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टरपीन

सूची टरपीन

चीड़ आदि कोणधारी वृक्षों से प्राप्त रेजिन से अधिकांश टरपीन प्राप्त किए जाते हैं। टरपीन (Terpene) हाइड्रोकार्बन वर्ग का असंतृप्त यौगिक है, जिसमें केवल कार्बन और हाइड्रोजन तत्व होते है। टरपीन (Terpene) शब्द टरपेंटाइन (turpentine) (तारपीन का तेल) से निकला है, जिसमें अनेक टरपीन पाए गए हैं। टरपीनों का सामान्य सूत्र है जहाँ (n) एक, दो, तीन, चार या चार से अधिक हो सकता है। टरपीन के अनेक अंतर्विभाग हैं। सरलतम टरपीन का सूत्र (C5H8) है। इसे 'हेमिटरपीन' कहते हैं। हेमिटरपीन के अतिरिक्त वास्तविक टरपीन (C10H16), सेस्किवटरपीन (C15H24), डाइटरपीन (C20H32) ट्राइटरपीन (C30H48) और पॉलिटरपीन (C5 H8)n सूत्रों के होते हैं, जिनमें (n) पाँच से अधिक संख्या होती है। टरपीनों का वर्गीकरण उनकी संरचना के आधार पर भी किया गया है। एक वर्ग के टरपीनों में कोई चक्रीय संरचना नहीं होती। इसे अचक्रीय (acyclic) या विवृत श्रृंखला का टरपीन कहते है। दूसरे वर्ग में चक्रीय (cyclic) संरचना होती है। उसे चक्रीय टरपीन कहते हैं। फिर चक्रीय टरपीन एक वलय वाला, दो वलयवाला या तीन से अधिक वलयवाला हो सकता है। ऐसे टरपीनों को क्रमश: एकचक्रीय, द्विचक्रीय, त्रिचक्रीय, या बहुचक्रीय, टरपीन कहते हैं। .

6 संबंधों: चयापचय, तारपीन, बाल्सम, लैवेंडर, व्हिस्की, कहरुवा

चयापचय

कोएन्ज़ाइम एडीनोसाइन ट्रायफ़ोस्फेट का संरचना, उर्जा मेटाबॉलिज़्म में एक केंद्र मध्यवर्ती चयापचय (metabolism) जीवों में जीवनयापन के लिये होने वाली रसायनिक प्रतिक्रियाओं को कहते हैं। ये प्रक्रियाएं जीवों को बढ़ने और प्रजनन करने, अपनी रचना को बनाए रखने और उनके पर्यावरण के प्रति सजग रहने में मदद करती हैं। साधारणतः चयापचय को दो प्रकारों में बांटा गया है। अपचय कार्बनिक पदार्थों का विघटन करता है, उदा.

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तारपीन

'''पाइनीन''' (pinene) का रासायनिक संरचना; यह तारपीन का मुख्य घटक है। तारपीन (Turpentine) सगंध वाष्पशील तैल है। वाष्पशील तैलों में इसका स्थान सर्वोपरि है। इसे 'तारपीन का तेल' (oil of turpentine) भी कहते हैं। यह चीड़ आदि जीवित वृक्षों से प्राप्त रेजिन के आसवन से प्राप्त किया जाता है। इसमें टरपीन होते हैं। वनस्पति से प्राप्त तारपीन के स्थान पर खनिज तारपीन या अन्य पेट्रोलियम आसवों का उपयोग भी किया जाता है किन्तु ये तारपीन वनस्पति से प्राप्त तारपीन से रासायनिक रूप से सर्वथा भिन्न हैं। तारपीन के उपयोग का पहले पहल उल्लेख १६०५ ई० में मिलता है। तब से इसका उपयोग दिन दिन बढ़ता गया और पीछे व्यापक रूप से व्यापार शुरू हो गया। १६५० ई० में तो यह व्यापार की प्रमुख वस्तु बन गया था। धीरे धीरे अमरीका में भी इसका व्यापार चमका और १८०० ई० तक यह अमरीका में व्यापार के लिये महत्व की वस्तु बन गया था। अमरीका के अनेक राज्यों में भी इसका निर्माण शुरू हो गया। १९०० ई० में जॉर्जिया इसके उत्पादन का प्रधान केंद्र बन गया था। .

