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जौ

सूची जौ

'''जौ''' के पौधे के विभिन्न भाग जौ पृथ्वी पर सबसे प्राचीन काल से कृषि किये जाने वाले अनाजों में से एक है। इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता रहा है। संस्कृत में इसे "यव" कहते हैं। रूस, यूक्रेन, अमरीका, जर्मनी, कनाडा और भारत में यह मुख्यत: पैदा होता है। .

74 संबंधों: टॉडगढ, एसिटिक अम्ल, झुलसा रोग, डोडा नदी, तुर्की, तुर्की का भूगोल, त्रिवेणी नहर, तृण, धोलासर, नीदरलैण्ड, नीवारिका, पश्चिम वर्जीनिया की मुहर, पिण्ड, पुनरुज्जीवन, प्रतापगढ़, राजस्थान, प्राचीन मिस्र, पोएसी, पोर्टलैंड, ऑरेगॉन, फतेहाबाद, बाँस, बियर, बीकानेर, बीकानेर की जलवायु, भारतीय इतिहास की समयरेखा, भारतीय कृषि का इतिहास, भूमंडलीय ऊष्मीकरण का प्रभाव, भोजली देवी, मरूद्यान, माल्ट, मिल्वौकी, विस्कॉन्सिन, मेहरगढ़, यवशर्करा, रबी की फ़सल, रोटी, शिकोकू, श्रीलंका का इतिहास, सत्तू, साबुत अनाज, सिरका, सिरेनेइका, सिंधु घाटी सभ्यता, स्कैण्डिनेवियाई देश, स्कैंडिनेविया प्रायद्वीप, स्कॉट्लैण्ड, हमीरपुर, उत्तर प्रदेश, हावड़ा, जाज़ान प्रान्त, वसन्त पञ्चमी, वानस्पतिक नाम, वारसॉ, ..., व्हिस्की, ख़कासिया, ऑस्ट्रिया, आसवन, आहारीय रेशा, आंदालुसिया, इथेनॉल, इब्ब प्रान्त, इज़राइल, करमा, कल्लर भूमि, कातालोनिया, कार्बनिक यौगिक, कांधार, कुटज, क्षारीय भूमि, कृषि, कृषि जिंसों के सबसे बड़े उत्पादक देशों की सूची, कृषि का इतिहास, अन-नफ़ूद रेगिस्तान, अनबार प्रान्त, अरुणाचल प्रदेश, अर्जेण्टीना, अंकुरण सूचकांक विस्तार (24 अधिक) »

टॉडगढ

अजमेर जि‍ले के अंन्‍ति‍म छोर में अरावली पर्वत श्रृंखला में मन मोहक दर्शनीय पर्यटक स्‍थल टॉडगढ़ बसा हुआ है जि‍सके चारो और एवं आस पास सुगंन्‍धि‍त मनोहारी हरि‍याली समेटे हुए पहाडि‍या एवं वन अभ्‍यारण्य है। क्षेत्र का क्षेत्रफल 7902 हैक्‍टेयर है जि‍नमें वन क्षेत्र 3534 हैक्‍टेयर, पहाडि‍या 2153 हैक्‍टेयर, काश्‍त योग्‍य 640 हैक्‍टेयर है। टॉडगढ़ को राजस्‍थान का मि‍नी माउण्‍ट आबू भी कहते हैं, क्‍यों कि‍ यहां की जलवायु माउण्‍ट आबू से काफी मि‍लती है व माउण्‍ट आबू से मात्र 5 मीटर समुद्र तल से नीचा हैं। टॉडगढ़ का पुराना नाम बरसा वाडा था। जि‍से बरसा नाम के गुर्जर जाति‍ के व्‍यक्‍ति‍ ने बसाया था। बरसा गुर्जर ने तहसील भवन के पीछे देव नारायण मंदि‍र की स्‍थापना की जो आज भी स्‍थि‍त है। यहां आस पास के लोग बहादुर थें एवं अंग्रेजी शासन काल में कि‍सी के वश में नही आ रहे थे, तब ई.स. 1821 में नसीराबाद छावनी से कर्नल जेम्‍स टॉड पोलि‍टि‍कल ऐजेन्‍ट (अंग्रेज सरकार) हाथि‍यो पर तोपे लाद कर इन लोगो को नि‍यंत्रण करने हेतु आये। यह कि‍सी भी राजा या राणा के अधीन नही रहा कि‍न्‍तु मेवाड़ के महाराणा भीम सि‍ह ने इसका नाम कर्नल टॉड के नाम पर टॉडगढ़ रख दि‍या तथा भीम जो वर्तमान में राजसमंद जि‍ले में हैं टॉडगढ़ से 14कि‍मी दूर उत्‍तर पूर्व में स्‍थि‍त है, का पुराना नाम मडला था जि‍सका नाम भीम रख दि‍या। 1857 ई.स. में भारत की आजादी के लि‍ये हुए आंदोलन के दौरान ईग्‍लेण्‍ड स्‍थि‍त ब्रि‍टिश सरकार ने भारतीय सेना में कार्यरत सैनि‍को को धर्म परि‍वर्तित करने एवं ईसाई बनाने हेतु इग्‍लेण्‍ड से ईसाई पादरि‍यो का एक दल जि‍समें डॉक्‍टर, नर्स, आदि‍ थें ये दल जल मार्ग से बम्‍बई उतरकर माउण्‍ट आबू होता हुआ ब्‍यावर तथा टॉडगढ़ आया। धर्म परि‍वर्तन के वि‍रोध में टॉडगढ़ तथा ब्‍यावर में भारी वि‍रोध हुआ जि‍ससे दल वि‍भाजि‍त होकर ब्‍यावर नसीराबाद, तथा टॉडगढ़ में अलग अलग वि‍भक्‍त हो गया। टॉडगढ़ में इस दल ने वि‍लि‍यम रॉब नाम ईसाई पादरी के नेतृत्‍व में ईसाई धर्म प्रचार करना प्रारम्‍भ कि‍या। शाम सुबह नजदीक की बस्‍ति‍यो में धर्म परि‍वर्तन के लि‍ये जाते तथा दि‍न को चर्च एवं पादरी हाउस/टॉड बंगला (प्रज्ञा शि‍खर) का निर्माण कार्य करवाया। सन् 1863 में राजस्‍थान का दूसरा चर्च ग्राम टॉडगढ़ की पहाडी पर गि‍रजा घर बनाया और दक्षि‍ण की और स्‍थि‍त दूसरी पहाडी पर अपने रहने के लि‍ये बंगला बनाया जि‍समें गि‍रजा घर के लि‍ये राज्‍य सरकार द्वारा राशि‍ स्‍वीकृत की है। पश्‍चि‍म में पाली जि‍ला की सीमा प्रारम्‍भ, समाप्‍त पूर्व उत्‍तर व दक्षि‍ण में राजसमंद जि‍ला समाप्‍ति‍ के छोर से आच्‍छादि‍त पहाडि‍या प्राकृति‍क दृश्‍य सब सुन्‍दरता अपने आप में समेटे हुए है। प्रथम वि‍श्‍वयुद्ध के दौरान टॉडगढ़ क्षेत्र से 2600 लोग (सैनि‍क) लडने के लि‍ये गये उनमें से 124 लागे (सैनि‍क) शहीद हो गये जि‍नकी याद में ब्रि‍टि‍श शासन द्वारा पेंशनर की पेंशन के सहयोग से एक ईमारत बनवाई “फतेह जंग अजीम” जि‍से वि‍क्‍ट्री मेमोरि‍यल धर्मशाला काहा जाता है। (जि‍समें लगे शि‍लालेख में इसका हवाला है।) प्राचीन स्‍थि‍ति‍ में कुम्‍भा की कला व मीरा की भक्‍ति‍ का केन्‍द्र मेवाड रण बांकुरे राठौडो का मरूस्‍थलीय मारवाड। मेवाड और मारवाड के मध्‍य अरावली की दुर्गम उपत्‍यकाओं में हरीति‍मायुक्‍त अजमेर- मेरवाडा के संबोधन से प्रख्‍यात नवसर से दि‍वेर के बीच अजमेर जि‍ले का शि‍रोमणी कस्‍बा हैं। इति‍हासकार कर्नल जेम्‍स टॉड “राजपूताना का इति‍हास” (ANNALS ANTIQUITIAS OF RAJASTHAN) के रचि‍यता की कर्मभूमि‍ बाबा मेषसनाथ व भाउनाथ की तपोभूमि‍ क्रान्‍ति‍कारी बीर राजूडा रावत, वि‍जय सि‍ह पथि‍क, व राव गोपाल सिंह खरवा के गौरव का प्रतीक, पवि‍त्र दुधालेश्‍वर महादेव की उपासनीय पृश्ष्‍ठभूमि‍ यही नही बहुत कुछ छुपा रहस्‍य हैं टॉडगढ़ ! .

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एसिटिक अम्ल

शुक्ताम्ल (एसिटिक अम्ल) CH3COOH जिसे एथेनोइक अम्ल के नाम से भी जाना जाता है, एक कार्बनिक अम्ल है जिसकी वजह से सिरका में खट्टा स्वाद और तीखी खुशबू आती है। यह इस मामले में एक कमज़ोर अम्ल है कि इसके जलीय विलयन में यह अम्ल केवल आंशिक रूप से विभाजित होता है। शुद्ध, जल रहित एसिटिक अम्ल (ठंडा एसिटिक अम्ल) एक रंगहीन तरल होता है, जो वातावरण (हाइग्रोस्कोपी) से जल सोख लेता है और 16.5 °C (62 °F) पर जमकर एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस में बदल जाता है। शुद्ध अम्ल और उसका सघन विलयन खतरनाक संक्षारक होते हैं। एसिटिक अम्ल एक सरलतम कार्बोक्जिलिक अम्ल है। ये एक महत्वपूर्ण रासायनिक अभिकर्मक और औद्योगिक रसायन है, जिसे मुख्य रूप से शीतल पेय की बोतलों के लिए पोलिइथाइलीन टेरिफ्थेलेट; फोटोग्राफिक फिल्म के लिए सेलूलोज़ एसिटेट, लकड़ी के गोंद के लिए पोलिविनाइल एसिटेट और सिन्थेटिक फाइबर और कपड़े बनाने के काम में लिया जाता है। घरों में इसके तरल विलयन का उपयोग अक्सर एक डिस्केलिंग एजेंट के तौर पर किया जाता है। खाद्य उद्योग में एसिटिक अम्ल का उपयोग खाद्य संकलनी कोड E260 के तहत एक एसिडिटी नियामक और एक मसाले के तौर पर किया जाता है। एसिटिक अम्ल की वैश्विक मांग क़रीब 6.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Mt/a) है, जिसमें से क़रीब 1.5 Mt/a प्रतिवर्ष पुनर्प्रयोग या रिसाइक्लिंग द्वारा और शेष पेट्रोरसायन फीडस्टोक्स या जैविक स्रोतों से बनाया जाता है। स्वाभाविक किण्वन द्वारा उत्पादित जलमिश्रित एसिटिक अम्ल को सिरका कहा जाता है। .

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झुलसा रोग

झुलसा रोग (blight) का प्रकोप अनेक फसलों पर होता है, जैसे धान, जौ, कपास, आलू, बैगन आदि। .

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डोडा नदी

डोडा नदी (Doda River) या स्तोद नदी (Stod River) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के पूर्वी लद्दाख़ खण्ड के ज़ंस्कार क्षेत्र में बहने वाली एक 79 किमी लम्बी नदी है। .

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तुर्की

तुर्की (तुर्क भाषा: Türkiye उच्चारण: तुर्किया) यूरेशिया में स्थित एक देश है। इसकी राजधानी अंकारा है। इसकी मुख्य- और राजभाषा तुर्की भाषा है। ये दुनिया का अकेला मुस्लिम बहुमत वाला देश है जो कि धर्मनिर्पेक्ष है। ये एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। इसके एशियाई हिस्से को अनातोलिया और यूरोपीय हिस्से को थ्रेस कहते हैं। स्थिति: 39 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 36 डिग्री पूर्वी देशान्तर। इसका कुछ भाग यूरोप में तथा अधिकांश भाग एशिया में पड़ता है अत: इसे यूरोप एवं एशिया के बीच का 'पुल' कहा जाता है। इजीयन सागर (Aegean sea) के पतले जलखंड के बीच में आ जाने से इस पुल के दो भाग हो जाते हैं, जिन्हें साधारणतया यूरोपीय टर्की तथा एशियाई टर्की कहते हैं। टर्की के ये दोनों भाग बॉसपोरस के जलडमरूमध्य, मारमारा सागर तथा डारडनेल्ज द्वारा एक दूसरे से अलग होते हैं। टर्की गणतंत्र का कुल क्षेत्रफल 2,96,185 वर्ग मील है जिसमें यूरोपीय टर्की (पूर्वी थ्रैस) का क्षेत्रफल 9,068 वर्ग मील तथा एशियाई टर्की (ऐनाटोलिआ) का क्षेत्रफल 2,87,117 वर्ग मील है। इसके अंतर्गत 451 दलदली स्थल तथा 3,256 खारे पानी की झीलें हैं। पूर्व में रूस और ईरान, दक्षिण की ओर इराक, सीरिया तथा भूमध्यसागर, पश्चिम में ग्रीस और बुल्गारिया और उत्तर में कालासागर इसकी राजनीतिक सीमा निर्धारित करते हैं। यूरोपीय टर्की - त्रिभुजाकर प्रायद्वीपी प्रदेश है जिसका शीर्षक पूर्व में बॉसपोरस के मुहाने पर है। उसके उत्तर तथा दक्षिण दोनों ओर पर्वतश्रेणियाँ फैली हुई हैं। मध्य में निचला मैदान मिलता है जिसमें होकर मारीत्सा और इरजिन नदियाँ बहती हैं। इसी भाग से होकर इस्तैस्म्यूल का संबंध पश्चिमी देशों से है। एशियाई टर्की - इसको हम तीन प्राकृतिक भागों में विभाजित कर सकते हैं: 1.

