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जैविक खेती

सूची जैविक खेती

आलू की जैविक खेती जैविक खेती (Organic farming) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् १९९० के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार काफ़ी बढ़ा है। .

24 संबंधों: चाय, नवधान्य, पतंजलि फूड एवं हर्बल पार्क, पारिस्थितिक पदचिह्न, प्राकृतिक खेती, फ्रांस की संस्कृति, बेंबर खेती, योग ग्राम, समकालीन, सूखा, सूक्ष्मजीव, हरी खाद, हिप्पी, जुताई रहित कृषि, जैव उर्वरक, जैविक खाद्य पदार्थ, वर्मी वाश, विज्ञान भारती, वंदना शिवा, गोबर, कम्पोस्ट, कृषि, कृषि की उत्तम पद्धतियाँ, केंचुआ खाद

चाय

चाय एक लोकप्रिय पेय है। यह चाय के पौधों की पत्तियों से बनता है।भारतीय.

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नवधान्य

नवधान्य (Navdanya) भारत की एक अशासकीय संस्था है जो जैवविविधता के संरक्षण, जैविक कृषि, कृषक अधिकार तथा बीज बचाने के लिये कार्य कर रही है। इसके संस्थापकों में प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता वंदना शिवा प्रमुख हैं। इसकी शुरुआत सन् १९८४ में हुई थी। .

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पतंजलि फूड एवं हर्बल पार्क

पतंजलि फूड एवं हर्बल पार्क पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट की इकाई है जिसके माध्यम से स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण और स्वदेशी की विचारधारा पर कार्य होता है। हरिद्वार में स्थित 'पदार्था' नामक गांव में 'पतंजलि फूड एंव हर्बल पार्क लिमिटेड' में आवश्यक घरेलू वस्तुओं से लेकर आयुर्वेदिक औषधियों तक का निर्माण होता है। इसकी कई इकाइयां देश की किसी भी बड़ी कंपनी की इकाइयों से बड़ी हैं। .

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पारिस्थितिक पदचिह्न

पारिस्थितिक पदचिह्न, पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्रों पर मानवीय माँग का एक मापक है। यह इंसान की मांग की तुलना, पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरुत्पादन करने की क्षमता से करता है। यह मानव आबादी द्वारा उपभोग किए जाने वाले संसाधनों के पुनरुत्पादन और उससे उत्पन्न अपशिष्ट के अवशोषण और उसे हानिरहित बनाकर लौटाने के लिए ज़रूरी जैविक उत्पादक भूमि और समुद्री क्षेत्र की मात्रा को दर्शाता है। इसका प्रयोग करते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर प्रत्येक व्यक्ति एक निश्चित जीवन शैली अपनाए, तो मानवता की सहायता के लिए पृथ्वी के कितने हिस्से (या कितने पृथ्वी ग्रह) की ज़रूरत होगी। 2006 के लिए मनुष्य जाति के कुल पारिस्थितिक पदचिन्ह को 1.4 पृथ्वी ग्रह अनुमानित किया गया था, अर्थात मानव जाति पारिस्थितिक सेवाओं का उपयोग पृथ्वी द्वारा उनके पुनर्सृजन की तुलना में 1.4 गुना तेज़ी से करती है। प्रति वर्ष इस संख्या की पुनर्गणना की जाती है – संयुक्त राष्ट्र को आधारभूत आंकड़े इकट्ठा करने और प्रकाशित करने में समय लगने के कारण यह तीन साल पीछे चलती है। जहां पारिस्थितिक पदचिह्न शब्द का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है, वहीं इसके मापन के तरीके भिन्न होते हैं। हालांकि गणना के मानक अब ज्यादा तुलनात्मक और संगत परिणाम देने वाले बन कर उभर रहे हैं। .

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प्राकृतिक खेती

प्राकृतिक खेती के प्रवर्तक '''मसानोबू फुकुओका''' प्राकृतिक खेती जापान के किसान एवं दार्शनिक फुकुओका (1913–2008) द्वारा स्थापित कृषि की पर्यावरणरक्षी पद्धति है। फुकुओका ने इस पद्धति का विवरण जापानी भाषा में लिखी अपनी पुस्तक 'सिजेन नोहो' (自然農法 / shizen nōhō) में किया है। इसलिए कृषि की इस पद्धति को 'फुकुओका विधि' भी कहते हैं। इस पद्धति में 'कुछ भी न करने' की सलाह दी जाती है जैसे जुताई न करना, गुड़ाई न करना, उर्वरक न डालना, कीटनाशक न डालना, निराई न करना आदि। भारत में खेती की इस पद्धति को 'ऋषि खेती' कहते हैं। .

