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चे ग्वेरा

सूची चे ग्वेरा

अर्नेस्तो "चे" गेवारा (स्पेनी: Ernesto Che Guevara; १४ जून १९२८ – ९ अक्टूबर १९६७), अर्जेन्टीना के मार्क्सवादी क्रांतिकारी थे जिन्होंने क्यूबा की क्रांति में मुख्य भूमिका निभाई। इन्हें एल चे या सिर्फ चे भी बुलाया जाता है। ये डॉक्टर, लेखक, गुरिल्ला नेता, सामरिक सिद्धांतकार और कूटनीतिज्ञ भी थे, जिन्होंने दक्षिणी अमरीका के कई राष्ट्रों में क्रांति लाकर उन्हें स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया। इनकी मृत्यु के बाद से इनका चेहरा सारे संसार में सांस्कृतिक विरोध एवं वामपंथी गतिविधियों का प्रतीक बन गया है। चिकित्सीय शिक्षा के दौरान चे पूरे लातिनी अमरीका में काफी घूमे। इस दौरान पूरे महाद्वीप में व्याप्त गरीबी ने इन्हें हिला कर रख दिया। Speech by Che Guevara to the Cuban Militia on August 19, 1960 इन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इस गरीबी और आर्थिक विषमता के मुख्य कारण थे एकाधिप्तय पूंजीवाद, नवउपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद, जिनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका था - विश्व क्रांति। A speech by Che Guevara to the Second Economic Seminar of Afro-Asian Solidarity in Algiers, Algeria on February 24, 1965 इसी निष्कर्ष का अनुसरण करते हुए इन्होंने गुआटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान के द्वारा किए जा रहे समाज सुधारों में भाग लिया। उनकी क्रांतिकारी सोच और मजबूत हो गई जब १९५४ में गुज़मान को अमरीका की मदद से हटा दिया गया। इसके कुछ ही समय बाद मेक्सिको सिटी में इन्हें राऊल कास्त्रो और फिदेल कास्त्रो मिले और ये क्यूबा की २६ जुलाई क्रांति में शामिल हो गए। चे शीघ्र ही क्रांतिकारियों की कमान में दूसरे स्थान तक पहुँच गए और बातिस्ता के राज्य के विरुद्ध दो साल तक चले अभियान में इन्होंने मुख्य भूमिका निभाई।"Castro's Brain" 1960.

13 संबंधों: द मोटरसाइकिल डायरीज़ (फिल्म), नागरिकता, फिदेल कास्त्रो, फ्रेडरिक एंगेल्स, बकार्डी, बोलिविया, रोलेक्स, स्पार्टाकस, कार्ल मार्क्स, क्यूबा की क्रांति, क्यूबाई क्रान्ति में फिदेल कास्त्रो, क्रांतिकारी, १९२०

द मोटरसाइकिल डायरीज़ (फिल्म)

द मोटरसाइकिल डायरीज़ (2004, Diarios de motocicleta) 23 वर्षीय अर्नेस्टो ग्वेरा की यात्रा और लिखित संस्मरण पर आधारित एक जीवनीक फ़िल्म है, जो वर्षों बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आइकानिक मार्क्सवादी क्रांतिकारी चे ग्वेरा के रूप में विख्यात हुए.

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नागरिकता

नागरिकता (Citizenship) एक विशेष सामाजिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय, या मानव संसाधन समुदाय का एक नागरिक होने की अवस्था है। सामाजिक अनुबंध के सिद्धांत के तहत नागरिकता की अवस्था में अधिकार और उत्तरदायित्व दोनों शामिल होते हैं। "सक्रिय नागरिकता" का दर्शन अर्थात् नागरिकों को सभी नागरिकों के जीवन में सुधार करने के लिए आर्थिक सहभागिता, सार्वजनिक, स्वयंसेवी कार्य और इसी प्रकार के प्रयासों के माध्यम से अपने समुदाय को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए.

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फिदेल कास्त्रो

फिदेल ऐलेजैंड्रो कास्त्रो रूज़ (जन्म: 13 अगस्त 1926 - मृत्यु: 25 नवंबर 2016) क्यूबा के एक राजनीतिज्ञ और क्यूबा की क्रांति के प्राथमिक नेताओं में से एक थे, जो फ़रवरी 1959 से दिसम्बर 1976 तक क्यूबा के प्रधानमंत्री और फिर क्यूबा की राज्य परिषद के अध्यक्ष (राष्ट्रपति) रहे, उन्होंने फरवरी 2008 में अपने पद से इस्तीफा दिया। फ़िलहाल वे क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सचिव थे। 25 नवंबर 2016 को उनका निधन हो गया। वे एक अमीर परिवार में पैदा हुए और कानून की डिग्री प्राप्त की। जबकि हवाना विश्वविद्यालय में अध्ययन करते हुए उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की और क्यूबा की राजनीति में एक मान्यता प्राप्त व्यक्ति बन गए। उनका राजनीतिक जीवन फुल्गेंकियो बतिस्ता शासन और संयुक्त राज्य अमेरिका का क्यूबा के राष्ट्रहित में राजनीतिक और कारपोरेट कंपनियों के प्रभाव के आलोचक रहा है। उन्हें एक उत्साही, लेकिन सीमित, समर्थक मिले और उन्होंने अधिकारियों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने मोंकाडा बैरकों पर 1953 में असफल हमले का नेतृत्व किया जिसके बाद वे गिरफ्तार हो गए, उन पर मुकदमा चला, वे जेल में रहे और बाद में रिहा कर दिए गए। इसके बाद बतिस्ता के क्यूबा पर हमले के लिए लोगों को संगठित और प्रशिक्षित करने के लिए वे मैक्सिको के लिए रवाना हुए.

