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जलयान

सूची जलयान

न्यूयॉर्क पत्तन पर इटली का जलयान ''' अमेरिगो वेस्पुक्की''' (१९७६) जलयान या पानी का जहाज (ship), पानी पर तैरते हुए गति करने में सक्षम एक बहुत बडा डिब्बा होता है। जलयान, नाव (बोट) से इस मामले में भिन्न भिन्न है कि जलयान, नाव की तुलना में बहुत बडे होते हैं। जलयान झीलों, समुद्रों एवं नदियों में चलते हैं। इन्हें अनेक प्रकार से उपयोग में लाया जाता है; जैसे - लोगों को लाने-लेजाने के लिये, सामान ढोने के लिये, मछली पकडने के लिये, मनोरंजन के लिये, तटों की देखरेख एवं सुरक्षा के लिये तथा युद्ध के लिये। जहाज समुद्र के आवागमन तथा दूर देशों की यात्रा के लिये जिन बृहद् नौकाओं का उपयोग प्राचीनकाल से होता आया है उन्हें जहाज कहते है। पहले जहाज अपेक्षाकृत छोटे होते थे तथा लकड़ी के बनते थे। प्राविधिक तथा वैज्ञानिक उन्नति के आधुनिक काल में बहुत बड़े, मुख्यत: लोहे से बने तथा इंजनों से चलनेवाले जहाज बनते हैं। .

62 संबंधों: चन्द्रशेखर वेंकटरमन, टैंकर (जहाज), टॉरपीडो, एंगारी, डॉकयार्ड, तटबन्ध, तटरक्षक, त्रिकोणीय सर्वेक्षण, तेल रिसाव, दाराशा नौशेरवां वाडिया, द्वितीय विश्वयुद्ध काल की प्रौद्योगिकी, नाव, नाविक, नौइंजीनियरी, नोदक, नोदक (जलयान), परमाणु भट्ठी, परिवहन की विधि, प्रचलित गलत धारणाओं की सूची, प्रकाशस्तम्भ, पोतनिर्माण, फुकुओका, फ्रमजी कोवासजी बानाजी, बन्दरगाह, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारती शिपयार्ड लिमिटेड, भारतीय नौवहन निगम, युद्धपोत, रडार, रुडॉल्फ डीजल, लार्सन एंड टूब्रो, लैंकाशिर, समुद्रीय मानचित्र, संकेतन, स्वेज़ नहर, सैनिक वैश्वीकरण, सू नहर, हिमभंजक, जड़त्वीय संचालन प्रणाली, जलयान की घंटी, जलविमान, जहाजरानी का इतिहास, जिब्राल्टर, जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन, घूर्णाक्षस्थापी दिक्सूचक, विचुम्बकन, व्यावहारिक गणित, खंभात, गोथनबर्ग, गोदी, ..., ऑक्लैण्ड, औद्योगिक क्रांति, इस्पात, इंजन स्टार्टर, कर्मीदल, कायसाँ, कालमापी, कालेकौए का विश्वभ्रमण, क्वारंटीन, अरित्र, उत्प्लावन बल, उत्प्लव सूचकांक विस्तार (12 अधिक) »

चन्द्रशेखर वेंकटरमन

सीवी रमन (तमिल: சந்திரசேகர வெங்கடராமன்) (७ नवंबर, १८८८ - २१ नवंबर, १९७०) भारतीय भौतिक-शास्त्री थे। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष १९३० में उन्हें भौतिकी का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार उनके ही नाम पर रामन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। १९५४ ई. में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया तथा १९५७ में लेनिन शान्ति पुरस्कार प्रदान किया था। .

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टैंकर (जहाज)

वाणिज्यिक कच्चे तेल सुपरटैंकर अबकैक. एक टैंकर (या टैंक शिप या टैंकशिप) एक जहाज होता है जो विशाल मात्रा में तरल पदार्थों के परिवहन करने की दृष्टि से बनया जाता है। टैंक शिप के प्रमुख प्रकारों के अंतर्गत तेल के टैंकर, रसायन टैंकर और द्रवित प्राकृतिक गैस संवाहक आते हैं। .

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टॉरपीडो

तॉरपीडो तारपीडो (Toropedo) एक स्वचलित विस्पोटक प्रक्षेपास्त्र है जिसे किसी पोत से जल की सतह के ऊपर या नीचे दागा जा सकता है। यह प्रक्षेपास्त्र जल सतह के नीचे ही चलता है। लक्ष्य से टकराने से अथवा समीप आने पर इसमे विस्पोट हो जाता है। तारपीडो अंतर्जलीय (.

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एंगारी

एंगारी (Angary; लैटिन: jus angariae; फ्रेंच: droit d'angarie; जर्मन: Angarie; ग्रीक: ἀγγαρεία, angareia से व्युत्पन्न) शब्द प्राचीन फारस की राजकीय संदेशहर सेवा (रायल कीरियर सर्विस) के नामकरण से प्राप्त हुआ है। वहाँ से ग्रीक और लातिनी में 'दूत' के अर्थ में यह शब्द प्रचलित हुआ। वर्तमान में यह अन्तरराष्ट्रीय विधि से सम्बन्धित एक शब्द है। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय विधि में एंगारी किसी देश की युद्धकाल में या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह अधिकार प्रदान करता है कि जलयान, हवाईजहाज, रेल का सामान या यातायात के अन्य साधन जो दूसरे देशों के हैं, परन्तु उनके अधिक्षेत्र में उपस्थित हैं, अपने काम में ले आए। परंतु उस देश को यातायात के साधनों के उन मालिकों की पूरी क्षतिपूर्ति करनी होगी। किन्तु वर्तमान काल में नाविकों या अन्य चालकों की सेवाएँ नहीं प्राप्त की जा सकती हैं। .

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डॉकयार्ड

जर्मनी का एक डॉकयार्ड गोलाबारूद, ईंधन और माल की पूर्ति, कर्मिकों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की व्यवस्था और जहाजों की मरम्मत करने के लिए प्रत्येक नौसेना के वास्ते स्थायी डॉकयार्ड तथा अड्डों का होना परमावश्यक है। व्यापारी बेड़ों के लिए भी ऐसे अड्डे आवश्यक हैं, यद्यपि उन्हें विश्व के सभी बड़े व्यापारी बंदरगाह और मरम्मती अड्डों की सेवा उपलब्ध हो सकती है। किंतु आधुनिक अर्थों में डॉकयार्ड रणपोतों का निर्माण और देखभाल करनेवाली राष्ट्रीय संस्था है। डॉकयार्ड में रणपोत का निर्माण, साजसज्जा और उसे डॉक में ले जाने की सारी सुविधाएँ होती हैं। यहाँ गोलाबारूद और शस्त्रास्त्रों के निर्माण तथा उनकी पूर्ति की ओर कर्मिकों के लिए बिसातबान, आहार, प्रशिक्षण, चिकित्सा आदि की व्यवस्थाएँ होती हैं। पूर्ण रूप से सुसज्जित डॉकयार्ड कम ही होते हैं और उनमें भी कुछ ही डॉकों में रणपोतों का वास्तविक निर्माण होता है। प्राय: सभी राजकीय डॉकयार्ड नए जहाजों को सुसज्जित करने, युद्धपोतों को युद्ध के लिए तैयार करने तथा जहाजी बेड़ों की देखभाल का काम करते हैं। प्राय: सभी देशों में तोप, कवच, इंजन, बॉयलर आदि का निर्माण व्यवसाय संघ करते हैं और अंतिम अवस्था तक जहाज का निर्माण कर समापन के लिए उसे सरकारी संस्थाओं को दे देते हैं। कुछ डॉकयार्डों में जहाज के निर्माण की कोई विशेष सुविधा नहीं रहती, पर उनमें बड़े-बड़े पोतों की देखभाल के लिए पूरी व्यवस्था रहती है। कुछ छोटे डॉकयार्ड साधारण मरम्मत, गोलाबारूद, इर्धंन और भंडार की पूर्ति करते हैं। ये वस्तुत: इर्धंन प्रदान करनेवाले सुदृढ़ नौसैनिक अड्डे होते हैं। सभी राजकीय डॉकयार्ड नौसैनिक अड्डे होते हैं, किंतु सभी नौसैनिक अड्डे डॉकयार्ड नहीं होते। आधुनिक बेड़ों के लिए अड्डों का होना आवश्यक है, जहाँ से वह अपना कार्य कर सकें। निरापद बंदरगाह अड्डे की प्राथमिक आवश्यकता है, जहाँ जहाज का सहायक जलयान पहुँचकर बिना किसी छेड़छाड़ के इर्धंन, गोलाबारूद और आवश्यक भंडार का पुनर्भरण कर सके। वहाँ श्रमिकों के विश्राम और मनोरंजन की व्यवस्था भी रहनी चाहिए। डॉकयार्ड या अड्डे को पनडुब्बी, तारपीडो और हवाई आक्रमणों से बचाने के लिए पर्याप्त रक्षासेनाओं की स्थायी व्यवस्था रहती है। समुद्री प्रभुता की रक्षा के लिए नियुक्त बेड़े की क्षमता पर ही डॉक या अड्डे की सुरक्षा निर्भर करती है। .

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तटबन्ध

तटबन्ध तटबंध (embankment), ऐसे बाँध अर्थात् पत्थर या कंक्रीट के पलस्तर से सुरक्षित, मिट्टी या मिट्टी तथा कंकड़ इत्यादि के मिश्रण से बनाए तटों या ऊँचे, लंबें टीलों, को कहते हैं, जिनसे पानी के बहाव को रोकने अथवा सीमित करने का काम लिया जाता है, जैसे.

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तटरक्षक

तटरक्षक या तटरक्षक बल एक नौसेना के समान सैन्य या अर्द्ध-सैन्य संगठन होता है, परन्तु इसका मुख्य कर्तव्य आतंकवाद और अपराध से एक देश के समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करना है, इसके अतिरिक्त यह खतरे में पड़े पोतों और नौकाओं को बचाने का कार्य भी करते हैं। भारत का बल भारतीय तटरक्षक कहलाता है। कई देशों मे तटरक्षक बल एक कानून प्रवर्तन संगठन की भूमिका भी निभाते हैं। .

