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चित्रकला

सूची चित्रकला

राजा रवि वर्मा कृत 'संगीकार दीर्घा' (गैलेक्सी ऑफ म्यूजिसियन्स) चित्रकला एक द्विविमीय (two-dimensional) कला है। भारत में चित्रकला का एक प्राचीन स्रोत विष्णुधर्मोत्तर पुराण है। .

81 संबंधों: चित्रण, चित्रा मुद्गल, चीनी भाषा और साहित्य, एम टी वी आचार्य, दृश्य कला, देवर्षि रमानाथ शास्त्री, नून मीम राशिद, पट्टचित्र, पाल सिनाक, पिएर पॉल प्रूधों, पुनर्जागरण, पुस्तकालय का इतिहास, प्रेम कहानियाँ, पृथ्वीराज चौहान, पी एस वारियर, फ़िल्म, बशोली, बुंदेलखंड के शासक, बोतोलोमो कादुसी, बीरबल साहनी, भारतीय चित्रकला, भारतीय मूर्तिकला, भक्ति आन्दोलन, मधुबनी, मधुबनी चित्रकला, महादेवी वर्मा, मानविकी, माक्स लीबरमान, मिठूसेन, म्हेर खाचत्र्यान, मृदु शक्ति, मैसूर चित्रकला, मैक्स क्लिंजर, रायल अकादमी, राजस्थान विश्वविद्यालय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ, रेखाचित्र, ललित कला, ललित कला अकादमी, लारेंस बिन्यन, लिओनार्दो दा विंची, श्री शङ्कराचार्य संस्कृत सर्वकलाशाला, श्रीपाद दामोदर सतवलेकर, सावित्री बाई खानोलकर, सिंह (पशु), संयुक्त राज्य अमेरिका में अमेरिकी मूल-निवासी, संस्कार भारती, सुनील दास, सेम्युल एफ.बी. मोर्स, हेमचन्द्राचार्य संस्कृत पाठशाला, ..., जामिनी राय, जेसी वाग, वर्णक, वाजिद खान, विधा, विमा (गणित), विरूप-चित्रण, विलियम मेकपीस थैकरे, विश्व देवालय (पैन्थियन), रोम, विष्णुप्रसाद राभा, व्यंग्यचित्र, व्यौहार राममनोहर सिंहा, वृंदावनलाल वर्मा, खलील जिब्रान, खाड़ी युद्ध, गुलाम मोहम्मद शेख, ओरहान पामुक, आधुनिकतावाद, आंतोन मेंग्स राफेल, इटली का इतिहास, इस्लामी कला, कला, कलाकृति, के एम करिअप्पा, केदार शर्मा, अर्पिता सिंह, अली ज़फ़र, अश्‍लील ग्रंथ, अक्षरांकन, उत्तर प्रदेश, उत्तर प्रदेश का इतिहास सूचकांक विस्तार (31 अधिक) »

चित्रण

जेस्सी विकॉक्स स्मिथ के चित्रण. चित्रण रेखांकन, चित्रकारी, छायांकन या कला के अन्य कार्यों के रूप में प्रस्तुत प्रदर्शित मानसदर्शन का एक रूप है, जिसे ग्राफ़िक रूप से दृश्य प्रस्तुति देकर ऐन्द्रिक जानकारी (जैसे कहानी, कविता या समाचारपत्र लेख) की स्पष्ट व्याख्या करने या निर्धारित करने के लिए बनाया जाता है। .

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चित्रा मुद्गल

चित्रा मुद्गल हिन्दी की वरिष्ठ कथालेखिका हैं। उनका जीवन किसी रोमांचक प्रेम-कथा से कम नहीं है। उन्नाव के जमींदार परिवार में जन्मी किसी लड़की के लिए साठ के दशक में अंतरजातीय प्रेमविवाह करना आसान काम नहीं था। लेकिन चित्रा जी ने तो शुरू से ही कठिन मार्ग के विकल्प को अपनाया। पिता का आलीशान बंगला छोड़कर 25 रुपए महीने के किराए की खोली में रहना और मजदूर यूनियन के लिए काम करना - चित्रा ने हर चुनौती को हँसते-हँसते स्वीकार किया। १० दिसम्बर १९४४ को जनमी चित्रा मुद्गल की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक ग्राम निहाली खेड़ा (जिला उन्नाव, उ.प्र.) से लगे ग्राम भरतीपुर के कन्या पाठशाला में। हायर सेकेंडरी पूना बोर्ड से की और शेष पढ़ाई मुंबई विश्वविद्यालय से। बहुत बाद में स्नातकोत्तर पढ़ाई पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से एस.एन.डी.टी.

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चीनी भाषा और साहित्य

चीनी साहित्य अपनी प्राचीनता, विविधता और ऐतिहासिक उललेखों के लिये प्रख्यात है। चीन का प्राचीन साहित्य "पाँच क्लासिकल" के रूप में उपलब्ध होता है जिसके प्राचीनतम भाग का ईसा के पूर्व लगभग 15वीं शताब्दी माना जाता है। इसमें इतिहास (शू चिंग), प्रशस्तिगीत (शिह छिंग), परिवर्तन (ई चिंग), विधि विधान (लि चि) तथा कनफ्यूशियस (552-479 ई.पू.) द्वारा संग्रहित वसंत और शरद-विवरण (छुन छिउ) नामक तत्कालीन इतिहास शामिल हैं जो छिन राजवंशों के पूर्व का एकमात्र ऐतिहासिक संग्रह है। पूर्वकाल में शासनव्यवस्था चलाने के लिये राज्य के पदाधिकारियों को कनफ्यूशिअस धर्म में पारंगत होना आवश्यक था, इससे सरकारी परीक्षाओं के लिये इन ग्रंथों का अध्ययन अनिवार्य कर दिया गया था। कनफ्यूशिअस के अतिरिक्त चीन में लाओत्स, चुआंगत्स और मेन्शियस आदि अनेक दार्शनिक हो गए हैं जिनके साहित्य ने चीनी जनजीवन को प्रभावित किया है। .

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एम टी वी आचार्य

एम टी वी आचार्य (1920-1992) एक चित्रकार, बाल पुस्तकों के चित्रकार और कला के शिक्षक थे। लोकप्रिय भारतीय बच्चों की पत्रिका चंदामामा के लिए आज उन्हें याद किया जाता है। आचार्य ने मैसूर दशेहरा प्रदर्शनी में अपने छात्र जीवन के दौरान अपनी चित्रकारी के लिए पुरस्कार जीता था। प्रारंभ में उन्होंने बंगलौर में हिंदुस्तान विमान के साथ काम किया। अपनी पहली चित्र प्रदर्शनी 1945 में चेन्नई में थे। उन्होंने 1947 में तमिल बाल पत्रिका चंदामामा में शामिल हो गए और बाद में कन्नड़ संस्करण के संपादक बने। उन्होंने चंदामामा के लिए कई कवर चित्रित किया। 1963 और 1965 के बीच वे कन्नड़ दैनिक तैनादु के कला निर्देशक रहे। बाद में उनहोंने बंगलौर में अपने खुद के कला विद्यालय की स्थापना की, जिसे आचार्य चित्रकला भवन का नाम दिया जिससे कि पेंटिंग में पत्राचार के माध्यम से सबक और प्रशिक्षण प्रदान किया जाता था। .

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दृश्य कला

दृश्य कला (visual arts), कला का वह रूप है जो मुख्यत: 'दृश्य' (visual) प्रकृति की होती हैं। जैसे - रेखाचित्र (ड्राइंग), चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला (architecture), फोटोग्राफी, विडियो, चलचित्र आदि। किन्तु आजकल दृष्यकला में ललित कलाएँ तथा हस्तकलाएँ शामिल मानी जातीं हैं। .

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देवर्षि रमानाथ शास्त्री

देवर्षि रमानाथ शास्त्री (1878 – 1943) संस्कृत भाषा के कवि तथा श्रीमद्वल्लभाचार्य द्वारा प्रणीत पुष्टिमार्ग एवं शुद्धाद्वैत दर्शन के विद्वान् थे। उन्होने हिन्दी, ब्रजभाषा तथा संस्कृत में प्रचुर लेखन किया है। वे बाल्यावस्था से ही संस्कृत में कविता करने लग गए थे और उसी दौरान प्रसिद्ध मासिक पत्र ‘संस्कृत रत्नाकर’ में उनकी प्रारंभिक कविता ‘दुःखिनीबाला’ छपी थी। उनका जन्म आन्ध्र से जयपुर आये कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अध्येता वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के देवर्षि परिवार की विद्वत् परम्परा में सन् 1878 (विक्रम संवत् 1936, श्रावण शुक्ल पंचमी) को जयपुर में हुआ। उनके पिता का नाम श्री द्वारकानाथ तथा माता का नाम श्रीमती जानकी देवी था। इनके एकमात्र पुत्र पंडित ब्रजनाथ शास्त्री (1901-1954) थे, जो स्वयं शुद्धाद्वैत के मर्मज्ञ थे। वे संस्कृत के उद्भट विद्वान् व युगपुरुष कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के अग्रज थे। .

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नून मीम राशिद

नजर मुहम्मद राशिद (उर्दू: نذرِ مُحَمَّد راشِد‎), (अगस्त 1910 – 9 अक्तूबर 1975) नून मीम राशीद (उर्दू: ن۔ م۔ راشد) के नाम से विख्यात आधुनिक उर्दू शायरी के एक प्रभावशाली पाकिस्तानी कवि थे। जिन्होंने उर्दू शायरी को छंद और बहर के पारंपरिक बंधनों से आज़ाद करने का बड़ा काम किया। उन्होने सिर्फ शिल्‍प की दृष्टि से ही उर्दू कविता को आज़ाद नहीं किया बल्कि उर्दू काव्‍य में उन भावों और संवेदनाओं को भी दाखिला दिलाया, जो इससे पहले असंभव माना जाता था। .

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पट्टचित्र

पट्टचित्र में राधा-कृष्ण पट्टचित्र ओड़िशा की पारम्परिक चित्रकला है। इन चित्रों में हिन्दू देवीदेवताओं को दर्शाया जाता है। 'पट्ट' का अर्थ 'कपड़ा' होता है। .

