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कुषाण राजवंश

सूची कुषाण राजवंश

कुषाण प्राचीन भारत के राजवंशों में से एक था। कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए युएझ़ी लोगों के मूल का मानते हैं। कुछ विद्वानो इनका सम्बन्ध रबातक शिलालेख पर अन्कित शब्द गुसुर के जरिये गुर्जरो से भी बताते हैं। सर्वाधिक प्रमाणिकता के आधार पर कुषाण वन्श को चीन से आया हुआ माना गया है। लगभग दूसरी शताब्दी ईपू के मध्य में सीमांत चीन में युएझ़ी नामक कबीलों की एक जाति हुआ करती थी जो कि खानाबदोशों की तरह जीवन व्यतीत किया करती थी। इसका सामना ह्युगनु कबीलों से हुआ जिसने इन्हें इनके क्षेत्र से खदेड़ दिया। ह्युगनु के राजा ने ह्यूची के राजा की हत्या कर दी। ह्यूची राजा की रानी के नेतृत्व में ह्यूची वहां से ये पश्चिम दिशा में नये चरागाहों की तलाश में चले। रास्ते में ईली नदी के तट पर इनका सामना व्ह्सुन नामक कबीलों से हुआ। व्ह्सुन इनके भारी संख्या के सामने टिक न सके और परास्त हुए। ह्यूची ने उनके चरागाहों पर अपना अधिकार कर लिया। यहां से ह्यूची दो भागों में बंट गये, ह्यूची का जो भाग यहां रुक गया वो लघु ह्यूची कहलाया और जो भाग यहां से और पश्चिम दिशा में बढा वो महान ह्यूची कहलाया। महान ह्यूची का सामना शकों से भी हुआ। शकों को इन्होंने परास्त कर दिया और वे नये निवासों की तलाश में उत्तर के दर्रों से भारत आ गये। ह्यूची पश्चिम दिशा में चलते हुए अकसास नदी की घाटी में पहुँचे और वहां के शान्तिप्रिय निवासिओं पर अपना अधिकार कर लिया। सम्भवतः इनका अधिकार बैक्ट्रिया पर भी रहा होगा। इस क्ष्रेत्र में वे लगभग १० वर्ष ईपू तक शान्ति से रहे। चीनी लेखक फान-ये ने लिखा है कि यहां पर महान ह्यूची ५ हिस्सों में विभक्त हो गये - स्यूमी, कुई-शुआंग, सुआग्म,,। बाद में कुई-शुआंग ने क्यु-तिसी-क्यो के नेतृत्व में अन्य चार भागों पर विजय पा लिया और क्यु-तिसी-क्यो को राजा बना दिया गया। क्यु-तिसी-क्यो ने करीब ८० साल तक शासन किया। उसके बाद उसके पुत्र येन-काओ-ट्चेन ने शासन सम्भाला। उसने भारतीय प्रान्त तक्षशिला पर विजय प्राप्त किया। चीनी साहित्य में ऐसा विवरण मिलता है कि, येन-काओ-ट्चेन ने ह्येन-चाओ (चीनी भाषा में जिसका अभिप्राय है - बड़ी नदी के किनारे का प्रदेश जो सम्भवतः तक्षशिला ही रहा होगा)। यहां से कुई-शुआंग की क्षमता बहुत बढ़ गयी और कालान्तर में उन्हें कुषाण कहा गया। .

60 संबंधों: चरक, चिलियन पर्वत शृंखला, तमग़ा, तिरमिज़, तुषारी लोग, नहपान, पटना के पर्यटन स्थल, पश्चिमी चंपारण, पंजाब (भारत), पंजाब का इतिहास, प्रयाग प्रशस्ति, प्राचीन भारत, प्राचीन मिस्र, बाख़्त्री भाषा, बग़लान प्रान्त, भारत, भारत में सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची, भारत सारावली, भारत का इतिहास, भारतीय दुर्ग, भारतीय इतिहास की समयरेखा, भारशिव राजवंश, मधेपुरा जिला, मर्व, मालवगण, मगध महाजनपद, मृत्तिकाशिल्प, युएझ़ी लोग, यूनानी वर्णमाला, रबातक शिलालेख, शबरग़ान, सुरख़ानदरिया प्रान्त, हिन्दू मंदिर स्थापत्य, हज़ारा लोग, हुविष्क, जम्मू, जम्मू (शहर), जलौक, विम कडफिसेस, वृहद भारत, वैशाली, ख़ैबर दर्रा, गुरुग्राम, गुर्जर, गोरखपुर, गोंडा जिला, आर्थर लेवेलिन बाशम, इलाहाबाद, कनिष्क, कश्मीर, ..., काबुल शाही, काशीपुर का इतिहास, काशीपुर, उत्तराखण्ड, कासनिया, कुजुल कडफिसेस, अफ़ग़ानिस्तान, अल्प तिगिन, अष्टमंगल, अहीर (आभीर) वंश के राजा, सरदार व कुलीन प्रशासक, उत्तर प्रदेश का इतिहास सूचकांक विस्तार (10 अधिक) »

चरक

पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में महर्षि चरक की प्रतिमा चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है । 300-200 ई. पूर्व लगभगआयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है।चरक की शिक्षा तक्षशिला में हुई ।इनका रचा हुआ ग्रंथ 'चरक संहिता' आज भी वैद्यक का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। इन्हें ईसा की प्रथम शताब्दी का बताते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि चरक कनिष्क के राजवैद्य थे परंतु कुछ लोग इन्हें बौद्ध काल से भी पहले का मानते हैं।आठवीं शताब्दी में इस ग्रंथ का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा।चरक संहिता में व्याधियों के उपचार तो बताए ही गए हैं, प्रसंगवश स्थान-स्थान पर दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों की भी उल्लेख है।उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया । चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें की, विचार एकत्र किए और सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई लिखाई के योग्य बनाया । .

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चिलियन पर्वत शृंखला

चिलियन पर्वत शृंखला चिलियन पर्वत शृंखला (祁连山, चिलियन शान; Qilian Mountains) या नान शान (南山, Nan Shan) कुनलुन पर्वत शृंखला की एक उत्तरी शाखा है जो जनवादी गणराज्य चीन की वर्तमान चिंगहई और गांसू प्रान्तों के बीच की सरहद पर स्थित है। यह तिब्बत के पठार की उत्तरी सीमा भी है। यह दुनहुआंग शहर के दक्षिण से शुरू होकर ८०० किमी दक्षिण-पूर्व को चलती है जहां यह हेशी गलियारे की दक्षिणी सरहद भी बनती हैं। .

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तमग़ा

तातारों का पारम्परिक तमग़ा भारत के कुषाण सम्राट कनिष्क का तमग़ा तमग़ा (मंगोल: Тамга, अंग्रेजी: Tamgha) मध्य एशिया, मंगोलिया और उसके आसपास के इलाक़ों में बसने वाले प्राचीन ख़ानाबदोश क़बीलों की संस्कृति में विशेष मोहरों और चिह्नों को कहा जाता था। यही शब्द इन लोगों से सम्पर्क रखने वाली बहुत सी अन्य संस्कृतियों में प्रवेश कर गया, जिनमें भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, तुर्की और कुछ अन्य देश शामिल हैं। हिन्दी में 'तमग़ा' शब्द का मतलब प्रमाण के रूप में दिए जाने वाले किसी भी विशेष चिह्न के लिए प्रयोग होता है, मसलन खेल में जीतने पर प्रमाण के रूप में मिलने वाले पदक (मेडल) को अक्सर 'तमग़ा' कहा जाता है। पारम्परिक रूप से सरकारी शुल्क अदा करने पर या अन्य सरकारी दस्तावेज़ों पर लगने वाली मोहर को भी उत्तर भारत में 'तमग़ा' कहा जाता था।, John Shakespear, Parbury, Allen & Co, 1834,...

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तिरमिज़

सुल्तान साओदात का महल तिरमिज़ (उज़बेक: Термиз, तेरमिज़; अंग्रेज़ी: Termez) मध्य एशिया के उज़बेकिस्तान देश के दक्षिणी भाग में स्थित सुरख़ानदरिया प्रान्त की राजधानी है। यह उज़बेकिस्तान की अफ़्ग़ानिस्तान के साथ सरहद के पास प्रसिद्ध आमू दरिया के किनारे बसा हुआ है। इसकी आबादी सन् २००५ में १,४०,४०४ थी। .

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तुषारी लोग

तारिम द्रोणी में स्थित क़िज़िल गुफ़ाओं में तुषारियों की छठी सदी में बनी तस्वीर - माना जाता है कि इनमें से बहुत के सुनहरे बाल और बिलौरी आँखें होती थीं तुषारी या तुख़ारी (अंग्रेज़ी: Tocharian, टोचेरियन) प्राचीन काल में मध्य एशिया में स्थित तारिम द्रोणी में बसने वाली एक जाति थी। यह हिन्द-यूरोपीय भाषाएँ बोलने वाले सब से पूर्वतम लोग थे। चीनी स्रोतों के अनुसार इनका युएझ़ी लोगों से गहरा सम्बन्ध था। इनकी उत्तरी शियोंगनु लोगों से बहुत झड़पें हुई, जिसके बाद इन्होनें तारिम द्रोणी का इलाक़ा छोड़ दिया। ८०० ईसवी के बाद इस क्षेत्र में इस क्षेत्र में उइग़ुर लोग के आकर बसने पर यहाँ हिन्द-यूरोपीय भाषाएँ विलुप्त हो गई और तुर्की भाषाएँ बोली जाने लगी। अफ़्ग़ानिस्तान के तख़ार प्रांत का नाम इसी जाति पर पड़ा है। इनका ज़िक्र संस्कृत ग्रंथों में बहुत होता है। अथर्ववेद में इन्हें शक लोगों और बैक्ट्रिया के लोगों से सम्बंधित बताया गया है।, Vasudev Sharan Agrawal, Prithvi Prakashan, 1963,...

