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तारिम द्रोणी

सूची तारिम द्रोणी

तारिम द्रोणी अंतरिक्ष से तारिम द्रोणी की तस्वीर तारिम क्षेत्र में मिला खरोष्ठी में लिखा एक काग़ज़ का टुकड़ा (दूसरी से पाँचवी सदी ईसवी) तारिम द्रोणी या तारिम बेसिन मध्य एशिया में स्थित एक विशाल बंद जलसंभर इलाका है जिसका क्षेत्रफल ९०६,५०० वर्ग किमी है (यानि सम्पूर्ण भारत का लगभग एक-चौथाई क्षेत्रफल)। वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था में तारिम द्रोणी चीनी जनवादी गणराज्य द्वारा नियंत्रित श़िंजियांग उइग़ुर स्वराजित प्रदेश नाम के राज्य में स्थित है। तारिम द्रोणी की उत्तरी सीमा तियाँ शान पर्वत श्रंखला है और दक्षिणी सीमा कुनलुन पर्वत श्रंखला है। कुनलुन पर्वत श्रंखला तारिम द्रोणी के इलाक़े को दक्षिण में स्थित तिब्बत के पठार से विभाजित करती है। तारिम द्रोणी का अधिकतर क्षेत्र रेगिस्तानी है और हलकी आबादी वाला है। यहाँ ज़्यादातर लोग उइग़ुर और अन्य तुर्की जातियों के हैं। .

32 संबंधों: टकलामकान, तारिम नदी, तिब्बत का पठार, तुषारी भाषाएँ, तुषारी लोग, नूडल, पूर्व तुर्किस्तान, बोस्तेन झील, मनाली, हिमाचल प्रदेश, मोदू चानयू, यारकन्द ज़िला, युएझ़ी लोग, रेशम मार्ग, शायदुल्ला, शिंजियांग, शक्सगाम नदी, हान राजवंश, हेशी गलियारा, ज़ुन्गारिया, वाख़ान, ख़ोतान, आक़्सू विभाग, इंदिरा कोल, कनिष्क, क़ाराक़ोरम दर्रा, काराबुराँन, काश्गर, काइदू नदी, किज़िल गुफ़ाएँ, कुनलुन पर्वत, कूचा राज्य, उइग़ुर

टकलामकान

अंतरिक्ष से ली गई टकलामकान की एक तस्वीर टकलामकान रेगिस्तान का एक दृश्य नक़्शे में टकलामकान टकलामकान मरुस्थल (उइग़ुर:, तेकलीमाकान क़ुम्लुक़ी) मध्य एशिया में स्थित एक रेगिस्तान है। इसका अधिकाँश भाग चीन द्वारा नियंत्रित श़िंजियांग प्रांत में पड़ता है। यह दक्षिण से कुनलुन पर्वत शृंखला, पश्चिम से पामीर पर्वतमाला और उत्तर से तियन शान की पहाड़ियों द्वारा घिरा हुआ है। .

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तारिम नदी

तारिम नदी के जलसम्भर क्षेत्र का नक़्शा तारिम नदी (उईग़ुर:, तारिम दरियासी; चीनी: 塔里木河, तालीमु हे; अंग्रेजी: Tarim River) चीन के शिंजियांग प्रांत की मुख्य नदी है। इसी नदी के नाम पर महान तारिम द्रोणी का नाम पड़ा है, जो मध्य एशिया में कुनलुन पर्वतों और तियान शान पर्वतों के बीच और तिब्बत के पठार से उत्तर में स्थित है। १,३२१ किलोमीटर लम्बा यह दरिया चीन की सबसे लम्बी नदी है जो समुद्र में नहीं बहती, यानि जो एक बन्द जलसम्भर वाली नदी है।, Yue-man Yeung, Jianfa Shen, Chinese University Press, 2004, ISBN 978-962-996-157-2,...

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तिब्बत का पठार

तिब्बत का पठार हिमालय पर्वत शृंखला से लेकर उत्तर में टकलामकान रेगिस्तान तक फैला हुआ है तिब्बत का बहुत सा इलाक़ा शुष्क है तिब्बत का पठार (तिब्बती: བོད་ས་མཐོ།, बोड सा म्थो) मध्य एशिया में स्थित एक ऊँचाई वाला विशाल पठार है। यह दक्षिण में हिमालय पर्वत शृंखला से लेकर उत्तर में टकलामकान रेगिस्तान तक विस्तृत है। इसमें चीन द्वारा नियंत्रित बोड स्वायत्त क्षेत्र, चिंग हई, पश्चिमी सीश्वान, दक्षिण-पश्चिमी गांसू और उत्तरी यून्नान क्षेत्रों के साथ-साथ भारत का लद्दाख़ इलाक़ा आता है। उत्तर-से-दक्षिण तक यह पठार १,००० किलोमीटर लम्बा और पूर्व-से-पश्चिम तक २,५०० किलोमीटर चौड़ा है। यहाँ की औसत ऊँचाई समुद्र से ४,५०० मीटर (यानी १४,८०० फ़ुट) है और विशव के ८,००० मीटर (२६,००० फ़ुट) से ऊँचे सभी १४ पर्वत इसी क्षेत्र में या इसे इर्द-गिर्द पाए जाते हैं। इस इलाक़े को कभी-कभी "दुनिया की छत" कहा जाता है। तिब्बत के पठार का कुल क्षेत्रफल २५ लाख वर्ग किमी है, यानी भारत के क्षेत्रफल का ७५% और फ़्रांस के समूचे देश का चौगुना। .