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पाल सिनाक

पाल सिनाक कुएँ पर औरतें (१८९२) पाल सिनाक (Paul Victor Jules Signac; फ्रांसीसी:; १८६३-१९३५) फ्रांसीसी चित्रकार था। .

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पिएर पॉल प्रूधों

स्वचित्र पिएर पॉल प्रूधों (Pierre-Paul Prud'hon; १७५८-१८२३) नेपोलियन का दरबारी कलाकार था। प्रूधों का जन्म क्लूने में हुआ था। दीजों अकादमी में उसने चित्रकला की प्रारंभिक शिक्षा पाई। १७८० में वह पेरिस चला गया। बर्गडी का रोम पुरस्कार जीता। वह इटली में भी रहा। वहाँ उसकी कला पर रैफेल, करेज्जिओं तथा लियोनादों की कला का यथेष्ट प्रभाव पड़ा। १७८७ में वह पेरिस वापस आया और नेपोलियन के दरबार का कलाकार बना। वहाँ उसका मुख्य काम था नेपोलियन की रानियों को चित्रकला सिखाना तथा उनके चित्र बनाना। गृहसज्जा के चित्र बनाने में भी उसे विशेष अभिरुचि थी। .

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पुनर्जागरण

फ्लोरेंस पुनर्जागरण का केन्द्र था पुनर्जागरण या रिनैंसा यूरोप में मध्यकाल में आये एक संस्कृतिक आन्दोलन को कहते हैं। यह आन्दोलन इटली से आरम्भ होकर पूरे यूरोप फैल गया। इस आन्दोलन का समय चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक माना जाता है।.

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पुस्तकालय का इतिहास

आधुनिक भारत में पुस्तकालयों का विकास बड़ी धीमी गति से हुआ है। हमारा देश परतंत्र था और विदेशी शासन के कारण शिक्षा एवं पुस्तकालयों की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। इसी से पुस्तकालय आंदोलन का स्वरूप राष्ट्रीय नहीं था और न इस आंदोलन को कोई कानूनी सहायता ही प्राप्त थीं। बड़ौदा राज्य का योगदान इस दिशा में प्रशंसनीय रहा है। यहाँ पर 1910 ई. में पुस्तकालय आंदोलन प्रारंभ किया गया। राज्य में एक पुस्तकालय विभाग खोला गया और पुस्तकालयों चार श्रेणियों में विभक्त किया गया- जिला पुस्तकालय, तहसील पुस्तकालय, नगर पुस्तकालय, एवं ग्राम पुस्तकालय आदि। पूरे राज्य में इनका जाल बिछा दिया गया था। भारत में सर्वप्रथम चल पुस्तकालय की स्थापना भी बड़ौदा राज्य में ही हुई। श्री डब्ल्यू.

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प्रेम कहानियाँ

विश्व की सभी सभ्यताओं और समाजों ने अपनी भाषा में अत्यंत मर्मस्पर्शी प्रेम कहानियाँ लिखी हैं। इनमें कुछ तो साहित्य से जनता की जुबान पर चढ़ गई और कुछ को साहित्य ने जनता की चढ़ी हुई जुबान से अपनाकर स्वयं को समृद्ध किया। इन कहानियों की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये कहानियाँ साहित्य संगीत, चित्रकला और लोक कलाओं से जुड़कर जीवन के अनेक क्षेत्रों में परिव्याप्त हो गई। .

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पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान (भारतेश्वरः पृथ्वीराजः, Prithviraj Chavhan) (सन् 1178-1192) चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे, जो उत्तर भारत में १२ वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर (अजयमेरु) और दिल्ली पर राज्य करते थे। वे भारतेश्वर, पृथ्वीराजतृतीय, हिन्दूसम्राट्, सपादलक्षेश्वर, राय पिथौरा इत्यादि नाम से प्रसिद्ध हैं। भारत के अन्तिम हिन्दूराजा के रूप में प्रसिद्ध पृथ्वीराज १२३५ विक्रम संवत्सर में पंद्रह वर्ष (१५) की आयु में राज्य सिंहासन पर आरूढ हुए। पृथ्वीराज की तेरह रानीयाँ थी। उन में से संयोगिता प्रसिद्धतम मानी जाती है। पृथ्वीराज ने दिग्विजय अभियान में ११७७ वर्ष में भादानक देशीय को, ११८२ वर्ष में जेजाकभुक्ति शासक को और ११८३ वर्ष में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित किया। इन्हीं वर्षों में भारत के उत्तरभाग में घोरी (ग़ोरी) नामक गौमांस भक्षण करने वाला योद्धा अपने शासन और धर्म के विस्तार की कामना से अनेक जनपदों को छल से या बल से पराजित कर रहा था। उसकी शासन विस्तार की और धर्म विस्तार की नीत के फलस्वरूप ११७५ वर्ष से पृथ्वीराज का घोरी के साथ सङ्घर्ष आरंभ हुआ। उसके पश्चात् अनेक लघु और मध्यम युद्ध पृथ्वीराज के और घोरी के मध्य हुए।विभिन्न ग्रन्थों में जो युद्ध सङ्ख्याएं मिलती है, वे सङ्ख्या ७, १७, २१ और २८ हैं। सभी युद्धों में पृथ्वीराज ने घोरी को बन्दी बनाया और उसको छोड़ दिया। परन्तु अन्तिम बार नरायन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात् घोरी ने पृथ्वीराज को बन्दी बनाया और कुछ दिनों तक 'इस्लाम्'-धर्म का अङ्गीकार करवाने का प्रयास करता रहा। उस प्रयोस में पृथ्वीराज को शारीरक पीडाएँ दी गई। शरीरिक यातना देने के समय घोरी ने पृथ्वीराज को अन्धा कर दिया। अन्ध पृथ्वीराज ने शब्दवेध बाण से घोरी की हत्या करके अपनी पराजय का प्रतिशोध लेना चाहा। परन्तु देशद्रोह के कारण उनकी वो योजना भी विफल हो गई। एवं जब पृथ्वीराज के निश्चय को परिवर्तित करने में घोरी अक्षम हुआ, तब उसने अन्ध पृथ्वीराज की हत्या कर दी। अर्थात्, धर्म ही ऐसा मित्र है, जो मरणोत्तर भी साथ चलता है। अन्य सभी वस्तुएं शरीर के साथ ही नष्ट हो जाती हैं। इतिहासविद् डॉ.

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पी एस वारियर

वैद्यरत्नम पी एस वारियर वैद्यरत्नम पन्नियिनपल्ली सनकुन्नी वार्यर (P. S. Warrier; 1869 - 1944) भारत के आयुर्वेदाचार्य थे। उन्होने आयुर्वैदिक चिकित्सा पद्धति के पुनर्जागरण का अभियान चलाया। उन्होंने आयुर्वेद की शिक्षा और औषधि निर्माण को आधुनिक, सेकुलर और वैज्ञानिक रूप दिया। आज केरल का सबसे बड़ा ब्रांड केरल-आयुर्वेद इन्हीं वैद्य पी.एस.

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फ़िल्म

फ़िल्म, चलचित्र अथवा सिनेमा में चित्रों को इस तरह एक के बाद एक प्रदर्शित किया जाता है जिससे गति का आभास होता है। फ़िल्में अकसर विडियो कैमरे से रिकार्ड करके बनाई जाती हैं, या फ़िर एनिमेशन विधियों या स्पैशल इफैक्ट्स का प्रयोग करके। आज ये मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन हैं लेकिन इनका प्रयोग कला-अभिव्यक्ति और शिक्षा के लिए भी होता है। भारत विश्व में सबसे अधिक फ़िल्में बनाता है। फ़िल्म उद्योग का मुख्य केन्द्र मुंबई है, जिसे अमरीका के फ़िल्मोत्पादन केन्द्र हॉलीवुड के नाम पर बॉलीवुड कहा जाता है। भारतीय फिल्मे विदेशो में भी देखी जाती है .

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बशोली

बशोली या बसोहली भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के जिले कठुआ में स्थित एक नगर या कस्बा है। यह स्थान अपनी एक विशेष प्रकार की चित्रकला जिसे बशोली चित्रकला कहते हैं, के लिए प्रसिद्ध है। .

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बुंदेलखंड के शासक

' बुंदेलखंड के ज्ञात इतिहास के अनुसार यहां ३०० ई. प सौरभ तिवारी ब्राह्मण सासक मौर्य शासनकाल के साक्ष्‍य उपलब्‍ध है। इसके पश्‍चात वाकाटक और गुप्‍त शासनकाल, कलचुरी शासनकाल, चंदेल शासनकाल, खंगार1खंगार शासनकाल, बुंदेल शासनकाल (जिनमें ओरछा के बुंदेल भी शामिल थे), मराठा शासनकाल और अंग्रेजों के शासनकाल का उल्‍लेख मिलता है। .

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बोतोलोमो कादुसी

'क्रूस से अवतरण', 1595 बातोलोमो कादुसी (Bartolomeo Carducci; १५६०-१६१०) इटली का चित्रकार था। वह फ़्लोरेंस में जन्मा और जिसने वहीं अपनी कलाशिक्षा ली। अपने समय के प्रचलित कलाकार अमानती से उसने वास्तुशिल्प तथा मूर्तिकला सीखी। चित्रकला की शिक्षा उसे प्रसिद्ध चित्रकार जुकेरो से मिली थी। जुकेरो प्राय: चित्र बनाने के लिए दूर-दूर से बुलाया जाता था, जो साथ की कादुसी को भी सहायक के रूप में ले जाया करता था। ज़केरो के साथ वह माद्रिद गया था जहाँ उसने एक्कोंरियल पुस्तकालय के लिए चित्र बनाए तथा उस प्रसिद्ध राजमहल की दीवारों पर भित्तिचित्र लिखे। धीरे-धीरे उसकी पहुँच राजदरबार तक हो गई और स्पेन के राजा फ़िलिप द्वितीय का वह कृपापात्र बन गया। अधिकतर वह स्पेन में ही रहा और वहीं उसकी मृत्यु भी हुई। उसके बनाए अधिकतर चित्र स्पेन में ही हैं। उसका सबसे प्रसिद्ध चित्र 'क्रूस से अवतरण' (ईसा का क्रास पर से उतारा जाना) है। यह साँ फ़ेलिप अल रील नामक गिरजाघर (मादिद्र) में सुरक्षित है। श्रेणी:चित्रकार.

