन अप्रैल-मई 2004 में होनेवाले आमचुनावोंके बाद हुआ था। .

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एम के अलगिरि

एम.

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एम॰ के॰ स्टालिन

मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन (மு.க. ஸ்டாலின்) (जन्म 1 मार्च 1953) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और पूर्व अभिनेता हैं जिन्हें एम.के.

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एम॰ के॰ कनिमोझी

कनिमोझी करुणानिधि (கனிமொழி கருணாநிதி, जन्म: ०१ जनवरी १९६८, चेन्नई) एक तमिल कवयित्री, पत्रकार और राजनीतिज्ञ हैं। वह संसद की सदस्य के रूप में, राज्यसभा में तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करती हैं। कनिमोझी, तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि की तीसरी पत्नी रजति अम्मल की बेटी हैं। वह कनिमोझी के नाम से पहचाना जाना पसंद करती हैं। वह द्रविड़ मुनेत्र कझगम (डीएमके) की सदस्य हैं और डीएमके की कला, साहित्य और बुद्धिवाद शाखा की प्रमुख हैं और अपने पिता की "साहित्यिक उत्तराधिकारी के रूप में देखी जाती हैं। इनके सौतेले भाई एम. के. अझागिरी और एम. के. स्टालिन क्रमशः तमिलनाडु के रसायन एवं उर्वरक मंत्री और उपमुख्यमंत्री हैं। .

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तमिल नाडु की राजनीति

तमिलनाडु की राजनीति में वर्तमान समय में द्रविड़ दलों का प्रभुत्व है तथा द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीऍमके) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआइऍमडीऍमके) यहाँ के प्रमुख राजनीतिक दल हैं। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस तीसरा प्रमुख दल है और अन्य छोटे दल भी यहाँ की राजनीति का हिस्सा हैं। ब्रिटिश काल में यह इलाका मद्रास प्रेसिडेंसी के नाम से जाना जाता था और तत्समय से लेकर भारत की आजादी के बाद तक काँग्रेस यहाँ की प्रमुख पार्टी थी। साठ के दशक में हिंदी-विरोधी आन्दोलनों में द्रविड़ दलों को महत्व मिला और १९६७ में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार डीऍमके पार्टी द्वारा बनाई गयी। इसके बाद से यहाँ की राजनीति में इन्हीं द्रविड़ दलों का प्रभुत्व रहा है। विचारधारा के स्तर पर द्रविड़ राजनीतिक दलों में कम्युनिस्ट एवं समाजवादी विचारों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अन्य छोटी पार्टियों में भारतीय रिपब्लिकन पार्टी, मार्क्सवादी पार्टी, सर्वहारा पीपुल्स पार्टी, पुनर्जागरण द्रमुक, वी॰सी॰के॰, राष्ट्रीय प्रगतिशील द्रविड़ कषगम, भारतीय जनता पार्टी, मानवतावादी पीपुल्स पार्टी तमिल नवजागरण निगम, नए राज्य पार्टी, अखिल भारतीय समानता पीपुल्स पार्टी औरइत्यादि का नाम गिनाया जा सकता है। स्नीकर्स, डी॰ वेन॰ रामास्वामी, अन्नादुरई, एम॰जी॰आर॰ और जयललिता तमिलनाडु की राजनीति में महत्वपूर्ण लोग रहे हैं। करुणानिधि यहाँ की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्तित्व हैं। .

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तमिलनाडू के लोकसभा सदस्य

तमिलनाडू के लोकसभा सदस्य .

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थोल. थिरुमावलवन

तिरुमावलवन या तोल. तिरुमावलवन (तमिल: தொல்.திருமாவளவன், जन्म 17 अगस्त 1962), एक दलित कार्यकर्ता, 15वीं लोकसभा में संसद सदस्य और भारत के तमिलनाडु राज्य की एक दलित राजनीतिक पार्टी, विड़ूदलाई चिरुतैगल कच्ची (लिबरेशन पैंथर्स पार्टी) के मौजूदा अध्यक्ष हैं। वे 1990 के दशक में एक दलित नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए और 1999 में उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। उनका राजनीतिक आधार, दलितों के जाति आधारित उत्पीड़न को रोकने पर केन्द्रित है, जो उनके हिसाब से तमिल राष्ट्रवाद को पुनर्जीवित और पुनर्निर्देशित करने के माध्यम से ही हासिल किया जा सकता है। उन्होंने श्रीलंका सहित अन्य स्थानों में तमिल राष्ट्रवादी आंदोलनों और समूहों के लिए समर्थन भी व्यक्त किया है। .