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तुषारी भाषाएँ

एक तख़्ती पर ब्राह्मी लिपि में लिखी हुई तुषारी 'बी' भाषा (कूचा, आक़्सू विभाग, शिनजियांग प्रान्त, चीन से मिली) तुषारी पांडुलिपि का अंश तुषारी या तुख़ारी (अंग्रेज़ी: Tocharian, टोचेरियन; यूनानी: Τόχαροι, तोख़ारोई) मध्य एशिया की तारिम द्रोणी में बसने वाले तुषारी लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की भाषाएँ थीं जो समय के साथ विलुप्त हो गई। एक तुर्की ग्रन्थ में तुषारी को 'तुरफ़ानी भाषा' भी बुलाया गया था। इतिहासकारों का मानना है कि जब तुषारी-भाषी क्षेत्रों में तुर्की भाषाएँ बोलने वाली उईग़ुर लोगों का क़ब्ज़ा हुआ तो तुषारी भाषाएँ ख़त्म हो गई। तुषारी की लिपियाँ भारत की ब्राह्मी लिपि पर आधारित थीं और उन्हें तिरछी ब्राह्मी (Slanted Brahmi) कहा जाता है।, Florian Coulmas, Wiley-Blackwell, 1999, ISBN 978-0-631-21481-6,...

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तुषारी लोग

तारिम द्रोणी में स्थित क़िज़िल गुफ़ाओं में तुषारियों की छठी सदी में बनी तस्वीर - माना जाता है कि इनमें से बहुत के सुनहरे बाल और बिलौरी आँखें होती थीं तुषारी या तुख़ारी (अंग्रेज़ी: Tocharian, टोचेरियन) प्राचीन काल में मध्य एशिया में स्थित तारिम द्रोणी में बसने वाली एक जाति थी। यह हिन्द-यूरोपीय भाषाएँ बोलने वाले सब से पूर्वतम लोग थे। चीनी स्रोतों के अनुसार इनका युएझ़ी लोगों से गहरा सम्बन्ध था। इनकी उत्तरी शियोंगनु लोगों से बहुत झड़पें हुई, जिसके बाद इन्होनें तारिम द्रोणी का इलाक़ा छोड़ दिया। ८०० ईसवी के बाद इस क्षेत्र में इस क्षेत्र में उइग़ुर लोग के आकर बसने पर यहाँ हिन्द-यूरोपीय भाषाएँ विलुप्त हो गई और तुर्की भाषाएँ बोली जाने लगी। अफ़्ग़ानिस्तान के तख़ार प्रांत का नाम इसी जाति पर पड़ा है। इनका ज़िक्र संस्कृत ग्रंथों में बहुत होता है। अथर्ववेद में इन्हें शक लोगों और बैक्ट्रिया के लोगों से सम्बंधित बताया गया है।, Vasudev Sharan Agrawal, Prithvi Prakashan, 1963,...

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नूडल

ताइवान के लुकांग शहर में बनते हुए मीसुआ नूडल्ज़ नूड्ल्ज़ गेहूं, चावल, बाजरे या अन्य क़िस्म के आटे से बनाकर सुखाये गए पतले, लम्बे रेशे होते हैं जिन्हें उबलते हुए पाने या तेल में डालकर खाने के लिए पकाया जाता है। जब नूड्ल्ज़ सूखे होते हैं तो अक्सर तीली की तरह सख़्त होतें हैं लेकिन उबालने के बाद मुलायम पड़कर खाने योग्य हो जाते हैं। नूड्ल्ज़ के एक रेशे को "नूड्ल" कहा जाता है। .

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पूर्व तुर्किस्तान

पूर्वी तुर्किस्तान (उइग़ुर:, शर्क़ी तुर्किस्तान; अंग्रेज़ी: East Turkestan) मध्य एशिया का एक ऐतिहासिक इलाक़ा है जिसमें तारिम द्रोणी और उइग़ुर लोगों की पारम्परिक मातृभूमि के अन्य क्षेत्र सम्मिलित हैं।, G. Patrick March, pp.

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बोस्तेन झील

बोस्तेन झील (चीनी: 博斯騰湖, बोसितेंग हू, Bosten Lake) या बाग़राश झील (उईग़ुर:, बाग़राश कोली, Baghrash Lake) मध्य एशिया में जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग प्रान्त के बायिनग़ोलिन मंगोल स्वशासित विभाग में स्थित मीठे पानी की एक झील है। यह तारिम द्रोणी के पूर्वोत्तरी छोर पर स्थित है और शिंजियांग प्रान्त की सबसे बड़ी झील है। बोस्तेन झील काराशहर (यान्ची) से २० किमी पूर्व में और बायिनग़ोलिन विभाग की प्रशासनिक राजधानी कोरला से ५७ किमी पूर्वोत्तर में स्थित है। काइदू नदी इस झील में पानी लाती है और झील में पहुँचने वाला ८३% जल इसी एक नदी से आता है। झील में बहुत-सी मछलियाँ रहती है और कुछ स्थानीय निवासी उन्हें व्यावसायिक रूप से पकड़ते हैं। .