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त्रिकोणीय सर्वेक्षण

उन्नीसवीं शती का राइनलैण्ड-हेस्स क्षेत्र का त्रिकोणीय सर्वेक्षण त्रिकोणीय सर्वेक्षण (Triangulation) उस विधि का नाम है जिसमें सर्वेक्षण के लिये दिये गये क्षेत्र को त्रिकोणीय टुकड़ों के जाल के रूप में बाँटकर सर्वेक्षण को सरलतापूर्वक कर लिया जाता है। इसका सिद्धान्त बहुत सरल है - ज्ञात दूरी पर स्थित किन्हीं भी दो बिंदुओं से किसी तीसरे बिंदु द्वारा बनाये गये कोणों को मापकर त्रिकोणमित्तीय सर्वसमिकाओं की सहायता से उस तीसरे बिन्दु की सही स्थिति निर्धारित की जा सकती है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें दूरी का मापन कम से कम करना पड़ता है और कोणों के मापन से काम चल जाता है। कोणों का मापन अधिक शुद्धता से, कम समय मे, कम श्रम से हो जाता है। सामान्यत:, जहाँ दो दूर के बिंदुओं के बीच सीधी दूरी नाप पाना संभव न हो, मगर वे आपस मे दृष्टिगत हों, वहाँ त्रिकोणीय सर्वेक्षण बड़ा लाभप्रद होता है। ट्रैंगुलेशन के उपयोग द्वारा समुद्र में स्थित किसी जलयान की तट से दूरी और उसके निर्देशांक निकाले जा सकते हैं। '''A''' बिन्दु पर स्थित प्रेक्षक कोण '''α''' मापता है; इसी प्रकार, बिन्दु '''B''' पर स्थित प्रेक्षक कोण '''β''' मापता है। यदि A और B के बीच की दूरी या उनके निर्देशांक ज्ञात हों तो ज्या सूत्र की सहायता से '''C''' बिन्दु पर स्थित जहाज के निर्देशांक तथा दूरी '''d''' निकाली जा सकती है। यदि ऐसे त्रिभुज की एक, दो या तीनों भुजाओं पर क्रमानुगत त्रिभुज बनाते चले जाएँ और प्रारंभिक त्रिभुज की एक भुजा, उसके दोनों शीर्ष बिंदुओं के नियामक (coordinate) और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक गणितीय कलन (computations) से ज्ञात किए जा सकते हैं। किसी भी क्षेत्र का मानचित्र बनाने के लिये इस प्रकार के बिंदु संपूर्ण क्षेत्र में समान रूप से बिखरें हुए स्थापित करना आवश्यक होता है। ऐसे बिंदुओं को सामूहिक रूप में सर्वेक्षण हेतु 'नियंत्रण ढाँचा' और प्रत्येक बिंदु को अलग अलग 'सर्वेक्षण स्टेशन' कहते हैं। त्रिकोणीय सर्वेक्षण में गणना में त्रिकोणमित्तीय सर्वसमिकाओं की सहायता ली जाती है जिनमे निम्नलिखित प्रमुख हैं -.

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तेल रिसाव

तेल रिसाव के बाद एक समुद्र तट तिमोर सागर में मोंटारा तेल रिसाव से ऑइल स्लिक, सितंबर, 2009. तेल रिसाव मानवीय गतिविधियों के कारण तरल पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन का पर्यावरण में मुक्त होना है तथा यह एक प्रकार का प्रदूषण है। इस शब्द का उपयोग अक्सर समुद्री तेल रिसाव के लिए किया जाता है, जहां तेल समुद्र में अथवा तटीय जल में मुक्त होता है। तेल रिसाव में कच्चे तेल का टैंकर से, अपतटीय प्लेटफार्म से, खुदाई उपकरणों से तथा कुओं से रिसाव, इसके साथ ही परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों (जैसे गैलोलिन, डीजल) तथा उनके उप-उत्पादों का रिसाव और बड़े जहाजों में प्रयुक्त होने वाले भारी ईंधन जैसे बंकर ईंधन का रिसाव या किसी तैलीय अवशिष्ट का या अपशिष्ट तेल का रिसाव शामिल है। रिसाव को साफ करने में महीनों या सालों लग सकते हैं। प्राकृतिक तेल रिसाव से भी तेल समुद्री पर्यावरण में प्रवेश करता है। सार्वजनिक ध्यान और विनियमन की वजह से गहरे समुद्र में तेल टैंकरों की ओर तेजी से ध्यान केंद्रित हो रहा है। .

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दाराशा नौशेरवां वाडिया

प्रोफेसर दाराशा नौशेरवां वाडिया (Darashaw Nosherwan Wadia FRS; 25 अक्तूबर 1883 – 15 जून 1969) भारत के अग्रगण्य भूवैज्ञानिक थे। वे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में कार्य करने वाले पहले कुछ वैज्ञानिकों में शामिल थे। वे हिमालय की स्तरिकी पर विशेष कार्य के लिये प्रसिद्ध हैं। उन्होने भारत में भूवैज्ञानिक अध्ययन तथा अनुसंधान स्थापित करने में सहायता की। उनकी स्मृति में 'हिमालयी भूविज्ञान संस्थान' का नाम बदलकर १९७६ में 'वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्‍थान' कर दिया गया। उनके द्वारा रचित १९१९ में पहली बार प्रकाशित 'भारत का भूविज्ञान' (Geology of India) अब भी प्रयोग में बना हुआ है। .

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द्वितीय विश्वयुद्ध काल की प्रौद्योगिकी

१६ जुलाई १९४५ का ट्रिनिटी विस्फोट: इससे परमाणु बम के युग का आरम्भ हुआ। जर्मन एनिग्मा: कूट का रहस्य खोज निकालने वाली मशीन प्रौद्योगिकी ने द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम को बहुत हद तक प्रभावित और निर्धारित किया। द्वितीय विश्वयुद्ध में बाहर आयी प्रौद्योगिकी का अधिकांश हिस्सा १९२० और १९३० के बीच विकसित किया गया था। लगभग हर प्रकार की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल हुआ था जिसमें से प्रमुख हैं-.

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नाव

बिना ईन्जन की एक नाव। गंगा नदी में लोगों से भरी एक नौका मालदीव में एक नाव नाव या नौका (boat) डाँड़, क्षेपणी, चप्पू, पतवार या पाल से चलने वाली एक प्रकार की छोटी जलयान है। आजकल नावें इंजन से भी चलने लगी हैं और इतनी बड़ी भी बनने लगी हैं कि पोत (जहाज) और नौका (नाव) के बीच भेद करना कठिन हो जाता है। वास्तव में पोत और नौका दोनों समानार्थक शब्द हैं, किंतु प्राय: नौका शब्द छोटे के और पोत बड़े के अर्थ में प्रयुक्त होता है। .

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नाविक

thumb वे सभी लोग जो नाव, जलयान, या पनडुब्बी आदि चलाते हैं या उस पर कोई अन्य जिम्मेदारी निभाते हैं, उन्हें नाविक (sailor, seaman, mariner, या seafarer) कहते हैं। श्रेणी:व्यवसाय.

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नौइंजीनियरी

'अर्गोनॉट' नामक फ्रांसीसी जहाज का नियंत्रण कक्ष (कन्ट्रोल रूम) प्राकृतिक गैस के उत्पादन के लिये '''P-51''' नामक मंच: ऐसे मंचों का निर्मान भी नौइंजीनियरी के अन्तर्गत आता है। नौइंजीनियरी (Naval engineering) प्रौद्योगिकी की वह शाखा है जिसमें समुद्री जहाजों एवं अन्य मशीनों के डिजाइन एवं निर्माण में विशिष्टि (स्पेसलाइजेशन) प्रदान की जाती है। इसके अलावा किसी जलयान पर नियुक्त उन व्यक्तियों (क्रिउ मेम्बर्स) को भी नौइंजीनियर (नेवल इंजीनियर) कहा जाता है जो उस जहाज को चलाने एवं रखरखाव के लिये जिम्मेदार होते हैं। इसके अलावा नौइंजीनियरों को जहाज का सीवेज, प्रकाश व्यवस्था, वातानुकूलन एवं जलप्रदाय व्यवस्था भी देखनी पड़ती है। .

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नोदक

वायुयान का नोदक नोदक या प्रोपेलर (propeller) ऐसे यंत्र या मशीन को कहते हैं जो किसी वाहन पर लगा हो और उसे आगे धकेलने का काम करे। नोदकों के घूर्णन (रोटेशन) के द्वारा वायु या जल को पीछे फेंकने में मदद मिलती है जिससे यान पर आगे की ओर बल लगता है। समुद्री जहाज़ों और वायुयानों पर लगे पंखेनुमा नोदक जल या हवा को पीछे फेंककर यान को आगे की तरफ धकेलते हैं। नोदक शब्द से निम्नलिखित का तात्पर्य निकल सकता है.

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नोदक (जलयान)

एक मध्य-आकार के व्यापारिक समुद्री जहाज़ पर लगा नोदक जलयान के नोदक (marine propellors), जिन्हें अनौपचारिक भाषा में स्क्रू (screw, अर्थ: पेच) भी कहते हैं, ऐसे पंखेनुमा यंत्र होते हैं जिनसे समुद्री जहाज़ों और नौकाओं के इंजनों द्वारा उत्पन्न घूर्णन (रोटेशन) का प्रयोग पानी को पीछे की ओर फेंककर नौका को आगे की तरफ़ धकेलने के लिए जाता है। नोदकों का आकार ऐसा होता है कि जब वह घूमते हैं तो उनके आगे और पीछे के पानी के दबावों में अंतर पैदा हो जाता है जिस से पानी तेज़ी से पंखे के पीछे खींचा जाता है। वैज्ञानिक रूप से नोदक के आगे और पीछे के दबाव में अंतर बरनौली सिद्धांत द्वारा समझा जा सकता है।, Ronald R. Pethig, Stewart Smith, pp.

