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गणेशशंकर विद्यार्थी

सूची गणेशशंकर विद्यार्थी

गणेशशंकर विद्यार्थी गणेशशंकर 'विद्यार्थी' (1890 - 25 मार्च 1931), हिन्दी के पत्रकार एवं भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सिपाही एवं सुधारवादी नेता थे। .

26 संबंधों: चन्द्रशेखर आजाद, झाँसी की रानी (उपन्यास), पंडित सुन्दर लाल, पुरुषोत्तम दास टंडन, फतेहपुर जिला, बनारसीदास चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन, भारत में अंग्रेज़ी राज, भारतीय मीडिया, माखनलाल चतुर्वेदी, मैनपुरी षड्यन्त्र, रामदुलारे त्रिवेदी, रवीश कुमार, श्यामलाल गुप्त 'पार्षद', हरिभाऊ उपाध्याय, हिन्दी पुस्तकों की सूची/क, विजय सिंह पथिक, वंशीधर शुक्ल, गणेश शंकर 'विद्यार्थी', गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही', ग्वालियर, आशारानी व्होरा, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ, अशोकनगर, अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ

चन्द्रशेखर आजाद

पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' (२३ जुलाई १९०६ - २७ फ़रवरी १९३१) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् १९२७ में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया। .

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झाँसी की रानी (उपन्यास)

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हिंदी लेखक वृंदावनलाल वर्मा द्वारा लिखित एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसका प्रथम प्रकाशन सन् 1946 में हुआ। 1946 से 1948 के बीच लेखक ने इसी शीर्षक से एक नाटक भी लिखा जिसे 1955 में मंचित किया गया हालाँकि, उपन्यास अधिक प्रसिद्ध हुआ और इसे हिंदी भाषा में ऐतिहासिक उपन्यासों की श्रेणी में एक मील का पत्थर माना जाता है। 1951 में इस उपन्यास का पुनर्प्रकाशन हुआ। उपन्यास का कथानक भारत में ब्रिटिश राज के काल में मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर आधारित है। साथ ही यह 1857 के विद्रोह की आधुनिक व्याख्या भी प्रस्तुत करता है। .

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पंडित सुन्दर लाल

सत्याग्रह छत्तीसगढ़ के कवि एवं समाजसुधारक पंडित सुन्दर लाल शर्मा के लिये संबन्धित लेख देखें। ----- पंडित सुन्दर लाल (२६ सितम्बर सन १८८५ - 9 मई १९८१) भारत के पत्रकार, इतिहासकार तथा स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे। वे 'कर्मयोगी' नामक हिन्दी साप्ताहिक पत्र के सम्पादक थे। उनकी महान कृति 'भारत में अंग्रेज़ी राज' है। .

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पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया। १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया। वे जन सामान्य में राजर्षि (संधि विच्छेदः राजा+ऋषि.

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फतेहपुर जिला

फतेहपुर जिला उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है जो कि पवित्र गंगा एवं यमुना नदी के बीच बसा हुआ है। फतेहपुर जिले में स्थित कई स्थानों का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है जिनमें भिटौरा, असोथर अश्वस्थामा की नगरी) और असनि के घाट प्रमुख हैं। भिटौरा, भृगु ऋषि की तपोस्थली के रूप में मानी जाती है। फतेहपुर जिला इलाहाबाद मंडल का एक हिस्सा है और इसका मुख्यालय फतेहपुर शहर है। .

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बनारसीदास चतुर्वेदी

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी (२४ दिसम्बर, १८९२ -- २ मई, १९८५) प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार थे। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे। उनके सम्पादकत्व में हिन्दी में कोलकाता से 'विशाल भारत' नामक हिन्दी मासिक निकला। पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे सुधी चिंतक ने ही साक्षात्कार की विधा को पुष्पित एवं पल्लवित करने के लिए सर्वप्रथम सार्थक कदम बढ़ाया था। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। वे अपने समय का अग्रगण्य संपादक थे तथा अपनी विशिष्ट और स्वतंत्र वृत्ति के लिए जाने जाते हैं। उनके जैसा शहीदों की स्मृति का पुरस्कर्ता (सामने लाने वाला) और छायावाद का विरोधी समूचे हिंदी साहित्य में कोई और नहीं हुआ। उनकी स्मृति में बनारसीदास चतुर्वेदी सम्मान दिया जाता है। कहते हैं कि वे किसी भी नई सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या राष्ट्रीय मुहिम से जुड़ने, नए काम में हाथ डालने या नई रचना में प्रवृत्त होने से पहले स्वयं से एक ही प्रश्न पूछते थे कि उससे देश, समाज, उसकी भाषाओं और साहित्यों, विशेषकर हिंदी का कुछ भला होगा या मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्चतर मूल्यों की प्रतिष्ठा होगी या नहीं? .

