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कृष्ण विवर

सूची कृष्ण विवर

किसी कृष्ण विवर का सिमुलेट किया हुआ चित्र। इस विवर का द्रव्यमान 10 सूर्य के बराबर है, तथा 600 कि॰मी॰ की दरी से लिया गया चित्र प्रदर्शित है। इस दूरी पर स्gfgfhgथापित रहने के लिये कम से कम 600 मिलीयन g का त्वरण आवश्यक है।http://www.spacetimetravel.org/expeditionsl/expeditionsl.html "Step by Step into a Black Hole" कृष्ण विवर, श्याम विवर, कृष्ण गर्त या ब्लैक होल अन्तरिक्ष का वह हिस्सा होता है जहाँ गुरुत्वीय क्षेत्र इतना प्रबल होता है कि इसमे से कुछ भी बाहर नहीं आ सकता; यहाँ तक कि विद्युतचुम्बकीय तरंगे (जैसे, प्रकाश) भी नही। इनकी उपस्थिति का ज्ञान इनका अन्य पदार्थों के साथ परस्पर क्रिया (इन्टरैक्शन) द्वारा किया जा सकता है हालांकि इतने शक्तिशाली गुरुत्वीय क्षेत्र का विचार १८ वी सदी का है परन्तु वर्त्तमान में काल-कोठरी अलबर्ट आइंस्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत पर ही समझाए जाते हैं। .

14 संबंधों: एंटीमैटर, दिक्, धनु ए, धनु ए*, भौतिक विज्ञानी, भौतिकी की शब्दावली, लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर, सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर, घटना क्षितिज, खगोलीय रेडियो स्रोत, गुरुत्वीय तरंग, आइन्स्टाइन वलय, कण त्वरक, अभिवृद्धि चक्र

