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गोवर्धनाचार्य

सूची गोवर्धनाचार्य

गोवर्धनाचार्य एक भक्त कवि थे जो जयदेव के समकालीन थे। वे बंगाली कवि थे। आर्यासप्तशती नामक मुक्तक कविताओं का संग्रह गोवर्धन की कृति मानी जाती है। .

5 संबंधों: सतसई, संस्कृत ग्रन्थों की सूची, गाथासप्तशती, गुणाढ्य, आर्यासप्तशती

सतसई

सत्सैई सतसई, मुक्तक काव्य की एक विशिष्ट विधा है। इसके अंतर्गत कविगण 700 या 700 से अधिक दोहे लिखकर एक ग्रंथ के रूप में संकलित करते रहे हैं। "सतसई" शब्द "सत" और "सई" से बना है, "सत" का अर्थ सात और सई का अर्थ "सौ" है। इस प्रकार सतसई काव्य वह काव्य है जिसमें सात सौ छंद होते हैं। .

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संस्कृत ग्रन्थों की सूची

निम्नलिखित सूची अंग्रेजी (रोमन) से मशीनी लिप्यन्तरण द्वारा तैयार की गयी है। इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हैं। विद्वान कृपया इन्हें ठीक करने का कष्ट करे। .

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गाथासप्तशती

सामान्य लोक जीवन का चित्रण गाहा सत्तसई (संस्कृत: गाथासप्तशती) प्राकृत भाषा में गीतिसाहित्य की अनमोल निधि है। इसमें प्रयुक्त छन्द का नाम "गाथा" छन्द है। इसमें ७०० गाथाएँ हैं। इसके रचयिता हाल या शालिवाहन हैं। इस काव्य में सामान्य लोकजीवन का ही चित्रण है। अत: यह प्रगतिवादी कविता का प्रथम उदाहरण कही जा सकती है। इसका समय बारहवीं शती मानी जाती है। .

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गुणाढ्य

गुणाढ्य पैशाची में बड्डकहा (संस्कृत: बृहत्कथा) नामक अनुपलब्ध आख्यायिका ग्रंथ के प्रणेता। क्षेमेंद्रकृत बृहत्कथामंजरी (११वीं शती) के अनुसार वे प्रतिष्ठान निवासी कीर्तिसेन के पुत्र थे। दक्षिणापथ में विद्यार्जन करके विख्यात पंडित हुए। प्रभावित होकर सातवाहनराज ने उन्हें अपना मंत्री बनाया। प्रवाद है कि महाराज संस्कृत व्याकरण के अच्छे ज्ञाता नहीं थे जिससे जलक्रीड़ा के समय वे विदुषी रानियों के मध्य उपहास के पात्र बने। दु:खी होकर उन्होंने अल्प काल में ही व्याकरण मे निष्णात्‌ होने के निमित्त गुणाढ्य पंडित को प्रेरित किया जिसे उन्होंने असंभव बताया। किंतु ‘कातत्र’ के रचयिता दूसरे सभापंडित शर्ववर्मा ने इसे छह मास में ही संभव बताया। गुणाढ्य ने इस चुनौती और प्रतिद्वंद्विता का उत्तर अपनी रोषयुक्त प्रतिज्ञा द्वारा किया। लेकिन शर्ववर्मा ने उसी अवधि में महाराज को व्याकरण का अच्छा ज्ञान करा ही दिया। फलत: प्रतिज्ञा के अनुसार गुणाढ्य को नगरवास छोड़ वनवास और संस्कृत, पाली तथा प्राकृत छोड़कर पैशाची का आश्रय लेना पड़ा। विद्वानों का एक वर्ग गुणाढ्य को कश्मीरी मानता है जिससे पैशाची से उनका संबंध स्वाभाविक हो जाता है। इसी भाषा में उन्होंने सात लाख की अपनी ‘बड्डकहा’ रची जो काणभूति के अनुसार चमड़े पर लिखी विद्याधरेंद्रो की कथा बताई जाती है। ग्रंथ को लेकर वे सातवाहन नरेश की सभा में पुन: गए जहाँ उन्हें वांछित सत्कार नहीं मिला। प्रतिक्रियास्वरूप, वन लौटकर वे उस कृति को पाठपूर्वक अग्नि में हवन करने लगे। कहा जाता है, माधुर्य के कारण पशु-पक्षी गण तक निराहार रह कथाश्रवण में लीन रहने लगें जिससे वे मांसरहित हो गए। इधर वनजीवों के मांसाभाव का कारण जानने के लिये सातवाहन द्वारा पूछताछ किए जाने पर लुब्धकों ने जो उत्तर दिया उसके अनुसार वे गुणाढ्य को मनाने अथवा ‘बड्डकहा’ को बचाने के उद्देश्य से वन की ओर गए। वहाँ वे अनुरोधपूर्वक ग्रंथ का केवल सप्तमांश जलने से बचाने में सफल हो सके जो क्षेमेंद्रकृत बृहत्कथा श्लोकसंग्रह (७५०० श्लोक) और सोमदेवकृत कथासरित्सागर (२४०० श्लोक) नामक संस्कृत रूपांतरों में उपलब्ध है। गुणाढ्य का समय विवादास्पद है। संस्कृत तथा अपभ्रंश ग्रंथों में जो उल्लेख प्राप्त होते हैं वे ७वीं शताब्दी से प्राचीन नहीं है। कीथ ने कंबोडिया से प्राप्त ८७५ ई. के एक अभिलेख के आधार पर उनके अस्तित्व की कल्पना ६०० ई. से पूर्व की है। प्रचलित प्रवादों में गुणाढ्य का संबंध सातवाहन से जोड़ा गया है। सातवाहननरेशों का समय २०० ई. पू.

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आर्यासप्तशती

आर्यासप्तशती संस्कृत में मुक्तक गीति-कविताओं वाली एक कृति है। यह गोवर्धनाचार्य की रचना मानी जाती है। इसमें 700 आर्याएँ संग्रहीत होनी चाहिए परंतु विभिन्न संस्करणों में आर्याओं की संख्या 760 तक पहुंच गई है। अत: यह कहना कठिन है कि उपलब्ध आर्यासप्तशती क्षेपकों से रहित है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

गोवर्धनाचर्य

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