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मनाली, हिमाचल प्रदेश

मनाली (ऊंचाई 1,950 मीटर या 6,398 फीट) कुल्लू घाटी के उत्तरी छोर के निकट व्यास नदी की घाटी में स्थित, भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य की पहाड़ियों का एक महत्वपूर्ण पर्वतीय स्थल (हिल स्टेशन) है। प्रशासकीय तौर पर मनाली कुल्लू जिले का एक हिस्सा है, जिसकी जनसंख्या लगभग 30,000 है। यह छोटा सा शहर लद्दाख और वहां से होते हुए काराकोरम मार्ग के आगे तारीम बेसिन में यारकंद और ख़ोतान तक के एक अतिप्राचीन व्यापार मार्ग का शुरुआत था। मनाली और उसके आस-पास के क्षेत्र भारतीय संस्कृति और विरासत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसे सप्तर्षि या सात ऋषियों का घर बताया गया है। .

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मोदू चानयू

मोदू के शासनकाल के आरम्भ में शियोंगनु साम्राज्य का विस्तार मोदू चानयू (चीनी: 冒頓單于, मंगोल: Модун шаньюй, अंग्रेज़ी: Modu Chanyu) मध्य एशिया, मंगोलिया और उत्तरी चीन के कई इलाक़ों पर प्राचीनकाल में अधिकार रखने वाले शियोंगनु लोगों का एक चानयू (सम्राट) था। मोदू को शियोंगनु साम्राज्य का निर्माता भी कहा जाता है और उसका शासनकाल २०९ ईसापूर्व से १७४ ईसापूर्व तक चला। मोदू ने अपने अधीन मंगोलिया के स्तेपी क्षेत्र के ख़ानाबदोश क़बीलों को संगठित किया और चीन के चिन राजवंश के लिए ख़तरा बन गया। उसका शियोंगनु साम्राज्य पूर्व में लियाओ नदी से लेकर पश्चिम में पामीर पर्वतों तक और उत्तर में साइबेरिया की बायकल झील तक विस्तृत था। .

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यारकन्द ज़िला

चीन के शिंजियांग प्रांत के काश्गर विभाग (पीला रंग) के अन्दर स्थित यारकन्द ज़िला (गुलाबी रंग) यारकन्द शहर में एक सड़क यारकन्द ज़िला (उइग़ुर:, चीनी: 莎车县, अंग्रेज़ी: Yarkand) चीन के शिंजियांग प्रांत के काश्गर विभाग में स्थित एक ज़िला है। इसका क्षेत्रफल ८,९६९ वर्ग किमी है और सन् २००३ की जनगणना में इसकी आबादी ३,७३,४९२ अनुमानित की गई थी। इसकी राजधानी यारकंद नाम का ही एक ऐतिहासिक शहर है जिसका भारतीय उपमहाद्वीप के साथ गहरा सांस्कृतिक और व्यापारिक सम्बन्ध रहा है। यारकन्द तारिम द्रोणी और टकलामकान रेगिस्तान के दक्षिणी छोर पर स्थित एक नख़लिस्तान (ओएसिस) क्षेत्र है जो अपना जल कुनलुन पर्वतों से उत्तर की ओर उतरने वाली यारकन्द नदी से प्राप्त करता है। इसके मरूद्यान (ओएसिस) का क्षेत्रफल लगभग ३,२१० वर्ग किमी है लेकिन कभी इस से ज़्यादा हुआ करता था। तीसरी सदी ईस्वी में यहाँ रेगिस्तान के फैलने से यह उपजाऊ इलाक़ा थोड़ा घट गया। यारकन्द में अधिकतर उइग़ुर लोग बसते हैं। यहाँ कपास, गेंहू, मक्की, अनार, ख़ुबानी, अख़रोट और नाशपाती उगाए जाते हैं। इस ज़िले के ऊँचे इलाक़ों में याक और भेड़ पाले जाते हैं। यहाँ की धरती के नीचे बहुत से मूल्यवान खनिज मौजूद हैं, जैसे की पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, सोना, ताम्बा, सीसा और कोयला। .

