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गुड़ी पड़वा

सूची गुड़ी पड़वा

गुड़ी पड़वा (मराठी-पाडवा) के दिन हिन्दू नव संवत्सरारम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। 'गुड़ी' का अर्थ 'विजय पताका' होता है। कहते हैं शालिवाहन नामक एक कुम्हार-पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं का पराभव किया। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। ‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व 'ग़ुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है।इसी दिन चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है। .

17 संबंधों: चेटीचंड, धारबन्दोरा, नव वर्ष, पुरन पोली, बंगलौर, भारत में सार्वजनिक अवकाश, मालाबार, सारस्वथ ब्राह्मण के त्योहार, संवत, हिन्दू पर्वों की सूची, हिन्दू पंचांग, गीतरामायण, आमटी, कर्नाटक, कर्नाटक/आलेख, केशव बलिराम हेडगेवार, छडी पूजा

चेटीचंड

चेटीचंड (सिन्धी: چيٽي چنڊ‎) भारत एवं पाकिस्तान के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है जो नववर्ष के प्रथम दिन मनाया जाता है। विश्व के अन्य भागों में बसे हुए सिन्धी लोग भी चेटीचंड मनाते हैं। यह हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के दूसरे दिन (अर्थात वर्ष प्रतिपदा के अगले दिन) मनाया जाता है। .

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धारबन्दोरा

धारबन्दोरा, भारतीय राज्य गोवा के दक्षिण गोवा जिले का एक तालुक है। धारबन्दोरा, महाराष्ट्रीय नववर्ष गुड़ी पड़वा के दिन यानि 4 अप्रैल 2011 को दक्षिण गोवा जिले के छठे तालुक के रूप में अस्तित्व में आया है हालांकि इसके गठन संबंधी अधिसूचना को गोवा सरकार ने 16 मार्च 2011 को जारी किया था। धारबन्दोरा गोवा का बारहवां, सबसे नया और सबसे छोटा तालुक है। इसके गठन के पीछे का उद्देश्य प्रशासन का विकेन्द्रीकरण कर दूर दराज पड़े इलाकों तक प्रशासनिक सेवाओं की पहुँच को सुनिश्चित करना है। इसका गठन संगेम तालुक का विभाजन करके उसके 14 गांवों को लेकर किया गया है तथा इसमें उत्तर गोवा जिले के पोंडा तालुक के उसगांव तथा गंजेम नामक क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है। धारबन्दोरा नामक गांव इस तालुक का मुख्यालय है। कोंकणी और कन्नड़ धारबन्दोरा में प्रयोग में आने वाली प्रमुख भाषायें हैं। .

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नव वर्ष

भारतीय नववर्ष की विशेषता   - ग्रंथो में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी १ रविवार था। हमारे लिए आने वाला संवत्सर २०७५ बहुत ही भाग्यशाली होगा, क़्योंकि इस वर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रविवार है,   शुदी एवम  ‘शुक्ल पक्ष एक ही  है। चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था।हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है| इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है | हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है | पेड़-पोधों मे फूल,मंजर,कली इसी समय आना शुरू होते है,  वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है | जीवो में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है | इसी दिन ब्रह्मा जी  ने सृष्टि का निर्माण किया था | भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था | नवरात्र की शुरुअात इसी दिन से होती है | जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है | परम पुरूष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है। इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया। न शीत न ग्रीष्म। पूरा पावन काल। ऎसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए,  श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि  के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था | आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी | यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है | संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल *  *विक्रम संवत्सर विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है। कहीं धूल-धक्कड़ नहीं, कुत्सित कीच नहीं, बाहर-भीतर जमीन-आसमान सर्वत्र स्नानोपरांत मन जैसी शुद्धता। पता नहीं किस महामना ऋषि ने चैत्र के इस दिव्य भाव को समझा होगा और किसान को सबसे ज्यादा सुहाती इस चैत मेे ही काल गणना की शुरूआत मानी होगी। चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास। मधु मास अर्थात आनंद बांटती वसंत का मास। यह वसंत आ तो जाता है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त होता है चैत्र में। सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है,  पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में। चारों ओर पकी फसल का दर्शन,  आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है। खेतों में हलचल, फसलों की कटाई, हंसिए का मंगलमय खर-खर करता स्वर और खेतों में डांट-डपट-मजाक करती आवाजें। जरा दृष्टि फैलाइए, भारत के आभा मंडल के चारों ओर। चैत्र क्या आया मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा गई। नई फसल घर मे आने का समय भी यही है | इस समय प्रकृति मे उष्णता बढ्ने लगती है, जिससे पेड़ -पौधे, जीव-जन्तु मे नव जीवन आ जाता है | लोग इतने मदमस्त हो जाते है कि आनंद में मंगलमय  गीत गुनगुनाने लगते है | गौर और गणेश कि पूजा भी इसी दिन से तीन दिन तक राजस्थान मे कि जाती है | चैत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के समय जो वार होता है वह ही वर्ष में संवत्सर का राजा कहा जाता है,  मेषार्क प्रवेश के दिन जो वार होता है वही संवत्सर का मंत्री होता है इस दिन सूर्य मेष राशि मे होता है | नये साल के अवसर पर फ़्लोरिडा में आतिशबाज़ी का एक दृश्य। नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है। .

