लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

ज्यां-पाल सार्त्र

सूची ज्यां-पाल सार्त्र

ज्यां-पाल सार्त्र नोबेल पुरस्कार साहित्य विजेता, १९६४ ज्यां-पाल सार्त्र अस्तित्ववाद के पहले विचारकों में से माने जाते हैं। वह बीसवीं सदी में फ्रान्स के सर्वप्रधान दार्शनिक कहे जा सकते हैं। कई बार उन्हें अस्तित्ववाद के जन्मदाता के रूप में भी देखा जाता है। अपनी पुस्तक "ल नौसी" में सार्त्र एक ऐसे अध्यापक की कथा सुनाते हैं जिसे ये इलहाम होता है कि उसका पर्यावरण जिससे उसे इतना लगाव है वो बस कि़ंचित् निर्जीव और तत्वहीन वस्तुओं से निर्मित है। किन्तु उन निर्जीव वस्तुओं से ही उसकी तमाम भावनाएँ जन्म ले चुकी थीं। सार्त्र का निधन अप्रैल १५, १९८० को पेरिस में हआ। .

19 संबंधों: दर्शनशास्त्र, नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची, फ्रांस की संस्कृति, फ्रेडरिक एंगेल्स, मनोचिकित्सा, सार, साहित्य में नोबेल पुरस्कार, साहित्य में नोबेल विजेताओं की सूची, सिटिजन केन, सिमोन द बोउआर, संरचनावाद, ज़ाहिदा ज़ेदी, ज़ाहिदा जेदी, जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल, वेटिंग फ़ॉर गोडोट, कार्ल मार्क्स, अनीश्वरवादी अस्तित्ववाद, अस्तित्ववाद, २१ जून

दर्शनशास्त्र

दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, अर्थात प्रकृति तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शनशास्त्र सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया। भारतीय दर्शन का इतिहास अत्यन्त पुराना है किन्तु फिलॉसफ़ी (Philosophy) के अर्थों में दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस ने किया था। विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को प्लेटो ने विकसित किया था। उसकी उत्पत्ति दास-स्वामी समाज में एक ऐसे विज्ञान के रूप में हुई जिसने वस्तुगत जगत तथा स्वयं अपने विषय में मनुष्य के ज्ञान के सकल योग को ऐक्यबद्ध किया था। यह मानव इतिहास के आरंभिक सोपानों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। जगत के विषय में सामान्य दृष्टिकोण का विस्तार करने तथा सामान्य आधारों व नियमों का करने, यथार्थ के विषय में चिंतन की तर्कबुद्धिपरक, तर्क तथा संज्ञान के सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता से दर्शनशास्त्र का एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में जन्म हुआ। पृथक विज्ञान के रूप में दर्शन का आधारभूत प्रश्न स्वत्व के साथ चिंतन के, भूतद्रव्य के साथ चेतना के संबंध की समस्या है। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और दर्शनशास्त्र · और देखें »

नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची

क्रोना (लगभग यूएस $ 1.2 मिलयन, INR 7.6 करोड़), डिप्लोमा और एक स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता है। नोबेल पुरस्कार हर वर्ष रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस, द स्वीडिश एकेडमी, द कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट, एवं द नॉर्वेजियन नोबेल कमिटी द्वारा उन लोगों और संस्थाओं को प्रदान की जाती है जिन्होंने रसायनशास्त्र, भौतिकीशास्त्र, साहित्य, शांति, एवं औषधीविज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया हो। नोबेल पुरस्कारों की स्थापना अल्फ्रेड नोबेल के वसीयतनामे के अनुसार १८९५ में हुई। वसीयतनामे के मुताबकि नोबेल पुरस्कारों का प्रशासकीय कार्य नोबेल फाउंडेशन देखेगा। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत १९६८ में स्वीडन की केंद्रीय बैंक स्वेरिंज रिक्सबैंक द्वारा हुई। यह पुरस्कार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य करने वाले लोगों और संस्थाओं को हर वर्ष दिया जाता है। प्रत्येक पुरस्कार एक अलग समिति द्वारा प्रदान किया जाता है। द रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस भौतिकी, अर्थशास्त्र और रसायनशास्त्र में, कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट औषधी के क्षेत्र में, नॉर्वेजियन नोबेल समिति शांति के क्षेत्र में पुरस्कार प्रदान करती है। प्रत्येक पुरस्कार विजेता को एक मेडल, एक डिप्लोमा, एक मोनेटरी एवार्ड प्रदान की जाती है। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची · और देखें »