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युएझ़ी लोग

समय के साथ मध्य एशिया में युएझ़ी लोगों का विस्तार, १७६ ईसापूर्व से ३० ईसवी तक यूइची (Yue-Tche) या युएझ़ी, युएज़ी या रुझ़ी (अंग्रेज़ी: Yuezhi, चीनी: 月支, 'झ़' के उच्चारण पर ध्यान दें, यह 'झ' से भिन्न है) प्राचीन काल में मध्य एशिया में बसने वाली एक जाति थी। माना जाता है कि यह एक हिन्द-यूरोपीय लोग थे जो शायद तुषारी लोगों से सम्बंधित रहें हों। शुरू में यह तारिम द्रोणी के पूर्व के शुष्क घास के मैदानी स्तेपी इलाक़े के वासी थे, जो आधुनिक काल में चीन के शिंजियांग और गांसू प्रान्तों में पड़ता है। समय के साथ वे मध्य एशिया के अन्य इलाक़ों, बैक्ट्रिया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्रों में फैल गए। संभव है कि भारत के कुशान साम्राज्य की स्थापना में भी उनका हाथ रहा हो।, Madathil Mammen Ninan, 2008, ISBN 978-1-4382-2820-4,...

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रेशम मार्ग

रेशम मार्ग का मानचित्र - भूमार्ग लाल रंग में हैं और समुद्री मार्ग नीले रंग में रेशम मार्ग प्राचीनकाल और मध्यकाल में ऐतिहासिक व्यापारिक-सांस्कृतिक मार्गों का एक समूह था जिसके माध्यम से एशिया, यूरोप और अफ्रीका जुड़े हुए थे। इसका सबसे जाना-माना हिस्सा उत्तरी रेशम मार्ग है जो चीन से होकर पश्चिम की ओर पहले मध्य एशिया में और फिर यूरोप में जाता था और जिस से निकलती एक शाखा भारत की ओर जाती थी। रेशम मार्ग का जमीनी हिस्सा ६,५०० किमी लम्बा था और इसका नाम चीन के रेशम के नाम पर पड़ा जिसका व्यापार इस मार्ग की मुख्य विशेषता थी। इसके माध्यम मध्य एशिया, यूरोप, भारत और ईरान में चीन के हान राजवंश काल में पहुँचना शुरू हुआ। रेशम मार्ग का चीन, भारत, मिस्र, ईरान, अरब और प्राचीन रोम की महान सभ्यताओं के विकास पर गहरा असर पड़ा। इस मार्ग के द्वारा व्यापार के आलावा, ज्ञान, धर्म, संस्कृति, भाषाएँ, विचारधाराएँ, भिक्षु, तीर्थयात्री, सैनिक, घूमन्तू जातियाँ, और बीमारियाँ भी फैलीं। व्यापारिक नज़रिए से चीन रेशम, चाय और चीनी मिटटी के बर्तन भेजता था, भारत मसाले, हाथीदांत, कपड़े, काली मिर्च और कीमती पत्थर भेजता था और रोम से सोना, चांदी, शीशे की वस्तुएँ, शराब, कालीन और गहने आते थे। हालांकि 'रेशम मार्ग' के नाम से लगता है कि यह एक ही रास्ता था वास्तव में बहुत कम लोग इसके पूरे विस्तार पर यात्रा करते थे। अधिकतर व्यापारी इसके हिस्सों में एक शहर से दूसरे शहर सामान पहुँचाकर अन्य व्यापारियों को बेच देते थे और इस तरह सामान हाथ बदल-बदलकर हजारों मील दूर तक चला जाता था। शुरू में रेशम मार्ग पर व्यापारी अधिकतर भारतीय और बैक्ट्रियाई थे, फिर सोग़दाई हुए और मध्यकाल में ईरानी और अरब ज़्यादा थे। रेशम मार्ग से समुदायों के मिश्रण भी पैदा हुए, मसलन तारिम द्रोणी में बैक्ट्रियाई, भारतीय और सोग़दाई लोगों के मिश्रण के सुराग मिले हैं।, Susan Whitfield, British Library, pp.

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शायदुल्ला

शायदुल्ला या शाहीदुल्लाह (उइग़ुर:; अंग्रेज़ी: Xaidulla या Shahidulla) काराकाश नदी के किनारे स्थित एक स्थान है। यहाँ भारत के लद्दाख़ क्षेत्र से काराकोरम दर्रा पार करके पूर्व तुर्किस्तान में तारिम द्रोणी के शहरों को आने वाले व्यापारिक कारवान ठहरकर खेमे लगाया करते थे। वर्तमान काल में राजनैतिक दृष्टि से यह जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग राज्य के दक्षिणपश्चिमी भाग में पड़ता है और काश्गर से तिब्बत जाने वाली सड़क के किनारे स्थित है। यह मज़ार नामक बस्ती से २५ किमी पूर्व, बाज़ार दारा से १३९ किमी पश्चिम और काराकोरम दर्रे से ११० किमी उत्तर में है।, P. L. Bhola, R.B.S.A. Publishers, 1986,...

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शिंजियांग

चीन का नक़्शा, शिंजियांग गहरे लाल रंग में शिन्जियांग में काराकोरम राजमार्ग के नज़दीक का दृश्य तियांची सरोवर बुरचिन ज़िले में एक नदी शिंजियांग (उइग़ुर:, अंग्रेज़ी: Xinjiang, चीनी: 新疆) जनवादी गणराज्य चीन का एक स्वायत्तशासी क्षेत्र है। ये एक रेगिस्तानी और शुष्क इलाक़ा है इसलिए इस की आबादी बहुत कम है। शिंजियांग की सरहदें दक्षिण में तिब्बत और भारत, दक्षिण-पूर्व में चिंग हई और गांसू, पूर्व में मंगोलिया, उत्तर में रूस और पश्चिम में क़ाज़क़स्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से मिलती हैं। भारत का अक्साई चिन का इलाका भी, जिसपर चीन का क़ब्ज़ा है, प्रशासनिक रूप से शिंजियांग में शामिल है।, S. Frederick Starr, M.E. Sharpe, 2004, ISBN 978-0-7656-1318-9 शिंजियांग की राजधानी उरुमची नाम का शहर है, जबकि इसका सबसे बड़ा नगर काश्गर है। .

