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घनत्व

सूची घनत्व

भौतिकी में किसी पदार्थ के इकाई आयतन में निहित द्रव्यमान को उस पदार्थ का घनत्व (डेंसिटी) कहते हैं। इसे ρ या d से निरूपित करते हैं। अर्थात अतः घनत्व किसी पदार्थ के घनेपन की माप है। यह इंगित करता है कि कोई पदार्थ कितनी अच्छी तरह सजाया हुआ है। इसकी इकाई किग्रा प्रति घन मीटर होती है। .

97 संबंधों: चन्द्रशेखर संख्या, ऊष्मा रोधन, ऊष्मा अन्तरण, चिरसम्मत यांत्रिकी, चक्रवातीय वर्षा, टर्बोचार्जर, ठोस अवस्था भौतिकी, डॅनवर, तरल यांत्रिकी, तरल गतिकी, त्रिभुज, थोरियम, दाब, द्रव नाइट्रोजन, द्रवघनत्वमापी, धातु, ध्वनि का वेग, ध्वनिकी, नाईजीरिया, न्यूट्रॉन का संसूचन, नेवियर-स्टोक्स समीकरण, परमाणु, पारा, पास्कल का सिद्धान्त, पुर्तगाल, प्रतिलोम समस्या, प्रावस्था, प्रघाती तरंग, प्रकाश का तरंग सिद्धान्त, प्लाविका, पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास, पृथ्वी का वायुमण्डल, पृथ्वी का इतिहास, पृथ्वी की आतंरिक संरचना, पेट्रोलियम जेली, पोलैंड, बंगाल, ब्लैक होल (काला छिद्र), बृहस्पति (ग्रह), बेरियम सल्फेट, बोरोसिलिकेट काँच, भारत के इमारती लकड़ी वाले वृक्ष, भौतिक गुण, भू-संतुलन, भूभौतिकी, भूगणित, भूगोल शब्दावली, मथित्र, मानव दाँत, मापिकी, ..., मुम्बई महानगरीय क्षेत्र, मेम्फिस, टेनेसी, मोलिब्डेनम, यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण, यूरेनियम, रेनल्ड्स संख्या, रीनियम, लिथियम, लौह अयस्क, श्यानतामापी, समुद्र विज्ञानी, सल्फर हेक्साफ्लोराइड, सिरका, संहति-केन्द्र, स्वतःप्रज्वलन ताप, सोडियम, सीसा, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, ह्युस्टन, हेंड्रिक लारेंज़, जड़त्वाघूर्णों की सूची, जनसंख्या भूगोल, जल, जल (अणु), जल इंजीनियरी, वायुगतिकी, विमीय विश्लेषण, विस्तारात्मक तथा अविस्तारात्मक गुणधर्म, विकृत पदार्थ, गन्धकाम्ल, गामा किरण, ग्रह, आदर्श तरल, आपेक्षिक घनत्व, आयतन, आर्लिंग्टन, टॅक्सस, आर्किमिडीज़, आर्कीमिडीज सिद्धान्त, कार्बन नैनोट्यूब, क्रिस्टलता, कोपनहेगन, अधातु, अनुप्रयुक्त भूभौतिकी, अरुण (ग्रह), अहमदनगर, अंतरतारकीय माध्यम, अंतरिक्ष सूचकांक विस्तार (47 अधिक) »

चन्द्रशेखर संख्या

चन्द्रशेखर संख्या एक विमारहित राशी है जिसे श्यानता के लिए लॉरेंज बल के अनुपात को चुम्बकीय संवहन में निरुपित करने के लिए काम में लिया जाता है। इसका नामकरण भारतीय खगोलभौतिक विज्ञानी सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर के सम्मान में किया गया। इस संख्या का मुख्य फलन चुम्बकीय क्षेत्र का मापन है जब यह निकाय के क्रान्तिक चुम्बकीय क्षेत्र के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होता है। .

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ऊष्मा रोधन

ठण्ड से बचने के लिये (अर्थात, ऊष्मा रोधकता को बढ़ाने के लिये) जन्तु अपने रोंओं या परों को कड़ा (सीधा) कर लेते हैं। दो वस्तुओं के बीच में ऊष्मा के प्रवाह में अवरोध को ऊष्मा अवरोधन (Thermal insulation) कहते हैं। ऊष्मा के रोधन के लिये विशेष रूप से अभिकल्पित प्रक्रमों, विशेष आकर तथा उपयुक्त पदार्थों का चुनाव बहुत जरूरी है। दो अलग-अलग ताप वाली वस्तुओं के सीधे सम्पर्क में आने पर उनके बीच ऊष्मा का अन्तरण अवश्य होगा। किन्तु इन दोनों वस्तुओं के बीच ऊष्मारोधी पदार्थ प्रविष्ट करा देने से ऊष्मा का प्रवाह पहले से कम होगा। कितना कम होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि ऊष्मारोधी पदार्थ की मोटाई कितनी है, उसकी ऊष्मा चालकता कितनी कम है आदि। इसी प्रकार विकिरण द्वारा ऊष्मा के प्रवाह को कम करने के लिये कुछ अन्य तरीके अपनाए जाते हैं। किसी पदार्थ की ऊष्मा चालकता जितनी कम होती है, वह उतना ही अच्छा ऊष्मारोधी होता है। ऊष्मा इंजीनियरी के क्षेत्र में ऊष्मारोधी पदार्थ के अन्य गुण हैं, घनत्व तथा विशिष्ट ऊष्मा। .

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ऊष्मा अन्तरण

पानी गरम करना ऊष्मा के अन्तरण का सबसे सामान्य उदाहरण है। किसी अधिक गर्म पिण्ड से किसी अधिक ठंडे पिंड में ऊष्मा के पारगमन को ऊष्मा अन्तरण (हीट ट्रान्सफर) कहते हैं। जब किसी वस्तु का तापमान उसके परिवेश या अन्य वस्तु की अपेक्षा भिन्न होता है तो ताप ऊर्जा का संचार जिसे ताप का बहाव या ताप का विनिमय भी कहते हैं, इस तरह से होता है कि वह वस्तु और उसका परिवेश ऊष्म-साम्यता ग्रहण कर लेते हैं; इसका मतलब है कि दोनों का तापमान समान हो जाता है। ऊष्मप्रवैगिकी के द्वितीय नियम या क्लॉज़ियस के कथन के अनुसार ऊष्मा का संचार हमेशा अधिक गर्म वस्तु से अधिक ठंडी वस्तु की ओर होता है। जहां कहीं भी पास-पास स्थित वस्तुओं में तापमान की भिन्नता होती है, उनके बीच ऊष्मा के संचार को कभी रोका नहीं जा सकता; इसे केवल कम किया जा सकता है। .

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चिरसम्मत यांत्रिकी

भौतिक विज्ञान में चिरसम्मत यांत्रिकी, यांत्रिकी के दो विशाल क्षेत्रों में से एक है, जो बलों के प्रभाव में वस्तुओं की गति से सम्बंधित भौतिकी के नियमो के समुच्चय की विवेचना करता है। वस्तुओं की गति का अध्ययन बहुत प्राचीन है, जो चिरसम्मत यांत्रिकी को विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी सबसे प्राचीन विषयों में से एक और विशाल विषय बनाता है। .

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चक्रवातीय वर्षा

दो विपरीत स्वभाव वाली हवाएं जब विपरीत दिशाओं से आकर मिलती हैं तो वाताग्र का निर्माण होता हैं। इस वाताग्र के सहारे गर्म हवाएं ऊपर उठ जाती हैं तथा ठंडी हवाएं नीचे हो जाती हैं। इस तरह का चक्रवातीय वाताग्र प्रायः शीतोष्ण कटिबन्धों में बनता हैं जहां पर ध्रवीय ठंडी तथा भारी हवाएं (उ० पू०) तथा गर्म, हल्की पछुवा हवाएं (द० प०) मिलती हैं। इसके विपरीत भूमध्य रेखा के पास समान स्वाभाव वाली व्यापारिक हवाएं (परन्तु विपरीत दिशाओं वाली) के मिलने से भी वाताग्र का निर्माण होता हैं। वास्तव में चक्रवात हवाओं का एक क्रम होता हैं, जिसके मध्य में निम्न दाब तथा परिधी की ओर उच्च दाब होता हैं, हवाएं बाहर से अन्दर की ओर चलती हैं। जब गर्म तथा ठंडी हवाएं आमने-सामने मिलती हैं तो कम घनत्ववाली हलकी हवा ज्यादा धनत्व तथा भारी ठंडी हवा के ऊपर उठने लगती हैं, परन्तु यहां पर हवा का ऊपर उठना संवाहनीय हवाओं की तरह ऊध्वार्धर न होकर तिरछे रूप में होता हैं। ऊपर की गर्म हवा स्थिर नही हो पाती तथा नीचे ठंडी हवा के कारण ठंडी होने जगती हैं और धीरे-धीरे उसका संघनन प्रारम्भ हो जाता हैं और इसके परिणामस्वरूप वर्षा होती है। श्रेणी:वर्षण.

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टर्बोचार्जर

टर्बोचार्जर टर्बोचार्जर एक युक्ति है जिसके उपयोग से इंजन की दक्षता (एफिसिएन्सी) बढती है। टर्बोचार्जर एक गैस कम्प्रेसर की मदद से इंजन के सिलिण्डर में घुसने वाली हवा का घनत्व बढा देता है। इससे इंजन की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। इसमें टरबाइन के द्वारा संचालित कंप्रेसर का प्रयोग किया जाता है। टरबाइन इंजन से निकासित एक्स्हौस्त गैस से चलता है। .

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ठोस अवस्था भौतिकी

हीरा की संरचना का चलित दृष्य ठोस अवस्था की भौतिकी (Solid-state physics) को ठोस अवस्था का सिद्धांत (Solid-state theory) के नाम से भी जाना जाता है। यह भौतिकी की वह शाखा है जिसमें ठोस की संरचना और उसके भौतिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। यह संघनित प्रावस्था भौतिकी की सबसे बड़ी शाखा है। ठोस अवस्था भौतिकी में इस बात पर विचार किया जाता है कि ठोसों के वाह्य गुण उनके परमाणु-स्तरीय गुणों से किस प्रकार सम्बन्धित हैं। इस प्रकार ठोस अवस्था भौतिकी, पदार्थ विज्ञान का सैद्धान्तिक आधार बनाती है। इसके अलावा ट्रांजिस्टरों की प्रौद्योगिकी एवं अर्धचालकों की तकनीकी आदि में इसका सीधा उपयोग भी होता है। .

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डॅनवर

डॅनवर (Denver) संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोरैडो राज्य की राजधानी और सबसे बड़ा नगर है। यह रॉकी पर्वत की तलहटी में दक्षिणी प्लैट नदी तट बसा हुआ है। इस नगर के लिए एक उपनाम है द माइल हाई सिटी अर्थात मील ऊँचा नगर, क्योंकि यह समुद्र तल से बहुत ऊँचाई पर बसा हुआ है। डेनवर के राज्य राजधानी भवन पर स्थित एक बिन्दू पर यह ५,२८० फीट (१,६०९ मीटर) ऊँचा है। डेनवर, डेनवर ब्रोंकोस फुटबॉल टीम का गृह नगर है, यह खेल अमेरिका में बहुत लोकप्रिय है। .

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तरल यांत्रिकी

तरल यांत्रिकी (अंग्रेज़ी:Fluid Mechanics) तरल पदार्थो के स्वभाव एवं गति के सिद्धान्तों को समझाने वाली यांत्रिकी की एक शाखा है। तरल, द्रव या गैस हो सकते हैं और उनमें सीमित मात्रा में ठोस के मिले या घुले रहने पर भी इन सिद्धांतों का प्रयोग किया जा सकता है। तरल पदार्थ भी न्यूटन के गति नियमों का अनुसरण करते हैं, पर आकार आसानी से बदल जाने के स्वभाव के कारण इनके गति नियमों को विशेष रूप दिया जाता है। नेवियर-स्टोक्स समीकरण तरल यांत्रिकी के समीकरणों का सबसे विस्तृत रूप है। तरल यांत्रिकी वायव्य, यांत्रिकी, सिविल तथा रासायनिक यंताओं द्वारा मुख्य रूप से प्रयुक्त होता है। जटिल तरल गतिक प्रश्नों के हल के लिए संगणित तरल यांत्रिकी का प्रयोग किया जाता है। तरलयांत्रिकी गणित की वह शाखा है, जिसमें (स्थिर अथवा प्रवहयुक्त) तरलों के व्यवहार का अध्ययन होता है। यदि तरल गतिहीन है तो इस अध्ययन को द्रवस्थिति विज्ञान (Hydrostatics) कहते हैं और यदि तरल गतियुक्त है तो उसे तरल यांत्रिकी के विविध उपयोग .

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तरल गतिकी

तरल गतिकी तरल यांत्रिकी की एक शाखा है। इसका प्रयोग गतिशील तरलों (द्रव तथा गैस) की प्रकृति तथा उस पर लगने वाले बलों के आकलन के लिए किया जाता है। जटिल तरल गतिकी के सवालों के हल के लिए गणकीय तरलगतिकी का प्रयोग होता है जिसमें संगणकों के सहारे तरल समीकरणों का संख्यात्मक हल किया जाता है। तरलगतिकी का मूल समीकरण सातत्य समीकरण (equation of continuity) कहलाता है जो निम्न प्रकार से लिखा जाता है- तरल गतिकी में प्रयुक्त गणितीय समीकरणों में नेवियर स्टोक्स समीकरण सबसे सामान्य (generalised) रूप है। इसके सरलीकृत रूपों को कई नामों से जाना जाता है। तरलों का बलों के प्रति आचरण उनके घनत्व, श्यानता तथा अन्य गुणों पर निर्भर करता है। यदि द्रव की श्यानता बहुत कम हो तो घर्षण बलों को नगण्य मानते हुए छोड़ा जा सकता है। इस प्रकार प्राप्त समीकरण यूलर का समीकरण कहलाता है जो इस प्रकार है- .

