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जेनरेटर

सूची जेनरेटर

बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों का अल्टरनेटर, जो बुडापेस्ट में बना हुआ है। विद्युत जनित्र (एलेक्ट्रिक जनरेटर) एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने के काम आती है। इसके लिये यह प्रायः माईकल फैराडे के विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (electromagnetic induction) के सिद्धान्त का प्रयोग करती है। विद्युत मोटर इसके विपरीत विद्युत उर्जा को यांत्रिक उर्जा में बदलने का कार्य करती है। विद्युत मोटर एवं विद्युत जनित्र में बौत कुछ समान होता है और कई बार एक ही मशीन बिना किसी परिवर्तन के दोनो की तरह कार्य कर सकती है। विद्युत जनित्र, विद्युत आवेश को एक वाह्य परिपथ से होकर प्रवाहित होने के लिये वाध्य करता है। लेकिन यह आवेश का सृजन नहीं करता। यह जल-पम्प की तरह है जो केवल जल-को प्रवाहित करने का कार्य करती है, जल पैदा नहीं करती। विद्युत जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन के लिये आवश्यक है कि जनित्र के रोटर को किसी बाहरी शक्ति-स्रित की सहायता से घुमाया जाय। इसके लिये रेसिप्रोकेटिंग इंजन, टर्बाइन, वाष्प इंजन, किसी टर्बाइन या जल-चक्र (वाटर्-ह्वील) पर गिरते हुए जल, किसी अन्तर्दहन इंजन, पवन टर्बाइन या आदमी या जानवर की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। किसी भी स्रोत से की गई यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित करना संभव है। यह ऊर्जा, जलप्रपात के गिरते हुए पानी से अथवा कोयला जलाकर उत्पन्न की गई ऊष्मा द्वारा भाव से, या किसी पेट्रोल अथवा डीज़ल इंजन से प्राप्त की जा सकती है। ऊर्जा के नए नए स्रोत उपयोग में लाए जा रहे हैं। मुख्यत:, पिछले कुछ वर्षों में परमाणुशक्ति का प्रयोग भी विद्युत्शक्ति के लिए बड़े पैमाने पर किया गया है और बहुत से देशों में परमाणुशक्ति द्वारा संचालित बिजलीघर बनाए गए हैं। ज्वार भाटों एवं ज्वालामुखियों में निहित असीम ऊर्जा का उपयोग भी विद्युत्शक्ति के जनन के लिए किया गया है। विद्युत्शक्ति के उत्पादन के लिए इन सब शक्ति साधनों का उपयोग, विशालकाय विद्युत् जनित्रों द्वारा ही हाता है, जो मूलत: फैराडे के 'चुंबकीय क्षेत्र में घूमते हुए चालक पर वेल्टता प्रेरण सिद्धांत पर आधारित है। .

42 संबंधों: ऊर्जा का रूपान्तरण, चुम्बक, चुम्बकीय क्रोड, चुम्बकीय क्षेत्र, टर्बाइन, टर्बोजनित्र, टोयोटा प्रियस, डायनेमो, डाइनेमोमीटर, तीन फेज विद्युत शक्ति, दिष्टधारा विद्युतजनित्र, नौइंजीनियरी, नोदक, पश्चिमी संस्कृति, पवन ऊर्जा, पवन टर्बाइन, फैराडे का विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का नियम, फोर्ड मस्टैंग, बैटरी का इतिहास, भँवर धारा, मैक्सवेल के समीकरण, यामाहा मोटर, रोटर (विद्युत), लौहचुम्बकत्व, शक्ति प्रणाली का संरक्षण, शक्ति इंजीनियरी, सिलिकन इस्पात, सुज़ुकी, विद्युत प्रदायी, विद्युत मशीन, विद्युत मोटर, विद्युत उत्पादन, विद्युतवाहक बल, वोल्टता स्रोत, गतिपालक चक्र में ऊर्जा भण्डारण, आपदा तत्परता, आरएमएस क्वीन मैरी 2, इलेक्ट्रॉनिक अवयव, कार्गो, अतिचालकता, अबाधित विद्युत आपूर्ति, अल्टरनेटर

ऊर्जा का रूपान्तरण

ऊर्जा के रूपान्तरण में तीन ऊर्जा: इन्पुट उर्जा, आउटपुट ऊर्जा एवं नष्ट ऊर्जा (ऊर्जा क्षति) किसी संकाय (सिस्टम) की कार्य करने की क्षमता को उर्जा कहते हैं। किसी संकाय पर काम करके या उसके द्वारा काम कराकर ही उसकी उर्जा को बदला जा सकता है क्योंकि उर्जा वह राशि है जो संरक्षित (कंजर्व्ड) होती है। उर्जा तरह-तरह के रूपों में पायी जाती है और भिन्न-भिन्न प्रकार की उर्जा का परस्पर परिवर्तन किया जा सकता है। किसी प्रकार की उर्जा कहीं उपयोगी है तो किसी प्रकार की कहीं और। उदाहरण के लिये कोयले में संचित रासायनिक उर्जा को जलाकर उससे उष्मीय उर्जा प्राप्त की जा सकती है। इस उष्मा से पानी को उबालकर वाष्प बनाकर उससे वाष्प टरबाइन चलाकर इसे यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इस टरबाइन से कोई विद्युत जनित्र चलाकर इस यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में बदला जा सकता है। इस विद्युत उर्जा से प्रकाश बल्ब जलाकर प्रकाश उर्जा प्राप्त की जा सकती है। .

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चुम्बक

एक छड़ चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित हुई लौह-धुरि (iron-filings) एक परिनालिका (सॉलिनॉयड) द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय बल रेखाएँ फेराइट चुम्बक चुम्बक (मैग्नेट्) वह पदार्थ या वस्तु है जो चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। चुम्बकीय क्षेत्र अदृश्य होता है और चुम्बक का प्रमुख गुण - आस-पास की चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर खींचने एवं दूसरे चुम्बकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करने का गुण, इसी के कारण होता है। .

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चुम्बकीय क्रोड

चुम्बकीय क्रोड (magnetic core) उच्च पारगम्यता वाले पदार्थ होते हैं जिनका उपयोग चुम्बकीय क्षेत्र को परिरुद्ध (confine) करने एवं उसका मार्ग निर्धारित करने के लिये किया जाता है। चुम्बकीय क्रोड का उपयोग विद्युतचुम्बक, ट्रान्सफॉर्मर, विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, प्रेरक (इण्डक्टर), उपकरणों आदि में होता है। .

