71 संबंधों: ऊतक, चरमपसंदी, ऊष्मपसंदी, झिल्ली, झुंड व्यवहार, तत्त्वमीमांसा, द लोर्ड ऑफ द रिंग्स फिल्म ट्रिलॉजी, दुर्व्यवहार, दूषण, परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र, पर्यावास विखंडन, पारस्परण (जीवविज्ञान), पारिस्थितिकी, प्रतिरूपण, प्राणी, प्राकृतिक रेशा, प्रकाशानुवर्तन, प्रोटिओमिक्स, ब्रह्माण्ड (जैन धर्म), माण्डूक्योपनिषद, मेलानिन, रेडियोसहन, रेडियोजैविकी, लिपिड द्विपरत, लोक जीवविज्ञान, शनि (ज्योतिष), शल्यचिकित्सक टांका, शारीरिक योजना, शुष्कपसंदी, शीतपसंदी, शीतजैविकी, शीतजीवी, सर्वार्थसिद्धि, सागरगत ज्वालामुखी, संयंत्र सेल, सूर्य देवता, जल प्रदूषण, जिन्न, जैन धर्म, जैन धर्म में भगवान, जैन ध्वज, जैव विविधता, जैवझिल्ली, जैवप्रौद्योगिकी, जीन व्यवहार, जीव (बहुविकल्पी), जीव (हिन्दू धर्म), जीव विज्ञान, जीवविज्ञान में सममिति, वन पारिस्थितिकी, ..., विद्युतभान, वंश समूह (जीवविज्ञान), व्यक्तिपरकता, वेद, गतिशीलता, गुरुत्वानुवर्तन, आर॰ऍन॰ए॰ पॉलिमरेज़, कशाभिक, कृषि, कैम्ब्रियाई विस्तार, केन्द्रिका, केन्द्रक झिल्ली, केन्द्रक आव्यूह, केन्द्रकद्रव्य, कोरल सर्प, कोशिका केन्द्रक, अनुवंशिक अभियांत्रिकी, अपच्छेदन, अंतर्सहजीवी, अंग तंत्र, उद्दीपक (शरीरविज्ञान)। सूचकांक विस्तार (21 अधिक) »
ऊतक
ऊतक (tissue) किसी जीव के शरीर में कोशिकाओं के ऐसे समूह को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति एक समान हो तथा वे एक विशेष कार्य करती हो। अधिकांशतः ऊतको का आकार एंव आकृति एक समान होती है। परंतु कभी कभी कुछ उतकों के आकार एंव आकृति में असमानता पाई जाती है, मगर उनकी उत्पत्ति एंव कार्य समान ही होते हैं। कोशिकाएँ मिलकर ऊतक का निर्माण करती हैं। ऊतक के अध्ययन को ऊतक विज्ञान (Histology) के रूप में जाना जाता है। .
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चरमपसंदी
स्पेन की रिओ तिन्तो (नदी) जिसके तेज़ाब-युक्त पानी को उसमें रह रहे चरमपसंदी जीवाणु एक पीला-नारंगी सा रंग दे देते हैं चरमपसंदी ऐसे जीव को कहा जाता है, जो ऐसे चरम वातावरण में फलता-फूलता हो जहाँ पृथ्वी पर रहने वाले साधारण जीव बहुत कठिनाई से जीवित रह पाते हो या बिलकुल ही रह न सके। ऐसे चरम वातावरणों में ज्वालामुखी चश्मों का खौलता-उबलता हुऐ पानी, तेज़ाब से भरपूर वातावरण और आरसॅनिक जैसे ज़हरीले पदार्थों से युक्त वातावरण शामिल हैं। .
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ऊष्मपसंदी
ऊष्मपसंदी (Thermophile, थर्मोफ़ाइल) ऐसे चरमपसंदी जीव होते हैं जो 41° से 122° सेंटीग्रेड के ऊँचे तापमान में पनपते हैं और प्रजनन कर सकते हैं। कई ऊष्मपसंदी आर्किया होते हैं और जीववैज्ञानिक समझते हैं कि पृथ्वीपर उत्पन्न होने वाले सबसे पहले बैक्टीरिया भी ऊष्मपसंदी थे। .
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झिल्ली
झिल्ली (membrane) दो स्थानों, दिकों, अंगों, पात्रों या खंडो के बीच स्थित एक पतली अवरोधक परत होती है जो कुछ चुने पदार्थों, अणुओं, आयनों या अन्य सामग्रियों को आर-पार जाने देती है लेकिन अन्य सभी को रोकती है। जीव-शरीरों में ऐसी कई झिल्लियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें जैवझिल्लियाँ कहा जाता है। इनका कोशिका झिल्ली और कई ऊतकों को ढकने वाली झिल्लियाँ उदाहरण हैं। इनके अलावा मानवों ने कई कृत्रिम झिल्लियों का निर्माण भी करा है, जिनके प्रयोग से अलग-अलग रसायनों और पदार्थों को अलग करा जाता है। मसलन रिवर्स ऑस्मोसिस (आर ओ) नामक जल-स्वच्छिकरण यंत्र में जल को एक कृत्रिम झिल्ली से निकालकर उस से कई हानिकारक पदार्थों और सूक्ष्मजीवियों को हटाकर पीने योग्य बनाया जाता है। .
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झुंड व्यवहार
झुंड व्यवहार (swarm behaviour) एक जैसे आकार के जीवों, विषेशकर प्राणियों, के ऐसे सामूहिक व्यवहार को कहते हैं जहाँ वे एकत्रित होकर एक ही स्थान पर व्य्वस्थित रूप से हिलें या किसी व्यवस्थित रूप से तालमेल बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान जाएँ। यह व्यवहार कीटों, पक्षियों व मछलियों में बहुत देखा जाता है, जो घने झुंड बनाकर एक साथ चलते हैं। इनके अलावा हिरणों, गायों व अन्य बड़े प्राणियों में भी झुंड व्यवहार देखा जा सकता है। .
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तत्त्वमीमांसा
तत्त्वमीमांसा (Metaphysics), दर्शन की वह शाखा है जो किसी ज्ञान की शाखा के वास्तविकता (reality) का अध्ययन करती है। परम्परागत रूप से इसकी दो शाखाएँ हैं - ब्रह्माण्ड विद्या (Cosmology) तथा सत्तामीमांसा या आन्टोलॉजी (ontology)। तत्वमीमांसा में प्रमुख प्रश्न ये हैं-.
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द लोर्ड ऑफ द रिंग्स फिल्म ट्रिलॉजी
द लोर्ड ऑफ द रिंग्स फिल्म ट्रियोलॉजी, काल्पनिक महाकाव्य पर आधारित तीन एक्शन फिल्में हैं जिसमें द फेलोशिप ऑफ द रिंग (2001), द टू टावर्स(2002) और द रिटर्न ऑफ द किंग(2003) शामिल हैं। यह ट्रियोलॉजी तीन खंडों में विभाजित है और जे.आर.आर. टोलकिन द्वारा लिखित द लोर्ड ऑफ द रिंग्स किताब पर आधारित है। हालांकि ये फिल्में पुस्तक की सामान्य कहानी का ही अनुसरण करती है लेकिन साथ ही स्रोत सामग्री से कुछ अलग भी इसमें शामिल किया गया है। मध्य धरती के काल्पनिक दुनियां में सेट ये तीन फिल्में होब्बिट फ्रोडो बग्गीन्स के ईर्द-गिर्द ही घूमती हैं जिसमें वह और फेलोशिप एक रिंग को नष्ट करने की तलाश में निकलते हैं और उसके निर्माता डार्क लोर्ड सौरोन के विनाश को सुनिश्चित करते हैं। लेकिन फैलोशिप विभाजित हो जाता है और फ्रोडो अपने वफादार साथी सैम और विश्वासघाती गोल्लुम के साथ खोज जारी रखता है। इसी बीच, देश निकाला झेल रहे जादूगर गैंडाल्फ़ और एरागोर्न, जो गोन्डोर के सिंहासन के असल वारिस होते हैं, वे मध्य धरती के आजाद लोगों को एकजुट करते हैं और वे अंततः रिंग के युद्ध में विजयी होते हैं। पीटर जैक्सन इन तीनों फिल्म के निर्देशक हैं और इनका वितरण न्यू लाइन सिनेमा द्वारा की गई है। इसे आज तक के विशालतम और महत्वाकांक्षी फिल्म परियोजनाओं में से एक माना जाता है, जिसका बजट कुल मिलाकर 285 करोड़ डॉलर था और इस परियोजना को पूरा होने में लगभग आठ वर्ष लगे और सभी तीन फिल्मों को एक साथ प्रदर्शित करने के लिए जैक्शन के जन्मस्थान न्यूजीलैंड में बनाया गया। ट्रियोलॉजी के प्रत्येक फिल्म का विशेष वर्धित संस्करण भी था जिसे सिनेमाघरों में जारी होने के एक साल बाद डीवीडी में जारी किया गया था। सर्वकालीक फिल्मों के बीच इस ट्रियोलॉजी को सबसे ज्यादा वित्तीय सफलता प्राप्त हुई थी। इन फिल्मों की समीक्षकों ने खूब प्रशंसा की और कुल 30 अकादमी पुरस्कार में इनका नामांकन हुआ था जिसमें से कुल 17 पुरस्कार मिले और इसके कलाकारों के चरित्रों और अभिनव के लिए काफी सराहना की गई और साथ ही डिजिटल विशेष प्रभाव के लिए भी व्यापक रूप में प्रशंसा की गई। 2011 और 2012 में रिलीज़ होने वाली द होब्बिट एक फिल्म रुपांतर है जिसे दो भागोंमें बनाया जा रहा है, इसमें गिलर्मो डेल टोरो का जैक्सन सहयोग कर रहे हैं। .