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त्रिभुज

त्रिभुज (Triangle), तीन शीर्षों और तीन भुजाओं वाला एक बहुभुज (Polygon) होता है। यह ज्यामिति की मूल आकृतियों में से एक है। शीर्षों A, B, और C वाले त्रिभुज को \triangle ABC द्वारा दर्शाया जाता है। यूक्लिडियन ज्यामिति में कोई भी तीन असंरेखीय बिन्दु, एक अद्वितीय त्रिभुज का निर्धारण करते हैं और साथ ही, एक अद्वितीय तल (यानी एक द्वि-विमीय यूक्लिडियन समतल) का भी। दूसरे शब्दों में, तीन सरल रेखाओं से घिरी बंद आकृति को त्रिभुज या त्रिकोण कहते हैं। त्रिभुज में तीन भुजाएं और तीन कोण होते हैं। त्रिभुज सबसे कम भुजाओं वाला बहुभुज है। किसी त्रिभुज के तीनों आन्तरिक कोणों का योग सदैव 180° होता है। इन भुजाओं और कोणों के माप के आधार पर त्रिभुज का विभिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है। .

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थोरियम

'''मोनाजाइट''' नामक खनिज थोरियम का प्रमुख स्रोत है। यह एक विरल मृदा एवं थोरियम फॉस्फेट है। थोरियम (Thorium) आवर्त सारणी के ऐक्टिनाइड श्रेणी (actinide series) का प्रथम तत्व है। पहले यह चतुर्थ अंतर्वर्ती समूह (fourth transition group) का अंतिम तत्व माना जाता था, परंतु अब यह ज्ञात है कि जिस प्रकार लैथेनम (La) तत्व के पश्चात् 14 तत्वों की लैथेनाइड शृंखला (lanthanide series) प्रांरभ होती है, उसी प्रकार ऐक्टिनियम (Ac) के पश्चात् 14 तत्वों की दूसरी शृंखला आरंभ होती है, जिसे एक्टिनाइड शृंखला कहते हैं। थोरियम के अयस्क में केवल एक समस्थानिक(द्रव्यमान संख्या 232) पाया जाता है, जो इसका सबसे स्थिर समस्थानिक (अर्ध जीवन अवधि 1.4 x 1010 वर्ष) है। परंतु यूरेनियम, रेडियम तथा ऐक्टिनियम अयस्कों में इसके कुछ समस्थानिक सदैव वर्तमान रहते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 227, 228, 230, 231 तथा 234 हैं। इनके अतिरिक्त 224, 225, 226, 229 एवं 233 द्रव्यमान वाले समस्थानिक कृत्रिम उपायों द्वारा निर्मित हुए हैं। थोरियम धातु की खोज 1828 ई में बर्ज़ीलियस ने थोराइट अयस्क में की थी। यद्यपि इसके अनेक अयस्क ज्ञात हैं, परंतु मोनेज़ाइट (monazite) इसका सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जिसमें थोरियम तथा अन्य विरल मृदाओं के फॉस्फेट रहते हैं। संसार में मोनेज़ाइट का सबसे बड़ा भंडार भारत के केरल राज्य में हैं। बिहार प्रदेश में भी थोरियम अयस्क की उपस्थिति ज्ञात हुई है। इनके अतिरिक्त मोनेज़ाइट अमरीका, आस्ट्रलिया, ब्राज़िल और मलाया में भी प्राप्त है। मौनेज़ाइट को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की प्रक्रिया कर आंशिक क्षारीय विलयन मिलाने से थोरियम फॉस्फेट का अवक्षेप बनता है। इसको सल्फ्यूरिक या हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में घुला कर फिर फॉस्फेट अवक्षिप्त करते हैं। इस क्रिया को दोहराने पर थोरियम का शुद्ध फॉस्फेट मिलता है। थोरियम क्लोराइड को सोडियम के साथ निर्वात में गरम करने से थोरियम धातु मिलती है। थोरियम आयोडाइड (Th I4) के वाष्प को गरम टंग्स्टन तंतु (filament) पर प्रवाहित करने से, या थोरियम ऑक्साइड (ThO2) पर कैल्सियम की प्रक्रिया द्वारा भी, थोरियम धातु प्राप्त हो सकती है। थोरियम का निष्कर्षण .

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दाब

दाब का मान प्रदर्शित करने के लिये पारा स्तंभ किसी सतह के इकाई क्षेत्रफल पर लगने वाले अभिलम्ब बल को दाब (Pressure) कहते हैं। इसकी इकाई 'न्यूटन प्रति वर्ग मीटर' होती है। दाब की और भी कई प्रचलित इकाइयाँ हैं। p .

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द्रव नाइट्रोजन

द्रव नाइट्रोजन द्रव अवस्था वले नाइट्रोजन को द्रव नाइट्रोजन (Liquid nitrogen या LN2) कहते हैं। इसका तापमान बहुत कम होता है। औद्योगिक उपयोग के लिये यह द्रवित वायु के प्रभाजी आसवन के द्वारा प्राप्त की जाती है। द्रव नाइट्रोजन को आसानी से ठोस रूप में बदला जा सकता है वयुमंडलीय दाब पर द्रव नाइट्रोजन 77 K (−196 °C; −321 °F) पर गैस बन जाती है। इस ताप पर इसका घनत्व 0.807 ग्राम प्रति मिलीलीटर होता है। यह रंगहीन द्रव है। .

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द्रवघनत्वमापी

उत्पल-घनत्वमापी द्रवघनत्वमापी या उत्प्लव-घनत्वमापी या हाइड्रोमीटर (Hydrometer) वह यंत्र है जिससे बिना किसी गणना के, द्रवों के घनत्व पढ़े जा सकते हैं। इन यंत्रों की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान अत्यंत प्राचीन समय से था और इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि आर्किमीडीज़ (१८७- २१२ ई.पू.) को इनकी जानकारी थी। .

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धातु

'धातु' के अन्य अर्थों के लिए देखें - धातु (बहुविकल्पी) ---- '''धातुएँ''' - मानव सभ्यता के पूरे इतिहास में सर्वाधिक प्रयुक्त पदार्थों में धातुएँ भी हैं लुहार द्वारा धातु को गर्म करने पर रसायनशास्त्र के अनुसार धातु (metals) वे तत्व हैं जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते हैं और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते हैं। इलेक्ट्रानिक मॉडल के आधार पर, धातु इलेक्ट्रानों द्वारा आच्छादित धनायनों का एक लैटिस हैं। धातुओं की पारम्परिक परिभाषा उनके बाह्य गुणों के आधार पर दी जाती है। सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं। .

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ध्वनि का वेग

वायु में ध्वनि का संचरण वायु के कणों के कम्पन के कारण उत्पन्न हुए संपीडन और विरलन के रूप में होता है। अनुप्रस्थ तरंग की गति: केवल ठोस माध्यम में ही अनुप्रस्थ तरंगे बनतीं हैं। इसमें माध्यम के कणों का कम्पन तरंग की गति की दिशा के लम्बवत होता है। किसी माध्यम (जैसे हवा, जल, लोहा) में ध्वनि १ सेकेण्ड में जितनी दूरी तय करती है उसे उस माध्यम में ध्वनि का वेग कहते हैं। शुष्क वायु में 20 °C (68 °F) पर ध्वनि का वेग 343.59 मीटर प्रति सेकेण्ड है। ध्वनि एक यांत्रिक तरंग है। इसके संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है। निर्वात में ध्वनि का संचरण नहीं होता। वायु में ध्वनि का संचरण एक अनुदैर्घ्य तरंग (लांगीट्युडनल वेव) के रूप में होता है। अलग-अलग माध्यमों में ध्वनि का वेग अलग-अलग होता है। .

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ध्वनिकी

सिरिया में बसरा स्थित रोमकालीन नाट्यशाला: ध्वनिकी के सिद्धान्तों का प्राचीन काल से ही उपयोग होता आ रहा है। ध्वनिकी (Acoustics) भौतिकी की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत ध्वनि तरंगो, अपश्रव्य तरंगों एवं पराश्रव्य तरंगों सहित ठोस, द्रव एवं गैसों में संचारित होने वाली सभी प्रकार की यांत्रिक तरंगों का अध्ययन किया जाता है। ध्वनि की उत्पत्ति द्रव्यपिंडों के दोलन द्वारा होती है। इस दोलन से वायु की दाब एवं घनत्व में प्रत्यावर्ती (alternating) परिर्वतन होने लगते हैं, जो अपने स्रोत से एक विशेष वेग के साथ आगे बढ़ते हैं। इनको ही ध्वनि की तरंग कहा जाता है। जब ये तरंगें कान के परदे से टकराती हैं, तब ध्वनि-संवेदन होता है। इन तरंगों की विशेषता यह है कि इनमें परावर्तन, अपवर्तन (refraction) तथा विवर्तन (diffraction) हो सकता है। प्रति सेकंड दोलन संख्या को आवृति (frequency) कहते हैं। मनुष्य का कान एक सीमित परास की आवृतियों को ही सुन सकता है, किंतु आजकल ऐसी तरंगें भी उत्पन्न की जा सकती है जिसका कान के परदे पर कोई असर नहीं होता। कान की सीमा से अधिक परास की आवृतियों की ध्वनि को पराश्रव्य तरंगें कहते हैं। बहुत से जानवर, जैसे चमगादड़, पराश्रव्य ध्वनि सुन सकते हैं। आधुनिक समय में श्रव्य तथा पराश्रव्य दोनों प्रकार की ध्वनियों की आवृतियों को एक बड़ी सीमा के भीतर उत्पन्न किया, पहचाना और मापा जा सकता है। .

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नाईजीरिया

thumb फेडेरल रिपब्लिक ऑफ नाईजीरिया या नाईजीरिया संघीय गणराज्य पश्चिम अफ्रीका का एक देश है। इसकी सीमाएँ पश्चिम में बेनीन, पूर्व में चाड, उत्तर में hiकैमरून और दक्षिण में गुयाना की खाड़ी से लगती हैं। इस देश के बड़े शहरों में राजधानी अबुजा, भूतपूर्व राजधानी लागोस के अलावा इबादान, कानो, जोस और बेनिन शहर शामिल हैं। नाइजीरिया पश्चिमी अफ्रीका का एक प्रमुख देश है। पूरे अफ्रीका महाद्वीप में इस देश की आबादी सबसे अधिक है। नाइजीरिया की सीमा पश्चिम में बेनिन, पूर्व में चाड और कैमरून और उत्तर में नाइजर से मिलती हैं। .

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न्यूट्रॉन का संसूचन

न्यूट्रॉन घनत्व का पता लगाना (detection) कई स्थितियों में बहुत महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिये, परमाणु रिएक्टर के नियन्त्रण के लिये उसके अन्दर न्यूट्रॉन का घनत्व पता करना एवं उसको आवश्यकतानुसार घटाना-बढ़ाना बहुत महत्व रखता है। इस कार्य में गलती होने पर भयंकर दुर्घटना सम्भव है। .

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नेवियर-स्टोक्स समीकरण

नेवियर-स्टोक्स समीकरण नेवियर-स्टोक्स समीकरण तरल यांत्रिकी के सबसे अधिक उपयोगी समीकरणों में से एक है। यह श्यान (viscous) तरल पदार्थों (द्रव एवं गैस, दोनों) की गति को मॉडल करता है। यह समीकरण न्यूटन के गति के द्वितीय नियम को तरल की गति पर लागू करने से प्राप्त होता है। .

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परमाणु

एक परमाणु किसी भी साधारण से पदार्थ की सबसे छोटी घटक इकाई है जिसमे एक रासायनिक तत्व के गुण होते हैं। हर ठोस, तरल, गैस, और प्लाज्मा तटस्थ या आयनन परमाणुओं से बना है। परमाणुओं बहुत छोटे हैं; विशिष्ट आकार लगभग 100 pm (एक मीटर का एक दस अरबवें) हैं। हालांकि, परमाणुओं में अच्छी तरह परिभाषित सीमा नहीं होते है, और उनके आकार को परिभाषित करने के लिए अलग अलग तरीके होते हैं जोकि अलग लेकिन काफी करीब मूल्य देते हैं। परमाणुओं इतने छोटे है कि शास्त्रीय भौतिकी इसका काफ़ी गलत परिणाम देते हैं। हर परमाणु नाभिक से बना है और नाभिक एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन्स से सीमित है। नाभिक आम तौर पर एक या एक से अधिक न्यूट्रॉन और प्रोटॉन की एक समान संख्या से बना है। प्रोटान और न्यूट्रान न्यूक्लिऑन कहलाता है। परमाणु के द्रव्यमान का 99.94% से अधिक भाग नाभिक में होता है। प्रोटॉन पर सकारात्मक विद्युत आवेश होता है, इलेक्ट्रॉन्स पर नकारात्मक विद्युत आवेश होता है और न्यूट्रान पर कोई भी विद्युत आवेश नहीं होता है। एक परमाणु के इलेक्ट्रॉन्स इस विद्युत चुम्बकीय बल द्वारा एक परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन की ओर आकर्षित होता है। नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक अलग बल, यानि परमाणु बल के द्वारा एक दूसरे को आकर्षित करते है, जोकि विद्युत चुम्बकीय बल जिसमे सकारात्मक आवेशित प्रोटॉन एक दूसरे से पीछे हट रहे हैं, की तुलना में आम तौर पर शक्तिशाली है। परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको एलेक्ट्रान घन (एलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक, धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। जब किसी परमाणु में एलेक्ट्रानों की संख्या उसके नाभिक में स्थित प्रोटानों की संख्या के समान होती है तब परमाणु वैद्युकीय दृष्टि से अनावेशित होता है; अन्यथा परमाणु धनावेशित या ऋणावेशित ऑयन के रूप में होता है। आधुनिक रसायनशास्त्र में शताधिक मूल भूत माने गए हैं, जिनमें से कुछ तो धातुएँ हैं जैसे ताँबा, सोना, लोहा, सीसा, चाँदी, राँगा, जस्ता; कुछ और खनिज हैं, जैसे, गंधक, फासफरस, पोटासियम, अंजन, पारा, हड़ताल, तथा कुछ गैस हैं, जैसे, आक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन आदि। इन्हीं मूल भूतों के अनुसार परमाणु आधुनिक रसायन में माने जाते हैं। पहले समझा जाता था कि ये अविभाज्य हैं। अब इनके भी टुकड़े कर दिए गए हैं। नाभिक में प्रोटॉन की संख्या किसी रासायनिक तत्व को परिभाषित करता है: जैसे सभी तांबा के परमाणु में 29 प्रोटॉन होते हैं। न्यूट्रॉन की संख्या तत्व के समस्थानिक को परिभाषित करता है। इलेक्ट्रॉनों की संख्या एक परमाणु के चुंबकीय गुण को प्रभावित करता है। परमाणु अणु के रूप में रासायनिक यौगिक बनाने के लिए रासायनिक आबंध द्वारा एक या अधिक अन्य परमाणुओं को संलग्न कर सकते हैं। परमाणु की संघटित और असंघटित करने की क्षमता प्रकृति में हुए बहुत से भौतिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है, और रसायन शास्त्र के अनुशासन का विषय है। .

