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जीवाश्मविज्ञान

सूची जीवाश्मविज्ञान

जीवाश्मिकी या जीवाश्म विज्ञान या पैलेन्टोलॉजी (Paleontology), भौमिकी की वह शाखा है जिसका संबंध भौमिकीय युगों के उन प्राणियों और पादपों के अवशेषों से है जो अब भूपर्पटी के शैलों में ही पाए जाते हैं। जीवाश्मिकी की परिभाषा देते हुए ट्वेब होफ़ेल और आक ने लिखा है: जीवाश्मिकी वह विज्ञान है, जो आदिम पौधें तथा जंतुओं के अश्मीभूत अवशेषों द्वारा प्रकट भूतकालीन भूगर्भिक युगों के जीवनकी व्याख्या करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जीवाश्म विज्ञान आदिकालीन जीवजंतुओं का, उने अश्मीभूत अवशेषों के आधार पर अध्ययन करता है। जीवाश्म शब्द से ही यह इंगित होता है कि जीव + अश्म (अश्मीभूत जीव) का अध्ययन है। अँग्रेजी का Palaentology शब्द भी Palaios .

14 संबंधों: चौपाये, डायनासोर, प्राणिविज्ञान, भौतिक भूविज्ञान, भूविज्ञान, भूवैज्ञानिक समय-मान, शूलचर्मी, जाति (जीवविज्ञान), जीवाश्म, जीवाश्मविज्ञान, विलुप्ति घटना, गणित का इतिहास, कशेरुक जीवाश्मिकी, कार्बन-१४ द्वारा कालनिर्धारण

चौपाये

चौपाये (Tetrapod) या चतुरपाद उन प्राणियों का महावर्ग है जो पृथ्वी पर चार पैरों पर चलने वाले सर्वप्रथम कशेरुकी (यानि रीढ़-वाले) प्राणियों के वंशज हैं। इसमें सारे वर्तमान और विलुप्त उभयचर (ऐम्फ़िबियन), सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल), पक्षी और कुछ विलुप्त मछलियाँ शामिल हैं। यह सभी आज से लगभग ३९ करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के डिवोनी कल्प में उत्पन्न हुई कुछ समुद्री लोब-फ़िन मछलियों से क्रम-विकसित हुए थे। चौपाये सब से पहले कब समुद्र से निकल कर ज़मीन पर फैलने लगे, इस बात को लेकर अनुसंधान व बहस जीवाश्मशास्त्रियों में जारी है। हालांकि वर्तमान में अधिकतर चौपाई जातियाँ धरती पर रहती हैं, पृथ्वी की पहली चौपाई जातियाँ सभी समुद्री थीं। उभयचर अभी-भी अर्ध-जलीय जीवन व्यतीत करते हैं और उनका आरम्भ पूर्णतः जल में रहने वाले मछली-रूपी बच्चें से होता है। लगभग ३४ करोड़ वर्ष पूर्व ऐम्नीओट (Amniotes) उत्पन्न हुये, जिनके शिशुओं का पोषण अंडों में या मादा के गर्भ में होता है। इन ऐम्नीओटों के वंशजों ने पानी में अंडे छोड़ने-वाले उभयचरों की अधिकतर जातियों को विलुप्त कर दिया हालांकि कुछ वर्तमान में भी अस्तित्व में हैं। आगे चलकर यह ऐम्नीओट भी दो मुख्य शाखाओं में बंट गये। एक शाखा में छिपकलियाँ, डायनासोर, पक्षी और उनके सम्बन्धी उत्पन्न हुए, जबकि दूसरी शाखा में स्तनधारी और उनके अब-विलुप्त सम्बन्धी विकसित हुए। जहाँ मछलियों में क्रम-विकास से चार-पाऊँ बनकर चौपाये बने थे, वहीं सर्प जैसे कुछ चौपायों में क्रम-विकास से ही यह पाऊँ ग़ायब हो गये। कुछ ऐसे भी चौपाये थे जो वापस समुद्री जीवन में चले गये, जिनमें ह्वेल शामिल है। फिर-भी जीववैज्ञानिक दृष्टि से चौपायों के सभी वंशज चौपाये ही समझे जाते हैं, चाहें उनके पाँव हो या नहीं और चाहे वे समुद्र में रहें या धरती पर। .