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नहपान

नहपान प्राचीन भारत के क्षहरातवंश का प्रतापी राजा था। इसके शासनकाल का निर्धारण विवादास्पद है। इसके सिक्कों पर कोई तिथि अंकित नहीं है। कुछ अभिलेखों से ऐसा ज्ञात होता है कि इसने किसी अज्ञात संवत् के इकतालीसवें और छियालीसवें वर्ष में शासन किया। डुब्रेल के अनुसार इसमें विक्रमी संवत् निर्दिष्ट है। दिनेशचंद्र सरकार इस नहपान के अभिलेखों के संवत् का प्रारंभ ७८ ई. में मानते हैं। इस प्रकार नहपान के शासनकाल की ज्ञात तिथियाँ ११९ ई. और १२५ ई. निर्धारित की जा सकती है। नहपान के बहुत से चाँदी और ताँबे के सिक्के मिले हैं। जोगलथंबी (नासिक के पास) से प्राप्त एक जखीरे के ९२७० सिक्कों को, जो कि नहपान के हैं, गौतमीपुत्र शातकर्णि ने पुन: टंकित किया था। इससे यह पता चलता है कि नहपान गौतमीपुत्र शातकर्णि का समकालीन था। नहपान शक था। इस वंश का मूलस्थान पश्चिमोत्तर भारत प्रतीत होता है। संभवत: इसी कारण नहपान के सिक्कों पर खरोष्ठी अक्षरों का अंकन हुआ है। नहपान के पूर्वज कुषाणों, या पहलवें के प्रांतीय शासक के रूप में पश्चिम भारत का शासन करते थे और 'क्षत्रप' की उपाधि धारण करते थे। क्षहरातवंश का प्रथम ज्ञात राजा, भूमिक, क्षत्रप मात्र था और राजा की उपाधि नहीं धारण करता था। 'राजा' की उपाधि सर्वप्रथम नहपान के ही सिक्कों पर मिलती है जो उसी स्वंतत्र सत्ता और राजत्व का परिचायक है। नहपान की पूर्ण उपाधि 'रंखाोखरातस खतपस' थी। लगभग ११९ ई. से लगभग १२५ ई. के बीच नहपान ने अपने राज्य का अत्यधिक विस्तार कर लिया था। उसकी बेटी दक्षमित्रा का विवाह दीनकसुत उषवदात (शक) के साथ हुआ था। नहपान का जामाता उषवदात नहपान के साम्राज्यविस्तार और शासनसंचालन में बड़ा सहायक हुआ था। नहपान ने उसे मालवों के विरुद्ध उत्तमभद्रों की सहायता के लिए भेजा था। मालवों को पराजित करके उषवदात पुष्करक्षेत्र (अजमेर) तक गया था और संभवत: यहाँ तक नहपान की राजसत्ता का विस्तार किया था। नहपान के अमात्य अर्यमन् के एक अभिलेख से नहपान के साम्राज्य का अच्छा परिचय मिलता है। इस तथा अन्य अभिलेखों से ऐसा अनुमान होता है कि नहपान का शासन गोवर्धन आहार (नासिक), मामाल आहार (पूना), दक्षिण और उत्तरी गुजरात, कोंकण, भड़ौंच से सोपारा तक, कायूर आहार (बड़ौदा के पास), प्रभास (दक्षिणी काठियावाड़), दशपुर (मालवा में) तथा पुष्कर (अजमेर) क्षेत्रों पर था। अभिलेखों के प्राप्तिस्थान से ऐसा लगता है कि इसके प्रभावक्षेत्र में ताप्ती, बनास और चंबल की घाटियाँ भी थीं। किंतु १२५ ई. के लगभग नहपान का राजनीतिक प्रभाव घटने लगा। जोगलथंबी के उन सिक्कों से, जिन्हें गौतमीपुत्र शातकर्णि ने पुन: टंकित किया था, ऐसा विश्वास किया जाता है कि १२५ के लगभग, अर्थात्, अज्ञात तिथि ४६ के लगभग, नहपान गौतमीपुत्र शातकर्णि के द्वारा पराजित कर दिया गया होगा। संभव है कि नहपान के शासन का अंत भी इसी समय हो गया हो, क्योंकि इसके बाद नहपान के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं मिलता। इस तथ्य की पुष्टि गौतमीपुत्र शातकर्णि की माता बलश्री के नासिक अभिलेख से भी होती है। इस अभिलेख के पटृट में कहा गया है कि (गौतमीपुत्र) ने खखरातों की सत्ता का विनाश कर दिया। (खखरातवसनिर्विशेषकरस)। इसी अभिलेख में उन प्रांतों का भी उल्लेख है, जो कभी नहपान के अधीन थे किंतु इस विजय के बाद गौतमीपुत्र शातकर्णि के हाथों लगे। श्रेणी:भारत के शासक श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास.

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पटना के पर्यटन स्थल

वर्तमान बिहार राज्य की राजधानी पटना को ३००० वर्ष से लेकर अबतक भारत का गौरवशाली शहर होने का दर्जा प्राप्त है। यह प्राचीन नगर पवित्र गंगानदी के किनारे सोन और गंडक के संगम पर लंबी पट्टी के रूप में बसा हुआ है। इस शहर को ऐतिहासिक इमारतों के लिए भी जाना जाता है। पटना का इतिहास पाटलीपुत्र के नाम से छठी सदी ईसापूर्व में शुरू होता है। तीसरी सदी ईसापूर्व में पटना शक्तिशाली मगध राज्य की राजधानी बना। अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त यहाँ के महान शासक हुए। सम्राट अशोक के शासनकाल को भारत के इतिहास में अद्वितीय स्‍थान प्राप्‍त है। पटना एक ओर जहाँ शक्तिशाली राजवंशों के लिए जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर ज्ञान और अध्‍यात्‍म के कारण भी यह काफी लोकप्रिय रहा है। यह शहर कई प्रबुद्ध यात्रियों जैसे मेगास्थनिज, फाह्यान, ह्वेनसांग के आगमन का भी साक्षी है। महानतम कूटनीतिज्ञ कौटिल्‍यने अर्थशास्‍त्र तथा विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र की यहीं पर रचना की थी। वाणिज्यिक रूप से भी यह मौर्य-गुप्तकाल, मुगलों तथा अंग्रेजों के समय बिहार का एक प्रमुख शहर रहा है। बंगाल विभाजन के बाद 1912 में पटना संयुक्त बिहार-उड़ीसा तथा आजादी मिलने के बाद बिहार राज्‍य की राजधानी बना। शहर का बसाव को ऐतिहासिक क्रम के अनुसार तीन खंडों में बाँटा जा सकता है- मध्य-पूर्व भाग में कुम्रहार के आसपास मौर्य-गुप्त सम्राटाँ का महल, पूर्वी भाग में पटना सिटी के आसपास शेरशाह तथा मुगलों के काल का नगरक्षेत्र तथा बाँकीपुर और उसके पश्चिम में ब्रतानी हुकूमत के दौरान बसायी गयी नई राजधानी। पटना का भारतीय पर्यटन मानचित्र पर प्रमुख स्‍थान है। महात्‍मा गाँधी सेतु पटना को उत्तर बिहार तथा नेपाल के अन्‍य पर्यटन स्‍थल को सड़क माध्‍यम से जोड़ता है। पटना से चूँकि वैशाली, राजगीर, नालंदा, बोधगया, पावापुरी और वाराणसी के लिए मार्ग जाता है, इसलिए यह शहर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मावलंबियों के लिए पर्यटन गेटवे' के रूप में भी जाना जाता है। ईसाई धर्मावलंबियों के लिए भी पटना अतिमहत्वपूर्ण है। पटना सिटी में हरमंदिर, पादरी की हवेली, शेरशाह की मस्जिद, जलान म्यूजियम, अगमकुँआ, पटनदेवी; मध्यभाग में कुम्‍हरार परिसर, पत्थर की मस्जिद, गोलघर, पटना संग्रहालय तथा पश्चिमी भाग में जैविक उद्यान, सदाकत आश्रम आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्‍थल हैं। मुख्य पर्यटन स्थलों इस प्रकार हैं: .

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पश्चिमी चंपारण

चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। बेतिया जिले का मुख्यालय शहर हैं। बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गाँधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलायी थी। .