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पारा

साधारण ताप पर पारा द्रव रूप में होता है। पारे का अयस्क पारा या पारद (संकेत: Hg) आवर्त सारिणी के डी-ब्लॉक का अंतिम तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक ८० है। इसके सात स्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९६, १९८, १९९, २००, २०१, २०२ और २०४ हैं। इनके अतिरिक्त तीन अस्थिर समस्थानिक, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९५, १९७ तथा २०५ हैं, कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं। रासायनिक जगत् में केवल यही धातु साधारण ताप और दाब पर द्रव रूप होती है। .

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पास्कल का सिद्धान्त

पास्कल का सिद्धान्त: जल-स्तम्भ के दबाव के कारण पीपे (barrel) का फटना। सन् १६४६ में पास्कल ने यही प्रयोग किया था। पास्कल का सिद्धान्त या पास्कल का नियम द्रवस्थैतिकी में दाब से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इसे फ्रांसीसी गणितज्ञ ब्लेज पास्कल ने प्रतिपादित किया था। यह सिद्धान्त इस प्रकार है - .

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पुर्तगाल

पुर्तगाली गणराज्य यूरोप खंड में स्थित देश है। यह देश स्पेन के साथ आइबेरियन प्रायद्वीप बनाता है। इस राष्ट्र का भाषा पुर्तगाली भाषा है। इस राष्ट्र का राजधानी लिस्बन है। पुर्तगाली नाविक वास्को द गामा ने 1498 AD में भारत के समुद्री मार्ग की खोज की थी। .

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प्रतिलोम समस्या

right विज्ञान में ऐसी समस्याओं को प्रतिलोम समस्या (inverse problem) कहते हैं जो कुछ प्रेक्षणों की सहायता से उनको (उन आकड़ों को) उत्पन्न करने वाले कारणों की गणना करतीं हैं। उदाहरण के लिये धरती के गुरुत्वीय क्षेत्र के आंकडों के आधार पर धरती के अन्दर विभिन्न बिन्दुओं पर घनत्व निकालना एक प्रतिलोम समस्या है। इनकों प्रतिलोम समस्या इसलिये कहते हैं कि यह परिणामों से शुरू होतीं हैं और 'उल्टा' चलकर उपयुक्त कारण की खोज करतीं हैं जिनसे ऐसे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। अतः यह अनुलोम समस्या (forward problem) का उल्टा है जो कारण से शुरू होकर परिणाम की गणना करती है। प्रतिलोम समस्या की गणना, गणित और विज्ञान की कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्याओं में होती है। ये इसलिये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे उन प्राचलों (पैरामीटर) के बारे में बताने का प्रयास करतीं हैं जिनको सीधे मापा नहीं जा सकता। इनका उपयोग प्रकाशिकी, राडार, ध्वनिकी, संचार सिद्धान्त, संकेत प्रसंस्करण, मेडिकल इमेजिंग, कम्प्यूटर दृष्टि, भूभौतिकी, समुद्रविज्ञान, खगोलिकी, सुदूर संवेदन, मशीन लर्निंग, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, अविनाशी परीक्षण (nondestructive testing) तथा अन्य अनेकानेक क्षेत्रों में किया जाता है। श्रेणी:गणित.

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प्रावस्था

एक जार में रखा जल तथा तेल का मिश्रण 'द्रव' अवस्था में है किन्तु इसकी दो पूर्नतः भिन्न प्रास्थाएँ हैं। भौतिक विज्ञानों में प्रावस्था (phase) से तात्पर्य किसी ऊष्मागतिकीय प्रणाली के उस प्रक्षेत्र से है जिसमें पदार्थ के सभी भौतिक गुण अपरिवर्तित रहते हैं। घनत्व, परावर्तन गुणांक, रासायनिक संरचना आदि भौतिक गुणों के अन्तर्गत आते हैं। .

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प्रघाती तरंग

प्रघाती तरंग (shock wave) (या केवल 'प्रघात') वास्तव में एक प्रगामी विक्षोभ (propagating disturbance) है। साधारण तरंग की तरह ही इसमें भी उर्जा होती है तथा यह किसी माध्यम (ठोस, द्रव, गैस व प्लाज्मा) में गमन कर सकती है। कुछ स्थितियों में यह बिना माध्यम के भी विचरण कर सकती है (जैसे विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र के रूप में)। प्रघाती तरंगों की प्रमुख विशेषता यह है कि ये माध्यम के गुणों में असतत परिवर्तन (discontinuous change) पैदा करतीं हैं। प्रघात क्षेत्र में दाब, ताप, घनत्व में अत्यन्त तेज गति से परिवर्तन होते हैं। अधिकांश माध्यमों में प्रघाती तरंगों का वेग सामान्य तरंग के वेग से अधिक होता है। .

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प्रकाश का तरंग सिद्धान्त

न्यूटन के ही समकालीन जर्मन विद्वान हाइगेंज (Huyghens) ने,सन् 1678 ई. में 'प्रकाश का तरंग सिद्धान्त' (wave theory of light) का प्रतिपादन किया था। इसके अनुसार समस्त संसार में एक अत्यंत हलका और रहस्यमय पदार्थ ईथर (Ether) भरा हुआ है: तारों के बीच के विशाल शून्याकाश में भी और ठोस द्रव्य के अंदर तथा परमाणुओं के अभ्यंतर में भी। प्रकाश इसी ईश्वर समुद्र में अत्यंत छोटी लंबाईवाली प्रत्यास्थ (Elastic) तरंगें हैं। लाल प्रकाश की तरंगें सबसे लंबी होती हैं और बैंगनी की सबसे छोटी। इससे व्यतिकरण और विर्वतन की व्याख्या तो सरलता से हो गई, क्योंकि ये घटनाएँ तो तरंगमूलक ही हें। ध्रुवण की घटनाओं से यह भी प्रगट हो गया कि तरंगें अनुदैर्ध्य (Longitudinal) नहीं, वरन्‌ अनुप्रस्थ (Transvers) हैं। हाइगेंज की तरंगिकाओं को परिकल्पना से अपर्वतन और परावर्तन तथा दोनों का योगपत्य भी अच्छी तरह समझ में आ गया। किंतु अब दो कठिनाइयाँ रह गईं। एक तो सरल रेखा गमन की व्याख्या न हो सकी। दूसरे यह समझ में नही आया कि ईथर की रगड़ के कारण अगणित वर्षो से तीव्र वेग से घूमते हुए ग्रहों और उपग्रहों की गति में किंचिन्मात्र भी कमी क्यों नहीं होती। इनसे भी अधिक कठिनाई यह थी कि न्यूटन जैसे महान्‌ वैज्ञानिक का विरोध करने का साहस और सामर्थ्य किसी में न था। अत: प्राय: दो शताब्दी तक कणिकासिद्धांत ही का साम्राज्य अक्षुण्ण रहा। सन्‌ 1807 में यंग (Young) ने व्यतिकरण का प्रयोग अत्यंत सुस्पष्ट रूप में कर दिखाया। इसके बाद फ़ेनल (Fresnel) ने तरंगों द्वारा ही सरल रेखा गमन की भी बहुत अच्छी व्याख्या कर दी। 1850 ई. में फूको (Foucalult) ने प्रत्यक्ष नाप से यह भी प्रमाणित कर दिया कि जल जैसे अधिक घनत्वावाले माध्यमों में प्रकाशवेग वायु की अपेक्षा कम होता है। यह बात कणिकासिद्धांत के प्रतिकूल तथा तरंग के अनुकूल होने के कारण तरंगसिद्धांत सर्वमान्य हो गया। इसके बाद तो इस सिद्धांत के द्वारा अनेक नवीन और आश्चर्यजनक घटनाओं की प्रागुक्तियाँ भी प्रेक्षण द्वारा सत्य प्रमाणित हुई। अब प्रश्न यह रहा कि ईथर किस प्रकार का पदार्थ है। यह विदित है कि किसी भी प्रत्यास्थ द्रव में; तरंग का वेग .

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प्लाविका

प्लाविका या रक्त प्लाज्मा, रक्त का पीले रंग का तरल घटक है, जिसमें पूर्ण रक्त की रक्त कोशिकायें सामान्य रूप से निलंबित रहती हैं। यह कुल रक्त की मात्रा का लगभग 55% तक होता है। इसका अधिकतर अंश जल (90% आयतन अनुसार) होता है और इसमें प्रोटीन, शर्करा, थक्का जमाने वाले कारक, खनिज आयन, हार्मोन और कार्बन डाइऑक्साइड (प्लाविका उत्सर्जित उत्पादों के निष्कासन का प्रमुख माध्यम है) घुले रहते हैं। प्लाविका को रक्त से पृथक करने के लिए एक परखनली मे ताजा रक्त लेकर उसे सेंट्रीफ्यूज़ (अपकेंद्रिक) में तब तक घुमाना चाहिए जब तक रक्त कोशिकायें नली के तल मे बैठ न जायें, इसके बाद ऊपर बचे प्लाविका को उड़ेल कर अलग या तैयार कर लें। प्लाविका का घनत्व लगभग 1025 kg/m3, या 1.025 kg/l.

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पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास

300px पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास इसके शैलों के स्तरों के अध्ययन के आधार पर निकाला जाता है। पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ। .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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पृथ्वी की आतंरिक संरचना

पृथ्वी की आतंरिक संरचना शल्कीय अर्थात परतों के रूप में है, जैसे प्याज के छिलके परतों के रूप में होते हैं। इन परतों की मोटाई का सीमांकन रासायनिक अथवा यांत्रिक विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता है। की सबसे ऊपरी परत एक ठोस परत है, मध्यवर्ती अत्यधिक गाढ़ी परत है और बाह्य तरल तथा आतंरिक ठोस अवस्था में है। की आतंरिक संरचना के बारे में जानकारी के स्रोतों को दो हिस्सों में विभक्त किया जा सकता है। प्रत्यक्ष स्रोत, जैसे से निकले पदार्थो का अध्ययन, से प्राप्त आंकड़े इत्यादि, कम गहराई तक ही जानकारी उपलब्ध करा पाते हैं। दूसरी ओर अप्रत्यक्ष स्रोत के रूप में का अध्ययन अधिक गहराई की विशेषताओं के बारे में जानकारी देता है। .

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पेट्रोलियम जेली

पेट्रोलियम जेली पेट्रोलियम जेली (Petroleum jelly) हाइड्रोकार्बनों का एक अर्ध-ठोस मिश्रण है जो अपने घाव ठीक करने के गुण के कारण मरहम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इसे सफेद पेट्रोलियम, कोमल पैराफिन, बहु-हाइड्रोकार्बन भी कहते हैं। इसका CAS नम्बर 8009-03-8 है। इसमें मौजूद हाइड्रोकार्बनों में प्रायः कार्बन संख्या २५ से अधिक होती है। .

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पोलैंड

पोलैंड आधिकारिक रूप से पोलैंड गणराज्य एक मध्य यूरोप राष्ट्र है। पोलैंड पश्चिम में जर्मनी, दक्षिण में चेक गणराज्य और स्लोवाकिया, पूर्व में युक्रेन, बेलारूस और लिथुआनिया एवं उत्तर में बाल्टिक सागर व रूस के कालिनिनग्राद ओब्लास्ट के द्वारा घिरा हुआ है। पोलैंड का कुल क्षेत्रफ़ल ३ लगभग लाख वर्ग कि.मि. (1.20 लाख वर्ग मील) है, जिससे ये दुनिया का ६९वां व युरोप का ९वां विशालतम राष्ट्र बन जाता है। लगभग 4 करोड़ की जनसंख्या के साथ यह दुनिया का ३३वां सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाता है। एक राष्ट्र के रूप में पोलैंड की स्थापना को इसके शासक मिस्जको प्रथम द्वारा ९६६ इसवी में इसाई धर्म को राष्ट्रधर्म बनाने के साथ जोड़ कर देखा जाता है। तत्कालीन समय में पोलैंड का आकार वर्तमान पोलैंड के जैसा ही था। १०२५ में पोलैंड राजाओं के अधीन आया और १५६९ में पोलैंड ने लिथुआनिया के ग्रैंड डचि के साथ मिलकर पोलिश-लिथुआनियन कामनवेल्थ की स्थापना करते हुए एक लंबे रिश्ते की नींव डाली। ये कामनवेल्थ १७९५ में तोड़ दिया गया और पोलैंड को आस्ट्रिया, रूस और प्रुसिया के बीच बांट लिया गया। पोलैंड ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद १९१८ में अपनी स्वाधीनता पुनः हसिल की मगर द्वितीय विश्वयुद्ध के समय फ़िर से पराधीन होकर नाजी जर्मनी और सोवियत संघ के अधीन चला गया। द्वितीय विश्वयुद्ध में पोलैंड ने अपने साठ लाख नागरिकों को खो दिया। कई साल बाद पोलैंड रूस से प्रभावित एक साम्यवादी गणराज्य के रूप में ईस्टर्न ब्लॉक में उभरा। १९८९ में साम्यवादी शासन का पतन हुआ और पोलैंड एक नये राष्ट्र के रूप में उभरा जिसे सांविधानिक तौर पे "तृतीय पोलिश गणतंत्र" कहा जाता है। पोलैंड एक स्वयंशासित स्वतंत्र राष्ट्र है जो कि सोलह अलग-अलग वोइवोदेशिप या राज्यों (पोलिश: वोयेवुद्ज़त्वो) को मिलाकर गठित हुआ है। पोलैंड यूरोपीय संघ, नाटो एवं ओ.ई.सि.डी का सदस्य राष्ट्र है। .