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फ्रांस की संस्कृति

स्वच्छंदतावाद की शैलीगत विचारों का उपयोग करते हुए यूजीन देलाक्रोइक्स की जुलाई क्रांति का चित्रण करनेवाली सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग लि‍बर्टी लीडिंग द पीपुल कहलायी.चूंकि लिबर्टी (आजादी), आदर्श वाक्य «लिबर्टी एगैलाइट फ्रैंटर्नाइट» («Liberté, égalité, fraternité») का हिस्सा है, यह पेंटिंग फ्रांसिसी क्रांति का प्राथमिक प्रतीक है, जैसा कि फ्रांस ने इसे लिया है। फ्रांस की संस्कृति और फ्रांसीसियों की संस्कृति भूगोल, गंभीर ऐतिहासिक घटनाओं और विदेशी तथा आंतरिक शक्तियों और समूहों द्वारा गढ़ी गयी है। फ्रांस और विशेष रूप से पेरिस, ने सत्रहवीं सदी से उन्नीसवीं सदी तक विश्वव्यापी स्तर पर उच्च सांस्कृतिक केंद्र और आलंकारिक कला के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है, इस मामले में यह यूरोप में प्रथम है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण से, फ्रांस ने आधुनिक कला, सिनेमा, फैशन और भोजन शैली में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। सदियों तक फ़्रांसिसी संस्कृति का महत्व इसके आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य महत्व के आधार पर घटता और बढ़ता रहा है। आज फ़्रांसिसी संस्कृति महान क्षेत्रीय तथा सामाजिक-आर्थिक अंतरों और सुदृढ़ एकीकृत प्रवृत्तियों दोनों के द्वारा चिह्नित है। चाहे फ्रांस या यूरोप में या सामान्य रूप से, सामाजिकीकरण प्रक्रिया और भौतिक कलाकृतियों के माध्यम से मान्यताओं और मूल्यों के मिलन को सीखा जाता है। समाज के सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों का मार्गदर्शन संस्कृति करती है और यह निजी मान्यताओं और मूल्यों को प्रभावित करती है जो व्यक्ति की अपने वातावरण की अभिज्ञता को आकार देते हैं: "संस्कृति एक समूह के सदस्यों के साझा विश्वासों, मूल्यों, मानदंडों और भौतिक वस्तुओं का विज्ञ समुच्चय है। बचपन से बुढ़ापे तक के जीवनक्रम के दौरान समूहों में हम जो कुछ भी सीखते हैं वो सब संस्कृति में शामिल है।" लेकिन "फ़्रांसिसी" संस्कृति की अवधारणा कुछ कठिनाइयां खड़ी करती है और "फ़्रांसिसी" ("फ्रेंच") अभिव्यक्ति का ठीक क्या मतलब है इस बारे में धारणाओं या अनुमानों की एक श्रृंखला है। जबकि अमेरिकी संस्कृति के बारे में "मेल्टिंग पौट" और सांस्कृतिक विविधता की धारणा को मान लिया गया है, लेकिन "फ़्रांसिसी संस्कृति" एक विशेष भौगोलिक इकाई (जैसे कि कह सकते हैं, "मेट्रोपोलिटन फ्रांस", आम तौर पर इसके विदेश स्थित क्षेत्रों को छोड़ दिया जाता है) या नस्ल, भाषा, धर्म और भूगोल द्वारा परिभाषित एक विशिष्ट ऐतिहासिक-सामाजिक समूह को अव्यक्त रूप से संदर्भित है। हालांकि "फ्रेंचनेस" की वास्तविकताएं अत्यंत जटिल हैं। उन्नीसवीं सदी के अंतिम चरण से पहले, "मेट्रोपोलिटन फ्रांस" मुख्यतः स्थानीय प्रथाओं और क्षेत्रीय अंतरों का एक पैबंद भर था, जिसका एन्सियन रिजीम (फ्रांस की राज्य क्रांति से पूर्व की शासन-पद्धति) के एकीकरण का उद्देश्य था और फ़्रांसिसी क्रांति ने इसके खिलाफ काम करना शुरू किया था; और आज का फ्रांस अनेक देशी और विदेशी भाषाओं, बहु-जातीयताओं और धर्मों तथा क्षेत्रीय विविधता वाला देश है, जिसमें कोर्सिका, ग्वाडेलोप, मार्टिनिक और विश्व में अन्य स्थानों के फ़्रांसिसी नागरिक शामिल हैं। इस बृहद विविधता के बावजूद, एक प्रकार की विशिष्ट या साझा संस्कृति या "सांस्कृतिक पहचान" का सृजन एक शक्तिशाली आंतरिक शक्तियों का परिणाम है - जैसे कि फ़्रांसिसी शिक्षा पद्धति, अनिवार्य सैन्य सेवा, सरकारी भाषाई व सांस्कृतिक नीतियां - और फ्रैंको-प्रशिया युद्ध तथा दो विश्व युद्धों जैसी गंभीर ऐतिहासिक घटनाएं ऎसी प्रभावशाली आंतरिक शक्ति रहीं जिनसे 200 सालों के दौरान एक राष्ट्रीय पहचान की भावना को पैदा हुई। हालांकि, इन एकीकृत शक्तियों के बावजूद, फ्रांस आज भी सामाजिक वर्ग और संस्कृति में महत्वपूर्ण क्षेत्रीय मतभेदों (भोजन, भाषा/उच्चारण, स्थानीय परंपराएं) द्वारा चिह्नित होता है, जो कि समकालीन सामाजिक शक्तियों (ग्रामीण क्षेत्रों से आबादी का पलायन, अप्रवासन, केंद्रीकरण, बाजार की शक्तियां और विश्व अर्थव्यवस्था) का सामना करने में अक्षम रहेगा.