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शक्सगाम नदी

शक्सगाम नदी काराकोरम पर्वतों के यहाँ दिख रहे उत्तरपूर्वी क्षेत्र से उत्पन्न होती है शक्सगाम नदी (चीनी: 沙克斯干河, अंग्रेजी: Shaksgam River) सुदूर उत्तरी कश्मीर के काराकोरम पर्वतों से उभरने वाली एक नदी है जो यारकन्द नदी की एक उपनदी भी है। शक्सगाम नदी को केलेचिन नदी और मुज़ताग़ नदी के नामों से भी जाना जाता है। यह काराकोरम शृंखला की गाशेरब्रुम, उरदोक, स्ताग़र, सिन्ग़ी और क्याग़र हिमानियों (ग्लेशियरों) से शुरू होती है और फिर शक्सगाम वादी में काराकोरम शृंखला के साथ-साथ पश्चिमोत्तरी दिशा में चलती है। इसमें शिमशाल ब्रल्दु नदी और फिर ओप्रांग नदी का विलय होता है और इन दोनों संगमों के बीच में शक्सगाम नदी पाकिस्तान और चीन के आपसी समझौते के अनुसार उन दोनों देशों के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा है। भारत इस बात से पूरा इनकार करता है और इस पूरे क्षेत्र को अपने जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा मानता है। सर्दियों में पास के शिमशाल गाँव के लोग इस क्षेत्र का प्रयोग अपने मवेशी चराने के लिए करते हैं और यह तारिम द्रोणी में स्थित इकलौता पाकिस्तान-नियंत्रित इलाक़ा है।, Sharad Singh Negi, Indus Publishing, 1991, ISBN 978-81-85182-61-2,...

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हान राजवंश

चीन में हान साम्राज्य का नक़्शा एक मकबरे में मिला हानवंश के शासनकाल में निर्मित लैम्प हान काल में जारी किया गया एक वुशु (五銖) नाम का सिक्का हान काल में बना कांसे के गियर (दांतदार पहिये) बनाने का एक साँचा हान राजवंश (चीनी: 漢朝, हान चाओ; अंग्रेज़ी: Han Dynasty) प्राचीन चीन का एक राजवंश था जिसने चीन में २०६ ईसापूर्व से २२० ईसवी तक राज किया। हान राजवंश अपने से पहले आने वाले चिन राजवंश (राजकाल २२१-२०७ ईसापूर्व) को सत्ता से बेदख़ल करके चीन के सिंहासन पर विराजमान हुआ और उसके शासनकाल के बाद तीन राजशाहियों (२२०-२८० ईसवी) का दौर आया। हान राजवंश की नीव लिऊ बांग नाम के विद्रोही नेता ने रखी थी, जिसका मृत्यु के बाद औपचारिक नाम बदलकर सम्राट गाओज़ू रखा गया। हान काल के बीच में, ९ ईसवी से २३ ईसवी तक, शीन राजवंश ने सत्ता हथिया ली थी, लेकिन उसके बाद हान वंश फिर से सत्ता पकड़ने में सफल रहा। शीन राजवंश से पहले के हान काल को पश्चिमी हान राजवंश कहा जाता है और इसके बाद के हान काल को पूर्वी हान राजवंश कहा जाता है। ४०० से अधिक वर्षों का हान काल चीनी सभ्यता का सुनहरा दौर माना जाता है। आज तक भी चीनी नसल अपने आप को 'हान के लोग' या 'हान के बेटे' बुलाती है और हान चीनी के नाम से जानी जाती है। इसी तरह चीनी लिपि के भावचित्रों को 'हानज़ी' (यानि 'हान के भावचित्र') बुलाया जाता है।, Xiaoxiang Li, LiPing Yang, Asiapac Books Pte Ltd, 2005, ISBN 978-981-229-394-7,...