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परमाणु भट्ठी

'''परमाणु भट्ठी''' का योजनामूलक (स्कीमैटिक) चित्र1 — नियन्त्रण छड़ें (कन्ट्रोल रॉड); 2 — शिल्डिंग; 3 — उष्मा अवरोधक (इंसुलेटर); 4 — मंदक (मॉडरेटर); 5 — नाभिकीय ईंधन; 6 — शीतलक (कूलैंट) परमाणु भट्ठी या 'न्यूक्लियर रिएक्टर' (nuclear reactor) वह युक्ति है जिसके अन्दर नाभिकीय शृंखला अभिक्रियाएँ आरम्भ की जाती हैं तथा उन्हें नियंत्रित करते हुए जारी रखा जाता है। .

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परिवहन की विधि

परिवहन की विधि (या परिवहन के साधन या परिवहन प्रणाली या परिवहन का तरीका या परिवहन के रूप) वह शब्द हैं जो वस्तुत: परिवहन के अलग-अलग तरीकों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। सबसे प्रमुख परिवहन के साधन हैं हवाई परिवहन, रेल परिवहन सड़क परिवहन और जल परिवहन, लेकिन अन्य तरीके भी उपलब्ध हैं जिनमें पाइप लाइन, केबल परिवहन, अंतरिक्ष परिवहन और ऑफ-रोड परिवहन भी शामिल हैं। मानव संचालित परिवहन और पशु चालित परिवहन अपने तरीके का परिवहन है, लेकिन यह सामान्य रूप से अन्य श्रेणियों में आते हैं। सभी परिवहन में कुछ माल परिवहन के लिए उपयुक्त हैं और कुछ लोगों के परिवहन के लिए उपयुक्त हैं। प्रत्येक परिवहन की विधि को मौलिक रूप से विभिन्न तकनीकी समाधान और कुछ अलग वातावरण की आवश्यकता होती है। प्रत्येक विधी की अपनी बुनियादी सुविधाएं, वाहन, कार्य और अक्सर विभिन्न विनियमन हैं। जो परिवहन एक से अधिक मोड का उपयोग करते हैं उन्हें इंटरमोडल के रूप में वर्णित किया जा सकता है। .

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प्रचलित गलत धारणाओं की सूची

यहाँ पर उन धारणाओं का विवरण दिया गया है जो जनसाधारण में व्यापक रूप से प्रचलित हैं किन्तु गहराई से विचार करने पर पता चलता है कि उनमें त्रुटि है। .

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प्रकाशस्तम्भ

सन् १९०९ में फिनलैण्ड में दीपस्तम्भों के विभिन्न शिल्प दीपस्तंभ, दीपघर, या प्रकाशस्तंभ (Light house), समुद्रतट पर, द्वीपों पर, चट्टानों पर, या नदियों और झीलों के किनारे प्रमुख स्थानों पर जहाजों के मार्गदर्शन के लिए बनाए जाते हैं। इनसे रात के समय प्रकाश निकलता है। यह किसी भी प्रणाली से प्रकाश किरण प्रसारित करती है। पुराने समय में आग जला कर यह काम होते थे, क्योंकि वर्तमान समय में विद्युत एवं अन्य कई साधन हैं। इसका उद्देश्य सागर में जहाजों के चालकों या नाविकों को खतरनाक चट्टानों से आगाह करना होता है। ये पथरीली तटरेखा, खतरनाक चट्टानों व बंदरगाहों की सुरक्षित प्रवेश को सूचित करने के लिए होते हैं। पहले काफी प्रयोग होते रहे इन प्रकाश दीपों का प्रयोग इनके महंगे अनुरक्षण एवं जी पी आर एस तकनीक सहित अन्य उन्नत सुविधाओं के आने से बहुत ही कम हो गया है। .

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पोतनिर्माण

१९४३ में एक अमेरिकी जलपोत का निर्माण पोतनिर्माण (Shipbuilding) से आशय जलयानों एवं अन्य तैरने वाले यानों के विनिर्माण से है। पोतनिर्माण का कार्य पोत प्रांगण (शिपयार्ड) में किया जाता है जहाँ इस कार्य के लिये आवश्यक सुविधायें होतीं हैं। पोतनिर्माण का कार्य प्रागैतिहासिक काल से ही होता चला आ रहा है। व्यापारिक एवं सैनिक दोनों प्रकार के पोतों का निर्माण तथा रखरखाव नौइंजीनियरी (naval engineering) कहलाते हैं। नौका का निर्माण भी पोतनिर्माण जैसा ही है, इसे 'नौकानिर्माण' कहते हैं। जलपोतों की आयु समाप्त हो जाने पर उन्हें तोड़कर उनके विभिन्न भाग अलग-अलग करके अन्य कार्यों में प्रयोग कर लिये जाते हैं। .

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फुकुओका

फुकुओका जापान के क्यूशू द्वीप का सबसे बड़ा नगर तथा फुकुओका प्रीफ्रैक्चर की राजधानी है। इस नगर की डिजाइन १९७२ में हुई थी। गरमी में औसत ताप लगभग २१ डिग्री सेल्सियस तथा जाड़े का औसत ताप लगभग ७ डिग्री सेल्सियस रहता है। वर्षा ६० इंच से ८० इंच के बीच होती है। इसके आसपास वाले क्षेत्र में धान, तंबाकू, शकरकंद तथा रेशम उद्योग के लिए शहतूत उगाए जाते हैं। यहाँ जलयान भी बनाए जाते हैं। यह व्यापार का केंद्र बन गया है। श्रेणी:जापान के नगर.

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फ्रमजी कोवासजी बानाजी

फ्रमजी कोवासजी बानाजी (FRAMJI COWASJI BANAJI; १७६७ -- १८५२) पारसी समुदाय के नेता तथा मुम्बई के प्रथम 'जस्टिस ऑफ द पीस' थे। वे समृद्ध व्यापारी और जहाजों के अपने समय के सबसे बड़े ठेकेदार थे। जनकल्याणार्थ अनेक संस्थाओं के उत्थान के लिए आपने खुले दिल से सहायता दी। आप ही सर्वप्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने जी.आई.पी.

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बन्दरगाह

जापान का कोबे बन्दरगाह भारत के विशाखापत्तनम का बन्दरगाह एक प्राकृतिक बन्दरगाह है। बन्दरगाह (हार्बर) समुद्री जहाजों के ठहरने की जगह हैं। विश्व में कई विशाल व छोटे बंदरगाह हैं। .

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भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

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भारती शिपयार्ड लिमिटेड

भारती शिपयार्ड लिमिटेड (Bharati Shipyard Limited (BSL)) भारत कि सबसे बड़ी जलयान निर्माता कम्पनियों मेम से एक है। इसकी स्थापना प्रकाश चन्द्र कपूर और विजय कुमार ने महाराष्ट्र के रत्नागिरि में १९७३ में की थी। वे आईआईटी खड़गपुर से समुद्र इंजीनियरी तथा नेवल आर्किटेक्चर में स्नातक थे। यह कम्पनी २००४ में सार्वजनिक कम्पनी में परिवर्तित हो गयी। .

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भारतीय नौवहन निगम

भारतीय नौवहन निगम (shipping Corporation of India या SCI) (भारतीय नौवहन निगम) एक भारत सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र की जहाजरानी कंपनी है। यह भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय नौवहन हेतु जहाज चलाती है। भारतीय नौवहन निगम लिमिटेड (एससीआई) की स्थापना दिनांक 2 अक्टूबर 1961 को ईस्टर्न शिपिंग कॉर्पोरेशन तथा वेस्टर्न शिपिंग कॉर्पोरेशन का समामेलन कर हुई थी। कंपनी की अधिकृत पूंजी 450 करोड़ रुपए और चुकता पूंजी 282.30 करोड़ रुपए थी। 18 सितंबर 1992 को कंपनी का दर्जा 'प्राइवेट लिमिटेड' से बदलकर 'पब्‍लिक लिमिटेड' कर दिया गया। कंपनी को भारत सरकार ने 24 फ़रवरी 2000 को 'मिनी रत्‍न' का खिताब दिया। कंपनी की 80.12 प्रतिशत शेयर पूंजी सरकार के पास है, जबकि शेष पूंजी वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक और अन्‍य निकायों, अनिवासी भारतीयों, कॉर्पोरेट निकायों आदि के पास है। केवल 19 जहाजों को लेकर एक लाइनर शिपिंग कंपनी की शुरुआत हुई थी और आज एससीआई के पास कुल 4.6 मिलियन डीडब्ल्यूटी के 83 जहाज हैं। एससीआई का शिपिंग व्यापार में 10 विविध खंडों में भी व्यापार फैला हुआ है। गत चार दशकों की यात्रा करने के बाद एससीआई ने विश्व के समुद्री नक्शे पर एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है| देश की एक प्रमुख कंपनी होने के नाते एससीआई, स्वामित्ववाले और भाड़े पर जहाज परिचालित करती हैं, जो भारतीय टनेज का लगभग 35 हिस्सा है और व्यावहारिक तौर पर नौवहन व्यापार के सभी क्षेत्रों में अपना कारोबार करती है जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैला हुआ है| भारतीय व्यापार की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, एससीआई ने विभिन्न क्षेत्रों में विशाखन किया है। एससीआई आज एकमात्र शिपिंग कंपनी है, जो ब्रेक बल्क सेवा, अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर सेवा, लिक्विड/ड्राय बल्क सेवा, तटदूर सेवा, यात्री सेवा आदि का परिचालन करती है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न सरकारी विभागों और संगठनों की ओर से बड़ी संख्या में जहाजों का जनबल एवं प्रबंध कार्य भी संभालती है| एससीआई ने भारत के आयात-निर्यात व्यापार में तथा देश के लिए बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित कर और बचाकर राष्ट्रीय मुद्रा कोष में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है| .

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युद्धपोत

विलियम वैन डे वेल्डे द यंगर द्वारा कैनन शॉट 17 वीं सदी के लाइन के डच जहाज़ को प्रदशित कर रहा है युद्धपोत एक ऐसा जलयान है जिसका निर्माण युद्ध करने के लिए किया गया हो। युद्धपोतों का निर्माण आमतौर पर व्यापारिक जलयानों से पूर्णतया भिन्न रूप से होता है। सशस्त्र होने के साथ ही साथ युद्धपोत की रचना उसको होने वाली क्षति को सहने के लिए भी की जाती है, साथ ही वे व्यापारिक जलयानों की तुलना में अधिक तेज तथा आसानी से मुड़ सकने वाले होते हैं। एक व्यापारिक जलयान के विपरीत, एक युद्धपोत आमतौर पर केवल अपने स्वयं के चालक दल के लिए हथियार, गोला बारूद, तथा आपूर्ति को ढोता है (न कि व्यापारिक माल).