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फ्रेडरिक एंगेल्स

फ्रेडरिक एंगेल्स (२८ नवंबर, १८२० – ५ अगस्त, १८९५ एक जर्मन समाजशास्त्री एवं दार्शनिक थे1 एंगेल्स और उनके साथी साथी कार्ल मार्क्स मार्क्सवाद के सिद्धांत के प्रतिपादन का श्रेय प्राप्त है। एंगेल्स ने 1845 में इंग्लैंड के मजदूर वर्ग की स्थिति पर द कंडीशन ऑफ वर्किंग क्लास इन इंग्लैंड नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने मार्क्स के साथ मिलकर 1848 में कम्युनिस्ट घोषणापत्र की रचना की और बाद में अभूतपूर्व पुस्तक "पूंजी" दास कैपिटल को लिखने के लिये मार्क्स की आर्थिक तौर पर मदद की। मार्क्स की मौत हो जाने के बाद एंगेल्स ने पूंजी के दूसरे और तीसरे खंड का संपादन भी किया। एंगेल्स ने अतिरिक्त पूंजी के नियम पर मार्क्स के लेखों को जमा करने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई और अंत में इसे पूंजी के चौथे खंड के तौर पर प्रकाशित किया गया। .

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बकार्डी

बकार्डी एक परिवार-नियंत्रित शराब की कंपनी है, जिसे रम के साथ-साथ बकार्डी सुपीरियर और बकार्डी 151 के निर्माता के रूप में सबसे अच्छी तरह जाना जाता है। कंपनी की बिक्री लगभग 100 देशों में प्रति वर्ष 200 मिलियन बोतलों से भी अधिक है। 2007 में कंपनी की बिक्री 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो 2006 में 4.9 बिलियन डॉलर से अधिक थी। बकार्डी का मुख्यालय हैमिल्टन, बरमूडा में है और इसके पास निदेशकों की एक 16-सदस्यीय समिति है जिसका नेतृत्व इसके मूल संस्थापक के परपोते के बेटे, फैकंडो एल.

