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दीमक

सूची दीमक

समूह में रहने वाले कीट: '''दीमक''' दीमक छोटे कीट हैं। जो लकडी और लकडी की बनी चीज़ेँ जैसे फर्निचर आदि कुतरकर खा जाते हैँ। दीमक ईसाइजल कीड़े हैं जिन्हें इन्फ्रास्ट्रक्चर आइसोपेटरा के टैक्सोनॉमिक रैंक में वर्गीकृत किया गया है, या तिलचट्टा के क्रम में ब्लैकोडेडा के एपिफैमिली टर्मिटॉइड के रूप में वर्गीकृत किया गया है। दीमक को एक बार अलग-अलग तिलचट्टे से वर्गीकृत किया गया था, लेकिन हाल के फिलाजेनेटिक अध्ययनों से संकेत मिलता है कि वे जुरासिक या ट्रायासिक के दौरान तिलचट्टे के करीब पूर्वजों से विकसित हुए थे। हालांकि, पहले दीमक संभवतः परमियन या कार्बोनिफ़ेरस के दौरान उभरा। लगभग 3,106 प्रजातियों के बारे में बताया गया है, जिसमें कुछ 'सौ' शेष वर्णित हैं। हालांकि इन कीड़ों को अक्सर "सफेद चींटियों" कहा जाता है, परंतु ये चींटियाँ नहीं होती। दीमक आमतौर पर मृत पौधों की सामग्री और सेलूलोज़ पर भोजन करते हैं, आमतौर पर लकड़ी के रूप में, पत्ती कूड़े, मिट्टी या जानवरों के गोबर। दीमक, मुख्य रूप से उप-उष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रमुख अवरोधक होते हैं, और लकड़ी और पौधे पदार्थों का पुन: उपयोग करना काफी पारिस्थितिक महत्व का होता है। .

9 संबंधों: चींटीख़ोर, दक्षिणी तामान्दुआ, नाइट्रोजन यौगिकीकरण, पैंगोलिन, सहजीवन, सामाजिक कीट, हाइड्रोजन सायनाइड, आत्महत्या, कीटनाशक

चींटीख़ोर

चींटीख़ोर (Anteater) दक्षिण व मध्य अमेरिका में पाया जाने वाला एक स्तनधारी प्राणी है जो अपने विचित्र मुख-आकार, थूथन और अपनी पतली व लम्बी जीभ से केवल चींटी, दीमक और अन्य छोटे कीट खाने के लिये प्रसिद्ध है। चींटीख़ोरों की चार जातियाँ पाई जाती हैं: सिर-से-पूँछ तक १.८ मी (५ फ़ुट ११ इंच) लम्बा विशाल चींटीखोर, केवल ३५ सेमी (१४ इंच) लम्बा रेशमी चींटीखोर, १.२ मी (३ फ़ुट ११ इंच) लम्बा उत्तरी तामान्दुआ और लगभग उतना ही लम्बा दक्षिणी तामान्दुआ। चींटीख़ोर पिलोसा (Pilosa) नामक जीववैज्ञानिक गण में शामिल हैं जिसमें स्‍लॉथ (sloth) भी आते हैं, यानि स्‍लॉथों और चींटीख़ोरों का आनुवंशिक (जेनेटिक) सम्बन्ध है। .

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दक्षिणी तामान्दुआ

दक्षिणी तामान्दुआ (Southern tamandua) चींटीख़ोर के तामान्दुआ वंश की एक मध्यम आकार की जाति है जो दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है। यह चींटीख़ोर सिर-से-पूँछ तक औसतन १.२ मीटर (३ फ़ुट ११ इंच) लम्बा होता है।Miranda, F. & Meritt, D. A. Jr.

