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तरल

सूची तरल

थ़र्मोमीटर में इस्तेमाल होने वाला पारा एक तरल धातु है जो पानी की तरह बहती है और जिसे उडेला जा सकता है (ध्यान रहे के पारा और उस से उठती हुई भाप अत्यंत विषैली होती है) तरल का अर्थ होता है बहने वाला। भौतिकी (फिज़िक्स) में तरल की श्रेणी में द्रव (लिक्विड) और गैस दोनों आते हैं, क्योंकि दोनों ही बहते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से प्लाज़्मा भी तरल पदार्थों की श्रेणी में शामिल है। भौतिकी की वह शाखा जिसमें तरल का अध्ययन होता है तरल यांत्रिकी कहलाती है। .

41 संबंधों: ऊर्ध्वपातन (रसायन), ऊष्मा इंजन, टर्बाइन, ट्राइटियम, एसिटिक अम्ल, तरल यांत्रिकी, तरल गतिकी, त्रिगुण बिंदु, दाब मापन, दालाँवेयर, द्रवस्थैतिक संतुलन, द्रवस्थैतिकी, पदार्थ के अवस्थाओं की सूची, पम्प, परमाणु, परिसीमा स्तर, पारस्परिक निधि, ब्राउनी गति, भौतिक विज्ञानी, भौतिकी की शब्दावली, भूकम्प, मापक उपकरणों की सूची, मैगनस प्रभाव, रक्त, रेनल्ड्स संख्या, श्यानता, श्यानतामापी, संवहन, संवेष्टन, स्नेहक, सौर मण्डल, जल (अणु), जल इंजीनियरी, वायुगतिकी, वाल्व, विलायक, आदर्श तरल, केरोसीन, अधिशोषण, अर्क, अवसादन

ऊर्ध्वपातन (रसायन)

ऊर्ध्वपातन वह प्रक्रिया है जिसमें कोई पदार्थ ठोस अवस्था से वाष्प अवस्था में बिना तरल अवस्था ग्रहण किए परिवर्तित हो जाता है। जैसे कपूर का ठोस अवस्था से सीधे वाष्प के रूप में उड़ जाना। .

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ऊष्मा इंजन

एक ऊष्मा इंजन का चित्र: यह इंजन TH ताप वाले गरम स्रोत से QH ऊर्जा लेती है और इसमें से W ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा के रूप में बदलकर शेष QC ऊष्मा को TC ताप वाले सिंक को स्थानातरित कर देती है। जो इंजन है ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलते हैं उन्हें ऊष्मा इंजन (थर्मल इंजन) कहते हैं। ये इंजन ऊष्मा के उच्च ताप से निम्न ताप पर प्रवाहित होने के गुण का उपयोग करके बनाए जाते हैं। इसके विपरीत वे इंजन जो यांत्रिक ऊर्जा की सहायता से ऊष्मा को अधिक ताप से कम ताप पर ले जाते हैं उन्हें 'ऊष्मा पम्प' या 'प्रशीतक' (रेफ्रिजिरेटर) कहते हैं। उच्च ताप से निम्न ताप पर ऊष्मा किसी तरल के सहारे स्थानान्तरित होती है। ऊष्मा मशीनें प्रायः किसी ऊष्मा चक्र में काम करती हैं। इसीलिए इन्हें सम्बन्धित ऊष्मागतिकीय चक्र (थर्मोडाइनेमिक सायकिल) के नाम से जाता जाता है। उदाहरण के लिए कर्ना चक्र पर काम करने वाला ऊष्मा इंजन 'कर्ना इंजन' कहलाता है। ऊष्मा इंजन अन्य इंजनों से इस मामले में भिन्न हैं कि इनकी अधिकतम दक्षता कर्ना के प्रमेय से निर्धारित होती है जो अपेक्षाकृत बहुत कम होती है। किन्तु फिर भी ऊष्मा इंजन सर्वाधिक प्रचलित इंजन है क्योंकि लगभग सभी प्रकार की उर्जाओं को ऊष्मा में बहुत आसानी से बदला जा सकता है और ऊष्मा इंजन द्वारा इस ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में। ऊष्मा इंजन और ऊर्जा का संतुलन .

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टर्बाइन

सिमेन्स (Siemens) की टर्बाइन जिसका आवरण खोल दिया गया है टर्बाइन एक घूर्णी (rotary) इंजन है जो किसी तरल की गतिज या/तथा स्थितिज उर्जा को ग्रहण करके स्वयं घूमती है और अपने शॉफ्ट पर लगे अन्य यन्त्रों (जैसे विद्युत जनित्र) को घुमाती है। पवन चक्की (विंड मिल्) और जल चक्की (वाटर ह्वील) आदि टर्बाइन के प्रारम्भिक रूप हैं। विद्युत शक्ति के उत्पादन में टर्बाइनों का अत्यधिक महत्व है। गैस, भाप और जल से जलनेवाले टरबाइन एक दूसरे से भिन्न होते हैं। गैस कम्प्रेशर या पम्प भी टर्बाइन जैसा ही होता है पर यह टर्बाइन के उल्टा कार्य करता है। .