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बंगाल

बंगाल (बांग्ला: বঙ্গ बॉंगो, বাংলা बांला, বঙ্গদেশ बॉंगोदेश या বাংলাদেশ बांलादेश, संस्कृत: अंग, वंग) उत्तरपूर्वी दक्षिण एशिया में एक क्षेत्र है। आज बंगाल एक स्वाधीन राष्ट्र, बांग्लादेश (पूर्वी बंगाल) और भारतीय संघीय प्रजातन्त्र का अंगभूत राज्य पश्चिम बंगाल के बीच में सहभाजी है, यद्यपि पहले बंगाली राज्य (स्थानीय राज्य का ढंग और ब्रिटिश के समय में) के कुछ क्षेत्र अब पड़ोसी भारतीय राज्य बिहार, त्रिपुरा और उड़ीसा में है। बंगाल में बहुमत में बंगाली लोग रहते हैं। इनकी मातृभाषा बांग्ला है। .

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ब्लैक होल (काला छिद्र)

बड़े मैग्लेनिक बादल के सामने में एक ब्लैक होल का बनावटी दृश्य। ब्लैक होल स्च्वार्ज़स्चिल्ड त्रिज्या और प्रेक्षक दूरी के बीच का अनुपात 1:9 है। आइंस्टाइन छल्ला नामक गुरुत्वीय लेंसिंग प्रभाव उल्लेखनीय है, जो बादल के दो चमकीले और बड़े परंतु अति विकृत प्रतिबिंबों का निर्माण करता है, अपने कोणीय आकार की तुलना में. सामान्य सापेक्षता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि) में, एक ब्लैक होल ऐसी खगोलीय वस्तु होती है जिसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश सहित कुछ भी इसके खिंचाव से बच नहीं सकता है। ब्लैक होल के चारों ओर एक सीमा होती है जिसे घटना क्षितिज कहा जाता है, जिसमें वस्तुएं गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर कुछ भी नहीं आ सकता। इसे "ब्लैक (काला)" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को अवशोषित कर लेता है और कुछ भी परावर्तित नहीं करता, थर्मोडाइनामिक्स (ऊष्मप्रवैगिकी) में ठीक एक आदर्श ब्लैक-बॉडी की तरह। ब्लैक होल का क्वांटम विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें तापमान और हॉकिंग विकिरण होता है। अपने अदृश्य भीतरी भाग के बावजूद, एक ब्लैक होल अन्य पदार्थों के साथ अन्तः-क्रिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है। एक ब्लैक होल का पता तारों के उस समूह की गति पर नजर रख कर लगाया जा सकता है जो अन्तरिक्ष के खाली दिखाई देने वाले एक हिस्से का चक्कर लगाते हैं। वैकल्पिक रूप से, एक साथी तारे से आप एक अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल में गैस को गिरते हुए देख सकते हैं। यह गैस सर्पिल आकार में अन्दर की तरफ आती है, बहुत उच्च तापमान तक गर्म हो कर बड़ी मात्रा में विकिरण छोड़ती है जिसका पता पृथ्वी पर स्थित या पृथ्वी की कक्षा में घूमती दूरबीनों से लगाया जा सकता है। इस तरह के अवलोकनों के परिणाम स्वरूप यह वैज्ञानिक सर्व-सम्मति उभर कर सामने आई है कि, यदि प्रकृति की हमारी समझ पूर्णतया गलत साबित न हो जाये तो, हमारे ब्रह्मांड में ब्लैक होल का अस्तित्व मौजूद है। सैद्धांतिक रूप से, कोई भी मात्रा में तत्त्व (matter) एक ब्लैक होल बन सकता है यदि वह इतनी जगह के भीतर संकुचित हो जाय जिसकी त्रिज्या अपनी समतुल्य स्च्वार्ज्स्चिल्ड त्रिज्या के बराबर हो। इसके अनुसार हमारे सूर्य का द्रव्यमान ३ कि.

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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बेरियम सल्फेट

बेरियम सल्फेट (Barium sulfate) एक अकार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र BaSO4 है। यह सफेद क्रिस्टलीय ठोस है। यह गंधहीन तथा जल में अविलेय है। यह बैराइट (barite) नामक खनिज के रूप में पाया जाता है जो बेरियम का मुख्य स्रोत भी है। इसका सफेद अपारदर्शी रूप तथा उच्च घनत्व इसको कई कार्यों के लिये उपयोगी बनाते हैं।.

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बोरोसिलिकेट काँच

बोरोसिलिकेट काँच से बनी एक वस्तु बोरोसिलिकेट काँच एक प्रकार का काँच होता है, जो सिलिका और बोरॉन ट्राईऑक्साइड से मिल कर बना एक यौगिक है। .

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भारत के इमारती लकड़ी वाले वृक्ष

भारत में 150 से भी अधिक इमारती लकड़ी वाले वृक्षों की जातियाँ पायी जाती हैं। नीचे इनकी कुछ प्रमुख जातियों की सूची दी गयी है- ¹ After seasoning at 12% moisture content .

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भौतिक गुण

किसी भौतिक प्रणाली के किसी भी मापने योग्य गुण को भौतिक गुण (physical property) कहते हैं जो उस प्रणाली की बहुतिक अवस्था का सूचक है। इसके विपरीत वे गुण जो यह बताते हैं कि कोई वस्तु किसी रासायनिक अभिक्रिया में कैसा व्यवहार करती है, उसका रासायनिक गुण कहलाती है। .

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भू-संतुलन

सर जोर्ज ऐयरी का भूसंतुलन मॉडल भू-संतुलन या समस्थिति (lsostasy) का अर्थ है पृथ्वी की भूपर्पटी के सतही उच्चावच के रूप में स्थित पर्वतों, पठारों और समुद्रों के उनके भार के अनुसार भूपर्पटी के नीचे स्थित पिघली चट्टानों के ऊपर संतुलन बनाए रखने की अवस्था। पृथ्वी का स्थलमण्डल अपने नीचे स्थित एस्थेनोस्फियर पर एक प्रकार से तैरता हुआ स्थित है और संतुलन के लिए यह आवश्यक माना जाता है कि जहाँ धरातल पर ऊँचे पर्वत या पठार हैं वहाँ स्थलमण्डल की मोटाई अधिक है और इसका निचला हिस्सा पर्वतों की जड़ों की तरह एस्थेनोस्फियर में अधिक गहराई तक घुस हुआ है। पर्वतों के नीचे स्थलमण्डल के इस नीचे एस्थेनोस्फियर में प्रविष्ट भाग अथवा समुद्रों के नीचे कम गहराई तक घुसे भाग के संतुलन की व्यख्या करने वाले तीन मॉडल प्रस्तुत किये गए हैं। आइसोस्टैसी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम क्लैरेंस डटन (Clarence Dutton) ने 1889 में किया था। .

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भूभौतिकी

भूभौतिकी (Geophysics) पृथ्वी की भौतिकी है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी सारी समस्याओं की छानबीन होती है। साथ ही यह एक प्रयुक्त विज्ञान भी है, क्योंकि इसमें भूमि समस्याओं और प्राकृतिक रूपों में उपलब्ध पदार्थों के व्यवहार की व्याख्या मूल विज्ञानों की सहायता से की जाती है। इसका विकास भौतिकी और भौमिकी से हुआ है। भूविज्ञानियों की आवश्यकता के फलस्वरूप नए साधनों के रूप में इसका जन्म हुआ। विज्ञान की शाखाओं या उपविभागों के रूप में भौतिकी, रसायन, भूविज्ञान और जीवविज्ञान को मान्यता मिले एक अरसा बीत चुका है। ज्यों-ज्यों विज्ञान का विकास हुआ, उसकी शाखाओं के मध्यवर्ती क्षेत्र उत्पन्न होते गए, जिनमें से एक भूभौतिकी है। उपर्युक्त विज्ञानों को चतुष्फलकी के शीर्ष पर निरूपित करें तो चतुष्फलक की भुजाएँ (कोर) नए विज्ञानों को निरूपित करती हैं। भूभौतिकी का जन्म भौमिकी एवं भौतिकी से हुआ है। .

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भूगणित

बेल्जियम के ओस्टेन्ड नामक स्थान पर स्थित एक पुराना भूगणितीय स्तम्भ (1855) भूगणित (Geodesy or Geodetics) भूभौतिकी एवं गणित की वह शाखा है जो उपयुक्त मापन एवं प्रेक्षण के आधार पर पृथ्वी के पृष्ठ पर स्थित बिन्दुओं की सही-सही त्रिबिम-स्थिति (three-dimensional postion) निर्धारित करती है। इन्ही मापनों एवं प्रेक्षणों के आधार पर पृथ्वी का आकार एवं आकृति, गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र तथा भूपृष्ट के बहुत बड़े क्षेत्रों का क्षेत्रफल आदि निर्धारित किये जाते हैं। इसके साथ ही भूगणित के अन्दर भूगतिकीय (geodynamical) घटनाओं (जैसे ज्वार-भाटा, ध्रुवीय गति तथा क्रस्टल-गति आदि) का भी अध्ययन किया जाता है। पृथ्वी के आकार तथा परिमाण का और भूपृष्ठ पर संदर्भ बिंदुओं की स्थिति का यथार्थ निर्धारण हेतु खगोलीय प्रेक्षणों की आवश्यकता होती है। इस कार्य में इतनी यथार्थता अपेक्षित है कि ध्रुवों (poles) के भ्रमण से उत्पन्न देशांतरों में सूक्ष्म परिवर्तनों पर और समीपवर्ती पहाड़ों के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न ऊर्ध्वाधर रेखा की त्रुटियों पर ध्यान देना पड़ता है। पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा के ज्वारीय (tidal) प्रभाओं का भी ज्ञान आवश्यक है और चूँकि सभी थल सर्वेक्षणों में माध्य समुद्रतल (mean sea level) आधार सामग्री होता है, इसलिये माहासागरों के प्रमुख ज्वारों का भी अघ्ययन आवश्यक है। भूगणितीय सर्वेक्षण के इन विभिन्न पहलुओं के कारण भूगणित के विस्तृत अध्ययन क्षेत्र में अब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का, भूमंडल पृष्ठ समाकृति पर इसके प्रभाव का और पृथ्वी पर सूर्य तथा चंद्रमा के गुरुत्वीय क्षेत्रों के प्रभाव का अध्ययन समाविष्ट है। .

