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चन्दन का पालना (1967 फ़िल्म)

सूची चन्दन का पालना (1967 फ़िल्म)

चन्दन का पालना 1967 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

6 संबंधों: दुर्गा खोटे, धर्मेन्द्र द्वारा अभिनीत फ़िल्में, मुमताज़ (अभिनेत्री), मीना कुमारी, हिंदी चलचित्र, १९६० दशक, अभि भट्टाचार्य

दुर्गा खोटे

दुर्गा खोटे (निधन: 22 सितंबर, 1991) हिन्दी अपने जमाने मे हिन्दी व मराठी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री रही हैं। उन्होंने अनेक हिट फिल्मों में शानदार अभिनय किया। आरम्भिक फिल्मों में नायिका की भूमिकाएँ करने के बाद जब वे चरित्र अभिनेत्री की भूमिकाओं में दर्शकों के सामने आईं, तबके उनके बेमिसाल अभिनय को आज तक लोग याद करते हैं। .

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धर्मेन्द्र द्वारा अभिनीत फ़िल्में

धर्मेन्द्र (पंजाबी: ਧਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਦਿਉਲ जन्म: ८ दिसंबर, १९३५) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। इनकी पत्नी हेमा मालिनी, पुत्र बॉबी देओल और सनी देओल भी फ़िल्मों में काम करते हैं। धर्मेन्द्र 2004 से 2009 तक भारतीय राज्य राजस्थान के बीकानेर जिले से भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा सांसद थे। इन्होंने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत १९६१ में बॉयफ्रैंडनामक फिल्म से की थी। .

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मुमताज़ (अभिनेत्री)

मुमताज़ (जन्म: 31 जुलाई, 1947) हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। .