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हेशी गलियारा

इस नक़्शे में चीन का आधुनिक गांसू प्रांत लाल रंग में है; इस प्रांत के मध्य और पश्चिमी हिस्से ऐतिहासिक हेशी गलियारे के हिस्से थे हेशी गलियारा या गांसू गलियारा (चीनी: 河西走廊, हेशी ज़ोऊलांग; अंग्रेजी: Hexi Corridor) आधुनिक चीन के गांसू प्रांत में स्थित एक ऐतिहासिक मार्ग है जो उत्तरी रेशम मार्ग में उत्तरी चीन को तारिम द्रोणी और मध्य एशिया से जोड़ता था। इस मार्ग के दक्षिण में बहुत ऊँचा और वीरान तिब्बत का पठार है और इसके उत्तर में गोबी रेगिस्तान और फिर मंगोलिया के इस क्षेत्र के शुष्क पहाड़ हैं। इस गलियारे में एक के बाद एक नख़लिस्तानों (ओएसिस) की कड़ियाँ मिलती हैं जहाँ छोटे-छोटे क़स्बे हुआ करते थे। यहाँ से गुज़रते व्यापारी और अन्य यात्री इन जगहों पर अपने और अपने घोड़े-ऊँटों के लिए दाना-पानी प्राप्त करते थे और ठहर भी सकते थे।, David Leffman, Simon Lewis, Jeremy Atiyah, Mark South, Penguin, 2008, ISBN 978-1-84353-872-1,...

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ज़ुन्गारिया

चीन के शिनजियांग प्रांत का उत्तरी भाग (लाल रंग) ऐतिहासिक ज़ुन्गारिया क्षेत्र का अधिकाँश भाग था; नीला भाग तारिम द्रोणी का क्षेत्र है ज़ुन्गारिया (Dzungaria या Zungaria) मध्य एशिया का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है जिसमें चीन द्वारा नियंत्रित शिनजियांग प्रांत का उत्तरी भाग, मंगोलिया का कुछ पश्चिमी अंश और काज़ाख़स्तान का थोड़ा पूर्वी हिस्सा शामिल है। कुल मिलकर ऐतिहासिक ज़ुन्गारिया का क्षेत्रफल लगभग ७,७७,००० वर्ग किमी है। .

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वाख़ान

वाख़ान का एक नज़ारा वाख़ान, स्थानीय नक़्शे में वाख़ान (पश्तो और फ़ारसी) सुदूर उत्तर-पूर्वी अफ़्ग़ानिस्तान में एक अत्यंत पर्वतीय और दुर्गम क्षेत्र है जहाँ काराकोरम और पामीर पर्वत शृंखलाएं आकर मिलती हैं। वाख़ान अफ़्ग़ानिस्तान के बदख़्शान प्रांत में एक ज़िले का नाम भी है। नक़्शे पर वाख़ान अफ़्ग़ानिस्तान के मुख्य भाग से एक ऊँगली की तरह पूर्व को निकलकर चीन के शिनजियांग प्रान्त को छूता है। यह तंग सा इलाका प्राचीनकाल में तारिम द्रोणी जाने वाले यात्रियों का मार्ग हुआ करता था। इसी क्षेत्र में उन धाराओं की भी शुरुआत होती है जो आगे चलकर मशहूर आमू दरिया बन जाती हैं।, David Loyn, Macmillan, 2009, ISBN 978-0-230-61403-1,...

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ख़ोतान

ख़ोतान मस्जिद के सामने का नज़ारा ख़ोतान या होतान (उईग़ुर:, ख़ोतेन; चीनी: 和田, हेतियान; अंग्रेजी: Hotan या Khotan) मध्य एशिया में चीन के शिनजियांग प्रांत के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित एक शहर है जो ख़ोतान विभाग की राजधानी भी है। इसकी आबादी सन् २००६ में १,१४,००० अनुमानित की गई थी। ख़ोतान तारिम द्रोणी में कुनलुन पर्वतों से ठीक उत्तर में स्थित है। कुनलुन शृंखला में ख़ोतान पहुँचने के लिए तीन प्रमुख पहाड़ी दर्रे हैं - संजु दर्रा, हिन्दु-ताग़ दर्रा और इल्ची दर्रा - जिनके ज़रिये ख़ोतान हज़ारों सालों से भारत के लद्दाख़ क्षेत्र से व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध बनाए हुए था।, James Bell, A. Fullarton and co., 1831,...

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आक़्सू विभाग

चीन के शिंजियांग प्रांत (नारंगी रंग) में स्थित आक़्सू विभाग (लाल रंग) बाईचेंग (७) उचतुरपान (८) आवात (९) कालपिन आक़्सू विभाग (उईग़ुर:, आक़्सू विलायती; चीनी: 阿克苏地区, आकेसू दीचू; अंग्रेजी: Aksu Prefecture, आक्सू प्रीफ़ॅक्चर) चीन के शिंजियांग प्रांत का एक प्रशासनिक विभाग है। इस विभाग का कुल क्षेत्रफल १,३२,५०० वर्ग किमी है। सन् २००३ की जनगणना में इस विभाग की आबादी २१.९ लाख अनुमानित की गई थी। आक़्सू विभाग की राजधानी आक़्सू शहर है। .

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इंदिरा कोल

इंदिरा कोल (Indira Col) काराकोरम पर्वतमाला की सियाचिन मुज़ताग़ उपश्रेणी के इंदिरा कटक (इंदिरा रिज) में स्थित एक कोल (यानि कटक में बना हुआ पहाड़ी दर्रा) है। यह सिआ कांगरी से 3 किमी पश्चिम में है, जो भारत, पाकिस्तान व चीन द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों के त्रिबिन्दु पर स्थित है। इंदिरा कोल दक्षिण में सियाचिन हिमानी (ग्लेशियर) और उत्तर में उरदोक हिमानी के बीच का सबसे निचला स्थान है, और सिन्धु नदी घाटी तथा तारिम द्रोणी के बीच के जलसम्भर में स्थित है। यहाँ से आसानी से उरदोक हिमानी पर उतरा नहीं जा सकता क्योंकि वह ढलान बहुत तीखी है। .

