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गुदा

सूची गुदा

पुरुष की गुदा मलाशय एवं गुदा जीवों के पाचन तंत्र के अन्तिम छोर के द्वार (छेद) को गुदा (anus) कहते हैं। इसका कार्य मल निष्कासन का नियंत्रण करना है। .

31 संबंधों: टीरोब्रैकिया, ड्यूटेरोस्टोमिया, नितम्ब, पादना, प्रदाहक आन्त्र रोग, प्रमेह, प्राकृतिक चिकित्सा, प्रेम-प्रतिमा, प्रेयोक्ति, प्रोटोस्टोमिया, बाइलेटेरिया, बवासीर, बृहदांत्रदर्शन, मल, मलाशय, मानव मल, मानव का पाचक तंत्र, मानव का पोषण नाल, मूत्र मार्ग संक्रमण, मूलाधार, सामान्य चिकित्सा में प्रयुक्त उपकरण, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, हस्तमैथुन, जठरांत्र क्षेत्र, जठरांत्ररोगविज्ञान, व्रणीय बृहदान्त्रशोथ, गुदा मैथुन, अतिसार, अपमलन, अंग (शारीरिकी), अंगुलि चालन

टीरोब्रैकिया

रैब्डोप्लूरा नार्मनी टीरोब्रैंकिया (Pterobranchia) एक प्रकार के जीव हैं, जो केवल समुद्र में पाए जाते हैं। ये हेमिकॉर्डा (Hemichorda) वर्ग के होते हैं। इनकी साधारण संरचना एंटेरोनेन्स्टा (Enteropnensta) जैसी होती है, किंतु इनमें केवल एक जोड़ा क्लोम छिद्र (gill slit) होता हैं या वह भी नहीं। संस्पर्शक भुजाएँ ओर प्रतिवर्तित पाचक क्षेत्र (recurved digestive tract) होते हैं तथा मुख और गुदा अत्यंत निकट होते हैं। इनका जनन दोनों प्रकार से होता है-लैंगिक जनन तथा समुद्भवन द्वारा। .

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ड्यूटेरोस्टोमिया

ड्यूटेरोस्टोमिया (Deuterostomia, लातीनी भाषा में अर्थ: दूसरा मुँह) प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक अधिसंघ है। यह अपनी बहन क्लेड, प्रोटोस्टोमिया, के साथ अपने से ऊँचा नेफ़्रोज़ोआ (Nephrozoa) नामक क्लेड बनाता है। ड्यूटेरोस्टोमिया और प्रोटोस्टोमिया के सदस्य प्राणियों में यह अंतर है कि ड्यूटेरोस्टोमिया के भ्रूण (एम्ब्रियो) के विकास में सबसे पहले जो छिद्र खुलता है वह गुदा बनता है जबकि अधिकतर प्रोटोस्टोमिया भ्रूण में सबसे पहले विकसित होने वाला छिद्र उसका मुँह होता है। नेफ़्रोज़ोआ स्वयं बाइलेटेरिया क्लेड का सदस्य है। .

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नितम्ब

स्त्री के नितम्ब पुरुष के नितम्ब शरीर के मध्य भाग में कमर के नीचे गुदा के आसपास का गोल उभरा हुआ भाग नितम्ब (Buttocks) कहलाता है। Studio Jean Jacques Lequeu.jpg|Jean-Jacques Lequeu (c. 1785)। Étude de fesses.jpg|Félix Valloton (c. 1884)। .

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पादना

गुदाद्वार से गैस निकालना पादना (Fart) कहलाता है। .

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प्रदाहक आन्त्र रोग

चिकित्सा शास्त्र में, प्रदाहक आन्त्र रोग (आईबीडी (IBD)) बृहदान्त्र और छोटी आंत की प्रदाहक दशाओं का एक समूह है। आईबीडी (IBD) के प्रमुख प्रकार हैं क्रोहन रोग और व्रणमय बृहदांत्रशोथ.