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रडार

रडार तंत्र के विभिन्न भाग रडार (Radar) वस्तुओं का पता लगाने वाली एक प्रणाली है जो सूक्ष्मतरंगों का उपयोग करती है। इसकी सहायता से गतिमान वस्तुओं जैसे वायुयान, जलयान, मोटरगाड़ियों आदि की दूरी (परास), ऊंचाई, दिशा, चाल आदि का दूर से ही पता चल जाता है। इसके अलावा मौसम में तेजी से आ रहे परिवर्तनों (weather formations) का भी पता चल जाता है। 'रडार' (RADAR) शब्द मूलतः एक संक्षिप्त रूप है जिसका प्रयोग अमेरिका की नौसेना ने १९४० में 'रेडियो डिटेक्शन ऐण्ड रेंजिंग' (radio detection and ranging) के लिये प्रयोग किया था। बाद में यह संक्षिप्त रूप इतना प्रचलित हो गया कि अंग्रेजी शब्दावली में आ गया और अब इसके लिये बड़े अक्षरों (कैपिटल) का इस्तेमाल नहीं किया जाता। .

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रुडॉल्फ डीजल

रुडॉल्फ डीजल रुडॉल्फ डीज़ल (सन् 1858 - 1913), जर्मनी के प्रसिद्ध इंजीनियर थे। इनकी खोजों के आधार पर ही डीजल इंजन बना। .

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लार्सन एंड टूब्रो

लार्सन एंड टर्बो (Larsen & Toubro (L&T) (NSE: LT, BSE: 500510)) भारत की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है। इसका मुख्यालय मुम्बई में है। यह विश्व के अनेक देशों में कार्यरत है तथा इसके कार्यालय एवं कारखाने पूरे विश्व में फैले हुए हैं। कंपनी के चार मुख्य व्यापारिक क्षेत्र हैं: प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी, निर्माण और उत्पादन | कंपनी की लगभग २५ देशों में ६० से अधिक इकाइयां हैं | .

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लैंकाशिर

लैंकाशिर लैंकाशिर (Lancashire) इग्लैंड के उत्तर-पश्चिमी किनारे पर स्थित काउंटी है, जिसका क्षेत्रफल 1,866 वर्ग मील है। यह पश्चिम में आइरिश सागर से, पूर्व में यॉर्कशिर से, दक्षिण में चेशिर (Cheshire) काउंटी से तथा उत्तर में कंबरलैंड एवं वेस्टमरलैंड (Westmorland) काउंटी से घिरा हुआ है। इस काउंटी की तटरेखा अनियमित है। यहाँ के मुख्य प्रवेशद्वार मोरकैम बे (Morecambe Bay) और मर्ज़ि (Mersey) एवं रिब्ल (Ribble) नदियों के ज्वारनदमुख हैं। काउंटी का उत्तरी तथा पश्चिमी भाग पहाड़ी है। लंकाशिर के कोयले का क्षेत्र मर्ज़ि तथा रिब्ल नदियों के मध्य के भूभाग में 400 वर्ग मील में फैला हुआ है। जहाज निर्माण करने के लिए प्रसिद्ध फर्नेंस (Furness) क्षेत्र में पर्याप्त लोहा मिलता है। लैंकाशिर सूती वस्त्र के लिए विश्वविख्यात है तथा अन्य प्रकार के भी वस्त्र यहाँ बनते हैं। यहाँ सभी प्रकार की मशीनों का भी निर्माण होता है। यहाँ सभी प्रकार की मशीनों का भी निर्माण होता है। स्लेट तथा फर्शबंदी के लिए पत्थरों का खनन यहाँ की खानों में होता है। कांउटी के प्रशासनिक नगर का नाम भी लैंकाशिर है, जहाँ नॉर्मन काल का ऐतिहासिक किला है। लैंकाशिर काउंटी में साबुन, मोमबत्ती, क्षार तथा काँच निर्माण करने के कारखाने हैं। दक्षिणी लैकाशिर में सूती वस्त्र उत्पादन करनेवाला प्रमुख जिला मैंचेस्टर है, जो संसार में सबसे, घना बसा हुआ क्षेत्र है। 14वीं शताब्दी में ऊनी तथा लिनेन वस्त्रों की बुनाई प्रारंभ होने पर, मैंचेस्टर का विकास प्रारंभ हुआ और 18वीं शताब्दी के मध्य में सूती वस्त्र के उद्योग का विकास आरंभ हुआ। इंग्लैड का दूसरा बंदरगाह तथा लिवरपूल में प्रथम डॉक 1700 ई. में खुला। यह डॉक मर्ज़ि नदी के साथ साथ सात मील तक चला गया है। लंदन के बाद लैकाशिर इंग्लैंड की सबसे घनी बसी हुई काउंटी है। श्रेणी:यूके.

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समुद्रीय मानचित्र

समुद्रीय मानचित्र (Naval Chart) वह मानचित्र है, जो विशेषतया नाविकों के उपयोग के लिए तैयार किया जाता है। यह समुद्रतल के स्वरूप एवं उसकी विषमताओं को अभिव्यक्त करता है और नाविकों के लिए अधिकतम उपयोगी सूचना देता है। यह नाविकों को सागर और महासागर में नौचालन एवं एक बंदरगाह से दूसरे बंदरगाह तक जल पर यात्रा करने में सहायता करता है। इसकी सहायता से नाविकों को जहाज की भूमि से सापेक्ष स्थिति, स्टियरिंग की दिशा, जलयात्रा की दूरी और संकटक्षेत्र का ज्ञान होता है। मानचित्र में जलक्षेत्र छोटे छोटे अंकों से अंकित रहता है। ये अंक, जो फ़ैदम अथवा फुट, अथवा दोनों में किसी विशेष स्थिति में औसत ज्वार भाटा के जल की गहराई को अभिव्यक्त करते हैं। स्थल का सर्वेक्षण कितनी ही सावधानी से क्यों न किया गया हो, परंतु यदि चार्ट में गहराई की माप न दिखाई जाए, तो चार्ट व्यर्थ रहता है। समुद्र की गहराई गहराई-मापी-डोर, तार अथवा ध्वानिक विधि से ज्ञात की जाती है। गहराई की माप को ज्ञात करने में प्रतिध्वनिक विधि का अनुप्रयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। इस विधि में पोतजल से एक विद्युत्‌ आवेग संचारित किया जाता है, जो समुद्रतल पर आघात कर प्रतिध्वनिक के रूप में परावर्तित होता है और जलफोन (hydrophone) से प्राप्त कर लिया जाता है। यदि समयांतर को ठीक प्रकार से माप लिया जाए, जल में ध्वनिवेग की जानकारी की सहायता से समुद्र की गहराई का मापन किया जा सकता है। अक्षांश के प्रेक्षण के लिए अंगीकृत विधियों में से एक, कृत्रिम क्षितिज में सेक्सटैंट द्वारा प्रेक्षित नक्षत्रों का परियाम्योत्तर (circum meridian) उन्नतांश ज्ञात करना है। कालमापी (chronometer) त्रुटि प्राप्त करने के लिए सेक्सटैट और कृत्रिम क्षितिज द्वारा सूर्य अथवा नक्षत्रों की समान ऊँचाई का उपयोग करते हैं। असर्वेक्षित, अथवा सर्वेक्षित, क्षेत्रों के चार्ट को प्राय: बारीक रेखा में खींचते हैं, जिसको केवल देखने मात्र से अनुभवी नाविक समझ जाते हैं कि सावधानी की आवश्यकता है। समुद्रीय तथा सामान्य चार्ट जलसर्वेक्षण विभाग द्वारा संकलित किए जाते और खींचे जाते हैं तथा प्रकाशन के समय शुद्धता का ध्यान रखते हैं। एक समुद्रीय मानचित्र .

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संकेतन

संकेतन (Signalling), या संकेत संप्रेषण, का युद्ध में दीर्घ काल से प्रयोग हो रहा है। साधारण जीवन में भी संदेश भेजने की आवश्यकता बहुधा पड़ती ही है, पर सेना की एक टुकड़ी से दूसरी को, अथवा एक पोत से अन्य को, सूचनाएँ, आदेश आदि भेजने के कार्य का महत्व विशेष है। इसके लिए प्रत्येक संभव उपाय काम में लाए जाते हैं। पैदल और घुड़सवार, संदेशवाहकों के सिवाय, प्राचीन काल में झंडियों, प्रकाश तथा धुएँ द्वारा संकेतों से संदेश भेजने के प्रमाण मिलते हैं। अफ्रीका में यही कार्य नगाड़ों से लिया जाता रहा है। आधुनिक काल में संकेतन का उपयोग सड़कों पर आवागमन तथा रेलगाड़ियों के नियंत्रण में भी किया जा रहा है। .

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स्वेज़ नहर

स्वेज नहर की स्थिति तथा उसका अंतरिक्ष से लिया गया चित्र स्वेज नहर (Suez canal) लाल सागर और भूमध्य सागर को संबंद्ध करने वाली एक नहर है। सन् 1859 में एक फ्रांसीसी इंजीनियर फर्डीनेण्ड की देखरेख में स्वेज नहर का निर्माण शुरु हुआ था। यह नहर आज 165 किमी लंबी, 48 मी चौड़ी और 10 मी गहरी है। दस वर्षों में बनकर यह तैयार हो गई थी। सन् 1869 में यह नहर यातायात के लिए खुल गई थी। पहले केवल दिन में ही जहाज नहर को पार करते थे पर 1887 ई. से रात में भी पार होने लगे। 1866 ई. में इस नहर के पार होने में 36 घंटे लगते थे पर आज 18 घंटे से कम समय ही लगता है। यह वर्तमान में मिस्र देश के नियंत्रण में है। इस नहर का चुंगी कर बहुत अधिक है। इस नहर की लंबाई पनामा नहर की लंबाई से दुगुनी होने के बाद भी इसमें पनामा नहर के खर्च का 1/3 धन ही लगा है। .