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चुम्बकीय क्षेत्र

किसी चालक में प्रवाहित विद्युत धारा '''I''', उस चालक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र '''B''' उत्पन्न करती है। चुंबकीय क्षेत्र विद्युत धाराओं और चुंबकीय सामग्री का चुंबकीय प्रभाव है। किसी भी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र दोनों, दिशा और परिमाण (या शक्ति) द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है; इसलिये यह एक सदिश क्षेत्र है। चुंबकीय क्षेत्र घूमते विद्युत आवेश और मूलकण के आंतरिक चुंबकीय क्षणों द्वारा उत्पादित होता हैं जो एक प्रमात्रा गुण के साथ जुड़ा होता है। 'चुम्बकीय क्षेत्र' शब्द का प्रयोग दो क्षेत्रों के लिये किया जाता है जिनका आपस में निकट सम्बन्ध है, किन्तु दोनों अलग-अलग हैं। इन दो क्षेत्रों को तथा, द्वारा निरूपित किया जाता है। की ईकाई अम्पीयर प्रति मीटर (संकेत: A·m−1 or A/m) है और की ईकाई टेस्ला (प्रतीक: T) है। चुम्बकीय क्षेत्र दो प्रकार से उत्पन्न (स्थापित) किया जा सकता है- (१) गतिमान आवेशों के द्वारा (अर्थात, विद्युत धारा के द्वारा) तथा (२) मूलभूत कणों में निहित चुम्बकीय आघूर्ण के द्वारा विशिष्ट आपेक्षिकता में, विद्युत क्षेत्र और चुम्बकीय क्षेत्र, एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं जो परस्पर सम्बन्धित होते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र दो रूपों में देखने को मिलता है, (१) स्थायी चुम्बकों द्वारा लोहा, कोबाल्ट आदि से निर्मित वस्तुओं पर लगने वाला बल, तथा (२) मोटर आदि में उत्पन्न बलाघूर्ण जिससे मोटर घूमती है। आधुनिक प्रौद्योगिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों का बहुतायत में उपयोग होता है (विशेषतः वैद्युत इंजीनियरी तथा विद्युतचुम्बकत्व में)। धरती का चुम्बकीय क्षेत्र, चुम्बकीय सुई के माध्यम से दिशा ज्ञान कराने में उपयोगी है। विद्युत मोटर और विद्युत जनित्र में चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग होता है। .

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टर्बाइन

सिमेन्स (Siemens) की टर्बाइन जिसका आवरण खोल दिया गया है टर्बाइन एक घूर्णी (rotary) इंजन है जो किसी तरल की गतिज या/तथा स्थितिज उर्जा को ग्रहण करके स्वयं घूमती है और अपने शॉफ्ट पर लगे अन्य यन्त्रों (जैसे विद्युत जनित्र) को घुमाती है। पवन चक्की (विंड मिल्) और जल चक्की (वाटर ह्वील) आदि टर्बाइन के प्रारम्भिक रूप हैं। विद्युत शक्ति के उत्पादन में टर्बाइनों का अत्यधिक महत्व है। गैस, भाप और जल से जलनेवाले टरबाइन एक दूसरे से भिन्न होते हैं। गैस कम्प्रेशर या पम्प भी टर्बाइन जैसा ही होता है पर यह टर्बाइन के उल्टा कार्य करता है। .

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टर्बोजनित्र

टर्बोजनित्र या टर्बोजनरेटर (turbo generator) टरबाइन और जनित्र का सम्मिलित रूप है जिसमें टरबाइन, जनित्र से सीधे जुड़ा होता है। विश्व की अधिकांश विद्युत ऊर्जा विशाल भापचालित टर्बोजनित्रों के द्वारा ही पैदा की जाती है। श्रेणी:विद्युत मशीन.

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टोयोटा प्रियस

टोयोटा प्रियस (टोयोटा मोटर कॉरपोरेशन द्वारा विकसित और विनिर्मित एक पूर्ण संकर बिजली (हाइब्रिड इलेक्ट्रिक) से चलने वाली मध्यम आकार की कार है। संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के अनुसार प्रियस वर्तमान समय में संयुक्त राज्य अमेरिका में बेंची जाने वाली सबसे अधिक ईंधन किफायती पेट्रोल कार है। ईपीए (EPA) और कैलिफोर्निया वायु संसाधन बोर्ड (सीएआरबी) (CARB) ने भी धुंध बनाने और विषाक्त उत्सर्जन के आधार पर प्रियस को संयुक्त राज्य अमेरिका में बेंचे जाने वाले सबसे साफ वाहनों में स्थान दिया है। प्रियस सबसे पहले 1997 में जापान में बेंची गई, जिसने इसे पहली बार बड़े पैमाने पर उत्पादित संकर (हाइब्रिड) वाहन बना दिया। बाद में इसे 2001 में दुनिया भर में प्रस्तुत किया गया था। जापान और उत्तर अमेरिका के अपने सबसे बड़े बाजारों के साथ, प्रियस 70 से अधिक देशों और क्षेत्रों में बेची जाती है। मई 2008 में, दुनिया भर में प्रियस की कुल बिक्री 1000000 वाहन के निशान तक पहुंच गई, और सितम्बर 2010 में, दुनिया भर में प्रियस की कुल बिक्री 2.0 मिलियन इकाइयों तक पहुंच गई। दिसंबर 2009 तक दर्ज 814,173 इकाइयों के साथ अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है।कुल दिसंबर 2009 तक अमेरिका में पंजीकृत बिजली के संकर वाहनों की संख्या 1,614,761 है, जिनमें से 122755 को फोर्ड द्वारा निर्मित किया गया वर्ष द्वारा एक मॉडल के लिए विस्तृत विवरण के लिए एक्सेल फ़ाइल को (क्लिक करें और खोलें)' .

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डायनेमो

"डायनेमो इलेक्ट्रिक मशीन" (अंतिम दृश्य, आंशिक रूप से भाग, 1) एक डायनेमो (ग्रीक शब्द डायनामिस से व्युत्पन्न हुआ है; इसका अर्थ है पावर या शक्ति), मूल रूप से विद्युत जनरेटर का दूसरा नाम है। आमतौर पर इसका तात्पर्य एक जनरेटर या जनित्र से होता है जो कम्यूटेटर के उपयोग से दिष्ट धारा (direct current) उत्पन्न करता है। डायनेमो पहले विद्युत जनरेटर थे जो उद्योग के लिए विद्युत शक्ति के उत्पादन में सक्षम थे। डायनेमो के सिद्धांत के आधार पर ही बाद में कई अन्य विद्युत उत्पादन करने वाले रूपांतरक उपकरणों का विकास हुआ, जिसमें विद्युत मोटर, प्रत्यावर्ती धारा जनित्र और रोटरी कन्वर्टर शामिल हैं। वर्तमान समय में विद्युत उत्पादन के लिए इनका उपयोग कभी कभी ही किया जाता है, क्योंकि आज प्रत्यावर्ती धारा का प्रभुत्व बढ़ गया है, कम्यूटेटर उतना लाभकारी नहीं रहा और ठोस अवस्था विधियों का उपयोग करके प्रत्यावर्ती धारा (alternating current) को आसानी से दिष्ट धारा में रूपान्तरित किया जा सकता है। आज भी किसी-किसी स्थिति में 'डायनेमो' शब्द का उपयोग जनरेटर के लिए कई स्थानों पर किया जाता है। एक छोटा विद्युत जनरेटर, जिसे रोशनी पैदा करने के लिए साइकल के पहिये के हब में बनाया जाता है, 'हब डायनेमो' कहलाता है, हालांकि ये हमेशा प्रत्यावर्ती धारा उपकरण होते हैं। .