फ्रांस की संस्कृति

स्वच्छंदतावाद की शैलीगत विचारों का उपयोग करते हुए यूजीन देलाक्रोइक्स की जुलाई क्रांति का चित्रण करनेवाली सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग लि‍बर्टी लीडिंग द पीपुल कहलायी.चूंकि लिबर्टी (आजादी), आदर्श वाक्य «लिबर्टी एगैलाइट फ्रैंटर्नाइट» («Liberté, égalité, fraternité») का हिस्सा है, यह पेंटिंग फ्रांसिसी क्रांति का प्राथमिक प्रतीक है, जैसा कि फ्रांस ने इसे लिया है। फ्रांस की संस्कृति और फ्रांसीसियों की संस्कृति भूगोल, गंभीर ऐतिहासिक घटनाओं और विदेशी तथा आंतरिक शक्तियों और समूहों द्वारा गढ़ी गयी है। फ्रांस और विशेष रूप से पेरिस, ने सत्रहवीं सदी से उन्नीसवीं सदी तक विश्वव्यापी स्तर पर उच्च सांस्कृतिक केंद्र और आलंकारिक कला के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है, इस मामले में यह यूरोप में प्रथम है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण से, फ्रांस ने आधुनिक कला, सिनेमा, फैशन और भोजन शैली में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। सदियों तक फ़्रांसिसी संस्कृति का महत्व इसके आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य महत्व के आधार पर घटता और बढ़ता रहा है। आज फ़्रांसिसी संस्कृति महान क्षेत्रीय तथा सामाजिक-आर्थिक अंतरों और सुदृढ़ एकीकृत प्रवृत्तियों दोनों के द्वारा चिह्नित है। चाहे फ्रांस या यूरोप में या सामान्य रूप से, सामाजिकीकरण प्रक्रिया और भौतिक कलाकृतियों के माध्यम से मान्यताओं और मूल्यों के मिलन को सीखा जाता है। समाज के सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों का मार्गदर्शन संस्कृति करती है और यह निजी मान्यताओं और मूल्यों को प्रभावित करती है जो व्यक्ति की अपने वातावरण की अभिज्ञता को आकार देते हैं: "संस्कृति एक समूह के सदस्यों के साझा विश्वासों, मूल्यों, मानदंडों और भौतिक वस्तुओं का विज्ञ समुच्चय है। बचपन से बुढ़ापे तक के जीवनक्रम के दौरान समूहों में हम जो कुछ भी सीखते हैं वो सब संस्कृति में शामिल है।" लेकिन "फ़्रांसिसी" संस्कृति की अवधारणा कुछ कठिनाइयां खड़ी करती है और "फ़्रांसिसी" ("फ्रेंच") अभिव्यक्ति का ठीक क्या मतलब है इस बारे में धारणाओं या अनुमानों की एक श्रृंखला है। जबकि अमेरिकी संस्कृति के बारे में "मेल्टिंग पौट" और सांस्कृतिक विविधता की धारणा को मान लिया गया है, लेकिन "फ़्रांसिसी संस्कृति" एक विशेष भौगोलिक इकाई (जैसे कि कह सकते हैं, "मेट्रोपोलिटन फ्रांस", आम तौर पर इसके विदेश स्थित क्षेत्रों को छोड़ दिया जाता है) या नस्ल, भाषा, धर्म और भूगोल द्वारा परिभाषित एक विशिष्ट ऐतिहासिक-सामाजिक समूह को अव्यक्त रूप से संदर्भित है। हालांकि "फ्रेंचनेस" की वास्तविकताएं अत्यंत जटिल हैं। उन्नीसवीं सदी के अंतिम चरण से पहले, "मेट्रोपोलिटन फ्रांस" मुख्यतः स्थानीय प्रथाओं और क्षेत्रीय अंतरों का एक पैबंद भर था, जिसका एन्सियन रिजीम (फ्रांस की राज्य क्रांति से पूर्व की शासन-पद्धति) के एकीकरण का उद्देश्य था और फ़्रांसिसी क्रांति ने इसके खिलाफ काम करना शुरू किया था; और आज का फ्रांस अनेक देशी और विदेशी भाषाओं, बहु-जातीयताओं और धर्मों तथा क्षेत्रीय विविधता वाला देश है, जिसमें कोर्सिका, ग्वाडेलोप, मार्टिनिक और विश्व में अन्य स्थानों के फ़्रांसिसी नागरिक शामिल हैं। इस बृहद विविधता के बावजूद, एक प्रकार की विशिष्ट या साझा संस्कृति या "सांस्कृतिक पहचान" का सृजन एक शक्तिशाली आंतरिक शक्तियों का परिणाम है - जैसे कि फ़्रांसिसी शिक्षा पद्धति, अनिवार्य सैन्य सेवा, सरकारी भाषाई व सांस्कृतिक नीतियां - और फ्रैंको-प्रशिया युद्ध तथा दो विश्व युद्धों जैसी गंभीर ऐतिहासिक घटनाएं ऎसी प्रभावशाली आंतरिक शक्ति रहीं जिनसे 200 सालों के दौरान एक राष्ट्रीय पहचान की भावना को पैदा हुई। हालांकि, इन एकीकृत शक्तियों के बावजूद, फ्रांस आज भी सामाजिक वर्ग और संस्कृति में महत्वपूर्ण क्षेत्रीय मतभेदों (भोजन, भाषा/उच्चारण, स्थानीय परंपराएं) द्वारा चिह्नित होता है, जो कि समकालीन सामाजिक शक्तियों (ग्रामीण क्षेत्रों से आबादी का पलायन, अप्रवासन, केंद्रीकरण, बाजार की शक्तियां और विश्व अर्थव्यवस्था) का सामना करने में अक्षम रहेगा.

