सामग्री की तालिका
52 संबंधों: चन्द्रगुप्त मौर्य, तारणपंथ, दिगंबर तेरापंथ, देशभूषण, धवला टीका, नागा साधु, न्याय (जैन), पट्टावली, पर्यूषण पर्व, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, पुष्पदंतसागर, प्रमाणसागर, बीसपंथी, भद्रबाहु, भूतबलि, मध्य प्रदेश, महावीर, मुनि प्रणम्यसागर, मूल संघ, मूलाचार, यपनिय, राजस्थान में जैन धर्म, रजनीश, रविसेन, शांतिसागर, श्री तरंग तीर्थ, षट्खण्डागम, समन्तभद्र, सम्प्रदाय, सल्लेखना, साधु, सुधासागर, हरिसेन, जयसेन, जिनसेन, ज्ञानसागर (छाणी), जैन धर्म, जैन धर्म की शाखाएं, जैन आचार्य, वट्टकेर, विद्यानंद, विद्यासागर (जैन संत), गणेशप्रसाद वर्णी, आदिपुराण, इंद्रभूति गौतम, कायोत्सर्ग, काष्ठ संघ, कुन्दकुन्द, क्षमासागर, क्षमावणी, ... सूचकांक विस्तार (2 अधिक) »
चन्द्रगुप्त मौर्य
चन्द्रगुप्त मौर्य (जन्म ३४५ ई॰पु॰, राज ३२२-२९८ ई॰पु॰) में भारत के सम्राट थे। इनको कभी कभी चन्द्रगुप्त नाम से भी संबोधित किया जाता है। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त पूरे भारत को एक साम्राज्य के अधीन लाने में सफ़ल रहे। भारत राष्ट्र निर्माण मौर्य गणराज्य (चन्द्रगुप्त मौर्य) सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि साधारणतया ३२२ ई.पू.
देखें दिगम्बर और चन्द्रगुप्त मौर्य
तारणपंथ
तारण पंथ, दिगंबर जैन धर्म का एक पंथ है। इसकी स्थापना संत तारण ने की थी। .
देखें दिगम्बर और तारणपंथ
दिगंबर तेरापंथ
आचार्य Gyansagar'', एक आचार्य (सिर के मठवासी आदेश) के ''Digambara Terapanth'' Digambara Terapanth एक संप्रदायों के दिगम्बर जैन, दूसरे जा रहा है Bispanthi संप्रदाय है। इसे से बाहर का गठन मजबूत विपक्ष के लिए धार्मिक वर्चस्व के पारंपरिक धार्मिक नेताओं को बुलाया भट्टारक के दौरान 12-16 वीं सदी ए.
देखें दिगम्बर और दिगंबर तेरापंथ
देशभूषण
आचार्य देशभूषण एक Digambara जैन आचार्य 20 वीं सदी के हैं, जो रचना का अनुवाद और कई कन्नड़ शास्त्रों करने के लिए हिंदी.
देखें दिगम्बर और देशभूषण
धवला टीका
धवला टीका, दिगम्बर जैन परम्परा के प्रमुख ग्रंथ षट्खण्डागम का टीकाग्रंथ है। इसके रचयता, आचार्य जिनसेन है। यह संस्कृत मिश्रित शौरसेनी प्राकृत भाषाबद्ध है। इसमें प्राचीन भारतीय गणित के दर्शन होते हैं। .
देखें दिगम्बर और धवला टीका
नागा साधु
पशुपतिनाथ मन्दिर, नेपाल में एक नागा साधु नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा जगद्गुरु आदिशंकराचार्य द्वारा की गयी थी। .
देखें दिगम्बर और नागा साधु
न्याय (जैन)
भारतीय न्यायशास्त्र में जैन न्याय अवैदिक न्याय की श्रेणी में आता है। जैन न्याय की दो धाराएँ प्रसिद्ध हैं - श्वेताँबर और दिगंबर। दोनों का प्रमुख सिद्धांत है "अनेकांतवाद"। .