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डाइनेमोमीटर

'''वैद्युत चालनबलमापी''' जो इंजन, बलाघूर्ण मापने का जुगाड़ एवं टैकोमीटर आदि के संयोग से बना है। चालनबलमापी या डाइनेमोमीटर (Dynamometer) एक युक्ति (device) है जो मनुष्य, पशु और यंत्र द्वारा प्रयुक्त बल या शक्ति मापने के काम आती है। इसे संक्षेप में 'डाइनो' भी कहते हैं। बलमापन के लिए प्रयुक्त प्राय: सभी उपकरणों को डाइनेमोमीटर कहते हैं, किंतु विशेष रूप से इसका प्रयोग उन उपकरणों के लिए होता है जो कार्यमापन, या इंजन और मोटरों की अश्वशक्ति, के मापन में काम आते हैं। उदाहरण के लिये यदि एक ही साथ बलाघूर्ण और घूर्णन वेग (कोणीय वेग) मापा जाय तो किसी भी इंजन, मोटर या अन्य युक्ति द्वारा उत्पन्न की गयी शक्ति की गणना कर सकते हैं। इसके विपरीत इसका उपयोग किसी अन्य मशीन (जैसे पम्प या विद्युत जनित्र) को चलाने के लिये आवश्यक शक्ति के निर्धारन के लिये भी किया जा सकता है। .

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तीन फेज विद्युत शक्ति

सामान आवृत्ति तथा सामान आयाम वाले तीन प्रत्यावर्ती वोल्टताओं का समय के साथ परिवर्तन का आरेख एक सरल तीन-फेजी जनित्र का व्यवस्था चित्र तीन फेजी विद्युत शक्ति (Three-phase electric power) वर्तमान समय में प्रत्यावर्ती धारा के उत्पादन, संचारण तथा वितरण एवं उपयोग की सबसे लोकप्रिय विधि है। यह एक प्रकार की बहुफेजी प्रणाली (polyphase system) है। तीन फेजी शक्ति के अनेक लाभ हैं। इसका प्रचलन और पैटेन्ट सर्वप्रथम निकोला टेसला द्वारा सन १८८७-१८८८ में किया गया था। .

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दिष्टधारा विद्युतजनित्र

विद्युत ऊर्जा के जनन का सरल चित्रण दिष्टधारा विद्युतजनित्र यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में बदलने वाली विद्युत मशीन है। इसे 'डायनेमो' (Dynamo) भी कहते हैं। .

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नौइंजीनियरी

'अर्गोनॉट' नामक फ्रांसीसी जहाज का नियंत्रण कक्ष (कन्ट्रोल रूम) प्राकृतिक गैस के उत्पादन के लिये '''P-51''' नामक मंच: ऐसे मंचों का निर्मान भी नौइंजीनियरी के अन्तर्गत आता है। नौइंजीनियरी (Naval engineering) प्रौद्योगिकी की वह शाखा है जिसमें समुद्री जहाजों एवं अन्य मशीनों के डिजाइन एवं निर्माण में विशिष्टि (स्पेसलाइजेशन) प्रदान की जाती है। इसके अलावा किसी जलयान पर नियुक्त उन व्यक्तियों (क्रिउ मेम्बर्स) को भी नौइंजीनियर (नेवल इंजीनियर) कहा जाता है जो उस जहाज को चलाने एवं रखरखाव के लिये जिम्मेदार होते हैं। इसके अलावा नौइंजीनियरों को जहाज का सीवेज, प्रकाश व्यवस्था, वातानुकूलन एवं जलप्रदाय व्यवस्था भी देखनी पड़ती है। .

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नोदक

वायुयान का नोदक नोदक या प्रोपेलर (propeller) ऐसे यंत्र या मशीन को कहते हैं जो किसी वाहन पर लगा हो और उसे आगे धकेलने का काम करे। नोदकों के घूर्णन (रोटेशन) के द्वारा वायु या जल को पीछे फेंकने में मदद मिलती है जिससे यान पर आगे की ओर बल लगता है। समुद्री जहाज़ों और वायुयानों पर लगे पंखेनुमा नोदक जल या हवा को पीछे फेंककर यान को आगे की तरफ धकेलते हैं। नोदक शब्द से निम्नलिखित का तात्पर्य निकल सकता है.

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पश्चिमी संस्कृति

पश्चिमी संस्कृति (जिसे कभी-कभी पश्चिमी सभ्यता या यूरोपीय सभ्यता के समान माना जाता है), यूरोपीय मूल की संस्कृतियों को सन्दर्भित करती है। यूनानियों के साथ शुरू होने वाली पश्चिमी संस्कृति का विस्तार और सुदृढ़ीकरण रोमनों द्वारा हुआ, पंद्रहवी सदी के पुनर्जागरण एवं सुधार के माध्यम से इसका सुधार और इसका आधुनिकीकरण हुआ और सोलहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी तक जीवन और शिक्षा के यूरोपीय तरीकों का प्रसार करने वाले उत्तरोत्तर यूरोपीय साम्राज्यों द्वारा इसका वैश्वीकरण हुआ। दर्शन, मध्ययुगीन मतवाद एवं रहस्यवाद, ईसाई एवं धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद की एक जटिल श्रृंखला के साथ यूरोपीय संस्कृति का विकास हुआ। ज्ञानोदय, प्रकृतिवाद, स्वच्छंदतावाद (रोमेन्टिसिज्म), विज्ञान, लोकतंत्र और समाजवाद के प्रयोगों के साथ परिवर्तन एवं निर्माण के एक लंबे युग के माध्यम से तर्कसंगत विचारधारा विकसित हुई.

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पवन ऊर्जा

बहती वायु से उत्पन्न की गई उर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं। वायु एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। पवन ऊर्जा बनाने के लिये हवादार जगहों पर पवन चक्कियों को लगाया जाता है, जिनके द्वारा वायु की गतिज उर्जा, यान्त्रिक उर्जा में परिवर्तित हो जाती है। इस यन्त्रिक ऊर्जा को जनित्र की मदद से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। पवन ऊर्जा (wind energy) का आशय वायु से गतिज ऊर्जा को लेकर उसे उपयोगी यांत्रिकी अथवा विद्युत ऊर्जा के रूप में परिवर्तित करना है। .

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पवन टर्बाइन

बेल्जियम के उत्तरी सागर में अपतटीय पवन फार्म 5 मेगावॉट टर्बाइन आरई-पॉवर एम5 (REpower M5) का उपयोग करते हुए पवन टर्बाइन एक रोटरी उपकरण है, जो हवा से ऊर्जा को खींचता है। अगर यांत्रिक ऊर्जा का इस्तेमाल मशीनरी द्वारा सीधे होता है, जैसा कि पानी पंप करने लिए, इमारती लकड़ी काटने के लिए या पत्थर तोड़ने के लिए होता है, तो वह मशीनपवन-चक्की कहलाती है। इसके बदले अगर यांत्रिक ऊर्जा बिजली में परिवर्तित होती है, तो मशीन को अक्सर पवन जेनरेटर कहा जाता है। .

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फैराडे का विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का नियम

फैराडे का प्रयोग - तार की दो कुंडलियाँ देखिये। फैराडे का विद्युतचुम्बकीय प्रेरण का नियम या अधिक प्रचलित नाम फैराडे का प्रेरण का नियम, विद्युतचुम्बकत्व का एक मौलिक नियम है। ट्रान्सफार्मरों, विद्युत जनित्रों आदि की कार्यप्रणाली इसी सिद्धान्त पर आधारित है। इस नियम के अनुसार, विद्युतचुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त की खोज माइकल फैराडे ने सन् १८३१ में की, और जोसेफ हेनरी ने भी उसी वर्ष स्वतन्त्र रूप से इस सिद्धान्त की खोज की। फैराडे ने इस नियम को गणितीय रूप में निम्नवत् प्रस्तुत किया - जहाँ उत्पन्न विद्युतवाहक बल की दिशा के लिये लेंज का नियम लागू होता है। संक्षेप में लेंज का नियम यही कहता है कि उत्पन्न विद्युतवाहक बल की दिशा ऐसी होती है जो उत्पन्न करने वाले कारण का विरोध कर सके। उपरोक्त सूत्र में ऋण चिन्ह इसी बात का द्योतक है। .