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पेरियार

इरोड वेंकट नायकर रामासामी(17 सितम्बर, 1879-24 दिसम्बर, 1973) जिन्हे पेरियार (तमिल में अर्थ -सम्मानित व्यक्ति) नाम से भी जाना जाता था, बीसवीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता थे। इन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जिसका सिद्धान्त रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध था। हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होंने घोर विरोध किया। भारतीय तथा विशेषकर दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग के लोगों की स्थिति सुधारने में इनका नाम शीर्षस्थ है। .

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भारत में आरक्षण

भारत में गरीबी रेखा से नीचे लोगों के जाति और समुदाय प्रोफ़ाइल, सच्चर रिपोर्ट जैसे दर्शाया गया सरकारी सेवाओं और संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं रखने वाले पिछड़े समुदायों तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों से सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए भारत सरकार ने अब भारतीय कानून के जरिये सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों की इकाइयों और धार्मिक/भाषाई अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को छोड़कर सभी सार्वजनिक तथा निजी शैक्षिक संस्थानों में पदों तथा सीटों के प्रतिशत को आरक्षित करने की कोटा प्रणाली प्रदान की है। भारत के संसद में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व के लिए भी आरक्षण नीति को विस्तारित किया गया है। भारत की केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में 27% आरक्षण दे रखा है और विभिन्न राज्य आरक्षणों में वृद्धि के लिए क़ानून बना सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार 50% से अधिक आरक्षण नहीं किया जा सकता, लेकिन राजस्थान जैसे कुछ राज्यों ने 68% आरक्षण का प्रस्ताव रखा है, जिसमें अगड़ी जातियों के लिए 14% आरक्षण भी शामिल है। आम आबादी में उनकी संख्या के अनुपात के आधार पर उनके बहुत ही कम प्रतिनिधित्व को देखते हुए शैक्षणिक परिसरों और कार्यस्थलों में सामाजिक विविधता को बढ़ाने के लिए कुछ अभिज्ञेय समूहों के लिए प्रवेश मानदंड को नीचे किया गया है। कम-प्रतिनिधित्व समूहों की पहचान के लिए सबसे पुराना मानदंड जाति है। भारत सरकार द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, हालांकि कम-प्रतिनिधित्व के अन्य अभिज्ञेय मानदंड भी हैं; जैसे कि लिंग (महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है), अधिवास के राज्य (उत्तर पूर्व राज्य, जैसे कि बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कम है), ग्रामीण जनता आदि। मूलभूत सिद्धांत यह है कि अभिज्ञेय समूहों का कम-प्रतिनिधित्व भारतीय जाति व्यवस्था की विरासत है। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के संविधान ने पहले के कुछ समूहों को अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) के रूप में सूचीबद्ध किया। संविधान निर्माताओं का मानना था कि जाति व्यवस्था के कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ऐतिहासिक रूप से पिछड़े रहे और उन्हें भारतीय समाज में सम्मान तथा समान अवसर नहीं दिया गया और इसीलिए राष्ट्र-निर्माण की गतिविधियों में उनकी हिस्सेदारी कम रही। संविधान ने सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की खाली सीटों तथा सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में अजा और अजजा के लिए 15% और 7.5% का आरक्षण था।बाद में, अन्य वर्गों के लिए भी आरक्षण शुरू किया गया। 50% से अधिक का आरक्षण नहीं हो सकता, सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से (जिसका मानना है कि इससे समान अभिगम की संविधान की गारंटी का उल्लंघन होगा) आरक्षण की अधिकतम सीमा तय हो गयी। हालांकि, राज्य कानूनों ने इस 50% की सीमा को पार कर लिया है और सर्वोच्च न्यायलय में इन पर मुकदमे चल रहे हैं। उदाहरण के लिए जाति-आधारित आरक्षण भाग 69% है और तमिलनाडु की करीब 87% जनसंख्या पर यह लागू होता है (नीचे तमिलनाडु अनुभाग देखें)। .