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दुर्व्यवहार
दुर्व्यवहार (abuse) किसी शक्ति या अधिकार के अन्यायपूर्ण या अनौचित्यपूर्ण प्रयोग से किसी अन्य व्यक्ति, समूह, प्राणी, जीव या अन्य चीज़ के साथ करे गये बुरे या हानिकारक व्यवहार को कहते हैं। दुर्व्यवहार की बहुत-सी श्रेणियाँ न्याय-विधि द्वारा वर्जित होती हैं। दुर्व्यवहार कई प्रकार के होते हैं। .
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दूषण
दूषण (fouling) किसी व्यवस्था में किसी सतह या स्थान पर अनचाही सामग्री के जमा होने को कहते हैं जिसके कारण उस व्यवस्था के निर्धारित कार्य में खलल पड़े। दूषण करने वाली सामग्री जीवों (विशेषकर सूक्ष्मजीव) की बनी हो सकती है या फिर उसमें अन्य (कार्बनिक या अकार्बनिक) पदार्थ हो सकते हैं। .
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परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र
स्थलाकृतिक प्रतिबिंब परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (atomic force microscope, AFM), जिसे क्रमवीक्षण बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (scanning force microscope, SFM) भी कहा जाता है, एक अति-विभेदनशील यंत्र है, जो नैनोमीटर के अंशों से भी सूक्ष्म स्तर तक दिखा सकता है, जो कि प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शीओं की तुलना में १००० गुना बेहतर हैं। प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी उनकी विवर्तन सीमा से सीमित हो जाते हैं। इन्हे अगुआ किया गर्ड बिन्निग और हैन्रिक रोह्रर के बनाये अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र (STM) नें, जिसके लिये उन्हे १९८६ में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बिन्निग, कैल्विन केट और क्रिस्टॉफ गर्बर नें १९८६ में पहले AFM का विकास किया। आज नैनो स्तर पर प्रतिबिंबन, मापन और दक्षप्रयोग में यह यंत्र महत्वपूर्ण भुमिका निभा रहा है। इस यंत्र को सूक्ष्मदर्शी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि यह यंत्र एक यांत्रिक अन्वेषिका के प्रयोग से सतह को छूकर प्रतिबिंब बनाता है। पैजोविद्युत तत्वों के प्रयोग से बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर नियंत्रण हो पाता है। .
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पर्यावास विखंडन
पर्यावास विखंडन (habitat fragmentation) किसी जीव के पर्यावास क्षेत्र में प्रतिकूल परिस्थिति के उपक्षेत्र बन जाने से उसके कई अलग-थलग खंड बन जाने की प्रक्रिया को कहते हैं। यह खंड एक-दूसरे से जुड़े नहीं होते और जीव न तो इन खंडों के बीच सहजता से आ-जा सकता है, न अन्य खंडों में रहने वाले अपनी जीववैज्ञानिक जाति के अन्य जीवों के साथ प्रजनन कर सकता है और न ही सभी खंडों के प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करने में सक्षम होता है। इस विखंडन से जीवों की आबादी भी विखंडित हो जाती है। फलस्वरूप जीवों की संख्या कम हो जाती है। कुछ परिस्थितियों में वह जाति विलुप्ति की कागार पर आ जाती है। यदि यह प्रक्रिया धीरे-धीरे शताब्दियों या हज़ारों वर्षों में भूवैज्ञानिक कारणों से हो तो एक जाति के विभाजन से नई जाति भी उत्पन्न हो सकती है। आधुनिक काल में मानवीय हस्तक्षेप से हुए पर्यावास विखंडन के कारण वन्य जीवन को भारी हानि पहुँची है। .
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पारस्परण (जीवविज्ञान)
जीवविज्ञान में पारस्परण (mutualism) या अंतर्जातीय सहयोग (interspecific cooperation) दो भिन्न जातियों के जीवों के बीच का ऐसा सम्बन्ध होता है जिसमें दोनों जीव एक-दूसरे की क्रियायों से लाभ पाते हैं। उदाहरण के लिए कई प्राणियों के जठरांत्र क्षेत्र मे विशेष प्रकार के बैक्टीरिया का निवास होता है। यह बक्टीरिया प्राणी द्वारा खाये गये भोजन के पाचन में सहायक होते हैं और स्वयं इस भोजन से इनका पोषण होता है। .
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पारिस्थितिकी
260 px 95px 173px 115px 125px पारिस्थितिकी का वैज्ञानिक साम्राज्य वैश्विक प्रक्रियाओं (ऊपर), से सागरीय एवं पार्थिव सतही प्रवासियों (मध्य) से लेकर अन्तर्विशःइष्ट इंटरैक्शंस जैसे प्रिडेशन एवं परागण (नीचे) तक होता है। पारिस्थितिकी (अंग्रेज़ी:इकोलॉजी) जीवविज्ञान की एक शाखा है जिसमें जीव समुदायों का उसके वातावरण के साथ पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करतें हैं। प्रत्येक जन्तु या वनस्पति एक निशिचत वातावरण में रहता है। पारिस्थितिज्ञ इस तथ्य का पता लगाते हैं कि जीव आपस में और पर्यावरण के साथ किस तरह क्रिया करते हैं और वह पृथ्वी पर जीवन की जटिल संरचना का पता लगाते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। २ मई २०१०। पारिस्थितिकी को एन्वायरनमेंटल बायोलॉजी भी कहा जाता है। इस विषय में व्यक्ति, जनसंख्या, समुदायों और इकोसिस्टम का अध्ययन होता है। इकोलॉजी अर्थात पारिस्थितिकी (जर्मन: Oekologie) शब्द का प्रथम प्रयोग १८६६ में जर्मन जीववैज्ञानिक अर्नेस्ट हैकल ने अपनी पुस्तक "जनरेल मोर्पोलॉजी देर ऑर्गैनिज़्मेन" में किया था। बीसवीं सदी के आरम्भ में मनुष्य और उसके पर्यावरण के बीच संबंधों पर अध्ययन प्रारंभ हुआ और एक साथ कई विषयों में इस ओर ध्यान दिया गया। परिणामस्वरूप मानव पारिस्थितिकी की संकलपना आयी। प्राकृतिक वातावरण बेहद जटिल है इसलिए शोधकर्ता अधिकांशत: किसी एक किस्म के प्राणियों की नस्ल या पौधों पर शोध करते हैं। उदाहरण के लिए मानवजाति धरती पर निर्माण करती है और वनस्पति पर भी असर डालती है। मनुष्य वनस्पति का कुछ भाग सेवन करते हैं और कुछ भाग बिल्कुल ही अनोपयोगी छोड़ देते हैं। वे पौधे लगातार अपना फैलाव करते रहते हैं। बीसवीं शताब्दी सदी में ये ज्ञात हुआ कि मनुष्यों की गतिविधियों का प्रभाव पृथ्वी और प्रकृति पर सर्वदा सकारात्मक ही नहीं पड़ता रहा है। तब मनुष्य पर्यावरण पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव के प्रति जागरूक हुए। नदियों में विषाक्त औद्योगिक कचरे का निकास उन्हें प्रदूषित कर रहा है, उसी तरह जंगल काटने से जानवरों के रहने का स्थान खत्म हो रहा है। पृथ्वी के प्रत्येक इकोसिस्टम में अनेक तरह के पौधे और जानवरों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनके अध्ययन से पारिस्थितिज्ञ किसी स्थान विशेष के इकोसिस्टम के इतिहास और गठन का पता लगाते हैं। इसके अतिरिक्त पारिस्थितिकी का अध्ययन शहरी परिवेश में भी हो सकता है। वैसे इकोलॉजी का अध्ययन पृथ्वी की सतह तक ही सीमित नहीं, समुद्री जनजीवन और जलस्रोतों आदि पर भी यह अध्ययन किया जाता है। समुद्री जनजीवन पर अभी तक अध्ययन बहुत कम हो पाया है, क्योंकि बीसवीं शताब्दी में समुद्री तह के बारे में नई जानकारियों के साथ कई पुराने मिथक टूटे और गहराई में अधिक दबाव और कम ऑक्सीजन पर रहने वाले जीवों का पता चला था। .