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और फ्रांस की संस्कृति · और देखें »

फ्रेडरिक एंगेल्स

फ्रेडरिक एंगेल्स (२८ नवंबर, १८२० – ५ अगस्त, १८९५ एक जर्मन समाजशास्त्री एवं दार्शनिक थे1 एंगेल्स और उनके साथी साथी कार्ल मार्क्स मार्क्सवाद के सिद्धांत के प्रतिपादन का श्रेय प्राप्त है। एंगेल्स ने 1845 में इंग्लैंड के मजदूर वर्ग की स्थिति पर द कंडीशन ऑफ वर्किंग क्लास इन इंग्लैंड नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने मार्क्स के साथ मिलकर 1848 में कम्युनिस्ट घोषणापत्र की रचना की और बाद में अभूतपूर्व पुस्तक "पूंजी" दास कैपिटल को लिखने के लिये मार्क्स की आर्थिक तौर पर मदद की। मार्क्स की मौत हो जाने के बाद एंगेल्स ने पूंजी के दूसरे और तीसरे खंड का संपादन भी किया। एंगेल्स ने अतिरिक्त पूंजी के नियम पर मार्क्स के लेखों को जमा करने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई और अंत में इसे पूंजी के चौथे खंड के तौर पर प्रकाशित किया गया। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और फ्रेडरिक एंगेल्स · और देखें »