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फोर्ड मस्टैंग

2010 के फोर्ड मस्टैंग (Ford Mustang) का मॉडल बैज फोर्ड मस्टैंग (Ford Mustang) फोर्ड मोटर कंपनी (Ford Motor Company) द्वारा निर्मित एक ऑटोमोबाइल कार है। शुरू में यह उत्तर अमेरिकी फोर्ड फाल्कन (Ford Falcon) की दूसरी पीढ़ी पर आधारित एक कॉम्पैक्ट कार थी। 17 अप्रैल 1964 के आरम्भ में प्रस्तावित 1965 का मस्टैंग (Mustang), मॉडल ए (Model A) के बाद से ऑटोमेकर (मोटर-कार-निर्माता) का सबसे सफल शुभारम्भ है। मस्टैंग (Mustang) की वजह से ही अमेरिकी ऑटोमोबाइल के "टट्टू कार (पोनी कार)" श्रेणी का निर्माण हुआ जो स्पोर्ट्स कार जैसे कूपे (बग्घियां) थे जिनका हूड (कार की छतरी) लम्बा और पिछला डेक (कार की छत) छोटा होता था और इसी मस्टैंग की वजह से जीएम (GM) की शेवरले कैमेरो (Chevrolet Camaro), एएमसी (AMC) की जैवलिन (Javelin), और क्रिसलर (Chrysler) की पुनर्निर्मित प्लाईमाउथ बैराकुडा (Plymouth Barracuda) जैसी इसकी प्रतिद्वंद्वी कारों का उत्थान हुआ। इसने अमेरिका निर्यात की जाने वाली टोयोटा सेलिका (Toyota Celica) और फोर्ड कैप्री (Ford Capri) जैसी बग्घियों को भी प्रेरित किया। .

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बैटरी का इतिहास

काँच के लिंकित संधारित्रों की 'बैटरी' बैटरी का इतिहास विद्युतरासायनिक सेलों के विकास का इतिहास है। बैटरियों के विकास से ही विद्युत का औद्योगिक उपयोग आरभ हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दिनों तक बैटरियाँ ही विद्युत ऊर्जा के मुख्य स्रोत थीं क्योंकि तब तक विद्युत जनित्र का आविष्कार नहीं हुआ था। बैटरी की प्रौद्योगिकी में लगातार विकास हुआ जिनके बिना टेलीग्राफ, टेलीफोन, पोर्टेबल कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, विद्युत कारों आदि का विकास नहीं हो सकता था। सन् 1749 बेंजामिन फ्रैंकलिन ने 'बैटरी' शब्द का इस्तेमाल किया था। अपने विद्युत-सम्बन्धी प्रयोगों के लिये वे जिन 'लिंक्ड कैपेसिटर्स' का प्रयोग करते थे, उनको उन्होने 'बैटरी' की संज्ञा दी। .

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भँवर धारा

ट्रान्सफार्मर के कोर में फ्ल्क्स और भँवर धारा; भँवरधारा के कारण ऊर्जा-ह्रास को रोकने के लिए कोर को पतली-पतली पट्टियों से बनाया जाता है। किसी चालक के भीतर परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र होने पर उसमें विद्युत धारा उत्पन्न होती है उसे भँवर धारा (Eddy current) कहते हैं। धारा की ये भवरें चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करती हैं और यह चुम्बकीय बाहर से आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र के परिवर्तन का विरोध करता है। भँवर धाराओं से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र आकर्षण, प्रतिकर्षण, ऊष्मन आदि प्रभाव उत्पन्न करता है। बाहर से आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र जितना ही तीव्र होगा और उसके परिवर्तन की गति जितनी अधिक होगी और पदार्थ की विद्युत चालकता जितनी अधिक होगी, उतनी ही अधिक मात्रा में भँवर धाराएँ उत्पन्न होंगी तथा उनके कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का मान भी उतना ही अधिक होगा। परिणामित्र (ट्रांसफॉर्मर), विद्युत जनित्र एवं विद्युत मोटरों के कोर में भँवर धाराओं के कारण ऊर्जा की हानि होती है और इसके कारण क्रोड गर्म होती है। कोर में भँवरधारा हानि कम करने के लिए क्रोड को पट्टयित (लैमिनेटेड) बनाया जाता है, अर्थात पतली-पतली पट्टियों को मिलाकर कोर बनाई जाती है, न कि एक ठोस कोर (सॉलिड कोर) से। .

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मैक्सवेल के समीकरण

जेम्स क्लार्क मैक्सवेल्ल् विद्युत्चुम्बकत्व के क्षेत्र में मैक्सवेल के समीकरण चार समीकरणों का एक समूह है जो वैद्युत क्षेत्र, चुम्बकीय क्षेत्र, वैद्युत आवेश, एवं विद्युत धारा के अन्तर्सम्बधों की गणितीय व्याख्या करते हैं। ये समीकरण सन १८६१ में जेम्स क्लार्क मैक्सवेल के शोधपत्र में छपे थे, जिसका शीर्षक था - ऑन फिजिकल लाइन्स ऑफ फोर्स। मैक्सवेल के समीकरणों का आधुनिक स्वरूप निम्नवत है: उपरोक्त समीकरणों में लारेंज बल का नियम भी सम्मिलित कर लेने पर शास्त्रीय विद्युतचुम्बकत्व की सम्पूर्ण व्याख्या हो पाती है। .

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यामाहा मोटर

यामाहा मोटर कंपनी लिमिटेड (ヤマハ発動機株式会社) एक जापानी मोटरसाइकिल, समुद्री उत्पादों जैसे- नौकाओं और जहाज़ के बाहरी मोटर्स, और अन्य मोटर उत्पादों की निर्माता कंपनी है। कंपनी की स्थापना 1955 में यामाहा निगम से अलग होकर हुई थी। और इसका मुख्यालय इवाटा, शिझुओका, जापान में है। कंपनी 2012 तक 109 समेकित सहायक कंपनियों के माध्यम से विकास, उत्पादन और विपणन का संचालन करती है। .

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रोटर (विद्युत)

विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, अल्टरनेटर आदि विद्युतचुम्बकीय मशीनों के घुर्णन करने (घूमने) वाले भाग को रोटर (rotor) कहते हैं। Staff.