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तुर्की का भूगोल

तुर्की अनातोलिया (9 5%) और बाल्कन (5%),, बुल्गारिया और जॉर्जिया के बीच काला सागर के किनारे, और ग्रीस और सीरिया के बीच एजियन सागर और भूमध्य सागर के किनारे स्थित है। देश के भौगोलिक निर्देशांक इस प्राकार हैं: 39 डिग्री 00'उत्तर 35 डिग्री 00'पूर्व है। तुर्की का क्षेत्रफल 783,562 किमी 2 (302,535 वर्ग मील) है; भूमि: 770,760 किमी 2 (2 9 7,592 वर्ग मील), पानी: 9,820 किमी 2 (3,792 वर्ग मील)। तुर्की पश्चिम से पूर्व में 1,600 किमी (994 मील) से अधिक है, लेकिन आम तौर पर उत्तर से दक्षिण में 800 किमी (497 मील) से भी कम है। कुल क्षेत्रफल (लगभग 783,562 किमी 2 (302,535 वर्ग मील) में लगभग 756,816 किमी 2 (2 9 2,208) वर्ग मील) पश्चिमी एशिया (अनातोलिया) में और दक्षिणपूर्वी यूरोप (थ्रेस) में लगभग 23,764 किमी 2 (9,175 वर्ग मील) है। .

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त्रिवेणी नहर

त्रिवेनी नहर भारत में बिहार के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के चंपारन जिले में सिंचाई करने के लिये बनाई गई नहर है, जो गंडक नदी के बाएँ तट से निकाली गई है। यह प्रणाली दक्षिण-पूर्व में लगभग १०० किमी तक गई है। १९०९ ईo में इसे प्रारंभ किया गया था। पहले उपर्युक्त क्षेत्र शुष्क था, लेकिन इस नहर के कारण अब धान, गेहूँ, जौ, गन्ने आदि की कृषि यहाँ की जाने लगी है। .

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तृण

धान की पुआल उन्नत विधि से निर्मित तृण का बण्डल धान, गेहूँ, जौ, राई आदि फसलों के डण्ठल को तृण (Straw) कहते हैं। यह कृषि का एक सह-उत्पाद है। तृण बहुत से कार्यों के लिये उपयोगी है जैसे, पशुओं का चारा, ईंधन, पशुओं का बिछौना, छप्पर बनाना, टोकरी बनाना, घर की दीवारें बनाना आदि। तृण को तरह-तरह के गुटके (बण्डल) बनाकर या एक बडी ढेरी बनाकर भण्डारित किया जाता है। .

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धोलासर

धोलासर एक छोटा सा गांव है जो भारतीय राज्य राजस्थान तथा जोधपुर ज़िले के फलोदी तहसील में स्थित है। धोलासर में राजस्व ग्राम लक्ष्मणपुरा, महर्षि गौतमनगर स्थित है। धोलासर गांव के ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर करते हैं इस कारण रोजगार का साधन ही वही है। यहाँ ट्यूबवेल से सिंचाई की जाती हैं। मुख्यतः कृषक समाज यहाँ बाजरा,ज्वार,गेहूँ,सरसों,रायड़ा,मेथी,जीरा,मूँगफली,जौ, ग्वार, अरण्डी, प्याज ईसबगोल आदि फसलों की खेती करता हैं। धोलासर में शुद्ध मीठे पेयजल की कमी हैं। मनुष्यों और जानवरों के द्वारा फ्लोराइडयुक्त पानी प्रयोग में लिया जा रहा है। जो हानिकारक हैं। .

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नीदरलैण्ड

नीदरलैण्ड नीदरलैंड युरोप महाद्वीप का एक प्रमुख देश है। यह उत्तरी-पूर्वी यूरोप में स्थित है। इसकी उत्तरी तथा पश्चिमी सीमा पर उत्तरी समुद्र स्थित है, दक्षिण में बेल्जियम एवं पूर्व में जर्मनी है। नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम है। "द हेग" को प्रशासनिक राजधानी का दर्जा दिया जाता है। नीदरलैंड को अक्सर हॉलैंड के नाम संबोधित किया जाता है एवं सामान्यतः नीदरलैंड के निवासियों तथा इसकी भाषा दोनों के लिए डच शब्द का उपयोग किया जाता है। .

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नीवारिका

नीवारिका नीवारिका (Rye / राई) एक प्रकार की घास है जो गेहूँ की जाति (Triticeae) का सदस्य है। इसका गेहूँ और जौ से नजदीकी सम्बन्ध है। नीवारिका के दाने आटा, ब्रेड, बीअर, ह्विस्की, वोडका एवं जानवरों के चारे के लिये प्रयोग की जाती है। .

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पश्चिम वर्जीनिया की मुहर

पश्चिम वर्जीनिया की मुहर सितम्बर 1863 में अपनाई गई थी। मुहर के बीच में एक पत्थर का चित्र है जिसपर जून 20, 1863 लिखा हुआ है जो कि पश्चिम वर्जीनिया के अमेरिकी संघ में शामिल होने की तारीख है। पत्थर के सामने दो रायफल और एक स्वतन्त्रता टोपी रखी हुई है जो राज्य के लोगों द्वारा स्वतन्त्रता की लडाई के महत्व को दर्शाती है। पत्थर के दोनों ओर खडे दो व्यक्ति कृषि और उद्योग को प्रतिबिंबित करते हैं। पश्चिम में एक किसान जौ के ढेर के पास हल और कटार के साथ खडा है। दूसरी ओर एक खदानकर्मी कुदाल के साथ खडा है जिसके पीछे हथौडा रखा है। बाहरी पट्टी पर "State of West Virginia" पश्चिम वर्जीनीया का राज्य और राज्य का ध्येय वाक्य "Montani Semper Liberi", ("पर्वत हमेशा स्वतंत्र होते हैं"; राज्य का उपनाम "माउंटेन स्टेट" है) लिखे हुए हैं। मुहर के पीछे का हिस्सा राज्यपाल की आधिकारिक मुहर है। .

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पिण्ड

पिण्ड चावल और जौ के आटे, काले तिल तथा घी से निर्मित गोल आकार के होते हैं जो अन्त्येष्टि में तथा श्राद्ध में पितरों को अर्पित किये जाते हैं। .

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पुनरुज्जीवन

ईसाइयों का विश्वास है कि क्रूस पर मरने के बाद ईसा तीसरे दिन अपनी कब्र से उठकर पुनर्जीवित हुए थे। उसी घटना की स्मृति में पिनरुज्जीवन या पुनरुत्थान पर्व मनाया जाता है, जो ईसाई धर्म का प्राचीनतम और सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। जिस समय ईसा का पुनरुत्थान हुआ था उस समय येरुसलेम में 'पास्का' नामक यहूदियों का सबसे बड़ा त्योहार मनाया जाता था। अत: ईसाइयों में ईसा का पुनरुत्थान पर्व भी पास्का कहलाता है। यहूदी लोग वसंत की प्रथम पूर्णिमा को पास्का मनाते थे, ईसाइयों का पुनरुत्थान पर्व भी वसंत के सयन (२१ मार्च) को ही अथवा इसके ठीक बाद पड़नेवाली पूर्णिमा के अनुसार निश्चित किया जाता है। उस पूर्णिमा के बाद के प्रथम इतवार को पुनरुत्थान पर्व मनाया जाता है, क्योंकि ईसा इतवार को पुनर्जीवित हुए थे। यहूदियों का पास्का पर्व बहुत प्राचीन था। वह पहले वसंतकालीन यज्ञ था, जिसमें झुंड के लिए आशीष माँगने के उद्देश्य से एक पशु का वलिदान चढ़ाया जाता था। बाद में जब यहूदी मिस्र देश की गुलामी से मुक्त हो गए थे, वह पर्व उस दासता की मुक्ति का स्मरणोत्सव बन गया। फिलिस्तीन देश में बस जाने के बाद जौ (यब) की फसल का त्योहार भी पास्का पर्व के साथ मिला दिया गया। सातवीं शती ई.पू.

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प्रतापगढ़, राजस्थान

प्रतापगढ़, क्षेत्रफल में भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के ३३वें जिले प्रतापगढ़ जिले का मुख्यालय है। प्राकृतिक संपदा का धनी कभी इसे 'कान्ठल प्रदेश' कहा गया। यह नया जिला अपने कुछ प्राचीन और पौराणिक सन्दर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है, यद्यपि इसके सुविचारित विकास के लिए वन विभाग और पर्यटन विभाग ने कोई बहुत उल्लेखनीय योगदान अब तक नहीं किया है। .

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प्राचीन मिस्र

गीज़ा के पिरामिड, प्राचीन मिस्र की सभ्यता के सबसे ज़्यादा पहचाने जाने वाले प्रतीकों में से एक हैं। प्राचीन मिस्र का मानचित्र, प्रमुख शहरों और राजवंशीय अवधि के स्थलों को दर्शाता हुआ। (करीब 3150 ईसा पूर्व से 30 ई.पू.) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है। यह सभ्यता 3150 ई.पू.

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पोएसी

बाँस पोएसी पौधों का एक कुल है। इस कुल के अन्तर्गत लगभग 530 वंश तथा 5200 जातियाँ मिलती हैं जिमें भारत में लगभग 830 जातियाँ उपलब्ध हैं। इसके पौधे सर्वत्र मिले हैं। परन्तु अधिकांश समशीतोष्ण प्रदेशों में तथा कुछ उष्ण प्रदेशों में पाए जाते हैं। बाँस, मक्का, गेंहूँ, जौ, बाजरा, दूब, राई, ईख, धान, ज्वार, खसखस इस कुल के कुछ सामान्य पौधें हैं। श्रेणी:वनस्पति विज्ञान.

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पोर्टलैंड, ऑरेगॉन

पोर्टलैंड, पश्चिमोत्तर संयुक्त राज्य अमेरिका में ऑरेगॉन राज्य की विल्मेट और कोलंबिया नदियों के संगम के पास स्थित एक शहर है। जुलाई 2009 तक, इसकी अनुमानित आबादी 582,130 थी और यह संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे अधिक आबादी वाला 29वां राज्य है। इसे दुनिया में दूसरा और संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे अधिक पर्यावरण के अनुकूल या "ग्रीन" शहर माना गया है। पोर्टलैंड ऑरेगॉन का सबसे अधिक आबादी वाला शहर है और सिएटल, वाशिंगटन और वैंकूवर, ब्रिटिश कोलंबिया के बाद पश्चिमोत्तर प्रशांत महासागर का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। जुलाई 2006 तक, संयुक्त राज्य अमेरिका के 23वें सबसे अधिक आबादी वाले पोर्टलैंड महानगरीय क्षेत्र (एमएसए) में लगभग 20 लाख लोग रहते थे। पोर्टलैंड को 1851 में शामिल किया गया और यह मल्टनोमाह काउंटी (मल्टनोमाह County) की काउंटी सीट है। शहर पश्चिम में थोड़ा वाशिंगटन काउंटी और दक्षिण में क्लैकामस काउंटी (क्लैकामस County) में फैला हुआ है। यह एक महापौर और अन्य चार आयुक्तों की अध्यक्षता वाली आयोग-आधारित सरकार द्वारा शासित है। यह शहर और क्षेत्र, सुदृढ़ भूमि-उपयोग योजना और मेट्रो द्वारा समर्थित, लाइट रेल में किए गए निवेश के लिए प्रसिद्ध एक विशिष्ट क्षेत्रीय सरकार है। पोर्टलैंड बड़ी संख्या में अपनी माइक्रो मद्यनिर्माणशाला और माइक्रो भट्टियों तथा कॉफ़ी के शौक के लिए जाना जाता है। यह ट्रेल ब्लेज़र्स एनबीए टीम का भी घर है। पोर्टलैंड पश्चिम समुद्री तटीय जलवायु क्षेत्र में पड़ता है जहां गर्म, शुष्क गर्मियां और बरसातें किन्तु समशीतोष्ण सर्दियां होती हैं। यह मौसम गुलाब की खेती के लिए आदर्श है और एक सदी से भी अधिक समय से पोर्टलैंड को "गुलाबों का शहर" के रूप में जाना जाता है, यहां कई गुलाब के उद्यान हैं जिनमें सबसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय गुलाब टेस्ट गार्डन है। .