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बालकृष्ण शर्मा नवीन

बालकृष्ण शर्मा नवीन (१८९७ - १९६० ई०) हिन्दी कवि थे। वे परम्परा और समकालीनता के कवि हैं। उनकी कविता में स्वच्छन्दतावादी धारा के प्रतिनिधि स्वर के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना, गांधी दर्शन और संवेदनाओं की झंकृतियां समान ऊर्जा और उठान के साथ सुनी जा सकती हैं। आधुनिक हिन्दी कविता के विकास में उनका स्थान अविस्मरणीय है। वे जीवनभर पत्रकारिता और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे। नवीन जी द्विवेदी युग के कवि हैं। इनकी कविताओं में भक्ति-भावना, राष्ट्र-प्रेम तथा विद्रोह का स्वर प्रमुखता से आया है। आपने ब्रजभाषा के प्रभाव से युक्त खड़ी बोली हिन्दी में काव्य रचना की। उन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६० में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। .

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भारत में अंग्रेज़ी राज

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भारतीय मीडिया

भारत के संचार माध्यम (मीडिया) के अन्तर्गत टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, तथा अन्तरजालीय पृष्ट आदि हैं। अधिकांश मीडिया निजी हाथों में है और बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा नियंत्रित है। भारत में 70,000 से अधिक समाचार पत्र हैं, 690 उपग्रह चैनेल हैं (जिनमें से 80 समाचार चैनेल हैं)। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा समाचार पत्र का बाजार है। प्रतिदिन १० करोड़ प्रतियाँ बिकतीं हैं। .

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माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है। .

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मैनपुरी षड्यन्त्र

पं० गेंदालाल दीक्षित (मैनपुरी काण्ड के नेता) का चित्र परतन्त्र भारत में स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिये उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी में सन् १९१५-१६ में एक क्रान्तिकारी संस्था की स्थापना हुई थी जिसका प्रमुख केन्द्र मैनपुरी ही रहा। मुकुन्दी लाल, दम्मीलाल, करोरीलाल गुप्ता, सिद्ध गोपाल चतुर्वेदी, गोपीनाथ, प्रभाकर पाण्डे, चन्द्रधर जौहरी और शिव किशन आदि ने औरैया जिला इटावा निवासी पण्डित गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध काम करने के लिये उनकी संस्था शिवाजी समिति से हाथ मिलाया और एक नयी संस्था मातृवेदी की स्थापना की। इस संस्था के छिप कर कार्य करने की सूचना अंग्रेज अधिकारियों को लग गयी और प्रमुख नेताओं को पकड़कर उनके विरुद्ध मैनपुरी में मुकदमा चला। इसे ही बाद में अंग्रेजों ने मैनपुरी षडयन्त्र कहा। इन क्रान्तिकारियों को अलग-अलग समय के लिये कारावास की सजा हुई। मैनपुरी षडयन्त्र की विशेषता यह थी कि इसकी योजना प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश के निवासियों ने ही बनायी थी। यदि इस संस्था में शामिल मैनपुरी के ही देशद्रोही गद्दार दलपतसिंह ने अंग्रेजी सरकार को इसकी मुखबिरी न की होती तो यह दल समय से पूर्व इतनी जल्दी टूटने या बिखरने वाला नहीं था। मैनपुरी काण्ड में शामिल दो लोग - मुकुन्दीलाल और राम प्रसाद 'बिस्मिल' आगे चलकर सन् १९२५ के विश्वप्रसिद्ध काकोरी काण्ड में भी शामिल हुए। मुकुन्दीलाल को आजीवन कारावास की सजा हुई जबकि राम प्रसाद 'बिस्मिल' को तो फाँसी ही दे दी गयी क्योंकि वे भी मैनपुरी काण्ड में गेंदालाल दीक्षित को आगरा के किले से छुडाने की योजना बनाने वाले मातृवेदी दल के नेता थे। यदि कहीं ये लोग अपने अभियान में कामयाब हो जाते तो न तो सन् १९२७ में राजेन्द्र लाहिडी व अशफाक उल्ला खाँ सरीखे होनहार नवयुवक फाँसी चढते और न ही चन्द्रशेखर आजाद जैसे नर नाहर तथा गणेशशंकर विद्यार्थी सरीखे प्रखर पत्रकार की सन् १९३१ में जघन्य हत्याएँ हुई होतीं। .

