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जलतापीय छिद्र

सूची जलतापीय छिद्र

जलतापीय छिद्र (hydrothermal vents) पृथ्वी या अन्य किसी ग्रह पर उपस्थित ऐसा विदर छिद्र होता है जिस से भूतापीय स्रोतों से गरम किया गया जल उगलता है। यह अक्सर सक्रीय ज्वालामुखीय क्षेत्रों, भौगोलिक तख़्तो के अलग होने वाले स्थानों और महासागर द्रोणियों जैसे स्थानों पर मिलते हैं। जलतापीय छिद्रों के अस्तित्व का मूल कारण पृथ्वी की भूवैज्ञानिक सक्रीयता और उसकी सतह व भीतरी भागों में पानी की भारी मात्रा में उपस्थिति है। जब जलतापीय छिद्र भूमि पर होते हैं तो उन्हें गरम चश्मों, फ़ूमारोलों और उष्णोत्सों के रूप में देखा जाता है। जब वे महासागरों के फ़र्श पर होते हैं तो उन्हें काले धुआँदारी (black smokers) और श्वेत धुआँदारी (white smokers) के रूप में पाया जाता है। गहरे समुद्र के बाक़ि क्षेत्र की तुलना में काले धुआँदारियों के आसपास अक्सर बैक्टीरिया और आर्किया जैसे सूक्ष्मजीवों की भरमार होती है। यह जीव इन छिद्रों में से निकल रहे रसायनों को खाकर ऊर्जा बनाते हैं और जीवित रहते हैं और फिर आगे ऐसे जीवों को ग्रास बनाने वाले अन्य जीवों के समूह भी यहाँ पनपते हैं। माना जाता है कि बृहस्पति ग्रह के यूरोपा चंद्रमा और शनि ग्रह के एनसेलेडस चंद्रमा पर भी सक्रीय जलतापीय छिद्र मौजूद हैं और अति-प्राचीनकाल में यह सम्भवतः मंगल ग्रह पर भी रहे हों। .

2 संबंधों: पेलैजिक क्षेत्र, सागरगत ज्वालामुखी

पेलैजिक क्षेत्र

पेलैजिक क्षेत्र (pelagic zone) किसी महासागर, सागर या झील के जल का वह भाग होता है जो न तो नीचे के फ़र्श के समीप हो और न ही उस जलसमूह के तट के समीप। इसे कभी-कभी खुला पानी (open water) भी कहा जाता है। पृथ्वी पर पेलैजिक क्षेत्र का कुल आयतन लगभग 13,300 लाख किमी3, औसत गहराई 3.68 किमी (2.29 मील) और अधिकतम गहराई 11 किमी (6.8 मील) है। पेलैजिक क्षेत्र में रहने वाली मछलियाँ पेलैजिक मछलियाँ कहलाती हैं। पृथ्वी के वायुमंडल की तरह पेलैजिक क्षेत्र को भी परतों में बाँटा जा सकता है। इस क्षेत्र के किसी भाग में एक काल्पनिक पानी का स्तम्भ के बारे में सोचा जाए तो जैसे-जैसे उसमें नीचे की ओर जाया जाए वैसे-वैसे दबाव बढ़ता, तापमान घटता और प्रकाश घटता जाता है। बढ़ती गहराई के साथ पेलैजिक जीवन भी घटता जाता है। .

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सागरगत ज्वालामुखी

सागरगत ज्वालामुखी (submarine volcanoes) सागर और महासागरों में पृथ्वी की सतह पर स्थित में चीर, दरार या मुख होते हैं जिनसे मैग्मा उगल सकता है। बहुत से सागरगत ज्वालामुखी भौगोलिक तख़्तों के हिलने वाले क्षेत्रों में होते हैं, जिन्हें मध्य-महासागर पर्वतमालाओं के रूप में देखा जाता है। अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी पर उगला जाने वाला 75% मैग्मा इन्हीं मध्य-महासागर पर्वतमालाओं में स्थित सागरगत ज्वालामुखियों से आता है।Martin R. Speight, Peter A. Henderson, "Marine Ecology: Concepts and Applications", John Wiley & Sons, 2013.

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