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फतेहाबाद

फतेहाबाद भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा जिले का एक नगर है। यह आगरा से लगभग ३५ किमी दक्षिण-पूर्व में बसा है। .

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बाँस

बाँस, ग्रामिनीई (Gramineae) कुल की एक अत्यंत उपयोगी घास है, जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती है। बाँस एक सामूहिक शब्द है, जिसमें अनेक जातियाँ सम्मिलित हैं। मुख्य जातियाँ, बैंब्यूसा (Bambusa), डेंड्रोकेलैमस (नर बाँस) (Dendrocalamus) आदि हैं। बैंब्यूसा शब्द मराठी बैंबू का लैटिन नाम है। इसके लगभग २४ वंश भारत में पाए जाते हैं। बाँस एक सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री पोएसी कुल का पादप है। इसके परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूँ, मक्का, जौ और धान हैं। यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन (२४ घंटे) में १२१ सेंटीमीटर (४७.६ इंच) तक बढ़ जाती हैं। थोड़े समय के लिए ही सही पर कभी-कभी तो इसके बढ़ने की रफ्तार १ मीटर (३९ मीटर) प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। इसका तना, लम्बा, पर्वसन्धि युक्त, प्रायः खोखला एवं शाखान्वित होता है। तने को निचले गांठों से अपस्थानिक जड़े निकलती है। तने पर स्पष्ट पर्व एवं पर्वसन्धियाँ रहती हैं। पर्वसन्धियाँ ठोस एवं खोखली होती हैं। इस प्रकार के तने को सन्धि-स्तम्भ कहते हैं। इसकी जड़े अस्थानिक एवं रेशेदार होती है। इसकी पत्तियाँ सरल होती हैं, इनके शीर्ष भाग भाले के समान नुकीले होते हैं। पत्तियाँ वृन्त युक्त होती हैं तथा इनमें सामानान्तर विन्यास होता है। यह पौधा अपने जीवन में एक बार ही फल धारण करता है। फूल सफेद आता है। पश्चिमी एशिया एवं दक्षिण-पश्चिमी एशिया में बाँस एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसका आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इससे घर तो बनाए ही जाते हैं, यह भोजन का भी स्रोत है। सौ ग्राम बाँस के बीज में ६०.३६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट और २६५.६ किलो कैलोरी ऊर्जा रहती है। इतने अधिक कार्बोहाइड्रेट और इतनी अधिक ऊर्जा वाला कोई भी पदार्थ स्वास्थ्यवर्धक अवश्य होगा। ७० से अधिक वंशो वाले बाँस की १००० से अधिक प्रजातियाँ है। ठंडे पहाड़ी प्रदेशों से लेकर उष्ण कटिबंधों तक, संपूर्ण पूर्वी एशिया में, ५०० उत्तरी अक्षांश से लेकर उत्तरी आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम में, भारत तथा हिमालय में, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्रों तथा अमेरिका में दक्षिण-पूर्व अमेरिका से लेकर अर्जेन्टीना एवं चिली में (४७० दक्षिण अक्षांश) तक बाँस के वन पाए जाते हैं। बाँस की खेती कर कोई भी व्यक्ति लखपति बन सकता है। एक बार बाँस खेत में लगा दिया जायें तो ५ साल बाद वह उपज देने लगता है। अन्य फसलों पर सूखे एवं कीट बीमारियो का प्रकोप हो सकता है। जिसके कारण किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। लेकिन बाँस एक ऐसी फसल है जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। बाँस का पेड़ अन्य पेड़ों की अपेक्षा ३० प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन छोड़ता और कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है साथ ही यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में आक्सीजन छोड़ता है। .

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बियर

सीधे पीपा से 'श्लेंकेरला राउख़बियर' नामक बियर परोसी जा रही है​ बियर संसार का सबसे पुराना और सर्वाधिक व्यापक रूप से खुलकर सेवन किया जाने वाला मादक पेय है।Origin and History of Beer and Brewing: From Prehistoric Times to the Beginning of Brewing Science and Technology, John P Arnold, BeerBooks, Cleveland, Ohio, 2005, ISBN 0-9662084-1-2 सभी पेयों के बाद यह चाय और जल के बाद तीसरा सर्वाधिक लोकप्रिय पेय है।, European Beer Guide, Accessed 2006-10-17 क्योंकि बियर अधिकतर जौ के किण्वन (फ़र्मेन्टेशन​) से बनती है, इसलिए इसे भारतीय उपमहाद्वीप में जौ की शराब या आब-जौ के नाम से बुलाया जाता है। संस्कृत में जौ को 'यव' कहते हैं इसलिए बियर का एक अन्य नाम यवसुरा भी है। ध्यान दें कि जौ के अलावा बियर बनाने के लिए गेहूं, मक्का और चावल का भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। अधिकतर बियर को राज़क (हॉप्स) से सुवासित एवं स्वादिष्ट कर दिया जाता है, जिसमें कडवाहट बढ़ जाती है और जो प्राकृतिक संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है, हालांकि दूसरी सुवासित जड़ी बूटियां अथवा फल भी यदाकदा मिला दिए जाते हैं।, Max Nelson, Routledge, Page 1, Pages 1, 2005, ISBN 0-415-31121-7, Accessed 2009-11-19 लिखित साक्ष्यों से यह पता चलता है कि मान्यता के आरंभ से बियर के उत्पादन एवं वितरण को कोड ऑफ़ हम्मुराबी के रूप में सन्दर्भित किया गया है जिसमें बियर और बियर पार्लर्स से संबंधित विनियमन कानून तथा "निन्कासी के स्रुति गीत", जो बियर की मेसोपोटेमिया देवी के लिए प्रार्थना एवं किंचित शिक्षित लोगों की संस्कृति के लिए नुस्खे के रूप में बियर का उपयोग किया जाता था। आज, किण्वासवन उद्योग एक वैश्विक व्यापार बन गया है, जिसमें कई प्रभावी बहुराष्ट्रीय कंपनियां और हजारों की संख्या में छोटे-छोटे किण्वन कर्म शालाओं से लेकर आंचलिक शराब की भट्टियां शामिल हैं। बियर के किण्वासन की मूल बातें राष्ट्रीय और सांस्कृतिक सीमाओं से परे भी एक साझे में हैं। आमतौर पर बियर को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है - दुनिया भर में लोकप्रिय हल्का पीला यवसुरा और आंचलिक तौर पर अलग किस्म के बियर, जिन्हें और भी कई किस्मों जैसे कि हल्का पीला बियर, घने और भूरे बियर में वर्गीकृत किया गया है। आयतन के दृष्टीकोण से बियर में शराब की मात्रा (सामान्य) 4% से 6% तक रहती है हालांकि कुछ मामलों में यह सीमा 1% से भी कम से आरंभ कर 20% से भी अधिक हो सकती है। बियर पान करने वाले राष्ट्रों के लिए बियर उनकी संस्कृति का एक अंग है और यह उनकी सामजिक परंपराओं जैसे कि बियर त्योहारों, साथ ही साथ मदिरालयी सांस्कृतिक गतिविधियों जैसे कि मदिरालय रेंगना तथा मदिरालय में खेले जाने वाले खेल जैसे कि बार बिलियर्ड्स शामिल हैं। .

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बीकानेर

बीकानेर राजस्थान राज्य का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था राव बीका द्वारा १४८५ में इस शहर की स्थापना की गई। ऐसा कहा जाता है कि नेरा नामक व्यक्ति गड़रिया था, जब राव बीका ने नेरा से एक शुभ जगह के बारे में पूछा तो उसने इस जगह के बारे में एक जवाब दिया उसने कहा की इस जगह पर मेरी एक भेड़ का मेमना ३ दिन तक भेड़ के साथ ७ सियारों के बीच एकला रहा और सियारों ने भेड़ और उसके बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुचायां और उसने इस बात के साथ एक शर्त रख दी की उसके नाम को नगर के नाम के साथ जोड़ा जाए। इसी कारण इसका नाम बीका+नेर, बीकानेर पड़ा। अक्षय तृतीया के यह दिन आज भी बीकानेर के लोग पतंग उड़ाकर स्मरण करते हैं। बीकानेर का इतिहास अन्य रियासतों की तरह राजाओं का इतिहास है। ने नवीन बीकानेर रेल नहर व अन्य आधारभूत व्यवस्थाओं से समृद्ध किया। बीकानेर की भुजिया मिठाई व जिप्सम तथा क्ले आज भी पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। यहां सभी धर्मों व जातियों के लोग शांति व सौहार्द्र के साथ रहते हैं यह यहां की दूसरी महत्वपूर्ण विशिष्टता है। यदि इतिहास की बात चल रही हो तो इटली के टैसीटोरी का नाम भी बीकानेर से बहुत प्रेम से जुड़ा हुआ है। बीकानेर शहर के ५ द्वार आज भी आंतरिक नगर की परंपरा से जीवित जुड़े हैं। कोटगेट, जस्सूसरगेट, नत्थूसरगेट, गोगागेट व शीतलागेट इनके नाम हैं। बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि ७३ डिग्री पूर्वी अक्षांस २८.०१ उत्तरी देशंतार पर स्थित है। समुद्र तल से ऊंचाई सामान्य रूप से २४३मीटर अथवा ७९७ फीट है .

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बीकानेर की जलवायु

यहां की जलवायु सूखी, पंरतु अधिकतर अरोग्यप्रद है। गर्मी में अधिक गर्मी और सर्दी में अधिक सर्दी पडना यहां की विशेषता है। इसी कारण मई, जून और जुलाई मास में यहां लू (गर्म हवा) बहुत जोरों से चलती है, जिससे रेत के टीले उड़-उड़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर बन जाते हैं। उन दिनों सूर्य की धूप इतनी असह्महय हो जाती है कि यहां के निवासी दोपहर को घर से बाहर निकलते हुए भी भय खाते हैं। कभी-कभी गर्मी के बहुत बढ़ने पर आक़ाल मृत्यु भी हो जाती है। बहुधा लोग घरों के नीचे भाग में तहखाने बनवा लेते हैं, जो ठंडे रहते है और गर्मी की विशेषता होने पर वे उनमें चले जाते हैं। कड़ी भूमि की अपेक्षा रेत शीघ्रता से ठंड़ा हो जाता है। इसलिए गर्मी के दिनों में भी रात के समय यहां ठंडक रहती है। शीतकाल में यहां इतनी सर्दी पड़ती है कि पेड़ और पौधे बहुधा पाले के कारण नष्ट हो जाते है। बीकानेर में रेगिस्तान की अधिकता होने के कारण कुएँ का बहुत अधिक महत्व है। जहां कहीं कुआँ खोदने की सुविधा हुई अथवा पानी जमा होने का स्थान मिला, आरंभ में वहां पर बस्ती बस गई। यही कारण है कि बीकानेर के अधिकांश स्थानों में नामों के साथ सर जुड़ा हुआ है, जैसे कोडमदेसर, नौरंगदेसर, लूणकरणसर आदि। इससे आशय यही है कि इस स्थान पर कुएं अथवा तालाब हैं। कुएं के महत्व का एक कारण और भी है कि पहले जब भी इस देश पर आक्रमण होता था, तो आक्रमणकारी कुओं के स्थानों पर अपना अधिकार जमाने का सर्व प्रथम प्रयत्न करते थे। यहां के अधिकतर कुएं ३०० या उससे फुट गहरे हैं। इसका जल बहुधा मीठा एंव स्वास्थ्यकर होता है। .

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भारतीय इतिहास की समयरेखा

पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं भारत एक साझा इतिहास के भागीदार हैं इसलिए भारतीय इतिहास की इस समय रेखा में सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की झलक है। .

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भारतीय कृषि का इतिहास

कावेरी नदी पर निर्मित '''कल्लानै बाँध''' पहली-दूसरी शताब्दी में बना था था। यह संसार के प्राचीननतम बाँधों में से है जो अब भी प्रयोग किये जा रहे हैं। भारत में ९००० ईसापूर्व तक पौधे उगाने, फसलें उगाने तथा पशु-पालने और कृषि करने का काम शुरू हो गया था। शीघ्र यहाँ के मानव ने व्यवस्थित जीवन जीना शूरू किया और कृषि के लिए औजार तथा तकनीकें विकसित कर लीं। दोहरा मानसून होने के कारण एक ही वर्ष में दो फसलें ली जाने लगीं। इसके फलस्वरूप भारतीय कृषि उत्पाद तत्कालीन वाणिज्य व्यवस्था के द्वारा विश्व बाजार में पहुँचना शुरू हो गया। दूसरे देशों से भी कुछ फसलें भारत में आयीं। पादप एवं पशु की पूजा भी की जाने लगी क्योंकि जीवन के लिए उनका महत्व समझा गया। .