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बीरबल साहनी

बीरबल साहनी (नवंबर, 1891 - 10 अप्रैल, 1949) अंतरराष्ट्रीय ख्याति के पुरावनस्पति वैज्ञानिक थे। .

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भारतीय चित्रकला

'''भीमवेटका''': पुरापाषाण काल की भारतीय गुफा चित्रकला भारत मैं चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना रहा हैं। पाषाण काल में ही मानव ने गुफा चित्रण करना शुरु कर दिया था। होशंगाबाद और भीमबेटका क्षेत्रों में कंदराओं और गुफाओं में मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के चित्र मिले हैं। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी कई शताब्दियों में तैय्यार हुई थी, इसकी सबसे प्राचिन चित्रकारी ई.पू.

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भारतीय मूर्तिकला

एलोरा के कैलास मन्दिर में शिव की मूर्ति भारत की एक दीर्घ मूर्तिकला-परम्परा है जिसकी खोज नवपाषाणिक संस्कृतियों में की जा सकती है, हालांकि पुरातात्तिवक दृष्टि से विकास के निरन्तर लम्बे प्रक्षेप पथ को तीसरी शताब्दी र्इसापूर्व से आगे खोजा जा सकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में कला को र्इश्वर की रचना माना जाता है और इसलिए कोर्इ भी कला एक-दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है। जिस प्रकार शिव से नृत्य एवं संगीत का उद्भव हुआ, विष्णु से चित्रकला एवं मूर्तिकला उत्पन्न हुर्इ और रूद्र विश्वकर्मन से वास्तुकला उत्पन्न हुर्इ। यह कोर्इ आश्चर्य की बात नहीं है कि अधिकांश प्राचीन एवं मध्यकालीन कला सामाजिक-धार्मिक संदर्भ के अन्तर्गत उत्पन्न हुर्इ। देवताओं की विशेषताओं का आरंभिक उल्लेख वैदिक काल से मिलता है जहाँ हमें श्री सुक्त में श्री जैसे विभिन्न देवताओं के शब्द-चित्र मिले हैं, यद्यपि पुरातात्तिवक दृषिट से यह सिद्ध नहीं हुआ है। हालांकि छठी शताब्दी र्इसा पूर्व के व्याकरणाचार्य पाणिनि ने उनके असितत्त्व और किसी प्रकृति अथवा मूर्ति के इर्द-गिर्द अनुष्ठान का उल्लेख किया है। उसी प्रकार सौनक अपने सार-संग्रह वृहत देवता में दस आवश्यक तत्त्वों का उल्लेख करते है जो हमें किसी देवता को पहचानने, यथा रूप, सम्बन्ध, प्रतीक, वाहन, गुण, संकेत आदि में मदद करता है। .

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भक्ति आन्दोलन

भक्ति आन्दोलन मध्‍यकालीन भारत का सांस्‍कृतिक इतिहास में एक महत्‍वपूर्ण पड़ाव था। इस काल में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों की धारा द्वारा समाज विभिन्न तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया गया। यह एक मौन क्रान्ति थी। यह अभियान हिन्‍दुओं, मुस्लिमों और सिक्‍खों द्वारा भारतीय उप महाद्वीप में भगवान की पूजा के साथ जुड़े रीति रिवाजों के लिए उत्तरदायी था। उदाहरण के लिए, हिन्‍दू मंदिरों में कीर्तन, दरगाह में कव्‍वाली (मुस्लिमों द्वारा) और गुरुद्वारे में गुरबानी का गायन, ये सभी मध्‍यकालीन इतिहास में (800 - 1700) भारतीय भक्ति आंदोलन से उत्‍पन्‍न हुए हैं। .

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मधुबनी

मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन १९७२ में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। .

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मधुबनी चित्रकला

मधुबनी चित्रकला चित्र बनाती कलाकार मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। .

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महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया। उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। वर्ष २००७ उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया।२७ अप्रैल १९८२ को भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया था। गूगल ने इस दिवस की याद में वर्ष २०१८ में गूगल डूडल के माध्यम से मनाया । .

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मानविकी

सिलानिओं द्वारा दार्शनिक प्लेटो का चित्र मानविकी वे शैक्षणिक विषय हैं जिनमें प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के मुख्यतः अनुभवजन्य दृष्टिकोणों के विपरीत, मुख्य रूप से विश्लेषणात्मक, आलोचनात्मक या काल्पनिक विधियों का इस्तेमाल कर मानवीय स्थिति का अध्ययन किया जाता है। प्राचीन और आधुनिक भाषाएं, साहित्य, कानून, इतिहास, दर्शन, धर्म और दृश्य एवं अभिनय कला (संगीत सहित) मानविकी संबंधी विषयों के उदाहरण हैं। मानविकी में कभी-कभी शामिल किये जाने वाले अतिरिक्त विषय हैं प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी), मानव-शास्त्र (एन्थ्रोपोलॉजी), क्षेत्र अध्ययन (एरिया स्टडीज), संचार अध्ययन (कम्युनिकेशन स्टडीज), सांस्कृतिक अध्ययन (कल्चरल स्टडीज) और भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स), हालांकि इन्हें अक्सर सामाजिक विज्ञान (सोशल साइंस) के रूप में माना जाता है। मानविकी पर काम कर रहे विद्वानों का उल्लेख कभी-कभी "मानवतावादी (ह्यूमनिस्ट)" के रूप में भी किया जाता है। हालांकि यह शब्द मानवतावाद की दार्शनिक स्थिति का भी वर्णन करता है जिसे मानविकी के कुछ "मानवतावाद विरोधी" विद्वान अस्वीकार करते हैं। .

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माक्स लीबरमान

माक्स लीबरमान माक्स लीबरमान (Max Liebermann; १८४७-१९३५) जर्मन चित्रकार और खुदाई कला (Impressionism) का कारीगर था। .

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मिठूसेन

मिठूसेन एक नामी कलाकार है। उन्होंने शांति निकेतन और ग्लासगो स्कूल ऑफ़ आर्ट से कला की पढ़ाई की है। .

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म्हेर खाचत्र्यान

म्हेर खाचत्र्यान (अर्मेनियाई: Մհեր Խաչատրյան, जन्म: ३ नवम्बर, १९८३; अर्मेनिया) न्यू यॉर्क मे विद्यमान एक जाने माने अमेरिकी चित्रकार हैं। इनके कार्य व कृतिया कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओ मे प्रकाशित हैं, जिनमे प्रमुख हैं, आर्ट टेक्स टाइम स्क्वेयर, मियामी टैलेन्ट मैगजिन, आर्ट क्रियेशन, केसी आर्टिस्ट, आर्ट थिंग्स, और द पिच। म्हेर की कलाकृतियाँ अर्मेनिया और अमेरिका के कई संग्राहालयो में संरक्षित हैं। वें "आर्ट टू थैंक" नामक संस्था के संस्थापक हैं, जो मुख्यत: सैनिको और उनके परिवार के लिए समर्पित हैं। खाचत्र्यान के कई चित्र व कलाकृतियाँ "१९१५ अर्मेनिया जनसंघार" में मारे गए निर्दोष नागरिको को समर्पित होती हैं। .

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मृदु शक्ति

जोसेफ निये द्वारा लिखित पुस्तक: सॉफ्ट पॉवर अंतरराष्ट्रीय संबन्धों के सन्दर्भ में, सहयोग तथा किसी प्रकार के आकर्षण के द्वारा वांछित परिणाम प्राप्त करने की क्षमता सौम्य शक्ति या मृदु शक्ति (Soft power) कहलाती है। इसके विपरीत 'कठोर शक्ति' (hard power) उस क्षमता को कहते हैं जो बल (सैन्य बल) द्वारा या धन देकर इच्छित परिणाम प्राप्त करती है। मृदु शक्ति की अवधारणा हारवर्ड विश्वविद्यालय के जोसेफ निये (Joseph Nye) द्वारा विकसित की गयी। उन्होने 'सॉफ्ट पॉवर' शब्द का प्रयोग सबसे पहले १९९० में लिखित अपनी पुस्तक 'बाउण्ड टू लीड: द चेंजिंग नेचर ऑफ अमेरिकन पॉवर' में किया। उन्होने इसको 'सॉफ्ट पॉवर: द मीन्स तू सक्सेस इन वर्ल्द पॉलिटिक्स' नामक अपनी अगली पुस्तक में और विकसित किया। आजकल इस शब्द का प्रयोग अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के सन्दर्भ में बहुत अधिक प्रयुक्त होता है। सन २०१३ के मोनोकिल सॉफ्ट पॉवर सर्वे के अनुसार जर्मनी सर्वाधिक सौम्य शक्ति (सॉफ्ट पॉवर) वाला देश है। .

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मैसूर चित्रकला

देवी सरस्वती (मैसूर चित्रकला) मैसूर चित्रकला (कन्नड: ಮೈಸೂರು ಚಿತ್ರಕಲೆ) दक्षिण भारत की एक महत्वपूर्ण शास्त्रीय चित्रकला है जिसका उद्भव मैसूर के आसपास हुआ और जिसे मैसूर के राजाओं ने प्रोत्साहित किया। श्रेणी:भारतीय चित्रकला.