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प्रतिरूपण
समुद्र एनेमोन, प्रतिरूपण की प्रक्रिया में अन्थोप्लयूरा एलेगंटिस्सिमा जीव-विज्ञान में प्रतिरूपण, आनुवांशिक रूप से समान प्राणियों की जनसंख्या उत्पन्न करने की प्रक्रिया है, जो प्रकृति में विभिन्न जीवों, जैसे बैक्टीरिया, कीट या पौधों द्वारा अलैंगिक रूप से प्रजनन करने पर घटित होती है। जैव-प्रौद्योगिकी में, प्रतिरूपण डीएनए खण्डों (आण्विक प्रतिरूपण), कोशिकाओं (सेल क्लोनिंग) या जीवों की प्रतिरूप निर्मित करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। यह शब्द किसी उत्पाद, जैसे डिजिटल माध्यम या सॉफ्टवेयर की अनेक प्रतियां निर्मित करने की प्रक्रिया को भी सूचित करता है। क्लोन शब्द κλών से लिया गया है, "तना, शाखा" के लिये एक ग्रीक शब्द, जो उस प्रक्रिया को सूचित करता है, जिसके द्वारा एक टहनी से कोई नया पौधा निर्मित किया जा सकता है। उद्यानिकी में बीसवीं सदी तक clon वर्तनी का प्रयोग किया जाता था; अंतिम e का प्रयोग यह बताने के लिये शुरू हुआ कि यह स्वर एक "संक्षिप्त o" नहीं, वल्कि एक "दीर्घ o" है। चूंकि इस शब्द ने लोकप्रिय शब्दकोश में एक अधिक सामान्य संदर्भ के साथ प्रवेश किया, अतः वर्तनी clone का प्रयोग विशिष्ट रूप से किया जाता है। .
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प्राणी
प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .
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प्राकृतिक रेशा
प्राकृतिक रेशा (natural fibre) ऐसे रेशे होते हैं जिनकी मूल उत्पत्ति पौधों, जीवों व भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा होती है। इनका प्रयोग रस्सियों, काग़ज़, नमदों व अन्य चीज़ों के उत्पादन में होता है। .
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प्रकाशानुवर्तन
प्रकाशानुवर्तन (Phototropism) किसी जीव की ऐसी वृद्धि होती है जो प्रकाश उद्दीपन से प्रभावित हो। यह सबसे अधिक पौधों में देखा जाता है जो अक्सर सूर्य जैसे प्रकाश स्रोतों की दिशा में बढ़ते हैं। यही कारण है कि वनस्पति ऊपर की ओर बढ़ते हुए पाए जाते हैं। पौधों के अलावा यह फफूंद (फ़ंगस) में भी देखा जाता है।Goyal, A., Szarzynska, B., Fankhauser C. (2012).
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प्रोटिओमिक्स
एम.ए.एल.डी.आई मास स्पेक्ट्रोमेट्री नमूनों की प्रतिरूप कैरियर पर रोबोटिक तैयारी प्रोटिओमिक्स (Proteomics) जीव-शरीरों की कोशिकाओं में पाए जाने वाले प्रोटीनों के अध्ययन से सम्बन्धी विज्ञान है। इसमें प्रोटीनों का विभिन्न अवस्थाओं में, एक ही समय में, तथातीव्र गति से विश्लेषण करा जाता है। इससे कोशिकाओं में प्रोटीनों की अंतःस्थिओति का मानचित्र तैयार कर सकते हैं। जीव शरीर में अनेक प्रकार के प्रोटीन होते हैं। प्रोटीनों में अमीनो अम्लों की लम्बी शृंखलाएं होतीं हैं, तथा वे २० विभिन्न अमीनो अम्लों द्वारा निर्मित होतीं हैं। प्रत्येक अमीनो अम्ल के रासायनिक गुण भिन्न होते हैं, तथा उनका विभिन्न प्रोटीनों में होने वाला अनुक्रम भी भिन्न होता है। इसके कारण प्रत्येक प्रोटीन एक विशेष रूप से संरचित होता है और यह संरचना उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य के लिए हर प्रकार से उपयुक्त होती है। प्रोटीण किसी जीव की जीवन क्षमता और कोशिकीय क्रियाविधि के लिए सीधे सीधे उत्तरदायी होते हैं। .
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ब्रह्माण्ड (जैन धर्म)
जैन धर्म सृष्टि को अनादिनिधन बताता है यानी जो कभी नष्ट नहीं होगी। जैन दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड हमेशा से अस्तित्व में है और हमेशा रहेगा। यह ब्रह्मांड प्राकृतिक कानूनों द्वारा नियंत्रित है और अपनी ही ऊर्जा प्रक्रियाओं द्वारा रखा जा रहा है। जैन दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड शाश्वत है और ईश्वर या किसी अन्य शक्ति ने इसे नहीं बनाया। आधुनिक विज्ञान के अनुसार ब्रह्माण्ड हमेशा से अस्तित्व में नहीं था, इसकी उत्पत्ति बिग बैंग से हुई थी। .
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माण्डूक्योपनिषद
माण्डूक्योपनिषद अथर्ववेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। यह उपनिषद संस्कृत भाषा में लिखित है। इसके रचियता वैदिक काल के ऋषियों को माना जाता है। इसमें आत्मा या चेतना के चार अवस्थाओं का वर्णन मिलता है - जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय। प्रथम दस उपनिषदों में समाविष्ट केवल बारह मंत्रों की यह उपनिषद् उनमें आकार की दृष्टि से सब से छोटी है किंतु महत्व के विचार से इसका स्थान ऊँचा है, क्योंकि बिना वाग्विस्तार के आध्यात्मिक विद्या का नवनीत सूत्र रूप में इन मंत्रों में भर दिया गया है। इस उपनिषद् में ऊँ की मात्राओं की विलक्षण व्याख्या करके जीव और विश्व की ब्रह्म से उत्पत्ति और लय एवं तीनों का तादात्म्य अथवा अभेद प्रतिपादित हुआ है। इसके अलावे वैश्वानर शब्द का विवरण मिलता है जो अन्य ग्रंथों में भी प्रयुक्त है। .
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मेलानिन
मेलानिन (melanin) एक प्राकृतिक रंगद्रव्य (पिगमेंट) है को पृथ्वी के अधिकतर जीवों में पाया जाता है, हालांकि मकड़ियों जैसे भी गिनती के कुछ जीव हैं जिनमें यह नहीं पाया गया है। जानवरों में मेलानिन टाइरोसीन (Tyrosine) नामक एक अमीनो अम्ल से बनता है। जीवों में मेलानिन का सबसे अधिक पाया जाने वाला रूप 'यूमेलेनिन' (eumelanin) कहलाता है और काले-भूरे रंग का होता है। मनुष्यों में यही बालों, त्वचा और आँखों को रंग देता है। मेलानिन का एक अन्य जीववैज्ञानिक रूप 'फ़ेओमेलानिन' (pheomelanin) है जो कुछ-कुछ लाल होता है। यह लाल बालों वाले और चित्तीदार त्वचा वाले व्यक्तियों में रंग देता है। .
