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जल

सूची जल

जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.

342 संबंधों: ऊष्मा चालन, ऊष्मा चालकता, ऊष्मा विनिमायक, ऊष्माशोषी, चाशनी, चुआक, टार्डीग्रेड, टांका, टिटहरी, ट्रैपिस्ट-१, एडीज, एनरॉन, एनोफ़िलीज़, एमाइड, एमाइनोथायाजोल, एल्ब्यूमिन, एसिटिक अम्ल, एसीटोन, एंपेडोक्लीज़, एंजल्स एंड डीमन्स (फ़िल्म), एक्रिलामाइड, ऐन्टिमोनी पेन्टाक्लोराइड, झारखण्ड के आदिवासी त्योहार, झिल्ली, झील, डाकार, डिस्टेंपर, तरण ताल, तैराकी, दुग्धशाला, द्रप्स सिंचाई, द्रवचालित संचरण प्रणाली, दोमट मिट्टी, धान उत्पादन की मेडागास्कर विधि, धारा स्रोत, निष्कर्षण, निस्सरण (जलविज्ञान), निजीकरण, नौसादर, नीबू, नीला, नीलगिरी (यूकलिप्टस), परावैद्युत सामर्थ्य, परिवहन की विधि, पर्दा, पर्यायवाची, पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण अभियांत्रिकी, पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी, पशु बीमा, ..., पशुओं में पागलपन, पादप पोषण, पानी में डूबना, पायस (इमल्शन), पारिस्थितिक पदचिह्न, पारगम्यता, पाल, पवन टर्बाइन, पंक, प्यास, प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति, प्रतापगढ़, राजस्थान, प्रलय, प्राणी, प्रवेशिका, प्रकाश-संश्लेषण, प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक, प्रकृतिवाद (दर्शन), प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी, प्लास्टीनेशन, प्लाविका, प्लवक, पौष्टिक-औषध (न्यूट्रास्युटिकल), पृथ्वी, पृथ्वी का इतिहास, पृष्ठ तनाव, पेट्रोलियम जेली, पेय-पदार्थ, पॉजि़ट्रान उत्सर्जन टोमोग्राफी, पोम्पेइ, पोषक तत्व, पीने का पानी, पीयूष ग्रन्थि, फरफुरल, फल, फ़ज़ी लॉजिक, फ्रूटी, फॉरेन्हाइट, बर्फ़, बलि, बाथौ, बादल कक्ष, बादाम का तेल, बादाम का दुध, बायोम, बालचिकित्सा, बुध (ग्रह), बृहदान्त्र, बृहस्पति (ग्रह), बृहस्पति का वायुमंडल, बेरियम सल्फेट, बेंजीन, भाप, भाप आसवन, भार वृद्धि, भारत में अन्धविश्वास, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई, भैंस, भूड़, भूमि, भूमंडलीय ऊष्मीकरण का प्रभाव, भोजन, मधु, महाभूत, महाशिवरात्रि, महासागरीय धारायें, मानव का पाचक तंत्र, मानव का पोषण नाल, मित्र वरुण, मंगल पर जल, मंगल ग्रह, मक्खन, मुहाना, मृदा लवणता, मैग्नीशियम हाईड्रॉक्साइड, मूल्य विरोधाभास, मेसोअमेरिकी, मोम, युग वर्णन, यूरिया, रबड़ी, रसायन विज्ञान, रसायन विज्ञान की समयरेखा, राना टिग्रिना, राशियों के स्वरूप, रासायनिक तत्व, रासायनिक यौगिक, रासायनिक सूत्र, रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख, रोटी, रोबोट, रोहू मछली, रीनियम, लापासरी, लार, लिव वाइगोत्सकी, लघुगणक, लवणता, लकड़ी, लूची, लेसर विज्ञान, शनि (ग्रह), शर्बत, शुक्र (ज्योतिष), शोधित जल, समुद्र तल, समुद्री प्रदूषण, समुद्री बर्फ़, सरसों का तेल, सल्फ़ोनिक अम्ल, साधारण नमक, साबुन, सायनेमाइड, सारस (पक्षी), सारसण्डा, सागरगत ज्वालामुखी, सिंचाई, संयोजकता, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, सुखाना, स्ट्रिकनीन, स्थलीय ग्रह, स्थावर सम्पदा, स्नान, स्पगैटी, स्वस्थ आहार, स्वाधिष्ठान चक्र, स्वेद-ग्रन्थि, सौर मण्डल, सौर जल तापन, सैन होज़े, कैलिफोर्निया, सूप, सूखी धुलाई, सेरेन्कोव विकिरण, सोडियम हाइड्रॉक्साइड, सोडियम कार्बोनेट, सोहन हलवा, सीमेंट, हरसौंठ, हरिता, हाला, हावरक्राफ्ट, हाइड्रोचैरिटेसिए, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, हाइड्रोजन आबंध, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, हाइग्रोस्कोपिक कण, हिम, हिमपात, हिमपुंज, हिमानी, हिमांक अवनमन, हैलोवीन, हेनरी कैवेंडिश, हेलिक्टाइट, जयपुर का इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड, जल निकाय, जल निकासी, जल प्रदूषण, जल प्रक्रमण, जल मार्ग, जल संसाधन, जल संवर्धन, जल विद्युत परियोजना, जल इंजीनियरी, जल का शोधन, जल के गुणधर्म, जलचालित मशीन, जलतापीय छिद्र, जलभंवर, जलमौसमविज्ञान, जलयोजन अभिक्रिया, जलशक्ति, जलस्नेही, जलविद्युत ऊर्जा, जलविरोधी, जलविरोधी प्रभाव, जलीय विलयन, ज्वारासुर, जीवद्रव्य, जीवन समर्थन प्रणाली, ई-मित्र, ई-सिगरेट, वर्षा, वर्षा जल संचयन, वसा, वसास्नेही, वस्त्रापुर झील, वाटर स्कीइंग, वायु, वायुमंडलीय दाब, वायुगतिकी, वायूढ़ प्रक्रिया, वाष्प शीतक, वाष्पन की पूर्ण उष्मा, वाष्पक, वाष्पोत्सर्जन, वाहितमल, वाइज़र, विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण, विद्युत स्पर्शाघात, विद्युत अपघटन, विद्युतभान, वियोजन, विलायकों के गलनांक तथा क्वथनांक, विशिष्ट ऊष्मा धारिता, विश्व गौरैया दिवस, वुल्फ़ ३५९ तारा, वृहदणु, वोदका, खनिज जल, खनिज अम्ल, खनिजों का बनना, खाद्य शृंखला, खीरा, गन्धकाम्ल, गनोगा झील, ग़ोताख़ोरी, गंगाजल, ग्रीनलैण्ड हिमचादर, ग्लूकोज़, गैस, गैस निष्कासन, गोत्र, ऑक्साइड, ऑक्सीकरण संख्या, ओसांक, आँत्वाँ लाव्वाज़्ये, आण्विक ज्यामिति, आत्मा, आनुभविक सूत्र, आप (जल), आपेक्षिक घनत्व, आपेक्षिक विद्युतशीलता, आरती, आसुत जल, आहारीय सोडियम, आईयूपीएसी नामपद्धति, आग, आंसू, आक्सिम, आक्सी श्वसन, कठोर जल, कप, कपड़ा धोने की मशीन, कब्ज, कमल, कमलानाथ, कर्णमल, कार्बोहाइड्रेट, काइटसर्फिंग, कुरुक्षेत्र, क्यूलेक्स, क्रिस्टलन जल, क्रेब्स चक्र, क्षार, क्वथन, क्वथनांक उन्नयन, कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद, कैल्सियम, कैल्सियम हाइपोक्लोराइट, कैलोरी, कैलोरीमिति, केला, केसीन, केक, कॉरोना, कोशिकाद्रव्य, अतितप्त भाप, अनुप्रयुक्त भूभौतिकी, अन्तरिक्ष, अन्जेल्स एंड डेमन्स (देवदूत और शैतान), अपशिष्ट जलोपचार, अपजल, अम्ल, अमोनिया, अलसी, अस्त्र शस्त्र, अंटार्कटिक हिमचादर, अंतर्वाह (जलविज्ञान), अंकन, अंकुरण क्रिया, उत्तरजीविता कौशल, उदासीनीकरण अभिक्रिया, उदकगति अभियांत्रिकी, उल्टी, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, छद्मनगरीकरण, छाछ, ॐ नमः शिवाय, १८६९ का राजपूताना अकाल सूचकांक विस्तार (292 अधिक) »

ऊष्मा चालन

किसी पिण्ड के अन्दर सूक्ष्म विसरण तथा कणों के टक्कर के द्वारा जो ऊष्मा का अन्तरण होता है उसे ऊष्मा चालन (Thermal conduction) कहते हैं। यहाँ 'कण' से आशय अणु, परमाणु, इलेक्ट्रान और फोटॉन से है। चालन द्वारा ऊष्मा अन्तरण ठोस, द्रव, गैस और प्लाज्मा - सभी प्रावस्थाओं में होती है। .

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ऊष्मा चालकता

भौतिकी में, ऊष्मा चालकता (थर्मल कण्डक्टिविटी) पदार्थों का वह गुण है जो दिखाती है कि पदार्थ से होकर ऊष्मा आसानी से प्रवाहित हो सकती है या नहीं। ऊष्मा चालकता को k, λ, या κ से निरूपित करते हैं। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता अधिक होती है उनसे होकर समान समय में अधिक ऊष्मा प्रवाहित होती है (यदि अन्य परिस्थितियाँ, जैसे ताप का अन्तर, पदार्थ की लम्बाई और क्षेत्रफल आदि समान हों)। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता बहुत कम होती हैं उन्हें ऊष्मा का कुचालक (थर्मल इन्सुलेटर) कहा जाता है। ऊष्मा चालकता के व्युत्क्रम (रेसिप्रोकल) को उष्मा प्रतिरोधकता (thermal resistivity) कहते हैं। .

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ऊष्मा विनिमायक

नलिकाकार ताप विनिमायक. ऊष्मा विनिमायक (हीट इक्सचेंजर) एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रभावी ऊष्मा अंतरण के लिए बनाया गया एक उपकरण है। माध्यम एक ठोस दीवार से अलग हो सकता है, ताकि वे कभी आपस में ना मिलें, या वे सीधे संपर्क में हो सकें.

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ऊष्माशोषी

ऊष्मागतिकी में ऊष्माशोषी (Endothermic) का अर्थ ऐसे प्रक्रम या रासायनिक अभिक्रिया से है जो उष्मीय उर्जा का शोषण करती है। इस प्रक्रिया की बिलोम प्रक्रिया का नाम 'ऊष्माक्षेपी' (exothermic) है। इस शब्द का उपयोग रासायनिक अभिक्रियाओं के सन्दर्भ में बहुत होता है। ऊष्माशोषी रासायनिक क्रियाओं में ऊष्मीय उर्जा, बन्ध उर्जा में परिवर्तित हो जाती है। .

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चाशनी

चाशनी भारतीय मिठाईयो मे प्रयोग होने वाला एक प्रकार का तरल पदार्थ है। यह शक्कर(चीनी) और पानी के मिश्रण से बनाया जाता है। यह रसगुल्ला,जलेबी,इमरती आदि किस्मों कि मिठाई बनाने मे उपयोग होता है। .

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चुआक

चुआक (Chuak) भारत के पूर्वोत्तर में स्थित त्रिपुरा राज्य में चावल से बनाई जाने वाली एक पारम्परिक बियर है। इसे चावल को जल में डालकर किण्वित (फ़रमेंट) करने से बनाया जाता है। चुआक सामाजिक समारोहों में पी जाती है और परम्परानुसार इसका पहला भोग ग्राम के बड़े-बूढ़े करते हैं। .

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टार्डीग्रेड

टार्डीग्रेड (Tardigrade) एक जल में रहने वाला आठ-टाँगों वाला सूक्ष्मप्राणी है। इन्हें सन् 1773 में योहन गेट्ज़ा नामक जीववैज्ञानिक ने पाया था। टार्डीग्रेड पृथ्वी पर पर्वतों से लेकर गहरे महासागरों तक और वर्षावनों से लेकर अंटार्कटिका तक लगभग हर जगह रहते हैं। टार्डीग्रेड पृथ्वी का सबसे प्रत्यास्थी (तरह-तरह की परिस्थितियाँ झेल सकने वाला) प्राणी है। यह 1 केल्विन (−272 °सेंटीग्रेड) से लेकर 420 केल्विन (150 °सेंटीग्रेड) का तापमान और महासागरों की सबसे गहरी गर्तो में मौजूद दबाव से छह गुना अधिक दबाव झेल सकते हैं। मानवों की तुलना में यह सैंकड़ों गुना अधिक विकिरण (रेडियेशन) में जीवित रह सकते हैं और अंतरिक्ष के व्योम में भी कुछ काल तक ज़िन्दा रहते हैं। यह 30 वर्षों से अधिक बिना कुछ खाए-पिए रह सकते हैं और धीरे-धीरे लगभग पूरी शारीरिक क्रियाएँ रोक लेते हैं और उनमें सूखकर केवल 3% जल की मात्रा रह जाती है। इसके बाद जल व आहार प्राप्त होने पर यह फिर क्रियशील हो जाते हैं और शिशु जन सकते हैं। फिर भी औपचारिक रूप से इन्हें चरमपसंदी नहीं माना जाता क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में यह जितनी अधिक देर रहें इनकी मृत्यु होने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है जबकि सच्चे चरमपसंदी जीव अलग-अलग उन चरम-परिस्थितियों में पनपते हैं जिनके लिए वे क्रमविकास (एवोल्यूशन) की दृष्टि से अनुकूल हों। .

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टांका

टांका एक पारम्परिक तकनीकी का थार रेगिस्तान (राजस्थान) में प्रयोग किया जाने वाला पानी का एक बड़ा गढ्ढा है। इसमें पानी को इकठ्ठा किया जाता है तथा बाल्टी की मदद से बाहर निकाल कर उपयोग में लिया जाता है। यह मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ही बनाए जाते हैं। टांका सामान्यतया: गोलाकार का ही होता है लेकिन वर्तमान में चोकोर टांके भी बनाए जाते हैं। .

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टिटहरी

टिटहरी (अंग्रेज़ी:Sandpiper, संस्कृत: टिट्टिभ) मध्यम आकार के जलचर पक्षी होते हैं, जिनका सिर गोल, गर्दन व चोंच छोटी और पैर लंबे होते हैं। यह प्राय: जलाशयों के समीप रहती है। इसे कुररी भी कहते हैं। नर अपनी मादा को हवाई करतबों से रिझाता है, जिनमें उड़ान के बीच में द्रुत चढ़ाव, पलटे और चक्कर होते है। यह तेज़ चक्करों, हिचकोलों और लुढ़कन भरी उड़ान है, जिसमें कुछ अंतराल पर पंख फड़फड़ाने की ऊंची ध्वनि दूर तक सुनाई देती है। ये धरती पर मामूली सा खोदकर अथवा थोड़े से कंकरों और बालू से घिरे गढ्डे में घोंसला बनाते हैं। इनका प्रजनन बरसात के समय मार्च से अगस्त के दौरान होता है। ये सामान्यत: दो से पांच नाशपाती के आकार के (पृष्ठभूमि से बिल्कुल मिलते-जुलते, पत्थर के रंग के हल्के पीले पर स्लेटी-भूरे, गहरे भूरे या बैंगनी धब्बों वाले) अंडे देती हैं। .

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ट्रैपिस्ट-१

ट्रैपिस्ट-१ (TRAPPIST-1), जिसे 2MASS J23062928-0502285 भी नामांकित करा जाता है, कुम्भ तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक अतिशीतल बौना तारा है जो हमारे सौर मंडल के बृहस्पति ग्रह से ज़रा बड़ा है। यह सूरज से लगभग 39.5 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है। इसके इर्द-गिर्द एक ग्रहीय मंडल है और फ़रवरी 2017 तक इस मंडल में सात स्थलीय ग्रह इस तारे की परिक्रमा करते पाए गए थे जो किसी भी अन्य ज्ञात ग्रहीय मंडल से अधिक हैं। .

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एडीज

एडीज मच्छर एडीज, मच्छरो का एक वंश हैं। सभी मच्छरों की तरह ही इसके जीवन चक्र की चार अवस्थाएं हैं: अण्डा, लारवा, प्यूपा एंव व्यस्क.

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एनरॉन

एनरॉन कॉर्पोरेशन (पूर्व में NYSE टिकर प्रतीक ENE) एक अमेरिकी ऊर्जा कम्पनी थी जो मूलतः टेक्सास के डाउनटाउन ह्यूस्टन में एनरॉन कॉम्प्लेक्स में स्थित थी। 2001 में अपने दिवालिया होने से पहले एनरॉन में लगभग 22,000 कर्मचारी कार्यरत थे और यह विश्व की एक अग्रणी विद्युत्, प्राकृतिक गैस, संचार और लुगदी और काग़ज़ की कंपनियां थीं, वर्ष 2000 में जिसका दावाकृत राजस्व लगभग $101 बिलियन था। फॉर्च्यून ने एनरॉन को लगातार छह वर्षों के लिए "अमेरिका की सर्वाधिक नवोन्मेषी कंपनी" का नाम दिया। 2001 के अंत में यह खुलासा हुआ कि इसकी सूचित वित्तीय स्थिति मूल रूप से संस्थागत, व्यवस्थित और रचनात्मक रूप से नियोजित लेखांकन धोखाधड़ी के कारण निरंतर बनी हुई थी, जो "एनरॉन घोटाले" के रूप में विख्यात है। तब से एनरॉन स्वैच्छिक निगमित धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की लोकप्रिय प्रतीक बन गई। इस घोटाले ने संयुक्त राज्य के कई अन्य निगमों के लेखांकन प्रणालियों पर सवाल खड़े किए और 2002 के सारबेंस-ऑक्स्ले अधिनियम की स्थापना का एक मुख्य कारण बना। इस घोटाले ने व्यापक व्यापार जगत को भी प्रभावित किया जिसके परिणाम स्वरूप आर्थर एंडरसन लेखांकन फर्म का विघटन हुआ। 2001 के उत्तरार्ध में एनरॉन ने न्यूयॉर्क के सदर्न डिस्ट्रिक्ट में दिवालियापन संरक्षण मुकदमा दायर करवाया और अपने दिवालियेपन के वकीलों के रूप में वेइल, गॉट्शल एंड मैन्जेस को चुना। अमेरिका के इतिहास में एक सबसे बड़ा और सबसे जटिल दिवालियापन मुकदमा चलने के बाद, वह पुनर्गठन की एक न्यायालय-अनुमोदित योजना के अनुसार, नवंबर 2004 में दिवालियापन से उभरी.

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एनोफ़िलीज़

एनोफ़िलीज़, मच्छरों का एक वंश हैं। इसमें लगभग 400 जातियां हैं। जिनमें से 30 से 40 जितियां मलेरिया रोग का वहन करती हैं। सभी मच्छरों की तरह ही इसके जीवन चक्र की चार अवस्थाएं हैं: अण्डा, लारवा,प्यूपा एंव व्यस्क.

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एमाइड

एमाइड क्रियात्मक समूह ऐमाइड (Amide) अमोनिया के हाइड्रोजन को वसीय या सौरभिक अम्ल मूलक द्वारा प्रतिस्थापित यौगिक है। इसमें अम्ल से कार्बोक्सिल मूलक का हाइड्रॉक्सिल मूलक ऐमिडोमूलक NH2 जैसे (R.CO.NH2)। ये तीन वर्ग के हैं: प्राथमिक R.CO...N H2, द्वितीयक (R.CO)2 तथा त्रितीयक (RCO)3 N* इनमें से केवल प्राथमिक ऐमाइड ही प्रमुख हैं। इन्हें 'ऐसिड ऐमाइड' भी कहते हैं। इनके नाम अम्ल के अंग्रेजी नाम से "-इक ऐसिड" निकालकर उसके बदले "ऐमाइड" लगा देने से प्राप्त होते हैं, जैसे फ़ॉर्मिक ऐसिड से फॉर्मऐमाइड (H.CO NH2), ऐसीटिक एसिड से ऐसीटेमाइड CH3। CO.NH2 इत्यादि। ऐमिनो मूलक के हाइड्रोजन के प्रतिस्थापित यौगिक को नाम के पहले एन (N) लिखकर व्यक्त करते हैं, जैसे एन-मेथिल ऐसीटैमाइड। प्रकृति में ये प्रोटीन में पेप्टाइड बंधन के रूप में पाए जाते हैं। .

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एमाइनोथायाजोल

एमाइनोथायाजोल एक कार्बनिक यौगिक है जो जल, इथर एवं अल्कोहल तीनों में घुलनशील है। इससे कई प्रकार की दवाएँ बनाई जाती हैं। अवटु ग्रन्थि की अतिसक्रियता में इसका उपयोग किया जाता है जिससे हाइपरथाइरॉयडिज़्म की चिकित्सा होती है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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एल्ब्यूमिन

अल्ब्यूमिन (लैटिन: ऐल्बस, श्वेत), या एल्ब्यूमेन एक प्रकार का प्रोटीन है। यह सांद्र लवण घोलों (कन्सन्ट्रेटेड सॉल्ट सॉल्यूशन) में धीमे-धीमे घुलता है और फिर उष्ण कोएगुलेशन होने लगता है। एल्ब्यूमिन वाले पदार्थ, जैसे अंडे की सफ़ेदी, आदि को एल्ब्यूमिनॉएड्स कहते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। १ जून २०१० प्रकृति में विभिन्न तरह के एल्बुमिन पाए जाते हैं। अंडे और मनुष्य के रक्त में पाए जाने वाले एल्बुमिन को सबसे अधिक पहचाने मिली है। यह मानव शरीर में कई महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। यह विभिन्न प्रकार के पौधों और जंतुओं का रचनात्मक अवयव हैं। अंडे की सफेदी में अल्ब्यूमिन होता है। ---- एल्बुमिन वास्तव में एक गोलाकार प्रोटीन होता है। इसकी संरचना खुरदरी और गोल होती है। इसके अणु जल के संग एक घोल तैयार करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के पदार्थ होते हैं। मांसपेशियों में पाए जाने वाले प्रोटीन रेशेदार होते हैं। इनकी संरचना अलग तरह की होती है और ये पानी में नहीं घुलते हैं। एल्बुमिन मनुष्य के शरीर में जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण घटक होते हैं। ये वसामय ऊतकों से शरीर में महत्वपूर्ण अम्लों का निर्माण करते हैं। ये शारीरिक क्रिया को नियंत्रित कर रक्त में हार्मोन और अन्य पदार्थो के परिसंचालन में सहयोग देते हैं। शरीर में इनका अभाव होने पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। रोगियों के शरीर में इसकी अपेक्षित कमी के लक्षण होने पर चिकित्सक कई बार एल्बुमिन के परीक्षण का परामर्श भी देते हैं। अंडे के सफेद हिस्से में पाए जाने वाले एल्बुमिन को ओवल्बुमिन कहते हैं। गर्म करने पर एल्बुमिन और प्रोटीन जम जाते हैं। इस गुण के कारण ये पकाने में अच्छे होते हैं। इसी कारण से अंडा जल्दी उबलता है। इसमें पाया जाने वाला एल्बुमिन दूसरे तत्वों को शुद्ध करने के लिए भी काम लाया जाता है। इसे सूप बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। पकाए जाने पर प्रोटीन फैल जाते हैं और इनकी संरचना में बदलाव आता है। ओवल्बुमिन इस स्थिति में आंशिक रूप से फैलते हैं, जिससे इन पर एक सतह बन जाती है। इसे अधिक गर्म करने पर उसकी वास्तविक संरचना नष्ट हो जाती है। .

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एसिटिक अम्ल

शुक्ताम्ल (एसिटिक अम्ल) CH3COOH जिसे एथेनोइक अम्ल के नाम से भी जाना जाता है, एक कार्बनिक अम्ल है जिसकी वजह से सिरका में खट्टा स्वाद और तीखी खुशबू आती है। यह इस मामले में एक कमज़ोर अम्ल है कि इसके जलीय विलयन में यह अम्ल केवल आंशिक रूप से विभाजित होता है। शुद्ध, जल रहित एसिटिक अम्ल (ठंडा एसिटिक अम्ल) एक रंगहीन तरल होता है, जो वातावरण (हाइग्रोस्कोपी) से जल सोख लेता है और 16.5 °C (62 °F) पर जमकर एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस में बदल जाता है। शुद्ध अम्ल और उसका सघन विलयन खतरनाक संक्षारक होते हैं। एसिटिक अम्ल एक सरलतम कार्बोक्जिलिक अम्ल है। ये एक महत्वपूर्ण रासायनिक अभिकर्मक और औद्योगिक रसायन है, जिसे मुख्य रूप से शीतल पेय की बोतलों के लिए पोलिइथाइलीन टेरिफ्थेलेट; फोटोग्राफिक फिल्म के लिए सेलूलोज़ एसिटेट, लकड़ी के गोंद के लिए पोलिविनाइल एसिटेट और सिन्थेटिक फाइबर और कपड़े बनाने के काम में लिया जाता है। घरों में इसके तरल विलयन का उपयोग अक्सर एक डिस्केलिंग एजेंट के तौर पर किया जाता है। खाद्य उद्योग में एसिटिक अम्ल का उपयोग खाद्य संकलनी कोड E260 के तहत एक एसिडिटी नियामक और एक मसाले के तौर पर किया जाता है। एसिटिक अम्ल की वैश्विक मांग क़रीब 6.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Mt/a) है, जिसमें से क़रीब 1.5 Mt/a प्रतिवर्ष पुनर्प्रयोग या रिसाइक्लिंग द्वारा और शेष पेट्रोरसायन फीडस्टोक्स या जैविक स्रोतों से बनाया जाता है। स्वाभाविक किण्वन द्वारा उत्पादित जलमिश्रित एसिटिक अम्ल को सिरका कहा जाता है। .

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एसीटोन

ऐसीटोन (Acetone) एक रंगहीन, अभिलाक्षणिक गंधवाला, ज्वलनशील द्रव है जो पानी, ईथर और ऐलकोहल में मिश्रय है। यह काष्ठ के भंजक आसवन (destructive distillation) से प्राप्त पाइरोलिग्नियस अम्ल का घटक है। इसका मुख्य उपयोग विलायक के रूप में होता है। यह फिल्मों, शक्तिशाली विस्फोटकों, आसंजकों, काँच के समान एक प्लास्टिक (पर्स्पेक्स) और ओषधियों के निर्माण में काम आता है। अति शुद्ध ऐसीटोन का उपयोग इलेक्ट्रानिकी उद्योग में विभिन्न पुर्जो को सुखाने और उन्हें साफ करने के लिए होता है। एसीटोन का सिस्टेमैटिक नाम 'प्रोपेनोन' (propanone) है। इसका अणुसूत्र (CH3)2CO है। यह सबसे सरल कीटोन है। .

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एंपेडोक्लीज़

अग्रिजेंतुम का एंपेडोक्लीज़ एंपेडोक्लीज़ (लगभग ४९० ई.पू. से ४३० ई.पू.) एक प्राचीन यूनानी विचारक था। .

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एंजल्स एंड डीमन्स (फ़िल्म)

एंजल्स एंड डीमन्स डैन ब्राउन के इसी नाम के उपन्यास का अमेरिकी फ़िल्म रूपांतरण है। यह दा विंची कोड की अगली कड़ी है, हालांकि उपन्यास एंजल्स एंड डीमन्स पहले प्रकाशित हुआ था और दा विंची कोड से पहले घटित होता है। इसका फ़िल्मांकन रोम, इटली और कल्वर सिटी, कैलिफ़ोर्निया के सोनी पिक्चर्स स्टूडियो में किया गया। टॉम हैंक्स ने रॉबर्ट लैंगडन की मुख्य भूमिका दोहराई है, जबकि निर्देशक रॉन हावर्ड, निर्माता ब्रायन ग्रेज़र, संगीतकार हैन्स ज़िम्मर और पटकथा लेखक अकिवा गोल्ड्समैन की भी वापसी हुई है। .

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एक्रिलामाइड

एक्रिलामाइड (Acrylamide) या 'एक्रिल एमाइड' (acrylic amide) एक रासायनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र C3H5NO.

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ऐन्टिमोनी पेन्टाक्लोराइड

ऐन्टिमोनी पेन्टाक्लोराइड, जिसका रासायनिक सूत्र SbCl5 है, ऐन्टिमोनी और क्लोरीन तत्वों का एक यौगिक (कम्पाउंड) है। यह एक रंगहीन तेल होता है। इसमें तेज़ी से जल के साथ रासायनिक अभिक्रिया (रियेक्शन) का स्वाभाव होता है, जिस कारणवश अगर हवा में ज़रा भी नमी हो तो यह उस से अभिक्रिया करके हाइड्रोक्लोरिक अम्ल बना लेता है। .

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झारखण्ड के आदिवासी त्योहार

झारखंड में कुल ३२ जनजातिया मिलकर रह्ती है। एक विशाल सांस्कृतिक प्रभाव होने के साथ साथ, झारखंड यहाँ के मनाये जाने वाले त्योहारों की मेजबानी के लिए जाना जाता है। इसके उत्सव प्रकृति के कारण यह भारत की ज्वलंत आध्यात्मिक कैनवास पर भी कुछ अधिक रंग डालता है। यह राज्य प्राचीन काल के संदर्भ में बहुत मायने रखता है। झारखंड में पूरे मज़ा और उल्लास के साथ सभी त्योहारो को मनाया जाता है। देशभर में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों को भी झारखंड में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस राज्य में मनाये जाने वाले त्योहारों से झारखंड का भारत में सांस्कृतिक विरासत के अद्भुत उपस्थिति का पता चलता है। हालाकि झारखंड के मुख्य आकर्षण आदिवासी त्योहारों के उत्सव में होता है। यहाँ की सबसे प्रमुख, उल्लास के साथ मनायी जाने वाली त्योहारो में से एक है सरहुल। .

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झिल्ली

झिल्ली (membrane) दो स्थानों, दिकों, अंगों, पात्रों या खंडो के बीच स्थित एक पतली अवरोधक परत होती है जो कुछ चुने पदार्थों, अणुओं, आयनों या अन्य सामग्रियों को आर-पार जाने देती है लेकिन अन्य सभी को रोकती है। जीव-शरीरों में ऐसी कई झिल्लियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें जैवझिल्लियाँ कहा जाता है। इनका कोशिका झिल्ली और कई ऊतकों को ढकने वाली झिल्लियाँ उदाहरण हैं। इनके अलावा मानवों ने कई कृत्रिम झिल्लियों का निर्माण भी करा है, जिनके प्रयोग से अलग-अलग रसायनों और पदार्थों को अलग करा जाता है। मसलन रिवर्स ऑस्मोसिस (आर ओ) नामक जल-स्वच्छिकरण यंत्र में जल को एक कृत्रिम झिल्ली से निकालकर उस से कई हानिकारक पदार्थों और सूक्ष्मजीवियों को हटाकर पीने योग्य बनाया जाता है। .

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झील

एक अनूप झील बैकाल झील झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारो तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती हैं, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पाई जाती हैं। किसी अंतर्देशीय गर्त में पाई जानेवाली ऐसी प्रशांत जलराशि को झील कहते हैं जिसका समुद्र से किसी प्रकार का संबंध नहीं रहता। कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नदियों के चौड़े और विस्तृत भाग के लिए तथा उन समुद्र तटीय जलराशियों के लिए भी किया जाता है, जिनका समुद्र से अप्रत्यक्ष संबंध रहता है। इनके विस्तार में भिन्नता पाई जाती है; छोटे छोटे तालाबों और सरोवर से लेकर मीठे पानीवाली विशाल सुपीरियर झील और लवणजलीय कैस्पियन सागर तक के भी झील के ही संज्ञा दी गई है। अधिकांशत: झीलें समुद्र की सतह से ऊपर पर्वतीय प्रदेशों में पाई जाती हैं, जिनमें मृत सागर, (डेड सी) जो समुद्र की सतह से नीचे स्थित है, अपवाद है। मैदानी भागों में सामान्यत: झीलें उन नदियों के समीप पाई जाती हैं जिनकी ढाल कम हो गई हो। झीलें मीठे पानीवाली तथा खारे पानीवाली, दोनों होती हैं। झीलों में पाया जानेवाला जल मुख्यत: वर्ष से, हिम के पिघलने से अथवा झरनों तथा नदियों से प्राप्त होता है। झीले बनती हैं, विकसित होती हैं, धीरे-धीरे तलछट से भरकर दलदल में बदल जाती हैं तथा उत्थान होंने पर समीपी स्थल के बराबर हो जाती हैं। ऐसी आशंका है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की बृहत झीलें ४५,००० वर्षों में समाप्त हो जाएंगी। भू-तल पर अधिकांश झीलें उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं। फिनलैंड में तो इतनी अधिक झीलें हैं कि इसे झीलों का देश ही कहा जाता है। यहाँ पर १,८७,८८८ झीलें हैं जिसमें से ६०,००० झीलें बेहद बड़ी हैं। पृथ्वी पर अनेक झीलें कृत्रिम हैं जिन्हें मानव ने विद्युत उत्पादन के लिए, कृषि-कार्यों के लिए या अपने आमोद-प्रमोद के लिए बनाया है। झीलें उपयोगी भी होती हैं। स्थानीय जलवायु को वे सुहावना बना देती हैं। ये विपुल जलराशि को रोक लेती हैं, जिससे बाढ़ की संभावना घट जाती है। झीलों से मछलियाँ भी प्राप्त होती हैं। .

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डाकार

डाकार, अफ्रीका महाद्वीप के राष्ट्र सेनेगल की राजधानी तथा प्रमुख बंदरगाह है। यह सेनेगल नदी तथा गैबिया नदी के बीच केप वर्ट प्रायद्वीप के पश्चिमी छोर पर स्थित है और पुराने विश्व का सबसे पश्चिमी नगर है। इस नगर का बड़ा महत्व है। यहाँ वायुसेना तथा नौसेना के अड्डे भी हैं। यूरोपीय लोगों के लिए यहाँ की ठंडी जलवायु बहुत अनुकूल है। डाकार का मुख्य बाजार बड़ा सुंदर बना है तथा बंदरगाह से २५ फुट ऊँचा है। यहाँ उद्योग साधारण वस्त्र, जूते, साबुन तथा अन्य मरम्मत के कायों तक सीमित है। डाकार बंदरगाह में जहाज मुख्यत: केवल कोयला पानी लेने के लिए ठहरते हैं। .

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डिस्टेंपर

थांका जो '''डिस्टेम्पर''' से बना है डिस्टेंपर दीवारों पर पुताई करने के लिए एक विशेष प्रकार का लेप है, जो पानी में घोलकर पोता जाता है। रंग करने का यह सबसे पुराना साधन है। यूनान और मिस्रवाले इसका बहुत उपयोग करते थे। .

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तरण ताल

बैकयार्ड तरण ताल नेवादा, लास वेगास, संयुक्त राज्य अमेरिका में छत के ऊपर बने एक तरण ताल का ऊपर से दृश्य तरण ताल, या स्वीमिंग पूल, तैराकी या जल-आधारित मनोरंजन के इरादे से पानी से भरे एक स्थान को कहते हैं। इसके कई मानक आकार हैं; ओलंपिक-आकार का स्विमिंग पूल सबसे बड़ा और सबसे गहरा होता है। पूल को जमीन से ऊपर या जमीन पर धातु, प्लास्टिक, फाइबरग्लास या कंक्रीट जैसी सामग्रियों से बनाया जा सकता है। जिस पूल को कई लोगों द्वारा या आम जनता के द्वारा उपयोग किया जा सकता है उसे पब्लिक पूल कहते हैं, जबकि विशेष रूप से कुछ लोगों द्वारा या किसी घर में इस्तेमाल किये जाने वाले पूल को प्राइवेट पूल कहा जाता है। कई हेल्थ क्लबों, स्वास्थ्य केन्द्रों और निजी क्लबों में सार्वजनिक पूल होते हैं जिन्हें ज्यादातर व्यायाम के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कई होटलों और मसाज पार्लरों में तनाव से मुक्ति के लिए सार्वजनिक पूल मौजूद होते हैं। हॉट टब और स्पा ऐसे पूल होते हैं जिसमें गर्म पानी होता है जिसे तनाव मुक्ति या चिकित्सा के लिए इस्तेमाल किया जाता है और ये घरों, क्लबों एवं मसाज पार्लरों में आम तौर पर मौजूद होते हैं। स्विमिंग पूल (तरण ताल) का उपयोग ग़ोताख़ोरी (डाइविंग) और पानी के अन्य खेलों के साथ-साथ लाइफगार्ड्स और अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण में भी होता है। स्विमिंग पूलों में बैक्टीरिया, वायरस, शैवाल और कीट लार्वा के विकास और प्रसार को रोकने के लिए अक्सर रासायनिक कीटाणुनाशकों जैसे कि क्लोरीन, ब्रोमिन या खनिज सैनिटाइजर्स और अतिरिक्त फिल्टरों का उपयोग किया जाता है। वैकल्पिक रूप से पूल कीटाणुनाशकों के बगैर अतिरिक्त कार्बन फिल्टरों और यूवी कीटाणुशोधन के साथ बायोफ़िल्टर का इस्तेमाल कर तैयार किये जा सकते हैं। दोनों ही मामलों में तालों (पूल) में एक उचित प्रवाह दर को बनाये रखना आवश्यकता होता है। .

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तैराकी

right तरण या तैराकी एक जलक्रीड़ा है। इसके अन्तर्गत अपने हाथ-पैर की सहायता से जल में गति करना होता है जो किसी कृत्रिम साधन के बिना किया जाता है। तैराकी मनोरंजन भी है और स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकार भी। आप अपने अवयवों को पानी में ढीला छोड़ दीजिए और आकाश की ओर देखते हुए पानी में लेट जाइए, आपको यह देखकर आश्चर्य होगा कि आप डूबते नहीं हैं। पानी में स्थिर रहने का यह ढंग पहले सीखना चाहिए। शरीर में सिर सब से भारी अवयव है, जिससे नाक को और प्राणियों की तरह पानी के ऊपर रखकर तैरना आरंभ में कठिन होता है। .

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दुग्धशाला

एक दुग्धशाला दुग्धशाला या डेरी में पशुओं का दूध निकालने तथा तत्सम्बधी अन्य व्यापारिक एवं औद्योगिक गतिविधियाँ की जाती हैं। इसमें प्रायः गाय और भैंस का दूध निकाला जाता है किन्तु बकरी, भेड़, ऊँट और घोड़ी आदि के भी दूध निकाले जाते हैं। .

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द्रप्स सिंचाई

द्रप्स सिंचाई का योजना-चित्र भारत के छिनवाल में केले की टपक सिंचाई की व्यवस्था द्रप्स सिंचाई या 'ड्रिप इर्रिगेशन' (Drip irrigation या trickle irrigation या micro irrigation या localized irrigation), सिंचाई की एक विशेष विधि है जिसमें पानी और खाद की बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूँद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नलियों तथा एमिटर का नेटवर्क लगाना पड़ता है। इसे 'टपक सिंचाई' या 'बूँद-बूँद सिंचाई' भी कहते हैं। टपक या बूंद-बूंद सिंचाई एक ऐसी सिंचाई विधि है जिसमें पानी थोड़ी-थोड़ी मात्र में, कम अन्तराल पर, प्लास्टिक की नालियों द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। परम्परागत सतही सिंचाई (conventional irrigation) द्वारा जल का उचित उपयोग नहीं हो पाता, क्योंकि अधिकतर पानी, जोकि पौधों को मिलना चाहिए, जमीन में रिस कर या वाष्पीकरण द्वारा व्यर्थ चला जाता है। अतः उपलब्ध जल का सही और पूर्ण उपयोग करने के लिए एक ऐसी सिंचाई पद्धति अनिवार्य है जिसके द्वारा जल का रिसाव कम से कम हो और अधिक से अधिक पानी पौधे को उपलब्ध हो पाये। कम दबाव और नियंत्रण के साथ सीधे फसलों की जड़ में उनकी आवश्यकतानुसार पानी देना ही टपक सिंचाई है। टपक सिंचाई के माध्यम से पौधों को उर्वरक आपूर्ति करने की प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है, जो कि पोषक तत्वों की लीचिंग व वाष्पीकरण नुकसान पर अंकुश लगाकर सही समय पर उपयुक्त फसल पोषण प्रदान करती है। .

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द्रवचालित संचरण प्रणाली

द्रवचालित प्रणाली में बल एवं बलाघूर्ण शक्तिप्रेषण की विधियों में द्रवचालित प्रणाली (हाइड्रॉलिक सिस्टम) सबसे आधुनिक है। द्रवचालित प्रणाली में शक्ति एक तरल की सहायता से प्रेषित की जाती है। यह तरल बहुधा तेल होता है, किंतु कभी कभी जल का भी व्यवहार किया जाता है। द्रवचालित प्रणाली को दो विभागों में विभाजित किया जा सकता है: द्रवचालित स्थितिज प्रणाली और द्रवचालित गतिज प्रणाली। .

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दोमट मिट्टी

दोमट मिट्टी का क्षेत्र दोमट एक प्रकार की मिट्टी है जो फसलों के लिए अत्यन्त उर्वर (उपजाऊ)) होती है। इसमें लगभग ४०% सिल्ट, २०% चिकनी मिट्टी तथा शेष ४०% बालू होता है। पानी तथा वायु के प्रवेश हेतु अर्थात् अधिक छिद्रिल होने के कारण फसलों की उर्वरा शक्ति अधिक होती है। ऐसी मिट्टी अपने कुल भार का ५०% पानी रोकने की क्षमता रखती है। इस मिट्टी में पोषक पदार्थों की मात्रा भी अधिक होती है। दोमट मिट्टी में सिल्ट, बालू और चिकनी मिट्टी के अंश अलग-अलग होने से भिन्न-भिन्न प्रकार के दोमट बनते हैं जैसे बलुई दोमट, सिल्टी दोमट, चिकनी दोमट, बलुई चिकनी दोमट आदि। चिकनी मिट्टी की अपेक्षा दोमट मिट्टी में अधिक पोषक पदार्थ, अधिक नमी, अधिक ह्यूमस होता है। दोमट मिट्टी की जुताई चिकनी मिट्टी की अपेक्षा आसान होती है। इसमें सिल्टी मिट्टी की अपेक्षा हवा और पानी को छानने तथा जल-निकास की बेहतर क्षमता होती है। दोमट मिट्टी बागवानी तथा कृषि कार्यों के लिए उत्तम मानी जाती है। यदि किसी बलुई या चिकनी मिट्टी में भी अधिक मात्रा में जैविक पदार्थ मिले हों तो उसके गुण भी दोमट जैसे ही होंगे। श्रेणी:मिट्टी.