देखें दिगम्बर और न्याय (जैन)
पट्टावली
Digambara'' परंपरा एक पट्टावली (संस्कृत से पत्ता: सीट, avali: श्रृंखला) का एक रिकार्ड है एक आध्यात्मिक वंश के प्रमुखों के मठवासी आदेश.
देखें दिगम्बर और पट्टावली
पर्यूषण पर्व
जैन धर्मावलंबी भाद्रपद मास में पर्यूषण पर्व मनाते हैं। श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्यूषण 8 दिन चलते हैं। उसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्यूषण मनाते हैं। उन्हें वे 'दसलक्षण' के नाम से भी संबोधित करते हैं। .
देखें दिगम्बर और पर्यूषण पर्व
पुरुषार्थ सिद्धयुपाय
पुरुषार्थ सिद्धयुपाय एक प्रमुख जैन ग्रन्थ है जिसके रचियता आचार्य अमृत्चंद्र हैं। आचार्य अमृत्चंद्र दसवीं सदी (विक्रम संवत) के प्रमुख दिगम्बर आचार्य थे। पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में श्रावक के द्वारा धारण किये जाने वाले अणुव्रत आदि का वर्णन हैं पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में अहिंसा के सिद्धांत भी समझाया गया हैं .
देखें दिगम्बर और पुरुषार्थ सिद्धयुपाय
पुष्पदंतसागर
पुष्पदंतसागर एक दिगम्बर साधु है। .
देखें दिगम्बर और पुष्पदंतसागर
प्रमाणसागर
मुनि प्रमाणसागर एक दिगम्बर साधु है। इन्होंने जैन दर्शन पर कई पुस्तकों का लेखन किया है। .
देखें दिगम्बर और प्रमाणसागर
बीसपंथी
Bispanthi/वीजा पंथ में से एक है Digambara जैन संप्रदायों, एक दूसरे को किया जा रहा है Terapanthi.
देखें दिगम्बर और बीसपंथी
भद्रबाहु
भद्रबाहु सुप्रसिद्ध जैन आचार्य थे जो दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों द्वारा अंतिम श्रुतकेवली माने जाते हैं। भद्रबाहु चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु थे। भगवान महावीर के निर्वाण के लगभग १५० वर्ष पश्चात् (ईसवी सन् के पूर्व लगभग ३६७) उनका जन्म हुआ था। इस युग में ५ श्रुतकेवली हुए, जिनके नाम है: गोवर्धन महामुनि, विष्णु, नंदिमित्र, अपराजित, भद्रबाहु। .
देखें दिगम्बर और भद्रबाहु
भूतबलि
आचार्य भूतबलि जी की प्रतिमा आचार्य भूतबलि पहली शताब्दी के एक दिगम्बर जैन आचार्य थे। आचार्य भूतबलि ने पवित्र जैन ग्रन्थ, षट्खण्डागम की रचना पूर्ण की थी। .
देखें दिगम्बर और भूतबलि
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटा कर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया। .
देखें दिगम्बर और मध्य प्रदेश
महावीर
भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है। .
देखें दिगम्बर और महावीर
मुनि प्रणम्यसागर
मुनि प्रणम्यसागर, आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षित एक दिगम्बर साधु है। अप्रैल २०१८ में इनका मुनि चंद्रसागर जी के साथ विहार दिल्ली के वैशाली क्षेत्र में हुआ। १४ मई २०१८ को महावीर वाटिका में इन दोनों मुनियों के सानिध्य में वर्धमान स्त्रोत विधान का आयोजन किया गया जिसमें सैकड़ो लोगो ने भाग लिया। .
देखें दिगम्बर और मुनि प्रणम्यसागर
मूल संघ
Mula संघ (संस्कृत मूलसंघ) एक प्राचीन जैन मठवासी आदेश.