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रेडियोसहन
रेडियोसहन (Radioresistance) किसी जीव की आयनकारी विकिरण (ionizing radiation) सहन करने की क्षमता को कहते हैं। यह विकिरण साधारण जीवों की कोशिकाओं और ऊतकों के लिये बहुत हानिकारक होता है और जानलेवा सिद्ध हो सकता है। अधिक मात्रा में आयनकारी विकिरण सह सकने वाले जीव रेडियोसहनी (radiodurants) कहलाते हैं। इनमें कुछ हद तक अपने शरीर में विकिरण द्वारा पहुँचाई गई हानि की मरम्म्त करने की क्षमता होती है। .
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रेडियोजैविकी
रेडियोजैविकी (Radiobiology) आयुर्विज्ञान की एक शाखा है जिसमें जीवों के ऊपर आयनकारी विकिरण (रेडियेशन) के प्रभाव का अध्ययन करा जाता है। आयनकारी विकिरण जीवों की कोशिकाओं और ऊतकों पर बहुत हानिकारक या जानलेवा प्रभाव रखती हैं लेकिन कुछ सन्दर्भों में उनकी सीमित मात्रा से चिकित्सा भी करी जाती है, मसलन कर्क रोग (कैंसर) के कुछ उपचारों में यह भी शामिल है। अधिक मात्रा में आयनकारी विकिरण प्राप्त होने के भयंकर दुषपरिणाम होते हैं, जिनमें ऊतकों का जल जाना और वर्षों बाद तक कर्करोग का हो जाना सम्मिलित हैं। शरीर के अंदर का दृष्य देखने के लिए हल्की मात्रा में ऍक्स किरणों से भी आयनकारी विकिरण प्राप्त होता है। .
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लिपिड द्विपरत
लिपिड द्विपरत (lipid bilayer) या फ़ॉस्फ़ोलिपिड द्विपरत (phospholipid bilayer) लिपिड अणुओं की दो परतों की बनी एक झिल्ली होती है। यह लगभग सभी जीवों की कोशिकाओं को चादर की तरह लपेटे रहती है। इसका काम हानिकारक रासायनों को बाहर रखना और लाभदायक रासायनों को भीतर लाना होता है। इस द्वीपरत के छिद्र केवल कुछ नैनोमीटर चौड़े ही होते हैं। यह ध्रुवीय होती है यानि को बाहर रखने और कणों को उनके विद्युतीय लक्षणों के आधार पर अंदर-बाहर जाने की अनुमति देती है। कोशिका के अलावा कोशिका के अन्दर के कई अंशों को भी उनकी अपनी लिपिड द्विपरत ने ढका हुआ होता है। लिपिड यौगिक अक्सर उभयसंवेदी (amphiphilic) होते हैं, यानि उनका एक भाग जलस्नेही और एक भाग जलविरोधी होता है। जब उन्हें किसी जलीय वातावरण में डाला जाए तो वह दो परत की चादरों में व्यवस्थित हो जाते हैं, जिसमें। जलस्नेही सिर बाहर की तरफ़ और जलविरोधी दुमें अन्दर की ओर होती हैं। यह द्वीपरत शरीर में कई स्थानों पर प्रयोग होती है, मसलन कोशिकाओं का बाहरी खोल इसी से बनी झिल्ली का निर्मित होता है। .
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लोक जीवविज्ञान
लोक जीवविज्ञान (Ethnobiology) वैज्ञानिक रूप से विभिन्न मानव संस्कृतियों का अमानवीय जीवों के साथ के सम्बन्ध का अध्ययन करता है। इसमें अन्य जीवों के साथ करे गये मानव-व्यवहार, प्रयोगों, इत्यादि को देखा जाता है। मानवों का बायोटा और पर्यावरण के साथ ऐतिहासिक और वर्तमान सम्बन्ध परखा जाता है, जो कि हर संस्कृति में बदलता रहता है। .
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शनि (ज्योतिष)
बण्णंजी, उडुपी में शनि महाराज की २३ फ़ीट ऊंची प्रतिमा शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:। अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥ भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है, तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है, तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं। .
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शल्यचिकित्सक टांका
शल्यचिकित्सक टांका (surgical suture) एक चिकित्सक उपचार होता है जिसमें एक सूई में आंततंतु या अन्य किसी सागग्री का बना धागा डालकर जीवों के ऊतकों को एक-साथ कसकर बाँधा जाता है। अक्सर इन टांकों का ध्येय होता है कि वह ऊतक पाकृतिक प्रक्रियायों से धीरे-धीरे जुड़ सकें। इन टांकों के अंत में अक्सर एक गाँठ बाँध दी जाती है। .
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शारीरिक योजना
शारीरिक योजना (body plan) किसी जीव के शरीर के ढाँचे व अकार, उसके अंगों और उनके आपस में काम करने के ढंग को कहा जाता है। जीव के बदन का आकार इस शारीरिक योजना का एक बुनियादी पहलू है और हर बहुकोशिकीय जीव की जाति की अपनी पहचाने जानी वाली शारीरिक योजना होती है।, William K. Purves, David Sadava, Gordon H. Orians, H. Craig Heller, pp.
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शुष्कपसंदी
शुष्कपसंदी (Xerophile, ज़ेरोफ़ाइल) ऐसे चरमपसंदी जीव होते हैं जो अति-शुष्क वतावरणों में पनप सकते हैं और प्रजनन कर सकते हैं। यह जीव मरुभूमियों की रेत में पाए जाते हैं जहाँ बहुत कम जल उपलब्ध होता है। खाद्य परिरक्षण में भी शुष्कपसंदियों का अध्ययन महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह जीव केवल खाना सुखा देने से नहीं रोके जा सकते हैं और यदि बड़ी संख्या में मौजूद हों तो उसे ख़राब कर देते हैं। .
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शीतपसंदी
शीतपसंदी (Psychrophiles, सायक्रोफ़ाइल; cryophiles, क्रायोफ़ाइल) ऐसे चरमपसंदी जीव होते हैं जो -१५ °सेंटीग्रेड या उस से भी ठन्डे वातावरणों में लम्बे अरसों तक रह कर फल-फूल सकते हैं और प्रजनन कर सकते हैं। अन्य परिभाषाओं में -२०° से +१०° सेंटीग्रेड के बीच पनपने वाले जीवों को इस वर्ग में डाला जाता है। आर्थरोबैक्टर (Arthrobacter) नामक बैक्टीरिया इसका उदाहरण है। .
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शीतजैविकी
शीतजैविकी (Cryobiology) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पृथ्वी के हिममण्डल (क्रायोस्फ़ीयर) और अन्य ठंडें स्थानों पर उपस्थित कम तापमान के जीवों पर होने वाले प्रभाव का अध्ययन करा जाता है। इसमें प्रोटीन, कोशिकाओं, ऊतकों, अंगों और पूरे जीव शरीरों पर (हाईपोथर्मिया से लेकर निम्नतापिकी तक) साधारण से कम तापमान के असर को परखा-समझा जाता है। .
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शीतजीवी
शीतजीवी (Cryozoa, क्रायोज़ोआ) ऐसे जीव होते हैं जो लम्बे अरसे तक शून्य सेंटिग्रेड से कम तापमान में जीवित रह सकें। शुक्राणु और कई प्रकार के जीवाणु -196° सेंटिग्रेड के द्रव नाइट्रोजन द्वारा जमाए जाते हैं और गरम होने पर अक्सर जीवित रहते हैं। शीतपसंदी नामक कुछ ऐसे भी जीव हैं जो कम तापमान में केवल जीवित ही नहीं रहते बल्कि फलते-फूलते हैं और प्रजनन क्रीयाओं द्वारा फैलते भी हैं। .