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भारत सारावली

भुवन में भारत भारतीय गणतंत्र दक्षिण एशिया में स्थित स्वतंत्र राष्ट्र है। यह विश्व का सातवाँ सबसे बड़ देश है। भारत की संस्कृति एवं सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति एवं सभ्यताओं में से है।भारत, चार विश्व धर्मों-हिंदू धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म के जन्मस्थान है और प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का घर है। मध्य २० शताब्दी तक भारत अंग्रेजों के प्रशासन के अधीन एक औपनिवेशिक राज्य था। अहिंसा के माध्यम से महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने भारत देश को १९४७ में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया। भारत, १२० करोड़ लोगों के साथ दुनिया का दूसरे सबसे अधिक आबादी वाला देश और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है। .

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भारत के राजनीतिक दलों की सूची

भारत में बहुदलीय प्रणाली बहु-दलीय पार्टी व्यवस्था है जिसमें छोटे क्षेत्रीय दल अधिक प्रबल हैं। राष्ट्रीय पार्टियां वे हैं जो चार या अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त हैं। उन्हें यह अधिकार भारत के चुनाव आयोग द्वारा दिया जाता है, जो विभिन्न राज्यों में समय समय पर चुनाव परिणामों की समीक्षा करता है। इस मान्यता की सहायता से राजनीतिक दल कुछ पहचानों पर अपनी स्थिति की अगली समीक्षा तक विशिष्ट स्वामित्व का दावा कर सकते हैं जैसे की पार्टी चिन्ह.

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भारतीय चुनाव

चुनाव लोकतंत्र का आधार स्तम्भ हैं। आजादी के बाद से भारत में चुनावों ने एक लंबा रास्ता तय किया है। 1951-52 को हुए आम चुनावों में मतदाताओं की संख्या 17,32,12,343 थी, जो 2014 में बढ़कर 81,45,91,184 हो गई है। 2004 में, भारतीय चुनावों में 670 मिलियन मतदाताओं ने भाग लिया (यह संख्या दूसरे सबसे बड़े यूरोपीय संसदीय चुनावों के दोगुने से अधिक थी) और इसका घोषित खर्च 1989 के मुकाबले तीन गुना बढ़कर $300 मिलियन हो गया। इन चुनावों में दस लाख से अधिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल किया गया। 2009 के चुनावों में 714 मिलियन मतदाताओं ने भाग लिया (अमेरिका और यूरोपीय संघ की संयुक्त संख्या से भी अधिक).

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भारतीय आम चुनाव, 2014 के लिए चुनाव पूर्व सर्वेक्षण

भारतीय आम चुनाव, 2014 के लिए विभिन्न संस्थाओं द्वारा सर्वेक्षण कराए जा रहे हैं जिससे भारत के मतदान के मिजाज़ का पता चलता है। इन्ही चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों को इस लेख में शामिल किया जा रहा है। सभी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण जनवरी 2013 से लेकर अब तक के हैं। .

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भारतीय आम चुनाव, १९८०

भारत में आयोजित आम चुनाव के लिए 7 वीं लोकसभा में जनवरी,1980.

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भारतीय आम चुनाव, १९८४

आम चुनाव में आयोजित की गई भारत में 1984 के बाद जल्द ही हत्या के पिछले प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी, हालांकि मतदान में असम और पंजाब तक विलंबित किया गया 1985 के कारण चल रही लड़ाई है । .

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भारतीय आम चुनाव, १९८९

आम चुनाव 1989 में से भारत में आयोजित किए गए थे,   9 वीं लोकसभा का सदस्यों की चुनाव करने के लिए.

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भारतीय आम चुनाव, १९९६

आम चुनाव भारत में 1996 में आयोजित की गई. परिणाम के चुनाव एक त्रिशंकु संसद के साथ न तो शीर्ष दो प्रमुख हासिल करने के लिए एक जनादेश है । भारतीय जनता पार्टी ने कुछ समय तक रहने वाली सरकार बनाई.