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लौहचुम्बकत्व

लौहचुंबकत्व (Ferromagnetism) (फेरीचुंबकत्व को मिलाकर) ही वह मूलभूत तरीका है जिससे कुछ पदार्थ (जैसे लोहा) स्थायी चुम्बक बनाते हैं या दूसरे चुम्बकों की ओर आकृष्ट होते हैं। वैसे प्रतिचुम्बकीय (डायामैग्नेटिक) और अनुचुम्बकीय (पैरामैग्नेटिक) पदार्थ भी चुम्बकीय क्षेत्र में आकर्षित या प्रतिकर्षित होते हैं किन्तु इन पर लगने वाला बल इतना कम होता है कि उसे प्रयोगशालाओं के अत्यन्त सुग्राही (सेंस्टिव) उपकरणों द्वारा ही पता लगाया जा सकता है। प्रतिचुम्बकीय और अनुचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बकत्व नहीं दे सकते। कुछ ही पदार्थ लौहचुम्बकत्व का गुण प्रदर्शित करते हैं जिनमें से मुख्य हैं - लोहा, निकल, कोबाल्ट तथा इनकी मिश्रधातुएँ, कुछ रेअर-अर्थ धातुएँ, तथा कुछ सहज रूप में प्राप्त खनिज (जैसे लोडस्टोन / lodestone) आदि। उद्योग एवं आधुनिक प्रौद्योगिकी में लौहचुमबकत्व का बहुत महत्व है। लौहचुम्बकत्व ही अनेकों (लगभग सभी) विद्युत और विद्युतयांत्रिक युक्तियों का आधार है। विद्युतचुम्बक (electromagnets), विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र (generators), ट्रांसफॉर्मर, टेप रिकॉर्डर, हार्ड डिस्क आदि सभी का आधार विद्युतचुम्बकीय पदार्थ ही हैं। लौहचुम्बकीय (तथा फेरीचुम्बकीय) पदार्थों का बी-एच वक्र (B-H Curve) एक सीधी रेखा नहीं होती बल्कि एक अरैखिक वक्र होता है जिसकी प्रवणता (स्लोप) चुम्बकीय फ्लक्स के अनुसार अलग-अलग होती है। इसके अलावा इनकी बी-एच वक्र में हिस्टेरिसिस होती है जिसके बिना ये स्थायी चुम्बकत्व का गुण प्रदर्शित नहीं कर सकते थे। इसके अलावा लौहचुम्बकीय पदार्थ एक और विशेष गुण प्रदर्शित करते हैं - उनका ताप एक निश्चित ताप के उपर ले जाने पर उनका लौहचुम्बकीय गुण लुप्त हो जाता है। इस ताप को क्यूरी ताप कहते हैं। .

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शक्ति प्रणाली का संरक्षण

जर्मनी के एक शक्ति संयंत्र का नियंत्रण-कक्ष एक आधुनिक संरक्षा रिले; यह वितरण प्रणाली में प्रयुक्त अनेकों कार्य करने वाली एक अंकीय रिले है। यह अकेले ही कई विद्युत-यांत्रिक रिले का काम कर सकती है। इसके अलावा इसमें स्व-परीक्षण की सुविधा तथा सूचना को दूर तक पहुँचने/लेने की भी सुविधा है। शक्ति तंत्र का संरक्षण (Power system protection) विद्युत शक्ति प्रणाली की शाखा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न वैद्युत दोषों (फाल्ट्स) की स्थिति में विद्युत उपकरणों की सुरक्षा एवं विद्युत प्रदाय का सातत्य (कांटिन्युइटी) सुनिश्चित करने से समब्धित विषय आते हैं। रक्षी प्रणाली का उद्देश्य यह होता है कि दोष की स्थिति में, कम से कम समय में, केवल उन अवयवों को शेष नेटवर्क से अलग किया जाय जिनमें दोष उत्पन्न हुआ है। इससे नेटवर्क का 'स्वस्थ' भाग नेटवर्क में बना रहता है और अपना काम करता रहता है। जो युक्तियाँ विद्युत प्रणाली को दोषों से रक्षा करने के उद्देश्य से लगायी जातीं हैं उन्हें रक्षी युक्तियाँ' (प्रोटेक्टिव डिवाइसेस) कहते हैं। .

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शक्ति इंजीनियरी

विद्युत उत्पादन करने वाली विद्युत जनित्र को घुमाने के लिये प्रयुक्त '''वाष्प टरबाइन''' शक्ति इंजीनियरी (Power engineering) इंजीनियरी की वह उपक्षेत्र है जो विद्युत शक्ति के उत्पादन (जनन /generation), पारेषण (transmission), वितरण (distribution), उपभोग (utilization) तथा इनमें प्रयुक्त जनित्रों, ट्रांसफार्मरों, पारेषण लाइनों एवं मोतरों से सम्बन्ध रखता है। इस विधा को विद्युत प्रणाली इंजीनियरी (power systems engineering) भी कहते हैं। .

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सिलिकन इस्पात

'ई' और 'आई' आकार वाली पतली पत्तियों (लैमिनेशन्स) से बना ट्रांसफार्मर क्रोड (कुंडली नहीं दिखाई गयी है) सिलिकन इस्पात (silicon steel) एक विशेष प्रकार का इस्पात है जिसमें कुछ ऐसे चुम्बकीय गुण होते हैं जिससे यह मोटर, जनित्र, ट्रांसफॉर्मर, कॉन्टैक्टर आदि वैद्युत युक्तियों के निर्माण के लिये बहुत उपयुक्त है। इसे 'वैद्युत इस्पात' (Electrical steel) और 'ट्रांस्फॉर्मर इस्पात' (transformer steel) आदि नामों से भी जाना जाता है। इसके मुख्य चुम्बकीय गुण हैं - उच्च परमिएबिलिटी (high permeability.) तथा कम हिस्टेरिसिस क्षय (small hysteresis loss)। भंवर धारा क्षति (eddy current loss) को कम करने के लिये ठोस इस्पात के बजाय इसके पतले-पतले लैमिनेशन प्रयोग किये जाते हैं। सिलिकन स्टील में अधिकांश (९३% से अधिक) लोहा होता है। सिलिकन इसका दूसरा घटक है जो इस इस्पात की प्रतिरोधकता को बढ़ा देता है तथा बहु-क्रिस्टलों के एकदिशीकरण (ओरिएंटेशन) में सहायक होता है। .

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सुज़ुकी

एक जापानी बहुराष्ट्रीय निगम है जिसका मुख्यालय हमामात्सू, जापान में स्थित है और जो काम्पैक्ट ऑटोमोबाइल और 4x4 वाहन, सभी रेंज की मोटरसाइकिल, ऑल-टेरेन वाहन (ATVs), आउटबोर्ड जहाज इंजन, व्हीलचेयर और अन्य प्रकार के छोटे आंतरिक दहन इंजन का उत्पादन करती है। उत्पादन मात्रा के आधार पर सुज़ुकी दुनिया भर में नौवीं सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल निर्माता है, करीब 45,000 से अधिक लोगों को रोजगार देती है और 23 देशों में इसकी 35 मुख्य उत्पादन इकाइयां और 192 देशों में इसके 133 वितरक हैं। आंकड़ों के अनुसार जापान ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (जेएएमए) से सुज़ुकी जापान की छोटी कारों और ट्रकों की दूसरी सबसे बड़ी निर्माता है। जापानी भाषा में "सुज़ुकी" को उच्चारित किया जाता है, जिसमें पर बलाघात दिया जाता है। अंग्रेजी में इसका उच्चारण किया जाता है और ज़ु पर जोर डाला जाता है। इस उच्चारण का इस्तेमाल सुज़ुकी कंपनी द्वारा उन विपणन अभियानों के लिए किया जाता है जो अंग्रेजी भाषियों के लिए होते हैं। .