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मीना कुमारी

मीना कुमारी (1 अगस्त, 1933 - 31 मार्च, 1972) भारत की एक मशहूर अभिनेत्री थीं। इन्हें खासकर दुखांत फ़िल्मों में इनकी यादगार भूमिकाओं के लिये याद किया जाता है। मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की ट्रैजेडी क्वीन भी कहा जाता है। अभिनेत्री होने के साथ-साथ मीना कुमारी एक उम्दा शायारा एवम् पार्श्वगायिका भी थीं। मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था और ये बंबई में पैदा हुई थीं। उनके पिता अली बक्श पारसी रंगमंच के एक मँझे हुए कलाकार थे और उन्होंने "ईद का चाँद" फिल्म में संगीतकार का भी काम किया था। उनकी माँ प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो), भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी। मीना कुमारी की बड़ी बहन खुर्शीद बानो भी फिल्म अभिनेत्री थीं जो आज़ादी के बाद पाकिस्तान चलीं गईं।कहा जाता है कि दरिद्रता से ग्रस्त उनके पिता अली बक़्श उन्हें पैदा होते ही अनाथाश्रम में छोड़ आए थे चूँकि वे उनके डाॅक्टर श्रीमान गड्रे को उनकी फ़ीस देने में असमर्थ थे।हालांकि अपने नवजात शिशु से दूर जाते-जाते पिता का दिल भर आया और तुरंत अनाथाश्रम की ओर चल पड़े।पास पहुंचे तो देखा कि नन्ही मीना के पूरे शरीर पर चीटियाँ काट रहीं थीं।अनाथाश्रम का दरवाज़ा बंद था, शायद अंदर सब सो गए थे।यह सब देख उस लाचार पिता की हिम्मत टूट गई,आँखों से आँसु बह निकले।झट से अपनी नन्हीं-सी जान को साफ़ किया और अपने दिल से लगा लिया।अली बक़्श अपनी चंद दिनों की बेटी को घर ले आए।समय के साथ-साथ शरीर के वो घाव तो ठीक हो गए किंतु मन में लगे बदकिस्मती के घावों ने अंतिम सांस तक मीना का साथ नहीं छोड़ा। महजबीं पहली बार 1939 में फिल्म निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म फ़रज़न्द-ए-वतन में बेबी महज़बीं के रूप में नज़र आईं। 1940 की फिल्म "एक ही भूल" में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर बेबी मीना कर दिया। 1946 में आई फिल्म बच्चों का खेल से बेबी मीना 14 वर्ष की आयु में मीना कुमारी बनीं। मार्च 1947 में लम्बे समय तक बीमार रहने के कारण उनकी माँ की मृत्यु हो गई। मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थीं जिनमें हनुमान पाताल विजय, वीर घटोत्कच व श्री गणेश महिमा प्रमुख हैं। 1952 में आई फिल्म बैजू बावरा ने मीना कुमारी के फिल्मी सफ़र को नई उड़ान दी। मीना कुमारी द्वारा चित्रित गौरी के किरदार ने उन्हें घर-घर में प्रसिद्धि दिलाई। फिल्म 100 हफ्तों तक परदे पर रही और 1954 में उन्हें इसके लिए पहले फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1953 तक मीना कुमारी की तीन फिल्में आ चुकी थीं जिनमें: दायरा, दो बीघा ज़मीन और परिणीता शामिल थीं। परिणीता से मीना कुमारी के लिये एक नया युग शुरु हुआ। परिणीता में उनकी भूमिका ने भारतीय महिलाओं को खास प्रभावित किया था चूँकि इस फिल्म में भारतीय नारी की आम जिंदगी की कठिनाइयों का चित्रण करने की कोशिश की गयी थी। उनके अभिनय की खास शैली और मोहक आवाज़ का जादू छाया रहा और लगातार दूसरी बार उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार के लिए चयनित किया गया। वर्ष 1951 में फिल्म तमाशा के सेट पर मीना कुमारी की मुलाकात उस ज़माने के जाने-माने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही से हुई जो फिल्म महल की सफलता के बाद निर्माता के तौर पर अपनी अगली फिल्म अनारकली के लिए नायिका की तलाश कर रहे थे।मीना का अभिनय देख वे उन्हें मुख्य नायिका के किरदार में लेने के लिए राज़ी हो गए।दुर्भाग्यवश 21 मई 1951 को मीना कुमारी महाबलेश्वरम के पास एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गईं जिससे उनके बाहिने हाथ की छोटी अंगुली सदा के लिए मुड़ गई। मीना अगले दो माह तक बम्बई के ससून अस्पताल में भर्ती रहीं और दुर्घटना के दूसरे ही दिन कमाल अमरोही उनका हालचाल पूछने पहुँचे। मीना इस दुर्घटना से बेहद दुखी थीं क्योंकि अब वो अनारकली में काम नहीं कर सकती थीं। इस दुविधा का हल कमाल अमरोही ने निकाला, मीना के पूछने पर कमाल ने उनके हाथ पर अनारकली के आगे 'मेरी' लिख डाला।इस तरह कमाल मीना से मिलते रहे और दोनों में प्रेम संबंध स्थापित हो गया। 14 फरवरी 1952 को हमेशा की तरह मीना कुमारी के पिता अली बख़्श उन्हें व उनकी छोटी बहन मधु को रात्रि 8 बजे पास के एक भौतिक चिकित्सकालय (फिज़्योथेरेपी क्लीनिक) छोड़ गए। पिताजी अक्सर रात्रि 10 बजे दोनों बहनों को लेने आया करते थे।उस दिन उनके जाते ही कमाल अमरोही अपने मित्र बाक़र अली, क़ाज़ी और उसके दो बेटों के साथ चिकित्सालय में दाखिल हो गए और 19 वर्षीय मीना कुमारी ने पहले से दो बार शादीशुदा 34 वर्षीय कमाल अमरोही से अपनी बहन मधु, बाक़र अली, क़ाज़ी और गवाह के तौर पर उसके दो बेटों की उपस्थिति में निक़ाह कर लिया। 10 बजते ही कमाल के जाने के बाद, इस निक़ाह से अपरिचित पिताजी मीना को घर ले आए।इसके बाद दोनों पति-पत्नी रात-रात भर बातें करने लगे जिसे एक दिन एक नौकर ने सुन लिया।बस फिर क्या था, मीना कुमारी पर पिता ने कमाल से तलाक लेने का दबाव डालना शुरू कर दिया। मीना ने फैसला कर लिया की तबतक कमाल के साथ नहीं रहेंगी जबतक पिता को दो लाख रुपये न दे दें।पिता अली बक़्श ने फिल्मकार महबूब खान को उनकी फिल्म अमर के लिए मीना की डेट्स दे दीं परंतु मीना अमर की जगह पति कमाल अमरोही की फिल्म दायरा में काम करना चाहतीं थीं।इसपर पिता ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे पति की फिल्म में काम करने जाएँगी तो उनके घर के दरवाज़े मीना के लिए सदा के लिए बंद हो जाएँगे। 5 दिन अमर की शूटिंग के बाद मीना ने फिल्म छोड़ दी और दायरा की शूटिंग करने चलीं गईं।उस रात पिता ने मीना को घर में नहीं आने दिया और मजबूरी में मीना पति के घर रवाना हो गईं। अगले दिन के अखबारों में इस डेढ़ वर्ष से छुपी शादी की खबर ने खूब सुर्खियां बटोरीं। लेकिन स्वछंद प्रवृति की मीना अमरोही से 1964 में अलग हो गयीं। उनकी फ़िल्म पाक़ीज़ा को और उसमें उनके रोल को आज भी सराहा जाता है। शर्मीली मीना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कवियित्री भी थीं लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी कवितायें छपवाने की कोशिश नहीं की। उनकी लिखी कुछ उर्दू की कवितायें नाज़ के नाम से बाद में छपी। .

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हिंदी चलचित्र, १९६० दशक

1960 दशक के हिंदी चलचित्र .

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अभि भट्टाचार्य

अभि भट्टाचार्य हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। .

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