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खत्री

सूची खत्री

खत्री (Khatri) भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तरी भाग में बसने वाली एक जाति है। मूल रूप से खत्री पंजाब (विशेषकर वो हिस्सा जो अब पाकिस्तानी पंजाब है) से हुआ करते थे लेकिन वह अब राजस्थान, जम्मू व कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरयाणा, बलोचिस्तान, सिंध और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा के इलाक़ों में भी पाए जाते हैं। दिल्ली के पंजाबी लोगों में इनकी आबादी पर्याप्त हैं। इनका मुख्य पेशा व्यापार है और ऐतिहासिक तौर पर अफगानिस्तान और मध्य एशिया के रास्ते भारतीय उपमहाद्वीप पर होने वाला व्यापार इनके हाथ था। कई खत्री क्षत्रिय होने का दावा करते हैं। खत्री अन्य जाति अरोड़ा के साथ पंजाब की दो मुख्य जाति है जो हिन्दू हैं। कई ने सिख और इस्लाम को अपना लिया है। मुसलमान हो गए खत्री खोजा नाम से प्रसिद्ध है। ऐतिहासिक रूप से सभी सिख धर्म के गुरु खत्री थे।, Robert Vane Russell, Forgotten Books, ISBN 978-1-4400-4893-7,...

16 संबंधों: टंडन, दीवान सावन मल चोपड़ा, बेरी, मल्होत्रा, मोहम्मद ग़ोरी, साहनी, सियाल, सुनार, खन्ना, गुजराल, आचार्य रामचंद्र वर्मा, कपूर (उपनाम), कलवार, क्षेत्री, अफगानिस्तान में हिन्दू धर्म, अरोड़ा

टंडन

टंडन खत्री गोत्र/उपजाति है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:-.

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दीवान सावन मल चोपड़ा

दीवान सावन मल चोपड़ा मुल्तान और लाहौर के खत्री दीवान थे। सावन मल भी हरि सिंह नलवा की तरह ही रणजीत सिंह के सेना के उच्च स्तरीय सेनानायक थे। वे मूलतः गुजरांवाला के निवासी थे। श्रेणी:सिख सेनानायक.

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बेरी

बेरी निम्न में से एक हो सकता है: .

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मल्होत्रा

मल्होत्रा या मेहयोत्रा खत्री गोत्र/उपजाति है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:-.

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मोहम्मद ग़ोरी

सोहावा झेलम, पाकिस्तान में मोहम्मद ग़ौरी का मकबरा शहाब-उद-दीन मुहम्मद ग़ोरी १२वीं शताब्दी का अफ़ग़ान सेनापति था जो १२०२ ई. में ग़ोरी साम्राज्य का शासक बना। सेनापति की क्षमता में उसने अपने भाई ग़ियास-उद-दीन ग़ोरी (जो उस समय सुल्तान था) के लिए भारतीय उपमहाद्वीप पर ग़ोरी साम्राज्य का बहुत विस्तार किया और उसका पहला आक्रमण मुल्तान (११७५ ई.) पर था। पाटन (गुजरात) के शासक भीम द्वितीय पर मोहम्मद ग़ौरी ने ११७८ ई. में आक्रमण किया किन्तु मोहम्मद ग़ौरी बुरी तरह पराजित हुआ। मोहम्मद ग़ोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच तराईन के मैदान में दो युद्ध हुए। ११९१ ई. में हुए तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई किन्तु अगले ही वर्ष ११९२ ई. में पृथ्वीराज चौहान को तराईन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद ग़ोरी ने बुरी तरह पराजित किया। मोहम्मद ग़ोरी ने चंदावर के युद्ध (११९४ ई.) में दिल्ली के गहड़वाल वंश के शासक जयचंद को पराजित किया। मोहम्मद ग़ौरी ने भारत में विजित साम्राज्य का अपने सेनापतियों को सौप दिया और वह गज़नी चला गया। बाद में गोरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम राजवंश की नीव डाली। .

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साहनी

साहनी खत्री गोत्र है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:-.

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सियाल

सियाल (Sial) पंजाब, सिंध और कुछ हद तक बलोचिस्तान में बसने वाली एक जाति है। सियाल मुस्लिम, सिख और हिन्दू तीनों धार्मिक समुदायों में मिलते हैं। भिन्न सियाल परिवार स्वयं को जाट, राजपूत या खत्री श्रेणियों में डालते हैं।, B.S. Nijjar, Atlantic Publishers & Dist, 2007, ISBN 978-81-269-0908-7,...