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बोलिविया

बोलीविया (/bəlɪviə/; स्पेनिश:बोलीविया; अंग्रेजी: Bolivia), जिसे आधिकारिक तौर पर बोलीविया बहुराष्ट्रीय देश के रूप में जाना जाता है, पश्चिमी-मध्य दक्षिण अमेरिका में स्थित एक स्थलरुद्ध देश है। इसकी राजधानी सूक्रे है जबकि सरकारी परिसर ला पाज में स्थित है। सबसे बड़ा शहर और प्रमुख आर्थिक और वित्तीय केंद्र सांता क्रूज़ डी ला सिएरा है, जो ल्लोनोस ओरिएंटलस (उष्णकटिबंधीय निचले इलाकों) पर स्थित है, जो बोलीविया के पूर्व में स्थित अधिकांश सपाट क्षेत्र है। यह संवैधानिक रूप से एकतापूर्ण राज्य है, जो नौ प्रांतों में विभाजित है। इसकी भूगोल पश्चिम में एंडीज़ की चोटी से, पूर्वी निचले इलाके में, अमेज़ॅन बेसिन के भीतर स्थित है। यह उत्तर और पूर्व में ब्राजील द्वारा, दक्षिण-पूर्व में पैराग्वे द्वारा, दक्षिण में अर्जेंटीना द्वारा, दक्षिण-पश्चिम में चिली द्वारा और उत्तर-पश्चिम में पेरू द्वारा सीमाबद्ध है। देश का एक-तिहाई हिस्सा एंडीज़ पर्वत श्रृंखला पर स्थित है।1,098,581 किमी2 (424,164 वर्ग मील) के क्षेत्रफल के साथ, बोलीविया दक्षिण अमेरिका का 5वाँ सबसे बड़ा देश और दुनिया का 27वाँ सबसे बड़ा देश है। 1.1 करोड़ की अनुमानित देश की आबादी, बहु जातिय है, जिसमें इंडियन, मेस्टिज़ो, युरोपीयन, एशियाई और अफ्रीकी शामिल हैं। स्पेनिश उपनिवेशवाद से उत्पन्न नस्लीय और सामाजिक अलगाव आधुनिक युग तक जारी है। स्पेनिश आधिकारिक और प्रमुख भाषा है, हालांकि 36 स्वदेशी भाषाओं को भी आधिकारिक स्थिति प्राप्त है, जिनमें से सबसे अधिक बोली जाने वाली गुआरानी, ​​आयमारा और क्वेचुआ भाषाएं हैं। स्पेनिश उपनिवेशीकरण से पहले, बोलीविया का पर्वतीय क्षेत्र इंका साम्राज्य का हिस्सा था, जबकि उत्तरी और पूर्वी निचले इलाकों में स्वतंत्र जनजातियों का निवास था। कुज़्को और असुन्सियोन से आये स्पेनिश विजयविदों ने 16वीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया। स्पेनिश औपनिवेशिक काल के दौरान बोलीविया को चार्कास के शाही दरबार द्वारा प्रशासित किया जाता था। स्पेन ने बोलीविया की खानों से निकाले गए चांदी पर अपने साम्राज्य का एक बड़ा हिस्सा बनाया। 1809 में आजादी के लिए पहली बार आवाहन के बाद, 16 साल तक चले युद्ध के बाद गणतंत्र की स्थापना की गई, और इसे सिमोन बोलिवर नाम दिया गया। 19वीं और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बोलिविया ने पड़ोसी देशों को कई परिधीय क्षेत्रों पर नियंत्रण खो दिया, जिसमें 1879 में चिली द्वारा अपनी तटरेखा का कब्जा शामिल है। 1971 तक बोलिविया अपेक्षाकृत राजनीतिक रूप से स्थिर रहा, इसके बाद ह्यूगो बेंजर ने तख्ता पलट कर जुआन जोसे टोरेस की अस्थिर सरकार को गिरा कर सैन्य तानाशाही स्थापित की; 1976 में अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में टॉरेस की हत्या कर दी गई थी। राष्ट्रपति बेंजर ने देश की तेजी से आर्थिक विकास की अगुवाई की, जिसने देश को स्थिर करने का काम किया, हालांकि उनका शासन वामपंथी और समाजवादी विपक्षी और असंतोष के अन्य रूपों पर टूट गया, जिसके परिणामस्वरूप कई बोलीवियन नागरिकों को यातना और मौत के घाट उतरना पड़ा। 1978 में बेंजर को हटा दिया गया और बाद में 1997 से 2001 तक बोलिविया में लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित राष्ट्रपति का शासन लौट आया। 2006 से एवो मोरालेस देश के राष्ट्रपति है। आधुनिक बोलीविया संयुक्त राष्ट्र, आईएमएफ, एनएएम, ओएएस, एक्टो, बैंक ऑफ द साउथ, एएलबीए और यूएसएएन का प्रमुख सदस्य है। एक दशक से अधिक तक बोलीविया लैटिन अमेरिका में सबसे तेजी से आर्थिक विकास करने वाले देशों में से एक था, हालांकि यह दक्षिण अमेरिका के सबसे गरीब देशों में से एक बना हुआ है। यह एक विकासशील देश है, जिसकी मानव विकास सूचकांक में मध्यम श्रेणी है। यहाँ गरीबी का स्तर 38.6 प्रतिशत है, और यह लैटिन अमेरिका में सबसे कम अपराध दरों में से एक है। इसकी मुख्य आर्थिक गतिविधियों में कृषि, वानिकी, मछली पकड़ना, खनन, और कपड़ा, कपड़े, परिष्कृत धातुओं और परिष्कृत पेट्रोलियम जैसे विनिर्माण सामान शामिल हैं। बोलीविया खनिज, विशेष रूप से टिन में बहुत समृद्ध है। .

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रोलेक्स

रोलेक्स एसए (Rolex SA) उच्च गुणवत्ता वाली, विलासिता कलाई-घड़ी का स्विस निर्माता है। रोलेक्स घड़ी को रुतबे का प्रतीक माना जाता है और बिज़नेसवीक पत्रिका ने रोलेक्स को 100 सबसे मूल्यवान वैश्विक ब्रांडों की 2007 की वार्षिक सूची में #71 पर रखा है। रोलेक्स, घड़ी की सबसे बड़ी एकल लक्जरी ब्रांड है, जो प्रतिदिन 2,000 घड़ियों का उत्पादन करती है और जिसका राजस्व अनुमान के आधार पर करीब यूएस$3 बीलियन (£1.75) (3.02 CHF बीलियन) (2003 के आंकड़े).

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स्पार्टाकस

स्पार्टाकस (Σπάρτακος, Spártakos, Spartacus) (लगभग. 109 ई.पू. - 71 ई.पू.) रोमन साम्राज्य के खिलाफ एक व्यापक दास विद्रोह में जिसे तीसरा दास युद्ध कहा जाता है, दासों का सबसे उल्लेखनीय नेता था। स्पार्टाकस के बारे में युद्ध की घटनाओं से परे ज्यादा कुछ ज्ञात नहीं है और उपलब्ध ऐतिहासिक विवरण कभी-कभी विरोधाभासी हो जाते हैं और हमेशा विश्वसनीय नहीं हो सकते। वह एक निपुण सैन्य नेता था। स्पार्टाकस के संघर्ष ने 19 वीं सदी के बाद से आधुनिक लेखकों के लिए नए मायने अख्तियार किये हैं, जिसे अभिजात वर्ग के दास मालिकों के खिलाफ पददलित लोगों द्वारा अपनी स्वतंत्रता हासिल करने के लिए लड़ी गई लड़ाई के रूप में देखा जाता है। स्पार्टाकस का विद्रोह कई आधुनिक राजनीतिक और साहित्यिक लेखकों के लिए प्रेरणादायक सिद्ध हुआ है, जिससे स्पार्टाकस प्राचीन और आधुनिक, दोनों संस्कृतियों में एक लोक नायक बन कर उभरा है। .