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पंजाब (भारत)

पंजाब (पंजाबी: ਪੰਜਾਬ) उत्तर-पश्चिम भारत का एक राज्य है जो वृहद्तर पंजाब क्षेत्र का एक भाग है। इसका दूसरा भाग पाकिस्तान में है। पंजाब क्षेत्र के अन्य भाग (भारत के) हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्यों में हैं। इसके पश्चिम में पाकिस्तानी पंजाब, उत्तर में जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्व में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में हरियाणा, दक्षिण-पूर्व में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान राज्य हैं। राज्य की कुल जनसंख्या २,४२,८९,२९६ है एंव कुल क्षेत्रफल ५०,३६२ वर्ग किलोमीटर है। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है जोकि हरियाणा राज्य की भी राजधानी है। पंजाब के प्रमुख नगरों में अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, पटियाला और बठिंडा हैं। 1947 भारत का विभाजन के बाद बर्तानवी भारत के पंजाब सूबे को भारत और पाकिस्तान दरमियान विभाजन दिया गया था। 1966 में भारतीय पंजाब का विभाजन फिर से हो गया और नतीजे के तौर पर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश वजूद में आए और पंजाब का मौजूदा राज बना। यह भारत का अकेला सूबा है जहाँ सिख बहुमत में हैं। युनानी लोग पंजाब को पैंटापोटाम्या नाम के साथ जानते थे जो कि पाँच इकठ्ठा होते दरियाओं का अंदरूनी डेल्टा है। पारसियों के पवित्र ग्रंथ अवैस्टा में पंजाब क्षेत्र को पुरातन हपता हेंदू या सप्त-सिंधु (सात दरियाओं की धरती) के साथ जोड़ा जाता है। बर्तानवी लोग इस को "हमारा प्रशिया" कह कर बुलाते थे। ऐतिहासिक तौर पर पंजाब युनानियों, मध्य एशियाईओं, अफ़ग़ानियों और ईरानियों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप का प्रवेश-द्वार रहा है। कृषि पंजाब का सब से बड़ा उद्योग है; यह भारत का सब से बड़ा गेहूँ उत्पादक है। यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं: वैज्ञानिक साज़ों सामान, कृषि, खेल और बिजली सम्बन्धित माल, सिलाई मशीनें, मशीन यंत्रों, स्टार्च, साइकिलों, खादों आदि का निर्माण, वित्तीय रोज़गार, सैर-सपाटा और देवदार के तेल और खंड का उत्पादन। पंजाब में भारत में से सब से अधिक इस्पात के लुढ़का हुआ मीलों के कारख़ाने हैं जो कि फ़तहगढ़ साहब की इस्पात नगरी मंडी गोबिन्दगढ़ में हैं। .

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पंजाब का इतिहास

पंजाब शब्द का सबसे पहला उल्लेख इब्न-बतूता के लेखन में मिलता है, जिसनें 14वीं शताब्दी में इस क्षेत्र की यात्रा की थी। इस शब्द का 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में व्यापक उपयोग होने लगा, और इस शब्द का प्रयोग तारिख-ए-शेरशाही सूरी (1580) नामक किताब में किया गया था, जिसमें "पंजाब के शेरखान" द्वारा एक किले के निर्माण का उल्लेख किया गया था। 'पंजाब' के संस्कृत समकक्षों का पहला उल्लेख, ऋग्वेद में "सप्त सिंधु" के रूप में होता है। यह नाम फिर से आईन-ए-अकबरी (भाग 1) में लिखा गया है, जिसे अबुल फजल ने लिखा था, उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि पंजाब का क्षेत्र दो प्रांतों में विभाजित है, लाहौर और मुल्तान। इसी तरह आईन-ए-अकबरी के दूसरे खंड में, एक अध्याय का शीर्षक इसमें 'पंजाद' शब्द भी शामिल है। मुगल राजा जहांगीर ने तुज-ए-जान्हगेरी में भी पंजाब शब्द का उल्लेख किया है। पंजाब, जो फारसी भाषा की उत्पत्ति है और भारत में तुर्की आक्रमणकारियों द्वारा प्रयोग किया जाता था। पंजाब का शाब्दिक अर्थ है "पांच" (पंज) "पानी" (अब), अर्थात पांच नदियों की भूमि, जो इस क्षेत्र में बहने वाली पाँच नदियां का संदर्भ देते हैं। अपनी उपज भूमि के कारण इसे ब्रिटिश भारत का भंडारगृह बनाया गया था। वर्तमान में, तीन नदियाँ पंजाब (पाकिस्तान) में बहती हैं, जबकि शेष दो नदियाँ हिमाचल प्रदेश और पंजाब (भारत) से निकलती है, और अंततः पाकिस्तान में चली जाता है। .

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प्रयाग प्रशस्ति

प्रयाग प्रशस्ति गुप्त राजवंश के सम्राट समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित लेख था। इस लेख को समुद्रगुप्त द्वारा २०० ई में कौशाम्बी से लाये गए अशोक स्तंभ पर खुदवाया गया था। इसमें उन राज्यों का वर्णन है जिन्होंने समुद्रगुप्त से युद्ध किया और हार गये तथा उसके अधीन हो गये। इसके अलावा समुद्रगुप्त ने अलग अलग स्थानों पर एरण प्रशस्ति, गया ताम्र शासन लेख, आदि भी खुदवाये थे। इस प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का अच्छा विस्तार किया था। उसको क्रान्ति एवं विजय में आनन्द मिलता था। इलाहाबाद के अभिलेखों से पता चलता है कि समुद्रगुप्त ने अपनी विजय यात्रा का प्रारम्भ उत्तर भारत से किया एवं यहां के अनेक राजाओं पर विजय प्राप्त की। .

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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प्राचीन मिस्र

गीज़ा के पिरामिड, प्राचीन मिस्र की सभ्यता के सबसे ज़्यादा पहचाने जाने वाले प्रतीकों में से एक हैं। प्राचीन मिस्र का मानचित्र, प्रमुख शहरों और राजवंशीय अवधि के स्थलों को दर्शाता हुआ। (करीब 3150 ईसा पूर्व से 30 ई.पू.) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है। यह सभ्यता 3150 ई.पू.

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बाख़्त्री भाषा

कुषाण सम्राट कनिष्क का सन् १५० ईसवी के लगभग ज़र्ब किया गया सिक्का, जिसपर बाख़्त्री में लिखा है ' ϷΑΟΝΑΝΟϷΑΟ ΚΑΝΗϷΚΙ ΚΟϷΑΝΟ', शाओनानोशाओ कनिष्की कोशानो', यानि 'शहनशाह कनिष्क कुषाण' बाख़्त्री (फ़ारसी) या बैक्ट्रीयाई (अंग्रेज़ी: Bactrian) प्राचीनकाल में मध्य एशिया के बाख़्तर (बैक्ट्रीया) क्षेत्र में बोली जाने वाली एक पूर्वी ईरानी भाषा थी जो समय के साथ विलुप्त हो गई। भाषावैज्ञानिक नज़रिए से बाख़्त्री के पश्तो, यिदग़ा और मुंजी भाषाओँ के साथ गहरे सम्बन्ध हैं। यह प्राचीन सोग़दाई और पार्थी भाषाओं से भी मिलती-जुलती थी। बाख़्त्री को लिखने के लिया ज़्यादातर यूनानी लिपि इस्तेमाल की जाती थी, इसलिए इस कभी-कभी 'यूनानी-बाख़्त्री' (या 'ग्रेको-बाख़्त्री') भी कहा जाता है।, Vadim Mikhaĭlovich Masson, UNESCO, 1994, ISBN 978-92-3-102846-5,...

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बग़लान प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का बग़लान प्रांत (नीले रंग में) बग़लान (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Baghlan) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्वोत्तरी भाग में स्थित है। बग़लान की राजधानी पुल-ए-ख़ुमरी शहर है। इसका क्षेत्रफल २१,११२ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग ७.८ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भारत में सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची

भारत में सबसे बडे साम्राज्यों की सूची इसमें 10 लाख से अधिक वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर राज करने वाले भारत के सबसे बड़े साम्राज्यों की ऐतिहासिक सूची है। (भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी पूंजी के साथ है, ब्रिटिश राज और सिकंदर महान साम्राज्य की तरह विदेशी शासित साम्राज्य को छोड़कर) एक साम्राज्य बाहरी प्रदेशों के ऊपर एक राज्य की संप्रभुता का विस्तार शामिल है। सम्राट अशोक का मौर्य साम्राज्य भारत का सबसे बडा साम्राज्य और सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। .

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भारत सारावली

भुवन में भारत भारतीय गणतंत्र दक्षिण एशिया में स्थित स्वतंत्र राष्ट्र है। यह विश्व का सातवाँ सबसे बड़ देश है। भारत की संस्कृति एवं सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति एवं सभ्यताओं में से है।भारत, चार विश्व धर्मों-हिंदू धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म के जन्मस्थान है और प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का घर है। मध्य २० शताब्दी तक भारत अंग्रेजों के प्रशासन के अधीन एक औपनिवेशिक राज्य था। अहिंसा के माध्यम से महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने भारत देश को १९४७ में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया। भारत, १२० करोड़ लोगों के साथ दुनिया का दूसरे सबसे अधिक आबादी वाला देश और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है। .

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया। आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है। .