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सर्वार्थसिद्धि
सर्वार्थसिद्धि एक प्रख्यात जैन ग्रन्थ हैं। यह आचार्य पूज्यपाद द्वारा प्राचीन जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र पर लिखी गयी टीका हैं। इसमें तत्त्वार्थसूत्र के प्रत्येक श्लोक को क्रम-क्रम से समझाया गया है। .
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सागरगत ज्वालामुखी
सागरगत ज्वालामुखी (submarine volcanoes) सागर और महासागरों में पृथ्वी की सतह पर स्थित में चीर, दरार या मुख होते हैं जिनसे मैग्मा उगल सकता है। बहुत से सागरगत ज्वालामुखी भौगोलिक तख़्तों के हिलने वाले क्षेत्रों में होते हैं, जिन्हें मध्य-महासागर पर्वतमालाओं के रूप में देखा जाता है। अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी पर उगला जाने वाला 75% मैग्मा इन्हीं मध्य-महासागर पर्वतमालाओं में स्थित सागरगत ज्वालामुखियों से आता है।Martin R. Speight, Peter A. Henderson, "Marine Ecology: Concepts and Applications", John Wiley & Sons, 2013.
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संयंत्र सेल
संयंत्र सेल संरचना वनस्पति कोशिकाएं सुकेन्द्रिक कोशिकाएं हैं जो अन्य यूकार्योटिक जीवों की कोशिकाओं से कई महत्वपूर्ण तरीकों से भिन्न होती हैं। उनके विशिष्ट गुण निम्न प्रकार हैं -.
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सूर्य देवता
कोई विवरण नहीं।
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जल प्रदूषण
जल प्रदूषण, से अभिप्राय जल निकायों जैसे कि, झीलों, नदियों, समुद्रों और भूजल के पानी के संदूषित होने से है। जल प्रदूषण, इन जल निकायों के पादपों और जीवों को प्रभावित करता है और सर्वदा यह प्रभाव न सिर्फ इन जीवों या पादपों के लिए अपितु संपूर्ण जैविक तंत्र के लिए विनाशकारी होता है। जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुये प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जल धारायों में विसर्जित कर दिया जाना है। .
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जिन्न
'जिन्न' एक काल्पनिक रूप में जादूई शक्तियो से पूर्ण इंसानो का नाम है। यह कभी उन इंसानों (पुरुष) के लिए प्रयोग होता है जो मात्र अपनी इच्छा से अपने जीवन के सभी जरूरी कार्ये कर सकते है। वह गायब हो सकते है, उड़ सकते हैं, किसी भी जीव या वस्तु का रूप धारण कर सकते है, किसी भी स्थान तक मात्र अपनी इच्छा से पहुच सकते है, और किसी भी वस्तु को मात्र अपनी इच्छा से पा सकते हैं। वह उन सभी कार्यों को जिसे एक इंसान कई सालों की मेहनत से कर पाता है वह मात्र अपनी इच्छा से कर सकते हैं। इस तरह के जादूई शक्तियो से पूर्ण इंसानो का धार्मिक किताबों व कहानियों में तो जिक्र है पर इनकी सच्चाई का कोई पुख्ता सबूत ना होने की वजह से विज्ञान इन्हे अंधविस्वास मानता है। श्रेणी:काल्पनिक जीव रूप.
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जैन धर्म
जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .
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जैन धर्म में भगवान
जैन धर्म में भगवान अरिहन्त (केवली) और सिद्ध (मुक्त आत्माएँ) को कहा जाता है। जैन धर्म इस ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति, निर्माण या रखरखाव के लिए जिम्मेदार किसी निर्माता ईश्वर या शक्ति की धारणा को खारिज करता है। जैन दर्शन के अनुसार, यह लोक और इसके छह द्रव्य (जीव, पुद्गल, आकाश, काल, धर्म, और अधर्म) हमेशा से है और इनका अस्तित्व हमेशा रहेगा। यह ब्रह्माण्ड स्वयं संचालित है और सार्वभौमिक प्राकृतिक क़ानूनों पर चलता है। जैन दर्शन के अनुसार भगवान, एक अमूर्तिक वस्तु एक मूर्तिक वस्तु (ब्रह्माण्ड) का निर्माण नहीं कर सकती। जैन ग्रंथों में देवों (स्वर्ग निवासियों) का एक विस्तृत विवरण मिलता है, लेकिन इन प्राणियों को रचनाकारों के रूप में नहीं देखा जाता है; वे भी दुखों के अधीन हैं और अन्य सभी जीवित प्राणियों की तरह, अपनी आयु पूरी कर अंत में मर जाते है। जैन धर्म के अनुसार इस सृष्टि को किसी ने नहीं बनाया। देवी, देवताओं जो स्वर्ग में है वह अपने अच्छे कर्मों के कारण वहाँ है और भगवान नहीं माने जा सकते। यह देवी, देवता एक निशित समय के लिए वहाँ है और यह भी मरण उपरांत मनुष्य बनकर ही मोक्ष जा सकते है। जैन धर्म के अनुसार हर आत्मा का असली स्वभाव भगवंता है और हर आत्मा में अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान और अनंत सुख है। आत्मा और कर्म पुद्गल के बंधन के कारण यह गुण प्रकट नहीं हो पाते। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र के माध्यम से आत्मा के इस राज्य को प्राप्त किया जा सकता है। इन रतंत्रय के धारक को भगवान कहा जाता है। एक भगवान, इस प्रकार एक मुक्त आत्मा हो जाता है - दुख से मुक्ति, पुनर्जन्म, दुनिया, कर्म और अंत में शरीर से भी मुक्ति। इसे निर्वाण या मोक्ष कहा जाता है। इस प्रकार, जैन धर्म में अनंत भगवान है, सब बराबर, मुक्त, और सभी गुण की अभिव्यक्ति में अनंत हैं। जैन दर्शन के अनुसार, कर्म प्रकृति के मौलिक कण होते हैं। जिन्होंने कर्मों का हनन कर केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उन्हें अरिहन्त कहते है। तीर्थंकर विशेष अरिहन्त होते है जो 'तीर्थ' की रचना करते है, यानी की जो अन्य जीवों को मोक्ष-मार्ग दिखाते है।जैन धर्म किसी भी सर्वोच्च जीव पर निर्भरता नहीं सिखाता। तीर्थंकर आत्मज्ञान के लिए रास्ता दिखाते है, लेकिन ज्ञान के लिए संघर्ष ख़ुद ही करना पड़ता है। .
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जैन ध्वज
जैन ध्वज जैन ध्वज पाँच रंगो से मिलकर बना एक ध्वज है। इसके पाँच रंग है: लाल, सफ़ेद, पीला, हरा और नीला/काला। जैन ध्वज में स्वस्तिक रत्न त्रय और सिद्धशिला का उपयोग अरिहंत और आचार्य दोनों के प्रतिक रंगो पर किया जाता है ! कुछ लोग इसे पीले रंग पर रेखांकित करते हैं तथा कुछ सफ़ेद रंग पर ...
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जैव विविधता
--> वर्षावन जैव विविधता जीवन और विविधता के संयोग से निर्मित शब्द है जो आम तौर पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (युएनईपी), के अनुसार जैवविविधता biodiversity विशिष्टतया अनुवांशिक, प्रजाति, तथा पारिस्थितिकि तंत्र के विविधता का स्तर मापता है। जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है। पृथ्वी पर जीवन आज लाखों विशिष्ट जैविक प्रजातियों के रूप में उपस्थित हैं। सन् 2010 को जैव विविधता का अंतरराष्ट्रीय वर्ष, घोषित किया गया है। .
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जैवझिल्ली
जैवझिल्ली (biomembrane, biological membrane) किसी जीव के शरीर में किसी अंश को ढकने वाली या दो अंशों को अलग करने वाली अर्धपारगम्य झिल्ली होती है। जैवझिल्लियाँ अक्सर लिपिड द्विपरत (lipid bilayer) की बनी होती हैं जिसमें कुछ प्रोटीन स्थाई या अस्थाई रूप से जुड़े या धंसे हुए होते हैं और जिनका प्रयोग झिल्ली के पार संचार और रसायनों व आयनों की आवाजाही के लिए किया जाता है। .