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रामदुलारे त्रिवेदी

रामदुलारे त्रिवेदी (जन्म: 1902, मृत्यु: 1975) संयुक्त राज्य आगरा व अवध (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया था जिसके कारण उन्हें छ: महीने के कठोर कारावास की सज़ा काटनी पड़ी। जेल से छूटकर आये तो राम प्रसाद 'बिस्मिल' द्वारा गठित हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। वे एक सच्चे स्वतन्त्रता सेनानी थे। उन्हें काकोरी काण्ड में केवल पाँच वर्ष के सश्रम कारावास का दण्ड मिला था। स्वतन्त्र भारत में उनका देहान्त 11 मई 1975 को कानपुर में हुआ। 1921 से 1945 तक कई बार जेल गये किन्तु स्वर नहीं बदला। प्रताप और टंकार जैसे दो दो साप्ताहिक समाचार पत्रों का सम्पादन किया। त्रिवेदी जी ने कुछ पुस्तकें भी लिखी थीं जिनमें उल्लेखनीय थी-काकोरी के दिलजले जो 1939 में छपते ही ज़ब्त हो गयी। उनकी यह पुस्तक इतिहास का एक दुर्लभ दस्तावेज़ है। .

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रवीश कुमार

रवीश कुमार (जन्म ५ दिसेम्बर १९७४) एक भारतीय टीवी एंकर, लेखक और पत्रकार हैं, जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को मुखरता के साथ जनता के सामने रखते हैं। रवीश एनडीटीवी समाचार नेटवर्क के हिंदी समाचार चैनल 'एनडीटीवी इंडिया' में वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, और चैनल के प्रमुख कार्यक्रमों जैसे 'हम लोग' और 'रवीश की रिपोर्ट' के होस्ट रहे हैं। रवीश कुमार का प्राइम टाइम शो वर्तमान में काफी लोकप्रिय है। २०१६ में "द इंडियन एक्सप्रेस" ने अपनी '१०० सबसे प्रभावशाली भारतीयों' की सूची में उन्हें भी शामिल किया था। .

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श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'

इसी झण्डे पर गीत लिखा था श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' ने श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं अध्यापक थे। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान उत्प्रेरक झण्डा गीत (विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा) की रचना के लिये वे इतिहास में सदैव याद किये जायेंगे। .

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हरिभाऊ उपाध्याय

हरिभाऊ उपाध्याय (१८८२ - १९७२) भारत के प्रसिद्ध साहित्यसेवी एवं राष्ट्रकर्मी थे। .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/क

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विजय सिंह पथिक

विजय सिंह पथिक उर्फ़ भूप सिंह गुर्जर (अंग्रेजी:Vijay Singh Pathik, जन्म: 27 फ़रवरी 1882, निधन: 28 मई 1954) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें राष्ट्रीय पथिक के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म बुलन्दशहर जिले के ग्राम गुठावली कलाँ के एक गुर्जर परिवार में हुआ था। उनके दादा इन्द्र सिंह बुलन्दशहर स्थित मालागढ़ रियासत के दीवान (प्रधानमंत्री) थे जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी। पथिक जी के पिता हमीर सिंह गुर्जर को भी क्रान्ति में भाग लेने के आरोप में सरकार ने गिरफ्तार किया था। पथिक जी पर उनकी माँ कमल कुमारी और परिवार की क्रान्तिकारी व देशभक्ति से परिपूर्ण पृष्ठभूमि का बहुत गहरा असर पड़ा। युवावस्था में ही उनका सम्पर्क रास बिहारी बोस और शचीन्द्र नाथ सान्याल आदि क्रान्तिकारियों से हो गया था। 1915 के लाहौर षड्यन्त्र के बाद उन्होंने अपना असली नाम भूपसिंह गुर्जर से बदल कर विजयसिंह पथिक रख लिया था। मृत्यु पर्यन्त उन्हें इसी नाम से लोग जानते रहे। मोहनदास करमचंद गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन से बहुत पहले उन्होंने बिजौलिया किसान आंदोलन के नाम से किसानों में स्वतंत्रता के प्रति अलख जगाने का काम किया था। .