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ट्राइटियम

ट्राइटियम हाइड्रोजन का एक रेडियोधर्मी समस्थानिक होता है। इसे ट्राइटॉन भी कहते हैं। ट्राइटियम के नाभिक में एक प्रोटॉन और दो न्यूट्रॉन होते हैं, जबकि हाइड्रोजन के सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध समस्थानिक प्रोटियम में मात्र एक प्रोटॉन ही होता है और न्यूट्रॉन अनुपस्थित होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। २ दिसम्बर २००९ इस समस्थानिक का नाम एक ग्रीक शब्द से मिलकर बना है, जिसका अर्थ थर्ड या तृतीय होता है। ट्राइटियम की उत्पत्ति हैवी वाटर मॉडरेट रिएक्टर में ड्यूटीरियम माध्यम में न्यूट्रान के टकराव से होती है।। नवभारत टाइम्स। ७ अक्टूबर २००८ इस प्रक्रिया में कुछ मात्रा में ट्राइटियम बनता है। ट्राइटियम का आण्विक भार ३.०१६०४९२ होता है। मानक तापमान और दबाव पर ट्राइटियम गैस रूप में रहता है। ऑक्सीजन से मिश्रित होने पर यह ये तरल रूप धारण करता है, जिसे ट्राइटीकृत जल (ट्राइटिएटेड वाटर) कहते हैं। ये रबड़, प्लास्टिक और कुछ तरह के इस्पातों के लिए पारगम्य होता है। ट्राइटियम की खोज १९२० में वाल्टर रसेल ने की थी। वहीं विल्फर्ड एफ. लिबी ने यह खोज की थी कि ट्राइटियम का प्रयोग डेटिंग वाटर की तरह किया जा सकता है, जो मदिरा उत्पादन के लिए निर्माण किया जाता है। हाइड्रोजन की तरह ट्राइटियम को सीमाबद्ध नहीं किया जा सकता। ट्राइटियम और ड्यूटेरियम को परमाणु ईंधन की तरह प्रयोग किया जाता है।। दैनिक भास्कर। ३० दिसम्बर २००८ वैज्ञानिकों के अनुसार ये चर्चा का विषय रहा है, कि ट्राइटियम को प्रस्तावित फ़्यूज़न रियेक्टरों में अधिक मात्र में प्रयोग करने पर रेडियोधर्मी प्रदूषण संभव है। विभिन्न देशों में ट्राइटियम के प्रयोग पर निषेध है। सूर्य पर जो प्रक्रियाएँ होती हैं, उन में हाइड्रोजन के दोनों ड्यूटेरियम और ट्राइटियम के अणुओं के मेल से अधिक मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है। ड्यूटेरियम और ट्राइटियम के एक ग्राम से उतनी ही ऊर्जा उत्पन होती है जितनी ८ टन तेल से पैदा की जा सकती है।। वॉयस ऑफ रशिया। २ अगस्त २००७ ट्राइटियम लगभग हाइड्रोजन से मिलता जुलता होता है, जिसके कारण यह सरलता से मिलकर कार्बनिक बंध बना लेते हैं। ट्राइटियम बीटा का मजबूत उत्सर्जक नहीं है जिस कारण यह काफी खतरनाक होता है। खाना, पानी और त्वचा द्वारा अवशोषण किए जाने के कारण सांस लेने या खाना खाने के दौरान काफी हानिकारक होता है। File:Tritium-watch.jpg|ट्राईटियम डायल वाली घड़ी File:Trtium.jpg|ट्राइटियम भरी ट्यूबलाइट .

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एसिटिक अम्ल

शुक्ताम्ल (एसिटिक अम्ल) CH3COOH जिसे एथेनोइक अम्ल के नाम से भी जाना जाता है, एक कार्बनिक अम्ल है जिसकी वजह से सिरका में खट्टा स्वाद और तीखी खुशबू आती है। यह इस मामले में एक कमज़ोर अम्ल है कि इसके जलीय विलयन में यह अम्ल केवल आंशिक रूप से विभाजित होता है। शुद्ध, जल रहित एसिटिक अम्ल (ठंडा एसिटिक अम्ल) एक रंगहीन तरल होता है, जो वातावरण (हाइग्रोस्कोपी) से जल सोख लेता है और 16.5 °C (62 °F) पर जमकर एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस में बदल जाता है। शुद्ध अम्ल और उसका सघन विलयन खतरनाक संक्षारक होते हैं। एसिटिक अम्ल एक सरलतम कार्बोक्जिलिक अम्ल है। ये एक महत्वपूर्ण रासायनिक अभिकर्मक और औद्योगिक रसायन है, जिसे मुख्य रूप से शीतल पेय की बोतलों के लिए पोलिइथाइलीन टेरिफ्थेलेट; फोटोग्राफिक फिल्म के लिए सेलूलोज़ एसिटेट, लकड़ी के गोंद के लिए पोलिविनाइल एसिटेट और सिन्थेटिक फाइबर और कपड़े बनाने के काम में लिया जाता है। घरों में इसके तरल विलयन का उपयोग अक्सर एक डिस्केलिंग एजेंट के तौर पर किया जाता है। खाद्य उद्योग में एसिटिक अम्ल का उपयोग खाद्य संकलनी कोड E260 के तहत एक एसिडिटी नियामक और एक मसाले के तौर पर किया जाता है। एसिटिक अम्ल की वैश्विक मांग क़रीब 6.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Mt/a) है, जिसमें से क़रीब 1.5 Mt/a प्रतिवर्ष पुनर्प्रयोग या रिसाइक्लिंग द्वारा और शेष पेट्रोरसायन फीडस्टोक्स या जैविक स्रोतों से बनाया जाता है। स्वाभाविक किण्वन द्वारा उत्पादित जलमिश्रित एसिटिक अम्ल को सिरका कहा जाता है। .

