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दखमा

सूची दखमा

ईरान के याज्द प्रदेश में स्थित एक दखमा दखमा या 'टॉवर ऑफ साइलेंस' (निस्तब्धता का दुर्ग) पारसियों के कब्रिस्तान को कहते हैं। यह गोलाकार खोखली इमारत के रूप में होता है जिसमें शव कौओं, चीलों आदि के खाने के लिए फेंक दिये जाते हैं। यहां पर पारसी लोग अपने मृत जनों का अंतिम संस्कार करते हैं। पारसी समुदाय में मृत शवों को न ही जलाया जाता है और न ही दफनाया जाता है, बल्कि उन शवों की चील, कौओं और अन्य पशु-पक्षियों के लिए आहार स्वरूप छोड़ दिया जाता है। दरअसल, पारसी पृथ्वी, जल और अग्नि को बहुत पवित्र मानते हैं, इसलिए समाज के किसी व्यक्ति के मर जाने पर उसकी देह को इन तीनों के हवाले नहीं करते। इसके बजाय मृत देह को आकाश के हवाले किया जाता है। मृत देह को एक ऊंचे बुर्ज (टावर ऑफ साइलेंस) पर रख दिया जाता है, जहां उसे गिद्ध और चील जैसे पक्षी खा जाते हैं। इस ऊंचे या शव निपटान के स्थान को “दाख्मा” कहते हैं और पूरी प्रक्रिया को “दोखमेनाशीनी” कहा जाता है। .

1 संबंध: कालेकौए का विश्वभ्रमण

कालेकौए का विश्वभ्रमण

महाराजा कालाकौआ १८८१ में हवाई राज्य के महाराज कालाकौआ धरती का परिमार्जन करने वाले प्रथम शासक बने। श्री कालाकौआ की इस २८१ दिवसीय विश्वयात्रा का उद्देश्य एशिया-प्रशांत राष्ट्रों से श्रम शक्ति का आयत करना था, ताकि हवाई संस्कृति और आबादी को विलुप्त होने से बचाया जा सके। उनके आलाचकों का मानना था कि यह दुनिया देखने के लिए उनका बहाना था। इस विश्वयात्रा के दौरान महाराज कालेकौए ने भारतवर्ष की पावन भूमि पर अपने पदचिन्ह छोड़कर पुण्य कमाया। २८ मई १८८१ को वे रंगून से कलकत्ता पहुंचे, जहां पर उन्होंने अलीपुर वन्य प्राणी उद्यान का दौरा किया। न्यायभूमि भारत की कानूनी प्रक्रिया को देखने के लिए उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक पूरा दिन व्यतीत किया। कलकत्ता से उन्होंने बंबई के लिए प्रस्थान किया। इस यात्रा के दौरान उन्होंने एलोरा गुफाओं जैसे पर्यटक स्थलों का दर्शन किया। बंबई पहुँच कर उन्होंने थोड़ी-बहुत खरीदारी की और प्रसिद्ध व्यवसायी श्री जमशेतजी जीजाभाई से भेंट की। इसके अलावा उन्होंने पारसी दख्मों और अरब स्टैलियन अस्तबल की यात्रा की। ७ जून को वे जहाज़ से मिस्र के लिए रवाना हो गए। श्री कालाकौआ भारत से बँधुआ मज़दूर आयत करना चाहते परन्तु उन्हें पता चला कि ऐसा करने के लिए उन्हें लन्दन में बर्तानिया हुकूमत से समझौता करना पड़ेगा। .

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