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प्रमेह

प्रमेह या गोनोरिया एक यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) है। गोनोरिया नीसेरिया गानोरिआ नामक जीवाणु के कारण होता है जो महिलाओं तथा पुरुषों के प्रजनन मार्ग के गर्म तथा गीले क्षेत्र में आसानी और बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके जीवाणु मुंह, गला, आंख तथा गुदा में भी बढ़ते हैं। गोनोरिया शिश्न, योनि, मुंह या गुदा के संपर्क से फैल सकता है। गोनोरिया प्रसव के दौरान मां से बच्चे को भी लग सकती है। .

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प्राकृतिक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी / naturopathy) एक चिकित्सा-दर्शन है। इसके अन्तर्गत रोगों का उपचार व स्वास्थ्य-लाभ का आधार है - 'रोगाणुओं से लड़ने की शरीर की स्वाभाविक शक्ति'। प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत अनेक पद्धतियां हैं जैसे - जल चिकित्सा, होमियोपैथी, सूर्य चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, मृदा चिकित्सा आदि। प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचलन में विश्व की कई चिकित्सा पद्धतियों का योगदान है; जैसे भारत का आयुर्वेद तथा यूरोप का 'नेचर क्योर'। प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है, जिसका लक्ष्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के उचित इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण समाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्त्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक जीवन-शैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक संपूर्ण क्रांति है। इस प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक भोजन, विशेषकर ताजे फल तथा कच्ची व हलकी पकी सब्जियाँ विभिन्न बीमारियों के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों एवं गरीब देशों के लिये विशेष रूप से वरदान है। .

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प्रेम-प्रतिमा

प्रेम-प्रतिमा एक प्रकार का मानव-आकार कामोत्तेजक उपकरण होता है। लिंग, योनि एवं/अथवा गुदा युक्त इस साधन का प्रयोग स्वतःमैथुन के लिए किया जाता है। सामान्यतः प्रेम-प्रतिमा एक संपूर्ण देह-रुपी पुतली होती है, परन्तु कुछ पुतलियों में केवल धड़, शीर्ष या अन्य आंशिक अंग ही होते हैं। कुछ पुतलियों में विभिन्न भागों को निकाला या लगाया जा सकता हैं। .

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प्रेयोक्ति

एक प्रेयोक्ति का अर्थ होता है, सुननेवाले को रुष्ट करने वाली या कोई अप्रिय अर्थ देने वाली अभिव्यक्ति को एक रुचिकर या कम अपमानजनक अभिव्यक्ति के साथ प्रतिस्थापित करना, या कहने वाले के लिए उसे कम कष्टकर बनाना, जैसा की द्विअर्थी के मामले में होता है। प्रेयोक्ति का परिनियोजन राजनीतिक विशुद्धता के सार्वजनिक उपयोग में केंद्रीय पहलू है। यह किसी वस्तु या किसी व्यक्ति के वर्णन को भी प्रतिस्थापित कर सकता है ताकि गोपनीय, पवित्र, या धार्मिक नामों को अयोग्य के समक्ष ज़ाहिर करने से बचा जा सके, या किसी वार्ता के विषय की पहचान को किसी संभावित प्रच्छ्न्न श्रोता से गुप्त रखा जा सके.

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प्रोटोस्टोमिया

प्रोटोस्टोमिया (Protostomia, लातीनी भाषा में अर्थ: पहला मुँह) प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक अधिसंघ है। यह अपनी बहन क्लेड, ड्यूटेरोस्टोमिया, के साथ अपने से ऊँचा नेफ़्रोज़ोआ (Nephrozoa) नामक क्लेड बनाता है। ड्यूटेरोस्टोमिया और प्रोटोस्टोमिया के सदस्य प्राणियों में यह अंतर है कि ड्यूटेरोस्टोमिया के भ्रूण (एम्ब्रियो) के विकास में सबसे पहले जो छिद्र खुलता है वह गुदा बनता है जबकि अधिकतर प्रोटोस्टोमिया भ्रूण में सबसे पहले विकसित होने वाला छिद्र उसका मुँह होता है। नेफ़्रोज़ोआ स्वयं बाइलेटेरिया क्लेड का सदस्य है। .