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धान उत्पादन की मेडागास्कर विधि

'''श्री विधि''' से तैयार धान का खेत: खेत की मिट्टी नम है किन्तु इसमें पानी नहीं लगाया गया है। मेडागास्कर विधि धान उत्पादन की एक तकनीक है जिसके द्वारा पानी के बहुत कम प्रयोग से भी धान का बहुत अच्छा उत्पादन सम्भव होता है। इसे सघन धान प्रनाली (System of Rice Intensification-SRI या श्री पद्धति) के नाम से भी जाना जाता है। जहां पारंपरिक तकनीक में धान के पौधों को पानी से लबालब भरे खेतों में उगाया जाता है, वहीं मेडागास्कर तकनीक में पौधों की जड़ों में नमी बरकरार रखना ही पर्याप्त होता है, लेकिन सिंचाई के पुख्ता इंतजाम जरूरी हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर फसल की सिंचाई की जा सके। सामान्यत: जमीन पर दरारें उभरने पर ही दोबारा सिंचाई करनी होती है। इस तकनीक से धान की खेती में जहां भूमि, श्रम, पूंजी और पानी कम लगता है, वहीं उत्पादन 300 प्रतिशत तक ज्यादा मिलता है। इस पद्धति में प्रचलित किस्मों का ही उपयोग कर उत्पादकता बढाई जा सकती है। कैरिबियन देश मेडागास्कर में 1983 में फादर हेनरी डी लाउलेनी ने इस तकनीक का आविष्कार किया था। .

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धारा स्रोत

प्रतिरोध (दाएँ) से जुड़ा एक धारा स्रोत (बाएँ) एक सरल धारा स्रोत जो बीजेटी का उपयोग करते हुए बना है। धारा स्रोत (current source) वह युक्ति या एलेक्ट्रानिक परिपथ है जो एक नियत धारा देती है या लेती है, चाहे उसके सिरों के बीच विभवान्तर कुछ भी हो। उदाहरण के लिए 1.5 एम्पीयर धारा-स्रोत के सिरों के बीच 1 ओम का प्रतिरोध लागाएँ तो उसमें 1.5 अम्पीयर धारा बहेगी और स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर 1.5 वोल्ट होगा और यदि इस धारा स्रोत के सिरों के बीच 5 ओम का प्रतिरोध जोड़ें तो इस प्रतिरोध में भी 1.5 अम्पीयर धारा बहेगी जबकि इस स्थिति में स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर 7.5 (.

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निष्कर्षण

कॉन्टिनुअस हॉपर तलकर्ष जल की विद्यमान गहराई के बढ़ा, बंदरगाह, नदी, नहर और सागरतट से दूर जलक्षेत्रों को नौचालन के योग्य गहरा बनाने और उस गहराई को बनाए रखने, समुद्री संरचनाओं के लिए नींव डालने, नदियों को गहरी, चौड़ी या सीधी करने, सिंचाई के लिए नहर काटने और निम्न तल पर स्थित भूमि का उद्धार करने के लिए पदार्थों के हटाने की कला को तलकर्षण (Dredging) कहा जाता है। तलकर्षण का महत्व इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि स्वेज नहर का निर्माण तलकर्षण द्वारा 30,000,000 टन रेत हटाने पर ही संम्भव हो सका। तलकर्षण के लिए जो मशीनें प्रयुक्त होती हैं, उन्हें निकर्षक या झामयंत्र (dredger) कहते हैं। इन मशीनों से जल के अंदर जमे पदार्थ निकाले जाते हैं और उनकी व्यवस्था की जाती है। .

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निस्सरण (जलविज्ञान)

जलविज्ञान में निस्सरण किसी दिये गये अनुप्रस्थ-काट क्षेत्र (क्रॉस-सेक्शनल एरिया) के द्वारा प्रवाहित जल जिसमें निलंबित ठोस (जैसे तलछट), घुलित रासायनिक सामग्री (जैसे CaCO3(aq)) और/या जैविक सामग्री (जैसे द्विअणु) शामिल हों, की परिमाण दर है। निस्सरण को जलाशय प्रणाली के संदर्भ में अक्सर बहिर्वाह, के नाम से भी परिभाषित किया जाता है। निस्सरण को व्यक्त करने के लिए m3/s (घन मीटर प्रति सेकण्ड) या ft3/s (घन फीट प्रति सेकण्ड) या/और एकड़-फुट प्रति दिन जैसी ईकाइयाँ प्रयोग में आती हैं। किसी नदी के निस्सरण मापने या उसका अनुमान लगाने के लिए सामान्यत: निरंतरता समीकरण का सरल प्रकार प्रयोग मे लाया जाता है। समीकरण के अनुसार किसी भी असंपीड्य तरल, जैसे कि जल का निस्सरण (Q) धारा के अनुप्रस्थ-काट क्षेत्र (A) और उसके माध्य वेग (\bar) के गुणनफल के बराबर होता है। इसे निम्नलिखित रूप से व्यक्त किया जा सकता है। जहाँ.

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निजीकरण

निजीकरण व्यवसाय, उद्यम, एजेंसी या सार्वजनिक सेवा के स्वामित्व के सार्वजनिक क्षेत्र (राज्य या सरकार) से निजी क्षेत्र (निजी लाभ के लिए संचालित व्यवसाय) या निजी गैर-लाभ संगठनों के पास स्थानांतरित होने की घटना या प्रक्रिया है। एक व्यापक अर्थ में, निजीकरण राजस्व संग्रहण तथा कानून प्रवर्तन जैसे सरकारी प्रकार्यों सहित, सरकारी प्रकार्यों के निजी क्षेत्र में स्थानांतरण को संदर्भित करता है। शब्द "निजीकरण" का दो असंबंधित लेनदेनों के वर्णन के लिए भी उपयोग किया गया है। पहला खरीद है, जैसे किसी सार्वजनिक निगम या स्वामित्व वाली कंपनी के स्टॉक के सभी शेयर बहुमत वाली कंपनी द्वारा खरीदा जाना, सार्वजनिक रूप से कारोबार वाले स्टॉक का निजीकरण है, जिसे प्रायः निजी इक्विटी भी कहते हैं। दूसरा है एक पारस्परिक संगठन या सहकारी संघ का पारस्परिक समझौता रद्द कर के एक संयुक्त स्टॉक कंपनी बनाना.

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नौसादर

नौसादर (अमोनियम नीरेय) एक अकार्बनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र NH4Cl है। यह श्वेत रंग का क्रिस्टलीय पदार्थ है जो जल में अत्यधिक विलेय है। इसका जलीय विलयन हल्का अम्लीय होता है। प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला साल अमोनियक (Sal ammoniac) अमोनियम नीरेय (क्लोराइड) का खनिज (mineralogical) रूप है। .

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नीबू

नीबू का वृक्ष नीबू (Citrus limon, Linn.) छोटा पेड़ अथवा सघन झाड़ीदार पौधा है। इसकी शाखाएँ काँटेदार, पत्तियाँ छोटी, डंठल पतला तथा पत्तीदार होता है। फूल की कली छोटी और मामूली रंगीन या बिल्कुल सफेद होती है। प्रारूपिक (टिपिकल) नीबू गोल या अंडाकार होता है। छिलका पतला होता है, जो गूदे से भली भाँति चिपका रहता है। पकने पर यह पीले रंग का या हरापन लिए हुए होता है। गूदा पांडुर हरा, अम्लीय तथा सुगंधित होता है। कोष रसयुक्त, सुंदर एवं चमकदार होते हैं। नीबू अधिकांशत: उष्णदेशीय भागों में पाया जाता है। इसका आदिस्थान संभवत: भारत ही है। यह हिमालय की उष्ण घाटियों में जंगली रूप में उगता हुआ पाया जाता है तथा मैदानों में समुद्रतट से 4,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है। इसकी कई किस्में होती हैं, जो प्राय: प्रकंद के काम में आती हैं, उदाहरणार्थ फ्लोरिडा रफ़, करना या खट्टा नीबू, जंबीरी आदि। कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके उत्पादन के स्थान मद्रास, बंबई, बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र हैदराबाद, दिल्ली, पटियाला, उत्तर प्रदेश, मैसूर तथा बड़ौदा हैं। नीबू की उपयोगिता जीवन में बहुत अधिक है। इसका प्रयोग अधिकतर भोज्य पदार्थों में किया जाता है। इससे विभिन्न प्रकार के पदार्थ, जैसे तेल, पेक्टिन, सिट्रिक अम्ल, रस, स्क्वाश तथा सार (essence) आदि तैयार किए जाते हैं। .

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नीला

नीला रंग वह है, जिसे प्रकाश के प्रत्यक्ष वर्णक्रम की 440–490 nm की तरंगदैर्घ्य द्वारा दृश्य किया जाता है। यह एक संयोजी प्राथमिक रंग है। इसका सम्पूरक रंग पीला है, यदि HSL एवं HSV वर्ण चक्र पर देखें तो। परंपरागत वर्णचक्र पर इसका सम्पूरक रंग है नारंगी। भारत का राष्ट्रीय क्रीडा़ रंग भी नीला ही है। यह धर्म-निर्पेक्षता दिखलाता है। .

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नीलगिरी (यूकलिप्टस)

नीलगिरी मर्टल परिवार, मर्टसिया प्रजाति के पुष्पित पेड़ों (और कुछ झाडि़यां) की एक भिन्न प्रजाति है। इस प्रजाति के सदस्य ऑस्ट्रेलिया के फूलदार वृक्षों में प्रमुख हैं। नीलगिरी की 700 से अधिक प्रजातियों में से ज्यादातर ऑस्ट्रेलिया मूल की हैं और इनमें से कुछ बहुत ही अल्प संख्या में न्यू गिनी और इंडोनेशिया के संलग्न हिस्से और सुदूर उत्तर में फिलपिंस द्वीप-समूहों में पाये जाते हैं। इसकी केवल 15 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया के बाहर पायी जाती हैं और केवल 9 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया में नहीं होतीं.

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परावैद्युत सामर्थ्य

इंसुलेटिंग ऑयल का ब्रेकडॉउन टेस्ट करने वाला उपकरण भौतिकी में परावैद्युत सामर्थ्य (dielectric strength) के निम्नलिखित अर्थ हैं-.

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परिवहन की विधि

परिवहन की विधि (या परिवहन के साधन या परिवहन प्रणाली या परिवहन का तरीका या परिवहन के रूप) वह शब्द हैं जो वस्तुत: परिवहन के अलग-अलग तरीकों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। सबसे प्रमुख परिवहन के साधन हैं हवाई परिवहन, रेल परिवहन सड़क परिवहन और जल परिवहन, लेकिन अन्य तरीके भी उपलब्ध हैं जिनमें पाइप लाइन, केबल परिवहन, अंतरिक्ष परिवहन और ऑफ-रोड परिवहन भी शामिल हैं। मानव संचालित परिवहन और पशु चालित परिवहन अपने तरीके का परिवहन है, लेकिन यह सामान्य रूप से अन्य श्रेणियों में आते हैं। सभी परिवहन में कुछ माल परिवहन के लिए उपयुक्त हैं और कुछ लोगों के परिवहन के लिए उपयुक्त हैं। प्रत्येक परिवहन की विधि को मौलिक रूप से विभिन्न तकनीकी समाधान और कुछ अलग वातावरण की आवश्यकता होती है। प्रत्येक विधी की अपनी बुनियादी सुविधाएं, वाहन, कार्य और अक्सर विभिन्न विनियमन हैं। जो परिवहन एक से अधिक मोड का उपयोग करते हैं उन्हें इंटरमोडल के रूप में वर्णित किया जा सकता है। .

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पर्दा

पर्दा एक कपड़ा होता है जो घर की खिड़कियों एवं दरवाजों पर लगाया जाता है। इसका उद्देश्य बाहर से आने वाले प्रकाश, हवा और पानी को अन्दर आने से रोकना है। इसको लगाने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य निजता (प्रायवेसी) की रक्षा करना भी होता है।.

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पर्यायवाची

ऐसे शब्द जिनके अर्थ समान हों, पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं। जैसे–त्रुटि दोष जल के पर्यायवाची शब्द हैं पानी, नीर, अंबु, तोय आदि। सूर्य के पर्यायवाची शब्द - दिनकर, दिवाकर, भानु, भास्कर, आक, आदित्य, दिनेश, मित्र, मार्तण्ड, मन्दार, पतंग, विहंगम, रवि, प्रभाकर, अरुण,अंशुमाली मृतक.

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पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना है। 'परि' का आशय चारों ओर तथा 'आवरण' का आशय परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों,प्राणियों,और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं वास्तव में पर्यावरण में वायु,जल,भूमि,पेड़-पौधे, जीव-जन्तु,मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं। .

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पर्यावरण अभियांत्रिकी

औद्योगिक वायु प्रदूषण के स्रोत पर्यावरण इंजीनियरिंग पर्यावरण (हवा, पानी और/या भूमि संसाधनों) में सुधार करने, मानव निवास और अन्य जीवों के लिए स्वच्छ जल, वायु और ज़मीन प्रदान करने और प्रदूषित स्थानों को सुधारने के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग के सिद्धांतों का अनुप्रयोग है। पर्यावरण इंजीनियरिंग में शामिल हैं जल और वायु प्रदूषण नियंत्रण, पुनरावर्तन, अपशिष्ट निपटान और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे और साथ ही साथ पर्यावरण इंजीनियरिंग कानून से संबंधित ज्ञान.

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पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी

जब जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग प्राकृतिक पर्यावरण के अध्ययन के लिए या में किया जाता है, तो उसे पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी कहते हैं। व्यावसायिक उपयोग और इस्तेमाल हेतु जैव प्रौद्योगिकी के प्रयोग को भी पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी समझा जा सकता है। ने पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी की व्याख्या इस प्रकार की है, "दूषित वातावरण (जमीन, हवा, पानी) को ठीक करने और पर्यावरण-अनुकूल प्रक्रियाओं (हरित विनिर्माण प्रौद्योगिकी और स्थायी विकास) के लिए जैविक तंत्रों का विकास, उपयोग तथा विनियमन".

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पशु बीमा

परवरिश पशुओ और बेचने के लिए पोल्ट्री अप्रत्याशित और जोखिम भरा हो सकता है। यही कारण है कि एक ठोस और पशुधन या मुर्गी बीमा पॅलिसी एक आवश्यकता है वह है। यह बीमा उन अप्रत्याशित घटनाओं और दुर्घटनाओं कि अपने जानवरों और अपनी आजीविका तबाह कर सकते हैं से अपने निवेश की सुरक्षा करता है। फ़ार्म पशु बीमा अपने विशेष पशु समूह को कवर के लिए अनुकूलित किया जा सकता है, तो पशु, सूअर, भेड, एमु, बकरी, मुर्गी या अपने खेत पर इनमें से किसी भी संयोजन है या नहीं। भारतीय कृषि उद्योग, एक और हरित क्रांति कि इसे और अधिक आकर्षक और लाभदायक बनाता के कगार पर भारत में कुल कृषि उत्पादन के रूप में अगले दस साल में दोगुना होने की संभावना है और वह भी एक जैविक तरीके से| पशु बीमा पॉलिसी अपने मवेशियों है, जो एक ग्रामीण समुदाय की सबसे मूल्यवान संपत्ति है कि मृत्यु के कारण वित्तीय नुकसान से भारतीय ग्रामीन लोगों की सुरक्षा के लिए प्रदान की जाती है। नीति होने गाय, बैल या तो सेक्स एक पशु चिकित्सक/ सर्जन द्वारा ध्वनि और उत्तम स्वास्थ्य और चोट या रोग से मुक्त होने के रूप में प्रमाणित की भैंस और जो माइक्रो फ़ाइनेंस संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों के सदस्य कर रहे हैं व्यक्तियों को शामिल किया, सरकार प्रायोजित संगठनों और इस तरह के संबंध समूहों/ ग्रामीण और सामाजिक क्षेत्र में संस्थानों| पशु बीमा .

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पशुओं में पागलपन

पशुओं में पागलपन या हलकजाने का रोग (रेबीज़) को पैदा करने वाले विषाणु हलकाये कुत्ते, बिल्ली, बन्दर, गीदड़, लोमड़ी या नेवले के काटने से स्वस्थ पशु के शरीर में प्रवेश करते हैं तथा नाड़ियों के द्वारा मष्तिस्क में पहुंच कर उसमें बीमारी के लक्षण पैदा करते हैं। रोग ग्रस्त पशु की लार में यह विषाणु बहुतायत में होता है तथा रोगी पशु द्वारा दूसरे पशु को काट लेने से अथवा शरीर में पहले से मौजूद किसी घाव के ऊपर रोगी की लार लग जाने से यह बीमारी फैल सकती है। यह बीमारी रोग ग्रस्त पशुओं से मनुष्यों में भी आ सकती है अतः इस बीमारी का जन स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्व है। एक बार पशु अथवा मनुष्य में इस बीमारी के लक्षण पैदा होने के बाद उसका फिर कोई इलाज नहीं है तथा उसकी मृत्यु निश्चित है। विषाणु के शरीर में घाव आदि के माध्य्म से प्रवेश करने के बाद 10 दिन से 210 दिनों तक की अवधि में यह बीमारी हो सकती है। मस्तिष्क के जितना अधिक नजदीक घाव होता है उतनी ही जल्दी बीमारी के लक्षण पशु में पैदा हो जाते हैं जैसे कि सिर अथवा चेहरे पर काटे गए पशु में एक हफ्ते के बाद यह रोग पैदा हो सकता है। .

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पादप पोषण

पादप पोषण (Plant Nutrition) के अन्तर्गत पादपों के विकास के लिए आवश्यक रासायनिक तत्त्वों एवं यौगिकों का अध्ययन किया जाता है। सत्रह (17) अत्यावश्यक पादप-पोषक तत्व हैं। कार्बन, आक्सीजन, तथा जल के अलावा निम्नलिखित खनिज तत्त्व आवश्यक हैं-.

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पानी में डूबना

जब कोई व्यक्ति पूरी तरह से या फिर आंशिक रूप से पानी में डूबता है तो श्वांस अवरोध के कारण व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। पानी में व्यक्ति के डूबने की अलग-अलग स्थिति होती है जो की उसके मृत्यु की सम्भावना बढ़ाती है और मृत्यु का समय भी |.

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पायस (इमल्शन)

A. दो अमिश्रणीय तरल जिनका अभी पायसन नहीं बना है; B. प्रावस्था II, प्रावस्था I मे परिक्षेपित होने से बना पायसन; C. एक अस्थिर पायसन समय के साथ अलग होता है; D. पृष्ठसक्रियकारक (सरफैक्टेंट) (बैंगनी रेखा) खुद को प्रावस्था II और प्रावस्था I के मध्य लाकर पायसन को स्थायित्व प्रदान करता है। पायस (emulsion) दो या इससे अधिक अमिश्रणीय तरल पदार्थों से बना एक मिश्रण है। एक तरल (परिक्षेपण प्रावस्था) अन्य तरल (सतत प्रावस्था) में परिक्षेपित (फैलता) होता है। कई पायसन तेल/पानी के पायसन होते हैं, जिनमे आहार वसा प्रतिदिन प्रयोग मे आने वाले तेल का एक सामान्य उदाहरण है। पायसन के उदाहरण में शामिल हैं, मक्खन और मार्जरीन, दूध और क्रीम, फोटो फिल्म का प्रकाश संवेदी पक्ष, मैग्मा और धातु काटने मे काम आने वाले तरल। मक्खन और मार्जरीन, मे वसा पानी की बूंदों को चारो ओर से ढक लेता है (एक पानी में तेल पायसन)। दूध और क्रीम, मे पानी, वसा की बूंदों के चारों ओर रहता है (एक तेल में पानी पायसन)। मैग्मा के कुछ प्रकार में, तरल की गोलिकायें NiFe तरल सिलिकेट की एक सतत प्रावस्था के भीतर परिक्षेपित हो सकती हैं। पायसीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पायसन का निर्माण होता है। पायसन शब्द को तेल क्षेत्र में भी इस्तेमाल किया जाता है जैसे अपरिशोधित कच्चा तेल, तेल और पानी का मिश्रण होता है। श्रेणी:रासायनिक मिश्रण श्रेणी:कलिल श्रेणी:नरम पदार्थ.

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पारिस्थितिक पदचिह्न

पारिस्थितिक पदचिह्न, पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्रों पर मानवीय माँग का एक मापक है। यह इंसान की मांग की तुलना, पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरुत्पादन करने की क्षमता से करता है। यह मानव आबादी द्वारा उपभोग किए जाने वाले संसाधनों के पुनरुत्पादन और उससे उत्पन्न अपशिष्ट के अवशोषण और उसे हानिरहित बनाकर लौटाने के लिए ज़रूरी जैविक उत्पादक भूमि और समुद्री क्षेत्र की मात्रा को दर्शाता है। इसका प्रयोग करते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर प्रत्येक व्यक्ति एक निश्चित जीवन शैली अपनाए, तो मानवता की सहायता के लिए पृथ्वी के कितने हिस्से (या कितने पृथ्वी ग्रह) की ज़रूरत होगी। 2006 के लिए मनुष्य जाति के कुल पारिस्थितिक पदचिन्ह को 1.4 पृथ्वी ग्रह अनुमानित किया गया था, अर्थात मानव जाति पारिस्थितिक सेवाओं का उपयोग पृथ्वी द्वारा उनके पुनर्सृजन की तुलना में 1.4 गुना तेज़ी से करती है। प्रति वर्ष इस संख्या की पुनर्गणना की जाती है – संयुक्त राष्ट्र को आधारभूत आंकड़े इकट्ठा करने और प्रकाशित करने में समय लगने के कारण यह तीन साल पीछे चलती है। जहां पारिस्थितिक पदचिह्न शब्द का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है, वहीं इसके मापन के तरीके भिन्न होते हैं। हालांकि गणना के मानक अब ज्यादा तुलनात्मक और संगत परिणाम देने वाले बन कर उभर रहे हैं। .

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पारगम्यता

निर्वात की पारगम्यता (लाल) की तुलना में लौहचुम्बकीय (भूरा), अनुचुम्बकीय (नीला) एवं प्रतिचुम्बकीय (हरा) पदार्थों की पारगम्यता का सरलीकृत चित्रण लौहचुम्बकीय पदार्थों की पारगम्यता उनमें उपस्थित फ्लक्स घनत्व का फलन होती है। विद्युतचुम्बकत्व के सन्दर्भ में पारगम्यता (permeability) किसी पदार्थ का वह गुण है जो उस पदार्थ में चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित किये जाने में उस पदार्थ द्वारा प्रदर्शित 'सहायता' की मात्रा की माप बताता है। इसे ग्रीक वर्ण μ (म्यू) से प्रदर्शित किया जाता है.। .

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पाल

पाल या बादबान पवन की शक्ति द्वारा किसी वाहन को जल, हिम या धरती पर आगे धकेलने के एक साधन को कहते हैं। आमतौर पर पाल कपड़े या अन्य किसी सामग्री से बनी एक सतह होती है जो वाहन में जड़े हुए मस्तूल (mast) कहलाने वाले एक सख़्त खम्बे के साथ लगी हुई होती है। जब पाल पर वायू प्रवाह का प्रहार होता है तो पाल फूल-सा जाता है और आगे को धकेला जाता है। यह बल मस्तूल द्वारा यान को प्रसारित होता है। कुछ पालों का आकार ऐसा होता है जिनपर पवन एक ऊपर की ओर उठाने वाला बल भी प्रस्तुत करती है। इस से भी वाहन को आगे धकेलने में असानी होती है। पाल और पतंग दोनों में पवन के बल का प्रयोग वस्तुओं को गति देने के लिये होता है। .

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पवन टर्बाइन

बेल्जियम के उत्तरी सागर में अपतटीय पवन फार्म 5 मेगावॉट टर्बाइन आरई-पॉवर एम5 (REpower M5) का उपयोग करते हुए पवन टर्बाइन एक रोटरी उपकरण है, जो हवा से ऊर्जा को खींचता है। अगर यांत्रिक ऊर्जा का इस्तेमाल मशीनरी द्वारा सीधे होता है, जैसा कि पानी पंप करने लिए, इमारती लकड़ी काटने के लिए या पत्थर तोड़ने के लिए होता है, तो वह मशीनपवन-चक्की कहलाती है। इसके बदले अगर यांत्रिक ऊर्जा बिजली में परिवर्तित होती है, तो मशीन को अक्सर पवन जेनरेटर कहा जाता है। .

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पंक

पंक (mud) पानी और धूल का मिश्रण होती है। नदी या तालाब के तल की मिट्टी को त्वचा के लिए स्वास्थ्य और सौंदर्यवर्धक माना गया है। इसमें से भी मुल्तानी मिट्टी सर्वश्रेष्ठ समझी जाती है। आयुर्वेद में अनेक उपचारों में शरीर पर इसके लेप का विधान है। इसको सृष्टि की रचना और शरीर की रचना में प्रयुक्त 5 तत्वों में से एक समझा जाता है। .

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प्यास

पीने की इच्छा को प्यास कहते हैं। जन्तुओं में प्यास लगने के कारण ही वे अपने शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बनाये रख पाते हैं। जब शरीर में जल की मात्रा एक सीमा से कम हो जाती है है या नमक या अन्य परासरणकारी पदार्थ की सान्द्रता बढ़ जाती है तो मस्तिष्क 'प्यास' का संकेत करता है। श्रेणी:भोजन एवं पेय.

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प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति

सीतामाता मंदिर के सामने एक मीणा आदिवासी: छाया: हे. शे. हालाँकि प्रतापगढ़ में सभी धर्मों, मतों, विश्वासों और जातियों के लोग सद्भावनापूर्वक निवास करते हैं, पर यहाँ की जनसँख्या का मुख्य घटक- लगभग ६० प्रतिशत, मीना आदिवासी हैं, जो राज्य में 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में वर्गीकृत हैं। पीपल खूंट उपखंड में तो ८० फीसदी से ज्यादा आबादी मीणा जनजाति की ही है। जीवन-यापन के लिए ये मीना-परिवार मूलतः कृषि, मजदूरी, पशुपालन और वन-उपज पर आश्रित हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट-संस्कृति, बोली और वेशभूषा रही है। अन्य जातियां गूजर, भील, बलाई, भांटी, ढोली, राजपूत, ब्राह्मण, महाजन, सुनार, लुहार, चमार, नाई, तेली, तम्बोली, लखेरा, रंगरेज, रैबारी, गवारिया, धोबी, कुम्हार, धाकड, कुलमी, आंजना, पाटीदार और डांगी आदि हैं। सिख-सरदार इस तरफ़ ढूँढने से भी नज़र नहीं आते.

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प्रतापगढ़, राजस्थान

प्रतापगढ़, क्षेत्रफल में भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के ३३वें जिले प्रतापगढ़ जिले का मुख्यालय है। प्राकृतिक संपदा का धनी कभी इसे 'कान्ठल प्रदेश' कहा गया। यह नया जिला अपने कुछ प्राचीन और पौराणिक सन्दर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है, यद्यपि इसके सुविचारित विकास के लिए वन विभाग और पर्यटन विभाग ने कोई बहुत उल्लेखनीय योगदान अब तक नहीं किया है। .

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प्रलय

प्रलय का अर्थ होता है संसार का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना, सृष्टि का सर्वनाश, सृष्टि का जलमग्न हो जाना। पुराणों में काल को चार युगों में बाँटा गया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जब चार युग पूरे होते हैं तो प्रलय होती है। इस समय ब्रह्मा सो जाते हैं और जब जागते हैं तो संसार का पुनः निर्माण करते हैं और युग का आरम्भ होता है। प्रकृति का ब्रह्म में लीन (लय) हो जाना ही प्रलय है। संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई हैं जो सबसे शक्तिशाली है। .

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प्राणी

प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .

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प्रवेशिका

प्रवेशिका (inlet) या पतली खाड़ी किसी तट पर एक लम्बी और पतली खाड़ी होती है जिसमें सागर का पानी कुछ दूरी तक भूमीय क्षेत्र में अंदर आया हुआ होता है। जब किसी पहाड़ी क्षेत्र में यह हिमानी द्वारा बनता है जो ऐसी प्रवेशिकाओं को फ़्योर्ड कहा जाता है। .

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प्रकाश-संश्लेषण

हरी पत्तियाँ, प्रकाश संश्लेषण के लिये प्रधान अंग हैं। सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है। प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगो जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पौधों की हरी पत्तियों की कोंशिकाओं के अन्दर कार्बन डाइआक्साइड और पानी के संयोग से पहले साधारण कार्बोहाइड्रेट और बाद में जटिल काबोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सूक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च (मंड) आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है। जल, कार्बनडाइऑक्साइड, सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल (पर्णहरित) को प्रकाश संश्लेषण का अवयव कहते हैं। इसमें से जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण का कच्चा माल कहा जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैवरासायनिक अभिक्रियाओं में से एक है। सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं। प्रकाश संश्वेषण करने वाले सजीवों को स्वपोषी कहते हैं। .

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प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक

कार्बन चक्र प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होती है। इसके कुछ कारक बाह्य होते हैं तथा कुछ भीतरी। इसके अतिरिक्त कुछ सीमाबद्ध कारक भी होते हैं। बाह्य कारण वे होते है जो प्रकृति और पर्यावरण में स्थित होते हुए प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करते हैं जैसे प्रकाश, कार्बनडाई ऑक्साइड, तापमान तथा जल। आंतरिक कारण वे होते हैं जो पत्तियों में स्थित होते हुए प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करते हैं जैसे- पर्ण हरिम, प्ररस, भोज्य पदार्थ का जमाव, पत्तियों की आंतरिक संरचना और और पत्तियों की आयु। इसके अतिरिक्त प्रकाश संश्लेषण को इन सभी वस्तुओं की गति भी प्रभावित करती है। जब प्रकाश संश्लेषण की एक क्रिया विभिन्न कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है तब प्रकाश संश्लेषण की गति सबसे मन्द कारक द्वारा नियंत्रित होती है। प्रकाश, कार्बनडाइऑक्साइड, जल, क्लोरोफिल इत्यादि में से जो भी उचित परिमाण से कम परिमाण में होता है, वह पूरी क्रिया की गति को नियन्त्रित रखता है। यह कारक समय विशेष के लिए सीमाबद्ध कारक कहा जाता है। .

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प्रकृतिवाद (दर्शन)

प्रकृतिवाद (Naturalism) पाश्चात्य दार्शनिक चिन्तन की वह विचारधारा है जो प्रकृति को मूल तत्त्व मानती है, इसी को इस बरह्माण्ड का कर्ता एवं उपादान (कारण) मानती है। यह वह 'विचार' या 'मान्यता' है कि विश्व में केवल प्राकृतिक नियम (या बल) ही कार्य करते हैं न कि कोई अतिप्राकृतिक या आध्यातिम नियम। अर्थात् प्राक्रितिक संसार के परे कुछ भी नहीं है। प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन आदि की सत्ता में विश्वास नहीं करते। यूनानी दार्शनिक थेल्स (६४० ईसापूर्व-५५० इसापूर्व) का नाम सबसे पहले प्रकृतिवादियों में आता है जिसने इस सृष्टि की रचना जल से सिद्ध करने का प्रयास किया था। किन्तु स्वतन्त्र दर्शन के रूप में इसका बीजारोपण डिमोक्रीटस (४६०-३७० ईसापूर्व) ने किया। प्रकृतिवादी विचारक बुद्धि को विशेष महत्व देते हैं परन्तु उनका विचार है कि बुद्धि का कार्य केवल वाह्य परिस्थितियों तथा विचारों को काबू में लाना है जो उसकी शक्ति से बाहर जन्म लेते हैं। इस प्रकार प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन इत्यादि की सत्ता में विश्वास नहीं करते हैं। प्रो.

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प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी

प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी या मित्र सी, जिसका बायर नाम α Centauri C या α Cen C है, नरतुरंग तारामंडल में स्थित एक लाल बौना तारा है। हमारे सूरज के बाद, प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी हमारी पृथ्वी का सब से नज़दीकी तारा है और हमसे ४.२४ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर है।, Pierre Kervella and Frederic Thevenin, ESO, 15 मार्च 2003 फिर भी प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी इतना छोटा है के बिना दूरबीन के देखा नहीं जा सकता।, Govert Schilling, स्प्रिंगर, 2011, ISBN 978-1-4419-7810-3,...

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प्लास्टीनेशन

प्लास्टीनेशन कि प्रक्रिया के कूल चार स्टेप हैं.

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प्लाविका

प्लाविका या रक्त प्लाज्मा, रक्त का पीले रंग का तरल घटक है, जिसमें पूर्ण रक्त की रक्त कोशिकायें सामान्य रूप से निलंबित रहती हैं। यह कुल रक्त की मात्रा का लगभग 55% तक होता है। इसका अधिकतर अंश जल (90% आयतन अनुसार) होता है और इसमें प्रोटीन, शर्करा, थक्का जमाने वाले कारक, खनिज आयन, हार्मोन और कार्बन डाइऑक्साइड (प्लाविका उत्सर्जित उत्पादों के निष्कासन का प्रमुख माध्यम है) घुले रहते हैं। प्लाविका को रक्त से पृथक करने के लिए एक परखनली मे ताजा रक्त लेकर उसे सेंट्रीफ्यूज़ (अपकेंद्रिक) में तब तक घुमाना चाहिए जब तक रक्त कोशिकायें नली के तल मे बैठ न जायें, इसके बाद ऊपर बचे प्लाविका को उड़ेल कर अलग या तैयार कर लें। प्लाविका का घनत्व लगभग 1025 kg/m3, या 1.025 kg/l.

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प्लवक

कुछ प्लवक वे सभी प्राणी या वनस्पति, जो जल में जलतरंगों या जलधारा द्वारा प्रवाहित होते रहते हैं, प्लवक (प्लवक .

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पौष्टिक-औषध (न्यूट्रास्युटिकल)

पौष्टिक-औषध (न्यूट्रास्युटिकल), जो "न्यूट्रिशन" (पोषण) और "फार्मास्युटिकल" (दवा/औषध) शब्दों से मिलकर बना है, एक खाद्य या खाद्य उत्पाद है जो बीमारी की रोकथाम एवं उपचार सहित स्वास्थ्य एवं चिकित्सीय लाभ प्रदान करता है। ऐसे उत्पाद पृथक्कृत पोषक तत्वों, आहार पूरकों और विशेष आहारों से लेकर आनुवंशिक रूप से तैयार किये गए खाद्य पदार्थ, जड़ी-बूटी संबंधी उत्पाद और अनाज, सूप, एवं पेय पदार्थ जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों हो सकते हैं। हाल ही में कोशिकीय-स्तरीय पौष्टिक-औषधीय पदार्थों के महत्वपूर्ण खोजों के माध्यम से शोधकर्ता, एवं चिकित्सक प्रशंसात्मक एवं वैकल्पिक चिकित्साओं के संबंध में नैदानिक अध्ययनों से प्राप्त जानकारी को उत्तरदायी चिकित्सा कार्यप्रणाली के रूप में संघटित करने और उसका मूल्यांकन करने के लिए नमूने विकसित कर रहे हैं। पौष्टिक-औषध (न्यूट्रास्युटिकल) शब्द को वास्तव में न्यू जर्सी के क्रॉफोर्ड स्थित फाउंडेशन ऑफ इन्नोवेशन मेडिसिन (एफआईएम (FIM)) के संस्थापक एवं अध्यक्ष डॉ॰ स्टीफन एल.

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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पृष्ठ तनाव

कुछ कीट जल की सतह पर 'चल' पाते हैं। इसका कारण पृष्ठ-तनाव ही है। पृष्ठ तनाव (Surface tension) किसी द्रव के सतह या पृष्ट का एक विशिष्ट गुण है। दूसरे शब्दों मे, पृष्ठ-तनाव के कारण ही द्रवों का पृष्ट एक प्रकार की प्रत्यास्थता (एलास्टिक) का गुण प्रदर्शित करता है। पृष्ट तनाव के कारण ही पारे की बूँद, गोल आकार धारण कर लेती है न कि अन्य कोई रूप (जैसे घनाकार)। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव अपने पृष्ठ (सतह) का क्षेत्रफल न्यूनतम करने की कोशिश करते हैं। गणितीय रूप में, पृष्ठ के इकाई लम्बाई पर लगने वाले बल को द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। दूसरे शब्दों में, द्रव के पृष्ठ के इकाई क्षेत्रफल की वृद्धि के लिये आवश्यक ऊर्जा को उस द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। इसका मात्रक बल प्रति इकाई लंबाई (जैसे न्यूटन/मीटर), या ऊर्जा प्रति इकाई क्षेत्र (जैसे जूल/वर्ग मीटर) है। .

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पेट्रोलियम जेली

पेट्रोलियम जेली पेट्रोलियम जेली (Petroleum jelly) हाइड्रोकार्बनों का एक अर्ध-ठोस मिश्रण है जो अपने घाव ठीक करने के गुण के कारण मरहम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इसे सफेद पेट्रोलियम, कोमल पैराफिन, बहु-हाइड्रोकार्बन भी कहते हैं। इसका CAS नम्बर 8009-03-8 है। इसमें मौजूद हाइड्रोकार्बनों में प्रायः कार्बन संख्या २५ से अधिक होती है। .

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पेय-पदार्थ

एक कार्बोनेटेड पेय-पदार्थ. एक पेय-पदार्थ या पेय, कोई द्रव होता है, जो विशिष्ट रूप से मनुष्य के द्वारा ग्रहण किये जाने के लिये तैयार किया जाता है। मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता की पूर्ति करने के अलावा, पेय मानव समाज की संस्कृति के एक भाग का निर्माण भी करते हैं। .

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पॉजि़ट्रान उत्सर्जन टोमोग्राफी

एक आम पॉज़िट्रॉन उत्सर्जन टोमोग्राफी (PET) सुविधा की छवि PET/CT-सिस्टम 16-स्लाइस CT के साथ; छत पर लगा हुआ उपकरण CT विपरीत एजेंट के लिए एक इंजेक्शन पंप है पॉज़िट्रॉन उत्सर्जन टोमोग्राफी (पीईटी (PET)) एक ऐसी परमाणु चिकित्सा इमेजिंग तकनीक है जो शरीर की कार्यात्मक प्रक्रियाओं की त्रि-आयामी छवि या चित्र उत्पन्न करती है। यह प्रणाली एक पॉज़िट्रॉन-उत्सर्जित रेडिओन्युक्लिआइड (अनुरेखक) द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जित गामा किरणों के जोड़े का पता लगाती है, जिसे शरीर में एक जैविक रूप से सक्रिय अणु पर प्रवेश कराया जाता है। इसके बाद शरीर के भीतर 3-आयामी या 4-आयामी (चौथा आयाम समय है) स्थान में अनुरेखक संकेन्द्रण के चित्रों को कंप्यूटर विश्लेषण द्वारा पुनर्निर्मित किया जाता है। आधुनिक स्कैनरों में, यह पुनर्निर्माण प्रायः मरीज पर किए गए सिटी एक्स-रे (CT X-ray) की सहायता से उसी सत्र के दौरान, उसी मशीन में किया जाता है। यदि PET के किए चुना गया जैविक रूप से सक्रिय अणु एक ग्लूकोज सम्बंधी FDG है, तब अनुरेखक की संकेन्द्रण की छवि, स्थानिक ग्लूकोज़ उद्ग्रहण के रूप में ऊतक चयापचय गतिविधि प्रदान करती है। हालांकि इस अनुरेखक का उपयोग सबसे आम प्रकार के PET स्कैन को परिणामित करता है, PET में अन्य अनुरेखक अणुओं के उपयोग से कई अन्य प्रकार के आवश्यक अणुओं के ऊतक संकेन्द्रण की छवि ली जाती है। .

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पोम्पेइ

पोम्पेई नगर का नक्षा .

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पोषक तत्व

सागर में पोषण चक्रएक पोषक तत्व या पोषकतत्व वह रसायन होता है, जिसकी आवश्यकता किसी जीव के उसके जीवन और वृद्धि के साथ साथ उसके शरीर के उपापचय की क्रिया को चलाने के लिए भी पड़ती है और जिसे वो अपने वातावरण से ग्रहण करता है।Whitney, Elanor and Sharon Rolfes.

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पीने का पानी

नल का पानी पीने का पानी या पीने योग्य पानी, समुचित रूप से उच्च गुणवत्ता वाला पानी होता है जिसका तत्काल या दीर्घकालिक नुकसान के न्यूनतम खतरे के साथ सेवन या उपयोग किया जा सकता है। अधिकांश विकसित देशों में घरों, व्यवसायों और उद्योगों में जिस पानी की आपूर्ति की जाती है वह पूरी तरह से पीने के पानी के स्तर का होता है, लेकिन वास्तविकता में इसके एक बहुत ही छोटे अनुपात का उपयोग सेवन या खाद्य सामग्री तैयार करने में किया जाता है। दुनिया के ज्यादातर बड़े हिस्सों में पीने योग्य पानी तक लोगों की पहुंच अपर्याप्त होती है और वे बीमारी के कारकों, रोगाणुओं या विषैले तत्वों के अस्वीकार्य स्तर या मिले हुए ठोस पदार्थों से संदूषित स्रोतों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह का पानी पीने योग्य नहीं होता है और पीने या भोजन तैयार करने में इस तरह के पानी का उपयोग बड़े पैमाने पर त्वरित और दीर्घकालिक बीमारियों का कारण बनता है, साथ ही कई देशों में यह मौत और विपत्ति का एक प्रमुख कारण है। विकासशील देशों में जलजनित रोगों को कम करना सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक प्रमुख लक्ष्य है। सामान्य जल आपूर्ति नेटवर्क पीने योग्य पानी नल से उपलब्ध कराते हैं, चाहे इसका उपयोग पीने के लिए या कपड़े धोने के लिए या जमीन की सिंचाई के लिए किया जाना हो.