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वंशीधर शुक्ल

वंशीधर शुक्ल (जन्म: 1904; मृत्यु: 1980) एक हिंदी और अवधी भाषा के कवि और स्वतंत्रता सेनानी व राजनेता थे। इनके पिता छेदीलाल शुक्ल भी एक कवि थे। वंशीधर शुक्ल जी महात्मा गाँधी के आन्दोलन से भी भाग लिए। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी विधान सभा से वें विधायक (१९५९-१९६२) भी रहे। “ कदम-कदम बढायें जा खुशी के गीत गाये जा, ये जिंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाए जा ” जैसी कालजयी रचना का सृजन करने वाले वंशीधर शुक्ल हैं। ‘उठो सोने वालों सबेरा हुआ है’, ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ इनकी अवधी में लिखी हुई पुस्तके हैं। हुजूर केरी रचनावली भी उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ से प्रकाशित हो चुकी है। .

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गणेश शंकर 'विद्यार्थी'

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गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' (1883-1972) हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के द्विवेदी युगीन साहित्यकार हैं। इन्होंने 'सनेही' उपनाम से कोमल भावनाओं की कविताएँ, 'त्रिशूल' उपनाम से राष्ट्रीय कविताएँ तथा 'तरंगी' एवं 'अलमस्त' उपनाम से हास्य-व्यंग्य की कविताएँ लिखीं। इनकी देशभक्ति तथा जन-जागरण से सम्बद्ध कविताएँ अत्यधिक प्रसिद्ध रही हैं। .

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ग्वालियर

ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। भौगोलिक दृष्टि से ग्वालियर म.प्र.

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आशारानी व्होरा

आशारानी व्होरा (जन्म: ७ अप्रैल १९२१ - मृत्यु: २१ दिसम्बर २००९) ब्रिटिश भारत में झेलम जिले में जन्मी एक हिन्दी लेखिका थीं जिन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। जीवन की अन्तिम साँस तक वह निरन्तर लिखती रहीं। ८८ वर्ष की आयु में उनका निधन नई दिल्ली में अपने बेटे डॉ॰ शशि व्होरा के घर पर हुआ। आशारानी को अपने जीवन काल में कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए। उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति एक ट्रस्ट बनाकर नोएडा स्थित सूर्या संस्थान को दान कर दी। .

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अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, (उर्दू: اشفاق اُللہ خان, अंग्रेजी:Ashfaq Ulla Khan, जन्म:22 अक्तूबर १९००, मृत्यु:१९२७) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और १९ दिसम्बर सन् १९२७ को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है। .