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तरल यांत्रिकी

तरल यांत्रिकी (अंग्रेज़ी:Fluid Mechanics) तरल पदार्थो के स्वभाव एवं गति के सिद्धान्तों को समझाने वाली यांत्रिकी की एक शाखा है। तरल, द्रव या गैस हो सकते हैं और उनमें सीमित मात्रा में ठोस के मिले या घुले रहने पर भी इन सिद्धांतों का प्रयोग किया जा सकता है। तरल पदार्थ भी न्यूटन के गति नियमों का अनुसरण करते हैं, पर आकार आसानी से बदल जाने के स्वभाव के कारण इनके गति नियमों को विशेष रूप दिया जाता है। नेवियर-स्टोक्स समीकरण तरल यांत्रिकी के समीकरणों का सबसे विस्तृत रूप है। तरल यांत्रिकी वायव्य, यांत्रिकी, सिविल तथा रासायनिक यंताओं द्वारा मुख्य रूप से प्रयुक्त होता है। जटिल तरल गतिक प्रश्नों के हल के लिए संगणित तरल यांत्रिकी का प्रयोग किया जाता है। तरलयांत्रिकी गणित की वह शाखा है, जिसमें (स्थिर अथवा प्रवहयुक्त) तरलों के व्यवहार का अध्ययन होता है। यदि तरल गतिहीन है तो इस अध्ययन को द्रवस्थिति विज्ञान (Hydrostatics) कहते हैं और यदि तरल गतियुक्त है तो उसे तरल यांत्रिकी के विविध उपयोग .

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तरल गतिकी

तरल गतिकी तरल यांत्रिकी की एक शाखा है। इसका प्रयोग गतिशील तरलों (द्रव तथा गैस) की प्रकृति तथा उस पर लगने वाले बलों के आकलन के लिए किया जाता है। जटिल तरल गतिकी के सवालों के हल के लिए गणकीय तरलगतिकी का प्रयोग होता है जिसमें संगणकों के सहारे तरल समीकरणों का संख्यात्मक हल किया जाता है। तरलगतिकी का मूल समीकरण सातत्य समीकरण (equation of continuity) कहलाता है जो निम्न प्रकार से लिखा जाता है- तरल गतिकी में प्रयुक्त गणितीय समीकरणों में नेवियर स्टोक्स समीकरण सबसे सामान्य (generalised) रूप है। इसके सरलीकृत रूपों को कई नामों से जाना जाता है। तरलों का बलों के प्रति आचरण उनके घनत्व, श्यानता तथा अन्य गुणों पर निर्भर करता है। यदि द्रव की श्यानता बहुत कम हो तो घर्षण बलों को नगण्य मानते हुए छोड़ा जा सकता है। इस प्रकार प्राप्त समीकरण यूलर का समीकरण कहलाता है जो इस प्रकार है- .

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त्रिगुण बिंदु

ऐसा तापमान और दबाव, जिसमें किसी पदार्थ की तीनों अवस्थाएँ (ठोस, तरल और वाष्प) एक साथ संतुलन में रहते हैं। श्रेणी:Chemical properties श्रेणी:Thermodynamics श्रेणी:Phase transitions.

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दाब मापन

'''बूरदाँ प्रमापी''' (Bourdon gauge) बहुतायत में उपयोग किया जाने वाला दाबमापी यन्त्र है। किसी तरल (द्रव तथा गैस) द्वारा किसी सतह पर डाले गये बल का मापन दाब मापन कहलाता है। दाब को मापने की ईकाई बल प्रति ईकाई क्षेत्रफल (जैसे, न्यूटन प्रति वर्ग मीटर) है। दाब और निर्वात को मापने के लिए अनेकों तकनीकों का विकास किया गया है। दाब मापने वाले उपकरणों को दाबमापी या (pressure gauges) या वैक्यूम गेज कहते हैं। उदाहरण के लिए, मैनोमीटर एक दाबमापी उपकरण है जो दाब मापने के लिए तथा दाब का मान दर्शाने के लिए द्रव के एक स्तम्भ की ऊँचाई का उपयोग करता है। इसी प्रकार, बूरदाँ प्रमापी (Bourdon gauge) भी एक यांत्रिक दाबमापी है। श्रेणी:मापन.

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दालाँवेयर

फ्रांसीसी गणितज्ञ दालाँवेयर दालाँवेयर (Jean-Baptiste le Rond d'Alembert; फ्रांसीसी उच्चारण:; १७१७-१७८३ ई.) फ्रांसीसी गणितज्ञ थे। इनका जन्म पेरिस में हुआ। २४ वर्षं की आयु में ही इनको पैरिस की विज्ञान अकादमी में प्रवेश मिला गया और १७५४ ई. में ये अकादमी के स्थायी मंत्री बना दिए गए। १७४३ ई. में दालाँवेयर के सिद्धांत (अर्थात्, निहित और फलवत् बल तुल्य होते हैं) पर आधारित इनकी पुस्तक 'त्रेते द दिनामिक' (Traite' de dynamique) प्रकाशित हुई। इसमें 'गति के नियम' और उनपर आश्रित विचारों को अत्यधिक व्यापक रूप में वैश्लेषिक भाषा में प्रदर्शित किया गया है। दालाँवेयर ने इस सिद्धांत का प्रयोग १७४४ ई. में तरलों के साम्य और उनकी गति की दशाओं का तथा १७४६ ई. प्रकंपित रज्जु (vibrating string) एवं विषुवों की अग्रगति (precession of the equinoxes) के निर्मेयों को हल करने में किया। इन अन्वेषणों के मध्य इनके समक्ष अनेक आंशिक अवकल समीकरण आए, जिनको इन्हें हल करना पड़ा। इस कार्य से दालाँवेयर तत्कालीन आंशिक अवकल समीकरणवेत्ताओं में अग्रगण्य हो गए। श्रेणी:गणितज्ञ.