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कार्ल मार्क्स

कार्ल हेनरिख मार्क्स (1818 - 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समाजवाद का प्रणेता थे। इनका जन्म 5 मई 1818 को त्रेवेस (प्रशा) के एक यहूदी परिवार में हुआ। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। 17 वर्ष की अवस्था में मार्क्स ने कानून का अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। तत्पश्चात्‌ उन्होंने बर्लिन और जेना विश्वविद्यालयों में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। इसी काल में वह हीगेल के दर्शन से बहुत प्रभावित हुए। 1839-41 में उन्होंने दिमॉक्रितस और एपीक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन पर शोध-प्रबंध लिखकर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात्‌ 1842 में मार्क्स उसी वर्ष कोलोन से प्रकाशित 'राइनिशे जीतुंग' पत्र में पहले लेखक और तत्पश्चात्‌ संपादक के रूप में सम्मिलित हुआ किंतु सर्वहारा क्रांति के विचारों के प्रतिपादन और प्रसार करने के कारण 15 महीने बाद ही 1843 में उस पत्र का प्रकाशन बंद करवा दिया गया। मार्क्स पेरिस चला गया, वहाँ उसने 'द्यूस फ्रांजोसिश' जारबूशर पत्र में हीगेल के नैतिक दर्शन पर अनेक लेख लिखे। 1845 में वह फ्रांस से निष्कासित होकर ब्रूसेल्स चला गया और वहीं उसने जर्मनी के मजदूर सगंठन और 'कम्युनिस्ट लीग' के निर्माण में सक्रिय योग दिया। 1847 में एजेंल्स के साथ 'अंतराष्ट्रीय समाजवाद' का प्रथम घोषणापत्र (कम्युनिस्ट मॉनिफेस्टो) प्रकाशित किया 1848 में मार्क्स ने पुन: कोलोन में 'नेवे राइनिशे जीतुंग' का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुआ। वह पेरिस होते हुए लंदन चला गया जीवन पर्यंत वहीं रहा। लंदन में सबसे पहले उसने 'कम्युनिस्ट लीग' की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई। अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। उसका 'नेवे राइनिश जीतुंग' भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया। कोलकाता, भारत 1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष 'जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी' नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग थी, जो उसने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती। अत: उसने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल, हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन मास्‍को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित किया। 'द कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए। 'वर्गसंघर्ष' का सिद्धांत मार्क्स के 'वैज्ञानिक समाजवाद' का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं। 1864 में लंदन में 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' की स्थापना में मार्क्स ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ की सभी घोषणाएँ, नीतिश् और कार्यक्रम मार्क्स द्वारा ही तैयार किये जाते थे। कोई एक वर्ष तक संघ का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा, किंतु बाकुनिन के अराजकतावादी आंदोलन, फ्रांसीसी जर्मन युद्ध और पेरिस कम्यूनों के चलते 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो गया। किंतु उसकी प्रवृति और चेतना अनेक देशों में समाजवादी और श्रमिक पार्टियों के अस्तित्व के कारण कायम रही। 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' भंग हो जाने पर मार्क्स ने पुन: लेखनी उठाई। किंतु निरंतर अस्वस्थता के कारण उसके शोधकार्य में अनेक बाधाएँ आईं। मार्च 14, 1883 को मार्क्स के तूफानी जीवन की कहानी समाप्त हो गई। मार्क्स का प्राय: सारा जीवन भयानक आर्थिक संकटों के बीच व्यतीत हुआ। उसकी छह संतानो में तीन कन्याएँ ही जीवित रहीं। .