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सुनार

कटक के सुनार (सन १८७३) सुनार (वैकल्पिक सोनार या स्वर्णकार) भारत और नेपाल के स्वर्णकार समाज से सम्बन्धित जाति है जिनका मुख्य व्यवसाय स्वर्ण धातु से भाँति-भाँति के कलात्मक आभूषण बनाना, खेती करना तथा सात प्रकार के शुद्ध व्यापार करना है। यद्यपि यह समाज मुख्य रूप से हिन्दू को मानने वाला है लेकिन इस जाति का एक विशेष कुलपूजा स्थान है। सुनार अपने पूर्वजों के धार्मिक स्थान की कुलपूजा करते है। यह जाति हिन्दूस्तान की मूलनिवासी जाति है। मूलत: ये सभी क्षत्रिय वर्ण में आते हैं इसलिये ये क्षत्रिय सुनार भी कहलाते हैं। आज भी यह समाज इस जाति को क्षत्रिय सुनार कहने में गर्व महसूस करता हैं। .

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खन्ना

खन्ना खत्री का गोत्र/उपजाति है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:-.

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गुजराल

गुजराल भारतीय पंजाबी उपनाम है। यह उपनाम खत्री में पाया जाता है हालांकि अपवाद मौजूद है। इस उपनाम वाले कुछ उल्लेखनीय लोग:-.

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आचार्य रामचंद्र वर्मा

आचार्य रामचंद्र वर्मा (1890-1969 ई.) हिन्दी के साहित्यकार एवं कोशकार रहे हैं। हिन्दी शब्दसागर के सम्पादकमण्डल के प्रमुख सदस्य थे। आपने आचार्य किशोरीदास वाजपेयी के साथ मिलकर 'अच्छी हिन्दी' का आन्दोलन चलाया। आपके समय में हिन्दी का मानकीकरण हुआ। .

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कपूर (उपनाम)

कपूर पंजाबी खत्री उपजाति या गोत्र है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:- .

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कलवार

उत्तर-पश्चिमी भारत (18 9 6) के जनजातियों और जातियों में विलियम क्रूक बताते हैं कि कलवार बियांया (व्यापारी) या वैसी वर्ग से संबंधित अन्य समान जातियां हैं, जो व्यापारियों और व्यापारियों के तीसरे सबसे ऊंचे वर्ग हिंदू समाज के परंपरागत चार गुना विभाजन इसके अलावा, बनीया और कलावार के बीच एक मामूली भौतिक समानता का पता लगाया जा सकता है। तथ्य यह है कि कलवार में से कुछ जैन धर्म के अनुयायी हैं - एक धर्म है, जो मुख्यतः बानिया का पालन करता है, इस सिद्धांत को जोड़ता है। कलार समुदाय को विभिन्न नामों के तहत पूरे भारत में वितरित किया जाता है: उत्तर प्रदेश में कलार / जायसवाल, बिहार में कलौवार और उड़ीसा और महाराष्ट्र में जैन काल या ददसेना। भाषाई तीन उप विभाजन, अर्थात्, तेलगु, मराठी और हिंदी महाराष्ट्र में पाए जाते हैं। छत्तीसगढ़ी कलावार या कालार, सेहोर और कालल नामक कलावार पारंपरिक रूप से शराब के व्यापारियों और शराब के व्यापारी हैं। वे उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल, साथ ही साथ मध्य प्रदेश के सभी राज्यों में फैले हुए हैं। एम.के.गंधी ने कलार समुदाय से अपने पारंपरिक व्यवसाय को छोड़ने का अनुरोध किया। अधिकांश कलर्स ने अपनी याचिका का पालन किया और शराब व्यापार छोड़ दिया। यद्यपि इस समुदाय को उनके पैतृक व्यवसाय के लिए जाना जाता है, लेकिन उनके पास गैर-पीने वालों की प्रतिष्ठा है समुदाय का नाम संस्कृत शब्द कल्यापाला से लिया गया है, जिसका मतलब है शराब के डिस्टिलर; प्राचीन काल से जब तक ब्रिटिश काल तक कलावार मुख्य रूप से छोटे पॉट-स्टिल में किण्वित शराब बनाने में लगे थे। सर डेनज़ेल इबेट्सन ने उन्हें "एंटरप्राइज़, ऊर्जा और आचरण के लिए कुख्यात" के रूप में वर्णित किया। ब्रिटिश शासन के दौरान विशिष्ट सर्कल या क्षेत्रों में निर्माण और बेचने का अधिकार सालाना जिला मुख्यालयों में नीलामी और कलवार ने इकट्ठा किया था। यह यहां था कि उनकी दृढ़ता के उदाहरणों को अक्सर देखा जा सकता है; एक कलावार शराब बनानेवाला एक लाइसेंस को मुनाफे से अधिक तक बोली लगाएगा, जिसे वह इसके बारे में महसूस करने की उम्मीद कर सकता है, बल्कि वह खुद को वहीं से वंचित रखने की अनुमति देता है जो वह बनाए रखने की इच्छा रखता था। कलाल अर्थात्‌ शराब बनाने एवं बेचनेवाले। इनको कल्यपाल और कलवार भी कहा जाता है। इस प्रकार का व्यापार करनेवालों की प्राचीन काल में कोई विशेष जाति नहीं थी। वह समाज कर्मसिद्धांत पर आधारित था। किंतु कालांतर में जन्मना सिद्धांत के जोर पकड़ने के कारण एवं श्रमणों का भी भारतीय समाज पर प्रभाव होने के कारण क्रमश इनका भी एक वर्ग बना । परिणामस्वरूप इस बिरादरी के कई विचारकों ने इससे त्राण पाने के हेतु प्रयास किया। क्षत्रिय होना सम्मानित समझा जाता था। फलत: कलवारों के इतिहास की खोज की जाने लगी और बिरादरी सभा उसके 'हैहय क्षत्रिय' होने के निष्कर्ष पर पहुँची। अत: उस सभा ने कलालों को क्षत्रिय घोषित किया। कलालों को प्राचीन काल में 'शौंडिक' कहते थे। शैंडिक शुंडिक से बना है। शुंडिक मद्य चुआने के शुंडाकृतिक भबके को कहते हैं और भबके (घड़े) से मद्य चुआनवाले व्यक्ति को शौंडिक। शौंडिक के रूप में इनका उल्लेख रामायण, महाभारत, स्मृतियों, धर्मशास्त्रों और पुराणों आदि में हुआ है। 'शूँडी', कलालों की एक उपजाति का नाम भी है। पाणिनि ने शौंडिक नामक आय का उल्लेख किया है। मद्य विभाग से प्राप्त आय का यह नाम था। कौटिलीय अर्थशास्त्र में उल्लेख है कि इस प्रकार का व्यापार करनेवाले व्यक्तियों को लाइसेंस दिया जाता था और उनसे दैवसिकमत्ययम्‌ (लाइसेंस फ़ीस) लिया जाता था। मोनियर विलियम्स ने अपनी 'ए संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी' में शौंडिकों को संकर वर्ण कहा है। उन्होंने लिखा है कुछ लोगों के मतानुसार वे कैवर्त पिता और गांधिक माता की संतान थे; दूसरों के अनुसार वे निष्ठय पिता और शुद्रा माँ की संतान थे। मनुस्मृति उनका उल्लेख जातियों (संकर) में करती है, किंतु महामहोपाध्याय डॉ॰ गंगानाथ झा ने मनुस्मृति पर टिप्पणी लिखते हुए शौंडिकों को 'द्विज' कहा है। व्यावसायिक लाभ के लिए अनेक जाति के लोगों ने इस पेशे को स्वीकार किया होगा, क्योंकि कलालों में चालीस उपजातियाँ हैं; संभवत: इन्हीं-किन्हीं कारणों से पुरानी परिभाषा में इसको संकर कहा गया। सत्य क्या है, यह तो कहा नहीं जा सकता क्योंकि यह तो एक व्यवसाय का जिसकों लाभ की दृष्टि से संपूर्ण देश में किया जाता था। किंतु डॉ॰ मोनियर विलियम्स का यह कहना कि वे निष्ठय पिता और शूद्रा माँ की संतान थे, ठीक नहीं लगता। वैश्य भी 'द्विज' कहे गए हैं। पर, चूँकि वे शराब बनाने और बेचने का व्यवसाय करते थे, कालांतर में, श्रेमणविचारधारा से अनुप्राणित होने के कारण समाज की दृष्टि में वे हेय और अस्पृश्य समझे जाने लगे। शिक्षा दीक्षा से उनका संबंध टूट चला था। परिणामस्वरूप आज भी, कई राज्यों में उनको 'पिछड़े वर्ग' में गिना जाता है। .

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क्षेत्री

क्षेत्री या छेत्री नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले योद्धा वर्ण के मुल निवासी हैं, इन्हें पहाड़ी राजपुत, खस राजपुत, नेपाली या गोर्खाली क्षत्रिय भी कहाँ जाता है। ये एक हिन्द-आर्य भाषिक जाति हैं। क्षेत्री या छेत्री या क्षथरीय सब क्षत्रिय के अपभ्रंश हैं और ये हिन्दू वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत क्षत्रिय वर्ण में आते हैं। ये लोग मूल रूप से सैनिक, राजा और प्रशासनिक क्षेत्र में काफी आगे हैं। ये बाहुन (खस ब्राह्मण) और खस दलित के जैसे खस समुदाय के एक विभाजन हैं। क्षेत्री नेपाल के कुल जनसंख्या में सर्वाधिक १६.६% हैं। इस जाति को नेपाल में सत्तारुढ माना जाता है। इन लोगों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न इतिहासकार और खोजकर्ता जेसै कि डोरबहादुर विष्ट और सूर्यमणि अधिकारी, आदि के अनुसार नेपाल के पश्चिमी पहाड़ी इलाका कर्णाली प्रदेश में हुआ था। इस जाति के पूर्वज पूर्वी इरानी भाषिक खस जाति हैं जो बाह्लिक-गान्धार क्षेत्रमें पाए जाते थे। आज ये नेपाल के सभी क्षेत्रों और भारत के कुछ क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं। ये लोग पूर्णत: हिन्दु होते हैं और स्थानिय मष्टो देवता की पुजा करते हैं। इस पुजा को मष्ट पुजा या देवाली कहते हैं। इन का मातृभाषा नेपाली भाषा है और ये इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार के सदस्य हैं। नेपाल के खस राजवंश, खप्तड राजवंश, सिंजा राजवंश, थापा वंश, बस्नेत, कुँवर और पाँडे वंश, दरबारिया समुह और नेपाल के पिछले समय के क्रुर शासक राणा वंश भी क्षेत्री(छेत्री) जाति में आते हैं। क्षेत्री (छेत्री) अधिकतर नेपाल सरकार और नेपाली सेना के उच्च पद पर कार्यरत पाए जाते हैं। इन के लिए भारतिय सेना में एक सैनिक दस्ता ९वीं गोरखा रेजिमेन्त आरक्षित है। .

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अफगानिस्तान में हिन्दू धर्म

एक मुखी लिंग (शिव लिंग के साथ एक मुख), अफगानिस्तान काबुल संग्रहालय मूर्ति अफगानिस्तान में हिन्दू धर्म  का अनुसरण करने वाले बहुत कम लोग हैं। इनकी संख्या कोई 1,000 अनुमानित है। ये लोग अधिकतर काबुल एवं अफगानिस्तान के अन्य प्रमुख नगरों में रहते हैं।, by Tony Cross.

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अरोड़ा

अरोड़ा (पंजाबी: ਅਰੋੜਾ) या अरोरा पंजाब मूल का समुदाय/जाति है। अधिकांश अरोड़ा हिन्दू है और खत्री के साथ वह पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तानी पंजाब) के मुख्य हिन्दू समूह है। इनका मुख्य पेशा व्यापार हुआ करता था और दक्षिणी-पश्चिम पंजाब के सराइकी भाषी समाज में इनका काफी प्रभाव था। चेनाब के आसपास बसे अरोड़ा की जीविका कृषि पर आधारित थी। हालांकि अरोड़ा एक उच्च जाति है लेकिन उसे खत्री से नीचा माना जाता है। दोनों समुदाय एक दूसरे के काफी निकट हैं और दोनों समुदायों के बीच शादियां भी अब होती हैं। अरोड़ा का भाटिया और सूद से भी करीब का रिश्ता है। 1947 में भारत के विभाजन तथा इसकी आज़ादी से पहले अरोड़ा समुदाय मुख्य रूप से पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) में सिन्धु नदी तथा इसकी सहायक नदियों के तटों; उत्तर-पश्चिम के सीमावर्ती राज्यों (एनडब्ल्यूएफपी) सहित भारतीय पंजाब के मालवा क्षेत्र; सिंध क्षेत्र में (मुख्य रूप से सिन्धी अरोड़ा पर पंजाबी तथा मुल्तानी बोलने वाले अरोड़ा समुदाय भी हैं); राजस्थान में (जोधपुरी तथा नागौरी अरोड़ा/खत्रियों के रूप में); तथा गुजरात में बसा हुआ था। पंजाब के उत्तरी पोटोहर तथा माझा क्षेत्रों में खत्रियों की संख्या अधिक थी। भारत में आजादी तथा विभाजन के बाद, अरोड़ा मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, जम्मू, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गुजरात तथा देश के अन्य भागों में रहते हैं। विभाजन के बाद, अरोड़ा भारत और पाकिस्तान के कई हिस्सों के साथ पूरी दुनिया में चले गए। .

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निवर्तमानआने वाली
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