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पीयूष ग्रन्थि

पीयूष ग्रन्थि या पीयूषिका, एक अंत:स्रावी ग्रंथि है जिसका आकार एक मटर के दाने जैसा होता है और वजन 0.5 ग्राम (0.02 आउन्स) होता है। यह मस्तिष्क के तल पर हाइपोथैलेमस (अध;श्चेतक) के निचले हिस्से से निकला हुआ उभार है और यह एक छोटे अस्थिमय गुहा (पर्याणिका) में दृढ़तानिका-रज्जु (diaphragma sellae) से ढंका हुआ होता है। पीयूषिका खात, जिसमें पीयूषिका ग्रंथि रहता है, वह मस्तिष्क के आधार में कपालीय खात में जतुकास्थी में स्थित रहता है। इसे एक मास्टर ग्रंथि माना जाता है। पीयूषिका ग्रंथि हार्मोन का स्राव करने वाले समस्थिति का विनियमन करता है, जिसमें अन्य अंत:स्रावी ग्रंथियों को उत्तेजित करने वाले ट्रॉपिक हार्मोन शामिल होते हैं। कार्यात्मक रूप से यह हाइपोथैलेमस से माध्यिक उभार द्वारा जुड़ा हुआ होता है। .

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फरफुरल

फरफुरल, एक कार्बनिक यौगिक है जिसे विभिन्न प्रकार के कृषि उपोत्पादों जैसे कि मकई के बालों, जई, गेहूं के चोकर और लकड़ी के बुरादे आदि से प्राप्त किया जाता है। फरफुरल शब्द लतीनी शब्द फरफुर furfur, से आता है जिसका अर्थ भुसी या चोकर होता है। फरफुरल एक ऐरोमैटिक एल्डिहाइड है, जिसके छल्ले की संरचना दाएं हाथ पर दी गयी है। इसका रासायनिक सूत्र, OC4H3CHO है। यह एक रंगहीन तैलीय द्रव पर हवा के संपर्क में आने पर शीघ्रता से पीले रंग का हो जाता है, इसकी गंध बादाम के समान है। .

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फल

फल और सब्ज़ियाँ निषेचित, परिवर्तित एवं परिपक्व अंडाशय को फल कहते हैं। साधारणतः फल का निर्माण फूल के द्वारा होता है। फूल का स्त्री जननकोष अंडाशय निषेचन की प्रक्रिया द्वारा रूपान्तरित होकर फल का निर्माण करता है। कई पादप प्रजातियों में, फल के अंतर्गत पक्व अंडाशय के अतिरिक्त आसपास के ऊतक भी आते है। फल वह माध्यम है जिसके द्वारा पुष्पीय पादप अपने बीजों का प्रसार करते हैं, हालांकि सभी बीज फलों से नहीं आते। किसी एक परिभाषा द्वारा पादपों के फलों के बीच में पायी जाने वाली भारी विविधता की व्याख्या नहीं की जा सकती है। छद्मफल (झूठा फल, सहायक फल) जैसा शब्द, अंजीर जैसे फलों या उन पादप संरचनाओं के लिए प्रयुक्त होता है जो फल जैसे दिखते तो है पर मूलत: उनकी उत्पप्ति किसी पुष्प या पुष्पों से नहीं होती। कुछ अनावृतबीजी, जैसे कि यूउ के मांसल बीजचोल फल सदृश होते है जबकि कुछ जुनिपरों के मांसल शंकु बेरी जैसे दिखते है। फल शब्द गलत रूप से कई शंकुधारी वृक्षों के बीज-युक्त मादा शंकुओं के लिए भी होता है। .

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फ़ज़ी लॉजिक

फ़ज़ी लॉजिक, मल्टी-वैल्यूड लॉजिक का एक रूप है जिसकी उत्पत्ति फ़ज़ी सेट थ्यौरी से हुई है और जिसका संबंध उस रिज़निंग के साथ होता है जो प्रिसाइज़ होने की अपेक्षा एप्रोक्सिमेट होता है। "क्रिस्प लॉजिक" के विपरीत, जहां बाइनरी सेट्स में बाइनरी लॉजिक होता है, फ़ज़ी लॉजिक के वेरिएबल्स में केवल 0 या 1 का मेम्बरशिप वैल्यू (सदस्यता मान) नहीं हो सकता है — अर्थात्, किसी स्टेटमेंट (वक्तव्य) के ट्रुथ (truth या सत्यता) की डिग्री का रेंज 0 और 1 के बीच हो सकता है और यह क्लासिक प्रोपोज़िशनल लॉजिक (साध्यात्मक तर्क) के दो ट्रुथ वैल्यूज़ के निरूद्ध नहीं होता है। इसके अलावा जब भाषाई (भाषाविद्) वेरिएबल्स का प्रयोग किया जाता है तब इन डिग्रियों का प्रबंधन स्पेसिफिक फंक्शंस (विशिष्ट कार्यों) के द्वारा किया जा सकता है। फ़ज़ी लॉजिक का उद्भव, लोत्फी ज़ादेह (Lotfi Zadeh) द्वारा फ़ज़ी सेट थ्योरी के सन् 1965 के प्रस्ताव के एक परिणामस्वरूप हुआ। यद्यपि फ़ज़ी लॉजिक का कार्यान्वयन कंट्रोल थ्यौरी (नियंत्रण का सिद्धांत) से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धि) तक कई क्षेत्रों में किया जाता रहा है लेकिन यह अभी भी बायेसियन लॉजिक (Bayesian logic) को पसंद करने वाले कई सांख्यिकीविद् और परंपरागत टू-वैल्यूड लॉजिक को पसंद करने वाले कुछ कंट्रोल इंजीनियरों के बीच विवादास्पद बना हुआ है। .

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फ्रूटी

एक लीटर की फ्रूटी मैंगो बोतल फ्रूटी या मेंगो फ्रूटी, जिस नाम से यह लोकप्रिय है, भारत में सबसे अधिक बिकने वाला आमपेय है। यह पार्ले एग्रो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रस्तुत सबसे उत्कृष्ट उत्पाद है और यह इस कंपनी का सबसे सफल पेय भी है। इस पेय को 1985 में टेट्रापैक पैकेज के साथ बाज़ार में उतारा गया था। यह अब पेट (PET) बोतलों और आयताकार पैक में भी उपलब्ध है। फ्रूटी अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, मलेशिया, मालदीव, सिंगापुर, थाईलैंड, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, मोजाम्बिक, कांगो, घाना, मलावी, जाम्बिया, नाइजीरिया, तंजानिया, जापान, आयरलैंड, आदि को निर्यात की जाती है। मैंगो फ़्रूटी कंपनी पार्ले एग्रो प्राइवेट लिमिटेड स्थापित 1985 पता कार्यालय: डब्ल्यू.इ. राजमार्ग, अंधेरी ईस्ट, मुंबई भारत .

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फॉरेन्हाइट

फॉरेन्हाइट, तापमान मापने का एक पैमाना है। इस पैमाने के अनुसार पानी, सामान्य दबाव पर 32 डिग्री फॉरेन्हाइट पर जमता है और 212 डिग्री फॉरेन्हाइट पर उबलता है। फारेनहाइट पैमाना ही पहले पहल प्रचलन में आने वाला ताप का पैमाना (स्केल) था। परम्परागत ज्वर मापने के लिये प्रयुक्त थर्मामीटर में इसी पैमाने का प्रयोग होता है। यदि किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान 98 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा हो जाता है तो वह ज्वर पीड़ित होता है। कमरे का ताप दर्शाने वाले 'थर्मामीटर, जिसमें अन्दर का पैमाना डिग्री सेल्सियस में अंकित है और बाहरी पैमाना डिग्री फारेनहाइट में सेल्सियस और फॉरेनहाइट तापमान का आपस में सम्बन्ध श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:इम्पीरियल इकाईयाँ.

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बर्फ़

बर्फ़ जल की ठोस अवस्था को कहते हैं। सामन्य दाब पर ० डिग्री सेल्सियस पर जल जमने लगता है, जल की इसी जमी हुई अवस्था को बर्फ़ कहते हैं। श्रेणी:जल *.

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बलि

बलि (sacrifice) के दो रूप हैं। वैदिक पंचमहायज्ञ के अंतर्गत जो भूतयज्ञ हैं, वे धर्मशास्त्र में बलि या बलिहरण या भूतबलि शब्द से अभिहित होते हैं। दूसरा पशु आदि का बलिदान है। विश्वदेव कर्म करने के समय जो अन्नभाग अलग रख लिया जाता है, वह प्रथमोक्त बलि है। यह अन्न भाग देवयज्ञ के लक्ष्यभूत देव के प्रति एवं जल, वृक्ष, गृहपशु तथा इंद्र आदि देवताओं के प्रति उत्सृष्ट (समर्पित) होता है। गृह्यसूत्रों में इस कर्म का सविस्तार प्रतिपादन है। बलि रूप अन्नभाग अग्नि में छोड़ा नहीं जाता, बल्कि भूमि में फेंक दिया जाता है। इस प्रक्षेप क्रिया के विषय में मतभेद है। स्मार्त पूजा में पूजोपकरण (जिससे देवता की पूजा की जाती है) भी बलि कहलाता है (बलि पूजोपहार: स्यात्‌)। यह बलि भी देव के पति उत्सृष्ट होती है। देवता के उद्देश्य में छाग आदि पशुओं का जो हनन किया जाता है वह बलिदान कहलाता है (बलिउएतादृश उत्सर्ग योग्य पशु)। तंत्र आदि में महिष, छाग, गोधिका, शूकर, कृष्णसार, शरभ, हरि (वानर) आदि अनेक पशुओं को बलि के रूप में माना गया है। इक्षु, कूष्मांड आदि नानाविध उद्भिद् और फल भी बलिदान माने गए हैं। बलि के विषय में अनेक विधिनिषेध हैं। बलि को बलिदानकाल में पूर्वाभिमुख रखना चाहिए और खंडधारी बलिदानकारी उत्तराभिमुख रहेगा - यह प्रसिद्ध नियम है। बलि योग्य पशु के भी अनेक स्वरूप लक्षण कहे गए हैं। पंचमहायज्ञ के अंतर्गत बलि के कई अवांतर भेद कहे गए हैं - आवश्यक बलि, काम्यबलि आदि इस प्रसंग में ज्ञातव्य हैं। कई आचार्यों ने छागादि पशुओं के हनन को तामसपक्षीय कर्म माना है, यद्यपि तंत्र में ऐसे वचन भी हैं जिनसे पशु बलिदान को सात्विक भी माना गया है। कुछ ऐसी पूजाएँ हैं जिनमें पशु बलिदान अवश्य अनुष्ठेय होता है। वीरतंत्र, भावचूड़ामणि, यामल, तंत्रचूड़ामणि, प्राणतोषणी, महानिर्वाणतंत्र, मातृकाभेदतंत्र, वैष्णवीतंत्र, कृत्यमहार्णव, वृहन्नीलतंत्र, आदि ग्रंथों में बलिदान (विशेषकर पशुबलिदान) संबंधी चर्चा है। .

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बाथौ

बड़ो लोगों जिस धर्म का पालन करते हैं उसका नाम बाथौ है। 'बाथौ' शब्द का अर्थ है, 'पाँच सिद्धान्त' । ये पाँच सिद्धान्त ये हैं- 'बार' (वायु), 'सान' (सूर्य), 'हा' (पृथ्वी), 'दै' (जल) तथा 'अख्रां' (गगन)। वर्तमान काल में बोड़ो समाज अपने प्राचीन धर्म, दर्शन और परम्परा को मानते हुये अपनी संस्कृति को जीवित किये रखा है। 'बाथौ' या 'बाथौबोराइ' इनके प्रधान देवता हैं। कुछ अन्य देवता भी हैं किन्तु बाथौ को परमेश्वर माना जाता है। बाथौ धर्म के अन्तर्गत कई प्रकार के उत्सवों का आयोजन किया जाता है जिसमें से एक खेराई उत्सव है। खेराई उत्सव हो या अन्य उत्सव वेसारे कृषि से ही सम्बन्धित होते है। खेराई उत्सव बोड़ो ध्रर्म के अन्तर्गत मनाया जाने वाला एक विस्तृत एवं खर्चीला पूजा विधान है। खेराई उत्सव में नर्तकी, ओझा या पुरोहित, वाद्य यन्त्र, औजार आदि काफी चीजों की आवश्यकता होती है। उत्सव के आयोजन के दौरान उक्त सभी वस्तुयें अपनी भूमिका का निर्धारित करता है। खेराई एक बलि विधान से सम्बन्धित उत्सव है इसमें कई सारे जीव-जन्तुओं की देवताओं को प्रसन्न करने के फलस्वरुप उनकी बलि दी जाती है। ओझा (पुरोहित) इस उत्सव के समय दैवधुनि को विशेष प्रकार से प्रयोग में लाते है कि क्योकि ऐसी धारणा है कि दैवधुनि के माध्यम से वह (पुरोहित) देव-देवियों के साथ सम्वाद स्थापित करता है ताकि उन्हें धरती पर आवाहन कर समस्त मानव जाति में शांति और प्रसन्नता के वातावरण को प्रवाहित किया जा सके। यह उत्सव एक प्रकार से प्रकृति के साथ विशेष रुप से जुड़ा हुआ है। इस उत्सव के माध्यम से जिन-जिन देवताओं की पूजा की उनमें से प्रायः प्रकृति की शक्ति के रुप ग्रहण किया जा सकता है। .

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बादल कक्ष

स्पष्ट आयनीकरण विकिरण के पथ चिन्हों को दिखाता बादल कक्ष (छोटे, मोटे: α-कण; लम्बे, पतले: β-कण)। बादल कक्ष (अंग्रेजी: Cloud chamber) जिसे विल्सन कक्ष के नाम से भी जाना जाता है, का प्रयोग आयनीकरण विकिरण के कणों का पता लगाने के लिए किया जाता है। अपने सबसे बुनियादी रूप में बादल कक्ष एक बंद वातावरण होता है जिसमें परमशीतल या परमसंतृप्त जल अथवा अल्कोहल वाष्प भरी होती है। जब कोई अल्फा या बीटा कण मिश्रण से गुजरता है, तो यह वाष्प आयनीकृत हो जाती है। इस क्रिया से उत्पन्न आयन संघनन नाभिक के रूप में कार्य करते हैं और इनके चारों ओर एक धुंध इकत्र हो जाती है (क्योंकि मिश्रण संघनन के कगार पर होता है)। उच्च ऊर्जा से आवेशित अल्फा और बीटा कणों के मार्ग की दिशा में कई आयनों का उत्पादन होने के परिणामस्वरूप कई पथचिन्ह पीछे छूट जाते हैं। यह पथ कई आकार और आकृति के होते हैं, उदाहरण के लिए अल्फा कण का पथ चौड़ा और सीधा होता है, जबकि एक इलेक्ट्रॉन का पथ पतला और संघट्‍टन से हुये विक्षेपण के अधिक साक्ष्य प्रस्तुत करता है। जब किसी बादल कक्ष पर एक समान चुंबकीय क्षेत्र आरोपित किया जाता है तो लोरेंट्ज़ के बल के नियम के अनुसार धनात्मक और ऋणात्मक आवेशित कण विपरीत दिशाओं में वक्रित होते हैं। .

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बादाम का तेल

बादाम के तेल को ब्रिटिश फार्मेकोपिया में 'ओलियम एमिग्डैली' (Oleum amygdalae) कहते हैं। यह बादाम की गिरी से प्राप्त होता है। गिरी को कोल्हू में पेरकर, अथवा विलायकों द्वारा, तेल को अलग करते हैं। तेल की मात्रा मीठे बादाम में ४५% से ५५% और कडुवे बादाम में ३५% से ४४% हो सकती है। .

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बादाम का दुध

बादाम का दुध बादाम का दुध बादाम से बना एक मलाईदार और थोडे मीठे स्वाद का पेय है जो कोलेस्टेरॉल और लैक्टोज रहित है। इस कारण ये वीगनवादीओं में और लैक्टोज या दूध की एलर्जी होने वाले लोगों मे प्रसिद्ध है। बाजार में मिलनेवाला बादाम का दुध आम तौर पर विटामिन से समृद्ध किया गया होता है। यह ब्लेंडर का उपयोग कर, बादाम और पानी से घर पर भी बनाया जा सकता है। भूमध्यसागरीय क्षेत्र में इस पेय उपयोग पारंपरिक रूप से किया जाता है। .

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बायोम

दुनिया के मुख्य प्रकार के बायोम बायोम (biome) या जीवोम धरती या समुद्र के किसी ऐसे बड़े क्षेत्र को बोलते हैं जिसके सभी भागों में मौसम, भूगोल और निवासी जीवों (विशेषकर पौधों और प्राणी) की समानता हो।, David Sadava, H. Craig Heller, David M. Hillis, May Berenbaum, Macmillan, 2009, ISBN 978-1-4292-1962-4,...

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बालचिकित्सा

बाल बहुनिद्रांकन (Pediatric polysomnography) बालचिकित्सा (Pediatrics) या बालरोग विज्ञान चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है जो शिशुओं, बालों एवं किशोरों के रोगों एवं उनकी चिकत्सा से सम्बन्धित है। आयु की दृष्टि से इस श्रेणी में नवजात शिशु से लेकर १२ से २१ वर्ष के किशोर तक आ जाते हैँ। इस श्रेणी के उम्र की उपरी सीमा एक देश से दूसरे देश में अलग-अलग है। .

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बुध (ग्रह)

बुध (Mercury), सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य से निकटतम है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन है। पृथ्वी से देखने पर, यह अपनी कक्षा के ईर्दगिर्द 116 दिवसो में घूमता नजर आता है जो कि ग्रहों में सबसे तेज है। गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमंडल चुंकि करीब करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सर्वाधिक उतार-चढाव महसूस करता है, जो कि 100 K (−173 °C; −280 °F) रात्रि से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में दिन के समय 700 K (427 °C; 800 °F) तक है। वहीं ध्रुवों के तापमान स्थायी रूप से 180 K (−93 °C; −136 °F) के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है (एक डीग्री का करीब), परंतु कक्षीय विकेन्द्रता सर्वाधिक है। बुध ग्रह पर की तुलना में सूर्य से करीब 1.5 गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पडी है तथा बिलकुल हमारे चन्द्रमा जैसी नजर आती है, जो इंगित करता है कि यह भूवैज्ञानिक रूप से अरबो वर्षों तक मृतप्राय रहा है। बुध को पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के समान मौसमों का कोई भी अनुभव नहीं है। यह जकडा हुआ है इसलिए इसके घूर्णन की राह सौरमंडल में अद्वितीय है। किसी स्थिर खडे सितारे के सापेक्ष देखने पर, यह हर दो कक्षीय प्रदक्षिणा के दरम्यान अपनी धूरी के ईर्दगिर्द ठीक तीन बार घूम लेता है। सूर्य की ओर से, किसी ऐसे फ्रेम ऑफ रिफरेंस में जो कक्षीय गति से घूमता है, देखने पर यह हरेक दो बुध वर्षों में मात्र एक बार घूमता नजर आता है। इस कारण बुध ग्रह पर कोई पर्यवेक्षक एक दिवस हरेक दो वर्षों का देखेगा। बुध की कक्षा चुंकि पृथ्वी की कक्षा (शुक्र के भी) के भीतर स्थित है, यह पृथ्वी के आसमान में सुबह में या शाम को दिखाई दे सकता है, परंतु अर्धरात्रि को नहीं। पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चन्द्रमा की तरह कलाओं के सभी रुपों का प्रदर्शन करता है। हालांकि बुध ग्रह बहुत उज्जवल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देख जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है। .

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बृहदान्त्र

बृहदान्त्र (large intestine या large bowel), जठरांत्र क्षेत्र तथा पाचन तंत्र का अंतिम भाग है। इस भाग में जल का शोषण करके बचे हुए अपशिष्ट को मल के रूप में भण्डारित किया जाता है जो मल विसर्जन द्वारा गुदा मार्ग से बाहर आता है। .

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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बृहस्पति का वायुमंडल

बृहस्पति पर सन् २००० में बादल प्रतिमान. बृहस्पति का वायुमंडल सौरमंडल में सबसे बड़ा ग्रहीय वायुमंडल है। एक मोटे सौर अनुपात में यह मुख्य रूप से आणविक हाइड्रोजन और हीलियम से बना है; अन्य रासायनिक यौगिकों की केवल छोटी मात्रा मौजूद हैं, जिसमें मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड और जल शामिल हैं। हालांकि, ऐसा माना जाता है कि पानी वायुमंडल की गहराई में मौजूद है, इसके सीधे मापन की संभावना बहुत कम है। बृहस्पति के वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर और अक्रिय गैस की प्रचुरता लगभग तीन कारक के सौर मूल्यों से अधिक है बृहस्पति के वायुमंडल में एक स्पष्ट न्यूनतम सीमा का अभाव है और ग्रह के अंदरूनी तरल पदार्थ में धीरे-धीरे परिवर्तन होता है। निम्नतम से लेकर उच्चत्तर, वायुमंडलीय परतें क्रमशः क्षोभ मंडल, समताप मंडल, तापमंडल और बहिर्मंडल हैं। प्रत्येक परत की विशेषता तापमान ढलान है। निम्नतम परत यानि क्षोभ मंडल, बादलों और कुंहरों की एक जटिल प्रणाली है, जो अमोनिया, अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड और पानी की परतों से बना है। बृहस्पति के सतह पर दिखाई देने वाले अमोनिया के ऊपरी बादल भूमध्यरेखा के समानांतर एक दर्जन क्षेत्रीय धारीयों में एकीकृत हुए है और यह शक्तिशाली आंचलिक वायुमंडलीय प्रवाहों (वायु) से घिरे हुए है। रंग में एकांतर धारियाँ: गहरी धारीयों को पट्टियां कहा जाता है, जबकि हल्की धारीयों को क्षेत्र कहा जाता है। क्षेत्र, जो पट्टियों से ठन्डे होते है, उमड़ने के अनुरूप होते है, जबकि पट्टियाँ उतरती हवा की निशानी है | क्षेत्रों के हल्के रंग का परिणाम अमोनिया बर्फ से माना जाता है, जबकि पट्टियाँ स्वयं को गहरे से गहरा रंग किससे देती है यह निश्चितता के साथ नहीं ज्ञात हुआ है। धारीदार संरचना और प्रवाहों की उत्पत्तियों की अच्छी समझ नहीं हैं, हालांकि दो मॉडल मौजूद हैं: उथला मॉडल मानता है कि वे सतही घटना है जो एक स्थिर आंतरिक भाग ढंकती है, गहरे मॉडल में, धारियाँ और प्रवाहें बृहस्पति के आणविक हाइड्रोजन के आवरण में गहरी परिसंचरण की महज सतही अभिव्यक्तियां है, जो अनेकों लठ्ठों में एकत्रित हुए है। बृहस्पति वायुमंडल, एक विस्तृत श्रृंखला की सक्रिय घटना सहित धारी अस्थिरता, भेंवर (चक्रवात और प्रतिचक्रवात) तूफान और बिजली प्रदर्शित करता है। भेंवर बड़े लाल, सफेद या भूरे रंग के धब्बों (अंडो) के रूप में खुद को प्रकट करते हैं। सबसे बड़े दो लाल धब्बे ग्रेट रेड स्पॉट (GRS) और ओवल बीए हैं। ये दोनों और ​​अन्य अधिकतर बड़े धब्बे प्रतिचक्रवातीय है। छोटे चक्रवात सफेद हो जाते हैं। भेंवर गहराई के साथ अपेक्षाकृत उथले संरचनाओं के माने जाते है, कई सौ किलोमीटर से अधिक नहीं। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित GRS, सौरमंडल में सबसे बड़ा ज्ञात भंवर है। यह कई पृथ्वीयों को निगल गया है और कम से कम तीन सौ सालों के लिए अस्तित्व में हो सकता है। GRS के दक्षिण में स्थित ओवल बीए, GRS की एक तिहाई आकार का एक लाल धब्बा है जो सन् २००० में तीन सफेद अंडो के विलय से बना था। बृहस्पति पर शक्तिशाली तूफान है और यह वायुमंडल में नम संवहन का एक परिणाम हैं जो पानी के वाष्पीकरण और संघनन से जुड़ा हुआ है। वे हवा के मजबूत उर्ध्व गति के स्थल रहे हैं, जो उज्ज्वल और घने बादलों की रचना का नेतृत्व करते है। तूफ़ान मुख्यतः पट्टी क्षेत्रों में बनते है। बृहस्पति पर बिजली की गरज, पृथ्वी पर की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं। हालांकि, बिजली की गतिविधि का औसत स्तर पृथ्वी पर की तुलना में कम होता है। .

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बेरियम सल्फेट

बेरियम सल्फेट (Barium sulfate) एक अकार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र BaSO4 है। यह सफेद क्रिस्टलीय ठोस है। यह गंधहीन तथा जल में अविलेय है। यह बैराइट (barite) नामक खनिज के रूप में पाया जाता है जो बेरियम का मुख्य स्रोत भी है। इसका सफेद अपारदर्शी रूप तथा उच्च घनत्व इसको कई कार्यों के लिये उपयोगी बनाते हैं।.

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बेंजीन

बेंजीन के विभिन्न प्रकार के निरूपण बेंज़ीन या धूपेन्य एक हाइड्रोकार्बन है जिसका अणुसूत्र C6H6 है। बेंजीन का अणु ६ कार्बन परमाणुओं से बना होता है जो एक छल्ले की तरह जुड़े होते हैं तथा प्रत्येक कार्बन परमाणु से एक हाइड्रोजन परमाणु जुड़ा होता है। बेंजीन, पेट्रोलियम (क्रूड ऑयल) में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। कोयले के शुष्क आसवन से अलकतरा तथा अलकतरे के प्रभाजी आसवन (fractional distillation) से बेंजीन बड़ी मात्रा में तैयार होता है। प्रदीपन गैस से प्राप्त तेल से फैराडे ने 1825 ई. में सर्वप्रथम इसे प्राप्त किया था। मिटशरले ने 1834 ई. में बेंज़ोइक अम्ल से इसे प्राप्त किया और इसका नाम बेंजीन रखा। अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता पहले पहल 1845 ई. में हॉफमैन (Hoffmann) ने लगाया था। जर्मनी में बेंजीन को 'बेंज़ोल' कहते हैं। बेंजीन रंगहीन, मीठी गन्थ वाला, अत्यन्त ज्वलनशील द्रव है। इसका उपयोग एथिलबेंजीन्न और क्यूमीन (cumene) आदि भारी मात्रा में उत्पादित रसायनों के निर्माण में होता है। चूँकि बेंजीन का ऑक्टेन संख्या अधिक होती है, इसलिये पेट्रोल में कुछ प्रतिशत तक यह मिलाया गया होता है। यह कैंसरजन है जिसके कारण इसका गैर-औद्योगिक उपयोग कम ही होता है। .

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भाप

सौ डिग्री सेंट्रिग्रेड से अधिक गरम किसी वस्तु पर जल डालने से अचानक भाप पैदा होता है। पानी की गैसीय अवस्था या जलवाष्प को भाप (steam) कहते हैं। शुष्क भाप अदृश्य होती है, परंतु जब भाप में जल की छोटी-छोटी बूँदें मिली होती हैं तब उसका रंग सफेद होता है, जैसा रेल के इंजन से निकलती भाप में स्पष्ट दिखाई देता है। जब भाप में जल की बूँदे उपस्थित होती हैं, तो इसे 'आर्द्र भाप' (wet steam) कहते हैं। यदि जल की बूँदों का सर्वथा अभाव हो तो यह 'शुष्क भाप' (dry steam) कहलाती है। .

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भाप आसवन

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भार वृद्धि

वजन बढ़ाने के एक उत्पाद के लिए 1895 का एक विज्ञापन शरीर के वजन में बढ़ोतरी को वजन वृद्धि कहते हैं। यह, या तो मांसपेशियों में बढ़ोतरी और वसा के एकत्रीकरण से हो सकता है या फिर अतिरिक्त तरल पदार्थ जैसे पानी के कारण हो सकता है। .

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भारत में अन्धविश्वास

अंधविश्वासों के प्रथाओं हानिरहित हो सकते है, जैसे कि बुरी नजर दूर रखने वाली नींबुऔर मिर्च। मगर वे जल की तरह गंभीर भी हो सकते है। अंधविश्वासों को अच्छे तथा बुरे अंधविश्वासों में बांटा जा सकता है। .

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुम्बई मुम्बई शहर के उत्तर-पश्चिम में पवई झील के किनारे स्थित भारत का अग्रणी स्वशासी अभियांत्रिकी विश्वविद्यालय है। यह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान श्रृंखला का दूसरा सबसे बड़ा परिसर और महाराष्ट्र राज्य का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। आई.

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भैंस

भैंस विश्व में भैंस का वितरण की स्थिति भैंस एक दुधारू पशु है। कुछ लोगों द्वारा भैंस का दूध गाय के दूध से अधिक पसंद किया जाता है। यह ग्रामीण भारत में बहुत उपयोगी पशु है। .

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भूड़

भूड़ एक प्रकार की कृषि योग्य जमीन (कृष्य भूमि) का ही नाम है। इस प्रकार की जमीन में बालू का अंश अधिक होता है। इस कारण इसे उपजाऊ बनाने के लिये पानी या सिंचाई करने की अधिक आवश्यकता होती है। खाद और पानी की उचित व पर्याप्त मात्रा मिलती रहे तो इस प्रकार की कृष्य भूमि में रबी, खरीफ और जायद; तीन-तीन फसलें एक ही साल में सफलतापूर्वक उगायी जा सकती हैं। .

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भूमि

भूमि, पृथ्वी की ठोस सतह को कहते है जो स्थायी रूप से पानी नहीं होता। इतिहास में मानव गतिविधियाँ अधिकतर उन भूमि क्षेत्रों में हुई है जहाँ कृषि, निवास और विभिन्न प्राकृतिक संसाधन होते हैं।.

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भूमंडलीय ऊष्मीकरण का प्रभाव

extreme weather). (Third Assessment Report) इस के अंतर पैनल तौर पर जलवायु परिवर्तन (Intergovernmental Panel on Climate Change)। इस भविष्यवाणी की प्रभावों के ग्लोबल वार्मिंग इस पर पर्यावरण (environment) और के लिए मानव जीवन (human life) कई हैं और विविध.यह आम तौर पर लंबे समय तक कारणों के लिए विशिष्ट प्राकृतिक घटनाएं विशेषता है, लेकिन मुश्किल है के कुछ प्रभावों का हाल जलवायु परिवर्तन (climate change) पहले से ही होने जा सकता है।Raising sea levels (Raising sea levels), glacier retreat (glacier retreat), Arctic shrinkage (Arctic shrinkage), and altered patterns of agriculture (agriculture) are cited as direct consequences, but predictions for secondary and regional effects include extreme weather (extreme weather) events, an expansion of tropical diseases (tropical diseases), changes in the timing of seasonal patterns in ecosystems (changes in the timing of seasonal patterns in ecosystems), and drastic economic impact (economic impact)। चिंताओं का नेतृत्व करने के लिए हैं राजनीतिक (political) सक्रियता प्रस्तावों की वकालत करने के लिए कम (mitigate), समाप्त (eliminate), या अनुकूलित (adapt) यह करने के लिए। 2007 चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट (Fourth Assessment Report) के द्वारा अंतर पैनल तौर पर जलवायु परिवर्तन (Intergovernmental Panel on Climate Change) (आईपीसीसी) ने उम्मीद प्रभावों का सार भी शामिल है। .

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भोजन

thumb ऐसा कोइ भी पदार्थ जो शर्करा (कार्बोहाइड्रेट), वसा, जल तथा/अथवा प्रोटीन से बना हो और जीव जगत द्वारा ग्रहण किया जा सके, उसे भोजन कहते हैं। जीव न केवल जीवित रहने के लिए बल्कि स्वस्थ और सक्रिय जीवन बिताने के लिए भोजन करते हैं। भोजन में अनेक पोषक तत्व होते हैं जो शरीर का विकास करते हैं, उसे स्वस्थ रखते हैं और शक्ति प्रदान करते हैं। .

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मधु

बोतल में छत्ते के साथ रखी मधु मधु या शहद (अंग्रेज़ी:Honey हनी) एक मीठा, चिपचिपाहट वाला अर्ध तरल पदार्थ होता है जो मधुमक्खियों द्वारा पौधों के पुष्पों में स्थित मकरन्दकोशों से स्रावित मधुरस से तैयार किया जाता है और आहार के रूप में मौनगृह में संग्रह किया जाता है।। उत्तराकृषिप्रभा शहद में जो मीठापन होता है वो मुख्यतः ग्लूकोज़ और एकलशर्करा फ्रक्टोज के कारण होता है। शहद का प्रयोग औषधि रूप में भी होता है। शहद में ग्लूकोज व अन्य शर्कराएं तथा विटामिन, खनिज और अमीनो अम्ल भी होता है जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और उतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी के रूप में जाना जाता रहा है। शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट होता है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देता है और शीघ्र उसकी भरपाई भी करता है और उस जगह हानिकारक जीवाणु भी मर जाते हैं। जब इसको सीधे घाव में लगाया जाता है तो यह सीलैंट की तरह कार्य करता है और ऐसे में घाव संक्रमण से बचा रहता है।। हिन्दुस्तान लाईव। ११ अप्रैल २०१० .

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महाभूत

महाभूत वह तत्त्व है जिससे यथार्थ (reality) बना हुआ है। पांच महाभूत हैं: जब ये पांच महाभूतों ने तामस अहंकार में विकार उत्पन्न किया तो शब्द, फिर शब्द में इन्ही पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके आकाश, आकाश में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके वायु, वायु में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके तेज, तेज में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके जल और क्रमशः जल में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके पृथिवी या मिट्टी इन तत्वों का निर्माण किया। इन्ही पांच तत्वों को आकाश, वायु, तेज, जल, पृथिवी या पंच तत्व कहते हैं। पांच तत्व हैं: .

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महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि (बोलचाल में शिवरात्रि) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। अधिक तर लोग यह मान्यता रखते है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवि पार्वति के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी जाता है। .

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महासागरीय धारायें

विश्व की प्रमुख महासागरीय धाराएं महासागर के जल के सतत एवं निर्देष्ट दिशा वाले प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं। वस्तुतः महासागरीय धाराएं, महासागरों के अन्दर बहने वाली उष्ण या शीतल नदियाँ हैं। प्रायः ये भ्रांति होती है कि महासागरों में जल स्थिर रहता है, किन्तु वास्तव मे ऐसा नही होता है। महासागर का जल निरंतर एक नियमित गति से बहता रहता है और इन धाराओं के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक धारा में प्रमुख अपवहन धारा (ड्रिफ्ट करंट) एवं स्ट्रीम करंट होती हैं।। ५ जुलाई २०१०। ह्न्दुस्तान लाइव। एक स्ट्रीम करंट की कुछ सीमाएं होती हैं, जबकि अपवहन धारा करंट के बहाव की कोई विशिष्ट सीमा नहीं होती। पृथ्वी पर रेगिस्तानों का निर्माण जलवायु के परिवर्तन के कारण होता है। उच्च दाब के क्षेत्र एवं ठंडी महासागरीय जल धाराएं ही वे प्राकृतिक घटनाएं हैं, जिनकी क्रियाओं के फलस्वरूप सैकड़ों वर्षों के बाद रेगिस्तान बनते हैं। .

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मानव का पाचक तंत्र

मानव का पाचन-तन्त्र मानव के पाचन तंत्र में एक आहार-नाल और सहयोगी ग्रंथियाँ (यकृत, अग्न्याशय आदि) होती हैं। आहार-नाल, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय और मलद्वार से बनी होती है। सहायक पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथि, यकृत, पित्ताशय और अग्नाशय हैं। .

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मानव का पोषण नाल

मानव का पाचक तंत्र मानव का पाचक नाल या आहार नाल (Digestive or Alimentary Canal) 25 से 30 फुट लंबी नाल है जो मुँह से लेकर मलाशय या गुदा के अंत तक विस्तृत है। यह एक संतत लंबी नली है, जिसमें आहार मुँह में प्रविष्ट होने के पश्चात्‌ ग्रासनाल, आमाशय, ग्रहणी, क्षुद्रांत्र, बृहदांत्र, मलाशय और गुदा नामक अवयवों में होता हुआ गुदाद्वार से मल के रूप में बाहर निकल जाता है। .

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मित्र वरुण

मित्र और वरुण दो हिन्दू देवता है। ऋग्वेद में दोनों का अलग और प्राय: एक साथ भी वर्णन है, अधिकांश पुराणों में 'मित्रावरुण' इस एक ही शब्द द्वारा उल्लेख है।। ये द्वादश आदित्य में भी गिने जाते हैं। इनका संबंध इतना गहरा है कि इन्हें द्वंद्व संघटकों के रूप में गिना जाता है। इन्हें गहन अंतरंग मित्रता या भाइयों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये दोनों कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र हैं। ये दोनों जल पर सार्वभौमिक राज करते हैं, जहां मित्र सागर की गहराईयों एवं गहनता से संबद्ध है वहीं वरुण सागर के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन करते हैं। मित्र सूर्योदय और दिवस से संबद्ध हैं जो कि सागर से उदय होता है, जबकि वरुण सूर्यास्त एवं रात्रि से संबद्ध हैं जो सागर में अस्त होती है। मित्र द्वादश आदित्यों में से हैं जिनसे वशिष्ठ का जन्म हुआ। वरुण से अगस्त्य की उत्पति हुई और इन दोनों के अंश से इला नामक एक कन्या उस यज्ञकुंड से प्रगट हुई जिसे प्रजापति मनु ने पुत्रप्राप्ति की कामना से रचाया था। स्कन्दपुराण के अनुसार काशी स्थित मित्रावरुण नामक दो शिवलिंगों की पूजा करने से मित्रलोक एवं वरुणलोक की प्राप्ति होती है। दोनों देवता पृथ्वी एवं आकाश को जल से संबद्ध किये रहते हैं तथा दोनों ही चंद्रमा, सागर एवं ज्वार से जुड़े रहते हैं। भौतिक मानव शरीर में मित्र शरीर से मल को बाहर निकालते हैं जबकि वरुण पोषण को अंदर लेते हैं, इस प्रकार मित्र शरीर के निचले भागों (गुदा एवं मलाशय) से जुड़े हैं वहीं वरुण शरीर के ऊपरी भागों (मुख एवं जिह्वा) पर शासन करते हैं। मित्र, वरुण एवं अग्नि को ईश्वर के नेत्र स्वरूप माना जाता है। वरुण की उत्पत्ति व्रि अर्थात संयोजन यानि जुड़ने से हुई है। इसी प्रका मित्र की उत्पत्ति मींय अर्थात संधि से हुई है। .

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मंगल पर जल

वर्तमान समय में मंगल ग्रह पर स्थित सारा जल, बर्फ के रूप में है। थोडी मात्रा में जल, वाष्प के रूप में भी है। कहीँ-कहीं थोड़ी मात्रा में जल, द्रव रूप में मंगल की भूमि में भी है। श्रेणी:मंगल.

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मंगल ग्रह

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं। इस गृह पर जीवन होने की संभावना है। 1965 में मेरिनर ४ के द्वारा की पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था में जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले striations की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं। मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये हैं। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9, तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है। .

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मक्खन

मक्खन एक दुग्ध-उत्पाद है जिसे दही, ताजा या खमीरीकृत क्रीम या दूध को मथ कर प्राप्त किया जाता है। हिन्दी में इसे दधिज या माखन भी कहा जाता है। मक्खन के मुख्य संघटक वसा, पानी और दूध प्रोटीन होते हैं। इसे आमतौर पर रोटी, डबलरोटी, परांठों आदि पर लगा कर खाया जाता है, साथ ही इसे खाना पकाने के एक माध्यम के रूप मे भी प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग सॉस बनाने और तलने के लिए किया जाता है। .

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मुहाना

मुहाना सभी नदियाँ किसी न किसी समुद्र में मिलती हैं। जहाँ पर नदी सागर से मिलती है, उस जगह खारे और मीठे पानी के मिलने से, नदी द्वारा बहा कर लाई गई मिट्टी आदि जमा होने लगती है। इस कारण धीरे धीरे नदी की धारा कई छोटे छोटे भागों में बँट जाती है। इस क्षेत्र को नदी का मुहाना कहते हैं।.

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मृदा लवणता

नमक से प्रभावित मृदा; नमक मिट्टी के सतह पर स्पष्त रूप से देखा जा सकता है। मृदा में लवण (नमक) की मात्रा को मृदा लवणता (Soil salinity) कहते हैं। मृदा में नमक की मात्रा बढने की क्रिया लवणीकरण (salinization) कहलाती है। नमक, प्राकृतिक रूप से मिट्टी तथा जल में पाया जाता है। मृदा का लवणीकरण प्राकृतिक प्रक्रिया द्वारा हो सकता है जैसे, खनिज अपक्षय (mineral weathering) या समुद्र के क्रमशः दूर जाने से। सिंचाई करने आदि कृत्रिम क्रियाओं से भी मृदा की लवणता बढ़ सकती है। .

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मैग्नीशियम हाईड्रॉक्साइड

मैग्नीशियम हाईड्रॉक्साइड (Magnesium hydroxide) एक अकार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र Mg(OH)2 है। इसे 'मिल्क ऑफ मैग्नीशिया' कहते हैं क्योंकि जल में घुलकर यह दूध जैसा दिखता है। (1) \mathrm (2) \mathrm (3) \mathrm.

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मूल्य विरोधाभास

मानव जीवन के लिए हीरे की तुलना में जल अधिक उपयोगी है, फिर भी बाजार में हीरे का मूल्य जल की तुलना में बहुत अधिक होता है। यह विरोधाभास मूल्य विरोधाभास (paradox of value या diamond–water paradox) कहलाता है। .

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मेसोअमेरिकी

350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) पैलेंकी के क्लासिक माया शहर का दृश्य, जो 6 और 7 सदियों में सुशोभित हुआ, मेसोअमेरिकी सभ्यता की उपलब्धियों के कई उदाहरणों में से एक है ट्युटिहुकन के मेसोअमेरिकी शहर का एक दृश्य, जो 200 ई. से 600 ई. तक सुशोभित हुआ और जो अमेरिका में दूसरी सबसे बड़ी पिरामिड की साइट है माया चित्रलिपि पत्रिका में अभिलेख, कई मेसोअमरिकी लेखन प्रणालियों में से एक शिलालेख.दुनिया में मेसोअमेरिका पांच स्थानों में से एक है जहां स्वतंत्र रूप से लेखन विकसित हुआ है मेसोअमेरिका या मेसो-अमेरिका (Mesoamérica) अमेरिका का एक क्षेत्र एवं सांस्कृतिक प्रान्त है, जो केन्द्रीय मैक्सिको से लगभग बेलाइज, ग्वाटेमाला, एल सल्वाडोर, हौंड्यूरॉस, निकारागुआ और कॉस्टा रिका तक फैला हुआ है, जिसके अन्दर 16वीं और 17वीं शताब्दी में, अमेरिका के स्पैनिश उपनिवेशवाद से पूर्व कई पूर्व कोलंबियाई समाज फलफूल रहे थे। इस क्षेत्र के प्रागैतिहासिक समूह, कृषि ग्रामों तथा बड़ी औपचारिक व राजनैतिक-धार्मिक राजधानियों द्वारा वर्णित हैं। यह सांस्कृतिक क्षेत्र अमेरिका की कुछ सर्वाधिक जटिल और उन्नत संस्कृतियों जैसे, ऑल्मेक, ज़ैपोटेक, टियोतिहुआकैन, माया, मिक्सटेक, टोटोनाक और एज़्टेक को शामिल करता है। .