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भारतीय आम चुनाव, १९९९

कोई विवरण नहीं।

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मुरासोली मारन

मुरासोली मारन (முரசொலி மாறன்तमिल: முரசொலி மாறன்)(17 अगस्त 1934 - 23 नवम्बर 2003) भारत के प्रमुख तमिल राजनेता और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) दल के एक महत्वपूर्ण नेता थे जिसके अध्यक्ष उनके मामा एवं परामर्शदाता एम.करुणानिधि हैं। वे 36 वर्षों से संसद के सदस्य हैं। उन्हें तीन अलग-अलग केंद्रीय सरकारों में केन्द्रीय मंत्री, वी.पी.

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राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सदस्यों की सूची

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) एक केंद्र-दक्षिणपंथी राजनीतिक गठबंधन है। इसका नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) करती है। २०१५ के अनुसार, यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय संसद का सत्तारूढ़ गठबंधन है, और १३ राज्यों पर राज करता है। राजग का निर्माण १९९८ के आम चुनावों में भाजपा द्वारा किया गया था; इसमें भाजपा के तत्कालीन सहयोगी दलों (जैसे समता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना) के अलावा ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और बीजू जनता दल शामिल थे। इन क्षेत्रीय दलों में केवल एक शिवसेना ही थी, जिसकी विचारधारा भाजपा की विचारधारा के समान थी। गठबंधन पहली बार केन्द्र में सत्ता पर १९९८ के आम चुनाव के बाद आया, और २००४ तक शासन किया। सितंबर २०१५ की स्थिति के अनुसार, राजग में पैंतीस सदस्य दल है (उनमें से दो राजनीतिक मोर्चे हैं और एक संगठन है), जिसमें से भाजपा एकमात्र राष्ट्रीय दल है। तेरह राजग सदस्यों (शिवसेना, तेलुगु देशम पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, ऑल इंडिया एन॰आर॰ कांग्रेस, नागा पीपुल्स फ्रंट, लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन, नेशनल पीपुल्स पार्टी, और पाट्टाली मक्कल कॉची) को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा "राज्यीय दल" का दर्जा दिया गया है। सितंबर २०१५ की स्थिति के अनुसार, राजग के पास लोकसभा और राज्यसभा में क्रमानुसार ३३७ और ६४ सदस्य हैं। .

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सरथ कुमार

सरथकुमार रामनाथन (சரத்குமார் ராமநாதன்) (जन्म- 14 जुलाई 1954) एक भारतीय पत्रकार, फिल्म अभिनेता, राजनेता, बॉडी बिल्डर हैं और वर्तमान में दक्षिण भारतीय फिल्म कलाकार एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। उन्होंने अपने कैरिअर की शुरूआत तमिल सिनेमा में नकारात्मक भूमिका के साथ की और बाद में अन्य फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं करने लगे। सबसे पहले उन्हें सुरियान में मुख्य भूमिका के लिए चुना गया था जो बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई। उन्होंने अक्सर एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर की भूमिका निभाई है। उन्होंने के. कामराज के आदर्शों का वहन करने के लिए तमिलनाडु में एक नए राजनीतिक दल का गठन भी किया। .

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सामाजिक लोकतांत्रिक दलों की सूची

यह विश्व के उन दलों की सूची हैं, जो मानते हैं कि वे सामाजिक लोकतंत्र के सिद्धांतों और मूल्यों को कायम रखते हैं। कुछ दल द्वितीय अंतरराष्ट्रिय, Party of European Socialists या Progressive Alliance के भी सदस्य हैं। .

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संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन या यूपीए या संप्रग (अंग्रेजी: United Progressive Alliance UPA) भारत में एक राजनीतिक गठबंधन है। इसका नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस करती है। संप्रग अध्यक्षा सोनिया गांधी. .

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सी॰एन॰ अन्नादुरै

कांजीवरम्‌ नटराजन्‌ अन्नादुरै तमिलनाडु के लोकप्रिय नेता, अपने प्रदेश के प्रथम गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री एवं द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम दल के संस्थापक थे। इनके नाम का संक्षिप्त रूप अन्ना का तमिल में अर्थ है, आदरणीय बड़ा भाई। उनका जन्म एक बेहद साधारण परिवार में हुआ। तंबाकू से रचे दांत, खूंटीदार दाढ़ी और लुभावनी शुष्क आवाज वाले तकरीबन सवा पांच फीट कद के इस शख्स के साथ ही आधुनिक तमिलनाडु की कहानी जुड़ी है। अन्ना स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे नेता थे जिनकी स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं थी। .

