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टिण्डल प्रभाव

सूची टिण्डल प्रभाव

आटे के गिलास का रंग नीला दिखता है। इसका कारण यह है कि देखने वाले की आँख तक केवल प्रकीर्णित प्रकाश ही पहुँचता है। तथा नीला रंग आटे के कणों द्वारा लाल रंग की अपेक्षा अधिक प्रकीर्णित किया जाता है। कोहरे को चीरकर आती हुई प्रकाश किरणें। वास्तव में जिन्हें हम 'किरणें' समझते हैं वे पानी के कण हैं जो टिण्डल प्रभाव के कारण दिखाई पड़ते हैं। किसी कोलायडी विलयन में उपस्थित कणों द्वारा प्रकाश का प्रकीर्णन होने की परिघटना टिण्डल प्रभाव (Tyndall effect) कहलाती है। यह प्रभाव छोटे-छोटे निलम्बित कणों वाले विलियन द्वारा भी देखा जा सकता है। टिण्डल प्रभाव को 'टिंडल प्रकीर्णन' (Tyndall scattering) भी कहा जाता है। इस प्रभाव का नाम १९वीं शताब्दी के भौतिकशास्त्री जॉन टिण्डल के नाम पर पड़ा है। टिण्डल प्रकीर्णन, इस दृष्टि से रैले प्रकीर्णन (Rayleigh scattering), जैसा ही है कि प्रकीर्ण प्रकाश की तीव्रता प्रकाश के आवृत्ति के चतुर्थ घात के समानुपाती होता है। नीला प्रकाश, लाल प्रकाश की तुलना में बहुत अधिक प्रकीर्ण होता है क्योंकि नीले प्रकाश की आवृत्ति अधिक होती है। .

3 संबंधों: प्रकाश का प्रकीर्णन, प्रकीर्णन, कलिल

प्रकाश का प्रकीर्णन

प्रकाश का प्रकीर्णन (Light scattering) वह प्रकीर्णन है जिसमें ऊर्जा का वाहक और प्रकीर्ण होने वाला विकिरण प्रकाश होता है। जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमे धुल तथा अन्य पदार्थों के अत्यंत सूक्ष्म कण होते है, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, जिसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। लार्ड रेले के अनुसार किसी रंग का प्रकीर्णन उसकी तरंगदेध्र्य पर निर्भर करता है, तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंगदेधर्य सबसे कम होती है, उस रंग का प्रकीर्णन सबसे अधिक तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंगदेधर्य सबसे अधिक होती है, उस रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। इसका एक उदाहरण आकाश का रंग है, जो सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण नीला दिखाई देता है। .

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प्रकीर्णन

प्रकीर्णन (Scattering) एक सामान्य भौतिक प्रक्रिया है जिसमें कोई विकिरण (जैसे प्रकाश, एक्स-किरण आदि) माध्यम के किसी स्थानीय अनियमितता के कारण अपने सरलरेखीय मार्ग से विचलित किया जाता है। कणों का भी प्रकीर्णन होता है। .

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कलिल

पायसीकृत द्रव कलिल है जिसमे मक्खन की गोलिकायें एक जल-आधारित तरल मे परिक्षेपित रहती हैं। कलिल या कोलाइड एक रसायनिक मिश्रण होता है जिसमे एक वस्तु दूसरी वस्तु मे समान रूप से परिक्षेपित (dispersed) होती है। परिक्षेपित वस्तु के कण मिश्रण मे केवल निलम्बित रहते है ना कि एक विलयन की तरह (जिसमे यह पूरी तरह घुल जाते हैं)। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कलिल मे कणों का आकार विलयन मे उपस्थित कणों के आकार से बड़ा होता है - यह कण इतने छोटे होते हैं कि मिश्रण मे पूरी तरह परिक्षेपित हो कर एक समरूप मिश्रण तैयार करें, लेकिन इतने बडे़ भी नहीं होते हैं कि प्रकाश को प्रकीर्णित करें और ना घुलें। इस परिक्षेपण के चलते कुछ कलिल विलयन जैसे दिखते हैं। किसी कलिल प्रणाली की दो पृथक प्रावस्थायें होती हैं: पहली परिक्षेपण प्रावस्था (या आंतरिक प्रावस्था) और दूसरी सतत प्रावस्था (या परिक्षेपण माध्यम)। एक कलिल प्रणाली ठोस, द्रव या गैसीय हो सकती है। नीचे की तालिका मे एक समरूप और असमरूप मिश्रण मे कलिल के कणों का व्यास का तुलनात्मक विश्लेषण है।: इसलिए, कलिलीय निलम्बन, समरूप और असमरूप मिश्रणों के मध्यवर्ती होते हैं। .

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