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भूमंडलीय ऊष्मीकरण का प्रभाव

extreme weather). (Third Assessment Report) इस के अंतर पैनल तौर पर जलवायु परिवर्तन (Intergovernmental Panel on Climate Change)। इस भविष्यवाणी की प्रभावों के ग्लोबल वार्मिंग इस पर पर्यावरण (environment) और के लिए मानव जीवन (human life) कई हैं और विविध.यह आम तौर पर लंबे समय तक कारणों के लिए विशिष्ट प्राकृतिक घटनाएं विशेषता है, लेकिन मुश्किल है के कुछ प्रभावों का हाल जलवायु परिवर्तन (climate change) पहले से ही होने जा सकता है।Raising sea levels (Raising sea levels), glacier retreat (glacier retreat), Arctic shrinkage (Arctic shrinkage), and altered patterns of agriculture (agriculture) are cited as direct consequences, but predictions for secondary and regional effects include extreme weather (extreme weather) events, an expansion of tropical diseases (tropical diseases), changes in the timing of seasonal patterns in ecosystems (changes in the timing of seasonal patterns in ecosystems), and drastic economic impact (economic impact)। चिंताओं का नेतृत्व करने के लिए हैं राजनीतिक (political) सक्रियता प्रस्तावों की वकालत करने के लिए कम (mitigate), समाप्त (eliminate), या अनुकूलित (adapt) यह करने के लिए। 2007 चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट (Fourth Assessment Report) के द्वारा अंतर पैनल तौर पर जलवायु परिवर्तन (Intergovernmental Panel on Climate Change) (आईपीसीसी) ने उम्मीद प्रभावों का सार भी शामिल है। .

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भोजली देवी

भुजरियाँ भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को छोटी॑-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। ये दाने धान, गेहूँ, जौ के हो सकते हैं। ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे 'भुजरियाँ` कहते हैं। इन्हें अलग-अलग प्रदेशों में इन्हें 'फुलरिया`, 'धुधिया`, 'धैंगा` और 'जवारा`(मालवा) या भोजली भी कहते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं। जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं उसे घर के किसी पवित्र स्‍थान में छायादार जगह में स्‍थापित किया जाता है। उनमें रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। दाने धीरे-धीरे पौधे बनकर बढ़ते हैं, महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्‍मान में देवी-गीतों को गाकर जवांरा– जस – सेवा गीत गाया जाता है वैसे ही भोजली दाई (देवी) के सम्‍मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं। सामूहिक स्‍वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्‍तीसगढ की शान हैं। खेतों में इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निराई गुडाई का काम समापन की ओर होता है। किसानों की लड़कियाँ अच्‍छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्‍मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं। सावन की पूर्णिमा तक इनमें ४ से ६ इंच तक के पौधे निकल आते हैं। रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं। भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती है। और इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है। नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है। .

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मरूद्यान

ईनकेल्ट, यहूदिया मरूस्थल, इस्राइल में एक नखलिस्तान भौगोलिक संदर्भों में मरूद्यान, शाद्वल, मरूद्वीप अथवा नख़लिस्तान, किसी मरूस्थल में किसी झरने, चश्मा या जल-स्रोत के आसपास स्थित एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां किसी वनस्पति के उगने के लिए पर्याप्त अनुकूल परिस्थितियां उपलब्ध होती हैं। यदि यह क्षेत्र पर्याप्त रूप से बड़ा हो, तो यह पशुओं और मनुष्यों को भी प्राकृतिक आवास उपलब्ध कराता है। मरूस्थलीय इलाकों में मरूद्यानों का हमेशा से व्यापार तथा परिवहन मार्गों के लिए विशेष महत्व का रहा है। पानी एवं खाद्य सामग्री की आपूर्ति के लिए काफिलों का मरूद्यानों से होकर गुज़रना आवश्यक है इसीलिए अधिकतर मामलों में किसी मरूद्यान पर राजनीतिक अथवा सैन्य नियंत्रण का तात्पर्य उस मार्ग पर होने वाले व्यापार पर नियंत्रण से भी है। उदहारण के तौर पर आधुनिक लीबिया में स्थित औजिला, घडामेस एवं कुफ्रा के मरूद्यान कई अवसरों पर सहारा के उत्तर-दक्षिणी एवं पूर्व-पश्चिमी व्यापार के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं। इका, पेरू में हुआकाचीना नखलिस्तान मरूद्यान किसी जलस्रोत जैसे कि भूमिगत नदी अथवा आर्टीसियन कूप आदि से निर्मित होते हैं, जहां जल दबाव द्वारा प्राकृतिक रूप से अथवा मानव निर्मित कुओं द्वारा सतह तक पहुंच सकता है। समय समय पर होने वाली वृष्टि भी किसी मरूद्यान के भूमिगत स्रोत को प्राकृतिक को जल उपलब्ध कराती है, जैसे कि टुयात.

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माल्ट

माल्ट ह्विस्की की माल्ट किसी अन्न (जौ आदि) को अंकुरित कराकर, फिर उसे गरम हवा की सहायता से सुखाने प्राप्त उत्पाद माल्ट (Malt) कहलाती है। अन्नों के माल्टन (Malting) से उनमें एक एंजाइम पैदा होती है जो मूल अन्न के स्टार्च को शर्करा में बदल देती है। इसके अलावा माल्टन से प्रोटिआसेस (proteases) आदि अन्य एंजाइम भी पैदा होते हैं जो अन्न के अन्दर स्थित प्रोटीनों को तोड़कर ऐसे रूप में बदल देते हैं जिसका उपयोग खमीरों द्वारा किया जा सकता है। .

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मिल्वौकी, विस्कॉन्सिन

मिल्वौकी अमेरिकी राज्य विस्कॉन्सिन का सबसे बड़ा शहर, संयुक्त राज्य अमेरिका का 26वां सबसे अधिक आबादी वाला शहर और अमेरिका का 39वां सबसे अधिक आबादी वाला क्षेत्र है। यह मिल्वौकी काउंटी की काउंटी सीट है और यह मिशिगन झील के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित है। इसकी 2009 की अनुमानित जनसंख्या थी.

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मेहरगढ़

प्राचीन मेहरगढ़, पाकिस्तानमेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से ३३००ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। यह स्थान वर्तमान बलूचिस्तान (पाकिस्तान) के कच्ची मैदानी क्षेत्र में है। यह स्थान विश्व के उन स्थानों में से एक है जहाँ प्राचीनतम कृषि एवं पशुपालन से सम्बन्धित साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इन अवशेषों से पता चलता है कि यहाँ के लोग गेहूँ एवं जौ की खेती करते थे तथा भेड़, बकरी एवं अन्य जानवर पालते थे। ". मेहरगढ़ आज के बलूचिस्तान में बोलन नदी के किनारे स्थित है। भारतीय इतिहास में इस स्थल का महत्व अनेक कारणों से है। यह स्थल भारतीय उप महाद्वीप को भी गेंहूँ-जौ के मूल कृषि वाले क्षेत्र में शामिल कर देता है और नवपाषण युग के भारतीय काल निर्धारण को विश्व के नवपाषण काल निर्धारण के अधिक समीप ले आता है। इसके अतिरिक्त इस स्थल से सिंधु सभ्यता के विकास और उत्पत्ति पर प्रकाश पड़ता है। यह स्थल हड़प्पा सभ्यता से पूर्व का ऐसा स्थल है जहां से हड़प्पा जैसे ईंटों के बने घर मिले हैं और लगभग 6500 वर्तमान पूर्व तक मेहरगढ़ वासी हड़प्पा जैसे औज़ार एवं बर्तन भी बनाने लगे थे। निश्चित तौर पर इस पूरे क्षेत्र में ऐसे और भी स्थल होंगे जिनकी यदि खुदाई की जाए तो हड़प्पा सभ्यता के संबंध में नए तथ्य मिल सकते हैं। मेहरगढ़ से प्राप्त एक औज़ार ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है। यह एक ड्रिल है जो बहुत कुछ आधुनिक दाँत चिकित्सकों की ड्रिल से मिलती जुलती है। इस ड्रिल के प्रयोग के साक्ष्य भी स्थल से प्राप्त दाँतों से मिले हैं। यह ड्रिल तांबे की है और इस नयी धातु को ले कर आरंभिक मानव की उत्सुकता के कारण इस पर अनेक प्रयोग उस समय किए गए होंगे ऐसा इस ड्रिल के आविष्कार से प्रतीत होता है। एक अन्य महत्वपूर्ण वस्तु है सान पत्थर जो धातु के धारदार औज़ार और हथियार बनाने के काम आता था। मेहरगढ़ से प्राप्त होने वाली अन्य वस्तुओं में बुनाई की टोकरियाँ, औज़ार एवं मनके हैं जो बड़ी मात्र में मिले हैं। इनमें से अनेक मनके अन्य सभ्यताओं के भी लगते हैं जो या तो व्यापार अथवा प्रवास के दौरान लाये गए होंगे। बाद के स्तरों से मिट्टी के बर्तन, तांबे के औज़ार, हथियार और समाधियाँ भी मिलीं हैं। इन समाधियों में मानव शवाधान के साथ ही वस्तुएँ भी हैं जो इस बात का संकेत हैं कि मेहरगढ़ वासी धर्म के आरंभिक स्वरूप से परिचित थे। दुर्भाग्य से पाकिस्तान की अस्थिरता के कारण अतीत का यह महत्वपूर्ण स्थल उपेक्षित पड़ा है। इस स्थल की खुदाई १९७७ ई० मे हुई थी। यदि इसकी समुचित खुदाई की जाए तो यह स्थल इस क्षेत्र में मानव सभ्यता के विकास पर नए तथ्य उद्घाटित कर सकता है। अभी तक की इस खुदाई में यहाँ से नवपाषण काल से लेकर कांस्य युग तक के प्रमाण मिलते है जो कुल 8 पुरातात्विक स्तरों में बिखरे हैं। यह 8 स्तर हमें लगभग 5000 वर्षों के इतिहास की जानकारी देते हैं। इनमें सबसे पुराना स्तर जो सबसे नीचे है नवपाषण काल का है और आज से लगभग 9000 वर्ष पूर्व का है वहीं सबसे नया स्तर कांस्य युग का है और तकरीबन 4000 वर्ष पूर्व का है। मेहरगढ़ और इस जैसे अन्य स्थल हमें मानव प्रवास के उस अध्याय को समझने की बेहतर अंतर्दृष्टि दे सकते है जो लाखों वर्षों पूर्व दक्षिण अफ्रीका से शुरू हुआ था और विभिन्न शाखाओं में बंट कर यूरोप, भारत और दक्षिण- पूर्व एशिया पहुंचा। .

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यवशर्करा

यवशर्करा या यव-शर्करा जौ से बनी हुई चीनी है।.

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रबी की फ़सल

इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। ये फसलें सामान्यतः अक्तूबर-नवम्बर के महिनों में बोई जाती हैं। .

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रोटी

रोटी भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया में सामान्य खाने में पका कर खाये जाने वाली चपटी खाद्य सामग्री है। यह आटे एवं पानी के मिश्रण को गूंध कर उससे बनी लोई को बेलकर एवं आँच पर सेंक कर बनाई जाती है। रोटी बनाने के लिए आमतौर पर गेहूँ का आटा प्रयोग किया जाता है पर विश्व के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय अनाज जैसे मक्का, जौ, चना, बाजरा आदि भी रोटी बनाने के लिए प्रयुक्त होता है। भारत के विभिन्न भागों में रोटी के लिए विभिन्न हिंदी नाम प्रचलित हैं, जिनमे प्रमुख हैं: -.

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शिकोकू

जापान का शिकोकू द्वीप (लाल रंग में) "८८ मंदिरों की तीर्थयात्रा" के लिए शिकोकू आई एक श्रद्धालु लड़की शिकोकू का नक़्शा (जिसमें ८८ मंदिरों के स्थल दिखाए गए हैं) शिकोकू (जापानी: 四国, "चार प्रान्त") जापान के चारों मुख्य द्वीपों में से सब से छोटा और सब से कम आबादी वाला द्वीप है। यह २२५ किमी लम्बा है और इसकी चौड़ाई ५० और १५० किमी के बीच (जगह-जगह पर अलग) है। कुल मिलकर शिकोकू का क्षेत्रफल १८,८०० वर्ग किमी है और इसकी जनसँख्या सन् २००५ में ४१,४१,९५५ थी। यह होन्शू द्वीप के दक्षिण में और क्यूशू के पूर्व में स्थित है। .

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श्रीलंका का इतिहास

इतिहासकारों में इस बात की आम धारणा थी कि श्रीलंका के आदिम निवासी और दक्षिण भारत के आदिम मानव एक ही थे। पर अभी ताजा खुदाई से पता चला है कि श्रीलंका के शुरुआती मानव का सम्बंध उत्तर भारत के लोगों से था। भाषिक विश्लेषणों से पता चलता है कि सिंहली भाषा, गुजराती और सिंधी से जुड़ी है। प्राचीन काल से ही श्रीलंका पर शाही सिंहला वंश का शासन रहा है। समय समय पर दक्षिण भारतीय राजवंशों का भी आक्रमण भी इसपर होता रहा है। तीसरी सदी इसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र के यहां आने पर बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। इब्नबतूता ने चौदहवीं सदी में द्वीप का भ्रमण किया। .

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सत्तू

सत्तू एक प्रकार का देशज व्यंजन है, जो भूने हुए जौ और चने को पीस कर बनाया जाता है। बिहार में यह काफी लोकप्रिय है और कई रूपों में प्रयुक्त होता है। सामान्यतः यह चूर्ण के रूप में रहता है जिसे पानी में घोल कर या अन्य रूपों में खाया अथवा पिया जाता है। सत्तू के सूखे (चूर्ण) तथा घोल दोनों ही रूपों को 'सत्तू' कहते हैं। .