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जयललिता

जयललिता जयराम (तमिल: ஜெ. ஜெயலலிதா; 24 फ़रवरी 1948 – 5 दिसम्बर 2016) भारतीय राजनीतिज्ञ तथा तमिल नाडु की मुख्यमंत्री थीं। वो दक्षिण भारतीय राजनैतिक दल ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) की महासचिव थीं। इससे पूर्व वो 1991 से 1996, 2001 में, 2002 से 2006 तक और 201 से 2014 तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं। राजनीति में आने से पहले वो अभिनेत्री थीं और उन्होंने तमिल के अलावा तेलुगू, कन्नड और एक हिंदी तथा एक अँग्रेजी फिल्म में भी काम किया है। जब वे स्कूल में पढ़ रही थीं तभी उन्होंने 'एपिसल' नाम की अंग्रेजी फिल्म में काम किया। वे 15 वर्ष की आयु में कन्नड फिल्मों में मुख्‍य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी थीं। इसके बाद वे तमिल फिल्मों में काम करने लगीं। 1965 से 1972 के दौर में उन्होंने अधिकतर फिल्में एमजी रामचंद्रन के साथ की। फिल्मी करियर के बाद उन्होने एम॰जी॰ रामचंद्रन के साथ 1982 में राजनीतिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने 1984 से 1989 के दौरान तमिलनाडु से राज्यसभा के लिए राज्य का प्रतिनिधित्व भी किया। वर्ष 1987 में रामचंद्रन का निधन के बाद उन्होने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। वे 24 जून 1991 से 12 मई 1996 तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्‍यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं। अप्रैल 2011 में जब 11 दलों के गठबंधन ने 14वीं राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल किया तो वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने 16 मई 2011 को मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लीं और तब से वे राज्य की मुख्यमंत्री पद पर रहीं। राजनीति में उनके समर्थक उन्हें अम्मा (मां) और कभी कभी पुरातची तलाईवी ('क्रांतिकारी नेता') कहकर बुलाते हैं। 5 दिसम्बर 2016 को रात 11:30 बजे (आईएसटी) इनका निधन हो गया। .

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जयंती नटराजन

जयंती नटराजन (जन्म 7 जून 1954) एक भारतीय वकील और राजनीतिज्ञ हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्या हैं और राज्य सभा में तमिलनाडु राज्य के प्रतिनिधि के तौर पर तीन बार संसद सदस्य निर्वाचित हुई हैं। वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री भी रह चुकी हैं। .

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ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम

आॅल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (लोकप्रिय रूप: अन्नाद्रमुक) तमिल नाडु और पुदुचेरी, भारत का एक राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना सन् 1972 में पूर्व अभिनेता व राजनीतिज्ञ एम जी रामचन्द्रन ने की थी जब वो द्रमुक से अलग हो गये थे। 1989 से इस दल की नेता जयललिता हैं। दल ने तमिलनाडु में छह बार सरकार बनाई है और 2011 से तमिल नाडु में सरकार इसी दल की है। .

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करुणानिधि

मुत्तुवेल करुणानिधि (மு. கருணாநிதி.) (जन्म 3 जून 1924) एक भारतीय राजनेता और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। वे तमिलनाडु राज्य के एक द्रविड़ राजनीतिक दल द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके) के प्रमुख हैं। वे 1969 में डीएमके के संस्थापक सी. एन. अन्नादुरई की मौत के बाद से इसके नेता हैं और पांच बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011) मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उन्होंने अपने 60 साल के राजनीतिक करियर में अपनी भागीदारी वाले हर चुनाव में अपनी सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तमिलनाडु और पुदुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए (यूपीए और वामपंथी दल) का नेतृत्व किया और लोकसभा की सभी 40 सीटों को जीत लिया। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने डीएमके द्वारा जीती गयी सीटों की संख्या को 16 से बढ़ाकर 18 कर दिया और तमिलनाडु और पुदुचेरी में यूपीए का नेतृत्व कर बहुत छोटे गठबंधन के बावजूद 28 सीटों पर विजय प्राप्त की। वे तमिल सिनेमा जगत के एक नाटककार और पटकथा लेखक भी हैं। उनके समर्थक उन्हें कलाईनार (கலைஞர்., "कला का विद्वान") कहकर बुलाते हैं। .