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पुरन पोली

पुरन पोली (मराठी और कोंकणी: पुरणपोळी/पुरणाची पोळी, गुजराती: પોળી, तमिल: போளி पोली, कन्नड़: ಹೋಳಿಗೆ ओबट्टु/होलिगे, तेलुगु:बूरेलु या बोब्बाटु या बोब्बाटलु या पोलेय्लु, भाकशालू), महाराष्ट्र का प्रसिद्ध मीठा पकवान है। निशा मधुलिका द्वारा यह हरेक तीज त्योहार आदि के अवसरों पर बनाया जाता है। इसे आमटी के साथ खाया जाता है। गुड़ीपडवा पर्व पर इसे विशेष रूप से बनाया जाता है। पुरन पोली की मुख्य सामग्री चना दाल होती है और इसे गुड़ या शक्कर से मीठा स्वाद दिया जाता है। इसे भरवां मीठा परांठा कहा जा सकता है। हिन्दी भाषी इस स्वादिष्ट व्यंजन को पूरनपोली कहते हैं क्योंकि मराठी के ळ व्यंजन का उच्चारण हिन्दी में नहीं होता है तो इसकी निकटतम ध्वनि ल से काम चलाया जाता है। पूरणपोळी चने की दाल को शक्कर की चाशनी में उबालकर बनाई गयी मीठी पिट्ठी से बनती है। यह पिठ्ठी ही भरावन होता है जिसमें जायफल, इलायची, केसर और यथासंभव मेवा डाल कर सुस्वादु बनाया जाता है। इसमें पीले रंग के लिए चुटकी भर हल्दी भी डाली जा सकती है। चूंकि इसे ही मैदा या आटे की लोई में पूरा या भरा जाता है इसलिए पूरण नाम मिला। संस्कृत की पूर् धातु से बना है पूरण शब्द जिसका अर्थ ऊपर तक भरना, पूरा करना, आदि हैं। चूंकि ऊपर तक भरा होना ही सम्पूर्ण होना है सो पूरण में संतुष्टिकारक भाव भी हैं। मराठी में रोटी के लिए पोळी शब्द है। भाव हुआ भरवां रोटी। पोळी शब्द बना है पल् धातु से जिसमें विस्तार, फैलाव, संरक्षण का भाव निहित है इस तरह पोळी का अर्थ हुआ जिसे फैलाया गया हो। बेलने के प्रक्रिया से रोटी विस्तार ही पाती है। इसके बाद इसे तेल या शुद्ध घी से परांठे की तरह दोनों तरफ घी लगाकर अच्छी तरह लाल और करारा होने तक सेक लेते हैं। वैसे इसे महाराष्ट्र में करारा होने तक सेका जाता है, वहीं कर्नाटक और आंध्र प्रदेश आदि में इसे मुलायम ही रखते हैं। सिकने के बाद इसे गर्म या सामान्य कर परोसा जाता है। इसके साथ आमटी या खीर भी परोसी जाती है। चार सदस्यों के लिए पुरनपोली बनाने का समय है ४० मिनट। इसे बना कर ३-४ दिनों तक रखा भी जा सकता है। कड़ाले बेल ओबट्टु (चना दाल ओबट्टु) .