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अशोकनगर

अशोक नगर, भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित एक शहर है। यह अशोक नगर जिला का मुख्यालय है। यह नगर चन्देरी सिल्क सारियों के लिये भी जाना जाता है। अशोकनगर (भी अशोक नगर) मध्य भारत राज्य मध्य भारत के अशोकनगर जिले में एक शहर और नगर पालिका परिषद है। यह अशोकनगर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इससे पहले यह गुना जिले का हिस्सा था। अशोकनगर अपने अनाज मंडी और "शरबती गहु" के लिए प्रसिद्ध है, एक प्रकार का गेहूं। निकटतम शहर गुना शहर से 45 किमी दूर है। अशोकनगर को पहले प्रचार के नाम से जाना जाता था। रेलवे लाइन शहर के बीच से गुजरती है। अशोकनगर में एक रेलवे स्टेशन और दो बस स्टेशन हैं। अशोकनगर सड़क और रेलवे द्वारा मध्य प्रदेश के मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है अशोकनगर मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में स्थित है, सिंध और बेतवा की नदियों के बीच। यह मालवा पठार के उत्तरी भाग के अंतर्गत आता है, हालांकि इसके जिले का मुख्य भाग बुंदेलखंड पठार में स्थित है। जिले की पूर्वी और पश्चिमी सीमाएं अच्छी तरह से नदियों से परिभाषित हैं। बेतवा पूर्वी सीमा के साथ बहती है जो इसे सागर जिले और उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले से अलग करती है। सिंध पश्चिमी सीमा पर बहने वाली मुख्य नदी है अशोकनगर का एक हिस्सा चंदेरी अपने ब्रोकेड और मुस्लिमों के लिए प्रसिद्ध है, खासकर अपनी हाथों से बने चन्द्रियों के लिए। अशोकनगर पश्चिमी मध्य रेलवे के कोटा-बिना रेलवे खंड पर स्थित है। अशोकनगर जिले पूर्व में उत्तर प्रदेश की सीमा तक उत्तर प्रदेश में ललितपुर से करीब 87 किमी दूर है। अशोकनगर राज्य भोपाल की राजधानी से लगभग 190 किमी दूर है, इंदौर से 360 किमी और ग्वालियर से लगभग 250 किमी दूर है। इतिहास यह क्षेत्र ग्वालियर के भारतीय रियासत राज्य के इसागढ़ जिले के हिस्से के रूप में शासन किया गया था। ऐसा माना जाता है कि उज्जैन की जीत से राजा अशोक लौटने पर पचार भूमि पर रात की रुकती हुई थी, इसलिए अशोकनगर नाम का नाम था। जनसांख्यिकी 2001 की जनगणना में, अशोकनगर की जनसंख्या 67,705 थी 2011 की जनगणना में, अशोकनगर की जनसंख्या 844,9 9 9 थी, जिसमें पुरुष और महिलाएं क्रमशः 444,651 और 400,328 थीं। 2001 के अनुसार आबादी की तुलना में जनसंख्या में 22.65 प्रतिशत परिवर्तन हुआ था। भारत की पिछली जनगणना में 2001, अशोकनगर जिले ने 1991 की तुलना में जनसंख्या में 23.20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। प्रारंभिक अनंतिम डेटा 2011 में 147 की तुलना में 2011 में 181 घनत्व का सुझाव देते हैं। अशोकनगर जिले के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल लगभग 4,674 किमी 2 है। 2011 में अशोकनगर की औसत साक्षरता दर क्रमश: 67.90 थी और 2001 की 62.26 के मुकाबले 67.90 थी। अगर लिंग के अनुसार, पुरुष और महिला साक्षरता क्रमश: 80.22 और 54.18 थी, 2001 की जनगणना के लिए, इसी आंकड़े अशोकनगर जिले में 77.01 और 45.24 पर खड़े थे। अशोकनगर जिले में कुल साक्षर 480,957 थे, जिनमें से पुरुष और महिला क्रमशः 299,40 9 और 185,548 थे। 2001 में, अशोकनगर जिले में कुल क्षेत्रफल 344,760 था। अशोकनगर में लिंग अनुपात के संबंध में, यह 9 8 9 के 2001 की जनगणना की तुलना में प्रति 1000 पुरुष था। जनगणना 2011 निदेशालय की नवीनतम रिपोर्टों के मुताबिक भारत में औसत राष्ट्रीय सेक्स अनुपात 940 है। दक्षिण में, अशोकनगर से लगभग 35 किमी दूर प्रसिद्ध ' करीला माता मंदिर' है, जो भगवान राम और सीता माता के पुत्र लव और कुश का जन्मस्थान है। हर साल रंगपंचमी पर एक विशाल मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें राय डांस बेदी महिला द्वारा किया जाता है। टुमन एक मशहूर ऐतिहासिक तीर्थयात्री केंद्र है जो त्रिविणी में