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द्रवस्थैतिक संतुलन

बल हैं - (१) उसके ऊपर की गैस का (गुरुत्वाकर्षण की वजह से वज़न से उत्पन्न होने वाला) नीचे की तरफ दबाव, (२) उसका अपना वज़न और (३) उसके नीचे की गैस का ऊपर की तरफ दबाव। अगर डब्बे के अन्दर की गैस द्रवस्थैतिक संतुलन की वजह से स्थिर है तो (१) और (२) मिलाकर ठीक (३) के बराबर होंगे। तरल यांत्रिकी में द्रवस्थैतिक संतुलन या हाइड्रोस्टैटिक ऍक्विलिब्रियम (hydrostatic equilibrium) किसी तरल पदार्थ (फ़्लुइड) की उस अवस्था को कहते हैं जिसमें वह तरल पदार्थ या तो बिलकुल स्थिर हो या फिर एक बिलकुल स्थाई गति से हिल रहा हो। ऐसी अवस्था अक्सर तब पैदा होती है जब किसी तरल पर गुरुत्वाकर्षण का बल और उसी तरल में दबाव से उत्पन्न होने वाला विपरीत बल बिलकुल बराबरी में हों। मिसाल के लिए पृथ्वी के वायुमंडल पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का भयंकर खिचाव है लेकिन वायुमंडल न तो पृथ्वी की सतह पर एक पतली परत में सिकुड़ जाता है और न ही सतह से और दूर फैल कर और पतला हो जाता है। इसकी वजह है के हमारा वायुमंडल द्रवस्थैतिक संतुलन में है। .

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द्रवस्थैतिकी

द्रवस्थैतिकी, तरल स्थैतिकी या हाइड्रोस्टैटिक्स तरल पदार्थों की स्थिर अवस्था का विज्ञान है और तरल यांत्रिकी की उपशाखा है। इस विज्ञान में यह अध्ययन किया जाता है के किन हालात में कोई तरल पदार्थ यांत्रिक संतुलन में होने की वजह से शांत होता है। इसके विपरीत, तरल गतिकी विज्ञान की उस शाखा को कहते हैं जिसमें हिलते हुए, अशांत या असंतुलित तरलों का अध्ययन किया जाता है। .

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पदार्थ के अवस्थाओं की सूची

कोई विवरण नहीं।

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पम्प

एक छोटा सा विद्युत चालित पम्प एक बड़ा विद्युत चालित पम्प पम्प एक यांत्रिक युक्ति है जो गैसों व द्रवों को धकेलकर विस्थापित करने के काम आती है। दूसरे शब्दों में, पम्प तरल को कम दाब के स्थान से अधिक दाब के स्थान पर धकेलने का काम करता है। पंप बहुत प्राचीन काल से ही निम्न धरातल पर भरे हुए, अथवा बहते हुए, पानी का उदंचन (पम्पिंग) कर ऊँचे धरातल पर लाने के लिए अनेक प्रकार के उपकरणों और साधनों का व्यवहार किया जाता रहा है। आधुनिक युग के विविध कार्यक्षेत्रों में नाना प्रकार के तरल पदार्थों का उदंचन करके उन्हें स्थानांतरित करने के लिए एक विशेष साधन का अनिवार्यत: उपयोग करना पड़ता है, जिसे पंप कहते हैं। .

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परमाणु

एक परमाणु किसी भी साधारण से पदार्थ की सबसे छोटी घटक इकाई है जिसमे एक रासायनिक तत्व के गुण होते हैं। हर ठोस, तरल, गैस, और प्लाज्मा तटस्थ या आयनन परमाणुओं से बना है। परमाणुओं बहुत छोटे हैं; विशिष्ट आकार लगभग 100 pm (एक मीटर का एक दस अरबवें) हैं। हालांकि, परमाणुओं में अच्छी तरह परिभाषित सीमा नहीं होते है, और उनके आकार को परिभाषित करने के लिए अलग अलग तरीके होते हैं जोकि अलग लेकिन काफी करीब मूल्य देते हैं। परमाणुओं इतने छोटे है कि शास्त्रीय भौतिकी इसका काफ़ी गलत परिणाम देते हैं। हर परमाणु नाभिक से बना है और नाभिक एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन्स से सीमित है। नाभिक आम तौर पर एक या एक से अधिक न्यूट्रॉन और प्रोटॉन की एक समान संख्या से बना है। प्रोटान और न्यूट्रान न्यूक्लिऑन कहलाता है। परमाणु के द्रव्यमान का 99.94% से अधिक भाग नाभिक में होता है। प्रोटॉन पर सकारात्मक विद्युत आवेश होता है, इलेक्ट्रॉन्स पर नकारात्मक विद्युत आवेश होता है और न्यूट्रान पर कोई भी विद्युत आवेश नहीं होता है। एक परमाणु के इलेक्ट्रॉन्स इस विद्युत चुम्बकीय बल द्वारा एक परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन की ओर आकर्षित होता है। नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक अलग बल, यानि परमाणु बल के द्वारा एक दूसरे को आकर्षित करते है, जोकि विद्युत चुम्बकीय बल जिसमे सकारात्मक आवेशित प्रोटॉन एक दूसरे से पीछे हट रहे हैं, की तुलना में आम तौर पर शक्तिशाली है। परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको एलेक्ट्रान घन (एलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक, धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। जब किसी परमाणु में एलेक्ट्रानों की संख्या उसके नाभिक में स्थित प्रोटानों की संख्या के समान होती है तब परमाणु वैद्युकीय दृष्टि से अनावेशित होता है; अन्यथा परमाणु धनावेशित या ऋणावेशित ऑयन के रूप में होता है। आधुनिक रसायनशास्त्र में शताधिक मूल भूत माने गए हैं, जिनमें से कुछ तो धातुएँ हैं जैसे ताँबा, सोना, लोहा, सीसा, चाँदी, राँगा, जस्ता; कुछ और खनिज हैं, जैसे, गंधक, फासफरस, पोटासियम, अंजन, पारा, हड़ताल, तथा कुछ गैस हैं, जैसे, आक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन आदि। इन्हीं मूल भूतों के अनुसार परमाणु आधुनिक रसायन में माने जाते हैं। पहले समझा जाता था कि ये अविभाज्य हैं। अब इनके भी टुकड़े कर दिए गए हैं। नाभिक में प्रोटॉन की संख्या किसी रासायनिक तत्व को परिभाषित करता है: जैसे सभी तांबा के परमाणु में 29 प्रोटॉन होते हैं। न्यूट्रॉन की संख्या तत्व के समस्थानिक को परिभाषित करता है। इलेक्ट्रॉनों की संख्या एक परमाणु के चुंबकीय गुण को प्रभावित करता है। परमाणु अणु के रूप में रासायनिक यौगिक बनाने के लिए रासायनिक आबंध द्वारा एक या अधिक अन्य परमाणुओं को संलग्न कर सकते हैं। परमाणु की संघटित और असंघटित करने की क्षमता प्रकृति में हुए बहुत से भौतिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है, और रसायन शास्त्र के अनुशासन का विषय है। .