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मोम

मोमबत्तीमोम या सिक्थ, हाइड्रोकार्बनों का एक वर्ग है जो सामान्य तापमान पर सुघट्य (आघातवर्ध्य) होता है। मोम 45 °C (113 °F) से ऊपर के तापमान पर पिघल कर एक निम्न श्यानता के द्रव में का निर्माण करते हैं। मोम जल में अघुलनशील लेकिन पेट्रोलियम आधारित विलायक में घुलनशील होते हैं। मोम कई पौधों और जीवों द्वारा भी स्रावित किये जाते हैं, जैसे मधुमक्खी का मोम और कार्नौबा मोम (पादप मोम)। अधिकांश औद्योगिक मोम जीवाश्म ईंधनों के घटक होते हैं या फिर पेट्रोलियम यौगिकों के संश्लेषण से व्युत्पन्न होते हैं, जैसे पैराफिन। कान का मैल या मोम, मानव कान में पाया जाने वाला एक तैलीय पदार्थ है। कई पदार्थ जैसे कि सिलिकॉन मोम के गुण मोम के समान होते हैं इसलिए इन्हें मोम की श्रेणी में ही रखा जाता है। .

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युग वर्णन

युग का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। उदाहरणः कलियुग, द्वापर, सत्ययुग, त्रेतायुग आदि। युग वर्णन का अर्थ होता है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई होती है एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय दे। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है: .

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यूरिया

यूरिया (Urea या carbamide) एक कार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र (NH2)2CO होता है। कार्बनिक रसायन के क्षेत्र में इसे कार्बामाइड भी कहा जाता है। यह एक रंगहीन, गन्धहीन, सफेद, रवेदार जहरीला ठोस पदार्थ है। यह जल में अति विलेय है। यह स्तनपायी और सरीसृप प्राणियों के मूत्र में पाया जाता है। कृषि में नाइट्रोजनयुक्त रासायनिक खाद के रूप में इसका उपयोग होता है। यूरिया को सर्वप्रथम १७७३ में मूत्र में फ्रेंच वैज्ञानिक हिलेरी राउले ने खोजा था परन्तु कृत्रिम विधि से सबसे पहले यूरिया बनाने का श्रेय जर्मन वैज्ञानिक वोहलर को जाता है। इन्होंने सिल्वर आइसोसाइनेट से यूरिया का निर्माण किया तथा स्वीडेन के वैज्ञानिक बर्जेलियस के एक पत्र लिखा कि मैंने वृक्क (किडनी) की सहायता लिए बिना कृत्रिम विधि से यूरिया बना लिया है। उस समय पूरी दुनिया में बर्जेलियस का सिद्धान्त माना जाता था कि यूरिया जैसे कार्बनिक यौगिक सजीवों के शरीर के बाहर बन ही नहीं सकते तथा इनको बनाने के लिए प्राण शक्ति की आवश्यकता होती है। बड़े पैमाने पर यूरिया का उत्पादन द्रव अमोनिया तथा द्रव कार्बन डाई-आक्साइड की प्रतिक्रिया से होता है। यूरिया का उपयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में होता है। इसका प्रयोग वाहनों के प्रदूषण नियंत्रक के रूप में भी किया जाता है। यूरिया-फार्मल्डिहाइड, रेंजिन, प्लास्टिक एवं हाइड्राजिन बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। इससे यूरिया-स्टीबामिन नामक काला-जार की दवा बनती है। वेरोनल नामक नींद की दवा बनाने में उसका उपयोग किया जाता है। सेडेटिव के रूप में उपयोग होने वाली दवाओं के बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। .

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रबड़ी

रबड़ी एक प्रकार का पकवान है जो दूध को खूब उबाल कर व उसे गाढ़ा करके बनाया जाता है। भावप्रकाशनिघण्टु के अनुसार बिना जल छोड़े दूध को जितना ही अधिक औटाया जाये वह उतना ही अधिक गुणकारी, स्निग्ध (तरावट देने वाला), बल एवं वीर्य को बढ़ाने वाला हो जाता है। इसमें यदि खाँड या चीनी मिला दी जाये तो रबड़ी या राबड़ी बन जाती है। यह खाने में बहुत अधिक स्वादिष्ट होती है परन्तु देर से हजम होती है। .

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रसायन विज्ञान

300pxरसायनशास्त्र विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पदार्थों के संघटन, संरचना, गुणों और रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान इनमें हुए परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। इसका शाब्दिक विन्यास रस+अयन है जिसका शाब्दिक अर्थ रसों (द्रवों) का अध्ययन है। यह एक भौतिक विज्ञान है जिसमें पदार्थों के परमाणुओं, अणुओं, क्रिस्टलों (रवों) और रासायनिक प्रक्रिया के दौरान मुक्त हुए या प्रयुक्त हुए ऊर्जा का अध्ययन किया जाता है। संक्षेप में रसायन विज्ञान रासायनिक पदार्थों का वैज्ञानिक अध्ययन है। पदार्थों का संघटन परमाणु या उप-परमाण्विक कणों जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से हुआ है। रसायन विज्ञान को केंद्रीय विज्ञान या आधारभूत विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि यह दूसरे विज्ञानों जैसे, खगोलविज्ञान, भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, जीवविज्ञान और भूविज्ञान को जोड़ता है। .

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रसायन विज्ञान की समयरेखा

जॉन डाल्टन के "अ न्यू सिस्टम ऑफ केमिकल फिलॉसफी" ले लिया गया चित्र - यह परमाणु सिद्धान्त की प्रथम आधुनिक व्याख्या थी इस समयरेखा में उन महत्वपूर्ण कृतियों, खोजों, विचारों एवं प्रयोगों को सूचीबद्ध किया गया है जिनके कारण पदार्थों की संरचना एवं उनके परस्पर क्रियाओं से सम्बन्धित मानव के ज्ञान में पर्याप्त वृद्धि हुई तथा जिसे आधुनिक विज्ञान में "रसायन विज्ञान" के नाम से जाना जाता है। यद्यपि रसायन विज्ञान की जड़ें ज्ञात इतिहास के आरम्भ काल तक पहुँची हुई हैं तथापि प्राय: आधुनिक रसायन के इतिहास का आरम्भ आयरलैण्ड के रसायनशास्त्री रॉबर्ट बॉयल से माना जाता है। .

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राना टिग्रिना

भारतीय मेढ़क '''राना टिग्रिना''' राना टिग्रिना नामक मेढ़क भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला बड़े आकार का मेढ़क है। .

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राशियों के स्वरूप

* कुम्भ: कुम्भधरो नरोअथ मिथुनं वीणागदाभॄन्नरौ, मीनो मीनयुगं धनुश्च सधनु: पश्चाच्छरीरो हय:।.

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रासायनिक तत्व

रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी रासायनिक तत्व (या केवल तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं। सभी रासायनिक पदार्थ तत्वों से ही मिलकर बने होते हैं। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन, तथा सिलिकॉन आदि कुछ तत्व हैं। सन २००७ तक कुल ११७ तत्व खोजे या पाये जा चुके हैं जिसमें से ९४ तत्व धरती पर प्राकृतिक रूप से विद्यमान हैं। कृत्रिम नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप उच्च परमाणु क्रमांक वाले तत्व समय-समय पर खोजे जाते रहे हैं। .

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रासायनिक यौगिक

दो या अधिक तत्व जब भार के अनुसार एक निश्चित अनुपात में रासायनिक बन्ध द्वारा जुड़कर जो पदार्थ बनाते हैं उसे रासायनिक यौगिक (chemical compound) कहते हैं। उदाहरण के लिये जल, साधारण नमक, गंधक का अम्ल आदि रासायनिक यौगिक हैं। .

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रासायनिक सूत्र

रासायनिक सूत्र (chemical formula) किसी रासायनिक यौगिक को इस प्रकार निरूपित करता है जिससे पता चलता है कि वह यौगिक किन-किन तत्वों के कितने-कितने परमाणुओं से मिलकर बना है। सामान्य प्रयोग में प्रायः अणुसूत्र (molecular formula) के लिये भी 'रासायनिक सूत्र' का ही प्रयोग कर दिया जाता है। उदाहरण: मिथेन का अणुसूत्र प्रा.उ4 (CH4) है जो इंगित करता है कि मिथेन का अणु कार्बन एवं हाइड्रोजन के परमाणुओं से मिलकर बना है तथा मिथेन के एक अणु में कार्बन का एक परमाणु व हाइड्रोजन के चार परमाणु होते हैं। परन्तु इस सूत्र से यह पता नहीं चलता कि कार्बन का एक परमाणु व हाइड्रोजन के ये चार परमाणु किस प्रकार व्यवस्थित हैं। अर्थात ये एक ही समतल में हैं या त्रिबिम में हैं; इनके बंधों के बीच कितना कोण है; बन्धों की लम्बाई कितनी है, आदि का अणुसूत्र से कुछ भी ज्ञान नहीं होता। कई प्रकार के रासायनिक सूत्र उपयोग किये जाते हैं जिनकी अलग-अलग उपयोगिता है और अलग-अलग जटिलता भी। बढ़ते हुए जटिलता के क्रम में ये हैं - आनुभविक सूत्र, अणुसूत्र, संरचना सूत्र। .

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रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख

रुद्रदमन का गिरनार शिलालेख पश्चिमी छत्रप नरेश रुद्रदमन द्वारा लिखवाया गया शिलालेख है। यह शिलालेख गिरनार पर्वतों पर है जो जूनागढ़ के निकट स्थित है। यह १३०-से १५० ई॰ के मध्य लिखा गया था। जूनागढ़ शिलाओं पर अशोक के १४ शिलालेख तथा स्कन्दगुप्त के शिलालेख भी है। रुद्रदामन का गिरनार शिलालेख उच्च कोटि के संस्कृत गद्य का स्वरूप प्रकट करता है जिसमें सुबन्धु, दण्डी और बाण की गद्यशैली का पूर्वरूप देखा जा सकता है। इसकी भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है। इसमें दीर्घ समासों का भी प्रयोग देखते बनता है। अलंकृत शैली, नादात्मकता इसकी अन्य विशेषताएँ है। इस शिलालेख में एक बहुत बड़े सरोवर के निर्माण की बात कही है। इस क्षेत्र में पानी की कमी है। यह कार्य भी जनहित के लिए प्रशंसनीय प्रयास है। .

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रोटी

रोटी भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया में सामान्य खाने में पका कर खाये जाने वाली चपटी खाद्य सामग्री है। यह आटे एवं पानी के मिश्रण को गूंध कर उससे बनी लोई को बेलकर एवं आँच पर सेंक कर बनाई जाती है। रोटी बनाने के लिए आमतौर पर गेहूँ का आटा प्रयोग किया जाता है पर विश्व के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय अनाज जैसे मक्का, जौ, चना, बाजरा आदि भी रोटी बनाने के लिए प्रयुक्त होता है। भारत के विभिन्न भागों में रोटी के लिए विभिन्न हिंदी नाम प्रचलित हैं, जिनमे प्रमुख हैं: -.

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रोबोट

एक कारखाने में चीजों को उठाने और सही स्थान पर रखने वाला रोबोट रोबोट एक आभासी (virtual) या यांत्रिक (mechanical)कृत्रिम (artificial) एजेंट है व्यवहारिक रूप से, यह प्रायः एक विद्युत यांत्रिकी निकाय (electro-mechanical system) होता है, जिसकी दिखावट और गति ऐसी होती है की लगता है जैसे उसका अपना एक इरादा (intent) और अपना एक अभिकरण (agency) है।रोबोट शब्द भौतिक रोबोट और आभासी (virtual) सॉफ्टवेयर एजेंट (software agent), दोनों को ही प्रतिबिंबित करता है लेकिन प्रायः आभासी सॉफ्टवेयर एजेंट को बोट्स (bots) कहा जाता है। ऐसी कोई भी सर्वसम्मति नहीं बन पाई है की मशीन रोबोटों के रूप में योग्य हैं, लेकिन एक विशेषज्ञों और जनता के बीच आम सहमति है कि कुछ या सभी निम्न कार्य कर सकता है जैसे: घूमना, यंत्र या कल सम्बन्धी अवयव को संचालित करना, वातावरण की समझ और उसमें फेर बदल करना और बुद्धिमानी भरे व्यवहार को प्रधार्षित करना जो की मानव और पशुओं के व्यवहारों की नक़ल करना। कृत्रिम सहायकों और साथी की कहानिया और और उन्हें बनाने के प्रयास का एक लम्बा इतिहास है लेकिन पूरी तरह से स्वायत्त (autonomous) मशीने केवल 20 वीं सदी में आए डिजिटल (digital) प्रणाली से चलने वाला प्रोग्राम किया हुआ पहला रोबोट युनिमेट (Unimate), १९६१ में ठप्पा बनाने वाली मशीन से धातु के गर्म टुकड़ों को उठाकर उनके ढेर बनाने के लिए लगाया गया था। आज, वाणिज्यिक और औद्योगिक रोबोट (industrial robot) व्यापक रूप से सस्ते में और अधिकसे अधिक सटीकता और मनुष्यों की तुलना में ज्यादा विश्वसनीयता के साथ प्रयोग में आ रहे हैं उन्हें ऐसे कार्यों के लिए भी नियुक्त किया जाता है जो की मानव लिहाज़ से काफी खतरनाक, गन्दा और उबाऊ कार्य होता है रोबोट्स का प्रयोग व्यापक रूप से विनिर्माण (manufacturing), सभा और गठरी लादने, परिवहन, पृथ्वी और अन्तरिक्षीय खोज, सर्जरी, हथियारों के निर्माण, प्रयोगशाला अनुसंधान और उपभोक्ता और औद्योगिक उत्पादन के लिए किया जा रहा है आमतौर पर लोगों का जिन रोबोटों से सामना हुआ है उनके बारे में लोगों के विचार सकारात्मक हैं घरेलू रोबोट (Domestic robot) सफाई और रखरखाव के काम के लिए घरों के आस पास आम होते जा रहे हैंबहरहाल रोबोटिक हथियारों और स्वचालन के आर्थिक प्रभाव को लेकर चिंता बनी हुई है, ऐसी चिंता जिसका समाधान लोकप्रिय मनोरंजन में वर्णित खलनायकी, बुद्धिमान, कलाबाज़ रोबोट के सहारे नहीं होता अपने काल्पनिक समकक्षों की तुलना में असली रोबोट्स अभी भी सौम्य, मंद बुद्धि और स्थूल हैं .

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रोहू मछली

रोहू मछली रोहू (वैज्ञानिक नाम - Labeo rohita) पृष्ठवंशी हड्डीयुक्त मछली है जो ताजे मीठे जल में पाई जाती है। इसका शरीर नाव के आकार का होता है जिससे इसे जल में तैरने में आसानी होती है। इसके शरीर में दो तरह के मीन-पक्ष (फ़िन) पाये जाते हैं, जिसमें कुछ जोड़े में होते हैं तथा कुछ अकेले होते हैं। इनके मीन पक्षों के नाम पेक्टोरेल फिन, पेल्विक फिन, (जोड़े में), पृष्ठ फिन, एनलपख तथा पुच्छ पंख (एकल) हैं। इनका शरीर साइक्लोइड शल्कों से ढँका रहता है लेकिन सिर पर शल्क नहीं होते हैं। सिर के पिछले भाग के दोंनो तरफ गलफड़ होते हें जो ढक्कन या अपरकुलम द्वारा ढके रहते हैं। गलफड़ों में गिल्स स्थित होते हैं जो इसका श्वसन अंग हैं। ढक्कन के पीछे से पूँछ तक एक स्पष्ट पार्श्वीय रेखा होती है। पीठ के तरफ का हिस्सा काला या हरा होता है और पेट की तरफ का सफेद। इसका सिर तिकोना होता है तथा सिर के नीचे मुँह होता है। इसका अंतः कंकाल हड्डियों का बना होता है। आहारनाल के ऊपर वाताशय अवस्थित रहता है। यह तैरने तथा श्वसन में सहायता करता है। भोजन के रूप में इसका विशेष महत्व है। भारत में उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा असम के अतिरिक्त थाइलैंड, पाकिस्तान और बांग्लादेश के निवासियों में यह सर्वाधिक स्वादिष्ट व्यंजनों में से एक समझी जाती है। उड़िया और बंगाली भोजन में इसके अंडों को तलकर भोजन के प्रारंभ में परोसा जाता है तथा परवल में भरकर स्वादिष्ट व्यंजन पोटोलेर दोलमा तैयार किया जाता है, जो अतिथिसत्कार का एक विशेष अंग हैं। बंगाल में इससे अनेक व्यंजन बनाए जाते हैं। इसे सरसों के तेल में तल कर परोसा जाता है, कलिया बनाया जाता है जिसमें इसे सुगंधित गाढ़े शोरबे में पकाते हैं तथा इमली और सरसों की चटपटी चटनी के साथ भी इसे पकाया जाता है। पंजाब के लाहौरी व्यंजनों में इसे पकौड़े की तरह तल कर विशेष रूप से तैयार किया जाता है। इसी प्रकार उड़ीसा के व्यंजन माचा-भाजी में रोहू मछली का विशेष महत्व है। ईराक में भी यह मछली भोजन के रूप में बहुत पसंद की जाती है। रोहू मछली शाकाहारी होती है तथा तेज़ी से बढ़ती है इस कारण इसे भारत में मत्स्य उत्पादन के लिए तीन सर्वश्रेष्ठ मछलियों में से एक माना गया है। .

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रीनियम

रेनियम (Rhenium; संकेत: Re) एक रासायनिक तत्व है। इसका परमाणुभार १८६.३१ तथा परमाणु संख्या ७५ है। इसका आविष्कार १९२५ ई. में इडा तथा वाल्टर नौडाक (Ida and Walter Noddock) द्वारा हुआ था। इसके स्थायी समस्थानिक की द्रव्यमान संख्या १८५ है और अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक १८२, १८३, १८४, १८६, १८७ और १८८ द्रव्यमान संख्याओं के प्राप्त हैं। यह तत्व अनेक खनिजों में बहुत विस्तृत पाया जाता है, पर बड़ी अल्प मात्रा में ही। खनिजों में यह सल्फाइड के रूप में रहता है। इसके ऑक्साइड वाष्पशील होते हैं, अत: खनिजों के प्रद्रावण पर यह अवशेष में, या चिमनी धूल में, सांद्रित रहता है। इसका निष्कर्षण पोटैशियम पररेनेट के रूप में होता है, जो जल में अल्प विलेय है। लवण के पुन: क्रिस्टलीकरण से यह शुद्ध रूप में प्राप्त होता है। हाइड्रोजन के वातावरण में पोटैशियम या अमोनियम पररेनेट के अपचयन से धूसर, या काले चूर्ण के रूप में धातु प्राप्त होती है। ऊँचे ताप पर यह धातु स्थूल रूप में प्राप्त होती है। धातु का घनत्व २१ और गलनांक ३,१४० डिग्री सेल्सियस है। इसे १५० डिग्री सेल्सियस से ऊपर गरम करने से ऑक्साइड बनता है। इसके अनेक ऑक्साइड बनते हैं। इसका क्लोराइड, ऑक्सीक्लोराइड, सल्फाइड और फॉस्फाइड भी बनता है। यह हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में अविलेय है, पर नाइट्रिक अम्ल में विलेय है। इसकी अनेक मिश्रधातुएँ बनी हैं। श्रेणी:रीनियम श्रेणी:रासायनिक तत्व श्रेणी:संक्रमण धातु श्रेणी:उच्चतापसह धातुएँ.

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लापासरी

लापासरी भारत देश के गुजरात राज्य कें राजकोट जिला के राजकोट तालुकमें आया हुआ गाँव है। इस गाँव में क्षत्रिय राजपूत जाति के लोग ज्यादा रहते हैं। यहाँ क मुख्य रोजगार खेती है। इस गाँव में १ से ७ कक्षा तक पढने के लिए पाठशाला भी है। यह गाँव राजकोट शहर से केवल ६ किलोमीटर की दुरी पे पक्की सड़क से जुडा हुआ है। लापासरी गाँव में पीने और खेती के लिए पानी की भी अच्छी सुविधा है। श्रेणी:गुजरात श्रेणी:गुजरात के गाँव.

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लार

लार (राल, थूक, ड्रूल अथवा स्लौबर नाम से भी निर्दिष्ट) मानव तथा अधिकांश जानवरों के मुंह में उत्पादित पानी-जैसा और आमतौर पर एक झागदार पदार्थ है। लार मौखिक द्रव का एक घटक है। लार उत्पादन और स्त्राव तीन में से एक लार ग्रंथियों से होता है। मानव लार 98% पानी से बना है, जबकि इसका शेष 2% अन्य यौगिक जैसे इलेक्ट्रोलाईट, बलगम, जीवाणुरोधी यौगिकों तथा एंजाइम होता है। भोजन पाचन की प्रक्रिया के प्रारंभिक भाग के रूप में, लार के एंजाइम भोजन के कुछ स्टार्च और वसा को आणविक स्तर पर तोड़ते हैं। लार दांतों के बीच फंसे खाने को भी तोड़ती है और उन्हें उस बैक्टीरिया से बचाती है जो क्षय का कारण होते हैं। इसके अलावा, लार दांतों, जीभ और मुंह के अंदर कोमल ऊतकों को चिकनाई देती है और उनकी रक्षा करती है। लार मुंह में रहने वाले वात निरपेक्ष बैक्टीरिया के द्वारा गंध-मुक्त भोजन यौगिकों से उत्पादित थायोल्स (thiols) को फंसा कर भोजन का स्वाद चखने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विभिन्न प्रजातियों ने लार के विशेष उपयोग विकसित किये हैं, जो पूर्वपाचन से परे हैं। कुछ अबाबील अपने चिपचिपे लार का उपयोग घोंसले का निर्माण करने के लिए करती हैं। चिड़िया के घोंसले के सूप के लिए छोटी हिमालयन अबाबील का घोंसला बेशकीमती है।मार्कोन, एम्.

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लिव वाइगोत्सकी

लिव सिमनोविच वाइगोत्सकी (Лев Семёнович Вы́готский or Выго́тский, जन्मनाम: Лев Симхович Выгодский; 1896 - 1934) सोवियत संघ के मनोवैज्ञानिक थे तथा वाइगोत्स्की मण्डल के नेता थे। उन्होने मानव के सांस्कृतिक तथा जैव-सामाजिक विकास का सिद्धान्त दिया जिसे सांस्कृतिक-ऐतिहासिक मनोविज्ञान कहा जाता है। उनका मुख्य कार्यक्षेत्र विकास मनोविज्ञान था। उन्होने बच्चों में उच्च संज्ञानात्मक कार्यों के विकास से सम्बन्धित एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया। अपने करीअर के आरम्भिक काल में उनका तर्क था कि तर्क-शक्ति का विकास चिह्नों एवं प्रतीकों के माध्यम से होता है। वाइगोत्स्की का सामाजिक दृषिटकोण संज्ञानात्मक विकास का एक प्रगतिशील विश्लेषण प्रस्तुत करता है। वस्तुत: वाइगोत्सकी ने बालक के संज्ञानात्मक विकास में समाज एवं उसके सांस्कृतिक संबन्धों के बीच संवाद को एक महत्त्वपूर्ण आयाम घोषित किया। ज़ाँ प्याज़े की तरह वाइगोत्स्की भी यह मानते थे कि बच्चे ज्ञान का निर्माण करते हैं। किन्तु इनके अनुसार संज्ञानात्मक विकास एकाकी नहीं हो सकता, यह भाषा-विकास, सामाजिक-विकास, यहाँ तक कि शारीरिक-विकास के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में होता है। वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चे के संज्ञानात्मक विकास को समझने के लिए एक विकासात्मक उपागम की आवश्यकता है जो कि इसका शुरू से परीक्षण करे तथा विभिन्न रूपों में हुए परिवर्तन को ठीक से पहचान पाए। इस प्रकार एक विशिष्ट मानसिक कार्य जैसे- आत्म-भाषा को विकासात्मक प्रक्रियाओं के रूप में मूल्यांकित किया जाए, न कि एकाकी रूप से। वाइगोत्सकी के अनुसार संज्ञानात्मक विकास को समझने के लिए उन औजारों का परीक्षण अति आवश्यक है जो संज्ञानात्मक विकास में मध्यस्थता करते हैं तथा उसे रूप प्रदान करते हैं। इसी के आधार पर वे यह भी मानते हैं कि भाषा संज्ञानात्मक विकास का महत्त्वपूर्ण औजार है। इनके अनुसार आरमिभक बाल्यकाल में ही बच्चा अपने कार्यों के नियोजन एवं समस्या समाधान में भाषा का औजार की तरह उपयोग करने लग जाता है। .

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लघुगणक

अलग-अलग आधार के लिये लघुगणकीय फलन का आरेखण: लाल रंग वाला ''e'', हरा रंग वाला 10, तथाबैगनी वाला 1.7. सभी आधारों के लघुगणक बिन्दु (1, 0) से होकर गुजरते हैं क्योंकि किसी भी संख्या पर शून्य घातांक का मान 1 होता है। स्कॉटलैंड निवासी जाॅन नेपियर द्वारा प्रतिपादित लघुगणक (Logarithm / लॉगेरिद्म) एक ऐसी गणितीय युक्ति है जिसके प्रयोग से गणनाओं को छोटा किया जा सकता है। इसके प्रयोग से गुणा और भाग जैसी जटिल प्रक्रियाओं को जोड़ और घटाने जैसी अपेक्षाकृत सरल क्रियाओं में बदल दिया जाता है। कम्प्यूटर और कैलकुलेटर के आने के पहले जटिल गणितीय गननाएँ लघुगणक के सहारे ही की जातीं थीं। .

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लवणता

लवणता पानी में नमक या लवण की मात्रा को कहते हैं।.

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लकड़ी

कई विशेषताएं दर्शाती हुई लकड़ी की सतह काष्ठ या लकड़ी एक कार्बनिक पदार्थ है, जिसका उत्पादन वृक्षों(और अन्य काष्ठजन्य पादपों) के तने में परवर्धी जाइलम के रूप में होता है। एक जीवित वृक्ष में यह पत्तियों और अन्य बढ़ते ऊतकों तक पोषक तत्वों और जल की आपूर्ति करती है, साथ ही यह वृक्ष को सहारा देता है ताकि वृक्ष खुद खड़ा रह कर यथासंभव ऊँचाई और आकार ग्रहण कर सके। लकड़ी उन सभी वानस्पतिक सामग्रियों को भी कहा जाता है, जिनके गुण काष्ठ के समान होते हैं, साथ ही इससे तैयार की जाने वाली सामग्रियाँ जैसे कि तंतु और पतले टुकड़े भी काष्ठ ही कहलाते हैं। सभ्यता के आरंभ से ही मानव लकड़ी का उपयोग कई प्रयोजनों जैसे कि ईंधन (जलावन) और निर्माण सामग्री के तौर पर कर रहा है। निर्माण सामग्री के रूप में इसका उपयोग मुख्य रूप भवन, औजार, हथियार, फर्नीचर, पैकेजिंग, कलाकृतियां और कागज आदि बनाने में किया जाता है। लकड़ी का काल निर्धारण कार्बन डेटिंग और कुछ प्रजातियों में वृक्षवलय कालक्रम के द्वारा किया जाता है। वृक्ष वलयों की चौड़ाई में साल दर साल होने वाले परिवर्तन और समस्थानिक प्रचुरता उस समय प्रचलित जलवायु का सुराग देते हैं। विभिन्न प्रकार के काष्ठ .

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लूची

यदि पूड़ी आटे के स्थान पर मैदे से बनाई जाये तो यह लूची कहलाती है। लूची विशेष रूप से पूर्व में स्थित भारतीय राज्यों जैसे कि पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा और ओसाम में प्रचलित है। इसे बनाने के लिए मैदे में घी का मोयन मिलाकर पानी अथवा दूध में गूंधा जाता है और फिर इसे घी या तेल में तल लिया जाता है। इसे अक्सर तरी वाली सब्जियों के साथ परोसा जाता है। .

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लेसर विज्ञान

लेसर विज्ञान U.S. Air Force)). लेजर (विकिरण के उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा प्रकाश प्रवर्धन) एक ऐसा यंत्र है जो प्रेरित उत्‍सर्जन (stimulated emission) एक प्रक्रिया के माध्‍यम से प्रकाश (light) (चुंबकीय विकिरण) उत्‍सर्जित करता है। लेजर शब्द प्रकाश प्रवर्धन का प्रेरित उत्सर्जन के द्वारा विकीरण का संक्षिप्‍त (acronym) शब्‍द है। लेजर प्रकाश आमतौर पर आकाशिक रूप से सशक्त (coherent), होते हैं, जिसका अर्थ है कि प्रकाश या तो एक संकरे, निम्‍न प्रवाहित किरण (low-divergence beam) के रूप में निकलेगी, या उसे देखने वाले यंत्रों जैसे लैंस (lens) लैंसों की मदद से एक कर दिया जाएगा। आमतौर पर, लेजर का अर्थ संकरे तरंगदैर्ध्य (wavelength) प्रकाशपुंज से निकलने वाले प्रकाश (मोनोक्रोमेटिक प्रकाश) से लगाया जाता है। यह अर्थ सभी लेजरों के लिए सही नहीं है, हालांकि कुछ लेजर व्‍यापक प्रकाशपुंज की तरह प्रकाश उत्‍सर्जित करते हैं, जबकि कुछ कई प्रकार के विशिष्‍ट तरंगदैर्घ्य पर साथ साथ प्रकाश उत्‍सर्जित करते हैं। पारंपिरक लेसर के उत्‍सर्जन में विशिष्‍ट सामन्‍जस्‍य होता है। प्रकाश के अधिकतर अन्‍य स्रोत असंगत प्रकाश उत्‍सर्जित करते हैं जिनमें विभिन्‍न चरण (phase) होते हैं और जो समय और स्‍थान के साथ निरंतर बदलता रहता है। .

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शनि (ग्रह)

शनि (Saturn), सूर्य से छठां ग्रह है तथा बृहस्पति के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह हैं। औसत व्यास में पृथ्वी से नौ गुना बड़ा शनि एक गैस दानव है। जबकि इसका औसत घनत्व पृथ्वी का एक आठवां है, अपने बड़े आयतन के साथ यह पृथ्वी से 95 गुने से भी थोड़ा बड़ा है। इसका खगोलिय चिन्ह ħ है। शनि का आंतरिक ढांचा संभवतया, लोहा, निकल और चट्टानों (सिलिकॉन और ऑक्सीजन यौगिक) के एक कोर से बना है, जो धातु हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा है, तरल हाइड्रोजन और तरल हीलियम की एक मध्यवर्ती परत तथा एक बाह्य गैसीय परत है। ग्रह अपने ऊपरी वायुमंडल के अमोनिया क्रिस्टल के कारण एक हल्का पीला रंग दर्शाता है। माना गया है धातु हाइड्रोजन परत के भीतर की विद्युतीय धारा, शनि के ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को उभार देती है, जो पृथ्वी की तुलना में कमजोर है और बृहस्पति की एक-बीसवीं शक्ति के करीब है। बाह्य वायुमंडल आम तौर पर नीरस और स्पष्टता में कमी है, हालांकि दिर्घायु आकृतियां दिखाई दे सकती है। शनि पर हवा की गति, 1800 किमी/घंटा (1100 मील) तक पहुंच सकती है, जो बृहस्पति पर की तुलना में तेज, पर उतनी तेज नहीं जितनी वह नेप्च्यून पर है। शनि की एक विशिष्ट वलय प्रणाली है जो नौ सतत मुख्य छल्लों और तीन असतत चाप से मिलकर बनी हैं, ज्यादातर चट्टानी मलबे व धूल की छोटी राशि के साथ बर्फ के कणों की बनी हुई है। बासठ चन्द्रमा ग्रह की परिक्रमा करते है; तिरेपन आधिकारिक तौर पर नामित हैं। इनमें छल्लों के भीतर के सैकड़ों " छोटे चंद्रमा" शामिल नहीं है। टाइटन, शनि का सबसे बड़ा और सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह बुध ग्रह से बड़ा है और एक बड़े वायुमंडल को संजोकर रखने वाला सौरमंडल का एकमात्र चंद्रमा है। .

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शर्बत

शर्बत शर्बत एक पेय है जो पानी और नींबू या फलों के रसों में मसालों तथा अन्य सामग्रियों को मिला कर बनाया जाता है। प्रायः यह शीतलता प्रदान करने के लिए पिया जाता है। भारत तथा पाकिस्तान में शर्बत में मुख्तः पानी, चीनी और नमक के अलावे कुछ मसाले और नींबू के रस की प्रधानता होती है। पर तुर्की, अरब तथा फ़ारस (ईरान) के शर्बत कई फलों के रसों तथा सुगंधित पुष्पों और वनस्पतियों से मिलकर बने होते हैं। .

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शुक्र (ज्योतिष)

शुक्र (शुक्र, ശുക്രൻ, ಶುಕ್ರ, சுக்ரன், IAST Śukra), जिसका संस्कृत भाषा में एक अर्थ है शुद्ध, स्वच्छ, भृगु ऋषि के पुत्र एवं दैत्य-गुरु शुक्राचार्य का प्रतीक शुक्र ग्रह है। भारतीय ज्योतिष में इसकी नवग्रह में भी गिनती होती है। यह सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी होता है। यह श्वेत वर्णी, मध्यवयः, सहमति वाली मुखाकृति के होते हैं। इनको ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है। ये हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी लिये रहते हैं। उषानस एक वैदिक ऋषि हुए हैं जिनका पारिवारिक उपनाम था काव्य (कवि के वंशज, अथर्व वेद अनुसार जिन्हें बाद में उषानस शुक्र कहा गया। .

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शोधित जल

शोधित जल (Purified water) वह जल है जिसको यांत्रिक विधि से प्रक्रमित करके किसी विशेष उपयोग के योग्य बना दिया गया हो, या उसकी अशुद्धियाँ निकाल दी गयीं हों। आसुत जल सदा से शुद्ध जल का सबसे सामान्य रूप रहा है किन्तु आजकल प्रायः जल को शुद्ध करने के लिए अन्य प्रक्रियाओं का सहारा लिया जाने लगा है, जैसे संधारित्रीय वि-आयनीकरण (capacitive deionization), व्युत्क्रम परासरण (reverse osmosis), कार्बन द्वारा फिल्टर करना, सूक्ष्मफिटरन (microfiltration), अतिफिटरन (ultrafiltration), पराबैंगनी आक्सीकरण (ultraviolet oxidation) या विद्युत-विआयनीकरण (electrodeionization) आदि। .

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समुद्र तल

समुद्र तल से ऊँचाई दिखाता एक बोर्ड समुद्र तल या औसत समुद्र तल (अंग्रेज़ी:Mean sea level) समुद्र के जल के उपरी सतह की औसत ऊँचाई का मान होता है। इसकी गणना ज्वार-भाटे के कारण होने वाले समुद्री सतह के उतार चढ़ाव का लंबे समय तक प्रेक्षण करके उसका औसत निकाल कर की जाती है। इसे समुद्र तल से ऊँचाई (MSL-Metres above sea level) में व्यक्त किया जाता है। इसका प्रयोग धरातल पर स्थित बिंदुओं की ऊँचाई मापने के लिये सन्दर्भ तल के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग उड्डयन में भी होता है। उड्डयन में समुद्र की सतह पर वायुमण्डलीय दाब को वायुयानों के उड़ान की उँचाई के सन्दर्भ (डैटम) के रूप में उपयोग किया जाता है। .

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समुद्री प्रदूषण

अक्सर प्रदूषण के कारण ज्यादातर नुकसान को देखा नहीं जा सकता है, जबकि समुद्री प्रदूषण को स्पष्ट किया जा सकता है जैसा कि समुद्र के ऊपर दिखाए गए मलबे को देखा जा सकता है। समुद्री प्रदूषण तब होता है जब रसायन, कण, औद्योगिक, कृषि और रिहायशी कचरा, शोर या आक्रामक जीव महासागर में प्रवेश करते हैं और हानिकारक प्रभाव, या संभवतः हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। समुंद्री प्रदूषण के ज्यादातर स्रोत थल आधारित होते हैं। प्रदूषण अक्सर कृषि अपवाह या वायु प्रवाह से पैदा हुए कचरे जैसे अस्पष्ट स्रोतों से होता है। कई सामर्थ्य ज़हरीले रसायन सूक्ष्म कणों से चिपक जाते हैं जिनका सेवन प्लवक और नितल जीवसमूह जन्तु करते हैं, जिनमें से ज्यादातर तलछट या फिल्टर फीडर होते हैं। इस तरह ज़हरीले तत्व समुद्री पदार्थ क्रम में अधिक गाढ़े हो जाते हैं। कई कण, भारी ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हुई रसायनिक प्रक्रिया के ज़रिए मिश्रित होते हैं और इससे खाड़ियां ऑक्सीजन रहित हो जाती हैं। जब कीटनाशक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में शामिल होते हैं तो वो समुद्री फूड वेब में बहुत जल्दी सोख लिए जाते हैं। एक बार फूड वेब में शामिल होने पर ये कीटनाशक उत्परिवर्तन और बीमारियों को अंजाम दे सकते हैं, जो इंसानों के लिए हानिकारक हो सकते हैं और समूचे फूड वेब के लिए भी.

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समुद्री बर्फ़

मार्च से सितम्बर के मध्य आर्कटिक की बर्फ की मात्रा मे परिवर्तनसमुद्री बर्फ का निर्माण नमकीन महासागरीय जल से होता है, इसलिए यह -1.8 °C (सेल्सियस) (28.8 °F) पर निर्मित होती है। समुद्री बर्फ महासागरों में पाये जाने वाले उन हिमशैलों से अलग है जो हिमनदों का हिस्सा होते हैं और जो समुद्र में इनसे टूट कर बनते हैं। हिमशैल चूंकि संपीडित हिम से निर्मित होते हैं इसलिए यह ताजे पानी के स्रोत होते हैं। कुछ समुद्री बर्फ स्थायी रूप से जमी रहती है जबकि इसके कुछ हिस्से मौसमी परिवर्तन के चलते पिघल जाते हैं, इसलिए नौगमन के लिए इन क्षेत्रों में इसकी जानकारी अत्यावश्यक है। .

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सरसों का तेल

सरसों का तेल सरसों के तेल शब्द का इस्तेमाल तीन भिन्न प्रकार के तेलों के लिए किया जाता है जो सरसों के बीज से बने होते हैं।.

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सल्फ़ोनिक अम्ल

सल्फ़ोनिक अम्ल (sulfonic acid) कार्बन-सल्फर यौगिकों के समूह का एक सदस्य है जिसका सामान्य सूत्र R−S(.

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साधारण नमक

नमक (Common Salt) से साधारणतया भोजन में प्रयुक्त होने वाले नमक का बोध होता है। रासायनिक दृष्टि से यह सोडियम क्लोराइड (NaCl) है जिसका क्रिस्टल पारदर्शक एवं घनाकार होता है। शुद्ध नमक रंगहीन होता है, किंतु लोहमय अपद्रव्यों के कारण इसका रंग पीला या लाल हो जाता है। समुद्र के खारापन के लिये उसमें मुख्यत: सोडियम क्लोराइड की उपस्थिति कारण होती है। भौमिकी में लवण को हैलाइट (Halite) कहते हैं। .

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साबुन

तरह-तरह के सजावटी साबुन साबुन उच्च अणु भार वाले कार्बनिक वसीय अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण है। मृदु साबुन का सूत्र C17H35COOK एवं कठोर साबुन का सूत्र C17H35COONa है। साबुनीकरण की क्रिया में वनस्पति तेल या वसा एवं कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के जलीय घोल को गर्म करके रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा साबुन का निर्माण होता तथा ग्लीसराल मुक्त होता है। साधारण तापक्रम पर साबुन नरम ठोस एवं अवाष्पशील पदार्थ है। यह कार्बनिक मिश्रण जल में घुलकर झाग उत्पन्न करता है। इसका जलीय घोल क्षारीय होता है जो लाल लिटमस को नीला कर देता है। .

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सायनेमाइड

सायनेमाइड (Cyanamide) एक कार्बनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र CN2H2 है। .

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सारस (पक्षी)

सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। इस पक्षी को क्रौंच के नाम से भी जानते हैं। पूरे विश्व में भारतवर्ष में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। सबसे बड़ा पक्षी होने के अतिरिक्त इस पक्षी की कुछ अन्य विशेषताएं इसे विशेष महत्व देती हैं। उत्तर प्रदेश के इस राजकीय पक्षी को मुख्यतः गंगा के मैदानी भागों और भारत के उत्तरी और उत्तर पूर्वी और इसी प्रकार के समान जलवायु वाले अन्य भागों में देखा जा सकता है। भारत में पाये जाने वाला सारस पक्षी यहां के स्थाई प्रवासी होते हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं। सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है। विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है। प्रातःकाल की बेला में महर्षि वाल्मीकि इसके द्रष्टा हैं तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती है। जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है। ऋषि उस आखेटक को श्राप देते हैं। अर्थात्, हे निषाद! तुझे निरंतर कभी शांति न मिले। तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के हत्या कर डाली। .

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सारसण्डा

सारसण्डा आन्तरोली कला ग्राम पंचायत, डेगाना तहसिल जिला नागौर, राजस्थान भारत मे है। सारसण्डा रेण से ९ किलोमीटर पुर्व मे तथा डेगाना जंक्शन से १५ किलोमीटर पश्चिम मे है। यहा पर विजयनाथजी महाराज की स्माधिस्थल है। यहां का मुख्य रोजगार खेती है। पानी की अच्छी सुविधा है। सरकारी नलकूपो, के अलावा तालाबो का पानी उपयोग मे लिया जाता है। .