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साबुत अनाज

right साबुत अनाज (अंग्रेज़ी:होल ग्रेन) अर्थात दाने के तीनों भागों को खाया जाता है जिसमें रेशा युक्त बाहरी सतह और पोषकता से भरपूर बीज भी शामिल है। साबुत अनाज वाले खाद्य पदार्थों में एक बाहरी खोल, भूसी, चोकर या ब्रान (ऊपरी सतह), बीज और मुलायम एण्डोस्पर्म पाया जाता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ८ फ़रवरी २०१० गेहूं की पिसाई के वक्त ऊपरी भूसी एवं बीज को हटा दिया जाता है एवं स्टार्च बहुल एण्डोस्पर्म ही बच जाता है। भूसी एवं बीज से विटामिन ई, विटामिन बी और अन्य तत्व जैसे जस्ता, सेलेनियम, तांबा, लौह, मैगनीज एवं मैग्नीशियम आदि प्राप्त होते हैं। इनमें रेशा भी प्रचुर मात्र में पाया जाता है। सभी साबुत अनाजों में अघुलनशील फाइबर पाये जाते हैं जो कि पाचन तंत्र के लिए बेहतर माने जाते हैं, साथ ही कुछ घुलनशील फाइबर भी होते हैं जो रक्त में वांछित कोलेस्ट्रोल के स्तर को बढ़ाते हैं। खासतौर से जई, जौ और राई में घुलनशील फाइबर की मात्र अधिक होती है, साबुत अनाजों में रूटीन (एक फ्लेवेनएड जो हृदय रोगों को कम करता है), लिग्नान्स, कई एंटीऑक्सीडेंट्स और अन्य लाभदायक पदार्थ पाये जाते हैं। परंपरागत पकी हुई राई की ब्रेड पूर्व मान्यता अनुसार साबुत अनाज कई रोगों से बचाते हैं क्योंकि इसमें फाइबर की प्रचुरता होती है। परंतु नवीन खोजों से पुष्टि हुई कि साबुत अनाजों में फाइबर के अलावा कई विटामिनों के अनूठे मिश्रण, खनिज-लवण, अघुलनशील एंटीऑक्सीडेंट और फाइटोस्टेरोल भी पाए जाते हैं, जो कि सब्जियों और फलों में अनुपस्थित होते हैं और शरीर को कई रोगों से बचाते हैं। इसका सेवन करने वालों को मोटापे का खतरा कम होता है। मोटापे को बॉडी मास इंडेक्स और कमर से कूल्हों के अनुपात से मापा जाता है। साथ ही साबुत अनाज से कोलेस्ट्रोल स्तर भी कम बना रहता है जिसका मुख्य कारण इनमें पाये जाने वाले फाइटोकैमिकल्स और एंटीआक्सीडेण्ट्स हैं। जो घर में बने आटे की रोटियां खाते हैं उनमें ब्रेड खाने वालों की अपेक्षा हृदय रोगों की आशंका २५-३६ प्रतिशत कम होती है। इसी तरह स्ट्रोक का ३७ प्रतिशत, टाइप-२ मधुमेह का २१-२७ प्रतिशत, पचनतंत्र कैंसर का २१-४३ प्रतिशत और हामर्न संबंधी कैंसर का खतरा १०-४० प्रतिशत तक कम होता है। साबुत अनाज का सेवन करने वाले लोगों को मधुमेह, कोरोनरी धमनी रोग, पेट का कैंसर और उच्च रक्तचाप जैसे रोगों की आशंका कम हो जाती है। साबुत अनाज युक्त खाद्य पदार्थों का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जिससे ये रक्त में शर्करा के स्तर को कम करते हैं। इनमें पाए जाने वाले फाइबर अंश पेट में गैस बनने की प्रक्रिया कम करते हैं एवं पेट में स्थिरता का आभास होता है, इसलिए ये शारीरिक वजन को कम करने में सहायता करते हैं। साबुत अनाज और साबुत दालें प्रतिदिन के आहार में अवश्य सम्मिलित करने चाहिये। धुली दाल के बजाय छिलके वाली दाल को वरीयता देनी चाहिये। साबत से बनाए गए ताजे उबले हुए चावल, इडली, उपमा, डोसा आदि रिफाइन्ड अनाज से बने पैक किए उत्पादों जैसे पस्ता, नूडल्स आदि से कहीं बेहतर होते हैं। रोटी, बन और ब्रैड से ज्यादा अच्छी होती हैं। रिफाइंड अनाज के मुकाबले साबुत अनाज वाले खाद्य पदार्थों से कार्डियोवस्क्युलर बीमारियों एवं पेट के कैंसर का खतरा कम हो जाता है। .

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सिरका

विभिन्न आकार वाली सिरके की बोतलें सिरका या चुक्र (Vinagar) भोजन का भाग है जो पाश्चात्य, यूरोपीय एवं एशियायी देशों के भोजन में प्राचीन काल से ही प्रयुक्त होता आया है। किसी भी शर्करायुक्त विलयन के मदिराकरण के अनंतर ऐसीटिक (अम्लीयامیر) किण्वन (acetic fermentation) से सिरका या चुक्र (Vinegar, विनिगर) प्राप्त होता है। इसका मूल भाग ऐसीटिक अम्ल का तनु विलयन है पर साथ ही यह जिन पदार्थों से बनाया जाता है उनके लवण तथा अन्य तत्व भी उसमें रहते हैं। प्रायः भोजन के लिये प्रयुक्त सिरके में ४% से ८% तक एसेटिक अम्ल होता है। विशेष प्रकार का सिरका उसके नाम से जाना जाता है, जैसे मदिरा सिरका (Wine Vinegar), मॉल्ट (यव्य या यवरस) सिरका (Malt Vinegar), अंगूर का सिरका, सेब का सिरका (Cider Vinegar), जामुन का सिरका और कृत्रिम सिरका इत्यादि। .

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सिरेनेइका

लीबिया के परम्परागत प्रदेश सिरेनेइका (Cyrenaica) लीबिया के पूर्वी भाग में स्थित एक प्रदेश है। भूमध्यसागर तट पर स्थित इस प्रदेश के पूर्व में मिस्र, पश्चिम में ट्रिपोलीटेनिया एवं दक्षिण में चाड गणतंत्र है। इसमें कूफा मरुद्यान भी सम्मिलित है। तटीय भाग की जलवायु भूमध्यसागरीय है। गर्मी की ऋतु उष्ण एवं शुष्क होती है। भीतरी भागों में वर्षा की मात्रा कम होती है तथा तट से १२५ किमी की दूरी पर मरुस्थलीय दशाएं पायी जाती हैं। तटीय क्षेत्र में बेनगाजी और डेरना के बीच में तथा गेबल-एल-अखदार (Gebel-el-Akhdar) पठार में जनसंख्या केंद्रित है जहां वार्षिक वर्षा १६ इंच के आसपास हो जाती है। जौ, गेहूं, जैतून एवं अंगूर मुख्य कृषि उपज हैं। कफ्रू एवं जिआलो नामक मरुद्यानों से खजूर की प्रचुर मात्रा में प्राप्ति होती है। खानाबदोश पशुचारियों ने भेड़, बकरे और ऊँट पर्याप्त मात्रा में पाल रखे हैं। यहाँ से भेड़, बकरा, पशु, ऊन, चमड़ा, मछली तथा स्पंज का निर्यात मुख्यत: ग्रीस और मिस्र को होता है। उपजाऊ भूमि का अधिकांश भाग चरागाह के लिए ही उपयुक्त है। विकसित सिंचाई के साधनों द्वारा तरकारी की उपज की जा सकती है। फिर भी पशुपालन एवं बागवानी खेती प्रधान उद्योग रहेंगे। यहाँ २,७२,००० एकड़ में प्राकृतिक वन हैं। खनिज तेल भी पाया जाता है। मुख्य नगर तोब्रक, डेरना, सिरएन, बार्स और बेनगाजी हैं जो तटीय सड़क मार्ग द्वारा एक-दूसरे से संबद्ध हैं। १५० किमी लंबा रेलमार्ग है। वायु मार्ग द्वारा त्रिपोली, काहिरा, रोम, माल्टा, ट्यूनिस, नैरोबी, एथेंस और लंदन यहाँ की राजधानी बेनगाजी से संबद्ध हैं। श्रेणी:लीबिया श्रेणी:भूगोल.

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सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता अपने शुरुआती काल में, 3250-2750 ईसापूर्व सिंधु घाटी सभ्यता (3300 ईसापूर्व से 1700 ईसापूर्व तक,परिपक्व काल: 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू.) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान,पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम और उत्तर भारत में फैली है। प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता के साथ, यह प्राचीन दुनिया की सभ्यताओं के तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थी, और इन तीन में से, सबसे व्यापक तथा सबसे चर्चित। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना को सिंधु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं। 7वी शताब्दी में पहली बार जब लोगो ने पंजाब प्रांत में ईटो के लिए मिट्टी की खुदाई की तब उन्हें वहां से बनी बनाई इटे मिली जिसे लोगो ने भगवान का चमत्कार माना और उनका उपयोग घर बनाने में किया उसके बाद 1826 में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की। 1904 में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व दयाराम साहनी को इसका खोजकर्ता माना गया। यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है। ८० प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है। .

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स्कैण्डिनेवियाई देश

स्केंडिनेविया प्रायद्वीप में उत्तरी यूरोप के आने वाले देशों को स्कैंडिनेवियाई देश कहते हैं इनमें नॉर्वे, स्वीडन व डेनमार्क आते हैं। इनके अलावा फिनलैंड, आइसलैंड एवं फैरो द्वीपसमूह के संग ये नॉर्डिक देश भी कहलाते हैं। .

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स्कैंडिनेविया प्रायद्वीप

उत्तरी यूरोप के स्कैण्डिनेविया प्रायद्वीप का रिलीफ़ मानचित्र स्कैन्डिनेवियाई प्रायद्वीप (Skandinaviska halvön; Den skandinaviske halvøy; Skandinavian niemimaa; ?; Скандинавский полуостров, Skandinavsky poluostrov) उत्तरी यूरोप महाद्वीप का एक प्रायद्वीप है, जिसमें मुख्यतः स्वीडन की मुख्यभूमि, नॉर्वे की मुख्यभूमि (रूस के सीमावर्ती कुछ तटीय क्षेत्रों को छोड़कर) एवं फिनलैंड का उत्तर-पश्चिमी भाग आते हैं। इनके साथ साथ ही रूस के पेचेंग्स्की जिले के पश्चिम का एक संकर भाग भी इस में माना जाता है। इनके अलावा फिनलैंड, आइसलैंड एवं फैरो द्वीपसमूह के संग ये देश नॉर्डिक देश भी कहलाते हैं। इस प्रायद्वीप का नाम स्कैंडिनेविया, डेनमार्क, स्वीडन एवं नॉर्वे के सांस्कृतिक क्षेत्र से व्युत्पन्न किया गया है। इस नाम का मूल प्रायद्वीप के दक्षिणतम भाग स्कैनिया से आया है जो एक लम्बे अन्तराल से डेनमार्क के अधिकार में रहा है, किन्तु वर्तमान में स्वीडन अधिकृत है। ये लोग मूल रूप से उत्तर जर्मनिक भाषाएं बोलते हैं जिनमें से प्रमुख भाषाएं हैं: डेनिश भाषा, नॉर्वेजियाई भाषा एवं स्वीडिश भाषा। वैसे इनके अतिरिक्त फ़ारोईज़ एवं आइसलैण्डिक भाषा भी इसी समूह के अधीन आती है, किन्तु उनके बोले जाने वाले क्षेत्र को स्कैंडिनेविया में नहीं गिना जाता है। स्कैण्डिनेवियाई प्रायद्वीप यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा प्रायद्वीप है एवं यह बल्कान प्रायद्वीप, आईबेरियाई प्रायद्वीप एवं इतालवी प्रायद्वीपों से भी बड़ा है। हिम युग के समय अंध महासागर का जलस्तर इतना गिर गया कि बाल्टिक सागर एवं फिनलैंड की खाड़ी गायब ही हो गये थे एवं उन्हें घेरे हुए वर्तमान देशों जैसे, जर्मनी, पोलैंड एवं अन्य बाल्टिक देश तथा स्कैंडिनेविया की सीमाएं सीधे-सीधे एक दूसरे से मिल गयी थीं। .