मनोचिकित्सा

किसी मनोचिकित्सक द्वारा किसी मानसिक रोगी के साथ सम्बन्धपूर्वक बातचीत एवं सलाह मनोचिकित्सा या मनश्चिकित्सा (Psychotherapy) कहलाती है। यह लोगों की व्यवहार सम्बन्धी विविध समस्याओं में बहुत उपयोगी होती है। मनोचिकित्सक कई तरह की तकनीकें प्रयोग करते हैं, जैसे- प्रायोगिक सम्बन्ध-निर्माण, संवाद, संचार तथा व्यवहार-परिवर्तन आदि। इनसे रोगी का मानसिक-स्वास्थ्य एवं सामूहिक-सम्बन्ध (group relationships) सुधरते हैं। डॉ॰ विक्टर फ्रैंकलिन ने गहन अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पूरा मनोविज्ञान और मनोचिकित्सा की पद्धति जीवन की सार्थकता के विचार पर ही आधारित होती हैं। मनोचिकित्सा शास्त्र में किसी रोगी की बुनियादी दिक्कतों को समझने की कोशिश की जाती है। आधुनिक समाज में हम वास्तविक खुशियों से दूर होते जा रहे हैं। आधुनिकता का सही मतलब हम नहीं समझते हैं। जीवन के लिए क्या और कितना जरूरी है। क्या गैर-जरूरी है। आंख मूंद कर, तर्क किए बगैर हम चीजों का अनुसरण करने लग जाते हैं। जीवन का लुत्फ उठाना और पीड़ा की उपेक्षा करना ही केवल मनुष्य को प्रेरित नहीं करती है। मनोचिकित्सा या एक मनोचिकित्सक के साथ व्यक्तिगत परामर्श, एक साभिप्राय अंतर्वैयक्तिक सम्बन्ध होता है, जिसका प्रयोग प्रशिक्षित मनोचिकित्सक एक ग्राहक या रोगी की जीवनयापन संबंधी समस्याओं के निवारण में सहायता के लिए करते हैं। इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति में अपने कल्याण के प्रति भावना को बढाना होता है। मनोचिकित्सक अनुभवजनित सम्बन्ध निर्माण, संवाद, संचार और व्यवहार पर आधारित तकनीकों की एक विस्तृत श्रंखला का प्रयोग करते हैं, इन तकनीकों की संरचना ग्राहक या रोगी के मानसिक स्वास्थ अथवा समूह के साथ उसके व्यवहार में सुधार करने वाली होती है, (जैसे परिवार में रोगी का व्यवहार).

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और मनोचिकित्सा · और देखें »

सार

दर्शन में, सार एक गुण या गुणों का समुच्चय होता हैं जो किसी सत्त्व या पदार्थ को मौलिकता देता हैं, और जो अनिवार्यता से उसके पास होता ही हैं, और जिसके अभाव में वह अपनी पहचान खो देता हैं। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और सार · और देखें »

साहित्य में नोबेल पुरस्कार

1901 में सुली प्रुधोम (1839-1907), एक फ्रांसीसी कवि और निबंधकार, साहित्य में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। 1901 से, साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार (Nobelpriset i litteratur) वार्षिक रूप से किसी भी देश के उस लेखक को दिया जाता है जिसने, सर अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुसार, "साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो" (मूल स्वीडिश den som inom litteraturen har producerat det utmärktaste i idealisk riktning)। यद्यपि व्यक्ति का काम कभी कभी विशेष रूप से उल्लेखनीय नहीं होता, यहां पर काम से तात्पर्य पूरी तरह से लेखक के काम से है। इस बात का निर्णय स्वीडिश अकादमी ही लेती है कि किस वर्ष में यह पुरस्कार किसे दिया जाये.

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और साहित्य में नोबेल पुरस्कार · और देखें »

साहित्य में नोबेल विजेताओं की सूची

ये साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची है: .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और साहित्य में नोबेल विजेताओं की सूची · और देखें »