स्थित है, जिसे माता विंध्यवासिनी मंदिर के लिए जाना जाता है। अशोकनगर जिले में धार्मिक महत्व के कई और अधिक स्थान हैं। चंदेरी अशोकनगर जिले का तहसील है और यह प्रसिद्ध ऐतिहासिक और पर्यटन महल है। चंदेरी के लोगों का मुख्य व्यवसाय हस्तकला है। चंदेरी साड़ियों दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। इन्हें कपास और रेशम द्वारा खटका से हाथ मिलाया जाता है। साड़ियां तैयार करने के लिए खतका एक स्वनिर्मित मशीन है। अशोकनगर जिले में एक अन्य प्रसिद्ध स्थान श्री आनंदपुर है, जो श्री आदवीथ परमहंस संप्रदाय का विश्व मुख्यालय है। विश्वभर से चेलों ने वैसासिक और गुरु पौर्णिमा में दो बार एक वर्ष में आनंदपुर को गुरुओं से आशीर्वाद लेने के लिए यात्रा की। कदवेया, जिले का एक छोटा सा गांव प्राचीन शिव मंदिर, गढ़ी और माता मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है। पर्यटक चंदेरी चंदेरी किला शहर से ऊपर 71 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मुख्य रूप से चंदेरी के मुस्लिम शासकों द्वारा दुर्ग की दीवारों का निर्माण किया गया। किले का मुख्य दृष्टिकोण तीन दरवाजों की एक श्रृंखला के माध्यम से होता है, जिनमें से सबसे ऊपर हवा पौंड और निम्नतम के रूप में जाना जाता है जिसे खुनी दरवाजा कहा जाता है या रक्त के द्वार कहा जाता है। अजीब नाम इस तथ्य से लिया गया है कि अपराधियों को इस बिंदु पर ऊपरी बंगालों से फेंकने के द्वारा मार डाला गया था और इस प्रकार उनके शरीर को पैरों पर टुकड़ों में डाल दिया गया था। किले के भीतर बंडेला चीफ्स द्वारा निर्मित दो और दो बर्बाद इमारतों हैंवा और नौ-खांदा महल हैं। किले का सबसे सुंदर स्थान उत्तरी रिज पर एक आराम घर है, जहां से देश के नीचे शहर के एक आकर्षक दृश्य प्राप्त किया जा सकता है। चंदेरी फोर्ट दक्षिण की ओर किले के लिए पहाड़ी की ओर से बने कट्टी-घट्टी नामक एक उत्सुक प्रवेश द्वार है। यह 59 मीटर लंबा 12 मीटर चौड़ा और चट्टान के अपने हिस्से के बीच 24.6 मीटर ऊंचा है, एक गेट के आकार में देखा गया है, जिसमें एक बिंदु वाला कमान है, जो लपटों के टावरों से घूमता है। कौशक महल चंदारी चंदेरी के कौशक महल को तावरी-ई-फ़रीशता में जाना जाता है। यह उसमें दर्ज किया गया है, एएच 849 (सीएडी 1445) में। मालवा के महमूद शाह खिलजी चंदेरी से गुजर रहे थे उन्होंने सात मंजिला महल का निर्माण करने का आदेश दिया। कौशिक महल इस आदेश का नतीजा है। यह कुछ भव्यता का भव्य भवन है, हालांकि एक आधा बर्बाद स्थिति में खड़ा है। शहर के दक्षिण, पूर्व और उत्तर में क्रमशः रामनगर, पंचमनगर और सिंघपुर के सुव्यवस्थित महलों हैं। सभी 18 वीं शताब्दी में चंदेरी के बुंदेला चीफों द्वारा निर्मित किए गए हैं। तुमैन- माँ विन्ध्यवासिनी मंदिर अति प्राचीन मंदिर है। यह अशोक नगर जिले से दक्षिण दिशा की ओर तुमैन (तुम्वन) मे स्थित हैं। यहाॅ खुदाई में प्राचीन मूर्तियाँ निकलती रहती है यह राजा मोरध्वज की नगरी के नाम से जानी जाती है यहाॅ कई प्राचीन दाश॔निक स्थलो में वलराम मंदिर,हजारमुखी महादेव मंदिर,ञिवेणी संगम,वोद्ध प्रतिमाएँ,लाखावंजारा वाखर,गुफाएँ, माँ पहाडा वाली मंदिर आदि कई स्थल है तुमैन का प्राचीन नाम तुम्वन था। सन् 1970-72 में पुरातत्व विभाग के द्वारा यहाँ जव खुदाई की गई तव यहाँ 30 फुट नीचे जमीन मे ताँवे के सिक्को से भरा एक घडा मिला कई प्राचीन मूर्तियाँ और मनुष्य के डाॅचे एवं कई प्राचीन अवशेष यहाॅ से प्राप्त हुए। सभी अवशेषो को सागर विश्वविद्यालय मे कुछ गूजरी महल ग्वालियर मे रख दिए है। फिर भी यहाॅ कई प्राचीन मूर्तियाँ है जो तुमैन संग्रहालय मे है।