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बाइलेटेरिया

बाइलेटेरिया (Bilateria) या द्विसमभागी ऐसे प्राणी होते हैं जिनके शरीर लगभग दो समान भागों के बने हों, यानि जिनमें द्विभागीय सममिति हो। ऐसे जीवों के शरीर के मुख्य भाग में आमतौर पर एक ध्रुव पर सिर और दूसरे ध्रुव पर गुदा होती है। इनके शरीर में पीछे की ओर रीढ़ और आगे की ओर पेट वाला रुख होता है, और यह दाएँ और बाएँ भाग रखते हैं। मानव, गिरगिट, अधिकतर मछलियाँ, पक्षी, इत्यादि सभी बाइलेटेरिया की परिभाषा में आते हैं। इसके विपरीत निडारिया (मसलन जेलीफ़िश), टेनोफोरा और स्पंज जैसे व्यासीय सममिति रखने वाले प्राणी में आगे-पीछे और दाएँ-बाएँ का अंतर नहीं होता, लेकिन ऊपर-नीचे का अंतर होता है। .

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बवासीर

बवासीर या पाइल्स या (Hemorrhoid / पाइल्स या मूलव्याधि) एक ख़तरनाक बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको ख़ूँनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कही पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है। 1- खूनी बवासीर:- खूनी बवासीर में किसी प्रकार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है। 2-बादी बवासीर:- बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी भाषा में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीड़ा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अँग्रेजी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला प्रकार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। .

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बृहदांत्रदर्शन

अंगूठाकार बृहदांत्रदर्शन (Colonoscopy या coloscopy) एक परीक्षण है जिसमें गुदा के रास्ते कैमरा डालकर बृहदांत्र तथा छोटी आंत के दूरस्थ भाग को देखा जाता है। इस प्रक्रिया में सी सी डी कैमरा या फाइबर ऑप्टिक कैमरा प्रयुक्त होता है। .

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मल

घोड़े की लीद (मल) एवं घोड़ा मल (Feces, faeces, or fæces) वह वर्ज्य पदार्थ (waste product) है जिसे जानवर अपने पाचन नली से मलद्वार के रास्ते निकलते हैं। .

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मलाशय

बृहदान्त्र के अन्तिम भाग को मलाशय (rectum) कहते हैं। मानव और कुछ अन्य स्तनधारियों का मलाशय सीधा (स्ट्रेट) होता है। मानव का मलाशय लगभग 12 सेमी.

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मानव मल

मानव मल मानव के पाचन तंत्र के अन्तिम भाग (गुदा द्वार) से निकलने वाले पदार्थ को मानव मल कहते हैं। आकार, रंग, मात्रा आदि की दृष्टि से मानव मल में बहुत अधिक भिन्नता पायी जाती है जो ग्रहण किये गये भोजन, पाचन तंत्र के स्वास्थ्य की स्थिति एवं सामान्य स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करता है। .

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मानव का पाचक तंत्र

मानव का पाचन-तन्त्र मानव के पाचन तंत्र में एक आहार-नाल और सहयोगी ग्रंथियाँ (यकृत, अग्न्याशय आदि) होती हैं। आहार-नाल, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय और मलद्वार से बनी होती है। सहायक पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथि, यकृत, पित्ताशय और अग्नाशय हैं। .

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मानव का पोषण नाल

मानव का पाचक तंत्र मानव का पाचक नाल या आहार नाल (Digestive or Alimentary Canal) 25 से 30 फुट लंबी नाल है जो मुँह से लेकर मलाशय या गुदा के अंत तक विस्तृत है। यह एक संतत लंबी नली है, जिसमें आहार मुँह में प्रविष्ट होने के पश्चात्‌ ग्रासनाल, आमाशय, ग्रहणी, क्षुद्रांत्र, बृहदांत्र, मलाशय और गुदा नामक अवयवों में होता हुआ गुदाद्वार से मल के रूप में बाहर निकल जाता है। .