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विद्युत प्रदायी

व्यक्तिगत कम्प्यूटर (पीसी) की पॉवर सप्लाई विद्युत शक्ति के किसी स्रोत को सामान्य रूप से विद्युत प्रदायी या 'विद्युत प्रदायक' या 'पॉवर सप्लाई' कहा जाता है। यह शब्द अधिकांशतः वैद्युत शक्ति आपूर्ति के सन्दर्भ में ही प्रयुक्त होता है; यांत्रिक शक्ति के सन्दर्भ में यह बहुत कम प्रयुक्त होता है; अन्य उर्जा के सन्दर्भ में लगभग इसका कभी भी उपयोग नहीं होता।.

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विद्युत मशीन

वैद्युत अभियांत्रिकी मे, विद्युत मशीन, विद्युत मोटर और विद्युत उत्पाद्क तथा अन्य विद्युतचुंबकीय उपकरणों के लिये एक व्यापक शब्द हे। यह सब वैध्युतयांत्रिक उर्जा परीवर्तक हे। विद्युत मोटर विद्युत उर्जा को यांत्रिक उर्जा मे, जब की  विद्युत उत्पाद्क यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा मे परीवर्तीत करता हे। यंत्र के गतिशील भाग घूर्णन या रैखिक गती रख सकते हे। मोटर और उत्पाद्क के अतिरिक्त, बहुधा ट्रांसफार्मर (परिणतक) का तीसरी श्रेणी की तरह समावेश किया जाता हे, हालाँकि इन मे कोइ गतिशील खंड नही होते, फ़िर भी प्रत्यावर्ती उर्जा का विद्युत दाब परीवर्तीत करता हे। विद्युत यंत्र, परीवर्तक  के स्वरूप मे, वस्तुतः संसार की समस्त वैध्युत शक्ति का उत्पादन करते हे, तथा विद्युत मोटर के स्वरूप मे, समस्त  उत्पादित वैध्युत शक्ति लगभग ६० प्रतिशत उपभोग करते हे। विद्युत यंत्र १९ वी शताब्दी की शुरुआत मे  विकसित कीये गए थे, उस समय से आधारिक संरचना का सर्वव्यापी घटक बन गए हे। हरित ऊर्जा या वैकल्पिक ऊर्जा, अधिक कार्यक्षम विद्युत यंत्र विकसित करना वैश्विक संरक्षण के लिये महत्वपूर्ण हे। ट्रांसफॉर्मर, विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र आदि को विद्युत मशीन (electrical machine) कहते हैं। विद्युत मशीने तीन प्रकार से ऊर्जा का परिवर्तन करतीं है.

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विद्युत मोटर

विभिन्न आकार-प्रकार की विद्युत मोटरें विद्युत मोटर (electric motor) एक विद्युतयांत्रिक मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है; अर्थात इसे उपयुक्त विद्युत स्रोत से जोड़ने पर यह घूमने लगती है जिससे इससे जुड़ी मशीन या यन्त्र भी घूमने लगती है। अर्थात यह विद्युत जनित्र का उल्टा काम करती है जो यांत्रिक ऊर्जा लेकर विद्युत उर्जा पैदा करता है। कुछ मोटरें अलग-अलग परिस्थितियों में मोटर या जनरेटर (जनित्र) दोनो की तरह भी काम करती हैं। विद्युत् मोटर विद्युत् ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिणत करने के साधन हैं। विद्युत् मोटर औद्योगिक प्रगति का महत्वपूर्ण सूचक है। यह एक बड़ी सरल तथा बड़ी उपयोगी मशीन है। उद्योगों में शायद ही कोई ऐसा प्रयोजन हो जिसके लिए उपयुक्त विद्युत मोटर का चयन न किया जा सके। .

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विद्युत उत्पादन

उर्जा के अन्य स्रोतों से विद्युत शक्ति का निर्माण विद्युत उत्पादन कहलाता है। व्यावहारिक रूप में विद्युत् शक्ति का उत्पादन, विद्युत् जनित्रों (generators) द्वारा किया जाता है। विद्युत उत्पादन के मूलभूत सिद्धान्त की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक माइकेल फैराडे ने १९२० के दशक के दौरान एवं १९३० के दशक के आरम्भिक काल में किया था। तार की एक कुण्डली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाकर विद्युत उत्पन्न करने की माइकेल फैराडे की मूल विधि आज भी उसी रूप में प्रयुक्त होती है। विद्युत का उत्पादन जहाँ किया जाता है उसे बिजलीघर कहते हैं। बिजलीघरों में विद्युत-यांत्रिक जनित्रों के द्वारा बिजली पैदा की जाती है जिसे किसी किसी अन्य युक्ति से घुमाया जाता है, इसे मुख्यघूर्णक या प्रधान चालक (प्राइम मूवर) कहते हैं। प्राइम मूवर के लिये जल टर्बाइन, वाष्प टर्बाइन या गैस टर्बाइन हो सकती है। विद्युत शक्ति, जल से, कोयले आदि की उष्मा से, नाभिकीय अभिक्रियाओं से, पवन शक्ति से एवं अन्य कई विधियों से पैदा की जाती है। .

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विद्युतवाहक बल

भौतिकी में मोटे तौर पर विद्युतवाहक बल (electromotive force, या emf) वह कारण है जो विद्युत धारा (या एलेक्ट्रॉन/ आयन) को परिपथ में प्रवाहित करता है। किन्तु विद्युतवाहक बल की औपचारिक परिभाषा इस प्रकार है: वोल्टीय सेल, विद्युतउष्मीय युक्तियाँ, सौर सेल, विद्युत जनित्र, वान डी ग्राफ आदि कुछ विद्युतवाहक बल उत्पन्न करने वाले सामान हैं। .

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वोल्टता स्रोत

एक प्रतिरोध (दाहिने) से जुड़ा वोल्टता स्रोत (बाएँ) वोल्टता स्रोत (Voltage source) दो सिरों वाली युक्ति है जिसके सिरों के बीच का विभवान्तर नियत (fixed) हो। भिन्न-भिन्न धारा देने के बावजूद आदर्श वोल्टता स्रोत के सिरों का विभवान्तर नियत बना रहता है। वास्तव में 'आदर्श वोल्टता स्रोत' असम्भव है किन्तु ऐसे वोल्टता स्रोत बनाए जा सकते हैं जिनका गुण आदर्श वोल्टता स्रोत के काफी निकट हो। वास्तविक वोल्टता स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर धारा के साथ कुछ न कुछ बदलता है। इसके अलावा वे अनन्त धारा नहीं दे सकते। वोल्टता स्रोत, धारा स्रोत का द्वैत (dual) है। विद्युत ऊर्जा के प्रमुख स्रोत जैसे बैटरी, जनित्र तथा शक्ति निकाय (power systems) को विश्लेषण के लिए एक आदर्श वोल्टता स्रोत तथा एक प्रतिबाधा (impedance) के श्रेणीक्रम संयोजन के रूप में मॉडल किया जा सकता है। .

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गतिपालक चक्र में ऊर्जा भण्डारण

बेलनाकार गतिपालक-चक्र एवं रोटर की समुच्चय (असेम्बली) गतिपालक चक्र में ऊर्जा भण्डारण (Flywheel energy storage (FES)), ऊर्जा भण्डारण की वह विधि है जिसमें ऊर्जा का भण्डारण एक गतिपालक चक्र की घूर्णी ऊर्जा के रूप में किया जाता है। इसके लिये गतिपालक चक्र का कोणीय वेग धीरे-धीरे बढ़ाकर उसे अधिकतम चाल तक ले जाते हैं और इतनी ऊर्जा उसे देते रहते हैं कि उसकी चाल नियत बनी रहे। जब ऊर्जा की जरूरत होती है तब इस गतिज ऊर्जा को अन्य ऊर्जा में बदल लिया जाता है (उदाहरण के लिये, उससे एक विद्युत जनित्र जोड़कर उससे विद्युत शक्ति पैदा कर ली जाती है।)। जब इससे ऊर्जा ली जाती है तो इसकी चाल कम हो जाती है जिसे पुनः त्वरित करते हुए बढ़ाकर अधिकतम चाल तक पहुँचा दिया जाता है। .