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बेंबर खेती

बेंवर खेती पूरी तरह से जैविक, पारिस्थितिक, प्रकृति के अनुकुल और मिश्रित खेती है। यह जैविक खेती का ही एक रूप है। डिंडौरी जिले के समनापुर विकासखंड के कई गांवों में बैगा आदिवासी इस तरह की खेती करके अनाज का उत्पादन करते हैं और अपनी आजीविका चलाते हैं। इसकी खासियत यह है कि इस खेती में एक साथ 16 प्रकार के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें कुछ बीज अधिक पानी में अच्छी फसल देता है, तो कुछ बीज कम पानी होने या सूखा पड़ने पर भी अच्छा उत्पादन करता है। इससे खेत में हमेशा कोई-न-कोई फसल लहलहाते रहता है। फिलहाल इस तरह की खेती पर रोक लगी हुई है। सन् 1864 में अंग्रेजों के वन कानून ने इस पर रोक लगा दी है। उसके बाद भी डिंडौरी जिले के बैगाचक और बैगाचक से लगे छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में कुछ बैगा जनजाति ‘बेंवर खेती’ को अपनाए हुए है। .

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योग ग्राम

योग ग्राम का उद्घाटन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री बी.सी.खंडूरी द्वारा 8 जून 2008 को किया गया था। योग ग्राम हरिद्वार में स्थित है और एक ऐसा गाँव है जहाँ शुद्ध प्राकृतिक माहौल है। यहाँ नशामुक्त समाज है और जैविक खेती होती है जो सौ प्रतिशत विष-मुक्त है। योग ग्राम की संकल्पना योग गुरु बाबा रामदेव और उनके सहयोगी आचार्या बालकृष्ण की है। .

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समकालीन

समकालीन इतिहास के उस अवधि के बारे में बताता है जो आज के लिए एकदम प्रासंगिक है तथा आधुनिक इतिहास के कुछ निश्चित परिप्रेक्ष्य से संबंधित है। हाल के समकालीन इतिहास की कमजोर परिभाषा विश्व युद्ध-II जैसी घटनाओं को शामिल करती है, लेकिन उन घटनाओं को शामिल नहीं करती जिनके प्रभाव को समाप्त किया जा चुका है। .