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भूगोल शब्दावली

कोई विवरण नहीं।

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मथित्र

मथित्र (Centrifuge), या अपकेंद्रित, सामान्यत: ऐसे उपकरण या मशीन को कहते हैं, जिसमें अपकेंद्री (centrifugal) बल के उपयोग से विभिन्न घनत्व के पदार्थों का पृथक्करण किया जाता है। आजकल अपकेंद्रित की उपर्युक्त परिभाषा अधिक विस्तृत हो गई है, जिसके अनुसार ऐसी किसी भी मशीन को, जिसकी रचना इस विशेष प्रयोजन से की गई हो कि उसमें पदार्थों को केंद्राभिमुख, अपकेंद्री बल के सतत प्रभाव में रखा जा सके, अपकेंद्रित्र कहा जाता है। अपकेंद्रित्र में पदार्थों का पृथक्करण विभिन्न घनत्व के कारण होता है। अपकेंद्रण से अपकेंद्री बल उत्पन्न होता है, जो गुरुत्वाकर्षण बल के समान होता है। केंद्राभिमुख बल का उपयोग ऐसे अनेक प्रक्रमों को त्वरित करने में प्रयुक्त किया जा सकता है, जो सामान्यत: गुरुत्वाकर्षण के अपेक्षाकृत अल्प बल पर निर्भर करते हैं। भारत तथा अन्य देशों में अपकेंद्रित्र का उपयोग बहुत समय से होता आया है। दही तथा दूध को मथकर मक्खन निकालने की क्रिया केंद्राभिमुख बल पर निर्भर करती है। केंद्राभिमुख बल की वैज्ञानिक परिभाषा न्यूटन के बल तथा गति के प्रसिद्ध नियम पर आधारित है। न्यूटन के इस नियम के अनुसार मुक्त अवस्था में, गतिशील पदार्थों में, सरल रेखा में चलने की प्रवृत्ति होती है। अत: यदि इस प्रकार के गतिशील पदार्थ को वक्र पथ पर चलने के लिये संचालित किया जाए, तो वह पदार्थ उस संचालित, अथवा नियंत्रित करनेवाले पदार्थ, अथवा वस्तु के विपरीत बल प्रयुक्त करता है। इसके फलस्वरूप गतिशील पदार्थ में उस वक्रपथ की स्पर्श रेखा की दिशा की ओर चल पड़ने की निरंतर प्रवृत्ति होती है। उदाहरणार्थ, यह सामान्य अनुभव में देखा जाता है कि वृत्त पथ में परिभ्रमण करनेवाली कोई वस्तु परिभ्रमण केंद्र से दूर बलप्रयास करती है। बलप्रयास की यह दिशा परिभ्रमण वृत्त के स्पर्शज्या पथ की ओर होती है। अत: परिभ्रमण के कोणीय वेग, वस्तु, अथवा पदार्थ के भार, अथवा वस्तु के परिभ्रमणवृत्त के अर्धव्यास, में वृद्धि होने से अपकेंद्री बल में वृद्धि होती है। अपकेंद्री बल का घूर्णन वृत्त के अर्धव्यास तथा वस्तु के भार से क्रमानुपात होता है, जबकि इसका कोणीय वेग के वर्ग से अनुपात होता है। अपकेंद्रत्रि के प्रति मिनट घूर्णन की संख्या में दुगुनी वृद्धि होने से अपकेंद्री बल में चौगुनी वृद्धि होती हैं। इसी प्रकार अपकेंद्रित्र की गति में दस गुनी वृद्धि से अपकेंद्री बल में सौ गुनी वृद्धि हो जाती है। अपकेंद्रण की क्रिया में किसी वस्तु पर कार्य करने, अथवा प्रभाव उत्पन्न करने, वाले अपकेंद्री बल की, बहुधा वस्तु की तौल (वस्तु का भार व् गुरुत्वाकर्षण) से सीधे तुलना की जाती है। इस आधार पर अपकेंद्री बल को गुरुत्व के गुणज रूप में व्यक्त किया जाता है। गुरुत्व के लिये g अक्षर को प्रतीक माना जाता है, अत: अपकेंद्री बल को संक्षेप में g के गुणज में लिखा जाता है। यदि अपकेंद्रित्र में कोई वस्तु 600 घूर्णन प्रति मिनट की गति से घूर्णन कर रही हो तथा घूर्णनवृत्त का अर्धव्यास 3.84 इंच अथवा 10 सेंटीमीटर हो, तो इस परिस्थिति में जनित होनेवाला अपकेंद्री बल गुरुत्व का 41 गुना होता है। आधुनिक एवं विशेष प्रकार के अपकेंद्रित में गुरुत्व का लाख गुना अपकेंद्री बल उत्पन्न किया जा सकता है। आधुनिक अपकेंद्रित धातुनिर्मित एक ऐसा पात्र होता है जिसमें घूर्णन करनेवाला भाग विद्युन्मोटर की स्थिर धुरी से जुड़ा हुआ होता है। अत: विद्युन्मोटर के चलने पर अपकेंद्रित्र का घूर्णन करनेवाला भाग भी विद्युन्मोटर की गति से घूर्णित होने लगता है। घूर्णन की गति विघुत् की धुरी के घूर्णन के समान होती है। पूर्व समय में अपकेंद्रित में घूर्णन हाथ से उत्पन्न किया जाता था। आजकल भी घरेलू उपयोग में अपकेंद्रित्र के घूर्णन के लिये शारीरिक श्रम का उपयोग होता है। आधुनिक अति तीव्र गति से घूर्णित होनेवाले उपकेंद्रित्र में विद्युन्मोटर के स्थान पर वायु टरबाइन का उपयोग होने लगा है। अपकेंद्रित्र के घूर्णन करनेवाले भाग को रोटर कहा जाता है। इसका आकार कटोरी के समान, अथवा उल्टे प्याले के समान होता है। इसमें द्रव अथवा अन्य वस्तु को अपकेंद्रित्र नली में, अथवा सीधे कटोरी में, अपकेंद्रण के लिये रखा जाता है। अपकेंद्रण कार्य में अपकेद्रित्र में अनावश्यक एवं हानिकर कंपन उत्पन्न न हो, इसके लिये आवश्यक होता है कि वस्तु से पूरित रोटर पूर्ण रूप से संतुलित हो। इसके लिये वस्तु के संपूर्ण भार को घूर्णन धूरी के चारों ओर समान रूप से वितरित रखना पड़ता है। आदर्श परिस्थिति में इस व्यवस्था से मूल बलों का परिणामी शून्य के बराबर होता है। अपकेंद्रण में द्रवों की, विशेषकर ऐसे द्रवों की जिनमें ठोस पदार्थ के सूक्ष्म कण निलंबित हों अथवा जिनमें अमिश्रणीय द्रव की गोलिकाएँ अथवा दोनों ही विद्यमान हों, अपकेंद्रण प्रवृत्ति विशेष महत्व की होती है। ठोस पदार्थ के सूक्ष्म कण, जल तथा तेल से बने पायस से तीनों वस्तुओं का पृथक्करण सरलता से किया जा सकता है। अपकेंद्रण में उत्पन्न होनेवाले अपकेंद्री बल की तुलना में गुरुत्व बल अत्यंत अल्प होता है। अपकेंद्री बल के क्षेत्र में, द्रव पदार्थ घूर्णन अक्ष से अधिक से अधिक दूरी पर विपरीत होने का प्रयत्न करता है, जिससे द्रव अपकेंद्रित्र के घूर्णन पात्र के बाहरी किनारें के समीप समान मोटाई में स्थित हो जाता है। इस प्रकार पात्र में अक्ष से लेकर द्रव तक समान रूप में फैला हुआ मुक्त स्थान उत्पन्न हो जाता है, जो कि रंभाकार होता है। इस प्रकार अपकेंद्रण की क्रिया के द्वारा निलंबित करनेवाले द्रव से अपेक्षाकृत अधिक घनत्ववाले, निलंबित सूक्ष्मकण परिभ्रमण पात्र की परिधि में एकत्रित हो जाते हैं तथा निलंबन करनेवाले द्रव से कम घनत्व के निलंबित सूक्ष्मकण पात्र के स्थल पर एकत्रित हो जाते हैं। उपर्युक्त पृथक्करण कितना शीध्र होगा, यह केंद्राभिमुख बल की तीव्रता, निलंबित करनेवाले द्रव तथा निलंबित सूक्ष्म कणों के घनत्व के अंतर, द्रव की श्यानता, निलंबित सूक्ष्म कणों के आकार तथा परिमाण और कणों की सांद्रता तथा अनेक वैद्युत प्रभार के स्तर पर निर्भर करता है। .

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मानव दाँत

दांत मुंह (या जबड़ों) में स्थित छोटे, सफेद रंग की संरचनाएं हैं जो बहुत से कशेरुक प्राणियों में पाया जाती है। दांत, भोजन को चीरने, चबाने आदि के काम आते हैं। कुछ पशु (विशेषत: मांसभक्षी) शिकार करने एवं रक्षा करने के लिये भी दांतों का उपयोग करते हैं। दांतों की जड़ें मसूड़ों से ढ़की होतीं हैं। दांत, अस्थियों (हड्डी) के नहीं बने होते बल्कि ये अलग-अलग घनत्व व कठोरता के ऊतकों से बने होते हैं। मानव मुखड़े की सुंदरता बहुत कुछ दंत या दाँत पंक्ति पर निर्भर रहती है। मुँह खोलते ही 'वरदंत की पंगति कुंद कली' सी खिल जाती है, मानो 'दामिनि दमक गई हो' या 'मोतिन माल अमोलन' की बिखर गई हो। दाड़िम सी दंतपक्तियाँ सौंदर्य का साधन मात्र नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। .

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मापिकी

मापविद्या या मापविज्ञान (Metrology) में मापन के सभी सैद्धांतिक और व्यावहारिक पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। यह मापन एवं उसके अनुप्रयोगों का विज्ञान है। मापविज्ञान (Metrology) भौतिकी की वह शाखा है जिसमें शुद्ध माप के बारे में हमें ज्ञान होता है। मापविज्ञान में मूल रूप से हम तीन रशियों, अर्थात्‌ द्रव्यमान, लंबाई एवं समय के बारे में चर्चा करते हैं और इन्हीं तीन राशियों के ज्ञान से हम अन्य राशियों, जैसे घनत्व, आयतन, बल तथा शक्ति आदि को मापते हैं। मापविज्ञान द्वारा अपरिवर्तनीय मानकों (standards) का निर्देश ही नहीं मिलता, वरन्‌ इन्हें कायम भी रखा जाता है। इन्हीं मानकों द्वारा हम वस्तुओं के गुणों की माप तथा तुलना भी करते हैं। दूसरा पक्ष यह है कि किसी कार्यविशेष को दृष्टि में रखकर मापविज्ञान से ऐसे तरीके प्राप्त होते हैं जिनसे तुलनाएँ काफी उच्च स्तर की शुद्धता तक की जा सकें। आधुनिक विज्ञान तथा उद्योगों में उपर्युक्त मौलिक तुलनाओं (fundamental comparisons) का अत्यंत शुद्ध होना आवश्यक है। माप पूर्णतया ठीक नहीं होती और निश्चित रूप से उसमें कुछ न कुछ प्रायोगिक गलती सदा ही रहती है। आजकल मापविज्ञान की अधिक मौलिक क्रियाओं में यथार्थता की निम्नलिखित सन्निकटताएँ प्राप्त है: अंतरराष्ट्रीय आदिरूप (prototype) किलोग्राम के दो प्लैटिनम इरीडियम नमूनों की तुलना में: 10,00,00,000 में एक भाग। साधारण रासायनिक बाटों की तुलना में: 10,00,000 में एक भाग। सूक्ष्ममापी तुला द्वारा छोटे छोटे भारों की तुलना में: 10,00,00,000 में एक भाग। दो गजों या मानक मीटरों की तुलना में: 1,00,00,000 में एक भाग। अंत्य मानक (End standard) की रेखामानक (Line standard) से तुलना में: 10,00,000 में एक भाग। साधारण आयतन तथा घनत्व के निर्धारण में: 10,000 में एक भाग। अंत्य मानक के कुलक के अंशांकन (calibration), 1 इंच की लंबाई से कम नहीं में 10,00,000 में एक भाग। चिह्नांकित गज या धातु पैमानों के उपविभागों के अंशाकन की पूरी लंबाई के पदों (terms) में 0.000005 इंच, या 0.0001 मिलीमीटर। .

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मुम्बई महानगरीय क्षेत्र

मुंबई महानगरीय क्षेत्र (MMR) मुंबई महानगर और उसके उपनगरॊ को मिलाकर बोला जाता है। इसके उपनगर पिछले बीस वर्षों में विकसित हुए हैं और यहां सात नगर पालिकाएं, तथा पंद्रह नगर परिषद हैं। इस पूरे क्षेत्र को मुंबई महानगरीय विकास प्राधिकरण (MMRDA) द्वारा यहां की योजना, विकास, परिवहन और आवास आदि देखा जाता है। इस क्षेत्र का कुल क्षेत्रफ़ल ४३५५ वर्ग कि॰मी॰ और जनसंख्या १७,७०२,७६१ है। यह मुंबई शहर से मुंबई उपनगरीय रेलवे सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है। मुंबई मोनोरेल।;नगर परिषद.

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मेम्फिस, टेनेसी

मॅम्फिस संयुक्त राज्य अमेरिका के टेनेसी राज्य का सबसे बड़ा नगर है। मिसिसिपि नदी पर इस नगर का एक विशाल बन्दरगाह स्थित है। यह नगर ब्ल्यूज़ संगीत और बारबिइक्यू के लिए भी जाना जाता है। यह नगर फ़ॅडेक्स (FedEx) नामक विश्व की प्रमुख कुरियर कम्पनी का भी मुख्यालय नगर है। मेम्फिस का नाम मिस्र के एक नगर मेम्फिस के नाम पर पड़ा है। ए. सी.

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मोलिब्डेनम

मोलिब्डेनम (Molybdenum) एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक Mo एवं परमाणु क्रमांक ४२ है। इसके खनिज तो बहुत समय से ज्ञात हैं किन्तु तत्व के रूप में इसकी पहचान १७७८ में शीले ने की। मोलिब्डेनम के सात स्थिर समस्थानिक पाए जाते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या ९२, ९४, ९५, ९६, ९७, ९८ और १०० है। इनके अतिरिक्त द्रव्यमान संख्या ९३, ९९, १०१ और १०५ के अस्थिर समस्थानिक कृत्रिम विधि से निर्मित हुए हैं। इसके अयस्क मोलिब्डेनाइट को बहुत काल तक भूल से ग्रेफाइट समझा गया। सन् १७७८ में शीले ने इस अयस्क से मोलिब्डिक अम्ल बनाया। सन् १७८२ में येल्म (Hyelm) ने मोलिब्डेनम ऑक्साइड का कार्बन द्वारा अपचयन कर मोलिब्डेनम घातु तैयार की। मोलिब्डेनम स्वतंत्र अवस्था में नहीं मिलता। मोलिब्डेनाइट MnS2 एवं बुल्फेनाइट (PbMoO4) इसके मुख्य अयस्क हैं। संयुक्त राज्य अमरीका इसका मुख्य स्रोत है। चिली, दक्षिणी अमरीका और नार्वे में भी इसके अयस्क प्राप्य हैं। .

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यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण

यांत्रिकी तथा द्रव्यगुण यांत्रिकी में द्रव्यपिंडों की गति का अध्ययन किया जाता है। यह गति समूचे पिंड की भी हो सकती है और आंतरिक भी। भौतिकी की इस शाखा का बहुत महत्व है और इसके सिद्धांत भौतिकी के प्रत्येक विभाग मे, विशेषतया अभियान्त्रिकी (इंजीनियरिंग) और शिल्पविज्ञान में, प्रयुक्त होते हैं। इसके मूल में जो सिद्धांत लागू हाते हैं, उनको सर्वप्रथम न्यूटन ने प्रतिपादित किया था। लैग्रेंज, हैमिल्टन आदि वैज्ञानिकों ने इन नियमों को गंभीर गणितीय रूप देकर जटिल समस्याएँ हल करने योग्य बनाया। मूल समीकरणों द्वारा ऊर्जा संवेग (momentum), कोणीय संवेग इत्यादि, नवीन राशियों की कल्पना की गई। इस विज्ञान के मुख्य नियम ऊर्जा संरक्षण, संवेग संरक्षण तथा कोणीय संवेग संरक्षण हैं। सिद्धांत रूप से ज्ञात बलों के अधीन किसी भी पिंड की गति का पूरा विश्लेषण किया जा सकता है। द्रव्य गुण शाखा में द्रव्य की तीनों अवस्थाओं ठोस, द्रव, तथा गैस के गुणों की विवेचना की जाती है। इन गुणों के आपसी संबंधों की भी चर्चा की जाती है और इनसे संबंधित आँकड़े ज्ञात किए जाते हैं। कुछ गुण जिनका अध्ययन किया जाता है, ये हैं घनत्व, प्रत्यास्थता गुणांक, श्यानता, पृष्ठतनाव, गुरुत्वाकर्षण गुणांक इत्यादि। श्रेणी:भौतिकी.

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यूरेनियम

यूरेनियम आवर्त सारणी की एक अंतर्वर्ती श्रेणी, ऐक्टिनाइड श्रेणी (actinide series), का तृतीय तत्व है। इस श्रेणी में आंतरिक इलेक्ट्रॉनीय परिकक्षा (5 परिकक्षा) के इलेक्ट्रॉन स्थान लेते हैं। प्रकृति में पाए गए तत्वों में यह सबसे भारी तत्व है। कुछ समय पहले तक इस तत्व को छठे अंतर्वर्ती समूह का अंतिम तत्व माना जाता था। .