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भारतीय दुर्ग

सभी राजाओं की राजधानी एक दुर्ग होती थी जिसके चारों ओर नगर बस जाता था। यह स्थिति दक्षिण एशिया के अनेक नगरों में देखी जा सकती है, जैसे दिली, आअगरा, लाहौर, पुणे, कोलकाता, मुम्बई आदि। भारत के दो दुर्ग यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में सम्मिलित हैं- आगरे का किला और लाल किला। भटिण्डा स्थित किला मुबारक भारत का सबसे प्राचीन किला है जो अब भी बचा हुआ है। इसका निर्माण कुषाण साम्राज्य के समय लगभग १०० ई में हुआ था। कांगड़ा दुर्ग जो कांगड़ा वंश द्वारा महाभारत युद्ध के बाद निर्मित किया गया था, य वंश अब भी बचा हुआ है। इस दुर्ग के विषय में सिकन्दर महान के लिपिकों ने लिखा है। अतः यह सर्वाधिक प्राचीन दुर्ग था। .

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भारतीय इतिहास की समयरेखा

पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं भारत एक साझा इतिहास के भागीदार हैं इसलिए भारतीय इतिहास की इस समय रेखा में सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की झलक है। .

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भारशिव राजवंश

भारशिव वंश (१७०-३५० ईसवीं) मथुरा के नागवंशी शासकों का कुल था जिसके शासक गुप्त राजाओं से पहले गंगा घाटी पर राज करते थे। जब योधेय, मल्लाव आदि राज्यों के विद्रोह के कारण कुषाण साम्राज्य का अधिकतर भारत पर से नियंत्रण चला गया तब भारशिव ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया। भारशिव राजाओं ने दस अश्वमेध यज्ञ किये। उन्होंने अपना साम्राज्य मालवा,ग्वालियर,बुंदेलखंड और पूर्वी पंजाब तक फैला लिया था। नाग कुल के नाग राजाओं ने उत्तर भारत गंगा घाटी विंध्य क्षेत्र में गंगा तट पर कान्तिपुर विंध्याचल मिर्जापुर उ॰ प्र॰ धार्मिक अनुष्ठान में शिवलिंग को अपने कन्धे पर उठाकर भार वहन किये जिसके कारण भारशिव नाम से नया राजवंश उदय हुआ था। साधारण जनता इनको अज्ञानता से भर कहने लगे शैव धर्म का अनुशरण करते हुये वैदिक काल में राजभर क्षत्रिय नाम प्रचलित हुए। .

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मधेपुरा जिला

मधेपुरा भारत के बिहार राज्य का जिला है। इसका मुख्यालय मधेपुरा शहर है। सहरसा जिले के एक अनुमंडल के रूप में रहने के उपरांत ९ मई १९८१ को उदाकिशुनगंज अनुमंडल को मिलाकर इसे जिला का दर्जा दे दिया गया। यह जिला उत्तर में अररिया और सुपौल, दक्षिण में खगड़िया और भागलपुर जिला, पूर्व में पूर्णिया तथा पश्चिम में सहरसा जिले से घिरा हुआ है। वर्तमान में इसके दो अनुमंडल तथा ११ प्रखंड हैं। मधेपुरा धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध जिला है। चंडी स्थान, सिंघेश्‍वर स्थान, श्रीनगर, रामनगर, बसन्तपुर, बिराटपुर और बाबा करु खिरहर आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से हैं। .

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मर्व

मर्व के प्राचीन खँडहर सुलतान संजर का मक़बरा मर्व (अंग्रेज़ी: Merv, फ़ारसी:, रूसी: Мерв) मध्य एशिया में ऐतिहासिक रेशम मार्ग पर स्थित एक महत्वपूर्ण नख़लिस्तान (ओएसिस) में स्थित शहर था। यह तुर्कमेनिस्तान के आधुनिक मरी नगर के पास था। भौगोलिक दृष्टि से यह काराकुम रेगिस्तान में मुरग़ाब नदी के किनारे स्थित है। कुछ स्रोतों के अनुसार १२वीं शताब्दी में थोड़े से समय के लिए मर्व दुनिया का सबसे बड़ा शहर था। प्राचीन मर्व के स्थल को यूनेस्को ने एक विश्व धरोहर घोषित कर दिया है। .

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मालवगण

मालवगण प्राचीन भारत की एक जातिविशेष का संघ। महाभारत में मालवों के उल्लेख मिलते है। अपनी पड़ोसी जाति क्षुद्रकों की तरह मालव के उल्लेख मिलते हैं। अपनी पड़ोसी जाति क्षुद्रकों की तरह मालव भी महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। वे पंजाब में निवास करते थे जहाँ उनकी तरह अंवष्ट, यौधेय आदि जनों का भी आवास था। तदनंतर कई शताब्दियों तक वे वही बने रहे। यूनानी सम्राट सिकन्दर के आक्रमण के समय मालवगण का राज्य मुख्यतया रावी और चिनाव के दोआब में था। क्षुद्रकों का राज्य मालवों के राज्य से लगा हुआ था। अतएव मालवों ने क्षुद्रकों के साथ सुदृढ़ ऐक्य स्थापित किया था। दोनों सेनाओं ने वीरता और दृढ़ता के साथ डटकर सिकन्दर का सामना किया। यूनानी इतिहासकार एरियन के अनुसार पंजाब में निवास कर रही भारतीय जातियों में मालव और क्षुद्रक संख्या में बहुत अधिक तथा सबसे अधिक युद्धकुशल थे। अत: उनकी सेनाओं का सामना करने से यूनानी सेना भी हिचकिचाने लगी थी, जिससे सिकंदर को स्वयं आगे बढ़ना पड़ा था और उस युद्ध में वह विशेष आहत भी हुआ था। अंत में मालव पराजित हुए और उन्हें हथियार डालने पड़े। पाणिनि के अनुसार मालवगण एक 'आयुधजीवी' संघ थे। युद्धविद्या में निपुणता प्राप्त करना इस संघ के प्रत्येक नागरिक का प्रधान कर्तव्य होता था, अत: वहाँ सभी निवासी योद्धा हुआ करते थे। मालवों का समाज अपनी पूर्ण और विकसित अवस्था को पहुँच चुका था। उसमें क्षत्रिय, ब्राह्मण आदि कई वर्ग होते थे। जो व्यक्ति क्षत्रिय या ब्राह्मण आदि कई वर्ग होते थे औरअन्य वर्गो के लोग 'मालव्य'कहलाते थे। मालवगणों का अधिकारक्षेत्र बहुत विस्तृत और संगठन अति बलशाली था जिससे उनको पराजित करना कठिन होता था। कात्यायन और पत्जांलि ने भी क्षुद्रक मालवी सेना का उल्लेख किया है। इसके बाद क्षुद्रकों का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता, जिससे यही अनुमान होता है कि सिकंदर के आक्रमण के समय स्थापित 'मालव-क्षुद्रक ऐक्य' समय पाकर अधिकाधिक बढ़ता ही गया और अंत में क्षुद्रक मालवों में ही पूर्णतया समाविष्ट हो गए। मौर्य सम्राज्य के पतन के बाद बाख्त्री (बैक्ट्रियन) और पार्थव (पार्थियन) राजाओं ने जब पंजाब तथा सिंध पर आधिपत्य स्थापित कर लिया, तब अपनी स्वतंत्रता तथा स्वशासन को संकटापन्न देखकर ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी में मालवगण विवश हो पंजाब छोड़कर दक्षिण पूर्व की ओर बढ़े। सतलज पारकर पहले कुछ काल तक वे फिराजपुर, लुधियाना और भटिंडा के प्रदेश में रहे, जिससे वह क्षेत्र अब तक 'मालव' कहलाता है। किंतु यहाँ भी वे अधिक काल तक नहीं ठहर पाए और आगे बढ़ते हुए वे उसी शताब्दी में अजमेर से दक्षिण पूर्व में टोंक मेवाड़ के प्रदेश मे जा पहुँचे तथा वहाँ अपने स्वाधीन गणराज्य की स्थापना की। टोंक से कोई २५ मील दक्षिण में स्थित कर्कोट नागर नामक स्थान उनका मुख्य केंन्द्र रहा होगा, वहाँ मालवों के विभिन्न कालों के सैकड़ों सिक्के प्राप्त हुए हैं। कुषाण साम्राज्य के उत्थान के साथ ही गुजरात में उनके अधीन पश्चिमी क्षत्रपों ने उज्जैन को जीतकर मालवों पर भी अपना आधिपत्य स्थापित किया था। जैन ग्रंथों के अनुसार शकों को वहाँ लाने में कालकाचार्य का विशेष हाथ था। परंतु स्वातंत्रय प्रेमी मालव निरंतर विद्रोह करते रहते थे। उत्तम भद्रों के सहायतार्थ महाक्षत्रप नहपाण को उषवदात्त (ऋषिभदत्त) के नेतृत्व में मालवों के विरुद्ध सेना भेजनी पड़ी थी। अंत में मालवों के सहयोग से गौतमीपुत्र शातकणीं ने महाक्षत्रप नहपाण और उसके साथी शकों का पूर्ण संहार किया। नहपाण और गौतमीपुत्र शातकर्णी के सही सन् संवतों के बारे में इतिहासकार एकमत नहीं है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इससे भी पहिले मालवगणों की ही एक शाखा के प्रमुख, उज्जैन के पदच्युत अधिपति गर्दभिल्ल के पुत्र, विक्रम ने पराजित कर शकों को उस प्रदेश से निकाल बाहर किया था। यद्यपि बाद में शकों ने उनपर पुन: आधिपत्य स्थापित कर लिया था तथापि तीसरी शती के प्रारंभ में श्री सोम के नेतृत्व में उन्होंने फिर मालव गणराज्य की स्वाधीनता घोषित कर दी। मालवगण कार्कोट नगर से दक्षिण में उस सारे प्रदेश पर फैल गए, जो आगे चलकर उन्हीं के नाम से मालवा प्रदेश कहलाने लगा। मालवों के इस गणराज्य में शासन व्यवस्था उनके चुने हुए प्रमुख के हाथ में रहती थी। कई बार उत्तराधिकारी का चुनाव वंश परंपरागत भी हो जाता था। परंतु उनमें गणतंत्रीय परंपरा प्रबल रही। मालवों के कई सिक्के प्राप्त हुए हैं। ये प्राय छोटे होते थे। मालवों के सिक्के दो प्रकार के मिलते हैं। प्रथम प्रकार के सिक्कों पर मालवों ने अपनी महत्वपूर्ण विजय की स्मृति में ब्राह्यी लिपि में मालवानां जय: और मालवगणस्य जय: लेख अंकित किए थे। ईसा पूर्व की पहली शताब्दी से ईसा की तीसरी शताब्दी तक ये जारी किए गए होंगे। दूसरे प्रकार के सिक्कों पर मजुप, मपोजय, मगजस, मगोजय, मपक, पच, गजव, मरज, जमुक आदि शब्द अंकित हैं। इन शब्दों के सही अर्थ अथवा उनके संतोषजनक अभिप्राय के बारे में विद्वानों का मतैक्य नहीं हो पाया है। ईसा की चौथी शताब्दी के पूर्वार्ध में जब समुद्रगुप्त ने दिग्विजय कर अपने विस्तृत सम्राज्य की स्थापना की, उसने मालवों के गणराज्य को भी अपने अधीन कर लिया, तदंतर मालवों के इस गणराज्य की आतंरिक स्वाधीनता कुछ काल तक अवश्य बनी रही होगी। परंतु गुप्त साम्राज्य के पतन काल में बर्बर हूणों के आक्रमण प्रवाह में मालवगण का समूचा प्रदेश भी निमग्न हो गया। मालवों ने मालवा प्रदेश को एकता और महत्वपूर्ण परंपराएँ प्रदान कीं। यह प्रदेश पहले दो विभिन्न भागों में बँटा हुआ था, पश्चिमी भाग अवंतिका क्षेत्र कहलाता था और पूर्वी भाग आकर अथवा दशार्ण नाम से सुज्ञात था। वे दोनों अब मालवा प्रदेश में सम्मिलित होकर अभिन्न हो गए। मालवगण का स्वाधीनता प्रेम और जनतंत्रीय भावनाएँ इस प्रदेश की सांस्कृतिक विशेषताओं के साथ सम्मिलित हो गए। इस प्रकार जिस नई विस्तृत राजनीतिक तथा सांस्कृतिक इकाई का निर्माण हुआ, आगे चलकर उसका भारतीय इतिहास में सदैव विशेष महत्व रहता आया है। यशोधर्मन् मुंज और भोज उसी नवीन सम्मिलित परंपरा की प्रारंभिक कड़ियाँ थे। मालवगण की दूसरी देन राष्ट्रीय महत्व की है, वह है उनका मालव संवत् जो आगे चलकर विक्रम संवत् के रूप में भारत में सर्वत्र प्रचलित हुआ। मालवों के गणराज्य की स्वतंत्रताप्राप्ति की स्मृति में ही इस संवत् का प्रारंभ हुआ होगा। ईसा की तीसरी शती के पूर्वार्ध से ही राजस्थान, मालवा तथा उनके पड़ोसी प्रदेशों के शिलालेखों में 'कृत संवत्' के नाम से इस संवत् का उल्लेख मिलता है। ईसा की पाँचवी शती के बाद में शिलालेखों में कृत संवत् के साथ ही इसे 'मालव' या 'मालवेश' संवत् भी लिखा जाता रहा। ईसा की दसवीं शताब्दी के बाद यही संवत् 'विक्रम संवत्' के नाम से सुज्ञात हुआ। परंपरागत प्रवाद के अनुसार उज्जैन के प्रतापी शकारि राजा विक्रम की विजय के समय (ई० पू० ५७) से ही इस मालव अथवा विक्रम संवत् का प्रारंभ हुआ था। .