सिटिजन केन

सिटिजन केन विश्व की महानतम फिल्मों में शुमार है। इस फिल्म का निर्देशन अमेरिकी फिल्म निर्देशक ऑर्सन वेल्स ने किया था। सिटिजन केनर्सन वेल्स द्वारा निर्देशित पहली फीचर फिल्म है। इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद इसे ऑस्कर पुरस्कार के लिए नौ श्रेणियों में नामांकित किया गया और इसे सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए ऑस्कर पुरस्कार मिला। इस फिल्म के बेजोड़ शिल्प, छायांकन में नूतन प्रयोग और कथ्य को प्रभावशाली ढंग से रखने की वजह से दुनिया भर में सराहना मिली। ब्रिटिश फिल्म संस्थान की पत्रिका साइट एंड साउंड के सर्वेक्षण और मतसंग्रह में ये फिल्म सन 2012 तक पहले पायदान पर रही। बेहतरीन फिल्म होने के बावजूद पहले प्रदर्शन में ये फिल्म बुरी तरह से नाकाम रही। कोई वितरक इस फिल्म को हाथ लगाने को भी तैयार नहीं था। इसके पीछे वजह थी इसकी कहानी। इस फिल्म की कहानी उस जमाने के अमेरिकी मीडिया मुगल विलियम रैंडॉल्फ हर्स्ट के जीवन पर आधारित थी। जिस तरह आज दुनिया भर में ऑस्ट्रेलियाई मीडिया मुग़ल रुपर्ट मर्डोक़ को जाना जाता है, उसी तरह इस सदी की शुरुआत में अमेरिकी मीडिया किंग हर्स्ट की तूती बोलती थी। 1863 में जन्मे हर्स्ट ने महज़ 24 साल की उम्र में अपने पिता से 'द सन फ्रांसिस्को एक्ज़ामिनर' नाम के अखबार का कार्यभार लिया था। लेकिन थोड़े ही वर्षों बाद के उसने न्यूयॉर्क के अख़बार 'द न्यूयॉर्क जर्नल' का भी अधिग्रहण कर लिया और अपने प्रतिद्वंदी अखबारों से सर्कुलेशन को लेकर बेहद निचले स्तर की लड़ाई लड़ी थी। उसने अमेरिका के लगभग सभी प्रमुख शहरों में करीब 30 अखबारों और पत्रिकाओं का एक प्रकाशन समूह खड़ा किया जो उन दिनों दुनिया में सबसे विशाल था। हर्स्ट ने मानवीय मूल्यों और पत्रकारिता के सिद्धांतों की कभी परवाह नहीं की। कहते हैं यलो जर्नलिज्म यानी पीत पत्रकारिता की शुरुआत उसने ने ही की थी। जैसी कि उम्मीद थी, हर्स्ट ने इस फिल्म का जोरदार विरोध किया। उसने इस फिल्म का अपने अखबारों से पूरी तरह बायकॉट किया और यहां तक कि उसके विज्ञापन भी छापने से मना कर दिया। कहते हैं उसने फिल्म को उस समय आठ लाख पाउंड में खरीदने का ऑफर रखा था, लेकिन वेल्स ने इसे ठुकरा दिया। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और सिटिजन केन · और देखें »

