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तेलंगा खड़िया

सूची तेलंगा खड़िया

तेलंगा खड़िया का जन्म 9 फ़रवरी सन् 1806 ई० को झारखंड के गुमला जिले के मुरगू गाँव में हुआ था। वह एक साधारण किसान का बेटा था। उनके पिता का नाम ठुईया खड़िया तथा माँ का नाम पेती खड़िया था तथा इनकी पत्नी का नाम रत्नी खड़िया था। उनके दादा का नाम सिरू खड़िया तथा दादी का नाम बुच्ची खड़िया था। वे मुरगू ग्राम के जमींदार तथा पाहन परिवार के थे। उनके दादा सिरू खड़िया धार्मिक, सरल तथा साहित्यिक विचार के व्यक्ति थे। वीर साहसी और अधिक बोलने वाले को खड़िया भाषा में तेब्बलंगा कहते हैं। इन्हें सरना धर्म पर अटूट विश्वास था। एक किसान होने के साथ-साथ ये अस्त्र-शस्त्र चलाना भी जानते थे तथा अपने लोगों को इसकी शिक्षा भी देते थे। .

2 संबंधों: झारखण्ड, खड़िया विद्रोह

झारखण्ड

झारखण्ड यानी 'झार' या 'झाड़' जो स्थानीय रूप में वन का पर्याय है और 'खण्ड' यानी टुकड़े से मिलकर बना है। अपने नाम के अनुरुप यह मूलतः एक वन प्रदेश है जो झारखंड आंदोलन के फलस्वरूप सृजित हुआ। प्रचुर मात्रा में खनिज की उपलबध्ता के कारण इसे भारत का 'रूर' भी कहा जाता है जो जर्मनी में खनिज-प्रदेश के नाम से विख्यात है। 1930 के आसपास गठित आदिवासी महासभा ने जयपाल सिंह मुंडा की अगुआई में अलग ‘झारखंड’ का सपना देखा.

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खड़िया विद्रोह

तेलंगा खड़िया के नेतृत्व में खड़िया विद्रोह 1880 में हुआ। यह आंदोलन अपनी माटी की रक्षा के लिए शुरू हुआ। जंगल की जमीन से अंग्रेजों को हटाने के लिए युवा वर्ग को गदका, तीर और तलवार चलाने की शिक्षा दी गई। तेलंगा की पत्नी रत्नी खड़िया ने हर मोर्चे पर पति का साथ दिया। रत्नी ने कई जगह अकेले ही नेतृत्व संभालते हुए अंग्रेजों से लोहा लिया। 23 अप्रैल 1880 को अंग्रेजों के दलाल बोधन सिंह ने गोली मारकर तेलंगा खड़िया की हत्या कर दी। उनकी हत्या के बाद रत्नी खड़िया ने पति के अधूरे कार्यां को पूरा किया। वह अपनी सादगी, ईमानदारी और सत्यवादिता से लोगों में जीवन का संचार करती रहीं। .

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तेलंगा खरिया

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