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क्यूबा की क्रांति

300px फिदेल कास्त्रो द्वारा २६ जुलाई को क्यूबा के राष्ट्रपति फल्गेंसियो बतिस्ता (Fulgencio Batista) के विरुद्ध किया गया सशस्त्र विद्रोह क्यूबा की क्रान्ति (1953–1959) कहलाता है। जुलाई १९५३ में आरम्भ हुआ यह विप्लव १ जनवरी १९५९ को समाप्त हुआ जब क्यूबा की सरकार अपदस्थ करके क्रान्तिकारी समाजवादी राज्य की स्थापना हुई। यह आन्दोलन बाद के वर्षों में साम्यवादी रास्ते पर चल पड़ा और अक्टूबर १९६५ में कम्युनिस्ट पार्टी बनी। वर्तमान समय में साम्यवादी दल के नेता केस्त्रो के भाई राउल (Raúl) हैं। पचास के दशक के अन्तिम वर्ष में घटित हुई क्यूबा की सशस्त्र क्रांति अमेरिकी साम्राज्यवाद पर राष्ट्रवाद और मार्क्सवाद के गठजोड़ की विजय के तौर पर जानी जाती है। इस क्रांति का नेतृत्व फ़िदेल कास्त्रो के संगठन ‘26 जुलाई मूवमेंट’ के हाथों में था। सारे विश्व के वामपंथी युवाओं को अनुप्राणित करने वाली चे गुएवारा जैसी हस्ती इसी क्रांति की देन थी। 1 जनवरी, 1959 को क्रांति की सफलता के कारण क्यूबा के तानाशाह फुलगेनसियों बतिस्ता को देश छोड़ कर भाग जाना पड़ा, और युवा छापामार योद्धाओं ने सत्ता पर अधिकार कर लिया। क्रांति की यह प्रक्रिया अपने अनूठेपन के कारण हथियारबंद तरीकों से सत्ता पर कब्ज़ा करने की एक विशिष्ट विधि के रूप में चर्चित हुई। इसके पैरोकारों ने दावा किया कि प्रतिबद्ध छापामारों का दल क्रांति सम्पन्न कर सकता है और उसके लिए व्यापक जनता को गोलबंद करने या उनकी राजनीतिक चेतना उन्नत करने के लिए दीर्घकालीन प्रयास करना एक पूर्व-शर्त नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा में फ़िदेल कास्त्रो के शासन को अपदस्थ करने की कई कोशिशें कीं, लेकिन वह नाकाम रहा। धीरे-धीरे क्यूबा न केवल उत्तरी अमेरिका में बल्कि सारी दुनिया में अमेरिका विरोध का ध्रुव बनता चला गया। नब्बे के दशक में सारी दुनिया में समाजवादी खेमा ढह जाने के बावजूद क्यूबा में कम्युनिस्ट शासन आज तक जारी है। क्यूबा की क्रांति का मूल उसके औपनिवेशिक अतीत में निहित है। लातीनी अमेरिका के अधिकतर देशों ने 1810- 25 के बीच स्पेनी (और पुर्तगाली) उपनिवेशवाद से आजादी हासिल कर ली थी। लेकिन क्यूबा 1898 तक स्पेनी उपनिवेश बना रहा। इस तरह यह अमेरिकी महाद्वीप में सबसे अंत में आज़ाद होने वाला देश था। अंततः इसे जोसे मार्ती के नेतृत्व में हुए दूसरे स्वतंत्रता संग्राम (1895-98) में आज़ादी तो हासिल हुई, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों का सत्ता पर कब्ज़ा नहीं हुआ। क्यूबा रणनीतिक दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। इसके अलावा यहाँ होने वाली गन्ने की खेती पर भी अमेरिका की नजर थी। इसलिए अमेरिका ने यहाँ की राजनीति में खुल कर दिलचस्पी ली और अपने हित साधने के लिए तैयार शासकों को समर्थन दिया। इस प्रक्रिया में क्यूबा की स्थिति ऐसी हो गयी जैसे एक औपनिवेशिक शासक की जगह दूसरा औपनिवेशिक शासक आ गया हो। इस घटनाक्रम का परिणाम यह निकला कि क्यूबा का राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन अमेरिका के प्रभाव और नियंत्रण के विरुद्ध संघर्ष बन गया। 1933 के आंदोलन को क्यूबा की क्रांति के विकास के अगले अध्याय के रूप में देखा जाना चाहिए। इसने स्वतंत्रता के संघर्ष में एक नये चरण की ओर संकेत किया। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस आंदोलन ने ख़ुद को श्रमिक वर्ग के संगठन और समाजवादी परम्परा के संदर्भ में परिभाषित किया। इस आंदोलन के कारण ही कुछ समय के लिए क्यूबा में प्रगतिशील सरकार बनी। लेकिन इसके थोड़े ही समय बाद सत्ता बतिस्ता के हाथ में आ गयी जिसने फिर से क्यूबा को अमेरिकी आर्थिक और राजनीतिक हितों से जोड़ दिया। दरअसल, बतिस्ता और उसके आंदोलन ने क्यूबा में जेराडो मकाडो की तानाशाही समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। 1933 में वह सेना का प्रमुख था। उस समय क्यूबा का शासन चलाने वाली पाँच सदस्यीय प्रेसीडेंसी पर उसका प्रभावकारी नियंत्रण था। 1940 तक दिखावटी राष्ट्रपतियों पर नियंत्रण रखने वाला बतिस्ता इसी वर्ष ख़ुद राष्ट्रपति बन गया। उसने क्यूबा में नया संविधान लागू किया। वह अपने समय के हिसाब से प्रगतिशील था। 