वत॔मान मे आज भी अगर इस ग्राम की खुदाई की जाए तो यहाँ कई सारे प्राचीन अवशेष प्राप्त होगे। तुमैन ञिवेणी नदी  का इतिहास- प्राचीन काल में अलीलपुरी जी महाराज रोज अपनी साधना के अनुसार स्रान करने के लिए पृयाग (इलावाद)जाया करते थे। एकदिन गंगा माई प्रशन्र हो गयी ओर वोली माँगो भक्त क्या चाहिए! माँअगर आप प्रशन्र है तो माँ मेरी कुटिया को पवित्र कर दीजिए गंगाजी तुमैन में गुप्त गंगा  के नाम सेजानी गई ओर तीन नदियों का संगम हुआ उमिॅला,सोवत,अखेवर, आज भी जो लोग इलाहाबाद नहीं जा पाते वे तुमैन ञिवेणी में आकर गोता लगाते हैं तुमैन मे हर वष॔ मकर संक्रांति पर मेले का आयोजन भी होता है तुमैन अपने इतिहास मे मशहूर है इसका लेख कितावो मे भी मिलता है। तुमैन  मंदिरों के लिए भी जानी जाती है यहाँ जहाँ पर करो खुदाई वहां पर निकलती है मूर्तिया। तुमैन गाँव का वडा मंदिर विन्धयवासिनी मंदिर है। यह मंदिर वहुत ही पुराना है इस मंदिर में जो तोड़ फोड़ हुई मुगल साम्राज्य ओरंगजेव के समय पर हुई है। मंदिर का इतिहास वहुत ही पुराना है।विन्धयवासिनी मंदिर या तो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में स्थित है या फिर मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले के  10km दूरी पर तुमैन गाँव मे स्थित है। *कविता के माध्यम से इतिहास-  तुम्वन नगरी आय के, कर लीजे दो काम। प्रथम ञिवेणी स्नान कर, दूजे विंन्ध्यवासिनी धाम।। यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। इसका नाम जगत में ऊॅचा, करके हमे दिखाना।। यहॉ मोरध्वज का राज्य हुआ, विक्रम की वाणी पड़ी सुनाई, ताम्रध्वज के शासन ने यहा नई झलक दिखलाई। मोरध्वज ने अपने जीवन में सत्य धर्म अपनाया।। विक्रम ने भी यहॉ से जा उज्जेन में राज्य बनाया। उन विक्रम के नव-रत्न आज भी करता याद जमाना।। यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। चौसठ खम्ब विंध्यवासिनी का है मंदिर अति भारी फाटक पर बलदाऊ जी की मूरत वहुत प्यारी। भूतेश्वर का घाट मनोहर,है तोरन दरवाजा।। नदी बागो की शोभा न्यारी,जहाॅ मन्जह सकल समाजा।। ताम्रध्वज का किला मनोहर, जहॉ शिव सहस्त्र अस्थाना। यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। जब तुम्बन के आस - पास कही पक्के भवन नही थे। बडे़ प्रेम से हम दृढ भवनो में रहते थे।। बने हुये थे चोका चारो, होज भवन अति सुन्दर, रहता था भण्डार कला का हरदम, इसके अंदर। बुद्धि कला कौशल का इसमें भरा हुआ था खजाना। । यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। विप्र वंश के वेद मंत्र यहॉ गूंजे सबके कानो में। शिव लिंगों के ढे़र रहे त्रिवेणी के मैदानों में घाट वाट चौपाल बने खंधक है भारी। इन्द्र भवन सौ सजी सभी चौपाले सारी।। गन्धर्व सेन को तन भस्म भयो तब नगरी धूल समाना। । यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना। है लाखा बंजारे की बाखर की ताजी गाथा। बैठा देव ने किया नगरी का अब भी ऊचॉ माथा।। सुना रहे है अब रो-रोकर यह सांची सांची गाथा। सब नगरिन से यह नगरी का है, आज भी ऊचॉ माथा।। है देवी दरवार महा तुम दर्शन,,करने आना। यह तुम्बन नगरी मिश्र, इसका इतिहास पुराना।। आनंदपुर "श्री आनंदपुर साहिब", एक शानदार धार्मिक स्थान है, जिला मुख्यालय अशोकनगर से लगभग 30 किमी दूर ईसागर तहसील का हिस्सा है। संस्था "एडवाट मेट" से प्रभावित होती है इस संस्था का संस्थापक श्री एडवाट औरंद जी था। उन्हें महाराज परमहंस दयाल जी के नाम से भी जाना जाता है। जगह अच्छी तरह से हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता से घिरी हुई है। आश्रम "विंध्याचल पर्वत" की सीमाओं के पास स्थित है और यह अपनी शानदार इमारत और प्रदूषण मुक्त वातावरण के आकर्षण का केंद्र है। अनदपुर का विकास 1 9 3 9 में वापस शुरू हुआ और 1 9 64 तक जारी रहा। यह संस्थान 22 अप्रैल, 1 9 54 को "श्री आनंदपुर ट्रस्ट" के रूप में स्थापित किया गया। इसके अधिकांश विकास "श्री चौथे" और "श्री पांचवां पदशै" के दौरान हुए। "श्री आनंद शांति भवन स्मारक का मुख्य भाग शुद्ध सफेद संगमरमर से बनाया गया है। इस स्तंभ को इस स्थान से दूर देखा जा सकता है।" सत्संग भवन "स्मारक का एक बड़ा और आकर्षक स्थान है। यह आकर्षण का केन्द्र है भक्तों के लिए यह जगह शरद ऋतु के मौसम में