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सैनिक वैश्वीकरण

सैनिक वैश्वीकरण (Military globalization) वर्तमान विश्व की दो धाराओं को इंगित करता है- एक तरफ विश्व भर में सैनिक समझौते तथा सैनिक नेटवर्क बहुत अधिक बढ़ चले हैं, दूसरी तरफ प्रमुख सैनिक प्रौद्योगिकीय नवाचारों (जैसे जलयान से उपग्रह तक) के प्रभाव से विश्व एकल भूरणनीतिक क्षेत्र बन गया है। श्रेणी:वैश्वीकरण.

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सू नहर

सू नहर का आकाशीय दृश्य सू नहर उत्तरी अमरीका में सुपीरियर झील को ह्यूरन झील से मिलाती है। इन झीलों के बीच में सेंटमेरी प्रपात है। इसकी बाधा हटाने को ही इस नहर का निर्माण किया गया है। यह वास्तव में दो नहरें हैं जिनमें से एक संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकार में है और दुसरी कनाडा के। ये दोनो नहरें 6 मीटर गहरी और 1.5 किलोमीटर लम्बी हैं। इन दोनों नहरों में एक-एक द्वार है। ये नहरें केवल 8 महीनें खुली रहती हैं तो भी इनसे 10,000 से भी अधिक जलयान गुजरते हैं। संयुक्त राज्य के आन्तरिक व्यापार में इस नहर का अधिक उपयोग किया जाता है। झील-मार्ग से गुजरने वाले व्यापार के माल में मुख्यतः लौह अयस्क, खाद्दान्न, चुना-पत्थर, सीमेंट, लकड़ी और लुगदी, अखबारी कागज, कोयला और पेट्रोलियम होता है। .

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हिमभंजक

रूसी हिमभंजक यमाल, १९९४ में एक दौरे पर हिमभंजक या बर्फ़भंजक (अंग्रेजी: ice-breaker, आइस ब्रेकर) ऐसे समुद्री जहाज़ या नौका को कहते हैं जो बर्फ़ग्रस्त पानी में यातायात करने की क्षमता रखता हो। किसी जहाज़ को हिमभंजक समझा जाने के लिए उसमें तीन गुण ज़रूरी हैं: उसका ढांचा आम जलयानों से मज़बूत होना चाहिए, उसका आकार आगे से बर्फ़ हटाने के लिए अनुकूल होना चाहिए और उसमें बर्फ़ से ढके पानी में ज़ोर से बर्फ़ धकेलकर आगे निकलने की क्षमता होती चाहिए।, Ian Graham, pp.

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जड़त्वीय संचालन प्रणाली

फ्रांस के मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल '''S3''' की जड़त्वीय संचालन इकाई संचालन प्रणाली की यथार्थता जड़त्वीय संचालन प्रणाली (Inertial navigation system / आईएनएस) एक प्रणाली है जो जलयान, वायुयान, पनडुब्बी, नियंत्रित मिसाइल, तथा अंतरिक्ष यान आदि के संचालन में सहायक है। यह कंप्यूटर, गति सेंसरों और रोटेशन सेंसर का उपयोग करते हुए, किसी बाहरी संदर्भ के बिना ही, किसी गतिशील वस्तु की स्थिति, अभिविन्यास और वेग की गणना कर लेती है। इस प्रणाली को 'जड़त्वीय मार्गदर्शन प्रणाली' (inertial guidance system), 'जड़त्वीय उपकरण' आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। .

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जलयान की घंटी

जलयान की घंटी जलयान की घंटी (Ship's Bell) आमतौर पर पीतल का बना होता है तथा इसपे जलयान का नाम छपा होता है। जलयान की घंटी का मुख्य रूप से प्रयोग समय को विनियमित करने में होता है। इसका प्रयोग कोहरे कि स्थिति में जलयान यात्रियों को सचेत करने में भी होता है। .

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जलविमान

एक जलविमान जलविमान (Hydroplane) एक प्रकार की नाव है, जो अन्य नावों से भिन्न होती है। सामान्य नाव में विस्थापित जल का भार नाव के भार के समतुल्य होता है। सामान्य नाव को आगे बढ़ाने के लिये धक्का देना पड़ता है, जिससे जल में प्रतिरोध उत्पन्न होने से नाव आगे बढ़ती है। पर जलविमान में ऐसा नहीं होता। जलविमान ऐसा बना होता है कि उसका एक या एक से अधिक नत समतल, जो पेंदे में बने होते हैं, जल के प्रतिदबाव से नाव को ऊपर उठाकर तीव्र चाल से चलते हैं। इससे जल के संसर्गवाला तल कम हो जाता है, पर शेष भाग पर दबाव बढ़ जाता है। नावें जब खड़ी रहती हैं तब वे द्रवस्थैतिक बल (hydrostatic force) पर आधारित होती है। जब वे जल का स्पर्श करके चलती हैं तब द्रवस्थैतिक बल प्राय: शून्य होता है और उसका आधार प्रधानतया द्रवगतिक प्रभाव होता है। जलविभाग की चाल इंजन शक्ति से चलनेवाली नावों से अधिक होती है, अथवा उसी चाल के लिय कम शक्तिवाले इंजन की आवश्कता पड़ती है। 1953 ई. से जलविमान की चाल में बराबर वृद्धि हो रही है। .

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जहाजरानी का इतिहास

नदियों और समुद्रों में नावों और जहाजों से यात्रा तथा व्यापार का प्रारंभ लिखित इतिहास से पूर्व हो गया था। प्राय: साधारण जहाज ऐसे बनाए जाते थे कि आवश्यकता पड़ने पर उनसे युद्ध का काम भी लिया जा सके, क्योंकि जलदस्युओं का भय बराबर बना रहता था और इनसे जहाज की रक्षा की क्षमता आवश्यक थी। ये जहाज डाँड़ों या पालों अथवा दोनों से चलाए जाते थे और वांछित दिशा में ले जाने के लिये इनमें किसी न किसी प्रकार के पतवार की भी व्यवस्था होती थी। स्थलमार्ग से जलमार्ग सरल और सस्ता होता है, इसलिये बहुत बड़ी या भारी वस्तुओं को बहुत दूर के स्थानों में पहुँचाने के लिये आज भी नावों अथवा जहाजों का उपयोग होता है। प्राचीन काल में सभ्यता का उद्भव नौगम्य नदियों या समुद्रतटों पर ही विशेष रूप से हुआ और ये ही वे स्थान थे जहाँ विविध संस्कृतियों की, जातियों के सम्मिलन से, परवर्ती प्रगति का बीजारोपण हुआ। .

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जिब्राल्टर

जिब्राल्टर औबेरियन प्रायद्वीप और यूरोप के दक्षिणी छोर पर भूमध्य सागर के प्रवेश द्वार पर स्थित एक स्वशासी ब्रिटिश विदेशी क्षेत्र है। 6.843 वर्ग किलोमीटर (2.642 वर्ग मील) में फैले इस देश की सीमा उत्तर में स्पेन से मिलती है। जिब्राल्टर ऐतिहासिक रूप से ब्रिटेन के सशस्त्र बलों के लिए एक महत्वपूर्ण आधार रहा है और शाही नौसेना (Royal Navy) का एक आधार है। जिब्राल्टर की संप्रभुता आंग्ल-स्पेनी विवाद का एक प्रमुख मुद्दा रहा है। उत्रेच्त संधि 1713 के तहत स्पेन द्वारा ग्रेट ब्रिटेन की क्राउन को सौंप दिया गया था, हालांकि स्पेन ने क्षेत्र पर अपना अधिकार जताते हुए लौटाने की मांग की है। जिब्राल्टर के बहुसंख्यक रहवासियों ने इस प्रस्ताव के साथ-साथ साझा संप्रभुता के प्रस्ताव का विरोध किया। यह चट्टानी प्रायद्वीप है, जो स्पेन के मूल स्थल से दक्षिण की ओर समुद्र में निकला हुआ है। इसके पूर्वं में भूमध्यसागर तथा पश्चिम में ऐलजेसियरास की खाड़ी है। १७१३ ई. से यह अंग्रेजी साम्राज्य के उपनिवेश तथा प्रसिद्ध छावनी के रूप में है। जिब्राल्टर के चट्टानी प्रायद्वीप को चट्टान (दी रॉक) कहते हैं। चट्टान समुद्र की सतह से एकाएक ऊपर उठती दृष्टिगोचर होती है। यह चट्टानी स्थलखंड उत्तर-दक्षिण फैली हुई पतली श्रेणी द्वारा बीच में विभक्त होता है, जिसपर कई ऊँची चोटियाँ हैं। चट्टानें चूना पत्थर की बनी हैं, जिनमें कई स्थलों पर प्राकृतिक गुफाएँ निर्मित हो गई हैं। कुछ गुफाओं में प्राचीन जीव-जंतुओं के चिह्न भी पाए गए हैं। जिब्राल्टर नगर नया बसा है। प्राचीन नगर की प्राय: सभी पुरानी महत्वपूर्ण इमारतें युद्ध (१७७-८३) में नष्ट हो गई। वर्तमान नगर 'राक' के उत्तरी-पश्चिमी भाग में ३/१६ वर्ग मील के क्षेत्रफल में फैला है। इसके अतिरिक्त समुद्र का कुछ भाग सुखाकर स्थल में परिणत कर लिया गया है। नगर का मुख्य व्यापारिक भाग समतल भाग में है। समतल के उत्तर की ओर ऊँचे असमतल भागों में लोगों के निवासस्थान तथा दक्षिण की ओर सेना के कार्यालय तथा बेरक हैं। यहाँ एक सैनिक हवाई अड्डा भी है। जिब्राल्टर कोयले के व्यापार का मुख्य केंद्र था, पर तेल से जलयानों के चलने के कारण इस व्यापार में अब अधिक शिथिलता आ गई है। .

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जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन

गगन के नाम से जाना जाने वाला यह भारत का उपग्रह आधारित हवाई यातायात संचालन तंत्र है। अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद 10 अगस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया। .