1944 में राष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद वह अमेरिका गया और 1952 में वापस आ कर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा। चुनावों में हारने के बाद बतिस्ता ने सेना की मदद से तख्तापलट करके 1952 में अपनी तानाशाही कायम कर ली। बहरहाल, 1933 के घटनाक्रम के बाद राष्ट्रवादी राजनीति की धाराएँ उभरने लगी थीं। एक ओर आर्टोडॉक्स थे जो मार्ती की परम्परा पर जोर देते थे। दूसरी ओर, डायरेक्टोरियो रेवोल्यूशनेरियो थे जो 1933 में हुए आंदोलन के नेता आंटोनियो गुटेरस से प्रभावित थे। ये दमनकारी राज्य के खिलाफ हिंसक कार्रवाई पर जोर देते थे। फ़िदेल कास्त्रो भी इसी विचार से प्रभावित थे, लेकिन उन पर मार्ती के जुझारू व्यक्तित्व का भी काफी प्रभाव था। 1933 के बाद के दौर में क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी, जिसकी स्थापना 1925 में हुई थी, सोवियत संघ के प्रभाव में अपनी कार्यदिशा बदलती रही। 1935 के बाद वह बतिस्ता के साथ सहयोग करने लगी। इसलिए क्रांतिकारी राष्ट्रवाद पर विश्वास करने वाले फ़िदेल कास्त्रो जैसे युवक कम्युनिस्टों को संदेह की निगाह से देखने लगे। दूसरी ओर कम्युनिस्टों ने भी रैडिकल राष्ट्रवादियों की इस आधार पर आलोचना की कि वे वर्ग आधारित विश्लेषण के बजाय राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को संगठित करने की कोशिश कर रहे हैं। बायें से दांये: फिदेल कास्त्रो, Osvaldo Dorticós, चे गुएरा, Regino Boti, Augusto Martínez तथा Antonio Núñez. ०५ मार्च १९६० को हवाना के में क्युब्रे (Coubre) विस्फोट के शिकार लोगों की याद में मार्च 1952 के बाद क्रांति की अगुआयी के लिए डायरेक्टोरियो और कास्त्रो के बीच नेतृत्व के लिए होड़ शुरू हो गयी जो आगे भी चलती रही। लेकिन इन दोनों में समानता यह थी कि ये दोनों ही 1933 के संघर्षों को अपनी बुनियाद मानते थे। 26 जुलाई, 1953 में आर्टोडॉक्सो समूह के युवकों ने सेना पर हमला किया। इस समूह में फ़िदेल कास्त्रो भी शामिल थे। यह हमला बेहद प्रभावशाली था और इसमें बतिस्ता की सेना के बहुत से जवान मारे गये। लेकिन इसके परिणामस्वरूप कास्त्रो और बाकी विद्रोहियों को गिरक्रतार भी होना पड़ा। बतिस्ता ने पकड़े गये विद्रोहियों में से कई को बहुत प्रताड़ित किया और बहुतों को मौत की सजा भी सुनायी गयी। ख़ुद कास्त्रो पर भी मुकदमा चलाया गया और उन्हें 15 साल की सजा दी गयी। मुकदमे के दौरान कास्त्रो द्वारा अपने बचाव में दी गयी दलीलों का ऐतिहासिक महत्त्व है। उन्होंने देश में फैले भ्रष्टाचार पर हमला किया और 1940 के उदारतावादी संविधान को फिर से लागू करने पर बल दिया। कास्त्रो ने छोटे किसानों को जमीन का पट्टा देने, विदेशी स्वामित्व वाली बड़ी सम्पत्तियों के राष्ट्रीयकरण और दूसरे देशों के लोगों के स्वामित्व वाले कारख़ानों में मजदूरों को फायदा देने जैसे कार्यक्रमों की माँग की। इसके अलावा कास्त्रो ने सार्वजनिक सेवाओं के राष्ट्रीयकरण, लगान में कटौती और शिक्षा में सुधार पर भी बल दिया। इस तरह कास्त्रो ने क्रांति के बाद के क्यूबा की तस्वीर पेश की। फ़िदेल कास्त्रो और दूसरे बागी नेताओं के साथ हुए बरताव ने जन-आक्रोश को भी बढ़ाया। इसके विरोध में हुए विरोध प्रदर्शनों के कारण जुलाई, 1955 में एमनेस्टी लॉ का इस्तेमाल करके कास्त्रो को जेल से रिहा कर दिया गया। कास्त्रो इसके छह हक्रते बाद देश छोड़ कर मैक्सिको चले गये लेकिन उन्होंने वायदा किया वे अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए वापस आयेंगे। कास्त्रो के विदेश जाने के बाद भी उनके द्वारा बनाया गया संगठन सक्रिय रहा जिसे 26 जुलाई मूवमेंट (जे- 26-एम) के नाम से जाना गया। कास्त्रो का लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट था। वे नये सशस्त्र विद्रोहियों की सेना तैयार करना चाहते थे। उन्हें भरोसा था कि क्रांतिकारियों की कार्रवाई से जन-विद्रोह पैदा होगा। इसी नजरिये के तहत मैक्सिको में फ़िदेल कास्त्रो ने अपने हथियारबंद गुरिल्ला दस्ते तैयार करने की कोशिश की। इसके अलावा वे राजनीतिक गठजोड़ बनाने की कोशिश भी करते रहे। यहीं उनकी मुलाकात एक युवा दंत-चिकित्सक अर्नेस्टो चे गुएवारा से हुई। दोनों ही गुरिल्ला युद्ध द्वारा क्रांति करने की संकल्पना पर सहमत थे। दोनों को ही स्पेनिश युद्ध के वरिष्ठ योद्धा अलबर्टो बायो ने मैक्सिको में चाल्को के एक फार्म में प्रशिक्षित किया। कास्त्रो और चे ने दिसम्बर, 1956 में मोटर विसेज ग्रेनमा से 82 गुरिल्ला लड़ाकों के साथ क्यूबा वापस आने की योजना बनायी। लेकिन जब 3 दिसम्बर, 1956 को वे क्यूबा के तट पर पहुँचे तो इन्हें बतिस्ता के सैनिकों का सामना करना पड़ा। उनकी मदद के लिए जे-26-एम के शहरी इलाकों के सदस्य आये थे, लेकिन वे