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सूखा

अकाल भोजन का एक व्यापक अभाव है जो किसी भी पशुवर्गीय प्रजाति पर लागू हो सकता है। इस घटना के साथ या इसके बाद आम तौर पर क्षेत्रीय कुपोषण, भुखमरी, महामारी और मृत्यु दर में वृद्धि हो जाती है। जब किसी क्षेत्र में लम्बे समय तक (कई महीने या कई वर्ष तक) वर्षा कम होती है या नहीं होती है तो इसे सूखा या अकाल कहा जाता है। सूखे के कारण प्रभावित क्षेत्र की कृषि एवं वहाँ के पर्यावरण पर अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है। इतिहास में कुछ अकाल बहुत ही कुख्यात रहे हैं जिसमें करोंड़ों लोगों की जाने गयीं हैं। अकाल राहत के आपातकालीन उपायों में मुख्य रूप से क्षतिपूरक सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे कि विटामिन और खनिज पदार्थ देना शामिल है जिन्हें फोर्टीफाइड शैसे पाउडरों के माध्यम से या सीधे तौर पर पूरकों के जरिये दिया जाता है।, बीबीसी न्यूज़, टाइम सहायता समूहों ने दाता देशों से खाद्य पदार्थ खरीदने की बजाय स्थानीय किसानों को भुगतान के लिए नगद राशि देना या भूखों को नगद वाउचर देने पर आधारित अकाल राहत मॉडल का प्रयोग करना शुरू कर दिया है क्योंकि दाता देश स्थानीय खाद्य पदार्थ बाजारों को नुकसान पहुंचाते हैं।, क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर लंबी अवधि के उपायों में शामिल हैं आधुनिक कृषि तकनीकों जैसे कि उर्वरक और सिंचाई में निवेश, जिसने विकसित दुनिया में भुखमरी को काफी हद तक मिटा दिया है।, न्यूयॉर्क टाइम्स, 9 जुलाई 2009 विश्व बैंक की बाध्यताएं किसानों के लिए सरकारी अनुदानों को सीमित करते हैं और उर्वरकों के अधिक से अधिक उपयोग के अनापेक्षित परिणामों: जल आपूर्तियों और आवास पर प्रतिकूल प्रभावों के कारण कुछ पर्यावरण समूहों द्वारा इसका विरोध किया जाता है।, न्यूयॉर्क टाइम्स, 2 दिसम्बर 2007, दी अटलांटिक .

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सूक्ष्मजीव

जीवाणुओं का एक झुंड वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। बहुत से अन्य जीवों तथा पादपों के शिशु भी सूक्ष्मजीव ही होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवविज्ञानी विषाणुओं को भी सूक्ष्मजीव के अन्दर रखते हैं किन्तु अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान सूक्ष्मजीवियों को पोषक मीडिया (माध्यमों) पर उगाया जा सकता है, ताकि वृद्धि कर यह कालोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न नेत्रों से देखा जा सके। ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवियों पर अध्ययन के दौरान काफी लाभदायक होते हैं। .

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हरी खाद

हरी खाद के लिये सोयाबीन कृषि में हरी खाद (green manure) उस सहायक फसल को कहते हैं जिसकी खेती मुख्यत: भूमि में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने तथा उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है। प्राय: इस तरह की फसल को इसके हरी स्थिति में ही हल चलाकर मिट्टी में मिला दिया जाता है। हरी खाद से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और भूमि की रक्षा होती है। मृदा के लगातार दोहन से उसमें उपस्थित पौधे की बढ़वार के लिये आवश्यक तत्त्व नष्ट होते जा रहे हैं। इनकी क्षतिपूर्ति हेतु व मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिये हरी खाद एक उत्तम विकल्प है। बिना गले-सड़े हरे पौधे (दलहनी एवं अन्य फसलों अथवा उनके भाग) को जब मृदा की नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिये खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरी खाद देना कहते हैं। हरी खाद के उपयोग से न सिर्फ नत्रजन भूमि में उपलब्ध होता है बल्कि मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा में भी सुधार होता है। वातावरण तथा भूमि प्रदूषण की समस्या को समाप्त किया जा सकता है लागत घटने से किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है, भूमि में सूक्ष्म तत्वों की आपूर्ति होती है साथ ही मृदा की उर्वरा शक्ति भी बेहतर हो जाती है। .