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जैवप्रौद्योगिकी
जैवप्रौद्योगिकी या जैवतकनीकी तकनीकी का वो विषय है जो अभियान्त्रिकी और तकनीकी के डाटा और तरीकों को जीवों और जीवन तन्त्रों से सम्बन्धित अध्ययन और समस्या के समाधान के लिये उपयोग करता है। जिन विश्वविद्यालयों में ये अलग निकाय नहीं होता, वहाँ इसे रासायनिक अभियान्त्रिकी, रसायन शास्त्र या जीव विज्ञान निकाय में रख दिया जाता है। जैव प्रौद्योगिकी लागू जीव विज्ञान के एक क्षेत्र है कि इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और अन्य bioproducts आवश्यकता क्षेत्रों में रहने वाले जीवों और bioprocesses का इस्तेमाल शामिल है। जैव प्रौद्योगिकी भी निर्माण प्रयोजन के लिए इन उत्पादों का इस्तेमाल करता.
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जीन व्यवहार
कोशिका विज्ञान और अनुवांशिकी में जीन व्यवहार (gene expression) वह प्रक्रिया होती है जिसमें किसी जीन में उपस्थित सूचना के प्रयोग से किसी जीन उत्पाद का निर्माण होता है। यह उत्पाद अक्सर प्रोटीन होते हैं लेकिन कुछ जीनों का कार्य अंतरण आर॰ऍन॰ए॰ (transfer RNA) की उत्पत्ति होता है। विश्व के सभी ज्ञात जीवों की जीववैज्ञानिक प्रक्रियाओं के लिए जीन व्यवहार आवश्यक है। यह ज़रूरी नहीं है कि किसी जीव की जीनों में उपस्थित हर सम्भव जीन व्यवहार सक्रीय हो। कई जीन व्यवहार जीव की परिस्थितियों के आधार पर सकीय या असक्रीय होते हैं। मानवों में बालों का सफ़ेद हो जाने के पीछे साधारणत जीन व्यवहार होता है, जिसमें केश श्वेत कर देने का व्यवहार किसी परिस्थिति के कारण या बढ़ती आयु में स्वयं सक्रीय हो जाता है। .
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जीव (बहुविकल्पी)
जीव शब्द का प्रयोग जीवित प्राणियों के लिए किया जाता है।.
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जीव (हिन्दू धर्म)
जीव शब्द का प्रयोग जीवित प्राणियों के लिए किया जाता है। जीव शब्द का प्रयोग जीव विज्ञान में सभी जीवन-सन्निहित प्राणियों के लिए किया जाता हैं। जैन ग्रंथों, हिन्दू धर्म ग्रंथो, बौद्धधर्म एवं सूफी धर्म ग्रंथो में इस शब्द का प्रयोग किया गया हैं। .
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जीव विज्ञान
जीवविज्ञान भांति-भांति के जीवों का अध्ययन करता है। जीवविज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। इस विज्ञान में हम जीवों की संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में पढ़ते हैं। आधुनिक जीव विज्ञान एक बहुत विस्तृत विज्ञान है, जिसकी कई शाखाएँ हैं। 'बायलोजी' (जीवविज्ञान) शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क और ट्रविरेनस नाम के वैज्ञानिको ने १८०२ ई० में किया। जिन वस्तुओं की उत्पत्ति किसी विशेष अकृत्रिम जातीय प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है, जीव कहलाती हैं। इनका एक परिमित जीवनचक्र होता है। हम सभी जीव हैं। जीवों में कुछ मौलिक प्रक्रियाऐं होती हैं.
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जीवविज्ञान में सममिति
जीवविज्ञान में सममिति (symmetry in biology) किसी जीव में समान रूप के अंगों की संतुलित उपस्थिति को कहते हैं, मसलन मनुष्यों में संतुलित व्यवस्था से एक बायाँ और उसी के जैसा एक दायाँ हाथ होता है। जीवविज्ञान में कई प्रकार की सममिति देखी जाती है और ऐतिहासिक रूप में इसका जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में काफ़ी महत्व रहा है। .
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वन पारिस्थितिकी
क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया में डैनट्री वर्षावन. वन पारिस्थितिकी वन में परस्पर संबंधी पद्धतियों, प्रक्रियाओं, वनस्पतियों, पशुओं और पारिस्थितिकी तंत्रों का वैज्ञानिक अध्ययन है। वन प्रबंधन को वन विज्ञान, वन-संवर्धन और वन प्रबंधन के नाम से जाना जाता है। एक वन पारिस्थितिकी तंत्र एक प्राकृतिक वुडलैंड इकाई है जिसमें सभी पौधे, जानवर और सूक्ष्म-जीव (जैविक घटक) शामिल हैं और वे उस क्षेत्र में वातावरण के सभी भौतिक रूप से मृत (अजैव) कारकों के साथ मिलकर कार्य करते हैं। उत्तरी कैलिफोर्निया के लाल लकड़ी वन, में लाल लकड़ी पेड़, जहां कई लाल लकड़ी के पेड़ों को संरक्षण और दीर्घायु के लिए प्रबंधित किया जाता है। वन पारिस्थितिकी, पारिस्थितिक अध्ययन के जैविक रूप से उन्मुख वर्गीकरण की एक शाखा है (जो संगठनात्मक स्तर या जटिलता पर आधारित एक वर्गीकरण के विपरीत है, उदाहरण के लिए जनसंख्या या समुदाय पारिस्थितिकी).
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विद्युतभान
विद्युतभान (Electroreception) कुछ जीवों में अपने वातावरण में उपस्थित विद्युतक्षेत्रों व अन्य विद्युत प्रभावों को बोध करने की क्षमता होती है। यह लगभग हमेशा जल में रहने वाले प्राणियों में ही पाई जाती है क्योंकि खारा पानी वायु से कहीं अधिक अच्छा विद्युत चालक होता है। इस शक्ति के द्वारा कई परभक्षी जलीय प्राणी शिकार करते हैं क्योंकि मांसपेशी-प्रयोग में विद्युत प्रयोग होती है और परभक्षी अपने ग्रास में उपस्थित इस विद्युत प्रभाव को खोज लेती हैं। .
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वंश समूह (जीवविज्ञान)
कुल के बीच की श्रेणी है वंश समूह (tribe) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। यह वंश (genus) से ऊपर लेकिन कुल (family) से नीचे होती है, यानि एक वंश समूह में एक से अधिक वंश आते हैं। .
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व्यक्तिपरकता
व्यक्तिपरकता (Subjectivity) चेतना, वास्तविकता और सत्य के बोध से सम्बन्धित वह दार्शनिक अवधारणा है जिसमें किसी व्यक्ति या अन्य बोध करने वाले जीव को वास्तविकता वसी प्रतीत होती है जैसे उसके अपने स्वयं के गुणों द्वारा प्रभावित हो। यह वस्तुनिष्ठता के विपरीत होती है जिसमें तथ्य वैश्विक-रूप से सत्य होते हैं और बोध करने वाले व्यक्ति या जीव के भीतरी गुणों पर निर्भर नहीं होते। उदाहरण के लिये कोई व्यक्ति क्रोधित हो तो उसे व्यक्तिपरक रूप से कोई अन्य व्यक्ति शत्रु प्रतीत हो सकता है जबकी वस्तुनिष्ठ सत्य में यह अन्य व्यक्ति मित्र हो। .
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वेद
वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.
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गतिशीलता
गतिशीलता (motility) जीवविज्ञान में ऊर्जा का प्रयोग करके स्वयं को जगह-से-जगह हिला पाने की क्षमता को कहते हैं। ज़्यादातर जानवर गतिशील होते हैं हालांकि यह शब्द एककोशिकीय और सरल बहुकोशिकीय जीवों के लिए भी प्रयोग होता है। कभी-कभी इस शब्द को शरीर के अन्दर खाना और अन्य चीज़ों को स्थान-से-स्थान हिला पाने की क्षमता के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।, pp.
