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जीवन वृक्ष (विज्ञान)

सूची जीवन वृक्ष (विज्ञान)

डार्विन के '''ओरिजिन ऑफ स्पेसीज बाय नेचुरल सेलेक्शन''' (१८५९) में चित्रित जीवन वृक्ष; इस पुस्तक में यही एकमात्र चित्र था। चार्ल्स डार्विन का विश्वास था कि समय के साथ जीवों का अधिक विकसित अवस्था को प्राप्त करने (फिलोजेनी) के प्राकृतिक प्रक्रिया को एक रूपक के रूप में जीवन वृक्ष (Tree of Life) द्वारा दर्शाया जा सकता है। आधुनिक समय में इस विचार का नाम फिलोजेनिक वृक्ष है। '''द इवोलूशन आफ़ मैन''' (१८७९) में अर्न्स्त हैकेल द्वारा विचारित जीवन वृक्ष .

सामग्री की तालिका

  1. 4 संबंधों: वर्गानुवंशिकी, क्रम-विकास, क्रम-विकास से परिचय, क्लेड

वर्गानुवंशिकी

वर्गानुवंशिक समूह, या टैक्सोन, एकवर्गी (मोनोफ़ाइलिटिक), परवर्गी (पैराफ़ाइलिटिक), या बहुवर्गी (पॉलीफ़ाइलिटिक) हो सकते हैं वर्गानुवंशिकी या फ़ाइलोजेनेटिक्स​ (phylogenetics) जीवों के बीच के क्रम-विकास (एवोल्यूशन) के सम्बन्ध के अध्ययन का नाम है। इसमें उनके आनुवांशिकी (जेनेटिक्स) लक्षणों की तुलना उनके डी॰ऍन॰ए॰ और प्रोटीन अणुओं का परीक्षण करके की जाती है और यह दावे किये जाते हैं कि कौनसी जातियाँ किन अन्य जातियों से विकसित हुई हैं। इसमें कुछ विलुप्त हुई जातियों के अध्ययन में कठिनाई आती है जिनकी कोई भी आनुवांशिक सामग्री विश्व में नहीं बची है - उन जीवों के लिए उनके जीवाश्म (फ़ॉसिल​) अवशेषों को परखकर क्रम-विकास संबंधों को समझने की कोशिश की जाती है। वर्गानुवंशिकी से पता चलता है कि विभिन्न जातियों और जीववैज्ञानिक वर्गों की क्रम-विकास द्वारा उत्पत्ति का इतिहास क्या है। आधुनिक युग में जीववैज्ञानिक इस जानकारी के आधार पर जीवों की जातियों को भिन्न क्लेडों में वर्गीकृत करके जीवन वृक्ष में आयोजित करते हैं।, Jean-Michel Claverie and Cedric Notredame, pp.