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बंगलौर

कर्नाटक का उच्च न्यायालय बंगलौर (अन्य वर्तनी: बेंगलुरु) (कन्नड़: ಬೆಂಗಳೂರು; उच्चारण) भारत के राज्य कर्नाटक की राजधानी है। बेंगलुरु शहर की जनसंख्या ८४ लाख है और इसके महानगरीय क्षेत्र की जनसंख्या ८९ लाख है, और यह भारत गणराज्य का तीसरा सबसे बड़ा शहर और पांचवा सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र है। दक्षिण भारत में दक्कन के पठारीय क्षेत्र में ९०० मीटर की औसत ऊंचाई पर स्थित यह नगर अपने साल भर के सुहाने मौसम के लिए जाना जाता है। भारत के मुख्य शहरों में इसकी ऊंचाई सबसे ज़्यादा है। वर्ष २००६ में बेंगलूर के स्थानीय निकाय बृहत् बेंगलूर महानगर पालिकबी बी एम पी) ने एक प्रस्ताव के माध्यम से शहर के नाम की अंग्रेज़ी भाषा की वर्तनी को Bangalore से Bengaluru में परिवर्तित करने का निवेदन राज्य सरकार को भेजा। राज्य और केंद्रीय सरकार की स्वीकृति मिलने के बाद यह बदलाव १ नवंबर २०१४ से प्रभावी हो गया है। .

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भारत में सार्वजनिक अवकाश

भारत अनेकता में एकता वाला देश है जहाँ विविध और उत्कट संस्कृतियों वाले समाज के लोग रहते हैं। यहाँ पर स्‍वतंत्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस और गांधी जयंती के रूप में तीन राष्ट्रीय अवकाश दिवश हैं। राज्य और क्षेत्र प्रचलित धार्मिक और भाषाई जनसांख्यिकी के आधार पर क्षेत्रिय त्यौंहार भी होते हैं। हिन्दू धर्म के दीपावली, गणेश चतुर्थी, होली एवं नवरात्रि, इस्लाम में ईद उल-फ़ित्र एवं ईद-उल-अज़हा, बौद्ध धर्म में बुद्ध जयंती एवं आंबेडकर जयंती, इसाई धर्म में क्रिसमिस एवं गुड फ़्राइडे जैसे त्यौंहार देशभर में लोकप्रिय हैं। .