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मैक्स क्लिंजर

''एमिल ओर्लिक द्वारा निमित मैक्स क्लिंजर का पोर्ट्रेट (१९०२) मैक्स क्लिंजर (Max Klinger) (१८ फ़रवरी १८५७ - ५ जुलाई १९२०) चित्रकला, शिल्पकला और एचिंग (खुदाई) कला में निष्णात्‌ जर्मन कलाकार। इसका जन्म लाइपत्सिग में एक व्यापारी के घर हुआ था। सन्‌ १८७४ में कार्लस्रुन में कला के अध्ययन अभ्यास का श्रीगणेश किया। सन्‌ १८७८ में इनकी कला तथा हस्तकौशल की कटु आलोचना हुई। मूर्खतापूर्ण अनावश्यक शंकाएँ उपस्थित कर कुछ काल तक इनकी कला पर प्रतिबंध लगाया गया था। अंतत: बर्लिन की नैशनल गैलरी में इनके चित्रों को स्थान मिला। बाइबिल और पौराणिक विषयों से संबंधित इनकी त्रासात्मक कलाकृतियाँ लाइपत्सिग युनिवर्सिटी तथा म्यूज़ियम के लिये विशेष रूप से बनाई गई थी। .

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रायल अकादमी

बर्लिंगटन हाउस स्थित रायल अकादमी लंदन की द रॉयल अकैडमी ऑव आर्ट्स (The Royal Academy of Arts), जार्ज तृतीय के राजाश्रय में सन् 1768 में स्थापित हुई। इसके द्वारा समकालीन चित्रकारों की कलाकृतियों की प्रदर्शनियाँ प्रति वर्ष की जाती हैं। ललित कला का एक विद्यालय भी 2 जनवरी 1768 को इस संस्था द्वारा स्थापित किया गया। पहली बार महिला छात्राएँ 1860 में भरती की गईं। उनके द्वारा चित्रकला, शिल्पकला और स्थापत्य की उन्नति इस संस्था का प्रधान उद्देश्य था। पहली चित्रकला की प्रदर्शनी 26 अप्रैल 1768 को हुई। सर जाशुआ रेनॉल्ड्स इसके 1768 से 1792 ई. तक प्रथम अध्यक्ष (प्रेसिडेंट) थे। इस संस्था में 11,000 ग्रंथों का संग्रहालय है। इनमें कई ग्रंथ बहुत दुर्लभ हैं। इस संस्था द्वारा कई ट्रस्ट फंड चलाए जाते हैं, यथा दि टर्नर फंड, दि क्रेस्विक फंड, लैंडसियर फंड, आर्मिटेज फंड, एडवर्ड स्काट फंड। पहले यह संस्था सामरसेट हाउस में थी, बाद में नेशनल गैलरी में और अब 1869 ई. से वार्लिंग्टन हाउस में है। इस अकादमी के सदस्यों की संख्या चालीस होती है। अकादमी द्वारा कष्टपीड़ित कलाकारों को आर्थिक सहायता भी दी जाती है। .

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राजस्थान विश्वविद्यालय

राजस्थान विश्वविद्यालय, राजस्थान का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। यह मानविकी, समाज विज्ञान, विज्ञान, वाणिज्य, एवं विधि अध्ययन आदि विषयों में उच्च स्तर की शिक्षा और शोध कार्य में संलग्न भारत के अग्रणी शिक्षण संस्थानों में से है। .

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ

रबीन्द्रनाथ ठाकुर रवीन्द्रनाथ ठाकुर का सृष्टिकर्म काव्य, उपन्यास, लघुकथा, नाटक, प्रबन्ध, चित्रकला और संगीत आदि अनेकानेक क्षेत्रों फैला हुआ है। .

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रेखाचित्र

एनीबल काराकी द्वारा चित्रित नग्न पुरुष, 16वीं सदी रेखाचित्र या 'आरेखण' (ड्राइंग) एक दृश्य कला है जो द्वि-आयामी साधन को चिह्नित करने के लिए किसी भी तरह के रेखाचित्र उपकरणों का उपयोग करता है। आम उपकरणों में शामिल है ग्रेफाइट पेंसिल, कलम और स्याही, स्याहीदार ब्रश, मोम की रंगीन पेंसिल, क्रेयोन, चारकोल, खड़िया, पैस्टल, मार्कर, स्टाइलस, या विभिन्न धातु सिल्वरपॉइंट। एक रेखाचित्र पर काम करने वाले कलाकार को नक्शानवीस या प्रारूपकार के रूप में उद्धृत किया जा सकता है। सामग्री की अल्प मात्रा एक द्वि-आयामी साधन पर डाली जाती है, जो एक गोचर निशान छोड़ती है - यह प्रक्रिया चित्रकारी के समान ही है। रेखाचित्र के लिए सबसे आम सहायक है कागज़, हालांकि अन्य सामग्री, जैसे गत्ता, प्लास्टिक, चमड़ा, कैनवास और बोर्ड का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। अस्थायी रेखाचित्रों को ब्लैकबोर्ड पर या व्हाईटबोर्ड पर या निस्संदेह लगभग हर चीज़ पर बनाया जा सकता है। यह माध्यम, स्थायी मार्कर की सुलभता के कारण भित्ति चित्रण के माध्यम से सार्वजनिक अभिव्यक्ति का एक लोकप्रिय साधन भी बन गया है। .

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ललित कला

सौंदर्य या लालित्य के आश्रय से व्यक्त होने वाली कलाएँ ललित कला (Fine arts) कहलाती हैं। अर्थात वह कला जिसके अभिवंयजन में सुकुमारता और सौंदर्य की अपेक्षा हो और जिसकी सृष्टि मुख्यतः मनोविनोद के लिए हो। जैसे गीत, संगीत, नृत्य, नाट्य, तथा विभिन्न प्रकार की चित्रकलाएँ। .

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ललित कला अकादमी

ललित कला अकादमी स्वतंत्र भारत में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो 5 अगस्त 1954 को भारत सरकार द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो भारत सरकार द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था, यथा मूर्तिकला, चित्रकला, ग्राफकला, गृहनिर्माणकला आदि। .

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लारेंस बिन्यन

लारेंस बिन्यन रॉबट लारेंस बिन्यन (Robert Laurence Binyon; 1869 - 1943) अंग्रेज कवि, नाटककार, चित्रकला तथा वास्तुकला विशेषज्ञ था। .

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लिओनार्दो दा विंची

फ्लोरेंस में लिओनार्दो की मूर्ति लिओनार्दो दा विंची (Leonardo da Vinci, 1452-1519) इटलीवासी, महान चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुशिल्पी, संगीतज्ञ, कुशल यांत्रिक, इंजीनियर तथा वैज्ञानिक था। .

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श्री शङ्कराचार्य संस्कृत सर्वकलाशाला

श्री शंकराचार्य संस्कृत सर्वकलाशाला का प्रतीकचिह्न श्री शंकराचार्य संस्कृत सर्वकलाशाला (या, श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय) केरल में कोच्चि के निकट कालटि में स्थापित एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना १९९३ में हुई थी। इसका नाम आदि शंकराचार्य के नाम पर किया गया है। यह पूर्णा नदी के तट पर स्थित है। विश्वविद्यालय का आदर्शवाक्य है: ज्ञानादेव तु कैवल्यम् (ज्ञान से की कैवल्य प्राप्त होता है।) यह विश्वविद्यालय संस्कृत तथा अन्य भाषाओं की पाण्डुलिपियों के प्रकाशन एवं संरक्षण के लिये कार्य करती है। इसके नौ क्षेत्रीय केन्द्र हैं- कालटि (मुख्य केन्द्र), तिरुवनन्तपुरम, त्रिश्शूर, पन्मन, तुरवूर, एर्रुमानूर, तिरूर, कोइलाण्टि और पय्यन्नूर। .

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श्रीपाद दामोदर सतवलेकर

वेदमूर्ति श्रीपाद दामोदर सातवलेकर (19 सितंबर 1867 - 31 जुलाई 1968) वेदों का गहन अध्ययन करनेवाले शीर्षस्थ विद्वान् थे। उन्हें 'साहित्य एवं शिक्षा' के क्षेत्र में सन् 1968 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। .

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सावित्री बाई खानोलकर

सावित्री बाई खानोलकर या खानोलंकार (जन्म के समय का नाम इवा योन्ने लिण्डा माडे-डे-मारोज़) भारतीय इतिहास के ऐसे व्यक्तियों में से हैं जिनका जन्म तो पश्चिम में हुआ किंतु उन्होंने अपनी इच्छा से भारतीय संस्कृति को अपनाया और भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। सावित्री बाई खानोलकर को सर्वोच्च भारतीय सैनिक अलंकरण परमवीर चक्र के रूपांकन का गौरव प्राप्त है। सावित्री बाई खानोलकर .

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सिंह (पशु)