इंतज़ार करके चले गये क्योंकि कास्त्रो के छापामार निश्चित तारीख (30 नवंबर) के बजाय काफ़ी देर से पहुँचे थे। बतिस्ता के सैनिकों के हमले में अधिकांश गुरिल्ला लड़ाके मारे गये। लेकिन फ़िदेल, चे और फ़िदेल के छोटे भाई राउल कास्त्रो इस हमले में बच गये। तकरीबन 15 दिनों के बाद घायल अवस्था में ये लोग सियेरा मेस्तरा के जंगलों में एक-दूसरे से मिले। उन्होंने शहर में जे-26-एम से सम्पर्क कायम किया और जंगलों में ही गुरिल्ला लड़ाकों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। लेकिन यहाँ के ग़रीब किसानों को प्रशिक्षित क्रांतिकारी बनाना बहुत मुश्किल था। किसान कभी भी क्रांति का काम छोड़ कर खेती करने के लिए वापस जाने को तैयार रहते थे। या विरोधी ख़ेमा उन्हें पैसे आदि का लालच देकर अपने पक्ष में खींच सकता थे। चे गुएवारा के लिए यह ज़्यादा चिंता की बात थी। इसलिए उन्होंने सख्त अनुशासन तथा अनुशासन तोड़ने वाले को सख्त सजा देने पर बल दिया। दूसरी तरफ़ एक समस्या यह भी थी कि क्यूबा में काम करने वाले दूसरे क्रांतिकारी संगठन, मसलन डायरेक्टोरियो और 26 जुलाई मूवमेंट, का शहरी नेतृत्व कास्त्रो और चे की गुरिल्ला योजनाओं से पूरी तरह सहमत नहीं था। क्यूबा कम्युनिस्ट पार्टी भी इनकी आलोचक थी। ख़ुद चे और फ़िदेल के बीच भी कम्युनिस्ट लक्ष्यों को लेकर मतभेद था। चे का ज्यादा जोर मार्क्सवाद की ओर था, जबकि कास्त्रो पर क्यूबाई राष्ट्रवाद का गहरा प्रभाव था। बहरहाल, धीरे-धीरे जे-26-एम पर कास्त्रो ख़ेमे का प्रभाव हो गया और इस दल के शहरी ख़ेमे के नेता फ्रैंक पायस की 30 जुलाई, 1957 को हत्या कर दी गयी। अप्रैल 1958 में कास्त्रो ने अपने दल की ओर से पूर्ण युद्ध घोषणा-पत्र जारी किया। इसमें उन्होंने लोगों से अप्रैल, 1958 में आम हड़ताल करने का आह्वान किया। यद्यपि यह हड़ताल बहुत सफल नहीं रही, लेकिन इसने बतिस्ता के ख़िलाफ़ विरोध को और ज़्यादा बढ़ाया। इसके कारण कास्त्रो अन्य समूहों से अधिक नजदीकी सहयोग कायम करने के लिए प्रेरित हुए। 20 जुलाई को उन्होंने एकता घोषणा-पत्र जारी किया। इस पर डयरेक्टेरियो और जे-एम-26 सहित आठ संगठनों ने अपने हस्ताक्षर किये। लेकिन क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी ने इसमें शामिल नहीं हुई। बहरहाल, यह घोषणा-पत्र बतिस्ता के विरोधियों के एकजुट होने का भी प्रमाण था। इसमें लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों को कायम करने की पूरी योजना पेश की गयी। यह घोषणा-पत्र एक तरह से इस बात का भी प्रमाण था कि बाकी विद्रोही समूह भी फ़िदेल कास्त्रो के नेतृत्व को स्वीकार करने लगे थे। धीरे-धीरे बतिस्ता की सत्ता पर पकड़ भी कमज़ोर होती गयी। नवम्बर में वैधता हासिल करने के लिए बतिस्ता शासन ने दिखावे के लिए चुनाव कराये। इन चुनावों में बड़े पैमाने पर धाँधली हुई, इसलिए इसके नतीजों को कोई वैधता नहीं मिली। बतिस्ता और विद्रोही समूहों के बीच बढ़ता टकराव दिसम्बर में चरम पर पहुँच गया। दिसम्बर, 1958 में कास्त्रो के सहयोगी चे ने सेंटा कालरा शहर में 350 छापामारों के साथ बतिस्ता के चार हज़ार गार्डों को तीन दिन की लड़ाई के बाद हरा दिया। इसमें चे ने रणनीतिक कुशलता का परिचय देते हुए उस ट्रेन को शहर में आने से रोक दिया जिसमें रक्षक दल के लिए हथियार आ रहे थे। सरकारी सेना हार गयी। इसके तीन दिन बाद 31 दिसम्बर, 1958 को बतिस्ता देश छोड़कर भाग गया। बीसवीं सदी के इतिहास में क्यूबा की क्रांति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसने यह दिखाया कि किस तरह युवा लड़ाके गुरिल्ला छापामार युद्ध के द्वारा सत्ता में बदलाव कर सकते हैं। अमेरिका के विरोध के बावजूद क्रांतिकारी सफल हुए। अमेरिका ने क्रांति के बाद काफ़ी कोशिशें कीं लेकिन वह क्यूबा में फ़िदेल के शासन और प्रभाव को ख़त्म नहीं कर पाया। अमूमन क्यूबा की क्रांति में फ़िदेल, चे और उनके दल 26-एम जुलाई के योगदान पर ही बल दिया जाता है। लेकिन क्यूबा के भीतर के दूसरे समूहों, उदाहरण के लिये, डायरेक्टोरियो ने भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। फ़िदेल कास्त्रो और उनका दल क्रांतिकारी राष्ट्रवाद द्वारा प्रगतिशील समाजवादी लक्ष्यों को हासिल करना चाहता था। लेकिन इस क्रांति और इसके बाद सामने आयी व्यवस्था में लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं और मूल्यों को कोई तरजीह नहीं दी गयी। चे ग्वेवारा ने बाद में क्यूबाई क्रांति के मॉडल को दूसरी जगहों पर भी लागू करने की कोशिश की लेकिन उन्हें नाकामी हाथ लगी। .