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घूर्णाक्षस्थापी दिक्सूचक

घूर्णाक्षस्थापी दिक्सूचक, जिसका बाहरी आवरण हटा दिया गया है। घूर्णाक्षस्थापी दिक्सूचक या घूर्णाक्ष दिक्सूचक (gyrocompass) एक ऐसा दिक्सूचक है जो चुम्बकीय सुई का उपयोग नहीं करता बल्कि एक तेज गति से घूमने वाली डिस्क तथा पृथ्वी की घूर्णन गति पर आधारित है। जलयानों के चालन में घूर्णाक्ष दिक्सूचकों का खूब उपयोग होता है क्योंकि चुम्बकीय दिक्सूचक की तुलना में इसके दो प्रमुख लाभ हैं- .

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विचुम्बकन

चुम्बकीय शैथिल्य के बड़े एवं छोटे लूप (मेजर & माइनर लूप) किसी अवांछित चुम्बकीय क्षेत्र को कम करना या समाप्त करना विचुम्बकन या डीगासिंग (Degaussing) कहलाता है। चुम्बकीय शैथिल्य (magnetic hysteresis) के कारण चुम्बकीय क्षेत्र का मान बिलकुल शून्य कर देना प्रायः सम्भव नहीं होता। इसलिये विचुम्बकन के द्वारा अधिशेष चुम्बकीय क्षेत्र को बहुत कम 'ज्ञात' क्षेत्र तक कम कर दिया जाता है जिसे 'बायस' (bias) कहते हैं। कम्प्यूटर एवं टीवी के मानीटरों तथा जलयान के हल (hull) को प्रायः विचुम्बकित करना पड़ता है। .

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व्यावहारिक गणित

वाहन को शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर कम से कम समय में ले जाने के लिए गणित का उपयोग करना पड़ सकता है। इसके लिए सांयोगिक इष्टतमीकरण (combinatorial optimization) तथा पूर्णांक प्रोग्रामन (integer programming) का उपयोग करना पड़ सकता है। व्यावहारिक गणित (अनुप्रयुक्त गणित या प्रायोगिक गणित), गणित की वह शाखा है जो ज्ञान की अन्य विधाओं की समस्याओं को गणित के जुगाड़ों (तकनीकों) के प्रयोग से हल करने से सम्बन्ध रखती है। ऐतिहास दृष्टि से देखें तो भौतिक विज्ञानों (physical sciences) की आवश्यकताओं ने गणित की विभिन्न शाखाओं के विकास में महती भूमिका निभायी। उदाहरण के लिये तरल यांत्रिकी में गणित का उपयोग करने से एक हल्का एवं कम ऊर्जा से की खपत करने वाला वायुयान की डिजाइन की जा सकती है। बहुत पुरातन काल से ही विषयों में गणित सर्वाधिक उपयोगी रहा है। यूनानी लोग गणित को न केवल संख्याओं और दिक् (स्पेस) का बल्कि खगोलविज्ञान और संगीत का भी अध्ययन मानते थे। गणितसारसंग्रह के 'संज्ञाधिकार' में मंगलाचरण के पश्चात महान प्राचीन भारतीय गणितज्ञ महावीराचार्य ने बड़े ही मार्मिक ढंग से गणित की प्रशंशा की है और गणित के अनेकानेक उपयोगों को गिनाया है- आज के 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएँ गणित का इस्तेमाल पंचांग (कैलेंडर) बनाने के लिए किया करती थीं जिससे उन्हें पूर्व जानकारी रहती थी कि कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील नदी में बाढ़ आएगी। अंकगणित का प्रयोग व्यापार में रुपयों-पैसों और वस्तुओं के विनिमय या हिसाब-किताब रखने के लिए किया जाता था। ज्यामिति का इस्तेमाल खेतों के चारों तरफ की सीमाओं के निर्धारण तथा पिरामिड जैसे स्मारकों के निर्माण में होता था। अपने दैनिक जीवन में रोजाना ही हम गणित का इस्तेमाल करते हैं-उस वक्त जब समय जानने के लिए हम घड़ी देखते हैं, अपने खरीदे गए सामान या खरीदारी के बाद बचने वाली रेजगारी का हिसाब जोड़ते हैं या फिर फुटबाल टेनिस या क्रिकेट खेलते समय बनने वाले स्कोर का लेखा-जोखा रखते हैं। व्यवसाय और उद्योगों से जुड़ी लेखा संबंधी संक्रियाएं गणित पर ही आधारित हैं। बीमा (इंश्योरेंस) संबंधी गणनाएं तो अधिकांशतया ब्याज की चक्रवृद्धि दर पर ही निर्भर है। जलयान या विमान का चालक मार्ग के दिशा-निर्धारण के लिए ज्यामिति का प्रयोग करता है। सर्वेक्षण का तो अधिकांश कार्य ही त्रिकोणमिति पर आधारित होता है। यहां तक कि किसी चित्रकार के आरेखण कार्य में भी गणित मददगार होता है, जैसे कि संदर्भ (पर्सपेक्टिव) में जिसमें कि चित्रकार को त्रिविमीय दुनिया में जिस तरह से इंसान और वस्तुएं असल में दिखाई पड़ते हैं, उन्हीं का तदनुरूप चित्रण वह समतल धरातल पर करता है। संगीत में स्वरग्राम तथा संनादी (हार्मोनी) और प्रतिबिंदु (काउंटरपाइंट) के सिद्धांत गणित पर ही आश्रित होते हैं। गणित का विज्ञान में इतना महत्व है तथा विज्ञान की इतनी शाखाओं में इसकी उपयोगिता है कि गणितज्ञ एरिक टेम्पल बेल ने इसे ‘विज्ञान की साम्राज्ञी और सेविका’ की संज्ञा दी है। किसी भौतिकविज्ञानी के लिए अनुमापन तथा गणित का विभिन्न तरीकों का बड़ा महत्व होता है। रसायनविज्ञानी किसी वस्तु की अम्लीयता को सूचित करने वाले पी एच (pH) मान के आकलन के लिए लघुगणक का इस्तेमाल करते हैं। कोणों और क्षेत्रफलों के अनुमापन द्वारा ही खगोलविज्ञानी सूर्य, तारों, चंद्र और ग्रहों आदि की गति की गणना करते हैं। प्राणीविज्ञान में कुछ जीव-जन्तुओं के वृद्धि-पैटर्नों के विश्लेषण के लिए विमीय विश्लेषण की मदद ली जाती है। जैसे-जैसे खगोलीय तथा काल मापन संबंधी गणनाओं की प्रामाणिकता में वृद्धि होती गई, वैसे-वैसे नौसंचालन भी आसान होता गया तथा क्रिस्टोफर कोलम्बस और उसके परवर्ती काल से मानव सुदूरगामी नए प्रदेशों की खोज में घर से निकल पड़ा। साथ ही, आगे के मार्ग का नक्शा भी वह बनाता गया। गणित का उपयोग बेहतर किस्म के समुद्री जहाज, रेल के इंजन, मोटर कारों से लेकर हवाई जहाजों के निर्माण तक में हुआ है। राडार प्रणालियों की अभिकल्पना तथा चांद और ग्रहों आदि तक अन्तरिक्ष यान भेजने में भी गणित से काम लिया गया है। .

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खंभात

खंभात नगर, (गुजराती:ખંભાત) पूर्व-मध्य गुजरात के आनन्द जिले की एक नगरपालिका है। यह खंभात की खाड़ी के उत्तर में, माही नदी के मुहाने पर स्थित एक प्राचीन नगर है। टॉलमी नामक विद्वान ने भी इसका उल्लेख किया है। प्रथम शती में यह महत्वपूर्ण सागर पत्तन था। १५वीं शताब्दी में खंभात पश्चिमी भारत के हिंदू राजा की राजधानी था। जेनरल गेडार्ड ने १७०० ई. में इस नगर को अधिकृत कर लिया था, किंतु १७८३ ई. में यह पुन: मराठों को लौटा दिया गया। १८०३ ई. के बाद से यह अंग्रेजी राज्य के अंतर्गत रहा। नगर के दक्षिण-पूर्व में प्राचीन जैन मंदिर के भग्नावशेष विस्तृत प्रदेश में मिलते हैं। प्राचीन काल में रेशम, सोने का समान और छींट यहाँ के प्रमुख व्यापार थे। कपास प्रधान निर्यात थी। किन्तु नदियों के निक्षेपण से पत्तन पर पानी छिछला होता गया और अब यह जलयानों के रुकने योग्य नहीं रहा। फलत: निकटवर्ती नगरों का व्यापारिक महत्व खंभात की अपेक्षा अधिक बढ़ गया और अब यह एक नगर मात्र रह गया है। .

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गोथनबर्ग

गोथनबर्ग (अंग्रेजी: Gothenburg; स्विडिश: Göteborg; उच्चारण: / योतबर्य) स्वीडन के कैटेगैट जिले में स्थित एक बंदरगाह है, जो यटा (Gota) नदी के तट पर मुहाने से आठ किमी भीतर स्थित है। सर्वप्रथम १६०३ ई. में चहारदीवारियों से घिरे हुए एक किले के रूप में, नगर का प्रादुर्भाव हुआ। किंतु डेनिस लोगों ने कालामार की लड़ाई में इसे नष्ट कर दिया। पुन: १६१९ ई. में गुस्तवस एदाल्फस ने नगर की नींव डाली। बंदरगाह का विकास १८वीं शताब्दी के अंत में हुआ जब इंग्लैंड के व्यापारियों ने यहाँ मछलियों का डिपो खोला। १८३२ ई. में यटा नहर तथा पश्चिम रेलवे खुल जाने से यहाँ का व्यापार तथा आबादी तीव्र गति से बढ़ी। गोथनबर्ग स्वीडन का प्रथम बंदरगाह तथा दूसरा प्रधान नगर है। १९२२ ई. से यह करमुक्त बंदरगाह हो गया है। यहाँ पानी का जहाज बनाने का बहुत बड़ा केंद्र है। सूती मिलें, रसायनक कागज, चमड़े, शराब तथा लकड़ी के बहुत से कारखाने हैं। नगर पूर्ण विकसित तथा आधुनिक ढंग का है जो प्रमुख शिक्षाकेंद्रों, व्यवसायों तथा धार्मिक संस्थाओं से परिपूर्ण है। श्रेणी:विश्व के नगर.