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कनिष्क

कनिष्क प्रथम (Κανηϸκι, Kaneshki; मध्य चीनी भाषा: 迦腻色伽 (Ka-ni-sak-ka > नवीन चीनी भाषा: Jianisejia)), या कनिष्क महान, द्वितीय शताब्दी (१२७ – १५० ई.) में कुषाण राजवंश का भारत का एक महान् सम्राट था। वह अपने सैन्य, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों तथा कौशल हेतु प्रख्यात था। इस सम्राट को भारतीय इतिहास एवं मध्य एशिया के इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान मिलता है। कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस का ही एक वंशज, कनिष्क बख्त्रिया से इस साम्राज्य पर सत्तारूढ हुआ, जिसकी गणना एशिया के महानतम शासकों में की जाती है, क्योंकि इसका साम्राज्य तरीम बेसिन में तुर्फन से लेकर गांगेय मैदान में पाटलिपुत्र तक रहा था जिसमें मध्य एशिया के आधुनिक उजबेकिस्तान तजाकिस्तान, चीन के आधुनिक सिक्यांग एवं कांसू प्रान्त से लेकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और समस्त उत्तर भारत में बिहार एवं उड़ीसा तक आते हैं। पर कुषाण।अभिगमन तिथि: १५ फ़रवरी, २०१७ इस साम्राज्य की मुख्य राजधानी पेशावर (वर्तमान में पाकिस्तान, तत्कालीन भारत के) गाँधार प्रान्त के नगर पुरुषपुर में थी। इसके अलावा दो अन्य बड़ी राजधानियां प्राचीन कपिशा में भी थीं। उसकी विजय यात्राओं तथा बौद्ध धर्म के प्रति आस्था ने रेशम मार्ग के विकास तथा उस रास्ते गांधार से काराकोरम पर्वतमाला के पार होते हुए चीन तक महायान बौद्ध धर्म के विस्तार में विशेष भूमिका निभायी। पहले के इतिहासवेत्ताओं के अनुसार कनिष्क ने राजगद्दी ७८ ई० में प्राप्त की, एवं तभी इस वर्ष को शक संवत् के आरम्भ की तिथि माना जाता है। हालांकि बाद के इतिहासकारों के मतानुसार अब इस तिथि को कनिष्क के सत्तारूढ़ होने की तिथि नहीं माना जाता है। इनके अनुमानानुसार कनिष्क ने सत्ता १२७ ई० में प्राप्त की थी। .

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क़ाराक़ोरम दर्रा

क़ाराक़ोरम दर्रा काराकोरम पर्वतमाला में भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य और जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग प्रदेश के बीच ४,६९३ मीटर (१५,३९७ फ़ुट) की ऊँचाई पर स्थित एक पहाड़ी दर्रा है। यह लद्दाख़ के लेह शहर और तारिम द्रोणी के यारकन्द क्षेत्र के बीच के प्राचीन व्यापिरिक मार्ग का सबसे ऊँचा स्थान है। .

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काराबुराँन

यह ग्रीष्म के प्रारम्भ में तारिम बेसिन में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा हैं। श्रेणी:स्थानीय पवन.

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काश्गर

ईद गाह मस्जिद, काशगर काश्गर, कशगार, काशगुर या काशी (उईगुर:, चीनी: 喀什, फारसी) मध्य एशिया में चीन के शिनजियांग प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित एक नख़लिस्तान (ओएसिस) शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग ३,५०,००० है। काश्गर शहर काश्गर विभाग का प्रशासनिक केंद्र है जिसका क्षेत्रफल १,६२,००० किमी² और जनसंख्या लगभग ३५ लाख है। काश्गर शहर का क्षेत्रफल १५ किमी² है और यह समुद्र तल से १,२८९.५ मीटर (४,२८२ फ़ुट) की औसत ऊँचाई पर स्थित है। यह शहर चीन के पश्चिमतम क्षेत्र में स्थित है और तरीम बेसिन और तकलामकान रेगिस्तान दोनों का भाग है, जिस वजह से इसकी जलवायु चरम शुष्क है।, S. Frederick Starr, M.E. Sharpe, 2004, ISBN 978-0-7656-1318-9 पुराकाल से ही काश्गर व्यापार तथा राजनीति का केंद्र रहा है और इसके भारत से गहरे सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत से शिनजियांग का व्यापार मार्ग लद्दाख़ के रस्ते से काश्गर जाया करता था।, Prakash Charan Prasad, Abhinav Publications, 1977, ISBN 978-81-7017-053-2 ऐतिहासिक रेशम मार्ग की एक शाखा भी, जिसके ज़रिये मध्य पूर्व, यूरोप और पूर्वी एशिया के बीच व्यापार चलता था, काश्गर से होकर जाती थी। काश्गर अमू दरिया वादी से खोकंद, समरकंद, अलमाटी, अक्सू, और खोतान मार्गो के बीच स्थित है। .