सिंह (पेन्थेरा लियो) पेन्थेरा वंश की चार बड़ी बिल्लियों में से एक है और फेलिडे परिवार का सदस्य है। यह बाघ के बाद दूसरी सबसे बड़ी सजीव बिल्ली है, जिसके कुछ नरों का वजन २५० किलोग्राम से अधिक होता है। जंगली सिंह वर्तमान में उप सहारा अफ्रीका और एशिया में पाए जाते हैं। इसकी तेजी से विलुप्त होती बची खुची जनसंख्या उत्तर पश्चिमी भारत में पाई जाती है, ये ऐतिहासिक समय में उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व और पश्चिमी एशिया से गायब हो गए थे। प्लेइस्तोसेन के अंतिम समय तक, जो लगभग १०,००० वर्ष् पहले था, सिंह मानव के बाद सबसे अधिक व्यापक रूप से फैला हुआ बड़ा स्तनधारी, भूमि पर रहने वाला जानवर था। वे अफ्रीका के अधिकांश भाग में, पश्चिमी यूरोप से भारत तक अधिकांश यूरेशिया में और युकोन से पेरू तक अमेरिका में पाए जाते थे। सिंह जंगल में १०-१४ वर्ष तक रहते हैं, जबकि वे कैद मे २० वर्ष से भी अधिक जीवित रह सकते हैं। जंगल में, नर कभी-कभी ही दस वर्ष से अधिक जीवित रह पाते हैं, क्योंकि प्रतिद्वंद्वियों के साथ झगड़े में अक्सर उन्हें चोट पहुंचती है। वे आम तौर पर सवाना और चारागाह में रहते हैं, हालांकि वे झाड़ी या जंगल में भी रह सकते हैं। अन्य बिल्लियों की तुलना में सिंह आम तौर पर सामाजिक नहीं होते हैं। सिंहों के एक समूह जिसे अंग्रेजी मे प्राइड कहॉ जाता में सम्बन्धी मादाएं, बच्चे और छोटी संख्या में नर होते हैं। मादा सिंहों का समूह प्रारूपिक रूप से एक साथ शिकार करता है, जो अधिकांशतया बड़े अनग्युलेट पर शिकार करते हैं। सिंह शीर्ष का और कीस्टोन शिकारी है, हालांकि वे अवसर लगने पर मृतजीवी की तरह भी भोजन प्राप्त कर सकते हैं। सिंह आमतौर पर चयनात्मक रूप से मानव का शिकार नहीं करते हैं, फिर भी कुछ सिंहों को नर-भक्षी बनते हुए देखा गया है, जो मानव शिकार का भक्षण करना चाहते हैं। सिंह एक संवेदनशील प्रजाति है, इसकी अफ्रीकी रेंज में पिछले दो दशकों में इसकी आबादी में संभवतः ३० से ५० प्रतिशत की अपरिवर्तनीय गिरावट देखी गयी है। ^ डाटाबेस प्रवेश में एस बात का एक लंबा औचित्य सम्मिलित है कि यह प्रजाति संवेदनशील क्यों है। क्यों इस प्रजाति की दुर्दशा का एक भी सम्मिलित है सिंहों की संख्या नामित सरंक्षित क्षेत्रों और राष्ट्रीय उद्यानों के बहार अस्थिर है। हालांकि इस गिरावट का कारण पूरी तरह से समझा नहीं गया है, आवास की क्षति और मानव के साथ संघर्ष इसके सबसे बड़े कारण हैं। सिंहों को रोमन युग से पिंजरे में रखा जाता रहा है, यह एक मुख्य प्रजाति रही है जिसे अठारहवीं शताब्दी के अंत से पूरी दुनिया में चिडिया घर में प्रदर्शन के लिए रखा जाता रहा है। खतरे में आ गयी एशियाई उप प्रजातियों के लिए पूरी दुनिया के चिड़ियाघर प्रजनन कार्यक्रमों में सहयोग कर रहे हैं। दृश्य रूप से, एक नर सिंह अति विशिष्ट होता है और सरलता से अपने अयाल (गले पर बाल) द्वारा पहचाना जा सकता है। सिंह, विशेष रूप से नर सिंह का चेहरा, मानव संस्कृति में सबसे व्यापक ज्ञात जंतु प्रतीकों में से एक है। उच्च पाषाण काल की अवधि से ही इसके वर्णन मिलते हैं, जिनमें लॉसकाक्स और चौवेत गुफाओं की व नक्काशियां और चित्रकारियां सम्मिलित हैं, सभी प्राचीन और मध्य युगीन संस्कृतियों में इनके प्रमाण मिलते हैं, जहां ये ऐतिहासिक रूप से पाए गए। राष्ट्रीय ध्वजों पर, समकालीन फिल्मों और साहित्य में चित्रकला में, मूर्तिकला में और साहित्य में इसका व्यापक वर्णन पाया जाता है। .

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संयुक्त राज्य अमेरिका में अमेरिकी मूल-निवासी

संयुक्त राज्य अमेरिका में अमेरिकी मूल-निवासी उत्तरी अमेरिका में वर्तमान महाद्वीपीय संयुक्त राज्य अमेरिका, अलास्का के भागों और हवाई के द्वीपीय राज्य की सीमाओं के भीतर रहने वाले मूलनिवासी लोग हैं। वे अनेक, विशिष्ट कबीलों, राज्यों और जाति-समूहों से मिलकर बने हैं, जिनमें से अनेक का अस्तित्व पूर्ण राजनैतिक समुदायों के रूप में मौजूद है। अमेरिकी मूल-निवासियों का उल्लेख करने के लिए प्रयुक्त शब्दावलियाँ विवादास्पद हैं; यूएस सेंसस ब्यूरो (US Census Bureau) के सन 1995 के घरेलू साक्षात्कारों के एक समुच्चय के अनुसार, अभिव्यक्त प्राथमिकता वाले उत्तरदाताओं में से अनेक ने अपना उल्लेख अमेरिकन इन्डियन्स (American Indians) अथवा इन्डियन्स (Indians) के रूप में किया। पिछले 500 वर्षों में, अमेरिकी महाद्वीप में एफ्रो-यूरेशियाई अप्रवासन के परिणामस्वरूप पुराने और नये विश्व के समाजों के बीच सदियों तक टकराव और समायोजन हुआ है। अमेरिकी मूल-निवासियों के बारे में अधिकांश लिखित ऐतिहासिक रिकॉर्ड की रचना यूरोपीय लोगों द्वारा अमेरिका में उनके अप्रवासन के बाद की गई थी। "नेटिव अमेरिकन्स फर्स्ट व्यू व्हाइट्स फ्रॉम द शोर," अमेरिकन हेरिटेज, स्प्रिंग 2009.

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संस्कार भारती

संस्कार भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक अनुसांगिक संस्था है संस्कार भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक अनुसांगिक संस्था है संस्कार भारती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक अनुसांगिक संस्था है। इसकी स्थापना ललित कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना लाने का उद्देश्य सामने रखकर की गयी थी। इसकी पृष्ठभूमि में भाऊराव देवरस, हरिभाऊ वाकणकर, नानाजी देशमुख, माधवराव देवले और योगेन्द्र जी जैसे मनीषियों का चिन्तन तथा अथक परिश्रम था। १९५४ से संस्कार भारती की परिकल्पना विकसित होती गयी और १९८१ में लखनऊ में इसकी बिधिवत स्थापना हुई। १९८८ में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी (रंगभरी एकादशी) को मीरजापुर इकाई का गठन किया गया। सा कला या विमुक्तये अर्थात् "कला वह है जो बुराइयों के बन्धन काटकर मुक्ति प्रदान करती है" के घोष-वाक्य के साथ आज देशभर में संस्कार भारती की १२०० से अधिक इकाइयाँ कार्य कर रही हैं। समाज के विभिन्न वर्गों में कला के द्वारा राष्ट्रभक्ति एवं योग्य संस्कार जगाने, विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण व नवोदित कलाकारों को प्रोत्साहन देकर इनके माध्यम से सांस्कृतिक प्रदूषण रोकने के उद्देश्य से संस्कार भारती कार्य कर रही है। १९९० से संस्कार भारती के वार्षिक अधिवेशन कला साधक संगम के रूप में आयोजित किये जाते हैं जिनमें संगीत, नाटक, चित्रकला, काव्य, साहित्य और नृत्य विधाओं से जुड़े देशभर के स्थापित व नवोदित कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट मूल्यों की प्रतिष्ठा करने की दृष्टि से राष्ट्रीय गीत प्रतियोगिता, कृष्ण रूप-सज्जा प्रतियोगिता, राष्ट्रभावना जगाने वाले नुक्कड़ नाटक, नृत्य, रंगोली, मेंहदी, चित्रकला, काव्य-यात्रा, स्थान-स्थान पर राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आदि बहुविध कार्यक्रमों का आयोजन संस्कार भारती द्वारा किया जाता है। संस्कार भारती प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मनाये जाने वाले छह उत्सवों को भी मनाती है। .

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सुनील दास

सुनील दास (४ अगस्त १९३९ – १० अगस्त २०१५) भारतीय अभिव्यंजनावादी चित्रकार थे। उनको कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2014 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। वे पश्चिम बंगाल राज्य से हैं। .

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सेम्युल एफ.बी. मोर्स

सेम्युल फिनले ब्रीज मोर्स (27 अप्रैल 1791 - 2 अप्रैल 1872) एक अमेरिकी थे जिन्होंने एकल-तार टेलीग्राफ प्रणाली और मोर्स कोड का निर्माण किया। और उन्हें (कम विख्यात रूप से) ऐतिहासिक दृश्यों के एक चित्रकार के रूप में भी जाना जाता है। .

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हेमचन्द्राचार्य संस्कृत पाठशाला

हेमचन्द्राचार्य संस्कृत पाठशाला, गुजरात के अहमदाबाद में स्थित एक प्रसिद्ध संस्कृत पाठशाला है। अहमदाबाद के रामनगर-साबरमति में स्थित यह पाठशाला एक ऐसा ‘ गुरुकुलम ’ है जहां विविध विषयक ज्ञान-विज्ञान-गणित-साहित्य के साथ-साथ वैदिक गणित, आयुर्वेद, ज्योतिष, धर्मविज्ञान तथा संगीत कला, चित्रकला, नृत्यकला, नाट्यकला और गायन-वादन-अभिनयन सहित पुरुषों के जीवनोपयोगी 72 कलाओं की उत्कृष्ट शिक्षा दी जाती है। इतना ही नहीं, योग, व्यायाम, ध्यान, कुश्ती, मलखम्ब आदि विविध शारीरिक क्रियाओं और भारतीय खेलों को भी प्रशिक्षण दिया जाता है। .

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जामिनी राय

यामिनी राय (बंगला: যামিনী রায়; (उच्चारण: जामिनी राय) 11 अप्रैल 1887 – 24 अप्रैल 1972) भारतीय चित्रकार थे। सन् १९५५ में उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया। वे अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के सबसे प्रसिद्ध शिष्यों में से एक थे। जामिनी राय का जन्म 11 अप्रैल, 1887 ई. में पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले में 'बेलियातोर' नामक गाँव में एक समृद्ध जमींदार परिवार में हुआ था। गांव में व्यतीत किये गए रॉय के आरंभिक वर्षों का उन पर गहरा असर पड़ा। संथाल और उनकी आदि कला, काम करते ग्रामीण हस्तशिल्पी, प्राचीन अल्पना (चावल की लेई से चित्रकारी) तथा पटुआ ने रूप एवं रेखा के प्रति उनकी प्रारंभिक रुचि जगाई। 1903 में 16 वर्ष की आयु में जामिनी रॉय ने कलकत्ता (आधुनिक कोलकाता) में 'गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट्स' में दाख़िला लिया, जिसके प्रधानाचार्य पर्सी ब्राउन उनके प्रमुख प्रेरणा स्रोत थे। जामिनी रॉय के शैक्षणिक प्रशिक्षण ने उन्हें चित्रकारी की विभिन्न तकनीकों में पारंगत होने में मदद की, उन्होंने प्रतिकृति चित्रण एवं प्राकृतिक दृश्य चित्रण से शुरुआत की, जो तुरंत लोगों की नज़रों में आई। .