एंटीमैटर

एंटीमैटर क्लाउड कण भौतिकी में, प्रतिद्रव्य या एंटीमैटर (antimatter) वस्तुतः पदार्थ के एंटीपार्टिकल के सिद्धांत का विस्तार है। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार पदार्थ कणों का बना होता है उसी प्रकार प्रतिद्रव्य प्रतिकणों से मिलकर बना होता है। उदाहरण के लिये, एक एंटीइलेक्ट्रॉन (एक पॉज़ीट्रॉन, जो एक घनात्मक आवेश सहित एक इलेक्ट्रॉन होता है) एवं एक एंटीप्रोटोन (ऋणात्मक आवेश सहित एक प्रोटोन) मिल कर एक एंटीहाईड्रोजन परमाणु ठीक उसी प्रकार बना सकते हैं, जिस प्रकार एक इलेक्ट्रॉन एवं एक प्रोटोन मिल कर हाईड्रोजन परमाणु बनाते हैं। साथ ही पदार्थ एवं एंटीमैटर के संगम का परिणाम दोनों का विनाश (एनिहिलेशन) होता है, ठीक वैसे ही जैसे एंटीपार्टिकल एवं कण का संगम होता है। जिसके परिणामस्वरूप उच्च-ऊर्जा फोटोन (गामा किरण) या अन्य पार्टिकल-एंटीपार्टिकल युगल बनते हैं। वैसे विज्ञान कथाओं और साइंस फिक्शन चलचित्रों में कई बार एंटीमैटर का नाम सुना जाता रहा है। एंटीहाइड्रोजन परमाणु का त्रिआयामी चित्र एंटीमैटर केवल एक काल्पनिक तत्व नहीं, बल्कि असली तत्व होता है। इसकी खोज बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुई थी। तब से यह आज तक वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। जिस तरह सभी भौतिक वस्तुएं मैटर यानी पदार्थ से बनती हैं और स्वयं मैटर में प्रोटोन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन होते हैं, उसी तरह एंटीमैटर में एंटीप्रोटोन, पोसिट्रॉन्स और एंटीन्यूट्रॉन होते हैं।। नवभारत टाइम्स। १२ नवम्बर २००८। हिन्दुस्तान लाइव। ५ मार्च २०१० एंटीमैटर इन सभी सूक्ष्म तत्वों को दिया गया एक नाम है। सभी पार्टिकल और एंटीपार्टिकल्स का आकार एक समान किन्तु आवेश भिन्न होते हैं, जैसे कि एक इलैक्ट्रॉन ऋणावेशी होता है जबकि पॉजिट्रॉन घनावेशी चार्ज होता है। जब मैटर और एंटीमैटर एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो दोनों नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सिद्धांत महाविस्फोट (बिग बैंग) ऐसी ही टकराहट का परिणाम था। हालांकि, आज आसपास के ब्रह्मांड में ये नहीं मिलते हैं लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड के आरंभ के लिए उत्तरदायी बिग बैंग के एकदम बाद हर जगह मैटर और एंटीमैटर बिखरा हुआ था। विरोधी कण आपस में टकराए और भारी मात्रा में ऊर्जा गामा किरणों के रूप में निकली। इस टक्कर में अधिकांश पदार्थ नष्ट हो गया और बहुत थोड़ी मात्रा में मैटर ही बचा है निकटवर्ती ब्रह्मांड में। इस क्षेत्र में ५० करोड़ प्रकाश वर्ष दूर तक स्थित तारे और आकाशगंगा शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार सुदूर ब्रह्मांड में एंटीमैटर मिलने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खगोलशास्त्रियों के एक समूह ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के गामा-किरण वेधशाला से मिले चार साल के आंकड़ों के अध्ययन के बाद बताया है कि आकाश गंगा के मध्य में दिखने वाले बादल असल में गामा किरणें हैं, जो एंटीमैटर के पोजिट्रान और इलेक्ट्रान से टकराने पर निकलती हैं। पोजिट्रान और इलेक्ट्रान के बीच टक्कर से लगभग ५११ हजार इलेक्ट्रान वोल्ट ऊर्जा उत्सर्जित होती है। इन रहस्यमयी बादलों की आकृति आकाशगंगा के केंद्र से परे, पूरी तरह गोल नहीं है। इसके गोलाई वाले मध्य क्षेत्र का दूसरा सिरा अनियमित आकृति के साथ करीब दोगुना विस्तार लिए हुए हैं।। याहू जागरण। १४ जनवरी २००९ एंटीमैटर की खोज में रत वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लैक होल द्वारा तारों को दो हिस्सों में चीरने की घटना में एंटीमैटर अवश्य उत्पन्न होता होगा। इसके अलावा वे लार्ज हैडरन कोलाइडर जैसे उच्च-ऊर्जा कण-त्वरकों द्वारा एंटी पार्टिकल उत्पन्न करने का प्रयास भी कर रहे हैं। पार्टिकल एवं एंटीपार्टिकल पृथ्वी पर एंटीमैटर की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं में बहुत थोड़ी मात्रा में एंटीमैटर का निर्माण किया है। प्राकृतिक रूप में एंटीमैटर पृथ्वी पर अंतरिक्ष तरंगों के पृथ्वी के वातावरण में आ जाने पर अस्तित्व में आता है या फिर रेडियोधर्मी पदार्थ के ब्रेकडाउन से अस्तित्व में आता है। शीघ्र नष्ट हो जाने के कारण यह पृथ्वी पर अस्तित्व में नहीं आता, लेकिन बाह्य अंतरिक्ष में यह बड़ी मात्र में उपलब्ध है जिसे अत्याधुनिक यंत्रों की सहायता से देखा जा सकता है। एंटीमैटर नवीकृत ईंधन के रूप में बहुत उपयोगी होता है। लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया फिल्हाल इसके ईंधन के तौर पर अंतत: होने वाले प्रयोग से कहीं अधिक महंगी पड़ती है। इसके अलावा आयुर्विज्ञान में भी यह कैंसर का पेट स्कैन (पोजिस्ट्रान एमिशन टोमोग्राफी) के द्वारा पता लगाने में भी इसका प्रयोग होता है। साथ ही कई रेडिएशन तकनीकों में भी इसका प्रयोग प्रयोग होता है। नासा के मुताबिक, एंटीमैटर धरती का सबसे महंगा मैटेरियल है। 1 मिलिग्राम एंटीमैटर बनाने में 250 लाख डॉलर रुपये तक लग जाते हैं। एंटीमैटर का इस्तेमाल अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जाने वाले विमानों में ईधन की तरह किया जा सकता है। 1 ग्राम एंटीमैटर की कीमत 312500 अरब रुपये (3125 खरब रुपये) है। .