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आपदा तत्परता

आपातकालीन प्रबंधन एक अंतःविषयक क्षेत्र का सामान्य नाम है जो किसी संगठन की महत्वपूर्ण आस्तियों की आपदा या विपत्ति उत्पन्न करने वाले खतरनाक जोखिमों से रक्षा करने और सुनियोजित जीवनकाल में उनकी निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए प्रयुक्त सामरिक संगठनात्मक प्रबंधन प्रक्रियाओं से संबंधित है। आस्तियां सजीव, निर्जीव, सांस्कृतिक या आर्थिक के रूप में वर्गीकृत हैं। खतरों को प्राकृतिक या मानव-निर्मित कारणों के द्वारा वर्गीकृत किया जाता है। प्रक्रियाओं की पहचान के उद्देश्य से संपूर्ण सामरिक प्रबंधन की प्रक्रिया को चार क्षेत्रों में बांटा गया है। ये चार क्षेत्र सामान्य रूप से जोखिम न्यूनीकरण, खतरे का सामना करने के लिए संसाधनों को तैयार करने, खतरे की वजह से हुए वास्तविक नुकसान का उत्तर देने और आगे के नुकसान को सीमित करने (जैसे आपातकालीन निकासी, संगरोध, जन परिशोधन आदि) और यथासंभव खतरे की घटना से यथापू्र्व स्थिति में लौटने से संबंधित हैं। क्षेत्र सार्वजनिक और निजी दोनों में होता है, प्रक्रिया एक सी सांझी होती है लेकिन ध्यान केंद्र विभिन्न होते हैं। आपातकालीन प्रबंधन प्रक्रिया एक नीतिगत प्रक्रिया न होकर एक रणनीतिक प्रक्रिया है अतः यह आमतौर पर संगठन में कार्यकारी स्तर तक ही सीमित रहती है। सामान्य रूप से इसकी कोई प्रत्यक्ष शक्ति नहीं है लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक संगठन के सभी भाग एक सांझे लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें, यह सलाहकार के रूप में या कार्यों के समन्वय के लिए कार्य करता है। प्रभावी आपात प्रबंधन संगठन के सभी स्तरों पर आपातकालीन योजनाओं के संपूर्ण एकीकरण और इस समझ पर निर्भर करता है कि संगठन के निम्नतम स्तर आपात स्थिति के प्रबंधन और ऊपरी स्तर से अतिरिक्त संसाधन और सहायता प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार हैं। कार्यक्रम का संचालन करने वाले संगठन के सबसे वरिष्ठ व्यक्ति को सामान्य रूप से एक आपातकालीन प्रबंधक या क्षेत्र में प्रयुक्त शब्द से व्युत्पन्न पर आधारित (अर्थात् व्यापार निरंतरता प्रबंधक) कहा जाता है। इस परिभाषा के अंतर्गत शामिल क्षेत्र हैं.

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आरएमएस क्वीन मैरी 2

आरएमएस क्वीन मैरी 2 एक ट्रांसअटलांटिक समुद्री लाइनर है। यह पहला प्रमुख समुद्री लाइनर था जिसे 1969 में के बाद से बनाया गया। कर्नाड लाइन के प्रमुख जहाज के रूप में इसने सफलता प्राप्त की। इस जहाज का नाम पहले के बाद 2004 में रानी एलिज़ाबेथ II के द्वारा दिया गया, यह 1936 में पूरा किया गया। क्वीन मैरी का नाम किंग जॉर्ज V की पत्नी मैरी ऑफ़ टेक के नाम पर दिया गया। 2008 में रानी एलिज़ाबेथ 2 की सेवानिवृति के बाद से, क्वीन मैरी 2 वर्तमान में एकमात्र ट्रांस अटलांटिक समुद्री लाइनर है, जो सक्रिय है। हालांकि जहाज का उपयोग अक्सर क्रूज़ (समुद्री यात्रा) के लिए किया जाता है, इसमें वार्षिक विश्व क्रूज़ शामिल है। 2003 में चेंटीयर्स डे एल' अटलांटिक के द्वारा इसके निर्माण के समय, क्वीन मैरी 2 तब तक का सबसे लम्बा, सबसे चौड़ा और सबसे ऊंचा यात्री जहाज था और अपने के साथ सबसे बड़ा जहाज भी था। अक्टूबर 2009 में इसी कम्पनी के द्वारा अप्रैल 2006 में रॉयल केरिबियन इंटरनेश्नल का निर्माण किया गया, इसके बाद यह सबसे बड़ा जहाज नहीं रहा। हालांकि, क्वीन मैरी 2 अब तक का सबसे बड़ा समुद्री लाइनर (क्रूज़ जहाज के की तरह) है। क्वीन मैरी 2 को प्राथमिक रूप से अटलांटिक महासागर को पार करने के लिए बनाया गया था, इसीलिए इसका डिजाइन अन्य यात्री जहाजों से हटकर बनाया गया। जहाज की अंतिम लगत लगभग $300,000 प्रति बर्थ आई, जो कई समकालीन क्रूज़ जहाजों से लगभग दोगुनी थी। इसका कारण था कि इसका आकार बड़ा था, इसमें उच्च गुणवत्ता की सामग्री का उपयोग किया गया था और एक समुद्री (महासागरीय) लाइनर के रूप में डिजाइन किये जाने के कारण इसे बनाने के लिए एक मानक क्रूज़ जहाज की तुलना में 40 प्रतिशत अधिक स्टील का उपयोग किया गया। इसकी अधिकतम गति है और क्रुज़िंग गति है, जो किसी भी अन्य समकालीन क्रूज़ जहाज की तुलना में अधिक है, जैसे ओएसिस ऑफ़ द सीज़, जिसकी क्रुज़िंग गति है। कई जहाजों पर प्रयुक्त किये जाने वाले डीज़ल-इलेक्ट्रिक विन्यास के बजाय, क्वीन मैरी 2 में अधिकतम गति को प्राप्त करने के लिए CODLAG विन्यास (संयुक्त डीज़ल-इलेक्ट्रिक और गैस) का उपयोग किया गया है। इसमें डीज़ल जनरेटर ऑनबोर्ड के द्वारा दी गयी पावर को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त गैस टरबाइन का उपयोग किया जाता है, जिससे जहाज अपनी अधिकतम गति को प्राप्त कर लेता है। क्वीन मैरी 2 की सुविधाओं में पंद्रह रेस्तरां और बार, पांच स्विमिंग पूल, एक कैसिनो, एक बॉलरूम, एक थियेटर और पहला समुद्री प्लेनेटोरियम (तारामंडल) शामिल हैं। इसमें ऑनबोर्ड कैनल और एक नर्सरी भी है। क्वीन मैरी 2 उन कुछ जहाज़ों में एक है जिसमें ऑनबोर्ड दर्जा प्रणाली (Claas system) का उपयोग किया जाता है, इसे सबसे मुख्य रूप से इसके भोजन विकल्प में देखा जा सकता है। .