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मूत्र मार्ग संक्रमण

मूत्र पथ का संक्रमण (यूटीआई) एक बैक्टीरिया जनित संक्रमण है जो मूत्रपथ के एक हिस्से को संक्रमित करता है। जब यह मूत्र पथ निचले हिस्से को प्रभावित करता है तो इसे सामान्य मूत्राशयशोध (मूत्राशय का संक्रमण) कहा जाता है और जब यह ऊपरी मूत्र पथ को प्रभावित करता है तो इसे वृक्कगोणिकाशोध (गुर्दे का संक्रमण) कहा जाता है। --> निचले मूत्र के लक्षणों में दर्द सहित मूत्र त्याग और बार-बार मूत्र त्याग या मूत्र त्याग की इच्छा (या दोनो) शामिल हैं जबकि वृक्कगोणिकाशोध में निचले यूटीआई के लक्षणों के साथ बुखार और कमर में तेज दर्द भी शामिल होते हैं। बुजुर्ग व बहुत युवा लोगों में लक्षण अस्पष्ट या गैर विशिष्ट हो सकते हैं। दोनो प्रकार के संक्रमणों के मुख्य कारक एजेंट एस्केरीशिया कॉली हैं, हलांकि अन्य दूसरे बैक्टीरिया, वायरस या फफूंद भी कभी कभार इसके कारण हो सकते हैं। मूत्र पथ के संक्रमण, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक आम हैं, आधी महिलाओं को उनके जीवन में कम से कम एक बार संक्रमण होता है। संक्रमण का बार-बार होना आम बात है। जोखिम कारकों में महिला शरीर रचना विज्ञान, शारीरिक संबंध और परिवार का इतिहास शामिल है। यदि वृक्कगोणिकाशोध होता है तो इसके बाद मूत्राशय संक्रमण होता है जो कि रक्त जनित संक्रमण के परिणामस्वरूप हो सकता है। स्वस्थ युवा महिलाओं में निदान का आधार मात्र लक्षण भी हो सकते हैं। वे जिनमें अस्पष्ट लक्षण होते हैं, निदान कठिन हो सकता है क्योंकि बैक्टीरिया बिना संक्रमण हुये भी उपस्थित हो सकते हैं। जटिल मामलों में या उपचार के विफल होने पर, एक मूत्र कल्चर उपयोगी हो सकता है। नियमित संक्रमण वाले लोगों में, एंटीबायोटिक की हल्की खुराक को निवारक उपाय के रूप में उपयोग किया जा सकता है। गैर जटिल मामलों में, एंटीबायोटिक की हल्की खुराक से, मूत्र पथ संक्रमणों का उपचार आसानी से हो जाता है, हलांकि इस स्थिति में उपचार के लिये उपयोग किये जाने वाले कई एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोध बढ़ रहा है। जटिल मामलों में, लंबी अवधि तक या अंतः शिरा एंटीबायोटिक के उपयोग की जरूरत पड़ सकती है और यदि लक्षण दो या तीन दिन में बेहतर नहीं होते हैं तो अतिरिक्त निदान परीक्षणों की जरूरत हो सकती है। महिलाओं में बैक्टीरिया जनित संक्रमणों के सबसे आम उदाहरण मूत्र पथ संक्रमण हैं, क्योंकि 10% महिलाओं में वार्षिक रूप से मूत्र पथ संक्रमण विकसित होते हैं। .

