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गुरला मन्धाता

सूची गुरला मन्धाता

गुरला मन्धाता (Gurla Mandhata) तिब्बत में मानसरोवर झील के पास स्थित हिमालय का एक पर्वत है। यदि कैलाश पर्वत मानसरोवर के एक ओर खड़ा है तो गुरला मन्धाता झील के पार दूसरी तरफ़ स्थित है। यह हिमालय की नालाकंकर हिमाल श्रेणी का सदस्य है जो दक्षिणी तिब्बत और पश्चिमोत्तरी नेपाल में विस्तृत है। गुरला मन्धाता को तिब्बती भाषा में नाइमोनान्यी (Naimona'nyi) कहते हैं। तिब्बत पर चीन का क़ब्ज़ा होने के बाद वहाँ की सरकार इसे चीनी लहजे में मेमो नानी (納木那尼峰, Memo Nani) बुलाती है। प्रशासनिक रूप से यह तिब्बत स्वशासित प्रदेश के न्गारी विभाग के पुरंग ज़िले में स्थित है। .

4 संबंधों: नालाकंकर हिमाल, न्येनचेन थंगल्हा पर्वत, विश्व के सर्वोच्च पर्वतों की सूची, कैलाश पर्वत

नालाकंकर हिमाल

नालाकंकर हिमाल (Nalakankar Himal) हिमालय की एक छोटी उपश्रेणी है जो दक्षिणी तिब्बत और पश्चिमोत्तरी नेपाल में मानसरोवर झील से दक्षिण में स्थित है। इसकी दक्षिणी सीमा हुमला करनाली नदी है, जो करनाली नदी की एक उपनदी है और नालाकंकर हिमाल को दक्षिण में गुरंस हिमाल और दक्षिणपूर्व में कुमाऊँ क्षेत्र से अलग करती है। नालाकंकर हिमाल का सर्वोच्च शिखर 7,694 मीटर (25,243 फ़ुट) ऊँचा गुरला मन्धाता है। .

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न्येनचेन थंगल्हा पर्वत

न्येनचेन थंगल्हा (तिब्बती: གཉན་ཆེན་ཐང་ལྷ་, चीनी: 念青唐古拉峰, अंग्रेज़ी: Mount Nyenchen Tanglha) दक्षिणी तिब्बत में स्थित एक पर्वत है। यह पारहिमालय पर्वतमाला और उसकी न्येनचेन थंगल्हा उपशृंखला का सबसे ऊँचा पहाड़ है। न्येनचेन थंगल्हा इस उपशृंखला के पश्चिमी भाग में यरलुंग त्संगपो नदी (ब्रह्मपुत्र नदी) और चांगथंग पठार की बंद जलसम्भर द्रोणियों के बीच में और नम्त्सो झील से दक्षिण में खड़ा है। प्रशासनिक रूप से यह तिब्बत के ल्हासा विभाग के दमझ़ुंग ज़िले में स्थित है ('दमझ़ुंग' में बिन्दुयुक्त 'झ़' का उच्चारण देखें)। इस पहाड़ का तिब्बती संस्कृति में काफ़ी महत्व है और इसका उल्लेख कई तिब्बती लोककथाओं में मिलता है। .

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विश्व के सर्वोच्च पर्वतों की सूची

पृथ्वी पर कम-से-कम 109 पर्वत हैं जिनकि ऊँचाई समुद्रतल से 7,200 मीटर (23,622 फ़ुट) से अधिक है। इनमें से अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप और तिब्बत की सीमा पर स्थित हैं, और कुछ मध्य एशिया में हैं। इस सूचि में केवल ऐसे ही शिखर सम्मिलित हैं जिन्हें अकेला खड़ा पर्वत माना जा सकता है, यानि एक ही पर्वत के अलग-अलग शिखरों को नहीं गिना गया है। .

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कैलाश पर्वत

कैलाश पर्वत भारत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा रक्षातल झील हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं - ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज इत्यादि। में इसे पवित्र माना गया है। इस तीर्थ को अस्टापद गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलाश के बर्फ से आच्छादित 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है और इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर स्वामी जिनके नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा ऐसे श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इसपर विजय प्राप्त की।पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे।। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। जैन धर्म में इस स्थान का बहुत महत्व है। इसी पर्वत पर श्री भरत स्वामी ने रत्नों के 72 जिनालय बनवाये थे कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व कहा गया है। तिब्बती (भोटिया) लोग कैलाश मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं और अनेक यात्री दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का, दस परिक्रमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है। कैलाश-मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग हैं किंतु Uttarakhand के अल्मोड़ा स्थान से अस्ककोट, खेल, गर्विअंग, लिपूलेह, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम है। यह भाग 544 किमी (338 मील) लंबा है और इसमें अनेक चढ़ाव उतार है। जाते समय सरलकोट तक 70 किमी (44 मील) की चढ़ाई है, उसके आगे 74 किमी (46 मील) उतराई है। मार्ग में अनेक धर्मशाला और आश्रम है जहाँ यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त है। गर्विअंग में आगे की यात्रा के निमित्त याक, खच्चर, कुली आदि मिलते हैं। तकलाकोट तिब्बत स्थित पहला ग्राम है जहाँ प्रति वर्ष ज्येष्ठ से कार्तिक तक बड़ा बाजार लगता है। तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग में मानसरोवर पड़ता है। कैलाश की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है। तकलाकोट से 40 किमी (25 मील) पर मंधाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा 4,938 मीटर (16,200 फुट) की ऊँचाई पर है। इसके मध्य में पहले बाइर्ं ओर मानसरोवर और दाइर्ं ओर राक्षस ताल है। उत्तर की ओर दूर तक कैलाश पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखाई पड़ता है। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। प्रवाद है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था। इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है, उनकी ऊँचाई 5,630 मीटर (18,471 फुट) है। इसके निकट ही गौरीकुंड है। मार्ग में स्थान स्थान पर तिब्बती लामाओं के मठ हैं। यात्रा में सामान्यत: दो मास लगते हैं और बरसात आरंभ होने से पूर्व ज्येष्ठ मास के अंत तक यात्री अल्मोड़ा लौट आते हैं। इस प्रदेश में एक सुवासित वनस्पति होती है जिसे कैलास धूप कहते हैं। लोग उसे प्रसाद स्वरूप लाते हैं। कैलाश शिव का घर कहा गया है। वहॉ बर्फ ही बर्फ में भोले नाथ शंभू अंजान (ब्रह्म) तप में लीन शालीनता से, शांत,निष्चल,अघोर धारण किये हुऐ एकंत तप में लीन है।। धर्म व शा्स्त्रों में उनका वर्णनं प्रमाण है अन्यथा.....! तिब्बती बौद्धों को यह कांगड़ी रिंपोछे कहते हैं; ' अनमोल हिम पर्वत '. .

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