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थैलासीमिया

सूची थैलासीमिया

थेलेसीमिया (अंग्रेज़ी:Thalassemia) बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है। .

6 संबंधों: मैरो डोनर रजिस्ट्री इंडिया, सिकल-सेल रोग, स्टेम कोशिका, स्प्लेनोमेगाली, ऑस्टियोपोरोसिस, कोलकाता रेस्क्यू

मैरो डोनर रजिस्ट्री इंडिया

थैलेसीमिया थैलेसीमिया के लिये इसके अलावा इस रोग के रोगियों के मेरु रज्जु (बोन मैरो) ट्रांस्प्लांट हेतु अब भारत में भी बोनमैरो डोनर रजिस्ट्री खुल गई है। मैरो डोनर रजिस्ट्री इंडिया (एम.डी.आर.आई) में बोनमैरो दान करने वालों के बारे में सभी आवश्यक जानकारियां होगी जिससे देश के ही नहीं वरन विदेश से इलाज के लिए भारत आने वाले रोगियों का भी आसानी से उपचार हो सकेगा। यह केंद्र मुंबई में स्थापित किया जाएगा। ऐसे केंद्र वर्तमान में केवल अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में ही थे। ल्यूकेमिया और थैलीसीमिया के रोगी अब बोनमैरो या स्टेम सेल प्राप्त करने के लिए इस केंद्र से संपर्क कर मेरुरज्जु दान करने वालों के बारे में जानकारी के अलावा उनके रक्त तथा लार के नमूनों की जांच रिपोर्ट की जानकारी भी ले पाएंगे। जल्दी ही इसकी शाखाएं महानगरों में भी खुलने की योजना है। फिलहाल एम डीआर आई केंद्र मुंबई में काम करेगा किंतु जल्द ही दिल्ली, कोलकाता और बेंगलूर में भी इसकी शाखाएं खोलने की योजना है। इसका सबसे अधिक लाभ ऐसे रोगियों को होगा जिन्हें या तो अपने सग संबंधियों से बोनमैरो मिल नहीं पाती या उनकी बोनमैरो उनसे मेल नहीं खाती। डाक्टरों के मुताबिक देश में हर साल करीब 40000 रोगी बोनमैरो प्रत्यारोपण रजिस्ट्री की सुविधा नहीं होने के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं। मुंबई में एम डी आर आई केंद्र खोलने का महत्वपूर्ण निर्णय बाँम्बे हाँसि्पटल में हाल में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान लिया गया जिसमें बिर्टेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों के जाने.माने डाक्टरोंएवं विशषज्ञों तथा देशभर के सभी प्रमुख प्रत्यारोपण केंद्रों के प्रतिनधियों ने हिस्सा लिया। एम डी आर आई से संबद् डाक्टर अशोक कृपलानी ने कहा कि देश में ऐसे केंद्र की बहुत जरूरत थी क्योंकि भारतीय मूल के लोगों को बोनमैरो प्रत्यारोपण में दो बडी समस्याएं पेश आती है। पहली यह कि भारतीय मूल के लोग पश्चिमी मूल के लोगों से अनुवांशिक रूप से भिन्ना होते हैं इसलिए उनकी बोनमैरो पश्चिमी लोगों की बोनमैरो से आसानी से मेल नहीं खाती और दूसरा यह कि अगर किसी भारतीय की बोनमैरो मेल खा भी जाती है तो उसे विदेश जाना पड़ता है जिससे उसका एक से डेड़ करोड रूपये तक का खर्च आ जाता है A जो हरेक के बस की बात नहीं होती। डाक्टर कृपलानी ने कहा कि फिलहाल विश्व भर में एक करोड बीस लाख से अधिक लोग विभिन्ना केंद्रों में बोनमैरो दान करनेके लिए अपने नाम सुचीबद् करा चुके है। .