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नाइट्रोजन यौगिकीकरण

नाइट्रोजन यौगीकीकरण (Nitrogen fixation) उस प्रक्रिया को कहते हैं है जिसके द्वारा पृथ्वी के वायुमण्डल की नाइट्रोजन, (N2) अमोनियम (NH4+) या और जीवों के लिए लाभदायक अन्य अणुओं में परिवर्तित की जाती है । वायुमण्डलीय नाइट्रोजन या आणविक नाइट्रोजन (N2) अपेक्षाकृत निष्क्रिय पदार्थ है जो यह नए यौगिकों के निर्माण के लिए अन्य रसायनों के साथ आसानी से प्रतिक्रिया नहीं करता है। किन्तु यौगीकरण की प्रक्रिया से N≡N बन्ध से नाइट्रोजन परमाणु को मुक्त कर देता है और यह मुक्त नाइट्रोजन दूसरे तरीकों से उपयोग में लाया जा सकता है। नाइट्रोजन यौगीकीकरण वानस्पतिक एवं कुछ अन्य जीवों के लिए अनिवार्य है क्योंकि जीवों के बुनियादी निर्माण, एवं जैविक संश्लेषण के लिए अकार्बनिक नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है.

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पैंगोलिन

वज्रशल्क या पंगोलीन (pangolin) फोलिडोटा गण का एक स्तनधारी प्राणी है। इसके शरीर पर केराटिन के बने शल्क (स्केल) नुमा संरचना होती है जिससे यह अन्य प्राणियों से अपनी रक्षा करता है। पैंगोलिन ऐसे शल्कों वाला अकेला ज्ञात स्तनधारी है। यह अफ़्रीका और एशिया में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसे भारत में सल्लू साँप भी कहते हैं। इनके निवास वाले वन शीघ्रता से काटे जा रहे हैं और अंधविश्वासी प्रथाओं के कारण इनका अक्सर शिकार भी करा जाता है, जिसकी वजह से पैंगोलिन की सभी जातिया अब संकटग्रस्त मानी जाती हैं और उन सब पर विलुप्ति का ख़तरा मंडरा रहा है। .

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सहजीवन

क्लाउनफिश रीढीविहीन जंतुओं पर निर्भर रहती है सहजीवन (Symbiosis) को 'सहोपकारिता' (Mutualism) भी कहते हैं। यह दो प्राणियों में पारस्परिक, लाभजनक, आंतरिक साझेदारी है। यह सहभागिता के (partnership) दो पौधों या दो जंतुओं के बीच, या पौधे और जंतु के पारस्परिक संबंध में हो सकती है। यह संभव है कि कुछ सहजीवियों (symbionts) ने अपना जीवन परजीवी (parasite) के रूप में शुरू किया हो और कुछ प्राणी जो अभी परजीवी हैं, वे पहले सहजीवी रहे हों। सहजीवन का एक अच्छा उदाहरण लाइकेन (lichen) है, जिसमें शैवाल (algae) और कवक के (fungus) के बीच पारस्परिक कल्याणकारक सहजीविता होती है। बहुत से कवक बांज (oaks), चीड़ इत्यादि पेड़ों की जड़ों के साथ सहजीवी होकर रहते हैं। बैसिलस रैडिसिकोला के (Bacillus radicicola) और शिंबी के (leguminous) पौधों की जड़ों के बीच का अंतरंग संबंध भी सहजीविता का उदाहरण है। ये जीवाणु शिंबी पौधों को जड़ों में पाए जाते हैं, जहाँ वे गुलिकाएँ (tubercles) बनाते हैं और वायुमंडलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं। सहजीविता का दूसरा रूप हाइड्रा विरिडिस (Hydra viridis) और एक हरे शैवाल का पारस्परिक संबंध है। हाइड्रा (Hydra) जूक्लोरेली (Zoochlorellae) शैवाल को आश्रय देता है। हाइड्रा की श्वसन क्रिया में जो कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलता है, वह जूक्लोरेली के प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त होता है और जूक्लोरेली द्वारा उच्छ्‌वसित ऑक्सीजन हाइड्रा की श्वसन क्रिया में काम आती है। जूक्लोरेली द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक का भी उपयोग हाइड्रा करता है। कुछ हाइड्रा तो बहुत समय तक, बिना बाहर का भोजन किए, केवल जूक्लोरेली द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक के सहारे ही, जीवन व्यतीत कर सकते हैं। सहजीविता का एक और अत्यंत रोचक उदाहरण कंबोल्यूटा रोजिओफेंसिस (Convoluta roseoffensis) नामक एक टर्बेलेरिया क्रिमि (Turbellaria) और क्लैमिडोमॉनाडेसिई (Chlamydomonadaceae) वर्ग के शैवाल के बीच का पारस्परिक संयोग है। कंबोल्यूटा के जीवनचक्र में चार अध्याय होते हैं। अपने जीवन के प्राथमिक भाग में कंबोल्यूटा स्वतंत्र रूप से बाहर का भोजन करता है। कुछ दिनों बाद शैवाल से संयोग होता है और फिर इस कृमि का पोषण, इसके शरीर में रहने वाले शैवाल द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक और बाहर के भोजन दोनों से होता है। तीसरी अवस्था में कंबोल्यूटा बाहर का भोजन ग्रहण करना बंद कर देता है और अपने पोषण के लिए केवल शैवाल के प्रकाश संश्लेषण द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक पर ही निर्भर रहता है। अंत में कृमि अपने सहजीवी शैवाल को ही पचा लेता है और स्वयं मर जाता है। बहुत से सहजीची जीवाणु और अंतरकोशिक यीस्ट (yeast) आहार नली की कोशिकाओं में रहते हैं और पाचन क्रिया में सहायता करते हैं। दीमक की आहार नली में बहुत से इंफ्यूसोरिया (Infusoria) होते हैं, जिनका काम काष्ठ का पाचन करना होता है और इनके बिना दीमक जीवित नहीं रह सकती। .