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मगध महाजनपद

मगध प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। आधुनिक पटना तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे। इसकी राजधानी गिरिव्रज (वर्तमान राजगीर) थी। भगवान बुद्ध के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे। अभी इस नाम से बिहार में एक प्रंमडल है - मगध प्रमंडल। (२) सुमसुमार पर्वत के भाग, (३) केसपुत्र के कालाम, (४) रामग्राम के कोलिय, (५) कुशीमारा के मल्ल, (६) पावा के मल्ल, (७) पिप्पलिवन के मौर्य, (८) आयकल्प के बुलि, (९) वैशाली के लिच्छवि, (१०) मिथिला के विदेह। -- .

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मृत्तिकाशिल्प

चीनी पोर्सलीन का पात्र (किंग वंश, १८वीं शती) खपरैल मेक्सिको से प्राप्त योद्धा की मृतिकाशिल्प (तीसरी शती ईसापूर्व से चौथी शती ई के बीच) मृत्तिकाशिल्प 'सिरैमिक्स' (ceramics) का हिन्दी पर्याय है। ग्रीक भाषा के 'कैरेमिक' का अर्थ है - 'कुंभकार का शिल्प'। अमरीका में मृद भांड, दुर्गलनीय पदार्थ, कांच, सीमेंट, एनैमल तथा चूना उद्योग मृत्तिकाशिल्प के अंतर्गत हैं। गढ़ने तथा सुखाने के बाद अग्नि द्वारा प्रबलित मिट्टी या अन्य सुधट्य पदार्थ की निर्मिति को यूरोप में 'मृत्तिका शिल्प उत्पादन' कहते हैं। मृत्पदार्थो के निर्माण, उनके तकनीकी लक्षण तथा निर्माण में प्रयुक्त कच्चे माल से संबंधित उद्योग को हम मृत्तिकाशिल्प या सिरैमिक्स कहते हैं। मिट्टी के उत्पाद अनेक क्षेत्रों में, जैसे भवन निर्माण तथा सजावट, प्रयोगशाला, अस्पताल, विद्युत उत्पादन और वितरण, जलनिकास मलनिर्यास, पाकशाला, ऑटोमोबाइल तथा वायुयान आदि में काम आते हैं। .

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युएझ़ी लोग

समय के साथ मध्य एशिया में युएझ़ी लोगों का विस्तार, १७६ ईसापूर्व से ३० ईसवी तक यूइची (Yue-Tche) या युएझ़ी, युएज़ी या रुझ़ी (अंग्रेज़ी: Yuezhi, चीनी: 月支, 'झ़' के उच्चारण पर ध्यान दें, यह 'झ' से भिन्न है) प्राचीन काल में मध्य एशिया में बसने वाली एक जाति थी। माना जाता है कि यह एक हिन्द-यूरोपीय लोग थे जो शायद तुषारी लोगों से सम्बंधित रहें हों। शुरू में यह तारिम द्रोणी के पूर्व के शुष्क घास के मैदानी स्तेपी इलाक़े के वासी थे, जो आधुनिक काल में चीन के शिंजियांग और गांसू प्रान्तों में पड़ता है। समय के साथ वे मध्य एशिया के अन्य इलाक़ों, बैक्ट्रिया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्रों में फैल गए। संभव है कि भारत के कुशान साम्राज्य की स्थापना में भी उनका हाथ रहा हो।, Madathil Mammen Ninan, 2008, ISBN 978-1-4382-2820-4,...

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यूनानी वर्णमाला

यूनानी वर्णमाला (Greek alphabet) चौबीस अक्षरों की वर्ण व्यवस्था है जिनके प्रयोग से यूनानी भाषा को आठवीं सदी ईसा-पूर्व से लिखा जा रहा है। प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन लिए पृथक चिन्ह वाली यह पहली एवं प्राचीनतम वर्णमाला है। यह वर्णमाला फ़ोनीशियाई वर्णमाला से उत्पन्न हुई थी और यूरोप की कई वर्ण-व्यवस्थाएँ इसी से जन्मी हैं। अंग्रेज़ी लिखने के लिये प्रयुक्त रोमन लिपि तथा रूसी भाषा लिखने के लिए प्रयोग की जाने वाली सीरिलिक वर्णमाला दोनों यूनानी लिपि से जन्मी हैं। दूसरी शताब्दी ईसापूर्व के बाद गणितज्ञों ने यूनानी अक्षरों को अंक दर्शाने के लिए भी प्रयोग करना शुरू कर दिया। यूनानी वर्णों का प्रयोग विज्ञान के कई क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे भौतिकी में तत्वों के नाम, सितारों के नाम, बिरादरी एवं साथी सम्प्रदाय के नाम, ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के नाम के लिए। .