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डायनासोर

डायनासोर जिसका अर्थ यूनानी भाषा में बड़ी छिपकली होता है लगभग 16 करोड़ वर्ष तक पृथ्वी के सबसे प्रमुख स्थलीय कशेरुकी जीव थे। यह ट्राइएसिक काल के अंत (लगभग 23 करोड़ वर्ष पहले) से लेकर क्रीटेशियस काल (लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले), के अंत तक अस्तित्व में रहे, इसके बाद इनमें से ज्यादातर क्रीटेशियस -तृतीयक विलुप्ति घटना के फलस्वरूप विलुप्त हो गये। जीवाश्म अभिलेख इंगित करते हैं कि पक्षियों का प्रादुर्भाव जुरासिक काल के दौरान थेरोपोड डायनासोर से हुआ था और अधिकतर जीवाश्म विज्ञानी पक्षियों को डायनासोरों के आज तक जीवित वंशज मानते हैं। हिन्दी में डायनासोर शब्द का अनुवाद भीमसरट है जिस का संस्कृत में अर्थ भयानक छिपकली है। डायनासोर पशुओं के विविध समूह थे। जीवाश्म विज्ञानियों ने डायनासोर के अब तक 500 विभिन्न वंशों और 1000 से अधिक प्रजातियों की पहचान की है और इनके अवशेष पृथ्वी के हर महाद्वीप पर पाये जाते हैं। कुछ डायनासोर शाकाहारी तो कुछ मांसाहारी थे। कुछ द्विपाद तथा कुछ चौपाये थे, जबकि कुछ आवश्यकता अनुसार द्विपाद या चतुर्पाद के रूप में अपने शरीर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकते थे। कई प्रजातियां की कंकालीय संरचना विभिन्न संशोधनों के साथ विकसित हुई थी, जिनमे अस्थीय कवच, सींग या कलगी शामिल हैं। हालांकि डायनासोरों को आम तौर पर उनके बड़े आकार के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ डायनासोर प्रजातियों का आकार मानव के बराबर तो कुछ मानव से छोटे थे। डायनासोर के कुछ सबसे प्रमुख समूह अंडे देने के लिए घोंसले का निर्माण करते थे और आधुनिक पक्षियों के समान अण्डज थे। "डायनासोर" शब्द को 1842 में सर रिचर्ड ओवेन ने गढ़ा था और इसके लिए उन्होंने ग्रीक शब्द δεινός (डीनोस) "भयानक, शक्तिशाली, चमत्कारिक" + σαῦρος (सॉरॉस) "छिपकली" को प्रयोग किया था। बीसवीं सदी के मध्य तक, वैज्ञानिक समुदाय डायनासोर को एक आलसी, नासमझ और शीत रक्त वाला प्राणी मानते थे, लेकिन 1970 के दशक के बाद हुये अधिकांश अनुसंधान ने इस बात का समर्थन किया है कि यह ऊँची उपापचय दर वाले सक्रिय प्राणी थे। उन्नीसवीं सदी में पहला डायनासोर जीवाश्म मिलने के बाद से डायनासोर के टंगे कंकाल दुनिया भर के संग्रहालयों में प्रमुख आकर्षण बन गए हैं। डायनासोर दुनियाभर में संस्कृति का एक हिस्सा बन गये हैं और लगातार इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें डायनासोर पर आधारित हैं, साथ ही जुरासिक पार्क जैसी फिल्मों ने इन्हें पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे जुड़ी नई खोजों को नियमित रूप से मीडिया द्वारा कवर किया जाता है। .

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प्राणिविज्ञान

200px प्राणिविज्ञान या जन्तुविज्ञान (en:Zoology) (जीवविज्ञान की शाखा है जो जन्तुओं और उनके जीवन, शरीर, विकास और वर्गीकरण (classification) से सम्बन्धित होती है। .

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भौतिक भूविज्ञान

भूपृष्ठीय परिवर्तनों के अध्ययन को बहुधा गतिकीय भूविज्ञान (dynamical geology) भी कहते हैं। स्पष्ट है कि यह नाम पृष्ठीय वातावरण की गतिशील स्थिति की ओर संकेत करता हैं, किन्तु आजकल यह नाम कुछ विशेष प्रचलित नहीं हें और इसके स्थान पर भौतिक भूविज्ञान (Physical geology) अधिक प्रचलित है। इस विज्ञान के तीन मुख्य अंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं: (1) प्राकृतिक कारकों द्वारा पृष्ठीय शैलों का क्षय (decay), अपरदन (erosion) एवं अनाच्छादन (denudation) तथा उससे उत्पन्न अवसाद इत्यादि का परिवहन (transport), (2) अवसाद का संचयन (accumulation) तथा (3) संचित अवसाद का संयोजन (cementation) और दृढ़ीभवन .