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परिसीमा स्तर

भौतिकी और तरल यांत्रिकी में परिसीमा स्तर (Boundary Layer) श्यान तरल की उस परिसीमा को कहते हैं जहाँ श्यानता का प्रभाव सार्थक हो। पृथ्वी के वायुमण्डल का वायुमण्डलीय परीसीमा स्तर पृथ्वी की सतह है। .

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पारस्परिक निधि

उभरते बाजारों का उपयोग करने की छूट देते हैं। पारस्परिक निधि या म्युचुअल फंड एक संगृहीत निवेशों की पेशेवर रूप से सुप्रबंधित फर्म है जो कई निवेशकों से धन इकठ्ठा करती है और इसे शेयर बाजार, बोंड्स, छोटी अवधि के मुद्रा बाजार उपकरण और/या अन्य प्रतिभूति में डालती है। निधि प्रबंधक (fund manager), संविभाग प्रबंधक के रूप में भी जाना जाता है, सुरक्षा के अंतर्गत आने वाले फंड्स का निवेश और व्यापार करता है, किसी लाभ या हानि का ध्यान रखते हुए किसी व्यक्तिगत निवेशक के लिए प्रक्रिया जारी करता है। वर्तमान में, विश्व भर में मुचुअल फंड्स का कुल मूल्य है $२६ खरब. १९४० के बाद से, संयुक्त राज्य अमेरिका में तीन मूल प्रकार की निवेश कम्पनियां रहीं हैं: खुले अंत के फंड जो संयुक्त राज्य में मुचुअल फंड्स के नाम से जाने जाते हैं; ईकाई निवेश फंड (UITs); बंद अंत के फंड.

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ब्राउनी गति

छोटे आकार के कणों वाले किसी गैस के अन्दर ब्राउनी गति करते हुए एक बड़े कण (धूल कण) के गति का सिमुलेशन ब्राउनी गति करते हुए एक कण ने यह रास्ता तय किया है। किसी तरल के अन्दर तैरते हुए कणों की टेड़ी-मेढ़ी गति को ही ब्राउनी गति (Brownian motion या pedesis) कहते हैं। ये कण तरल के तीव्रगामी कणों से टकरा-टकरा कर टेढ़ी-मेढ़ी गति करते हैं। श्रेणी:सांख्यिकीय यांत्रिकी.

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भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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भौतिकी की शब्दावली

* ढाँचा (Framework).

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भूकम्प

भूकम्प या भूचाल पृथ्वी की सतह के हिलने को कहते हैं। यह पृथ्वी के स्थलमण्डल (लिथोस्फ़ीयर) में ऊर्जा के अचानक मुक्त हो जाने के कारण उत्पन्न होने वाली भूकम्पीय तरंगों की वजह से होता है। भूकम्प बहुत हिंसात्मक हो सकते हैं और कुछ ही क्षणों में लोगों को गिराकर चोट पहुँचाने से लेकर पूरे नगर को ध्वस्त कर सकने की इसमें क्षमता होती है। भूकंप का मापन भूकम्पमापी यंत्रों (सीस्मोमीटर) के साथ करा जाता है, जो सीस्मोग्राफ भी कहलाता है। एक भूकंप का आघूर्ण परिमाण मापक्रम पारंपरिक रूप से नापा जाता है, या सम्बंधित और अप्रचलित रिक्टर परिमाण लिया जाता है। ३ या उस से कम रिक्टर परिमाण की तीव्रता का भूकंप अक्सर अगोचर होता है, जबकि ७ रिक्टर की तीव्रता का भूकंप बड़े क्षेत्रों में गंभीर क्षति का कारण होता है। झटकों की तीव्रता का मापन विकसित मरकैली पैमाने पर किया जाता है। पृथ्वी की सतह पर, भूकंप अपने आप को, भूमि को हिलाकर या विस्थापित कर के प्रकट करता है। जब एक बड़ा भूकंप उपरिकेंद्र अपतटीय स्थति में होता है, यह समुद्र के किनारे पर पर्याप्त मात्रा में विस्थापन का कारण बनता है, जो सूनामी का कारण है। भूकंप के झटके कभी-कभी भूस्खलन और ज्वालामुखी गतिविधियों को भी पैदा कर सकते हैं। सर्वाधिक सामान्य अर्थ में, किसी भी सीस्मिक घटना का वर्णन करने के लिए भूकंप शब्द का प्रयोग किया जाता है, एक प्राकृतिक घटना) या मनुष्यों के कारण हुई कोई घटना -जो सीस्मिक तरंगों) को उत्पन्न करती है। अक्सर भूकंप भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं, भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यतः गहरी मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन और नाभिकीय परिक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं। भूकंप के उत्पन्न होने का प्रारंभिक बिन्दु केन्द्र या हाईपो सेंटर कहलाता है। शब्द उपरिकेंद्र का अर्थ है, भूमि के स्तर पर ठीक इसके ऊपर का बिन्दु। San Andreas faultके मामले में, बहुत से भूकंप प्लेट सीमा से दूर उत्पन्न होते हैं और विरूपण के व्यापक क्षेत्र में विकसित तनाव से सम्बंधित होते हैं, यह विरूपण दोष क्षेत्र (उदा. “बिग बंद ” क्षेत्र) में प्रमुख अनियमितताओं के कारण होते हैं। Northridge भूकंप ऐसे ही एक क्षेत्र में अंध दबाव गति से सम्बंधित था। एक अन्य उदाहरण है अरब और यूरेशियन प्लेट के बीच तिर्यक अभिकेंद्रित प्लेट सीमा जहाँ यह ज़ाग्रोस पहाड़ों के पश्चिमोत्तर हिस्से से होकर जाती है। इस प्लेट सीमा से सम्बंधित विरूपण, एक बड़े पश्चिम-दक्षिण सीमा के लम्बवत लगभग शुद्ध दबाव गति तथा वास्तविक प्लेट सीमा के नजदीक हाल ही में हुए मुख्य दोष के किनारे हुए लगभग शुद्ध स्ट्रीक-स्लिप गति में विभाजित है। इसका प्रदर्शन भूकंप की केन्द्रीय क्रियाविधि के द्वारा किया जाता है। सभी टेक्टोनिक प्लेट्स में आंतरिक दबाव क्षेत्र होते हैं जो अपनी पड़ोसी प्लेटों के साथ अंतर्क्रिया के कारण या तलछटी लदान या उतराई के कारण होते हैं। (जैसे deglaciation).ये तनाव उपस्थित दोष सतहों के किनारे विफलता का पर्याप्त कारण हो सकते हैं, ये अन्तःप्लेट भूकंप को जन्म देते हैं। .