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गुरुत्वानुवर्तन
गुरुत्वानुवर्तन (gravitropism, geotropism) किसी जीव की ऐसी वृद्धि होती है जो गुरुत्वाकर्षक बल के उद्दीपन से प्रभावित हो। यदी बढ़ाव गुरुत्वाकर्षण की ओर हो तो इसे धन-गुरुत्वानुवर्तन (positive gravitropism) कहते हैं और यदि यह गुरुत्वाकर्षण से विपरीत दिशा में हो तो इसे ऋण-गुरुत्वानुवर्तन (negative gravitropism) कहते हैं। पौधों और फफूंद (फ़ंगस) के तनों में ऋण-गुरुत्वानुवर्तन होता है जिस कारणवश वे ऊपर की दिशा में उगते हैं जबकि उनकी जड़ों में धन-गुरुत्वानुवर्तन होता है। .
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आर॰ऍन॰ए॰ पॉलिमरेज़
आर॰ऍन॰ए॰ पॉलिमरेज़ (RNA polymerase), जो संक्षिप्त रूप से आर॰ऍन॰ए॰पी॰ (RNAP) कहलाता है, एक प्रकार के प्रकिण्व समूह के सदस्यों को कहा जाता है जो हर जीव में पाया जाता है और जिसपर सभी जीव निर्भर हैं। RNAP दो-रज्जुओं वाले डी॰ऍन॰ए॰ को खोल देता है, जिस से उधड़े हुए डी॰ऍन॰ए॰ अणु के न्यूक्लियोटाइड अणु की बाहरी ओर आ जाते हैं और उन्हें साँचे की तरह प्रयोग कर के आर॰ऍन॰ए॰ का निर्माण करा जा सकता है। इस निर्माण प्रक्रिया को प्रतिलेखन (transcription) कहते हैं। .
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कशाभिक
एक कशाभिक या फ्लैगेलेट (अंग्रेज़ी: flagellate) कशाभिका नामक एक या अनेक चाबुक-जैसी परिशिष्टों वाला एक कोशिका या एक जीव हैं। Category:कोशिका जीवविज्ञान Category:सूक्ष्मजैविकी.
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कृषि
कॉफी की खेती कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और पौधों (फसलों) को उगाया गया, जिससे अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। इसने अधिक घनी आबादी और स्तरीकृत समाज के विकास को सक्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है। तकनीकों और विशेषताओं की बहुत सी किस्में कृषि के अन्तर्गत आती है, इसमें वे तरीके शामिल हैं जिनसे पौधे उगाने के लिए उपयुक्त भूमि का विस्तार किया जाता है, इसके लिए पानी के चैनल खोदे जाते हैं और सिंचाई के अन्य रूपों का उपयोग किया जाता है। कृषि योग्य भूमि पर फसलों को उगाना और चारागाहों और रेंजलैंड पर पशुधन को गड़रियों के द्वारा चराया जाना, मुख्यतः कृषि से सम्बंधित रहा है। कृषि के भिन्न रूपों की पहचान करना व उनकी मात्रात्मक वृद्धि, पिछली शताब्दी में विचार के मुख्य मुद्दे बन गए। विकसित दुनिया में यह क्षेत्र जैविक खेती (उदाहरण पर्माकल्चर या कार्बनिक कृषि) से लेकर गहन कृषि (उदाहरण औद्योगिक कृषि) तक फैली है। आधुनिक एग्रोनोमी, पौधों में संकरण, कीटनाशकों और उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है और साथ ही यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक क्षति का कारण भी बना है और इसने मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चयनात्मक प्रजनन और पशुपालन की आधुनिक प्रथाओं जैसे गहन सूअर खेती (और इसी प्रकार के अभ्यासों को मुर्गी पर भी लागू किया जाता है) ने मांस के उत्पादन में वृद्धि की है, लेकिन इससे पशु क्रूरता, प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाओं के स्वास्थ्य प्रभाव, वृद्धि हॉर्मोन और मांस के औद्योगिक उत्पादन में सामान्य रूप से काम में लिए जाने वाले रसायनों के बारे में मुद्दे सामने आये हैं। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है। साथ ही सजावटी या विदेशी उत्पादों की भी एक श्रेणी है। वर्ष 2000 से पौधों का उपयोग जैविक ईंधन, जैवफार्मास्यूटिकल्स, जैवप्लास्टिक, और फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में किया जा रहा है। विशेष खाद्यों में शामिल हैं अनाज, सब्जियां, फल और मांस। रेशे में कपास, ऊन, सन, रेशम और सन (फ्लैक्स) शामिल हैं। कच्चे माल में लकड़ी और बाँस शामिल हैं। उद्दीपकों में तम्बाकू, शराब, अफ़ीम, कोकीन और डिजिटेलिस शामिल हैं। पौधों से अन्य उपयोगी पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जैसे रेजिन। जैव ईंधनों में शामिल हैं मिथेन, जैवभार (बायोमास), इथेनॉल और बायोडीजल। कटे हुए फूल, नर्सरी के पौधे, उष्णकटिबंधीय मछलियाँ और व्यापार के लिए पालतू पक्षी, कुछ सजावटी उत्पाद हैं। 2007 में, दुनिया के लगभग एक तिहाई श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। हालांकि, औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद से कृषि से सम्बंधित महत्त्व कम हो गया है और 2003 में-इतिहास में पहली बार-सेवा क्षेत्र ने एक आर्थिक क्षेत्र के रूप में कृषि को पछाड़ दिया क्योंकि इसने दुनिया भर में अधिकतम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया। इस तथ्य के बावजूद कि कृषि दुनिया के आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों की रोजगार उपलब्ध कराती है, कृषि उत्पादन, सकल विश्व उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद का एक समुच्चय) का पांच प्रतिशत से भी कम हिस्सा बनता है। .
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कैम्ब्रियाई विस्तार
ओपाबिनिया के जीवाश्म (फ़ॉसिल) मिलने से कैम्ब्रियाई विस्तार के अध्ययन में वैज्ञानिक रूचि बढ़ी कैम्ब्रियाई विस्तार या कैम्ब्रियाई विस्फोट (Cambrian explosion) आज से लगभग 53 करोड़ साल पहले जानवरों के संघों में अचानक हुए विस्तार को कहते हैं। जीवाश्मों (फ़ॉसिल) के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि आज से 58 करोड़ वर्ष से पहले ज़्यादातर जीव सरल थे और आमतौर पर एककोशिकीय थे जो कभी-कभी समूहों में एकत्रित हो जाया करते थे। इसके बाद के 7 से 8 करोड़ सालों में अचानक क्रम-विकास (एवोल्युशन) ने तेज़ी पकड़ी जिस से भारी संख्या में जातियाँ उभरनी और विलुप्त होनी शुरू हो गई और जल्दी ही जीवों में आज जैसे विविधता पैदा हो गई।, Ricardo Amils, José Cernicharo Quintanilla, Henderson James Cleaves, pp.
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केन्द्रिका
जीवविज्ञान और कोशिका विज्ञान में केन्द्रिका (nucleolus, न्यूक्लिओलस) वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की कोशिकाओं के कोशिका केन्द्रकों (cell nucleus) के भीतर केन्द्रकद्रव्य में स्थित सबसे बड़ी सघन संरचना होती है। यह प्रोटीन, डी ऍन ए और आर ऍन ए के साथ बनी होती है। .
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केन्द्रक झिल्ली
केन्द्रक झिल्ली (nuclear membrane) या केन्द्रक आवरक (nuclear envelope) वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की कोशिकाओं के कोशिका केन्द्रक (cell nucleus) को घेरने वाली झिल्ली होती है। यह दो लिपिड द्विपरतों से बनी हुई होती है (एक बाहरी और एक भीतरी)। कोशिका की अधिकांश अनुवांशिक (जेनेटिक) सामग्री केन्द्रक झिल्ली के भीतर सुरक्षित रहती है। इस झिल्ली में कई केन्द्रक छिद्र (nuclear pores) होते हैं जिनके द्वारा केन्द्रक से कोशिका के अन्य भागों के बीच कुछ सामग्री आ-जा सकती है। बाहरी केन्द्रक झिल्ली आंतरद्रव्यजालिका (endoplasmic reticulum) की बाहरी झिल्ली के साथ जुड़ी हुई होती है। भीतरी केन्द्रक झिल्ली केन्द्रक के अन्दर केन्द्रक आव्यूह (nuclear matrix) से जुड़ी होती है जिस से केन्द्रक के आकार को ढांचीय सहारा मिलता है। केन्द्रक झिल्ली औसतन २०-४० नैनोमीटर चौड़ी होती है। .