देखें दिगम्बर और मूल संघ
मूलाचार
मूलाचार पहली शताब्दी (ईसा पूर्व) में लिखा गया एक प्रमुख जैन ग्रन्थ हैं। यह दिगम्बर जैन सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रंथ है। इसके रचयिता आचार्य वट्टकेर हैं। यह बारह अधिकारों में विभक्त प्राकृत भाषा की १२४३ गाथाओं में निबद्ध है। .
देखें दिगम्बर और मूलाचार
यपनिय
यपनिय पश्चिमी कर्नाटक में एक जैन संप्रदाय था जो कि अब विलुप्त हो चुका है। उनके बारे में पहला वर्णन 475-490 ई॰ में पलासिका के, कदंब के राजा मृग्सवर्मन के शिलालेखों में मिलता है, जिन्होंने जैन मंदिर के लिए दान दिया था और यपनियों, निर्ग्रंथियों (दिगम्बरों के रूप में पहचान) तथा कुर्चकों को अनुदान दिया। शक 1316 (1394 ई॰पू॰) का अंतिम शिलालेख जिसमें यपनियों के बारे में वर्णन है, दक्षिण पश्चिम कर्नाटक के तुलुव इलाके में मिला है। दर्शन-सारा के अनुसार वे शेवताम्बर संप्रदाय की एक शाखा थे। हालाँकि श्वेताम्बर लेखकों द्वारा उनको दिगम्बर के तौर पर देखा गया है। यपनिय साधू नग्न रहते थे लेकिन साथ ही साथ कुछ श्वेताम्बर दृष्टिकोण को भी अनुसरण करते थे। उनके पास श्वेताम्बर रीतियों की अपनी खुद की व्याख्या थी। मलयगिर ने अपने ग्रन्थ नंदीसूत्र में लिखा है कि महान व्याकरणाचर्या श्कतायन, जो कि राष्ट्रकूट के राजा अमोघवर्ष नृपतुंग (817-877) के सम-सामयिक थे, एक यापनिय थे। .
देखें दिगम्बर और यपनिय
राजस्थान में जैन धर्म
राजस्थान भारत के पश्चिम भाग में स्थित राज्य है, जिसका जैन धर्म के साथ बहुत ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा है। दक्षिणी राजस्थान श्वेताम्बर जैन धर्म का केन्द्र बिन्दु रहा है। दिगम्बर के भी बड़े केन्द्र राजस्थान के उत्तरी व पूर्वी भागों में स्थित हैं। .
देखें दिगम्बर और राजस्थान में जैन धर्म
रजनीश
आचार्य रजनीश (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता था, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलोचक रहे। उन्होंने मानव कामुकता के प्रति एक ज्यादा खुले रवैया की वकालत की, जिसके कारण वे भारत तथा पश्चिमी देशों में भी आलोचना के पात्र रहे, हालाँकि बाद में उनका यह दृष्टिकोण अधिक स्वीकार्य हो गया। चन्द्र मोहन जैन का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था। ओशो शब्द की मूल उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई धारणायें हैं। एक मान्यता के अनुसार, खुद ओशो कहते है कि ओशो शब्द कवि विलयम जेम्स की एक कविता 'ओशनिक एक्सपीरियंस' के शब्द 'ओशनिक' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'सागर में विलीन हो जाना। शब्द 'ओशनिक' अनुभव का वर्णन करता है, वे कहते हैं, लेकिन अनुभवकर्ता के बारे में क्या? इसके लिए हम 'ओशो' शब्द का प्रयोग करते हैं। अर्थात, ओशो मतलब- 'सागर से एक हो जाने का अनुभव करने वाला'। १९६० के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से एवं १९७० -८० के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और १९८९ के समय से ओशो के नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये। रजनीश ने अपने विचारों का प्रचार करना मुम्बई में शुरू किया, जिसके बाद, उन्होंने पुणे में अपना एक आश्रम स्थापित किया, जिसमें वे विभिन्न प्रकार के उपचारविधान पेश किये जाते थे.