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रेनल्ड्स संख्या

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रीनियम

रेनियम (Rhenium; संकेत: Re) एक रासायनिक तत्व है। इसका परमाणुभार १८६.३१ तथा परमाणु संख्या ७५ है। इसका आविष्कार १९२५ ई. में इडा तथा वाल्टर नौडाक (Ida and Walter Noddock) द्वारा हुआ था। इसके स्थायी समस्थानिक की द्रव्यमान संख्या १८५ है और अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक १८२, १८३, १८४, १८६, १८७ और १८८ द्रव्यमान संख्याओं के प्राप्त हैं। यह तत्व अनेक खनिजों में बहुत विस्तृत पाया जाता है, पर बड़ी अल्प मात्रा में ही। खनिजों में यह सल्फाइड के रूप में रहता है। इसके ऑक्साइड वाष्पशील होते हैं, अत: खनिजों के प्रद्रावण पर यह अवशेष में, या चिमनी धूल में, सांद्रित रहता है। इसका निष्कर्षण पोटैशियम पररेनेट के रूप में होता है, जो जल में अल्प विलेय है। लवण के पुन: क्रिस्टलीकरण से यह शुद्ध रूप में प्राप्त होता है। हाइड्रोजन के वातावरण में पोटैशियम या अमोनियम पररेनेट के अपचयन से धूसर, या काले चूर्ण के रूप में धातु प्राप्त होती है। ऊँचे ताप पर यह धातु स्थूल रूप में प्राप्त होती है। धातु का घनत्व २१ और गलनांक ३,१४० डिग्री सेल्सियस है। इसे १५० डिग्री सेल्सियस से ऊपर गरम करने से ऑक्साइड बनता है। इसके अनेक ऑक्साइड बनते हैं। इसका क्लोराइड, ऑक्सीक्लोराइड, सल्फाइड और फॉस्फाइड भी बनता है। यह हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में अविलेय है, पर नाइट्रिक अम्ल में विलेय है। इसकी अनेक मिश्रधातुएँ बनी हैं। श्रेणी:रीनियम श्रेणी:रासायनिक तत्व श्रेणी:संक्रमण धातु श्रेणी:उच्चतापसह धातुएँ.

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लिथियम

लिथियम एक रासायनिक तत्व है। साधारण परिस्थितियों में यह प्रकृति की सबसे हल्की धातु और सबसे कम घनत्व-वाला ठोस पदार्थ है। रासायनिक दृष्टि से यह क्षार धातु समूह का सदस्य है और अन्य क्षार धातुओं की तरह अत्यंत अभिक्रियाशील (रियेक्टिव) है, यानि अन्य पदार्थों के साथ तेज़ी से रासायनिक अभिक्रिया कर लेता है। यदी इसे हवा में रखा जाये तो यह जल्दी ही वायु में मौजूद ओक्सीजन से अभिक्रिया करने लगता है, जो इसके शीघ्र ही आग पकड़ लेने में प्रकट होता है। इस कारणवश इसे तेल में डुबो कर रखा जाता है। तेल से निकालकर इसे काटे जाने पर यह चमकीला होता है लेकिन जल्द ही पहले भूरा-सा बनकर चमक खो देता है और फिर काला होने लगता है। अपनी इस अधिक अभिक्रियाशीलता की वजह से यह प्रकृति में शुद्ध रूप में कभी नहीं मिलता बल्कि केवल अन्य तत्वों के साथ यौगिकों में ही पाया जाता है। अपने कम घनत्व के कारण लिथियम बहुत हलका होता है और धातु होने के बावजूद इसे आसानी से चाकू से काटा जा सकता है। .

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लौह अयस्क

हैमेताईट: ब्राजील की खानों में मुख्य लौह अयस्क लौह अयस्क के छर्रों के इस ढेर का उपयोग इस्पात के उत्पादन में किया जाएगा। लौह अयस्क (Iron ores) वे चट्टानें और खनिज हैं जिनसे धात्विक लौह (iron) का आर्थिक निष्कर्षण किया जा सकता है। इन अयस्कों में आमतौर पर आयरन (लौह या iron) ऑक्साइडों की बहुत अधिक मात्रा होती है और इनका रंग गहरे धूसर से लेकर, चमकीला पीला, गहरा बैंगनी और जंग जैसा लाल तक हो सकता है। लौह आमतौर पर मेग्नेटाईट (magnetite), हैमेटाईट (hematite), जोईथाईट (goethite), लिमोनाईट (limonite), या सिडेराईट (siderite), के रूप में पाया जाता है। हैमेटाईट को "प्राकृतिक अयस्क" भी कहा जाता है। यह नाम खनन के प्रारम्भिक वर्षों से सम्बंधित है, जब हैमेटाईट के विशिष्ट अयस्कों में 66% लौह होता था और इन्हें सीधे लौह बनाने वाली ब्लास्ट फरनेंस (एक विशेष प्रकार की भट्टी जिसका उपयोग धातुओं के निष्कर्षण में किया जाता है) में डाल दिया जाता था। लौह अयस्क कच्चा माल है, जिसका उपयोग पिग आयरन (ढलवां लोहा) बनाने के लिए किया जाता है, जो इस्पात (स्टील) बनाने के लिए बनाने में काम आता है। वास्तव में, यह तर्क दिया गया है कि लौह अयस्क "संभवतया तेल को छोड़कर, किसी भी अन्य वस्तु की तुलना में वैश्विक अर्थव्यवस्था का अधिक अभिन्न अंग है।" .

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श्यानतामापी

इंग्लर का श्यानतामी जिन उपकरणों से किसी तरल (द्रव या गैस) की श्यानता मापी जाती है उन्हें श्यानतामापी कहते हैं। श्यानता गुणांक के शुद्ध, पूर्ण तथा ठीक ठीक निर्धारण के लिए यह आवश्यक है कि श्यानता के यथार्थ आयाम (exact dimensions) मालूम हों, पर यह कठिन कार्य है। औद्योगिक प्रतिष्ठानों में श्यानतामापन के लिए सरल उपकरण, जिन्हें श्यानतामापी कहते हैं, प्रयुक्त होते हैं। इन उपकरणों को उन द्रवों द्वारा अंशांकित कियो जाता है जिनकी श्यानता मालूम है। ये उपकरण साधारणतया केशिका प्रवाह अथवा घूर्ण ऐंठन (rotational torque) के सिद्धांत पर कार्य करते हैं। .

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समुद्र विज्ञानी

समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले समुद्र विज्ञानी (ओशनोग्राफर) कहलाते हैं। .

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सल्फर हेक्साफ्लोराइड

सल्फर हेक्साफ्लोराइड (Sulfur hexafluoride (SF6) एक अकार्बनिक गैस है। यह रंगहीन, गंधहीन, अज्वलनशील गैस है। यह गैस अत्यन्त उच्च गुणवत्ता वाली विद्युत इंसुलेटर है और उच्च वोल्टता के उपकरणों में इसका उपयोग होता है (जैसे, SF6 सर्किट ब्रेकर में)। यह एक ग्रीनहाउस गैस है। SF6 का अणु अष्टफलकीय (octahedral) होता है। इसके केन्द्र में सल्फर परमाणु होता है जिसके चारों ओर ६ फ्लोरीन परमाणु जुड़े होते हैं। यह एक अध्रुवी (nonpolar) गैस है जो जल में बहुत कम विलेय है किन्तु अध्रुवीय कार्बनिक विलायकों में विलेय है। इसे प्रायः द्रवीकृत संपीडित गैस के रूप में लाया-ले जाया जाता है। इसका सामान्य ताप और दाब पर घनत्व 6.12 g/L है जो वायु के घनत्व (1.225 g/L) से काफी अधिक है। .

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सिरका

विभिन्न आकार वाली सिरके की बोतलें सिरका या चुक्र (Vinagar) भोजन का भाग है जो पाश्चात्य, यूरोपीय एवं एशियायी देशों के भोजन में प्राचीन काल से ही प्रयुक्त होता आया है। किसी भी शर्करायुक्त विलयन के मदिराकरण के अनंतर ऐसीटिक (अम्लीयامیر) किण्वन (acetic fermentation) से सिरका या चुक्र (Vinegar, विनिगर) प्राप्त होता है। इसका मूल भाग ऐसीटिक अम्ल का तनु विलयन है पर साथ ही यह जिन पदार्थों से बनाया जाता है उनके लवण तथा अन्य तत्व भी उसमें रहते हैं। प्रायः भोजन के लिये प्रयुक्त सिरके में ४% से ८% तक एसेटिक अम्ल होता है। विशेष प्रकार का सिरका उसके नाम से जाना जाता है, जैसे मदिरा सिरका (Wine Vinegar), मॉल्ट (यव्य या यवरस) सिरका (Malt Vinegar), अंगूर का सिरका, सेब का सिरका (Cider Vinegar), जामुन का सिरका और कृत्रिम सिरका इत्यादि। .

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संहति-केन्द्र

अलग-अलग द्रव्यमान वाली चार गेंदों के निकाय का '''संहति-केन्द्र भौतिकी में, संहतियों के किसी वितरण का संहति-केंद्र (center of mass) वह बिन्दु है जिस पर वह सारी संहतियाँ केन्द्रीभूत मानी जा सकती हैं। संहति केन्द्र के कुछ विशेष गुण हैं, उदाहरण के लिये यदि किसी वस्तु पर कोई बल लगाया जाय जिसकी क्रियारेखा उस वस्तु के संहति-केन्द्र से होकर जाती हो तो उस वस्तु में केवल स्थानातरण गति होगी (घूर्णी गति नहीं)। संहति-केन्द्र के सापेक्ष उस वस्तु में निहित सभी संहतियों के आघूर्णों (मोमेण्ट) का योग शून्य होता है। दूसरे शब्दों में, संहति-केन्द्र के सापेक्ष, सभी संहतियों की स्थिति का भारित औसत (वेटेड एवरेज) शून्य होता है। कणों के किसी निकाय का संहति केन्द्र वह बिन्दु है जहाँ, अधिकांश उद्देश्यों के लिए, निकाय ऐसे गति करता है जैसे निकाय का सब द्रव्यमान उस बिन्दु पर संकेंद्रित हो। संहति केन्द्र, केवल निकाय के कणों के स्थिति-सदिश और द्रव्यमान पर निर्भर होता है। संहति केन्द्र पर वास्तविक पदार्थ होना अनिवार्य नहीं है (जैसे, एक खोखले गोले का संहति-केन्द्र उस गोले के केन्द्र पर होता है जहाँ कोई द्रव्यमान ही नहीं है)। गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के एकसमान होने की स्थिति में कभी-कभी इसे गलती से गुरुत्वाकर्षण केन्द्र भी कहा जाता है। किसी वस्तु का रेखागणितीय केन्द्र, द्रव्यमान केन्द्र तथा गुरुत्व केन्द्र अलग-अलग हो सकते हैं। संवेग-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह निर्देश तंत्र है जिसमें निकाय का द्रव्यमान केन्द्र स्थिर है। यह एक जड़त्वीय फ्रेम है। एक द्रव्यमान-केन्द्रीय निर्देश तंत्र वह तंत्र है जहाँ द्रव्यमान केन्द्र न केवल स्थिर है बल्कि निर्देशांक निकाय के मूल बिन्दु पर स्थित है। .

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स्वतःप्रज्वलन ताप

किसी पदार्थ का स्वतःप्रज्वलन ताप (autoignition temperature) या kindling point) वह न्यूनतम ताप है जिस पर आने पर बिना किसी बाहरी स्रोत के ही वह पदार्थ तुरन्त जलने लगता है। यह ताप उस पदार्थ को जलने के लिये आवश्यक सक्रियण ऊर्जा (activation energy) प्रदान करती है। 'स्वतःप्रज्वलन ताप' प्रायः ज्वलनशील ईंधन मिश्रणॉं के सन्दर्भ में प्रयुक्त होता है। प्रायः दाब बढ़ाने और आक्सीजन की मात्रा बढाने पर सभी रसायन कम ताप पर ही ज्वलित हो उठते हैं। .

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सोडियम

सोडियम (Sodium; संकेत, Na) एक रासायनिक तत्त्व है। यह आवर्त सारणी के प्रथम मुख्य समूह का दूसरा तत्व है। इस समूह में में धातुगण विद्यमान हैं। इसके एक स्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या २३) और चार रेडियोसक्रिय समस्थानिक (द्रव्यमन संख्या २१, २२, २४, २४) ज्ञात हैं। .

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सीसा

विद्युत अपघटन द्वारा शुद्ध किया हुआ सीस; १ घन सेमी से घन के साथ (तुलना के लिए) सीस, सीसा या लेड (अंग्रेजी: Lead, संकेत: Pb लैटिन शब्द प्लंबम / Plumbum से) एक धातु एवं तत्त्व है। काटने पर यह नीलिमा लिए सफ़ेद होता है, लेकिन हवा का स्पर्श होने पर स्लेटी हो जाता है। इसे इमारतें बनाने, विद्युत कोषों, बंदूक की गोलियाँ और वजन बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। यह सोल्डर में भी मौजूद होता है। यह सबसे घना स्थिर तत्त्व है। यह एक पोस्ट-ट्रांज़िशन धातु है। इसका परमाणु क्रमांक ८२, परमाणु भार २०७.२१, घनत्व ११.३६, गलनांक ३,२७.४ डिग्री सें., क्वथनांक १६२०डिग्री से.

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हाइड्रोक्लोरिक अम्ल

३०% सान्द्रता वाला हाइड्रोक्लोरिक अम्ल हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक प्रमुख अकार्बनिक अम्ल है। वस्तुतः हाइड्रोजन क्लोराइड गैस के जलीय विलयन को ही हाइड्रोक्लोरिक अम्ल कहते हैं। इस अम्ल का उल्लेख ग्लौबर ने १६४८ ई. में पहले पहल किया था। जोसेफ़ प्रीस्टली ने १७७२ में पहले पहल तैयार किया और सर हंफ्री डेवी ने १८१० ई. में सिद्ध किया कि हाइड्रोजन और क्लोरीन का यौगिक है। इससे पहले लोगों की गलत धारणा थी कि इसमें ऑक्सीजन भी रहता है। तब इसका नाम 'म्यूरिएटिक अम्ल' पड़ा या जो आज भी कहीं कहीं प्रयोग में आता है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ज्वालामुखी गैसों में पाया जाता है। मानव जठर में इसकी अल्प मात्रा रहती है और आहार पाचन में सहायक होती है। .

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ह्युस्टन

270px ह्युस्टन संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास राज्य का सबसे बड़ा नगर है। यह संरा अमेरिका के भी सबसे बड़े नगरों में से एक है, चौथा सबसे बड़ा। ह्युस्टन के महापौर हैं बिल व्हाइट। इस नगर में २० लाख के लगभग लोग रहते हैं। इस नगर का नाम सैम ह्युस्टन के नाम पर रखा गया जिसने १८३६ में टेक्सास की स्वतन्त्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी। यह नगर मुख्यतः नासा का मुख्यालय नगर होने के लिए जाना जाता है। इस नगर के लिए एक उपनाम भी प्रयुक्त किया जाता है, स्पेस सिटी अर्थात 'अन्तरिक्ष नगर'। .

