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दुःशासन

सूची दुःशासन

द्युत क्रीड़ा में द्रौपदी का वस्त्र हरता हुआ दु:शासन दुःशासन अथवा दुशासन प्रसिद्ध एवं प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार कुरुवंश में कौरव वंश के अंतर्गत हस्तिनापुर के कार्यकारी राजा धृतराष्ट्र का पुत्र था। इसी ने जुए के उपरांत दुर्योधन के कहने पर द्रौपदी का चीर हरण किया था। यह दुर्योधन के 100 भाइयों में से दुर्योधन से छोटा था। .

9 संबंधों: चीर हरण, तीजनबाई, दु:शासन, द्रौपदी, भीम, महाभारत, महाभारत के पात्र, वेणीसंहार, कौरव

चीर हरण

के सौजन्य से श्रेणी:श्रीमद्भागवत श्रेणी:धर्म श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:धर्म ग्रंथ श्रेणी:पौराणिक कथाएँ.

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तीजनबाई

तीजनबाई (जन्म- २४ अप्रैल १९५६) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार हैं। देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली तीजनबाई को बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। वे सन १९८८ में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और २००३ में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से अलंकृत की गयीं। उन्हें १९९५ में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा २००७ में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है। भिलाई के गाँव गनियारी में जन्मी इस कलाकार के पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते सुनाते देखतीं और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। १३ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएँ केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया।। देशबन्धु।६ अक्टूबर, २००९ एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया। प्रदेश और देश की सरकारी व गैरसरकारी अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित कर देनेवाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। ज्यों ही प्रदर्शन आरंभ होता है, उनका रंगीन फुँदनों वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग अलग रूप ले लेता है। कभी दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहुँचा देता है जहाँ वे तीजन के साथ-साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते हैं। उनकी ठोस लोकनाट्य वाली आवाज़ और अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं। भारत भवन भोपाल में पंडवानी प्रस्तुति के दौरान .

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दु:शासन

कोई विवरण नहीं।

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द्रौपदी

द्रौपदी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। इस महाकाव्य के अनुसार द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री है जो बाद में पांचों पाण्डवों की पत्नी बनी। द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। ये कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री आदि अन्य नामो से भी विख्यात है। द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डव भाईयों से हुआ था। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र (क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ती, शतानीक व श्रुतकर्मा) उप-पांडव नाम से विख्यात थे। .

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भीम

हिन्दू धर्म के महाकाव्य महाभारत के अनुसार भीम पाण्डवों में दूसरे स्थान पर थे। वे पवनदेव के वरदान स्वरूप कुन्ती से उत्पन्न हुए थे, लेकिन अन्य पाण्डवों के विपरीत भीम की प्रशंसा पाण्डु द्वारा की गई थी। सभी पाण्डवों में वे सर्वाधिक बलशाली और श्रेष्ठ कद-काठी के थे एवं युधिष्ठिर के सबसे प्रिय सहोदर थे। उनके पौराणिक बल का गुणगान पूरे काव्य में किया गया है। जैसे:- "सभी गदाधारियों में भीम के समान कोई नहीं है और ऐसा भी कोई को गज की सवारी करने में इतना योग्य हो और बल में तो वे दस हज़ार हाथियों के समान है। युद्ध कला में पारंगत और सक्रिय, जिन्हे यदि क्रोध दिलाया जाए जो कई धृतराष्ट्रों को वे समाप्त कर सकते हैं। सदैव रोषरत और बलवान, युद्ध में तो स्वयं इन्द्र भी उन्हें परास्त नहीं कर सकते।" वनवास काल में इन्होने अनेक राक्षसों का वध किया जिसमे बकासुर एवं हिडिंब आदि प्रमुख हैं एवं अज्ञातवास में विराट नरेश के साले कीचक का वध करके द्रौपदी की रक्षा की। यह गदा युद़्ध में बहुत ही प्रवीण थे एवं बलराम के शिष़्य थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में राजाओं की कमी होने पर उन्होने मगध के शासक जरासंघ को परास्त करके ८६ राजाओं को मुक्त कराया। द्रौपदी के चीरहरण का बदला लेने के लिए उन्होने दुःशासन की क्षाती फाड कर उसका रक्त पान किया। महाभारत के युद्ध में भीम ने ही सारे कौरव भाईयों का वध किया था। इन्ही के द्वारा दुर्योधन के वध के साथ ही महाभारत के युद्ध का अंत हो गया। .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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महाभारत के पात्र

* विदुर: हस्तिनापुर का महामंत्री।.

