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ज्वालाकाच

सूची ज्वालाकाच

ज्वालाकाच या ऑब्सिडियन (Obsidian), एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला ज्वालामुखीय काच है। यह रायोलाइट (Rhyolite) नामक ज्वालामुखी-शिला का अत्यन्त काचीय रूप है। अत: रासायनिक एवं खनिज संरचना में ज्वालाकाच रायोलाइट अथवा ग्रेनाइट के समतुल्य है, परन्तु भौतिक सरंचना एवं बाह्य रूप में दोनों में पर्याप्त भिन्नता है। ज्वालाकाच वस्तुत: 'प्राकृतिक काच' का दूसरा नाम है। नवीन परिभाषा के अनुसार ज्वालाकाच उस स्थूल, अपेक्षाकृत सघन परंतु प्राय: झावाँ की भाँति दिखनेवाले, गहरे भूरे या काले, साँवले, पीले या चितकबरे काच को कहते हैं, जो तोड़ने पर सूक्ष्म शंखाभ विभंग (conchoidal fracture) प्रदर्शित करता है। इस शिला का यह विशेष गुण है। प्राचीन काल में ज्वालाकाच का प्रयोग होता था और वर्तमान समय में भी अपने भौतिक गुणों एवं रासायनिक संरचना के कारण इसका प्रयोग हो रहा है। अभी हाल तक अमरीका की रेडइंडियन जाति अपने बाणों और भालों की नोक इसी शिला के तेज टुकड़ों से बनाती थी। प्लिनी के अनुसार ऑब्सिडियनस नामक व्यक्ति ने ईथियोपिया देश मे सर्वप्रथम इस शिला की खोज की। अतएव इसका नाम ऑब्सिडियन पड़ा। जॉनहिल (१७४६ ईo) के अनुसार एंटियंट जाति इस शिला पर पालिश चढ़ाकर दर्पण के रूप में इसका उपयोग करती थी। इनकी भाषा में ऑब्सिडियन का जो नाम था वह कालांतर में लैटिन भाषा में क्रमश: ऑपसियनस, ऑपसिडियनस तथा ऑवसिडियनस (obsiodianus) लिखा जाने लगा। शब्द की व्युत्पत्ति प्राय: पूर्णतया विस्मृत हो चुकी है, एवं भ्रमवश यह मान लिया गया है कि ऑब्सिडियन नाम उसके आविष्कर्ता ऑब्सिडियनस के नाम पर पड़ा। साधारणतया रायोलाइट के काचीय रूप को ही ऑब्सिडियन कहते हैं, परंतु ट्रेकाइट (trachyte) अथवा डेसाइट नामक ज्वाला-मुखी अम्लशैल (volcanic acid-rocks) भी अत्यंत तीव्र गति से शीतल होकर प्राकृतिक काच को जन्म देते हैं। पर ऐसे शैलों को ट्रेफाइट या डेसाइट ऑब्सिडियन कहते हैं। सूक्ष्मदर्शक यंत्र से देखने पर ज्ञात होता है कि ऑब्सिडियन शैल का अधिकांश भाग काँच से निर्मित है। इसके अंतरावेश में अणुमणिभस्फट (microlite) देखे जा सकते हैं। इन मणिभों के विशेष विन्यास से स्पष्ट आभास मिलेगा कि कभी शैलमूल या मैग्मा (magma) में प्रवाहशीलता थी। शिला का गहरा रंग इन्हीं सूक्ष्म स्फटों के बाहुल्य का प्रतिफल है। कभी कभी ऑब्सिडियन धब्बेदार या धारीदार भी होता है। 'स्फेरूलाइट' तो इस शैल का सामान्य लक्षण है। ज्वालाकांच का आपेक्षिक घनत्व २.३० से २.५८ तक होता है। ऑब्सिडियन सदृश्य काचीय शिलाओं की उत्पत्ति ऐसे शैलमूलों के दृढ़ीभवन के फलस्वरूप होती है जिनकी संरचना स्फटिक (quartz) एवं क्षारीय फैलस्पार (alkali felspar) के 'यूटेकटिक मिश्रणों के निकट हो। ('यूटेकटिक मिश्रण' दो खनिजों के अविरल समानुपात की वह स्थिति है, जब ताप की एक निश्चित अवस्था में दोनों घटकों का एक साथ क्रिस्टल बनने लगे। यूटेकटिक बिन्दुओं के निकट इस प्रकार के शैलमूल पर्याप्त श्यान (viscous) हो उठते हैं। फलस्वरूप या तो मणिभीकरण पूर्णत: अवरुद्ध हो जाता है, या अतिशय बाधापूर्ण अवस्था में संपन्न होता है। तीव्रगति से शीतल होने के कारण ऐसे शैलों का उद्भव होता है जो प्राय: पूर्णत: काचीय होते हैं। ऑब्सिडियन क्लिफ, यलोस्टोन पार्क, संयुक्त राज्य अमरीका, में ७५ इंच से १०० इंच मोटे लावास्तरोें के रूप में ऑब्सिडियन मिलता है। भारत में गिरनार, एवं पावागढ़ के लावास्तरों से ऑब्सिडियन की प्राप्ति प्रचुर मात्रा में होती है। .