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मालाबार

मालाबार केरल राज्य में अवस्थित पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिम तट के समानांतर एक संकीर्ण तटवर्ती क्षेत्र है। जब स्‍वतंत्र भारत में छोटी रियासतों का विलय हुआ तब त्रावनकोर तथा कोचीन रियासतों को मिलाकर १ जुलाई, १९४९ को त्रावनकोर-कोचीन राज्य बना दिया गया, किंतु मालाबार मद्रास प्रांत के अधीन रहा। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ के तहत त्रावनकोर-कोचीन राज्य तथा मालाबार को मिलाकर १ नवंबर, १९५६ को केरल राज्य बनाया गया। केरल के अधिकांश द्वीप जो त्रावणकोर-मालाबार राज्य में आते थे, अब एर्नाकुलम जिले में आते हैं। मालाबार क्षेत्र के अंतर्गत पर्वतों का अत्यधिक आर्द्र क्षेत्र आता है। वनीय वनस्पति में प्रचुर होने के साथ-साथ इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों, जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, कॉफी और चाय, रबड़ तथा काजू का उत्‍पादन किया जाता है। मालाबार क्षेत्र केरल का बड़ा व्यावसायिक क्षेत्र माना जाता है। यहाँ उच्चकोटि के कागज का भी निर्माण होता है। यहां पर एशिया की सबसे मशहूर प्लाईवुड फैक्टरी भी स्थित है। इसके अलावा यहां के निकटवर्ती स्थानों पर फूलों के उत्पादन तथा उनके निर्यात के प्रमुख केंद्र भी स्थित हैं। हस्तकला की वस्तुओं तथा बीड़ी आदि का उत्पादन भी मालाबार में काफी होता है। मालाबार तट पर बसे हुए कण्णूर नगर में पयंबलम, मुझापूलंगड तथा मियामी जैसे सुंदर बीच हैं जो अभी पर्यटकों में अधिक प्रसिद्ध नहीं हैं, अतएव शांत वातावरण बनाए हुए हैं। यहां पायथल मलै नामक आकर्षक पर्वतीय स्थल भी है। निकट ही यहां का सर्प उद्यान है जहां पर अनेक प्रकार के सांपों का प्रदर्शन किया गया है। इस स्थान पर सर्पदंश चिकित्सा केंद्र भी बना है। मालाबार में मलावलतम नदी के किनारे पर परासनी कडायू का प्रसिद्ध मंदिर है, जो केवल हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य सभी जातियों के लिए भी समान रूप से खुला है। यह मुथप्पन भगवान का मंदिर माना जाता है जो शिकारियों के देवता हैं। इसीलिए इस मंदिर में कांसे के बने हुए कुत्तों की मूर्तियां हैं। यहां ताड़ी तथा मांस का प्रसाद मिलता है तथा यहां के पुजारी दलित वर्ग के होते हैं। केरल की अधिकांश मुस्लिम आबादी, जिन्हें मप्पिला कहते हैं इसी क्षेत्र में निवास करती हैं। मालाबार के हिन्दुओं में गुड़ी पड़वा उत्सव का विशेष महत्त्व है। मालाबार क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति तथा प्रदूषण रहित वातावरण को देख कर मन खुश हो जाता है। वास्को डा गामा की यात्रा के ५०० वर्ष पूरे होने के कारण यह स्थान विश्व प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। मालाबार में कालीकट से १६ कि॰मी॰ दूर कापड़ बीच है, जहां २१ मई, १४९८ को वास्को दा गामा ने पहला कदम भारत की भूमि पर रखा था। प्रभासाक्षी पर .

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सारस्वथ ब्राह्मण के त्योहार

कोई विवरण नहीं।

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संवत

संवत्‌, समयगणना का भारतीय मापदंड। भारतीय समाज में अनेक प्रचलित संवत्‌ हैं। मुख्य रूप से दो संवत्‌ चल रहे हैं, प्रथम विक्रम संवत्‌ तथा दूसरा शक संवत्‌। विक्रम संवत्‌ ई. पू.

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हिन्दू पर्वों की सूची

यहाँ हिन्दू त्यौहारों की सूची दी गयी है। हिन्दू लोग बहुत से पर्व मनाते हैं जैसे दीपावली, विजया दशमी, होली आदि। .

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हिन्दू पंचांग

हिन्दू पञ्चाङ्ग से आशय उन सभी प्रकार के पञ्चाङ्गों से है जो परम्परागत रूप प्राचीन काल से भारत में प्रयुक्त होते आ रहे हैं। ये चान्द्रसौर प्रकृति के होते हैं। सभी हिन्दू पञ्चाङ्ग, कालगणना की समान संकल्पनाओं और विधियों पर आधारित होते हैं किन्तु मासों के नाम, वर्ष का आरम्भ (वर्षप्रतिपदा) आदि की दृष्टि से अलग होते हैं। भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख क्षेत्रीय पञ्चाङ्ग ये हैं-.

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गीतरामायण

गीतरामायण रामायण के प्रसंगों पर आधारित ५६ मराठी गीतों का संग्रह है। यह आकाशवाणी पुणे से सन् १९५५-५६ में प्रसारित किया गया था। इसके लेखक प्रसिद्ध साहित्यकार गजानन दिगंबर माडगूलकर थे तथा इसे सुधीर फड़के ने संगीतबद्ध किया था। यह अत्यन्त प्रसिद्ध हुआ था और बाद में इसके पाँच हिन्दी अनुवाद एवं एक-एक बंगला, अंग्रेजी, गुजराती, कन्नड, कोंकणी, संस्कृत, सिन्धी तथा तेलुगू अनुवाद भी आए। यह ब्रेल लिपि में भी लिप्यन्तरित किया गया है। .