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क्यूबाई क्रान्ति में फिदेल कास्त्रो

क्यूबाई क्रांतिकारी और राजनेता फिदेल कास्त्रो ने क्यूबाई क्रांति में 1953 से 1959 तक हिस्सा लिया। अपने प्रारंभिक जीवन से फिदेल कास्त्रो ने फुलगेन्सियो बातिस्ता की सैनिक सरकार का एक अर्थ-सैनिक संगठन "आन्दोलन" के ज़रिए तख़्ता पटने का फ़ैसला किया। जुलाई 1953 में उसने मोनकादा बैरकों पर असफल हमले का प्रयास किया जिसके दौरान कई छापामार मारे गए और कास्त्रो गिरफ़्तार हुए। सुनवाई के दौरान कास्त्रो ने अपनी हरकतों का पक्ष लिया और अपना प्रसिद्ध "इतिहास मुझे निर्दोष पाएगा" भाषण प्रस्तुत किया, जिसके बाद उसे 15 साल मॉडल कारावास की सज़ा इज़्ला दे ला युवेनतूद में सुनाई गई। फिदेल कास्त्रो के गिरोह को जुलाई 26 के आन्दोलन (एम आर 26-7) के रूप में पुनःनामकरण करते हुए बातिस्ता सरकार ने मई 1955 में उसे क्षमा किया क्योंकि सरकार को फिदेल से किसी भी प्रकार की राजनैतिक चुनौती नहीं लग रही थी। एम आर 26-7 की नवीनीकरण करके फिदेल अपने भाई राउल कास्त्रो के साथ मेक्सिको फ़रार हो गया। यहाँ इन लोगों की मुलाक़ात अर्जेण्टीना के मार्क्स्वादी नेता चे ग्वेरा से हुई और इन लोगों ने एकत्रित होकर एक छोटे से क्रान्तिकारी दल का गठन किया जिसका लक्ष्य बातिस्ता का तख़्ता पलटना था। नम्बर 1956 में कास्त्रो और 81 क्रान्तिकारियों ने मेक्सिको से "ग्रांमा के माध्यम से समुद्र की यात्रा की और तेज़ी से लॉस लॉस कायूएलोस पर उतरे। बातिस्ता की सेना से हमले के कारण ये लोग सिएरा माएस्त्रा पहाड़ियों में भाग आए जहाँ 19 सुरक्षित लोगों ने कैम्प खड़ा किया जहाँ से सेना से युद्ध के प्रयास शुरू हुए। कुछ नई भर्तियों के कारण इस छापा-मार सेना की संख्या 200 हो गई। इस दल ने अन्य क्यूबा के अन्य क्रान्तिकारी दलों से तालमेल किया और कास्त्रो एक "अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित व्यक्ति" बन गए जब दि न्यूयार्क टाइम्स में उनका इन्टर्व्यू छपा। 1958 में बातिस्ता ने जवाबी आक्रमण ऑपरेशन वेरानो प्रारंभ किया। पर उसकी सेना द्वारा पारम्परिक युद्ध की रणनीति कास्त्रो की छापा-मार नीतियों का मुक़ाबला नहीं कर पाई और अंततः एम आर 26-7 सिएरा माएस्त्रा से आगे बढ़कर ओरियंत और लास वियस अधिकांश भागों पर सत्ता जमा चुके थे। इस बात को भाँपते हुए कि युद्ध उसके हाथ से निकल रही थी, बातिस्ता दोमिनिकन गणराज्य चला गया जबकि फ़ौजी नेता यूलोगियो कांतियो ने देश की बाग-डोर संभाली। जब क्रान्तिकारी बलों ने अधिकांश क्यूबा पर क़ब्ज़ा जमाया, कास्त्रो ने कांतियो की गिरफ़्तारी के आदेश जारी किए जबकि मॅनुएल उरुतिया ल्येओ को राष्ट्रपति और होज़े मीरो कार्दोना को प्रधान मंत्री बनाकर एक अल्पकालीन सरकार गठन हुआ ताकि ऐसे क़ानून बनाए जाएँ जिनसे बातिस्ता-दल को निर्बल किया जाए। .

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क्रांतिकारी

क्रांतिकारी, यह वो व्यक्ति है जो अत्याचार और उपनिवेशवाद के विरुद्ध क्रांति मे सक्रिय रूप में भाग लेता है या अत्याचार और उपनिवेशवाद के विरुद्ध क्रांति की वकालत करता है। .

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१९२०

कोई विवरण नहीं।

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