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जेसी वाग

जेसी वाग (6 मई 1974 जन्म) एक अमेरिकी है चित्रकला, फिल्म निर्माण, मूर्ति और संगीत में काम करने वाले कलाकार.

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वर्णक

वर्णक या रंगद्रव्य या रंजक या पिगमेन्ट (pigment) ऐसे पदार्थ को कहते हैं जो अपने ऊपर गिरने वाले प्रकाश को किसी अन्य रंग में बदलकर प्रतिबिम्बित करे। ऐसे पदार्थ अपने ऊपर गिरने वाले प्रकाश की किरणों में से कुछ तरंगदैर्घ्य (वेवलेन्थ) वाली किरणें सोख लेते हैं और बाकी को प्रतिबिम्बित कर देते हैं। जो किरणें प्रतिबिम्बित होती हैं पदार्थ का रंग वही दिखता है। उदाहरण के लिए सिन्दूर नीले व हरे रंग वाली किरणें सोख लेता है और लाल व नारंगी किरणें प्रतिबिम्बित करता है। प्रयोग-योग्य रंगद्रव्य ऐसे पदार्थ और द्रव होते हैं जिन्हें अन्य वस्तुओं पर लेपा जा सके जिससे उन वस्तुओं का भी वही रंग हो जाता है। .

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वाजिद खान

वाजिद खान (जन्म: १० मार्च १९८१, मंदसौर,मध्य प्रदेश, भारत) एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आयरन नेल आर्टिस्ट (कलाकार), चित्रकार, पेटेंट धारक, व अविष्कारक हैं। .

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विधा

विधा (फ्रेंच: जीनर / genre) का साधारण अर्थ प्रकार, किस्म, वर्ग या श्रेणी है। यह शब्द विविध प्रकार की रचनाओं को वर्ग या श्रेणी में बांटने से उस विधा के गुणधर्मो को समझने में सुविधा होती है। यह वैसे ही है जैसे जीवविज्ञान में जीवों का वर्गीकरण किया जाता है। साहित्य एवं भाषण में विधा शब्द का प्रयोग एक वर्गकारक (CATEGORIZER) के रूप में किया जाता है। किन्तु सामान्य रूप से यह किसी भी कला के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है। विधाओं की उपविधाएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिये हम कहते हैं कि निबन्ध, गद्य की एक विधा है।. विधाएँ अस्पष्ट (vague) श्रेणीयाँ हैं और इनकी कोई निश्चित सीमा-रेखा नहीं होती। ये समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर इनकिइ पहचान निर्मित हो जाती है। .

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विमा (गणित)

पहले चार दिक् के विमाओं का चित्रण गणित और भौतिकी में किसी भी वस्तु या दिक् ("स्पेस") के उतने विमा या डिमॅनशन होते हैं जितने निर्देशांक ("कुओरडिनेट्स") उस वस्तु या दिक् के अन्दर के हर बिंदु के स्थान को पूरी तरह व्यक्त करने के लिए चाहिए होते हैं। एक लक़ीर पर किसी बिंदु का स्थान बताने के लिए केवल एक ही निर्देशांक ज़रूरी है, इसलिए लकीरें एकायामी होती हैं। किसी गोले की सतह पर किसी बिंदु के स्थान के लिए दो निर्देशांक (अक्षांश और रेखांश) काफ़ी हैं इसलिए ऐसी सतह दो-आयामी होती है। जिस दिक् में मनुष्य रहते हैं उसमें तीन निर्देशांकों की आवश्यकता है, इसलिए यह त्रिआयामी होती है। गणित में चार या चार से अधिक विमाों के दिक् की भी कल्पना की जाती हैं, हालांकि मनुष्य स्वयं केवल त्रिआयामी दिक् का ही अनुभव कर सकते हैं। अनौपचारिक भाषा में कहा जा सकता है के मनुष्यों के नज़रिए से हमारे अस्तित्व के दिक् के तीन पहलू या विमाते हैं - ऊपर-नीचे, आगे-पीछे और दाएँ-बाएँ। .

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विरूप-चित्रण

चार्ल्स डार्विन का बन्दर के रूप में विरूप-चित्रण व्यक्ति, समाज अथवा राजनीति पर चित्रों के माध्यम से व्यंग्य कसने अथवा उपहास करने की सामान्य विधा को विरूप-चित्रण या कैरिकेचर (Caricature) कहते हैं। यह मूलत फ्रेंच का शब्द है और फ्रेंच में यह इतालवी शब्द 'कैरिकेचुरा' से लिया गया था जिसका तात्पर्य वैयक्तिक गुणों अथवा अवगुणों का अतिरंजित चित्रण था। चित्रकला की इस विधा का आरंभ ढूँढनेवाले लोग इसे अरस्तू के काल तक जा पहुँचते हैं। अरस्तु ने पाउसन नामक एक कलाकार का उल्लेख किया है जो लोगों का उपहास चित्रों के माध्यम से किया करता था। प्लीनी ने बुपुलस और अथेनिस नामक दो मूर्तिकारों की चर्चा की है जिन्होंने कवि हिमपानाक्स का जो देखने में बदसूरत लगता था। मजाक बनाने के लिये एक मूर्ति बनाई थी। किंतु इनके बाद किसी चित्रकार अथवा मूर्तिकार का पता नही लगता जिन्होंने इस प्रकार का कोई अंकन किया हो। लिनार्डो द विन्सी नामक विख्यात चित्रकार के बनाए विकृत चेहरों के अनेक चित्र उपलब्ध होते हैं जिन्हें सामान्य भाव से कैरिकेचर की संज्ञा दी जा सकती है। किंतु उनके संबंध में कहा जाता है की उन्हें उन्होंने किसी प्रकार की उपहास भावना से प्रस्तुत नही किया था वरन्‌ वे वस्तुत असाधारण कुरूप लोगों के रेखाचित्र है जिन्हें उन्होंने मनोयोगपूर्वक अध्ययन कर तैयार किया था। इस प्रकार सोलहवीं शती के बाद ही इस विधा के विकास का क्रमबद्ध इतिहास यूरोप में प्राप्त होता है। कैरिकेचर का महत्व उसकी रचना में उतना नहीं है जितना कि उसके प्रचार प्रसार में। अत मुद्रण साधनों के विकास का साथ ही इसका भी विकास हुआ और पत्र पत्रिकाओं से उसे विशेष प्रोत्साहन मिला और आज इसे भी पत्र पत्रिकाओं में महत्व प्राप्त है। अब वह कैरिकेचर की अपेक्षा कार्टून के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। अपने इस रूप मे वह सामयिक सभी प्राकार की गतिविधियों पर प्रच्छन्न रूप से चुटीली टीका का एक सशक्त माध्यम माना जाता है। .

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विलियम मेकपीस थैकरे

विलियम थैकरे विलियम मेकपीस थैकरी (William Makepeace Thackeray / 1811 – 1863) उन्नीसवीं शताब्दी के अंग्रेजी के उपन्यासकार। विलियम मेकपीस का जन्म कोलकाता में हुआ था। पिता की मृत्यु के उपरांत १८१७ में स्वदेश चला गया। शिक्षा चार्टरहाउस स्कूल और केब्रिज में हुई। एक वर्ष के भीतर ही विश्वविद्यालय छोड़कर यूरोप भ्रमण के लिये चला गया। लौटकर कानून का अध्ययन प्रारंभ किया, परंतु शीघ्र ही उसे भी छोड़कर पत्रकारिता की ओर ध्यान दिया। क्रमश: दो पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ किया; परंतु दोनों असफल रहे। अब उसने चित्रकला के अध्ययनार्थ पेरिस और रोम की यात्रा की। पेरिस में १८३६ में इज़ाबेला शॉ से विवाह किया। अगले वर्ष इंग्लैंड लौटने पर उसने 'फ्रेजर्स मैंगज़ीन' में लिखना आरंभ किया। 'दि यलोप्लश पेपर्स' (१८३७-८); 'कैथरीन' (१८४०), 'दि ग्रेट हॉगर्टी डायमंड' (१८४१) और 'बैरी लिंडन' (१८४४) इसी पत्रिका में प्रकाशित हुए। परंतु प्रसिद्धि सर्वप्रथम 'पंच' नामक पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं, विशेषकर; 'दि बुक ऑव स्नॉब्स' (१८४६-७), द्वारा प्राप्त हुई। 'बैनिटी फेयर' (१८४७-८) के प्रकाशन ने उसके जीवन में असली मोड़ ला दिया। इस असाधरण रचना के कारण वह फील्डिंग जैसे शीर्षस्थ अंग्रेजी उपन्यासकारों के समकक्ष हो गया और जीवित उपन्यासंकारों में चार्ल्स डिकेंस को छोड़कर उसका कोई प्रतिद्वंद्वी न रहा। अगला उपन्यास 'पेंडेनिस' (१८४८-५०) काफी अंशों में आत्मकथात्मक है। १८५१ में 'दि इंग्लिश ह्यूमरिस्ट्स ऑव दि एटीन्थ सेंचुरी' तथा १८५६ में 'फोर जॉर्जेज' पर उसने बड़े सफल भाषण दिए। ये भाषण क्रमश: १८५२ और १८५६ में उसने अमरीका में भी दिए। इस बीच 'हेनरी एस्मंड' (१८५२), जो संभवत: उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना तथा अंग्रेजी का सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक उपन्यास है तथा 'दि न्यूकम्स' (१८५३) प्रकाशित हो चुके हैं। 'दि वर्जीनियंस' (१८५७-९) 'एस्मंड' का ही उत्तर भाग है, परंतु उसमें थैकरे की कला का वैसा उत्कृष्ट रूप नहीं मिलता। १८६० में वह 'कॉर्नहिल मैंगज़ीन' का प्रधान संपादक बना, तथा उसमें 'लॉवेल दि विडोअर' (१८६०) और 'दि एडवेंचर्स ऑव फिलिप' (१८६१-२) प्रकाशित किए। 'दि राउण्ड अवाउंट पेपर्स' (१८६०-३) उन चित्ताकर्षक निबंधों का संग्रह है जो उसने इस पत्रिका में नियमित रूप से लिखे थे। अंतिम उपन्यास 'डेनिस डूबल' उसकी अचानक मृत्यु के कारण अधूरा रह गया, तथापि इसमें पुन: उसकी कला अपने सर्वोच्च शिखर पर दिखाई देती है। .