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आमटी

आमटी एक प्रकार का महाराष्ट्रीय व्यंजन है। इसे पुरन पोली के साथ खाया जाता है। गुड़ीपडवा पर्व पर इसे विषेष रूप से बनाया जाता है। आमटी की मुख्य सामग्री चने की दाल होती है। अन्य दाल से विपरीत इसमें चने की दाल को उबालने के बाद पीस कर छौंका जाता है। .

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कर्नाटक

कर्नाटक, जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का गठन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अधीन किया गया था। पहले यह मैसूर राज्य कहलाता था। १९७३ में पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया। इसकी सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। इसका कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि॰मी॰²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है। २९ जिलों के साथ यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़। कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई व्याख्याओं में से सर्वाधिक स्वीकृत व्याख्या यह है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात काली या ऊंची और नाडु अर्थात भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्कन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिये कार्नेटिक शब्द का प्रयोग किया जाता था, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिये प्रयुक्त है और मूलतः कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन साम्राज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं। राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है। .

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कर्नाटक/आलेख

कर्नाटक (उच्चारण), जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का सृजन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्संगठन अधिनियम के अधीन किया गया था। मूलतः यह मैसूर राज्य कहलाता था और १९७३ में इसे पुनर्नामकरण कर कर्नाटक नाम मिला था। कर्नाटक की सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। राज्य का कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि॰मी॰²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है। यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है और इसमें २९ जिले हैं। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़। हालांकि कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई सन्दर्भ हैं, फिर भी उनमें से सर्वाधिक स्वीकार्य तथ्य है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात काली या ऊंची और नाडु अर्थात भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्खन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिये कार्नेटिक शब्द प्रयोग किया गया है, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिये प्रयोग किया गया है और कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन याज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं। राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है। .

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केशव बलिराम हेडगेवार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा.

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छडी पूजा

छडी पूजा एक प्राचीनतम मानवी संस्कृतीक परंपरा है। छडी का उपयोग केवल पवित्रता स्वरूप करते है तो उसे देवक-स्तंभ कहलाया जाता है। छडी का उपयोग ध्वज के रुपमे किया जाता है तो उसे ध्वज स्तंभ कहते हैं। छडी पूजा नॉर्वेजियामे Mære चर्च, इस्रायलमधील Asherah pole कि पूजा ज्यू धर्म कि संस्थापनासे पहले से होती थी। विश्वभर विभीन्न आदीवासी समुदायोमे छडी पूजा परंपरा का निर्वाह दिखाई देता है। भारतीय उपखंडमे बलुचिस्तानकी हिंगलाज माता एवं पहलगाम छडी मूबारक, महाराष्ट्रमे जोतिबा गुडी (छडी) के साथ यात्रा करने की परंपरा है। मध्यप्रदेशराज्य के निमाड प्रांतामे छडी माताकी पूजा एवं छडी नृत्य परंपरा है। राजस्थानमे गोगाजी मंदिरमे छडीयोंकी पूजा की जाती है। डॉ॰ बिद्युत लता रे के मतानुसार ओरीसा राज्याके आदीवासींओमे प्रचलित खंबेश्वरी देवीकी पूजा छडी पूजाका प्रकार है, और खंबेश्वरीची पूजा वैदीक हिंदू धर्म की मुर्तीपुजांसे भी प्राचीन होना संभव है। महाराष्ट्रमे पवित्र छडी को गुढी कहा जाता है। महाराष्ट्रकी गुढी परंपरा के प्रमाण १३वी सदी से मराठी साहित्य में दिखाई देते हैं। चैत्र शुद्ध प्रतिपदाके दिन महाराष्ट्र राज्यमे वर्षारंभादिन के रुपमे मनाते हुए उसी दिन को गुड़ी पड़वा कहते हैं। महाराष्ट्रामे गुडी याने छ्डीकी पूजा की जाती है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

वर्ष प्रतिपदा, वर्षप्रतिपदा, गुड़ीपडवा, गुडी पड़वा, गुढ़ी पड़वा, गुढीपाडवा, उगादि

निवर्तमानआने वाली
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