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केन्द्रक आव्यूह
जीवविज्ञान और कोशिका विज्ञान में केन्द्रक आव्यूह (nuclear matrix) रेशों का एक जाल होता है जो वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की कोशिकाओं के कोशिका केन्द्रकों (cell nucleus) में फैला हुआ होता है। लेकिन जहाँ कोशिका कंकाल एक स्थिर ढांचा होता है वहाँ केन्द्रक आव्यूह के बारे में अनुम्मान है कि यह एक लचीला ढांचा होता है जो केन्द्रक को कई खुले कक्षों में विभाजित करता है जिनमें अणु स्वतंत्रता से पूरे केन्द्रक में आ-जा सकते हैं। हालांकि यह समझा जाता है कि केन्द्रक आव्यूह केन्द्रक को ढांचीय सहारा प्रदान करता है, इसके अन्य कार्यों को लेकर वैज्ञानिकों में विवाद है। .
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केन्द्रकद्रव्य
केन्द्रकद्रव्य (nucleoplasm, न्युक्लीयोप्लाज़्म) वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की कोशिकाओं के कोशिका केन्द्रकों (cell nucleus) में फैला हुआ एक द्रव होता है। यह एक प्रकार का जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज़्म) है। केन्द्रकद्रव्य केन्द्रक झिल्ली से घिरा हुआ होता है जो उसे कोशिकाद्रव्य (साइटोप्लाज़्म) से अलग रखती है। केन्द्रक की केन्द्रिका केन्द्रकद्रव्य में स्थित होती है। .
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कोरल सर्प
कोरल सर्प एलैपिड सर्पों के एक बड़े समूह को कहते हैं, जिसे दो भिन्न समूहों, पुरातन विश्व कोरल सर्प (ओल्ड वर्ल्ड कोरल स्नेक्स) एवं नवीन विश्व कोरल सर्प (न्यू वर्ल्ड कोरल स्नेक्स) में बांटा जा सकता है।पुरातन विश्व समूह में १६ प्रजातियां तथा नवीन विश्व समूह में ६५ प्रजातियां आती हैं। .
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कोशिका केन्द्रक
केन्द्रक का चित्र कोशिका विज्ञान में केन्द्रक (लातीनी व अंग्रेज़ी: nucleus, न्यूक्लियस) वनस्पतियों, प्राणियों और सुकेन्द्रिक जीवों की अधिकांश कोशिकाओं में एक झिल्ली द्वारा बंद एक भाग (या कोशिकांग) होता है। सुकेन्द्रिक जीवों की हर कोशिका में अधिकतर एक केन्द्रक होता है, लेकिन स्तनधारियों की लाल रक्त कोशिकाओं में कोई केन्द्रक नहीं होता और ओस्टियोक्लास्ट कोशिकाओं में कई केन्द्रक होते हैं। प्राणियों के केन्द्रकों का व्यास लगभग ६ माइक्रोमीटर होता है और यह उनकी कोशिकाओं का सबसे बड़ा कोशिकांग होता है। कोशिका केन्द्रकों में कोशिकाओं की अधिकांश आनुवंशिक सामग्री होती है, जो कई लम्बे डी॰ ऍन॰ ए॰ अणुओं में सम्मिलित होती है, जिनके रेशों कई प्रोटीनों के प्रयोग से गुण सूत्रों (क्रोमोज़ोमों) में संगठित होते हैं। इन गुण सूत्रों में उपस्थित जीन कोशिका का जीनोम होते हैं और कोशिका की प्रक्रियाओं को संचालित करते हैं। केन्द्रक इन जीनों को सुरक्षित रखता है और जीन व्यवहार संचालित करता है, यानि केन्द्रक कोशिका का नियंत्रणकक्ष होता है। पूरा केन्द्रक एक लिपिड द्विपरत की बनी झिल्ली द्वारा घिरा होता है जो केन्द्रक झिल्ली (nuclear membrane) कहलाती है और जो केन्द्रक के अन्दर की सामग्री को कोशिकाद्रव्य से पृथक रखता है। केन्द्रक के भीतर केन्द्रक आव्यूह (nuclear matrix) कहलाने वाला रेशों का ढांचा होता है जो केन्द्रक को आकार बनाए रखने के लिए यांत्रिक सहारा देता है, ठीक उसी तरह जैसे कोशिका कंकाल पूरी कोशिका को यांत्रिक सहारा देता है। .
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अनुवंशिक अभियांत्रिकी
जनुकीय अभियांत्रिकी या अनुवांशिक अभियांत्रिकी (अंग्रेज़ी: Genetic engineering, जेनेटिक इंजिनीयरिंग) किसी जीव के संजीन (genome, जीनोम) में हस्तक्षेप कर के उसे परिवर्तित करने की तकनीकों व प्रणालियों - तथा उनमें विकास व अध्ययन की चेष्टा - का सामूहिक नाम है। मानव प्राचीन काल से ही पौधों व जीवों की प्रजनन क्रियाओं में ह्स्तक्षेप करके उनमें नस्लों को विकसित करता आ रहा है (जिसमें लम्बा समय लगता है) लेकिन इसके विपरीत जनुकीय अभियांत्रिकी में सीधा आण्विक स्तर पर रासायनिक और अन्य जैवप्रौद्योगिक विधियों से ही जीवों का जीनोम बदला जाता है। .
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अपच्छेदन
अपच्छेदन (Abscission) किसी जीव के किसी अंग के अलग होकर गिर जाने की प्रक्रिया को कहते हैं। उदाहरण के लिये वृक्षों से पत्तों, फलों, फूलों या बीजों का गिरना औपचारिक रूप से जीव विज्ञान में अपच्छेदन कहलाता है। इसी तरह से प्राणी विज्ञान में किसी स्वस्थय प्राणी द्वारा नियमित रूप से त्वचा, बाल या पंजे का झड़ना, या फिर किसी परभक्षी से बचने के लिये कुछ प्राणियों द्वारा जान-बूझकर अपनी पूँछ को अलग कर देना भी अपच्छेदन कहलाता है। कोशिका विज्ञान में कोशिकाद्रव्य विभाजन (cytokinesis, साइटोकाइनीसिस) में किसी कोशिका के बंटकर दो अलग पुत्री कोशिकाओं का बन जाना भी अपच्छेदन के नाम से जाना जाता है। .
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अंतर्सहजीवी
अंतर्सहजीवी (endosymbiont) ऐसा जीव होता है जो एक सहजीवी-सम्बन्ध में किसी अन्य जीव के शरीर या कोशिकाओं के अन्दर वास करता हो। यह आवश्यक नहीं है कि यह सम्बन्ध पारस्परिक रूप से लाभदायक हो। इसका एक उदाहरण ऐसे बैक्टीरिया हैं जो मानवों की जठरांत्र क्षेत्र में रहती है। यह बक्टीरिया मानव द्वारा खाये गये भोजन के पाचन में सहायक होते हैं और स्वयं इस भोजन से इनका पोषण होता है। .
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अंग तंत्र
तंत्र का एक उदाहरण - तंत्रिका तंत्र; इस चित्र में दिखाया गया है कि यह तंत्र मूलत: चार अंगों से मिलकर बना है: मस्तिष्क, प्रमस्तिष्क (cerebellum), मेरुदण्ड (spinal cord) तथा तंत्रिकाएं (nerve) नाना प्रकार के ऊतक (tissue) मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों (organs) का निर्माण करते हैं। इसी प्रकार, एक प्रकार के कार्य करनेवाले विभिन्न अंग मिलकर एक अंग तंत्र (organ system) का निर्माण करते हैं। कई अंग तंत्र मिलकर जीव (जैसे, मानव शरीर) की रचना करते हैं। .
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उद्दीपक (शरीरविज्ञान)
शरीरविज्ञान में उद्दीपक (stimulus) बाहरी या भीतरी परिवेश में हुए ऐसे किसी प्रतीत हो सकने वाले बदलाव को कहते हैं। उद्दीपन के जवाब में किसी जीव या अंग की प्रतिक्रिया करने की क्षमता को संवेदनशीलता (sensitivity) कहते हैं। .
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