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सागरगत ज्वालामुखी

सागरगत ज्वालामुखी (submarine volcanoes) सागर और महासागरों में पृथ्वी की सतह पर स्थित में चीर, दरार या मुख होते हैं जिनसे मैग्मा उगल सकता है। बहुत से सागरगत ज्वालामुखी भौगोलिक तख़्तों के हिलने वाले क्षेत्रों में होते हैं, जिन्हें मध्य-महासागर पर्वतमालाओं के रूप में देखा जाता है। अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी पर उगला जाने वाला 75% मैग्मा इन्हीं मध्य-महासागर पर्वतमालाओं में स्थित सागरगत ज्वालामुखियों से आता है।Martin R. Speight, Peter A. Henderson, "Marine Ecology: Concepts and Applications", John Wiley & Sons, 2013.

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सिंचाई

गेहूं की सिंचाई पंजाब में सिंचाईसिंचाई मिट्टी को कृत्रिम रूप से पानी देकर उसमे उपलब्ध जल की मात्रा में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग फसल उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रों या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। कृषि के क्षेत्र में इसका प्रयोग इसके अतिरिक्त निम्न कारणें से भी किया जाता है: -.

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संयोजकता

तत्वों की संयोजन शक्ति (combining power) को संयोजकता (Valency) का नाम दिया गया है। संयोजकता का यथार्थ ज्ञान ही समस्त रसायन शास्त्र की नींव है। पिछले वर्षो में द्रव्यों के स्वभाव तथा गुणों का अधिक ज्ञान होने के साथ साथ संयोजकता के ज्ञान में भी वृद्धि हुई है। दूसरे शब्दों में, संयोजकता एक संख्या है जो यह प्रदर्शित करती है कि जब कोई परमाणु कितने इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है, या खोता है या साझा करता है जब वह अपने ही तत्व के परमाणु से या किसी अन्य तत्व के परमाणु से बन्धन बनाता है। .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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सुखाना

शुष्कन या सुखाना (Drying) वह प्रक्रिया है जिसमें जल या अन्य विलायक के अणुओं को किसी ठोस, अर्ध-ठोस या द्रव से निकाला जाता है। अतः यह एक द्रव्यमान स्थानान्तरण प्रक्रिया (mass transfer process) है। श्रेणी:प्रक्रिया.

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स्ट्रिकनीन

स्ट्रिकनीन का सूत्र स्ट्रिकनिन (strychnine) एक ऐल्कलाइड है जिसका आविष्कार १८१८ ई. में हुआ था। यह स्ट्रिकनोस (Strychnos) वंश के एक पौधे नक्सवोमिका (nux-vomica) के बीज से निकाला गया था। पीछे अन्य कई पौधों में भी पाया गया। साधारणतया यह एक अन्य ऐलकेलाइड ब्रुसिन के साथ साथ पाया जाता है। ऐलकोहॉल से यह वर्णरहित प्रिज़्म बनाता है। जल में यह प्राय: अविलेय होता है। सामान्य कार्बनिक विलायकों में भी कठिनता से धुलता है। यह क्षारीय क्रिया देता है। यह अम्लीय क्षार है। स्वाद में बड़ा कड़वा होता है। स्ट्रिकनीन अत्यन्त विषैला (चूहों के लिये LD50 .

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स्थलीय ग्रह

सीरीस (बौना ग्रह)। स्थलीय ग्रह या चट्टानी ग्रह मुख्य रूप से सिलिकेट शैल अथवा धातुओ से बना हुआ ग्रह होता है। हमारे सौर मण्डल में स्थलीय ग्रह, सूर्य के सबसे निकटतम, आंतरिक ग्रह है। स्थलीय ग्रह अपनी ठोस सतह की वजह से गैस दानवों से काफी अलग होते हैं, जो कि मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलियम और विभिन्न प्रावस्थाओ में मौजूद पानी के मिश्रण से बने होते हैं। .

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स्थावर सम्पदा

भूमि तथा उसके उपर स्थित भवन आदि को सम्मिलित रूप से स्थावर सम्पदा (Real estate) कहते हैं। इसमें प्राकृतिक संसाधन जैसे फसलें, खनिज, जल, अचल सम्पत्तियाँ आदि भी सम्मिलित हैं। .

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स्नान

जवानी के फौब्बारे में स्नान का स्वप्न पानी या किसी अन्य तरल में शरीर को डुबाकर या बिना डुबाये शरीर को धोना स्नान कहलाता है। स्नान कई प्रयोजनोंके लिये किया जाता है; जैसे- स्वच्छता, धार्मिक अनुष्ठान, चिकित्सकीय कारण आदि। लोग चॉकलेट, कीचड़, दूध, शम्पेन आदि में भी स्नान करते हैं। सूरज के प्रकाश में खुले बदन बैठना या लेटना भी स्नान (सूर्य स्नान) कहलाता है। रोमन स्नानागर .

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स्पगैटी

संशोषण या मसाला के बिना एक थाली पर पकाया हुआ स्पेगेटी. स्पगैटी इतालवी मूल का एक लंबा, पतला, बेलनाकार पास्ता है।स्पेगेटी.

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स्वस्थ आहार

ताजा सब्जियां स्वस्थ आहार की महत्वपूर्ण घटक हैं। प्रमुख रंगीन फल स्वस्थ आहार वह है जोकि स्वास्थ्य को बनाए रखने या उसे सुधारने में मदद करता है। यह कई चिरकालिक स्वास्थ्य जोखिम जैसे कि: मोटापा, हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण है। एक स्वस्थ आहार में समुचित मात्रा में सभी पोषक तत्वों और पानी का सेवन शामिल है। पोषक तत्व कई अलग खाद्य पदार्थों से प्राप्त किए जा सकते हैं, अतः विस्तृत विविध आहार मौजूद हैं जिन्हें स्वस्थ आहार माना जा सकता है। स्वस्थ्य आहार हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। .

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स्वाधिष्ठान चक्र

स्वाधिष्ठान चक्र तंत्र और योग साधना की चक्र संकल्पना का दूसरा चक्र है। स्व का अर्थ है आत्मा। यह चक्र त्रिकास्थि (पेडू के पिछले भाग की पसली) के निचले छोर में स्थित होता है। इसका मंत्र वम (ङ्क्ररू) है। .

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स्वेद-ग्रन्थि

स्वेद-ग्रन्थि के लम्ब काट का चित्र स्वेद ग्रन्थि स्तनधारियों के त्वचा में स्थित होते हैं। यह छिद्र द्वारा बाहर खुलती है। इसका कुंडलित भाग पसीना या स्वेद स्त्रावित करता है जिसमें जल, लवण एवं नाइट्रोजन युक्त वर्ज्य पदार्थ रहते हैं। यह शरीर में जल तथा लवण का संतुलन बनाने में सहायता करता है। पसीना हमारे शरीर में मौजूद पसीने की ग्रंथियों से निकलता है। इन्हें एक्राइन स्वेद-ग्रन्थि/पसीना ग्रंथि (Eccrine Sweat Glands) कहते हैं। इंसान के शरीर पर 20 लाख से 40 लाख तक पसीने की ग्रंथियां होती है। ये ग्रंथियां पैर के तलवों, हथेली, मस्तक, गाल और काँख Armpit में सबसे ज्यादा होती है। इसलिए इन जगहों पर स्वेटिंग ज्यादा होती है। पसीने में 99 % पानी और थोड़ी मात्रा में नमक, प्रोटीन और यूरिया होते है। पसीना गंध रहित पानी होता है। .

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सौर मण्डल

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

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सौर जल तापन

अंगूठाकार सूर्य से धरती पर आने वाली ऊर्जा का उपयोग करके जल का ताप बढ़ाना सौर जल तापन (Solar water heating (SWH)) कहलाता है। इसके लिए सौर ऊष्मा संग्राही (सोलर थर्मल कलेक्तर) का उपयोग किया जाता है। आज सौर जल तापन के लिए विभिन्न स्थितियों के लिए उपयुक्त तथा विभिन्न मूल्य वाली अनेकों प्रणालियाँ उपलब्ध हैं। सौर जल तापन का उपयोग घरों और उद्योगों में बहुतायत में हो रहा है। श्रेणी:सौर ऊर्जा.

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सैन होज़े, कैलिफोर्निया

सैन होज़े (जिसका स्पेनिश में अर्थ है - सेंट जोसफ) कैलिफोर्निया का तीसरा सबसे बड़ा शहर, संयुक्त राज्य अमेरिका का दसवां सबसे बड़ा शहर और सांता क्लारा काउंटी का काउंटी सीट है। यह देश के 31वें सबसे बड़े महानगरीय क्षेत्र का एक ऐंकर है जो सैन फ्रांसिस्को खाड़ी के दक्षिणी छोर पर स्थित है। सैन होज़े कभी एक छोटा सा कृषि शहर था जहां 1950 के दशक से अब तक बड़ी तेज़ी से विकास हुआ है। जनसंख्या, भूमि क्षेत्र, एवं औद्योगिक विकास की दृष्टि से सैन होज़े खाड़ी क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर है। 1 जनवरी 2010 तक इसकी अनुमानित जनसंख्या 1,023,083 थी। सैन होज़े की नींव 29 नवम्बर 1777 को नुएवा कैलिफोर्निया के स्पेनिश कॉलोनी के पहले कस्बे, एल पुएब्लो डी सैन होज़े डी ग्वाडालूप (El पुएब्लो de San José de Guadalupe), के रूप में रखी गई, जो बाद में अल्टा कैलिफोर्निया बना.

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सूप

फ़्रांसिसी प्याज सूप का एक कटोरा रोटी के साथ घर में बना हुआ चिकन नूडल सूप सूप या शोरबा एक प्रकार का खाद्य पदार्थ है जो मीट और सब्जियों जैसी सामग्रियों को, स्टॉक, जूस, पानी या किसी अन्य तरल पदार्थ में मिलाकर बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त गर्म सूप की अन्य विशेषता यह है कि इनमें एक पात्र में तरल पदार्थ में ठोस सामग्रियों को तब तक उबाला जाता है जब तक कि स्वाद उनसे निकलर तरल पदार्थ में न समा जाए और वह एक शोरबे जैसा हो जाये.

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सूखी धुलाई

शुष्क धुलाई किये हुए कपड़े सूखी धुलाई (Dry Cleaning) या शुष्क धुलाई में कार्बनिक विलायकों का उपयोग होता है। यह ऊनी, रेशमी, रेयन और इसी प्रकार के अन्य वस्त्रों के लिए उपयोग की जाती है। सामान्य धुलाई पानी, साबुन और सोडे से की जाती है। भारत में धोबी सज्जी मिट्टी का व्यवहार करते हैं, जिसका सक्रिय अवयव सोडियम कार्बोनेट होता है। सूती वस्त्रों के लिए यह धुलाई ठीक है पर ऊनी, रेशमी, रेयन और इसी प्रकार के अन्य वस्त्रों के लिए यह ठीक नहीं है। ऐसी धुलाई से वस्त्रों के रेशे कमजोर हो जाते हैं और यदि कपड़ा रंगीन है तो रंग भी फीका पड़ जाता है। ऐसे वस्त्रों की धुलाई सूखी रीति से की जाती है। केवल वस्त्र ही सूखी रीति से नहीं धोए जाते वरन् घरेलू सजावट के साज सामान भी सूखी धुलाई से धोए जाते हैं। सूखी धुलाई की कला अब बहुत उन्नति कर गई है। इससे धुलाई जल्दी तथा अच्छी होती है और वस्त्रों के रेशे और रंगों की कोई क्षति नहीं होती। विशेष रूप से ऊनी कंबल आदि के लिए यह बहुत उपयोगी है। .

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सेरेन्कोव विकिरण

सेरेन्कोव विकिरण (Cherenkov radiation, चेरेन्कोव विकिरण अथवा वाविलोव-सेरेन्कोव विकिरण) एक विद्युतचुम्बकीय विकिरण है जो तब उत्पन्न होता है जब कोई आवेशित कण (मुख्यतः इलेक्ट्रॉन) किसी पैराविद्युत-माध्यम में उस माध्यम में प्रकाश के फेज वेग से अधिक वेग से गति करे। जल के भीतर स्थित नाभिकीय रिएक्टर से निकलने वाला विशिष्ट नील चमक, सेरेन्कोव विकिरण के ही कारण होती है। इसका नाम सोवियत संघ के वैज्ञानिक तथा १९५८ के नोबेल पुरस्कार विजेता पावेल अलेकसेविच सेरेनकोव (Pavel Alekseyevich Cherenkov) के नाम पर रखा गया है जिन्होने इसे सबसे पहले प्रायोगिक रूप से खोजा (डिटेक्ट किया) था। इस प्रभाव का सैद्धान्तिक विवेचन बाद में विकसित हुआ जो आइन्सटाइन के विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धान्त पर आधारित था। सेरेन्कोव विकिरण के अस्तित्व की सैद्धान्तिक भविष्यवाणी ओलिवर हेविसाइड ने १८८८-८९ में किया था। .

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सोडियम हाइड्रॉक्साइड

सोडियम हाइड्रॉक्साइड एक उच्च कोटि का क्षार है जिसका रासायनिक सूत्र NaOH है। इसे दाहक सोडा (कॉस्टिक सोडा / caustic soda) भी कहते हैं। यह श्वेत ठोस चूर्ण, पैलेट्स, फ़्लेक्स तथा अनेक सांद्रता वाले विलयनों के रूप में उपलब्ध होता है। जल में भार के अनुसार लगभग ५० सोडियम हाइड्राक्साइड मिलाने पर विलयन संतृप्त हो जाता है। दाहक सोडा, जल, इथेनॉल और मिथेनॉल में विलेय है। यह एक प्रस्वेदी पदार्थ (deliquescent) है जो आसानी से हवा से आर्द्रता और कार्बन डाईऑक्साइड सोख लेता है। दाहक सोडे का उद्योगों में अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है। यह लुगदी और कागज, वस्त्र, पेय जल, साबुन और डिटर्जेंट के निर्माण में तथा नालियों की सफाई के लिये प्रयोग में लाया जाता है।सन २००४ में पूरे विश्व में इसका कुल उत्पादन ६० मिलियन टन था जबकि इसकी कुल मांग लगभग ५१ मिलियन टन थी। .

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सोडियम कार्बोनेट

सोडियम कार्बोनेट एक अकार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र (Na2CO3) है। इसे 'धावन सोडा' या 'धोने का सोडा' (washing soda या soda ash और soda crystals) भी कहते हैं। यह एक सामान्य लवण है जिसका जलीय घोल क्षारीय होता है। इसलिए इसका उपयोग कपड़े धोने के लिये किया जाता है। इसलिये इसे धावन सोडा (वाशिंग सोडा) भी कहते हैं। जल की कठोरता दूर करने में भी इसका उपयोग होता है। यह जल में अति विलेय है। इसका अणुसूत्र Na2CO3.10H2O होता है, जिसका पूरा नाम सोडियम कार्बोनेट डेका हाईड्रेट है | सिर्फ Na2CO3 को सोडा ऐश कहते हैं | लेकिन जब इसमें जल के अणु जुड़ जाते हैं, तो यह धावन सोडा (Washing Powder) बन जाता है | धावन सोडा को जब गर्म किया जाता है, तो यह में बदल जाता हैं | .

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सोहन हलवा

सोहन हलवा एक मिठाई है जो भारत, पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान में बहुत लोकप्रिय है। यह एक प्रकार का पकवान है जो मैदा, घी तथा चीनी से बनाया जाता है। .

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सीमेंट

सीमेंट का उपयोग। सीमेंट आधुनिक भवन निर्माण मे प्रयुक्त होने वाली एक प्राथमिक सामग्री है। सीमेंट मुख्यतः कैल्शियम के सिलिकेट और एलुमिनेट यौगिकों का मिश्रण होता है, जो कैल्शियम ऑक्साइड, सिलिका, एल्यूमीनियम ऑक्साइड और लौह आक्साइड से निर्मित होते हैं। सीमेंट बनाने कि लिये चूना पत्थर और मृत्तिका (क्ले) के मिश्रण को एक भट्ठी में उच्च तापमान पर जलाया जाता है और तत्पश्चात इस प्रक्रिया के फल:स्वरूप बने खंगर (क्लिंकर) को जिप्सम के साथ मिलाकर महीन पीसा जाता है और इस प्रकार जो अंतिम उत्पाद प्राप्त होता है उसे साधारण पोर्टलैंड सीमेंट (सा.पो.सी.) कहा जाता है। भारत में, सा.पो.सी.

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हरसौंठ

हरसौंठ हरसौंठ (जिप्सम) (Ca SO4, 2H2o) एक तहदार खनिज है जिसे 'सैलैनाइट' भी कहते हैं। रासायनिक संरचना की दृष्टि से यह कैल्सियम का सल्फेट है, जिसमें जल के भी दो अणु रहते हैं। गरम करने से जल के अणु निकल जाते हैं और यह अजल हो जाता है। आकृति में यह दानेदार संगमर्मर सदृश होता है। ऐसे हरसौंठ को सेलेनाइट या सेलखड़ी (अलाबास्टर) कहते हैं। नमक की खानों में नमक के साथा हरसौंठ भी मिला रहता है। समुद्र के पानी में भी हरसौंठ रहता है। समुद्री पानी को सुखाने पर जो लवण प्राप्त होते हैं उनमें हरसौंठ के मणिभ पाए जाते हैं। .

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हरिता

वन में मॉस चट्टान पर हरिता (मॉस) हरिता या मॉस (Moss) अपुष्पक पादप है। ब्रायोफाइटा वर्ग के इस प्रचलित पौधे में वास्तविक जड़ों का अभाव रहता है। यह सामान्यतः १ से १० से.

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हाला

हाला या द्राक्षिरा या वाइन (Wine) अंगूर के रस को किण्वित (फ़र्मेन्ट) करने से बनने वाला एक मादक पेय है। इसमें अंगूरों का किण्वन बिना किसी शर्करा, अम्ल, प्रकिण्व (एन्ज़ाइम), जल या अन्य किसी पोषक तत्व को डाले होता है। खमीर (यीस्ट) अंगूर रस में उपस्थित शर्करा को किण्वित कर के इथेनॉल व कार्बन डाईऑक्साइड में परिवर्तित कर देते हैं। अंगूर और खमीर की अलग-अलग नस्लों से अलग-अलग स्वाद, गंध व रंगों वाली हाला बनती है। हाला पर अंगूरों के उगाए जाने के स्थान, वर्षा, सूरज व अंगूरों को तोड़ने के समय का भी असर पड़ता है। अंगूरों के अलावा अन्य फलों की भी हाला बनाई जाती है हालांकि उसकी मात्रा व लोकप्रियता अंगूरों की हाला की तुलना में बहुत कम है। शहतूत, अनार, सेब, नाशपाती, आलू बुख़ारा, आलूबालू (चेरी) और अन्य फलों की हाला बनती है। हाला बनाने की प्रथा अति-प्राचीन है और कॉकस क्षेत्र में जॉर्जिया में ८,००० वर्ष पुराने हाला की सुराहियाँ मिली हैं। .

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हावरक्राफ्ट

लिथुआनिया का तटरक्षक हॉवरक्राफ्ट; इसका इंजन चालू है तथा 'स्कर्ट' फुलाया हुआ है। हॉवरक्राफ्ट का योजना-चित्र 1. प्रोपेलर 2. वायु 3. पंखे 4. नम्य 'स्कर्ट' होवरक्राफ्ट (Hovercraft) हवाई गद्दों वाला एक ऐसा वाहन है, जो जल और जमीन के साथ-साथ बर्फीली सतह तथा कीचड़ पर भी आसानी से दौड़ सकता है। इस में एक बड़े पंखे से हवा की एक गद्दी तैयार की जाती है जिस पर यह हावरक्राफ्ट तैरता है। इस गद्दी के कारण क्राफ्ट की गति की विपरीत दिशा में लगने वाला श्यान-घर्षण बल बहुत कम हो जाता है। क्राफ्ट के हल्ल (hull) तथा उसके नीचे के तल (पानी, मिट्टी, कीचड़, बर्फ आदि) के बीच हवा को कम दाब तथा उच्च आयतन पर बनाए रखा जाता है। ये वाहन प्रायः नीचे के तल से २०० मिमी से लेकर ६०० मिमी की ऊँचाई पर 'तैरते' हुए आगे बढ़ते हैं। इनकी गति २० किमी/घण्टा से अधिक होती है। वर्ष १९५२ में ब्रिटिश इंजिनियर सर क्रिस्टोफर कोकरेल ने एक वैक्युम क्लीनर की मोटर व दो छोटे-छोटे बेलनाकार डिब्बों के साथ एक प्रयोग करते हुए पहली बार यह साबित किया कि हवाई कुशन से युक्त किसी वाहन से किसी इंजिन के जरिए हवा को तेजी से पीछें फेंका जाए तो इससे उपजा दबाव वाहन कों जल या थल में भी आगे दौड़ा सकता है। इसी सिद्धांत पर आगे चलकर ब्रिटिश विमान निर्माता सॉन्डर्स रोए ने पहला व्यवहारिक होवरक्राफ्ट बनाया जो इंसान कों ले जाने में सक्षम था। इसे एसआर-एन वन नाम दिया गया। पहले इसे सैन्य इस्तेमाल के लिहाज से ही बनाया गया था, लेकिन बाद में इसका आम नागरिकों के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा। वर्ष १९५९ से १९६१ तक इस होवरक्राफ्टको इंग्लिश चैनल पार करने समेत कई तरह के परीक्षणों से गुजारा गया। इसमें एक इंजिन लगा था और यह दो आदमियों कों ले जाने में सक्षम था। हालांकि पहला विशुद्ध पैसेंजर होवरक्राफ्ट विकर्स विए - ३ था, जिसमें दो टर्बोप्रोप इंजन लगे थे और प्रोपेलर्स के सहारे चलता था। श्रेणी:वाहन *.

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हाइड्रोचैरिटेसिए

हाइड्रोचैरिटेसिए (Hydrocharitaceae) सपुष्पक पौधों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जिसमें १६ ज्ञात वंशों के अंतर्गत १३५ जातियाँ आती हैं। इस कुल में मीठे पानी व समुद्री जल में उगने वाली कई जातियाँ हैं। यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मिलती हैं हालांकि कुछ अन्य स्थानों पर भी उगती हैं। .

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हाइड्रोजन

हाइड्रोजन पानी का एक महत्वपूर्ण अंग है शुद्ध हाइड्रोजन से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हाइड्रोजन (उदजन) (अंग्रेज़ी:Hydrogen) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी का सबसे पहला तत्व है जो सबसे हल्का भी है। ब्रह्मांड में (पृथ्वी पर नहीं) यह सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। तारों तथा सूर्य का अधिकांश द्रव्यमान हाइड्रोजन से बना है। इसके एक परमाणु में एक प्रोट्रॉन, एक इलेक्ट्रॉन होता है। इस प्रकार यह सबसे सरल परमाणु भी है। प्रकृति में यह द्विआण्विक गैस के रूप में पाया जाता है जो वायुमण्डल के बाह्य परत का मुख्य संघटक है। हाल में इसको वाहनों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर सकने के लिए शोध कार्य हो रहे हैं। यह एक गैसीय पदार्थ है जिसमें कोई गंध, स्वाद और रंग नहीं होता है। यह सबसे हल्का तत्व है (घनत्व 0.09 ग्राम प्रति लिटर)। इसकी परमाणु संख्या 1, संकेत (H) और परमाणु भार 1.008 है। यह आवर्त सारणी में प्रथम स्थान पर है। साधारणतया इससे दो परमाणु मिलकर एक अणु (H2) बनाते है। हाइड्रोजन बहुत निम्न ताप पर द्रव और ठोस होता है।।इण्डिया वॉटर पोर्टल।०८-३०-२०११।अभिगमन तिथि: १७-०६-२०१७ द्रव हाइड्रोजन - 253° से.

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हाइड्रोजन पेरॉक्साइड

'हाइड्रोजन परॉक्साइड (H2O2) एक बहुत हल्का नीला, पानी से जरा सा अधिक गाढ़ा द्रव है जो पतले घोल में रंगहीन दिखता है। इसमें आक्सीकरण के प्रबल गुण होते हैं और यह एक शक्तिशाली विरंजक है। इसका इस्तेमाल एक विसंक्रामक, रोगाणुरोधक, आक्सीकारक और रॉकेट्री में प्रणोदक के रूप में किया जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड की आक्सीकरण क्षमता इतनी प्रबल होती है कि इसे आक्सीजन की उच्च प्रतिक्रिया वाली जाति समझा जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड जीवों में आक्सीकरण चयापचय के उपोत्पाद के रूप में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है। लगभग सभी जीवित वस्तुओं (विशेषकर, सभी आब्लिगेटिव और फेकल्टेटिव वातापेक्षी जीव) में परॉक्सिडेज नामक एन्ज़ाइम होते हैं जो बिना हानि पहुंचाए और उत्प्रेरण द्वारा उदजन परूजारक की छोटी मात्राओं को पानी और आक्सीजन में विघटित करते हैं। .

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हाइड्रोजन आबंध

doi.

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हाइड्रोक्लोरिक अम्ल

३०% सान्द्रता वाला हाइड्रोक्लोरिक अम्ल हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक प्रमुख अकार्बनिक अम्ल है। वस्तुतः हाइड्रोजन क्लोराइड गैस के जलीय विलयन को ही हाइड्रोक्लोरिक अम्ल कहते हैं। इस अम्ल का उल्लेख ग्लौबर ने १६४८ ई. में पहले पहल किया था। जोसेफ़ प्रीस्टली ने १७७२ में पहले पहल तैयार किया और सर हंफ्री डेवी ने १८१० ई. में सिद्ध किया कि हाइड्रोजन और क्लोरीन का यौगिक है। इससे पहले लोगों की गलत धारणा थी कि इसमें ऑक्सीजन भी रहता है। तब इसका नाम 'म्यूरिएटिक अम्ल' पड़ा या जो आज भी कहीं कहीं प्रयोग में आता है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ज्वालामुखी गैसों में पाया जाता है। मानव जठर में इसकी अल्प मात्रा रहती है और आहार पाचन में सहायक होती है। .

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हाइग्रोस्कोपिक कण

हाइग्रोस्कोपी किसी पदार्थ की अपने चारों ओर के वातावरण से जल के अणुओं को आकर्षित करने की क्षमता है। यह क्रिया या तो अवशोषण द्वारा या अधिशोषण द्वारा होती है। हाइग्रोस्कोपिक पदार्थों में शक्कर, शहद, ग्लिसरॉल, इथेनॉल, मेथेनॉल, सल्फ्यूरिक अम्ल, आयोडीन, अनेक क्लोराइड तथा हाइड्रॉक्साइड, लवण आदि हैं। जिंक क्लोराइड, कैल्सियम क्लोराइड तथा पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड एवं सोडियम हाइड्रॉक्साइड और अनेक विभिन्न लवण इतने हाइड्रोस्कोपिक होते हैं कि वे खुद के द्वारा अवशोषित किए गये जल में घुल भी जाते हैं। इस गुण को डिलिक्विसेंस कहते हैं। सल्फ्यूरिक अम्ल न केवल उच्च सान्द्रता पर हाइग्रोस्कोपिक होता है बल्कि इसका विलयन 10 Vol-% या इससे कम सांद्रता पर भी हाइग्रोस्कोपिक होता है। श्रेणी:पदार्थ विज्ञान.

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हिम

हिम क्रिस्टलीय जलीय बर्फ के रूप में हुआ एक प्रकार का वर्षण है, जिसमे एक बड़ी मात्रा में हिमकण शामिल होते है जो बादलों से गिरते हैं। चूंकि हिम बर्फ के महीन कणों से बनी होती है, इसलिए यह एक दानेदार पदार्थ है। इसकी संरचना खुली और इसलिए नरम होती है, जब तक कि कोई बाहरी दाब डाल कर इसे दबाया ना जाए। हिमपात हिमपातबर्फ के क्रिस्टल के रूपों को दर्शाता है जो वायुमंडल (आमतौर पर बादलों से) से निकलता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन से गुजरता है। यह अपने जीवन चक्र में जमे हुए क्रिस्टलीय पानी से संबंधित है, जब उचित परिस्थितियों में, वातावरण में बर्फ के क्रिस्टल का निर्माण होता है, मिलिमीटर का आकार बढ़ाता है, सतह पर तरक्की हो जाती है और सतह पर जमा होता है, फिर जगह में बदल जाता है, और अंततः पिघल, स्लाइड या दूर जाना जाता है । वायुमंडलीय नमी और ठंडी हवा के स्रोतों पर खिलाकर बर्फ के तूफान व्यवस्थित और विकसित होते हैं। स्नोफ्लेक्स सुपरकोलाइड पानी की बूंदों को आकर्षित करके वातावरण में कणों के चारों ओर घूमती है, जो हेक्सागोनल-आकार के क्रिस्टल में स्थिर होते हैं। स्नोफ्लेक विभिन्न आकारों पर लेते हैं, इनमें से मूल प्लेटलेट्स, सुई, स्तंभ और शिलाएं हैं। जैसा कि बर्फ एक बर्फ के टुकड़े में जमा हो जाता है, यह बहाव में उड़ सकता है समय के साथ, सिमेंटर, नीचीकरण और फ्रीज-पिघलना द्वारा, बर्फ का आकार संचित किया गया। जहां साल-दर-वर्ष संचय के लिए जलवायु ठंडा होती है, एक ग्लेशियर हो सकता है। अन्यथा, बर्फ आमतौर पर मौसम में पिघला देता है, जिससे नदियों और नदियों में जल प्रवाह और भूजल रिचार्ज होता है .

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हिमपात

वायुमण्डल के जल के हिम बनने के कारण बर्फ धरती पर आच्छादित हो जाती है, इसे हिमपात कहते हैं। .

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हिमपुंज

हिमपुंज (snowpack) हिम के कई परतों के किसी स्थान पर जमा होने से बने हिम के एक बड़े भंडार को कहते हैं। यह ऐसी भौगोलिक स्थान या ऊँची जगहों पर बनते हैं जहाँ का तापमान वर्ष में बहुत दिनों के लिए शून्य से कम रहे, ताकि बार-बार हिमपात से गिरी परतें पिघलने की बजाय एक-के-ऊपर-एक जमती रहें। विश्व के कई झरने और नदियाँ इन हिमपुंजों के धीरे-धीरे पिघलने से चलती हैं इसलिए हिमपुंजो को पीने, कृषि व वन्य जीवन के लिए जल का एक महत्वपूर्ण संसाधन माना जाता है। हिमानियाँ (ग्लेशियर) भी इन्हीं हिमपुंजों से हिम पहुँचता है। पर्वतों में हिमपुंजों की बनावट और स्थिरता को हिमस्खलन (आवालांच) का ख़तरा अनुमानित करने के लिए परखा जाता है। .

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हिमानी

काराकोरम की बाल्तोरो हिमानी हिमानी या हिमनद (अंग्रेज़ी Glacier) पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि को कहते है जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहमान होती है। ध्यातव्य है कि यह हिमराशि सघन होती है और इसकी उत्पत्ति ऐसे इलाकों में होती है जहाँ हिमपात की मात्रा हिम के क्षय से अधिक होती है और प्रतिवर्ष कुछ मात्रा में हिम अधिशेष के रूप में बच जाता है। वर्ष दर वर्ष हिम के एकत्रण से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है और वे सघन हिम (Ice) के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है जिसे हिमनद कहते हैं। प्रायः यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर जल देता है। पृथ्वी पर ९९% हिमानियाँ ध्रुवों पर ध्रुवीय हिम चादर के रूप में हैं। इसके अलावा गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों के हिमनदों को अल्पाइन हिमनद कहा जाता है और ये उन ऊंचे पर्वतों के सहारे पाए जाते हैं जिन पर वर्ष भर ऊपरी हिस्सा हिमाच्छादित रहता है। ये हिमानियाँ समेकित रूप से विश्व के मीठे पानी (freshwater) का सबसे बड़ा भण्डार हैं और पृथ्वी की धरातलीय सतह पर पानी के सबसे बड़े भण्डार भी हैं। हिमानियों द्वारा कई प्रकार के स्थलरूप भी निर्मित किये जाते हैं जिनमें प्लेस्टोसीन काल के व्यापक हिमाच्छादन के दौरान बने स्थलरूप प्रमुख हैं। इस काल में हिमानियों का विस्तार काफ़ी बड़े क्षेत्र में हुआ था और इस विस्तार के दौरान और बाद में इन हिमानियों के निवर्तन से बने स्थलरूप उन जगहों पर भी पाए जाते हैं जहाँ आज उष्ण या शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है। वर्तमान समय में भी उन्नीसवी सदी के मध्य से ही हिमानियों का निवर्तन जारी है और कुछ विद्वान इसे प्लेस्टोसीन काल के हिम युग के समापन की प्रक्रिया के तौर पर भी मानते हैं। हिमानियों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ये जलवायु के दीर्घकालिक परिवर्तनों जैसे वर्षण, मेघाच्छादन, तापमान इत्यादी के प्रतिरूपों, से प्रभावित होते हैं और इसीलिए इन्हें जलवायु परिवर्तन और समुद्र तल परिवर्तन का बेहतर सूचक माना जाता है। .

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हिमांक अवनमन

किसी विलायक में कोई विलेय मिलाने पर, विलायक के हिमांक का कम हो जाने की प्रक्रिया हिमांक अवनमन (Freezing-point depression) कहलाती है। उदाहरण के लिये, जल का हिमांक शून्य डिग्री सेल्सियस है, किन्तु यदि जल में नमक मिला दिया जाय तो जल का हिमांक, शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है। .

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हैलोवीन

हैलोवीन या Hollowe'en एक अवकाश है, जो 31 अक्टूबर की रात को मनाया जाता है। (October 31).

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हेनरी कैवेंडिश

हेनरी कैवेंडिश (10 अक्टूबर 1731 - 24 फ़रवरी 1810) एक ब्रिटिश प्राकृतिक दार्शनिक, वैज्ञानिक, और एक महत्वपूर्ण प्रायोगिक और सैद्धांतिक रसायनज्ञ और भौतिक विज्ञानी था। कैवेंडिश उसकी हाइड्रोजन की खोज या जिन्हें वह "ज्वलनशील हवा" कहा करते थे के लिए विख्यात है।Cavendish, Henry (1766).

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हेलिक्टाइट

ये भी स्तंभ जैसी आक्र्ति हैं किन्तु इनका निर्माण जल की बूंदो द्वारा नही बल्कि आर्द्रतायुक्त सतह पर होता हैं। इसके निर्माण मे गुरुत्व का प्रभाव नही होता। इसका विकास किसी भी मे सम्भव हैं। श्रेणी:भूमिगत जल कृत स्थलाकृति श्रेणी:भूमिगत जल कृत निक्षेपात्मक स्थलरुप.

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जयपुर का इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड

जयपुर इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड गुरूवार २९ अक्टूबर २००९ को हुआ था। इस अग्निकाण्ड में राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर शहर के निकट स्थित सांगानेर में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के तेल भण्डार डिपो में भीषण आग लग गई जिसमें कंपनी को जहाँ करोड़ों की हानि हुई, वहीं इस दुर्घटना में ११ लोगों की मृत्यु भी हो गयी। .

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जल निकाय

जल निकाय (अंग्रेजी:Body of water अथवा Waterbody) पृथ्वी की सतह पर जल के एकत्रित स्वरूप को कहते हैं। यह महासागर, सागर अथवा छोटे तालाबों एवं कुंडों के रूप में हो सकते हैं। इनमें सतह पर प्रवाहमान जल के रूप में स्थित नदियों और नालों इत्यादि को भी शामिल किया जाता है। .

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जल निकासी

न्यू साउथ वेल्स में एक सिडनी नाली की अत्यंत गहराई में किसी क्षेत्र की सतह या उप-सतह के पानी को प्राकृतिक या कृत्रिम ढंग से हटाना जल निकासी कहलाता है। कृषि भूमि के उत्पादन को सुधारने या पानी की आपूर्ति के प्रबंधन के लिए जल निकासी की आवश्यकता पड़ती है। .

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जल प्रदूषण

जल प्रदूषण, से अभिप्राय जल निकायों जैसे कि, झीलों, नदियों, समुद्रों और भूजल के पानी के संदूषित होने से है। जल प्रदूषण, इन जल निकायों के पादपों और जीवों को प्रभावित करता है और सर्वदा यह प्रभाव न सिर्फ इन जीवों या पादपों के लिए अपितु संपूर्ण जैविक तंत्र के लिए विनाशकारी होता है। जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुये प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जल धारायों में विसर्जित कर दिया जाना है। .

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जल प्रक्रमण

जल प्रक्रमण (Water treatment) ऐसी प्रक्रिया होती है जिसके द्वारा जल को किसी विशेष प्रयोग के लिए तैयार या शुद्ध करा जाता है। यह प्रयोग पीना, नहाना, पौधों की सिंचाई, जल खेल, मछली पालन, इत्यादि हो सकता है। इसमें जल से प्रदूषकों व अन्य पदार्थों को निकाला जाता है। .

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जल मार्ग

यह जल परिवहन का एक चिरकालीन एवं महत्वपूर्ण साधन है। जलमार्ग एक पानी का नौगम्य शरीर हैं। एक या कई जलमार्ग का एक नौवहन मार्ग होते हैं। जलमार्ग मे नदियो,समुद्रों, महासागरों, और नहरें शामिल कर सकते हैं। अगर जलमार्ग को नौगम्य बनाने के लिए यह कई मापदंड से मिलने चाहिए। प्रागैतिहासिक समय, पुरुषों और माल दोनों को ले जाने के लिए जल परिवहन का उपयोग किया गया है। जल परिवहन संभवतः जानवरों के उपयोग से पहले विकसित हो गया था क्योंकि जलमार्ग उन जगहों पर यात्रा का आसान साधन बना था जहां भूमि पर घने जंगलों ने आंदोलन में बाधा डाली थी। नौकाओं या किसी अन्य माध्यम के उपयोग से हवा की शक्ति का उपयोग किया गया था जब पानी के परिवहन की सीमा और महत्व बढ़ गया। सबसे पहले, नावें मुख्य रूप से अंतर्देशीय जल और आश्रय तटीय क्षेत्रों के लिए छोटे और सीमित थीं। नौकायन शिल्प के आकार और जटिलता में क्रमिक वृद्धि ने व्यापार की स्थापना की अनुमति दी। फोनिशियन, मिस्र, ग्रीक और रोम के साथ-साथ अरब और भारतीयों के पास व्यापक व्यापारिक संपर्क थे। भाप के उपयोग ने लंबी दूरी पर बड़े सामान को लाने के लिए एक नया आयाम, अधिक शक्ति और गति को जल परिवहन प्रदान किया है। डीजल और अन्य प्रकार की शक्तियों के इस्तेमाल ने जल परिवहन के पूरे परिदृश्य को बदल दिया है और आज दुनिया भर में अधिकांश व्यापार जल-जनित है। जल परिवहन के दो सबसे बड़ा फायदे यह है कि यह महासागरों, नदियों, समुद्रों और विशेषताओं की जरूरतों का उपयोग करता है, और यह बड़े और भारी भार के लिए परिवहन का सबसे सस्ता प्रकार है। दो प्रमुख श्रेणियां जिनके तहत जल परिवहन विभाजित किया जा सकता है, निम्नानुसार हैं: - 1.

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जल संसाधन

जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग की संभावना हो। पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में। वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर पानी की कुल उपलब्ध मात्रा अथवा भण्डार को जलमण्डल कहते हैं। पृथ्वी के इस जलमण्डल का ९७.५% भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल २.५% ही मीठा पानी है, उसका भी दो तिहाई हिस्सा हिमनद और ध्रुवीय क्षेत्रों में हिम चादरों और हिम टोपियों के रूप में जमा है। शेष पिघला हुआ मीठा पानी मुख्यतः जल के रूप में पाया जाता है, जिस का केवल एक छोटा सा भाग भूमि के ऊपर धरातलीय जल के रूप में या हवा में वायुमण्डलीय जल के रूप में है। मीठा पानी एक नवीकरणीय संसाधन है क्योंकि जल चक्र में प्राकृतिक रूप से इसका शुद्धीकरण होता रहता है, फिर भी विश्व के स्वच्छ पानी की पर्याप्तता लगातार गिर रही है दुनिया के कई हिस्सों में पानी की मांग पहले से ही आपूर्ति से अधिक है और जैसे-जैसे विश्व में जनसंख्या में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही हैं, निकट भविष्य मैं इस असंतुलन का अनुभव बढ़ने की उम्मीद है। पानी के प्रयोक्ताओं के लिए जल संसाधनों के आवंटन के लिए फ्रेमवर्क (जहाँ इस तरह की एक फ्रेमवर्क मौजूद है) जल अधिकार के रूप में जाना जाता है। आज जल संसाधन की कमी, इसके अवनयन और इससे संबंधित तनाव और संघर्ष विश्वराजनीति और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। जल विवाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण विषय बन चुके हैं। .

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जल संवर्धन

300px 300px जल संवर्धन या हाईड्रोपोनिक्स (Hydroponics) एक ऐसी तकनीक है, जिसमें फसलों को बिना खेत में लगाए केवल पानी और पोषक तत्वों से उगाया जाता है। इसे 'जलीय कृषि' भी कहते हैं। पौधे उगाने की यह तकनीक पर्यावरण के लिए काफी सही होती है। इन पौधों के लिए कम पानी की जरूरत होती है, जिससे पानी की बचत होती है। कीटनाशकों के भी काफी कम प्रयोग की आवश्यकता होती है। मिट्टी में पैदा होने वाले पौधों तथा इस तकनीक से उगाए जाने वाले पौधों की पैदावार में काफी अंतर होता है। इस तकनीक से एक किलो मक्का से पांच से सात किलो चारा दस दिन में बनता है, इसमें जमीन भी नहीं लगती है। .

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जल विद्युत परियोजना

भारत मे जलका विशाल भण्डार है। इस दृष्टि से भारत का विश्व मे पांचवा स्थान है। इसकी शुरूआत 1897 ई मे दार्जिलिंग में हुयी जहां पहली बार 130 किलोवाट क्षमता का पहला जल विद्युत गृह बनाया गया। स्वतंत्रता के बाद इस क्षेत्र में भारी वृध्दि हुयी हुआ। 1950-51 में विद्युत का उत्पादन 2.5 अरब किलोवाट था जो 1970-71 में बढकर 25.2 अरब किलोवाट, 1980-81 में 46.5 अरब किलोवाट और 1990-91 में 71.7 अरब किलोवाट, 1994-95 में 76.4 अरब किलोवाट हो गया परन्तु 1995-96 मे यह घटकर 73.5 अरब किलोवाट ही रह गया। लेकिन वर्ष्स 2000 मे यह उत्पादन बढकर 80.555 अरब किलोवाट हो गया। 2003-2004 मे 73.796 अरब यूनिट जल विद्युत क उत्पादन हुआ। .