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गोदी

सिंगापुर की शुष्क गोदी नौनिवेश या गोदी या 'डॉक' (Dock) जलयानों के ठहरने के स्थान को कहते हैं। यदि स्थान पूरी तरह घिरा हुआ नहीं है, बल्कि उसका मुख समुद्र से आने जाने के लिए सदा खुला रहता है, तो उसके लिए 'बेसिन' नाम अधिक उपयुक्त है, यद्यपि यह नाम सर्वव्यापी नहीं है। गोदियों के मुख पर फाटक या कोठियाँ लगी होती हैं, जिससे उनमें यथेच्छ तल तक पानी रखा जा सके। जिस गोदी में पानी प्राय: एक ही तल तक रहता है, वह सजल गोदी कहलाती है तथा जिस गोदी में से पानी बिलकुल खाली किया जा सकता है, वह 'सूखी गोदी' कहलाती है। सूखी गोदी में जहाज निरीक्षण करने या मरम्मत करने के लिए लाए जाते हैं। सूखी गोदी का ही एक रूप 'तिरती गोदी' है। यह तैरते हुए बड़े बड़े पीपों की संरचना होती है, जो भीतर पानी भरकर, या खाली करके, नीची या ऊँची की जा सकती है और जहाज उसपर रखकर पानी के ऊपर उठाया जा सकता है। जिन पत्तनों में प्रकृतिप्रदत्त सुरक्षित और गहरा विशाल बेसिन होता है, ज्वारभाटा कम आता है और समुद्र में तेज धाराएँ नहीं होतीं, वहाँ सजल गोदी की आवश्यकता नहीं होती, जैसे न्यूयॉर्क में। किंतु सूखी या तिरती गोदी सभी बड़े आधुनिक पत्तनों का अनिवार्य अंग होती है। .

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ऑक्लैण्ड

आकलैंड की स्थिति आकलैंड, न्यूज़ीलैंड का सबसे बड़ा नगर है। यह प्रायद्वीप के बहुत संकरे भाग में स्थित हैं। इस कारण दोनों तटों पर इसका अधिकार हैं परंतु उत्तम बंदरगाह पूर्वी तट पर है। आस्ट्रेलिया से अमरीका जानेवाले जहाज, विशेषकर सिडनी से वैंकूवर जानेवाले, यहाँ ठहरते हैं। यह आधुनिक बंदरगाह है। यहाँ पर विश्वविद्यालय, कलाभवन तथा एक नि:शुल्क पुस्तकालय है जो सुंदर चित्रों से सजा है। इस नगर के आस पास न्यूटन, पार्नेल, न्यू मार्केट तथा नौर्थकोट उपनगर बसे हैं। आकलैंड की आबादी दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण दुग्ध उद्योग तथा अन्य धंधे हैं। आकलैंड जहाज द्वारा आस्ट्रेलिया, प्रशांतद्वीप, दक्षिणी अ्फ्रीका, ग्रेट ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमरीका से संबद्ध है और रेलों द्वारा न्यूज़ीलैंड के दूसरे भागों से। यहाँ का मुख्य उद्योग जहाज बनाना, चीनी साफ करना तथा युद्धसामग्री बनाना हे। इसके सिवाय यहाँ लकड़ी तथा भोजनसामग्री इत्यादि का कारबार भी होता है। यहाँ से लकड़ी, दूध के बने सामान, ऊन, चमड़ा, सोना और फल बाहर भेजा जाता है। आकलैंड का विहंगम दृष्य श्रेणी:न्यूज़ीलैण्ड के आबाद स्थान श्रेणी:न्यूज़ीलैण्ड में बंदरगाह नगर श्रेणी:ऑक्लैण्ड क्षेत्र.

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औद्योगिक क्रांति

'''वाष्प इंजन''' औद्योगिक क्रांति का प्रतीक था। अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कुछ पश्चिमी देशों के तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में काफी बड़ा बदलाव आया। इसे ही औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) के नाम से जाना जाता है। यह सिलसिला ब्रिटेन से आरम्भ होकर पूरे विश्व में फैल गया। "औद्योगिक क्रांति" शब्द का इस संदर्भ में उपयोग सबसे पहले आरनोल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक "लेक्चर्स ऑन दि इंड्स्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड" में सन् 1844 में किया। औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ आरम्भ हुआ। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने वाष्प की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी। अलग-अलग इतिहासकार औद्योगिक क्रान्ति की समयावधि अलग-अलग मानते नजर आते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इसे क्रान्ति मानने को ही तैयार नहीं हैं। अनेक विचारकों का मत है कि गुलाम देशों के स्रोतों के शोषण और लूट के बिना औद्योगिक क्रान्ति सम्भव नही हुई होती, क्योंकि औद्योगिक विकास के लिये पूंजी अति आवश्यक चीज है और वह उस समय भारत आदि गुलाम देशों के संसाधनों के शोषण से प्राप्त की गयी थी। .

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इस्पात

इस्पात (Steel), लोहा, कार्बन तथा कुछ अन्य तत्वों का मिश्रातु है। इसकी तन्य शक्ति (tensile strength) अधिक होती है जबकि प्रति टन मूल्य कम होने के कारण यह भवनों, अधोसंरचना, औजार, जलयान, वाहन, और मशीनों के निर्माण में प्रयुक्त होता है। 'इस्पात' शब्द इतने विविध प्रकार के परस्पर अत्यधिक भिन्न गुणोंवाले पदार्थो के लिए प्रयुक्त होता है कि इस शब्द की ठीक-ठीक परिभाषा करना वस्तुत: असंभव है। परंतु व्यवहारत: इस्पात से लोहे तथा कार्बन (कार्बन) की मिश्र धातु ही समझी जाती है (दूसरे तत्व भी साथ में चाहे हों अथवा न हों)। इसमें कार्बन की मात्रा साधारणतया 0.002% से 2.14% तक होती है। किसी अन्य तत्व की अपेक्षा कार्बन, लोहे के गुणों को अधिक प्रभावित करता है; इससे अद्वितीय विस्तार में विभिन्न गुण प्राप्त होते हैं। वेसे तो कई अन्य साधारण तत्व भी मिलाए जाने पर लोहे तथा इस्पात के गुणों को बहुत बदल देते हैं, परंतु इनमें कार्बन ही प्रधान मिश्रधातुकारी तत्व है। यह लोहे की कठोरता तथा पुष्टता समानुपातिक मात्रा में बढ़ाता है, विशेषकर उचित उष्मा उपचार के उपरांत। इस्पात एक मिश्रण है जिसमें अधिकांश हिस्सा लोहा का होता है। इस्पात में 0.2 प्रतिशत से 2.14 प्रतिशत के बीच कार्बन होता है। लोहा के साथ कार्बन सबसे किफायत मिश्रक होता है, लेकिन जरूरत के अनुसार, इसमें मैंगनीज, क्रोमियम, वैंनेडियम और टंग्सटन भी मिलाए जाते हैं। कार्बन और दूसरे पदार्थ मिश्र-धातु को कठोरता प्रदान करते हैं। लौहे के साथ, उचित मात्रा में मिश्रक मिलाकर लोहे को आवश्यक कठोरता, तन्यता और सुघट्यता प्रदान किया जाता है। लौहे में जितना ज्यादा कार्बन मिलाते हैं इस्पात उतना ही कठोर बनता जाता है, कठोरता बढ़ने के साथ ही उसकी भंगुरता भी बढ़ती जाती है। 1149 डिग्री सेल्सियस पर लौहे में कार्बन की अधिकतम घुल्यता 2.14 प्रतिशत है। कम तापमान पर अगर लौहे में ज्यादा मात्रा में कार्बन हो तो इससे सिमेंटाइट का निर्माण होगा। लौहे में अगर इससे ज्यादा कार्बन हो तो यह कास्ट आयरन कहलाता है, क्योंकि इसका गलनाक कम हो जाता है। इस्पात, कास्ट आयरन से इसलिए भी अलग होता है क्योंकि इसमें दूसरे तत्वों की मात्रा अत्यंत कम होती है यानी 1 से तीन प्रतिशत के करीब.

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इंजन स्टार्टर

गाड़ियों को स्टार्ट करने वाला मोटर सभी प्रकार के अन्तर्दहन इंजनों को स्टार्ट करने के लिये किसी वाह्य ऊर्जा-स्रोत का उपयोग करके उन्हें कुछ चक्कर घुमाना पड़ता है क्योंकि वे अचालित अवस्था में (अर्थात् शून्य RPM पर) अन्तर्दहन इंजन बलाघूर्ण नहीं पैदा करता।। इस कार्य के लिये प्रयुक्त होने वाली युक्ति को इंजन प्रवर्तक या इंजन स्टार्टर कहते हैं। मोटर स्टार्टर द्वारा कुछ चक्कर घुमाने के बाद इंजन स्वयं अपनी शक्ति से घूमने लगता है और स्टार्टर को तुरन्त बन्द कर दिया जाता है। इंजन स्टार्टर कई प्रकार के होते हैं जैसे - वैद्युत मोटर, वायुचालित मोटर (pneumatic motor), द्रवचालित मोटर (hydraulic motor) आदि। किन्तु आजकल अधिकांशतः बैटरी-चालित डीसी मोटर ही इस काम के लिए सबसे अधिक प्रयुक्त होता है। .

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कर्मीदल

कर्मीदल (crew) संस्था या व्यक्तियों का समूह है जो किसी सामान्य गतिविधि में संरचित या पदानुक्रमित संगठन से काम करते हैं। नाविक दल जलयान के संचालन में शामिल कार्य को करने वालों को कहते हैं। पारंपरिक नाविक उपयोग में दल को अधिकारियों से अलग रखा जाता है। .

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कायसाँ

300px 300px कायसाँ (Caission /ˈkeɪsən/ or /ˈkeɪsɒn/) जलरोधी धारक संरचना (retaining structure) को कहते हैं जो सेतुओं के पाये (bridge pier) बनाने, कंक्रीट के बाँध बनाने या जलपोत की मरम्मत करने आदि के लिये प्रयुक्त होती है। इसका निर्माण इस तरह से किया जाता है कि इसके अन्दर घिरा जल पम्प द्वारा बाहर कर दिया जाता है जिससे एक जलरहित सूखा क्षेत्र काम करने के लिये उपलब्ध हो जाता है। 'कायसाँ' एक फ्रेंच शब्द है जिसका अर्थ है - 'बक्सा'। .