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दिक्

तीन आयाम या डिमॅनशन वाली दिक् में तीन निर्देशांकों से किसी भी बिंदु के स्थान का पता चल जाता है दिक् जगह के उस विस्तार या फैलाव को कहते हैं जिसमें वस्तुओं का अस्तित्व होता है और घटनाएँ घटती हैं। मनुष्यों के नज़रिए से दिक् के तीन पहलू होते हैं, जिन्हें आयाम या डिमॅनशन भी कहते हैं - ऊपर-नीचे, आगे-पीछे और दाएँ-बाएँ। .

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धनु ए

धनु ए या सैजीटेरियस ए (Sagittarius A या Sgr A) हमारी गैलेक्सी, क्षीरमार्ग, के केन्द्र में स्थित एक खगोलीय रेडियो स्रोत है। यह खगोलीय धूल के विशाल बादलों द्वारा प्रत्यक्ष वर्णक्रम में दृष्टि से छुपा हुआ है। इसके पश्चिमी भाग के बीच में धनु ए* (Sagittarius A*) नामक एक बहुत ही प्रचंड और संकुचित रेडियो स्रोत है, जिसे वैज्ञानिक एक विशालकाय काला छिद्र मानते हैं। धनु ए आकाश में धनु तारामंडल के क्षेत्र में स्थित है। .

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धनु ए*

धनु ए* (Sagittarius A, Sgr A) हमारी गैलेक्सी, क्षीरमार्ग के केन्द्र में स्थित एक संकुचित और शक्तिशाली रेडियो स्रोत है। यह धनु ए नामक एक बड़े क्षेत्र का भाग है और आकाश के खगोलीय गोले में धनु तारामंडल में वॄश्चिक तारामंडल की सीमा के पास स्थित है। बहुत से खगोलशास्त्रियों के अनुसार यह एक विशालकाय काला छिद्र है। माना जाता है कि अधिकांश सर्पिल और अंडाकार गैलेक्सियों के केन्द्र में ऐसा एक भीमकाय कालाछिद्र स्थित होता है। धनु ए* और पृथ्वी के बीच खगोलीय धूल के कई बादल हैं जिस कारणवश घनु ए* को प्रत्यक्ष वर्णक्रम में नहीं देखा जा सका है। फिर भी धनु ए* की तेज़ी से परिक्रमा कर रहे ऍस२ (S2) तारे के अध्ययन से धनु ए* के बारे में जानकारी मिल सकी है और उसके आधार पर धनु ए* का विशालकाय कालाछिद्र होने का भरोसा बहुत बढ़ गया है। धनु ए* हमारे सौर मंडल से २६,००० प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित है। .

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भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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भौतिकी की शब्दावली

* ढाँचा (Framework).