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इलेक्ट्रॉनिक अवयव

कुछ प्रमुख '''इलेक्ट्रॉनिक अवयव''' जिन विभिन्न अवयवों का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिक परिपथ (जैसे- आसिलेटर, प्रवर्धक, पॉवर सप्लाई आदि) बनाये जाते हैं उन्हें इलेक्ट्रॉनिक अवयव (electronic component) कहते हैं इलेक्ट्रॉनिक अवयव दो सिरे वाले, तीन सिरों वाले या इससे अधिक सिरों वाले होते हैं जिन्हें सोल्डर करके या किसी अन्य विधि से (जैसे स्क्रू से कसकर) परिपथ में जोड़ा जाता है। प्रतिरोधक, प्रेरकत्व, संधारित्र, डायोड, ट्रांजिस्टर (या बीजेटी), मॉसफेट, आईजीबीटी, एससीआर, प्रकाश उत्सर्जक डायोड, आपरेशनल एम्प्लिफायर एवं अन्य एकीकृत परिपथ आदि प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक अवयव हैं। प्रमुख एलेक्ट्रॉनिक अवयवों के प्रतीक .

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कार्गो

गुजरात, भारत में मुंद्रा बंदरगाह पर एक जहाज माल लदान आमतौर पर वाणिज्यिक लाभ के लिए जहाज, विमान, ट्रेन, वैन या ट्रक के द्वारा माल या उत्पाद को परिवहन करना कार्गो (या फ्रैट) कहलाता है। आधुनिक समय में, परिवहन के लिए बहुत लंबे-माल ढोने वाले इंटरमोडल कन्टेनर का उपयोग किया जाता है। .

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अतिचालकता

सामान्य चालकों तथा अतिचालकों में ताप के साथ प्रतिरोधकता का परिवर्तन जब किसी मैटेरियल को 0°k तक ठंडा किया जाता है तो उसका प्रतिरोध पूर्णतः शून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करते हैं। उनके इस गुण को अतिचालकता (superconductivity) कहते हैं। शून्य प्रतिरोधकता के अलावा अतिचालकता की दशा में पदार्थ के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र भी शून्य हो जाता है जिसे मेसनर प्रभाव (Meissner effect) के नाम से जाना जाता है। सुविदित है कि धात्विक चालकों की प्रतिरोधकता उनका ताप घटाने पर घटती जाती है। किन्तु सामान्य चालकों जैसे ताँबा और चाँदी आदि में, अशुद्धियों और दूसरे अपूर्णताओं (defects) के कारण एक सीमा के बाद प्रतिरोधकता में कमी नहीं होती। यहाँ तक कि ताँबा (कॉपर) परम शून्य ताप पर भी अशून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करता है। इसके विपरीत, अतिचालक पदार्थ का ताप क्रान्तिक ताप से नीचे ले जाने पर, इसकी प्रतिरोधकता तेजी से शून्य हो जाती है। अतिचालक तार से बने हुए किसी बंद परिपथ की विद्युत धारा किसी विद्युत स्रोत के बिना सदा के लिए स्थिर रह सकती है। अतिचालकता एक प्रमात्रा-यांत्रिक दृग्विषय (quantum mechanical phenomenon.) है। अतिचालक पदार्थ चुंबकीय परिलक्षण का भी प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इन सबका ताप-वैद्युत-बल शून्य होता है और टामसन-गुणांक बराबर होता है। संक्रमण ताप पर इनकी विशिष्ट उष्मा में भी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है। यह विशेष उल्लेखनीय है कि जिन परमाणुओं में बाह्य इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 अथवा 7 है उनमें संक्रमण ताप उच्चतम होता है और अतिचालकता का गुण भी उत्कृष्ट होता है। .

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अबाधित विद्युत आपूर्ति

अबाधित विद्युत आपूर्ति (अंग्रेज़ी:Uninterruptible power supply) या यूपीएस एक ऐसा उपकरण होता है जो विद्युत से चलने वाले किसी उपकरण को उस स्थिति में भी सीमित समय के लिये विद्युत की समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करता है जब आपूर्ति के मुख्य स्रोत (मेन्स) से विद्युत आपूति उपलब्ध नहीं होती। यूपीएस कई प्रकार के बनाये जाते हैं और सीमित समय के लिये आपूर्ति उपलब्ध कराने के अलावा ये कुछ और भी काम कर सकते हैं - जैसे वोल्टता-नियंत्रण, आवृत्ति-नियंत्रण, शक्ति गुणांक वर्धन एवं उसकी गुणवत्ता को बेहतर करके उपकरण को देना, आदि। यूपीएस में उर्जा-संचय करने का कोई एक साधन होता है, जैसे बैटरी, तेज गति से चालित फ्लाईह्वील, आवेशित किया हुआ संधारित्र या एक अतिचालक कुण्डली में प्रवाहित अत्यधिक धारा। यूपीएस, सहायक ऊर्जा-स्रोत जैसे- स्टैण्ड-बाई जनरेटर आदि से इस मामले में भिन्न हैं कि विद्युत जाने पर वे सम्बन्धित उपकरण को मिलने वाली विद्युत में नगण्य समय के लिये व्यवधान करते हैं जिससे उस उपकरण के काम में बाधा या रूकावट नहीं आती।|हिन्दुस्तान लाइव। २७ जनवरी २०१०। पूनम जैन यूपीएस का उपयोग कम्प्यूटरों, आंकड़ा केन्द्र, संचार उपकरणों, आदि के साथ प्राय: किया जाता है जहाँ कि विद्युत जाने से कोई दुर्घटना हो सकती है; महत्त्वपूर्ण आंकड़े नष्ट होने का डर हो; व्यापार का नुकसान आदि हो सकता हो। .

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अल्टरनेटर

अल्टरनेटर का कार्य-सिद्धान्त अल्टरनेटर प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करने वाला विद्युत जनित्र है। वस्तुतः यह एक तुल्यकालिक मशीन है। वर्तमान समय में अधिकांश शक्ति संयंत्रों में विद्युत उत्पादन का कार्य अलटरनेटर ही करते हैं। समय के साथ साथ बहुत बड़े बड़े आकार के अलटरनेटर बनने लगते हैं। ५०,००० से १,५०,००० किलोवाट की क्षमतावाले जनित्र अब सामान्य हो गए हैं। ये निरंतर प्रवर्तन करनेवाली मशीनें हैं, इसलिए इनकी संरचना भी अत्यंत मानक आधार (exacting standards) पर होती है। मुख्यत:, यह स्वत: कार्यकारी मशीन होती है और इसके सारे प्रवर्तन दूरस्थ नियंत्रण (remote control) द्वारा नियंत्रित किए जा सकते हैं। क्षेत्र धारा के विचरण से वोल्टता नियंत्रण सुगमता से किया जा सकता है। भार के अनुरूप निवेश (input) स्वयं ही नियंत्रित हो जाता है। इन सब कारणों से वर्तमान विद्युत् जनित्र बहुत ही दक्ष एवं विश्वसनीय होते हैं। वास्तव में इनके विश्वसनीय प्रवर्तन के कारण ही विद्युत् संभरण को विश्वसनीय बनाया जाना संभव हो सका है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

विद्युत जनित्र, जनरेटर

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