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चिदंबरम मंदिर

सूची चिदंबरम मंदिर

चिदंबरम मंदिर (சிதம்பரம் கோயில்) भगवान शिव को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है जो मंदिरों की नगरी चिदंबरम के मध्य में, पौंडीचेरी से दक्षिण की ओर 78 किलोमीटर की दूरी पर और कुड्डालोर जिले के उत्तर की ओर 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, कुड्डालोर जिला भारत के दक्षिणपूर्वीय राज्य तमिलनाडु का पूर्व-मध्य भाग है। संगम क्लासिक्स विडूवेल्वीडुगु पेरुमटक्कन के पारंपरिक विश्वकर्माओं के एक सम्माननीय खानदान की ओर संकेत करता है जो मंदिर पुनर्निर्माण के प्रमुख वास्तुकार थे। मंदिर के इतिहास में कई जीर्णोद्धार हुए हैं, विशेषतः पल्लव/चोल शासकों के द्वारा प्राचीन एवम पूर्व मध्ययुगीन काल के दौरान.

3 संबंधों: चिदंबरम, बृहदेश्वर मन्दिर, मुत्तुस्वामी दीक्षित

चिदंबरम

चिदंबरम तमिलनाडु के कडलूर जिले में मौजूद नगरपालिका है। यह चिदंबरम मंदिर के लिये प्रसिद्ध है। श्रेणी:तमिल नाडु के शहर.

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बृहदेश्वर मन्दिर

बृहदेश्वर मंदिर का प्रवेश द्वार बृहदेश्वर अथवा बृहदीश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। बृहदेश्वर मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट नि‍र्मि‍त है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता, वास्‍तुशिल्‍प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है। इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक प्रथम राजराज चोल ने करवाया था। उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है। यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। इसके तेरह (13) मंजिलें भवन (सभी हिंदू अधिस्थापनाओं में मंजिलो की संख्या विषम होती है।) की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। यह कला की प्रत्येक शाखा - वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का भंडार है। यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृत व तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। जिस पाषाण पर यह कलश स्थित है, अनुमानत: उसका भार 2200 मन (80 टन) है और यह एक ही पाषाण से बना है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम्‌ के भीतर एक चौकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। तंजौर में अन्य दर्शनीय मंदिर हैं- तिरुवोरिर्युर, गंगैकोंडचोलपुरम तथा दारासुरम्‌। .

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मुत्तुस्वामी दीक्षित

मुत्तुस्वामी दीक्षितर् या मुत्तुस्वामी दीक्षित (1775-1835) दक्षिण भारत के महान् कवि व रचनाकार थे। वे कर्नाटक संगीत के तीन प्रमुख व लोकप्रिय हस्तियों में से एक हैं। उन्होने 500 से अधिक संगीत रचनाएँ की। कर्नाटक संगीत की गोष्ठियों में उनकी रचनाऐं बहुतायत में गायी व बजायी जातीं हैं। वे रामस्वामी दीक्षित के पुत्र थे। उनके दादा का नाम गोविन्द दीक्षितर् था। उनका जन्म तिरुवारूर या तिरुवरूर् या तिरुवैय्यारु (जो अब तमिलनाडु में है) में हुआ था। मुत्तुस्वामि का जन्म मन्मथ वर्ष (ये भी तमिल पंचांग अनुसार), तमिल पंचांग अनुसार पंगुनि मास (हिन्दु पंचांग अनुसार फाल्गुन मास; यद्यपि वास्तविकता तो यह है उनके जन्म का महिना अगर हिन्दु पंचांग के अनुसार देखा जाए तो भिन्न होगा, हिन्दू व दक्षिण भारतीय पंचांगों में कुछ भिन्नता अवश्य होती है), कृत्तिका नक्षत्र (तमिल पंचांग अनुसार) में हुआ था। मुत्तुस्वामी का नाम वैद्येश्वरन मन्दिर में स्थित सेल्वमुत्तु कुमारस्वामी के नाम पर रखा था। ऐसी मान्यता है कि मुत्तुस्वामी का जन्म उनके माता और पिता के भगवान् वैद्येश्वरन (या वैद्येश) की प्रार्थना करने से हुआ था। मुत्तुस्वामी के दो छोटे भाई, बालुस्वामी और चिन्नस्वामी थे, और उनकी बहन का नाम बालाम्बाल था। मुत्तुस्वामी के पिता रामस्वामी दीक्षित ने ही राग हंसध्वनि का उद्भव किया था। मुत्तुस्वामी ने बचपन से ही धर्म, साहित्य, अलंकार और मन्त्र ज्ञान की शिक्षा आरम्भ की और उन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पिता से ली थी। मुत्तुस्वामी के किशोरावस्था में ही, उनके पिता ने उन्हें चिदंबरनथ योगी नामक एक भिक्षु के साथ तीर्थयात्रा पर संगीत और दार्शनिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेज दिया था। इस तीर्थयात्रा के दौरान, उन्होंने उत्तर भारत के कई स्थानों का दौरा किया और धर्म और संगीत पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त किया जो उनकी कई रचनाओं में परिलक्षित होती थी। काशी (वाराणसी) में अपने प्रवास के दौरान, उनके गुरु चिदंबरनाथ योगी ने मुत्तुस्वामी को एक अद्वितीय वीणा प्रदान की और उसके शीघ्र बाद ही उनका निधन हो गया। चिदंबरनाथ योगी की समाधि अब भी वाराणसी के हनुमान घाट क्षेत्र में श्रीचक्र लिंगेश्वर मंदिर में देखा जा सकता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

चिदम्बरम मन्दिर्

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