1 संबंध: आग्नेय शैल

आग्नेय शैल

ग्रेनाइट (एक आग्नेय चट्टान) चेन्नई मे, भारत. आग्नेय चट्टान (जर्मन: Magmatisches Gestein) की रचना धरातल के नीचे स्थित तप्त एवं तरल चट्टानी पदार्थ, अर्थात् मैग्मा, के सतह के ऊपर आकार लावा प्रवाह के रूप में निकल कर अथवा ऊपर उठने के क्रम में बाहर निकल पाने से पहले ही, सतह के नीचे ही ठंढे होकर इन पिघले पदार्थों के ठोस रूप में जम जाने से होती है। अतः आग्नेय चट्टानें पिघले हुए चट्टानी पदार्थ के ठंढे होकर जम जाने से बनती हैं। ये रवेदार भी हो सकती है और बिना कणों या रवे के भी। ये चट्टानें पृथ्वी पर पायी जाने वाली अन्य दो प्रमुख चट्टानों, अवसादी और रूपांतरित के साथ मिलकर पृथ्वी पर पायी जाने वाली चट्टानों के तीन प्रमुख प्रकार बनाती हैं। पृथ्वी के धरातल की उत्पत्ति में सर्वप्रथम इनका निर्माण होने के कारण इन्हें 'प्राथमिक शैल' भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है कि यही वे पहली चट्टानें हैं जो पिघले हुए चट्टानी पदार्थ से बनती हैंजबकि अवसादी या रूपांतरित चट्टानें इन आग्नेय चट्टानों के टूटने या ताप और दाब के प्रभाव आकार में बदलने से से बनती हैं। इनके दो मुख्य प्रकार हैं। ज्वालामुखी उदगार के समय भूगर्भ से निकालने वाला लावा जब धरातल पर जमकर ठंडा हो जाने के पश्चात आग्नेय चट्टानों में परिवर्तित हो जाता है तो इसे बहिर्भेदी या ज्वालामुखीय चट्टान कहा जाता है। इसके विपरीत जब ऊपर उठता हुआ मैग्मा धरातल की सतह पर आकर बाहर निकलने से पहले ही ज़मीन के अन्दर ही ठंडा होकर जम जाता है तो इस प्रकार अंतर्भेदी चट्टान कहते हैं। चूँकि, ज़मीनी सतह से नीचे बनने वाली आग्नेय चट्टानें धीरे-धीरे ठंडी होकर जमती है, ये रवेदार होती हैं, क्योंकि मैग्माई पदार्थ के अणुओं के एक दूसरे के साथ संयोजित होकर क्रिस्टल या रवे बनाने हेतु काफ़ी समय मिल जाता है। इसके ठीक उलट, जब मैग्मा लावा के रूप में ज्वालामुखी उदगार के समय बाहर निकल कर ठंढा होकर जमता है तो रवे बनने के लिये पर्याप्त समय नहीं मिलता और इस प्रकार बहिर्भेदी आग्नेय चट्टानें काँचीय या गैर-रवेदार (glassy) होती हैं। आग्नेय चट्टानों में परतों और जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव पाया जाता है। अप्रवेश्यता अधिक होने के कारण इन पर रासायनिक अपक्षय का बहुत कम प्रभाव पड़ता है, लेकिन यांत्रिक एवं भौतिक अपक्षय के कारण इनका विघटन व वियोजन प्रारम्भ हो जाता है। ग्रेनाइट, बेसाल्ट, गैब्रो, ऑब्सीडियन, डायोराईट, डोलोराईट, एन्डेसाईट, पेरिड़ोटाईट, फेलसाईट, पिचस्टोन, प्युमाइस इत्यादि आग्नेय चट्टानों के प्रमुख उदाहरण है। .

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