देखें दिगम्बर और रजनीश
रविसेन
आचार्य रविसेन था एक सातवीं सदी दिगम्बर जैन आचार्य, जो लिखा पद्म पुराण (जैन रामायण) में 678 विज्ञापन.
देखें दिगम्बर और रविसेन
शांतिसागर
आचार्य शांति सागर महाराज, चरित्र चक्रवर्ती (१८७२-१९५५) २०वीं सदी के एक प्रमुख दिगंबर आचार्य थे। वह कईं सदियों बाद उत्तरी भारत में विचरण करने वालें प्रथम दिगम्बर जैन संत थे। .
देखें दिगम्बर और शांतिसागर
श्री तरंग तीर्थ
श्री तरंग तीर्थ या तरंगा मंदिरश्री तरंग तीर्थ नामक इस जैन मंदिर का निर्माण १९२१ में गुजरात के शासक कुमारपाल ने करवाया था। यह कुछ तीर्थों में से एक है जहां श्वेतांबर और दिगंबर दोनों की यात्रा है। अपने शिक्षक आचार्य हेमचंद्र की सलाह के तहत, चोलुक्य राजा कुमारपाल ने ११२१ में सबसे पुराने मंदिर का निर्माण किया था। अजितनाथ का २.७५ मीटर संगमरमर की मूर्ति केंद्रीय मूर्ति है। श्वेतांबर परिसर में सभी १४ मंदिर हैं। लेकिन तारांगा पहाड़ी में पांच अन्य दिगंबर संबद्ध मंदिर भी हैं। जगह ऐतिहासिक रूप से बौद्ध धर्म के साथ भी जुड़ी हुई थी। यह जगह प्राचीन काल में तवतूर, तारावार नगर, तरंगिरी और तरनगढ़ आदि के रूप में भी जाना जाता था। आचार्य श्री सोमप्रभू श्रृद्ध ने "कुमारपाल प्रतिबोध" नामक एक पवित्र पुस्तक लिखी। उन्होंने श्री बप्पपुराचार्य की सलाह के अनुसार जैन धर्म को स्वीकार करने के बाद वीएनएस (प्रथम) के ६ वें शताब्दी के दौरान राजा वत्सराय के इस शासक के शासक द्वारा श्रीशक्तिधिष्ठ्री श्री सिध्ददैयिका देवी के मंदिर की स्थापना के बारे में बताया था। दोनों श्वेतांबर और दिगंबर के लिए धर्मशाला, भोजांशाल सुविधाओं के साथ उपलब्ध हैं। श्रेणी:मन्दिर .
देखें दिगम्बर और श्री तरंग तीर्थ
षट्खण्डागम
षट्खण्डागम (अर्थ .
देखें दिगम्बर और षट्खण्डागम
समन्तभद्र
आचार्य समन्तभद्र दूसरी सदी के एक प्रमुख दिगम्बर आचार्य थे। वह जैन दर्शन के प्रमुख सिद्धांत, अनेकांतवाद के महान प्रचारक थे। उनका जन्म कांचीनगरी (शायद आज के कांजीवरम) में हुआ था। उनकी सबसे प्रख्यात रचना रत्नकरण्ड श्रावकाचार हैं। .
देखें दिगम्बर और समन्तभद्र
सम्प्रदाय
एक ही धर्म की अलग अलग परम्परा या विचारधारा मानने वालें वर्गों को सम्प्रदाय कहते है। सम्प्रदाय हिंदू, बौद्ध, ईसाई, जैन, इस्लाम आदी धर्मों में मौजूद है। सम्प्रदाय के अन्तर्गत गुरु-शिष्य परम्परा चलती है जो गुरु द्वारा प्रतिपादित परम्परा को पुष्ट करती है। .