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मूलाधार

मानव शरीर में के दोनों टांगों के बीच के त्रिकोण भाग को मूलाधार या पैरानियम भी कहते है। पैरानियम बाडी मलद्वार के आगे तथा जननद्वार के पीछे होती है। इसमें कूल्हे के निचले भग की सभी मांसपेशियां आपस में मिलती है। यह प्रत्येक व्यक्तियों में अलग-अलग होती है। किसी में यह कमजोर और किसी में यह अधिक शक्तिशाली होती है। इस प्रकार से पैरानियम जननद्वार के पीछे तथा नीचे की दीवार को सहारा दिये रहती है। संभोग क्रिया के समय पैरानियम जननद्वार को पीछे की ओर से साधे रहती है। पुरुषों में ये अंडकोष और गुदाद्वार के बीच होती है। बढ़ती आयु के साथ-साथ यह कमजोर हो जाती है। कूल्हे के चरों ओर की मांसपेशियों के यहां एकत्र होने के कारण यहां का रोग या पस चारों ओर फैल सकता है। बच्चे के जन्म के पहले जननद्वार को यहीं से काटकर चौड़ा बनाया जाता है। ताकि बच्चे के जन्म के समय अधिक से अधिक स्थान प्राप्त हो सके तथा बच्चे के जन्म के लिए अधिक चीड़-फाड़ न करना पड़े। प्रसव के बाद टांके इन्हीं मांसपेशियों में लगाये जाते है जिसको ऐपिजियोटोमी कहते है पुरुष मूलाधार स्त्री मूलाधार .

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सामान्य चिकित्सा में प्रयुक्त उपकरण

सामान्य चिकित्सा और क्लिनिकों (अर्थात् आंतरिक चिकित्सा और बाल रोग) में प्रयुक्त उपकरण इस प्रकार हैं: .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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हस्तमैथुन

गुस्टाव क्लिम्ट की चित्रकारी जिसमें ''एक महिला अपनी जांघों को दूर किये बैठी है'' (1916) हस्तमैथुन (अंग्रेजी: Masturbation) शारीरिक मनोविज्ञान से सम्बन्धित एक सामान्य प्रक्रिया का नाम है जिसे यौन सन्तुष्टि हेतु पुरुष हो या स्त्री, कभी न कभी सभी करते है। इसे केवल युवा ही नहीं बल्कि बुड्ढे-बुड्ढे लोग भी लिंगोत्थान हेतु करते हैं इससे उन्हें यह अहसास होता है कि वे अभी भी यौन-क्रिया करने में सक्षम हैं। अपने यौनांगों को स्वयं उत्तेजित करना युवा लड़कों तथा लड़कियों के लिये उस समय आवश्यक हो जाता है जब उनकी किसी कारण वश शादी नहीं हो पाती या वे असामान्य रूप से सेक्सुअली स्ट्रांग होते हैं। अब तो विज्ञान द्वारा भी यह सिद्ध किया जा चुका है कि इससे कोई हानि नहीं होती। पुरुषों की तरह महिलाएँ भी अपने यौनांगों को स्वयं उत्तेजित करने के तरीके खोज लेती हैं जो उन्हें बेहद संवेदनशील अनुभव और प्रबल उत्तेजना प्रदान करते हैं। फिर चाहें वे अकेली हों या अपनी महिला पार्टनर के साथ। महिलाएँ यदि अपने यौनांगों को स्वयं उत्तेजित न करें तो इस बात की भी सम्भावना बनी रहती है कि विवाह के बाद सेक्स क्रिया के दौरान उन्हें पर्याप्त उत्तेजना से वंचित रहना पड़े। औसत तौर पर पुरुष 12-13 वर्ष की उम्र में ही हस्तमैथुन शुरू कर देते हैं जबकि महिलाएँ तरुणाई (13 से 19 वर्ष) के अन्तिम दौर में हस्तमैथुन का आनन्द लेना शुरू करती हैं, लेकिन उनमें यह मामला इतना ढँका और छिपा हुआ रहता है कि कभी किसी चर्चा में भी सामने नहीं आ पाता। पूर्ण तरुण होने पर हस्तमैथुन का मामला खुले रहस्य की ओर झुकाव तो लेने लगता है पर ज्यादातर लोग इस मामले पर पर्दा ही पड़े रहना देना बेहतर समझते हैं। लेकिन अब जमाना बिल्कुल बदल गया है। अब कुछ ऐसे युवा तैयार हो रहे हैं जो इन वर्जनाओं को तोड़ कर हस्तमैथुन के तरीकों पर चर्चा में खुलकर हिस्सा ले रहे हैं। .