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भूविज्ञान

पृथ्वी के भूवैज्ञनिक क्षेत्र पृथ्वी से सम्बंधित ज्ञान ही भूविज्ञान कहलाता है।भूविज्ञान या भौमिकी (Geology) वह विज्ञान है जिसमें ठोस पृथ्वी का निर्माण करने वाली शैलों तथा उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे शैलों, भूपर्पटी और स्थलरूपों का विकास होता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी अनेकानेक विषय आ जाते हैं जैसे, खनिज शास्त्र, तलछट विज्ञान, भूमापन और खनन इंजीनियरी इत्यादि। इसके अध्ययन बिषयों में से एक मुख्य प्रकरण उन क्रियाओं की विवेचना है जो चिरंतन काल से भूगर्भ में होती चली आ रही हैं एवं जिनके फलस्वरूप भूपृष्ठ का रूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, यद्यपि उसकी गति साधारणतया बहुत ही मंद होती है। अन्य प्रकरणों में पृथ्वी की आयु, भूगर्भ, ज्वालामुखी क्रिया, भूसंचलन, भूकंप और पर्वतनिर्माण, महादेशीय विस्थापन, भौमिकीय काल में जलवायु परिवर्तन तथा हिम युग विशेष उल्लेखनीय हैं। भूविज्ञान में पृथ्वी की उत्पत्ति, उसकी संरचना तथा उसके संघटन एवं शैलों द्वारा व्यक्त उसके इतिहास की विवेचना की जाती है। यह विज्ञान उन प्रक्रमों पर भी प्रकाश डालता है जिनसे शैलों में परिवर्तन आते रहते हैं। इसमें अभिनव जीवों के साथ प्रागैतिहासिक जीवों का संबंध तथा उनकी उत्पत्ति और उनके विकास का अध्ययन भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघटक पदार्थों, उन पर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलों के वितरण, पृथ्वी के इतिहास (भूवैज्ञानिक कालों) आदि के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है। .

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भूवैज्ञानिक समय-मान

यह घड़ी भूवैज्ञानिक काल के प्रमुख ईकाइयों के के साथ-साथ पृथ्वी के जन्म से लेकर आज तक की प्रमुख घटनाओं को भी दिखा रही है। भूवैज्ञानिक समय-मान (geologic time scale) कालानुक्रमिक मापन की एक प्रणाली है जो स्तरिकी (stratigraphy) को समय के साथ जोड़ती है। यह एक स्तरिक सारणी (stratigraphic table) है। भूवैज्ञानिक, जीवाश्मवैज्ञानिक तथा पृथ्वी का अध्ययन करने वाले अन्य वैज्ञानिक इसका प्रयोग धरती के सम्पूर्ण इतिहास में हुई सभी घटनाओं का समय अनुमान करने के लिये करते हैं। जिस प्रकार चट्टानो के अधिक पुराने स्तर नीचे होते हैं तथा अपेक्षाकृत नये स्तर उपर होते हैं, उसी प्रकार इस सारणी में पुराने काल और घटनाएँ नीचे हैं जबकि नवीन घटनाएँ उपर (पहले) दी गई हैं। विकिरणमितीय प्रमाणों (radiomeric evidence) से पता चलता है पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 अरब वर्ष है। .

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शूलचर्मी

तारामीन लिली शूलचर्मा या 'एकिनोडर्म' (Echinoderm) पूर्णतया समुद्री प्राणी हैं। जंतुजगत्‌ के इस बड़े संघ में तारामीन (starfish), ओफियोराइड (Ophiaroids) तथा होलोथूरिया (Holothuria) आदि भी सम्मिलित हैं। अंग्रेजी शब्द एकाइनोडर्माटा का अर्थ है, 'काँटेदार चमड़ेवाले प्राणी'। शूलचर्मों का अध्ययन अनेक प्राणिविज्ञानियों ने किया है। इस संघ में 4,000 प्रकार के प्राणी हैं, जो संसार के सभी सागरों और विभिन्न गहराइयों में पाए जाते हैं। .