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सिकल-सेल रोग

सिकल-सेल रोग (SCD) या सिकल-सेल रक्ताल्पता या ड्रीपेनोसाइटोसिस एक आनुवंशिक रक्त विकार है जो ऐसी लाल रक्त कोशिकाओं के द्वारा चरितार्थ होता है जिनका आकार असामान्य, कठोर तथा हंसिया के समान होता है। यह क्रिया कोशिकाओं के लचीलेपन को घटाती है जिससे विभिन्न जटिलताओं का जोखिम उभरता है। यह हंसिया निर्माण, हीमोग्लोबिन जीन में उत्परिवर्तन की वजह से होता है। जीवन प्रत्याशा में कमी आ जाती है, एक सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं की औसत जीवन प्रत्याशा 48 और पुरुषों की 42 हो जाती है। सिकल सेल रोग, आमतौर पर बाल्यावस्था में उत्पन्न होता है और प्रायः ऐसे लोगों (या उनके वंशजों में) में पाया जाता है जो उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय भागों में पाए जाते हैं तथा जहां मलेरिया सामान्यतः पाया जाता है। अफ्रीका के उप सहारा क्षेत्र के एक तिहाई स्वदेशियों में यह पाया जाता है, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में जहां मलेरिया आम तौर पर पाया जाता है वहां जीवन का अस्तित्व तभी संभव है जब एक सिकल-कोशिका का जीन मौजूद हो.

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स्टेम कोशिका

'''मानव भ्रूण कोशिकाएं''' ए: अभी तक विभेदित नहीं हुई कोशिका समूह बी: तंत्रिका कोशिका स्टेम कोशिका या मूल कोशिका (अंग्रेज़ी:Stem Cell) ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता मिलती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ६ जनवरी २०१० वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार यदि हृदय की कोशिकाएं खराब हो गईं, तो इनकी मरम्मत स्टेम कोशिका द्वारा की जा सकती है। इसी प्रकार यदि आंख की कॉर्निया की कोशिकाएं खराब हो जायें, तो उन्हें भी स्टेम कोशिकाओं द्वारा विकसित कर प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इसी प्रकार मानव के लिए अत्यावश्यक तत्व विटामिन सी को बीमारियों के इलाज के उददेश्य से स्टेम कोशिका पैदा करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।हिन्दुस्तान लाइव। २५ दिसम्बर २००९। लंदन-एजेंसी अपने मूल सरल रूप में स्टेम कोशिका ऐसे अविकसित कोशिका हैं जिनमें विकसित कोशिका के रूप में विशिष्टता अर्जित करने की क्षमता होती है। क्लोनन के साथ जैव प्रौद्योगिकी ने एक और क्षेत्र को जन्म दिया है, जिसका नाम है कोशिका चिकित्सा। इसके अंतर्गत ऐसी कोशिकाओं का अध्ययन किया जाता है, जिसमें वृद्धि, विभाजन और विभेदन कर नए ऊतक बनाने की क्षमता हो। सर्वप्रथम रक्त बनाने वाले ऊतकों से इस चिकित्सा का विचार व प्रयोग शुरु हुआ था। अस्थि-मज्जा से प्राप्त ये कोशिकाएं, आजीवन शरीर में रक्त का उत्पादन करतीं हैं और कैंसर आदि रोगों में इनका प्रत्यारोपण कर पूरी रक्त प्रणाली को, पुनर्संचित किया जा सकता है। ऐसी कोशिकाओं को ही स्टेम कोशिका कहते हैं। इन कोशिकाओं का स्वस्थ कोशिकाओं को विकसित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। १९६० में कनाडा के वैज्ञानिकों अर्नस्ट.ए.मुकलॉक और जेम्स.ई.टिल की खोज के बाद स्टेम कोशिका के प्रयोग को बढ़ावा मिला। स्टेम कोशिका को वैज्ञानिक प्रयोग के लिए स्नोत के आधार पर भ्रूणीय, वयस्क तथा कॉर्डब्लड में बांटा जाता है। वयस्क स्टेम कोशिकाओं का मनुष्य में सुरक्षित प्रयोग लगभग ३० वर्षो के लिए किया जा सकता है। अधिकांशत: स्टेम सेल कोशिकाएं भ्रूण से प्राप्त होती है। ये जन्म के समय ही सुरक्षित रखनी होती हैं। हालांकि बाद में हुए किसी छोटे भाई या बहन के जन्म के समय सुरक्षित रखीं कोशिकाएं भी सहायक सिद्ध हो सकती हैं। .