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मापक उपकरणों की सूची

श्रेणी:मापन.

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मैगनस प्रभाव

चक्रण के साथ गति करती हुई वस्तु; इस स्थिति में ऊपर की ओर उत्पन्न मैगनस बल दिखाया गया है। यदि कोई बेलनाकार या गोलीय ठोस वस्तु किसी तरल में डूबकर चक्रण (spinning) कर रही हो तथा तरल तथा चक्रण कर रही वस्तु के बीच आपेक्षिक गति हो तो उस वस्तु पर किनारे की तरफ एक बल उत्पन्न होता है। इस प्रभाव को मैगनस प्रभाव (Magnus effect) कहते हैं। यह नाम जर्मनी के भौतिकशास्त्री तथा रसायनशास्त्री एचजी मैगनस (H.G. Magnus) के नाम पर पड़ा है जिन्होने सबसे पहले सन् 1853 में इस प्रभाव को प्रयोग करके देखा था। मैगनस प्रभाव के कारण ही सर्व की गयी टेनिस की गेंद वक्र (curve) बनाती है। इसी प्रकार यह प्रभाव चक्रण करते हुए आगे जा रहे गोला (artillery shell) पर भी देखने को मिलता है। श्रेणी:तरलगतिकी श्रेणी:द्रवगतिकी.

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रक्त

मानव शरीर में लहू का संचरण लाल - शुद्ध लहू नीला - अशु्द्ध लहू लहू या रक्त या खून एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं। मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली (Phagocytosis) में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है (In 7 steps)। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दुसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है कार्य.

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रेनल्ड्स संख्या

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श्यानता

उपर के द्रव की श्यानता नीचे के द्रव की श्यानता से बहुत कम है। श्यानता (Viscosity) किसी तरल का वह गुण है जिसके कारण वह किसी बाहरी प्रतिबल (स्ट्रेस) या अपरूपक प्रतिबल (शीयर स्ट्रेस) के कारण अपने को विकृत (deform) करने का विरोध करता है। सामान्य शब्दों में, यह उस तरल के गाढे़पन या उसके बहने का प्रतिरोध करने की क्षमता का परिचायक है। उदाहरण के लिये, पानी पतला होता है एवं उसकी श्यानता वनस्पति तेल की अपेक्षा कम होती है जो कि गाढा़ होता है। .

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श्यानतामापी

इंग्लर का श्यानतामी जिन उपकरणों से किसी तरल (द्रव या गैस) की श्यानता मापी जाती है उन्हें श्यानतामापी कहते हैं। श्यानता गुणांक के शुद्ध, पूर्ण तथा ठीक ठीक निर्धारण के लिए यह आवश्यक है कि श्यानता के यथार्थ आयाम (exact dimensions) मालूम हों, पर यह कठिन कार्य है। औद्योगिक प्रतिष्ठानों में श्यानतामापन के लिए सरल उपकरण, जिन्हें श्यानतामापी कहते हैं, प्रयुक्त होते हैं। इन उपकरणों को उन द्रवों द्वारा अंशांकित कियो जाता है जिनकी श्यानता मालूम है। ये उपकरण साधारणतया केशिका प्रवाह अथवा घूर्ण ऐंठन (rotational torque) के सिद्धांत पर कार्य करते हैं। .

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संवहन

वायु की धारा का संवहन लाल रंग के क्षेत्र गरम हैं और नीला रंग के ठन्डे हैं - देखा जा सकता है के संवहन में कैसे गरम क्षेत्रों से अणुओं की गरम फुहारें उठकर ठन्डे क्षेत्रों में जा रहीं हैं संवहन (अंग्रेज़ी:Convection) ऊष्मा के स्थानान्तरण या संचरण की एक विधि है किसी तरल पदार्थ (गैस, द्रव या प्लाज्मा) में अणुओं के समग्र स्थानान्तरण द्वारा ऊष्मा का लेन-देन होता है। ठोसों में संवहन सम्भव नही है किन्तु तरल पदार्थों में संवहन ऊष्मा के अन्तरण की एक मुख्य विधि है। संवहन द्वारा द्रव्यमान का भी स्थानान्तरण होता है। संवहन द्वारा द्रव्यमान के इस स्थानान्तरण के कारण ऊष्मा का स्थानान्तरण (ट्रांस्फर) होता है। अणुओं की इस प्रकार की गति को संवहन धारा कहते हैं। .