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जल इंजीनियरी

द्रविकी का अन्य विधाओं से सम्बन्ध द्रविकी (Hydraulics / 'द्रवविज्ञान' या जल इंजीनियरी अथवा द्रव इंजीनियरी) के अंतर्गत तरल पदार्थों के प्रवाह के गुणधर्म का अध्ययन करती है। प्रौद्योगिकी में द्रविकी का उपयोग अन्य कार्यों के अलावा संकेत, बल या ऊर्जा के संचरण (ट्रांसमिशन) के लिये किया जाता है। द्रविकी में इंजीनियरी के उपतत्वों का विचार आ जाता है जिनके अंतर्गत जल, वायु तथा तैल और अन्य रासायनिक विलयनों का उपयोग प्राकृतिक दशा में या दबाव के अंदर होता है। इन द्रवों के प्राकृतिक गुणों का, जैसे घनत्व, श्यानता, प्रत्यास्थता और पृष्ठ तनाव आदि, के ऊपर इंजीनियरी के समस्त अभिकल्प निर्भर होते हैं, क्योंकि सारे द्रवों का आधारभूत व्यवहार एक सा ही होता है। जल इंजीनियरी के और भी बहुत से विशेष अंग हैं जिनका विवरण उन विशेष अंगों के अंतर्गत मिल सकता है। जल इंजीनियरी में मुख्यत: जल का स्थिर दबाव, उसकी गति तथा उसका प्रभाव, उसके द्वारा चालित यंत्र जल का मापन आदि विषयों का विचार आ जाता है। .

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जल का शोधन

जल का शोधन (Water purification) वह प्रक्रिया है जिसमें जल से अवांछित रसायन, जैविक अशुद्धियाँ, घुले हुए ठोस, और गैसें आदि निकाली जातीं हैं। जल शोधन का लक्ष्य किसी कार्य विशेष के लिए जल को संसाधित करके उस कार्य के लिए उपयुक्त बनाना है। .

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जल के गुणधर्म

जल एक ध्रुवीय अकार्बनिक यौगिक है। यह सामान्य कमरे के ताप पर स्वादरहित, गन्धरहित, द्रव तथा रंगहीन एवं लगभग पारदर्शी होता है। जल पर सर्वाधिक अध्ययन किया गया है तथा इसे 'सर्वविलायक' (universal solvent) कहा जाता है क्योंकि अनेकानेक पदार्थ इसमें घुल जाते हैं। इसी कारण यह जीवन का विलायक' भी है। सामान्यतः पाये जाने वाले पदार्थों में जल ही ऐसा पदार्थ है जो पृथ्वी तल पर द्रव, ठोस (बर्फ) और गैस (वाष्प) तीनों रूपों में देखा जाता है। .

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जलचालित मशीन

इस द्रवचालित भूमिखोदक में बेलन (सिलिण्डर) दिखाई पड़ रहे हैं। हाइड्रालिक बल एवं बलयुग्म (टॉर्क) पिस्टनयुक्त अथवा बेलनदार प्रत्यागमनी (रेसिप्रोकेटिंग) और धुरे पर लगी पंखुड़ीयुक्त घूमनेवाली उन सब मशीनों को जलचालित मशीनें (Hydraulic machines) कहते हैं जो उच्च दाब के जल के माध्यम से बड़ी ही मंद गति से चलती हैं। मंद गति से चलने के कारण इनकी चाल पर बड़ी सरलता से सही सही नियंत्रण रखा जा सकता है। हविस तथा लिफ्ट (Hoists and lifts), क्रेन और जैक (Cranes and Jacks), गढ़ाई का दाब यंत्र, गढ़ाई प्रेस (Forging Press), रिबेट (Rivet) प्रेस, छेद करने (punching) और प्लेट मोड़ने के जलचालित यंत्र, परीक्षण यंत्र (Testing machines), जल शक्ति चालित इतस्ततोगामी इंजन (reciprocating engine) एवं अन्य बहुत से यंत्र जलचालित बनाये जाते हैं। .

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जलतापीय छिद्र

जलतापीय छिद्र (hydrothermal vents) पृथ्वी या अन्य किसी ग्रह पर उपस्थित ऐसा विदर छिद्र होता है जिस से भूतापीय स्रोतों से गरम किया गया जल उगलता है। यह अक्सर सक्रीय ज्वालामुखीय क्षेत्रों, भौगोलिक तख़्तो के अलग होने वाले स्थानों और महासागर द्रोणियों जैसे स्थानों पर मिलते हैं। जलतापीय छिद्रों के अस्तित्व का मूल कारण पृथ्वी की भूवैज्ञानिक सक्रीयता और उसकी सतह व भीतरी भागों में पानी की भारी मात्रा में उपस्थिति है। जब जलतापीय छिद्र भूमि पर होते हैं तो उन्हें गरम चश्मों, फ़ूमारोलों और उष्णोत्सों के रूप में देखा जाता है। जब वे महासागरों के फ़र्श पर होते हैं तो उन्हें काले धुआँदारी (black smokers) और श्वेत धुआँदारी (white smokers) के रूप में पाया जाता है। गहरे समुद्र के बाक़ि क्षेत्र की तुलना में काले धुआँदारियों के आसपास अक्सर बैक्टीरिया और आर्किया जैसे सूक्ष्मजीवों की भरमार होती है। यह जीव इन छिद्रों में से निकल रहे रसायनों को खाकर ऊर्जा बनाते हैं और जीवित रहते हैं और फिर आगे ऐसे जीवों को ग्रास बनाने वाले अन्य जीवों के समूह भी यहाँ पनपते हैं। माना जाता है कि बृहस्पति ग्रह के यूरोपा चंद्रमा और शनि ग्रह के एनसेलेडस चंद्रमा पर भी सक्रीय जलतापीय छिद्र मौजूद हैं और अति-प्राचीनकाल में यह सम्भवतः मंगल ग्रह पर भी रहे हों। .

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जलभंवर

सॉल्ट्सट्रॉमेन भंवर पानी के एक गिलास में भंवर एलघेनी राष्ट्रीय वन के टियोनेस्टा क्रीक में छोटा भंवर मोगीयो उडीनेसे, इटली के निकट फेला में भंवर आम तौर पर जलभ्रम या जल भंवर, समुद्री ज्वार द्वारा निर्मित पानी का एक चक्करदार हिस्सा होता है। अधिकांश भंवर अधिक शक्तिशाली नहीं होते हैं। अधिक शक्तिशाली भंवर को सामान्य तौर पर अंग्रेज़ी में मेल स्ट्रोम्स कहा जाता है। ऐसे किसी भी भंवर के लिए वोर्टेक्स शब्द उचित होता है जिसमें निम्नधारा होती है। एक स्नान या एक सिंक में जब जल निकास होता है तब छोटे भंवरों को आसानी से देखा जा सकता है, लेकिन इनका निर्माण प्राकृतिक तरीके से होने वाले भंवरों से काफी अलग होता है। छोटे भंवर कई झरनों के आधार स्थान पर दिखाई देते हैं। नियाग्रा झरने जैसे शक्तिशाली झरने के मामले में होने वाले भंवर काफी शक्तिशाली हो सकते हैं। सबसे शक्तिशाली भंवरों का निर्माण संकीर्ण उथले जलडमरूमध्य में तेजी से पानी बहने के साथ होता है। .

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जलमौसमविज्ञान

जलमौसमविज्ञान या हाइड्रोमेतेरोलोजी (Hydrometeorology) मौसमविज्ञान एवं जलविज्ञान की एक शाखा है। इसके अन्तर्गत धरातल और वायुमण्डल की नीचली सतह के बीच जल एवं उर्जा के स्थानान्तरण का अध्ययन किया जाता है। जलमौसमविज्ञान की सहायता से ही मौसम परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाया जाता है। .

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जलयोजन अभिक्रिया

रसायन विज्ञान में, जब कोई पदार्थ जल से रासायनिक अभिक्रिया करता है तो उसे जलयोजन अभिक्रिया (hydration reaction) कहते हैं। श्रेणी:रासायनिक अभिक्रियाएँ.

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जलशक्ति

गिरते हुए जल या तेज गति से प्रवाहित जल से जो शक्ति (ऊर्जा) प्राप्त की जाती है उसे जलशक्ति (Hydropower) कहते हैं। प्राचीन काल से ही जलचक्की का उपयोग करके जलशक्ति प्राप्त की जाती रही है और इससे आरा मशीने, कपड़ा बुनने की मशीनें आदि चलायी जातीं थीं। आधुनिक युग में जलशक्ति से विद्युत का उत्पादन किया जाता है जिसे दूर-दूर तक भेजा जा सकता है और अनेकों प्रकार से इसका उपयोग किया जा सकता है। .

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जलस्नेही

जलस्नेही (hydrophile) या जलरागी ऐसा अणु या आण्विक इकाई होती है जो जल के अणुओं की ओर आकर्षित हो और पानी में घुल जाने की प्रवृत्ति रखता हो। इस से विपरीत जलविरोधी पदार्थ पानी के अणुओं से आकर्षित होने की बजाय अपकर्षित होता है। .

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जलविद्युत ऊर्जा

'''थ्री जार्ज बांध''' - विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत स्टेशन गिरते हुए या बहते हुए जल की उर्जा से जो विद्युत उत्पन्न की जाती है उसे जलविद्युत (Hydroelectricity) कहते हैं। सन् २००५ में विश्व भर में लगभग ८१६ GWe (जिगावाट एलेक्ट्रिकल) जलविद्युत उत्पन्न की जाती थी जो कि विश्व की सम्पूर्ण विद्युत उर्जा का लगभग २०% है। यह बिजली प्रदूषण रहित है। एवं यह पर्यावरण के अनुकूल है। .

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जलविरोधी

जलविरोधी (hydrophobic) या जलविरागी ऐसा अणु या आण्विक इकाई होती है जो जल को स्वयं से दूर रखने की चेष्टा प्रतीत करता हुआ लगता है, यानि जल से आकर्षित होने की बजाय अपकर्षित प्रतीत होता है। ध्यान योग्य है कि यह वास्तव में जल से दूर नहीं रहता बल्कि जल के अणु एक दूसरे से आकर्षित होते हैं और जलविरोधी पदार्थों से नहीं, जिस से जल अपने-आप में सिकुड़कर जलविरोधी पदार्थों को अपने से अलग कर लेता है। इस से विपरीत जलस्नेही पदार्थ पानी के अणुओं से आकर्षित होते हैं। .

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जलविरोधी प्रभाव

जलविरोधी प्रभाव (hydrophobic effect) अध्रुवीय पदार्थों को जल या जलीय घोलों में डालने पर जल से अलग होकर आपस में एकत्रित होने की प्रवृत्ति को कहते हैं। यह वास्तव में जल के अणुओं की प्रक्रिया है, क्योंकि वे ध्रुवीय होते हैं और उनके विपरीत आवेश (चार्ज) वाले ध्रुव एक दूसरे के समीप रहने की चेष्टा में अध्रुवीय पदार्थ को धकेलकर एकत्रित कर देते हैं। जलविरोधी प्रभाव ही कारण है कि तेल और जल को मिलाकर छोड़ने पर तेल और पानी अलग हो जाते हैं। जीवविज्ञान में कई प्रभाव इसी जलविरोध से देखे जाते हैं, जिनमें कोशिका झिल्ली का बनना, प्रोटीन अणुओं में मुड़ाव बनना, इत्यादि। इसलिए जलविरोधी प्रभाव जीवन के लिए आवश्यक है। .

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जलीय विलयन

सोडियम का जल में घुलना। जलीय विलयन जल में विलायक को मिला कर बनाया गया एक प्रकार का विलयन होता है। अर्थात जल से बनाया जाने वाला विलयन या ऐसा पदार्थ जो जल में पूर्ण रूप से घुलनशील है। उदाहरण के लिए सोडियम जल से क्रिया कर पूर्ण रूप से घुल जाता है। इसे रासायनिक अभिक्रिया के दौरान (aq) लिख कर दर्शाते हैं। .

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ज्वारासुर

हिंदू पौराणिक कथाओं अनुसार, ज्वारासुर बुखार के दानव और शीतला देवी का जीवनसाथी है। .

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जीवद्रव्य

कोशिका के कोशिका झिल्ली के अंदर सम्पूर्ण पदार्थों को जीव द्रव्य कहते हैं। यह सभी कोशिकाओं में पाया जाता है। यह रवेदार, जेलीनुमा, अर्धतरल पदार्थ है। यह पारदर्शी एवं चिपचिपा होता है। इसकी रचना जल एवं कार्बनिक तथा अकार्बनिक ठोस पदार्थों से हुई है। इसमें अनेक रचनाएँ होती हैं। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में सभी कोशिकांगों को स्पष्ट नहीं देखा जा सकता है। इन रचनाओं को स्पष्ट देखने के लिए इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी का आवश्यकता पड़ती है। .

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जीवन समर्थन प्रणाली

मानवीय अंतरिक्षउड़ान में, जीवन समर्थन प्रणाली उपकरणों का एक समूह है जो एक मनुष्य को अंतरिक्ष में जीवित रहने की अनुमति देता है। अमेरिकी सरकार की अंतरिक्ष एजेंसी नासा, और निजी अंतरिक्षउड़ान कंपनियां मानवीय अंतरिक्षउड़ान मिशन के लिए इन पद्धतियों का वर्णन करते समय पर्यावरण नियंत्रण और जीवन समर्थन प्रणाली या परिवर्णी शब्द ECLSS का प्रयोग किया जाता है। जीवन समर्थन प्रणाली हवा, पानी और भोजन की आपूर्ति कर सकते हैं। यह शरीर के सही तापमान को, शरीर पर स्वीकृत दबाव को बनाए रखता है और शरीर के अपशिष्ट उत्पादों से आवश्यक रूप से निपटता है। विकिरण और सूक्ष्म-उल्कापिंड जैसे बाहरी हानिकारक प्रभावों के खिलाफ भी सुरक्षा की आवश्यकता हो सकती है। जीवन समर्थन प्रणाली के घटक जीवन-जोखिम हैं जिसकी डिजाइन और जिसका निर्माण सुरक्षा इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करते हुए किया गया है। .

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ई-मित्र

emitra rajasthan ई-मित्र, राजस्थान सरकार की एक महत्वाकांक्षी ई-शासन पहल है, जिसमे सरकार की विभिन्न सेवाओं का लाभ लेने के लिए नागरिकों को सुविधा और पारदर्शिता हेतु राज्य सर्कार द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल का उपयोग करके राज्य के सभी 33 जिलों में कार्यान्वित किया जा रहा है। ई-मित्र राजस्थान सरकार ने सरकार के विभिन्न कार्यों का फायदा उठाने के लिए सभी 33 ज़िलों में ऑनलाइन तथा ऑफलाइन कार्य करने के लिए बनाई गयी एक ई-गवर्नेंस है। ई-मित्र में मूलनिवास,जाति प्रमाण पत्र,जन्म प्रमाण पत्र,राशन कार्ड भामाशाह कार्ड इत्यादि बनाये तथा सुधारे जाते है। इनके अलावा ई-मित्र से पानी का बिल, बिजली का बिल, मोबाईल तथा टेलिविज़न ऑनलाइन अर्थात सीधे ही भर सकते है। .

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ई-सिगरेट

दो इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के मॉडल.नीचे से ऊपर: आरएन4072 "कलम-शैली" और सीटी-M401.हरेक मॉडल के नीचे एक अतिरिक्त पृथक बैटरी भी दिखाई गयी है। एक डीएसए-901 इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के एक अन्य आम डिजाइन का प्रदर्शन: यह एक साधारण सिगरेट है। एक इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट, ई सिगरेट या वाष्पीकृत सिगरेट एक बैटरी चालित उपकरण है जो निकोटीन या गैर-निकोटीन के वाष्पीकृत होने वाले घोल की सांस के साथ सेवन की जाने वाली खुराक प्रदान करता है। यह सिगरेट, सिगार या पाइप जैसे धुम्रपान वाले तम्बाकू उत्पादों का एक विकल्प है। तथाकथित निकोटीन वितरण के अलावा यह वाष्प पिये जाने वाले तम्बाकू के धुंएं के समान स्वाद और शारीरिक संवेदन भी प्रदान करती है जबकि इस क्रिया में दरअसल कोई धुंआ या दहन नहीं होता है। इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट किसी हद तक लम्बी ट्यूब के रूप का होती है, जबकि इनका बाहरी आकार-प्रकार वास्तविक धुम्रपान उत्पादों जैसे सिगरेट, सिगार और पाइप जैसा डिजाइन किया जाता है। "कलम-शैली" की एक अन्य आम डिजाइन है, किसी बॉल प्वाइंट कलम जैसा दिखने के कारण इसका ऐसा नाम पड़ा.

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वर्षा

वर्षा (Rainfall) एक प्रकार का संघनन है। पृथ्वी के सतह से पानी वाष्पित होकर ऊपर उठता है और ठण्डा होकर पानी की बूंदों के रूप में पुनः धरती पर गिरता है। इसे वर्षा कहते हैं। .

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वर्षा जल संचयन

ठाठवाड़, राजस्थान के एक गांव में जोहड़ में संचयन पहेली में भी दिखाया गया था वर्षा जल संचयन (अंग्रेज़ी: वाटर हार्वेस्टिंग) वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इसके लिये अधिशेष मानसून अपवाह जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है, ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाये। अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भण्डारण का आकलन २१४ बिलियन घन मी.

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वसा

lipid एक ट्राईग्लीसराइड अणु वसा अर्थात चिकनाई शरीर को क्रियाशील बनाए रखने में सहयोग करती है। वसा शरीर के लिए उपयोगी है, किंतु इसकी अधिकता हानिकारक भी हो सकती है। यह मांस तथा वनस्पति समूह दोनों प्रकार से प्राप्त होती है। इससे शरीर को दैनिक कार्यों के लिए शक्ति प्राप्त होती है। इसको शक्तिदायक ईंधन भी कहा जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए १०० ग्राम चिकनाई का प्रयोग करना आवश्यक है। इसको पचाने में शरीर को काफ़ी समय लगता है। यह शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता को कम करने के लिए आवश्यक होती है। वसा का शरीर में अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाना उचित नहीं होता। यह संतुलित आहार द्वारा आवश्यक मात्रा में ही शरीर को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अधिक मात्रा जानलेवा भी हो सकती है, यह ध्यान योग्य है। यह आमाशय की गतिशीलता में कमी ला देती है तथा भूख कम कर देती है। इससे आमाशय की वृद्धि होती है। चिकनाई कम हो जाने से रोगों का मुकाबला करने की शक्ति कम हो जाती है। अत्यधिक वसा सीधे स्रोत से हानिकारक है। इसकी संतुलित मात्रा लेना ही लाभदायक है। .

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वसास्नेही

वसास्नेही (Lipophilic, fat-loving) ऐसे रासायनिक यौगिक होते हैं जो वसा, तेलों, लिपिडों और हेक्सेन व टाल्यूईन जैसे अध्रुवीय विलायकों में घुल जाते हैं। कुछ रसायनों के अलावा देखा जाता है कि वसास्नेही रसायन अन्य वसास्नेही रसायनों में घुल जाते हैं जबकि जलस्नेही रसायन जल व अन्य जलस्नेही रसायनों में घुल जाते हैं। .

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वस्त्रापुर झील

वस्त्रापुर झील पश्चीमी अहमदाबाद में स्थित मानव निर्मित झील है। इस झील का निर्माण अहमदाबाद शहरी विकास प्राधिकरण ने करवाया था। इस झील में अमूमन नर्मदा नदी का पानी डाला जाता है। श्रेणी:अहमदाबाद.

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वाटर स्कीइंग

वाटर स्कीइंग पानी के ऊपर सतह के एक खेल है जिसमें व्यक्ति स्की की सहायता से पानी पर चलते रहता हैं एवं उसे नाव के पीछे से खीचा जा रहा होता हैं। इस नाव में एक केबल लगा रहता हैं जो खीचने में मदद करता हैं। इस खेल के लिए पानी का समतल (चिकना) होना, खीचने के लिए एक नाव (जिसपर रस्सी लगी रहती हैं), एक या दो स्की, तीन लोग (राज्य नौका विहार कानूनों पर निर्भर करता है) और एक निजी तैरने वाली डिवाइस, आवश्यक चीजें हैं। इसके अलावा खिलाड़ी के पास ऊपरी और निचले शरीर की मांशपेशियों में में पर्याप्त ताकत एवं अच्छा संतुलन होना चाहिए। स्कीइंग एक मजेदार खेल है एवं यह सभी उम्र के लोगों को आनंद देता है। पानी पर स्की करने के लिए कोई न्यूनतम आयु का होना आवश्यक नहीं है। .

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वायु

वायु पंचमहाभूतों मे एक हैं| अन्य है पृथिवी, जल, अग्नि व आकाश वायु वस्तुत: गैसो का मिश्रण है, जिसमे अनेक प्रकार की गैस जैसे जारक, प्रांगार द्विजारेय, नाट्रोजन, उदजन ईत्यादि शामिल है।.

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वायुमंडलीय दाब

ऊँचाई बढ़ने पर वायुमण्डलीय दाब का घटना (१५ डिग्री सेल्सियस); भू-तल पर वायुमण्डलीय दाब १०० लिया गया है। वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के वायुमंडल में किसी सतह की एक इकाई पर उससे ऊपर की हवा के वजन द्वारा लगाया गया बल है। अधिकांश परिस्थितियों में वायुमंडलीय दबाव का लगभग सही अनुमान मापन बिंदु पर उसके ऊपर वाली हवा के वजन द्वारा लगाए गए द्रवस्थैतिक दबाव द्वारा लगाया जाता है। कम दबाव वाले क्षेत्रों में उन स्थानों के ऊपर वायुमंडलीय द्रव्यमान कम होता है, जबकि अधिक दबाव वाले क्षेत्रों में उन स्थानों के ऊपर अधिक वायुमंडलीय द्रव्यमान होता है। इसी प्रकार, जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है उस स्तर के ऊपर वायुमंडलीय द्रव्यमान कम होता जाता है, इसलिए बढ़ती ऊंचाई के साथ दबाव घट जाता है। समुद्र तल से वायुमंडल के शीर्ष तक एक वर्ग इंच अनुप्रस्थ काट वाले हवा के स्तंभ का वजन 6.3 किलोग्राम होता है (और एक वर्ग सेंटीमीटर अनुप्रस्थ काट वाले वायु स्तंभ का वजन एक किलोग्राम से कुछ अधिक होता है)। .

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वायुगतिकी

वायुगतिकी (Aerodynamics) गतिविज्ञान की वह शाखा है जिसमें वायु तथा अन्य गैसीय तरलों (gaseous fluids) की गति का और इन तरलों के सापेक्ष गतिवान ठोसों पर लगे बलों का विवेचन होता है। इस विज्ञान के सार्वाधिक महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों में से एक अनुप्रयोग वायुयान की अभिकल्पना है। .

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वायूढ़ प्रक्रिया

वायूढ़ या वातोढ़ प्रक्रिया वायु की उस क्षमता से संबंधित है, जिसके द्वारा यह पृथ्वी या अन्य किसी ग्रह की सतह को आकार देती है। वायु पदार्थों का अपरदन, परिवहन और निक्षेपन कर सकती है और विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ वनस्पति विरल हो और जहाँ असंपिण्डित अवसादों की एक बड़ी मात्रा उपलब्ध हो वायु एक प्रभावी कारक की भूमिका निभाती है। हालांकि जल वायु की तुलना में अधिक शक्तिशाली है, पर वायूढ़ प्रक्रियायें शुष्क वातावरण जैसे कि मरुस्थल में महत्वपूर्ण हैं। .

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वाष्प शीतक

वाष्प शीतक, जो विश्व के शुष्क भागों में कम खर्चीली ठन्डक प्रदान करने के लिये प्रयुक्त होता है। वाष्प शीतक (अंग्रेजी: Evaporative cooler) एक युक्ति है जो जल के वाष्पन का उपयोग करके हवा को ठण्डा करती है। इसको 'डेजर्ट कूलर' भी कहते हैं। इस शीतक की क्रियाविधि आमतौर से उपयोग आने वाले वातानुकूलन यंत्रों से भिन्न होती है जो वाष्प-संपीडन (vapor-compression) या शोषण प्रशीलन चक्रों के प्रयोग पर आधारित होती हैं। जल के वाष्पन की तापीय धारिता बहुत अधिक होती है और वाष्प शीतक इसी का सदुपयोग करता है। जब जल (द्रव) को वाष्प में बदलते हैं तो यह आसपास की शुष्क हवा से ऊष्मा का शोषण करती है जिससे हवा ठण्डी हो जाती है। इस क्रिया में प्रशीतन (refrigeration) की अपेक्षा बहुत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ठण्डा करने के अलावा यह हवा में आर्द्रता की मात्रा को भी बढ़ाता है जो अति शुष्क क्षेत्रों में अतिरिक्त आराम देती है। वाष्प शीतक में बन्द-चक्र प्रशीतन नहीं होता बल्कि इसमें जल का लगातार ह्रास होता है। एयर वाशर और वेट-कूलिंग टॉवर भी इसी सिद्धान्त पर काम करते हैं। .

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वाष्पन की पूर्ण उष्मा

वाष्पन की पूर्ण ऊष्मा या वाष्पन की एन्थैल्पी (enthalpy of vaporization; प्रतीक ∆Hvap) ऊर्जा की वह मात्रा है जो द्रव के इकाई मात्रा को गैस में बदलने के लिये आवश्यक होती है। इसे वाष्पन की गुप्त ऊष्मा भी कहते हैं। वाष्पन की एन्थैल्पी, उस दाब पर भी निर्भर करती है जिस पर यह अवस्था परिवर्तन किया जाता है। .

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वाष्पक

गैस बर्नर से चलने वाला उच्च क्षमता (धारिता) का वाष्पक वाष्पक या ब्वायलर (Boiler) एक बन्द पात्र होता है जिसमें जल या कोई अन्य द्रव गरम किया जाता है। इसमें गरम करने (उबालने) से उत्पन्न वाष्प को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था भी होती है जिससे वाष्प को विभिन्न प्रक्रमों या गर्म करने के लिये उपयोग में लाया जा सके। इसकी डिजाइन इस प्रकार की होती है कि गर्म करने पर कम से कम उष्मा बर्बाद हो तथा यह वाष्प का दाब भी सहन कर सके। इसमें गरम किया हुआ या वाष्पीकृत तरल को निकालकर विभिन्न प्रक्रमों में या ऊष्मीकरण के लिये प्रयुक्त किया जाता है, जैसे- जल का ऊष्मीकरण, केन्द्रीय ऊष्मीकरण, वाष्पक-आधारित शक्ति-उत्पादन, भोजन बनाने और सफाई आदि के लिये। .

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वाष्पोत्सर्जन

टमाटर की पत्तियों में उपस्थित स्टोमेटा का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से खींचा गया चित्र पौधों द्वारा अनावश्यक जल को वाष्प के रूप में शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है। पैड़-पौधे मिट्टी से जिस जल का अवशोषण करते हैं, उसके केवल थोड़े से अंश का ही पादप शरीर में उपयोग होता है। शेष अधिकांश जल पौधों द्वारा वाष्प के रूप में शरीर से बाहर निकाल जाता है। पौधों में होने वाली यह क्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है। वाष्पोत्सर्जन की दर को एक यन्त्र द्वारा मापा जा सकता है। इस यन्त्र को पोटोमीटर कहते हैं। .

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वाहितमल

जल द्वारा वाहित (carried) अपशिष्ट वाहितमल या जलमल (Sewage) कहा जाता है। इसमें मल विलयन या निलंबन रूप में हो सकता है। मल में जल मिलाने से उसे गुरुत्व द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में आसानी होती है। मलजल में प्रायः ९९% से अधिक जल होता है। 'मल' के अन्तर्गत मानव विष्टा, मूत्र, रसोईघर का गन्दा पानी, तथा स्नान और धुलाई का गन्दा जल आदि शामिल हैं। .

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वाइज़र

वाइज़र (visor) मुख के कुछ या पूर्ण भाग पर पहना जाने वाला ऐसा उपकरण होता है जिसमें से देखा जा सके लेकिन जो साथ ही आँखो की प्रकाश, धूल, जल, हिम या अन्य किसी चीज़ से रक्षा करे। उदाहण के लिए स्कूटर के लिए प्रयोग होने वाले हेलमेट के मुख पर कठोर प्लास्टिक का बना वाइज़र होता है। वाइज़रों का कम-से-कम आँखों के ऊपर आने वाला भाग पारदर्शी होता है। .

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विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण

विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण (electric dipole moment) किसी मंडल में ऋणात्मक (नेगाटिव) और धनात्मक (पोज़िटिव) विद्युत आवेशों (चार्ज) की दूरी के मापन को कहते हैं। यह उस मंडल में हुए आवेशों के ध्रुविकरण को मापता है और अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली में इस की इकाई कूलम्ब-मीटर (Coulomb-meter) में लिखी जाती है। .

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विद्युत स्पर्शाघात

विद्युत दुर्घटना होने पर सहायता तथा प्राथमिक उपचार विद्युत के किसी स्रोत से सम्पर्क में आने के कारण त्वचा, मांसपेशियों अथवा बाल से होकर पर्याप्त विद्युत धारा प्रवाहित हो जाती है तो इसे विद्युत स्पर्शाघात (Electric shock) कहते हैं। यह जानबूझकर किया गया हो सकता है या दुर्घटनावश हो सकता है। किन्तु प्रायः 'स्पर्शाघात' से आशय शरीर के किसी अंग से अवांछित धारा-प्रवाह से ही लिया जाता है। विद्युत स्पर्शाघात से त्वचा जल सकती है, आदमी बेहोश हो सकता है, या मृत्यु हो सकती है। .

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विद्युत अपघटन

डेनियल सेल से मेल खाता हा एक विद्युतरासायनिक सेल रसायन विज्ञान एवं निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) मे विद्युत अपघटन (electrolysis) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा किसी रासायनिक यौगिक में विद्युत-धारा प्रवाहित करके उसके रासायनिक बन्धों को को तोड़ा जाता है। उदाहरण के लिये जल में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर जल, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में विघटित हो जाता है जिसे जल का विद्युत अपघटन कहते हैं। विद्युत अपघटन के बहुत से उपयोग हैं। अयस्कों को प्रसंस्कारित करके उनमें निहित रासायनिक तत्व को शुद्ध करना एवं उसे अलग करना इसका सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं व्यावसायिक उपयोग है। .

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विद्युतभान

विद्युतभान (Electroreception) कुछ जीवों में अपने वातावरण में उपस्थित विद्युतक्षेत्रों व अन्य विद्युत प्रभावों को बोध करने की क्षमता होती है। यह लगभग हमेशा जल में रहने वाले प्राणियों में ही पाई जाती है क्योंकि खारा पानी वायु से कहीं अधिक अच्छा विद्युत चालक होता है। इस शक्ति के द्वारा कई परभक्षी जलीय प्राणी शिकार करते हैं क्योंकि मांसपेशी-प्रयोग में विद्युत प्रयोग होती है और परभक्षी अपने ग्रास में उपस्थित इस विद्युत प्रभाव को खोज लेती हैं। .

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वियोजन

आयनिक लवण को जल में घोलने पर वह वियोजित हो जाता है रसायन विज्ञान एवं जैवरसायन में वियोजन (Dissociation) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें अणु (या आयनिक यौगिक, जैसे लवण आदि) टूटकर छोटे कणों (जैसे परमाणु, आयन या मूलक के रूप में) के रूप में बदल जाते हैं। यह क्रिया प्रायः उत्क्रमणीय होती है। उदाहरण के लिये जब अम्ल को जल में घोलते हैं तो हाइड्रोजन परमाणु एवं विद्युतऋणात्मक परमाणु के बीच स्थित सहसंयोजी बन्ध टूत जाता है जिससे प्रोटॉन (H+) एवं ऋणात्मक आयन बनता है। वियोजन, पुनर्योजन (recombination) की उल्टी प्रक्रिया है। श्रेणी:रसायन विज्ञान.

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विलायकों के गलनांक तथा क्वथनांक

कोई विवरण नहीं।

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विशिष्ट ऊष्मा धारिता

यह एक सामान्य अनुभव है कि किसी वस्तु का ताप बढ़ाने के लिये उसे उष्मा देनी पड़ती है। किन्तु अलग-अलग पदार्थों की समान मात्रा का ताप समान मात्रा से बढ़ाने के लिये अलग-अलग मात्रा में उष्मा की जरूरत होती है। किसी पदार्थ की इकाई मात्रा का ताप एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक उष्मा की मात्रा को उस पदार्थ का विशिष्ट उष्मा धारिता (Specific heat capacity) या केवल विशिष्ट उष्मा कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि जिस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा अधिक होगी उसे गर्म करने के लिये अधिक उष्मा की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिये, शीशा (लेड) का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये जितनी उष्मा लगती है उससे आठ गुना उष्मा एक किलोग्राम मग्नीशियम का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक होती है। किसी भी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा मापी जा सकती है। .

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विश्व गौरैया दिवस

एक नर गौरैया विश्व गौरैया दिवस २० मार्च को मनाया जाता है। .

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वुल्फ़ ३५९ तारा

इस सन् २००९ में ली गई तस्वीर में वुल्फ़ ३५९ मध्य में ऊपर की तरफ़ स्थित नारंगी तारा है वुल्फ़ ३५९ (Wolf 359) सिंह तारामंडल में क्रांतिवृत्त के पास स्थित एक लाल बौना तारा है। यह हमसे ७.८ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) १३.५ है। इसके केवल एक बड़ी दूरबीन से ही देखा जा सकता है। मित्र तारे के तीन तारों वाले मंडल और बारनर्ड के तारे के बाद यह पृथ्वी का तीसरा सबसे नज़दीकी पड़ोसी तारा है। वुल्फ़ ३५९ सभी ज्ञात तारों में सबसे कम रोशनी और सबसे कम द्रव्यमान (मास) वाले तारों में है। इसका सतही तापमान केवल २,८०० केल्विन है, जिसमें बहुत से रसायन बनकर स्थाई रह सकते हैं। जब इसके वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का अध्ययन किया जाता है तो उससे इसके वातावरण में पानी और टाईटेनियम डायोक्साइड​ की मौजूदगी का पता चलता है। इसका चुम्बकीय क्षेत्र हमारे सूरज से अधिक शक्तिशाली है। यह एक धधकने वाला तारा है जिसमें अचानक कुछ मिनटों के लिए चमक बढ़ जाती है। इन हादसों के दौरान यह तारा तीखे ऍक्स प्रकाश और गामा प्रकाश का विकिरण (रेडियेशन) छोड़ता है जिसे अंतरिक्ष-स्थित दूरबीनों से देखा जा चुका है। यह एक कम आयु वाला तारा है और इसकी उम्र एक अरब वर्षों से कम अनुमानित की गई है। इसका कोई साथी तारा नहीं मिला है और न ही इसके इर्द-गिर्द कोई ग़ैर-सौरीय ग्रह या मलबा चक्र परिक्रमा करता हुआ मिला है। .

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वृहदणु

रसायन शास्त्र में वृहदणु (Macromolecule, मैक्रोमोलिक्यूल) बहुत बड़े अणु को कहा जाता है और यह अक्सर बहुत सारे छोटे अणुओं को पॉलीमर बनाकर जोड़ने से निर्मित होते हैं। जहाँ जल, कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ऐसे कई अणुओं में दस से कम परमाणु होते हैं, वहाँ वृहदणुओं में हज़ारों परमाणु जुड़े हुए होते हैं। जीव-रसायनिकी में प्रोटीन, डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल और ऐसे कई अन्य वृहदणु मिलते हैं। .

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वोदका

रूस के मंद्रोगी का वोडका संग्रहालय वोडका (रूसी शब्द водка, вода + ка से) http://www.britannica.com/EBchecked/topic/631781/vodka, एक साफ़ द्रव है जिसका अधिकांश भाग जल और इथेनॉल है जिसे अनाज (आम तौर पर राई या गेहूं), आलू या मीठे चुकंदर के शीरे जैसे किसी किण्वित पदार्थ से आसवन की प्रक्रिया — प्रायः एकाधिक आसवन की प्रक्रिया — द्वारा शुद्ध किया जाता है। इसमें अन्य प्रकार के पदार्थ जैसे अनचाही अशुद्धता या स्वाद की मामूली मात्रा भी शामिल रह सकती है। आमतौर पर वोडका में अल्कोहोल की मात्रा 35% से 50% आयतन के अनुपात में रहती है। क्लासिक रूसी, लिथुआनिया और पोलिश वोडका में 40% (80 प्रूफ) है। वोडका का उत्पादन अलेक्जेंडर III द्वारा 1894 में शुरू किया गया था जिसके लिए रूसी मानकों को श्रेय दिया जा सकता है।मास्को में वोडका संग्रहालय के अनुसार, रूसी रसायनज्ञ दमित्री मेनडिलिव (आवर्त सारणी (periodic table) के विकास में अपने कार्य के लिए अधिक प्रसिद्ध) ने सही प्रतिशत 38% बताया था। हालांकि, उस समय अल्कोहोल की उग्रता शक्ति के आधार पर कर (टैक्स) लगता था परन्तु कर की सरल गणना करने के लिए इस प्रतिशत को पूर्णांक बनाते हुए 40 कर दिया गया। कुछ सरकारों ने अल्कोहोल के लिए मद्यसार की एक न्यूनतम सीमा तय की जिसे 'वोडका' कहा जाने लगा.

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खनिज जल

खनिज जल (Mineral water) वह जल है जिसमें कुछ उपयोगी खनिज भी मिले हों। खनिज की उपस्थिति से पानी का स्वाद बदल जाता है। इसका औषधीय महत्व भी है। खनिज जल प्रायः किसी प्राकृतिक खनिजयुक्त झरने या किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया जाता है। खनिज जल में सल्फर एवं अन्य अनेकानेक लवण घुले होते हैं। .

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खनिज अम्ल

किसी एक या एक से अधिक अकार्बनिक यौगिकों से उत्पादित अम्लों को खनिज अम्ल (mineral acid) या 'अकार्बनिक अम्ल' (inorganic acid) कहते हैं। खनिज अम्लों को जब जल में घोला जाता है तो सभी अम्ल हाइड्रोजन ऑयन और संयुग्मी क्षार आयन बनाते है। .