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क्षेत्रवाद

क्षेत्रवाद से अभिप्राय किसी देश के उस छोटे से क्षेत्र से है जो आर्थिक,सामाजिक आदि कारणों से अपने पृथक् अस्तित्व के लिए जागृत है। .

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अंबुमणि रामदॉस

डॉ॰ अंबुमणि रामदॉस मई 2004 से अप्रैल 2009 को इस्तीफा देने तक भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे। वे पट्टाली मक्कल काची पार्टी से संसद में राज्य सभा के सदस्य हैं। 9 अक्टूबर 1968 को पुडुचेरी में जन्मे अंबुमणि रामदॉस मद्रास मेडिकल कॉलेज के छात्र थे और पेशे से एक डॉक्टर हैं। डॉ॰ अंबुमणि रामदॉस, पीएमके (PMK) संस्थापक डॉ॰ एस रामदास और आर सरस्वती के पुत्र हैं। उनका विवाह श्रीमती सौम्या से हुआ है और उनकी तीन बेटियां हैं संयुक्ता, संघमित्रा और संजुत्रा.

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अंग्रेजी हटाओ आंदोलन

स्वतंत्र भारत में साठ के दशक में अंग्रेजी हटाओं-हिन्दी लाओ के आंदोलन का सूत्रपात राममनोहर लोहिया ने किया था। इस आन्दोलन की गणना अब तक के कुछ इने गिने आंदोलनों में की जा सकती है। समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ॰ राममनोहर लोहिया के भाषा संबंधी समस्त चिंतन और आंदोलन का लक्ष्य भारतीय सार्वजनिक जीवन से अंगरेजी के वर्चस्व को हटाना था। लोहिया को अंगरेजी भाषा मात्र से कोई आपत्ति नहीं थी। अंगरेजी के विपुल साहित्य के भी वह विरोधी नहीं थे, बल्कि विचार और शोध की भाषा के रूप में वह अंगरेजी का सम्मान करते थे। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महात्मा गांधी के बाद सबसे ज्यादा काम राममनोहर लोहिया ने किया। वे सगुण समाजवाद के पक्षधर थे। उन्होंने लोकसभा में कहा था- १९५० में जब भारतीय संविधान लागू हुआ तब उसमें भी यह व्यवस्था दी गई थी कि 1965 तक सुविधा के हिसाब से अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन उसके बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा। इससे पहले कि संवैधानिक समयसीमा पूरी होती, डॉ राममनोहर लोहिया ने 1957 में अंग्रेजी हटाओ मुहिम को सक्रिय आंदोलन में बदल दिया। वे पूरे भारत में इस आंदोलन का प्रचार करने लगे। 1962-63 में जनसंघ भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गया। लेकिन इस दौरान दक्षिण भारत के राज्यों (विशेषकर तमिलनाडु में) आंदोलन का विरोध होने लगा। तमिलनाडु में अन्नादुरई के नेतृत्व में डीएमके पार्टी ने हिंदी विरोधी आंदोलन को और तेज कर दिया। इसके बाद कुछ शहरों में आंदोलन का हिंसक रूप भी देखने को मिला। कई जगह दुकानों के ऊपर लिखे अंग्रेजी के साइनबोर्ड तोड़े जाने लगे। उधर 1965 की समयसीमा नजदीक होने की वजह से तमिलनाडु में भी हिंदी विरोधी आंदोलन काफी आक्रामक हो गया। यहां दर्जनों छात्रों ने आत्मदाह कर ली। इस आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने 1963 में संसद में राजभाषा कानून पारित करवाया। इसमें प्रावधान किया गया कि 1965 के बाद भी हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल राजकाज में किया जा सकता है। ‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन को उन दिनों यह कहकर खारिज करने की कोशिश की गई कि अगर अंग्रेजी की जगह हिंदी आयेगी तो हिन्दी का वर्चस्ववाद कायम होगा और तटीय भाषाएँ हाशिए पर चली जायेंगी। सत्ताधारियों ने हिन्दी को साम्राज्यवादी भाषा के के रूप में पेश कर हिन्दी बनाम अन्य भारतीय भाषाओं (बांग्ला, तेलुगू, तमिल, गुजराती, मलयालम) का विवाद छेड़ इसे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा बता दिया। इसे देश जोड़क भाषा नहीं, देश तोड़क भाषा बना दिया। लोहिया ने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी ने देश जोड़क भाषा का काम किया है। देश में एकता स्थापित की है, आगे भी इस भाषा में संभावना है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि हिंदी को राजकाज, प्रशासन, कोर्ट-कचहरी की भाषा नहीं बनाना चाहते तो इसकी जगह अन्य किसी भी भारतीय भाषा को बना दिया जाए। जरूरी हो तो हिन्दी को भी शामिल कर लिया जाए। लेकिन भारत की मातृभाषा की जगह अंग्रेजी का वर्चस्ववाद नहीं चलना चाहिए। लोहिया जब 'अंगरेजी हटाने' की बात करते हैं, तो उसका मतलब 'हिंदी लाना' नहीं है। बल्कि अंगरेजी हटाने के नारे के पीछे लोहिया की एक खास समझदारी है। लोहिया भारतीय जनता पर थोपी गई अंगरेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के पक्षधर थे। 19 सितंबर 1962 को हैदराबाद में लोहिया ने कहा था, उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों–करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था– दक्षिण (मुख्यत: तमिलनाडु) के हिंदी-विरोधी उग्र आंदोलनों के दौर में लोहिया पूरे दक्षिण भारत में अंगरेजी के खिलाफ तथा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे। हिंदी के प्रति झुकाव की वजह से दुर्भाग्य से दक्षिण भारत के कुछ लोगों को लोहिया उत्तर और ब्राह्मण संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते थे। दक्षिण भारत में उनके ‘अंगरेजी हटाओ’ के नारे का मतलब ‘हिंदी लाओ’ लिया जाता था। इस वजह से लोहिया को दक्षिण भारत में सभाएं करने में कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन १९६१ में मद्रास और कोयंबटूर में सभाओं के दौरान उन पर पत्थर तक फेंके गए। ऐसी घटनाओं के बीच हैदाराबाद लोहिया और सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बना रहा। ‘अंगरेजी हटाओ’ आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण बैठकें हैदराबाद में हुई। तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी ने इस आन्दोलन के विरुद्ध 'हिन्दी हटओ' का आन्दोलन चलाया जो एक सीमा तक अलगाववादी आन्दोलन का रूप ले लिया। नेहरू ने सन १९६३ में संविधान संशोधन करके हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी अनिश्चित काल तक भारत की सह-राजभाषा का दर्जा दे दिया। सन १९६५ में अंग्रेजी पूरी तरह हटने वाली थी वह 'स्थायी' बना दी गयी। दुर्भाग्य से सन १९६७ में लोहिया का असमय देहान्त हो गया जिससे इस आन्दोलन को भारी धक्का लगा। यह यह आंदोलन सफल होता तो आज भाषाई त्रासदी का यह दौर न देखना पडता। लोहिया इस तर्क कि "अंग्रेजी का विरोध न करें, हिन्दी का प्रचार करें" की अंतर्वस्तु को भली भांति समझते थे। वे जानते थे कि यह एक ऐसा भाषाई षडयंत्र है जिसके द्वारा औपनिवेशिक संस्कृति की मृत प्राय अमरबेल को पुन: पल्लवित होने का अवसर प्राप्त हो जायेगा। उनका कहना था, .

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१५वीं लोक सभा के सदस्यों की सूची

१५वीं लोक सभा के सदस्यों की सूची अकारादि क्रम से राज्यश: इस लेख में नीचे दी गयी है। ये सभी सांसद भारतीय संसद की १५वीं लोक सभा के लिए अप्रैल - मई, २००९ में हुए आम चुनावों में निर्वाचित हुए थे। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

डी एम के, द्रमुक, द्रविड़ मुन्नेत्र कलगम, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, द्रविड़ मुनेत्र कळगम

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