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बाल्सम

कुछ पेड़-पौधों से नि:स्राव (exude) निकलता है। कुछ से तो स्वत: निकलता है और कुछ से छेदने या काटने से निकलता है। इनमें से कुछ नि:स्रावों को बाल्सम (Balsam) कहते हैं। बाल्सम में रेज़िन, अल्प मात्रा में गोंद, कुछ वाष्पशील तेल और विभिन्न मात्राओं में सौरभिक अम्ल और उनके एस्टर रहते हैं। यदि नि:स्राव में वाष्पशील तेल की मात्रा अधिक और ठोस सौरभिक अम्ल की मात्रा बिल्कुल न हो तो ऐसे नि:स्राव को 'ओलिओरेज़िन' कहते हैं। बाल्सम साधारणतया श्यान द्रव, अथवा अर्ध ठोस, होता है। इसमें विशेष सौरभ होता है और तीक्ष्ण, पर कुछ रुचिकर स्वाद होता है। सौरभ प्रदान करनेवाले पदार्थ बेंज़ोइक, सिनेमिक और इसी प्रकार के अन्य कार्बनिक अम्ल और उनके एस्टर हैं। बाल्सम कई प्रकार के होते हैं, जिनमें बेंज़ोइन (लोबान), पेरू बाल्सम, स्टोरैक्स, टोलूबाल्सम, जैंथोरिया, कैनाडा बाल्सम और कोपैबा बाल्सम महत्व के हैं। .

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लैवेंडर

लैवेंडर (लैवेन्डुला) पुदिना परिवार लैमिआसे के 39 फूल देने वाले पौधों में से एक प्रजाति है। एक पुरानी विश्व प्रजाति मकारोनेसिया (केप वर्डे और कैनरी द्वीप और मैदेरा) अफ्रीका, भूमध्यसागरीय, दक्षिणी पश्चिमी एशिया, अरब, पश्चिमी ईरान और दक्षिण पूर्व भारत के पार से वितरित हुई.

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व्हिस्की

व्हिस्की का एक गिलास व्हिस्की किण्वित अनाज मैश से आसवित एक प्रकार का मादक पेय है। इसके विभिन्न प्रकारों के लिए विभिन्न अनाजों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें शामिल हैं जौ, राई, मॉल्ट राई, गेहूं और मक्का (मकई).

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कहरुवा

मालाओं में लगे कहरुवे कहरुवा या तृणमणि (जर्मन: Bernstein, फ्रेंच: ambre, स्पेनिश: ámbar, अंग्रेज़ी: amber, ऐम्बर) वृक्ष की ऐसी गोंद (सम्ख़ या रेज़िन) को कहते हैं जो समय के साथ सख़्त होकर पत्थर बन गई हो। दूसरे शब्दों में, यह जीवाश्म रेजिन है। यह देखने में एक कीमती पत्थर की तरह लगता है और प्राचीनकाल से इसका प्रयोग आभूषणों में किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल सुगन्धित धूपबत्तियों और दवाइयों में भी होता है। क्योंकि यह आरम्भ में एक पेड़ से निकला गोंदनुमा सम्ख़ होता है, इसलिए इसमें अक्सर छोटे से कीट या पत्ते-टहनियों के अंश भी रह जाते हैं। जब कहरुवे ज़मीन से निकाले जाते हैं जो वह हलके पत्थर के डले से लगते हैं। फिर इनको तराशकर इनकी मालिश की जाती है जिस से इनका रंग और चमक उभर आती है और इनके अन्दर झाँककर देखा जा सकता है। क्योंकि कहरुवे किसी भी सम्ख़ की तरह हाइड्रोकार्बन के बने होते हैं, इन्हें जलाया जा सकता है।, Faya Causey, Getty Publications, 2012, ISBN 978-1-60606-082-7,...

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