देखें दिगम्बर और सम्प्रदाय
सल्लेखना
सल्लेखना (समाधि या सथारां) मृत्यु को निकट जानकर अपनाये जाने वाली एक जैन प्रथा है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है। दिगम्बर जैन शास्त्र अनुसार समाधि या सल्लेखना कहा जाता है, इसे ही श्वेतांबर साधना पध्दती में संथारा कहा जाता है। सल्लेखना दो शब्दों से मिलकर बना है सत्+लेखना। इस का अर्थ है - सम्यक् प्रकार से काया और कषायों को कमज़ोर करना। यह श्रावक और मुनि दोनो के लिए बतायी गयी है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है। जैन ग्रंथ, तत्त्वार्थ सूत्र के सातवें अध्याय के २२वें श्लोक में लिखा है: "व्रतधारी श्रावक मरण के समय होने वाली सल्लेखना को प्रतिपूर्वक सेवन करे"। जैन ग्रंथो में सल्लेखना के पाँच अतिचार बताये गए हैं:-.
देखें दिगम्बर और सल्लेखना
साधु
साधु, संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ 'सज्जन व्यक्ति' से है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में कहा है- 'साध्नोति परकार्यमिति साधुः' (जो दूसरे का कार्य कर देता है, वह साधु है।)। वर्तमान समय में साधु उनको कहते हैं जो सन्यास दीक्षा लेकर गेरुए वस्त्र धारण करते है उन्हें भी साधु कहा जाने लगा है। साधु(सन्यासी) का मूल उद्देश्य समाज का पथप्रदर्शन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करना है। साधु सन्यासी गण साधना, तपस्या करते हुए वेदोक्त ज्ञान को जगत को देते है और अपने जीवन को त्याग और वैराग्य से जीते हुए ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाते है। .
देखें दिगम्बर और साधु
सुधासागर
सुधासागर आचार्य विद्यासागर से दीक्षित एक दिगंबर साधु है। .
देखें दिगम्बर और सुधासागर
हरिसेन
हरिसेन था एक दसवीं सदी दिगम्बर जैन साधुहै। उनके मूल का पता लगाया है उन लोगों के लिए जो भिक्षुओं में रहने लगा था के दौरान उत्तर की अपेक्षा अकाल और किया गया था पर हावी द्वारा अपने रखना अनुयायियों को कवर करने के लिए अपने निजी भागों के साथ कपड़े की एक पट्टी (ardhaphalaka) जबकि भिक्षा के लिए भीख माँग.
देखें दिगम्बर और हरिसेन
जयसेन
जयसेन बारहवीं सदी के दिगम्बर जैन आचार्य थे, जिन्होंने आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के प्रवचनसार पर एक टीका लिखी थी।1 .
देखें दिगम्बर और जयसेन
जिनसेन
जिनसेन आचार्य दिगम्बर परम्परा के एक प्रमुख आचार्य थे। वह महापुराण के रचयता है। उन्होंने धवला टीका पूरी की थी। जैन ग्रंथ हरिवंश-पुराण के रचियता अन्य जिनसेन थे यह नहीं। .
देखें दिगम्बर और जिनसेन
ज्ञानसागर (छाणी)
आचार्य ज्ञानसागर एक प्रख्यात दिगम्बर जैन संत हैं। आचार्य ज्ञानसागर के प्रवचन सत्य, अहिंसा, संयम जैसे विषयों पर होते हैं। .
देखें दिगम्बर और ज्ञानसागर (छाणी)
जैन धर्म
जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .
देखें दिगम्बर और जैन धर्म
जैन धर्म की शाखाएं
जैन धर्म की दो मुख्य शाखाएँ है - दिगम्बर और श्वेतांबर। दिगम्बर संघ में साधु नग्न (दिगम्बर) रहते है और श्वेतांबर संघ के साधु श्वेत वस्त्र धारण करते है। इसी मुख्य विभन्ता के कारण यह दो संघ बने। .