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कालमापी

जेरेमी थैकर का कालमापी कालमापी (Chronometer) एक विशेष प्रकार की घड़ी है जो बहुत सच्चा समय बताती है। इसका समय ग्रिनिच के स्थानीय समय से मिलाकर रखा जाता है, जिससे जहाज पर ग्रिनिच समय तुरंत जाना जा सकता है। सेक्सटैंट (Sextant) से सूर्य की स्थिति नापकर जहाज जिस स्थान पर है वहाँ का स्थानीय समय ज्ञात किया जा सकता है। स्थानीय समय और ग्रिनिच समय के अंतर से देशांतर की गणना की जा सकती है। देशांतरों में एक अंश का अंत पड़ने पर स्थानीय समयों में चार मिनट का अंतर पड़ता है। .

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कालेकौए का विश्वभ्रमण

महाराजा कालाकौआ १८८१ में हवाई राज्य के महाराज कालाकौआ धरती का परिमार्जन करने वाले प्रथम शासक बने। श्री कालाकौआ की इस २८१ दिवसीय विश्वयात्रा का उद्देश्य एशिया-प्रशांत राष्ट्रों से श्रम शक्ति का आयत करना था, ताकि हवाई संस्कृति और आबादी को विलुप्त होने से बचाया जा सके। उनके आलाचकों का मानना था कि यह दुनिया देखने के लिए उनका बहाना था। इस विश्वयात्रा के दौरान महाराज कालेकौए ने भारतवर्ष की पावन भूमि पर अपने पदचिन्ह छोड़कर पुण्य कमाया। २८ मई १८८१ को वे रंगून से कलकत्ता पहुंचे, जहां पर उन्होंने अलीपुर वन्य प्राणी उद्यान का दौरा किया। न्यायभूमि भारत की कानूनी प्रक्रिया को देखने के लिए उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक पूरा दिन व्यतीत किया। कलकत्ता से उन्होंने बंबई के लिए प्रस्थान किया। इस यात्रा के दौरान उन्होंने एलोरा गुफाओं जैसे पर्यटक स्थलों का दर्शन किया। बंबई पहुँच कर उन्होंने थोड़ी-बहुत खरीदारी की और प्रसिद्ध व्यवसायी श्री जमशेतजी जीजाभाई से भेंट की। इसके अलावा उन्होंने पारसी दख्मों और अरब स्टैलियन अस्तबल की यात्रा की। ७ जून को वे जहाज़ से मिस्र के लिए रवाना हो गए। श्री कालाकौआ भारत से बँधुआ मज़दूर आयत करना चाहते परन्तु उन्हें पता चला कि ऐसा करने के लिए उन्हें लन्दन में बर्तानिया हुकूमत से समझौता करना पड़ेगा। .

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क्वारंटीन

'येलो जैक' नामक यह ध्वज जिस जहाज पर लगा होता है उसके क्वारंटीन होने की सूचना देता है। क्वारंटीन (Quarantine) यह लैटिन मूल का शब्द है। इसका मूल अर्थ चालीस है। पुराने समय में में जिन जहाजों में किसी यात्री के रोगी होने अथवा जहाज पर लदे माल में रोग प्रसारक कीटाणु होने का संदेह होता तो उस जहाज को बंदरगाह से दूर चालीस दिन ठहरना पड़ता था। ग्रेट ब्रिटेन में प्लेग को रोकने के प्रयास के रूप में इस व्यवस्था का आरंभ हुआ। उसी व्यवस्था के अनुसार इस शब्द का प्रयोग पीछे ऐसे मनुष्यों, पशुओं और स्थानों को दूसरों से अलग रखने के सभी उपायों के लिये होने लगा जिनसे किसी प्रकार के रोग के संक्रमण की आशंका हो। क्वारंटीन का यह काल अब रोग विशेष के रोकने के लिये आवश्यक समय के अनुसार निर्धारित किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय क्वारंटीन की जाँच बंदरगाहों, हवाई अड्डों और दो देशों के बीच सीमास्थ स्थानों पर होता है। विदेश से आनेवाले सभी जहाजों की क्वारंटीन संबंधी जाँच होती है। जाँच करनेवाले अधिकारी के सम्मुख जहाज का कप्तान अपने कर्मचारियों और यात्रियों का स्वास्थ्य विवरण प्रस्तुत करता है। जहाज के रोगमुक्त घोषित किए जाने पर ही उसे बंदरगाह में प्रदेश करने की अनुमति दी जाती है। यदि जहाज में किसी प्रकार का कोई संक्रामक रोगी अथवा रोग फैलानेवाली वस्तु मौजूद हो तो जहाज को बंदरगाह से दूर ही रोक दिया जाता है और उस पर क्वारंटीन काल के समाप्त होने तक पीला झंडा फहराता रहता है। रोग संबंधी गलत सूचना देने अथवा सत्य बात छिपाने के अपराध में कप्तान का कड़ा दंड मिल सकता है। क्वारंटीन व्यवस्था के अंतर्गत आनेवाले रोगों में हैजा, ज्वर, चेचक टायफायड, कुष्ट, प्लेग प्रमुख हैं। वायुयान से यात्रा करनेवाले यात्रियों को अपने गंतव्य स्थान जाने तो दिया जाता है पर रोगग्रस्त व्यक्ति पर स्वास्थ्य विभाग की निगरानी रहती है ताकि रोग का संक्रमण न हो सके। अनेक देशों में कतिपय रोगों का टीका लगा लेने का प्रमाण प्रस्तुत करने पर ही प्रवेश की अनुमति दी जाती है। इस प्रकार के प्रवेश पत्र की जाँच वायुयान से उतरकर बाहर जाने के पूर्व स्वास्थ्य अधिकारी करते हैं। रोग के संक्रमण को रोकने के निमित्त नगरों, स्थानों, मकानों अथवा व्यक्ति विशेष का भी अनेक देशों में क्वारंटीन होता है। इसके लिए प्रत्येक देश के अपने अपने नियम और कानून हैं। यूरोप और अमेरिका में जिस घर में किसी संक्रामक रोग का रोगी होता है उसके द्वार पर इस आशय की नोटिस लगा दी जाती है। कहीं कहीं रोगी के साथ डाक्टर और नर्स भी अलग रखे जाते हैं। जहाँ डाक्टर या नर्स अलग नहीं रखे जाते उन्हें विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है। वृक्ष और पशुओं का भी क्वारंटीन होता है। अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया में इसका पालन बड़ी कठोरता के साथ होता है। यहाँ तक कि यदि किसी यात्री के पास ऐसा कोई फल है जिसके माध्यम से वृक्षों का रोग फैलानेवाले कीड़े आ सकते हों, तो वह फल कितना भी अच्छा क्यों न हो तत्काल नष्ट कर दिया जाता है। इसी प्रकार कुछ निर्धारित के निर्दोष लकड़ी के बक्सों में पैक किया माल ही इन देशों में प्रवेश कर सकता है। पैकिंग के बक्से के रोगी किस्म की लकड़ी से बना होने का संदेह होने पर माल सहित बक्से को नष्ट कर दिया जाता है। .

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अरित्र

वायुयान का '''अरित्र''' तथा '''दिशा-परिवर्तन''' में उसकी भूमिका अरित्र या रडर एक सरल युक्ति है जो जलयान, नौका, पनडुब्बी, होवरक्राफ्ट, वायुयान आदि को वांछित दिशा में मोड़ने के काम आता है। स्टीरिंग घुमाकर अरित्र के घूमाने की मेकेनिज्म श्रेणी:वायुयान नियंत्रण श्रेणी:जलयान अंश श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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उत्प्लावन बल

किसी द्रव में रखी वस्तु पर लगने वाले बल किसी तरल (द्रव या गैस) में आंशिक या पूर्ण रूप से डूबी किसी वस्तु पर उपर की ओर लगने वाला बल उत्प्लावन बल कहलाता है। उत्प्लावन बल नावों, जलयानों, गुब्बारों आदि के कार्य के लिये जिम्मेदार है। .

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उत्प्लव

मौसम से संबन्धित आंकड़े जुटाने वाला एक उत्प्लव उत्प्लव (बॉय / buoy) उन पिंडों का नाम है जो समुद्रतल से बँधे रहते हैं और समुद्रपृष्ठ पर उतराते रहकर जहाजों को मार्ग की विपत्तियों या सुविधाओं की सूचना देते रहते हैं। उदाहरण के लिए, उत्प्लव संकीर्ण समुद्रों को नौपरिवहन योग्य सीमा सूचित करते हैं, या यह बताते हैं कि मार्ग उपयुक्त है, या यह कि उसके अवरोध कहाँ हैं, जैसे पानी के भीतर डूबी हुई विपत्तियाँ या बिखरे हुए चट्टान, सुरंग या टारपीडो के स्थल, तार भेजने के समुद्री तार, या लंगर छोड़कर चले गए जहाजों के छूटे हुए लंगर। कुछ उत्प्लवों से यह भी काम निकलता है कि लंगर डालने के बदले जहाज को उनसे बाँध दिया जा सकता है। इनको नौबंध उत्प्लव (मूरिंग बॉय) कहते हैं। उद्देश्य के अनुसार उत्प्लवों के आकार और रंग में अंतर होता है। ये काठ के कुंदे से लेकर इस्पात की बड़ी बड़ी संरचनाएँ हो सकती हैं, जिनमें जहाज बाँधे जाते हैं। उत्प्लव को अंग्रेजी में 'बॉय' कहते हैं और लश्करी हिंदी मे इसे 'बोया' कहा जाता है। अंग्रेजी शब्द बॉय उस प्राचीन अंग्रेजी शब्द से व्युत्पन्न है जिससे आधुनिक अंग्रेजी शब्द बीकन (beacon, आकाशदीप) की भी उत्पत्ति हुई है। परंतु अब बॉय का अर्थ हो गया है उतराना और उत्प्लव शब्द का भी अर्थ है वह जो उतराता रहे। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पोत, समुद्री जहाज़, समुद्री जहाज़ों, जलपोत

निवर्तमानआने वाली
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