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संवेष्टन

टेस्को से एक टुकड़े किए हुए पोर्क का सील बंद पैकेट. यह दर्शाता है पकाने का समय, सर्विंग्स की संख्या, 'डिस्प्ले अन्टिल' डेट, 'यूज़ बाई' डेट, किलोग्राम में वजन, £/kg और £/lb दोनों के मूल्य से वजन दर, प्रशीतित और भंडारण निर्देश.यह कहता हैं 'लेस डैन 3% फैट' और 'नो कार्ब्स पर सर्विंग' और इसमें एक बार कोड शामिल है। संघ का ध्वज, ब्रिटिश फार्म मानक ट्रेक्टर लोगो और ब्रिटिश मांस गुणवत्ता मानक लोगो भी मौजूद हैं। एक ब्लिस्टर पैक में गोलियाँ, जो खुद एक तह लगी दफ्ती के कार्टन में पैक है। संवेष्टन या पैकेजिंग, उत्पादों को वितरण, भंडारण, बिक्री और खपत के लिए बंद करने या सुरक्षित करने का विज्ञान, कला और प्रौद्योगिकी है। पैकेजिंग, डब्बों की डिज़ाइन प्रक्रिया, मूल्यांकन और उनके उत्पादन को भी संदर्भित करता है। पैकेजिंग को, उत्पादों को परिवहन, भंडारण, प्रचालन-तन्त्र, बिक्री और खपत के लिए तैयार करने की एक समन्वित प्रणाली के रूप में वर्णित किया जा सकता है। पैकेजिंग, धारण करता है, सुरक्षा करता है, संरक्षित रखता है, परिवहन करता है, सूचित करता है और बेचता है। कई देशों में यह पूरी तरह से सरकार, व्यापार, संस्थागत, औद्योगिक और व्यक्तिगत उपयोग में एकीकृत होता है। पैकेज लेबलिंग (en-GB) या लेबलिंग (en-US), पैकेजिंग पर या किसी अलग मगर जुड़े हुए लेबल पर लिखा हुआ, इलेक्ट्रॉनिक, ग्राफिक सम्प्रेषण है। .

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स्नेहक

लूब्रिकेंट (जिसे कभी-कभी "लूब" के रूप में संदर्भित किया जाता है) एक ऐसा पदार्थ है (अक्सर तरल) जो दो गतिशील सतहों के बीच लगाया जाता है ताकि उनके बीच घर्षण कम हो, कार्यकुशलता में सुधार हो और जल्दी घिस ना जाए.

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सौर मण्डल

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

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जल (अणु)

जल पृथ्वी की सतह पर सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला अणु है, जो इस ग्रह की सतह के 70% का गठन करता है। प्रकृति में यह तरल, ठोस और गैसीय अवस्था में मौजूद है। मानक दबावों और तापमान पर यह तरल और गैस अवस्थाओं के बीच गतिशील संतुलन में रहता है। घरेलू तापमान पर, यह तरल रूप में हल्की नीली छटा वाला बेरंग, बेस्वाद और बिना गंध का होता है। कई पदार्थ, जल में घुल जाते हैं और इसे सामान्यतः सार्वभौमिक विलायक के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। इस वजह से, प्रकृति में मौजूद जल और प्रयोग में आने वाला जल शायद ही कभी शुद्ध होता है और उसके कुछ गुण, शुद्ध पदार्थ से थोड़ा भिन्न हो सकते हैं। हालांकि, ऐसे कई यौगिक हैं जो कि अनिवार्य रूप से, अगर पूरी तरह नहीं, जल में अघुलनशील है। जल ही ऐसी एकमात्र चीज़ है जो पदार्थ की सामान्य तीन अवस्थाओं में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है - अन्य चीज़ों के लिए रासायनिक गुण देखें. पृथ्वी पर जीवन के लिए जल आवश्यक है। जल आम तौर पर, मानव शरीर के 55% से लेकर 78% तक का निर्माण करता है। .

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जल इंजीनियरी

द्रविकी का अन्य विधाओं से सम्बन्ध द्रविकी (Hydraulics / 'द्रवविज्ञान' या जल इंजीनियरी अथवा द्रव इंजीनियरी) के अंतर्गत तरल पदार्थों के प्रवाह के गुणधर्म का अध्ययन करती है। प्रौद्योगिकी में द्रविकी का उपयोग अन्य कार्यों के अलावा संकेत, बल या ऊर्जा के संचरण (ट्रांसमिशन) के लिये किया जाता है। द्रविकी में इंजीनियरी के उपतत्वों का विचार आ जाता है जिनके अंतर्गत जल, वायु तथा तैल और अन्य रासायनिक विलयनों का उपयोग प्राकृतिक दशा में या दबाव के अंदर होता है। इन द्रवों के प्राकृतिक गुणों का, जैसे घनत्व, श्यानता, प्रत्यास्थता और पृष्ठ तनाव आदि, के ऊपर इंजीनियरी के समस्त अभिकल्प निर्भर होते हैं, क्योंकि सारे द्रवों का आधारभूत व्यवहार एक सा ही होता है। जल इंजीनियरी के और भी बहुत से विशेष अंग हैं जिनका विवरण उन विशेष अंगों के अंतर्गत मिल सकता है। जल इंजीनियरी में मुख्यत: जल का स्थिर दबाव, उसकी गति तथा उसका प्रभाव, उसके द्वारा चालित यंत्र जल का मापन आदि विषयों का विचार आ जाता है। .