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स्कॉट्लैण्ड

स्काटलैंड यूनाइटेड किंगडम का एक देश है। यह ग्रेट ब्रिटेन का उत्तरी भाग है। यह पहाड़ी देश है जिसका क्षेत्रफल ७८,८५० वर्ग किमी है। यह इंगलैंड के उत्तर में स्थित है। यहां की राजधानी एडिनबरा है। ग्लासगो यहाँ का सबसे बड़ा शहर है। स्कॉटलैण्ड की सीमा दक्षिण में इंग्लैंड से सटी है। इसके पूरब में उत्तरी सागर तथा दक्षिण-पश्चिम में नॉर्थ चैनेल और आयरिश सागर हैं। मुख्य भूमि के अलावा स्कॉटलैण्ड के अन्तर्गत ७९० से भी अधिक द्वीप हैं। यूँ तो स्कॉटलैंड यूनाइटेड किंगडम के अधीन एक राज्य है लेकिन यहाँ का अपना मंत्रिमंडल है। यहाँ की मुद्रा का रंग और उस पर बने चित्र भी लंदन के पौंड से कुछ अलग है। लेकिन उनकी मान्यता और मूल्य दोनों ही पौंड के समान है। यहाँ घूमने और लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यहाँ के लोग इंग्लैंड सरकार से थोड़े से खफा रहते हैं। .

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हमीरपुर, उत्तर प्रदेश

हमीरपुर भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। यह कानपुर के दक्षिण में यमुना नदी के तट पर स्थित है। यह नगर एक कृषि व्यापार केंद्र है। हमीरपुर की एक प्रमुख सड़क जंक्शन और रेलमार्ग के पास स्थित है। हमीरपुर नगर में 11वीं शताब्दी के भग्नावशेष हैं। दक्षिण में स्थित पहाड़ियों को छोड़कर हमीरपुर के आसपास का क्षेत्रे आमतौर पर समतल है। हमीरपुर की प्रमुख फसलों में गेहूँ, चावल, ज्वार-बाजरा, जौ, कपास और सुपारी शामिल हैं। .

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हावड़ा

हावड़ा(अंग्रेज़ी: Howrah, बांग्ला: হাওড়া), भारत के पश्चिम बंगाल राज्य का एक औद्योगिक शहर, पश्चिम बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा शहर एवं हावड़ा जिला एवं हावड़ सदर का मुख्यालय है। हुगली नदी के दाहिने तट पर स्थित, यह शहर कलकत्ता, के जुड़वा के रूप में जाना जाता है, जो किसी ज़माने में भारत की अंग्रेज़ी सरकार की राजधानी और भारत एवं विश्व के सबसे प्रभावशाली एवं धनी नगरों में से एक हुआ करता था। रवीन्द्र सेतु, विवेकानन्द सेतु, निवेदिता सेतु एवं विद्यासागर सेतु इसे हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित पश्चिम बंगाल की राजधानी, कोलकाता से जोड़ते हैं। आज भी हावड़, कोलकाता के जुड़वा के रूप में जाना जाता है, समानताएं होने के बावजूद हावड़ा नगर की भिन्न पहचान है इसकी अधिकांशतः हिंदी भाषी आबादी, जोकि कोलकाता से इसे थोड़ी अलग पहचान देती है। समुद्रतल से मात्र 12 मीटर ऊँचा यह शहर रेलमार्ग एवं सड़क मार्गों द्वारा सम्पूर्ण भारत से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहाँ का सबसे प्रमुख रेलवे स्टेशन हावड़ा जंक्शन रेलवे स्टेशन है। हावड़ा स्टेशन पूर्व रेलवे तथा दक्षिणपूर्व रेलवे का मुख्यालय है। हावड़ स्टेशन के अलावा हावड़ा नगर क्षेत्र मैं और 6 रेलवे स्टेशन हैं तथा एक और टर्मिनल शालीमार रेलवे टर्मिनल भी स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग 2 एवं राष्ट्रीय राजमार्ग 6 इसे दिल्ली व मुम्बई से जोड़ते हैं। हावड़ा नगर के अंतर्गत सिबपुर, घुसुरी, लिलुआ, सलखिया तथा रामकृष्णपुर उपनगर सम्मिलित हैं। .

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जाज़ान प्रान्त

फ़ैफ़ा, जाज़ान प्रान्त की एक बस्ती जाज़ान प्रान्त या जिज़ान प्रान्त, जिसे औपचारिक अरबी में मिन्तक़ाह​ जाज़ान कहते हैं, सउदी अरब के दक्षिणपश्चिम कोने में लाल सागर के तट पर स्थित एक प्रान्त है। यह ठीक यमन से उत्तर में है और इस प्रान्त की उस देश के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा भी लगती है। जाज़ान प्रान्त में लाल सागर में स्थित १०० से अधिक द्वीप भी आते हैं, जिनमें से फ़रसान द्वीप समूह सउदी अरब का सर्वप्रथम संरक्षित क्षेत्र है। यहाँ अरबी ग़ज़ल (हिरण) और यूरोप से सर्दियों में आनी वाली बहुत सी पक्षियों की नस्लें मिलती हैं। यह प्रान्त सउदी अरब का दूसरा सबसे छोटा प्रान्त है।, Kathy Cuddihy, pp.

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वसन्त पञ्चमी

वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। .

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वानस्पतिक नाम

वानस्पतिक नाम (botanical names) वानस्पतिक नामकरण के लिए अन्तरराष्ट्रीय कोड (International Code of Botanical Nomenclature (ICBN)) का पालन करते हुए पेड़-पौधों के वैज्ञानिक नाम को कहते हैं। इस प्रकार के नामकरण का उद्देश्य यह है कि पौधों के लिए एक ऐसा नाम हो जो विश्व भर में उस पौधे के संदर्भ में प्रयुक्त हो। .

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वारसॉ

वारसॉ - Warszawa (या वारसा / Warsaw) पोलैंड का एक प्रांत है और पोलैंड की राजधानी है। .

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व्हिस्की

व्हिस्की का एक गिलास व्हिस्की किण्वित अनाज मैश से आसवित एक प्रकार का मादक पेय है। इसके विभिन्न प्रकारों के लिए विभिन्न अनाजों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें शामिल हैं जौ, राई, मॉल्ट राई, गेहूं और मक्का (मकई).

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ख़कासिया

180px ख़कासिया गणतंत्र (रूसी: Респу́блика Хака́сия, रॅस्पुब्लिका ख़कासिया; ख़कास: Хакасия Республиказы, अंग्रेज़ी: Khakassia) गणतंत्र का दर्जा रखने वाला रूस का एक राज्य है। यह दक्षिण-मध्य साइबेरिया क्षेत्र में स्थित है। इसकी राजधानी अबाकान (Абака́н, Abakan) नामक शहर है। इस गणतंत्र का नाम ख़कास नामक तुर्की जाति पर पड़ा है और यहाँ रूसी भाषा के साथ-साथ ख़कास भाषा को भी सरकारी मान्यता प्राप्त है। खाकास स्वशासित प्रदेश जिसकी स्थापना १९३० में की गई थी। यह मध्य साइबेरिया में क्रास्नायार्स्क प्रदेश के आगे उत्तरपूर्व स्थित २३,९७३ वर्गमील का भूभाग है। केमेरोवा और ओरियो के स्वशासित प्रदेश इसके दक्षिण ओर केमेरोवा प्रदेश पश्चिम में हैं। इसमें येनिसे नदी की सहायिका अबाकान नदी बहती है और आगे चल कर भिनुसिंस्क काठे से गुजरती हुई इसकी पूर्वी सीमा निर्धारित करती है। इस प्रदेश का ६० प्रतिशत भूभाग टैगा वन्य प्रदेश है। लकड़ी नदी द्वारा बहाकर अबाकान पहुँचाया जाता है वहाँ अनेक आरा मिलें हैं। काँठे के भीतर भेंड़ और दुग्ध पशुपालन होता है। पहले भिनुसिंस्क के काँठे में घोड़े आदि पशु स्वतंत्र विचरण किया करते थे। किंतु अब वहाँ गेहूँ, जौ और जई की खेती होती है। यहाँ के ५२ प्रतिशत तुर्क-मंगोल संकर जाति के खाकासी लोग हैं जो किसी समय घुमंतू थे। .

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ऑस्ट्रिया

ऑस्ट्रिया (जर्मन: Österreich एओस्तेराइख़, अर्थात पूर्वी राज्य) मध्य यूरोप में स्थित एक स्थल रुद्ध देश है। इसकी राजधानी वियना है। इसकी (मुख्य- और राज-) भाषा जर्मन भाषा है। देश का ज़्यादातर हिस्सा ऐल्प्स पर्वतों से ढका हुआ है। यूरोपीय संघ के इस देश की मुद्रा यूरो है। इसकी सीमाएं उत्तर में जर्मनी और चेक गणराज्य से, पूर्व में स्लोवाकिया और हंगरी से, दक्षिण में स्लोवाकिया और इटली और पश्चिम में स्विटजरलैंड और लीश्टेनश्टाइन से मिलती है। इस देश का उद्भव नौवीं शताब्दी के दौरान ऊपरी और निचले हिस्से में आबादी के बढ़ने के साथ हुआ। Ostarrichi शब्द का पहले पहल इस्तेमाल 996 में प्रकाशित आधिकारिक लेख में किया गया, जो बाद में Österreich एओस्तेराइख़ में बदल गया। आस्ट्रिया में पूर्वी आल्प्स की श्रेणियाँ फैली हुई हैं। इस पर्वतीय देश का पश्चिमी भाग विशेष पहाड़ी है जिसमें ओट्जरस्टुवार्ड, जिलरतुल आल्प्स (१,२४६ फुट) आदि पहाड़ियाँ हैं। पूर्वी भाग की पहाड़ियां अधिक ऊँची नहीं हैं। देश के उत्तर पूर्वी भाग में डैन्यूब नदी पश्चिम से पूर्व को (३३० किमी लंबी) बहती है। ईन, द्रवा आदि देश की सारी नदियां डैन्यूब की सहायक हैं। उत्तरी पश्चिमी सीमा पर स्थित कांस्टैंस, दक्षिण पूर्व में स्थित न्यूडिलर तथा अतर अल्फ गैंग, आसे आदि झीलें देश की प्राकृतिक शोभा बढ़ाती हैं। आस्ट्रिया की जलवायु विषम है। यहां ग्रर्मियों में कुछ अधिक गर्मी तथा जाड़ों में अधिक ठंडक पड़ती है। यहां पछुआ तथा उत्तर पश्चिमी हवाओं से वर्षा होती है। आल्प्स की ढालों पर पर्याप्त तथा मध्यवर्ती भागों में कम पानी बरसता है। यहाँ की वनस्पति तथा पशु मध्ययूरोपीय जाति के हैं। यहाँ देश के ३८ प्रतिशत भाग में जंगल हैं जिनमें ७१ प्रतिशत चीड़ जाति के, १९ प्रतिशत पतझड़ वाले तथा १० प्रतिशल मिश्रित जंगल हैं। आल्प्स के भागों में स्प्रूस (एक प्रकार का चीड़) तथा देवदारु के वृक्ष तथा निचले भागों में चीड़, देवदारु तथा महोगनी आदि जंगली वृक्ष पाए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि आस्ट्रिया का प्रत्येक दूसरा वृक्ष सरो है। इन जंगलों में हिरन, खरगोश, रीछ आदि जंगली जानवर पाए जाते हैं। देश की संपूर्ण भूमि के २९ प्रतिशत पर कृषि होती है तथा ३० प्रतिशत पर चारागाह हैं। जंगल देश की बहुत बड़ी संपत्ति है, जो शेष भूमि को घेरे हुए है। लकड़ी निर्यात करनेवाले देशों में आस्ट्रिया का स्थान छठा है। ईजबर्ग पहाड़ के आसपास लोहे तथा कोयले की खानें हैं। शक्ति के साधनों में जलविद्युत ही प्रधान है। खनिज तैल भी निकाला जाता है। यहां नमक, ग्रैफाइट तथा मैगनेसाइट पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। मैगनेसाइट तथा ग्रैफाइट के उत्पादन में आस्ट्रिया का संसार में क्रमानुसार दूसरा तथा चौथा स्थान है। तांबा, जस्ता तथा सोना भी यहां पाया जाता है। इन खनिजों के अतिरिक्त अनुपम प्राकृतिक दृश्य भी देश की बहुत बड़ी संपत्ति हैं। आस्ट्रिया की खेती सीमित है, क्योंकि यहां केवल ४.५ प्रतिशत भूमि मैदानी है, शेष ९२.३ प्रतिशत पर्वतीय है। सबसे उपजाऊ क्षेत्र डैन्यूब की पार्श्ववर्ती भूमि (विना का दोआबा) तथा वर्जिनलैंड है। यहां की मुख्य फसलें राई, जई (ओट), गेहूँ, जौ तथा मक्का हैं। आलू तथा चुकंदर यहां के मैदानों में पर्याप्त पैदा होते हैं। नीचे भागों में तथा ढालों पर चारेवाली फसलें पैदा होती हैं। इनके अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में तीसी, तेलहन, सन तथा तंबाकू पैदा किया जाता है। पर्वतीय फल तथा अंगूर भी यहाँ होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ों को काटकर सीढ़ीनुमा खेत बने हुए हैं। उत्तरी तथा पूर्वी भागों में पशुपालन होता है तथा यहाँ से वियना आदि शहरों में दूध, मक्खन तथा चीज़ पर्याप्त मात्रा में भेजा जाता है। जोरारलबर्ग देश का बहुत बड़ा संघीय पशुपालन केंद्र है। यहां बकरियां, भेड़ें तथा सुअर पर्याप्त पाले जाते हैं जिनसे मांस, दूध तथा ऊन प्राप्त होता है। आस्ट्रिया की औद्योगिक उन्नति महत्वपूर्ण है। लोहा, इस्पात तथा सूती कपड़ों के कारखाने देश में फैले हुए हैं। रासायनिक वस्तुएँ बनाने के बहुत से कारखाने हैं। यहाँ धातुओं के छोटे मोटे सामान, वियना में विविध प्रकार की मशीनें तथा कलपुर्जे बनाने के कारखाने हैं। लकड़ी के सामान, कागज की लुग्दी, कागज एवं वाद्यतंत्र बनाने के कारखाने यहां के अन्य बड़े धंधे हैं। जलविद्युत् का विकास खूब हुआ है। देश को पर्यटकों का भी पर्याप्त लाभ होता है। पहाड़ी देश होने पर भी यहाँं सड़कों (कुल सड़कें ४१,६४९ कि.मी.) तथा रेलवे लाइनों (५,९०८ कि.मी.) का जाल बिछा हुआ है। वियना यूरोप के प्राय: सभी नगरों से संबद्ध है। यहां छह हवाई अड्डे हैं जो वियना, लिंज, सैल्बर्ग, ग्रेज, क्लागेनफर्ट तथा इंसब्रुक में हैं। यहां से निर्यात होनेवाली वस्तुओं में इमारती लकड़ी का बना सामान, लोहा तथा इस्पात, रासायनिक वस्तुएं और कांच मुख्य हैं। विभिन्न विषयों की उच्चतम शिक्षा के लिए आस्ट्रिया का बहुत महत्व है। वियना, ग्रेज तथा इंसब्रुक में संसारप्रसिद्ध विश्वविद्यालय हैं। आस्ट्रिया में गणतंत्र राज्य है। यूरोप के ३६ राज्यों में, विस्तार के अनुसार, आस्ट्रिया का स्थान १९वाँ है। यह नौ प्रांतों में विभक्त है। वियना प्रांत में स्थित वियना नगर देश की राजधानी है। आस्ट्रिया की संपूर्ण जनसंख्या का १/४ भाग वियना में रहता है जो संसार का २२वाँ सबसे बड़ा नगर है। अन्य बड़े नगर ग्रेज, जिंज, सैल्जबर्ग, इंसब्रुक तथा क्लाजेनफर्ट हैं। अधिकांश आस्ट्रियावासी काकेशीय जाति के हैं। कुछ आलेमनों तथा बवेरियनों के वंशज भी हैं। देश सदा से एक शासक देश रहा है, अत: यहां के निवासी चरित्रवान् तथा मैत्रीपूर्ण व्यवहारवाले होते हैं। यहाँ की मुख्य भाषा जर्मन है। आस्ट्रिया का इतिहास बहुत पुराना है। लौहयुग में यहाँ इलिरियन लोग रहते थे। सम्राट् आगस्टस के युग में रोमन लोगों ने देश पर कब्जा कर लिया था। हूण आदि जातियों के बाद जर्मन लोगों ने देश पर कब्जा कर लिया था (४३५ ई.)। जर्मनों ने देश पर कई शताब्दियों तक शासन किया, फलस्वरूप आस्ट्रिया में जर्मन सभ्यता फैली जो आज भी वर्तमान है। १९१९ ई. में आस्ट्रिया वासियों की प्रथम सरकार हैप्सबर्ग राजसत्ता को समाप्त करके, समाजवादी नेता कार्ल रेनर के प्रतिनिधित्व में बनी। १९३८ ई. में हिटलर ने इसे महान् जर्मन राज्य का एक अंग बना लिया। द्वितीय विश्वयुद्ध में इंग्लैंड आदि देशों ने आस्ट्रिया को स्वतंत्र करने का निश्चय किया और १९४५ ई. में अमरीकी, ब्रितानी, फ्रांसीसी तथा रूसी सेनाओं ने इसे मुक्त करा लिया। इससे पूर्व अक्टूबर, १९४३ ई. की मास्को घोषणा के अंतर्गत ब्रिटेन, अमरीका तथा रूस आस्ट्रिया को पुन: एक स्वतंत्र तथा प्रभुसत्तासंपन्न राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित कराने का अपना निश्चय व्यक्त कर चुके थे। २७ अप्रैल, १९४५ को डा.