देखें दिगम्बर और जैन धर्म की शाखाएं
जैन आचार्य
आचार्य कुन्दकुन्द की प्रतिमा जैन धर्म में आचार्य शब्द का अर्थ होता है मुनि संघ के नायक। दिगम्बर संघ के कुछ अति प्रसिद्ध आचार्य हैं- भद्रबाहु, कुन्दकुन्द स्वामी, आचार्य समन्तभद्र, आचार्य उमास्वामी.
देखें दिगम्बर और जैन आचार्य
वट्टकेर
Vattakera था एक पहली सदी CE दिगम्बर जैन आचार्य लिखा था, जो मूलाचार 150 के आसपास CE.
देखें दिगम्बर और वट्टकेर
विद्यानंद
आचार्य Vidyanand जी (हिंदी: आचार्य विद्यानंद) (जन्म 22 अप्रैल 1925) के एक वरिष्ठ सबसे प्रमुख विचारक, दार्शनिक, लेखक, संगीतकार, संपादक, क्यूरेटर और एक बहुमुखी जैन साधु समर्पित किया है, जो अपने पूरे जीवन में उपदेश और अभ्यास महान अवधारणा की अहिंसा (अहिंसा) के माध्यम से जैन धर्महै। वह है के शिष्य आचार्य Deshbhushan.
देखें दिगम्बर और विद्यानंद
विद्यासागर (जैन संत)
आचार्य विद्यासागर (कन्नड़:ಆಚಾರ್ಯ ವಿದ್ಯಾಸಾಗರ್) एक प्रख्यात दिगम्बर जैन आचार्य हैं। उन्हें उनकी विद्वाता और तप के लिए जाना जाता है। .
देखें दिगम्बर और विद्यासागर (जैन संत)
गणेशप्रसाद वर्णी
Kshullak Ganeshprasad Varni (हिन्दी:पूज्य 105 श्री गणेश प्रसाद वर्णी, गुजराती: શ્રી ૧૦૫ ક્ષુલ્લક ગણેશપ્રસાદ વર્ણી कन्नडमें:ಶ್ರೀ ೧೦೫ ಕ್ಷುಲ್ಲಕ ಗಣೆಶಪ್ರಸಾದ ವರ್ಣೀ) (1874 – 5 दिसंबर 1961) में से एक था मूलभूत आंकड़े आधुनिक भारतीय Digambara बौद्धिक परंपरा 20 वीं सदी के दौरान.
देखें दिगम्बर और गणेशप्रसाद वर्णी
आदिपुराण
आदिपुराण जैनधर्म का एक प्रख्यात पुराण है जो सातवीं शताब्दी में जिनसेन आचार्य द्वारा लिखा गया था। इसका कन्नड भाषा में अनुवाद, आदिवाकि पम्पा ने चम्पू शैली में किया था। इसमें जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के दस जन्मों का वर्णन है। .
देखें दिगम्बर और आदिपुराण
इंद्रभूति गौतम
इंद्रभूति गौतम (गौतम गणधर) तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर (मुख्य शिष्य) थे। जिन्होंने भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात बारह बर्षो तक जैन धर्म की आचार्य परम्परा का निर्वाह किया। .
देखें दिगम्बर और इंद्रभूति गौतम
कायोत्सर्ग
कायोत्सर्ग की खड़ी मुद्रा में भगवान बाहुबली कायोत्सर्ग (जैन प्रकृत: काउस्सग्ग) एक यौगिक ध्यान की मुद्रा का नाम है। अधिकांश तीर्थंकरों को कायोत्सर्ग या पद्मासन मुद्रा में ही दर्शाया जाता है| .