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हेंड्रिक लारेंज़

हेंड्रिक ऐंतूँ लारेंज़ (Hendrik Antoon Lorentz, सन् १८५३-१९२८) प्रसिद्ध डच भौतिकीविद् थे जिन्हें १९०२ का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया। .

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जड़त्वाघूर्णों की सूची

यहाँ पर विभिन्न आकार-प्रकार के पिण्डों के जड़त्वाघूर्ण दिये गये हैं। ज। दत्वाघूर्ण की इकाई की विमा द्रव्यमान × लम्बाई2 होती है। नीचे दिये गये व्यंजकों की गणना में यह माना गया है कि घनत्व सर्वत्र समान है। टिप्पणी: जहाँ कहीं भी अलग से न कहा गया हो, यह माना गया है कि घूर्णन-अक्ष द्रव्यमान केन्द्र से जाता है। .

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जनसंख्या भूगोल

जनसंख्या भूगोल मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा हैं। इसमें स्वंय मानव की जनसंख्या, लोगो का वितरण, आयु संरचना, घनत्व, व्रधि, लिंग अनुपात, स्थानान्तरण, व्यावसायिक संरचना तथा उनके आवासों का अध्ययन किया जाता हैं। .

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जल

जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.

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जल (अणु)

जल पृथ्वी की सतह पर सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला अणु है, जो इस ग्रह की सतह के 70% का गठन करता है। प्रकृति में यह तरल, ठोस और गैसीय अवस्था में मौजूद है। मानक दबावों और तापमान पर यह तरल और गैस अवस्थाओं के बीच गतिशील संतुलन में रहता है। घरेलू तापमान पर, यह तरल रूप में हल्की नीली छटा वाला बेरंग, बेस्वाद और बिना गंध का होता है। कई पदार्थ, जल में घुल जाते हैं और इसे सामान्यतः सार्वभौमिक विलायक के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। इस वजह से, प्रकृति में मौजूद जल और प्रयोग में आने वाला जल शायद ही कभी शुद्ध होता है और उसके कुछ गुण, शुद्ध पदार्थ से थोड़ा भिन्न हो सकते हैं। हालांकि, ऐसे कई यौगिक हैं जो कि अनिवार्य रूप से, अगर पूरी तरह नहीं, जल में अघुलनशील है। जल ही ऐसी एकमात्र चीज़ है जो पदार्थ की सामान्य तीन अवस्थाओं में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है - अन्य चीज़ों के लिए रासायनिक गुण देखें. पृथ्वी पर जीवन के लिए जल आवश्यक है। जल आम तौर पर, मानव शरीर के 55% से लेकर 78% तक का निर्माण करता है। .

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जल इंजीनियरी

द्रविकी का अन्य विधाओं से सम्बन्ध द्रविकी (Hydraulics / 'द्रवविज्ञान' या जल इंजीनियरी अथवा द्रव इंजीनियरी) के अंतर्गत तरल पदार्थों के प्रवाह के गुणधर्म का अध्ययन करती है। प्रौद्योगिकी में द्रविकी का उपयोग अन्य कार्यों के अलावा संकेत, बल या ऊर्जा के संचरण (ट्रांसमिशन) के लिये किया जाता है। द्रविकी में इंजीनियरी के उपतत्वों का विचार आ जाता है जिनके अंतर्गत जल, वायु तथा तैल और अन्य रासायनिक विलयनों का उपयोग प्राकृतिक दशा में या दबाव के अंदर होता है। इन द्रवों के प्राकृतिक गुणों का, जैसे घनत्व, श्यानता, प्रत्यास्थता और पृष्ठ तनाव आदि, के ऊपर इंजीनियरी के समस्त अभिकल्प निर्भर होते हैं, क्योंकि सारे द्रवों का आधारभूत व्यवहार एक सा ही होता है। जल इंजीनियरी के और भी बहुत से विशेष अंग हैं जिनका विवरण उन विशेष अंगों के अंतर्गत मिल सकता है। जल इंजीनियरी में मुख्यत: जल का स्थिर दबाव, उसकी गति तथा उसका प्रभाव, उसके द्वारा चालित यंत्र जल का मापन आदि विषयों का विचार आ जाता है। .

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वायुगतिकी

वायुगतिकी (Aerodynamics) गतिविज्ञान की वह शाखा है जिसमें वायु तथा अन्य गैसीय तरलों (gaseous fluids) की गति का और इन तरलों के सापेक्ष गतिवान ठोसों पर लगे बलों का विवेचन होता है। इस विज्ञान के सार्वाधिक महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों में से एक अनुप्रयोग वायुयान की अभिकल्पना है। .

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विमीय विश्लेषण

विमीय विश्लेषण (Dimensional analysis) एक संकाल्पनिक औजार (कांसेप्चुअल टूल) है जो भौतिकी, रसायन, प्रौद्योगिकी, गणित एवं सांख्यिकी में प्रयुक्त होता है। यह वहाँ उपयोगी होता है जहाँ कई तरह की भौतिक राशियाँ किसी घटना के परिणाम के लिये जिम्मेदार हों। भौतिकविद अक्सर इसका उपयोग किसी समीकरण आदि कि वैधता (plausibility) की जाँच के लिये करते रहते हैं। दूसरी तरफ इसका उपयोग जटिल भौतिक स्थितियों से सम्बंधित चरों को आपस में समीकरण द्वारा जोड़ने के लिये किया जाता है। विमीय विश्लेषण की विधि से प्राप्त इन सम्भावित समीकरणों को प्रयोग द्वारा जाँचा जाता है, या अन्य सिद्धान्तों के प्रकाश में देखा जाता है। बकिंघम का पाई प्रमेय (Buckingham π theorem), विमीय विश्लेषण का आधार है। .

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विस्तारात्मक तथा अविस्तारात्मक गुणधर्म

पदार्थों के भौतिक गुणों को प्रायः दो भागों में विभाजित किया जाता है - .

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विकृत पदार्थ

विकृत पदार्थ (degenrate matter) ऐसे पदार्थ को कहते हैं जिसका घनत्व इतना ज़्यादा हो कि उसके दाब (प्रॅशर) का अधिकतम भाग पाउली अपवर्जन नियम (Pauli exclusion principle) से उत्पन्न हो।, Alexander Bolonkin, Elsevier, 2011, ISBN 978-0-12-415801-6,...

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गन्धकाम्ल

गन्धकाम्ल (सल्फ्युरिक एसिड) एक तीव्र अकार्बनिक अम्ल है। प्राय: सभी आधुनिक उद्योगों में गन्धकाम्ल अत्यावश्यक होता है। अत: ऐसा माना जाता है कि किसी देश द्वारा गन्धकाम्ल का उपभोग उस देश के औद्योगीकरण का सूचक है। गन्धकाम्ल के विपुल उपभोगवाले देश अधिक समृद्ध माने जाते हैं। शुद्ध गन्धकाम्ल रंगहीन, गंधहीन, तेल जैसा भारी तरल पदार्थ है जो जल में हर परिमाण में विलेय है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में तथा अनेक रासायनिक उद्योगों में विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संश्लेषण में होता है। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए सम्पर्क विधि का प्रयोग किया जाता है जिसमें गन्धक को वायु की उपस्थिति में जलाकर विभिन्न प्रतिकारकों से क्रिया कराई जाती है। खनिज अम्लों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला यह महत्त्वपूर्ण अम्ल है। प्राचीन काल में हराकसीस (फेरस सल्फेट) के द्वारा तैयार गन्धक द्विजारकिक गैस को जल में घोलकर इसे तैयार किया गया। यह तेल जैसा चिपचिपा होता है। इन्ही कारणों से प्राचीन काल में इसका नाम 'आयँल ऑफ विट्रिआँल' रखा गया था। हाइड्रोजन, गन्धक तथा जारक तीन तत्वों के परमाणुओं द्वारा गन्धकाम्ल के अणु का संश्लेषण होता है। आक्सीजन युक्ति होने के कारण इस अम्ल को 'आक्सी अम्ल' कहा जाता है। इसका अणुसूत्र H2SO4 है तथा अणु भार ९८ है। गन्धकाम्ल प्राचीनकाल के कीमियागर एवं रसविद् आचार्यों को गन्धकाम्ल के संबंध में बहुत समय से पता था। उस समय हरे कसीस को गरम करने से यह अम्ल प्राप्त होता था। बाद में फिटकरी को तेज आँच पर गरम करने से भी यह अम्ल प्राप्त होने लगा। प्रारंभ में गन्धकाम्ल चूँकि हरे कसीस से प्राप्त होता था, अत: इसे "कसीस का तेल' कहा जाता था। तेल शब्द का प्रयोग इसलिए हुआ कि इस अम्ल का प्रकृत स्वरूप तेल सा है। .

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गामा किरण

गामा किरण (γ-किरण) एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण या फोटॉन हैं, जो परमाणु-नाभिक के रेडियोसक्रिय क्षय से उत्पन्न होता है। गामा किरणों के फोटॉनों की ऊर्जा अब तक प्रेक्षित अन्य सभी फोटॉनों की ऊर्जा से अधिक होती है। सन १९०० में फ्रांस के भौतिकशास्त्री पॉल विलार्ड ने इसकी खोज की थी जब वे रेडियम से निकलने वाले विकिरण का अध्ययन कर रहे थे। जब परमाणु का नाभिक एक उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर पर क्ष्यित होता है तो इस प्रक्रिया में गामा किरणें निकली हैं। इस प्रक्रिया को गामा-क्षय (gamma decay) कहा जाता है। अपने ऊँचे ऊर्जा स्तर के कारण, जैविक कोशिका द्वारा सोख लिए जाने पर अत्यंत नुकसान पहुँचा सकती हैं। .

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ग्रह

हमारे सौरमण्डल के ग्रह - दायें से बाएं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून सौर मंडल के ग्रहों, सूर्य और अन्य पिंडों के तुलनात्मक चित्र सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून। इनके अतिरिक्त तीन बौने ग्रह और हैं - सीरीस, प्लूटो और एरीस। प्राचीन खगोलशास्त्रियों ने तारों और ग्रहों के बीच में अन्तर इस तरह किया- रात में आकाश में चमकने वाले अधिकतर पिण्ड हमेशा पूरब की दिशा से उठते हैं, एक निश्चित गति प्राप्त करते हैं और पश्चिम की दिशा में अस्त होते हैं। इन पिण्डों का आपस में एक दूसरे के सापेक्ष भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। इन पिण्डों को तारा कहा गया। पर कुछ ऐसे भी पिण्ड हैं जो बाकी पिण्डों के सापेक्ष में कभी आगे जाते थे और कभी पीछे - यानी कि वे घुमक्कड़ थे। Planet एक लैटिन का शब्द है, जिसका अर्थ होता है इधर-उधर घूमने वाला। इसलिये इन पिण्डों का नाम Planet और हिन्दी में ग्रह रख दिया गया। शनि के परे के ग्रह दूरबीन के बिना नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए प्राचीन वैज्ञानिकों को केवल पाँच ग्रहों का ज्ञान था, पृथ्वी को उस समय ग्रह नहीं माना जाता था। ज्योतिष के अनुसार ग्रह की परिभाषा अलग है। भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नौ ग्रह गिने जाते हैं, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। .

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आदर्श तरल

भौतिकी में, आदर्श तरल (perfect fluid) उस तरल को कहते हैं जिसे उसके विरामस्थ तंत्र घनत्व \rho_m; तथा समदैशिक दाब (आइसोट्रोपिक प्रेसर) p द्वारा पूर्णतः अभिलक्षित (कैरेक्टराइज्ड) किया जा सकता हो। .

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आपेक्षिक घनत्व

किसी वस्तु का आपेक्षिक घनत्व (Relative density) या विशिष्ट घनत्व (specific gravity) उसके घनत्व को किसी 'सन्दर्भ पदार्थ' के घनत्व से भाग देने से प्राप्त होता है। प्रायः दूसरे पदार्थों का घनत्व जल के घनत्त्व के सापेक्ष व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिये बर्फ का आपेक्षिक घनत्व 0.91 है जिसका अर्थ है कि बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व का 0.91 गुना होता है। आधुनिक वैज्ञानिक साहित्य में 'विशिष्ट घनत्व' की अपेक्षा 'आपेक्षिक घनत्व' का अधिक प्रयोग किया जा रहा है। .

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आयतन

सभी पदार्थ स्थान (त्रि-बीमीय स्थान) घेरते हैं। इसी त्रि-बीमीय स्थान की मात्रा की माप को आयतन कहते हैं। एक-बीमीय आकृतियाँ (जैसे रेखा) एवं द्वि-बीमीय आकृतियाँ (जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज, वर्ग आदि) का आयतन शून्य होता है। .

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आर्लिंग्टन, टॅक्सस

आर्लिंग्टन, संयुक्त राज्य अमेरिका के टॅक्सस राज्य की टारण्ट काउण्टी में स्थित एक नगर है। यह डालास-फोर्ट वर्थ-आर्लिंग्टन महानगर क्षेत्र के भीतर आता है। डॉ॰ रॉबर्ट क्लक इस नगर के महापौर हैं। आर्लिंग्टन, टेक्सास राज्य में सातवां और संरा अमेरिका में पचासवां सबसे बड़ा नगर है। .