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वेणीसंहार

वेणीसंहारम्, भट्टनारायण द्वारा रचित प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है। भट्टनारायण ने महाभारत को 'वेणीसंहार' का आधार बनाया है। 'वेणी' का अर्थ है, स्त्रियों का केश अर्थात् 'चोटी' और 'संहार' का अर्थ है सजाना, व्यवस्थित करना या, गुंफन करना। वेणीसंहार नाटक को नाटयकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है और भटटनारायण को एक सफल नाटककार के रूप में स्मरण किया जाता है। नाट्यशास्त्र की नियमावली का विधिवत पालन करने के कारण नाटयशास्त्र के आचार्यों ने भटटनारायण को बहुत महत्त्व दिया है। दुःशासन, द्रौपदी के खुले हुए केश पकड़ के बलपूर्वक घसीटता हुआ द्युतसभा में लाता है, तभी द्रौपदी प्रतिज्ञा करती है कि जबतक दुःशासन के रक्त से अपने बालों को भिगोएगी नहीं तब तक अपने बाल ऐसे ही बिखरे हुए रखेगी। भट्टनारायण रचित इस नाटक के अंत में भीम दुःशासन का वध करके उसका रक्त द्रौपदी के खुले केश में लगाते हैं और चोटी का गुंफन करते हैं। इसी प्रसंग के आधार भट्ट नारायण ने इस नाटक का शीर्षक 'वेणीसंहार' रखा है। छः अंक के कथावस्तु वाले इस 'वेणीसंहार' नाटक की मुख्य और सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें महाभारत की सम्पूर्ण युद्धकथा को समाविष्ट किया गया है। 'वेणीसंहार' नाटक की दूसरी विशेषता तृतीय अंक का प्रसंग कर्ण और अश्वत्थामा का कलह है। नाटक का नायक दुर्योधन है, क्योंकि उसको लक्ष्य में रखकर समस्त घटनाएं चित्रित हैं। इसीलिए उसके दु:ख, पराभव और मृत्यु का वर्णन होने से यह एक दुःखान्त नाटक माना जाता है। कुछ विद्वान भीम को नाटक का नायक मानने के पक्ष में हैं, क्योंकि इसमें वीर रस की प्रधानता है तथा नाटक की कथा भीम की प्रतिज्ञाओं पर आधारित है। भीमसेन का चरित्र प्रभावशाली और आकर्षक है। उनके भाषणों से उनकी वीरता और पराक्रम का पता लगता है। उसमें आत्मविश्वास का अतिरेक है। अश्वत्थामा अपने गुणों को प्रकट किये बिना अपूर्ण व्यक्तित्व सा है। नाटककार निस्सन्देह घटना-संयोजन में अत्यन्त दक्ष हैं। उनके वर्णन सार्थक और स्वाभाविक हैं। नाटक का प्रधान रस, वीर है। गौड़ी रीति, ओज गुण और प्रभावी भाषा-उसकी अन्य विशेषताएं हैं। कर्ण का वक्तव्य देखिये- .

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कौरव

कौरव महाभारत के विशिष्ट पात्र हैं। कौरवों की संख्या १०० थी तथा वे सभी सहोदर थे। युधिष्ठिर के पुत्र लछमण कुमार की पत्नी गर्भवती थी उसका मायका मथुरा में था सीरीपत जी की पुत्री थी महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद वो अपने मायके चली गयी वहां कुलगुरु कृपाचार्य के वंशज रहते थे उन्होंने उस लड़की की रक्षा की कानावती से पुत्र कानकुंवर हुआ नौ पीढ़ी तक मथुरा में रहने के बाद विजय पाल ने बिहार स्टेट में वैशाली का राज किया जो अब मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर-ग्वालियर-भिंड-दतिया जबलपुर, विदिशा, भोपाल, रायसेन, होशंगाबाद, आदि जिलो में रहते हैं। .

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दुशासन, दुश्शासन

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