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लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर या वृहद हैड्रॉन संघट्टक (Large Hadron Collider; LHC के रूप में संक्षेपाक्षरित) विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है। यह सर्न की महत्वाकांक्षी परियोजना है। यह जेनेवा के समीप फ़्रान्स और स्विट्ज़रलैण्ड की सीमा पर ज़मीन के नीचे स्थित है। इसकी रचना २७ किलोमीटर परिधि वाले एक छल्ले-नुमा सुरंग में हुई है, जिसे आम भाषा में लार्ड ऑफ द रिंग कहा जा रहा है। इसी सुरंग में इस त्वरक के चुम्बक, संसूचक (डिटेक्टर), बीम-लाइन एवं अन्य उपकरण लगे हैं। सुरंग के अन्दर दो बीम पाइपों में दो विपरीत दिशाओं से आ रही ७ TeV (टेरा एले़ट्रान वोल्ट्) की प्रोट्रॉन किरण-पुंजों (बीम) को आपस में संघट्ट (टक्कर) किया जायेगा जिससे वही स्थिति उत्पन्न की जायेगी जो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय बिग बैंग के रूप में हुई थी। ग्यातव्य है कि ७ TeV उर्जा वाले प्रोटॉन का वेग प्रकाश के वेग के लगभग बराबर होता है। एल एच सी की सहायता से किये जाने वाले प्रयोगों का मुख्य उद्देश्य स्टैन्डर्ड मॉडेल की सीमाओं एवं वैधता की जाँच करना है। स्टैन्डर्ड मॉडेल इस समय कण-भौतिकी का सबसे आधुनिक सैद्धान्तिक व्याख्या या मॉडल है। १० सितंबर २००८ को पहली बार इसमें सफलता पूर्वक प्रोटान धारा प्रवाहित की गई। इस परियोजना में विश्व के ८५ से अधिक देशों नें अपना योगदान किया है। परियोजना में ८००० भौतिक वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं जो विभिन्न देशों, या विश्वविद्यालयों से आए हैं। प्रोटॉन बीम को त्वरित (accelerate) करने के लिये इसके कुछ अवयवों (जैसे द्विध्रुव (डाइपोल) चुम्बक, चतुर्ध्रुव (quadrupole) चुमबक आदि) का तापमान लगभग 1.90केल्विन या -२७१.२५0सेन्टीग्रेड तक ठंडा करना आवश्यक होता है ताकि जिन चालकों (conductors) में धारा बहती है वे अतिचालकता (superconductivity) की अवस्था में आ जांय और ये चुम्बक आवश्यक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकें।"".

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सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर

सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर (१९ अक्टूबर, १९१०-२१ अगस्त, १९९५) विख्यात भारतीय-अमेरिकी खगोलशास्त्री थे। भौतिक शास्त्र पर उनके अध्ययन के लिए उन्हें विलियम ए. फाउलर के साथ संयुक्त रूप से सन् १९८३ में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। चन्द्रशेखर सन् १९३७ से १९९५ में उनके देहांत तक शिकागो विश्वविद्यालय के संकाय पर विद्यमान थे। .