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रबातक शिलालेख

रबातक शिलालेख के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में कनिष्क का साम्राज्य रबातक शिलालेख अफ़ग़ानिस्तान के बग़लान प्रान्त में सुर्ख़ कोतल के पास स्थित रबातक (Rabatak) नामक पुरातन स्थल पर एक शिला पर बाख़्तरी भाषा और यूनानी लिपि में कुषाण वंश के प्रसिद्ध सम्राट कनिष्क के वंश के बारे में एक २३ पंक्तियों का लेख है। यह इतिहासकारों को सन् १९९३ में मिला था और इस से कनिष्क के पूर्वजों के बारे में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी मिलती है। इसमें कनिष्क ने कहा है कि वह एक नाना नमक देवी का वंशज है और उसने अपने साम्राज्य में यूनानी भाषा को हटाकर आर्य भाषा चला दी है। उसने इसमें अपने पड़-दादा कुजुल कडफिसेस, दादा सद्दाशकन, पिता विम कडफिसेस और स्वयं अपना ज़िक्र किया है।, Upinder Singh, Pearson Education India, 2008, ISBN 978-81-317-1120-0,...

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शबरग़ान

शबरग़ान में चुनावों में मतदान देते कुछ नागरिक शबरग़ान (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Sheberghan) उत्तरी अफ़्ग़ानिस्तान के जोज़जान प्रान्त की राजधानी है। यह शहर सफ़ीद नदी के किनारे मज़ार-ए-शरीफ़ से लगभग १३० किलोमीटर दूर स्थित है। सन् २००६ में इसकी जनसँख्या १,४८,३२९ अनुमानित की गई थी। .

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सुरख़ानदरिया प्रान्त

बोयसुन शहर में सुरख़ानदरिया प्रान्त (उज़बेक: Сурхондарё вилояти, सुरख़ोनदरयो विलोयती; अंग्रेज़ी: Surxondaryo Province) मध्य एशिया में स्थित उज़बेकिस्तान देश का एक विलायात (प्रान्त) है जो उस देश के सुदूर दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में स्थित है। प्रान्त का कुल क्षेत्रफल २०,१०० वर्ग किमी है और २००५ में इसकी अनुमानित आबादी १९,२५,१०० थी। इस सूबे के क़रीब ८०% लोग ग्रामीण इलाक़ों में रहते हैं। सुरख़ानदरिया प्रान्त की राजधानी तिरमिज़ शहर है जिसमें आमू दरिया पर एक बंदरगाह भी बनी हुई है जो की मध्य एशिया की इकलौती नदी-बंदरगाह है।, Нурислам Тухлиев, Алла Кременцова, Ozbekiston milliy ensiklopediasi, 2007 .

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हिन्दू मंदिर स्थापत्य

अंकोरवाट मंदिर (कम्बोडिया) भारतीय स्थापत्य में हिन्दू मन्दिर का विशेष स्थान है। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। गर्भगृह के ऊपर टॉवर-नुमा रचना होती है जिसे शिखर (या, विमान) कहते हैं। मन्दिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा के लिये स्थान होता है। इसके अलावा मंदिर में सभा के लिये कक्ष हो सकता है। .

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हज़ारा लोग

हज़ारा (Hazara) मध्य अफ़्ग़ानिस्तान में बसने वाला और दरी फ़ारसी की हज़ारगी उपभाषा बोलने वाला एक समुदाय है। यह लगभग सारे शिया इस्लाम के अनुयायी होते हैं और अफ़्ग़ानिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा समुदाय हैं। अफ़्ग़ानिस्तान में इनकी जनसँख्या को लेकर विवाद है और यह २६ लाख से ५४ लाख के बीच में मानी जाती है। कुल मिलकर यह अफ़्ग़ानिस्तान की कुल आबादी का लगभग १८% हिस्सा हैं। पड़ोस के ईरान और पाकिस्तान देशों में भी इनके पाँच-पाँच लाख लोग बसे हुए हैं। पाकिस्तान में यह अधिकतर शरणार्थी के रूप में जाने पर मजबूर हो गए थे और अधिकतर क्वेट्टा शहर में बसे हुए हैं। जब अफ़्ग़ानिस्तान में तालिबान सत्ता में थी तो उन्होने हज़ारा लोगों पर उनके शिया होने की वजह से बड़ी कठोरता से शासन किया था, जिस से बामियान प्रान्त और दायकुंदी प्रान्त जैसे हज़ारा-प्रधान क्षेत्रों में भुखमरी और अन्य विपदाएँ फैली थीं।, Tom Lansford, Ashgate Publishing, Ltd., 2003, ISBN 978-0-7546-3615-1,...

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हुविष्क

हुविष्क की स्वर्ण मुद्राएँ हुविष्क कुषाण वंश का शासक था जो कनिष्क की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठा (लगभग १४० ई)। .

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जम्मू

जम्मू (جموں, पंजाबी: ਜੰਮੂ), भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर में तीन में से एक प्रशासनिक खण्ड है। यह क्षेत्र अपने आप में एक राज्य नहीं वरन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक भाग है। क्षेत्र के प्रमुख जिलों में डोडा, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, रामबन, रियासी, सांबा, किश्तवार एवं पुंछ आते हैं। क्षेत्र की अधिकांश भूमि पहाड़ी या पथरीली है। इसमें ही पीर पंजाल रेंज भी आता है जो कश्मीर घाटी को वृहत हिमालय से पूर्वी जिलों डोडा और किश्तवार में पृथक करता है। यहाम की प्रधान नदी चेनाब (चंद्रभागा) है। जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मू-तवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को "मन्दिरों का शहर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी हैं, जैसे वैष्णो देवी, आदि जिनके कारण जम्मू हिन्दू तीर्थ नगरों में गिना जाता है। यहाम की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू ही है। हालांकि दूसरे स्थान पर यहां सिख धर्म ही आता है। वृहत अवसंरचना के कारण जम्मू इस राज्य का प्रमुख आर्थिक केन्द्र बनकर उभरा है। .

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जम्मू (शहर)

जम्मू शहर जम्मू क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर है और साथ ही भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर की शीतकालीन राजधानी भी है। यह नगरमहापालिका वाला शहर तवी नदी के तट पर बसा है। नगर में ढेरों पुराने व नये मन्दिरों के बाहुल्य के कारण इसे मन्दिरों का शहर भी कहा जाता है। तेजी से फैलती शहरी आबादी एवं बढ़ते अवसंरचना के कारण ये शीतकालीन राजधानी राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। .

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जलौक

जलौक कश्मीर का शासक था। उसका उल्लेख राजतरंगिणी में हुआ है। जलौक की पहचान के विषय में मतैक्य नहीं है। जलौक, शायद कोई कुषाण शासक हो जिसका नाम गलत रूप में प्रयुक्त् होता आया हो। किन्तु वर्तमान स्थिति में जलौक के विषय में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। आधुनिक विद्वान् उसे अशोक का पुत्र मानते हैं। संभवत: अशोक के राज्यकाल में जलौक कश्मीर का राज्यपाल रहा होगा। अनंतर जलौक ने स्वयं को वहाँ का स्वतंत्र शासक घोषित किया होगा। कल्हण उसे म्लेच्छों का संहारकर्त्ता एवं संपूर्ण धरित्री का विजेता बताते हैं। किंतु साधारणतया कान्यकुब्ज तक के प्रदेशों पर ही उसके आक्रमण ऐतिहासिक जान पड़ते हैं। उत्तर भारत में उसके साम्राज्यविस्तार की सीमा का निर्धारण संभव नहीं है। उसने कश्मीर में वर्णाश्रम व्यवस्था स्थापित की। बौद्धवादिसमूहजित् शैव गुरु के प्रभाव से वह विजयेश्वर एवं भूतेश का उपासक हुआ होगा। राजतरंगिणी से विदित होता है कि आरंभ में वह बौद्धविरोधी था, पर बाद में उसकी आस्था बौद्ध धर्म में भी हुई और उसने कीर्ति आश्रम विहार की स्थापना कराई। श्रेणी:कश्मीर श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास.

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विम कडफिसेस

विम कडफिसेस (बाख़्त्री में Οοημο Καδφισης) लगभग 90-100 सी.ई. में कुषाण वंश का शासक था। रबातक शिलालेख के अनुसार वह विम ताकतू का पुत्र तथा कनिष्क का पिता था। उसे कडफिसेस द्वितीय भी कहा जाता है। .

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वृहद भारत

'''वृहद भारत''': केसरिया - भारतीय उपमहाद्वीप; हल्का केसरिया: वे क्षेत्र जहाँ हिन्दू धर्म फैला; पीला - वे क्षेत्र जिनमें बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ वृहद भारत (Greater India) से अभिप्राय भारत सहित उन अन्य देशों से है जिनमें ऐतिहासिक रूप से भारतीय संस्कृति का प्रभाव है। इसमें दक्षिणपूर्व एशिया के भारतीकृत राज्य मुख्य रूप से शामिल है जिनमें ५वीं से १५वीं सदी तक हिन्दू धर्म का प्रसार हुआ था। वृहद भारत में मध्य एशिया एवं चीन के वे वे भूभाग भी सम्मिलित किये जा सकते हैं जिनमे भारत में उद्भूत बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ था। इस प्रकार पश्चिम में वृहद भारत कीघा सीमा वृहद फारस की सीमा में हिन्दुकुश एवं पामीर पर्वतों तक जायेगी। भारत का सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र .