देखें दिगम्बर और कायोत्सर्ग
काष्ठ संघ
भट्टारकों द्वारा नक्काशी करके बनायी गयीं जैन मूर्तियाँ (ग्वालियर) काष्ठा संघ दिगंबर जैन सम्प्रदाय का एक उपसम्प्रदाय था जो उत्तरी एवं पश्चिमी भारत के अनेक भागों में व्याप्त था। काष्ठा संघ मूल संघ की एक शाखा माना जाता है। कहा जाता है कि इस संघ की उत्पत्ति 'काष्ठा' नामक नगर से हुई थी। दिल्ली क्षेत्र के कई ग्रन्थों एवं शिलालेखों में लोहाचार्य को इस संघ का प्रणेता बताया गया है। कई जैन समुदाय काष्ठा संघ से सम्बद्ध थे। अग्रवाल जैन इसके सबसे बड़े समर्थक थे। मुनि सभा सिंह, अपने ग्रन्थ पद्मपुराण में लिखते हैं- काष्ठासंघ में कई उपपन्थ थे.
देखें दिगम्बर और काष्ठ संघ
कुन्दकुन्द
कुंदकुंदाचार्य की प्रतिमा जी (कर्नाटक) कुंदकुंदाचार्य दिगंबर जैन संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध आचार्य थे। इनका एक अन्य नाम 'कौंडकुंद' भी था। इनके नाम के साथ दक्षिण भारत का कोंडकुंदपुर नामक नगर भी जुड़ा हुआ है। प्रोफेसर ए॰ एन॰ उपाध्ये के अनुसार इनका समय पहली शताब्दी ई॰ है परंतु इनके काल के बारे में निश्चयात्मक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। श्रवणबेलगोला के शिलालेख संख्या ४० के अनुसार इनका दीक्षाकालीन नाम 'पद्मनंदी' था और सीमंधर स्वामी से उन्हें दिव्यज्ञान प्राप्त हुआ था। आचार्य कुन्दकुन्द ने ११ वर्ष की उम्र में दिगम्बर मुनि दीक्षा धारण की थी। इनके दीक्षा गुरू का नाम जिनचंद्र था। ये जैन धर्म के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनके द्वारा रचित समयसार, नियमसार, प्रवचन, अष्टपाहुड, और पंचास्तिकाय - पंच परमागम ग्रंथ हैं। ये विदेह क्षेत्र भी गए। वहाँ पर इन्होने सीमंधर नाथ की साक्षात दिव्यध्वनि को सुना। वे ५२ वर्षों तक जैन धर्म के संरक्षक एवं आचार्य रहे। वे जैन साधुओं की मूल संघ क्रम में आते हैं। वे प्राचीन ग्रंथों में इन नामों से भी जाने जातें हैं- गौतम गणधर के बाद आचार्य कुन्दकुन्द को संपूर्ण जैन शास्त्रों का एक मात्र ज्ञाता माना गया है। दिगम्बरों के लिए इनके नाम का शुभ महत्त्व है और भगवान महावीर और गौतम गणधर के बाद पवित्र स्तुति में तीसरा स्थान है- आचार्य कुन्दकुन्द तत्त्वार्थसूत्र के रचियता आचार्य उमास्वामी के गुरु थे। .
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क्षमासागर
मुनि क्षमासागर एक दिगम्बर साधु थे जो आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य थे। .
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क्षमावणी
क्षमावणी या "क्षमा दिवस" जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाया जाने वाला एक पर्व है। दिगम्बर इसे अश्विन कृष्ण मास की एकम को मनाते हैं। श्वेतांबर इसे अपने ८ दिवसीय पर्यूषण पर्व के अंत में मनाते है। इस पर्व पर सबसे अपने भूलों की क्षमा याचना की जाती है। इसे क्षमावाणी, क्षमावानी और क्षमा पर्व भी कहते है। .
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उमास्वामी
आचार्य उमास्वामी, कुन्दकुन्द स्वामी के प्रमुख शिष्य थे। वह मुख्य जैन ग्रन्थ, तत्त्वार्थ सूत्र के लेखक है। वह दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों के द्वारा पूजे जाते हैं। वह दूसरी सदी के एक गणितज्ञ थे। .
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ऋषभदेव
ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। ऋषभदेव जी को आदिनाथ भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम दिगम्बर जैन मुनि थे। .
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दिगंबर के रूप में भी जाना जाता है।