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घटना क्षितिज

'''पहली स्थिति''': काले छिद्र के घटना चक्र से दूर दिक्-काल सामान्य है और कोई वस्तु किसी भी दिशा में जा सकती है '''दूसरी स्थिति''': घटना चक्र के पास गुरुत्वाकर्षण भयंकर है और सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत का पालन करते हुए दिक्-काल में मरोड़े पैदा हो चुकी हैं - अब अधिकतर दिशाएँ वस्तु को घटना चक्र की और खींच रहीं हैं '''तीसरी स्थिति''': वस्तु घटना चक्र के अन्दर है जहाँ दिक्-काल इतनी ज़बरदस्त तरीक़े से मुड़ी हुई है के सारी दिशाएँ केवल काले छिद्र के केंद्र की तरफ़ जाती हैं - वापसी असंभव है - घटना चक्र से बाहर बैठा कोई भी इस वस्तु को नहीं देख सकता और घटना चक्र के अन्दर पैदा हुआ कोई भी प्रकाश घटना चक्र को पार कर के बहार नहीं जा सकता भौतिकी के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में, घटना क्षितिज दिक्-काल में एक ऐसी सीमा होती है जिसके पार होने वाली घटनाएँ उसकी सीमा के बाहर के ब्रह्माण्ड पर कोई असर नहीं कर सकती और न ही उसकी सीमा के बाहर बैठे किसी दर्शक या श्रोता को यह कभी भी ज्ञात हो सकता है के इस क्षितिज के पार क्या हो रहा है। आम भाषा में इसे "वापसी असंभव" की सीमा कह सकते हैं, यानि इसके पार गुरुत्वाकर्षण इतना भयंकर हो जाता है के कोई भी चीज़, चाहे वस्तु हो या प्रकाश, यहाँ से बहार नहीं निकल सकता। इसकी सब से अधिक दी जाने वाली मिसाल "काला छिद्र" (ब्लैक होल) है। काले छिद्रों के घटना क्षितिजों के अन्दर अगर किसी वस्तु से प्रकाश उत्पन्न होता है तो वह हमेशा के लिए घटना क्षितिज सीमा के अन्दर ही रहता है - उस से बाहर वाला उसे कभी नहीं देख सकता। यही वजह है के काले छिद्र काले लगते हैं - उनसे कोई रोशनी नहीं निकलती। जब कोई चीज़ काले छिद्र की गुरुत्वाकर्षक चपेड़ में आकर उसकी तरफ़ गिरने लगती है तो जैसे-जैसे वह घटना क्षितिज की सीमा के क़रीब आने लगती है वैसे-वैसे गुरुत्वाकर्षण के भयंकर प्रकोप से सापेक्षता सिद्धांत के अद्भुत प्रभाव दिखने लगते हैं। दूर से देखने वालों को ऐसा लगता है के उस वस्तु की काले छिद्र के तरफ़ गिरने की गति धीमी होती जा रही है और उसकी छवि में लालिमा बढ़ती जा रही है। दर्शक कभी भी नहीं देख पाते की वस्तु घटना चक्र को पार ही कर जाए। लेकिन उस वस्तु को ऐसा कोई प्रभाव महसूस नहीं होता - उसे लगता है के वह तेज़ी से काले छिद्र की तरफ़ गिरकर घटना क्षितिज पार कर जाती है। सापेक्षता की वजह से देखने वाले और उस वस्तु की समय की गतियाँ बहुत ही भिन्न हो जाती हैं। .

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खगोलीय रेडियो स्रोत

खगोलीय रेडियो स्रोत (astronomical radio sources) अंतरिक्ष में ऐसी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं जिनसे शक्तिशाली रेडियो तरंगें प्रसारित हो रही हों। ऐसी वस्तुओं में न्यूट्रॉन तारे, महानोवा अवशेष और काले छिद्र शामिल हैं, जो ब्रह्माण्ड की सर्वाधिक ऊर्जावान भौतिक प्रक्रियाओं को प्रदर्शित करते हैं। .

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गुरुत्वीय तरंग

thumb लेजर व्यतिकरणमापी का योजनामूलक चित्र भौतिकी में दिक्काल के वक्रता की उर्मिकाओं को गुरुत्वीय तरंग (gravitational waves) कहते हैं। ये उर्मिकाएँ तरंग की तरह स्रोत से बाहर की तरफ गमन करतीं हैं। अलबर्ट आइंस्टाइन ने वर्ष १९१६ में अपने सामान्य आपेक्षिकता सिद्धान्त के आधार पर इनके अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी। ११ फरवरी २०१६ को अमेरिका में वाशिंगटन, जर्मनी में हनोवर और कुछ अन्य देशों के शहरों में एक साथ यह घोषणा की गई कि ब्रह्मांड में गुरुत्वीय तरंगों के अस्तित्व का सीधा प्रमाण मिल गया है। खगोलविदों का मानना है कि गुरुत्वीय तरंगों की पुष्टि हो जाने के बाद अब ब्रह्मांड की उत्पत्ति के कुछ और रहस्यों पर से पर्दा उठ सकता है। गुरुत्वीय तरंगों का संसूचन (detection) आसान नहीं है क्योंकि जब वे पृथ्वी पर पहुँचती हैं तब उनका आयाम बहुत कम होता है और विकृति की मात्रा लगभग 10−21 होती है जो मापन की दृष्टि से बहुत ही कम है। इसलिये इस काम के लिये अत्यन्त सुग्राही (sensitive) संसूचक चाहिये। अन्य स्रोतों से मिलने वाले संकेत (रव / noise) इस कार्य में बहुत बाधक होते हैं। अनुमानतः गुरुत्वीय तरंगों की आवृत्ति 10−16 Hz से 104 Hz होती है। .