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हिप्पी

वुडस्टाक समारोह में हिप्पी, 1969 हिप्पी उप-संस्कृति मूल रूप से युवाओं का एक आंदोलन था जो 1960 के दशक के मध्य में संयुक्त राज्य अमेरिका में उभरा और बड़ी तेजी से दुनिया के अन्य देशों में फ़ैल गया। 'हिप्पी' शब्द की व्युत्पत्ति हिप्स्टर से हुई है, शुरुआत में इसका इस्तेमाल बीटनिकों (परंपराओं का विरोध करने वाले लोग) को सन्दर्भित करने के लिए किया जाता था जो न्यूयॉर्क शहर के ग्रीनविच विलेज और सैन फ्रांसिस्को के हाईट-ऐशबरी जिले में जाकर बस गए थे। हिप्पी की शुरुआती विचारधारा में बीट पीढ़ी के सांस्कृतिक विरोधी (काउंटरकल्चर) मूल्य शामिल थे। कुछ लोगों ने अपने स्वयं के सामाजिक समूहों और समुदायों का निर्माण किया जो मनोविकृतिकारी रॉक धुनों को सुनते थे, यौन क्रांति को अंगीकार करते थे और चेतना की वैकल्पिक अवस्थाओं को प्राप्त करने के लिए मारिजुआना एवं एलएसडी जैसी नशीली दवाओं का सेवन करते थे। जनवरी 1967 में सैन फ्रांसिस्को के गोल्डन गेट पार्क में ह्यूमन बी-इन ने हिप्पी संस्कृति को लोकप्रियता दिलाई जिसने आगे चलकर संयुक्त राज्य अमेरिका के वेस्ट कोस्ट के अति प्रसिद्ध समर ऑफ लव और ईस्ट कोस्ट में 1969 वुडस्टॉक फेस्टिवल को जन्म दिया। जिपिटेकस के नाम से जाने जानेवाले मेक्सिको के हिप्पियों ने ला ओंडा चिकाना का गठन किया और एवेंडारो में इकट्ठा हुए जबकि न्यूजीलैंड में खानाबदोश हाउसट्रकर्स ने वैकल्पिक जीवनशैली को अपनाया और नाम्बासा में चिरस्थायी ऊर्जा को बढ़ावा दिया। यूनाइटेड किंगडम में न्यू एज ट्रैवलर्स के घुमंतू "शांति रक्षकों" ने स्टोनहेंज के मुफ्त संगीत समारोहों के लिए गर्मियों के तीर्थ स्थानों का निर्माण किया। ऑस्ट्रेलिया में हिप्पी 1973 के एक्वेरियस फेस्टिवल और वार्षिक कैनाबिस लॉ रिफॉर्म रैली या मार्डीग्रास के लिए निम्बिन में एकत्र हुए.

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जुताई रहित कृषि

गेहूँ के डंठलों से पोषण लेते हुए सोयाबीन के नये पौधे। इससे इन्हें संरक्षण भी मिलता है। बिना जुताई के खेती करने से भूमि का क्षरण नहीं होता तथा नई फसल के लिये नमी बची रहती है। बिना जुताई के बोआई करने वाली मशीन जुताई रहित कृषि या बिना जुताई के खेती (No-till farming) खेती करने का वह तरीका है जिसमें भूमि को बिना जोते ही बार-बार कई वर्षों तक फसलें उगायी जातीं हैं। यह कृषि की नयी विधि है जिसके कई लाभ हैं। .

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जैव उर्वरक

घरेलू कम्पोस्ट जैव उर्वरक (Organic fertilizers) उन उर्वरकों को कहते हैं जो जन्तुओं या वनस्पतियों से प्राप्त होते हैं। जैसे खाद, कम्पोस्ट, आदि .

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जैविक खाद्य पदार्थ

अर्जेंटीना के एक किसान बाजार में जैव सब्जियां जैविक खाद्य पदार्थ इस तरीके से बनाये जाते हैं कि उत्पादन के दौरान सिंथेटिक सामग्री के उपयोग को सीमित किया जा सके अथवा बाहर निकाला जा सके.