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विश्व देवालय (पैन्थियन), रोम

विश्व देवालय ((ब्रिटेन) या (अमेरिका), Pantheon,शायद ही कभी पैन्थियम. इस इमारत का वर्णन करने में प्लिनी के प्राकृतिक इतिहास (XXXVI.38) में यह दिखाई देता है: Agrippae Pantheum decoravit Diogenes Atheniensis; in columnis templi eius Caryatides probantur inter pauca operum, sicut in fastigio posita signa, sed propter altitudinem loci minus celebrata. से, "सभी देवताओं के लिए" अर्थ में प्रयुक्त मंदिर के लिए लिया गया ग्रीक शब्द, ἱερόν, समझा जाता है) रोम में बनी एक इमारत है, जो मार्क्स अग्रिप्पा द्वारा प्राचीन रोम के सभी देवी-देवताओं के मंदिर के रूप में बनायी गयी थी और 126 ई. में सम्राट हैड्रियन ने इसे दोबारा बनवाया था। लगभग समकालीन लेखक (द्वितीय-तृतीय सी. सीई), कैसियस डियो ने अनुमान लगाया कि यह नाम या तो इस इमारत के आसपास रखी गयी इतनी अधिक मूर्तियों की वजह से, या फिर स्वर्ग के गुंबद से इसकी समानता की वजह से रखा गया। फ्रांसीसी क्रांति के बाद से, जब संत जेनेवीव ने, पेरिस के चर्च को अप्रतिष्ठित कर उसे धर्मनिरपेक्ष स्मारक के रूप में बदल कर उसे पेरिस का विश्व देवालय बना दिया, उसी समय से ऐसी किसी भी इमारत जहां किसी प्रसिद्ध मृतक को सम्मानित किया गया या दफनाया गया हो, उसके लिए सामान्य शब्द विश्व देवालय (पैन्थियन), का प्रयोग किया जाने लगा है। यह इमारत तीन पंक्तियों के विशाल ग्रेनाइट कोरिंथियन कॉलम की वजह से गोलाकार है जिसका बरामदा (पहली पंक्ति में आठ और पीछे चार के दो समूहों में) गोल घर में खुल रहे त्रिकोणिका के नीचे हो, कंक्रीट के गुंबद में बने संदूक में जिसका केंद्र (आंख) (ऑकुलस) आकाश की ओर खुलता हो.

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विष्णुप्रसाद राभा

विष्णुप्रसाद राभा (বিষ্ণুপ্ৰসাদ ৰাভা) असम के एक प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी थे। वे 'लोक संस्कृति आन्दोलन' के पक्षधर थे और इसलिए उन्होने शास्त्रीय एवं लोक संस्कृति पर बहुत ध्यान दिया। स्थानीय लोग उन्हें 'कलागुरु' कहते हैं। वे एक मेधावी विद्यार्थी थे किन्तु भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उनकी शिक्षा अधूरी रह गयी। ब्रितानी पुलिस ने उन्हें बहुत सारी यातनाएँ दीं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में उनके नटरा नृत्य पर मुग्ध होकर तत्कालीन उपकुलपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बिष्णुप्रसाद राभा को 'कलागुरु' की उपाधि दी थी। .

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व्यंग्यचित्र

सन १९०८ में संडे टाइम्स में प्रकाशित ''हाथी और बेलन'' नामक व्यंग्यचित्र। इस व्यंग्य चित्र में गांधीजी को एक महावत के रूप में तथा भारतीय समुदाय को एक विशाल शक्तिशाली हाथी के रूप में चित्रित करते हुए व्यंग्य चित्रकार ने बताया कि किस प्रकार जनरल स्मट्स सड़क बनानेवाले बेलन के द्वारा इस हाथी को धकेलने की पुरजोर कोशिश कर रहा है, किंतु हाथी को परे धकेलने में वह सफल नहीं हो पा रहा है। अपनी असफलता से स्मट्स परेशान नजर आ रहा है। व्यंग्यचित्र या कार्टून दृष्य कला का एक एक रूप है। कार्टून शब्द के अर्थ में समय के साथ विस्तार होता गया है। इस समय कार्टून शब्द का प्रयोग कई अर्थों में होता है। मूल रूप में, उस आरम्भिक रेखाचित्र (ड्राइंग) को कार्टून कहते थे जो किसी पेंटिंग को तैयार करने के दौरान बनायी जाती थी। इसके बाद, आधुनिक युग में समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में छपने वाले हास्योदपादक रेखाचित्रों को कार्टून कहा जाने लगा। आजकल तो कई अन्य प्रकार के चित्रों एवं चलित-चित्रों (एनिमेटेड विडियो) को भी कार्टून कहा जाने लगा है। .

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व्यौहार राममनोहर सिंहा

व्यौहार राममनोहर सिंहा (1929 - 2007) एक भारतीय कलाकार थे जिन्होंने भारतीय संविधान श्रेणी:भारतीय कलाकार.

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वृंदावनलाल वर्मा

वृन्दावनलाल वर्मा (०९ जनवरी, १८८९ - २३ फरवरी, १९६९) हिन्दी नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया है तो दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धारा को उत्कर्ष तक पहुँचाया है। इतिहास, कला, पुरातत्व, मनोविज्ञान, मूर्तिकला और चित्रकला में भी इनकी विशेष रुचि रही। 'अपनी कहानी' में आपने अपने संघर्षमय जीवन की गाथा कही है। .

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खलील जिब्रान

खलील जिब्रान खलील जिब्रान खलील जिब्रान (Khalil Gibran (/dʒɪˈbrɑːn/; पूरा अरबी नाम: Gibran Khalil Gibran, अरबी: جبران خليل جبران‎ / ALA-LC: Jubrān Khalīl Jubrān or Jibrān Khalīl Jibrān) (6 जनवरी, 1883 – 10 जनवरी, 1931) एक लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा न्यूयॉर्क पेन लीग के लेखक थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होना पड़ा और जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। आधुनिक अरबी साहित्य में जिब्रान खलील 'जिब्रान' के नाम से प्रसिद्ध हैं, किंतु अंग्रेजी में वह अपना नाम खलील ज्व्रान लिखते थे और इसी नाम से वे अधिक प्रसिद्ध भी हुए। .

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खाड़ी युद्ध

कोई विवरण नहीं।

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गुलाम मोहम्मद शेख

गुलाम मोहम्मद शेख (जन्म 1937 सुरेंद्रनगर, गुजरात) अन्तर्राष्ट्रीय रूप से प्रसिद्ध चित्रकार, लेखक एवं कला समालोचक हैं। 1983 में कला के प्रति उनके योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी अतियथार्थवादी कविताओं के संग्रह अथवा ' को महत्वपूर्ण समीक्षात्मक प्रशंसा प्राप्त हुई है। उन्होंने घर जतन शीर्षक नामक एक गद्य श्रृंखला भी लिखी है और क्षितिज के कई विशिष्ट अंकों का सम्पादन भी किया है। .

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ओरहान पामुक

ओर्हान पामुक उपन्यासकार ओरहन पामुक का जन्म 1952 इस्तांबुल में हुआ ! उनके माता-पिता इंजनियरिंग में थे, इसलिए उनको भी इसी की सलाह दी गई ! इसके बावजूद वे बचपन में चित्रकार बनना चाहते थे, लेकिन अचानक उनकी रुचि साहित्य की तरफ झुकी और फिर उन्होंने 1974 से अपना लेखन प्रारंभ किया ! टर्की में इसके लिए में कोई अनुकूल राजनीतिक-सामाजिक परिस्थितियाँ नहीं थी, वे जिस भाषा में लिखते थे, उस हिसाब भी से विश्व-साहित्य में स्थान बना पाना कठिन था ! घरेलु और बाहरी मुश्किलों को झेलते हुए हुए भी उन्होंने अपने लेखन को एक मजबूत दिशा प्रदान की ! "परेशानी ही परेशानी, तलाक, पिता मर रहे थे, आर्थिक परेशानी, ये परेशानी, वो परेशानी, लेकिन मैं जान गया था की अगर मैं यहीं फंसा रहा तो जरूर मानसिक विकलांगता में चला जाऊंगा, इसलिए मैं रोज़ सुबह उठकर शावर के नीचे नहाता था और लिखने बैठ जाता था, इस उद्देश्य के साथ की मुझे एक अच्छी और सुन्दर किताब लिखनी है!" - पामुक (साक्षात्कार-द हिन्दू) ओरहान पामुक को पूर्व और पश्चिम के बीच के तनाव पर लिखने के लिए जाना जाता है। उनकी पुस्तकों की केन्द्रीय भूमिका यही है जिसमे वे दुनिया के दो हिस्सों के बीच की मानसिक - वैचारिक टकराहट को खंगालने की कोशिश करते हैं। ओरहान पामुक को सच्ची सफलता तब मिली जब 'माई नेम इज रेड' किताब दुनिया भर में पसंद की गई ! उसके बाद उन्होंने 'स्नो' 'म्यूज़ियम ऑफ इनोसेंस' 'इस्तांबुल, मेमोरी एंड द सिटी' आदि विविधता भरी बेहतरीन किताबें अपने पाठकों को दी, जो अंतर्राष्टीय स्तर पर बेस्टसेलर साबित हुई ! हिंदी में ओरहान पामुक की तीन किताबें पेंगुइन बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित हुई हैं, माई नेम इज रेड' का हिंदी अनुवाद 'मेरे क़त्ल की दास्तान' नाम से और स्नो तथा द ब्लैक बुक इन्ही मूल नामों से उपलब्ध है ! पामुक एक प्रयोगधर्मी उपन्यासकार हैं जो साहित्य को स्वतंत्र कर्म मानते हुए किसी भी प्रकार की परिपाटी और प्रतिबद्धता को स्वीकार नहीं करते ! "मैं उस बच्चे की तरह हूँ, जो अपने पिता को बताना चाहता है की देखो मैं कितना होशियार हूँ!"(साक्षात्कार- पेरिस रिव्यू) कई पुरस्कारों से सम्मानित ओरहन पामुक को वर्ष 2006 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ! श्रेणी:नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार श्रेणी:1952 में जन्मे लोग श्रेणी:जीवित लोग.