सिमोन द बोउआर

सिमोन द बुआ (फ़्रांसीसी: Simone de Beauvoir) (जन्म: ९ जनवरी १९०८ - मृत्यु: १४ अप्रैल १९८६) एक फ़्रांसीसी लेखिका और दार्शनिक हैं। स्त्री उपेक्षिता (फ़्रांसीसी: Le Deuxième Sexe, जून १९४९) जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखने वाली सिमोन का जन्म पैरिस में हुआ था। लड़कियों के लिए बने कैथलिक विद्यालय में उनकी आरंभिक शिक्षा हुई। उनका कहना था की स्त्री पैदा नहीं होती, उसे बनाया जाता है। सिमोन का मानना था कि स्त्रियोचित गुण दरअसल समाज व परिवार द्वारा लड़की में भरे जाते हैं, क्योंकि वह भी वैसे ही जन्म लेती है जैसे कि पुरुष और उसमें भी वे सभी क्षमताएं, इच्छाएं, गुण होते हैं जो कि किसी लड़के में। सिमोन का बचपन सुखपूर्वक बीता, लेकिन बाद के वर्षो में अभावग्रस्त जीवन भी उन्होंने जिया। १५ वर्ष की आयु में सिमोन ने निर्णय ले लिया था कि वह एक लेखिका बनेंगी। दर्शनशास्त्र, राजनीति और सामाजिक मुद्दे उनके पसंदीदा विषय थे। दर्शन की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने पैरिस विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहां उनकी भेंट बुद्धिजीवी ज्यां पॉल सा‌र्त्र से हुई। बाद में यह बौद्धिक संबंध आजीवन चला। द सेकंड सेक्स का हिंदी अनुवाद स्त्री उपेक्षिता भी बहुत लोकप्रिय हुआ। १९७० में फ्रांस के स्त्री मुक्ति आंदोलन में सिमोन ने भागीदारी की। स्त्री-अधिकारों सहित तमाम सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर सिमोन की भागीदारी समय-समय पर होती रही। १९७३ का समय उनके लिए परेशानियों भरा था। सा‌र्त्र दृष्टिहीन हो गए थे। १९८० में सा‌र्त्र का देहांत हो गया। १९८५-८६ में सिमोन का स्वास्थ्य भी बहुत गिर गया था। निमोनिया या फिर पल्मोनरी एडोमा में खराबी के चलते उनका देहांत हो गया। सा‌र्त्र की कब्र के बगल में ही उन्हें भी दफनाया गया। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और सिमोन द बोउआर · और देखें »

संरचनावाद

संरचनावाद (स्ट्रक्चरलिज्म) मानव विज्ञान की एक ऐसी पद्धति है जो संकेत विज्ञान (यानी संकेतों की एक प्रणाली) और सहजता से परस्पर संबद्ध भागों की एक पद्धति के अनुसार तथ्यों का विश्लेषण करने का प्रयास करती है। स्वीडन के प्रसिद्ध भाषाविद फर्दिनान्द द सस्यूर (Ferdinand de Saussure) इसके प्रवर्तक माने जाते हैं, जिन्हें हिन्दी में सस्यूर नाम से जाना जाता है। तर्क के संरचनावादी तरीके को विभिन्न क्षेत्रों जैसे, नृविज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, साहित्यिक आलोचना और यहां तक कि वास्तुकला में भी लागू किया गया है। इसने एक विधि के रूप में नहीं बल्कि एक बौद्धिक आंदोलन के रूप में संरचनावाद की भोर में प्रवेश किया, जो 1960 के दशक में फ्रांस में अस्तित्ववाद की जगह लेने आया था। 1970 के दशक में, यह आलोचकों के आन्तरिक गुस्से का शिकार हुआ, जिन्होंने इस पर बहुत ही 'अनमनीय' तथा 'अनैतिहासिक' होने का आरोप लगाया। हालांकि, संरचनावाद के कई समर्थकों, जैसे कि जैक्स लेकन ने महाद्वीपीय मान्यताओं और इसके आलोचकों की मूल धारणाओं पर ज़ोर देकर प्रभाव डालना शुरू किया कि उत्तर-संरचनावाद, संरचनावाद की निरंतरता है।जॉन स्टुरॉक, स्ट्रक्चरालिज़म एण्ड सिंस, परिचय.

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और संरचनावाद · और देखें »

ज़ाहिदा ज़ेदी

ज़ाहिदा जेदी (4 जनवरी, 1930 – 11 जनवरी, 2011) भारतीय विद्वान, अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर, कवि, नाटककार और साहित्यिक आलोचक थे।  उनके साहित्यिक योगदान में सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, और दार्शनिक पहलुओं से संबंधित उर्दू और अंग्रेजी में 30 से अधिक पुस्तकें, और चेखव, पिरंडेलो, बेकेट, सार्त्र और आईनेस्को के साहित्यिक कार्यों का अनुवाद शामिल हैं। उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में भारतीय और पश्चिमी लेखकों के कई नाटकों का निर्माण किया और निर्देशित किया।  उसने ग़ालिब इंस्टीट्यूट, दिल्ली, द्वारा उर्दू ड्रामा के लिए हम सब ग़ालिब अवॉर्ड और कुल हिन्दू बहादुर शाह जफर अवार्ड प्राप्त किया। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और ज़ाहिदा ज़ेदी · और देखें »