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सामाजिक कीट

चींटे कीटों में सामाजिक जीवन अपने उच्च शिखर पर होता है, जो अन्यत्र केवल मनुष्यों को छोड़कर कहीं नहीं पाया जाता है। कीटों ने संसार में सर्वप्रथम पूर्ण विकसित सामाजिक जीवन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। कीटों की संख्या सभी प्राणियों से अधिक है। कीट वर्ग, आर्थोपोडा (Arthropoda) संघ में आता है। अब तक ज्ञात स्पीशीज़ (Species) की संख्या आठ लाख से भी अधिक है और आधिकारिक अनुमानों के अनुसार अगर इनकी सभी जातियों की खोज की जाय, तो उनकी संख्या 60 लाख से भी अधिक होगी। इनमें बहुत सी ऐसी जातियाँ हैं जिनके प्राणियों की संख्या अरबों में है। इससे कीट वर्ग की बृहद् राशि की कल्पना की जा सकती है। कीटों के अनेक वर्गों में सामाजिक संगठन का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ है। ऐसे कीटों के उदाहरण हैं, सामाजिक ततैया, सामाजिक मधुमक्खियाँ एवं चींटियाँ। ये सभी हाइमेनॉप्टेरा (Hymenoptera) गण में आते हैं। दीमक आइसॉप्टेरा (Isoptera) गण में आती हैं। इन कीटों में सामुदायिक संगठन का विकास सर्वोच्च हुआ है। इन संगठनों में विभिन्न सदस्यों के कार्यों का वर्गीकरण पूरे समुदाय के हित के लिये किया जाता है। सभी सामाजिक कीट बहुरूपी होते हैं, अर्थात्‌ एक स्पीशीज़ में कई स्पष्ट समूह होते हैं। प्रत्येक समूह में जनन जातियाँ, (नर, मादा, राजा, रानी, इमैगी आदि) रचना तथा कार्य की दृष्टि से, बाँझ जातियों (सेवककर्मी सैनिक आदि) से भिन्न होती हैं। बाँझ जातियों में केवल जनन अंग के अवशेष ही पाए जाते हैं, परंतु सामाजिक हाइमेनॉप्टेरा की बाँझ जातियों के अंसेचित अंडों से केवल मादाएँ उत्पन्न होती हैं, जो बाँझ होती हैं। असंसेचित अंडे के अनिषेकजनन (pathenogensis) से क्रियात्मक नर विकसित होते हैं। .

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हाइड्रोजन सायनाइड

हाड्रोजन सायनाइड (HCN) या हाइड्रोसायनिक अम्ल एक अकार्बनिक यौगिक है। इसे प्रूसिक अम्ल (Prussic acid) भी कहते हैं। यह रंगहीन वाष्पशील पदार्थ है, जो बहुत ही विषैला होता है। सन् १७८२ में के। डब्लू.