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आधुनिकतावाद

हंस होफ्मन, "द गेट", 1959–1960, संग्रह: सोलोमन आर. गुगेन्हीम म्यूज़ियम होफ्मन केवल एक कलाकार के रूप में ही नहीं, बल्कि एक कला शिक्षक के रूप में भी मशहूर थे और वे अपने स्वदेश जर्मनी के साथ-साथ बाद में अमेरिका के भी एक आधुनिकतावादी सिद्धांतकार थे। 1930 के दशक के दौरान न्यूयॉर्क एवं कैलिफोर्निया में उन्होंने अमेरिकी कलाकारों की एक नई पीढ़ी के लिए आधुनिकतावाद एवं आधुनिकतावादी सिद्धांतों की शुरुआत की.ग्रीनविच गांव एवं मैसाचुसेट्स के प्रोविंसटाउन में स्थित अपने कला विद्यालयों में अपने शिक्षण एवं व्याख्यान के माध्यम से उन्होंने अमेरिका में आधुनिकतावाद के क्षेत्र का विस्तार किया।हंस होफ्मन की जीवनी, 30 जनवरी 2009 को उद्धृत आधुनिकतावाद, अपनी व्यापक परिभाषा में, आधुनिक सोच, चरित्र, या प्रथा है अधिक विशेष रूप से, यह शब्द उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के आरम्भ में मूल रूप से पश्चिमी समाज में व्यापक पैमाने पर और सुदूर परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाली सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के एक समूह एवं सम्बद्ध सांस्कृतिक आन्दोलनों की एक सरणी दोनों का वर्णन करता है। यह शब्द अपने भीतर उन लोगों की गतिविधियों और उत्पादन को समाहित करता है जो एक उभरते सम्पूर्ण औद्योगीकृत विश्व की नवीन आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्थितियों में पुराने होते जा रहे कला, वास्तुकला, साहित्य, धार्मिक विश्वास, सामाजिक संगठन और दैनिक जीवन के "पारंपरिक" रूपों को महसूस करते थे। आधुनिकतावाद ने ज्ञानोदय की सोच की विलंबकारी निश्चितता को और एक करुणामय, सर्वशक्तिशाली निर्माता के अस्तित्व को भी मानने से अस्वीकार कर दिया.

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आंतोन मेंग्स राफेल

'''आंतोन मेंग्स राफेल''' का स्वचित्र (सेल्फ-पोर्ट्रेट) 300px आंतोन मेंग्स राफेल (Anton Raphael Mengs, 1728 - 1779)) जर्मनी का चित्रकार था। .

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इटली का इतिहास

प्राचीन रोम की प्रतीक मादा भेड़िया इटली का इतिहास ईसा पूर्व ९वीं शताब्दी से आरम्भ होता है। इसी समय वर्तमान इटली के केन्द्रीय भाग में इतालवी जनजातियों के अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं। भाषाई रूप से वे मुख्यतः तीन भाषाएँ बोलते थे- ओस्कान (Oscan), अम्ब्रिआन (Umbrian) तथा लातिन (Latin)। कालान्तर में ३५० ईसापूर्व जब रोम शक्तिशाली नगर-राज्य के रूप में उभरा तो लातिन संस्कृति का वर्चस्व स्थापित होता गया। रोमन पूर्व काल में ८वीं शती ईसापूर्व वृहत यूनान (Magna Graecia) नामक सभ्यता भी थी जब यूनानी लोग इटली के दक्षिणी भागों में बसने लगे थे। बाद में रोमन साम्राज्य का पूरे पश्चिमी योरप तथा भूमध्य क्षेत्र पर कई शताब्दियों तक वर्चस्व रहा। ४७६ ई के आसपास जब रोमन साम्राज्य का पतन हुआ तो इटली लगभग एक हजार वर्षों तक छोटे-छोटे नगर-राज्याँ के रूप में बिखरा रहा और अन्ततः विभिन्न विदेशी शक्तियों के अधीन आ गया। इटली के कुछ भागों पर स्पेनियों का अधिकार हो गया, कुछ पर आस्ट्रियाई तथा दूसरे विश्वयुद्ध में इटली ने धुरीराष्ट्रों का साथ दिया। मित्रराष्ट्रों की विजय के पश्चात् इटली से फासिस्त सत्ता का अंत हुआ। .

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इस्लामी कला

इस्लामी कला में आती हैं, सातवीं शताब्दी से आरंभ हुई कलाएं, जो कि उन लोगों द्वारा (अनिवार्य रूप से मुस्लिम नहीं) जो कि मुस्लिम संस्कृति से जुडे़ क्षेत्रों में रहते थे; के द्वारा बढा़ई गईं। इसमें सम्मिलित हैं इस्लामी वास्तुकला, इस्लामी सुलेखन, चित्रकारी एवं चीनी मिट्टी के कार्य। वैसे इस्लामी दर्शन और दृश्टिकोण के आधार पर निम्न कळायें उभर कर आईं।.

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कला

राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित 'गोपिका' कला (आर्ट) शब्द इतना व्यापक है कि विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ केवल एक विशेष पक्ष को छूकर रह जाती हैं। कला का अर्थ अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है, यद्यपि इसकी हजारों परिभाषाएँ की गयी हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं को कहते हैं जिनमें कौशल अपेक्षित हो। यूरोपीय शास्त्रियों ने भी कला में कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। कला एक प्रकार का कृत्रिम निर्माण है जिसमे शारीरिक और मानसिक कौशलों का प्रयोग होता है। .

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कलाकृति

कलाकृति (work of art या artwork) ऐसी भौतिक वस्तु को कहते हैं जिनका कला या सौन्दर्य की दृष्टि से मूल्य हो। यह आमतौर पर मानव-कृत होती हैं। चित्रकला, शिल्पकला, आभूषण, आंतरिक डिज़ाइन की वस्तुएँ, इत्यादि सभी कलाकृति के उदाहरण हैं। .

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के एम करिअप्पा

फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा (२८ जनवरी १८९९ - १५ मई १९९३) भारत के पहले सेनाध्यक्ष थे। उन्होने सन् १९४७ के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया। वे भारत के दो फील्ड मार्शलों में से एक हैं (दूसरे हैं - फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ। .

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केदार शर्मा

केदार शर्मा (संवत् 1954 - संवत् 2023) चित्रकार एवं हिन्दी साहित्यकार थे। .

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अर्पिता सिंह

अर्पिता सिंह एक भारतीय कलाकार हैं। अर्पिता सिंह का जन्म पश्चिम बंगाल, भारत में हुआ था। Contemporary Women Artists.

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अली ज़फ़र

अली ज़फ़र (उर्दू: علی ظفر जन्म: मई १८, १९८०) एक पाकिस्तानी संगीतकार, गीतकार, गायक, अभिनेता, चित्रकार और मॉडल है। .

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अश्‍लील ग्रंथ

जीन अगीलू (Jean Agélou) विरचित फर्नांडी (1910–1917) कला, साहित्य, फोटोग्राफी, फिल्म, मूर्तिकला, चित्रकला आदि का वह रूप जो कामोत्तेजक हों, अश्लील साहित्य या इरोटिका (Erotica) कहलाते हैं। वर्तमान काल में यह मानव-शरीर-रचना एवं कामुकता का उच्च कला के माध्यम से निरूपण है। इस मामले में यह 'पोर्नोग्राफी' से भिन्न है। .

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अक्षरांकन

महाभारत में किया गया अक्षरांकन अक्षरांकन या कैलीग्राफी (Calligraphy) एक अक्षर कला है। इसकी सहायता से ब्रश/क्रोकिल/विभिन्न तरीके व स्ट्रोक के फाउण्टेन पेन व निब की सहायता से एक विशिष्ट शैली की स्वयं की लिखाई की डिजाइन प्रक्रिया को सीखा व अपनाया जाता हैं। आजकल का अक्षरांकन हस्तनिर्मित से लेकर कंप्यूटर के द्वारा निर्मित किया जाता है | कैलीग्राफी को पॉपकॉर्न (बब्लगम जैसे स्वाद वाली) लेखनशैली भी कहते हैं| कैलीग्राफी अथवा अक्षरांकन लिखने की एक दृश्यात्मक शैली है.

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उत्तर प्रदेश

आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .

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उत्तर प्रदेश का इतिहास

उत्तर प्रदेश का भारतीय एवं हिन्दू धर्म के इतिहास मे अहम योगदान रहा है। उत्तर प्रदेश आधुनिक भारत के इतिहास और राजनीति का केन्द्र बिन्दु रहा है और यहाँ के निवासियों ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभायी। उत्तर प्रदेश के इतिहास को निम्नलिखित पाँच भागों में बाटकर अध्ययन किया जा सकता है- (1) प्रागैतिहासिक एवं पूर्ववैदिक काल (६०० ईसा पूर्व तक), (2) हिन्दू-बौद्ध काल (६०० ईसा पूर्व से १२०० ई तक), (3) मध्य काल (सन् १२०० से १८५७ तक), (4) ब्रिटिश काल (१८५७ से १९४७ तक) और (5) स्वातंत्रोत्तर काल (1947 से अब तक)। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पेंटिंग, चित्रकारी

निवर्तमानआने वाली
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