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काइदू नदी

काइदू नदी (चीनी: 开都河, अंग्रेज़ी: Kaidu River) मध्य एशिया में जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग प्रान्त की एक नदी है। यह नदी तियान शान पर्वतमाला की दक्षिण-मध्य ढलानों में युल्दुज़ द्रोणी से उत्पन्न होती है और यान्ची द्रोणी से होती हुई बोस्तेन झील में विलय हो जाती है। झील का ८३% जल इसी नदी से आता है। झील से फिर यह नदी 'कोन्ची दरिया' के नाम से निकलती है और लौह द्वार दर्रे से होती हुई तारिम द्रोणी में चली जाती है। ऐतिहासिक रेशम मार्ग पर स्थित काराशहर इसी नदी के किनारे बसा हुआ है। .

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किज़िल गुफ़ाएँ

किज़िल गुफ़ाएँ (उईग़ुर:, अंग्रेज़ी: Kizil Caves) या क़िज़िल गुफ़ाएँ (Qizil Caves) जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग प्रान्त में एक बौद्ध गुफ़ाओं का समूह है जहाँ प्राचीनकाल में तारिम द्रोणी में तुषारी लोगों और बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्र, मूर्तियाँ, लिखाईयाँ व अन्य पुरातन चीज़ें मिली हैं। यह गुफ़ाएँ शिंजियांग प्रान्त के आक़्सू विभाग के बाईचेंग ज़िले में मुज़ात नदी के उत्तरी किनारे पर कूचा से ६५ किमी दूर स्थित हैं। यह इलाक़ा ऐतिहासिक रेशम मार्ग पर स्थित हुआ करता था और तीसरी से आठवी शताब्दी ईसवी के बीच विकसित हुआ। .

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कुनलुन पर्वत

तिब्बत-शिंजियांग राजमार्ग से पश्चिमी कुनलुन पर्वतों में काराकाश नदी का नज़ारा चिंग हई प्रांत में दूर से कुनलुन पर्वतों का दृश्य कुनलुन पर्वत शृंखला (चीनी: 昆仑山, कुनलुन शान; मंगोलियाई: Хөндлөн Уулс, ख़ोन्दलोन ऊल्स) मध्य एशिया में स्थित एक पर्वत शृंखला है। ३,००० किलोमीटर से अधिक चलने वाली यह शृंखला एशिया की सब से लम्बी पर्वतमालाओं में से एक गिनी जाती है। कुनलुन पर्वत तिब्बत के पठार के उत्तर में स्थित हैं और उसके और तारिम द्रोणी के बीच एक दीवार बनकर खड़े हैं। पूर्व में यह उत्तर चीन के मैदानों में वेई नदी के दक्षिण-पूर्व में जाकर ख़त्म हो जाते हैं। कुनलुन पर्वत भारत के अक्साई चिन इलाक़े को भी तारिम द्रोणी से अलग करते हैं, हालांकि वर्तमान में अक्साई चिन क्षेत्र चीन के क़ब्ज़े में है। इस पर्वतमाला में कुछ ज्वालामुखी भी स्थित हैं। .

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कूचा राज्य

कूचा (Kucha या Kuqa) या कूचे या कूचार या (संस्कृत में) कूचीन मध्य एशिया की तारिम द्रोणी में तकलामकान रेगिस्तान के उत्तरी छोर पर और मुज़ात नदी से दक्षिण में स्थित एक प्राचीन राज्य का नाम था जो ९वीं शताब्दी ईसवी तक चला। यह तुषारी लोगों का राज्य था जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और हिन्द-यूरोपी भाषा-परिवार की तुषारी भाषाएँ बोलते थे। कूचा रेशम मार्ग की एक शाखा पर स्थित था जहाँ से इसपर भारत, सोग़्दा, बैक्ट्रिया, चीन, ईरान व अन्य क्षेत्रों का बहुत प्रभाव पड़ा। आगे चलकर यह क्षेत्र तुर्की-मूल की उईग़ुर ख़ागानत के क़ब्ज़े में आ गया और कूचा राज्य नष्ट हो गया। .

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उइग़ुर

एक उइग़ुर युवती उइग़ुर (उइग़ुर: ‎) पूर्वी और मध्य एशिया में बसने वाले तुर्की जाति की एक जनजाति है। वर्तमान में उइग़ुर लोग अधिकतर चीनी जनवादी गणराज्य द्वारा नियंत्रित श़िंजियांग उइग़ुर स्वायत्त प्रदेश नाम के राज्य में बसते हैं। इनमें से लगभग ८० प्रतिशत इस क्षेत्र के दक्षिण-पश्चिम में स्थित तारिम घाटी में रहते हैं। उइग़ुर लोग उइग़ुर भाषा बोलते हैं जो तुर्की भाषा परिवार की एक बोली है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

तरीम बेसिन, तारिम बेसिन, तारिम घाटी, तारीम बेसिन

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