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आसवन

आसवन (Distillation) किसी मिश्रित द्रव के अवयवों को उनके वाष्पन-सक्रियताओं (volatilities) के अन्तर के आधर पर उन्हें अलग करने की विधि है। यह पृथक्करण की भौतिक विधि है न कि रासायनिक परिवर्तन अथवा रासायनिक अभिक्रिया। व्यावसायिक दृष्टि से आसवन के बहुत से उपयोग हैं। कच्चे तेल (क्रूड आयल) के विभिन्न अवयवों को पृथक करने के लिये इसका उपयोग किया जाता है। पानी का आसवन करने से उसकी अशुद्धियाँ (जैसे नमक) निकल जातीँ हैं और अधिक शुद्ध जल प्राप्त होता है। .

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आहारीय रेशा

लेग्यूम्स में आहारीय रेशा भरपूर मात्रा में उपस्थित होता है आहारीय रेशा, आहार में उपस्थित रेशे तत्त्व को कहते हैं। ये पौधों से मिलने वाले ऐसे तत्व हैं जो स्वयं तो अपाच्य होते हैं, किन्तु मूल रूप से पाचन क्रिया को सुचारू बनाने का अत्यावश्यक योगदान करते हैं। रेशे शरीर की कोशिकाओं की दीवार का निर्माण करते हैं। इनको एन्ज़ाइम भंग नहीं कर पाते हैं। अतः ये अपाच्य होते हैं।।। हेल्थ एण्ड थेराप्यूटिक। अभिगमन तिथि:११ अक्टूबर, २००९ कुछ समय पूर्व तक इन्हें आहार के संबंध में बेकार समझा जाता था, किन्तु बाद की शोधों से ज्ञात हुआ कि इनमें अनेक यांत्रिक एवं अन्य विशेषतायें होती हैं, जैसे ये शरीर में जल को रोक कर रखते हैं, जिससे अवशिष्ट (मल) में पानी की कमी नहीं हो पाती है और कब्ज की स्थिति से बचे रहते हैं। रेशे वाले भोजन स्रोतों को प्रायः उनके घुलनशीलता के आधार पर भी बांटा जाता है। ये रेशे घुलनशील और अघुलनशील होते हैं। ये दोनों तत्व पौधों से मिलने वाले रेशों में पाए जाते हैं। सब्जियां, गेहू और अधिकतर अनाजों में घुलनशील रेशे की अपेक्षा अघुलनशील रेशा होता है। स्वास्थ्य में योगदान की दृष्टि से दोनों तरह के रेशे अपने-अपने ढंग से काम करते हैं। जहां घुलनशील रेशे से संपूर्ण स्वास्थय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वहीं अघुलनशील रेशे से मोटापा संबंधी समस्या भी बढ़ सकती है। अघुलनशील रेशे पाचन में मदद करते है और कब्ज कम करते है। घुलनशील रेशे सीरम कोलेस्ट्राल कम करते है और अच्छे कोलेस्ट्राल (एच.डी.एल) का अनुपात बढाते है। भोजन में उच्च रेशे वाले आहार से वजन नियंत्रित होता है। ऐसे भोजन को अधिक चबाना पड़ता है एवं अधिक ऊर्जा व्यय होती है। इसके साथ ही रेशा इन्सुलिन के स्तर कोप भी गिराता है, जिससे भूख पर नियंत्रण रहता है, तथा उच्च रेशा आहार पेट में अधिक समय तक रहते हैं, जिससे पेट भरे होने का अहसास भी रहता है। रेशा मल निर्माण को भी प्रभावित करता है और इसे अधिक भारी बनाता है। मल जितना भारी होगा, आंतों से निकलने में उसे उतना ही समय लगेगा। गेहू की चोकर उच्च रेशे से परिपूर्ण होने के कारण मल का भार बढाने में मदद करती है। उसी मात्रा के गाजर या बन्दगोभी के रेशे से दूगनी प्रभावशील है। हिप्पोक्रेटज के अनुसार सम्पूर्ण अनाज की डबल रोटी आंत को साफ़ कर देती है। आहारीय रेशे सभी पौधों में पाए जाते हैं। जिन पौधों में रेशा अधिक मात्र में पाया जाता है, अधिकतर उनसे ही इन्हें प्राप्त किया जाता है। अधिक मात्र वाले फाइबर पौधों को सीधे तौर पर भी आहार में ग्रहण किया जा सकता है या इन्हें उचित विधि से पकाकर भोजन के तौर पर भी खाया जा सकता है। घुलनशील रेशे कई पौधों में पाए जाते हैं जिनसे मिलने वाले खाद्य पदार्थो में जौ, केला, सेब, मूली, आलू, प्याज आदि प्रमुख हैं। अघुलनशील रेशे मक्का, आलू के छिलके, मूंगफली, गोभी और टमाटर में से प्राप्त होते हैं। रसभरी जैसे फल में भी रेशा होता है। घुलनशील रेशे से शरीर को अधिक ऊर्जा मिलती है, जबकि अघुलनशील रेशे से शरीर को ऊर्जा प्राप्त नहीं करनी चाहिए। यह भी ध्यान योग्य है कि दोनों तरीके से शरीर में प्रति ग्राम फाइबर से चार कैलोरी भी जाती है। .

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आंदालुसिया

आंदालुसिया स्पेन के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है (लाल रंग में) अंडलूशिया या आंदालुसिया (स्पेनी: Andalucía) स्पेन का एक स्वायत्त समुदाय (लगभग राज्य जैसे प्रशासकीय भाग) है। इसकी जनसँख्या सन् 2010 में 83,70,975 थी जो स्पेन के किसी भी अन्य स्वायत्त समुदाय से अधिक है। इसका क्षेत्रफल 87,268 वर्ग किमी है जो स्पेन का दूसरा सब से बड़ा स्वायत्त समुदाय है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर सेविय (Sevilla) है। आंदालुसिया में आठ प्रान्त आते हैं: उएल्वा, सेविय, कादीस, कोरदोबा, मालागा, ख़ाएन, ग्रानादा और आल्मेरिया। आंदालुसिया स्पेन के दक्षिण पश्चिम में स्थित है और इसका सबसे दक्षिणी छोर उत्तर अफ़्रीका के मोरक्को देश से कुछ किमी की ही समुद्री दूरी पर है। अंडलूशिया अत्यंत उपजाऊ, प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत, मूर संस्कृति के स्मारकों से भरा, दक्षिणी स्पेन का एक विभाग है। इसके उत्तरी भाग में लोहे, ताँबे, सीसे, कोयले की खानों वाला सियरा मोरेना पर्वत तथा दक्षिण में हिमाच्छादित सियरा नेवादा है। मध्य के उपजाऊ मैदान में गेहूँ, जौ, शहतूत, नारंगी, अंगूर और मधु प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होते हैं। यहाँ घोड़े, गाय तथा भेड़ें पाली जाती हैं और ऊन, रेशम तथा चमड़े का काम होता है। यहाँ मस्जिदों की प्रचुर संख्या प्राचीन काल के व्यापक अरब प्रभाव की द्योतक है। अरबों ने सन् ७११ में सर्वप्रथम इस प्रदेश में पदार्पण किया था। यहाँ की भाषा, संस्कृति एवं जनता पर प्रचुर अरब प्रभाव है। श्रेणी:स्पेन का भूगोल .

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इथेनॉल

एथेनॉल (Ethanol) एक प्रसिद्ध अल्कोहल है। इसे एथिल अल्कोहल भी कहते हैं। .

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इब्ब प्रान्त

इब्ब​ प्रान्त (अरबी:, अंग्रेज़ी: Ibb) यमन का एक प्रान्त है। .

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इज़राइल

इज़राइल राष्ट्र (इब्रानी:מְדִינַת יִשְׂרָאֵל, मेदिनत यिसरा'एल; دَوْلَةْ إِسْرَائِيل, दौलत इसरा'ईल) दक्षिण पश्चिम एशिया में स्थित एक देश है। यह दक्षिणपूर्व भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर स्थित है। इसके उत्तर में लेबनॉन, पूर्व में सीरिया और जॉर्डन तथा दक्षिण-पश्चिम में मिस्र है। मध्यपूर्व में स्थित यह देश विश्व राजनीति और इतिहास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इतिहास और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार यहूदियों का मूल निवास रहे इस क्षेत्र का नाम ईसाइयत, इस्लाम और यहूदी धर्मों में प्रमुखता से लिया जाता है। यहूदी, मध्यपूर्व और यूरोप के कई क्षेत्रों में फैल गए थे। उन्नीसवी सदी के अन्त में तथा फ़िर बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में यूरोप में यहूदियों के ऊपर किए गए अत्याचार के कारण यूरोपीय (तथा अन्य) यहूदी अपने क्षेत्रों से भाग कर येरूशलम और इसके आसपास के क्षेत्रों में आने लगे। सन् 1948 में आधुनिक इसरायल राष्ट्र की स्थापना हुई। यरूशलम इसरायल की राजधानी है पर अन्य महत्वपूर्ण शहरों में तेल अवीव का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। यहाँ की प्रमुख भाषा इब्रानी (हिब्रू) है, जो दाहिने से बाँए लिखी जाती है। यहाँ के निवासियों को इसरायली कहा जाता है। .