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खनिजों का बनना

खनिजों का बनना (formation) अनेक प्रकार से होता है। बनने में उष्मा, दाब तथा जल मुख्य रूप से भाग लेते हैं। निम्नलिखित विभिन्न प्रकारों से खनिज बनते हैं: (१) मैग्मा का मणिभीकरण (Crystallization from magma) - पृथ्वी के आभ्यंतर में मैग्मा में अनेक तत्व आक्साइड एवं सिलिकेट के रूपों में विद्यमान हैं। जब मैग्मा ठंडा होता है तब अनेक यौगिक खनिज के रूप में मणिभ (क्रिस्टलीय) हो जाते है और इस प्रकार खनिज निक्षेपों (deposit) को जन्म देते हैं। इस प्रकार के मुख्य उदाहरण हीरा, क्रोमाइट तथा मोनेटाइट हैं। (२) ऊर्ध्वपातन (Sublimation)- पृथ्वी के आभ्यंतर में उष्मा की अधिकता के कारण अनेक वाष्पशील यौगिक गैस में परिवर्तित हो जाते हैं। जब यह गैस शीतल भागों में पहुँचती है तब द्रव दशा में गए बिना ही ठोस बन जाती है। इस प्रकार के खनिज ज्वालामुखी द्वारों के समीप, अथवा धरातल के समीप, शीतल आग्नेय पुंजों (igneous masses) में प्राप्त होते हैं। गंधक का बनना उर्ध्वपातन क्रिया द्वारा ही हुआ है। (३) आसवन (Distillation) - ऐसा समझा जाता है कि समुद्र की तलछटों (sediments) में अंतर्भूत (imebdded) छोटे जीवों के कायविच्छेदन के पश्चात्‌ तैल उत्पन्न होता है, जो आसुत होता है और इस प्रकार आसवन द्वारा निर्मित वाष्प पेट्रोलियम में परिवर्तित हो जाता है अथवा कभी-कभी प्राकृतिक गैसों को उत्पन्न करता है। (४) वाष्पायन एवं अतिसंतृप्तीकरण (Vaporisation and Supersaturation) - अनेक लवण जल में घुल जाते हैं और इस प्रकार लवण जल के झरनों तथा झीलों को जन्म देते हैं। लवण जल का वाष्पायन द्वारा लवणों का अवशोषण (precipitation) होता है। इस प्रकार लवण निक्षेप अस्तित्व में आते हैं। इसके अतिरिक्त कभी कभी वाष्पायन द्वारा संतृप्त स्थिति आ जाने पर घुले हुए पदार्थों मणिभ पृथक हो जाते हैं। (५) 'गैसों, द्रवों एवं ठोसों की पारस्परिक अभिक्रियाएँ - जब दो विभिन्न गैसें पृथ्वी के आभ्यंतर से निकलकर धरातल तक पहुँचती हैं तथा परस्पर अभिक्रिया करती हैं तो अनेक यौगिक उत्पन्न होते है उदाहरणार्थ: इसी प्रकार गैसें कुछ विलयनों पर अभिक्रिया करती हैं। फलस्वरूप कुछ खनिज अवक्षिप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, जब हाइड्रोजन सल्फाइड गैस ताम्र-सल्फेट-विलयन से पारित होती है तब ताम्र सल्फाइड अवक्षिप्त हो जाता है। कभी ये गैसें ठोस पदार्थ से अभिक्रिया कर खनिजों को उत्पन्न करती हैं। यह क्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनेक खनिज सिलिकेट, आक्साइड तथा सल्फाइड के रूप में इसी क्रिया द्वारा निर्मित होते हैं। किसी समय ऐसा होता है कि पृथ्वी के आभ्यंतर का उष्ण आग्नेय शिलाओं से पारित होता है एवं विशाल संख्या में अयस्क कार्यों (ore bodies) को अपने में विलीन कर लेता है। यह विलयन पृथ्वी तल के समीप पहुँच कर अनेक धातुओं को अवक्षिप्त कर देता है। स्वर्ण के अनेक निक्षेप इसी प्रकार उत्पन्न हुए हैं। कुछ अवस्थाओं में इस प्रकार के विलयन पृथ्वीतल के समीप विभिन्न शिलाओं के संपर्क में आते हैं तथा एक एक करके कणों का प्रतिस्थापन (replacement) होता है, अर्थात्‌ जब शिला के एक कण का निष्कासन होता है तो उस निष्कासित कण के स्थान पर धात्विक विलयन के एक कण का प्रतिस्थापन हो जाता है। इस प्रकार शिलाओं के स्थान पर नितांत नवीन धातुएँ मिलती हैं, जिनका आकार और परिमाण प्राचीन प्रतिस्थापित शिलाओं का ही होता है। अनेक दिशाओं में यदि शिलाओं में कुछ विदार (cracks) या शून्य स्थान (void or void spaces) होते हैं तो पारच्यवित विलयन (percolating solution) उन शून्य स्थानों में खनिज निक्षेपों को जन्म देते हैं। यह क्रिया अत्यंत सामान्य है, जिसने अनेक धात्विक निक्षेपों को उत्पन्न किया है। (६) जीवाणुओं (bacteria) द्वारा अवक्षेपण - यह भली प्रकार से ज्ञात है कि कुछ विशेष प्रकार के जीवाणुओं में विलयनों से खनिज अवक्षिप्त करने की क्षमता होती है। उदाहरणार्थ, कुछ जीवाणु लौह को अवक्षिप्त करते हैं। ये जीवाणु विभिन्न प्रकार के होते हैं तथा विभिन्न प्रकार के निक्षेपों का निर्माण करते हैं। (७) कलिलीय निक्षेपण (Collodial Deposition) - वे खनिज, जो जल में अविलेय हैं, विशाल परिमाण में कलिलीय विलयनों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा जब इनसे कोई विद्युद्विश्लेष्य (electroyte) मिलता है तब ये विलयन अवक्षेप देते हैं। इस प्रकार कोई भी धातु अवक्षिप्त हो सकती है। कभी कभी अवक्षेपण के पश्चात्‌ अवक्षिप्त खनिज मणिभीय हो जाते हैं, किंतु अन्य दशाओं में ऐसा नहीं होता। (८) ऋतुक्षारण प्रक्रम (Weathering Process) - यह ऋतुक्षारण शिलाओं के अपक्षय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है उसी प्रकार जो विलयन बनते हैं उनमें लौह, मैंगनीज तथा दूसरे यौगिक हो सकते हैं। ये यौगिक, विलयनों द्वारा सागर में ले जाए जाते हैं और वहीं वे अवक्षिप्त हो जाते हैं। लौह तथा मैगनीज के निक्षेप इसी प्रकार उत्पन्न हुए। ऋतुक्षारण या तो पूर्ववर्ती (pre-existing) शिलाओं से अथवा पूर्ववर्ती खनिज निक्षेपों से हो सकता है। कुछ दशाओं में किसी शिला में कुछ अधोवर्ग (low grade) के विकिरित खनिज (disseminated minerals) होते हैं। तलीय जल शिलाओं के साधारण अवयवों को विलीन कर लेता है और अवशिष्ट भाग को मूल विकीरित खनिजों से समृद्ध करता है। अनेक अयस्क निक्षेप, अवशिष्ट उत्पाद के रूप में पाए जाते हैं, जैसे बाक्साइट। कुछ शिलाएँ, जैसे ग्रैनाइट (कणाश्म), वियोजन (disintegration) के पश्चात्‌ काइनाइट जैसे खनिजों को उत्पन्न करती हैं। (९) उपरूपांतरण (Metamorphism)-कुछ निक्षेप पूर्ववर्ती तलछटों के उपरूपांतरणों द्वारा निर्मित होते हैं। उदाहरण के लिए, चूना पत्थर संगमरमर को तथा कुछ मृत्तिकाएँ और सिलिका निक्षेप सिलोमनाइट को उत्पन्न करते हैं। .

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खाद्य शृंखला

''खाद्य शृंखला को प्रदर्शित करता एक चित्र।''' खाद्य शृंखला में पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न जीवों की परस्पर भोज्य निर्भरता को प्रदर्शित करते हैं। किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में कोई भी जीव भोजन के लिए सदैव किसी दूसरे जीव पर निर्भर होता है। भोजन के लिए सभी जीव वनस्पतियों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर होते हैं। वनस्पतियां अपना बोजन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा बनाती हैं। इस भोज्य क्रम में पहले स्तर पर शाकाहारी जीव आते हैं जो कि पौधों पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर होते हैं। इसलिए पौधों को उत्पादक या स्वपोषी और जन्तुओं को उपभोक्ता की संज्ञा देते हैं। .

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खीरा

खीरे की लता, पुष्प एवं फल खीरा (cucumber; वैज्ञानिक नाम: Cucumis sativus) ज़ायद की एक प्रमुख फसल है। सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा विभिन्न प्राकर की मिठाइयाँ भी तैयार की जाती है। पेट की गड़बडी तथा कब्ज में भी खीरा को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। खीरा कब्ज़ दूर करता है। पीलिया, प्यास, ज्वर, शरीर की जलन, गर्मी के सारे दोष, चर्म रोग में लाभदायक है। खीरे का रस पथरी में लाभदायक है। पेशाब में जलन, रुकावट और मधुमेह में भी लाभदायक है। घुटनों में दर्द को दूर करने के लिये भोजन में खीरा अधिक खायें। .

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गन्धकाम्ल

गन्धकाम्ल (सल्फ्युरिक एसिड) एक तीव्र अकार्बनिक अम्ल है। प्राय: सभी आधुनिक उद्योगों में गन्धकाम्ल अत्यावश्यक होता है। अत: ऐसा माना जाता है कि किसी देश द्वारा गन्धकाम्ल का उपभोग उस देश के औद्योगीकरण का सूचक है। गन्धकाम्ल के विपुल उपभोगवाले देश अधिक समृद्ध माने जाते हैं। शुद्ध गन्धकाम्ल रंगहीन, गंधहीन, तेल जैसा भारी तरल पदार्थ है जो जल में हर परिमाण में विलेय है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में तथा अनेक रासायनिक उद्योगों में विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संश्लेषण में होता है। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए सम्पर्क विधि का प्रयोग किया जाता है जिसमें गन्धक को वायु की उपस्थिति में जलाकर विभिन्न प्रतिकारकों से क्रिया कराई जाती है। खनिज अम्लों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला यह महत्त्वपूर्ण अम्ल है। प्राचीन काल में हराकसीस (फेरस सल्फेट) के द्वारा तैयार गन्धक द्विजारकिक गैस को जल में घोलकर इसे तैयार किया गया। यह तेल जैसा चिपचिपा होता है। इन्ही कारणों से प्राचीन काल में इसका नाम 'आयँल ऑफ विट्रिआँल' रखा गया था। हाइड्रोजन, गन्धक तथा जारक तीन तत्वों के परमाणुओं द्वारा गन्धकाम्ल के अणु का संश्लेषण होता है। आक्सीजन युक्ति होने के कारण इस अम्ल को 'आक्सी अम्ल' कहा जाता है। इसका अणुसूत्र H2SO4 है तथा अणु भार ९८ है। गन्धकाम्ल प्राचीनकाल के कीमियागर एवं रसविद् आचार्यों को गन्धकाम्ल के संबंध में बहुत समय से पता था। उस समय हरे कसीस को गरम करने से यह अम्ल प्राप्त होता था। बाद में फिटकरी को तेज आँच पर गरम करने से भी यह अम्ल प्राप्त होने लगा। प्रारंभ में गन्धकाम्ल चूँकि हरे कसीस से प्राप्त होता था, अत: इसे "कसीस का तेल' कहा जाता था। तेल शब्द का प्रयोग इसलिए हुआ कि इस अम्ल का प्रकृत स्वरूप तेल सा है। .

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गनोगा झील

गनोगा झील संयुक्त राज्य अमेरिका के पेन्सिलवेनिया में एक प्राकृतिक झील है।Ricketts, pp.

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ग़ोताख़ोरी

मोनोफ़िन के साथ मुक्त ग़ोताख़ोरी करती हुई एक ग़ोताख़ोर ग़ोताख़ोरी पानी के अन्दर जाकर वहाँ कम या ज़्यादा समय व्यतीत करने की क्रिया को कहते हैं। ग़ोताख़ोरी में ग़ोताख़ोर साँस लेने के लिए अपने साथ हवा का बंदोबस्त ले जा सकते हैं या फिर कम समय के लिए अपना साँस रोककर पानी के अन्दर रह सकते हैं। स्कूबा ग़ोताख़ोरी में ग़ोताख़ोर अपने साथ हवा की टंकी और अन्य काम आने वाले चीज़ें ले जाते हैं जबकि मुक्त ग़ोताख़ोरी में हवा के बंदोबस्त के तामझाम के बिना ही ग़ोताख़ोरी की जाती है। पानी के अन्दर तैरने की आसानी के लिए अक्सर ग़ोताख़ोर पैरों में फ़िन इस्तेमाल करते हैं। ग़ोताख़ोरी या मुक्त डाइविंग, सांस रोक के की जाने वाली डाइविंग पानी के नीचे डाइविंग की विधा है जो गोताखोर की क्षमता पर निर्भर करता हैं की वो पानी में कितने देर तक सांस रोक कर रह सकता हैं। इसमें स्कूबा गियर जैसे श्वास लेने वाले उपकरणों का प्रयोग नहीं होता। ग़ोताख़ोरी गतिविधियों के उदाहरण हैं: पारंपरिक मछली पकड़ने की तकनीक, प्रतिस्पर्धी और गैर-प्रतिस्पर्धी फ्रीडाइविंग, प्रतिस्पर्धी और गैर-प्रतिस्पर्धी भाला फेक कर मछली पकड़ने की प्रतियोगिता, फ्रीडाइविंग फोटोग्राफी, लयबद्ध तैराकी, पानी के भीतर फुटबॉल, पानी के नीचे रग्बी, पानी के नीचे हॉकी, पानी के नीचे लक्ष्य शूटिंग। .

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गंगाजल

गंगाजल गंगा नदी के जल को कहते हैं। यह जल पवित्र माना जाता है। इस जल में जीवाणु पैदा नहीं होते हैं।चित्र:गंगा.jpg.

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ग्रीनलैण्ड हिमचादर

ग्रीनलैण्ड हिमचादर (Greenland ice sheet) ग्रीनलैण्ड के ८०% भूभाग पर विस्तृत एक हिमचादर है। इसका कुल फैलाव १७,१०,००० वर्ग किमी पर है। अंटार्कटिक हिमचादर के बाद यह पृथ्वी का दूसरा सबसे बड़ा हिम का विस्तार है। यह हिमचादर उत्तर-दक्षिण दिशा में २,४०० किमी तक फैली हुई है, जबकि इसकी सर्वाधिक चौड़ाई इसकी उत्तरी हिस्से में ७७° उत्तर के रेखांश (लैटिट्यूड) पर १,१०० किमी है। बर्फ़ की औसत ऊँचाई २,१३५ मीटर (७,००५ फ़ुट) है। हिमचादर में जमा बर्फ़ की तहों की मोटाई अधिकतर स्थानों में २ किमी से अधिक है और अपने सबसे मोटे भाग में ३ किमी से भी ज़्यादा है। ग्रीनलैण्ड हिमचादर के अलावा ग्रीनलैण्ड में अन्य हिमसमूह भी हैं - अलग-थलग हिमानियाँ (ग्लेशियर) और छोटी बर्फ़ की टोपियाँ कुल मिलाकर ७६,००० अए १,००,००० वर्ग किमी के बीच के क्षेत्रफल पर इस मुख्य हिमचादर की बाहरी सीमाओं पर फैली हुई हैं। अगर इस हिमचादर में क़ैद पूरा २८,५०,००० घन किमी जल पिघलाया जाए तो पूरे विश्व के सागरों की सतह औसत ७.२ मीटर (२४ फ़ुट) बढ़ जाएगी।Climate Change 2001: The Scientific Basis.

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ग्लूकोज़

ग्लूकोज के संतुलन की योजनाबद्ध प्रतिनिधित्व। ग्लूकोज़ (Glucose) या द्राक्ष शर्करा (द्राक्षधु) सबसे सरल कार्बोहाइड्रेट है। यह जल में घुलनशील होता है तथा इसका रासायनिक सूत्र C६H१२O६ है। यह स्वाद में मीठा होता है तथा सजीवों की कोशिकाओं के लिये उर्जा का सर्व प्रमुख स्रोत है। यह पौधों के फलों जैसे काजू, अंगूर व अन्य फलों में, जड़ों जैसे चुकुन्दर की जड़ों में, तनों में जैसे ईख के रूप में सामान्य रूप से संग्रहित भोज्य पदार्थों के रूप में पायी जाती है। ग्लूकोज़ प्रमुख आहार औषध है। इससे देह में उष्णता और शक्ति उत्पन्न होती है। मिठाइयों और सुराओं के निर्माण में भी यह व्यवहृत होता है। ग्लाइकोजन के रूप में यह यकृत और पेशियों में संचित रहता है। इसका अणुसूत्र (C6 H12 O6) और आकृतिसूत्र है: (CH2 OH. CHOH. CHOH. CHOH. CHOH. CHO) ग्लूकोज़ (Glucose) को द्राक्षा, शर्करा और डेक्सट्रोज भी कहते हैं। यह अंगूर और अंजीर सदृश मीठे फलों, कुछ वनस्पतियों और मधु में पाया जाता है। अल्प मात्रा में यह रक्त और मूत्र (विशेषत: मधुमेह-रोगी के मूत्र) सदृश जांतव उत्पादों, लसीका (lymph) और प्रमस्तिष्क मेरुतरल (cerebrospinal fluid) में भी पाया जाता है। स्टार्च, सेलुलोज, सेलोबायोस और माल्टोज़ सदृश कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज़ से ही बने हैं। चीनी और दुग्धशर्करा जैसी कुछ शर्कराओं में अन्य शर्कराओं के साथ यह संयुक्त पाया जाता है। प्राकृतिक ग्लूकोसाइडों का यह आवश्यक अवयव है। तनु सलफ्यूरिक अम्ल द्वारा स्टार्च के जलविश्लेषण से बड़ी मात्रा में ग्लूकोज़ तैयार किया जाता है। अल्प मात्रा में प्रयोगशालाओं में चीनी से यह तैयार हो सकता है। कृत्रिम रीति से भी इसका संश्लेषण हुआ है। .

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गैस

गैसों का कण मॉडल: गैसों के कणों के बीच की औसत दूरी अपेक्षाकृत अधिक होती है। गैस (Gas) पदार्थ की तीन अवस्थाओं में से एक अवस्था का नाम है (अन्य दो अवस्थाएँ हैं - ठोस तथा द्रव)। गैस अवस्था में पदार्थ का न तो निश्चित आकार होता है न नियत आयतन। ये जिस बर्तन में रखे जाते हैं उसी का आकार और पूरा आयतन ग्रहण कर लेते हैं। जीवधारियों के लिये दो गैसे मुख्य हैं, आक्सीजन गैस जिसके द्वारा जीवधारी जीवित रहता है, दूसरी जिसे जीवधारी अपने शरीर से छोड़ते हैं, उसका नाम कार्बन डाई आक्साइड है। इनके अलावा अन्य गैसों का भी बहु-प्रयोग होता है, जैसे खाना पकाने वाली रसोई गैस। पानी दो गैसों से मिलकर बनता है, आक्सीजन और हाइड्रोजन। .

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गैस निष्कासन

द्रवों एवं ठोसों में घुली हुई गैसों को निकालने को विगैसन या गैस निष्कासन (Degasification या degassing) कहते हैं। विषेष रूप से जल या जलीय विलयनों से गैसों को निष्कासित करने की आवश्यकता पड़ती है। ठोसों से गैस निकालने की बहुत सी विधियाँ हैं। गैसों को ठोस अथवा द्रवों से निष्काषित करने के कई कारण हैं। रसायन शास्त्री ऐसे विलायकों से गैस निष्कासित करते हैं जिनसे बनने वाले यौगिक वायु या आक्सीजन के प्रति संवेदनशील हों (इनसे क्रिया कर सकते हों)। द्रव को ठंडा करके जमाने पर उसमें गैस के अवांछित बुलबुले बन सकते हैं यदि द्रव में गैस घुली हो। श्रेणी:रासायनिक इंजीनियरी श्रेणी:द्रव्य के अवस्थाएँ.

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गोत्र

गोत्र मोटे तौर पर उन लोगों के समूह को कहते हैं जिनका वंश एक मूल पुरुष पूर्वज से अटूट क्रम में जुड़ा है। व्याकरण के प्रयोजनों के लिये पाणिनि में गोत्र की परिभाषा है 'अपात्यम पौत्रप्रभ्रति गोत्रम्' (४.१.१६२), अर्थात 'गोत्र शब्द का अर्थ है बेटे के बेटे के साथ शुरू होने वाली (एक साधु की) संतान्। गोत्र, कुल या वंश की संज्ञा है जो उसके किसी मूल पुरुष के अनुसार होती है संक्षेप में कहे तो मनुस्मृति के अनुसार सात पीढ़ी बाद सगापन खत्म हो जाता है अर्थात सात पीढ़ी बाद गोत्र का मान बदल जाता है और आठवी पीढ़ी के पुरुष के नाम से नया गोत्र आरम्भ होता है। लेकिन गोत्र की सही गणना का पता न होने के कारण हिन्दू लोग लाखो हजारो वर्ष पहले पैदा हुए पूर्वजो के नाम से ही अज्ञानतावश अपना गोत्र चला रहे है जिससे वैवाहिक जटिलताएं उतपन्न हो रही हैं। .

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ऑक्साइड

लौह (३) ऑक्साइड-हाइड्रॉक्साइड (FeO(OH), Fe(OH)3) की मात्रा होती हैं, अन्य तत्त्वों के साथ अभिक्रिया होने पर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। ऑक्साइड वे रासायनिक यौगिक होते हैं, जिनमें कम से कम एक ऑक्सीजन परमाणु और कम से कम एक अन्य तत्त्व हो। पृथ्वी की सतह का अधिकांश भाग ऑक्साइड से से बना है। तत्त्वों की वायु में ऑक्सीजन से ऑक्सीकरण अभिक्रिया से ऑक्साइड्स का निर्माण होता है। आक्साइड किसी तत्व के साथ आक्सीजन के यौगिक हैं। ये सर्वत्र बहुतायत से मिलते हैं। हाइड्रोजन का आक्साइड पानी (H2O) पृथ्वी पर बहुत बड़ी मात्रा में है। इसके अतिरिक्त हवा में कई प्रकार के गैसीय आक्साइड हैं, जैसे कार्बन डाइ आक्साइड, सल्फर डाइ आक्साइड आदि। खनिजों, चट्टानों और धरती की ऊपरी तह में भी विभिन्न आक्साइड हैं। आक्सीजन कुछ तत्वों को छोड़कर लगभग सभी तत्वों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष क्रिया करता है। इससे अनेक आक्साइड उपलब्ध हैं। .

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ऑक्सीकरण संख्या

ऑक्सीकरण संख्या (oxidation number) या ऑक्सीकरण अवस्था (oxidation state) किसी रासायनिक यौगिक में बंधे हुए किसी परमाणु के ऑक्सीकरण (oxidation) के दर्जे का सूचक होता है। यह संख्या गिनाती है कि उस यौगिक के रासायनिक बंध में वह परमाणु कितने इलेक्ट्रान उस यौगिक में स्थित अन्य परमाणुओं को खो चुका है। उदाहरण के लिए, पानी (जिसका रासायनिक सूत्र H2O है) में दोनो हाइड्रोजन परमाणु अपना एक-एक इलेक्ट्रान ऑक्सीजन परमाणु को दे चुके होते हैं। इसलिये जल में हर हाइड्रोजन परमाणु की ऑक्सीकरण संख्या +1 होती है जबकि ऑक्सीजन की -2 होती है (क्योंकि वह खोने की बजाय दो इलेक्ट्रान प्राप्त कर लेता है)। .

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ओसांक

यह ग्राफ दिखाता है कि विभिन्न तापों पर, समुद्रतल पर, वायु में अधिकतम कितने प्रतिशत (द्रव्यमान के प्रतिशत के रूप में) जलवाष्प हो सकता है। जिस तापमान पर जल-वाष्प संघनित होकर जल (द्रव) रूप में बदल जाती है, उसे ओसांक (dew point) कहते हैं। ओसांक कई बातों पर निर्भर करता है, दाब, आपेक्षिक आर्द्रता आदि। .

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आँत्वाँ लाव्वाज़्ये

लेवेजियर आँत्वाँ लॉरेंत लाव्वाज़्ये (या आँत्वाँ लॉरेंत लावासिये, Antoine Laurent Lavoisier फ्रेंच उच्चारण: ​; सन् १७४३-१७९४), फ्रांस का सुप्रसिद्ध रसायनज्ञ था। अट्ठारहवीं शताब्दी के रसायन क्रान्ति का वह केन्द्र था। रसायन और जीवविज्ञान दोनों के इतिहास पर उसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। अधिकांश लोग उसे आधुनिक रसायन का जनक मानते हैं। उसने सर्वप्रथम सिद्ध किया कि वायु के मुख्य घटक नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन हैं। .

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आण्विक ज्यामिति

जल के अणु में परमाणुओं का विन्यास आण्विक ज्यामिति (Molecular geometry) से तात्पर्य किसी अणु में परमाणुओं की त्रिबीमीय स्थिति से है। आणविक ज्यामिति कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इससे ही पदार्थ के अनेक गुण जैसे क्रियाशीलता, ध्रुवता, रंग, फेज, चुम्बकीयता तथा जैविक क्रियाशीलता आदि निर्धारित होते हैं। .

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आत्मा

आत्मा या आत्मन् पद भारतीय दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों (विचार) में से एक है। यह उपनिषदों के मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में आता है। जहाँ इससे अभिप्राय व्यक्ति में अन्तर्निहित उस मूलभूत सत् से किया गया है जो कि शाश्वत तत्त्व है तथा मृत्यु के पश्चात् भी जिसका विनाश नहीं होता। आत्मा का निरूपण श्रीमद्भगवदगीता या गीता में किया गया है। आत्मा को शस्त्र से काटा नहीं जा सकता, अग्नि उसे जला नहीं सकती, जल उसे गीला नहीं कर सकता और वायु उसे सुखा नहीं सकती। जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करता है। .

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आनुभविक सूत्र

रसायन विज्ञान में किसी यौगिक का आनुभविक सूत्र (प्रयोगाधारित सूत्र / मूलानुपाती सूत्र / empirical formula) वह सूत्र है जो बताता है कि उस यौगिक के अणु में कौन-कौन से परमाणु हैं तथा उन परमाणुओं की संख्या का सरलतम अनुपात क्या है। उदाहरण के लिये हेक्सेन का प्रयोगाधारित सूत्र C3H7 है जबकि उसका अणुसूत्र C6H14 है। प्रयोगाधारित सूत्र या 'इम्पिरिकल फॉर्मूला' नाम इसलिये पड़ा है कि जिस विधि से ये सूत्र ज्ञात किये जाते हैं वह प्रयोग पर आधारित है और इसमें अणु में परमाणुओं का सापेक्षिक अनुपात ही पता चल पाता है, परमाणुओं की वास्तविक संख्या का पता नहीं चलता (जिसे किसी अन्य विधि द्वारा प्राप्त किया जाता है)। बेंजीन अणु का '''आनुभविक सूत्र''' (1), आणविक सूत्र (2) तथा अन्य निरूपण: (3) केकुले संरचना (अनुनादी समावयी); (4) समतल षटकोणीय संरचना, जिसमें आबन्ध की लम्बाई और कोण भी लिखे गये हैं; (5) sp2 संकर ऑर्बिटल के बीच सिगमा आबन्ध; (6) परमाणविक कक्षक; (7) Molecular orbital delocalized pi; (8) बेंजीन रिंग .

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आप (जल)

'आप' वैदिक संस्कृत में जल के लिए एक शब्द है आप वैदिक संस्कृत में जल के लिए शब्द है। प्राचीन वैदिक संस्कृत जब शास्त्रीय संस्कृत में परिवर्तित हो गई तो यह शब्द केवल बहुवचन रूप में देखा जाने लगा, जो 'आपस' है। इसी शब्द का अवस्ताई भाषा में सजातीय रूप आपो और फ़ारसी में रूप आब है। .

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आपेक्षिक घनत्व

किसी वस्तु का आपेक्षिक घनत्व (Relative density) या विशिष्ट घनत्व (specific gravity) उसके घनत्व को किसी 'सन्दर्भ पदार्थ' के घनत्व से भाग देने से प्राप्त होता है। प्रायः दूसरे पदार्थों का घनत्व जल के घनत्त्व के सापेक्ष व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिये बर्फ का आपेक्षिक घनत्व 0.91 है जिसका अर्थ है कि बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व का 0.91 गुना होता है। आधुनिक वैज्ञानिक साहित्य में 'विशिष्ट घनत्व' की अपेक्षा 'आपेक्षिक घनत्व' का अधिक प्रयोग किया जा रहा है। .

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आपेक्षिक विद्युतशीलता

किसी पदार्थ की विद्युतशीलता तथा निर्वात की विद्युतशीलता के अनुपात को उस पदार्थ की आपेक्षिक विद्युतशीलता (relative permittivity) कहते हैं। पहले इसे 'परावैद्युतांक' (dielectric constant) कहते थे किन्तु अब मानक संस्थाओं ने यह शब्द त्याग दिया है। .

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आरती

अधिक विकल्पों के लिए यहां जाएं - आरती (बहुविकल्पी) मंदिर में भगवाण की मूर्ति की आरती करता हुआ एक पुजारी आरती हिन्दू उपासना की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से आराध्य के सामाने एक विशेष विधि से घुमाई जाती है। ये लौ घी या तेल के दीये की हो सकती है या कपूर की। इसमें वैकल्पिक रूप से, घी, धूप तथा सुगंधित पदार्थों को भी मिलाया जाता है। कई बार इसके साथ संगीत (भजन) तथा नृत्य भी होता है। मंदिरों में इसे प्रातः, सांय एवं रात्रि (शयन) में द्वार के बंद होने से पहले किया जाता है। प्राचीन काल में यह व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया जाता था। तमिल भाषा में इसे दीप आराधनई कहते हैं। सामान्यतः पूजा के अंत में आराध्य भगवान की आरती करते हैं। आरती में कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें सम्मिलित होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें तीन बार पुष्प अर्पित करने चाहियें। इस बीच ढोल, नगाडे, घड़ियाल आदि भी बजाये जाते हैं।। याहू जागरण- धर्म। मीता जिंदल .

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आसुत जल

मैड्रिड में रियल फ़ार्मेसिया में आसवित पानी की बोतल. आसुत जल वह जल है जिसकी अनेक अशुद्धियों को आसवन के माध्यम से हटा दिया गया हो। आसवन में पानी को उबालकर उसकी भाप को एक साफ़ कंटेनर में संघनित किया जाता है। यह पीने के लिए उपयुक्त नहीं होता है क्योंकि इसमें जीवन के लिए आवश्यक लवण अनुपस्थित होते है। इसका उपयोग चिकित्सीय कार्यों जैसे दवाइयाँ बनाने, शल्य उपकरणो आदि को धोने में किया जाता हैं। .

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आहारीय सोडियम

आहारीय सोडियम शरीर की कोशिकाओं के अन्दर और बाहर जल के सन्तुलन को बनायें रखने में सहायक होता है। इसकी कमी से मांसपेशियों में ऐठन एडेमा, हो सकता है, किन्तु इसकी अधिकता से हानिकारक परिणाम जैसे उच्च रक्तचाप, गुर्दे की बीमारियां, यकृत का सूत्रणरोग और संकुलन संबंधी हृदय रोग हो सकते है। सोडियम मूत्र और विशेषतः पसीने में सोडियम क्लोराइड के रूप में निकलता है। कभी-कभी आहारों में जैव सोडियम आवश्यकता की पूर्ति के लिये पर्याप्त नही होता। अतः सोडियम क्लोराइड या खाने का नमक भोजन में शामिल करना पडता है। .

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आईयूपीएसी नामपद्धति

आईयूपीएसी नामकरण (IUPAC nomenclature) रासायनिक यौगिकों के नामकरण की एक पद्धति है। यह पद्धति आईयूपीएसी (International Union of Pure and Applied Chemistry (IUPAC)) के द्वारा विकसित की गयी तथा यही इस प्रणाली को अद्यतन रखती है। .

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आग

जंगल की आग आग दहनशील पदार्थों का तीव्र ऑक्सीकरण है, जिससे उष्मा, प्रकाश और अन्य अनेक रासायनिक प्रतिकारक उत्पाद जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और जल.

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आंसू

आँसू आँख की अश्रु नलिकाओं से निकलने वाला तरल पदार्थ है जो जल और नमक के मिश्रण से बना होता है। यह आँख के लिए बेहद लाभकारी होता है। यह आँख को शुष्क होने से बचाता है तथा उसे साफ और कीटाणु रहित रखने में मदद करता है। श्रेणी:नेत्र श्रेणी:मानव शरीर.

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आक्सिम

300px ऐलडिहाइडों तथा कीटोनों पर हाइड्रॉक्सिल-ऐमिन की प्रतिक्रिया से जो यौगिक प्राप्त होते हैं उन्हें आक्सिम (Oximes) कहते हैं। ऐलडिहाडो से बने यौगिकों को ऐलडॉक्सिम तथा कीटोनों से बने यौगिक कीटॉक्सिम कहलाते हैं। इनके सूत्र सामने के चित्र में दर्शाए गये हैं। आक्सिम वे रासायनिक यौगिक हैं जिनका सामान्य सूत्र R1R2C.

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आक्सी श्वसन

ऑक्सीय श्वसन श्वसन की वह पद्धति है जिसमें आक्सीजन की उपस्थिति अनिवार्य है तथा इसमें भोजन का पूर्ण आक्सीकरण होता है। इस क्रिया के अन्त में पानी, कार्बन डाई-आक्साइड तथा ऊष्मीय ऊर्जा का निर्माण होता है। एक ग्राम मोल ग्लूकोज के आक्सीकरण से ६७४ किलो कैलोरी ऊर्जा मुक्त होती है। जिन जीवधारियों में यह श्वसन पाया जाता है उन्हें एरोब्स कहते हैं। श्रेणी:श्वसन.

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कठोर जल

कैल्शियम से लेपित पाइप से बाहर आते कठोर जल। कैल्शियम से लेपित पाइप से बाहर आते कठोर जल ऐसे जल को कठोर जल, (Hard water) कहते हैं जिसमें खनिज लवणों की अधिकता हो। इसमें कैल्शियम व मैग्नीशियम के बाइकार्बोनेट व कार्बोनेट उपस्थित रहते हैं। इसकी सरल पहचान है कि यह साबुन के साथ फेन (झाग) उत्पन्न नही करता। ध्यान रहे कि ‘भारी जल’ अलग चीज है। .

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कप

कप एक प्रकार का बर्तन होता है जिसकी मदद से चाय,पानी इत्यादि पेय पदार्थ पीते हैं। कपकई प्रकार के होते हैं। चीनी मिट्टी के कप बहुत मजबूत होते हैं। .

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कपड़ा धोने की मशीन

कपड़ा धोने की मशीन (वाशिंग मशीन) कपड़े, चादर, तौलिये एवं अन्य कपड़ों को स्वत: धोने के काम आती है। प्राय: पानी का प्रयोग करके धुलाई करने वाली मशीने ही इस श्रेणी में रखी जाती हैं, सूखी धुलाई करने वाली मशीने नहीं। आज कल की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में जहां लोगो को काम के सिलसिले में दूर जाना पड़ता है यह एक वजह है जिससे लोगो का बहुत सारा समय ख़राब होता है इस कारण उन वस्तुओ का हमारे दैनिक जीवन में महत्व ज्यादा बढ़ जाता है जिनका उपयोग करके हम समय की बचत करते है | वाशिंग मशीन उनमे से एक है | जहाँ पहले लोगो को कपडे धोने में बहुत सारा समय ख़राब होता था वही अब समय की बचत बहुत ज्यादा हो रही है| .

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कब्ज

कब्ज पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है। करने के लिए कई नुस्खे व उपाय यहां जोड़ें गए हैं। पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है। .

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कमल

'''कमल''' - यही भारत का राष्ट्रीय पुष्प भी है। कमल (वानस्पतिक नाम:नीलंबियन न्यूसिफ़ेरा (Nelumbian nucifera)) वनस्पति जगत का एक पौधा है जिसमें बड़े और सुन्दर फूल खिलते हैं। यह भारत का राष्ट्रीय पुष्प है। संस्कृत में इसके नाम हैं - कमल, पद्म, पंकज, पंकरुह, सरसिज, सरोज, सरोरुह, सरसीरुह, जलज, जलजात, नीरज, वारिज, अंभोरुह, अंबुज, अंभोज, अब्ज, अरविंद, नलिन, उत्पल, पुंडरीक, तामरस, इंदीवर, कुवलय, वनज आदि आदि। फारसी में कमल को 'नीलोफ़र' कहते हैं और अंग्रेजी में इंडियन लोटस या सैक्रेड लोटस, चाइनीज़ वाटर-लिली, ईजिप्शियन या पाइथागोरियन बीन। कमल का पौधा (कमलिनी, नलिनी, पद्मिनी) पानी में ही उत्पन्न होता है और भारत के सभी उष्ण भागों में तथा ईरान से लेकर आस्ट्रेलिया तक पाया जाता है। कमल का फूल सफेद या गुलाबी रंग का होता है और पत्ते लगभग गोल, ढाल जैसे, होते हैं। पत्तों की लंबी डंडियों और नसों से एक तरह का रेशा निकाला जाता है जिससे मंदिरों के दीपों की बत्तियाँ बनाई जाती हैं। कहते हैं, इस रेशे से तैयार किया हुआ कपड़ा पहनने से अनेक रोग दूर हो जाते हैं। कमल के तने लंबे, सीधे और खोखले होते हैं तथा पानी के नीचे कीचड़ में चारों ओर फैलते हैं। तनों की गाँठों पर से जड़ें निकलती हैं। .

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कमलानाथ

कमलानाथ शर्मा (के.एन.शर्मा भी) जलविज्ञान, सिंचाई तथा जल-निकास, एवं जल-विद्युत अभियांत्रिकी के अन्तरराष्ट्रीय विशेषज्ञ, वैदिक ग्रंथों में जलविज्ञान, पर्यावरण आदि विषयों के लेखक, साहित्यकार, तथा हिंदी के जानेमाने व्यंग्य लेखक और कहानीकार हैं। जलविज्ञान, जल-विद्युत अभियांत्रिकी व विश्व खाद्यान्न में उल्लेखनीय योगदान के अतिरिक्त के॰एन॰शर्मा ने वेदों, उपनिषदों आदि वैदिक वाङ्मय में जल, पर्यावरण, पारिस्थितिकी आदि पर भी शोध करके प्रचुरता से लिखा है। हिंदी साहित्य में साठ के दशक से कमलानाथ के नाम से उनके व्यंग्य तथा कहानियां भी देश की विभिन्न पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। अपने कार्यकाल के दौरान आपने विश्व के लगभग सभी देशों की यात्रा की, वहां के सिंचाई, जलनिकास, जलविज्ञान आदि के विकास में योगदान दिया तथा अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं से संबद्ध रहे। .

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कर्णमल

रूई की एक फुरेरी पर गीला मानव कर्णमैल कान की मैल कान का मैल या कर्णमल (ग्रामीण क्षेत्रों में 'ठेक', 'खोंठ' या खूँट भी कहते हैं), मानव व दूसरे स्तनधारियों की बाह्य कर्ण नाल के भीतर स्रावित होने वाला एक एक पीले रंग का मोमी पदार्थ है। यह मानव की बाह्य कर्ण नलिका की त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है साथ ही यह सफाई और स्नेहन में भी सहायता करता है। यह मैल कुछ हद तक कान को जीवाणु, कवक, कीटों और जल से भी सुरक्षा प्रदान करता है। अत्यधिक या ठूंसा हुआ मैल कान के पर्दे पर दबाव डाल कर बाह्य श्रवण नलिका को अवरुद्ध करके व्यक्ति की श्रवण शक्ति को क्षीण कर सकता है। .

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कार्बोहाइड्रेट

रासायनिक रुप से ‘‘कार्बोहाइड्रेट्स पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स होते हैं तथा स्वयं के जलीय अपघटन के फलस्वरुप पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स देते हैं।’’ कार्बोहाइड्रेट्स, कार्बनिक पदार्थ हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन होते है। इसमें हाइड्रोजन व आक्सीजन का अनुपात जल के समान होता है। कुछ कार्बोहाइड्रेट्स सजीवों के शरीर के रचनात्मक तत्वों का निर्माण करते हैं जैसे कि सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज, काइटिन तथा पेक्टिन। जबकि कुछ कार्बोहाइड्रेट्स उर्जा प्रदान करते हैं, जैसे कि मण्ड, शर्करा, ग्लूकोज़, ग्लाइकोजेन.

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काइटसर्फिंग

काइटबोर्डिंग पानी की सतह पर खेला जाने वाला एक खेल है जिसके तहत वॉटरबोर्डिंग, स्नोबोर्डिंग, विंड्सर्फिंग, सर्फिंग, पैराग्लाइडिंग, स्केटबोर्डिंग और जिमनॅस्टिक जैसे खेलों के अवयवों को मिलाकर एक साहसिक खेल बनाया गया है। एक काइट बोर्डर हवा की ताक़त का प्रयोग करके एक विशाल आकर वाले पावर काइट बोर्ड को पानी की सतह पर चलता है। काइट बोर्ड देखने में किसी बिना बंधन अथवा पट्टी वाले वेकबोर्ड अथवा एक छोटे सर्फ बोर्ड की तरह ही लगता है। काइटबोर्डिंग की कई सारी भिन्न विधाएँ हैं जैसे कि फ्रीस्टाइल, फ्रीराइड, डाउन राइडर्स, स्पीड, कोर्स राइडिंग, जंपिंग और लहरों में काइटसर्फिंग.

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कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र(Kurukshetra) हरियाणा राज्य का एक प्रमुख जिला और उसका मुख्यालय है। यह हरियाणा के उत्तर में स्थित है तथा अम्बाला, यमुना नगर, करनाल और कैथल से घिरा हुआ है तथा दिल्ली और अमृतसर को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलमार्ग पर स्थित है। इसका शहरी इलाका एक अन्य एटिहासिक स्थल थानेसर से मिला हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल है। माना जाता है कि यहीं महाभारत की लड़ाई हुई थी और भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश यहीं ज्योतिसर नामक स्थान पर दिया था। यह क्षेत्र बासमती चावल के उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है। .

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क्यूलेक्स

क्यूलेक्स क्यूलेक्स, मच्छरो का एक वंश हैं। सभी मच्छरों की तरह ही इसके जीवन चक्र की चार अवस्थाएं हैं: अण्डा, लारवा, प्यूपा एंव व्यस्क.

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क्रिस्टलन जल

क्रिस्टल के अन्दर विद्यमान जल को क्रिस्टलन जल (water of crystallization या water of hydration या crystallization water) कहते हैं। क्रिस्टल बनने के लिये जल प्रायः आवश्यक होता है। कुछ सन्दर्भों में, किसी दिये हुए ताप पर, किसी पदार्थ में उपस्थित जल की कुल मात्रा को क्रिस्टलन जल कहते हैं। जल की यह मात्रा एक निश्चित अनुपात में होती है।;उदाहरण.

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क्रेब्स चक्र

क्रेब्स चक्र वायवीय श्वसन की दूसरी अवस्था है। यह कोशिका के माइटोकाँन्ड्रिया में होती है। इस क्रिया में ग्लूकोज का अंत पदार्थ पाइरूविक अम्ल पूर्ण रूप से आक्सीकृत होकर कार्बन डाईआक्साइड और जल में बदल जाता है तथा अधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। यह क्रिया कई चरणों में होती है तथा एक चक्र के रूप में कार्य करती है। इस चक्र का अध्ययन सर्वप्रथम हैन्स एडोल्फ क्रेब ने किया था, उन्हीं के नाम पर इस क्रिया को क्रेब्स चक्र कहते हैं। श्रेणी:श्वसन.

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क्षार

क्षार एक ऐसा पदार्थ है, जिसको जल में मिलाने से जल का pHमान 7.0 से अधिक हो जाता है। ब्रंस्टेड और लोरी के अनुसार, क्षार एक ऐसा पदार्थ है जो अम्लीय पदार्थों को OH- दान करते हैं। क्षारक वास्तव में वे पदार्थ हैं जो अम्ल के साथ मिलकर लवण और जल बनाते हैं। उदाहरणत:, जिंक आॅक्साइड सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर ज़िंक सल्फेट और जल बनाता है। दाहक सोडा (कॉस्टिक सोडा), सल्फ़्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर सोडियम सल्फेट और जल बनाता है। धातुओं के आॅक्साइड सामान्यत: क्षारक हैं। पर इसके अपवाद भी हैं। क्षारकों में धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड हैं, पर सुविधा के लिए तत्वों के कुछ ऐसे समूह भी रखे गए हैं जो अम्लों के साथ मिलकर बिना जल बने ही लवण बनाते हैं। ऐसे क्षारकों में अमोनिया, हाइड्राॅक्सिलएमीन और फाॅस्फीन हैं। द्रव अमोनिया में घुल जाता है पर फिनोल्फथैलीन से कोई रंग नहीं देता। अत: कहाँ तक यह क्षारक कहा जा सकता है, यह बात संदिग्ध है। यद्यपि ऊपर की क्षारक की परिभाषा बड़ी असंतोषप्रद है, तथापि इससे अच्छी परिभाषा नहीं दी जा सकी है। क्षारक (बेस) और क्षार (ऐल्कैली) पर्यायवाची शब्द नहीं हैं। सब क्षार क्षारक हैं पर सब क्षारक क्षार नहीं हैं। क्षार-धातुओं के आॅक्साइड, जैसे सोडियम आॅक्साइड, जल में घुलकर हाइड्राॅक्साइड बनाते हैं। ये प्रबल क्षारकीय होते हैं। क्षारीय मृदाधातुओं के आक्साइड, जैसे कैल्सियम आॅक्साइड, जल में अल्प विलेय और अल्प क्षारीय होते हैं। अन्य धातुओं के आॅक्साइड जल में नहीं घुलते और उनके हाइड्राॅक्साइड परोक्ष रीतियों से ही बनाए जाते हैं। धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड क्षारक होते हैं। क्षार धातुओं के आॅक्साइड जल में शीघ्र घुल जाते हैं। कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में कम विलेय होते हैं और कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में ज़रा भी विलेय नहीं हैं। कुछ अधातुओं के हाइड्राइड, जैसे नाइट्रोजन और फाॅस्फोरस के हाइड्राइड (क्रमश: अमोनिया और फाॅस्फीन) भी भस्म होते हैं। .