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आर्किमिडीज़

सेराक्यूस के आर्किमिडीज़ (यूनानी:; 287 ई.पू. - 212 ई.पू.), एक यूनानी गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी, अभियंता, आविष्कारक और खगोल विज्ञानी थे। हालांकि उनके जीवन के कुछ ही विवरण ज्ञात हैं, उन्हें शास्त्रीय पुरातनता का एक अग्रणी वैज्ञानिक माना जाता है। भौतिक विज्ञान में उन्होनें जलस्थैतिकी, सांख्यिकी और उत्तोलक के सिद्धांत की व्याख्या की नीव रखी थी। उन्हें नवीनीकृत मशीनों को डिजाइन करने का श्रेय दिया जाता है, इनमें सीज इंजन और स्क्रू पम्प शामिल हैं। आधुनिक प्रयोगों से आर्किमिडीज़ के इन दावों का परीक्षण किया गया है कि दर्पणों की एक पंक्ति का उपयोग करते हुए बड़े आक्रमणकारी जहाजों को आग लगाई जा सकती हैं। आमतौर पर आर्किमिडीज़ को प्राचीन काल का सबसे महान गणितज्ञ माना जाता है और सब समय के महानतम लोगों में से एक कहा जाता है। उन्होंने एक परवलय के चाप के नीचे के क्षेत्रफल की गणना करने के लिए पूर्णता की विधि का उपयोग किया, इसके लिए उन्होंने अपरिमित श्रृंखला के समेशन का उपयोग किया और पाई का उल्लेखनीय सटीक सन्निकट मान दिया। उन्होंने एक आर्किमिडीज सर्पिल को भी परिभाषित किया, जो उनके नाम पर आधारित है, घूर्णन की सतह के आयतन के लिए सूत्र दिए और बहुत बड़ी संख्याओं को व्यक्त करने के लिए एक सरल प्रणाली भी दी। आर्किमिडीज सेराक्यूस की घेराबंदी के दौरान मारे गए जब एक रोमन सैनिक ने उनकी हत्या कर दी, हालांकि यह आदेश दिया गया था कि उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। सिसरो आर्किमिडिज़ का मकबरा, जो एक बेलन के अंदर अन्दर स्थित गुंबद की तरह है, पर जाने का वर्णन करते हैं कि, आर्किमिडीज ने साबित किया था कि गोले का आयतन और इसकी सतह का क्षेत्रफल बेलन का दो तिहाई होता है (बेलन के आधार सहित) और इसे उनकी एक महानतम गणितीय उपलब्धि माना जाता है। उनके आविष्कारों के विपरीत, आर्किमिडीज़ के गणितीय लेखन को प्राचीन काल में बहुत कम जाना जाता था। एलेगज़ेनडरिया से गणितज्ञों ने उन्हें पढ़ा और उद्धृत किया, लेकिन पहला व्याख्यात्मक संकलन सी. तक नहीं किया गया था। यह 530 ई. में मिलेटस के इसिडोर ने किया, जब छठी शताब्दी ई. में युटोकियास ने आर्किमिडीज़ के कार्यों पर टिप्पणियां लिखीं और पहली बार इन्हें व्यापक रूप से पढने के लिये उपलब्ध कराया गया। आर्किमिडीज़ के लिखित कार्य की कुछ प्रतिलिपियां जो मध्य युग तक बनी रहीं, वे पुनर्जागरण के दौरान वैज्ञानिकों के लिए विचारों का प्रमुख स्रोत थीं, हालांकि आर्किमिडीज़ पालिम्प्सेट में आर्किमिडीज़ के द्वारा पहले से किये गए अज्ञात कार्य की खोज 1906 में की गयी थी, जिससे इस विषय को एक नयी अंतर्दृष्टि प्रदान की कि उन्होंने गणितीय परिणामों को कैसे प्राप्त किया। .

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आर्कीमिडीज सिद्धान्त

आर्कीमिडीज सिद्धांत का उदाहरण: दूसरी परखनली में जो अतिरिक्त आयतन दिख रहा है वह डूबे हुए ठोस के आयतन के बराबर होगा। ठोस पर द्रव द्वारा ऊपर की ओर लगाया गया बल इस अतिरिक्त आयतन के द्रव के भार के बराबर होगा। आर्कीमिडीज सिद्धान्त (Archimedes's principle) भौतिक नियम है जिसके अनुसार- या, जहाँ E .

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कार्बन नैनोट्यूब

कार्बन नैनोट्यूब का घूर्णन करता यह एनिमेशन उसकी 3 डी संरचना को दर्शाता है। कार्बन नैनोट्यूब (CNTs) एक बेलनाकार नैनोसंरचना वाले कार्बन के एलोट्रोप्स हैं। नैनोट्यूब को 28,000,000:1 तक के लंबाई से व्यास अनुपात के साथ निर्मित किया गया है, जो महत्वपूर्ण रूप से किसी भी अन्य द्रव्य से बड़ा है। इन बेलनाकार कार्बन अणुओं में नवीन गुण हैं जो उन्हें नैनोतकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रकाशिकी और पदार्थ विज्ञान के अन्य क्षेत्रों के कई अनुप्रयोगों के साथ-साथ वास्तु क्षेत्र में संभावित रूप से उपयोगी बनाते हैं। वे असाधारण शक्ति और अद्वितीय विद्युत् गुण प्रदर्शित करते हैं और कुशल ताप परिचालक हैं। उनका अंतिम उपयोग, लेकिन, उनकी संभावित विषाक्तता और रासायनिक शोधन की प्रतिक्रिया में उनके गुण परिवर्तन को नियंत्रित करने के द्वारा सीमित हो सकता है। नैनोट्यूब फुलरीन संरचनात्मक परिवार के सदस्य हैं, जिसमें गोलाकार बकिबॉल भी शामिल हैं। एक नैनोट्यूब के छोर को बकिबॉल संरचना के एक गोलार्द्ध के साथ ढका जा सकता है। उनका नाम उनके आकार से लिया गया है, चूंकि एक नैनोट्यूब का व्यास कुछ नैनोमीटर के क्रम में है (एक मानव बाल की चौड़ाई का लगभग 1/50,000 वां हिस्सा), जबकि वे लंबाई में कई मिलीमीटर हो सकते हैं (यथा 2008).

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क्रिस्टलता

क्रिस्टलता (crystallinity) किसी ठोस पदार्थ में ढांचे की सुव्यवस्था के माप को कहते हैं। क्रिस्टलों में परमाणु या अणु एक नियत व आवर्ती क्रम में सज्जित होते हैं। क्रिस्टलता काष्ठा (degree of crystallinity) का पदार्थ की कठोरता, घनत्व, पारदर्शिता और विसरण के गुणों पर भारी प्रभाव पड़ता है। .

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कोपनहेगन

कोपनहेगन (डैनिश: København), डेनमार्क की राजधानी और सबसे बड़ा नगर है, जिसकी नगरीय जनसंख्या ११,६७,५६९ (२००९) और महानगरीय जनसंख्या १८,७५,१७९ (२००९) है। कोपेनहेगन जीलण्ड और अमागर द्वीपों पर बसा हुआ है। इस क्षेत्र के प्रथम लिखित दस्तावेज ११वीं सदी के हैं और कोपनहेगन १५वीं सदी के आरम्भ में और क्रिस्चियन चतुर्थ के शासनकाल में डेनमार्क की राजधानी बना। वर्ष २००० में ओरेसण्ड सेतु के पूरा होने के साथ ही कोपनहेगन ओरेसण्ड क्षेत्र का केन्द्र बन गया है। इस क्षेत्र में, कोपनहेगन और स्वीडन का माल्मो नगर मिलकर एक आम महानगरीय क्षेत्र बनने की प्रकिया में है। ५० किमी के अर्धव्यास में २७ लाख लोगों के साथ, कोपनहेगन उत्तरी यूरोप के सबसे सघन क्षेत्रों में से एक है। नॉर्डिक देशों में कोपनहेगन सर्वाधिक पधारा जाने वाला देश है जहाँ पर २००७ में १३ लाख विदेशी पर्यटक आए। कोपनहेगन को बारम्बार एक ऐसे नगर के रूप में पहचान मिली है जहाँ का जीवन स्तर विश्व में सर्वश्रेष्ठ में से एक है। यह दुनिया के सबसे पर्यावरण-अनुकूल नगरों में से एक माना जाता है। भीतरी बन्दरगाह का पानी इतना साफ़ है की उसमें तैरा जा सकता है और प्रतिदिन ३६% निवासी साइकिल से काम पर जाते हैं, यानी की प्रतिदिन ११ लाख किमी की साइकिल यात्रा यहाँ की जाती है। यहाँ कोपेनहेगन विश्वविद्यालय, इंस्टिट्यूट फ़ॉर थियोरेटिकल फ़िजिक्स (१९२० ई.), रॉयल डैनिश जीओग्राफ़िकल सोसायटी (१८७६ ई.), अनेक शिक्षण एवं गवेषणा संस्थाएँ तथा तीन प्रमुख संग्रहालय हैं। यहाँ के रॉयल पुस्तकालय में लगभग १५,००,००० पुस्तकें हैं। नगर में अनेक प्रमोद वन, झीलें एवं भव्य भवन हैं जिनका निर्माण क्रिश्चियन चतुर्थ (१५८८-१६४८ ई.) तथा फ्रेंडरिक पंचम (१७४६-१७६६ ई.) के शासनकाल में हुआ था। .

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अधातु

अधातु (non-metals) रासायनिक वर्गीकरण में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द है। आवर्त सारणी का प्रत्येक तत्व अपने रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर धातु अथवा अधातु श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है। (कुछ तत्व जिनमें दोनों के गुण पाये जाते हैं उन्हें उपधातु (metaloid) की श्रेणी में रखा जाता है।) आवर्त सारणी में ये १४वें (XIV) से लेकर १८वें (XVIII) समूह में दाहिने-ऊपरी कोने में स्थित हैं। इसके अलावा प्रथम समूह में सबसे उपर स्थित उदजन भी अधातु है। हाइड्रोजन के अलावा जारक, प्रांगार, भूयाति, गंधक, भास्वर, हैलोजन, तथा अक्रिय गैसें अधातु मानी जाती हैं। प्रायः आवर्त सारणी के केवल 18 तत्व अधातु की श्रेणी में गिने जाते हैं जबकि धातु की श्रेणी में 80 से भी अधिक तत्व आते हैं। फिर भी पृथ्वी के गर्भ का, वायुमण्डल और जलमण्डल का अधिकांश भाग अधातुएँ ही हैं। जीवों की संरचना में भी अधातुओं का ही अधिकांशता है। .

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अनुप्रयुक्त भूभौतिकी

अनुप्रयुक्त भूभौतिकी (Applied Geophysics), या भूभौतिक पूर्वेक्षण में पृथ्वी के पृष्ठ पर भौतिक मापों के द्वारा अधस्थल (subsurface) भूवैज्ञानिक जानकारियों का संग्रह किया जाता है। इसका उद्देश्य खनिज, पेट्रोलियम, जल, घात्विक निक्षेप, विखंडनीय पदार्थो (fissile material) का स्थान-निर्धारण और बाँध, रेलमार्ग, हवाई अड्डों, सैनिक और कृषि प्रायोजनाओं के निर्माणार्थ सतह के निकटस्थ स्तर के भूवैज्ञानिक लक्षणों से आँकड़ों का संग्रह है। .

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अरुण (ग्रह)

अरुण (Uranus), या यूरेनस हमारे सौर मण्डल में सूर्य से सातवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का तीसरा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर चौथा बड़ा ग्रह है। द्रव्यमान में यह पृथ्वी से १४.५ गुना अधिक भारी और अकार में पृथ्वी से ६३ गुना अधिक बड़ा है। औसत रूप में देखा जाए तो पृथ्वी से बहुत कम घना है - क्योंकि पृथ्वी पर पत्थर और अन्य भारी पदार्थ अधिक प्रतिशत में हैं जबकि अरुण पर गैस अधिक है। इसीलिए पृथ्वी से तिरेसठ गुना बड़ा अकार रखने के बाद भी यह पृथ्वी से केवल साढ़े चौदह गुना भारी है। हालांकि अरुण को बिना दूरबीन के आँख से भी देखा जा सकता है, यह इतना दूर है और इतनी माध्यम रोशनी का प्रतीत होता है के प्राचीन विद्वानों ने कभी भी इसे ग्रह का दर्जा नहीं दिया और इसे एक दूर टिमटिमाता तारा ही समझा। १३ मार्च १७८१ में विलियम हरशल ने इसकी खोज की घोषणा करी। अरुण दूरबीन द्वारा पाए जाने वाला पहला ग्रह था। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। अरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और वरुण (नॅप्टयून) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। सौर मण्डल के सारे ग्रहों में से अरुण का वायुमण्डल सब से ठण्डा पाया गया है और उसका न्यूनतम तापमान -४९ कैल्विन (यानी -२२४° सेण्टीग्रेड) देखा गया है। इस ग्रह में बादलों की कई तहें देखी गई हैं। मानना है के सब से नीचे पानी के बादल हैं और सब से ऊपर मीथेन गैस के बादल हैं। यह भी माना जाता है कि यदि किसी प्रकार अरुण के बिलकुल बीच जाकर इसका केन्द्र देखा जा सकता तो वहाँ बर्फ़ और पत्थर पाए जाते। .

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अहमदनगर

अहमदनगर महाराष्ट्र का एक शहर है। अहमदनगर महाराष्ट्र का सबसे बडा जिला है। .

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अंतरतारकीय माध्यम

से दिखाई देता है। यह अंतरतारकीय माध्यम स्वरूप फैला हुआ है। अंतरखगोलीय माध्यम या अंतरतारकीय माध्यम हाइड्रोजन और हिलीयम के कणों का मिश्रण होता है जो अत्यंत कम घनत्व की स्थिती मे सारे ब्रह्मांड मे फैला हुआ रहता है। आयनीकृत हाइड्रोजन के फैलाव (जिसे खगोलज्ञ पुरातन खगोलीय शब्दावली अनुसार H II कहते हैं) का पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध से विस्कन्सिन Hα मैपर द्वारा लिया गया हुआ चित्र दिखाया गया है। यह अंतरतारकीय माध्यम स्वरूप फैला हुआ है। .

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अंतरिक्ष

किसी ब्रह्माण्डीय पिण्ड, जैसे पृथ्वी, से दूर जो शून्य (void) होता है उसे अंतरिक्ष (Outer space) कहते हैं। यह पूर्णतः शून्य (empty) तो नहीं होता किन्तु अत्यधिक निर्वात वाला क्षेत्र होता है जिसमें कणों का घनत्व अति अल्प होता है। इसमें हाइड्रोजन एवं हिलियम का प्लाज्मा, विद्युतचुम्बकीय विकिरण, चुम्बकीय क्षेत्र तथा न्युट्रिनो होते हैं। सैद्धान्तिक रूप से इसमें 'डार्क मैटर' dark matter) और 'डार्क ऊर्जा' (dark energy) भी होती है। .

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