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करमा

करमा झारखण्ड के आदिवासियों का एक प्रमुख त्यौहार है। मुख्य रूप से यह त्यौहार भादो (लगभग सितम्बर) मास की एकादशी के दिन और कुछेक स्थानों पर उसी के आसपास मनाया जाता है। इस मौके पर आदिवासी प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं, साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। करमा पर झारखंड के आदिवासी ढोल और मांदर की थाप पर झूमते-गाते हैं। यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा का है। ऐसे में ये सभी उल्लास से भरे होते हैं। परम्परा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस मौके पर एक बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है। पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें जौ डाल दिए जाते हैं, इसे 'जावा' कहा जाता है। यही जावा आदिवासी बहनें अपने बालों में गूंथकर झूमती-नाचती हैं। आदिवासी बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इनके भाई 'करम' वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति‍ से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं। .

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कल्लर भूमि

कल्लर भूमि तीन प्रकार की होती है-.

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कातालोनिया

कातालोन्या (या कॅटालोनिया) स्पेन के 17 स्वायत्त समुदायों में से एक है। स्वायत्त समुदाय स्पेन का सबसे उच्च-स्तरीय प्रशासनिक विभाग होता है। कातालोन्या देश के उत्तर-पूर्व में स्थित है व उत्तर में इसकी सीमा फ्रांस और अण्डोरा से छूती है। पूर्व में इसके भूमध्य सागर, पश्चिम में आरागोन और दक्षिण में वैलेंसियाई समुदाय है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा नगर बार्सिलोना है, जो स्पेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर व यूरोप के सबसे बड़े महानगरीय क्षेत्रों में से एक है। इसकी आधिकारिक भाषाओं में स्पेनी, कैटलन और ऑक्सिटन की उपभाषा आरानेस शामिल हैं। .

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कार्बनिक यौगिक

मिथेन सबसे सरल कार्बनिक यौगिक कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। .

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कांधार

The final phase of the battle of Kandahar on the side of the Murghan mountain कांधार या कंदहार अफ़ग़ानिस्तान का एक शहर है। यह अफगानिस्तान का तीसरा प्रमुख ऐतिहासिक नगर एवं कंदहार प्रान्त की राजधानी भी है। इसकी स्थिति 31 डिग्री 27मि उ.अ. से 64 डिग्री 43मि पू.दे.

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कुटज

कुटज का फूल कुटज (वानस्पतिक नाम: Wrightia antidysenterica) एक पादप है। इसके पौधे चार फुट से १० फुट तक ऊँचे तथा छाल आधे इंच तक मोटी होती है। पत्ते चार इंच से आठ इंच तक लंबे, शाखा पर आमने-सामने लगते हैं। फूल गुच्छेदार, श्वेत रंग के तथा फलियाँ एक से दो फुट तक लंबी और चौथाई इंच मोटी, इंच मोटी, दो-दो एक साथ जुड़ी, लाल रंग की होती हैं। इनके भीतर बीज कच्चे रहने पर हरे और पकने पर जौ के रंग के होते हैं। इनकी आकृति भी बहुत कुछ जौ की सी होती है, परंतु ये जौ से लगभग ड्योढ़े बड़े होते हैं। कुटज की फली के बीज का नाम इंद्रजौ या इंद्रयव है। संस्कृत, बँगला तथा गुजराती में भी बीज का यही नाम है। परंतु इस फली के पौधे को हिंदी में कोरैया या कुड़ची, संस्कृत में कुटज या कलिंग, बँगला और अंग्रेजी में कुड़ची तथा लैटिन में राइटिया एटिडिसेंटेरिका (Wrightia antidysenterica) कहते हैं। .

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क्षारीय भूमि

क्षारीय भूमि (Alkali soils या alkaline soils) उस मिट्टी को कहते हैं जिनका पीएच मान ९ से अधिक होता है (pH > 9) .

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कृषि

कॉफी की खेती कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और पौधों (फसलों) को उगाया गया, जिससे अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। इसने अधिक घनी आबादी और स्तरीकृत समाज के विकास को सक्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है। तकनीकों और विशेषताओं की बहुत सी किस्में कृषि के अन्तर्गत आती है, इसमें वे तरीके शामिल हैं जिनसे पौधे उगाने के लिए उपयुक्त भूमि का विस्तार किया जाता है, इसके लिए पानी के चैनल खोदे जाते हैं और सिंचाई के अन्य रूपों का उपयोग किया जाता है। कृषि योग्य भूमि पर फसलों को उगाना और चारागाहों और रेंजलैंड पर पशुधन को गड़रियों के द्वारा चराया जाना, मुख्यतः कृषि से सम्बंधित रहा है। कृषि के भिन्न रूपों की पहचान करना व उनकी मात्रात्मक वृद्धि, पिछली शताब्दी में विचार के मुख्य मुद्दे बन गए। विकसित दुनिया में यह क्षेत्र जैविक खेती (उदाहरण पर्माकल्चर या कार्बनिक कृषि) से लेकर गहन कृषि (उदाहरण औद्योगिक कृषि) तक फैली है। आधुनिक एग्रोनोमी, पौधों में संकरण, कीटनाशकों और उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है और साथ ही यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक क्षति का कारण भी बना है और इसने मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चयनात्मक प्रजनन और पशुपालन की आधुनिक प्रथाओं जैसे गहन सूअर खेती (और इसी प्रकार के अभ्यासों को मुर्गी पर भी लागू किया जाता है) ने मांस के उत्पादन में वृद्धि की है, लेकिन इससे पशु क्रूरता, प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाओं के स्वास्थ्य प्रभाव, वृद्धि हॉर्मोन और मांस के औद्योगिक उत्पादन में सामान्य रूप से काम में लिए जाने वाले रसायनों के बारे में मुद्दे सामने आये हैं। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है। साथ ही सजावटी या विदेशी उत्पादों की भी एक श्रेणी है। वर्ष 2000 से पौधों का उपयोग जैविक ईंधन, जैवफार्मास्यूटिकल्स, जैवप्लास्टिक, और फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में किया जा रहा है। विशेष खाद्यों में शामिल हैं अनाज, सब्जियां, फल और मांस। रेशे में कपास, ऊन, सन, रेशम और सन (फ्लैक्स) शामिल हैं। कच्चे माल में लकड़ी और बाँस शामिल हैं। उद्दीपकों में तम्बाकू, शराब, अफ़ीम, कोकीन और डिजिटेलिस शामिल हैं। पौधों से अन्य उपयोगी पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जैसे रेजिन। जैव ईंधनों में शामिल हैं मिथेन, जैवभार (बायोमास), इथेनॉल और बायोडीजल। कटे हुए फूल, नर्सरी के पौधे, उष्णकटिबंधीय मछलियाँ और व्यापार के लिए पालतू पक्षी, कुछ सजावटी उत्पाद हैं। 2007 में, दुनिया के लगभग एक तिहाई श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। हालांकि, औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद से कृषि से सम्बंधित महत्त्व कम हो गया है और 2003 में-इतिहास में पहली बार-सेवा क्षेत्र ने एक आर्थिक क्षेत्र के रूप में कृषि को पछाड़ दिया क्योंकि इसने दुनिया भर में अधिकतम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया। इस तथ्य के बावजूद कि कृषि दुनिया के आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों की रोजगार उपलब्ध कराती है, कृषि उत्पादन, सकल विश्व उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद का एक समुच्चय) का पांच प्रतिशत से भी कम हिस्सा बनता है। .

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कृषि जिंसों के सबसे बड़े उत्पादक देशों की सूची

प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर खाद्य पदार्थ, फाइबर, ईंधन और कच्चे माल में बांटा जा सकता है। .

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कृषि का इतिहास

कृषि का विकास कम से कम १०,००० वर्ष पूर्व हो चुका था। तब से अब तक बहुत से महत्वपूर्ण परिवर्तन हो चुके हैं। कृषि भूमि को खोदकर अथवा जोतकर और बीज बोकर व्यवस्थित रूप से अनाज उत्पन्न करने की प्रक्रिया को कृषि अथवा खेती कहते हैं। मनुष्य ने पहले-पहल कब, कहाँ और कैसे खेती करना आरंभ किया, इसका उत्तर सहज नहीं है। सभी देशों के इतिहास में खेती के विषय में कुछ न कुछ कहा गया है। कुछ भूमि अब भी ऐसी है जहाँ पर खेती नहीं होती। यथा - अफ्रीका और अरब के रेगिस्तान, तिब्बत एवं मंगोलिया के ऊँचे पठार तथा मध्य आस्ट्रेलिया। कांगो के बौने और अंदमान के बनवासी खेती नहीं करते। .

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अन-नफ़ूद रेगिस्तान

अन-नफ़ूद (अरबी:, सहरा अन-नफ़ूद; अंग्रेज़ी: An-Nafud) या अल-नफ़ूद या नफ़ूद अरबी प्रायद्वीप में स्थित एक बड़ा रेगिस्तान है। इसका क्षेत्रफल १,०३,००० वर्ग किमी है, यानि लगभग भारत के बिहार राज्य से ज़रा बड़ा।The New York Times Almanac, Editors and reporters of The New York Times, John W. (ed.) Wright, Penguin Books, Page 67, 2006, ISBN 0-14-303820-6 नफ़ूद एक अर्ग है, जिसमें ज़बरदस्त हवाएँ अचानक चल पड़ती हैं। इस वजह से यह क्षेत्र अर्धचन्द्र अकार के टीलों से भरा हुआ है। यहाँ की रेत का रंग थोड़ा लाल है। .

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अनबार प्रान्त

अनबार प्रान्त के ७ ज़िले अनबार प्रान्त, जिसे अरबी में मुहाफ़ज़ात​ अल-अनबार कहते हैं इराक़ का एक प्रान्त है। सन् १९७६ से पहले इस प्रान्त का नाम 'रमादी प्रान्त' था और १९६२ से पहले 'दुलैम प्रान्त' था। .

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अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश ('अरुणांचल' नहीं) भारत का एक उत्तर पूर्वी राज्य है। अरुणाचल का अर्थ हिन्दी मे "उगते सूर्य का पर्वत" है (अरूण + अचल; 'अचल' का अर्थ 'न चलने वाला' .

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अर्जेण्टीना

आर्जेंटीना दक्षिण अमेरिका में स्थित एक देश है। क्षेत्रफल एवं जनसंख्या की दृष्टि से दक्षिणी अमरीका का ब्राजील देश के बाद द्वितीय विशालतम देश है (क्षेत्रफल: २७,७६,६५६ वर्ग कि.मी.)। इसके उतत्र में ब्राजील पश्चिम में चिली तथा उत्तरपश्चिम में पराग्वे है। देश २२° द.अ. तथा ५५° द.अ. के मध्य ३७,७०० कि॰मी॰ की लंबाई में उत्तर दक्षिण फैला हुआ है। इसकी आकृति एक अधोमुखी त्रिभुज के समान है जो लगभग २,६०० कि॰मी॰ चौड़े आधार से दक्षिण की ओर संकरा होता चला गया है। उत्तर में यह बोलिविया एवं परागुए, उत्तर, पूर्व में युरुगए तथा ब्राजील और पश्चिम में चिली देश से घिरा है। अर्जेन्टीना का नाम अर्जेन्टम से पड़ा जिसाक अर्थ चाँदी होता है। चांदी के लिए प्रयुक्त लैटिन तथा स्पैनिश पर्यायवाची शब्दों से ही, जो क्रमश: 'अर्जेटम' एवं 'प्लाटा' हैं, अर्जेटीना और 'रायो डी ला प्लाटा' (देश की महान एस्चुअरी) का नामकरण हुआ है। आरंभ में यह उपनिवेश था जिसकी स्थापना स्पेन के चार्ल्स तृतीय ने पुर्तगाली दबाव को रोकने के लिए की थी। सन् १८१० ई. में देश की जनता ने स्पेन की सत्ता के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया जिसके परिणाम स्वरूप १८१६ ई. में यह स्वतंत्र हुआ। परंतु स्थायी सरकार की स्थापना १८५३ ई से ही संभव हुई। आर्जेटीना गणतंत्र के अतंर्गत २२ राज्यों के अतिरिक्त एक फेडरल जिला तथा टेरा डेल फ्यूगो, अंटार्कटिका महाद्वीप के कुछ भाग और दक्षिणी अतलांतक सागर के कुछ द्वीप हैं। .

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अंकुरण

जैविक मिश्रित अंकुरित दाने अंकुरित मूँग कच्चा या पकाकर खाने के लिये बीजों से छोटे-छोटे पौधे जन्माना अंकुरण कहलाता है। अंकुरण द्वारा किसी भी ऋतु में सलाद प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा अंकुरण घर पर या औद्योगिक रूप से किया जा सकता है। अंकुरित खाद्य पूर्वी एशियाई देशों में प्रमुखता से खाया जाता है। माल्ट बनाने के लिये जौ का बड़े पैमाने पर अंकुरण किया जाता है। .

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