देखने के लिए एक सुंदरता है जब बगीचे में रंगीन फूलों से भरा होता है। बाकी का घर पर्यटकों के लिए उपलब्ध है जो दूर क्षेत्र से यहां आते हैं। अस्पताल, स्कूल, डाकघर आदि की सुविधा है। प्रसिद्ध टीवी शो "कुच से लॉग कांगेज" की प्रसिद्धि में क्रितिका कामरा इस जगह के हैं। ISSAGARH अशोकनगर तहसील का एक छोटा गांव कडवेया में कई मंदिर हैं। इन मंदिरों में से एक का निर्माण 10 वीं शताब्दी में वास्तुकला की कच्छापघता शैली में किया गया है। इसकी गर्भ-ग्रिह (गर्भगृह), अंतराल और मंडपा है इस मंदिर में 1067 और 1105 ई। के कुछ तीर्थ यात्रियों का रिकॉर्ड है। कडवेया का एक और दिलचस्प लेकिन पुराना मंदिर चन्दल गणित के रूप में जाना जाता है। गांव में एक बर्बाद मठ है, एक बहुत पुराना रिकॉर्ड से उठाया गया था जिसमें कहा गया है कि मस्ताधीश का निर्माण करने के लिए बनाया गया था शैवा पंथ के कुछ सदस्यों को Matta Mourya के रूप में जाना जाता है अकबर के शासनकाल के दौरान कदवेया ग्वालियर के आगरा के सुबा के सरकार में एक महालय का मुख्यालय था। थुबोनजी सिधाधा केेत्रा यहां तीर्थयात्रियों को शांति, अहिंसा और अस्वाभाविक मस्तिष्क की मालिश प्रदान करने वाले 26 बहुत खूबसूरत मंदिरों का एक समूह है। इस पवित्र स्थान थुवनजी को प्रसिद्ध व्यापारी श्री पददाह की अवधि के दौरान ज्ञान में आया था। यह कहा जाता है कि श्री पददाह धातु टिन में काम कर रहा था और जब उसने अपनी धातु टिन डाल दिया, तो इसे चांदी में बदल दिया गया था। इतने सारे चमत्कारी और आकर्षक मूर्तियों के साथ 26 खूबसूरत और विशाल मंदिरों का एक समूह है। मंदिर नं। 15 उनमें से मुख्य हैं, यहां पर बड़े मंदिर के रूप में जाना जाता है, भगवान आसिनाथ के 28 फीट ऊंचे अदभुत महाकाव्य के साथ, पवित्रा पद में स्थित, विक्रम संवत 1672 में स्थापित किया गया है। Atishay: यह कहा जाता है कि रात में कई संगीत वाद्यों की आवाज सुनाई देती है क्योंकि स्वर्ग के देवता प्रार्थना और पूजा के लिए यहां आते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस उच्च संवहनी को पूरा करने के बाद, बहुत से भक्त इस स्थिति में खड़े होने में इसे स्थापित करने में असमर्थ थे, उस रात समारोह के प्रमुख ने एक सपना देखा और अगली सुबह उन्होंने सपने से कोलोसस की पूजा की और फिर अकेले रखा उच्च राजकुमार खड़े सार्वजनिक उपस्थित ने चमत्कार के साथ इस चमत्कार को देखा मंदिर: भगवान पार्श्वनाथ जैन मंदिर - सिर पर एक बहुत ही कलात्मक सर्प हुड के साथ 1864 में वीएस 1864 में स्थापित भगवान पार्श्वनाथ (23 वें तेरथंकर) का एक शानदार 15 फीट ऊंचा कोलोसस है। यह हुड एक खूबसूरत ढंग से अलग-अलग सांपों द्वारा किया जाता है और बृहस्पति के दोनों तरफ में देखा जा सकता है। भगवान शांतीनाथ जैन मंदिर: भगवान शांतीनाथ (16 वीं तीर्थंकर) के 18 फीट ऊंचे खड़े आसन। अजीतनाथ जैन मंदिर (द्वितीय तीर्थंकर) Adinath जैन: मंदिर एक शानदार और विशाल भगवान Adinath के 16 फीट ऊंचा colossus के साथ विशाल है यह 1873 में वी.एस.

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अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं। .

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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ का भवन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये कार्यरत प्रमुख संस्था है। यह उत्तर प्रदेश शासन के भाषा विभाग के अधीन है। अन्य कार्यक्रमों के अलावा हिन्दी के प्रचार प्रसार हेतु विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिये साहित्यकारों को यह कई पुरस्कार भी प्रदान करती है। प्रदेश का मुख्य मन्त्री इसका पदेन अध्यक्ष होता है। वही कार्यकारी अध्यक्ष व निदेशक की नियुक्ति करता है। .

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गणेश शंकर विद्यार्थी, गणेशशंकर 'विद्यार्थी'

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