ज़ाहिदा जेदी

ज़ाहिदा जेदी (4 जनवरी, 1930 – 11 जनवरी, 2011) भारतीय विद्वान, अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर, कवि, नाटककार और साहित्यिक आलोचक थे।  उनके साहित्यिक योगदान में सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, और दार्शनिक पहलुओं से संबंधित उर्दू और अंग्रेजी में 30 से अधिक पुस्तकें, और चेखव, पिरंडेलो, बेकेट, सार्त्र और आईनेस्को के साहित्यिक कार्यों का अनुवाद शामिल हैं। उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में भारतीय और पश्चिमी लेखकों के कई नाटकों का निर्माण किया और निर्देशित किया।  उसने ग़ालिब इंस्टीट्यूट, दिल्ली, द्वारा उर्दू ड्रामा के लिए हम सब ग़ालिब अवॉर्ड और कुल हिन्दू बहादुर शाह जफर अवार्ड प्राप्त किया। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और ज़ाहिदा जेदी · और देखें »

जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल

जार्ज विलहेम फ्रेड्रिक हेगेल (1770-1831) सुप्रसिद्ध दार्शनिक थे। वे कई वर्ष तक बर्लिन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे और उनका देहावसान भी उसी नगर में हुआ। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हेगेल · और देखें »

वेटिंग फ़ॉर गोडोट

वेटिंग फॉर गोडोट शमूएल बेकेट द्वारा रचित एक बेतुका नाटक है, जिसमें दो मुख्य पात्र व्लादिमीर और एस्ट्रागन एक अन्य काल्पनिक पात्र गोडोट के आने की अंतहीन व निष्फल प्रतीक्षा करते हैं। इस नाटक के प्रीमियर से अब तक गोडोट की अनुपस्थिति व अन्य पहलुओं को लेकर अनेक व्याख्यायें की जा चुकी हैं। इसे "बीसवीं सदी का सबसे प्रभावशाली अंग्रेजी भाषा का नाटक" भी बुलाया जा चुका है। असल में वेटिंग फॉर गोडोट बेकेट के ही फ्रेंच नाटक एन अटेंडेंट गोडोट का उनके स्वयं के द्वारा ही किया गया अंग्रेजी अनुवाद है तथा अंग्रेजी में इसे दो भागों की त्रासदी-कॉमेडी का उप-शीर्षक दिया गया है".

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और वेटिंग फ़ॉर गोडोट · और देखें »

कार्ल मार्क्स

कार्ल हेनरिख मार्क्स (1818 - 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता थे। इनका जन्म 5 मई 1818 को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। तत्पश्चात्‌ उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए। 1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात्‌ 1842 में मार्क्स उसी वर्ष कोलोन से प्रकाशित 'राइनिशे जीतुंग' पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात्‌ संपादक के रूप में सम्मिलित हुआ किंतु सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन और प्रसार करने के कारण 15 महीने बाद ही 1843 में उस पत्र का प्रकाशन बंद करवा दिया गया। मार्क्स पेरिस चला गया, वहाँ उसने 'द्यूस फ्रांजोसिश' जारबूशर पत्र में हीगेल के नैतिक दर्शन पर अनेक लेख लिखे। 1845 में वह फ्रांस से निष्कासित होकर ब्रूसेल्स चला गया और वहीं उसने जर्मनी के मजदूर सगंठन और 'कम्युनिस्ट लीग' के निर्माण में सक्रिय योग दिया। 1847 में एजेंल्स के साथ 'अंतराष्ट्रीय समाजवाद' का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मॉनिफेस्टो) प्रकाशित किया 1848 में मार्क्स ने पुन: कोलोन में 'नेवे राइनिशे जीतुंग' का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुआ। वह पेरिस होते हुए लंदन चला गया जीवन पर्यंत वहीं रहा। लंदन में सबसे पहले उसने 'कम्युनिस्ट लीग' की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई। अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। उसका 'नेवे राइनिश जीतुंग' भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया। कोलकाता, भारत 1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष 'जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी' नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग थी, जो उसने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती। अत: उसने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल, हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन मास्‍को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित किया। 'द कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए। 'वर्गसंघर्ष' का सिद्धांत मार्क्स के 'वैज्ञानिक समाजवाद' का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं। 1864 में लंदन में 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' की स्थापना में मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ की सभी घोषणाएँ, नीतिश् और कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार किये जाते थे। कोई एक वर्ष तक संघ का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, किंतु बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, फ्रांसीसी जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यूनों के चलते 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो गया। किंतु उसकी प्रवृति और चेतना अनेक देशों में समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के अस्तित्व के कारण कायम रही। 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो जाने पर मार्क्स ने पुन: लेखनी उठाई। किंतु निरंतर अस्वस्थता के कारण उसके शोधकार्य में अनेक बाधाएँ आईं। मार्च 14, 1883 को मार्क्स के तूफानी जीवन की कहानी समाप्त हो गई। मार्क्स का प्राय: सारा जीवन भयानक आर्थिक संकटों के बीच व्यतीत हुआ। उसकी छह संतानो में तीन कन्याएँ ही जीवित रहीं। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और कार्ल मार्क्स · और देखें »

