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केलिप्सो (चंद्रमा)

सूची केलिप्सो (चंद्रमा)

केलिप्सो (Calypso) (Καλυψώ), शनि का प्राकृतिक उपग्रह है। यह 1980 मे डान पास्कु, पी कैनिथ सीडलमेन, विलियम ए बौम और डगलस जी क्युरी द्वारा भूआधारित प्रेक्षणों से खोजा गया तथा पदनाम से नवाजा गया (1980 में खोजा गया शनि का 25 वां उपग्रह)। बाद के महीनों में, कई अन्य छद्मवेषी प्रेक्षित हुए यथा:,,, और । 1983 में यह आधिकारिक तौर पर पौराणिक यूनानी पात्र केलिप्सो पर नामित हुआ था। यह सेटर्न XIV या टेथिस C तौर पर भी नामित है। केलिप्सो की कक्षा टेथिस की कक्षा के लगभग बराबर है और यह टेथिस के पीछे ६०० के अंश पर मौजूद रहते हुए शनि ग्रह की परिक्रमा करता रहता है। इस बात का पता सबसे पहले सीडेलमान ने १९८१ में लगाया। टैलेस्टो (चंद्रमा) इसकी विपरीत दिशा में टेथिस से आगे ६०० के अंश पर मौजूद रहता है और दोनो के आगे आगे चलता है। टैलेस्टो और केल्पिसो को टेथिस के ट्रोजन या ट्रोजन चंद्रमा भी कहते हैं। कुल ४ ज्ञात ट्रोजन श्रेणी के चंद्रमाओं में दो ये ही हैं। शनि के अन्य चंद्रमाओं की तरह ही केलिप्सो भी बेतरतीब आकार का है। यहाँ उंचे नीची खाईयाँ, सतह पर ढीली अव्यव्स्थित मिट्टी पाई जाती है जिसकी वजह से इसकी सतह को दूर से देखने पर यह चमकदार और मुलायम मालूम पडता है। .

1 संबंध: शनि के प्राकृतिक उपग्रह

शनि के प्राकृतिक उपग्रह

छल्ले और उसके कुछ मुख्य उपग्रह (चित्रकार द्वारा बनाया गया चित्र) शनि के कुछ मुख्य उपग्रह: टाइटन बीच का बड़ा नारंगी गोला है जिसके ऊपर बाक़ी चन्द्रमा दर्शाए गए हैं हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि के बहुत से भिन्न-भिन्न प्रकार के उपग्रह हैं, जिनमें १ कि॰मी॰ से भी कम आकार के नन्हे चाँद और भयंकर आकार वाला टाइटन (जो बुध ग्रह से भी बड़ा है) शामिल हैं। शनि के छल्लों में लाखों वस्तुएँ शनि की परिक्रमा कर रहीं हैं - लेकिन इनमें से बहुत तो छोटे-छोटे पत्थर या धुल के कण ही हैं। कुल मिलकर, सन् २०१० तक, शनि के ६२ ज्ञात उपग्रह थे जिनकी परिक्रमा की कक्षाएँ परखी जा चुकी थीं। इनमें से केवल १३ का व्यास (डायामीटर) ५० किमी से अधिक था और इनमें से ५३ का नामकरण किया जा चुका था। शनि के सात चन्द्रमा इतने बड़े हैं के वे अपने गुरुत्वाकर्षण की खींच से स्वयं को पूरा गोल आकार का कर पाएँ हैं। इन सारे चंद्रमाओं में से दो वैज्ञानिकों की लिए विशेष दिलचस्पी रखते हैं: टाइटन, जो सौरमंडल का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है और जिसपर पृथ्वी की तरह नाइट्रोजन गैस से भरपूर पृथ्वी से भी घना वायुमंडल है और ऍनसॅलअडस, जिसपर गैस और धुल के फव्वारे हैं और जिसके दक्षिणी ध्रुव की सतह के नीचे पानी का बड़ा जलाशय होने की सम्भावना है। .

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