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वायुगतिकी

वायुगतिकी (Aerodynamics) गतिविज्ञान की वह शाखा है जिसमें वायु तथा अन्य गैसीय तरलों (gaseous fluids) की गति का और इन तरलों के सापेक्ष गतिवान ठोसों पर लगे बलों का विवेचन होता है। इस विज्ञान के सार्वाधिक महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों में से एक अनुप्रयोग वायुयान की अभिकल्पना है। .

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वाल्व

एक वाल्व और उसकी आन्तरिक संरचना वाल्व (Valve) वे यांत्रिक युक्तियाँ हैं जिनका उपयोग पाइप तथा जैविक वाहिकाओं (vessels) में तरल के प्रवाह को रोकने के लिए किया जाता है1 शरीर-क्रिया विज्ञान (physiology) में भी इस शब्द (वाल्व) का प्रयोग उन प्राकृतिक युक्तियों के लिए किया जाता है, जो शरीर में वे ही कार्य करती हैं जिन्हें यांत्रिक वाल्व करते हैं। इन प्राकृतिक युक्तियों में हृदय के वाल्व उल्लेखनीय हैं, जो खुलकर या बंद होकर हृदयकोष्ठ से रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। .

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विलायक

विलायक एक ऐसे पदार्थ को कहते है, जिसका उपयोग विलयन बनाने में अत्यधिक मात्रा में किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि नमक को पानी में डाला जाये तो पानी अधिक होने के कारण पानी एक विलायक कहलायेगा लेकिन उन दोनों के घुलने के कारण वह एक विलयन बन जाता है। अतः विलायक वे पदार्थ होते हैं जिनमें किसी भी विलेय को घोला जाता है। सामान्यतः एक विलायक तरल अवस्था में होता है किंतु यह ठोस अथैया गैस भी हो सकता है। जैविक विलायकों के सामान्य उपयोग रंग तरलक (तारपीन), नाखूनी हटाने वाला तरल और गोंद विलायक (एसीटोन, मिथाइल एसिटेट, इथाइल एसिटेट) के प्रमुख उपयोग दाग धब्बे हटाने के लिए (पेट्रोल ईथर) अपमार्जक (साइट्रस टेरपेन्स) और इत्र (इथेनॉल) आदि हैं। .

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आदर्श तरल

भौतिकी में, आदर्श तरल (perfect fluid) उस तरल को कहते हैं जिसे उसके विरामस्थ तंत्र घनत्व \rho_m; तथा समदैशिक दाब (आइसोट्रोपिक प्रेसर) p द्वारा पूर्णतः अभिलक्षित (कैरेक्टराइज्ड) किया जा सकता हो। .

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केरोसीन

केरोसीन (मिट्टी का तेल) एक तरल खनिज है जिसका मुख्य उपयोग दीप, स्टोव और ट्रैक्टरों में जलाने में होता है। इस काम के लिये तेल की श्यानता कम, दमकांक ऊँचा, रंग साफ और हल्का, जलने पर दुर्गंध और धुआँ देनेवाले पदार्थों का अभाव रहना चाहिए। औषधियों में विलायक के रूप में, उद्योग धंधों में, प्राकृतिक गैस से पैट्रोल निकालने में तथा अवशोषक तेल के रूप में भी इसका व्यवहार होता है। .

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अधिशोषण

किसी गैस, द्रव या घुले हुए ठोस के परमाणुओं, आयनों, जैवाणुओं या अणुओं का किसी सतह (surface) से चिपकना (adhesion) अधिशोषण (Adsorption) कहलाता है। यह क्रिया शोषण (absorbtion) से इस अर्थ में अलग है कि शोषण में कोई तरल किसी द्रव या ठोस में घुस जाता है। अधिशोषण में अधिशोषक की सतह पर अधिशोषित की एक फिल्म बन जाती है। .

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अर्क

एक मंडराता पक्षी मेपल वृक्ष का मीठा अर्क पीते हुए अर्क, निर्यास या जीवनरस (अंग्रेज़ी: sap, सैप) वृक्षों की दारु (ज़ाइलेम) और वल्कल (फ़्लोएम) नामक नसों में चलने वाले तरल (फ़्लुइड) को कहते हैं जो पेड़ के हर भाग में आहार, पानी, हारमोन और जीवन के लिए आवश्यक अन्य रसायन पहुँचाता है। अर्क का इस्तेमाल बहुत से अन्य जीव भी करते हैं। बहुत से कीड़े पेड़ों की शाखाएँ छेदकर इसे पीते हैं। ठंडे इलाक़ों में भूर्ज की टहनियाँ छेदकर उसका मीठा अर्क एकत्रित किया जाता है जिसका प्रयोग खाने-पीने में और शराब बनाने के लिए किया जाता है। दक्षिण भारत में ताड़ (एक प्रकार का खजूर) के पेड़ के ताने से निकले अर्क की 'ताड़ी' (toddy) नामक शराब बनती है। कनाडा में मेपल के वृक्ष के अत्यंत मीठे अर्क को एकत्रिक करके उसका एक शहद-जैसी चाशनी बनती है।, State Pomological Society of Michigan, by Authority, 1875,...

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अवसादन

अवसादन किसी तरल (द्रव या गैस) में उपस्थित कणों का जमीन पर आकर बैठ जाना अवसादन (सेडिमेन्टेशन) या तलछटीकरण कहलाता हैं। अवसादन, तरल में निलम्बित कणों पर लगने वाले गुरुत्व बल या अपकेन्द्री बल के कारण होता है। भूविज्ञान में अवसादन को प्रायः अपरदन की विपरीत क्रिया माना जाता है। श्रेणी:भूविज्ञान.

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