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स्प्लेनोमेगाली

प्लीहा (स्प्लीन) की वृद्धि को स्प्लेनोमेगाली (प्लीहावृद्धि या तिल्ली का बढ़ना) कहते हैं। प्लीहा या तिल्ली आम तौर पर मानव पेट के बाएँ ऊपरी चतुर्भाग (एलयूक्यू) में स्थित होती है। यह हाइपरस्प्लेनिज्म के चार प्रमुख संकेतों में से एक है, अन्य तीन संकेत हैं - साइटोपेनिया, सामान्य या हाइपरप्लास्टिक अस्थि मज्जा और स्प्लेनेक्टोमी की प्रतिक्रिया.

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ऑस्टियोपोरोसिस

अस्थिसुषिरता या ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) हड्डी का एक रोग है जिससे फ़्रैक्चर का ख़तरा बढ़ जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस में अस्थि खनिज घनत्व (BMD) कम हो जाता है, अस्थि सूक्ष्म-संरचना विघटित होती है और अस्थि में असंग्रहित प्रोटीन की राशि और विविधता परिवर्तित होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस को DXA के मापन अनुसार अधिकतम अस्थि पिंड (औसत 20 वर्षीय स्वस्थ महिला) से नीचे अस्थि खनिज घनत्व 2.5 मानक विचलन के रूप में परिभाषित किया है; शब्द "ऑस्टियोपोरोसिस की स्थापना" में नाज़ुक फ़्रैक्चर की उपस्थिति भी शामिल है। ऑस्टियोपोरोसिस, महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद सर्वाधिक सामान्य है, जब उसे रजोनिवृत्तोत्तर ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं, पर यह पुरुषों में भी विकसित हो सकता है और यह किसी में भी विशिष्ट हार्मोन संबंधी विकार तथा अन्य दीर्घकालिक बीमारियों के कारण या औषधियों, विशेष रूप से ग्लूकोकार्टिकॉइड के परिणामस्वरूप हो सकता है, जब इस बीमारी को स्टेरॉयड या ग्लूकोकार्टिकॉइड-प्रेरित ऑस्टियोपोरोसिस (SIOP या GIOP) कहा जाता है। उसके प्रभाव को देखते हुए नाज़ुक फ़्रैक्चर का ख़तरा रहता है, हड्डियों की कमज़ोरी उल्लेखनीय तौर पर जीवन प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। ऑस्टियोपोरोसिस को जीवन-शैली में परिवर्तन और कभी-कभी दवाइयों से रोका जा सकता है; हड्डियों की कमज़ोरी वाले लोगों के उपचार में दोनों शामिल हो सकती हैं। जीवन-शैली बदलने में व्यायाम और गिरने से रोकना शामिल हैं; दवाइयों में कैल्शियम, विटामिन डी, बिसफ़ॉसफ़ोनेट और कई अन्य शामिल हैं। गिरने से रोकथाम की सलाह में चहलक़दमी वाली मांसपेशियों को तानने के लिए व्यायाम, ऊतक-संवेदी-सुधार अभ्यास; संतुलन चिकित्सा शामिल की जा सकती हैं। व्यायाम, अपने उपचयी प्रभाव के साथ, ऑस्टियोपोरोसिस को उसी समय बंद या उलट सकता है। .

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कोलकाता रेस्क्यू

कोलकाता रेस्क्यू जैक प्रेगेर द्वारा 1980 में स्थापित की गई कोलकाता, भारत में स्थित ब्रिटेन से दान प्राप्त करने वाली समाज-सेवी संस्था है। यह पश्चिम बंगाल में वंचित लोगों के लिए चिकित्सा, शिक्षा और सहायता सेवाओं को चलाती है। यह लोगों को हस्तशिल्प भी बनाने और बेचने के लिए प्रशिक्षित करती है। .

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थैलैसीमिया, थैलेसीमिया, थैलीसीमिया

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