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क्वथन

क्वथन या आम भाषा में उबाल, एक भौतिक प्रक्रिया है जिसके दौरान किसी द्रव के क्वथनांक बिंदु तक गर्म हो जाने पर उसकी सतह से तेज़ी से वाष्पीकरण होता है। तकनीकी भाषा में ऊष्मा द्वारा द्रव की सतह पर स्थित अणुओं की गतिज ऊर्जा उनके ऊपर लग रहे वायुमंडलीय वाष्पदाब के बराबर हो जाने की स्थिति को क्वथन कहते हैं। सामान्य वायुदाब (1013.2 मिलिबार) पर जल का क्वथनांक 100 C होता है। .

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क्वथनांक उन्नयन

किसी विलायक में कोई विलेय मिलाने पर, विलायक के क्वथनांक बढ़ जाने की प्रक्रिया क्वथनांक उन्नयन (Boiling-point elevation) कहलाती है। यह तब होता है जब कोई अवाष्पशील विलेय (जैसे, नमक) किसी शुद्ध विलायक (जैसे, जल) में मिश्रित कर दिया जाता है। उदाहरण के लिये, जल का क्वथनांक १०० डिग्री सेल्सियस है, किन्तु यदि जल में नमक मिला दिया जाय तो जल का क्वथानांक, १०० डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है। .

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कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद

कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद कौषीतकि उपनिषद का पूरा नाम है। यह एक ऋग्वेदीय उपनिषद है।कौषीतकि उपनिषद ॠग्वेद के कौषीतकि ब्राह्मण का अंश है। इसमें कुल चार अध्याय हैं। इस उपनिषद में जीवात्मा और ब्रह्मलोक, प्राणोपासना, अग्निहोत्र, विविध उपासनाएं, प्राणतत्व की महिमा तथा सूर्य, चन्द्र, विद्युत मेघ, आकाश, वायु, अग्नि, जल, दर्पण और प्रतिध्वनि में विद्यमान चैतन्य तत्व की उपासना पर प्रकाश डाला गया है। अन्त में 'आत्मतत्त्व' के स्वरूप और उसकी उपासना से प्राप्त फल पर विचार किया गया है। .

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कैल्सियम

कैल्सियम (Calcium) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्तसारणी के द्वितीय मुख्य समूह का धातु तत्व है। यह क्षारीय मृदा धातु है और शुद्ध अवस्था में यह अनुपलब्ध है। किन्तु इसके अनेक यौगिक प्रचुर मात्रा में भूमि में मिलते है। भूमि में उपस्थित तत्वों में मात्रा के अनुसार इसका पाँचवाँ स्थान है। यह जीवित प्राणियों के लिए अत्यावश्यक होता है। भोजन में इसकी समुचित मात्र होनी चाहिए। खाने योग्य कैल्शियम दूध सहित कई खाद्य पदार्थो में मिलती है। खान-पान के साथ-साथ कैल्शियम के कई औद्योगिक इस्तेमाल भी हैं जहां इसका शुद्ध रूप और इसके कई यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। आवर्त सारणी में कैल्शियम का अणु क्रमांक 20 है और इसे अंग्रेजी शब्दों ‘Ca’ से इंगित किया गया है। 1808 में सर हम्फ्री डैवी ने इसे खोजा था। उन्होंने इसे कैल्सियम क्लोराइड से अलग किया था। चूना पत्थर, कैल्सियम का महत्वपूर्ण खनिज स्रोत है। पौधों में भी कैल्शियम पाया जाता है। अपने शुद्ध रूप में कैल्शियम चमकीले रंग का होता है। यह अपने अन्य साथी तत्वों के बजाय कम क्रियाशील होता है। जलाने पर इसमें से पीला और लाल धुआं उठता है। इसे आज भी कैल्शियम क्लोराइड से उसी प्रक्रिया से अलग किया जाता है जो सर हम्फ्री डैवी ने 1808 में इस्तेमाल की थी। कैल्शियम से जुड़े ही एक अन्य यौगिक, कैल्सियम कार्बोनेट को कंक्रीट, सीमेंट, चूना इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अन्य कैल्शियम कंपाउंड अयस्कों, कीटनाशक, दुर्गन्धहर, खाद, कपड़ा उत्पादन, कॉस्मेटिक्स, लाइटिंग इत्यादि में इस्तेमाल किया जाता है। जीवित प्राणियों में कैल्शियम हड्डियों, दांतों और शरीर के अन्य हिस्सों में पाया जाता है। यह रक्त में भी होता है और शरीर की अंदरूनी देखभाल में इसकी विशेष भूमिका होती है। कैल्सियम अत्यंत सक्रिय तत्व है। इस कारण इसको शुद्ध अवस्था में प्राप्त करना कठिन कार्य है। आजकल कैल्सियम क्लोराइड तथा फ्लोरस्पार के मिश्रण को ग्रेफाइट मूषा में रखकर विद्युतविच्छेदन द्वारा इस तत्व को तैयार करते हैं। शुद्ध अवस्था में यह सफेद चमकदार रहता है। परन्तु सक्रिय होने के कारण वायु के आक्सीजन एवं नाइट्रोजन से अभिक्रिया करता है। इसके क्रिस्टल फलक केंद्रित घनाकार रूप में होते हैं। यह आघातवर्ध्य तथा तन्य तत्व है। इसके कुछ गुणधर्म निम्नांकित हैं- साधारण ताप पर यह वायु के ऑक्सीजन और नाइट्रोजन से धीरे धीरे अभिक्रिया करता है, परंतु उच्च ताप पर तीव्र अभिक्रिया द्वारा चमक के साथ जलता है और कैलसियम आक्साइड (CaO) बनाता है। जल के साथ अभिक्रिया कर यह हाइड्रोजन उन्मुक्त करता है और लगभग समस्त अधातुओं के साथ अभिक्रिरिया कर यौगिक बनाता है। इसके रासायनिक गुण अन्य क्षारीय मृदा तत्वों (स्ट्रांशियम, बेरियम तथा रेडियम) की भाँति है। यह अभिक्रिया द्वारा द्विसंयोजकीय यौगिक बनाता है। ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होने पर कैलसियम ऑक्साइड का निर्माण होता है, जिसे कली चूना और बिना बुझा चूना (quiklime) भी कहते हैं। पानी में घुलने पर कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड या शमित चूना या बुझा चूना (slaked lime) बनता है। यह क्षारीय पदार्थ है जिसका उपयोग गृह निर्माण कार्य में पुरतान काल से होता आया है। चूने में बालू, जल आदि मिलाने पर प्लास्टर बनता है, जो सूखने पर कठोर हो जाता है और धीरे-धीरे वायुमण्डल के कार्बन डाइऑक्साइड से अभिक्रिया कर कैलसियम कार्बोनेट में परिणत हो जाता है। कैलसियम अनेक तत्वों (जैसे हाइड्रोजन, फ्लोरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन आयोडीन, नाइट्रोजन सल्फर आदि) के साथ अभिक्रिया कर यौगिक बनता है। कैलसियम क्लोराइड, हाइड्रोक्साइड, तथा हाइपोक्लोराइड का एक मिश्रण और ब्लिचिंग पाउडर कहलाता है जो वस्त्रों आदि के विरंजन में उपयोगी है। कैलसियम कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट भी उपयोगी है। अपाचयक तत्व होने के कारण कैलसियम अन्य धातुओं के निर्माण में काम आता है। कुछ धातुओं में कैलसियम मिश्रित करने पर उपयोगी मिश्र धातुएँ बनती हैं। कैलसियम के यौगिक के अनेक उपयोग हैं। कुछ यौगिक (नाइट्रेट, फॉसफेट आदि) उर्वरक के रूप में उपयोग में आते है। कैलसियम कार्बाइड का उपयोग नाइट्रोजन स्थिरीकरण उद्योग में होता है और इसके द्वारा एसिटिलीन गैस बनाई जाती है। कैलसियम सल्फेट द्वारा प्लास्टर ऑफ पेरिस बनाया जाता है। इसके अतिरक्ति कुछ यौगिक चिकित्सा, पोर्स्लोिन उद्योग, काच उद्योग, चर्म उद्योग तथा लेप आदि के निर्माण में उपयोगी है। भारत के प्राचीन निवासी कैलसियम के यौगिक तत्वों से परिचित थे। उनमें चूना (कैलसियम आक्साइड) मुख्य है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के भग्नावशेषों से ज्ञात होता है तत्कालीन निवासी चूने का उपयोग अनेक कार्यों में करते थे। चूने के साथ कतिपय अन्य पदार्थों के मिश्रण से 'वज्रलेप' तैयार करने का प्राचीन साहित्य में प्राप्त होता है। चरक ने ऐसे क्षारों का वर्णन किया है जिनको विभिन्न समाक्षारों पर चूने की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता था। कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में कोपिया नामक एक स्थान से काँच बनाने के एक प्राचीन कारखाने के अवशेष प्राप्त हुए हैं। उसका काल लगभग पाँचवी शती ईसवी पूर्व अनुमान किया जाता है। वहाँ से मिली काँच की वस्तुओं की परीक्षा से ज्ञात हुआ है कि उस काल के काँच बनाने में चूने का उपयोग होता था। .

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कैल्सियम हाइपोक्लोराइट

कैल्सियम हाइपोक्लोराइट कैल्सियम हाइपोक्लोराइट एक अकार्बनिक यौगिक है। इसका रासायनिक सूत्र Ca(OCl)Cl है। यह एक सफेद बेरवेदार ठोस है। इससे क्लोरीन की तीव्र गन्ध निकलती रहती है। पीने के जल के शु्द्धिकरण में इसका उपयोग किया जाता है। क्लोरोफार्म तथा क्लोरीन गैस बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसे विरंजनचूर्ण (ब्लीचिंग पाउडर) भी कहते हैं। यह चूने का क्लोराइड होता है और देखने में चूने की तरह सफेद होता है पर इसमें क्लोरीन की गंध होती है। इसका निर्माण सर्वप्रथम ग्लैसगो के चार्ल्स टेनैंट ने सन् 1799 में किया था। .

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कैलोरी

कैलोरी (Calorie) ऊर्जा की इकाई है। यह मापन की मीटरी पद्धति का अंग है और इसके संगत एस आई प्रणाली में अब जूल का प्रयोग किया जाता है किन्तु भोजन में निहित ऊर्जा तथा कुछ अन्य उपयोगों में अब भी कैलोरी का ही प्रयोग किया जाता है। १००० कैलोरी को १ किलोकैलोरी कहते हैं। सबसे पहले प्रोफेसर निकोलस क्लीमेण्ट ने १८२४ में कैलोरी को ऊर्जा की इकाई के रूप में परिभाषित किया। १८४२ और १८६७ के मध्य इस शब्द को अंग्रेजी एवं फ्रेंच शब्दकोशों में सम्मिलित किया गया। १ ग्राम जल का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये १ कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है। १ कैलरी लगभग ४.२ जूल के बराबर होती है। .

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कैलोरीमिति

'''विश्व का सबसे पहला हिम-कैलोरीमापी''': इसे सन् 1782-83 में लैवाशिए और लाप्लास ने विभिन्न रासायनिक परिवर्तनों में उत्पन्न ऊष्मा की मात्रा के निर्धारण के लिये प्रयोग किया था। किसी रीति से उष्मा के मापन को उष्मामिति या 'कैलोरीमिति' (calorimetry) कहते हैं। किसी रासायनिक अभिक्रिया में या अवस्था परिवर्तन में या किसी भौतिक या रासायनिक परिवर्तन में या किसी जैविक प्रक्रम (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) जो ऊष्मा उत्पन्न होती है अवशोषित होती है उसकी मात्रा की माप करके पदार्थों अथवा प्रक्रमों की की विशिष्ट ऊष्मा, ऊष्मा धारिता, गुप्त ऊष्मा आदि का निर्धारण किया जा सकता है। ऊष्मामिति का आरम्भ जूल (Joule) के उस प्रयोग से आरम्भ हुआ जो 'कैलोरी के यांत्रिक तुल्यांक' के निर्धारण के लिये किया गया था। वास्तव में यह प्रयोग ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धान्त पर आधारित था। कैलोरीमिति के लिये जो उपकरण उपयोग में लाये जाते हैं उन्हें 'कैलोरीमापी' (calorimeters) कहते हैं! कैलोरीमिति सिद्धांत(principle of calorimetry): जब दो भिन्न भिन्न तापों वाली वस्तुओं को परस्पर रखा जाता है, तो ऊष्मा का प्रवाह उच्च ताप वाली वस्तु से निम्न ताप वाली वस्तु में होता है! .

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केला

मूसा जाति के घासदार पौधे और उनके द्वारा उत्पादित फल को आम तौर पर केला कहा जाता है। मूल रूप से ये दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णदेशीय क्षेत्र के हैं और संभवतः पपुआ न्यू गिनी में इन्हें सबसे पहले उपजाया गया था। आज, उनकी खेती सम्पूर्ण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। केले के पौधें मुसाके परिवार के हैं। मुख्य रूप से फल के लिए इसकी खेती की जाती है और कुछ हद तक रेशों के उत्पादन और सजावटी पौधे के रूप में भी इसकी खेती की जाती है। चूंकि केले के पौधे काफी लंबे और सामान्य रूप से काफी मजबूत होते हैं और अक्सर गलती से वृक्ष समझ लिए जाते हैं, पर उनका मुख्य या सीधा तना वास्तव में एक छद्मतना होता है। कुछ प्रजातियों में इस छद्मतने की ऊंचाई 2-8 मीटर तक और उसकी पत्तियाँ 3.5 मीटर तक लम्बी हो सकती हैं। प्रत्येक छद्मतना हरे केलों के एक गुच्छे को उत्पन्न कर सकता है, जो अक्सर पकने के बाद पीले या कभी-कभी लाल रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। फल लगने के बाद, छद्मतना मर जाता है और इसकी जगह दूसरा छद्मतना ले लेता है। केले के फल लटकते गुच्छों में ही बड़े होते है, जिनमें 20 फलों तक की एक पंक्ति होती है (जिसे हाथ भी कहा जाता है) और एक गुच्छे में 3-20 केलों की पंक्ति होती है। केलों के लटकते हुए सम्पूर्ण समूह को गुच्छा कहा जाता है, या व्यावसायिक रूप से इसे "बनाना स्टेम" कहा जाता है और इसका वजन 30-50 किलो होता है। एक फल औसतन 125 ग्राम का होता है, जिसमें लगभग 75% पानी और 25% सूखी सामग्री होती है। प्रत्येक फल (केला या 'उंगली' के रूप में ज्ञात) में एक सुरक्षात्मक बाहरी परत होती है (छिलका या त्वचा) जिसके भीतर एक मांसल खाद्य भाग होता है। .

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केसीन

गरम करने के बाद दूध से केसीन का विकृतीकरण (Denaturation) एवं अवक्षेपण केसीन स्तनधारी प्राणियों के दूध में पाया जानेवाली फ़ास्फोप्रोटीन है जो कैल्सियम कै सीनेट के रूप में रहता है। इसके अलावा सोयाबीन में भी केसीन पर्याप्त मात्रा में होता है। इसमें लगभग १५ ऐमीनो अम्ल पाए जाते हैं। इसका रंग सफेद से लेकर पीला तक होता है। केसीन, तनु क्षारों और सांद्र अम्लों में विलेय और जल में अविलेय है। अम्ल से अवक्षेपित केसीन कागज पर विलेपन करने, सरेसों (फाइबर्स), पेटों, आसंजकों (Adhedives), वस्त्रोद्योग और खाद्य पदार्थों में काम आता है। श्रेणी:दूध.

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केक

रास्पबेरी जैम और नींबू दही से भरा और बटरक्रीम फ़्रॉस्टिंग के साथ सजाया हुआ एक तह वाला पाऊंड केक भोजन के अंत में परोसा जाने वाला मिष्ठान्न, केक सेंककर तैयार किया हुआ भोज्य पदार्थ है। आमतौर पर कई किस्मों वाला केक का आटा, चीनी, अंडे, मक्खन या तेल का मिश्रण है जिसे घोलने के लिए तरल (आम तौर पर दूध या पानी) और खमीर उठाने वाले पदार्थ (जैसे कि खमीर या बेकिंग पाउडर) की ज़रूरत होती है। स्वाद व महक के लिए अक्सर फलों का गाढ़ा गूदा, मेवे या अर्क मिला दिए जाते हैं और मुख्य सामग्री के अनेक विकल्प सुलभ हैं। अक्सर केक में फलों का मुरब्बा या मिष्ठान्न वाली सॉस (जैसे पेस्ट्री क्रीम) भर दी जाती है, उसके ऊपर मक्खन वाली क्रीम या अन्य आइसिंग लगाकर बादाम और अंडे के सफ़ेद हिस्से का मिश्रण, किनारों पर बिंदियां और चाशनी में डूबे फल लगाकर सजाया जाता है। विशेष रूप से शादी, वर्षगाँठ और जन्मदिन जैसे औपचारिक अवसरों पर अक्सर खाने के बाद मिठाई के तौर पर केक का चुनाव किया जाता है। केक बनाने की अनगिनत पाक विधियां हैं, कुछ रोटी की तरह, कुछ गरिष्ठ और बड़े परिश्रम से तैयार की जाने वाली और अनेक पारम्परिक हैं। किसी ज़माने में केक बनाने (विशेष रूप से अंडे की झाग उठाने में) में काफ़ी मेहनत लगा करती थी लेकिन अब केक बनाना कोई जटिल प्रक्रिया नहीं रही, सेंकने वाले उपकरण और विधियां इतनी सरल हो गई हैं कि कोई भी नौसिखिया केक सेंक सकता है। .

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कॉरोना

पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान, सौर कोरोना को नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है। सूर्य के वर्णमंडल के परे के भाग को किरीट या कोरोना (Corona) कहते हैं। पूर्ण सूर्यग्रहण के समय वह श्वेत वर्ण का होता है और श्वेत डालिया के पुष्प के सदृश सुंदर लगता है। किरीट अत्यंत विस्तृत प्रदेश है और प्रकाश-मंडल के ऊपर उसकी ऊँचाई सूर्य के व्यास की कई गुनी होती है। कॉरोना चाँद या पानी की बूँदों के विवर्तन के द्वारा सूर्य के चारों ओर बनाई गई एक पस्टेल हेलो को कहते हैं। इसका निर्माण प्लाज़्मा द्वारा होता है। ऐसे सिरोस्टरटस के रूप में बादलों में बूंदों और बादल परत स्वयं को लगभग पूरी तरह से समान इस घटना के लिए आदेश में हो रहा होगा.

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कोशिकाद्रव्य

कोशिका के कोशिका झिल्ली के अंदर केन्द्रक को छोड़कर सम्पूर्ण पदार्थों को कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) कहते हैं। यह सभी कोशिकाओं में पाया जाता है तथा कोशिका झिल्ली के अंदर तथा केन्द्रक झिल्ली के बाहर रहता है। यह रवेदार, जेलीनुमा, अर्धतरल पदार्थ है। यह पारदर्शी एवं चिपचिपा होता है। यह कोशिका के 70% भाग की रचना करता है। इसकी रचना जल एवं कार्बनिक तथा अकार्बनिक ठोस पदार्थों से हुई है। इसमें अनेक रचनाएँ होती हैं। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में सभी कोशिकांगों को स्पष्ट नहीं देखा जा सकता है। इन रचनाओं को स्पष्ट देखने के लिए इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी या किसी अन्य अधिक विभेदन क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता पड़ती है। .

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अतितप्त भाप

जल के क्वथनांक से अधिक तापमान वाली भाप अतितप्त भाप (Superheated steam) कहलाती है। .

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अनुप्रयुक्त भूभौतिकी

अनुप्रयुक्त भूभौतिकी (Applied Geophysics), या भूभौतिक पूर्वेक्षण में पृथ्वी के पृष्ठ पर भौतिक मापों के द्वारा अधस्थल (subsurface) भूवैज्ञानिक जानकारियों का संग्रह किया जाता है। इसका उद्देश्य खनिज, पेट्रोलियम, जल, घात्विक निक्षेप, विखंडनीय पदार्थो (fissile material) का स्थान-निर्धारण और बाँध, रेलमार्ग, हवाई अड्डों, सैनिक और कृषि प्रायोजनाओं के निर्माणार्थ सतह के निकटस्थ स्तर के भूवैज्ञानिक लक्षणों से आँकड़ों का संग्रह है। .

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अन्तरिक्ष

अन्तरिक्ष (स्पेस) असीम, तीन-आयामी विस्तार है जिसमें वस्तुएं और घटनाएं होती है और उनकी सापेक्ष स्थिति और दिशा होती है। भौतिक अन्तरिक्ष अक्सर तीन रैखिक आयाम की तरह समझा जाता है, हालांकि आधुनिक भौतिकविद आमतौर पर इसे, समय के साथ, असीम चार-आयामी सातत्यक जिसे स्पेस टाइम कहते है, का एक भाग समझते हैं। गणित में 'अन्तरिक्ष' को विभिन्न आधारभूत संरचनाओं और आयामों की विभिन्न संख्या के साथ समझा जाता है। भौतिक ब्रह्मांड को समझने के लिए अन्तरिक्ष की अवधारणा को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है हालांकि दार्शनिकों के मध्य इस तथ्य को लेकर असहमति जारी है कि यह स्वयं एक इकाई है, या इकाइयों के मध्य एक सम्बन्ध है, या वैचारिक ढांचे का एक हिस्सा है। पारम्परिक यांत्रिकी के प्रारंभिक विकास के दौरान, 17 वीं शताब्दी में कई दार्शनिक प्रश्न उजागर हुए थे। इसाक न्यूटन के अनुसार, अन्तरिक्ष निरपेक्ष था - अर्थात् यह स्थायी रूप से अस्तित्व में है और इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि क्या अन्तरिक्ष में कोई विषयवस्तु थी या नहीं। अन्य प्राकृतिक दार्शनिक, विशेष रूप से गोटफ्राइड लेबनिज़, ने इसके बजाय सोचा कि अन्तरिक्ष वस्तुओं के बीच संबंधों का एक संग्रह था, जो एक दूसरे से उनकी दूरी और दिशा के द्वारा दिया जाता है। 18वीं सदी में, इम्मानुएल काण्ट ने अन्तरिक्ष और समय को संरचनात्मक ढांचे के तत्वों के रूप में वर्णित किया है जिसको मनुष्य अपने अनुभव के निर्माण हेतु उपयोग करते है। 19वीं और 20वीं सदी में गणितज्ञों ने गैर इयूक्लिडियन रेखागणित का परीक्षण करना शुरू कर दिया था जिसमें अन्तरिक्ष को समतल के बजाय वक्रित कह सकते है। अल्बर्ट आइंस्टाइन का सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के आसपास का अन्तरिक्ष इयूक्लिडियन अन्तरिक्ष से विसामान्य होता है। सामान्य सापेक्षता के प्रायोगिक परीक्षण ने यह पुष्टि की है कि गैर इयूक्लिडियन अन्तरिक्ष प्रकाशिकी और यांत्रिकी के और मौजूदा सिद्धांतो की व्याख्या हेतु एक बेहतर मॉडल उपलब्ध कराता है। .

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अन्जेल्स एंड डेमन्स (देवदूत और शैतान)

अन्ज्लेस एंड डेमोंस 2000सबसे ज्यादा बिकने वाला एक रहस्यमय रोमांचकारी उपन्यास है; जो अमेरिकी लेखक डैन ब्राउन द्वारा लिखा गया है और पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है। यह काल्पनिक हार्वर्ड यूंनिवेर्सिटी (विश्वविद्यालय) के सिम्बोलोजिस्ट रोबेर्ट लैंगडन की ilumi(illuminati) नामक गुप्त समाज के रहस्यों को उजागर करने और विनाशकारी इलुमिनटी एंटीमीटर का प्रयोग करके वेटिकन सिटी का विनाश करने वाली साजिश का पर्दाफाश करने की इच्छा के चारों और घूमता हैl यह उपन्यास विशेष रूप से धर्म और विज्ञान के बीच ऐतिहासिक संघर्ष को प्रकट करता हैl यह सघर्ष इलुमीनटी और रोमन कैथोलिक चर्च के बीच मे हैl यह उपन्यास राबर्ट लैंगडन (रोबेर्ट लैंगडन) नामक पात्र का परिचय देता हैl रॉबर्ट लैंगडन (Robert langdan) ब्राउन के बाद में आने वाले उपन्यास 2003 काविन्ची कोड और 2009 का उपन्यास लोस्ट सिम्बल के नायकभी हैl इसमें बहुत सारे शेलीगत तत्व हैं - जैसे गुप्त समाज की साजिशें, एक दिन की समय सीमा और केथोलिक चर्च प्राचीन इतिहास, वास्तुकला और प्रतीकों का भी भारी प्रयोग इस पुस्तक में हैंl एक फिल्म अनुकूलन 15 मई 2009 को जारी किया गया था; हालांकि यह दा विंची कोड (The Vinci Code) फिल्म की घटनाओं के बाद किया गया था;जो 2006 मैं दिखाई गयी थीl .

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अपशिष्ट जलोपचार

अपशिष्ट जल (Wastewater) को उपचारित करने के प्रक्रम को अपशिष्ट जलोपचार (वेस्टवाटर ट्रीटमेन्ट) कहते हैं। अपशिष्ट जल उस जल को कहते हैं जो अब उस काम में नहीं आ सकता जो इसके ठीक पहले इससे किया गया है। अपशिष्ट जल का उपचार करने के बाद प्राप्त जल का पुनः उपयोग किया जा सकता है या उसे बहुत कम पर्यावरणीय क्षति के बहिस्रावित कर दिया जा सकता है जिससे वह पुनः जल चक्र में मिल जाता है। 'उपचार' (ट्रीटमेन्ट) का मतलब अपशिष्ट जल से अशुद्धियों को निकालना है। उपचार की कुछ विधियाँ साधारण जल और अपशिष्ट जल दोनों के उपचार में काम आतीं हैं। अपशिष्ट जल का उपचार करने वाले संयंत्र को 'अपशिष्ट जलोपचार संयंत्र' (wastewater treatment plant) कहते हैं। जर्मनी का एक अपशिष्ट जलोपचार संयंत्र श्रेणी:पर्यावरण इंजीनियरी श्रेणी:जल प्रदूषण श्रेणी:सफाई.

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अपजल

अपजल अथवा अपशिष्ट जल, वह कोई भी जल है जिसकी गुणवत्ता, मानवीय प्रभाव के कारण प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई हो। नगरों में इस अपशिष्ट जल का वहन आमतौर से किसी संयुक्त सीवर या स्वच्छता सीवर के द्वारा किया जाता है, तथा तदोपरान्त इसका उपचार किसी अपजल उपचार संयंत्र या सेप्टिक टैंक के मार्फत किया जाता है। उपचारित अपजल का निस्तारण एक निस्सारी मलप्रणाल (सीवर) के माध्यम से किसी जल निकाय में किया जाता है। मल तथा मूत्र से संदूषित मलजल को भी अक्सर, अपजल का ही एक प्रकार माना जाता है। मलजल में घरेलू, नगरपालिका या औद्योगिक तरल अपशिष्ट उत्पाद शामिल होते है जिनका निपटान किसी नाले या मलप्रणाल के द्वारा किया जाता है। कभी कभी इसे एक निर्वात अपशिष्ट संग्राहक वाहन (ट्रक के उपर लगे टैंक पर लगा निर्वात पंप), के द्वारा भी निपटाया जाता है। मल-व्यवस्था या सीवरेज वह भौतिक बुनियादी ढांचा है जिसमें पाइपों, पंपों, स्क्रीन और नालियों की एक प्रणाली होती है जिसके द्वारा अपजल का वहन उसके उद्गम स्थल से उसके उपचार स्थल तक किया जाता है। कुछ मामलों जैसे कि सेप्टिक टैंक प्रणाली में मलजल का उपचार उसके उद्गम स्थल पर ही किया जाता है। .

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अम्ल

अम्ल एक रासायनिक यौगिक है, जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन (H+) देता है। इसका pH मान 7.0 से कम होता है। जोहान्स निकोलस ब्रोंसटेड और मार्टिन लॉरी द्वारा दी गई आधुनिक परिभाषा के अनुसार, अम्ल वह रासायनिक यौगिक है जो प्रतिकारक यौगिक (क्षार) को हाइड्रोजन आयन (H+) प्रदान करता है। जैसे- एसीटिक अम्ल (सिरका में) और सल्फ्यूरिक अम्ल (बैटरी में).

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अमोनिया

अमोनिया एक तीक्ष्म गंध वाली रंगहीन गैस है। यह हवा से हल्की होती है तथा इसका वाष्प घनत्व ८.५ है। यह जल में अति विलेय है। अमोनिया के जलीय घोल को लिकर अमोनिया कहा जाता है यह क्षारीय प्रकृति का होता है। जोसेफ प्रिस्टले ने सर्वप्रथम अमोनियम क्लोराइड को चूने के साथ गर्म करके अमोनिया गैस को तैयार किया। बर्थेलाट ने इसके रासायनिक गठन का अध्ययन किया तथा इसको बनाने वाले तत्वों को पता लगाया। प्रयोगशाला में अमोनियम क्लोराइड तथा बुझे हुए सूखे चूने के मिश्रण को गर्म करके अमोनिया गैस तैयार की जाती है। .

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अलसी

अलसी या तीसी समशीतोष्ण प्रदेशों का पौधा है। रेशेदार फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इसके रेशे से मोटे कपड़े, डोरी, रस्सी और टाट बनाए जाते हैं। इसके बीज से तेल निकाला जाता है और तेल का प्रयोग वार्निश, रंग, साबुन, रोगन, पेन्ट तैयार करने में किया जाता है। चीन सन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। रेशे के लिए सन को उपजाने वाले देशों में रूस, पोलैण्ड, नीदरलैण्ड, फ्रांस, चीन तथा बेल्जियम प्रमुख हैं और बीज निकालने वाले देशों में भारत, संयुक्त राज्य अमरीका तथा अर्जेण्टाइना के नाम उल्लेखनीय हैं। सन के प्रमुख निर्यातक रूस, बेल्जियम तथा अर्जेण्टाइना हैं। तीसी भारतवर्ष में भी पैदा होती है। लाल, श्वेत तथा धूसर रंग के भेद से इसकी तीन उपजातियाँ हैं इसके पौधे दो या ढाई फुट ऊँचे, डालियां बंधती हैं, जिनमें बीज रहता है। इन बीजों से तेल निकलता है, जिसमें यह गुण होता है कि वायु के संपर्क में रहने के कुछ समय में यह ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। विशेषकर जब इसे विशेष रासायनिक पदार्थो के साथ उबला दिया जाता है। तब यह क्रिया बहुत शीघ्र पूरी होती है। इसी कारण अलसी का तेल रंग, वारनिश और छापने की स्याही बनाने के काम आता है। इस पौधे के एँठलों से एक प्रकार का रेशा प्राप्त होता है जिसको निरंगकर लिनेन (एक प्रकार का कपड़ा) बनाया जाता है। तेल निकालने के बाद बची हुई सीठी को खली कहते हैं जो गाय तथा भैंस को बड़ी प्रिय होती है। इससे बहुधा पुल्टिस बनाई जाती है। आयुर्वेद में अलसी को मंदगंधयुक्त, मधुर, बलकारक, किंचित कफवात-कारक, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचने में भारी, गरम, पौष्टिक, कामोद्दीपक, पीठ के दर्द ओर सूजन को मिटानेवाली कहा गया है। गरम पानी में डालकर केवल बीजों का या इसके साथ एक तिहाई भाग मुलेठी का चूर्ण मिलाकर, क्वाथ (काढ़ा) बनाया जाता है, जो रक्तातिसार और मूत्र संबंधी रोगों में उपयोगी कहा गया है। .

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अस्त्र शस्त्र

---- अंगारपर्ण पर अग्नेयास्त्र छोड़ते हुए अर्जुन प्राचीन आर्यावर्त के आर्यपुरुष अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण थे। उन्होंने अध्यात्म-ज्ञान के साथ-साथ आततियों और दुष्टों के दमन के लिये सभी अस्त्र-शस्त्रों की भी सृष्टि की थी। आर्यों की यह शक्ति धर्म-स्थापना में सहायक होती थी। प्राचीन काल में जिन अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग होता था, उनका वर्णन इस प्रकार है-.

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अंटार्कटिक हिमचादर

अंटार्कटिक हिमचादर (Antarctic ice sheet) पृथ्वी की दो ध्रुवीय हिम टोपियों में से एक है। अंटार्कटिका महाद्वीप का ९८% भूभाग इस हिमचादर द्वारा ढका हुआ है। NASA image by Robert Simmon, based on data from Joey Comiso, GSFC.

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अंतर्वाह (जलविज्ञान)

जलविज्ञान के संदर्भ में, किसी जलनिकाय में जल का अंतर्वाह या अंत:प्रवाह उस निकाय के जल का स्रोत है। इसे किसी नियत समय या समय इकाई के दौरान जलनिकाय में आने वाले जल की औसत मात्रा (आयतन) के रूप में भी संदर्भित किया जा सकता है। यह बहिर्वाह का विपरीत है। सभी जलनिकायों में अंतर्वाह के एकाधिक स्रोत होते हैं, लेकिन अक्सर, कोई एक प्रवाह स्रोत अन्य स्रोतों की अपेक्षा अधिक प्रबल होता है, हालाँकि कई मामलों में, कोई एक विशेष प्रवाह स्रोत प्रबल ना होकर कई स्रोत प्रबल होते हैं। किसी झील के लिए, अंतर्वाह का स्रोत एक नदी या जलधारा हो सकती है जो इसी झील मे गिरती हो। अंतर्वाह का एक अन्य स्रोत वर्षण जैसे कि वर्षा भी हो सकता है। .

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अंकन

भाषाविज्ञान और संकेतविज्ञान में अंकन (notation) चित्रालेखों, चिन्हों, अक्षरों या अन्य संक्षिप्त व्यंजकों की प्रणाली होती है जिनके द्वारा किसी वैज्ञानिक या कलात्मक अध्ययन की शाखा में तकनीकी तथ्य और मापी गई मात्राएँ प्रदर्शित की जाती है। किसी अंकित चिन्ह का क्या अर्थ है, यह उस अध्ययन में जुटे विशेषज्ञों द्वारा आपसी सहमति से और ऐतिहासिक प्रयोग के आधार पर स्थापित कर लिया जाता है। उदाहरण के लिये रसायन शास्त्र में रासायनिक सूत्र दर्शाने के लिये हर रासायनिक तत्व के लिये एक अंकन चुना गया है, जिसके अनुसार पानी है। .

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अंकुरण क्रिया

अंकुरण क्रिया उस क्रिया को कहते हैं, जिसमें बीज एक पौधे में बदलने लगता है। इसमें अंकुरण की क्रिया के समय एक छोटा पौधा बीज से निकलने लगता है। यह मुख्य रूप से तब होता है, जब बीज को आवश्यक पदार्थ और वातावरण मिल जाता है। इसके लिए सही तापमान, जल और वायु की आवश्यकता होती है। रोशनी का हर बीज के लिए होना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कुछ बीज बिना रोशनी के अंकुरित नहीं होते हैं। .

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उत्तरजीविता कौशल

उत्तरजीविता कौशल या अतिजीविता कौशल (सर्वाइवल स्किल्स) वे तकनीकें हैं जिनका उपयोग एक व्यक्ति किसी खतरनाक स्थिति (उदाहरण प्राकृतिक आपदा) में अपने आप को या दूसरों को बचाने के लिए कर सकता है (बुशक्राफ्ट भी देखें).

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उदासीनीकरण अभिक्रिया

जिन अभिक्रियाओं में अम्ल तथा क्षार क्रिया करके जल एवं लवण बनाते हैं उन क्रियाओं को रसायन विज्ञान में उदासीनीकरण अभिक्रिया (neutralization) कहते हैं। .

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उदकगति अभियांत्रिकी

उदकगति अभियांत्रिकी (Hydraulic engineering) सिविल अभियांत्रिकी की एक शाखा है जिसमें द्रवों के बहाव और परिवहन का अध्ययन करा जाता है। इसमें स्वच्छ जल व मल-वाले गन्दे पानी पर अधिक ध्यान दिया जाता है, हालांकि अन्य द्रव भी इसका भाग हैं। पुलों, बांधों, नहरों, इत्यादि का निर्माण इसके अंग हैं और इसका सम्बन्ध स्वास्थ्य व पर्यावरण अभियांत्रिकी दोनों से है। .

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उल्टी

200px आमाशय के अन्दर के पदार्थों को बलपूर्वक शरीर के बाहर निकालने की क्रिया को उल्टी या वमन (Vomiting) कहते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि गैस्ट्रीक, जहर या मस्तिष्क का ट्यूमर इत्यादि.

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उष्णकटिबंधीय चक्रवात

इसाबेल तूफान (2003) के रूप में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के 7 अभियान के दौरान कक्षा से देखा. आंख, आईव़ोल और आसपास के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की विशेषता rainbands स्पष्ट रूप से कर रहे हैं अंतरिक्ष से इस दृश्य में दिखाई देता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तूफान प्रणाली है जो एक विशाल निम्न दबाव केंद्र और भारी तड़ित-झंझावातों द्वारा चरितार्थ होती है और जो तीव्र हवाओं और घनघोर वर्षा को उत्पन्न करती है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति तब होती है जब नम हवा के ऊपर उठने से गर्मी पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप नम हवा में निहित जलवाष्प का संघनन होता है। वे अन्य चक्रवात आंधियों जैसे नोर'ईस्टर, यूरोपीय आंधियों और ध्रुवीय निम्न की तुलना में विभिन्न ताप तंत्रों द्वारा उत्पादित होते है, अपने "गर्म केंद्र" आंधी प्रणाली के वर्गीकरण की ओर अग्रसर होते हुए.

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छद्मनगरीकरण

जब किसी स्थान पर कोई बड़ा शहर बन जाता है किन्तु उस शहर की जनसंख्या के अनुरूप अधोसंरचना का विकास नहीं हो पाता तो इसे छद्मनगरीकरण (Pseudo-urbanization) या छद्म-शहरीकरण कहते हैं। छद्मनगरीकरण की स्थिति में नगर की जनसंख्या तो बढ़ जाती है किन्तु आवास, शिक्षा, स्वच्छ जल, यातायात, विद्युत तथा सफाई आदि कि समुचित व्यवस्था का अभाव ही बना रह जाता है (जैसा कि गाँवों में होता है)। ऐसी स्थिति प्राय: विकाशशील या अविकसित देशों के नगरों में पायी जाती है। श्रेणी:विकास श्रेणी:सभ्यता.

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छाछ

छाछ, मट्ठा या तक्र (Buttermilk) एक पेय है जो दही से बनता है। मूलत: दही को मथनी से मथकर घी निकालने के बाद बचे हुए द्रव को छाछ कहते थे। आजकल दूध के किण्वन से बने हुए अनेक पेय भी छाछ की श्रेणी में गिने जाते हैं। ये पेय गरम जलवायु वाले देशों (जैसे भारत) में बहुत लोकप्रिय हैं। आयुर्वेद में तक्र को बहुत उपयोगी माना गया है। आयुर्वेद के एक आचार्य का कथन है- भोजनान्ते पिबेत्‌ तक्रं, दिनांते च पिबेत्‌ पय:। निशांते पिबेत्‌ वारि: दोषो जायते कदाचन:। यानी भोजन के बाद छाछ, दिनांत यानी शाम को दूध, निशांत यानी सुबह पानी पीने वाले के शरीर में कभी किसी तरह का दोष या रोग नहीं होता। इसलिए भोजन के बाद मट्‌ठा पीना स्वास्थ्य के लिए ठीक माना जाता है। .

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ॐ नमः शिवाय

देवनागरी लिपि में "ॐ नमः शिवाय" मंत्र लैटिन लिपि) इस रूप में प्रकट हुआ है ॐ नमः शिवाय (IAST: Om Namaḥ Śivāya) यह सबसे लोकप्रिय हिंदू मंत्रों में से एक है और शैव सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण मंत्र है। नमः शिवाय का अर्थ "भगवान शिव को नमस्कार" या "उस मंगलकारी को प्रणाम!" है। इसे शिव पञ्चाक्षर मंत्र या पञ्चाक्षर मंत्र भी कहा जाता है, जिसका अर्थ "पांच-अक्षर" मंत्र (ॐ को छोड़ कर) है। यह भगवान शिव को समर्पित है। यह मंत्र श्री रुद्रम् चमकम् और रुद्राष्टाध्यायी में "न", "मः", "शि", "वा" और "य" के रूप में प्रकट हुआ है। श्री रुद्रम् चमकम्, कृष्ण यजुर्वेद का हिस्सा है और रुद्राष्टाध्यायी, शुक्ल यजुर्वेद का हिस्सा है। श्रेणी:ग़ैर हिन्दी भाषा पाठ वाले लेख पञ्चाक्षर के रूप में 'नमः शिवाय' मंत्र त्रिपुण्ड्र से सजा हुआ शिवलिंग  .

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१८६९ का राजपूताना अकाल

१८६९ का राजपूताना अकाल जिसे ग्रेट राजपूताना अकाल भी कहा जाता है इसके अलावा हम इस अकाल को बुंदेलखंड अकाल भी कह सकते हैं 'ये अकाल १८६९ में पड़ा था ' इसमें १९६.००० वर्ग मील (७७०,००० किलोमीटर) प्रभावित हुए थे तथा उस वक्त की जनसंख्या लगभग ४४,५००,००० जिसमें मुख्य रूप से राजपूताना,अजमेर,भारत प्रभावित हुआ था ' इनके अलावा गुजरात,उत्तरी डेक्कन ज़िले,जबलपुर संभाग,आगरा और बुंदेलखंड संभाग और पंजाब का हिसार संभाग भी काफी प्रभावित हुए थे ' .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

तोय, नीर, पानी, जल (पानी), अंबु

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