अनीश्वरवादी अस्तित्ववाद

मार्टिन हाइडेगर, ज्याँ पाल सार्त्र, आदि अनीश्वरवादी अस्तित्ववाद के विचारकों ने मनुष्य को अकेला और निस्सहाय माना है। नित्शे के अनुसार ईश्वर मर चुका है। जबकि ईश्वर ही नहीं तो मनुष्य अपने प्रत्येक कर्म के लिये स्वंय उत्तरदायी है। सार्त्र संघर्ष में हीं मानव जीवन की गति मानते हैं। श्रेणी:दर्शन श्रेणी:चित्र जोड़ें.

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और अनीश्वरवादी अस्तित्ववाद · और देखें »

अस्तित्ववाद

किर्कगार्द, दास्त्रावस्की, नीत्शे तथा सार्त्र (बाएँ से दाएँ, ऊपर से नीचे) अस्तित्ववाद (एग्जिस्टेशन्शिएलिज़्म / existentialism) एक ऐसी विचारधारा है जिसमें अस्तित्व को तत्व से ऊपर समझा जाता है। इसके अनुसार मानव अपने पर्यावरण की निर्जीव वस्तुओं से आत्मबोध का उत्तरदायित्व पूर्णतया स्वयं लेता है। अतः उसे अपने पर्यावरण में तत्वज्ञान की अपेक्षा नहीं होती। 1940 व 1950 के दशक में अस्तित्ववाद पूरे यूरोप में एक विचारक्रांति के रूप में उभरा। यूरोप भर के दार्शनिक व विचारकों ने इस आंदोलन में अपना योगदान दिया है। इनमें ज्यां-पाल सार्त्र, अल्बर्ट कामू व इंगमार बर्गमन प्रमुख हैं। कालांतर में अस्तित्ववाद की दो धाराएं हो गई।.

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और अस्तित्ववाद · और देखें »

२१ जून

21 जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 172वाँ (लीप वर्ष में 173 वाँ) दिन है। साल में अभी और 193 दिन बाकी हैं। २१जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भी भी मनाया जाता है जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में रखकर की जिसकी स्वीकृति संयुक्त राष्ट्र ने ११ दिसंबर २०१४ को दे दी। भारत में योग का प्रतिनिधित्व योगगुरु बाबा रामदेव करते है जिन्होंने लाखो गरीब लोगो को निशुल्क योग शिविर लगा कर कई गंभीर बीमारियों से निजात दिलाई है। योग मन की शांति का एक मार्ग है। .

नई!!: ज्यां-पाल सार्त्र और २१ जून · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

सार्त्र, ज्याँ पॉल सार्त्र

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »