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खगोल शास्त्र

सूची खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

289 संबंधों: चमक, चार्ल्स मैसेन, चंद्र कक्षा, चेस्टर स्मिथ लीमन, ट्रैपिस्ट-१, ऍडविन हबल, एन. जी. सी., ऐन्डर्स सेल्सियस, डार्क मैटर, डिजिटल कैमरा, डेमी क्रिट्स, डॅल्टा वलोरम तारा, तनु पद्मनाभन, तमारा एलिजाबेथ, तारा सूचीपत्र, तारामंडल, ताराघर, तारों की श्रेणियाँ, त्रिकोणमिति के उपयोग, तेजस्विता, थेल्स, द प्लैनेटरी सोसाइटी, द बिग बैंग थीअरी, दानव तारा, दिगंश, दिक्पात, दूरदर्शी, दोहरा तारा, दीर्घवृत्त कक्षा, धधकी तारा, धनु ए*, धातु हाइड्रोजन, धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९, नन्हा चाँद, नासा/आईपैक ग़ैर-गैलेक्सीय कोष, निष्कासित ग्रह, निहारिका, नौवां ग्रह, नेचर (पत्रिका), नीला दानव तारा, परमेश्वर (गणितज्ञ), परगैलेक्सीय खगोलिकी, पियेर सिमों लाप्लास, पंचांग, प्रतिलोम समस्या, प्रतिगामी चाल, प्रबोध चन्द्र सेनगुप्त, प्रभु लाल भटनागर, प्रहार क्रेटर, प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, ..., प्रियंवदा नटराजन, प्रकाश प्रदूषण, प्रकाश गूंज, प्रकाशानुपात, पृथ्वी त्रिज्या, पेरिस वेधशाला, फलित ज्योतिष, फ़्रेड हॉयल, फ्रैंक एल्मोर रॉस, बहिर्ग्रह, बहिर्ग्रह ज्ञानकोश, बहिर्ग्रह खोज की विधियाँ, बहु तारा, बापूदेव शास्त्री, बिबकोड, बख्शाली पाण्डुलिपि, ब्रह्माण्डविद्या, ब्लैक होल (काला छिद्र), बृहत्संहिता, बृहस्पति (ग्रह), बेज रंग, भट्टोत्पल, भारत, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारत का इतिहास, भारतीय ताराभौतिकी संस्थान, भारतीय ज्योतिष, भारतीय खगोलिकी, भारतीय गणित, भारतीय इतिहास की समयरेखा, भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय अंक प्रणाली, भास्कर प्रथम, भास्कराचार्य, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, भौतिकी की शब्दावली, भूगणित, भूगोल की रूपरेखा, मन्दाकिनी, महानोवा, महाभारत, महाभास्करीय, महावृत्त, मापन, मार्क शोवाल्टर, मंगल ग्रह, मेसोअमेरिकी, मेघनाद साहा, मॅसिये ७४, यर्कीज़ वेधशाला, यिर्मयाह होरोक्स, युति-वियुति, युद्ध और शान्ति, युग (बुनियादी तिथि), युग (खगोलशास्त्र), यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला, रबीन्द्रनाथ ठाकुर, रामन अनुसन्धान संस्थान, राष्ट्रीय रेडियो खगोल भौतिकी केन्द्र, रिक्ति (खगोलशास्त्र), रंग सूचक, रेडियल वेग, रेडियो खगोलशास्त्र, रोश सीमा, लाल दानव तारा, लाल बौना, लियोनार्ड ओइलर, लघुगणक, लीलावती, लीलावती (बहुविकल्पी), शिशुग्रह, शिवानन्द गोस्वामी, शकट चक्र गैलेक्सी, श्रीपति, शैक्षणिक विषयों की सूची, शून्य, शेरलॉक होम्स, सत्यजित राय, सफ़ेद बौना, सर्गी ब्रिन, सिद्धान्त शिरोमणि, सिद्धान्त ज्योतिष, सिद्धांत (थिअरी), सिम्बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका में अमेरिकी मूल-निवासी, संस्कृत साहित्य, संक्रमण (खगोलशास्त्र), सक्रीय गैलेक्सीय नाभिक, सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर, स्थिति कोण, स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री, स्पेक्ट्रोस्कोपी, स्वर्गपक्षी तारामंडल, सौर द्रव्यमान, सौर ज्योति, सौर अर्धव्यास, सैमुअल हेनरिक श्वाबे, सूर्य नारायण व्यास, सूर्य केंद्रीय सिद्धांत, सूर्यपथ, सेयफ़र्ट गैलेक्सी, हलाकु ख़ान, हान राजवंश, हार्लो शापले, हाईपेशिया, हीन ग्रह परिपत्र, हीन ग्रह केन्द्र, जन्तर मन्तर (जयपुर), जय सिंह द्वितीय, जयन्त विष्णु नार्लीकर, ज़ेटा ओरायोनिस तारा, जिओवानी स्क्यापारेल्ली, जगन्नाथ सम्राट, जुनापाणी के शिलावर्त, ज्यामिति का इतिहास, ज्योतिष, ज्वारबंधन, ज्वारभाटा बल, जूलियन दिन, जोसेफ लुई लाग्रांज, घूर्णन अक्ष, वटेश्वर, वटेश्वर-सिद्धान्त, वर्णक्रममापी, वाल्मीकि रामायण, वासयोग्य क्षेत्र, विलियम हेनरी पिकरिंग, विलियम क्रेबट्री, विल्किनसन सूक्ष्मतरंग शोधयान, विशेष चाल, विषुव (खगोलीय निर्देशांक), विष्णुधर्मोत्तर पुराण, विज्ञान, वुल्फ़-रायेट तारा, व्यावहारिक गणित, वृत्ताकार कक्षा, वृहद भारत, वैदिक ज्योतिष, वैज्ञानिक क्रांति, वेदांग, वेदी तारामंडल, वेस्टो मेल्विन स्लिफर, खण्डखाद्यक, खान अकादमी, खगोल विज्ञानी, खगोलभौतिक फौवारा, खगोलभौतिकी, खगोलमिति, खगोलयात्री, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, खगोलिकी का इतिहास, खगोलज्ञ, खगोलजीव विज्ञान, खगोलीय निर्देशांक पद्धति, खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण, खगोलीय मध्य रेखा, खगोलीय मैग्निट्यूड, खगोलीय यांत्रिकी, खगोलीय वस्तु, खगोलीय गोला, खोया हीन ग्रह, गणित, गणित का इतिहास, गणित का कालक्रम, गामा वलोरम तारा, गामा कैसिओपिये तारा, गियोवन्नी डोमेनिको कैसिनी, ग्रहलाघव, ग्रहीय मण्डल, गैलेक्सियों के रेशे, गैलीलियो गैलिली, गूगल स्काई, गेक्रक्स तारा, गोरख प्रसाद, गोल्डीलॉक्स, गोलीय त्रिकोणमिति, गोलीय ज्यामिति, गोलीय खगोलशास्त्र, ओलम्पस मोन्स, आँत्वाँ लाव्वाज़्ये, आणविक बादल, आदिरूप, आपेक्षिकता सिद्धांत, आर्यभट, आर्यभट्ट की संख्यापद्धति, आर्यभटीय, आर्काइव लेखकोष, आर्किमिडिज़, आर्किमिडीज़, आल्मेरिया प्रान्त, आइज़क न्यूटन, इथाका घाटी (टॅथिस), इब्न रश्द, कमलाकर, करणकौतूहल, करणकौस्तुभ, कार्दाशेव मापनी, कार्ल फ्रेडरिक गाउस, कार्ल सेगन, काला बौना, कक्षा (भौतिकी), कक्षीय झुकाव, कक्षीय राशियाँ, क्रिश्चियन हाइगेन्स, क्लाइड टॉमबॉ, कृत्तिका तारागुच्छ, कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन, केप्लर के ग्रहीय गति के नियम, केप्लर-452, केरलीय गणित सम्प्रदाय, केल्विन, कॅप्लर-१६बी, कॅक वेधशाला, कोण, कोणीय दूरी, अधोरक्त खगोलशास्त्र, अन्तरिक्ष, अनेग्जीमेण्डर, अफ़्रीका, अभिवृद्धि चक्र, अयन (खगोलविज्ञान), अल बेरुनी, अंतरतारकीय बादल, अंतरिक्ष विज्ञान, अंतरिक्ष अन्वेषण, अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ, अंगिरस तारा, अंक विद्या, अक्षीय झुकाव, उत्सर्जन वर्णक्रम, उपमन्द कोणांक, उपग्रही छल्ला, १०१९९ करिक्लो, २०००० वरुण, ९०३७७ सेडना, D-श्रेणी क्षुद्रग्रह, M-श्रेणी क्षुद्रग्रह, ROOT (सॉफ्टवेयर) सूचकांक विस्तार (239 अधिक) »

चमक

चमक, चमकीलापन या रोशनपन दृश्य बोध का एक पहलु है जिसमें प्रकाश किसी स्रोत से उभरता हुआ या प्रतिबिंबित होता हुआ लगता है। दुसरे शब्दों में चमक वह बोध है जो किसी देखी गई वस्तु की प्रकाश प्रबलता से होता है। चमक कोई कड़े तरीके से माप सकने वाली चीज़ नहीं है और अधिकतर व्यक्तिगत बोध के बारे में ही प्रयोग होती है। चमक के माप के लिए प्रकाश प्रबलता जैसी अवधारणाओं का प्रयोग होता है। .

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चार्ल्स मैसेन

चार्ल्स मैसन (Charles Mason; अप्रैल 1728. Retrieved 6 July 201525 October 1786) एक अंग्रेज खगोलशास्त्री और सर्वेक्षक थे जिन्हें अठारहवीं सदी के दौरान इंग्लैण्ड में विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने के लिए तथा अमेरिकी इतिहास में "मैसन-डिक्सन रेखा", जो मैरीलैंड और पेंसिल्वेनिया के बीच सीमा का निर्धारण करती रेखा है, के सर्वेक्षण हेतु जाना जाता है। .

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चंद्र कक्षा

खगोल विज्ञान में, चंद्र कक्षा (lunar orbit) को चन्द्रकेन्द्रीय कक्षा के रूप में जाना जाता है। चंद्रमा के चारों ओर एक वस्तु की कक्षा को संदर्भित करता है। श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:अंतरिक्ष.

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चेस्टर स्मिथ लीमन

चेस्टर स्मिथ लीमन (Chester Smith Lyman) (13 जनवरी 1814 - 29 जनवरी 1890), एक अमेरिकी शिक्षक, पादरी और खगोलशास्त्री थे। उन्होंने संयुक्त पारगमन यंत्र तथा शिरोबिंदु दूरबीन, जो हवाई सहित अक्षांश निर्धारण के लिए प्रयुक्त हुआ, का आविष्कार किया था। वें येल वेधशाला के प्रबंधकों के बोर्ड में थे और दिसंबर 1866 में जब ग्रह अवर संयोजन में था उन्होंने पहली बार शुक्र को घेरे हूए फीके छल्ले के प्रकाश को प्रेक्षित किया। इस प्रेक्षण ने ग्रह के चारों ओर वातावरण की उपस्थिति की पुष्टि में मदद की। उन्होंने 1867 में तरंग मशीन के एक डिजाइन का पेटेंट कराया। 1871 में वें एक ही संस्थान में भौतिकी और खगोल विज्ञान के एक प्रोफेसर बन गए, फिर जैसे ही उनका स्वास्थ्य गिरने लगा 1884 में पूरी तरह से खगोल विज्ञान के हो गए। सन् 1889 में वें अवकाश प्राप्त प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए। वें येल वेधशाला के निदेशक बने और अपनी मृत्यु तक इस पद पर रहे। उनकी मृत्यु दौरे से हुई जिसने उन्हे अंतिम दो वर्षों के लिए घर तक सिमित कर दिया था। .

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ट्रैपिस्ट-१

ट्रैपिस्ट-१ (TRAPPIST-1), जिसे 2MASS J23062928-0502285 भी नामांकित करा जाता है, कुम्भ तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक अतिशीतल बौना तारा है जो हमारे सौर मंडल के बृहस्पति ग्रह से ज़रा बड़ा है। यह सूरज से लगभग 39.5 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है। इसके इर्द-गिर्द एक ग्रहीय मंडल है और फ़रवरी 2017 तक इस मंडल में सात स्थलीय ग्रह इस तारे की परिक्रमा करते पाए गए थे जो किसी भी अन्य ज्ञात ग्रहीय मंडल से अधिक हैं। .

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ऍडविन हबल

ऍडविन पावल हबल (अंग्रेज़ी: Edwin Powell Hubble, जन्म: २० नवम्बर १८८९, देहांत: २८ सितम्बर १९५३) एक अमेरिकी खगोलशास्त्री थे जिन्होनें हमारी गैलेक्सी (आकाशगंगा या मिल्की वे) के अलावा अन्य गैलेक्सियाँ खोज कर हमेशा के लिए मानवजाती की ब्रह्माण्ड के बारे में अवधारणा बदल डाली। उन्होंने यह भी खोज निकाला के कोई गैलेक्सी पृथ्वी से जितनी दूर होती है उस से आने वाले प्रकाश का डॉप्लर प्रभाव उतना ही अधिक होता है, यानि उसमे लालिमा अधिक प्रतीत होती है। इस सच्चाई का नाम "हबल सिद्धांत" रखा गया और इसका सीधा अर्थ यह निकला के हमारा ब्रह्माण्ड निरंतर बढ़ती हुई गति से फैल रहा है। .

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एन. जी. सी.

खगोल विज्ञान में एन.

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ऐन्डर्स सेल्सियस

उप्साला, स्वीडन (२७ नवंबर १७०१ – २५ अप्रैल १७४४) एक स्वीडिश खगोलज्ञ थे। ये उप्साला विश्वविद्यालय, स्वीडन में १७३०-१७४४ तक प्रोफेसर रहे और १७३२ से १७३५ तक जर्मनी, इटली एवं फ्रांस की उल्लेखानीय वेधशालाओं की यात्राएं कीं। इन्होंने ही १७४१ में उप्साला विश्वविद्यालय वेधशाला की स्थापना की। १७४२ में इन्होंने सेल्सियस तापमान स्केल प्रस्तावित किया। इस स्केल को बाद में कार्ल लीनियस ने १७४५ में इसे बदल दिया। .

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डार्क मैटर

खगोलशास्त्र तथा ब्रह्माण्ड विज्ञान में आन्ध्र पदार्थ या डार्क मैटर (dark matter) एक,प्रायोगिक आधार पर अप्रमाणित परंतु गणितीय आधार पर प्रमाणित, पदार्थ है। इसकी विशेषता है कि अन्य पदार्थ अपने द्वारा उत्सर्जित विकिरण से पहचाने जा सकते हैं किन्तु आन्ध्र पदार्थ अपने द्वारा उत्सर्जित विकिरण से पहचाने नहीं जा सकते। इनके अस्तित्व (presence) का अनुमान दृष्यमान पदार्थों पर इनके द्वारा आरोपित गुरुत्वीय प्रभावों से किया जाता है। आन्ध्र पदार्थ के बारे में माना जाता है कि इस ब्रह्मांड का 85 प्रतिशत आन्ध्र पदार्थ का ही बना है और यूरोप के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उन्होंने आन्ध्र पदार्थ खोज निकाला है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आन्ध्र पदार्थ न्यूट्रालिनॉस नाम के कणों या पार्टिकल से बना है। इसकी खासियत है कि यह साधारण मैटर से कोई क्रिया नहीं करता। हर सेकंड हमारे शरीर के आर-पार हजारों न्यूट्रालिनॉस गुजरते रहते हैं। वे अदृश्य हैं। इसी वजह से हम अंतरिक्ष में मौजूद आन्ध्र पदार्थ के बादल के दूसरी ओर मौजूद आकाशगंगाओं को देख पाते हैं। पामेला नाम के एक यूरोपियन स्पेस प्रोब ने कुछ ऐसे हाई एनर्जी पार्टिकल खोजे हैं, जो हमारी आकाशगंगा के केंद्र से निकले हैं। उनसे निकलने वाला रेडिएशन ठीक उसी तरह का है, जैसा आन्ध्र पदार्थ के लिए तय किया गया था। इस खोज के डिटेल स्वीडन के स्टॉकहोम में आयोजित एक कॉन्फरन्स में रखे गए। गौरतलब है कि, यूरोप में शुरू हुई महामशीन या लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर के ढेरों मकसदों में से एक आन्ध्र पदार्थ की खोज करना भी है। .

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डिजिटल कैमरा

एक डिजिटल कैमरा (या संक्षेप में - डिजिकैम) एक ऐसा कैमरा है जो डिजिटल रूप में वीडियो या स्टिल फोटोग्राफ या दोनों लेता है और एक इलेक्ट्रॉनिक इमेज सेंसर के माध्यम से चित्रों को रिकॉर्ड कर लेता है। कैनन पॉवरशॉट A95 Canon PowerShot A95 के सामने और पीछे का हिस्सा. कई कॉम्पैक्ट डिजिटल स्टिल कैमरे, ध्वनि और मूविंग वीडियो के साथ-साथ स्टिल फोटोग्राफ को भी रिकॉर्ड कर सकते हैं। पश्चिमी बाजार में, डिजिटल कैमरों के 35 mm फ़िल्म काउंटरपार्ट की ज्यादा बिक्री होती है। डिजिटल कैमरे, वे सभी काम कर सकते हैं जो फ़िल्म कैमरे नहीं कर पाते हैं: रिकॉर्ड करने के तुरंत बाद स्क्रीन पर इमेजों को प्रदर्शित करना, एक छोटे-से मेमोरी उपकरण में हज़ारों चित्रों का भंडारण करना, ध्वनि के साथ वीडियो की रिकॉर्डिंग करना और संग्रहण स्थान को खाली करने के लिए चित्रों को मिटा देना.

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डेमी क्रिट्स

डेमी क्रिट्स यूनान के दार्शनिक थे। ये आण्विक तथ्य के जन्मदाता थे। इन्होंने पदार्थ के गठन के सम्बन्ध में खोज किया। .

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डॅल्टा वलोरम तारा

पाल तारामंडल की एक तस्वीर जिसमें डॅल्टा वलोरम "δ" के चिह्न वाला दाएँ नीचे की तरफ़ स्थित तारा है डॅल्टा वलोरम, जिसके बायर नामांकन में भी यही नाम (δ Vel या δ Velorum) दर्ज है, आकाश में पाल तारामंडल में स्थित एक तारों का मंडल है जिसमें दो द्वितारे दिखाई दिए हैं। इसका सब से रोशन तारा "डॅल्टा वलोरम ए" +२.०३ मैग्निट्यूड की चमक (सापेक्ष कांतिमान) रखता है और पृथ्वी के आकाश में दिखने वाले तारों में से ४९वाँ सब से रोशन तारा है। अगर डॅल्टा वलोरम के सभी तारों को इकठ्ठा देखा जाए तो इनकी मिली-जुली चमक १.९५ मैग्निट्यूड है। ध्यान रहे के खगोलीय मैग्निट्यूड एक विपरीत माप है और यह जितना कम हो चमक उतनी ही ज़्यादा होती है। यह तारे पृथ्वी से लगभग ७९.७ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर हैं। .

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तनु पद्मनाभन

'तनु पद्मनाभन' भारत के प्रसिद्ध खगोल भौतिक वैज्ञानिक हैं। उनका जन्म १० मार्च १९५७ को तिरुवनन्तपुरम मे हुआ था। 2011 में आप आयुका मे वैज्ञानिक के तौर पर कार्यरत हैं। गुरुत्वाकर्षण और क्वांटम सिद्धांत के क्षेत्र में आपका योगदान उल्लेखनीय है। .

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तमारा एलिजाबेथ

तमारा एलिजाबेथ जर्निगन एक अमेरिकी वैज्ञानिक और नासा की अंतरिक्ष यात्री हैं जिन्हें पांच शटल मिशनों का अनुभव हैं। उनका जन्म ७ मई १९५९ को चट्टानूगा, टेनेसी में हुआ था। उन्होंने १९७७ में स्कूल की शिक्षा पूरी की सांता फे स्प्रिंग्स से, उन्होंने भौतिकी में डिग्री १९८१ में और एम.एस.

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तारा सूचीपत्र

तारा सूचीपत्र (star catalogue), एक खगोलीय सूचीपत्र है जो तारे सूचीबद्ध करता है। खगोल विज्ञान में अनेकों तारे सूचीपत्र संख्या द्वारा बस ऐसे ही उल्लेखित हुए है। पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए बहुत सारे अलग अलग तारा सूचीपत्र बनाए गए है। तारा सूचीपत्र बेबिलोनियाई, यूनानी, चीनी, फारसी और अरब सहित कई अलग अलग प्राचीन लोगों द्वारा संकलित हुए थे। अधिकांश आधुनिक सूचीपत्र इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में उपलब्ध हैं और मुक्त रूप से नासा के खगोलीय डाटा केंद्र से डाउनलोड किया जा सकता है। श्रेणी:खगोलशास्त्र.

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तारामंडल

मृगशीर्ष या ओरायन (शिकारी तारामंडल) एक जाना-माना तारामंडल है - पीली धारी के अन्दर के क्षेत्र को ओरायन क्षेत्र बोलते हैं और उसके अंदर वाली हरी आकृति ओरायन की आकृति है खगोलशास्त्र में तारामंडल आकाश में दिखने वाले तारों के किसी समूह को कहते हैं। इतिहास में विभिन्न सभ्यताओं नें आकाश में तारों के बीच में कल्पित रेखाएँ खींचकर कुछ आकृतियाँ प्रतीत की हैं जिन्हें उन्होंने नाम दे दिए। मसलन प्राचीन भारत में एक मृगशीर्ष नाम का तारामंडल बताया गया है, जिसे यूनानी सभ्यता में ओरायन कहते हैं, जिसका अर्थ "शिकारी" है। प्राचीन भारत में तारामंडलों को नक्षत्र कहा जाता था। आधुनिक काल के खगोलशास्त्र में तारामंडल उन्ही तारों के समूहों को कहा जाता है जिन समूहों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ में सहमति हो। आधुनिक युग में किसी तारों के तारामंडल के इर्द-गिर्द के क्षेत्र को भी उसी तारामंडल का नाम दे दिया जाता है। इस प्रकार पूरे खगोलीय गोले को अलग-अलग तारामंडलों में विभाजित कर दिया गया है। अगर यह बताना हो कि कोई खगोलीय वस्तु रात्री में आकाश में कहाँ मिलेगी तो यह बताया जाता है कि वह किस तारामंडल में स्थित है।, Neil F. Comins, pp.

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ताराघर

---- नेहरू ताराघर, मुंबई ताराघर (अंग्रेज़ी में प्लेनेटेरियम) या तारामण्डल या नक्षत्रालय एक ऐसा भवन होता है जहाँ खगोलिकी व नाइट स्काई विषयक ज्ञानवर्धक व मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं। ताराघर की पहचान अक्सर उसकी विशाल गुंबदनुमा प्रोजेक्शन स्क्रीन होती है। भारत में ३० ताराघर हैं। इनमें से चार, जो क्रमशः मुंबई, नई दिल्ली, बंगलौर व इलाहाबाद में स्थित हैं, जवाहरलाल नेहरू के नाम से जाने जाते हैं। चार ताराघर बिड़ला घराने द्वारा पोषित हैं जो कोलकाता, चैन्नई, हैदराबाद व जयपुर में हैं। सितंबर १९६२ में प्रारंभ कोलकाता स्थित एम पी बिड़ला ताराघर देश का पहला ताराघर है। .

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तारों की श्रेणियाँ

अभिजीत (वेगा) एक A श्रेणी का तारा है जो सफ़ेद या सफ़ेद-नीले लगते हैं - उसके दाएँ पर हमारा सूरज है जो G श्रेणी का पीला या पीला-नारंगी लगने वाला तारा है खगोलशास्त्र में तारों की श्रेणियाँ उनसे आने वाली रोशनी के वर्णक्रम (स्पॅकट्रम) के आधार पर किया जाता है। इस वर्णक्रम से यह ज़ाहिर हो जाता है कि तारे का तापमान क्या है और उसके अन्दर कौन से रासायनिक तत्व मौजूद हैं। अधिकतर तारों कि वर्णक्रम पर आधारित श्रेणियों को अंग्रेज़ी के O, B, A, F, G, K और M अक्षर नाम के रूप में दिए गए हैं-.

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त्रिकोणमिति के उपयोग

त्रिकोणमिति के हजारों उपयोग होते हैं। पाठ्यपुस्तकों में भूमि सर्वेक्षण, जहाजरानी, भवन आदि का ही प्राय: उल्लेख किया गया होता है। इसके अलावा यह गणित, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि शैक्षिक क्षेत्रों में भी प्रयुक्त होता है। .

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तेजस्विता

खगोलशास्त्र में तेजस्विता (luminosity) किसी तारे, गैलेक्सी या अन्य खगोलीय वस्तु द्वारा किसी समय की ईकाई में प्रसारित होने वाली ऊर्जा की मात्रा होती है। यह चमक (brightness) से सम्बन्धित है जो वस्तु की वर्णक्रम के किसी भाग में मापी गई तेजस्विता को कहते हैं। अन्तरराष्ट्रीय मात्रक प्रणाली में तेजस्विता को जूल प्रति सकैंड या वॉट में मापा जाता है। अक्सर इसे हमारे सूरज की तेजस्विता की तुलना में मापा जाता है, जिसका कुल ऊर्जा उत्पादन है। सौर ज्योति (सौर तेजस्विता) का चिन्ह L⊙ है। .

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थेल्स

थेल्स यूनान का महान दार्शनिक थे। इनको ज्यामिति का जनक कहा जाता है। इन्होंने गणितीय भूगोल में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उस समय के सात यूनानी भौतिक विज्ञानिको में थेल्स का प्रथम स्थान था और "आयोनिक स्कुल ऑफ फिलासफी " से सम्बंधित था.इन्होने मिस्र और सहलग्न देशो की यात्रा की ।.मिस्र के ज्यामिति से परिचित थे और इसी के आधार पर उसने दो स्थान के बिच दूरी को नापे थे । इन्होने नील नदी की उत्पति,कटाव और डेल्टा प्रदेश का भी विवरण दिया है ।इन्होने पृथ्वी के आकृति को गुम्बदकार बताया और उसकी स्थिति ब्रह्माण्ड के बिच में बताई थी । इन्होने पृथवी को पाँच जलवायु में बटा था ।उस समय पृथ्वी के बहुत छोटे से भू -भाग का ही ज्ञान यूनानियो को था । श्रेणी:भूगोलवेत्ता श्रेणी:यूनानी भूगोलवेत्ता श्रेणी:यूनान के दार्शनिक.

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द प्लैनेटरी सोसाइटी

द प्लैनेटरी सोसाइटी (The Planetary Society, अर्थ: ग्रहीय समिति) एक अमेरिकी, ग़ैर-सरकारी, ग़ैर-मुनाफ़ाकारी संस्था है जिसका सदस्य कोई भी बन सकता है। यह खगोलशास्त्र, ग्रहीय विज्ञान, और खोज, और इन से सम्बन्धित जन-शिक्षा और राजनैतिक पक्ष-पैरवी के कामों में जुटी हुई है। इसकी स्थापना सन् १९८० में कार्ल सेगन, ब्रूस मर्रे और लुइस फ़्रीडमन ने की थी और सन् २०१५ में इसके १०० देशों से ४०,००० सदस्य थे। द प्लैनेटरी सोसाइटी का लक्ष्य सौर मंडल में खोजकार्य, पृथ्वी-समीप वस्तुओं की खोज व छानबीन और ग़ैर-सांसारिक जीवों की खोज है। .

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द बिग बैंग थीअरी

बिग बैंग थीअरी एक अमेरिकी स्थितिपरक प्रहसन है, जिसका सृजन और कार्यकारी निर्माण चक लोर्री और बिल प्रैडी ने किया और जिसका प्रथम प्रदर्शन CBS पर 24 सितंबर 2007 को किया गया। पासाडेना, कैलिफ़ोर्निया में दृश्यबंध यह शो, बीस वर्षीय कैलटेक के दो प्रतिभाशाली पुरुषों पर केन्द्रित है, जिनमें एक प्रयोगात्मक भौतिक विज्ञानी (लीओनार्ड) और दूसरा सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी (शेल्डन) है, जो हॉल के दूसरी ओर रहने वाली मनोरंजन-व्यवसाय से जुड़ने का अरमान लिए एक आकर्षक सुनहरे बालों वाली वेट्रेस (पेन्नी) के क़रीब रहते हैं। लियोनार्ड और शेल्डन के नीरसपन और बौद्धिकता को, हास्यामय प्रभाव उत्पन्न करने के लिए पेन्नी की सामाजिक कुशलता और सामान्य बोध के विपरीत दिखाया गया है। उनके जैसे ही उनके दो और बेकार मित्र, हॉवर्ड और राजेश भी मुख्य किरदारों में शामिल हैं। शो का निर्माण वार्नर ब्रदर टेलीविज़न और चक लोर्री प्रोडक्शन द्वारा किया गया है। मार्च 2009 में ऐसी सूचना थी कि द बिग बैंग थीअरी को CBS ने तीसरे और चौथे सीज़न के लिए नवीकृत किया है। अगस्त 2009 में इस स्थितिपरक प्रहसन ने सर्वोत्कृष्ट प्रहसन श्रृंखला TCA पुरस्कार प्राप्त किया और जिम पार्सन को हास्य में व्यक्तिगत उपलब्धि के लिए पुरस्कृत किया गया। द बिग बैंग थीअरी का प्रसारण सोमवार 9:30 EST बजे होता है, जिससे पहले चक लोर्री द्वारा ही निर्मित दूसरे शो टू एंड ए हाफ़ मेन का प्रसारण होता है। .

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दानव तारा

एक लाल दानव तारे और सूरज के अंदरूनी ढाँचे की तुलना खगोलशास्त्र में दानव तारा ऐसे तारे को बोलते हैं जिसका आकार और चमक दोनों उस से बढ़ के हो जो उसकी सतह के तापमान के आधार पर मुख्य अनुक्रम के किसी तारे के होते। ऐसे तारे आम तौर पर सूरज से १० से १०० गुना व्यास (डायामीटर) में बड़े होते हैं और चमक में १० से १००० गुना ज़्यादा रोशन होते हैं। अपने तापमान के हिसाब से ऐसे दानव तारे कई रंगों में मिलते हैं - लाल, नारंगी, नीले, सफ़ेद, वग़ैराह। महादानव तारे और परमदानव तारे इन दानव तारों से भी बड़े और अधिक रोशन होते हैं। .

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दिगंश

किसी वस्तु का दिगंश (ऐज़िमुथ) दर्शक से मानक दिशा और दर्शक से उस वस्तु की दो रेखाओं के बीच का कोण (ऐंगल) होता है - इस चित्र में मानक दिशा उत्तर (N) है और जिस वस्तु का दिगंश बताया जा रहा है वह एक तारा है दिगंश या ऐज़िमुथ (azimuth) किसी गोलीय निर्देशांक प्रणाली (spherical coordinate system) में एक विशेष कोण (ऐंगल) के माप का नाम है। उदाहरण के लिए, अगर धरती पर खड़े किसी दर्शक के लिए किसी तारे का दिगंश मापना हो तो खगोलीय निर्देशांक पद्धति के अनुसार यह किया जा सकता है। इसमें दर्शक को खगोलीय गोले के उत्तरी ध्रुव से जोड़ने वाली काल्पनिक रेखा मानक दिशा होती है। दर्शक का चारों ओर का क्षितिज एक समतल होता है, जिसमें यह मानक दिशा की रेखा भी विद्यमान होती है। दर्शक को तारे से जोड़ने वाली एक अन्य रेखा को लम्ब (परपेंडिक्युलर) के प्रयोग से इस समतल पर उतारा जाने से दर्शक और समतल पर उस तारे के नीचे वाले बिंदु के बीच एक दूसरी रेखा बनती है। इस रेखा और मानक दिशा की रखा के बीच का कोण ही दिगंश कहलाता है।, Kenneth Y. Jo, pp.

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दिक्पात

250px खगोलशास्त्र में, दिक्पात (अंग्रेज़ी: डेक्लिनेशन, लघुरूप. dec या δ) भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली के दो निर्देशांकों में से एक होता है। दूसरा निर्देशांक दायां आरोहण या घंटा कोण होता है। झुकाव की तुलना अक्षांश से की जा सकती है। इसका मापन डिग्री उत्तर या दक्षिण में किया जाता है। खगोलीय भूमध्य रेखा के उत्तर के बिन्दु घनात्मक झुकाव व उसके दक्षिण वाले बिन्दु ऋणात्मक झुकाव पर होते हैं।.

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दूरदर्शी

न्यूटनीय दूरदर्शी का आरेख दूरदर्शी वह प्रकाशीय उपकरण है जिसका प्रयोग दूर स्थित वस्तुओं को देख्नने के लिये किया जाता है। दूरदर्शी से सामान्यत: लोग प्रकाशीय दूरदर्शी का अर्थ ग्रहण करते हैं, परन्तु दूरदर्शी विद्युतचुंबकीय वर्णक्रम के अन्य भागों मै भी काम करता है जैसे X-रे दूरदर्शी जो कि X-रे के प्रति संवेदनशील होता है, रेडियो दूरदर्शी जो कि अधिक तरंगदैर्घ्य की विद्युत चुंबकीय तरंगे ग्रहण करता है। दूरदर्शी साधारणतया उस प्रकाशीय तंत्र (optical system) को कहते हैं जिससे देखने पर दूर की वस्तुएँ बड़े आकार की और स्पष्ट दिखाई देती हैं, अथवा जिसकी सहायता से दूरवर्ती वस्तुओं के साधारण और वर्णक्रमचित्र (spectrograms) प्राप्त किए जाते हैं। दूरवर्ती वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आजकल रेडियो तरंगों का भी उपयोग किया जाने लगा है। इस प्रकार का यंत्र रेडियो दूरदर्शी (radio telescope) कहलाता है। बोलचाल की भाषा में दूरदर्शी को दूरबीन भी कहते हैं। दूरबीन के आविष्कार ने मनुष्य की सीमित दृष्टि को अत्यधिक विस्तृत बना दिया है। ज्योतिर्विद के लिए दूरदर्शी की उपलब्धि अंधे व्यक्ति को मिली आँखों के सदृश वरदान सिद्ध हुई है। इसकी सहायता से उसने विश्व के उन रहस्यमय ज्योतिष्पिंडों तक का साक्षात्कार किया है जिन्हें हम सर्पिल नीहारिकाएँ (spiral nebulae) कहते हैं। ये नीहारिकाएँ हमसे करोड़ों प्रकाशवर्ष की दूरी पर हैं। आधुनिक ज्योतिर्विज्ञान (astronomy) और ताराभौतिकी (astrophysics) के विकास में दूरदर्शी का महत्वपूर्ण योग है। दूरदर्शी ने एक ओर जहाँ मनुष्य की दृष्टि को विस्तृत बनाया है, वहाँ दूसरी ओर उसने मानव को उन भौतिक तथ्यों और नियमों को समझने में सहायता भी दी है जो भौतिक विश्व के गत्यात्मक संतुलन (dynamic equilibirium) के आधार हैं। .

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दोहरा तारा

खगोलशास्त्र में दोहरा तारा दो तारों का ऐसा जोड़ा होता है जो पृथ्वी से दूरबीन के ज़रिये देखे जाने पर एक-दुसरे के समीप नज़र आते हैं। ऐसा दो कारणों से हो सकता है -.

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दीर्घवृत्त कक्षा

खगोलशास्त्र में दीर्घवृत्त कक्षा (elliptic orbit) एक ऐसी केप्लर कक्षा होती है जिसकी कक्षीय विकेन्द्रता १ से कम है। वृत्ताकार कक्षा इसमें शामिल है, क्योंकि वह एक विशेष प्रकार का दीर्घवृत्त आकार है। .

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धधकी तारा

धधकी तारा (flare star) ऐसा परिवर्ती तारा होता है जो कभी-कभी बिना चेतावनी के अचानक कुछ मिनटों के लिये अपनी चमक को साधारण से बहुत अधिक बढ़ा दे। खगोलशास्त्रियों का अनुमान है कि यह प्रक्रिया हमारे सूरज के सौर प्रज्वालों के समान है और उन तारों के वायुमण्डल में एकत्रित चुम्बकीय ऊर्जा के कारण होती है। स्पेक्ट्रोस्कोपी जाँच से पता चला है कि चमक की यह बढ़ौतरी रेडियो तरंगों से लेकर एक्स रे तक पूरे वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में देखी जा सकती है। सबसे पहले ज्ञात धधकी तारे वी१३९६ सिगनाए (V1396 Cygni) और एटी माइक्रोस्कोपाए (AT Microscopii) थे जिनकी खोज सन् १९२४ में हुई। सबसे अधिक पहचाने जाना वाला धधकी तारा यूवी सेटाए (UV Ceti) है, जो १९४८ में मिला था। अधिकतर धधकी तारे कम चमक वाले लाल बौने होते हैं हालांकि हाल में हुए अनुसन्धान में संकेत मिला है कि कम द्रव्यमान (मास) वाले भूरे बौने भी धधकने में सक्षम हो सकते हैं। कुछ दानव तारे भी धधकते हुए मिले हैं लेकिन यह उनके द्वितारा मंडल में होने से उनके साथी तारे के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षक खींचाव के कारण हुआ समझा जाता है। इसके अलावा सूरज से मिलते-जुलते ९ तारों में भी धधकन देखी गई है, जिसके बारे में खगोलशास्त्री समझते हैं कि यह उनके इर्द-गिर्द बृहस्पति जैसे भीमकाय ग्रह की बहुत ही समीपी कक्षा में उपस्थिति की वजह से है। .

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धनु ए*

धनु ए* (Sagittarius A, Sgr A) हमारी गैलेक्सी, क्षीरमार्ग के केन्द्र में स्थित एक संकुचित और शक्तिशाली रेडियो स्रोत है। यह धनु ए नामक एक बड़े क्षेत्र का भाग है और आकाश के खगोलीय गोले में धनु तारामंडल में वॄश्चिक तारामंडल की सीमा के पास स्थित है। बहुत से खगोलशास्त्रियों के अनुसार यह एक विशालकाय काला छिद्र है। माना जाता है कि अधिकांश सर्पिल और अंडाकार गैलेक्सियों के केन्द्र में ऐसा एक भीमकाय कालाछिद्र स्थित होता है। धनु ए* और पृथ्वी के बीच खगोलीय धूल के कई बादल हैं जिस कारणवश घनु ए* को प्रत्यक्ष वर्णक्रम में नहीं देखा जा सका है। फिर भी धनु ए* की तेज़ी से परिक्रमा कर रहे ऍस२ (S2) तारे के अध्ययन से धनु ए* के बारे में जानकारी मिल सकी है और उसके आधार पर धनु ए* का विशालकाय कालाछिद्र होने का भरोसा बहुत बढ़ गया है। धनु ए* हमारे सौर मंडल से २६,००० प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित है। .

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धातु हाइड्रोजन

बृहस्पति जैसे कुछ गैस दानव ग्रहों के केन्द्रों में धातु हाइड्रोजन है धातु हाइड्रोजन (metallic hydrogen) हाइड्रोजन की ऐसी अवस्था को कहते हैं जब वह भयंकर दबाव में कुचली जाकर अवस्था परिवर्तन (phase transition) करके विकृत हो जाए।, Gabor Kalman, J. Martin Rommel, Krastan Blagoev, Kastan Blagoev, Springer, 1998, ISBN 978-0-306-46031-9,...

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धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९

हबल अंतरिक्ष दूरबीन से १७ मई १९९४ को शूमेकर-लेवी ९ के २१ टुकड़ों की तस्वीर बृहस्पति ग्रह के दक्षिणी गोलार्ध पर कुछ टकराव स्थलों पर धब्बे धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९ (Comet Shoemaker–Levy 9), जिसका औपचारिक नाम डी/१९९३ ऍफ़२ (D/1993 F2) था, एक धूमकेतु (कोमॅट) था जो जुलाई १९९४ में बृहस्पति ग्रह से टकराकर ध्वस्त हो गया। हमारे सौर मंडल में यह पृथ्वी से असंबंधित खगोलीय वस्तुओं की सबसे पहली देखी गई टक्कर थी, जिस वजह से इसपर समाचारों में भारी चर्चा हुई। दुनिया-भर के खगोलशास्त्रियों ने टकराव से पहले इस धूमकेतु पर नज़रें गाढ़ लीं। टकराव से बृहस्पति के बारे में और उसके अंदरूनी सौर मंडल से मलबा हटाने की प्रक्रियाओं पर और जानकारी मिली। शूमेकर-लेवी ९ की खोज तीन अमेरिकी खगोलशास्त्रियों ने की थी - कैरोलाइन और यूजीन शूमेकर (Caroline और Eugene Shoemaker) तथा डेविड लेवी (David Levy)। उन्होने २४ मार्च १९९३ को इसकी बृहस्पति की परिक्रमा करते हुए तस्वीर उतारी। यह किसी ग्रह की परिक्रमा करते हुआ पहला ज्ञात धूमकेतु था और समझा जाता है कि बृहस्पति ने इसे अपने गुरुत्वाकर्षण से २०-३० साल पहले पकड़ लिया था। हिसाब लगाने पर पता चला कि इसका टूटा-सा स्वरूप इसके जुलाई १९९२ में बृहस्पति के अधिक पास आने से हुए था। उस समय शूमेकर-लेवी ९ की कक्षा (ऑर्बिट) बृहस्पति की रोश सीमा के भीतर आ जाने से बृहस्पति के ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ दिया था। बाद में इसे २ किमी तक के व्यास (डायामीटर) वाले टुकड़ों में देखा गया। यह टुकड़े १९९४ में १६ जुलाई से २२ जुलाई तक बृहस्पति के दक्षिणी गोलार्ध (हेमिसफ़्येर​) से ६० किमी प्रति सैकिंड (यानि २,१६,००० किमी प्रति घंटे) की गति से टकराकर ध्वस्त हो गए। इनसे बृहस्पति के वायुमंडल में गहरी ख़रोंचे बन गई जो महीनो तक दिखाई देती रहीं। पृथ्वी से यह बृहस्पति के महान लाल धब्बे (Great Red Spot) से भी स्पष्ट दिखाई देती थी।, Kenneth R. Lang, Cambridge University Press, 2003, ISBN 978-0-521-81306-8,...

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नन्हा चाँद

शनि के एक उपग्रही छल्ले (उपग्रही छल्ला ए) में मौजूद एक ४०० मीटर का "एअरहार्ट" नाम का नन्हा चाँद खगोलशास्त्र में नन्हा चाँद (अंग्रेज़ी: moonlet, मूनलॅट) किसी बहुत ही छोटे प्राकृतिक उपग्रह को अनौपचारिक रूप से बुलाया जाता है। इस नाम का प्रयोग ख़ासकर दो जगहों पर अधिक होता है -.

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नासा/आईपैक ग़ैर-गैलेक्सीय कोष

नासा/आईपैक ग़ैर-गैलेक्सीय कोष (NASA/IPAC Extragalactic Database) इंटरनेट पर उपलब्ध एक खगोलशास्त्रीय कोष है जिसमें हमारी गैलेक्सी आकाशगंगा से बाहर स्थित खगोलीय वस्तुओं की जानकारी संचय की गई है। इन वस्तुओं में गैलेक्सियाँ, क्वेज़ार, एक्स-किरणों और अवरक्त-किरणों (इन्फ़्रारेड) के स्रोत, इत्यादि शामिल हैं। इसे १९८० के दशक में कैलिफ़ोर्निया के दो खगोलशास्त्रियों - जॉर्ज हेलू और बैरी मैडोर - ने स्थापित किया था और इसे चलाने का ख़र्च अमेरिकी अन्तरिक्ष अनुसन्धान प्राधिकरण नासा से आता है। जून २०१२ तक इस कोष में १७ करोड़ खगोलीय वस्तुओं पर जानकारी एकत्रित की गई जा चुकी थी, जिसमें भिन्न स्रोतों और प्रणालियों से मिली जानकारी और माप में तालमेल किया गया था। इसमें कई तरंगदैर्घ्य (वेवलेंथ) के प्रयोग से १८.२ करोड़ कड़ियाँ जोड़ी जा चुकी थीं। .

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निष्कासित ग्रह

एक कलाकार की कल्पना जिसमें बुध ग्रह की आकार का निष्कासित ग्रह। निष्कासित ग्रह या दुष्ट ग्रह (Rogue Planet) जिन्हें लावारिस ग्रह या अनाथ ग्रह भी कहा जाता है, ऐसे ग्रह के आकार की वस्तुएँ होती हैं जो अपने सौर मंडल से बाहर निकलकर अब किसी भी तारे या अन्य चीज़ के गुरुत्वाकर्षण से परे हैं और अब सीधा आकाशगंगा की परिक्रामा करती हैं। कुछ खगोल-वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि बुध से दोगुने आकार के इतने निष्कासित ग्रह हैं जितने ब्रह्मांड में तारें है। .

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निहारिका

चील नॅब्युला का वह भाग जिसे "सृजन के स्तम्भ" कहा जाता है क्योंकि यहाँ बहुत से तारे जन्म ले रहे हैं। त्रिकोणीय उत्सर्जन गैरेन नीहारिका (द ट्रेंगुलम एमीशन गैरन नॅब्युला) ''NGC 604'' नासा द्वारा जारी क्रैब नॅब्युला (कर्कट नीहारिका) वीडियो निहारिका या नॅब्युला अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे अंतरतारकीय बादल को कहते हैं जिसमें धूल, हाइड्रोजन गैस, हीलियम गैस और अन्य आयनीकृत (आयोनाइज़्ड) प्लाज़्मा गैसे उपस्थित हों। पुराने जमाने में "निहारिका" खगोल में दिखने वाली किसी भी विस्तृत वस्तु को कहते थे। आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) से परे कि किसी भी गैलेक्सी को नीहारिका ही कहा जाता था। बाद में जब एडविन हबल के अनुसन्धान से यह ज्ञात हुआ कि यह गैलेक्सियाँ हैं, तो नाम बदल दिए गए। उदाहरण के लिए एंड्रोमेडा गैलेक्सी (देवयानी मन्दाकिनी) को पहले एण्ड्रोमेडा नॅब्युला के नाम से जाना जाता था। नीहारिकाओं में अक्सर तारे और ग्रहीय मण्डल जन्म लेते हैं, जैसे कि चील नीहारिका में देखा गया है। यह नीहारिका नासा द्वारा खींचे गए "पिलर्स ऑफ़ क्रियेशन" अर्थात् "सृष्टि के स्तम्भ" नामक अति-प्रसिद्ध चित्र में दर्शाई गई है। इन क्षेत्रों में गैस, धूल और अन्य सामग्री की संरचनाएं परस्पर "एक साथ जुड़कर" बड़े ढेरों की रचना करती हैं, जो अन्य पदार्थों को आकर्षित करता है एवं क्रमशः सितारों का गठन करने योग्य पर्याप्त बड़ा आकार ले लेता हैं। माना जाता है कि शेष सामग्री ग्रहों एवं ग्रह प्रणाली की अन्य वस्तुओं का गठन करती है। .

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नौवां ग्रह

नौवां ग्रह (Planet Nine) एक सम्भावित ग्रह है जो शायद हमारे सौर मंडल के बाहरी भाग में काइपर घेरे से भी आगे स्थित हो। कई खगोलशास्त्रियों ने कुछ वरुण-पार वस्तुओं की विचित्र कक्षाओं (अरबिटों) का अध्ययन कर के यह प्रस्ताव दिया है कि इन कक्षाओं के पीछे सूरज से सुदूर क्षेत्र में परिक्रमा करते हुए एक बड़े आकार के ग्रह का गुरुत्वाकर्षक प्रभाव ही हो सकता है। उनका कहना है कि यह एक महापृथ्वी श्रेणी का ग्रह होगा और इसका द्रव्यमान (मास) हमारी पृथ्वी से लगभग १० गुना अधिक हो सकता है। इसके पास हाइड्रोजन और हीलियम का बना एक घना वायुमंडल हो सकता है और सम्भव है कि यह इतना दूर हो कि इसे सूरज की एक परिक्रमा करने के लिये १५,००० से २०,००० वर्ष लग जाएँ। .

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नेचर (पत्रिका)

नेचर - यह ब्रिटिश की एक प्रमुख वैज्ञानिक पत्रिका है जो पहली बार 4 नवम्बर 1869 को प्रकाशित की गयी थी। दुनिया की अंतर्विषय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में इस पत्रिका का उल्लेख सबसे उच्च स्थान पर किया जाता है। अब तो अधिकांश वैज्ञानिक पत्रिकाएं अति-विशिष्ट हो गयीं हैं और नेचर उन गिनी-चुनी पत्रिकाओं में से है जो आज भी, वैज्ञानिक क्षेत्र की विशाल श्रेणी के मूल अनुसंधान लेख प्रकाशित करती है। वैज्ञानिक अनुसंधान के ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जिनमें किये जाने वाले नए व महत्वपूर्ण विकासों की जानकारी तथा शोध-सम्बन्धी मूल-लेख या पत्र नेचर ' में प्रकाशित किये जाते हैं। हालांकि इस पत्रिका के प्रमुख पाठकगण अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक हैं, पर आम जनता और अन्य क्षेत्र के वैज्ञानिकों को भी अधिकांश महत्वपूर्ण लेखों के सारांश और उप-लेखन आसानी से समझ आते हैं। हर अंक के आरम्भ में सम्पादकीय, वैज्ञानिकों की सामान्य दिलचस्पी वाले मुद्दों पर लेख व समाचार, ताज़ा खबरों सहित विज्ञान-निधिकरण, व्यापार, वैज्ञानिक नैतिकता और अनुसंधानों में हुए नए-नए शोध सम्बन्धी लेख छापे जाते हैं। पुस्तकों और कला सम्बन्धी लेखों के लिए भी अलग-अलग विभाग हैं। पत्रिका के शेष भाग में ज़्यादातर अनुसंधान-सम्बन्धी लेख छापे जाते हैं, जो अक्सर काफ़ी गहरे और तकनीकी होते हैं। चूंकि लेखों की लम्बाई पर एक सीमा निर्धारित है, अतः पत्रिका में अक्सर अनेक लेखों का सारांश ही छापा जाता है और अन्य विवरणों को पत्रिका के वेबसाइट पर supplementary material (पूरक सामग्री) के तहत प्रकाशित किया जाता है। 2007 में, नेचर ' और सायंस ' - दोनों पत्रिकाओं को संचार व मानवता के लिए प्रिंस ऑफ़ अस्तुरियास अवार्ड प्रदान किया गया। .

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नीला दानव तारा

खगोलशास्त्र में नीला दानव (blue giant) ऐसा गरम तारा होता है जो III (दानव तारा) या II (चमकीला दानव तारा) श्रेणी की तेजस्विता रखता है। मानक हर्ट्जस्प्रंग-रसेल आरेख में यह तारे मुख्य अनुक्रम तारों से ऊपर और दाएँ में श्रेणीकृत होते हैं। नीले दानव तारे लाल दानव तारों से कई कम संख्या में पाए जाते हैं क्योंकि यह अधिक भीमकाय तारों से विकसित होते हैं जो कम ही होते हैं और अपने विकास क्रम में नीले दानव वाली स्थिति में कम काल के लिए ही रहते हैं। .

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परमेश्वर (गणितज्ञ)

वतसेरी परमेश्वर नम्बुदिरि (मलयालम: വടശ്ശേരി പരമേശ്വരന്‍) (1380 – 1460 ई) भारत के केरलीय गणित सम्प्रदाय से सम्बन्धित एक महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। .

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परगैलेक्सीय खगोलिकी

परगैलेक्सीय खगोलिकी (Extragalactic astronomy) खगोलशास्त्र की वह शाखा है जिसमें हमारी आकाशगंगा नामक गैलेक्सी से बाहर स्थित खगोलीय वस्तुओं का अध्ययन करा जाता है। .

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पियेर सिमों लाप्लास

पियेर सिमों लाप्लास पियेर सिमों लाप्लास (Pierre Simon Laplace, १७४९ ई. - १८२७ ई.) फ्रांसीसी गणितज्ञ, भौतिकशास्त्री तथा खगोलविद थे। लाप्लास का जन्म २८ मार्च १७४९ ई., को एक दरिद्र किसान के परिवार में हुआ। इनकी शिक्षा धनी पड़ोसियों की सहायता से हुई। .

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पंचांग

अल्फ़ोंसीन तालिकाएँ, जो १३वीं शताब्दी के बाद यूरोप की मानक पंचांग बन गई पंचांग (अंग्रेज़ी: ephemeris) ऐसी तालिका को कहते हैं जो विभिन्न समयों या तिथियों पर आकाश में खगोलीय वस्तुओं की दशा या स्थिति का ब्यौरा दे। खगोलशास्त्र और ज्योतिषी में विभिन्न पंचांगों का प्रयोग होता है। इतिहास में कई संस्कृतियों ने पंचांग बनाई हैं क्योंकि सूरज, चन्द्रमा, तारों, नक्षत्रों और तारामंडलों की दशाओं का उनके धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन में गहरा महत्व होता था। सप्ताहों, महीनों और वर्षों का क्रम भी इन्ही पंचांगों पर आधारित होता था। उदाहरण के लिए रक्षा बंधन का त्यौहार श्रवण के महीने में पूर्णिमा (पूरे चंद की दशा) पर मनाया जाता था।, Sunil Sehgal, pp.

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प्रतिलोम समस्या

right विज्ञान में ऐसी समस्याओं को प्रतिलोम समस्या (inverse problem) कहते हैं जो कुछ प्रेक्षणों की सहायता से उनको (उन आकड़ों को) उत्पन्न करने वाले कारणों की गणना करतीं हैं। उदाहरण के लिये धरती के गुरुत्वीय क्षेत्र के आंकडों के आधार पर धरती के अन्दर विभिन्न बिन्दुओं पर घनत्व निकालना एक प्रतिलोम समस्या है। इनकों प्रतिलोम समस्या इसलिये कहते हैं कि यह परिणामों से शुरू होतीं हैं और 'उल्टा' चलकर उपयुक्त कारण की खोज करतीं हैं जिनसे ऐसे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। अतः यह अनुलोम समस्या (forward problem) का उल्टा है जो कारण से शुरू होकर परिणाम की गणना करती है। प्रतिलोम समस्या की गणना, गणित और विज्ञान की कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्याओं में होती है। ये इसलिये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे उन प्राचलों (पैरामीटर) के बारे में बताने का प्रयास करतीं हैं जिनको सीधे मापा नहीं जा सकता। इनका उपयोग प्रकाशिकी, राडार, ध्वनिकी, संचार सिद्धान्त, संकेत प्रसंस्करण, मेडिकल इमेजिंग, कम्प्यूटर दृष्टि, भूभौतिकी, समुद्रविज्ञान, खगोलिकी, सुदूर संवेदन, मशीन लर्निंग, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, अविनाशी परीक्षण (nondestructive testing) तथा अन्य अनेकानेक क्षेत्रों में किया जाता है। श्रेणी:गणित.

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प्रतिगामी चाल

कक्षा में परिक्रमा कर रहा है प्रतिगामी चाल किसी वस्तु की ऐसी चाल को बोलते हैं जो किसी और वस्तु की चाल के विपरीत हो। इसका प्रयोग भौतिकी (फ़िज़िक्स) और खगोलशास्त्र में अक्सर तब किया जाता है जब किसी घुमते हुए ग्रह के इर्द-गिर्द कोई उपग्रह परिक्रमा कर रहा हो लेकिन उस उपग्रह की परिक्रमा की दिशा ग्रह के घूमने की दिशा से उल्टी हो। .

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प्रबोध चन्द्र सेनगुप्त

प्रबोध चन्द्र सेनगुप्त (1876 – 1962) प्राचीन भारतीय खगोलविज्ञान के इतिहासकार थे। वे कोलकाता के बेथुने कॉलेज में गणित के प्रोफेसर तथा कोलकाता विश्वविद्यालय में भारतीय खगोलिकी एवं गणित के प्रवक्ता थे। .

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प्रभु लाल भटनागर

प्रभुलाल भटनागर, (8 अगस्त, 1912 - 5 अक्टूबर, 1976) विश्वप्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें गणित के लैटिस-बोल्ट्ज़मैन मैथड में प्रयोग किये गए भटनागर-ग्रॉस-क्रूक (बी.जी.के) कोलीज़न मॉडल के लिये जाना जाता है।। इंडियन मैथ सोसायटी। ऑब्सोल्यूट एस्ट्रॉनोमी .

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प्रहार क्रेटर

पृथ्वी के चन्द्रमा की सतह पर स्थित टाएको क्रेटर एक प्रहार क्रेटर है प्रहार क्रेटर वह प्राकृतिक या कृतिम क्रेटर या गोल आकार के गड्ढे होते हैं जो किसी तेज़ रफ़्तार से चलती हुई वस्तु या प्रक्षेप्य (प्रोजॅक्टाइल) के किसी बड़ी वस्तु पर टकराने से बन जाये। खगोलशास्त्र में ऐसे क्रेटर हमारे सौर मण्डल के कई ग्रहों, उपग्रहों और क्षुद्रग्रहों पर उल्कापिंडों के गिरने से बन जाते हैं। मिसाल के तौर पर भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित लोनार झील ऐसे ही एक प्रहार क्रेटर में पानी भर जाने से बनी है। हमारे चन्द्रमा और अन्य ग्रहों और उपग्रहों पर ऐसे कई क्रेटर हैं। इन क्रेटरों का सृजन ज्वालामुखीय क्रेटरों से भिन्न होता है जो किसी ज्वालामुखी के फटने से बन जाते हैं। प्रहार क्रेटरों की दीवारें इर्द-गिर्द की ज़मीन की सतह से ऊंची होती हैं। कुछ प्रहार क्रेटर तो देखने में एक साधारण कटोरी से लगते हैं लेकिन दुसरे क्रेटरों में एक के अन्दर एक संकेंद्रिक (कॉन्सॅन्ट्रिक) गोले बन जाते हैं। .

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प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी

प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये पुरातत्व और प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पडता है। प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधतासम्पन्न है। इसमें धर्म, दर्शन, भाषा, व्याकरण आदि के अतिरिक्त गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, सैन्य विज्ञान आदि भी वर्ण्यविषय रहे हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्राचीन भारत के कुछ योगदान निम्नलिखित हैं-.

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प्रियंवदा नटराजन

प्रियंवदा (प्रिया) नटराजन (Priyamvada (Priya) Natarajan), येल विश्वविद्यालय के खगोल और भौतिकी विभाग में एक प्रोफेसर है। वह श्याम पदार्थ व श्याम ऊर्जा मानचित्रण के अपने काम के लिए, विशेष रूप से गुरुत्वाकर्षक लेंसिंग और विशालकाय ब्लैक होल के संयोजन और अभिवृद्धि इतिहास का वर्णन करने वाले मॉडलों में किए गए अपने काम के लिए विख्यात है। श्रेणी:खगोलशास्त्री.

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प्रकाश प्रदूषण

न्यूयॉर्क शहर का इस समय का दृश्य आकाश-प्रदीप्ति को दिखा रहा है जो प्रकाश प्रदूषण का एक रूप है। एक छोटे से ग्रामीण कस्बे (ऊपर) और एक महानगरीय क्षेत्र (नीचे) से रात्रिकालीन आसमान के दृश्य की तुलना. प्रकाश प्रदूषण सितारों की दृश्यता को बहुत कम कर देता है। प्रकाश प्रदूषण, जिसे अंग्रेज़ी में फोटो पौल्यूशन या लुमिनस पौल्यूशन के रूप में जाना जाता है, अत्यधिक या बाधक कृत्रिम प्रकाश होता है। अंतर्राष्ट्रीय डार्क-स्काई एसोसिएशन (आईडीए (IDA)) प्रकाश प्रदूषण को कुछ इस प्रकार परिभाषित करता है: यह दृष्टिकोण कारण और उसके परिणाम में तथापि भ्रम पैदा कर देता है। प्रदूषण, प्रकाश को खुद शामिल करना होता है, जो शामिल ध्वनी, कार्बन डाइऑक्साइड आदि के सादृश्य है। प्रतिकूल परिणाम कई हैं; उनमें से कुछ के बारे में हो सकता है अभी तक जानकारी नहीं हैं। वैज्ञानिक परिभाषा में इस प्रकार निम्नलिखित शामिल है: ऊपर की तीन वैज्ञानिक परिभाषाओं में पहले दो, पर्यावरण की स्थिति का वर्णन करते हैं। तीसरा (और नवीनतम) प्रकाश द्वारा प्रदूषण फैलाने की प्रक्रिया का वर्णन करता है। प्रकाश प्रदूषण शहर में रहने वाले लोगों के लिए रात्रिकालीन आकाश में सितारों को धुंधला कर देता है, खगोलीय वेधशालाओं के साथ हस्तक्षेप करता है और प्रदूषण के किसी भी अन्य रूप की तरह पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालता है। प्रकाश प्रदूषण को दो मुख्य प्रकार में विभाजित किया जा सकता है: (1) कष्टप्रद प्रकाश जो अन्यथा प्राकृतिक या हल्की प्रकाश व्यवस्था में दखलंदाजी करता है और (2) अत्यधिक प्रकाश (आमतौर पर घर के भीतर) जो बेचैन करता है और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। 1980 के दशक की शुरुआत से, एक वैश्विक डार्क स्काई मूवमेंट (काला आसमान आंदोलन) उभरा है जिसके तहत चिंतित लोग प्रकाश प्रदूषण की मात्रा को कम करने के लिए प्रचार कर रहे हैं। प्रकाश प्रदूषण, औद्योगिक सभ्यता का एक पक्ष प्रभाव है। इसके स्रोतों में शामिल हैं बाहरी निर्माण और आंतरिक प्रकाश, विज्ञापन, वाणिज्यिक संपत्तियां, कार्यालय, कारखाने, पथ-प्रकाश और देदीप्यमान क्रीडा स्थल.

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प्रकाश गूंज

प्रतिबिम्बित प्रकाश मार्ग B लेता हुआ सीधे मार्ग A से बाद में लेकिन मार्ग C लेने वाले प्रकाश से पहले पहुँचता है। पृथ्वी से देखे जाने पर B और C तारे से बराबरी दूरी रखते हैं प्रकाश गूंज एक भौतिक परिघटना है जिसमें प्रकाश अपने स्रोत से दूर किसी सतह या वस्तु से परावर्तित होता है। यह ध्वनि से सम्बन्धित प्रतिध्वनि की परिघटना से मिलता-जुलता प्रभाव है, लेकिन क्योंकि प्रकाश की गति ध्वनि की गति से बहुत अधिक है इसलिए प्रकाश गूंज अधितर खगोलीय दूरियों पर ही प्रतीत होती है। उदाहरण के लिए किसी महानोवा से उत्पन्न होने वाली चमक दूर किसी खगोलीय धूल के बादल से प्रतिबिम्बित हो सकती है। यह प्रकाश गूंज किसी देखने वाले तक स्रोत से सीधा मार्ग लेकर पहुँचने वाले प्रकाश से अधिक देर लेकर पहुँचती है। ज्यामिति के कारण प्रकाश गूंज में प्रकाश से तेज़ गति का भ्रम हो सकता है। .

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प्रकाशानुपात

२००३-२००४ में पृथ्वी के भिन्न क्षेत्रों का औसत ऐल्बीडो - ऊपरी चित्र बिना बादलों के ऐल्बीडो दर्शाता है और निचला चित्र बादलों के साथ अपने ऊपर पड़ने वाले किसी सतह के प्रकाश या अन्य विद्युतचुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) को प्रतिबिंबित करने की शक्ति की माप को प्रकाशानुपात (Albedo / ऐल्बीडो) या धवलता कहते हैं। अगर कोई वस्तु अपने ऊपर पड़ने वाले प्रकाश को पूरी तरह वापस चमका देती है तो उसका ऐल्बीडो १.० या प्रतिशत में १००% कहा जाता है। खगोलशास्त्र में अक्सर खगोलीय वस्तुओं का एल्बीडो जाँचा जाता है। पृथ्वी का ऐल्बीडो ३० से ३५% के बीच में है। पृथ्वी के वायुमंडल के बादल बहुत रोशनी वापस चमका देते हैं। अगर बादल न होते तो पृथ्वी का ऐल्बीडो कम होता। .

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पृथ्वी त्रिज्या

पृथ्वी त्रिज्या (Earth radius) पृथ्वी के केन्द्रीय बिन्दु से पृथ्वी की सतह तक की दूरी है, जो कि लगभग है। यह पृथ्वी ग्रह के गोले की त्रिज्या है। इस संख्या का प्रयोग खगोलशास्त्र और भूविज्ञान में बहुत होता है और इसे द्वारा चिन्हित किया जाता है। .

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पेरिस वेधशाला

पेरिस वेधशाला (फ़्रान्सीसी: Observatoire de Paris, ओब्सेरत्वार दे पारी; अंग्रेज़ी: Paris Observatory) फ़्रान्स की सबसे बड़ी और विश्व के एक प्रसिद्ध खगोलीय वेधशाला है। इसकी ऐतिहासिक इमारत पेरिस में सेन्न नदी के बाएँ किनरे पर स्थित है। .

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फलित ज्योतिष

फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का भी बोध होता है, तथापि साधारण लोग ज्योतिष विद्या से फलित विद्या का अर्थ ही लेते हैं। ग्रहों तथा तारों के रंग भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखलाई पड़ते हैं, अतएव उनसे निकलनेवाली किरणों के भी भिन्न भिन्न प्रभाव हैं। इन्हीं किरणों के प्रभाव का भारत, बैबीलोनिया, खल्डिया, यूनान, मिस्र तथा चीन आदि देशों के विद्वानों ने प्राचीन काल से अध्ययन करके ग्रहों तथा तारों का स्वभाव ज्ञात किया। पृथ्वी सौर मंडल का एक ग्रह है। अतएव इसपर तथा इसके निवासियों पर मुख्यतया सूर्य तथा सौर मंडल के ग्रहों और चंद्रमा का ही विशेष प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी विशेष कक्षा में चलती है जिसे क्रांतिवृत्त कहते हैं। पृथ्वी फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का निवासियों को सूर्य इसी में चलता दिखलाई पड़ता है। इस कक्षा के इर्द गिर्द कुछ तारामंडल हैं, जिन्हें राशियाँ कहते हैं। इनकी संख्या है। मेष राशि का प्रारंभ विषुवत् तथा क्रांतिवृत्त के संपातबिंदु से होता है। अयन की गति के कारण यह बिंदु स्थिर नहीं है। पाश्चात्य ज्योतिष में विषुवत् तथा क्रातिवृत्त के वर्तमान संपात को आरंभबिंदु मानकर, 30-30 अंश की 12 राशियों की कल्पना की जाती है। भारतीय ज्योतिष में सूर्यसिद्धांत आदि ग्रंथों से आनेवाले संपात बिंदु ही मेष आदि की गणना की जाती है। इस प्रकार पाश्चात्य गणनाप्रणाली तथा भारतीय गणनाप्रणाली में लगभग 23 अंशों का अंतर पड़ जाता है। भारतीय प्रणाली निरयण प्रणाली है। फलित के विद्वानों का मत है कि इससे फलित में अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि इस विद्या के लिये विभिन्न देशों के विद्वानों ने ग्रहों तथा तारों के प्रभावों का अध्ययन अपनी अपनी गणनाप्रणाली से किया है। भारत में 12 राशियों के 27 विभाग किए गए हैं, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। ये हैं अश्विनी, भरणी आदि। फल के विचार के लिये चंद्रमा के नक्षत्र का विशेष उपयोग किया जाता है। .

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फ़्रेड हॉयल

सर फ़्रेडेरिक हॉयल (24 जून 1915 - 20 अगस्त 2001) ब्रिटिश खगोलशास्त्री थे जिनके विचार अक्सर मुख्य वैज्ञनिक समुदाय के विपरीत होते थे। इनका काम मुख्यतः ब्रह्माण्डविज्ञान के क्षेत्र में है। इन्होंने तारों के नाभिकों में हो रही नाभिकीय प्रक्रियाओं का अध्ययन किया और पाया कि कार्बन तत्त्व बनने के लिये जिस प्रक्रिया की आवश्यकता होती है उसकी सम्भावना सांख्यिकी के अनुसार बहुत कम है। चूंकि मनुष्य और पृथ्वी पर मौजूद अन्य जीवन कार्बन पर आधारित है, हॉयल का विचार था कि ऐसा सम्भव होना इस बात को इंगित करता है कि पृथ्वी पर जीवन की मौजूदगी में किसी ऊपरी शक्ति का हाथ है। नाभिकीय प्रक्रियाओं पर इनके काम को नोबेल समिति ने अनदेखा कर दिया और 1983 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार इनके सहयोगी विलियम ए फोलर को दिया (सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर के साथ)। फ़्रेड हॉयल ब्रह्माण्ड के जन्म के बिग बैंग सिद्धांत में विश्वास नहीं रखते थे। इनका विचार था कि ब्रह्माण्ड एक स्थिर अवस्था में है। विशाल विस्फोट सिद्धान्त के पक्ष में अधिक प्रमाण इकट्ठा होने पर वैज्ञानिकों ने स्थिर अवस्था को लगभग त्याग दिया है। हॉयल का यह भी विश्वास था कि पृथ्वी पर जीवन धूमकेतुओं के जरिए अन्तरिक्ष से आए विषाणुओं के जरिये शुरु हुआ। वे नहीं मानते थे कि रासायनिक प्रक्रियाओं के जरिए जीवन का प्रारंभ संभव है। इन्होंने विज्ञान कथाएँ भी लिखी हैं जिनमें शामिल है द ब्लैक क्लाउड (The Black Cloud, काला बादल) और ए फ़ॉर एन्ड्रोमीडा (A for Andromeda)। द ब्लैक क्लाउड में ऐसे जीवों का वर्णन है जो तारों के बीच के गैस के बादलों में उत्पन्न होते हैं और विश्वास नहीं कर पाते हैं कि ग्रहों पर भी बुद्धिमान जीव उत्पन्न हो सकते है। श्रेणी:खगोलशास्त्री श्रेणी:वैज्ञानिक श्रेणी:1915 में जन्मे लोग.

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फ्रैंक एल्मोर रॉस

फ्रैंक एल्मोर रॉस (Frank Elmore Ross) (2 अप्रैल 1874 - 21 सितम्बर 1960) एक अमेरिकी खगोलशास्त्री और भौतिक विज्ञानी थे। उनका जन्म सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में और निधन अटलांटा, कैलिफोर्निया में हुआ था। 1901 में उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से अपनी डॉक्टरी की उपाधि प्राप्त की। सन् 1905 में वह अंतर्राष्ट्रीय अक्षांश वेधशाला स्टेशन, गैदर्सबर्ग, मैरीलैंड के निदेशक बने। 1915 में वे रोचेस्टर, न्यूयॉर्क में ईस्टमैन कोडक कंपनी में भौतिक विज्ञानी बन गए। 1924 में उन्होंने यर्कीज़ वेधशाला में एक पद स्वीकार कर लिया और 1939 में अपनी सेवानिवृत्ति तक वहां काम किया। श्रेणी:खगोलशास्त्री श्रेणी:भौतिक विज्ञानी श्रेणी:१८७४ जन्म श्रेणी:१९६० में निधन.

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बहिर्ग्रह

धूल के बादल में फ़ुमलहौत बी ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) बहिर्ग्रह (exoplanet) या ग़ैर-सौरीय ग्रह (extrasolar planet, ऍक्स्ट्रासोलर प्लैनॅट) ऐसे ग्रह को कहा जाता है जो हमारे सौर मण्डल से बाहर स्थित हो। सन् १९९२ तक खगोलशास्त्रियों को एक भी ग़ैर-सौरीय ग्रह के अस्तित्व का ज्ञान नहीं था, लेकिन उसके बाद बहुत से ऐसे ग्रह मिल चुके हैं। २४ मई २०११ तक ५५२ ग़ैर-सौरीय ग्रह ज्ञात हो चुके थे। क्योंकि इनमें से अधिकतर को सीधा देखने के लिए तकनीकें अभी विकसित नहीं हुई हैं, इसलिए सौ प्रतिशत भरोसे से नहीं कहा जा सकता के वास्तव में यह सारे ग्रह मौजूद हैं, लेकिन इनके तारों पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षक प्रभाव और अन्य लक्षणों से वैज्ञानिक इनके अस्तित्व के बारे में विश्वस्त हैं। अनुमान लगाया जाता है के सूरज की श्रेणी के लगभग १०% तारों के इर्द-गिर्द ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं, हालांकि यह संख्या उस से भी अधिक हो सकती है। कॅप्लर अंतरिक्ष क्षोध यान द्वारा एकत्रित जानकारी के बूते पर कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है के आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) में कम-से-कम ५० अरब ग्रहों के होने की सम्भावना है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जनवरी २०१३ में अनुमान लगाया कि आकाशगंगा में इस अनुमान से भी दुगने, यानि १०० अरब, ग्रह हो सकते हैं। .

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बहिर्ग्रह ज्ञानकोश

बहिर्ग्रह ज्ञानकोश (Extrasolar Planets Encyclopaedia) खगोलशास्त्र से सम्बन्धित फ़्रान्स में निर्मित एक जालस्थल (वेबसाइट) है। इसमें वर्तमान समय तक ज्ञात सभी बहिर्ग्रहों (ग़ैर-सौरीय ग्रहों) की सूची रखी जाती है। इसमें हर ऐसे ग्रह पर कुछ सूचना भी रखी जाती है। .

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बहिर्ग्रह खोज की विधियाँ

खगोलिकी में कोई भी ग्रह दूर से देखे जाने पर अपने पितृ तारे (जिसके इर्द-गिर्द वह कक्षा या ऑरबिट में हो) की कांति के सामने लगभग अदृश्य होता है। उदाहरण के लिए हमारा सूर्य हमारे सौर मंडल के किसी भी ग्रह से एक अरब गुना से भी अधिक चमक रखता है। वैसे भी ग्रहों की चमक केवल उनके द्वारा अपने पितृतारे के प्रकाश के प्रतिबिम्ब से ही आती है और पितृग्रह की भयंकर चमके के आगे धुलकर ग़ायब-सी हो जाती है। यही कारण है कि बहुत ही कम मानव-अनवेषित बहिर्ग्रह (यानि हमारे सौर मंडल से बाहर स्थित ग्रह) सीधे उनकी छवि देखे जाने से पाए गए हैं। इसकी बजाय लगभग सभी ज्ञात बहिर्ग्रह परोक्ष विधियों से ढूंढे गए हैं, और खगोलज्ञों ऐसी विधियों का तीव्रता से विस्तार कर रहे हैं।Stuart Shaklan.

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बहु तारा

एच॰डी॰ 188753, जो एक तीन तारों का मंडल है खगोलशास्त्र में बहु तारा दो से अधिक तारों का ऐसा गुट होता है जो पृथ्वी से दूरबीन के ज़रिये देखे जाने पर एक-दूसरे के समीप नज़र आते हैं। ऐसा दो कारणों से हो सकता है -.

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बापूदेव शास्त्री

बापूदेव शास्त्री (हाथ में ग्लोब लिए हुए) वाराणसी के 'क्वींस कॉलेज' में पढ़ाते हुए (१८७०) महामहोपाध्याय पंडित बापूदेव शास्त्री (१ नवम्बर १८२१-१९००) काशी संस्कृत कालेज के ज्योतिष के मुख्य अध्यापक थे। वे प्रथम ब्राह्मण (पण्डित) थे जो भारतीय एवं पाश्चात्य खगोलिकी दोनो के प्रोफेसर बने। ये प्रयाग तथा कलकत्ता विश्वविद्यालयों के परिषद तथा आयरलैंड और ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी के सम्मानित सदस्य थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि मिली थी। .

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बिबकोड

बिबकोड (अंग्रेज़ी: Bibcode) एक अभिज्ञापक (आइडॅन्टिफ़ायर) है जिसका प्रयोग खगोलशास्त्रीय ज्ञानकोशों में खगोलशास्त्र-सम्बन्धी लेखों और अन्य सामग्री की पहचान करने के लिए किया जाता है। इसका आविष्कार सिम्बाद और नासा के कोषों में प्रयोग के लिए हुआ था लेकिन अब इसे अन्य स्थानों पर भी इस्तेमाल किया जाता है। इसमें हर लेख या पुस्तक के लिए एक १९ अक्षरों और अंकों का अभिज्ञापक होता है जिसका रूप इस प्रकार होता है: YYYYJJJJJVVVVMPPPPA। इसमें.

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बख्शाली पाण्डुलिपि

बख्शाली पाण्डुलिपि में प्रयोग किये गये अंक बक्षाली पाण्डुलिपि या बख्शाली पाण्डुलिपि (Bakhshali Manuscript) प्राचीन भारत की गणित से सम्बन्धित पाण्डुलिपि है। यह भोजपत्र पर लिखी है। यह सन् १८८१ में बख्शाली गाँव (तत्कालीन पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त; अब पाकिस्तान में, तक्षशिला से लगभग ७० किमी दूर) में मिली थी। यह शारदा लिपि में है एवं गाथा बोली (संस्कृत एवं प्राकृत का मिलाजुला रूप) में है। यह पाण्डुलिपि अपूर्ण है। इसमें केवल ७० 'पन्ने' (या पत्तियाँ) ही हैं जिनमें से बहुत ही बेकार हो चुकी हैं। बहुत से पन्ने अप्राप्य हैं। .

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ब्रह्माण्डविद्या

हिन्दू मान्यता के अनुसार ब्रहाण्ड का चित्रण ब्रह्माण्डविद्या या कॉस्मोलॉजी खगोल विज्ञान की एक शाखा है, जिसमें ब्रह्माण्ड से जुड़ी तमाम बातों का अध्ययन किया जाता है। इसमें ब्रह्माण्ड के बनने की प्रक्रिया के बारे में भी जानकारी दी जाती है। बीसवीं शताब्दी में आए वैज्ञानिक बदलावों ने वैज्ञानिकों की ब्रह्माण्ड के बारे में दिलचस्पी बढ़ा दी। वैज्ञानिक उससे जुड़े तमाम रहस्यों को तलाशने लगे। यह बीसवीं शताब्दी में कॉस्मोलॉजी के बारे में बढ़ती जिज्ञासा का ही प्रतिफल था कि वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जुड़ी बिग बैंग सिद्धांत दे डाला। कॉस्मोलॉजी की शुरुआत एक तरह से आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के बाद से मानी जाती है। उससे पूर्व ब्रह्माण्ड के शुरुआत और अंत के बारे में कोई निश्चित धारणा नहीं थी। आइंस्टीन ने कहा कि ब्रह्माण्ड में कुछ पदार्थ है। इसी सिद्धांत के आधार पर फ्रेडमेन ने अपना सिद्धान्त दिया जिसमें कहा कि ब्रह्माण्ड फैल रहा है या सिकुड़ रहा है। 1927 में जॉर्ज लेमेत्री ने बिग बैंग थ्योरी देकर फ्रेडमेन के सिद्धांत की पुष्टि की। इसके बाद हबल के कॉस्मोलॉजिकल सिद्धांत ने बिग बैंग थ्योरी और फ्रेड के गैलैक्सी के नियम को आधार प्रदान किया। 1965 में माइक्रोवेव की खोज और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के नियम के बाद इस बात को माना जाने लगा कि वह फैल रहा है। माइक्रोवेव की खोज के दौरान यह बात भी सामने आई कि ब्रह्माण्ड के 25 प्रतिशत हिस्से में डार्क मैटर है जिसमे से केवल 4 प्रतिशत को ही देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात को माना कि विस्फोट से पहले ब्रह्माण्ड सिकुड़ा हुआ था। कॉस्मोलॉजी के मानक सिद्धान्त अनुसार ब्रह्माण्ड को विभिन्न समय में बांटा जा सकता है। इन्हें 'इपोस' कहते हैं। मोटे तौर पर कहा जाए तो फिजिकल कास्मोलॉजी के माध्यम से ब्रह्माण्ड के बड़े ऑब्जेक्ट मसलन गैलेक्सी, क्लस्टर और सुपरक्लस्टर के बारे में जनकारी मिलती है। कॉस्मोलॉजी की मदद से ब्लैक होल के बारे में जानने में मदद मिली। कॉस्मोलॉजी से यह भी देखा गया कि भौतिकी के नियम ब्रह्माण्ड में हर जगह समान हैं या नहीं। .

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ब्लैक होल (काला छिद्र)

बड़े मैग्लेनिक बादल के सामने में एक ब्लैक होल का बनावटी दृश्य। ब्लैक होल स्च्वार्ज़स्चिल्ड त्रिज्या और प्रेक्षक दूरी के बीच का अनुपात 1:9 है। आइंस्टाइन छल्ला नामक गुरुत्वीय लेंसिंग प्रभाव उल्लेखनीय है, जो बादल के दो चमकीले और बड़े परंतु अति विकृत प्रतिबिंबों का निर्माण करता है, अपने कोणीय आकार की तुलना में. सामान्य सापेक्षता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि) में, एक ब्लैक होल ऐसी खगोलीय वस्तु होती है जिसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश सहित कुछ भी इसके खिंचाव से बच नहीं सकता है। ब्लैक होल के चारों ओर एक सीमा होती है जिसे घटना क्षितिज कहा जाता है, जिसमें वस्तुएं गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर कुछ भी नहीं आ सकता। इसे "ब्लैक (काला)" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को अवशोषित कर लेता है और कुछ भी परावर्तित नहीं करता, थर्मोडाइनामिक्स (ऊष्मप्रवैगिकी) में ठीक एक आदर्श ब्लैक-बॉडी की तरह। ब्लैक होल का क्वांटम विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें तापमान और हॉकिंग विकिरण होता है। अपने अदृश्य भीतरी भाग के बावजूद, एक ब्लैक होल अन्य पदार्थों के साथ अन्तः-क्रिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है। एक ब्लैक होल का पता तारों के उस समूह की गति पर नजर रख कर लगाया जा सकता है जो अन्तरिक्ष के खाली दिखाई देने वाले एक हिस्से का चक्कर लगाते हैं। वैकल्पिक रूप से, एक साथी तारे से आप एक अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल में गैस को गिरते हुए देख सकते हैं। यह गैस सर्पिल आकार में अन्दर की तरफ आती है, बहुत उच्च तापमान तक गर्म हो कर बड़ी मात्रा में विकिरण छोड़ती है जिसका पता पृथ्वी पर स्थित या पृथ्वी की कक्षा में घूमती दूरबीनों से लगाया जा सकता है। इस तरह के अवलोकनों के परिणाम स्वरूप यह वैज्ञानिक सर्व-सम्मति उभर कर सामने आई है कि, यदि प्रकृति की हमारी समझ पूर्णतया गलत साबित न हो जाये तो, हमारे ब्रह्मांड में ब्लैक होल का अस्तित्व मौजूद है। सैद्धांतिक रूप से, कोई भी मात्रा में तत्त्व (matter) एक ब्लैक होल बन सकता है यदि वह इतनी जगह के भीतर संकुचित हो जाय जिसकी त्रिज्या अपनी समतुल्य स्च्वार्ज्स्चिल्ड त्रिज्या के बराबर हो। इसके अनुसार हमारे सूर्य का द्रव्यमान ३ कि.

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बृहत्संहिता

बृहत्संहिता वाराहमिहिर द्वारा ६ठी शताब्दी संस्कृत में रचित एक विश्वकोश है जिसमें मानव रुचि के विविध विषयों पर लिखा गया है। इसमें खगोलशास्त्र, ग्रहों की गति, ग्रहण, वर्षा, बादल, वास्तुशास्त्र, फसलों की वृद्धि, इत्रनिर्माण, लग्न, पारिवारिक संबन्ध, रत्न, मोती एवं कर्मकांडों का वर्णन है। वृहत्संहिता में १०६ अध्याय हैं। यह अपने महान संकलन के लिये प्रसिद्ध है। .

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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बेज रंग

बेज रंग एक बहुत ही मद्धिम पीला ish - क्रीम रंग है। शब्द बेज रंग कपड़े, एक सूती कपड़े छोड़ दिया अपने प्राकृतिक रंग में से बनती है। यह बाद से प्रकाश रंग s अपने तटस्थ या अच्छा दिखने के लिए चुना की एक श्रृंखला के लिए इस्तेमाल किया जा करने के लिए आ गया है। 1920 के दशक के बाद से, इस बिंदु जहाँ इसे अब भी उपयोग पीला भूरे रंग, जो नीचे दिखाया गया है की अधिक उल्लेखनीय में से कुछ की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए होता है के लिए शब्द बेज रंग का अर्थ का विस्तार किया।  .

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भट्टोत्पल

उत्पल या भट्टोत्पल, भारत के १०वीं शताब्दी के खगोलविद थे। उन्होने वराह मिहिर द्वारा रचित बृहत्संहिता की टीका लिखी है। श्रेणी:भारतीय खगोलविद.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया। आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है। .

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भारतीय ताराभौतिकी संस्थान

भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आईआईए, Indian Institute of Astrophysics) भारत का एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है, जो खगोल शास्त्र, ताराभौतिकी एवं संबंधित भौतिकी में शोधकार्य को समर्पित है। इसका मुख्यालय बेंगलूर में है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अवलंब से संचालित यह संस्थान आज देश में खगोल एवं भौतिकी में शोध एवं शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र बन गया है। संस्थान की प्रमुख प्रेक्षण सुविधायें कोडैकनाल, कावलूर, गौरीबिदनूर एवं हान्ले में स्थापित हैं। .

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भारतीय ज्योतिष

नक्षत्र भारतीय ज्योतिष (Indian Astrology/Hindu Astrology) ग्रहनक्षत्रों की गणना की वह पद्धति है जिसका भारत में विकास हुआ है। आजकल भी भारत में इसी पद्धति से पंचांग बनते हैं, जिनके आधार पर देश भर में धार्मिक कृत्य तथा पर्व मनाए जाते हैं। वर्तमान काल में अधिकांश पंचांग सूर्यसिद्धांत, मकरंद सारणियों तथा ग्रहलाघव की विधि से प्रस्तुत किए जाते हैं। कुछ ऐसे भी पंचांग बनते हैं जिन्हें नॉटिकल अल्मनाक के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है, किंतु इन्हें प्राय: भारतीय निरयण पद्धति के अनुकूल बना दिया जाता है। .

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भारतीय खगोलिकी

भारत में खगोलिकी की अति प्राचीन एवं उज्ज्वल परम्परा रही है। वास्तव में भारत में खगोलीय अध्ययन वेद के अंग (वेदांग) के रूप में १५०० ईसापूर्व या उससे भी पहले शुरू हुआ। वेदांग ज्योतिष इसका सबसे पुराना ग्रन्थ है। .

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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भारतीय इतिहास की समयरेखा

पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं भारत एक साझा इतिहास के भागीदार हैं इसलिए भारतीय इतिहास की इस समय रेखा में सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की झलक है। .

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भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान

भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST / आई॰ आई॰ एस॰ टी॰) भारत एवं एशिया का प्रथम अंतरिक्ष विश्वविद्यालय है। यह तिरुवनंतपुरम शहर के वलियमला क्षेत्र में स्थित है। इसकी स्थापना १४ सितम्बर २००७ को गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर हुई थी। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं महान वैज्ञानिक डॉ॰ ए. पी.

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भारतीय अंक प्रणाली

भारतीय अंक प्रणाली को पश्चिम के देशों में हिंदू-अरबी अंक प्रणाली के नाम से जाना जाता है क्योंकि यूरोपीय देशों को इस अंक प्रणाली का ज्ञान अरब देश से प्राप्त हुआ था। जबकि अरबों को यह ज्ञान भारत से मिला था। भारतीय अंक प्रणाली में 0 को मिला कर कुल 10 अंक होते हैं। संसार के अधिकतम 10 अंकों वाली अंक प्रणाली भारतीय अंक प्रणाली पर ही आधारित हैं। फ्रांस के प्रसिद्ध गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास के अनुसार, .

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भास्कर प्रथम

भास्कर प्रथम (600 ई – 680 ईसवी) भारत के सातवीं शताब्दी के गणितज्ञ थे। संभवतः उन्होने ही सबसे पहले संख्याओं को हिन्दू दाशमिक पद्धति में लिखना आरम्भ किया। उन्होने आर्यभट्ट की कृतियों पर टीका लिखी और उसी सन्दर्भ में ज्या य (sin x) का परिमेय मान बताया जो अनन्य एवं अत्यन्त उल्लेखनीय है। आर्यभटीय पर उन्होने सन् ६२९ में आर्यभटीयभाष्य नामक टीका लिखी जो संस्कृत गद्य में लिखी गणित एवं खगोलशास्त्र की प्रथम पुस्तक है। आर्यभट की परिपाटी में ही उन्होने महाभास्करीय एवं लघुभास्करीय नामक दो खगोलशास्त्रीय ग्रंथ भी लिखे। .

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भास्कराचार्य

---- भास्कराचार्य या भाष्कर द्वितीय (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था। भास्कराचार्य ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’। उन्होने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। कथित रूप से यह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है। भास्कराचार्य के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। कुछ–कुछ जानकारी उनके श्लोकों से मिलती हैं। निम्नलिखित श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य का जन्म विज्जडविड नामक गाँव में हुआ था जो सहयाद्रि पहाड़ियों में स्थित है। इस श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य शांडिल्य गोत्र के थे और सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान के निवासी थे। लेकिन विद्वान इस विज्जलविड ग्राम की भौगोलिक स्थिति का प्रामाणिक निर्धारण नहीं कर पाए हैं। डॉ.

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भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला

भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (Physical Research Laboratory (PRL)) भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के अन्तर्गत एक अनुसंधान संस्थान है। यहाँ अंतरिक्ष एवं इससे सम्बन्धित विज्ञानों पर अनुसंधान किया जाता है। इसकी स्थापना १९४७ में विक्रम साराभाई ने की थी। यहाँ भौतिकी, अन्तरिक्ष एवं वायुमण्डलीय विज्ञान, खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी, ग्रहीय एवं भूविज्ञान के चुनिन्दा क्षेत्रों में मूलभूत अनुसन्धान किया जाता है। जून 2018 में, भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से 600 प्रकाश वर्ष दूर स्थित हमारे सौर मंडल से बाहर के एक ग्रह ईपीआईसी 211945201 बी या 2के-236बी की खोज की। .

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भौतिकी की शब्दावली

* ढाँचा (Framework).

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भूगणित

बेल्जियम के ओस्टेन्ड नामक स्थान पर स्थित एक पुराना भूगणितीय स्तम्भ (1855) भूगणित (Geodesy or Geodetics) भूभौतिकी एवं गणित की वह शाखा है जो उपयुक्त मापन एवं प्रेक्षण के आधार पर पृथ्वी के पृष्ठ पर स्थित बिन्दुओं की सही-सही त्रिबिम-स्थिति (three-dimensional postion) निर्धारित करती है। इन्ही मापनों एवं प्रेक्षणों के आधार पर पृथ्वी का आकार एवं आकृति, गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र तथा भूपृष्ट के बहुत बड़े क्षेत्रों का क्षेत्रफल आदि निर्धारित किये जाते हैं। इसके साथ ही भूगणित के अन्दर भूगतिकीय (geodynamical) घटनाओं (जैसे ज्वार-भाटा, ध्रुवीय गति तथा क्रस्टल-गति आदि) का भी अध्ययन किया जाता है। पृथ्वी के आकार तथा परिमाण का और भूपृष्ठ पर संदर्भ बिंदुओं की स्थिति का यथार्थ निर्धारण हेतु खगोलीय प्रेक्षणों की आवश्यकता होती है। इस कार्य में इतनी यथार्थता अपेक्षित है कि ध्रुवों (poles) के भ्रमण से उत्पन्न देशांतरों में सूक्ष्म परिवर्तनों पर और समीपवर्ती पहाड़ों के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न ऊर्ध्वाधर रेखा की त्रुटियों पर ध्यान देना पड़ता है। पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा के ज्वारीय (tidal) प्रभाओं का भी ज्ञान आवश्यक है और चूँकि सभी थल सर्वेक्षणों में माध्य समुद्रतल (mean sea level) आधार सामग्री होता है, इसलिये माहासागरों के प्रमुख ज्वारों का भी अघ्ययन आवश्यक है। भूगणितीय सर्वेक्षण के इन विभिन्न पहलुओं के कारण भूगणित के विस्तृत अध्ययन क्षेत्र में अब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का, भूमंडल पृष्ठ समाकृति पर इसके प्रभाव का और पृथ्वी पर सूर्य तथा चंद्रमा के गुरुत्वीय क्षेत्रों के प्रभाव का अध्ययन समाविष्ट है। .

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भूगोल की रूपरेखा

ज्ञान के फलक का तात्पर्य एक ऐसे त्रिविमीय विन्यास है जिसे पूर्णरूपेण समझने के लिए हमें तीन दृष्टि बिन्दुओं से निरीक्षण करना चाहिए। इनमें से किसी भी एक बिन्दु वाला निरीक्षण एक पक्षीय ही होगा और वह संपूर्ण को प्रदर्शित नहीं करेगा। एक बिन्दु से हम सदृश वस्तुओं के संबंध देखते हैं। दूसरे से काल के संदर्भ में उसके विकास का और तीसरे से क्षेत्रीय संदर्भ में उनके क्रम और वर्गीकरण का निरीक्षण करते हैं। इस प्रकार प्रथम वर्ग के अंतर्गत वर्गीकृत विज्ञान (classified science), द्वितीय वर्ग में ऐतिहासिक विज्ञान (historial sciences), और तृतीय वर्ग में क्षेत्रीय या स्थान-संबंधी विज्ञान (spatial sciences) आते हैं। वर्गीकृत विज्ञान पदार्थो या तत्वों की व्याख्या करते हैं अतः इन्हें पदार्थ विज्ञान (material sciences) भी कहा जाता है। ऐतिहासिक विज्ञान काल (time) के संदर्भ में तत्वों या घटनाओं के विकासक्रम का अध्ययन करते हैं। क्षेत्रीय विज्ञान तत्वों या घटनाओं का विश्लेषण स्थान या क्षेत्र के संदर्भ में करते हैं। पदार्थ विज्ञानों के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु ‘क्यों ’, ‘क्या’ और ‘कैसे’ है। ऐतिहासिक विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘कब’ है तथा क्षेत्रीय विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु ‘कहां ’ है। स्थानिक विज्ञानों (Spatial sciences) को दो प्रधान वर्गों में विभक्त किया जाता है-.

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मन्दाकिनी

समान नाम के अन्य लेखों के लिए देखें मन्दाकिनी (बहुविकल्पी) जहाँ तक ज्ञात है, गैलेक्सी ब्रह्माण्ड की सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं। एनजीसी ४४१४ एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष व्यास की गैलेक्सी है मन्दाकिनी या गैलेक्सी, असंख्य तारों का समूह है जो स्वच्छ और अँधेरी रात में, आकाश के बीच से जाते हुए अर्धचक्र के रूप में और झिलमिलाती सी मेखला के समान दिखाई पड़ता है। यह मेखला वस्तुत: एक पूर्ण चक्र का अंग हैं जिसका क्षितिज के नीचे का भाग नहीं दिखाई पड़ता। भारत में इसे मंदाकिनी, स्वर्णगंगा, स्वर्नदी, सुरनदी, आकाशनदी, देवनदी, नागवीथी, हरिताली आदि भी कहते हैं। हमारी पृथ्वी और सूर्य जिस गैलेक्सी में अवस्थित हैं, रात्रि में हम नंगी आँख से उसी गैलेक्सी के ताराओं को देख पाते हैं। अब तक ब्रह्मांड के जितने भाग का पता चला है उसमें लगभग ऐसी ही १९ अरब गैलेक्सीएँ होने का अनुमान है। ब्रह्मांड के विस्फोट सिद्धांत (बिग बंग थ्योरी ऑफ युनिवर्स) के अनुसार सभी गैलेक्सीएँ एक दूसरे से बड़ी तेजी से दूर हटती जा रही हैं। ब्रह्माण्ड में सौ अरब गैलेक्सी अस्तित्व में है। जो बड़ी मात्रा में तारे, गैस और खगोलीय धूल को समेटे हुए है। गैलेक्सियों ने अपना जीवन लाखो वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया और धीरे धीरे अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया। प्रत्येक गैलेक्सियाँ अरबों तारों को को समेटे हुए है। गुरुत्वाकर्षण तारों को एक साथ बाँध कर रखता है और इसी तरह अनेक गैलेक्सी एक साथ मिलकर तारा गुच्छ में रहती है। प्रारंभ में खगोलशास्त्रियों की धारणा थी कि ब्रह्मांड में नई गैलेक्सियों और क्वासरों का जन्म संभवत: पुरानी गैलेक्सियों के विस्फोट के फलस्वरूप होता है। लेकिन यार्क विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्रियों-डॉ॰सी.आर.

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महानोवा

केंकड़ा नॅब्युला - यह एक महानोवा विस्फोट का बचा हुआ बादल है हम से २१,००० प्रकाश-वर्ष दूर डब्ल्यू॰आर॰ १२४ नाम के वुल्फ़-राये श्रेणी के तारे के इर्द-गिर्द महानोवा अवशेष का नॅब्युला खगोलशास्त्र में महानोवा (सुपरनोवा) किसी तारे के भयंकर विस्फोट को कहते हैं। महानोवा नोवा से अधिक बड़ा धमाका होता है और इस से निकलता प्रकाश और विकिरण (रेडीएशन) इतना ज़ोरदार होता है के कुछ समय के लिए अपने आगे पूरी आकाशगंगा को भी धुंधला कर देता है लेकिन फिर धीरे-धीरे ख़ुद धुंधला जाता है। जब तक महानोवा अपनी चरमसीमा पर होता है, वह कभी-कभी कुछ ही हफ़्तों या महीनो में इतनी उर्जा प्रसारित कर सकता है जितनी की हमारा सूरज अपने अरबों साल के जीवनकाल में करेगा। महानोवा के धमाके में सितारा अपने अधिकाँश भाग को ३०,००० किमी प्रति सैकिंड (यानि प्रकाश की गति का १०%) तक की रफ़्तार से व्योम में फेंकता है, जो अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में एक आक्रमक झटके की तरंग बन के फैलती है। इसके नतीजे से जो फैलता हुआ गैस और खगोलीय धूल का बादल बनता है उसे "महानोवा अवशेष" कहते हैं। .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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महाभास्करीय

महाभास्करीय, भास्कर प्रथम द्वारा रचित गणित एवं खगोल से सम्बन्धित ग्रन्थ है। गोविन्दस्वामी ने इसकी टीका लिखी है जिसमें अन्तर्वेशन का वही सूत्र है जिसे आजकल 'न्यूटन-गाउस अन्तर्वेशन फॉर्मूला' कहते हैं। .

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महावृत्त

गोले पर बने किसी भी महावृत्त पर काटा जाए तो गोला दो बराबर अर्ध-गोलों में बट जाता है किसी गोले का महावृत्त या ग्रेट सर्कल (अंग्रेज़ी: great circle) उस गोले के और उस गोले के केंद्र से गुजरने वाले किसी समधरातल (प्लेन) के प्रतिच्छेदन (इन्टरसॅक्शन) से बनने वाले वक्र (कर्व) को कहते हैं। अगर गोले को किसी भी महावृत्त पर काट दिया जाए तो वह दो बिलकुल बराबर के अर्धगोलों में बट जाएगा। महावृत्तों के बारे में दो चीज़ें ध्यान देने योग्य हैं -.

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मापन

मापन के चार उपकरण किसी भौतिक राशि का परिमाण संख्याओं में व्यक्त करने को मापन कहा जाता है। मापन मूलतः तुलना करने की एक प्रक्रिया है। इसमें किसी भौतिक राशि की मात्रा की तुलना एक पूर्वनिर्धारित मात्रा से की जाती है। इस पूर्वनिर्धारित मात्रा को उस राशि-विशेष के लिये मात्रक कहा जाता है। उदाहरण के लिये जब हम कहते हैं कि किसी पेड़ की उँचाई १० मीटर है तो हम उस पेड़ की उचाई की तुलना एक मीटर से कर रहे होते हैं। यहाँ मीटर एक मानक मात्रक है जो भौतिक राशि लम्बाई या दूरी के लिये प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार समय का मात्रक सेकण्ड, द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम आदि हैं। .

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मार्क शोवाल्टर

मार्क रॉबर्ट शोवाल्टर (Mark Robert Showalter) (जन्म 5 दिसंबर,1957), सेटी इंस्टीट्यूट में एक वरिष्ठ अनुसंधान वैज्ञानिक है। वह छह चन्द्रमाओं और तीन ग्रहों के छल्ले के आविष्कारक है। वें नासा के उपग्रह डाटा प्रणाली रिंग्स नोड के प्रधान अन्वेषक, शनि के कैसिनी-होयगेन्स मिशन पर एक सह अन्वेषक है और प्लूटो के न्यू होराइजोंस मिशन से नजदीकी से जुड़े हुए है। .

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मंगल ग्रह

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं। इस गृह पर जीवन होने की संभावना है। 1965 में मेरिनर ४ के द्वारा की पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था में जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले striations की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं। मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये हैं। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9, तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है। .

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मेसोअमेरिकी

350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) पैलेंकी के क्लासिक माया शहर का दृश्य, जो 6 और 7 सदियों में सुशोभित हुआ, मेसोअमेरिकी सभ्यता की उपलब्धियों के कई उदाहरणों में से एक है ट्युटिहुकन के मेसोअमेरिकी शहर का एक दृश्य, जो 200 ई. से 600 ई. तक सुशोभित हुआ और जो अमेरिका में दूसरी सबसे बड़ी पिरामिड की साइट है माया चित्रलिपि पत्रिका में अभिलेख, कई मेसोअमरिकी लेखन प्रणालियों में से एक शिलालेख.दुनिया में मेसोअमेरिका पांच स्थानों में से एक है जहां स्वतंत्र रूप से लेखन विकसित हुआ है मेसोअमेरिका या मेसो-अमेरिका (Mesoamérica) अमेरिका का एक क्षेत्र एवं सांस्कृतिक प्रान्त है, जो केन्द्रीय मैक्सिको से लगभग बेलाइज, ग्वाटेमाला, एल सल्वाडोर, हौंड्यूरॉस, निकारागुआ और कॉस्टा रिका तक फैला हुआ है, जिसके अन्दर 16वीं और 17वीं शताब्दी में, अमेरिका के स्पैनिश उपनिवेशवाद से पूर्व कई पूर्व कोलंबियाई समाज फलफूल रहे थे। इस क्षेत्र के प्रागैतिहासिक समूह, कृषि ग्रामों तथा बड़ी औपचारिक व राजनैतिक-धार्मिक राजधानियों द्वारा वर्णित हैं। यह सांस्कृतिक क्षेत्र अमेरिका की कुछ सर्वाधिक जटिल और उन्नत संस्कृतियों जैसे, ऑल्मेक, ज़ैपोटेक, टियोतिहुआकैन, माया, मिक्सटेक, टोटोनाक और एज़्टेक को शामिल करता है। .

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मेघनाद साहा

मेघनाद साहा (६ अक्टूबर १८९३ - १६ फरवरी, १९५६) सुप्रसिद्ध भारतीय खगोलविज्ञानी (एस्ट्रोफिजिसिस्ट्) थे। वे साहा समीकरण के प्रतिपादन के लिये प्रसिद्ध हैं। यह समीकरण तारों में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है। उनकी अध्यक्षता में गठित विद्वानों की एक समिति ने भारत के राष्ट्रीय शक पंचांग का भी संशोधन किया, जो २२ मार्च १९५७ (१ चैत्र १८७९ शक) से लागू किया गया। इन्होंने साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान तथा इण्डियन एसोसियेशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साईन्स नामक दो महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना की। .

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मॅसिये ७४

मॅसिये 74 मॅसिये 74 मीन तारामंडल के क्षेत्र में नज़र आने वाली एक सर्पिल (स्पाइरल) गैलेक्सी है। यह पृथ्वी से लगभग 3.2 करोड़ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है। इसकी चमक पृथ्वी से कम प्रतीत होती है और सारी मॅसिये वस्तुओं में यह ग़ैर-पेशेवर खगोलशास्त्रियों द्वारा देखने में सब से मुश्किल मानी जाती है। इसकी दो साफ़ सर्पिल भुजाएँ हैं और माना जाता है के इस पूरी गैलेक्सी में क़रीब 100 अरब तारे हैं। .

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यर्कीज़ वेधशाला

जनवरी २००६ में ली गई यर्कीज़ वेधशाला की तस्वीर यर्कीज़ वेधशाला एक खगोलशास्त्रिय वेधशाला है जो शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा चलाई जाती है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के विस्कॉन्सिन राज्य में विलियम्ज़ बे नाम के क़स्बे में स्थित है। इसे "आधुनिक खगोलभौतिकी का जन्मस्थान" कहा जाता है। यर्कीज़ वेधशाला सन् १८९७ में जॉर्ज ऍलरी हेल ने शुरू करी थी और इसके लिए पैसा चार्लज़ यर्कीज़ ने दिया था। .

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यिर्मयाह होरोक्स

यिर्मयाह होरोक्स (1618- 3 जनवरी 1641) (Jeremiah Horrocks, कभी-कभी Jeremiah Horrox (एक लैटिन संस्करण जिसका उन्होने एमानुएल कॉलेज रजिस्टर पर और अपनी लैटिन पांडुलिपियों में प्रयोग किया) - See footnote 1 रूप मे वर्णित), एक अंग्रेज खगोलशास्त्री थे। वें यह सिद्ध करने वाले पहले व्यक्ति थे कि चंद्रमा एक दीर्घवृत्ताकार कक्षा में पृथ्वी के इर्दगिर्द घूमता है और एक मात्र पहले व्यक्ति जिन्होने 1639 के शुक्र पारगमन की भविष्यवाणी की, साथ ही वें और उनके मित्र विलियम क्रेबट्री केवल दो ही लोग थे जिन्होने इस प्रसंग को अवलोकित और दर्ज किया था। पारगमन पर उनका ग्रंथ, वीनस इन सोले वीसा, समय पूर्व उनकी मृत्यु के कारण विज्ञान के लिए करीब-करीब क्षति थी और यह अराजकता अंग्रेज गृह युद्ध द्वारा लाई गई थी, परंतु उसके बाद इसके लिए और अपने अन्य कार्य के लिए उनका ब्रिटेन के खगोल विज्ञान के पिता के रूप में स्वागत किया गया। .

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युति-वियुति

खगोल विज्ञान में, युति-वियुति (syzygy), एक गुरुत्वाकर्षण प्रणाली में तीन खगोलीय पिंडों का एक सरल रेखिय विन्यास है। सरल शब्दों में, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में होते हैं तो यह स्थिति युति-वियुति कहलाती है। युति-वियुति स्थिति में चंद्रमा या तो सूर्य के साथ संयोजन में होता है या सूर्य से विमुख होता है। सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण युति-वियुति के समय पर होता है। .

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युद्ध और शान्ति

युद्ध और शान्ति (वार एण्ड पीस; सुधार-पूर्व रूसी में: Война и миръ / Voyna i mir) रूस के प्रसिद्ध लेखक लेव तोलस्तोय द्वारा रचित उपन्यास है। यह पहली बार १८६९ में प्रकाशित हुआ था। यह एक विशाल रचना है और विश्व साहित्य की महानतम रचनाओं में इसकी गणना होती है। .

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युग (बुनियादी तिथि)

इस जापानी रेल पास में 'जापानी वर्ष' के ख़ाने में हेईसेई युग का वर्ष १८ लिखा गया है जो सन् २००७ के बराबर है कालक्रम विज्ञान में युग (epoch, ऍपक) समय के किसी ऐसे क्षण को कहते हैं जिस से किसी काल-निर्धारण करने वाली विधि का आरम्भ किया जाए। उदाहरण के लिए विक्रम संवत कैलेण्डर को ५६ ईसापूर्व में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने शकों पर विजय पाने के अवसर पर शुरू किया, यानि विक्रम संवत के लिए ५६ ईपू ही 'युग' है जिसे शून्य मानकर समय मापा जाता है। .

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युग (खगोलशास्त्र)

यह बाहरी सौर मंडल की वस्तुओं की स्थिति का चित्रण है (हरी बिन्दुएँ काइपर घेरे की वस्तुएँ हैं)। यह J2000.0 खगोलीय युग पर आधारित है - यानि १ जनवरी २००० को यह वस्तुएँ इन स्थानों पर थीं लेकिन तब से ज़रा-बहुत हिल चुकी होंगी खगोलशास्त्र में युग (epoch) समय के किसी एक आम सहमती से चुने हुए क्षण को बोलते हैं जिसपर आधारित किसी खगोलीय वस्तु या प्रक्रिया की स्थिति के बारे में जानकारी दी जाए। ब्रह्माण्ड में लगभग सभी वस्तुओं में लगातार परिवर्तन आते रहते हैं - तारों की हमसे दूसरी बदलती है, तारों की रौशनी उतरती-चढ़ती है, ग्रहों का अक्षीय झुकाव बदलता है, इत्यादि - इसलिए यह आवश्यक है कि जब भी किसी वास्तु का कोई माप दिया जाए तो यह स्पष्ट कर दिया जाए कि वह माप किस समय के लिए सत्य था। इसलिए जब पंचांग बनाए जाते हैं जो खगोलीय वस्तुओं की भिन्न समयों पर दशा बताते हैं तो उन्हें किसी खगोलीय युग पर आधारित करना ज़रूरी होता है। खगोलशास्त्रियों के समुदाय समय-समय पर एक दिनांक को नया खगोलीय युग घोषित कर देते हैं और फिर उसका प्रयोग करते हैं। समय गुज़रने के साथ ब्रह्माण्ड बदलता है और एक समय आता है जब उस खगोलीय युग पर जो वस्तुओं की स्थिति थी वह वर्तमान स्थिति से बहुत अलग हो जाती है। ऐसा होने पर आपसी सहमती बनाकर फिर एक नया खगोलीय युग घोषित किया जाता है और सभी वस्तुओं की स्थिति का उस नए युग के लिए अद्यतन किया जाता है। .

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यूनाइटेड किंगडम

वृहत् ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैण्ड का यूनाइटेड किंगडम (सामान्यतः यूनाइटेड किंगडम, यूके, बर्तानिया, UK, या ब्रिटेन के रूप में जाना जाने वाला) एक विकसित देश है जो महाद्वीपीय यूरोप के पश्चिमोत्तर तट पर स्थित है। यह एक द्वीपीय देश है, यह ब्रिटिश द्वीप समूह में फैला है जिसमें ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड का पूर्वोत्तर भाग और कई छोटे द्वीप शामिल हैं।उत्तरी आयरलैंड, UK का एकमात्र ऐसा हिस्सा है जहां एक स्थल सीमा अन्य राष्ट्र से लगती है और यहां आयरलैण्ड यूके का पड़ोसी देश है। इस देश की सीमा के अलावा, UK अटलांटिक महासागर, उत्तरी सागर, इंग्लिश चैनल और आयरिश सागर से घिरा हुआ है। सबसे बड़ा द्वीप, ग्रेट ब्रिटेन, चैनल सुरंग द्वारा फ़्रांस से जुड़ा हुआ है। यूनाइटेड किंगडम एक संवैधानिक राजशाही और एकात्मक राज्य है जिसमें चार देश शामिल हैं: इंग्लैंड, उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स. यह एक संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है जिसकी राजधानी लंदन में सरकार बैठती है, लेकिन इसमें तीन न्यागत राष्ट्रीय प्रशासन हैं, बेलफ़ास्ट, कार्डिफ़ और एडिनबर्ग, क्रमशः उत्तरी आयरलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड की राजधानी.जर्सी और ग्वेर्नसे द्वीप समूह, जिन्हें सामूहिक रूप से चैनल द्वीप कहा जाता है और मैन द्वीप (आईल ऑफ मान), यू के की राजत्व निर्भरता हैं और UK का हिस्सा नहीं हैं। इसके इलावा, UK के चौदह समुद्रपार निर्भर क्षेत्र हैं, ब्रिटिश साम्राज्य, जो १९२२ में अपने चरम पर था, दुनिया के तकरीबन एक चौथाई क्षेत्रफ़ल को घेरता था और इतिहास का सबसे बड़ा साम्रज्य था। इसके पूर्व उपनिवेशों की भाषा, संस्कृति और कानूनी प्रणाली में ब्रिटिश प्रभाव अभी भी देखा जा सकता है। प्रतीकत्मक सकल घरेलू उत्पाद द्वारा दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था और क्रय शक्ति समानता के हिसाब से सातवाँ बड़ा देश होने के साथ ही, यूके एक विकसित देश है। यह दुनिया का पहला औद्योगिक देश था और 19वीं और 20वीं शताब्दियों के दौरान विश्व की अग्रणी शक्ति था, लेकिन दो विश्व युद्धों की आर्थिक लागत और 20 वीं सदी के उत्तरार्ध में साम्राज्य के पतन ने वैश्विक मामलों में उसकी अग्रणी भूमिका को कम कर दिया फिर भी यूके अपने सुदृढ़ आर्थिक, सांस्कृतिक, सैन्य, वैज्ञानिक और राजनीतिक प्रभाव के कारण एक प्रमुख शक्ति बना हुआ है। यह एक परमाणु शक्ति है और दुनिया में चौथी सर्वाधिक रक्षा खर्चा करने वाला देश है। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट धारण करता है और राष्ट्र के राष्ट्रमंडल, जी8, OECD, नाटो और विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है। .

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यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला

यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला (European Southern Observatory (ESO)), खगोल विज्ञान के लिए एक पंद्रह देशों का एक अंतर सरकारी अनुसंधान संगठन है। .

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रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। .

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रामन अनुसन्धान संस्थान

वैज्ञानिक अनुसन्धान संस्थान-रामन अनुसन्धान संस्थान रामन अनुसन्धान संस्थान (Raman Research Institute (RRI)) भारत का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान है। यह बंगलुरु में स्थित है। इसकी स्थापना नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकट रामन ने की थी। यह संस्थान सी वी रामन के निजी शोध संस्थान के रूप में आरम्भ हुआ किन्तु आजकल यह भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है। रामन अनुसंधान संस्थान अब एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है, जो आधारभूत विज्ञान के अनुसंधान में कार्यरत / निरत है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से निधि प्राप्त करने हेतु सन् 1972 में, आर.आर.आई को सहायता प्राप्त स्वायत्त अनुसंधान के रूप में पुनर्गठित किया गया। इसके प्रशासन और प्रबंधन के लिए विनियमों और उपविधियों का एक निर्धारित किया गया। आज संस्थान में अनुसंधान के प्रमुख क्षेत्र हैं - खगोल विज्ञान एवं ताराभौतिकी, प्रकाश एवं पदार्थ भौतिकी, मृदु संघनित पदार्थ तथा सैद्धांतिक भौतिकी। अनुसंधान गतिविधियों में रसायन विज्ञान, द्रव स्फटिक, जैविक विज्ञान में भौतिकी और संकेत प्रक्रमण, प्रतिबिंबन एवं उपकरण-विन्यास सम्मिलित हैं। .

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राष्ट्रीय रेडियो खगोल भौतिकी केन्द्र

भारत का राष्ट्रीय रेडियो खगोल भौतिकी केन्द्र (एन सी आर ए), पुणे विश्वविद्यालय परिसर में स्थित है। यह टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान का ही एक भाग है। खोडद में, पुणे से ८० कि.मी दूर, वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप (जी एम आर टी), विश्व का सबसे बड़ा रेडियो दूरदर्शी निर्माण एवं स्थापित किया है। यह मीटर तरंगदैर्घ्य पर संचालित है। इसमें ३० पूर्णतया घुमाने लायक डिश लगी हैं, जिसमे से हर डिश का व्यास ४५ मीटर हैं। एवं पूरी स्थापना २५ वर्ग कि॰मी॰ के क्षेत्र में फैली हुई है। .

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रिक्ति (खगोलशास्त्र)

रेशे, महागुच्छे और रिक्तियाँ देखे जा सकते हैं खगोलशास्त्र में रिक्तियाँ गैलेक्सियों के रेशों के बीच के ख़ाली स्थान होते हैं जिनमें या तो गैलेक्सियाँ होती ही नहीं या बहुत कम घनत्व में मिलती हैं। इनकी खोज सब से पहले सन् १९७८ में की गयी थी। रिक्तियाँ आम तौर से ३ से ५० करोड़ प्रकाश-वर्ष का व्यास (डायामीटर) रखती हैं। किसी बहुत बड़ी अकार की रिक्ति को महारिक्ति कहा जाता है। .

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रंग सूचक

रंग सूचक (Color index, कलर इंडॅक्स​) एक सरल संख्या होती है जिस से किसी वस्तु का रंग बताया जाता है। खगोलशास्त्र में किसी तारे के रंग और उसके तापमाप में गहरा सम्बन्ध होता है, इसलिए उसमें किसी तारे के रंग सूचक से उसके तापमान का पता चलता है।Handbook of Space Astronomy and Astrophysics, Martin V. Zombeck, Cambridge University Press, Page 105, 1990, ISBN 0-521-34787-4 .

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रेडियल वेग

रेडियल वेग को मापकर ग़ैर-सौरीय ग्रह ढूंढें जाते हैं - जब कोई अनदेखा ग्रह किसी तारे की परिक्रमा करता है तो वह तारा भी उसके गुरुत्वाकर्षक प्रभाव से हिलता है - यदि किसी तारे में लालिमा-नीलिमा का बढ़ता-घटता नियमानुसार क्रम ज्ञात हो जाए तो वह उसकी परिक्रमा करते ग्रह का संकेत होता है रेडियल वेग या त्रिज्या वेग (radial velocity) किसी वस्तु के उस वेग को कहते हैं जो सीधा किसी दर्शक की तरफ़ या उस से उल्टी तरफ़ हो। अगर दर्शक कहीं स्थित हो और वस्तु हिल रही हो तो रेडियल वेग उस वस्तु के पूर्ण वेग का केवल वह हिस्सा है जो उस वस्तु को दर्शक के पास ला रहा है या उस से दूर ले जा रहा है। इसमें से उस वेग का भाग हटा दिया जाता है तो वस्तु को दर्शक के दाई या बाई ओर ले जा रहा हो। खगोलशास्त्र में अक्सर किसी खगोलीय वस्तु के रेडियल वेग का अनुमान स्पेक्ट्रोस्कोपी द्वारा वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का अध्ययन करके लगाया जाता है। डॉप्लर प्रभाव के कारण दूर जाती वस्तुओं का वर्णक्रम में अधिक लालिमा आ जाती है जबकि पास आती वस्तुओं के वर्णक्रम में अधिक नीलिमा आ जाती है। दूरबीन द्वारा खगोलीय अध्ययन करके भी रेडियल वेग का बिना वर्णक्रम का प्रयोग करे भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है।, Lucy-Ann Adams McFadden, Paul Robert Weissman, Torrence V. Johnson, pp.

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रेडियो खगोलशास्त्र

अमेरिका के न्यू मेक्सिको राज्य के रेगिस्तान में लगी रेडियो दूरबीनों की एक शृंखला रेडियो खगोलशास्त्र (Radio astronomy) खगोलशास्त्र की वह शाखा है जिसमें खगोलीय वस्तुओं का अध्ययन रेडियो आवृत्ति (फ़्रीक्वॅन्सी) पर आ रही रेडियो तरंगों के ज़रिये किया जाता है। इसका सबसे पहला प्रयोग १९३० के दशक में कार्ल जैन्सकी (Karl Jansky) नामक अमेरिकी खगोलशास्त्री ने किया था जब उन्होंने आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) से विकिरण (रेडियेशन) आते हुए देखा। उसके बाद तारों, गैलेक्सियों, पल्सरों, क्वेज़ारों और अन्य खगोलीय वस्तुओं का रेडियो खगोलशास्त्र में अध्ययन किया जा चुका है। बिग बैंग सिद्धांत की पुष्ठी भी खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण (कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडियेशन) का अध्ययन करने से की गई है।, Hephaestus Books, Hephaestus Books, 2011, ISBN 978-1-244-89478-5, Sir Francis Graham-Smith, CUP Archive, 1952 रेडियो खगोलशास्त्र में भीमकाय रेडियो एन्टेना के ज़रिये रेडियो तरंगों को पकड़ा जाता है और फिर उनपर अनुसन्धान किया जाता है। इन रेडियो एन्टेनाओं को रेडियो दूरबीन (रेडियो टेलिस्कोप) कहा जाता है। कभी-कभी रेडियो खगोलशास्त्र किसी अकेले एन्टेना से किया जाता है और कभी एक पूरे रेडियो दूरबीनों के गुट का प्रयोग किया जाता है जिसमें इन सबसे मिले रेडियो संकेतों को मिलकर एक ज़्यादा विस्तृत तस्वीर मिल सकती है। क्योंकि रेडियो दूरबीनों का आकार बड़ा होता है इसलिए अक्सर ऐसी दूरबीनों की शृंखलाएँ शहर से दूर रेगिस्तानों और पहाड़ों जैसे बीहड़ इलाकों में मिलती हैं।, Jeff Lashley, Springer, 2010, ISBN 978-1-4419-0882-7 .

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रोश सीमा

एक द्रव्य के जमावड़े की कल्पना कीजिये, जो अपने अंदरूनी गुरुत्वाकर्षण से एकत्रित है और अपने ग्रह के पास है - अगर रोश सीमा से काफ़ी बहार हो तो यह एक गोले का आकार ले लेता है अब अगर यह गोला ग्रह के पास आता है तो बड़े ग्रह के गुरुत्वाकर्षण की खींच से इसका आकार खिंच सा जाता है और गोले को बेढंगा कर देता है रोश सीमा के अन्दर का द्रव्य ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में आ जाता है और गोला इस खींचातानी में टूट जाता है ग्रह के पास वाले कण (लाल तीरों से दर्शाए हुए) ग्रह से दूर वाले कणों से ज़्यादा तेज़ परिक्रमा करते हैं अलग कणों की अलग गति से द्रव्य खिंच जाता है और एक उपग्रही छल्ला बना देता है खगोलशास्त्र में रोश सीमा या रोश व्यास ब्रह्माण्ड में दो वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षण के तालमेल के एक परिणाम को उजागर करता है। आम तौर से कोई भी वस्तु अपने ही गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से इकठ्ठा होकर रहती है, जैसे की ग्रह, उपग्रह, वग़ैराह। लेकिन यदि कोई दूसरी बड़ी वस्तु पास में आ जाए तो वह पहली वस्तु के जमकर एक हो जाने में ख़लल डालती है। किसी भी वस्तु की रोश सीमा वह सीमा है जिसके अन्दर वह वस्तु किसी भी दूसरी वस्तु को जमकर एकत्रित नहीं होने देती। साधारण तौर पर रोश सीमा का प्रयोग ग्रहों के इर्द-गिर्द मंडराते हुए उपग्रहों के लिए होता है। अगर उपग्रह ग्रहों की रोश सीमा से बहार बन जाए, तो साधारण उपग्रह बन पाते हैं, वर्ना ग्रह का गुरुत्वाकर्षण इतना प्रभावशाली होता है के वह या तो बड़ा उपग्रह बनने ही नहीं देता, या फिर उपग्रही छल्ला बना देता है, या उस मलबे को अपनी और खींचकर उसका अपने अन्दर ही विलय कर लेता है। .

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लाल दानव तारा

एक लाल दानव तारे और सूरज के अंदरूनी ढाँचे की तुलना खगोलशास्त्र में लाल दानव तारा (red giant star, रॅड जायंट स्टार) ऐसे चमकीले दानव तारे को बोलते हैं जो हमारे सूरज के द्रव्यमान का ०.५ से १० गुना द्रव्यमान (मास) रखता हो और अपने जीवनक्रम में आगे की श्रेणी का हो (यानि बूढ़ा हो रहा हो)। ऐसे तारों का बाहरी वायुमंडल फूल कर पतला हो जाता है, जिस से उस का आकार भीमकाय और उसका सतही तापमान ५,००० कैल्विन या उस से भी कम हो जाता है। ऐसे तारों का रंग पीले-नारंगी से गहरे लाल के बीच का होता है। इनकी श्रेणी आम तौर पर K या M होती है, लेकिन S भी हो सकती है। कार्बन तारे (जिनमें ऑक्सीजन की तुलना में कार्बन अधिक होता है) भी ज़्यादातर लाल दानव ही होते हैं। प्रसिद्ध लाल दानवों में रोहिणी, स्वाति तारा और गेक्रक्स शामिल हैं। लाल दानव तारों से भी बड़े लाल महादानव तारे होते हैं, जिनमें ज्येष्ठा और आर्द्रा गिने जाते हैं। आज से अरबों वर्षों बाद हमारा सूरज भी एक लाल दानव बन जाएगा। .

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लाल बौना

ब्रह्माण्ड में अधिकतर तारे लाल बौने ही हैं - यह लाल बौने का चित्र एक चित्रकार ने अपनी कल्पना से बनाया है खगोलशास्त्र में लाल बौना या रॅड ड्वार्फ़ मुख्य अनुक्रम के एक छोटे और सूर्य की तुलना में ठन्डे, तारे को बोला जाता है जो "K" या "M" की श्रेणी का तारा होता है। इन तारों का रंग हमारे सूरज की तुलना में अधिक लाल होता है जिसकी वजह से इन्हें लाल बौना कहा जाता है। ब्रह्माण्ड में अधिकतर तारे इसी श्रेणी के हैं। इनका सतही तापमान ४,०००° कैल्विन के आसपास होता है। अकार में यह सूर्य के ५०% से लेकर ७.५% तक के होते हैं। इस से भी अगर छोटे हो तो सही अर्थ में तारा बन नहीं पाते और उसके बजाए भूरा बौना बन जाते हैं।, 6 February 2013, Jason Palmer, BBC, retrieved at 11 April 2013 .

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लियोनार्ड ओइलर

लियोनार्ड ओइलर लियोनार्ड ओइलर (Leonhard Euler; १५ अप्रैल १७०७, बाज़ेल - १८ सितंबर १७८३) एक स्विस गणितज्ञ थे। ये जोहैन बेर्नूली के शिष्य थे। गणित के संकेतों को भी ऑयलर की देन अपूर्व है। इन्होंने संकेतों में अनेक संशोधन करके त्रिकोणमितीय सूत्रों को क्रमबद्ध किया। 1734 ई. में ऑयलर ने x के किसी फलन के लिए f (x), 1728 ई. में लघुगणकों के प्राकृत आधार के लिए e, 1750 ई. में अर्ध-परिमिति के लिए s, 1755 ई. में योग के लिए Σ और काल्पनिक ईकाई के लिए i संकेतों का प्रचलन किया। 1766 ई. में ये अंधे हो गए, परंतु मृत्यु पर्यंत (18 सितंबर 1783 ई.) शोधकार्य में संलग्न रहे। .

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लघुगणक

अलग-अलग आधार के लिये लघुगणकीय फलन का आरेखण: लाल रंग वाला ''e'', हरा रंग वाला 10, तथाबैगनी वाला 1.7. सभी आधारों के लघुगणक बिन्दु (1, 0) से होकर गुजरते हैं क्योंकि किसी भी संख्या पर शून्य घातांक का मान 1 होता है। स्कॉटलैंड निवासी जाॅन नेपियर द्वारा प्रतिपादित लघुगणक (Logarithm / लॉगेरिद्म) एक ऐसी गणितीय युक्ति है जिसके प्रयोग से गणनाओं को छोटा किया जा सकता है। इसके प्रयोग से गुणा और भाग जैसी जटिल प्रक्रियाओं को जोड़ और घटाने जैसी अपेक्षाकृत सरल क्रियाओं में बदल दिया जाता है। कम्प्यूटर और कैलकुलेटर के आने के पहले जटिल गणितीय गननाएँ लघुगणक के सहारे ही की जातीं थीं। .

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लीलावती

लीलावती, भारतीय गणितज्ञ भास्कर द्वितीय द्वारा सन ११५० ईस्वी में संस्कृत में रचित, गणित और खगोल शास्त्र का एक प्राचीन ग्रन्थ है, साथ ही यह सिद्धान्त शिरोमणि का एक अंग भी है। लीलावती में अंकगणित का विवेचन किया गया है। 'लीलावती', भास्कराचार्य की पुत्री का नाम था। इस ग्रन्थ में पाटीगणित (अंकगणित), बीजगणित और ज्यामिति के प्रश्न एवं उनके उत्तर हैं। प्रश्न प्रायः लीलावती को सम्बोधित करके पूछे गये हैं। किसी गणितीय विषय (प्रकरण) की चर्चा करने के बाद लीलावती से एक प्रश्न पूछते हैं। उदाहरण के लिये निम्नलिखित श्लोक देखिये- .

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लीलावती (बहुविकल्पी)

'लीलावती' से निम्नलिखित का बोध होता है.

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शिशुग्रह

हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा HD १४१९४३ और HD १९१०८९ नामक दो कम उम्र के तारों के इर्द-गिर्द के मलबा चक्र शिशुग्रह (planetesimal) उन ठोस वस्तुओं को कहते हैं जो किसी तारे के इर्द-गिर्द के आदिग्रह चक्र या मलबा चक्र में बन रही होती हैं। .

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शिवानन्द गोस्वामी

शिवानन्द गोस्वामी | शिरोमणि भट्ट (अनुमानित काल: संवत् १७१०-१७९७) तंत्र-मंत्र, साहित्य, काव्यशास्त्र, आयुर्वेद, सम्प्रदाय-ज्ञान, वेद-वेदांग, कर्मकांड, धर्मशास्त्र, खगोलशास्त्र-ज्योतिष, होरा शास्त्र, व्याकरण आदि अनेक विषयों के जाने-माने विद्वान थे। इनके पूर्वज मूलतः तेलंगाना के तेलगूभाषी उच्चकुलीन पंचद्रविड़ वेल्लनाडू ब्राह्मण थे, जो उत्तर भारतीय राजा-महाराजाओं के आग्रह और निमंत्रण पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य प्रान्तों में आ कर कुलगुरु, राजगुरु, धर्मपीठ निर्देशक, आदि पदों पर आसीन हुए| शिवानन्द गोस्वामी त्रिपुर-सुन्दरी के अनन्य साधक और शक्ति-उपासक थे। एक चमत्कारिक मान्त्रिक और तांत्रिक के रूप में उनकी साधना और सिद्धियों की अनेक घटनाएँ उल्लेखनीय हैं। श्रीमद्भागवत के बाद सबसे विपुल ग्रन्थ सिंह-सिद्धांत-सिन्धु लिखने का श्रेय शिवानंद गोस्वामी को है।" .

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शकट चक्र गैलेक्सी

शकट चक्र गैलेक्सी (Cartwheel Galaxy), जो ईऍसओ 350-40 (ESO 350-40) भी कहलाती है, हमारे सौर मण्डल से लगभग 50 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर स्थित एक लेंसनुमा गैलेक्सी है। पृथ्वी की सतह से देखें जाने पर यह आकाश के भास्कर तारामंडल क्षेत्र में दिखती है। इस गैलेक्सी का व्यास लगभग 1,50,000 प्रकाशवर्ष है (यानि हमारी गैलेक्सी, क्षीरमार्ग से ज़रा बड़ा) और इसका अनुमानित द्रव्यमान 2.9 – 4.8 × 109सौर द्रव्यमान है। यह 217 किमी/सैकंड की गति से घूर्णन कर रही है। खगोलज्ञों का मानना है कि इसका टकराव एक छोटी गैलेक्सी से हुआ था, जिसके कारण इसके केन्द्रीय भाग से बाहर एक चक्र बन गया, ठीक उसी तरह जैसे पानी में पत्थर फेंकने से पानी में लहर से चक्र बन जाते हैं। .

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श्रीपति

श्रीपति (१०१९ - १०६६) भारतीय खगोलज्ञ तथा गणितज्ञ थे। वे ११वीं शताब्दी के भारत के सर्वोत्कृष्ट गणितज्य थे। .

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शैक्षणिक विषयों की सूची

यहाँ शैक्षणिक विषय (academic discipline) से मतलब ज्ञान की किसी शाखा से है जिसका अध्ययन महाविद्यालय स्तर या विश्वविद्यालय स्तर पर किया जाता है या जिन पर शोध कार्य किया जाता है। .

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शून्य

शून्य (0) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव (additive identity) है। .

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शेरलॉक होम्स

शेरलॉक होम्स उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध का एक काल्पनिक चरित्र है, जो पहली बार 1887 में प्रकाशन में उभरा। वह ब्रिटिश लेखक और चिकित्सक सर आर्थर कॉनन डॉयल की उपज है। लंदन का एक प्रतिभावान 'परामर्शदाता जासूस ", होम्स अपनी बौद्धिक कुशलता के लिए मशहूर है और मुश्किल मामलों को सुलझाने के लिए अपने चतुर अवलोकन, अनुमिति तर्क और निष्कर्ष के कुशल उपयोग के लिए प्रसिद्ध है। कोनन डॉयल ने चार उपन्यास और छप्पन लघु कथाएं लिखी हैं जिसमें होम्स को चित्रित किया गया है। पहली दो कथाएं (लघु उपन्यास) क्रमशः 1887 में बीटन्स क्रिसमस ऐनुअल में और 1890 में लिपिनकॉट्स मंथली मैग्जीन में आईं.

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सत्यजित राय

सत्यजित राय (बंगाली: शॉत्तोजित् राय्) (२ मई १९२१–२३ अप्रैल १९९२) एक भारतीय फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फ़िल्म निर्देशकों में गिना जाता है। इनका जन्म कला और साहित्य के जगत में जाने-माने कोलकाता (तब कलकत्ता) के एक बंगाली परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज और विश्व-भारती विश्वविद्यालय में हुई। इन्होने अपने कैरियर की शुरुआत पेशेवर चित्रकार की तरह की। फ़्रांसिसी फ़िल्म निर्देशक ज़ाँ रन्वार से मिलने पर और लंदन में इतालवी फ़िल्म लाद्री दी बिसिक्लेत (Ladri di biciclette, बाइसिकल चोर) देखने के बाद फ़िल्म निर्देशन की ओर इनका रुझान हुआ। राय ने अपने जीवन में ३७ फ़िल्मों का निर्देशन किया, जिनमें फ़ीचर फ़िल्में, वृत्त चित्र और लघु फ़िल्में शामिल हैं। इनकी पहली फ़िल्म पथेर पांचाली (পথের পাঁচালী, पथ का गीत) को कान फ़िल्मोत्सव में मिले “सर्वोत्तम मानवीय प्रलेख” पुरस्कार को मिलाकर कुल ग्यारह अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। यह फ़िल्म अपराजितो (অপরাজিত) और अपुर संसार (অপুর সংসার, अपु का संसार) के साथ इनकी प्रसिद्ध अपु त्रयी में शामिल है। राय फ़िल्म निर्माण से सम्बन्धित कई काम ख़ुद ही करते थे — पटकथा लिखना, अभिनेता ढूंढना, पार्श्व संगीत लिखना, चलचित्रण, कला निर्देशन, संपादन और प्रचार सामग्री की रचना करना। फ़िल्में बनाने के अतिरिक्त वे कहानीकार, प्रकाशक, चित्रकार और फ़िल्म आलोचक भी थे। राय को जीवन में कई पुरस्कार मिले जिनमें अकादमी मानद पुरस्कार और भारत रत्न शामिल हैं। .

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सफ़ेद बौना

तुलनात्मक तस्वीर: हमारा सूरज (दाएँ तरफ़) और पर्णिन अश्व तारामंडल में स्थित द्वितारा "आई॰के॰ पॅगासाई" के दो तारे - "आई॰के॰ पॅगासाई ए" (बाएँ तरफ़) और सफ़ेद बौना "आई॰के॰ पॅगासाई बी" (नीचे का छोटा-सा बिंदु)। इस सफ़ेद बौने का सतही तापमान ३,५०० कैल्विन है। खगोलशास्त्र में सफ़ेद बौना या व्हाइट ड्वार्फ़ एक छोटे तारे को बोला जाता है जो "अपकृष्ट इलेक्ट्रॉन पदार्थ" का बना हो। "अपकृष्ट इलेक्ट्रॉन पदार्थ" या "ऍलॅक्ट्रॉन डिजॅनरेट मैटर" में इलेक्ट्रॉन अपने परमाणुओं से अलग होकर एक गैस की तरह फैल जाते हैं और नाभिक (न्युक्लिअस, परमाणुओं के घना केंद्रीय हिस्से) उसमें तैरते हैं। सफ़ेद बौने बहुत घने होते हैं - वे पृथ्वी के जितने छोटे आकार में सूरज के जितना द्रव्यमान (मास) रख सकते हैं। माना जाता है के जिन तारों में इतना द्रव्यमान नहीं होता के वे आगे चलकर अपना इंधन ख़त्म हो जाने पर न्यूट्रॉन तारा बन सकें, वे सारे सफ़ेद बौने बन जाते हैं। इस नज़रिए से आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) के ९७% तारों के भाग्य में सफ़ेद बौना बन जाना ही लिखा है। सफ़ेद बौनों की रौशनी बड़ी मध्यम होती है। वक़्त के साथ-साथ सफ़ेद बौने ठन्डे पड़ते जाते हैं और वैज्ञानिकों की सोच है के अरबों साल में अंत में जाकर वे बिना किसी रौशनी और गरमी वाले काले बौने बन जाते हैं। क्योंकि हमारा ब्रह्माण्ड केवल १३.७ अरब साल पुराना है इसलिए अभी इतना समय ही नहीं गुज़रा के कोई भी सफ़ेद बौना पूरी तरह ठंडा पड़कर काला बौना बन सके। इस वजह से आज तक खगोलशास्त्रियों को कभी भी कोई काला बौना नहीं मिला है। .

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सर्गी ब्रिन

सर्गी मिखायलोविच ब्रिन (Серге́й Миха́йлович Брин) जन्म - 21 अगस्त 1973, एक रूसी अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक, सॉफ्टवेयर डेवलपर और उद्यमी हैं जिन्हें लैरीपेज के साथ गूगल, इंक.

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सिद्धान्त शिरोमणि

सिद्धान्त शिरोमणि, संस्कृत में रचित गणित और खगोल शास्त्र का एक प्राचीन ग्रन्थ है। इसकी रचना भास्कर द्वितीय (या भास्कराचार्य) ने सन ११५० के आसपास की थी। सिद्धान्त शिरोमणि का रचीता। इसके चार भाग हैं: ग्रहगणिताध्याय और गोलाध्याय में खगोलशास्त्र का विवेचन है। .

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सिद्धान्त ज्योतिष

'ज्योतिष' (Astrology) शब्द का अर्थ है - ज्योति, अर्थात्‌ प्रकाशपुंज, संबंधी विवेचन। अति प्राचीन काल से ही इससे उस विद्या का बोध होता रहा है, जिसका संबंध खगोलीय पिंडों, अर्थात्‌ ग्रहनक्षत्रों, के विवेचन से है। इसमें खगोलीय पिंडों की स्थिति, उनके गतिशास्त्र तथा उनकी भौतिक रचना पर विचार किया जाता है। .

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सिद्धांत (थिअरी)

सिद्धांत, सिद्धि का अंत है। यह वह धारणा है जिसे सिद्ध करने के लिए, जो कुछ हमें करना था वह हो चुका है और अब स्थिर मत अपनाने का समय आ गया है। धर्म, विज्ञान, दर्शन, नीति, राजनीति सभी सिद्धांत की अपेक्षा करते हैं। .

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सिम्बाद

स्त्रासबूर्ग की वेधशाला सिम्बाद (अंग्रेज़ी: SIMBAD) हमारे सौर मंडल के बाहर पायी गयी खगोलीय वस्तुओं का एक कोष है। इसकी देख-रेख फ्रांस में स्थित "स्त्रासबूर्ग खगोलीय जानकारी केंद्र" (Centre de données astronomiques de Strasbourg) करता है। १४ जून २००७ तक इस कोष में ३८,२४,१९५ वस्तुएँ दर्ज थीं जिनके लिए १,१२,००,७९५ नाम भी दर्ज थे। इस केंद्र के योगदान को पहचानते हुए एक क्षुद्रग्रह का नाम इसके ऊपर "४६९२ सिम्बाद" रखा गया। .

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संयुक्त राज्य अमेरिका में अमेरिकी मूल-निवासी

संयुक्त राज्य अमेरिका में अमेरिकी मूल-निवासी उत्तरी अमेरिका में वर्तमान महाद्वीपीय संयुक्त राज्य अमेरिका, अलास्का के भागों और हवाई के द्वीपीय राज्य की सीमाओं के भीतर रहने वाले मूलनिवासी लोग हैं। वे अनेक, विशिष्ट कबीलों, राज्यों और जाति-समूहों से मिलकर बने हैं, जिनमें से अनेक का अस्तित्व पूर्ण राजनैतिक समुदायों के रूप में मौजूद है। अमेरिकी मूल-निवासियों का उल्लेख करने के लिए प्रयुक्त शब्दावलियाँ विवादास्पद हैं; यूएस सेंसस ब्यूरो (US Census Bureau) के सन 1995 के घरेलू साक्षात्कारों के एक समुच्चय के अनुसार, अभिव्यक्त प्राथमिकता वाले उत्तरदाताओं में से अनेक ने अपना उल्लेख अमेरिकन इन्डियन्स (American Indians) अथवा इन्डियन्स (Indians) के रूप में किया। पिछले 500 वर्षों में, अमेरिकी महाद्वीप में एफ्रो-यूरेशियाई अप्रवासन के परिणामस्वरूप पुराने और नये विश्व के समाजों के बीच सदियों तक टकराव और समायोजन हुआ है। अमेरिकी मूल-निवासियों के बारे में अधिकांश लिखित ऐतिहासिक रिकॉर्ड की रचना यूरोपीय लोगों द्वारा अमेरिका में उनके अप्रवासन के बाद की गई थी। "नेटिव अमेरिकन्स फर्स्ट व्यू व्हाइट्स फ्रॉम द शोर," अमेरिकन हेरिटेज, स्प्रिंग 2009.

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संस्कृत साहित्य

बिहार या नेपाल से प्राप्त देवीमाहात्म्य की यह पाण्डुलिपि संस्कृत की सबसे प्राचीन सुरक्षित बची पाण्डुलिपि है। (११वीं शताब्दी की) ऋग्वेदकाल से लेकर आज तक संस्कृत भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के वाङ्मय का निर्माण होता आ रहा है। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी के छोर तक किसी न किसी रूप में संस्कृत का अध्ययन अध्यापन अब तक होता चल रहा है। भारतीय संस्कृति और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृष्टियों से धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) रही है। इस भाषा में धार्मिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और मानविकी (ह्यूमैनिटी) आदि प्राय: समस्त प्रकार के वाङ्मय की रचना हुई। संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है। संस्कृत साहित्य इतना विशाल और scientific है तो भारत से संस्कृत भाषा विलुप्तप्राय कैसे हो गया? .

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संक्रमण (खगोलशास्त्र)

खगोलशास्त्र में संक्रमण (transit) के तीन अर्थ होते हैं.

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सक्रीय गैलेक्सीय नाभिक

सक्रीय गैलेक्सीय नाभिक (active galactic nucleus) या स॰गै॰ना॰ (AGN) किसी गैलेक्सी के केन्द्र में ऐसा एक संकुचित क्षेत्र होता है जिसमें असाधारण तेजस्विता हो। यह विद्युतचुंबकीय वर्णक्रम के पूर्ण या ऐसे भाग में हो सकता है जिस से स्पष्ट हो जाए कि इस तेजस्विता का स्रोत केवल तारे नहीं हो सकते। इस प्रकार का विकिरण रेडियो, सूक्ष्मतरंग (माइक्रोवेव), अवरक्त (इन्फ़्रारेड), प्रत्यक्ष (ओप्टीकल), पराबैंगनी (अल्ट्रावायोलेट), ऍक्स किरण और गामा किरण के तरंगदैर्घ्य में पाया गया है। सक्रीय गैलेक्सीय नाभिक रखने वाली गैलेक्सी को सक्रीय गैलेक्सी (active galaxy) कहा जाता है। खगोलशास्त्रियों का मानना है कि सक्रीय गैलेक्सीय नाभिक से उत्पन्न होने वाला विकिरण ऐसी गैलेक्सियों के केन्द्र में उपस्थित विशालकाय ब्लैक होल के इर्द-गिर्द एकत्रित होने वाले पदार्थ से पैदा होता है। अक्सर ऐसे सक्रीय गैलेक्सीय नाभिकों से मलबे के विशालकाय खगोलभौतिक फौवारे निकलते हुए दिखते हैं, मसलन ऍम87 नामक सक्रीय गैलेक्सी के नाभिक से एक 5000 प्रकाशवर्ष लम्बा फौवारा निकलता हुआ देखा जा सकता है। बहुत ही भयंकर तेजस्विता रखने वाले सक्रीय गैलेक्सीय नाभिक को क्वेसार (quasar) कहते हैं। .

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सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर

सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर (१९ अक्टूबर, १९१०-२१ अगस्त, १९९५) विख्यात भारतीय-अमेरिकी खगोलशास्त्री थे। भौतिक शास्त्र पर उनके अध्ययन के लिए उन्हें विलियम ए. फाउलर के साथ संयुक्त रूप से सन् १९८३ में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। चन्द्रशेखर सन् १९३७ से १९९५ में उनके देहांत तक शिकागो विश्वविद्यालय के संकाय पर विद्यमान थे। .

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स्थिति कोण

स्थिति कोण (position angle) खगोलशास्त्र में आकाश में कोणों को मापने की सर्वसम्मत विधि है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ की परिभाषा के अनुसार यह आकाश में किसी बिन्दु का उत्तरी खगोलीय ध्रुव से वामावर्त्त (काउंटरक्लॉकवाइज़) दिशा में मापा गया कोण है। .

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स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री

Solar flare photographed in the light of ionized helium, using the extreme-ultraviolet spectroheliograph of the U.S. Naval Research Laboratory. स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री या एकवर्ण सूर्यचित्रक (स्पेक्ट्रोहीलियोग्राफ़) वह यंत्र है जिसके द्वारा सूर्य के समूचे भाग या किसी एक भाग की विशेषताओं का चित्रांकन किसी भी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश द्वारा किया जा सकता है। इसका उपयोग खगोलिकी में किया जाता है। यह वास्तव में एक रश्मिचित्रांकक (स्पेक्ट्रोग्राफ़) है जो एक विशेष तरंगदैर्घ्य के विकिरण को (उदाहरणत: एक फ्राउनहोफ़र रेखा को) अलग कर लेता है और इस प्रकार सूर्य के समूचे भाग की जाँच इस रेखा के प्रकाश में करने की क्षमता प्रदान करता है। एक साधारण स्पेक्ट्रोग्राफ़ की कल्पना कीजिए जिसके अंतिम भाग में, जहाँ वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का फोटोग्राफ़ अंकित किया जाता है, एक दूसरा सँकरा छिद्र लगा हो। इस छिद्र के द्वारा कोई विशिष्ट वर्णक्रम रेखा (या उसका एक भाग) अलग हो सकता है। यह छिद्र इस प्रकार सारे विकिरण का वही भाग बाहर आने देता है जो एक विशेष तरंगदैर्घ्य का है और उस छिद्र पर पड़ रहा है। यदि फोटो खींचनेवाली पट्टिका इस दूसरे छिद्र के साथ सटाकर रख दी जाए तो इस छिद्र से होकर बाहर आनेवाले विकिरण का फोटो लिया जा सकता है। अब यदि सारा यंत्र धीरे धीरे बराबर, किंतु नियंत्रित गति से, इस प्रकार चलाया जाए कि यंत्र का अक्ष सूर्य के समूचे प्रतिबिंब को पार कर सके और छिद्र की सभी अनुगामी स्थितियाँ एक दूसरे के समांतर रह सकें, तो पट्टिका पर एक पूरा प्रतिबिंब बनेगा जो एकवर्णीय कहा जा सकता है। यदि प्रथम छिद्र सूर्यप्रतिबिंब के व्यास से बड़ा हो तो फोटो की पट्टिका पर बना प्रतिबिंब वास्तव में सूर्य के समूचे भाग में चित्र होगा। यह प्रथम छिद्र द्वारा लिए गए, रेखा के समान सँकरे, अनेक चित्रों का एकीकरण होगा। .

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स्पेक्ट्रोस्कोपी

स्पेक्ट्रमिकी का सबसे सरल उदाहरण: श्वेत प्रकाश को प्रिज्म होकर ले जाने पर वह सात रंगों में बंट जाती है। स्पेक्ट्रमिकी, भौतिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस शाखा में मुख्य रूप से वर्णक्रम का ही अध्ययन होता है अत: इसे स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रमविज्ञान (Spectroscopy) कहते हैं। मूलत: विकिरण एवं पदार्थ के बीच अन्तरक्रिया (interaction) के अध्ययन को स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) कहा जाता था। वस्तुत: ऐतिहासिक रूप से दृष्य प्रकाश का किसी प्रिज्म से गुजरने पर अलग-अलग आवृत्तियों का अलग-अलग रास्ते पर जाना ही स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाता था। बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब तरंगदैर्ध्य (या आवृत्ति) के फलन के रूप में किसी भी राशि का मापन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब उर्जा (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है: E .

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स्वर्गपक्षी तारामंडल

स्वर्गपक्षी (एपस) तारामंडल स्वर्गपक्षी या एपस (अंग्रेज़ी: Apus) तारामंडल खगोलीय गोले के दक्षिणी भाग में दिखने वाला एक तारामंडल है। यह बहुत ही छोटा तारामंडल है और इसके सितारे भी कम रोशन हैं। इसकी परिभाषा लगभग ४०० वर्ष पूर्व दो डच नाविकों ने की थी, जिन्होनें पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध (हेमिसफ़्येअर) से नज़र आने वाले १० अन्य तारामंडलों की भी परिभाषा की। .

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सौर द्रव्यमान

वी॰वाए॰ कैनिस मेजौरिस का द्रव्यमान ३०-४० \beginsmallmatrixM_\odot\endsmallmatrix है, यानि सूरज के द्रव्यमान का ३०-४० गुना है खगोलविज्ञान में सौर द्रव्यमान (solar mass) (\beginM_\odot\end) द्रव्यमान की मानक इकाई है, जिसका मान १.९८८९२ X १०३० कि.ग्रा.

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सौर ज्योति

शिकारी तारामंडल में स्थित आद्रा तारे (बीटलजूस) की चमक १,४०,००० \beginsmallmatrixL_\odot\endsmallmatrix है, यानि सूरज की डेढ़ लाख गुना से ज़रा कम सौर ज्योति अथवा सौर दीप्ति (Solar luminosity), जिसे \beginL_\odot\end के चिन्ह से दर्शाया जाता है, हमारे सूरज से उभरने वाली चमक (यानि फ़ोटोनो के रूप में उत्सर्जित शक्ति) का माप है, जो कि ३.८३९ x १०२६ वॉट के बराबर है।, George H. A. Cole, World Scientific, 2010, ISBN 978-1-84816-505-2,...

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सौर अर्धव्यास

सौर अर्धव्यास (solar radius), जिसे \beginR_\odot\end के चिन्ह से दर्शाया जाता है, हमारे सूरज का अर्धव्यास (रेडियस) है जो ६.९५५ x १०५ किलोमीटर के बराबर है। खगोलशास्त्र में, सौर्य अर्धव्यास का तारों के अर्धव्यास बताने के लिए इकाई की तरह इस्तेमाल होता है। अगर किसी तारे का अर्धव्यास हमारे सूरज से बीस गुना है, जो कहा जाएगा के उसका अर्धव्यास २० \beginR_\odot\end है। ज़ाहिर है के सूरज का अपना अर्धव्यास १ \beginR_\odot\end है। .

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सैमुअल हेनरिक श्वाबे

सैमुअल हेनरिक श्वाबे (Samuel Heinrich Schwabe) (25 अक्टूबर 1789 - 11 अप्रैल 1875), एक जर्मन खगोलशास्त्री थे। वह सौर कलंक (अथवा सूर्य का धब्बा) अपने काम के लिए याद किए जाते है। श्रेणी:खगोलशास्त्री.

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सूर्य नारायण व्यास

पण्डित सूर्यनारायण व्यास (०२ मार्च १९०२ - २२ जून १९७६) हिन्दी के व्यंग्यकार, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी एवं ज्योतिर्विद थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९५८ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। पं॰ व्यास ने 1967 में अंग्रेजी को अनन्त काल तक जारी रखने के विधेयक के विरोध में अपना पद्मभूषण लौटा दिया था। वे बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे - वे इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ता, क्रान्तिकारी, "विक्रम" पत्र के सम्पादक, संस्मरण लेखक, निबन्धकार, व्यंग्यकार, कवि; विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्ति मन्दिर, सिन्धिया शोध प्रतिष्ठान और कालिदास परिषद के संस्थापक, अखिल भारतीय कालिदास समारोह के जनक तथा ज्योतिष एवं खगोल के अपने युग के सर्वोच्च विद्वान थे। वे महर्षि सान्दीपनी की परम्परा के वाहक थे। खगोल और ज्योतिष के अपने समय के इस असाधारण व्यक्तित्व का सम्मान लोकमान्य तिलक एवं पं॰ मदनमोहन मालवीय भी करते थे। पं॰ नारायणजी के देश और विदेश में लगभग सात हजार से अधिक शिष्य फैले हुए थे जिन्हें वे वस्त्र, भोजन और आवास देकर निःशुल्क विद्या अध्ययन करवाते थे। अनेक इतिहासकारों ने यह भी खोज निकाला है कि पं॰ व्यास के उस गुरुकुल में स्वतन्त्रता संग्राम के अनेक क्रान्तिकारी वेश बदलकर रहते थे। .

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सूर्य केंद्रीय सिद्धांत

सूर्य केंद्रीय सिद्धांत अथवा सूर्य केन्द्रीयता (heliocentricism), एक खगोलीय मॉडल है जिसमें पृथ्वी और ग्रह सौरमंडल के केंद्र में एक अपेक्षाकृत स्थिर सूर्य के चारों ओर घूमते है। यह शब्द प्राचीन यूनानी भाषा से आया है (ἥλιος हिलीयस "सूर्य" और κέντρον केंट्रोन "केंद्र")। ऐतिहासिक रूप से, सूर्य केन्द्रीयता ने भूकेंद्रीयता का विरोध किया था जिसने पृथ्वी को केंद्र पर रखा था। यह धारणा कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, सैमोस के एरिसटेरकस द्वारा तीसरी शताब्दी ईपू के उत्तरार्ध में प्रस्तावित किया गया था। किंतु एरिसटेरकस के सूर्य केन्द्रीयता ने थोड़े समय के लिए ध्यान आकर्षित किया जब तक कोपरनिकस पुनर्जीवित हुआ और इसका सविस्तार हुआ। तथापि, लुसियो रुसो का तर्क है कि यह हेलेनिस्टिक युग के वैज्ञानिक कार्यों के नुकसान से उत्पन्न एक भ्रामक धारणा है। अप्रत्यक्ष प्रमाण का प्रयोग कर वे तर्क देते हैं कि एक सूर्य केंद्रीय विचार को हिप्पारकस के गुरुत्वाकर्षण पर कार्य में समझाया गया था। .

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सूर्यपथ

खगोलीय मध्य रेखा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर है और क्रांतिवृत्त से २३.४ डिग्री के कोण पर है। २१ मार्च और २३ सितम्बर (विषुव/इक्विनोक्स के दिन) को क्रांतिवृत्त और खगोलीय मध्य रेखा एक दुसरे को काटती हैं। २१ जून और २१ दिसम्बर (संक्रांति/सॉल्सटिस के दिन) को क्रांतिवृत्त और खगोलीय मध्य रेखा एक दुसरे से चरम दूरी पर होते हैं। खगोलशास्त्र में क्रांतिवृत्त या सूर्यपथ या ऍक्लिप्टिक आकाश के खगोलीय गोले पर वह मार्ग है जिसे ज़मीन पर बैठे किसी दर्शक के दृष्टिकोण से सूरज वर्ष भर में लेता है। आम भाषा में अगर यह कल्पना की जाए के पृथ्वी एक काल्पनिक गोले से घिरी हुई है (जिसे खगोलीय गोला कहा जाता है) और सूरज उसपर स्थित एक रोशनी है, तो अगर सालभर के लिए कोई हर रोज़ दोपहर के बराह बजे सूरज खगोलीय गोले पर जहाँ स्थित है वहाँ एक काल्पनिक बिंदु बना दे और फिर इन ३६५ बिन्दुओं (वर्ष के हर दिन का एक बिंदु) को जोड़ दे और उस रेखा को दोनों तरफ़ बढ़ाकर क्षितिज की ओर ले जाए तो उसे क्रांतिवृत्त मिल जाएगा.

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सेयफ़र्ट गैलेक्सी

खगोलशास्त्र में सेयफ़र्ट गैलेक्सी (Seyfert galaxy) सक्रीय गैलेक्सियों के दो प्रमुख प्रकारों में से एक है। क्वेसार दूसरा प्रमुख प्रकार होता है। दोनों में सक्रीय गैलेक्सीय नाभिक बहुत तेजस्विता से चमकता है, लेकिन जहाँ क्वेसार में गैलेक्सी का अन्य भाग इस केन्द्रीय तेजस्विता के सामने दिखता नहीं है, वहाँ सेयफ़र्ट गैलेक्सियों में गैलेक्सी के अन्य भाग को स्पष्टता से देखा जा सकता है। पूरे ब्रह्माण्ड में देखी गई गैलेक्सियों में से लगभग १०% सेयफ़र्ट गैलेक्सियाँ हैं। सेयफ़र्ट गैलेक्सियों के केन्द्र में विशालकाय काले छिद्र होते हैं और उनके इर्द-गिर्द उनमें गिर रहे मलबे के अभिवृद्धि चक्र होते हैं। इनमें देखा गया पराबैंगनी विकिरण इन्हीं चक्रों से उत्पन्न होता है और इस विकिरण के वर्णक्रम को परखकर मलबे में सम्मिलित पदार्थ की पहचान की जा सकती है। इन गैलेक्सियों का नाम कार्ल सेयफ़र्ट नामक खगोलशास्त्री पर रखा गया था जिन्होंने सन् १९४३ में इस श्रेणी का विवरण दिया था। .

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हलाकु ख़ान

इलख़ानी साम्राज्य का संस्थापक हलाकु ख़ान अपनी पत्नी दोक़ुज़ ख़ातून के साथ सन् १२५८ में हलाकु की फ़ौज बग़दाद को घेरे हुए हलाकु द्वारा ज़र्ब किया गया ख़रगोश के चिह्न वाला सिक्का हलाकु ख़ान या हुलेगु ख़ान (मंगोल: Хүлэг хаан, ख़ुलेगु ख़ान; फ़ारसी:, हूलाकू ख़ान; अंग्रेजी: Hülegü Khan;; जन्म: १२१७ ई अनुमानित; देहांत: ८ फ़रवरी १२६५ ई) एक मंगोल ख़ान (शासक) था जिसने ईरान समेत दक्षिण-पश्चिमी एशिया के अन्य बड़े हिस्सों पर विजय करके वहाँ इलख़ानी साम्राज्य स्थापित किया। यह साम्राज्य मंगोल साम्राज्य का एक भाग था। हलाकु ख़ान के नेतृत्व में मंगोलों ने इस्लाम के सबसे शक्तिशाली केंद्र बग़दाद को तबाह कर दिया। ईरान पर अरब क़ब्ज़ा इस्लाम के उभरने के लगभग फ़ौरन बाद हो चुका था और तबसे वहाँ के सभी विद्वान अरबी भाषा में ही लिखा करते थे। बग़दाद की ताक़त नष्ट होने से ईरान में फ़ारसी भाषा फिर पनपने लगी और उस काल के बाद ईरानी विद्वान और इतिहासकार फ़ारसी में ही लिखा करते थे।, Craig A. Lockard, Cengage Learning, 2010, ISBN 978-1-4390-8535-6,...

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हान राजवंश

चीन में हान साम्राज्य का नक़्शा एक मकबरे में मिला हानवंश के शासनकाल में निर्मित लैम्प हान काल में जारी किया गया एक वुशु (五銖) नाम का सिक्का हान काल में बना कांसे के गियर (दांतदार पहिये) बनाने का एक साँचा हान राजवंश (चीनी: 漢朝, हान चाओ; अंग्रेज़ी: Han Dynasty) प्राचीन चीन का एक राजवंश था जिसने चीन में २०६ ईसापूर्व से २२० ईसवी तक राज किया। हान राजवंश अपने से पहले आने वाले चिन राजवंश (राजकाल २२१-२०७ ईसापूर्व) को सत्ता से बेदख़ल करके चीन के सिंहासन पर विराजमान हुआ और उसके शासनकाल के बाद तीन राजशाहियों (२२०-२८० ईसवी) का दौर आया। हान राजवंश की नीव लिऊ बांग नाम के विद्रोही नेता ने रखी थी, जिसका मृत्यु के बाद औपचारिक नाम बदलकर सम्राट गाओज़ू रखा गया। हान काल के बीच में, ९ ईसवी से २३ ईसवी तक, शीन राजवंश ने सत्ता हथिया ली थी, लेकिन उसके बाद हान वंश फिर से सत्ता पकड़ने में सफल रहा। शीन राजवंश से पहले के हान काल को पश्चिमी हान राजवंश कहा जाता है और इसके बाद के हान काल को पूर्वी हान राजवंश कहा जाता है। ४०० से अधिक वर्षों का हान काल चीनी सभ्यता का सुनहरा दौर माना जाता है। आज तक भी चीनी नसल अपने आप को 'हान के लोग' या 'हान के बेटे' बुलाती है और हान चीनी के नाम से जानी जाती है। इसी तरह चीनी लिपि के भावचित्रों को 'हानज़ी' (यानि 'हान के भावचित्र') बुलाया जाता है।, Xiaoxiang Li, LiPing Yang, Asiapac Books Pte Ltd, 2005, ISBN 978-981-229-394-7,...

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हार्लो शापले

हार्लो शापले (Harlow Shapley) (2 नवम्बर 1885 - अक्टूबर 20, 1972), एक अमेरिकी खगोलशास्त्री थे। श्रेणी:खगोलशास्त्री.

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हाईपेशिया

हाईपेशिया (/ˌhaɪˈpeɪʃə, -ʃi.ə/;; Ὑπατία Hupatía; जन्म 350–370; मृत्यु 415),, MacTutor History of Mathematics, School of Mathematics and Statistics, Univ.

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हीन ग्रह परिपत्र

हीन ग्रह परिपत्र (Minor Planet Circular) एक वैज्ञानिक पत्रिका है जो हर पूर्णिमा पर हीन ग्रह केन्द्र द्वारा प्रकाशित की जाती है। इसमें खगोलशास्त्रीय समीक्षा, हीन ग्रहों व धूमकेतुओं की परिक्रमा कक्षाओं (ओरबिटों) व पंचांग से सम्बन्धित जानकारी, और कुछ प्राकृतिक उपग्रहों से सम्बन्धित जानकारी भी सम्मिलित होती है। नये खोजे गये क्षुद्रग्रह, धूमकेतु व अन्य हीन ग्रह या उनकी कक्षाओं के बारे मे ज्ञात नई जानकारी भी इसमें शामिल की जाती है। .

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हीन ग्रह केन्द्र

हीन ग्रह केन्द्र (Minor Planet Center या MPC) अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अंतर्गत काम करने वाली एक संस्था है जिसका काम विश्व-स्तर पर हीन ग्रह, क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओं से सम्बन्धित जानकारी एकत्रित करके उनकी कक्षाओं का अनुमान लगाना और इस सारी जानकारी को हीन ग्रह परिपत्रों (Minor Planet Circulars) के ज़रिये दुनिया-भर के खगोलशास्त्रियों तक पहुँचाना है। जब किसी नये हीन ग्रह की खोज होती है तो उसका औपचारिक रूप से हीन ग्रह नामांकन (Minor planet designation) भी यही संस्था करती है। .

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जन्तर मन्तर (जयपुर)

जन्तर-मन्तर, जयपुर जयपुर का जन्तर मन्तर सवाई जयसिंह द्वारा १७२४ से १७३४ के बीच निर्मित एक खगोलीय वेधशाला है। यह यूनेस्को के 'विश्व धरोहर सूची' में सम्मिलित है। इस वेधशाला में १४ प्रमुख यन्त्र हैं जो समय मापने, ग्रहण की भविष्यवाणी करने, किसी तारे की गति एवं स्थिति जानने, सौर मण्डल के ग्रहों के दिक्पात जानने आदि में सहायक हैं। इन यन्त्रों को देखने से पता चलता है कि भारत के लोगों को गणित एवं खगोलिकी के जटिल संकल्पनाओं (कॉंसेप्ट्स) का इतना गहन ज्ञान था कि वे इन संकल्पनाओं को एक 'शैक्षणिक वेधशाला' का रूप दे सके ताकि कोई भी उन्हें जान सके और उसका आनन्द ले सके। जयपुर में पुराने राजमहल 'चन्द्रमहल' से जुडी एक आश्चर्यजनक मध्यकालीन उपलब्धि है- जंतर मंतर! प्राचीन खगोलीय यंत्रों और जटिल गणितीय संरचनाओं के माध्यम से ज्योतिषीय और खगोलीय घटनाओं का विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध इस अप्रतिम वेधशाला का निर्माण जयपुर नगर के संस्थापक आमेर के राजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने 1728 में अपनी निजी देखरेख में शुरू करवाया था, जो सन 1734में पूरा हुआ था। सवाई जयसिंह एक खगोल वैज्ञानिक भी थे, जिनके योगदान और व्यक्तित्व की प्रशंसा जवाहर लाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' ('भारत: एक खोज') में सम्मानपूर्वक की है। सवाई जयसिंह ने इस वेधशाला के निर्माण से पहले विश्व के कई देशों में अपने सांस्कृतिक दूत भेज कर वहां से खगोल-विज्ञान के प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियाँ मंगवाईं थीं और उन्हें अपने पोथीखाने (पुस्तकालय) में संरक्षित कर अपने अध्ययन के लिए उनका अनुवाद भी करवाया था। महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने हिन्दू खगोलशास्त्र में आधार पर देश भर में पांच वेधशालाओं का निर्माण कराया था। ये वेधशालाएं जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में बनवाई गई। इन वेधशालाओं के निर्माण में उन्होंने उस समय के प्रख्यात खगोशास्त्रियों की मदद ली थी। सबसे पहले महारजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने उज्जैन में सम्राट यन्त्र का निर्माण करवाया, उसके बाद दिल्ली स्थित वेधशाला (जंतर-मंतर) और उसके दस वर्षों बाद जयपुर में जंतर-मंतर का निर्माण करवाया था। देश की सभी पांच वेधशालाओं में जयपुर की वेधशाला सबसे बड़ी है। इस वेधशाला के निर्माण के लिए 1724 में कार्य प्रारम्भ किया गया और 1734 में यह निर्माण कार्य पूरा हुआ।http://www.bhaskar.com/article/RAJ-JAI-challenge-the-world-4236516-PHO.html?seq.

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जय सिंह द्वितीय

सवाई जयसिंह या द्वितीय जयसिंह (०३ नवम्बर १६८८ - २१ सितम्बर १७४३) अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान प्रान्त के नगर/राज्य आमेर के कछवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। सन १७२७ में आमेर से दक्षिण छः मील दूर एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर 'सवाई जयनगर', जयपुर बसाने वाले नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय-इतिहास में अमर है। काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे। उनका संस्कृत, मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था। भारतीय ग्रंथों के अलावा गणित, रेखागणित, खगोल और ज्योतिष में उन्होंने अनेकानेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का विधिपूर्वक अध्ययन किया था और स्वयं परीक्षण के बाद, कुछ को अपनाया भी था। देश-विदेश से उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों और खगोलशास्त्र के विषय-विशेषज्ञों को जयपुर बुलाया, सम्मानित किया और यहाँ सम्मान दे कर बसाया। .

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जयन्त विष्णु नार्लीकर

जयन्त विष्णु नार्लीकर जयन्त विष्णु नार्लीकर (मराठी: जयन्त विष्णु नारळीकर; जन्म 19 जुलाई 1938) प्रसिद्ध भारतीय भौतिकीय वैज्ञानिक हैं जिन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए अंग्रेजी, हिन्दी और मराठी में अनेक पुस्तकें लिखी हैं। ये ब्रह्माण्ड के स्थिर अवस्था सिद्धान्त के विशेषज्ञ हैं और फ्रेड हॉयल के साथ भौतिकी के हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं। .

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ज़ेटा ओरायोनिस तारा

ज़ेटा ओरायोनिस एक नीला महादानव तारा है जो हमारे सूरज से बहुत बड़ा है ज़ेटा ओरायोनिस कालपुरुष तारामंडल में आंच नीहारिका (फ़्लेम नेब्युला) के समीप नज़र आता है ज़ेटा ओरायोनिस, जिसके बायर नामांकन में भी यही नाम (ζ Ori या ζ Orionis) दर्ज है, आकाश में कालपुरुष तारामंडल में स्थित एक तीन तारों का बहु तारा मंडल है। इसका मुख्य तारा (जिसे "ज़ेटा ओरायोनिस ए" कहा जाता है) एक अति-गरम नीला महादानव तारा है और यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ३१वाँ सब से रोशन तारा है। यह हमसे ७०० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) २.०४ है। अगर तीनों तारों को इकठ्ठा देखा जाए तो इनकी मिली-जुली चमक १.७२ मैग्निट्यूड है। ध्यान रहे के खगोलीय मैग्निट्यूड एक विपरीत माप है और यह जितना कम हो चमक उतनी ही ज़्यादा होती है। .

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जिओवानी स्क्यापारेल्ली

जिओवानी विर्गिनियो स्क्यापारेल्ली (14 मार्च 1835 - 4 जुलाई 1910) एक इतालवी खगोलज्ञ और वैज्ञानिक इतिहासकार थे। उन्होंने टुरिन विश्वविद्यालय और बर्लिन वेधशाला में अध्ययन किया था। 1859-1860 में उन्होंने पुलकोवो वेधशाला में काम किया और बाद में ब्रेरा वेधशाला में चालीस वर्षों से ऊपर काम किया। वे इटली साम्राज्य के सभासद भी थे, आकादेमिया दी लिंसी, द अकादेमिया डेल्ले स्सिएंज़े दी तोरिनो और द रेगियो इस्तिठुठो लोम्बर्दो के भी सदस्य थे और विशेष रूप से मंगल ग्रह के अपने अध्ययन के लिए जाने जाते हैं। उनकी भतीजी, एल्सा स्क्यापारेल्ली, एक प्रसिद्ध फ़ैशनेबल वस्त्र-निर्माता बनी। .

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जगन्नाथ सम्राट

ॱ पंडित जगन्नाथ सम्राट (1652–1744) भारत के जाने-माने खगोलविद एवं गणितज्ञ थे। वे आमेर के महाराजा द्वितीय जयसिंह के दरबार में सम्मानित वैज्ञानिक थे। यह संस्कृत, पालि, प्राकृत, गणित, खगोलशास्त्र, रेखागणित, वैदिक अंकगणित आदि के तो धुरंधर विद्वान थे ही, साथ ही उन्होंने अरबी और फारसी भाषाएँ भी सीखी ताकि इस्लामिक खगोलशास्त्र के ग्रंथों का अध्ययन कर सकें। इन्हें सवाई जयसिंह ने जागीरों के अलावा 'गर्गाचार्य' की उपाधि दी थी। एक पुराने आलेख में लिखा है कि सवाई जयसिंह ने २६ॱ५५'२७" अक्षांश उत्तर में जयपुर में जिस महती वेधशाला की स्थापना की थी, उसके इन मुख्य यंत्रों का निर्माण इन्होने ही किया था- इस पुस्तक और चन्द्रमहल पोथीखाना के अभिलेखों के अनुसार पंडित जगन्नाथ सम्राट जयपुर नगर की स्थापना किये जाने के समय राजगुरु होने के नाते नगर के शिलान्यास-संस्कार के मुख्य पुरोहित थे। .

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जुनापाणी के शिलावर्त

जुनापाणी के शिलावर्त भारत के महाराष्ट्र राज्य के नागपुर नगर के पास स्थित जुनापाणी शहर में महापाषाण शिलावर्त (बड़ी शिलाओं से ज़मीन पर बने गोले) हैं जो यहाँ प्रागैतिहासिक काल में बनाए गए थे। यहाँ पत्थरों के ऐसे ३०० चक्र मिले हैं। सन् १८७९ में इतिहासकार जे॰ ऍच॰ रिवॅट-कारनैक ने यहाँ खुदाई करके इनकी खोज की थी। इन शिलावर्तों में लोहे के ख़ंजर, कुल्हाड़े, फावड़े, कंगन, छल्ले, तराशने के पैने औज़ार और चिमटे (जो शायद कभी लकड़ी के दस्ते रखते थे) मिले हैं। यहाँ लाल और काली मट्टी के बर्तनों के टुकड़े भी मिले हैं जिनमें से कुछ पर काले रंग से डिज़ाईन बने हुए हैं। कुछ जगहों पर लोग भी दफ़न हैं और वहाँ केअर्न (पत्थरों की व्यवस्थित ढेरियाँ) बने हुए हैं। इतिहासकारों के अनुसार यह शिलावर्त शायद १००० ईसापूर्व काल में बने हों। कुछ पत्थरों पर प्यालों के चिह्न हैं और उन्हें दिशाओं के अनुसार खड़ा किया गया है जिस से यह सम्भावना बनती है कि इनका प्रयोग खगोल-जिज्ञासा से सम्बन्धित रहा हो। हालांकि बहुत से शिलावर्त पाषाण युग में बने होते हैं, अपनी निर्माण आयु के मुताबिक़ यह शिलावर्त लौह युग में बने थे। .

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ज्यामिति का इतिहास

1728 साइक्लोपीडिया से ज्यामिति की तालिका. ज्यामिति (यूनानी भाषा γεωμετρία; जियो .

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ज्योतिष

ज्‍योतिष या ज्यौतिष विषय वेदों जितना ही प्राचीन है। प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र और अन्‍य खगोलीय पिण्‍डों का अध्‍ययन करने के विषय को ही ज्‍योतिष कहा गया था। इसके गणित भाग के बारे में तो बहुत स्‍पष्‍टता से कहा जा सकता है कि इसके बारे में वेदों में स्‍पष्‍ट गणनाएं दी हुई हैं। फलित भाग के बारे में बहुत बाद में जानकारी मिलती है। भारतीय आचार्यों द्वारा रचित ज्योतिष की पाण्डुलिपियों की संख्या एक लाख से भी अधिक है। प्राचीनकाल में गणित एवं ज्यौतिष समानार्थी थे परन्तु आगे चलकर इनके तीन भाग हो गए।.

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ज्वारबंधन

खगोलशास्त्र में ज्वारबंधन (tidal locking, gravitational locking) उस स्थिति को कहते हैं जब अपनी कक्षा (ऑरबिट) में परिक्रमा करती हुई किसी खगोलीय वस्तु और उसके गुरुत्वाकर्षक साथी के बीच कोणीय संवेग (angular momentum) की अदला-बदली नहीं होती। साधारणतः इस स्थिति में वह वस्तु अपने साथी की ओर एक ही मुख रखती है। इसका एक प्रमुख उदाहरण पृथ्वी का चंद्रमा है जो पृथ्वी के साथ ज्वारबंध है और पृथ्वी की तरफ़ उसका एक ही मुख रहता है, जिस कारण से पृथ्वी से उसका केवल एक ही मुख दिखता है और उसका उल्टा मुख देखने के लिए पृथ्वी छोड़कर अंतरिक्ष यान से चंद्रमा के पीछे जाना होता है। .

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ज्वारभाटा बल

बृहस्पति से टकराया - बृहस्पति के भयंकर ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ डाला पृथ्वी पर ज्वार-भाटा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण से बने ज्वारभाटा बल से आते हैं शनि के उपग्रही छल्ले ज्वारभाटा बल की वजह से जुड़कर उपग्रह नहीं बन जाते ज्वारभाटा बल वह बल है जो एक वस्तु अपने गुरुत्वाकर्षण से किसी दूसरी वस्तु पर स्थित अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग स्तर से लगाती है। पृथ्वी पर समुद्र में ज्वार-भाटा के उतार-चढ़ाव का यही कारण है। .

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जूलियन दिन

जूलियन दिन (Julian day) जूलियन काल के आरम्भ से गुज़रे हुए कुल दिवसों की गिनती है। जूलियन काल का आरम्भ दोपहर के १२ बजे जनवरी १, ४७१३ ईसापूर्व को माना जाता है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से खगोलशास्त्री करते हैं। मसलन जनवरी १, २००० के १२ बजे की जूलियन दिन संख्या (Julian day number) २४,५१,५४५ है। जूलियन दिवस (Julian date) उस आरम्भिक क्षण से व्यतीत हुए दिवसों की गिनती है, जिसमें वर्तमान क्षण तक को गिना जाता है (यानि इस गिनती में अन्त का अधूरा दिन भी शामिल है)। उदाहरण के लिए जनवरी १, २०१३ के ००:३०:००.० बजे समन्वित सार्वत्रिक समय का जूलियन दिवस २४,५६,२९३.५२०८३३ था। .

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जोसेफ लुई लाग्रांज

फ्रांस के महान गणितज्ञ जोसेफ लुई लाग्रांज जोसेफ लुई लाग्रांज (Joseph Louis Lagrange, 1736 - 1813) फ्रांस के गणितज्ञ थे। इनका जन्म 25 जनवरी 1736 ई. को ट्यूरिन में हुआ। 17 वर्ष की अल्पायु में ये राजकीय सैनिक अकादमी में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हुए। गणित एवं खगोल शास्त्र को इनकी देन अपूर्व है। खगोल शास्त्र में इन्होंने "चंद्र-मुक्ति-सिद्धांत" तथा "बृहस्पति के चार उपग्रह संबंधी सिद्धांत" की व्याख्या पर अनेक अन्वेषण किए। 1766 ई. में ये बर्लिन में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हुए। तदुपरांत लाग्रांज ने समीकरणों एवं संख्याओं के सिद्धांतों पर अनेक खोजें कीं और द्विघातीय अनिर्णीत समीकरण का हल दिया (जो हिंदू गणितज्ञों के ही अनुरूप था), तृतीय वर्ण के सारणिकों का सूची स्तंभ संबंधी अन्वेषणों में खूब प्रयोग किया और विचरण करलन (जिसके आविष्कार का श्रेय आयलर के साथ इनको भी है) की सहायता से काल्पनिक-वेग-सिद्धांत से यंत्रविज्ञान की संपूर्ण पद्धतियों का निगमन किया। इनके अतिरिक्त इन्होंने संभाव्यता, परिमित अंतर, आरोह सितत भिन्नों और दीर्घवृत्तीय समकलों पर भी अनेक अन्वेषण किए। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ "मेकानिक अनालितिक" (Theoric des fonctions analytiques, 1797 ई.), "लसों स्यूर न काल्क्युल दे फौंक्स्यों" (Lecons sur lecalcul des fonctions, 1801 ई.), रेजोल्यूस्यो देजोक्वास्यों न्यूमेरिक (Resolution des equations numeriques, 1798 ई.) और "नूवैल मेथौद पूर रेज़ूद्र लेजाक्वस्यों लितेराल पार ल मुअइयें द सेरि" (Nouvelle methode pour resoudre les equations litterales par le moyen des series, 1770 ई.) है। 10 अप्रैल 1813 ई. को पैरिस में इनका देहांत हो गया। .

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घूर्णन अक्ष

अपने घूर्णन अक्ष पर घूर्णन करता हुआ एक गोला भौतिकी में, घूर्णन अक्ष उस काल्पनिक लकीर को कहा जाता है जिसके इर्द-गिर्द कोई घूर्णन करती हुई (यानि लट्टू की तरह घूमती हुई) वस्तु घूम रही हो। खगोलशास्त्र में पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है। .

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वटेश्वर

वटेश्वर (जन्म 880), दसवीं शताब्दी के भारतीय (काश्मीरी) गणितज्ञ थे जिन्होने 24 वर्ष की उम्र में वटेश्वर-सिद्धान्त नामक ग्रन्थ की रचना की और कई त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाएँ प्रस्तुत कीं। वटेश्वर-सिद्धान्त, खगोल शास्त्र और व्यावहारिक गणित से सम्बन्धित ग्रन्थ है जिसकी रचना सन् 904 में हुई थी। .

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वटेश्वर-सिद्धान्त

वटेश्वरसिद्धान्त, वटेश्वर द्वारा सन 904 में रचित गणितीय और खगोलीय ग्रंथ है। इस ग्रंथ में पन्द्रह अध्याय हैं जो खगोलशास्त्र और व्यावहारिक गणित के बारे में हैं।  श्रेणी:भारतीय गणित श्रेणी:गणित का इतिहास.

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वर्णक्रममापी

वर्णक्रममापी (स्पेक्ट्रोमीटर, स्पेक्ट्रोफोटोमीटर, स्पेक्ट्रोग्राफ या स्पेक्ट्रोस्कोप) विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम के एक विशिष्ट भाग के लिए प्रकाश की विशेषतायों के मापन हेतु उपयोग किया जाना वाला यंत्र है जो आम तौर पर सामग्री की पहचान के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपी विश्लेषण में इस्तेमाल किया जाता है। मापित चर अक्सर प्रकाश की तीव्रता होता है, लेकिन उदाहरण के लिए यह ध्रुवीकरण स्थिति भी हो सकती है। स्वतंत्र चर आमतौर पर या तो प्रकाश की तरंग दैर्ध्य या फोटोन उर्जा के लिए सीधे आनुपातिक एक इकाई होता है जैसे वेवनंबर या इलेक्ट्रॉन वोल्ट जिसका तरंग दैर्ध्य के साथ व्युत्क्रम संबंध होता है। स्पेक्ट्रोमीटर स्पेक्ट्रोस्कोपी में वर्णक्रमीय पंक्तियों के उत्पादन तथा तरंगदैर्य और तीव्रता के मापन हेतु प्रयोग किया जाता है। स्पेक्ट्रोमीटर एक शब्दावली है जो गामा रेज़ और एक्स रेज़ से लेकर फार इन्फ्रारेड की व्यापक रेंज के तरंग दैर्ध्य पर संचालित होने वाले उपकरणों पर लागू की जाती है। अगर रूचि का क्षेत्र विजिबिल स्पेक्ट्रम के पास प्रतिबंधित है, तो अध्ययन को स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री कहा जाता है। सामान्यत: कोई भी विशेष उपकरण इस पूर्ण रेंज के एक छोटे से हिस्से पर संचालित हो सकता है ऐसा स्पेक्ट्रम के विभिन्न भागों को मापने के लिए इस्तेमाल की जानी वाली तकनीक की वजह से होता है। ऑप्टिकल आवृत्तियों के नीचे (जैसे माइक्रोवेव और रेडियो आवृत्तियों में), स्पेक्ट्रम विश्लेषक एक निकटीय संबंधित इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है। .

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वाल्मीकि रामायण

वाल्मीकीय रामायण संस्कृत साहित्य का एक आरम्भिक महाकाव्य है जो संस्कृत भाषा में अनुष्टुप छन्दों में रचित है। इसमें श्रीराम के चरित्र का उत्तम एवं वृहद् विवरण काव्य रूप में उपस्थापित हुआ है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित होने के कारण इसे 'वाल्मीकीय रामायण' कहा जाता है। वर्तमान में राम के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध हैं उन सभी का मूल महर्षि वाल्मीकि कृत 'वाल्मीकीय रामायण' ही है। 'वाल्मीकीय रामायण' के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' माना जाता है और इसीलिए यह महाकाव्य 'आदिकाव्य' माना गया है। यह महाकाव्य भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आयामों को प्रतिबिम्बित करने वाला होने से साहित्य रूप में अक्षय निधि है। .

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वासयोग्य क्षेत्र

वासयोग्य क्षेत्र कहाँ है यह तारे पर निर्भर है (ऊपर-नीचे तारों का आकार है, दाएँ-बाएँ तारे से दूरी है) खगोलशास्त्र में किसी तारे का वासयोग्य क्षेत्र (habitable zone) उस तारे से उतनी दूरी का क्षेत्र होता है जहाँ पृथ्वी जैसा ग्रह अपनी सतह पर द्रव (लिक्विड) अवस्था में पानी रख पाए और वहाँ पर जीव जी सकें। अगर कोई ग्रह अपने तारे की परिक्रमा वासयोग्य क्षेत्र से ज़्यादा पास कर रहा है तो सम्भावना अधिक है के उसपर पानी उबल कर लगभग ख़त्म हो जाएगा और उस ग्रह के वातावरण का तापमान भी जीव-जंतुओं के लिए बहुत अधिक गरम होगा। अगर इसके विपरीत कोई ग्रह अपने तारे के वासयोग्य क्षेत्र से ज़्यादा दूरी पर होगा तो उस पर बहुत सर्दी होगी और अगर पानी मौजूद भी हुआ तो सख्त बर्फ़ में जमा हुआ होगा और तारे से मिलने वाला प्रकाश भी शायद इतना कमज़ोर होगा के उसकी उर्जा पौधे जैसे जीवों के लिया काफ़ी नहीं है। किसी तारे का वासयोग्य क्षेत्र उस तारे से कितनी दूरी पर है यह बात उस तारे पर निर्भर करती है। अगर तारा अधिक तेज़ी से विकिरण (रेडीएशन) देता है और बड़ा है, तो उसका वासयोग्य क्षेत्र किसी छोटे या अधिक ठन्डे तारे से अधिक दूरी पर होगा। .

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विलियम हेनरी पिकरिंग

विलियम हेनरी पिकरिंग (William Henry Pickering) (15 फ़रवरी 1858 - 16 जनवरी 1938), एक अमेरिकी खगोलशास्त्री थे। वह एडवर्ड चार्ल्स पिकरिंग के भाई थे। वह 1883 में कला और विज्ञान के अमेरिकन अकादमी के फैलो चुने गए थे। .

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विलियम क्रेबट्री

विलियम क्रेबट्री (William Crabtree) (1610-1644), एक खगोलशास्त्री, गणितज्ञ और ब्राउटन से आये व्यापारी थे। 1639 में शुक्र पारगमन के प्रथम पूर्वानुमान का निरीक्षण और रिकॉर्ड करने वाले केवल दो लोगों में से वें एक थे। श्रेणी:खगोलशास्त्री श्रेणी:गणितज्ञ.

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विल्किनसन सूक्ष्मतरंग शोधयान

विल्किनसन शोधयान का चित्र विल्किनसन सूक्ष्मतरंग शोधयान (अंग्रेज़ी: Wilkinson Microwave Anisotropy Probe, विल्किनसन माइक्रोवेव आइनाइसोट्रोपी प्रोब), जिसे WMAP भी कहा जाता है, एक अंतरिक्ष शोध यान है जो अंतरिक्ष में जगह-जगह झाँककर बिग बैंग धमाके से उत्पन्न हुए सूक्ष्मतरंगी विकिरण (माइक्रोवेव रेडियेशन) को मापता है। .

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विशेष चाल

किसी तारे की कुल चाल (space velocity) में दो हिस्से होते हैं - रेडियल वेग जो उसके हमारे पास-दूर आने का माप है और 'विशेष चाल' जो उसके दाएँ-बाएँ जाने का माप है खगोलशास्त्र में विशेष चाल (proper motion) हमारे सौर मंडल के द्रव्यमान केंद्र से देखे गए किसी तारे के स्थान में समय के साथ-साथ हुए कोण (ऐंगल) में परिवर्तन को कहते हैं। इसका माप आर्कसैकिंड प्रति वर्ष (arcseconds per year) में किया जाता है - aik डिग्री कोण में ३,६०० आर्कसैकिंड होते हैं। यदि सौर मंडल के द्रव्यमान केंद्र पर कोई दर्शक स्थित हो तो उसके लिए तारे का दाएँ-बाएँ hilna 'विशेष चाल' कहलाएगा जबकि तारे का उसके पास आना या उस से दूर जाना रेडियल वेग कहलाएगा। ध्यान दें कि विशेष चाल वास्तव में केवल तारे की चाल पर निर्भर नहीं है क्योंकि हमारा सौर मंडल स्वयं भी ब्रह्माण्ड के दिक् (स्पेस) में चल रहा है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि अगर हम तारे के दूर या पास होने को अलग छोड़ दें तो उसकी विशेष चाल खगोलीय गोले पर देखी गए उसके स्थान-परिवर्तन का माप है।, William Millar, pp.

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विषुव (खगोलीय निर्देशांक)

Earth-lighting-equinox PL.png विषुव के दौरान पृथ्वी बिजली खगोलशास्त्र में विषुव (equinox) समय के उस क्षण को कहते हैं जिसके आधार पर किसी खगोलीय निर्देशांक प्रणाली (celestial coordinate system) के तत्वों की परिभाषा की जाती है। उदाहरण के लिए भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली ऐसी एक प्रकार की पद्धति है और इसमें खगोलीय मध्य रेखा, खगोलीय ध्रुव और बसंत विषुव की दिशा को पहले से तय करके किसी भी वस्तु का स्थान इनके हिसाब से लगाया जाता है। ध्यान रहे कि समय के साथ यह सभी बदलते रहते हैं इसलिए किसी खगोलीय निर्देशांक प्रणाली में एक समय को मानक मानकर उसी के आधार पर निर्देशांक बताये जाते हैं। 'विषुव' युग से अलग चीज़ है क्योंकि युग वह समय होता है कि जब किसी खगोलीय वस्तु की स्थिति मापी गई हो। .

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विष्णुधर्मोत्तर पुराण

विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण है। इसकी प्रकृति विश्वकोशीय है। कथाओं के अतिरिक्त इसमें ब्रह्माण्ड, भूगोल, खगोलशास्त्र, ज्योतिष, काल-विभाजन, कूपित ग्रहों एवं नक्षत्रों को शान्त करना, प्रथाएँ, तपस्या, वैष्णवों के कर्तव्य, कानून एवं राजनीति, युद्धनीति, मानव एवं पशुओं के रोगों की चिकित्सा, खानपान, व्याकरण, छन्द, शब्दकोश, भाषणकला, नाटक, नृत्य, संगीत और अनेकानेक कलाओं की चर्चा की गयी है। यह विष्णुपुराण का परिशिष्‍ट माना जाता है। वृहद्धर्म पुराण में दी हुई १८ पुराणों की सूची में विष्णुधर्मोत्तर पुराण भी है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण के 'चित्रसूत्र' नामक अध्याय में चित्रकला का महत्त्व इन शब्दों में बताया गया है- (अर्थ: कलाओं में चित्रकला सबसे ऊँची है जिसमें धर्म, अर्थ, काम एवम् मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः जिस घर में चित्रों की प्रतिष्ठा अधिक रहती है, वहाँ सदा मंगल की उपस्थिति मानी गई है।) .

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विज्ञान

संक्षेप में, प्रकृति के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान (Science) कहते हैं। विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है। ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान के 'ज्ञान-भण्डार' के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है। .

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वुल्फ़-रायेट तारा

डब्ल्यू॰आर॰ १२४ नामक एक वुल्फ़-रायेट तारा और उसके इर्द-गिर्द की नीहारिका वुल्फ़-रायेट तारे वह बड़ी आयु के भीमकाय तारे होते हैं जो स्वयं से उत्पन्न तारकीय आंधी के कारण तेज़ी से द्रव्यमान (मास) खो रहे होते हैं। इनसे उभरने वाली आंधी की गति २,००० किलोमीटर प्रति सैकिंड तक की होती है। हमारा सूरज हर वर्ष लगभग १०-१४ सौर द्रव्यमान (यानि सूरज के द्रव्यमान के सौ खरबवे हिस्से के बराबर) खोता है। इसकी तुलना में वुल्फ़-रायेट तारे हर वर्ष १०-५ सौर द्रव्यमान (यानि सूरज के द्रव्यमान के दस हज़ारवे हिस्से के बराबर) खोते हैं। ऐसे तारों का सतही तापमान बहुत अधिक होता है: २५,००० से ५०,००० कैल्विन तक। अक्सर ऐसे तारों के इर्द-गिर्द इनके आंधी से नीहरिकाएँ (नेब्युला) बन जाते हैं। .

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व्यावहारिक गणित

वाहन को शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर कम से कम समय में ले जाने के लिए गणित का उपयोग करना पड़ सकता है। इसके लिए सांयोगिक इष्टतमीकरण (combinatorial optimization) तथा पूर्णांक प्रोग्रामन (integer programming) का उपयोग करना पड़ सकता है। व्यावहारिक गणित (अनुप्रयुक्त गणित या प्रायोगिक गणित), गणित की वह शाखा है जो ज्ञान की अन्य विधाओं की समस्याओं को गणित के जुगाड़ों (तकनीकों) के प्रयोग से हल करने से सम्बन्ध रखती है। ऐतिहास दृष्टि से देखें तो भौतिक विज्ञानों (physical sciences) की आवश्यकताओं ने गणित की विभिन्न शाखाओं के विकास में महती भूमिका निभायी। उदाहरण के लिये तरल यांत्रिकी में गणित का उपयोग करने से एक हल्का एवं कम ऊर्जा से की खपत करने वाला वायुयान की डिजाइन की जा सकती है। बहुत पुरातन काल से ही विषयों में गणित सर्वाधिक उपयोगी रहा है। यूनानी लोग गणित को न केवल संख्याओं और दिक् (स्पेस) का बल्कि खगोलविज्ञान और संगीत का भी अध्ययन मानते थे। गणितसारसंग्रह के 'संज्ञाधिकार' में मंगलाचरण के पश्चात महान प्राचीन भारतीय गणितज्ञ महावीराचार्य ने बड़े ही मार्मिक ढंग से गणित की प्रशंशा की है और गणित के अनेकानेक उपयोगों को गिनाया है- आज के 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएँ गणित का इस्तेमाल पंचांग (कैलेंडर) बनाने के लिए किया करती थीं जिससे उन्हें पूर्व जानकारी रहती थी कि कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील नदी में बाढ़ आएगी। अंकगणित का प्रयोग व्यापार में रुपयों-पैसों और वस्तुओं के विनिमय या हिसाब-किताब रखने के लिए किया जाता था। ज्यामिति का इस्तेमाल खेतों के चारों तरफ की सीमाओं के निर्धारण तथा पिरामिड जैसे स्मारकों के निर्माण में होता था। अपने दैनिक जीवन में रोजाना ही हम गणित का इस्तेमाल करते हैं-उस वक्त जब समय जानने के लिए हम घड़ी देखते हैं, अपने खरीदे गए सामान या खरीदारी के बाद बचने वाली रेजगारी का हिसाब जोड़ते हैं या फिर फुटबाल टेनिस या क्रिकेट खेलते समय बनने वाले स्कोर का लेखा-जोखा रखते हैं। व्यवसाय और उद्योगों से जुड़ी लेखा संबंधी संक्रियाएं गणित पर ही आधारित हैं। बीमा (इंश्योरेंस) संबंधी गणनाएं तो अधिकांशतया ब्याज की चक्रवृद्धि दर पर ही निर्भर है। जलयान या विमान का चालक मार्ग के दिशा-निर्धारण के लिए ज्यामिति का प्रयोग करता है। सर्वेक्षण का तो अधिकांश कार्य ही त्रिकोणमिति पर आधारित होता है। यहां तक कि किसी चित्रकार के आरेखण कार्य में भी गणित मददगार होता है, जैसे कि संदर्भ (पर्सपेक्टिव) में जिसमें कि चित्रकार को त्रिविमीय दुनिया में जिस तरह से इंसान और वस्तुएं असल में दिखाई पड़ते हैं, उन्हीं का तदनुरूप चित्रण वह समतल धरातल पर करता है। संगीत में स्वरग्राम तथा संनादी (हार्मोनी) और प्रतिबिंदु (काउंटरपाइंट) के सिद्धांत गणित पर ही आश्रित होते हैं। गणित का विज्ञान में इतना महत्व है तथा विज्ञान की इतनी शाखाओं में इसकी उपयोगिता है कि गणितज्ञ एरिक टेम्पल बेल ने इसे ‘विज्ञान की साम्राज्ञी और सेविका’ की संज्ञा दी है। किसी भौतिकविज्ञानी के लिए अनुमापन तथा गणित का विभिन्न तरीकों का बड़ा महत्व होता है। रसायनविज्ञानी किसी वस्तु की अम्लीयता को सूचित करने वाले पी एच (pH) मान के आकलन के लिए लघुगणक का इस्तेमाल करते हैं। कोणों और क्षेत्रफलों के अनुमापन द्वारा ही खगोलविज्ञानी सूर्य, तारों, चंद्र और ग्रहों आदि की गति की गणना करते हैं। प्राणीविज्ञान में कुछ जीव-जन्तुओं के वृद्धि-पैटर्नों के विश्लेषण के लिए विमीय विश्लेषण की मदद ली जाती है। जैसे-जैसे खगोलीय तथा काल मापन संबंधी गणनाओं की प्रामाणिकता में वृद्धि होती गई, वैसे-वैसे नौसंचालन भी आसान होता गया तथा क्रिस्टोफर कोलम्बस और उसके परवर्ती काल से मानव सुदूरगामी नए प्रदेशों की खोज में घर से निकल पड़ा। साथ ही, आगे के मार्ग का नक्शा भी वह बनाता गया। गणित का उपयोग बेहतर किस्म के समुद्री जहाज, रेल के इंजन, मोटर कारों से लेकर हवाई जहाजों के निर्माण तक में हुआ है। राडार प्रणालियों की अभिकल्पना तथा चांद और ग्रहों आदि तक अन्तरिक्ष यान भेजने में भी गणित से काम लिया गया है। .

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वृत्ताकार कक्षा

खगोलशास्त्र में वृत्ताकार कक्षा (circular orbit) एक ऐसी केप्लर कक्षा होती है जिसकी कक्षीय विकेन्द्रता ठीक शून्य है, यानि पूरी तरह गोलाकार है। दीर्घवृत्त कक्षा इस से भिन्न होती है, क्योंकि उसकी कक्षाएँ दीर्घवृत्त आकार की हो सकती हैं। .

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वृहद भारत

'''वृहद भारत''': केसरिया - भारतीय उपमहाद्वीप; हल्का केसरिया: वे क्षेत्र जहाँ हिन्दू धर्म फैला; पीला - वे क्षेत्र जिनमें बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ वृहद भारत (Greater India) से अभिप्राय भारत सहित उन अन्य देशों से है जिनमें ऐतिहासिक रूप से भारतीय संस्कृति का प्रभाव है। इसमें दक्षिणपूर्व एशिया के भारतीकृत राज्य मुख्य रूप से शामिल है जिनमें ५वीं से १५वीं सदी तक हिन्दू धर्म का प्रसार हुआ था। वृहद भारत में मध्य एशिया एवं चीन के वे वे भूभाग भी सम्मिलित किये जा सकते हैं जिनमे भारत में उद्भूत बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ था। इस प्रकार पश्चिम में वृहद भारत कीघा सीमा वृहद फारस की सीमा में हिन्दुकुश एवं पामीर पर्वतों तक जायेगी। भारत का सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र .

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वैदिक ज्योतिष

भारतीय संस्कृति का आधार वेद को माना जाता है। वेद धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है बल्कि विज्ञान की पहली पुस्तक है जिसमें चिकित्सा विज्ञान, भौतिक, विज्ञान, रसायन और खगोल विज्ञान का भी विस्तृत वर्णन मिलता है। भारतीय ज्योतिष विद्या का जन्म भी वेद से हुआ है। वेद से जन्म लेने के कारण इसे वैदिक ज्योतिष के नाम से जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष की परिभाषा वैदिक ज्योतिष को परिभाषित किया जाए तो कहेंगे कि वैदिक ज्योतिष ऐसा विज्ञान या शास्त्र है जो आकाश मंडल में विचरने वाले ग्रहों जैसे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध के साथ राशियों एवं नक्षत्रों का अध्ययन करता है और इन आकाशीय तत्वों से पृथ्वी एवं पृथ्वी पर रहने वाले लोग किस प्रकार प्रभावित होते हैं उनका विश्लेषण करता है। वैदिक ज्योतिष में गणना के क्रम में राशिचक्र, नवग्रह, जन्म राशि को महत्वपूर्ण तत्व के रूप में देखा जाता है। राशि और राशिचक्र राशि और राशिचक्र को समझने के लिए नक्षत्रों को को समझना आवश्यक है क्योकि राशि नक्षत्रों से ही निर्मित होते हैं। वैदिक ज्योतिष में राशि और राशिचक्र निर्धारण के लिए 360 डिग्री का एक आभाषीय पथ निर्धारित किया गया है। इस पथ में आने वाले तारा समूहों को 27 भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक तारा समूह नक्षत्र कहलाते हैं। नक्षत्रो की कुल संख्या 27 है। 27 नक्षत्रो को 360 डिग्री के आभाषीय पथ पर विभाजित करने से प्रत्येक भाग 13 डिग्री 20 मिनट का होता है। इस तरह प्रत्येक नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनट का होता है। वैदिक ज्योतिष में राशियो को 360 डिग्री को 12 भागो में बांटा गया है जिसे भचक्र कहते हैं। भचक्र में कुल 12 राशियां होती हैं। राशिचक्र में प्रत्येक राशि 30 डिग्री होती है। राशिचक्र में सबसे पहला नक्षत्र है अश्विनी इसलिए इसे पहला तारा माना जाता है। इसके बाद है भरणी फिर कृतिका इस प्रकार क्रमवार 27 नक्षत्र आते हैं। पहले दो नक्षत्र हैं अश्विनी और भरणी हैं जिनसे पहली राशि यानी मेष का निर्माण होता हैं इसी क्रम में शेष नक्षत्र भी राशियों का निर्माण करते हैं। '''नवग्रह''' वैदिक ज्योतिष में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि और राहु केतु को नवग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त है। सभी ग्रह अपने गोचर मे भ्रमण करते हुए राशिचक्र में कुछ समय के लिए ठहरते हैं और अपना अपना राशिफल प्रदान करते हैं। राहु और केतु आभाषीय ग्रह है, नक्षत्र मंडल में इनका वास्तविक अस्तित्व नहीं है। ये दोनों राशिमंडल में गणीतीय बिन्दु के रूप में स्थित होते हैं। '''लग्न और जन्म राशि''' पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार पश्चिम से पूरब घूमती है। इस कारण से सभी ग्रह नक्षत्र व राशियां 24 घंटे में एक बार पूरब से पश्चिम दिशा में घूमती हुई प्रतीत होती है। इस प्रक्रिया में सभी राशियां और तारे 24 घंटे में एक बार पूर्वी क्षितिज पर उदित और पश्चिमी क्षितिज पर अस्त होते हुए नज़र आते हैं। यही कारण है कि एक निश्चित बिन्दु और काल में राशिचक्र में एक विशेष राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती है। जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है उस समय उस अक्षांश और देशांतर में जो राशि पूर्व दिशा में उदित होती है वह राशि व्यक्ति का जन्म लग्न कहलाता है। जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में बैठा होता है उस राशि को जन्म राशि या चन्द्र लग्न के नाम से जाना जाता है। श्रेणी:भारतीय ज्योतिष श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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वैज्ञानिक क्रांति

न्यूटन के दूरदर्शी की प्रतिकृति। वैज्ञानिक क्रान्ति के समय प्रेक्षण और आंकड़ों पर आधारित विज्ञान पर बल दिया गया। प्रेक्षणों के लिये नयी तकनीकें विकसित की गयीं। दूरदर्शी, ऐसी ही एक तकनीक थी। वैज्ञानिक क्रांति उस अमयावधि को इंगित करती है जब भौतिकी, खगोलशास्त्र, जीवविज्ञान, मानव शरीररचना, रसायन विज्ञान एवं अन्य विज्ञानों की प्रगति ने पुराने सिद्धन्तों को अस्वीकर कर दिया। इस प्रकार आधुनिक विज्ञान की नींव पड़ी। वैज्ञानिक क्रान्ति की धारणा को मानने वालों का विचार है कि यूरोप के पुनर्जागरण का अन्तिम काल से वैज्ञानिक क्रांति आरम्भ हुई और १८वीं शताब्दी के अन्तिम चरण तक चली। इस प्रकार वैज्ञानिक क्रान्ति ने यूरोपीय ज्ञानोदय को प्रभावित किया। किन्तु सातत्य सिद्धान्त में विश्वास करने वाले बहुत से लोगों का विश्वास है कि इस प्रकार की कोई क्रान्ति नहीं हुई बल्कि प्राचीन और मध्य काल से वैज्ञानिक विकास की जो धारा चली थी वही अपनी सहज गति से आगे बढती रही। .

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वेदांग

वेदांग हिन्दू धर्म ग्रन्थ हैं। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छ: वेदांग है।.

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वेदी तारामंडल

वेदी तारामंडल वेदी या ऍअरा (अंग्रेज़ी: Ara) खगोलीय गोले के दक्षिणी भाग में वॄश्चिक और दक्षिण त्रिकोण तारामंडल के बीच स्थित एक तारामंडल है जो अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा जारी की गई ८८ तारामंडलों की सूची में शामिल है। दूसरी शताब्दी ईसवी में टॉलमी ने जिन ४८ तारामंडलों की सूची बनाई थी यह उनमें भी शामिल था। इसके कुछ मुख्य रोशन तारों को कालपनिक लकीरों से जोड़ने पर एक पूजा की वेदी का चित्र बनता है जिसपर इसका नाम पड़ा है। .

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वेस्टो मेल्विन स्लिफर

वेस्टो मेल्विन स्लिफर (Vesto Melvin Slipher) (11 नवम्बर 1875 - 8 नवम्बर 1969), एक अमेरिकी खगोलशास्त्री थे। उनके भाई अर्ल चार्ल्स स्लिफर भी लोवेल वेधशाला के खगोल विज्ञानी और निदेशक थे। .

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खण्डखाद्यक

खण्डखाद्यक ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित खगोलशास्त्र (ज्योतिष) ग्रन्थ है। इसकी रचना ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के बाद (६६५ ई में) हुई। खण्डखाद्यक के दो भाग हैं-.

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खान अकादमी

खान अकादमी "कहीं भी, किसी के लिए भी एक नि: शुल्क, विश्व स्तरीय शिक्षा' प्रदान करने के लिए शिक्षक सलमान खान द्वारा 2006 में बनाई गई एक गैर लाभ शैक्षिक संगठन है। यह संगठन यूट्यूब वीडियो के रूप में सूक्ष्म व्याख्यान बनाता करता है। सूक्ष्म व्याख्यान के अलावा, संगठन की वेबसाइट शिक्षकों के लिए अभ्यास प्रश्नावली और उपकरणों की सुविधा उपलब्ध कराती है। सभी संसाधनों दुनिया भर में किसी के लिए भी मुफ्त में उपलब्ध हैं। .

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खगोल विज्ञानी

खगोल विज्ञानी अथवा खगोल शास्त्री वे वैज्ञानिक अध्ययनकर्ता हैं जी आकाशीय पिण्डों, उनकी गतियों और अंतरिक्ष में मौजूद विविध प्रकार की चीजों की खोज और अध्ययन का कार्य करते हैं। पश्चिमी संस्कृति में गैलीलियो नामक खगोल विज्ञानी को आधुनिक खगोलशास्त्र का पिता माना जाता है। हालाँकि कुछ लोग यह नाम कॉपरनिकस को देते हैं। .

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खगोलभौतिक फौवारा

खगोलभौतिक फौवारा (astrophysical jet) एक खगोलीय परिघटना होती है जिसमें किसी घूर्णन करती हुई खगोलीय वस्तु के घूर्णन अक्ष की ऊपरी और निचली दिशाओं में आयनीकृत पदार्थ फौवारों में तेज़ गति से फेंका जाता है। कभी-कभी इन फौवारों में पदार्थ की गति प्रकाश की गति के समीप आने लगती है और यह आपेक्षिक फौवारे (relativistic jets) बन जाते हैं, जिनमें विशिष्ट आपेक्षिकता के प्रभाव दिखने लगते हैं।Morabito, Linda A.; Meyer, David (2012).

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खगोलभौतिकी

खगोलभौतिकी (Astrophysics) खगोल विज्ञान का वह अंग है जिसके अंतर्गत खगोलीय पिंडो की रचना तथा उनके भौतिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। कभी-कभी इसे 'ताराभौतिकी' भी कह दिया जाता है हालाँकि वह खगोलभौतिकी की एक प्रमुख शाखा है जिसमें तारों का अध्ययन किया जाता है। .

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खगोलमिति

प्रकट प्रकाश के साथ व्यतिकरणमिति के प्रयोग से तारों के स्थान को बारीक़ी से मापा जा सकता है खगोलमिति (Astrometry) खगोलशास्त्र की उस शाखा को कहते हैं जिसमें तारों और अन्य खगोलीय वस्तुओं के स्थान, वेग और अन्य पहलुओं को बारीक़ी से मापा जाता है।, Jean Kovalevsky, pp.

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खगोलयात्री

खगोलयात्री या अंतरिक्षयात्री या खगोलबाज़ ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जो पृथ्वी के वायुमंडल से ऊपर जाकर अंतरिक्ष में प्रवेश करे। वर्तमान काल में यह अधिकतर विश्व की कुछ सरकारों द्वारा चलाए जा रहे अंतरिक्ष शोध कार्यक्रमों के अंतर्गत अंतरिक्ष-यानों में सवार यात्रियों को कहा जाता है, हालाँकि हाल में कुछ निजी कम्पनियाँ भी अंतरिक्ष-यान में पर्यटकों को वायुमंडल से ऊपर ले जाने वाले यानों के विकास में जुटी हुई हैं। .

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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

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खगोलिकी का इतिहास

सभी प्राकृतिक विज्ञानों में से खगोलिकी (Astronomy) सबसे प्राचीन है। इसका आरम्भ प्रागैतिहासिक काल से हो चुका था तथा प्राचीन धार्मिक एवं मिथकीय कार्यों में इसके दर्शन होते हैं। खगोलिकी के साथ फलित ज्योतिष (astrology) का बहुत ही नजदीकी सम्बन्ध रहा है और आज भी जनता दोनो को अलग नहीं कर पाती। खगोलिकी (सिद्धान्त ज्योतिष) और फलित ज्योतिष केवल कुछ शताब्दी पहले ही एक-दूसरे से अलग हुए हैं। प्राचीन खगोलविद तारों और ग्रहों के बीच के अन्तर को समझते थे। तारे शताब्दियों तक लगभग एक ही स्थान पर बने रहते हैं जबकि ग्रह कम समय में भी अपने स्थान से हटे हुए दिख जाते हैं। .

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खगोलज्ञ

खगोल शास्त्र के विद्वान को खगोलज्ञ या खगोलशास्त्री कहते हैं। श्रेणी:खागोलशास्त्र.

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खगोलजीव विज्ञान

मंगल ग्रह से आए उल्कापिंड ए॰ऍल॰एच॰८४००१ में कुछ बारीक़ संरचनाएँ नज़र आई जो शायद सूक्ष्मजीवों ने बनाई हों, हालाँकि इसपर वैज्ञानिकों में गरमा-गरमी है यह ज्ञात नहीं है के अन्य ग्रहों के जीव भी कोशिकाओं (सेल) के बने होंगे या नहीं - यह एक पौधे की कोशिकाएँ हैं जिनमें क्लोरोफ़िल के हरे कण नज़र आ रहे हैं अन्ध महासागर की गहराइयों में खौलते पानी और गैस के फुव्वारों में पनपते चरमपसंदी जीवों को देखकर कुछ वैज्ञानिक ऐसा अन्य ग्रहों में भी होने की कल्पना करते हैं खगोलजीव विज्ञान पूरे ब्रह्माण्ड में जीवन के शुरुआत, फैलाव, क्रम विकास और भविष्य के अध्ययन को कहते हैं। विज्ञान का यह क्षेत्र कई कठिन प्रश्नों का जवाब देने की कोशिश करता है, मसलन -.

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खगोलीय निर्देशांक पद्धति

खगोलीय गोले पर एक तारे के तीन भिन्न खगोलीय निर्देशांक प्रणालियों में माप: भूमध्यीय प्रणाली (नीली), गैलेक्सीय प्रणाली (पीली) और क्रांतिवृत्तीय प्रणाली (लाल) खगोलीय निर्देशांक पद्धति (celestial coordinate system) ब्रह्माण्ड में किसी भी प्रकार की खगोलीय वस्तु (ग्रह, उपग्रह, तारा, गैलेक्सी, नीहारिका, वग़ैराह) का स्थान निर्धारित करने का एक तरीक़ा है। जहाँ तक मनुष्यों का अनुभव है पूरा ब्रह्माण्ड एक तीन आयामों (डायमेंशन) वाला दिक् (स्पेस) है। इसमें एक निर्देशांक पद्धति के ज़रिये किसी भी स्थान को अंकों के साथ बताया जा सकता है। .

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खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण

बिग बैंग के धमाके का सबूत माना जाता है खगोलशास्त्र में खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण (ख॰पा॰सू॰वि॰, अंग्रेज़ी: cosmic microwave background radiation, कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडियेशन) उस विकिरण (रेडियेशन) को बोलते हैं जो पृथ्वी से देखे जा सकने वाले ब्रह्माण्ड में बराबर स्तर से हर और फैली हुई है। आम प्रकाश देखने वाली दूरबीन से आकाश में कुछ जगह वस्तुएँ (जैसे ग्रह, गैलेक्सियाँ, वग़ैराह) दिखाई देती हैं और अन्य जगहों पर अँधेरा। लेकिन सूक्ष्मतरंग (माइक्रोवेव) माप सकने वाले रेडिओ दूरबीन (रेडीओ टेलिस्कोप) से देखा जाए तो हर दिशा में एक हलकी सूक्ष्म्तरंगी लालिमा फैली हुई है। वैज्ञानिक मानते हैं के यह ख॰पा॰सू॰वि॰ बिग बैंग सिद्धांत का सबूत देता है। अरबों साल पहले, जब ब्रह्माण्ड पैदा हुआ था उसके फ़ौरन बाद उसका अकार आज के मुक़ाबले में बहुत छोटा था और उसमें खौलती हुई हाइड्रोजन की प्लाज़्मा गैस फैली हुई थी। उस गैस की उर्जा से जो फ़ोटोन (प्रकाश या सूक्ष्मतरंग के कण) पैदा हुए थे वे तब से ब्रह्माण्ड में इधर-उधर घूम रहे हैं और वही हम आज ख॰पा॰सू॰वि॰ के रूप में देखते हैं। .

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खगोलीय मध्य रेखा

खगोलीय मध्य रेखा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर है और सूर्यपथ से २३.४ डिग्री के कोण पर है खगोलशास्त्र में खगोलीय मध्य रेखा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर आसमान में काल्पनिक खगोलीय गोले पर बना हुआ एक काल्पनिक महावृत्त (ग्रेट सर्कल) है। पृथ्वी के उत्तरी भाग (यानि उत्तरी गोलार्ध या हॅमिस्फ़ेयर) में रहने वाले अगर खगोलीय मध्य रेखा की तरफ़ देखना चाहें तो आसमान में दक्षिण की दिशा में देखेंगे। उसी तरह पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में रहने वाले खगोलीय मध्य रेखा की तरफ़ देखने के लिए आकाश में उत्तर की तरफ़ देखेंगे। पृथ्वी के भूमध्य में रहने वाले खगोलीय मध्य रेखा की ओर देखने के लिए ठीक अपने सिर के ऊपर देखेंगे। खगोलीय मध्य रेखा से खगोलीय वस्तुओं के स्थानों के बारे में बताना आसान हो जाता है। उदहारण के लिए हम कह सकते हैं के ख़रगोश तारामंडल खगोलीय मध्य रेखा के ठीक दक्षिण में है। .

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खगोलीय मैग्निट्यूड

खगोलशास्त्र में खगोलीय मैग्निट्यूड या खगोलीय कान्तिमान किसी खगोलीय वस्तु की चमक का माप है। इसका अनुमान लगाने के लिए लघुगणक (लॉगरिदम) का इस्तेमाल किया जाता है। मैग्निट्यूड के आंकडे परखते हुए एक ध्यान-योग्य चीज़ यह है के किसी वस्तु का मैग्निट्यूड जितना कम हो वह वस्तु उतनी ही अधिक रोशन होती है। पृथ्वी पर बैठे हुए दर्शक के लिए -.

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खगोलीय यांत्रिकी

खगोलीय यांत्रिकी (Celestial mechanics) में आकाशीय पिंडों (heavenly bodies) की गतियों के गणितीय सिद्धांतों का विवेचन किया जाता है। न्यूटन द्वारा प्रिंसिपिया में उपस्थापित गुरुत्वाकर्षण नियम तथा तीन गतिनियम खगोलीय यांत्रिकी के मूल आधार हैं। इस प्रकार इसमें विचारणीय समस्या द्वितीय वर्ण के सामान्य अवकल समीकरणों के एक वर्ग के हल करने तक सीमित हो जाती है। .

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खगोलीय वस्तु

आकाशगंगा सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं - एन॰जी॰सी॰ ४४१४ हमारे सौर मण्डल से ६ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष के व्यास की आकाशगंगा है खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है, यानि जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी आदि शामिल हैं। .

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खगोलीय गोला

खगोलीय गोला पृथ्वी के इर्द-गिर्द एक संकेन्द्रीय काल्पनिक गोला है, जिसे खगोलीय मध्य रेखा दो बराबर के अर्ध-गोलों में काटती है खगोलशास्त्र में खगोलीय गोला पृथ्वी के इर्द-गिर्द एक काल्पनिक गोला है जो पृथ्वी के गोले के साथ संकेन्द्रीय (कॉन्सॅन्ट्रिक) होता है। इसके व्यास (डायामीटर) को पृथ्वी के व्यास से अधिक कुछ भी माना जा सकता है। पृथ्वी पर बैठकर आसमान में देख रहे किसी दर्शक के लिए कल्पना करना मुश्किल नहीं है के सारी खगोलीय वस्तुओं की छवियाँ इसी खगोलीय गोले की अंदरूनी सतह पर दिखाई जा रही हैं। अगर हम पृथ्वी की भू-मध्य रेखा के ऊपर ही खगोलीय मध्य रेखा और पृथ्वी के ध्रुवों के ऊपर ही खगोलीय ध्रुवों को मान कर चलें, तो खगोलीय वस्तुओं के स्थानों के बारे में बताना आसान हो जाता है। उदहारण के लिए हम कह सकते हैं के ख़रगोश तारामंडल खगोलीय मध्य रेखा के ठीक दक्षिण में है। .

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खोया हीन ग्रह

खोया हीन ग्रह (Lost minor planet) एक ऐसा हीन ग्रह होता है जो खगोलशास्त्रियों द्वारा देखा गया हो लेकिन इतने कम समय के लिये कि उसकी कक्षा (ऑरबिट) ठीक से ज्ञात​ होने से पहले ही वह लुप्त होकर किसी अज्ञात​ स्थान पर चला गया हो। ऐसे खोये हीन ग्रह कभी-कभी बाद में फिर मिल जाते हैं लेकिन कभी-कभी दशकों तक फिर नहीं मिल पाते। अक्सर हीन ग्रहों की कक्षाएँ बड़े ग्रहों की तुलना में बेढंगी होती हैं जिससे उनके दृष्टि से ग़ायब​ हो जानी की सम्भावना अधिक रहती है। कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि लगभग आधे ज्ञात हीन ग्रह खोये जाते हैं। कुछ के अनुसार अंदाज़ा है कि डेढ़ लाख (१,५०,०००) से अधिक हीन ग्रह इस समय खोये हुए हैं। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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गणित का कालक्रम

यहाँ शुद्ध एवं अनुप्रयुक्त गणित के इतिहास की प्रमुख घटनाएँ कालक्रम में दी गई हैं। .

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गामा वलोरम तारा

पाल तारामंडल की एक तस्वीर जिसमें गामा वलोरम "γ" के चिह्न वाला सबसे दाएँ पर स्थित तारा है गामा वलोरम, जिसके बायर नामांकन में भी यही नाम (γ Vel या γ Velorum) दर्ज है, आकाश में पाल तारामंडल में स्थित एक पाँच तारों का मंडल है जो एक-दूसरे से गुरुत्वाकर्षक बंधन रखते हैं। इसका मुख्य तारा, जिसे "γ वलोरम ए" या "γ२ वलोरम" कहते हैं, वास्तव में एक द्वितारा है जिसका एक तारा एक नीला महादानव तारा है और दूसरा एक बहुत ही रोशन वुल्फ़-रायेट तारा है। पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) १.७८ है और यह पृथ्वी के आकाश में दिखने वाले तारों में से ३४वां सब से रोशन तारा है। अगर गामा वलोरम के सभी तारों को इकठ्ठा देखा जाए तो इनकी मिली-जुली चमक १.७ मैग्निट्यूड है। ध्यान रहे के खगोलीय मैग्निट्यूड एक विपरीत माप है और यह जितना कम हो चमक उतनी ही ज़्यादा होती है। .

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गामा कैसिओपिये तारा

गामा कैसिओपिये शर्मिष्ठा तारामंडल में 'γ' के चिह्न द्वारा नामांकित तारा है गामा कैसिओपिये, जिसका बायर नाम भी यही (γ Cassiopeiae या γ Cas) है, शर्मिष्ठा तारामंडल का एक तारा है। यह एक परिवर्ती तारा है जिसकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) +२.२० और +३.४० मैग्नीट्यूड के बीच बदलती रहती है। यह तारा बहुत तेज़ी से अपने अक्ष (ऐक्सिस) पर घूर्णन कर रहा है जिस से एक तो इसका अकार पिचक गया है और दूसरा इसकी सतह से कुछ द्रव्य उखड़-उखड़कर इसके इर्द-गिर्द एक छल्ले के रूप में घूमता है। इसी छल्ले की वजह से इस तारे की चमक कम-ज़्यादा होती रहती है। खगोलशास्त्र में ऐसे सभी तारों की एक श्रेणी बनी हुई है जिसके सदस्यों को इसी तारे के नाम पर "गामा कैसिओपिये परिवर्ती" तारे कहा जाता है। यह पृथ्वी से दिखने वाले सब से रोशन तारों में से एक है। गामा कैसिओपिये हमसे लगभग ६१० प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। .

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गियोवन्नी डोमेनिको कैसिनी

गियोवन्नी डोमेनिको कैसिनी (Giovanni Domenico Cassini) (8 जून 1625 - 14 सितंबर 1712), एक इतालवी/फ्रांसीसी गणितज्ञ, खगोल विज्ञानी, इंजीनियर और ज्योतिषी थे। उनका जन्म उस समय की नाइस की काउंटी में इम्पीरिया के नजदीक पेरिनाल्डो में हुआ था। श्रेणी:खगोलशास्त्री श्रेणी:गणितज्ञ श्रेणी:ज्योतिषाचार्य.

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ग्रहलाघव

ग्रहलाघव खगोलविद्या का प्रसिद्ध संस्कृत ग्रन्थ है। इसके रचयिता गणेश दैवज्ञ हैं। सूर्यसिद्धान्त तथा ग्रहलाघव ही भारतीय पंचांग के आधारभूत ग्रन्थ हैं। .

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ग्रहीय मण्डल

एक काल्पनिक ग्रहीय मण्डल एक और काल्पनिक ग्रहीय मण्डल का नज़दीकी दृश्य - इसमें पत्थर, गैस और धूल अपने तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रहें हैं ग्रहीय मण्डल किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। .

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गैलेक्सियों के रेशे

पृथ्वी के ५० करोड़ प्रकाश-वर्ष के अन्दर के ब्रह्माण्ड में रेशे, महागुच्छे और रिक्तियाँ खगोलशास्त्र में गैलेक्सियों के रेशे या महान दीवारें ब्रह्माण्ड की सारी वस्तुओं में सब से बड़े ज्ञात ढाँचे होते हैं। यह बहुत ही बड़े रेशेदार ढाँचे होते हैं जिनमें हर रेशे की लम्बाई आम तौर पर १५ से २५ करोड़ प्रकाश वर्ष होती है। इन रेशों में गैलेक्सियाँ होती हैं जो एक-दूसरे से गुरुत्वाकर्षण से बंधी होती हैं। इन रेशों के बीच में ख़ाली स्थान होता है, जिन्हें रिक्तियाँ कहते हैं। रेशों के अन्दर वह जगहे जहाँ गैलेक्सियों का घना जमावड़ा होता है "महागुच्छे" कहलाते हैं। .

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गैलीलियो गैलिली

गैलीलियो गैलिली (१५ फरवरी, १५६५ - ८ जनवरी, १६४२) इटली के वैज्ञानिक थे। वे एक महान आविष्कारक थे तथा दूरदर्शी के विकास में उनका अतुलनीय सहयोग था। .

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गूगल स्काई

गूगल स्काई, गूगल के गूगल अर्थ की एक सुविधा है और www.google.com/sky पर एक ऑनलाइन स्काई/आउटर स्पेस व्यूअर है। यह स्काई दृश्यों को दिखाता है जो हब्बल दूरबीन के अंतरिक्ष तस्वीरों के सहयोग से बना होता है। इसे 27 अगस्त 2007 को बनाया गया था। .

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गेक्रक्स तारा

त्रिशंकु तारामंडल के इस चित्र में गेक्रक्स सब से ऊपर का रोशन तारा है गेक्रक्स, जिसका बायर नाम "गामा क्रूसिस" (γ Crucis या γ Cru) है, त्रिशंकु तारामंडल का से स्थित एक लाल दानव तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले सब से रोशन तारों में गिना जाता है। यह पृथ्वी से लगभग ८८ प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं और पृथ्वी का सब से समीपी लाल दानव तारा है। इसका गहरा लाल-नारंगी रंग खगोलशास्त्रियों में प्रसिद्ध है। गेक्रक्स वास्तव में एक द्वितारा है जो पृथ्वी से एक तारे जैसा प्रतीत होता है। मुख्य लाल दानव तारे का एक सफ़ेद बौना साथी तारा भी है। .

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गोरख प्रसाद

गोरखप्रसाद (28 मार्च 1896 - 5 मई 1961) गणितज्ञ, हिंदी विश्वकोश के संपादक तथा हिंदी में वैज्ञानिक साहित्य के लब्धप्रतिष्ठ और बहुप्रतिभ लेखक थे। .

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गोल्डीलॉक्स

"मेरा दलिया किसने चख़ा?" गोल्डीलॉक्स और तीन भालू (अंग्रेज़ी: Goldilocks and the Three Bears, गोल्डीलॉक्स ऐण्ड द थ़्री बेअर्ज़) एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी परी कथा है। कथन के रूप में यह कहानी लम्बे अरसे से ब्रिटेन में चली आ रही थी, लेकिन लिखित रूप में इसे सबसे पहले ब्रिटिश लेखक रॉबर्ट साउदी (Robert Southey) ने गुमनाम रूप से सन् 1837 में अपने एक लेख-संग्रह में छपवाया। अंग्रेज़ी भाषा की यह सब से लोकप्रिय कथाओं में से है और पश्चिमी संस्कृति में इसके तत्वों का कई सन्दर्भों में प्रयोग होता है। .

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गोलीय त्रिकोणमिति

गोलीय त्रिकोणमिति (Spherical trigonometry), गोलीय ज्यामिति की शाखा है जिसमें गोलीय बहुभुजों (मुख्यतः गोलीय त्रिभुज) के कोणों एवं भुजाओं में सम्बन्ध बताने वाले त्रिकोणमितीय फलनों का अध्ययन किया जाता है। खगोलविज्ञान, भूगणित (geodesy) और नौचालन से सम्बन्धित गणनाओं में इसका बहुत महत्व है। श्रेणी:ज्यामिति की शाखाएँ.

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गोलीय ज्यामिति

किसी गोले के तल पर स्थित त्रिभुज के तीनो अन्तःकोणों का योग ३६० डिग्री '''नहीं''' होता। गोलीय ज्यामिति (Spherical geometry) किसी गोले के द्विबीमीय-तल का अध्ययन करती है। इसमें दो बिन्दुओं के बीच की न्यूनतम दूरी उन बिन्दुओं के बीच की सरलरेखीय दूरी के बजाय उन बिन्दुओं से जाने वाले वृहदवृत्त के चाँप की लम्बाई को लिया जाता है। यह अयूक्लिडीय-ज्यामिति (नॉन-यूक्लिडियन) का एक प्रकार है। नौकायन (नेविगेशन) तथा खगोलिकी (एस्ट्रोनॉमी) में इसका अनुप्रयोग होता है। .

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गोलीय खगोलशास्त्र

गोलीय खगोलशास्त्र (spherical astronomy) या स्थितीय खगोलशास्त्र (positional astronomy) खगोलशास्त्र की वह शाखा है जिसमें खगोलीय वस्तुओं का किसी विशेष समय, तिथि या पृथ्वी पर स्थित स्थान पर खगोलीय गोले में स्थान अनुमानित करा जाता है। यह अध्ययन की शाखा गोलीय ज्यामिति के सिद्धांतों व विधियों और खगोलमिति की मापन-कलाओं पर निर्भर है। ऐतिहासिक दृष्टि से गोलीय खगोलशास्त्र को पूरे खगोलशास्त्र की प्राचीनतम शाखा माना जा सकता है क्योंकि धार्मिक, ज्योतिष, समयानुमान और दिक्चालन (नैविगेशन) कार्यों के लिये मानव आकाश में तारों, तारामंडलों, ग्रहों, सूर्य व चंद्रमा की स्थिति को ग़ौर से जाँचता-समझता रहा है। अकाश में खगोलीय वस्तुओं के स्थानों को गणितीय रूप से समझने के विज्ञान को खगोलमिति (astronomy) कहते हैं। .

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ओलम्पस मोन्स

ओलम्पस मोन्स (Olympus Mons) (लैटिन: माउंट ओलम्पस), मंगल ग्रह पर एक बड़ा ज्वालामुखी पहाड़ है। करीबन २२ कि॰मी॰ (१४ मील) की उंचाई के साथ,Plescia, J. B. (2004).

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आँत्वाँ लाव्वाज़्ये

लेवेजियर आँत्वाँ लॉरेंत लाव्वाज़्ये (या आँत्वाँ लॉरेंत लावासिये, Antoine Laurent Lavoisier फ्रेंच उच्चारण: ​; सन् १७४३-१७९४), फ्रांस का सुप्रसिद्ध रसायनज्ञ था। अट्ठारहवीं शताब्दी के रसायन क्रान्ति का वह केन्द्र था। रसायन और जीवविज्ञान दोनों के इतिहास पर उसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। अधिकांश लोग उसे आधुनिक रसायन का जनक मानते हैं। उसने सर्वप्रथम सिद्ध किया कि वायु के मुख्य घटक नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन हैं। .

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आणविक बादल

यह धूल और गैस का आणविक बादल कैरीना नॅब्युला का एक टूटा हुआ अंश है और इसके पास नवजात तारे नज़र आ रहे हैं। इन तारों की रोशनी खगोलीय धूल से गुज़रती हुई नीली लगने लगी है क्योंकि यह धूल नीला रंग अधिक फैलती है। इन तारों का कठोर प्रकाश कुछ लाख सालों में इस आणविक बदल को उबल कर ख़तम कर देगा। यह छवि १९९९ में हबल अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी थी। बार्नार्ड ६८ का विशाल आणविक बादल इतना घना है के यह एक "काले नॅब्युला" की तरह प्रतीत होता है, क्योंकि यह पीछे से आने वाले तारों की रोशनी को एक परदे की तरह रोक रहा है। "सॅफ़्यस बी" नामक आणविक बादल और उसमें नए जन्मे तारे। खगोलशास्त्र में आणविक बादल अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे अंतरतारकीय बादल (इन्टरस्टॅलर क्लाउड) को कहते हैं जिसका घनत्व और और आकार अणुओं को बनाने के लिए पार्यप्त हो। अधिकतर यह अणु हाइड्रोजन (H2) के होते हैं, हालांकि आणविक बादलों में और भी प्रकार के अणु मिलते हैं। आणविक बादलों में मौजूद हाइड्रोजन अणुओं को उनसे उभरने वाली विद्युतचुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) के ज़रिये पहचान लेना मुश्किल है इसलिए इन बादलों में हाइड्रोजन की मात्रा का अनुमान लगाना कठिन होता है। सौभाग्य से, हमारी आकाशगंगा (गैलॅक्सी) में देखा गया है के आणविक बादलों में हाइड्रोजन के साथ-साथ कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के अणु भी मिलते हैं और इस कार्बन मोनोऑक्साइड से उभरती रोशनी उतनी ही प्रबल होती है जितनी उसके इर्द-गिर्द हाइड्रोजन की मात्रा होती है। हालांकि यह हाइड्रोजन की मात्रा को अनुमानित करने का तरीका हमारी आकाशगंगा में तो चल जाता है, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है के कार्बन मोनोऑक्साइड के रोशानपन और हाइड्रोजन की मात्रा का यह सम्बन्ध शायद कुछ दूसरी आकाशगंगाओं में सच न हो। .

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आदिरूप

आदिरूप (prototype) किसी वस्तु या उत्पाद को बनाने से पहले बनाया गया उसका एक नमूना, प्रतिरूप या अधूरा संस्करण होता है जिसे उस भविष्य में बनाए जाने वाले उत्पाद के बारे में सीखने, उसपर अनुभव पाने, और उसे समीक्षकों को दिखाकर उसपर प्रतिपुष्टि पाने के ध्येय से बनाया जाता है। अक्सर आदिरूप शीघ्रता से और कम ख़र्च लगाकर बनाया जाता है, और उसका आकार भी अक्सर पूर्ण उत्पाद से छोटा होता है। .

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आपेक्षिकता सिद्धांत

सामान्य आपेक्षिकता में वर्णित त्रिविमीय स्पेस-समय कर्वेचर की एनालॉजी के का द्विविमीयप्रक्षेपण। आपेक्षिकता सिद्धांत अथवा सापेक्षिकता का सिद्धांत (अंग्रेज़ी: थ़िओरी ऑफ़ रॅलेटिविटि), या केवल आपेक्षिकता, आधुनिक भौतिकी का एक बुनियादी सिद्धांत है जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया और जिसके दो बड़े अंग हैं - विशिष्ट आपेक्षिकता (स्पॅशल रॅलॅटिविटि) और सामान्य आपेक्षिकता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि)। फिर भी कई बार आपेक्षिकता या रिलेटिविटी शब्द को गैलीलियन इन्वैरियन्स के संदर्भ में भी प्रयोग किया जाता है। थ्योरी ऑफ् रिलेटिविटी नामक इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले सन १९०६ में मैक्स प्लैंक ने किया था। यह अंग्रेज़ी शब्द समूह "रिलेटिव थ्योरी" (Relativtheorie) से लिया गया था जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह सिद्धांत प्रिंसिपल ऑफ रिलेटिविटी का प्रयोग करता है। इसी पेपर के चर्चा संभाग में अल्फ्रेड बुकरर ने प्रथम बार "थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी" (Relativitätstheorie) का प्रयोग किया था। .

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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आर्यभट्ट की संख्यापद्धति

संख्याओं को शब्दों में बदलने के लिये आर्यभट द्वारा प्रयुक्त पद्धति की तालिका आर्यभट्ट ने आर्यभटीय के 'गीतिकापादम्' नामक अध्याय में संख्याओं को 'शब्दों' के रूप में बदलने की पद्धति का विवरण दिया है। इस पद्धति की मुख्य विशेषता यह है कि इसके उपयोग से गणित तथा खगोलिकी में आने वाली संख्याएँ भी श्लोकों में आसानी से प्रयुक्त की जा सकती थीं। इस पद्धति का आधार आर्यभट्ट की महान रचना आर्यभटीय के प्रथम अध्याय (गीतिकापदम्) के द्वितीय श्लोक में वर्णित है। आर्यभट को अपना ग्रंथ पद्य में लिखना था, गणित व ज्योतिष के विषयों को श्लोकबद्ध करना था। प्रचलित शब्दांकों से आर्यभट का काम नहीं चल सकता था, इसलिए उन्होंने संस्कृत वर्णमाला का उपयोग करके एक नई वर्णांक या अक्षरांक पद्धति को जन्म दिया। संस्कृत व्याकरण के विशिष्ट शब्दों का उपयोग करके आर्यभट ने अपनी नई अक्षरांक-पद्धति के सारे नियम एक श्लोक में भर दिए। ग्रंथ के आरंभ में ही अपनी नई अक्षरांक पद्धति को प्रस्तुत कर देने के बाद आर्यभट अब बड़ी-बड़ी संख्याओं को अत्यंत संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत रूप में रखने में समर्थ थे। उन्होंने शब्दांकों का भी काफी प्रयोग किया है। वह अद्भुत श्लोक है- अर्थात् क से प्रारंभ करके वर्ग अक्षरों को वर्ग स्थानों में और अवर्ग अक्षरों को अवर्ग स्थानों में (व्यवहार करना चाहिए), (इस प्रकार) ङ और म का जोड़ य (होता है)। वर्ग और अवर्ग स्थानों के नव के दूने शून्यों को नव स्वर व्यक्त करते हैं। नव वर्ग स्थानों और नव अवर्ग स्थानों के पश्चात् (अर्थात् इनसे अधिक स्थानों के उपयोग की आवश्यकता होने पर) इन्हीं नव स्वरों का उपयोग करना चाहिए। 'आर्यभटीय' के भाष्यकार परमेश्वर कहते हैं- 'केनचिदनुस्वारादिविशेषण संयुक्ताः प्रयोज्या इत्यर्थः' अर्थात् किसी अनुस्वार आदि विशेषणों का उपयोग (स्वरों में) करना चाहिए। संस्कृत वर्णमाला में क से म तक पच्चीस वर्ग अक्षर हैं और य से ह तक आठ अवर्ग अक्षर हैं। संख्याओं के लिखने में दाहिनी ओर से पहला, तीसरा, पाँचवाँ अर्थात् विषम स्थान और दूसरा, चौथा, छठा आदि सम स्थान अवर्ग स्थान है। क से म तक 25 अक्षर हैं। आर्यभट ने इन्हें 1 से 25 तक मान दिए हैं अर्थात् क .

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आर्यभटीय

आर्यभटीय नामक ग्रन्थ की रचना आर्यभट प्रथम (४७६-५५०) ने की थी। यह संस्कृत भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में १२३ श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है। इसके चार अध्याय इस प्रकार हैं: 1.

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आर्काइव लेखकोष

arXiv जिसे आर्काइव उच्चारित करते हैं गणित, भौतिकी, रसायनिकी, खगोलिकी, संगणिकी (कम्प्यूटर साइंस), मात्रात्मक (कवॉन्टीटेटिव​) जीवविज्ञान, सांख्यिकी (स्टैटिसटिक्स​) और मात्रात्मक वित्त (फ़ाइनैन्स​) के शोबों में वैज्ञानिक लेखों का एक कोष है जिसे इन्टरनेट पर खोजा और पढ़ा जा सकता है। सन् १९९१ में इसकी स्थापना हुई और यह तेज़ी से बढ़ने लगा। वर्तमान में बहुत से विद्वान किसी नई खोज या सोच पर लेख लिखने के बाद स्वयं ही उसे 'आर्काइव-कोष' पर डाल देते हैं। अक्तूबर ३, २००८ तक इसमें ५ लाख से अधिक लेख थे। २०१२ तक इसमें हर महीने ७,००० से अधिक नए लेख जोड़े जा रहे थे। .

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आर्किमिडिज़

आर्किमिडिज़ (यूनानी: Ἀρχιμήδης; लगभग २८७ – २१२ ई.पू.) प्राचीन यूनान में रहने वाले गणितज्ञ, भौतिकज्ञ, इंजीनियर, आविष्कारक और खगोलशास्त्री थे। इनके जीवन के बारे में बहुत कुछ मालूम नहीं है, लेकिन इन्हें प्राचीन पाश्चात्य सभ्यता के महानतम वैज्ञानिकों में से एक माना जाता है। भौतिकी को इन्होंने स्थिति-विज्ञान, द्रव्य स्थिति-विज्ञान और लीवर के सिद्धान्त प्रदान किए। इन्होंने कई नई मशीनें भी ईजाद कीं, जिनमें शामिल हैं घेराबंदी तोड़ने के लिए यंत्र और आर्किमिडिज़ पेच। इसके अलावा इन्होंने ऐसी मशीनों की परिकल्पना की जो पानी से जहाजों को उठा सकती थीं और दर्पणों के प्रयोग से नावों पर आग लगा सकती थीं; आधुनिक प्रयोगों से इन मशीनों की वास्तविकता सामने आई है। आर्किमिडिज़ को प्राचीन संसार का महानतम गणितज्ञ माना जाता है और आजतक के महानतम गणितज्ञों में गिना जाता है। इन्होंने शून्यीकरण विधि का प्रयोग करके परवलय की चाप के नीचे का क्षेत्रफल निकाला और पाइ का अत्यंत सटीक परिमाण निकाला। इन्होंने आर्किमिडिज़ कुण्डली, परिक्रमण की सतह का घनफल और बहुत बड़ी संख्याओं को लिखने के नए तरीके निकाले। इनके बारे में प्रसिद्ध है कि स्नान करते हुए इन्हें अकस्माक विचार आया कि सोने में मिलावट कैसे पकड़ी जाए और ये नग्न ही "यूरेका! यूरेका!" (यूनानी: "εὕρηκα! εὕρηκα!," "मिल गया! मिल गया!") चिल्लाते हुए सिराक्यूज़ की सड़कों पर दौड़ने लगे। इनका यह भी कथन प्रसिद्ध है, "मुझे यदि खड़े होने की जगह मिल जाए तो मैं (लीवर की मदद से) पृथ्वी को हिला सकता हूँ।" सिराक्यूज़ की घेराबंदी में एक रोमन सैनिक ने आर्किमिडिज़ को मार डाला, जबकि सेना को आदेश थे कि इन्हें कोई क्षति नहीं पहुँचनी चाहिए। कहा जाता है कि इनके अंतिम शब्द थे, "मेरे वृत्तों को खराब मत करो" (यूनानी: "μή μου τούς κύκλους τάραττε"), जो इन्होंने उस रोमन सैनिक को कहे। सिसरो ने इनके मकबरे का वर्णन करते हुए बताया है कि उसपर एक वेलनाकार और उसके मध्य में समानाकार गेंद बने हुए थे। आर्किमिडीज़ ने प्रमाणित किया था कि गेंद का क्षेत्रफल और घनफल वेलनाकार का दो-तिहाई होता है और ये इसे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते थे। इनके आविष्कार तो बहुत प्रसिद्ध हुए, लेकिन इनके गणितीय रचनाओं को प्राचीन काल में अधिक महत्त्व नहीं मिला। अलेक्सेंड्रिया के गणितज्ञ इन्हें पढ़ते और उद्धृत भी करते थे, लेकिन इनकी कृतियों को सबसे पहले ५३० ईस्वी के लगभग ही एकत्रित किया जा सका। यह काम मिलेटस के इसीडोर ने किया और फिर छठी शताब्दी ईस्वी में ही यूटोसियस की टीकाओं के माध्यम से सारा संसार आर्किमिडिज़ की कृतियों से अवगत हुआ। इनकी कृतियों की कुछ पाण्डुलिपियाँ मध्ययुग तक बची रहीं और पुनर्जागरण के दौरान कई वैज्ञानिकों और दार्शनिकों की प्रेरणा का स्रोत बनीं। १९०६ में आर्किमिडिज़ पालिम्पसेस्ट के नाम से मिली अन्य कृतियों से पता लगा कि इन्होंने गणितीय फार्मूले कैसे निकाले। .

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आर्किमिडीज़

सेराक्यूस के आर्किमिडीज़ (यूनानी:; 287 ई.पू. - 212 ई.पू.), एक यूनानी गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी, अभियंता, आविष्कारक और खगोल विज्ञानी थे। हालांकि उनके जीवन के कुछ ही विवरण ज्ञात हैं, उन्हें शास्त्रीय पुरातनता का एक अग्रणी वैज्ञानिक माना जाता है। भौतिक विज्ञान में उन्होनें जलस्थैतिकी, सांख्यिकी और उत्तोलक के सिद्धांत की व्याख्या की नीव रखी थी। उन्हें नवीनीकृत मशीनों को डिजाइन करने का श्रेय दिया जाता है, इनमें सीज इंजन और स्क्रू पम्प शामिल हैं। आधुनिक प्रयोगों से आर्किमिडीज़ के इन दावों का परीक्षण किया गया है कि दर्पणों की एक पंक्ति का उपयोग करते हुए बड़े आक्रमणकारी जहाजों को आग लगाई जा सकती हैं। आमतौर पर आर्किमिडीज़ को प्राचीन काल का सबसे महान गणितज्ञ माना जाता है और सब समय के महानतम लोगों में से एक कहा जाता है। उन्होंने एक परवलय के चाप के नीचे के क्षेत्रफल की गणना करने के लिए पूर्णता की विधि का उपयोग किया, इसके लिए उन्होंने अपरिमित श्रृंखला के समेशन का उपयोग किया और पाई का उल्लेखनीय सटीक सन्निकट मान दिया। उन्होंने एक आर्किमिडीज सर्पिल को भी परिभाषित किया, जो उनके नाम पर आधारित है, घूर्णन की सतह के आयतन के लिए सूत्र दिए और बहुत बड़ी संख्याओं को व्यक्त करने के लिए एक सरल प्रणाली भी दी। आर्किमिडीज सेराक्यूस की घेराबंदी के दौरान मारे गए जब एक रोमन सैनिक ने उनकी हत्या कर दी, हालांकि यह आदेश दिया गया था कि उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। सिसरो आर्किमिडिज़ का मकबरा, जो एक बेलन के अंदर अन्दर स्थित गुंबद की तरह है, पर जाने का वर्णन करते हैं कि, आर्किमिडीज ने साबित किया था कि गोले का आयतन और इसकी सतह का क्षेत्रफल बेलन का दो तिहाई होता है (बेलन के आधार सहित) और इसे उनकी एक महानतम गणितीय उपलब्धि माना जाता है। उनके आविष्कारों के विपरीत, आर्किमिडीज़ के गणितीय लेखन को प्राचीन काल में बहुत कम जाना जाता था। एलेगज़ेनडरिया से गणितज्ञों ने उन्हें पढ़ा और उद्धृत किया, लेकिन पहला व्याख्यात्मक संकलन सी. तक नहीं किया गया था। यह 530 ई. में मिलेटस के इसिडोर ने किया, जब छठी शताब्दी ई. में युटोकियास ने आर्किमिडीज़ के कार्यों पर टिप्पणियां लिखीं और पहली बार इन्हें व्यापक रूप से पढने के लिये उपलब्ध कराया गया। आर्किमिडीज़ के लिखित कार्य की कुछ प्रतिलिपियां जो मध्य युग तक बनी रहीं, वे पुनर्जागरण के दौरान वैज्ञानिकों के लिए विचारों का प्रमुख स्रोत थीं, हालांकि आर्किमिडीज़ पालिम्प्सेट में आर्किमिडीज़ के द्वारा पहले से किये गए अज्ञात कार्य की खोज 1906 में की गयी थी, जिससे इस विषय को एक नयी अंतर्दृष्टि प्रदान की कि उन्होंने गणितीय परिणामों को कैसे प्राप्त किया। .

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आल्मेरिया प्रान्त

आल्मेरिया (स्पेनी: Almería) दक्षिणी स्पेन में स्थित एक प्रान्त है। ग्रानडा, मूर्सिया इसके सीमा प्रान्त हैं और भूमध्य सागर इसका सीमान्त सागर। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ८,७६९ किमी२ है जो तुलना के लिए भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ ज़िले का लगभग साढ़े-तीन गुना है। कुल जनसंख्या है ५,४६,४९९ (सन् २००२) और घनत्व है ६२.३२/किमी२। इसके भीतर १०१ नगरनिगम इकाइयाँ हैं। एल्मीरिया, दक्षिणी स्पेन के आंदालुसिया स्वायत्त समुदाय का भाग है। इसकी राजधानी भी "आल्मेरिया" नाम का एक शहर ही है। .

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आइज़क न्यूटन

सर आइज़ैक न्यूटन इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक थे। जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धांत की खोज की। वे एक महान गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिष एवं दार्शनिक थे। इनका शोध प्रपत्र "प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांतों "" सन् १६८७ में प्रकाशित हुआ, जिसमें सार्वत्रिक गुर्त्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गई थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव रखी। उनकी फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका, 1687 में प्रकाशित हुई, यह विज्ञान के इतिहास में अपने आप में सबसे प्रभावशाली पुस्तक है, जो अधिकांश साहित्यिक यांत्रिकी के लिए आधारभूत कार्य की भूमिका निभाती है। इस कार्य में, न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से सूर्य केन्द्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया। यांत्रिकी में, न्यूटन ने संवेग तथा कोणीय संवेग दोनों के संरक्षण के सिद्धांतों को स्थापित किया। प्रकाशिकी में, उन्होंने पहला व्यवहारिक परावर्ती दूरदर्शी बनाया और इस आधार पर रंग का सिद्धांत विकसित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को कई रंगों में अपघटित कर देता है जो दृश्य स्पेक्ट्रम बनाते हैं। उन्होंने शीतलन का नियम दिया और ध्वनि की गति का अध्ययन किया। गणित में, अवकलन और समाकलन कलन के विकास का श्रेय गोटफ्राइड लीबनीज के साथ न्यूटन को जाता है। उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का भी प्रदर्शन किया और एक फलन के शून्यों के सन्निकटन के लिए तथाकथित "न्यूटन की विधि" का विकास किया और घात श्रृंखला के अध्ययन में योगदान दिया। वैज्ञानिकों के बीच न्यूटन की स्थिति बहुत शीर्ष पद पर है, ऐसा ब्रिटेन की रोयल सोसाइटी में 2005 में हुए वैज्ञानिकों के एक सर्वेक्षण के द्वारा प्रदर्शित होता है, जिसमें पूछा गया कि विज्ञान के इतिहास पर किसका प्रभाव अधिक गहरा है, न्यूटन का या एल्बर्ट आइंस्टीन का। इस सर्वेक्षण में न्यूटन को अधिक प्रभावी पाया गया।.

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इथाका घाटी (टॅथिस)

कैसिनी अंतरिक्ष यान द्वारा लिया गया इथाका घाटी के दक्षिणी हिस्से का चित्र इथाका घाटी का एक काल्पनिक दृश्य इथाका घाटी हमारे सौर मंडल के छठे ग्रह शनि के उपग्रह टॅथिस पर स्थित एक खगोलवैज्ञानिकों में प्रसिद्ध तंग घाटी है। यह १०० किलोमीटर चौड़ी, ३ से ५ किमी गहरी और २,००० किमी लम्बी है और टॅथिस के पूरे व्यूह के तीन-चौथाई हिस्से तक चलती है। इसकी चौड़ाई जगह-जगह पर बदलती रहती है - कहीं तो यह सिर्फ़ चंद किलोमीटर ही चौड़ी है और कहीं पर १०० किमी तक चौड़ी है। वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के यह तंग घाटी टॅथिस पर पिछले ४ अरब वर्षों से मौजूद है। वह मानते हैं के टॅथिस पर बहुत सा पानी था जिसके ऊपर बर्फ की मोती परत थी। फिर यह अंदरूनी पानी धीरे-धीरे जमने लगा। पानी जब बर्फ़ बनता है तो उसका आकार फैलता है (यही वजह है के बर्फ़ में रखी पानी की बोतले फट जाती हैं)। जैसे-जैसे यह पानी जमा, उसके फैलने से ऊपर का बर्फीला खोल तंग पड़ गया और फट गया। यही दरार अब इथाका घाटी कहलाती है। .

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इब्न रश्द

इब्न रश्द, (अंग्रेजी में -"Averroes") लैटिन भाषा में आवेररोस (पूरा नाम:अबू इ-वालिद मुहम्मद इब्न ' अहमद इब्न रुस्द) को इस नाम से पुकारा जाता है। एक एंडलुसियन दार्शनिक और विचारक थे जिन्होंने दर्शन, धर्मशास्त्र, चिकित्सा, खगोल विज्ञान, भौतिकी, इस्लामी न्यायशास्त्र और कानून, और भाषाविज्ञान सहित विभिन्न विषयों पर भी लिखा था। उनके दार्शनिक कार्यों में अरिस्टोटल पर कई टिप्पणियां शामिल थीं, जिसके लिए उन्हें पश्चिम में द कमेंटेटर के रूप में जाना जाता था। उन्होंने अलमोहाद खिलाफत के लिए एक न्यायाधीश और एक अदालत चिकित्सक के रूप में भी कार्य किया। अरिस्टोटेलियनवाद के एक मजबूत समर्थक, इन्होंने अरिस्तोटल की मूल शिक्षाओं के रूप में जो कुछ देखा और लिखा, उसे बहाल करने का प्रयास किया, जो पिछले मुस्लिम विचारकों, जैसे अल-फरबी और एविसेना की नियोप्लाटोनिस्ट प्रवृत्तियों का विरोध करता था। उन्होंने अल-गजली जैसे अशारी धर्मशास्त्रियों की आलोचना के खिलाफ दर्शन की खोज का भी बचाव किया। उन्होंने तर्क दिया कि इस्लाम में दर्शन केवल स्वीकार्य नहीं था, बल्कि कुछ अभिजात वर्गों के बीच भी अनिवार्य था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि बाइबल का पाठ कारण और दर्शन के आधार पर निष्कर्ष निकालने के लिए प्रकट हुआ, तो पाठ को रूपक रूप से व्याख्या किया जाना चाहिए। आखिरकार, इस्लामी दुनिया में उनकी विरासत भौगोलिक और बौद्धिक कारणों के लिए अहम थी। पश्चिम में वह अरिस्टोटल पर अपनी व्यापक टिप्पणियों के लिए जाने जाते थे, जिसका व्यापक रूप से लैटिन और हिब्रू में अनुवाद किया गया था। उनके काम के अनुवादों ने अरिस्टोटल और ग्रीक विचारकों में सामान्य रूप से पश्चिमी यूरोपीय रुचि को पढ़ा, अध्ययन का एक क्षेत्र जिसे आम तौर पर रोमन साम्राज्य के पतन के बाद त्याग दिया गया था। उनके विचारों ने लैटिन ईसाईजगत में विवाद पैदा किए। उन्होंने एवरोइज्म नामक उनके बारे में एक दार्शनिक आंदोलन शुरू किया। 1270 और 1277 ईस्वी में कैथोलिक चर्च द्वारा उनके कार्यों की भी निंदा की गई थी। हालांकि थॉमस एक्विनास द्वारा निंदा और निरंतर आलोचना से कमजोर, लैटिन एवररोइज्म ने सोलहवीं शताब्दी तक अनुयायियों को आकर्षित करना जारी रखा। .

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कमलाकर

कमलाकर (1616–1700) भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलविद थे। उनके तीन भाइयों में से अन्य दो भी गणितज्ञ व खगोलविद थे। इनमें से दिवाकर सबसे बड़े थे और उनका जन्म १६०६ में हुआ था। उनके सबसे छोटे भाई रंगनाथ भी गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। कमलाकर का जन्म गोदावरी के उत्तरी किनारे पर स्थित गोलग्राम में हुआ था। उनका परिवार विद्वानों का परिवार था। कमलाकर ने अपने बड़े भाई दिवाकर से खगोलशास्त्र सीखा। बाद में कमलाकर का परिवार वाराणसी आ गया था। कमलाकर, मुनीश्वर के सिद्धान्तों के विरुद्ध थे। .

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करणकौतूहल

करणकौतूहल, भास्कराचार्य द्वारा लिखित एक ग्रन्थ है। भास्कराचार्य अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। करणकौतूहल से पहले इन्होनें सिद्धान्त शिरोमणि नामक एक और ग्रन्थ की रचना की थी। करणकौतूहल में खगोलवैज्ञानिक गणनाएँ हैं। पंचांग आदि बनाने के समय इसे अवश्य देखा जाता है। .

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करणकौस्तुभ

करणकौस्तुभ कृष्ण दैवज्ञ द्वारा शक संवत् १५७५ (सन् १६५३) संस्कृत में रचित खगोलशास्त्र का ग्रन्थ है। इसकी रचना छत्रपति शिवाजी के लिये की गयी थी। यह ग्रन्थ गणेश दैवज्ञ के ग्रहलाघव पर आधारित है। इसमें १४ अधिकरण (अध्याय) हैं-.

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कार्दाशेव मापनी

कार्दाशेव मापनी (Kardashev scale) किसी सभ्यता के प्रौद्योगिकीय विकास के स्तर को मापने की एक विधि है। इसमें सभ्यता द्वारा संचार के लिये उपयोग में ली जाने वाली ऊर्जा को आधार के रूप में लिया जाता है। इस आधार पर सभ्यताओं की तीन श्रेणीया बतायी गयी हैं- श्रेणी-१, श्रेणी-२ तथा श्रेणी-३। 1964 मे कार्दाशेव ने किसी परग्रही सभ्यता के तकनीकी विकास की क्षमता को मापने के लिये इस मापनी को प्रस्तावित किया। रूसी खगोल विज्ञानी निकोलाइ कार्दाशेव के अनुसार सभ्यता के विकास के विभिन्न चरणो को ऊर्जा की खपत के अनुसार श्रेणीबद्ध लिया जा सकता है। इन चरणो के आधार पर परग्रही सभ्यताओं का वर्गीकरण किया जा सकता है। .

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कार्ल फ्रेडरिक गाउस

कार्ल फ्रेडरिक गॉस अथवा कार्ल फ्रेडरिक गाउस (Gauß,; Carolus Fridericus Gauss) (30 अप्रैल 177723 फ़रवरी 1855) एक जर्मन गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी थे जिन्होंने संख्या सिद्धान्त, बीजगणित, सांख्यिकी, गणितीय विश्लेषण, अवकल ज्यामिति, भूगणित, भूभौतिकी, वैद्युत स्थैतिकी, खगोल शास्त्र और प्रकाशिकी सहित कई क्षेत्रों में सार्थक रूप से योगदान दिया। गाउस को विद्युत के गणितीय सिद्धांत का संस्थापक कहा जाता है। विद्युत की चुंबकीय इकाई का 'गाउस' नाम उसी के नाम पर रखा गया है। कभी-कभी गाउस को गणित का राजकुमार भी कहा जाता है। गॉस का गणित और विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न क्षेत्रों में योगदान है और उनका योगदान इतिहास का सबसे प्रभावशाली योगदान रहा है। उन्होंने गणित को "विज्ञान की रानी" कहा है। जर्मनी के ब्रुंसविक नाम स्थान में एक ईंट चुननेवाले मेमार के घर उसका जन्म हुआ था। जन्म से ही उसमें गणति के प्रश्नों को तत्काल हल कर देने की क्षमता थी। उसकी इस प्रतिभा का पता जब ब्रुंसविक के ड्यूक को लगा तो उन्होंने उसे गटिंगन विश्वविद्यालय में अध्ययन करने की व्यवस्था कर दी। वहाँ विद्यार्थी जीवन में ही उसने अनेक गणितीय आविष्कार किए। जयामिति के माध्यम से उसने सिद्ध किया कि एक वृत्त सत्तरह समान आर्क में विभाजित हो सकता है। सिरेस नामक ग्रह के संबंध में उसने जो गणना की उसके कारण उसकी गणना खगोलशास्त्रियों में की जाती है। १८०७ ई० से मृत्यु पर्यंत वह गर्टिगन वेधशाला का निदेशक रहा। .

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कार्ल सेगन

कार्ल सेगन (9 नवम्बर 1934 - 20 दिसम्बर 1996) प्रसिद्ध यहूदी खगोलशास्त्री और खगोल रसायनशास्त्री थे जिन्होंने खगोल शास्त्र, खगोल भौतिकी और खगोल रसायनशास्त्र को लोकप्रिय बनाया। इन्होंने पृथ्वी से इतर ब्रह्माण्ड में जीवन की खोज करने के लिए सेटी नामक संस्था की स्थापना भी की। इन्होंने अनेक विज्ञान संबंधी पुस्तकें भी लिखी हैं। ये 1980 के बहुदर्शित टेलिविजन कार्यक्रम कॉसमॉस: ए पर्सनल वॉयेज (ब्रह्माण्ड: एक निजी यात्रा) के प्रस्तुतकर्ता भी थे। इन्होंने इस कार्यक्रम पर आधारित कॉसमॉस नामक पुस्तक भी लिखी। अपने जीवनकाल में सेगन ने 600 से भी अधिक वैज्ञानिक शोधपत्र और लोकप्रिय लेख लिखे और 20 से अधिक पुस्तकें लिखी। अपनी कृतियों में ये अकसर मानवता, वैज्ञानिक पद्धति और संशयी अनुसंधान पर जोर देते थे। .

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काला बौना

खगोलशास्त्र में काला बौना या ब्लैक ड्वार्फ़ एक बचे-कुचे तारे को बोला जाता है जो बहुत घना हो और जिस से रौशनी और गरमी न आ रही हो या बहुत की कम मात्रा में आ रही हो। वैज्ञानिकों का मानना है के सफ़ेद बौने तारे अरबों सालों में ठन्डे पड़कर काले बौने बन जाते हैं। माना जाता है के जिन तारों में इतना द्रव्यमान नहीं होता के वे आगे चलकर अपना इंधन ख़त्म हो जाने पर न्यूट्रॉन तारा बन सकें, वे सारे सफ़ेद बौने बन जाते हैं। इस नज़रिए से आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) के ९७% तारों के भाग्य में सफ़ेद बौना बन जाना ही लिखा है। सफ़ेद बौनों की रौशनी बड़ी मध्यम होती है। वक़्त के साथ-साथ सफ़ेद बौने ठन्डे पड़ते जाते हैं और वैज्ञानिकों की सोच है के अरबों साल में अंत में जाकर वे बिना किसी रौशनी और गरमी के काले बौने बन जाते हैं। क्योंकि हमारा ब्रह्माण्ड केवल १३.७ अरब साल पुराना है इसलिए अभी इतना समय ही नहीं गुज़रा के कोई भी सफ़ेद बौना पूरी तरह ठंडा पड़कर काला बौना बन सके। इस वजह से आज तक खगोलशास्त्रियों को कभी भी कोई काला बौना नहीं मिला है। .

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कक्षा (भौतिकी)

दिक् में एक बिंदु के इर्द-गिर्द अपनी अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करती दो अलग आकारों की वस्तुएँ भौतिकी में कक्षा या ऑर्बिट दिक् (स्पेस) में स्थित एक बिंदु के इर्द-गिर्द एक मार्ग को कहते हैं जिसपर चलकर कोई वस्तु उस बिंदु की परिक्रमा करती है। खगोलशास्त्र में अक्सर उस बिंदु पर कोई बड़ा तारा या ग्रह स्थित होता है जिसके इर्द-गिर्द कोई छोटा ग्रह या उपग्रह अपनी कक्षा में उसकी परिक्रमा करता है। यदि खगोलीय वस्तुओं की कक्षाओं को देखा जाए तो कई भिन्न तरह की कक्षाएँ देखी जाती हैं - कुछ गोलाकार हैं, कुछ अण्डाकार हैं और कुछ इन से अधिक पेचीदा हैं। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना * श्रेणी:ज्योतिष पक्ष.

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कक्षीय झुकाव

परिक्रमा कक्षा का बाक़ी मंडल की परिक्रमा कक्षा की तुलना में बना हुआ कोण (ऐंगल) है कक्षीय झुकाव (अंग्रेजी: Axial tilt) खगोलशास्त्र में किसी वस्तु की परिक्रमा कक्षा (ऑरबिट) का किसी अन्य वस्तु या वस्तुओं की परिक्रमा कक्षा से बनने वाला कोण (ऐंगल) है। मसलन बुध ग्रह (मरक्यूरी) का कक्ष पृथ्वी के कक्ष से ७.०१° के झुकाव पर है। अगर पृथ्वी के सूर्य के इर्द-गिर्द परिक्रमा कक्ष को एक समतल (प्लेन) में देखा जाये तो बुध परिक्रमा करता हुआ एक छोर पर इस समतल से लगभग ७.०१° ऊपर उठता है और कक्ष के दूसरे छोर पर ७.०१° समतल से नीचे जाता है। .

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कक्षीय राशियाँ

खगोलशास्त्र और भौतिकी में कक्षीय राशियाँ (Orbital elements) वह प्राचल (पैरामीटर) होते हैं जिन्हें निर्धारित करने से किसी वस्तु की किसी और वस्तु के इर्द-गिर्द करने वाली कक्षा (ऑरबिट) पूरी तरह निर्धारित हो जाती है। किसी भी कक्षा को कई प्राचल के साथ समझा जा सकता है लेकिन कुछ विधियाँ (जिसमें प्रत्येक में छह प्राचल प्रयोग होते हैं) खगोलशास्त्रियों द्वारा आम प्रयोग होती हैं। .

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क्रिश्चियन हाइगेन्स

क्रिश्चियन हाइगेन्स (Christiaan Huygens), (Hugenius) (14 अप्रैल 1629 – 8 जुलाई 1695) एक प्रमुख डच गणितज्ञ और प्राकृतिक दार्शनिक थे। उन्हे विशेष रूप से एक खगोलशास्त्री, भौतिक विज्ञानी, अनिश्चिततावादी और समय विज्ञानवेत्ता के रूप में जाना जाता है। आपका जन्म हेग में १४ अप्रैल, सन् १६२९ को हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा आपको अपने योग्य पिता से मिली, तदुपरान्त आपने लाइडेन में शिक्षा पाई। .

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क्लाइड टॉमबॉ

क्लाइड विलियम टॉमबॉ (Clyde William Tombaugh, जन्म: ४ फ़रवरी १९०६, देहांत:१७ जनवरी १९९७) एक अमेरिकी खगोलशास्त्री थे, जिन्होने १९३० में प्लूटो (बौने ग्रह) की खोज की। यह हमारे सौर मंडल के काइपर घेरे में पाई जाने वाली सर्वप्रथम वस्तु थी। इसके अतिरिक्त उन्होने कई क्षुद्रग्रहों की भी खोज की थी। .

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कृत्तिका तारागुच्छ

कृत्तिका तारागुच्छ अवरक्त प्रकाश (इन्फ़्रारॅड) में कृत्तिका के एक हिस्से का दृश्य - धूल का ग़ुबार साफ़ दिख रहा है कृत्तिका का एक नक़्शा कृत्तिका, जिसे प्लीयडीज़ भी कहते हैं, वृष तारामंडल में स्थित B श्रेणी के तारों का एक खुला तारागुच्छ है। यह पृथ्वी के सब से समीप वाले तारागुच्छों में से एक है और बिना दूरबीन के दिखने वाले तारागुच्छों में से सब से साफ़ नज़र आता है। कृत्तिका तारागुच्छ का बहुत सी मानव सभ्यताओं में अलग-अलग महत्व रहा है। इसमें स्थित ज़्यादातर तारे पिछले १० करोड़ वर्षों के अन्दर जन्में हुए नीले रंग के गरम और बहुत ही रोशन तारे हैं। इसके सबसे रोशन तारों के इर्द-गिर्द धूल भी दमकती हुई नज़र आती है। पहले समझा जाता था कि यह यहाँ के तारों के निर्माण के बाद बची-कुची धूल है, लेकिन अब ज्ञात हुआ है कि यह अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर मीडयम) में स्थित एक अलग ही धूल और गैस का बादल है जिसमें से कृत्तिका के तारे गुज़र रहें हैं। खगोलशास्त्रियों का अनुमान है कि इस तारागुच्छ और २५ करोड़ वर्षों तक साथ हैं लेकिन उसके बाद आसपास गुरुत्वाकर्षण कि खींचातानी से एक-दूसरे से बिछड़कर तित्तर-बित्तर हो जाएँगे। कृत्तिका पृथ्वी से ४०० और ५०० प्रकाश वर्ष के बीच की दूरी पर स्थित है और इसकी ठीक दूरी पर वैज्ञानिकों में ४०० से लेकर ५०० प्रकाश वर्षों के बीच के आंकड़ों में अनबन रही है। .

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कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन

कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन राज्यसभा के सांसद एवं प्रसिद्ध भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं। इन्हें भारत सरकार ने १९९२ में विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये कर्नाटक से हैं एवं वर्तमान में भारतीय योजना आयोग के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। .

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केप्लर के ग्रहीय गति के नियम

चित्र १: केप्लेर के तीनो नियमों का दो ग्रहीय कक्षाओं के माध्यम से प्रदर्शन (1) कक्षाएँ दीर्घवृत्ताकार हैं एवं उनकी नाभियाँ पहले ग्रह के लिये (focal points) ''ƒ''1 and ''ƒ''2 पर हैं तथा दूसरे ग्रह के लिये ''ƒ''1 and ''ƒ''3 पर हैं। सूर्य नाभिक बिन्दु ''ƒ''1 पर स्थित है। (2) ग्रह (१) के लिये दोनो छायांकित (shaded) सेक्टर ''A''1 and ''A''2 का क्षेत्रफल समान है तथा ग्रह (१) के लिये सेगमेन्ट ''A''1 को पार करने में लगा समय उतना ही है जितना सेगमेन्ट ''A''2 को पार करने में लगता है। (3) ग्रह (१) एवं ग्रह (२) को अपनी-अपनी कक्षा की परिक्रमा करने में लगे कुल समय ''a''13/2: ''a''23/2 के अनुपात में हैं। खगोल विज्ञान में केप्लर के ग्रहीय गति के तीन नियम इस प्रकार हैं -.

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केप्लर-452

केप्लर-452 नामक तारा एक जी श्रेणी का तारा है जो पृथ्वी से 1400 प्रकाशवर्ष दूर है। यह सिग्नस नामक तारामंडल में स्थित है। इसका तापमान सूर्य के तापमान के लगभग बराबर है। इसकी आयु लगभग ६ अरब वर्ष है और यह सूर्य से 150 करोड़ वर्ष पुराना है और सूर्य की तुलना में यह 20 प्रतिशत अधिक चमकीला है। सूर्य की तुलना में इसका द्रव्यमान ४ गुना और व्यास १०% अधिक है। ग्रह केप्लर-452बी इसकी परिक्रमा करता है जिसे केप्लर अंतरिक्ष यान द्वारा जुलाई २०१५ में खोजा गया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन लायक प्रकाश, गर्मी और वातावरण बनाए रखने के लिये ये अपने तारे केप्लर-४५२ से उचित दूरी पर है और इस वजह से यहाँ हमरे ग्रह पृथ्वी जैसे जीवन की संभावना हो सकती है। .

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केरलीय गणित सम्प्रदाय

केरलीय गणित सम्प्रदाय केरल के गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों का एक के बाद एक आने वाला क्रम था जिसने गणित और खगोल के क्षेत्र में बहुत उन्नत कार्य किया। इसकी स्थापना संगमग्राम के माधव द्वारा की गयी थी। परमेश्वर, नीलकण्ठ सोमजाजिन्, ज्येष्ठदेव, अच्युत पिशारती, मेलापतुर नारायण भट्टतिरि तथा अच्युत पान्निकर इसके अन्य सदस्य थे। यह सम्प्रदाय १४वीं शदी से लेकर १६वीं शदी तक फला-फूला। खगोलीय समस्याओं के समाधान के खोज के चक्कर में इस सम्प्रदाय ने स्वतंत्र रूप से अनेकों महत्वपूर्ण गणितीय संकल्पनाएँ सृजित की। इनमें नीलकंठ द्वारा तंत्रसंग्रह नामक ग्रन्थ में दिया गया त्रिकोणमितीय फलनों का श्रेणी के रूप में प्रसार सबसे महत्वपूर्ण है। केरलीय गणित सम्प्रदाय माधवन के बाद कम से कम दो शताब्दियों तक फलता-फूलता रहा। ज्येष्ठदेव से हमें समाकलन का विचार मिला, जिसे संकलितम कहा गया था, (हिंदी अर्थ संग्रह), जैसा कि इस कथन में है: जो समाकलन को एक ऐसे चर (पद) के रूप में अनुवादित करता है जो चर के वर्ग के आधे के बराबर होगा; अर्थात x dx का समाकलन x2 / 2 के बराबर होगा। यह स्पष्ट रूप से समाकलन की शुरुआत है। इससे सम्बंधित एक अन्य परिणाम कहता है कि किसी वक्र के अन्दर का क्षेत्रफल उसके समाकल के बराबर होता है। इसमें से अधिकांश परिणाम यूरोप में ऐसे ही परिणामों के अस्तित्व से कई शताब्दियों पूर्व के हैं। अनेक प्रकार से, ज्येष्ठदेव की युक्तिभाषा कलन पर विश्व की पहली पुस्तक मानी जा सकती है। इस समूह ने खगोल विज्ञान में अन्य कई कार्य भी किये; वास्तव में खगोलीय परिकलनों पर विश्लेषण संबंधी परिणामों की तुलना में कहीं अधिक पृष्ठ लिखे गए हैं। केरल स्कूल ने भाषाविज्ञान (भाषा और गणित के मध्य सम्बन्ध एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, देखें, कात्यायन) में भी योगदान दिया है। केरल की आयुर्वेदिक और काव्यमय परंपरा की जड़ें भी इस स्कूल में खोजी जा सकती हैं। प्रसिद्ध कविता, नारायणीयम, की रचना नारायण भात्ताथिरी द्वारा की गयी थी। .

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केल्विन

कैल्विन (चिन्ह: K) तापमान की मापन इकाई है। यह सात मूल इकाईयों में से एक है। कैल्विन पैमाना ऊष्मगतिकीय तापमान पैमाना है, जहाँ, परिशुद्ध शून्य, पूर्ण ऊर्जा की सैद्धांतिक अनुपस्थिति है, जिसे शून्य कैल्विन भी कहते हैं। (0 K) कैल्विन पैमाना और कैल्विन के नाम ब्रिटिश भौतिक शास्त्री और अभियाँत्रिक विलियम थामसन, प्रथम बैरन कैल्विन (1824–1907) के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने विशुद्ध तापमानमापक पैमाने की आअवश्यकत जतायी थी। .

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कॅप्लर-१६बी

गैस दानव ग्रह है कॅप्लर-१६बी (Kepler-16b) एक ग़ैर-सौरीय ग्रह है। यह पृथ्वी से लगभग २०० प्रकाश वर्ष दूर हंस तारामंडल के क्षेत्र में स्थित कॅप्लर-१६ नामक द्वितारे की परिक्रमा कर रहा है और पहला ऐसा ज्ञात ग्रह है जो किसी द्वितारा के इर्द-गिर्द कक्षा (ऑर्बिट) में हो। अनुमान लगाया जाता है की यह आधा पत्थर और आधा गैस का बना हुआ लगभग शनि के द्रव्यमान (मास) वाला एक गैस दानव ग्रह है। यह ग्रह कॅप्लर अंतरिक्ष यान द्वारा शोध करने से मिला था और खगोलशास्त्रियों ने इसके पाए जाने की घोषणा सितम्बर २०११ में की थी। .

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कॅक वेधशाला

डब्ल्यू ऍम कॅक वेधशाला (W. M. Keck Observatory) संयुक्त राज्य अमेरिका के हवाई राज्य में स्थित एक दो-दूरबीनों वाली खगोलीय वेधशाला है। हवाई प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीपों वाला राज्य है और कॅक वेधशाला उसके एक द्वीप पर स्थित माउना केआ (Mauna Kea) नामक पहाड़ी के शिखर के समीप लगभग ४,१४५ मीटर (१३,६०० फ़ुट) की ऊँचाई पर स्थित है। यह विश्व की सबसे बड़ी खगोलीय दूरबीनों में से एक है। अपने दूर-दराज़ व ऊँचे स्थान, बड़े प्रकाशिकी उपकरणों और नई तकनीकों वाले यंत्रों के कारण यह अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये एक बहुत महत्वपूर्ण वेधशाला मानी जाती है। .

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कोण

"यदि कोई रेखा अपने एक सिरे को स्थिर रखकर घूमती हुई अपनी स्थिति में परिवर्तन करती है, तो रेखा के परिक्रमण की माप को कोण कहते है। "∠, कोण का प्रतीक ज्यामिति में कोण (Angle) वह आकृति है जो एकबिन्दु से दो सरल रेखाओं के निकलने पर बनती है। .

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कोणीय दूरी

गणित (विशेषकर ज्यामिति व त्रिकोणमिति) और खगोलशास्त्र व भूभौतिकी जैसी सभी प्राकृतिक विज्ञान की शाखाओं में, कोणीय दूरी (angular distance) किसी प्रेक्षक द्वारा किन्ही दो वस्तुओं को देखने की रेखाओं के बीच के कोण (ऐंगल) के माप को कहते हैं। .

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अधोरक्त खगोलशास्त्र

हबल दूरदर्शी द्वारा करीना नेबुला (Carina Nebula) की इन्फ्रारेड प्रकाश में खिंची गयी तस्वीर IRAS overview अधोरक्त या इन्फ्रारेड खगोलशास्त्र (Infrared astronomy), खगोलशास्त्र और खगोलभौतिकी की एक शाखा है जिसमें खगोलीय निकायों को इन्फ्रारेड प्रकाश में देखकर अध्ययन किया जाता है। सन १८०० में विलियम हरशॅल ने इन्फ्रारेड प्रकाश की खोज की और इसके तीन दशक बाद सन १८३० में अधोरक्त खगोलशास्त्र की शुरुआत हुई। विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम में इन्फ्रारेड प्रकाश का तरंगदैर्ध्य विस्तार (०.७५ से ३०० माइक्रोमीटर), दृश्य प्रकाश तरंगदैर्घ्य विस्तार (३८० से ७५० नैनोमीटर) और सूक्ष्म तरंगदैर्घ्य तरंग के बीच होता है। इन्फ्रारेड खगोलशास्त्र और प्रकाशीय खगोलशास्त्र (optical astronomy) दोनों में ही प्रायः एक ही तरह केटेलिस्कोप और एक ही तरह के दर्पण या लेंस का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इन्फ्रारेड और दृश्य प्रकाश दोनों ही विद्युतचुम्बकीय तरंगों का प्रकाशिकी व्यवहार सामान होता है। पृथ्वी के वातावरण में उपस्थित जल वाष्प द्वारा विभिन्न तरंगदैर्ध्यों वाली इन्फ्रारेड प्रकाश का अवशोषण कर लिया जाता है इसलिए अधिकतर इन्फ्रारेड टेलीस्कोपों की स्थापना संभावित अधिक से अधिक ऊँचे और सूखे स्थानों में की जाती है। ' स्पिट्जर अंतरीक्ष टेलिस्कोप '(Spitzer Space Telescope) और ' हरशॅल अंतरीक्ष वेधशाला ' (Herschel Space observatory) दोनों ही ऐसी इन्फ्रारेड वेधशालाएं है जिसे सूदुर अंतरीक्ष में स्थापित किया गया है। .

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अन्तरिक्ष

अन्तरिक्ष (स्पेस) असीम, तीन-आयामी विस्तार है जिसमें वस्तुएं और घटनाएं होती है और उनकी सापेक्ष स्थिति और दिशा होती है। भौतिक अन्तरिक्ष अक्सर तीन रैखिक आयाम की तरह समझा जाता है, हालांकि आधुनिक भौतिकविद आमतौर पर इसे, समय के साथ, असीम चार-आयामी सातत्यक जिसे स्पेस टाइम कहते है, का एक भाग समझते हैं। गणित में 'अन्तरिक्ष' को विभिन्न आधारभूत संरचनाओं और आयामों की विभिन्न संख्या के साथ समझा जाता है। भौतिक ब्रह्मांड को समझने के लिए अन्तरिक्ष की अवधारणा को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है हालांकि दार्शनिकों के मध्य इस तथ्य को लेकर असहमति जारी है कि यह स्वयं एक इकाई है, या इकाइयों के मध्य एक सम्बन्ध है, या वैचारिक ढांचे का एक हिस्सा है। पारम्परिक यांत्रिकी के प्रारंभिक विकास के दौरान, 17 वीं शताब्दी में कई दार्शनिक प्रश्न उजागर हुए थे। इसाक न्यूटन के अनुसार, अन्तरिक्ष निरपेक्ष था - अर्थात् यह स्थायी रूप से अस्तित्व में है और इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि क्या अन्तरिक्ष में कोई विषयवस्तु थी या नहीं। अन्य प्राकृतिक दार्शनिक, विशेष रूप से गोटफ्राइड लेबनिज़, ने इसके बजाय सोचा कि अन्तरिक्ष वस्तुओं के बीच संबंधों का एक संग्रह था, जो एक दूसरे से उनकी दूरी और दिशा के द्वारा दिया जाता है। 18वीं सदी में, इम्मानुएल काण्ट ने अन्तरिक्ष और समय को संरचनात्मक ढांचे के तत्वों के रूप में वर्णित किया है जिसको मनुष्य अपने अनुभव के निर्माण हेतु उपयोग करते है। 19वीं और 20वीं सदी में गणितज्ञों ने गैर इयूक्लिडियन रेखागणित का परीक्षण करना शुरू कर दिया था जिसमें अन्तरिक्ष को समतल के बजाय वक्रित कह सकते है। अल्बर्ट आइंस्टाइन का सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के आसपास का अन्तरिक्ष इयूक्लिडियन अन्तरिक्ष से विसामान्य होता है। सामान्य सापेक्षता के प्रायोगिक परीक्षण ने यह पुष्टि की है कि गैर इयूक्लिडियन अन्तरिक्ष प्रकाशिकी और यांत्रिकी के और मौजूदा सिद्धांतो की व्याख्या हेतु एक बेहतर मॉडल उपलब्ध कराता है। .

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अनेग्जीमेण्डर

यह थेल्स का शिष्य था। उसने सर्वप्रथम एक बेबीलोनियन यन्त्र नोमोन बनाया बनाया जो सूर्य घड़ी का कार्य करता था। अनेग्जीमेण्डर ईसा से 610-546 वर्ष पूर्व युनानी विद्वान था। इसने ब्रह्माण्डविज्ञान को विकसित किया। इसने ब्रह्माण्ड उत्पत्ति का सिद्धांत और नक्षत्रों का उल्लेख किया। मिलेसस निवासी यह बिद्द्वान थेल्स का शिष्य था तथा उतराधिकारी था ।उन्हिने पृथ्वी की उत्पति,आकार तथा आकृति में विचार रखे,उन्हिने पृथ्वी की उतपत्ति अदृश्य पदार्थो से मानी जो उसर्ण और शीतोष्ण दोनों गुड वाले थे ।अदृश्य पदार्थी में भीतरी भाग में ठण्डा होने से तो ढाल की आकृति में पृथ्वी बनी तथा बाहरी उषण भाग केंद्रित भाग से अलग हो गया जो काली धुंद के रूप में वायुमंडल बना ।इन्होने बाताया की पृथ्वी ब्रह्माण्ड के मध्य ठोस रूप में है तथा चपटी ना होकर गोलाकार है । उन्होंने पृथ्वी के लम्बाई को चौड़ाई से तीन गुणा अधिक बताया उन्होंने एक मानचित्र भी बनाया ।जिसके मद्य यूनान तथा विश्व के चारो ओर महासागर नदी से घिरा हुआ बताया । इन्होने अनेक जिव उत्पत्ति तथा प्रकाश सम्बंधित लेख लिखे तथा पृथ्वी तल से समस्त जीवधारियो को उत्पत्ति जीवो के विकास के फलस्वरूप मानी ।उन्हिने सर्वप्रथम एक बेविलोनियाँ यन्त्र नोमोन बताया जो सूर्य घडी का कार्य करता है । .

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अफ़्रीका

अफ़्रीका वा कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशान्तर से 51°23' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। .

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अभिवृद्धि चक्र

खगोलशास्त्र में अभिवृद्धि चक्र (accretion disk) किसी बड़ी खगोलीय वस्तु के इर्द-गिर्द कक्षीय परिक्रमा कर रहे मलबे के चक्र को कहते हैं। ऐसा चक्र किसी तारे की परिक्रमा कर रहा हो तो उसे परितारकीय चक्र (circumstellar disk) कहा जाता है। जब मलबे के कण आपस में रगड़ते हैं और गुरुत्वाकर्षण से मलबे पर दबाव पड़ता है तो उसका तापमान बढ़ जाता है और उस से विद्युतचुंबकीय विकिरण उत्पन्न होता है। इस विकिरण की आवृत्ति (फ़्रीक्वेन्सी) केन्द्रीय वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करती है। नवजात तारों और आदितारों के अभिवृद्धि चक्र अवरक्त (इन्फ़्रारेड) विकिरण उत्पन्न करते हैं जबकि न्यूट्रॉन तारों और काले छिद्रों के अभिवृद्धि चक्रों से ऍक्स किरणों का उत्सर्जन होता है। .

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अयन (खगोलविज्ञान)

नाचता हुआ लट्टू पुरस्सरण भी करता है। घूर्णदर्शी (गाइरोस्कोप) का अयन भौतिकी में, किसी घूर्णन करने वाली वस्तु के अक्ष के घूर्णन को पुरस्सरण या अयन (precession) कहते हैं। पुरस्सरण दो तरह का होता है-.

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अल बेरुनी

अबु रेहान मुहम्मद बिन अहमद अल-बयरुनी (फ़ारसी-अरबी: ابوریحان محمد بن احمد بیرونی यानि अबू रयहान, पिता का नाम अहमद अल-बरुनी) या अल बेरुनी (973-1048) एक फ़ारसी विद्वान लेखक, वैज्ञानिक, धर्मज्ञ तथा विचारक था। अल बेरुनी की रचनाएँ अरबी भाषा में हैं पर उसे अपनी मातृभाषा फ़ारसी के अलावा कम से कम तीन और भाषाओं का ज्ञान था - सीरियाई, संस्कृत, यूनानी। वो भारत और श्रीलंका की यात्रा पर 1017-20 के मध्य आया था। ग़ज़नी के महमूद, जिसने भारत पर कई बार आक्रमण किये, के कई अभियानों में वो सुल्तान के साथ था। अलबरुनी को भारतीय इतिहास का पहला जानकार कहा जाता था। .

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अंतरतारकीय बादल

लगून नॅब्युला की सैर करिए - यह एक अंतरतारकीय बादल है खगोलशास्त्र में अंतरतारकीय बादल अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे बादल को कहते हैं जहाँ गैस, प्लाज़्मा और धूल का जमावड़ा हो। वैसे तो अंतरतारकीय माध्यम के व्योम में कुछ-कुछ कण, अणु और परमाणु तो होते ही हैं, लेकिन अंतरतारकीय बादल ऐसा क्षेत्र होता है जहाँ इन चीज़ों का घनत्व अंतरतारकीय व्योम के औसत घनत्व से ज़्यादा हो। इन बादलों के घनत्व, तापमान और आकार के अनुसार इन बादलों में मौजूद हाइड्रोजन (जो ब्रह्माण्ड का सब से अधिक मात्रा में मिलने वाला मूल तत्व है) या तो साधारण परमाणुओं के रूप में हो सकता है, आयनीकृत (आयोनाइज़्ड) प्लाज़्मा के रूप में हो सकता है या फिर अणुओं के रूप में हो सकता है। साधारण परमाणुओं वाले बादल को "एच १" (H I) क्षेत्र, प्लाज़्मा वाले बादल को "एच २" (H 2) क्षेत्र और अणुओं वाले बादल को "आणविक बादल" (मॉलॅक्यूलर क्लाउड) कहते हैं। परमाणुओं और प्लाज़्मा वाले बादलों को "छितरे" बादल भी बुलाया जाता है जबकि आणविक बादलों को "घने बादल" भी कहते हैं। .

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अंतरिक्ष विज्ञान

गैलेक्सी के एक भाग को प्रदर्शित करता हुआ एक तस्वीर अंतरिक्ष विज्ञान एक व्यापक शब्द है जो ब्रह्मांड के अध्ययन से जुड़े विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों का वर्णन करता है तथा सामान्य तौर पर इसका अर्थ "पृथ्वी के अतिरिक्त" तथा "पृथ्वी के वातावरण से बाहर" भी है। मूलतः, इन सभी क्षेत्रों को खगोल विज्ञान का हिस्सा माना गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में खगोल के कुछ क्षेत्रों, जैसे कि खगोल भौतिकी, का इतना विस्तार हुआ है कि अब इन्हें अपनी तरह का एक अलग क्षेत्र माना जाता है। कुल मिला कर आठ श्रेणियाँ हैं, जिनका वर्णन अलग से किया जा सकता है; खगोल भौतिकी, गैलेक्सी विज्ञान, तारकीय विज्ञान, पृथ्वी से असंबंधित ग्रह विज्ञान, अन्य ग्रहों का जीव विज्ञान, एस्ट्रोनॉटिक्स/ अंतरिक्ष यात्रा, अंतरिक्ष औपनिवेशीकरण और अंतरिक्ष रक्षा.

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अंतरिक्ष अन्वेषण

सैटर्न V रॉकेट जिसका उपयोग अमेरिकी चंग्रमा अभियानों पर किया जाता है अंतरिक्ष यात्रा या अंतरिक्ष अन्वेषण ब्रह्माण्ड की खोज और उसका अन्वेषण अंतरिक्ष की तकनीकों का उपयोग करके करने को कहते हैं। अंतरिक्ष का शारीरिक तौर पर अन्वेषण मानवीय अंतरिक्ष उड़ानों व रोबोटिक अंतरिक्ष यानो द्वारा किया जाता है। हालाँकि खगोलविज्ञान के ज़रिए हम अंतरिक्ष में मौजूद वस्तुओं का निरिक्षण मानव इतिहास में लंबे समय से करते आ रहे हैं परन्तु २०वि सदी की शुरुआत में बड़े व कारगर रॉकेटों के कारण हमने अंतरिक्ष अन्वेषण को एक सत्य बना दिया है। अंतरिक्ष अन्वेषण में आधुकिन वैज्ञानिक अनुसन्धान, कई राष्ट्रों को एक जुट करना, मानवता का भविष्य में जीवित रहना पक्का करना और अन्य देशों के खिलाफ़ सैन्य व सैन्य तकनीकों का विकास करना शामिल है। कई बार अंतरिक्ष अन्वेषण पर अलग-अलग तरह से टिका की गई है। अंतरिक्ष अन्वेषण का उपयोग शीत युद्ध जैसे कालों में अपना कौशल व वर्चस्व सिद्ध करने के लिए अक्सर होता आया है। अंतरिक्ष अन्वेषण की शुरुआत सोवियत संघ और अमेरिका के बिच शुरू हुई "अंतरिक्ष होड़" से हुई जब सोवियत संघ ने ४ अक्टूबर १९५७ को मानव-निर्मित पहली वस्तु, स्पुतनिक 1 पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित किया था और इसके बाद अमेरिकी अपोलो ११ अंतरिक्ष यान को चंद्रमा पर २० जुलाई १९६९ को उतारा गया था। इन दोनों घटनाओं को अपने काल की बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाता है। सोवित अंतरिक्ष कार्यक्रम ने कई शुरूआती उपलब्धियां हासिल की जिनमे १९५७ में पहले जीवित प्राणी को कक्षा में भेजना, १९६१ में पहली मानवीय अंतरिक्ष उड़ान (यूरी गगारिन वोस्तोक 1 में), १९६५ में पहला अंतरिक्ष में कदम (एलेक्सी लेओनोव द्वारा), १९६६ में किसी बाह्य अंतरिक्ष वस्तु पर पहली स्वयंचलित लैंडिंग और १९७१ में पहला अंतरिक्ष स्टेशन (सल्यूट 1) भेजना शामिल है। अन्वेषण व खोज के पहले २० वर्षों बाद एक-तरफा उड़ानों से ध्यान पुनः उपयोग में लाए जा सकने वाले स्रोतों की ओर मुड़ा जिनमे स्पेस शटल कार्यक्रम शामिल है और होड़ से मिलजुल कर काम करने पर केंद्रित हुआ जिसका परिणाम अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) है। २००० में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना ने एक सफल मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके साथ ही युओपीय संघ, जापान और भारत ने भी भविष्य में मानवी अंतरिक्ष मिशनों की योजना बनाई है। चीन, रूस, जापान और भारत ने २१वि सदी में चंद्रमा पर मानव अभियानों की शुरुआत ककी है और युओपीय संघ ने चंद्रमा और मंगल, दोनों पर मानव अभियानों की शुरुआत करने का निर्णय लिया है। १९९० के बाद से कई निजी कंपनियों ने अंतरिक्ष पर्यटन को बढ़ावा देना शुरू किया है और इसके बाद चंद्रमा का निजी अन्वेषण भी करने की मांग की है। श्रेणी:अंतरिक्ष.

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अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ

अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ का चिह्न अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (International Astronomical Union (IAU)), पेशेवर खगोलशास्त्रियों का एक संगठन है। इसका केंद्रीय सचिवालय पैरिस, फ़्रांस में है। इस संघ का ध्येय खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अनुसन्धान और अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देना है। जब भी ब्रह्माण्ड में कोई नई वस्तु पाई जाती है तो खगोलीय संघ द्वारा दिए गए नाम ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होते हैं। .

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अंगिरस तारा

सप्तर्षि तारामंडल में अंगिरस तारे (ε UMa) का स्थान अंगिरस, जिसका बायर नामांकन "ऍप्सिलन अर्से मॅजोरिस" (ε UMa या ε Ursae Majoris) है, सप्तर्षि तारामंडल का सबसे रोशन तारा और पृथ्वी से दिखने वाले सभी तारों में से ३३वाँ सब से रोशन तारा है। यह हमसे ८१ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) १.७६ है। .

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अंक विद्या

अनेक प्रणालियों, परम्पराओं (tradition) या विश्वासों (belief) में अंक विद्या, अंकों और भौतिक वस्तुओं या जीवित वस्तुओं के बीच एक रहस्यवाद (mystical) या गूढ (esoteric) सम्बन्ध है। प्रारंभिक गणितज्ञों जैसे पाइथागोरस के बीच अंक विद्या और अंकों से सम्बंधित शकुन लोकप्रिय थे, परन्तु अब इन्हें गणित का एक भाग नहीं माना जाता और आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा इन्हे छद्म गणित (pseudomathematics) की मान्यता दी जाती है। यह उसी तरह है जैसे ज्योतिष विद्या में से खगोल विद्या और रसविद्या (alchemy) से रसायन शास्त्र का ऐतिहासिक विकास है। आज, अंक विद्या को बहुत बार अदृश्य (occult) के साथ-साथ ज्योतिष विद्या और इसके जैसे शकुन विचारों (divinatory) की कलाओं से जोड़ा जाता है। इस शब्द को उनके लोगों के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है जो कुछ प्रेक्षकों के विचार में, अंक पद्धति पर ज्यादा विश्वास करते हैं, तब भी यदि वे लोग परम्परागत अंक विद्या को व्यव्हार में नहीं लाते। उदाहरण के लिए, उनकी १९९७ की पुस्तक अंक विद्या; या पाइथागोरस ने क्या गढ़ा, गणितज्ञ अंडरवुड डुडले (Underwood Dudley) ने शेयर बाजार (stock market) विश्लेषण के एलिअट के तरंग सिद्धांत (Elliott wave principle) के प्रयोगकर्ताओं की चर्चा करने के लिए इस शब्द का उपयोग किया है। .

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अक्षीय झुकाव

पृथ्वी का अक्षीय झुकाव २३.४४° है अक्षीय झुकाव (अंग्रेजी: Axial tilt) खगोलशास्त्र में किसी कक्षा (ऑरबिट) में परिक्रमा करती खगोलीय वस्तु के घूर्णन अक्ष (एक्सिस) और उसकी कक्षा पर खड़े किसी काल्पनिक लम्ब (परपॅन्डीक्यूलर) के बीच बने कोण (ऐंगल) को कहते हैं। अगर किसी पृथ्वी जैसी गोल वस्तु की दोनों मुख हिलावाटों को देखा जाए - अपने अक्ष पर घूर्णन (रोटेशन) और सूरज के इर्द-गिर्द परिक्रमा - तो अक्षीय झुकाव होने से उसके ध्रुव कक्षा (ऑरबिट) के मार्ग के ठीक ऊपर या नीचे नहीं होते। एक ध्रुव कक्षा से ज़रा अन्दर सूरज के थोड़ा अधिक समीप होता है और दूसरा कक्षा से ज़रा बाहर सूरज से थोड़ा दूर। परिक्रमा करते हुए कुछ देर बाद अन्दर वाला ध्रुव बाहर आ जाता है और दूसरा वाला अन्दर। यही मौसम बदलने का मुख्य कारण है - जब दक्षिणी ध्रुव अन्दर को होता है तो दक्षिणी गोलार्ध (हेमिस्फ़ीयर) में गर्मी का मौसम चलता है और उत्तरी में सर्दी का। छह महीने बाद जब पृथ्वी अपनी कक्षा के दूसरी पार होती है तो पासा पलट जाता है - दक्षिणी गोलार्ध (हेमिस्फ़ीयर) में सर्दियाँ होती हैं और उत्तरी में गर्मियाँ।, William F. Ruddiman, Macmillan, 2001, ISBN 978-0-7167-3741-4,...

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उत्सर्जन वर्णक्रम

उत्सर्जन वर्णक्रम (emission spectrum) किसी रासायनिक तत्व या रासायनिक यौगिक से उत्पन्न होने वाले विद्युतचुंबकीय विकिरण (रेडियेशन) के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) को कहते हैं। जब कोई परमाणु या अणु अधिक ऊर्जा वाली स्थिति से कम ऊर्जा वाली स्थिति में आता है तो वह इस ऊर्जा के अंतर को फ़ोटोन के रूप में विकिरणित करता है। इस फ़ोटोन​ का तरंगदैर्घ्य (वेवलेन्थ​) क्या है, यह उस रसायन पर और उसकी ऊर्जा स्थिति (तापमान, आदि) पर निर्भर करता है। किसी सुदूर स्थित सामग्री से उत्पन्न विकिरण के वर्णक्रम को यदि परखा जाए तो अनुमान लगाया जा सकता है कि वह किन रसायनों की बनी हुई है। यही तथ्य खगोलशास्त्र में हमसे हज़ारों प्रकाश-वर्ष दूर स्थित तारों व ग्रहों की रसायनिक रचना समझने में सहयोगी होता है। .

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उपमन्द कोणांक

खगोलशास्त्र में उपमन्द कोणांक (argument of periapsis), जो ω के चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है, किसी कक्षा (ऑरबिट) में परिक्रमा कर रही वस्तु की कक्षीय राशियों में से एक है। .

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उपग्रही छल्ला

हमारे सौर मण्डल के शनि ग्रह के मशहूर उपग्रहीय छल्ले बर्फ़ और धूल के बने हैं खगोलशास्त्र में उपग्रही छल्ला किसी ग्रह के इर्द गिर्द घूमता हुआ पत्थरों, धुल, बर्फ़ और अन्य पदार्थों का बना हुआ छल्ला होता है। हमारे सौर मण्डल में इसकी सबसे बड़ी मिसाल शनि की परिक्रमा करते हुए उसके छल्ले हैं। हमारे सौर मण्डल के अन्य तीन गैस दानव ग्रहों - बृहस्पति, अरुण और वरुण - के इर्द-गिर्द भी उपग्रहीय छल्ले हैं लेकिन उनकी संख्या और चौड़ाई शनि के छल्लों से कई कम है। .

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१०१९९ करिक्लो

अपने छल्लों के साथ करिक्लो का काल्पनिक चित्रण करिक्लो की सतह के पास से उसके छल्लों के दृश्य का एक और काल्पनिक चित्रण​ १०१९९ करिक्लो (10199 Chariklo) हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ज्ञात किन्नर (हीन ग्रह) है। यह शनि और अरुण (युरेनस) की कक्षाओं (ऑरबिटों) के बीच में सूर्य की परिक्रमा करता है। करिक्लो की खोज सन् १९९७ में हुई थी। २०१४ में खगोलशास्त्रियों ने करिक्लो के इर्द-गिर्द दो छल्लों की खोज की घोषणा करी। इन छल्लों का नाम ओइयापोक (Oiapoque) और चुई (Oiapoque) रखा गया। .

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२०००० वरुण

२०००० वरुण का काल्पनिक चित्रण - तेज़ घूर्णन (रोटेशन) से इसका आकार पिचका हुआ है कक्षा (ऑरबिट) की तुलना में २०००० वरुण की कक्षा ज़्यादा गोलाकार है २०००० वरुण (20000 Varuna) हमारे सौर मण्डल के काइपर घेरे में स्थित एक खगोलीय वस्तु है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के नियमों के तहत यदी ग्रह से छोटी कोई वस्तु इतना द्रव्यमान रखती हो कि स्वयं को गोलाकार कर सके तो उसे बौना ग्रह का दर्जा दिया जाता है। २०००० वरुण पृथ्वी से इतना दूर है कि उसका आकार सही रूप से अनुमानित नहीं हो पाया है, इसलिये यह ज्ञात​ नहीं कि यह बौना ग्रह है या नहीं। फिर भी अधिकतर खगोलशास्त्रियों का अनुमान है कि और जानकारी मिलने पर अंततः यह बौना ग्रह ही निकलेगा। .

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९०३७७ सेडना

सेडना का एक काल्पनिक चित्रण। कक्षा (ऑरबिट) यहाँ लाल रंग में दर्शायी गई है। ११,४०० वर्षों की एक परिक्रमा में सेडना की सूरज से दूरी में महान उतार-चढ़ाव आते हैं। ९०२७७ सेडना (90377 Sedna) एक बहुत बड़ी नेप्चून-पार वस्तु है, जो सन् २०१२ में सूर्य से नेप्चून से भी लगभग तीन गुना दूर थी। स्पेक्ट्रोस्कोपी से पता चला है कि सेडना की सतह की संरचना इसी तरह की कुछ अन्य दूसरी नेप्चून-पार वस्तुओं के समान है, जो बड़े पैमाने पर जल, मीथेन और थोलिंस युक्त नाइट्रोजन बर्फ के एक मिश्रण से बनी हुई है। इसकी सतह सौरमंडल में सबसे अधिक लालिमायुक्त सतहों में से एक है। सेडना का ना तो द्रव्यमान ज्ञात है, ना इसका आकार अच्छी तरह से मालूम है और ना ही इसे आई'''.'''ए'''.'''यु'''.''' से एक बौने ग्रह के रूप में औपचारिक मान्यता मिली है, हालांकि कई खगोलविदों द्वारा इसे उनमे से एक माना जाता है। .

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D-श्रेणी क्षुद्रग्रह

D-श्रेणी क्षुद्रग्रह (D-type asteroid) क्षुद्रग्रहों की एक श्रेणी है। इसके सदस्यों का ऐल्बीडो (चमकीलापन) बहुत कम (०.१ से कम) होता है और जिनका उत्सर्जन वर्णक्रम (एमिशन स्पेक्ट्रम) बिना किसी ख़ास अवशोषण बैंड (absorption band) के सिर्फ़ एक लालिमा दिखाता है। D-श्रेणी के क्षुद्रग्रह क्षुद्रग्रह घेरे के बाहरी भाग में और उस से भी आगे पाए जाते हैं। कुछ खगोलशास्त्रियों का विचार है कि इस श्रेणी के क्षुद्रग्रह सौर मंडल के दूर-दराज़ कायपर घेरे में उत्पन्न हुए थे। सम्भव है कि सन् २००० में कनाडा में गिरा टगिश झील उल्का एक D-श्रेणी क्षुद्रग्रह का अंश रहा हो। यह भी संकेत है कि मंगल ग्रह का फ़ोबोस उपग्रह भी एक D-श्रेणी क्षुद्रग्रह रहा हो जो मंगल के गुरुत्वाकर्षण द्वारा फंसा लिया गया हो और उसके इर्द-गिर्द परिक्रमा करने लगा। .

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M-श्रेणी क्षुद्रग्रह

१६ सायकी (16 Psyche) एक M-श्रेणी का क्षुद्रग्रह है M-श्रेणी क्षुद्रग्रह (M-type asteroid) क्षुद्रग्रहों की एक श्रेणी है जिसके सदस्यों की बनावट के बारे में केवल अधूरी जानकारी ही उपलब्ध है। इनका ऐल्बीडो (चमक) मध्यम, और उसका माप ०.१ से ०.२ के बीच होता है। M-श्रेणी क्षुद्रग्रहों की तीसरी सबसे बड़ी श्रेणी है। .

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ROOT (सॉफ्टवेयर)

रूट (अंग्रेजी: ROOT) सर्न द्वारा विकसित किया गया एक वस्तु उन्मुख प्रोग्राम और लाइब्रेरी है। यह मूलतः कण भौतिकी में आँकड़े विश्लेषण के लिए तैयार किया गया और इस क्षेत्र के कई विशेष गुण रखता है, लेकिन यह खगोल शास्त्र और डाटा माइनिंग जैसे अन्य अनुप्रयोगों में भी उपयोग होता है। .

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