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आत्महत्या

आत्महत्या (लैटिन suicidium, sui caedere से, जिसका अर्थ है "स्वयं को मारना") जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनने के लिए कार्य करना है। आत्महत्या अक्सर निराशा के चलते की जाती है, जिसके लिए अवसाद, द्विध्रुवीय विकार, मनोभाजन, शराब की लत या मादक दवाओं का सेवनजैसे मानसिक विकारों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। तनाव के कारक जैसे वित्तीय कठिनाइयां या पारस्परिक संबंधों में परेशानियों की भी अक्सर एक भूमिका होती है। आत्महत्या को रोकने के प्रयासों में आग्नेयास्त्रों तक पहुंच को सीमित करना, मानसिक बीमारी का उपचार करना तथा नशीली दवाओं के उपयोग को रोकना तथा आर्थिक विकास को बेहतर करना शामिल हैं। आत्महत्या करने के लिए उपयोग की जाने वाली सबसे आम विधि, देशों के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है और आंशिक रूप से उपलब्धता से संबंधित है। आम विधियों में निम्नलिखित शामिल हैं: लटकना, कीटनाशक ज़हर पीना और बंदूकें। लगभग 8,00,000 से 10,00,000 लोग हर वर्ष आत्महत्या करते हैं, जिस कारण से यह दुनिया का दसवे नंबर का मानव मृत्यु का कारण है। पुरुषों से महिलाओं में इसकी दर अधिक है, पुरुषों में महिलाओं की तुलना में इसके होने का समभावना तीन से चार गुना तक अधिक है। अनुमानतः प्रत्येक वर्ष 10 से 20 मिलियन गैर-घातक आत्महत्या प्रयास होते हैं। युवाओं तथा महिलाओं में प्रयास अधिक आम हैं। इतिहास सम्मान और जीवन का अर्थ जैसे व्यापक अस्तित्व विषयों द्वारा आत्महत्या के विचारों पर प्रभाव पड़ता है। अब्राहमिक धर्म पारम्परिक रूप से आत्महत्या को ईश्वर के समक्ष किया जाने वाला पाप मानते हैं क्योंकि वे जीवन की पवित्रतामें विश्वास करते हैं। जापान में सामुराई युग में, सेप्पुकू को विफलता का प्रायश्चित या विरोध का एक रूप माना जाता था। सती, जो अब कानूनन निषिद्ध है हिंदू दाह संस्कार है, जो पति की चिता पर विधवा द्वारा खुद को बलिदान करने से संबंधित है, यह अपनी इच्छा या परिवार व समाज के दबाव में किया जाता था। आत्महत्या और आत्महत्या का प्रयास, पूर्व में आपराधिक रूप से दंडनीय था लेकिन पश्चिमी देशों में अब ऐसा नहीं है। बहुत से मुस्लिम देशों में यह आज भी दंडनीय अपराध है। 20वीं और 21 वीं शताब्दी में आत्मदाह के रूप में आत्महत्या विरोध का एक तरीका है और कामीकेज़ और आत्मघाती वम विस्फोट को फौजी या आतंकवादी युक्ति के रूप में उपयोग किया जाता है। .

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कीटनाशक

क्रॉपडस्टर द्वारा कीटनाशक का छिड़काव कीटनाशक रासायनिक या जैविक पदार्थों का ऐसा मिश्रण होता है जो कीड़े मकोड़ों से होनेवाले दुष्प्रभावों को कम करने, उन्हें मारने या उनसे बचाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग कृषि के क्षेत्र में पेड़ पौधों को बचाने के लिए बहुतायत से किया जाता है। उर्वरक पौध की वृद्धि में मदद करते हैं जबकि कीटनाशक कीटों से रक्षा के उपाय के रूप में कार्य करते हैं। कीटनाशक कीट की क्षति को रोकने, नष्‍ट करने, दूर भगाने अथवा कम करने वाला पदार्थ अथवा पदार्थों का मिश्रण होता है। कीटनाशक रसायनिक पदार्थ (फासफैमीडोन, लिंडेन, फ्लोरोपाइरीफोस, हेप्‍टाक्‍लोर तथा मैलेथियान आदि) अथवा वाइरस, बैक्‍टीरिया, कीट भगाने वाले खर-पतवार तथा कीट खाने वाले कीटों, मछली, पछी तथा स्‍तनधारी जैसे जीव होते हैं। बहुत से कीटनाशक मानव के लिए जहरीले होते हैं। सरकार ने कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया है जबकि अन्‍य के इस्‍तेमाल को विनियमित (रेगुलेट) किया गया है। .

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