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वर्मी वाश

वर्मीवाश (Vermiwash) एक तरल जैविक खाद है जो ताजा वर्मीकम्पोस्ट व केंचुए के शरीर को धोकर तैयार किय जाता है। वर्मीवाश के उपयोग से न केवल उत्तम गुणवत्ता युक्त उपज प्राप्त कर सकते हैं बल्कि इसे प्राकृतिक जैव कीटनाशक के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। वर्मीवाश में घुलनशील नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश मुख्य पोषक तत्व होते हैं। इसके अलावा इसमें हार्मोन, अमीनो एसिड, विटामिन, एंजाइम, और कई उपयोगी सूक्ष्म जीव भी पाये जाते हैं। इसके प्रयोग से पच्चीस प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ जाता है। .

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विज्ञान भारती

विज्ञान भारती, (या, 'विभा') भारत की एक अशासकीय संस्था है जो भारत में स्वदेशी विज्ञान के विकास के लिए एक जीवंत आंदोलन के रूप में परिकल्पित है। इसकी संस्थापना सन् १९९२ में जबलपुर में हुई थी। इसका ध्येयवाक्य (मोट्टो) है - 'अविद्यया मृत्युं तीर्वा विद्ययामृतमश्नुते'। (अर्थ: अविद्या द्वारा मृत्यु को पार करते हुए विद्या द्वारा अमरता को प्राप्त होता है।) .

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वंदना शिवा

वंदना शिवा (जन्म. 5 नवम्बर 1952, देहरादून, उत्तराखंड, भारत), एक दार्शनिक, पर्यावरण कार्यकर्ता, पर्यावरण संबंधी नारी अधिकारवादी एवं कई पुस्तकों की लेखिका हैं। वर्तमान में दिल्ली में स्थित, शिवा अग्रणी वैज्ञानिक और तकनीकी पत्रिकाओं में 300 से अधिक लेखों की रचनाकार हैं। उन्होंने 1978 में डॉक्टरी शोध निबंध: "" के साथ पश्चिमी ओंटेरियो विश्वविद्यालय, कनाडा से अपनी पीएच.डी.

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गोबर

गोबर गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस या भैंसा के मल के लिये प्राय: होता है। घास, भूसा, खली आदि जो कुछ चौपायों द्वारा खाया जाता है उसके पाचन में कितने ही रासायनिक परिवर्तन होते हैं तथा जो पदार्थ अपचित रह जाते हैं वे शरीर के अन्य अपद्रव्यों के साथ गोबर के रूप में बाहर निकल जाते हैं। यह साधारणत: नम, अर्द्ध ठोस होता है, पर पशु के भोजन के अनुसार इसमें परिवर्तन भी होते रहते हैं। केवल हरी घास या अधिक खली पर निर्भर रहनेवाले पशुओं का गोबर पतला होता है। इसका रंग कुछ पीला एवं गाढ़ा भूरा होता है। इसमें घास, भूसे, अन्न के दानों के टुकड़े आदि विद्यमान रहते हैं और सरलता से पहचाने जा सकते हैं। सूखने पर यह कड़े पिंड में बदल जाता है। .

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कम्पोस्ट

बागीचे में निर्मित कम्पोस्ट कम्पोस्ट (Compost) एक प्रकार की खाद है जो जैविक पदार्थों के अपघटन एवं पुनःचक्रण से प्राप्त की जाती है। यह जैव कृषि का मुख्य घटक है। कम्पोस्ट बनाने का सबसे सरल तरीका है - नम जैव पदार्थों (जैसे पत्तियाँ, बचा-खुचा खाना आदि) का ढेर बनाकर कुछ काल तक प्रतीक्षा करना ताकि इसका विघटन हो जाय। विघटन में कुछ सप्ताह या महीने लगते हैं। उसके बाद वह ह्यूमस में बदल जाता है। कम्पोस्ट बनाने की आधुनिक विधि कई चरणों में पूर्ण होती है और प्रत्येक चरण में जल, वायु एवं कार्बन तथा नाइट्रोजन से समृद्ध पदार्थों को बड़े नपे-तुले ढंग से डाला जाता है। .