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जठरांत्र क्षेत्र

जठरांत्र क्षेत्र (gastrointestinal tract या digestive tract (पाचन क्षेत्र) या alimentary canal) मनुष्य एवं अन्य जन्तुओं के अन्दर पाया जाने वाला अंग तंत्र है जो भोजन को ग्रहण करता है, इसका पाचन करता है, उसमें से ऊर्जा एवं पोषक पदार्थों का शोषण करता है, और अन्त में बचे हुए अपशिष्ट (वेस्ट) को मल एवं मूत्र के रूप में बाहर निकालता है। मानव के जठरान्त्र क्षेत्र में, मुख, आमाशय, छोटी आँत, बडी आँत होते हैं। .

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जठरांत्ररोगविज्ञान

जठरांत्ररोगविज्ञान (Gastroenterology) चिकित्सा शास्त्र का वह विभाग है जो पाचन तंत्र तथा उससे सम्बन्धित रोगों पर केंद्रित है। इस शब्द की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक शब्द gastros (उदर), enteron (आँत) एवं logos (शास्त्र) से हुई है। जठरांत्ररोगविज्ञान पोषण नाल (alimentary canal) से सम्बन्धित मुख से गुदाद्वार तक के सारे अंगों और उनके रोगों पर केन्द्रित है। इससे सम्बन्धित चिकित्सक जठरांत्ररोगविज्ञानी (gastroenterologists) कहलाते हैं। .

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व्रणीय बृहदान्त्रशोथ

अंगूठाकार व्रणीय बृहदान्त्रशोथ (Ulcerative colitis / UC) एक जीर्ण रोग है जिसमें बृहदान्त्र तथा गुदा में व्रण (अल्सर) हो जाता है। इस रोग का प्रमुख लक्षण पेट का दर्द तथा रक्तमिश्रित अतिसार है जिससे भार घटना, ज्वर, रक्ताल्पता आदि भी हो सकते हैं। .

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गुदा मैथुन

पुरुष से गुदा मैथुन करते हुए पुरुष का चित्र गुदा मैथुन एक प्रकार का मैथुन ही है। इस प्रकार के मैथुन में शिश्न, उँगली, डिल्डो या अन्य किसी वस्तु को योनि की बजाय गुदा में प्रविष्ट किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो गुदा में लिंग डालकर सम्भोग करने की प्रक्रिया को ही गुदा मैथुन कहते हैं।.

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अतिसार

अतिसार या डायरिया (अग्रेज़ी:Diarrhea) में या तो बार-बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। पतले दस्त, जिनमें जल का भाग अधिक होता है, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से आते रहते हैं। .

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अपमलन

मल त्याग्ती हुई गाय मल त्यागने के लिये बैठे बालक का चित्र अपमलन (Defecation) का अर्थ है - गुदाद्वार से मल त्याग करना। यह पाचन क्रिया की अन्तिम क्रिया है।मल ठोस, अर्धठोस या द्रव के रूप में हो सकता है। मानव द्वारा अपमलन की आवृत्ति २४ घण्टे में दो-तीन बार से लेकर एक सप्ताह में दो-चार बार तक होती है। आँतों की पेशियों में संकुचन की क्रिया होती है जिससे त्याज्य पदार्थ गुदाद्वार की तरफ सरकता है। .

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अंग (शारीरिकी)

जीवविज्ञान (biology) की दृष्टि से एक विशिष्ट कार्य करने वाले उत्तकों के समूह को अंग (organ) कहते हैं। .

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अंगुलि चालन

अंगूठाकार अंगुलियों या हाथ का प्रयोग करके योनि या गुदा को कामोत्तेजित करने की क्रिया को अंगुलि चालन (फिंगरिंग) कहते हैं। श्रेणी:काम.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

मलद्वार, गुदाद्वार

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