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घृष्णेश्वर मन्दिर

सूची घृष्णेश्वर मन्दिर

महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्‍णेश्‍वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से बारह मीर दूर वेरुलगाँव के पास स्थित है। .

12 संबंधों: द्वादश ज्योतिर्लिंग, भारत के प्रमुख हिन्दू तीर्थ, महाशिवरात्रि, मालोजी भोंसले, रुद्रावतार, शिव, श्रीभार्गवराघवीयम्, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, हिन्दू तीर्थ, घृष्णेश्वर मन्दिर, वाराणसी, ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर

द्वादश ज्योतिर्लिंग

हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। ये संख्या में १२ है। सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है। .

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भारत के प्रमुख हिन्दू तीर्थ

भारत अनादि काल से संस्कृति, आस्था, आस्तिकता और धर्म का महादेश रहा है। इसके हर भाग और प्रान्त में विभिन्न देवी-देवताओं से सम्बद्ध कुछ ऐसे अनेकानेक प्राचीन और (अपेक्षाकृत नए) धार्मिक स्थान (तीर्थ) हैं, जिनकी यात्रा के प्रति एक आम भारतीय नागरिक पर्यटन और धर्म-अध्यात्म दोनों ही आकर्षणों से बंधा इन तीर्थस्थलों की यात्रा के लिए सदैव से उत्सुक रहा है। .

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महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि (बोलचाल में शिवरात्रि) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। अधिक तर लोग यह मान्यता रखते है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवि पार्वति के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी जाता है। .

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मालोजी भोंसले

मालोजी भोंसले (लगभग १५५०-१६२० ई०) शाहजी के पिता तथा ख्यातिलब्ध छत्रपति शिवाजी के पितामह थे। मालोजी के पिता का नाम बाबाजी भोंसले था जो वेरूल के निवासी थे। उनका विवाह मराठा अभिजात वंश में उत्पन्न बनगोजी नामक निंबालकर की बहिन दीपाबाई से हुआ था। २७ वर्ष की अवस्था में वे सिंधखेड के लखू जी यादव के अधीन, जो अहमदनगर के निजामशाही राज में उच्च पदाधिकारी थे, एक पद पर नियुक्त हो गए। सौभाग्य से मालोजी को अकस्मात् एक स्थान पर गड़ा हुआ धन प्राप्त हो गया। जिससे उन्होंने अपनी सेना में बहुत से युवक सिलहदारों को भरती कर लिया। अपने साहस, वीरता और सैनिक पराक्रम से उन्होंने यथेष्ट ख्याति अर्जित कर ली और समाज में अपने पुराने स्वामी लखूजी जादव के समकक्ष स्थान प्राप्त कर लिया। अब उन्होंने लखू जी से अनुरोध किया कि वे अपनी पुत्री जीजाबाई का विवाह उनके पुत्र शाहजी से कर दें। इसका प्रस्ताव उन्होंने एक बार पहले भी किया था किंतु उस समय लखूजी ने उसे ठुकरा दिया था, पर अब उन्हें प्रतिष्ठित स्थिति में देखकर लखूजी ने सहर्ष इसकी स्वीकृति दे दी। निजामशाही वंश को कुछ सीमा तक पुनरधिष्ठित कराने में मालोजी ने प्रसिद्ध सेनानी और राजनेता मलिक अंबर की सहायता की, जिसके बदले में उन्हें दौलताबाद तथा पूना के बीच में स्थित कुछ क्षेत्र जागीर के रूप में भेंट कर दिए गए। उन्होंने वेरूल के धृष्णेश्वर मंदिर का जीर्णोद्वार कराया, जैसा एक अभिलेख से प्रकट होता है। उन्होंने खानदेश में शिंगनपुर नामक स्थान पर एक तालाब बनवाया जिससे वहाँ के निवासियों को यथेष्ट मात्रा में पेय जल की उपलब्धि हो सके। श्रेणी:भारत के शासक श्रेणी:भारत का इतिहास.

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रुद्रावतार

रुद्रावतार भगवान् शिव (रूद्र) के अवतारों को कहा जाता है। शास्त्र अनुसार महादेव के २८ अवतार हुए थे उनमें भी १० प्रमुख है । .

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शिव

शिव या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ,गंगाधार के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। .

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श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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हिन्दू तीर्थ

कोई विवरण नहीं।

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घृष्णेश्वर मन्दिर

महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्‍णेश्‍वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से बारह मीर दूर वेरुलगाँव के पास स्थित है। .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर

झोंपड़ा गाँव राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में आने वाली प्रमुख ग्राम पंचायत है ! ग्राम पंचायत का सबसे बड़ा गाँव झोंपड़ा है जिसमें मीणा जनजाति का नारेड़ा गोत्र मुख्य रूप से निवास करता हैं। ग्राम पंचायत में झोंपड़ा, बगीना, सिरोही, नाहीखुर्द एवं झड़कुंड गाँव शामिल है। झोंपड़ा ग्राम पंचायत की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 5184 है और ग्राम पंचायत में कुल घरों की संख्या 1080 है। ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी नदी बनास नदी है वहीं पंचायत की सबसे लम्बी घाटी चढ़ाई बगीना गाँव में बनास नदी पर पड़ती है। ग्राम पंचायत का सबसे विशाल एवं प्राचीन वृक्ष धंड की पीपली है जो झोंपड़ा, बगीना एवं जगमोंदा गाँवों से लगभग बराबर दूरी पर पड़ती है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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