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कृषि

कॉफी की खेती कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और पौधों (फसलों) को उगाया गया, जिससे अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। इसने अधिक घनी आबादी और स्तरीकृत समाज के विकास को सक्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है। तकनीकों और विशेषताओं की बहुत सी किस्में कृषि के अन्तर्गत आती है, इसमें वे तरीके शामिल हैं जिनसे पौधे उगाने के लिए उपयुक्त भूमि का विस्तार किया जाता है, इसके लिए पानी के चैनल खोदे जाते हैं और सिंचाई के अन्य रूपों का उपयोग किया जाता है। कृषि योग्य भूमि पर फसलों को उगाना और चारागाहों और रेंजलैंड पर पशुधन को गड़रियों के द्वारा चराया जाना, मुख्यतः कृषि से सम्बंधित रहा है। कृषि के भिन्न रूपों की पहचान करना व उनकी मात्रात्मक वृद्धि, पिछली शताब्दी में विचार के मुख्य मुद्दे बन गए। विकसित दुनिया में यह क्षेत्र जैविक खेती (उदाहरण पर्माकल्चर या कार्बनिक कृषि) से लेकर गहन कृषि (उदाहरण औद्योगिक कृषि) तक फैली है। आधुनिक एग्रोनोमी, पौधों में संकरण, कीटनाशकों और उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है और साथ ही यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक क्षति का कारण भी बना है और इसने मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चयनात्मक प्रजनन और पशुपालन की आधुनिक प्रथाओं जैसे गहन सूअर खेती (और इसी प्रकार के अभ्यासों को मुर्गी पर भी लागू किया जाता है) ने मांस के उत्पादन में वृद्धि की है, लेकिन इससे पशु क्रूरता, प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाओं के स्वास्थ्य प्रभाव, वृद्धि हॉर्मोन और मांस के औद्योगिक उत्पादन में सामान्य रूप से काम में लिए जाने वाले रसायनों के बारे में मुद्दे सामने आये हैं। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है। साथ ही सजावटी या विदेशी उत्पादों की भी एक श्रेणी है। वर्ष 2000 से पौधों का उपयोग जैविक ईंधन, जैवफार्मास्यूटिकल्स, जैवप्लास्टिक, और फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में किया जा रहा है। विशेष खाद्यों में शामिल हैं अनाज, सब्जियां, फल और मांस। रेशे में कपास, ऊन, सन, रेशम और सन (फ्लैक्स) शामिल हैं। कच्चे माल में लकड़ी और बाँस शामिल हैं। उद्दीपकों में तम्बाकू, शराब, अफ़ीम, कोकीन और डिजिटेलिस शामिल हैं। पौधों से अन्य उपयोगी पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जैसे रेजिन। जैव ईंधनों में शामिल हैं मिथेन, जैवभार (बायोमास), इथेनॉल और बायोडीजल। कटे हुए फूल, नर्सरी के पौधे, उष्णकटिबंधीय मछलियाँ और व्यापार के लिए पालतू पक्षी, कुछ सजावटी उत्पाद हैं। 2007 में, दुनिया के लगभग एक तिहाई श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। हालांकि, औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद से कृषि से सम्बंधित महत्त्व कम हो गया है और 2003 में-इतिहास में पहली बार-सेवा क्षेत्र ने एक आर्थिक क्षेत्र के रूप में कृषि को पछाड़ दिया क्योंकि इसने दुनिया भर में अधिकतम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया। इस तथ्य के बावजूद कि कृषि दुनिया के आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों की रोजगार उपलब्ध कराती है, कृषि उत्पादन, सकल विश्व उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद का एक समुच्चय) का पांच प्रतिशत से भी कम हिस्सा बनता है। .

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कृषि की उत्तम पद्धतियाँ

यहाँ पर कृषि से सम्बन्धित अच्छी पद्धतियों (प्रैक्टिसेस) की जानकारी दी गयी है जिनके पालन से उत्पन्न अनाज आदि सुरक्षित रहता है। .

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केंचुआ खाद

केंचुआ खाद ('रोटरी स्क्रीन विधि' से निर्मित) केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है। केंचुआ खाद की विशेषताएँ: इस खाद में बदबू नहीं होती है, तथा मक्खी, मच्छर भी नहीं बढ़ते है जिससे वातावरण स्वस्थ रहता है। इससे सूक्ष्म पोषित तत्वों के साथ-साथ नाइट्रोजन 2 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस 1 से 2 प्रतिशत, पोटाश 1 से 2 प्रतिशत मिलता है।.

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