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आइन्स्टाइन वलय

किसी स्रोत से (जैसे, किसी गैलेक्सी या किसी तारे से) आने वाला प्रकाश जब विरूपित होकर एक वलय (रिंग) के रूप में दिखता है जिसे आइन्स्टाइन वलय (Einstein ring या Einstein–Chwolson ring या Chwolson ring) कहते हैं। ऐसा तब होता है जब स्रोत से निकला प्रकाश किसी अति-द्रव्यमान वाले आकाशीय पिण्ड से होकर गुजरता है जैसे दूसरी गैलेक्सी या कृष्ण विवर (ब्लैक होल)। इस अति-द्रव्यमान वाले पिण्ड के कारण एक प्रकार की गुरुत्वीय लेंसिंग हो जाती है। .

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कण त्वरक

'''इन्डस-२''': भारत (इन्दौर) का 2.5GeV सिन्क्रोट्रान विकिरण स्रोत (SRS) कण-त्वरक एसी मशीन है जिसके द्वारा आवेशित कणों की गतिज ऊर्जा बढाई जाती हैं। यह एक ऐसी युक्ति है, जो किसी आवेशित कण (जैसे इलेक्ट्रान, प्रोटान, अल्फा कण आदि) का वेग बढ़ाने (या त्वरित करने) के काम में आती हैं। वेग बढ़ाने (और इस प्रकार ऊर्जा बढाने) के लिये वैद्युत क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है, जबकि आवेशित कणों को मोड़ने एवं फोकस करने के लिये चुम्बकीय क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है। त्वरित किये जाने वाले आवेशित कणों के समूह या किरण-पुंज (बीम) धातु या सिरैमिक के एक पाइप से होकर गुजरती है, जिसमे निर्वात बनाकर रखना पड़ता है ताकि आवेशित कण किसी अन्य अणु से टकराकर नष्ट न हो जायें। टीवी आदि में प्रयुक्त कैथोड किरण ट्यूब (CRT) भी एक अति साधारण कण-त्वरक ही है। जबकि लार्ज हैड्रान कोलाइडर विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है। कण त्वरकों का महत्व इतना है कि उन्हें 'अनुसंधान का यंत्र' (इंजन्स ऑफ डिस्कवरी) कहा जाता है। .

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अभिवृद्धि चक्र

खगोलशास्त्र में अभिवृद्धि चक्र (accretion disk) किसी बड़ी खगोलीय वस्तु के इर्द-गिर्द कक्षीय परिक्रमा कर रहे मलबे के चक्र को कहते हैं। ऐसा चक्र किसी तारे की परिक्रमा कर रहा हो तो उसे परितारकीय चक्र (circumstellar disk) कहा जाता है। जब मलबे के कण आपस में रगड़ते हैं और गुरुत्वाकर्षण से मलबे पर दबाव पड़ता है तो उसका तापमान बढ़ जाता है और उस से विद्युतचुंबकीय विकिरण उत्पन्न होता है। इस विकिरण की आवृत्ति (फ़्रीक्वेन्सी) केन्द्रीय वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करती है। नवजात तारों और आदितारों के अभिवृद्धि चक्र अवरक्त (इन्फ़्रारेड) विकिरण उत्पन्न करते हैं जबकि न्यूट्रॉन तारों और काले छिद्रों के अभिवृद्धि चक्रों से ऍक्स किरणों का उत्सर्जन होता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

ब्लैक होल, काला छिद्र, कालाछिद्र, काले छिद्र, काले छिद्रों, कृष्ण गर्त

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