देखें जीवन वृक्ष (विज्ञान) और वर्गानुवंशिकी

क्रम-विकास

आनुवांशिकता का आधार डीएनए, जिसमें परिवर्तन होने पर नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं। क्रम-विकास या इवोलुशन (English: Evolution) जैविक आबादी के आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी दर पीढ़ी परिवर्तन को कहते हैं। क्रम-विकास की प्रक्रियायों के फलस्वरूप जैविक संगठन के हर स्तर (जाति, सजीव या कोशिका) पर विविधता बढ़ती है। पृथ्वी के सभी जीवों का एक साझा पूर्वज है, जो ३.५–३.८ अरब वर्ष पूर्व रहता था। इसे अंतिम सार्वजानिक पूर्वज कहते हैं। जीवन के क्रम-विकासिक इतिहास में बार-बार नयी जातियों का बनना (प्रजातिकरण), जातियों के अंतर्गत परिवर्तन (अनागेनेसिस), और जातियों का विलुप्त होना (विलुप्ति) साझे रूपात्मक और जैव रासायनिक लक्षणों (जिसमें डीएनए भी शामिल है) से साबित होता है। जिन जातियों का हाल ही में कोई साझा पूर्वज था, उन जातियों में ये साझे लक्षण ज्यादा समान हैं। मौजूदा जातियों और जीवाश्मों के इन लक्षणों के बीच क्रम-विकासिक रिश्ते (वर्गानुवंशिकी) देख कर हम जीवन का वंश वृक्ष बना सकते हैं। सबसे पुराने बने जीवाश्म जैविक प्रक्रियाओं से बने ग्रेफाइट के हैं, उसके बाद बने जीवाश्म सूक्ष्मजीवी चटाई के हैं, जबकि बहुकोशिकीय जीवों के जीवाश्म बहुत ताजा हैं। इस से हमें पता चलता है कि जीवन सरल से जटिल की तरफ विकसित हुआ है। आज की जैव विविधता को प्रजातिकरण और विलुप्ति, दोनों द्वारा आकार दिया गया है। पृथ्वी पर रही ९९ प्रतिशत से अधिक जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। पृथ्वी पर जातियों की संख्या १ से १.४ करोड़ अनुमानित है। इन में से १२ लाख प्रलेखित हैं। १९ वीं सदी के मध्य में चार्ल्स डार्विन ने प्राकृतिक वरण द्वारा क्रम-विकास का वैज्ञानिक सिद्धांत दिया। उन्होंने इसे अपनी किताब जीवजाति का उद्भव (१८५९) में प्रकाशित किया। प्राकृतिक चयन द्वारा क्रम-विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित अवलोकनों से साबित किया जा सकता है: १) जितनी संतानें संभवतः जीवित रह सकती हैं, उस से अधिक पैदा होती हैं, २) आबादी में रूपात्मक, शारीरिक और व्यवहारिक लक्षणों में विविधता होती है, ३) अलग-अलग लक्षण उत्तर-जीवन और प्रजनन की अलग-अलग संभावना प्रदान करते हैं, और ४) लक्षण एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को दिए जाते हैं। इस प्रकार, पीढ़ी दर पीढ़ी आबादी उन शख़्सों की संतानों द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती है जो उस बाईओफीसिकल परिवेश (जिसमें प्राकृतिक चयन हुआ था) के बेहतर अनुकूलित हों। प्राकृतिक वरण की प्रक्रिया इस आभासी उद्देश्यपूर्णता से उन लक्षणों को बनती और बरकरार रखती है जो अपनी कार्यात्मक भूमिका के अनुकूल हों। अनुकूलन का प्राकृतिक वरण ही एक ज्ञात कारण है, लेकिन क्रम-विकास के और भी ज्ञात कारण हैं। माइक्रो-क्रम-विकास के अन्य गैर-अनुकूली कारण उत्परिवर्तन और जैनेटिक ड्रिफ्ट हैं। .

देखें जीवन वृक्ष (विज्ञान) और क्रम-विकास

क्रम-विकास से परिचय

क्रम-विकास किसी जैविक आबादी के आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ियों के साथ परिवर्तन को कहते हैं। जैविक आबादियों में जैनेटिक परिवर्तन के कारण अवलोकन योग्य लक्षणों में परिवर्तन होता है। जैसे-जैसे जैनेटिक विविधता पीढ़ियों के साथ बदलती है, प्राकृतिक वरण से वो लक्षण ज्यादा सामान्य हो जाते हैं जो उत्तरजीवन और प्रजनन में ज्यादा सफलता प्रदान करते हैं। पृथ्वी की उम्र लगभग ४.५४ अरब वर्ष है। जीवन के सबसे पुराने निर्विवादित सबूत ३.५ अरब वर्ष पुराने हैं। ये सबूत पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में ३.५ वर्ष पुराने बलुआ पत्थर में मिले माइक्रोबियल चटाई के जीवाश्म हैं। जीवन के इस से पुराने, पर विवादित सबूत ये हैं: १) ग्रीनलैंड में मिला ३.७ अरब वर्ष पुराना ग्रेफाइट, जो की एक बायोजेनिक पदार्थ है और २) २०१५ में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में ४.१ अरब वर्ष पुराने पत्थरों में मिले "बायोटिक जीवन के अवशेष"। Early edition, published online before print.

देखें जीवन वृक्ष (विज्ञान) और क्रम-विकास से परिचय

क्लेड

जातियों के इस चित्रण में लाल समूह एक क्लेड है (क्योंकि उसके सभी सदस्य एक जाति और उसकी सभी वंशज जातियाँ हैं) जबकि हरा समूह क्लेड नहीं है (क्योंकि नीला समूह में हरे समूह की एक सदस्य जाति के वंशज हैं लेकिन वह हरे समूह से बाहर हैं) क्लेड (clade) या जीवशाखा जीव जातियों का ऐसा समूह होता है जिसमें कोई जाति और उससे विकसित हुई सभी जातियाँ शामिल होती हैं। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में क्लेड जीवन वृक्ष की एक शाखा होती है। 'क्लेड' शब्द बहुत नया है और १९५८ में ब्रिटिश जीववैज्ञानिक जूलियन हक्सली ने गढ़ा था। क्लेडिकी के विज्ञान में सभी जीवों को उनके क्लेडों के आधार पर वर्गीकृत करके उनका अध्ययन किया जाता है।, Claude Dupuis, Annual Review of Ecology and Systematics 15: 1–24, 1984, ISSN 0066-4162 .

देखें जीवन वृक्ष (विज्ञान) और क्लेड