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जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

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जीवाश्म

एक जीवाश्म मछली पृथ्वी पर किसी समय जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों या उनके द्वारा चट्टानों में छोड़ी गई छापों को जो पृथ्वी की सतहों या चट्टानों की परतों में सुरक्षित पाये जाते हैं उन्हें जीवाश्म (जीव + अश्म .

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जीवाश्मविज्ञान

जीवाश्मिकी या जीवाश्म विज्ञान या पैलेन्टोलॉजी (Paleontology), भौमिकी की वह शाखा है जिसका संबंध भौमिकीय युगों के उन प्राणियों और पादपों के अवशेषों से है जो अब भूपर्पटी के शैलों में ही पाए जाते हैं। जीवाश्मिकी की परिभाषा देते हुए ट्वेब होफ़ेल और आक ने लिखा है: जीवाश्मिकी वह विज्ञान है, जो आदिम पौधें तथा जंतुओं के अश्मीभूत अवशेषों द्वारा प्रकट भूतकालीन भूगर्भिक युगों के जीवनकी व्याख्या करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जीवाश्म विज्ञान आदिकालीन जीवजंतुओं का, उने अश्मीभूत अवशेषों के आधार पर अध्ययन करता है। जीवाश्म शब्द से ही यह इंगित होता है कि जीव + अश्म (अश्मीभूत जीव) का अध्ययन है। अँग्रेजी का Palaentology शब्द भी Palaios .

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विलुप्ति घटना

इस प्रकार के एस्टेरोइड घटना से भी धरती का विनाश हो सकता हैं। विलुप्ति घटना (extinction event) या महाविलुप्ति या सामूहिक विलुप्ति (mass extinction) एक विशेष प्रकार की घटना होती है जिसमें एक छोटे से काल में बहुत सी जातियाँ विलुप्त हो जाती हैं और पूरी पृथ्वी के सम्पूर्ण जीवन में कमी आती है।, A. Hallam, P. B. Wignall, Oxford University Press, 1997, ISBN 978-0-19-854916-1,...

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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कशेरुक जीवाश्मिकी

कशेरुक जीवाश्मिकी (Vertebrate paleontology) जीवाश्मिकी की विशाल शाखा है जो अश्मीभूत कशेरुकों के अवशेषों के अध्ययन के आधार पर उनके व्यवहार, प्रजनन तथा स्वरूप आदि की खोज करती है। कशेरुक प्राणी वे कहलाते हैं जिनके कशेरुक दण्ड (vertebrae) होता है। उद्विकास की समयरेखा का प्रयोग करते हुए यह शाखा पुराकाल के जन्तुओं तथा उनके वर्तमान संबन्धियों को भी जोड़ने का प्रयत्न करती है। जीवाश्मों के अध्ययन से पता चलता है कि आरम्भिक काल में कशेरुक प्राणी जलीय-जन्तु थे जिनसे विकसित होकर आज के स्तनपोषी बने हैं। जेप्सेन, मेयर एवं सिम्पसन के शब्दों में, कशेरुकीय जीवाश्म विज्ञान समय की सीमा में बँधे तुलनात्मक अस्थिविज्ञान का अध्ययन है। कारण कि (1) जैवाश्मिकीय न्यास (data) मूल रूप से कंकाल (sdeleton) तंत्र तक ही सीमित होते हैं। (2) जीवाश्मवैज्ञानिकों के पास अध्ययन सामग्री के रूप में विविध पुराकालिक कंकालों के संकलन मात्र होते हैं। (ग्लेन एल. जेप्सेन, अर्न्स्ट मेयर तथा जार्ज गेलार्ड सिम्पसन: जेनेटिक्स, पैलिओन्टोलाजी एंड इवोल्यूशन, प्रिंस्टन यूनि. प्रेस, प्रिंस्टन, न्यूजर्सी, 1949)। 'कशेरुकीय जीवाश्मिकी' (Vertebrate paleontology) की दो मुख्य शाखाएँ हैं.

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कार्बन-१४ द्वारा कालनिर्धारण

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

जीवाश्म विज्ञान, जीवाश्मवैज्ञानिक, जीवाश्मिकी

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