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वैशाली

वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक गाँव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली के जिला बनने पर इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। वज्जिका यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। अतिमहत्त्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिन्दू तीर्थ एवं पाटलीपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है। मशहूर राजनर्तकी और नगरवधू आम्रपाली भी यहीं की थी| आज वैशाली पर्यटकों के लिए भी बहुत ही लोकप्रिय स्थान है। वैशाली में आज दूसरे देशों के कई मंदिर भी बने हुए हैं। .

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ख़ैबर दर्रा

ख़ैबर दर्रा ख़ैबर दर्रा ख़ैबर दर्रा या दर्र-ए-ख़ैबर (Khyber Pass) उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफगानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच हिंदुकुश के सफेद कोह पर्वत शृंखला में स्थित एक प्रख्यात ऐतिहासिक दर्रा है। यह दर्रा ५० किमी लंबा है और इसका सबसे सँकरा भाग केवल १० फुट चौड़ा है। यह सँकरा मार्ग ६०० से १००० फुट की ऊँचाई पर बल खाता हुआ बृहदाकार पर्वतों के बीच खो सा जाता है। इस दर्रे के ज़रिये भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया के बीच आया-जाया सकता है और इसने दोनों क्षेत्रों के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है। ख़ैबर दर्रे का सबसे ऊँचा स्थान पाकिस्तान के संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र की लंडी कोतल (لنڈی کوتل, Landi Kotal) नामक बस्ती के पास पड़ता है। इस दर्रे के इर्द-गिर्द पश्तून लोग बसते हैं। पेशावर से काबुल तक इस दर्रे से होकर अब एक सड़क बन गई है। यह सड़क चट्टानी ऊसर मैदान से होती हुई जमरूद से, जो अंग्रेजी सेना की छावनी थी और जहाँ अब पाकिस्तानी सेना रहती है, तीन मील आगे शादीबगियार के पास पहाड़ों में प्रवेश करती है और यहीं से खैबर दर्रा आरंभ होता है। कुछ दूर तक सड़क एक खड्ड में से होकर जाती है फिर बाई और शंगाई के पठार की ओर उठती है। इस स्थान से अली मसजिद दुर्ग दिखाई पड़ता है जो दर्रे के लगभग बीचोबीच ऊँचाई पर स्थित है। यह दुर्ग अनेक अभियानों का लक्ष्य रहा है। पश्चिम की ओर आगे बढ़ती हुई सड़क दाहिनी ओर घूमती है और टेढ़े-मेढ़े ढलान से होती हुई अली मसजिद की नदी में उतर कर उसके किनारे-किनारे चलती है। यहीं खैबर दर्रे का सँकरा भाग है जो केवल पंद्रह फुट चौड़ा है और ऊँचाई में २,००० फुट है। ५ किमी आगे बढ़ने पर घाटी चौड़ी होने लगती है। इस घाटी के दोनों और छोटे-छोटे गाँव और जक्काखेल अफ्रीदियों की लगभग साठ मीनारें है। इसके आगे लोआर्गी का पठार आता है जो १० किमी लंबा है और उसकी अधिकतम चौड़ाई तीन मील है। यह लंदी कोतल में जाकर समाप्त होता है। यहाँ अंगरेजों के काल का एक दुर्ग है। यहाँ से अफगानिस्तान का मैदानी भाग दिखाई देता है। लंदी कोतल से आगे सड़क छोटी पहाड़ियों के बीच से होती हुई काबुल नदी को चूमती डक्का पहुँचती है। यह मार्ग अब इतना प्रशस्त हो गया है कि छोटी लारियाँ और मोटरगाड़ियाँ काबुल तक सरलता से जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त लंदी खाना तक, जिसे खैबर का पश्चिम कहा जाता है, रेलमार्ग भी बन गया है। इस रेलमार्ग का बनना १९२५ में आरंभ हुआ था। सामरिक दृष्टि में संसार भर में यह दर्रा सबसे अधिक महत्व का समझा जाता रहा है। भारत के 'प्रवेश द्वार' के रूप में इसके साथ अनेक स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं। समझा जाता है कि सिकन्दर के समय से लेकर बहुत बाद तक जितने भी आक्रामक शक-पल्लव, बाख्त्री, यवन, महमूद गजनी, चंगेज खाँ, तैमूर, बाबर आदि भारत आए उन्होंने इसी दर्रे के मार्ग से प्रवेश किया। किन्तु यह बात पूर्णतः सत्य नहीं है। दर्रे की दुर्गमता और इस प्रदेश के उद्दंड निविसियों के कारण इस मार्ग से सबके लिए बहुत साल तक प्रवेश सहज न था। भारत आनेवाले अधिकांश आक्रमणकारी या तो बलूचिस्तान होकर आए या 2 साँचा:पाकिस्तान के प्रमुख दर्रे श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:पाकिस्तान के पहाड़ी दर्रे श्रेणी:अफ़्गानिस्तान के पहाड़ी दर्रे श्रेणी:पश्तून लोग श्रेणी:ऐतिहासिक मार्ग.

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गुरुग्राम

गुरुग्राम (पूर्व नाम: गुड़गाँव), हरियाणा का एक नगर है जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से सटा हुआ है। यह दिल्ली से ३२ किमी.

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गुर्जर

सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति:भारत उपवन, अक्षरधाम मन्दिर, नई दिल्ली गुर्जर समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है। यह समुदाय गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर।; आधुनिक स्थिति प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है| गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो में देखे जा सकते हैं। मुस्लिम तथा सिख गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। .

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गोरखपुर

300px गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। .

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गोंडा जिला

गोंडा ज़िला भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। इस जिले का मुख्यालय गोण्डा है। सरयू और घाघरा नदी के प्रवाह क्षेत्र में बसे होने के नाते यह ज़िला उत्तर प्रदेश के सबसे उपजाऊ जिलों में शामिल है। .

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आर्थर लेवेलिन बाशम

आर्थर लेवेलिन बाशम (Arthur Llewellyn Basham; 24 मई, 1914 – 27 जनवरी, 1986) प्रसिद्ध इतिहासकार, भारतविद तथा अनेकों पुस्तकों के रचयिता थे। १९५० और १९६० के दशक में 'स्कूल ऑफ ओरिएण्टल ऐण्ड अफ्रिकन स्टडीज' के प्रोफेसर के रूप में उन्होने अनेकों भारतीय इतिहासकारों को पढ़ाया, जिनमें आर एस शर्मा, रोमिला थापर तथा वी एस पाठक प्रमुख हैं। इंग्लैंड में पैदा हुए और पले-बढ़े बाशम को मुख्यतः प्राचीन भारत की संस्कृति पर लिखी उनकी अत्यंत लोकप्रिय और कालजयी रचना द वंडर दैट वाज़ इण्डिया: अ सर्वे ऑफ़ कल्चर ऑफ़ इण्डियन सब-कांटिनेंट बिफ़ोर द कमिंग ऑफ़ द मुस्लिम्स (1954) के लिए जाना जाता है। इतिहास-लेखन में वस्तुनिष्ठता के पैरोकार बाशम ने किसी ऐतिहासिक निर्णय पर पहुँचने के पूर्व इतिहासकार के लिए आवश्यक दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए अपने एक लेख में सुझाया है कि अपनी अभिधारणा सिद्ध करने के लिए इतिहासकार को बड़े पैमाने पर स्रोतों का प्रयोग करना चाहिए। लेकिन साथ ही उसे एक ऐसे बैरिस्टर की भूमिका से बचना भी चाहिए जिसका उद्देश्य केवल अपने पक्ष में फैसला करवाना होता है। बाशम हर ऐसी बात पर बल देने के पक्ष में नहीं थे जो इतिहासकार के तर्क को मजबूत बनाती हो या सर्वाधिक सकारात्मक आलोक में इसकी व्याख्या करती हो। न ही वे दूसरे पक्ष के सभी साक्ष्यों को दरकिनार करने की कोशिश करते थे। वस्तुतः, बाशम इस मान्यता में विश्वास रखते थे कि इतिहासकार की दृष्टि बैरिस्टर की नहीं जज की तरह होनी चाहिए, एक ऐसे जज की जो अपना निर्णय सुनाने से पहले सभी पक्षों को नज़र में रखते हुए बिना किसी पक्षपात के एक वस्तुनिष्ठ निष्कर्ष पर पहुँचता है। .

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इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .

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कनिष्क

कनिष्क प्रथम (Κανηϸκι, Kaneshki; मध्य चीनी भाषा: 迦腻色伽 (Ka-ni-sak-ka > नवीन चीनी भाषा: Jianisejia)), या कनिष्क महान, द्वितीय शताब्दी (१२७ – १५० ई.) में कुषाण राजवंश का भारत का एक महान् सम्राट था। वह अपने सैन्य, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों तथा कौशल हेतु प्रख्यात था। इस सम्राट को भारतीय इतिहास एवं मध्य एशिया के इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान मिलता है। कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस का ही एक वंशज, कनिष्क बख्त्रिया से इस साम्राज्य पर सत्तारूढ हुआ, जिसकी गणना एशिया के महानतम शासकों में की जाती है, क्योंकि इसका साम्राज्य तरीम बेसिन में तुर्फन से लेकर गांगेय मैदान में पाटलिपुत्र तक रहा था जिसमें मध्य एशिया के आधुनिक उजबेकिस्तान तजाकिस्तान, चीन के आधुनिक सिक्यांग एवं कांसू प्रान्त से लेकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और समस्त उत्तर भारत में बिहार एवं उड़ीसा तक आते हैं। पर कुषाण।अभिगमन तिथि: १५ फ़रवरी, २०१७ इस साम्राज्य की मुख्य राजधानी पेशावर (वर्तमान में पाकिस्तान, तत्कालीन भारत के) गाँधार प्रान्त के नगर पुरुषपुर में थी। इसके अलावा दो अन्य बड़ी राजधानियां प्राचीन कपिशा में भी थीं। उसकी विजय यात्राओं तथा बौद्ध धर्म के प्रति आस्था ने रेशम मार्ग के विकास तथा उस रास्ते गांधार से काराकोरम पर्वतमाला के पार होते हुए चीन तक महायान बौद्ध धर्म के विस्तार में विशेष भूमिका निभायी। पहले के इतिहासवेत्ताओं के अनुसार कनिष्क ने राजगद्दी ७८ ई० में प्राप्त की, एवं तभी इस वर्ष को शक संवत् के आरम्भ की तिथि माना जाता है। हालांकि बाद के इतिहासकारों के मतानुसार अब इस तिथि को कनिष्क के सत्तारूढ़ होने की तिथि नहीं माना जाता है। इनके अनुमानानुसार कनिष्क ने सत्ता १२७ ई० में प्राप्त की थी। .

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कश्मीर

ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायें: जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरी: (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .

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काबुल शाही

शाही या शाहिया राजवंशों ने भारत के मध्य राज्यों में शासन किया जिसके अन्तर्गत काबुलिस्तान तथा गान्धार (वर्तमान समय का उत्तरी पाकिस्तान) के भाग आते थे। यह राजवंश तीसरी शताब्दी में कुषाण राजवंश के पतन के बाद शासन में आया था और नौवीं शताब्दी के आरम्भ तक तक शासन किया। इस राज्य को 565 से 879 ई तक "काबुल शाही" (फारसी में 'काबुल शाहान' या 'रतबेल शाहान' کابلشاهان یا رتبیل شاهان) कहा जाता था। उस समय इसकी राजधानी कपिसा और काबुल थी। बाद में इसे हिन्दू शाही कहा जाने लगा। श्रेणी:भारत का इतिहास शाही वंषीय शाषक की सूची.

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काशीपुर का इतिहास

काशीपुर, भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। .

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काशीपुर, उत्तराखण्ड

काशीपुर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। उधम सिंह नगर जनपद के पश्चिमी भाग में स्थित काशीपुर जनसंख्या के मामले में कुमाऊँ का तीसरा और उत्तराखण्ड का छठा सबसे बड़ा नगर है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार काशीपुर नगर की जनसंख्या १,२१,६२३, जबकि काशीपुर तहसील की जनसंख्या २,८३,१३६ है। यह नगर भारत की राजधानी, नई दिल्ली से लगभग २४० किलोमीटर, और उत्तराखण्ड की अंतरिम राजधानी, देहरादून से लगभग २०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। काशीपुर को पुरातन काल से गोविषाण या उज्जयनी नगरी भी कहा जाता रहा है, और हर्ष के शासनकाल से पहले यह नगर कुनिन्दा, कुषाण, यादव, और गुप्त समेत कई राजवंशों के अधीन रहा है। इस जगह का नाम काशीपुर, चन्दवंशीय राजा देवी चन्द के एक पदाधिकारी काशीनाथ अधिकारी के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इसे १६-१७ वीं शताब्दी में बसाया था। १८ वीं शताब्दी तक यह नगर कुमाऊँ राज्य में रहा, और फिर यह नन्द राम द्वारा स्थापित काशीपुर राज्य की राजधानी बन गया। १८०१ में यह नगर ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया, जिसके बाद इसने १८१४ के आंग्ल-गोरखा युद्ध में कुमाऊँ पर अंग्रेजों के कब्जे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। काशीपुर को बाद में कुमाऊँ मण्डल के तराई जिले का मुख्यालय बना दिया गया। ऐतिहासिक रूप से, इस क्षेत्र की अर्थव्यस्था कृषि तथा बहुत छोटे पैमाने पर लघु औद्योगिक गतिविधियों पर आधारित रही है। काशीपुर को कपड़े और धातु के बर्तनों का ऐतिहासिक व्यापार केंद्र भी माना जाता है। आजादी से पहले काशीपुर नगर में जापान से मखमल, चीन से रेशम व इंग्लैंड के मैनचेस्टर से सूती कपड़े आते थे, जिनका तिब्बत व पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापार होता था। बाद में प्रशासनिक प्रोत्साहन और समर्थन के साथ काशीपुर शहर के आसपास तेजी से औद्योगिक विकास हुआ। वर्तमान में नगर के एस्कॉर्ट्स फार्म क्षेत्र में छोटी और मझोली औद्योगिक इकाइयों के लिए एक इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल एस्टेट निर्माणाधीन है। भौगोलिक रूप से काशीपुर कुमाऊँ के तराई क्षेत्र में स्थित है, जो पश्चिम में जसपुर तक तथा पूर्व में खटीमा तक फैला है। कोशी और रामगंगा नदियों के अपवाह क्षेत्र में स्थित काशीपुर ढेला नदी के तट पर बसा हुआ है। १८७२ में काशीपुर नगरपालिका की स्थापना हुई, और २०११ में इसे उच्चीकृत कर नगर निगम का दर्जा दिया गया। यह नगर अपने वार्षिक चैती मेले के लिए प्रसिद्ध है। महिषासुर मर्दिनी देवी, मोटेश्वर महादेव तथा मां बालासुन्दरी के मन्दिर, उज्जैन किला, द्रोण सागर, गिरिताल, तुमरिया बाँध तथा गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब काशीपुर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं। .

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कासनिया

कासनिया राजस्थान, भारत की एक जाट गोत्र है। उनके वंशज परम्पराओं के अनुसार भगवान कृष्ण से चले आ रहे हैं। संस्कृत में कृष्ण शब्द से ही कृष्णिया और कासनिया व्युत्पन्न हुए। कासनिया वंश के लोग चीन में कुषाण और युझी के रूप में जाने जाते हैं। उनके अनुसार वो लोग कासगार नामक स्थान के वंशज माने जाते हैं। ठाकुर देशराज के अनुसार, जाटों ने महाभारत के युद्ध के बाद शिवालिक की पहाड़ियों और मानसरोवर झील के नीचले क्षेत्रों को छोड़कर उत्तरकुरु (जाहिर तौर पर एक पौराणिक जगह जिसे कभी-कभी कुरु साम्राज्य भी कहा जाता है।) की ओर आ गये। उनमें से कुछ पंजाब में बस गये और कुछ कश्मीर की ओर चले गये एवं बाकी बचे हुए साइबेरिया क्षेत्रों में चले गये। .

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कुजुल कडफिसेस

यूनानी में लिखा है 'ΚΟΖΟΛΑ ΚΑΔΑΦΕΣ ΧΟϷΑΝΟΥ ΖΑΟΟΥ', 'कुजुल कडफिसेस ख़ोशानोउ ज़ाओओउ', यानि 'कुजुल कडफिसेस, कुषाणों का शासक' कुजुल कडफिसेस (Κοζουλου Καδφιζου, Kujula Kadphises) एक कुषाण राजकुंवर था जिसने पहली सदी ईसवी में युएझ़ी परिसंघ को संगठित किया और पहला कुषाण सम्राट बना। अफ़ग़ानिस्तान के बग़लान प्रान्त में सुर्ख़ कोतल नामक पुरातन स्थल में पाए गए रबातक शिलालेख के अनुसार कुजुल कडफिसेस प्रसिद्ध कुषाण सम्राट कनिष्क का पड़-दादा था। कुजुल के सिक्कों पर अक्सर खरोष्ठी और यूनानी लिपि मिलती है।, Ahmad Hasan Dani, Motilal Banarsidass Publishers, 1999, ISBN 978-81-208-1408-0,...

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अफ़ग़ानिस्तान

अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी गणराज्य दक्षिणी मध्य एशिया में अवस्थित देश है, जो चारो ओर से जमीन से घिरा हुआ है। प्रायः इसकी गिनती मध्य एशिया के देशों में होती है पर देश में लगातार चल रहे संघर्षों ने इसे कभी मध्य पूर्व तो कभी दक्षिण एशिया से जोड़ दिया है। इसके पूर्व में पाकिस्तान, उत्तर पूर्व में भारत तथा चीन, उत्तर में ताजिकिस्तान, कज़ाकस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान तथा पश्चिम में ईरान है। अफ़ग़ानिस्तान रेशम मार्ग और मानव प्रवास का8 एक प्राचीन केन्द्र बिन्दु रहा है। पुरातत्वविदों को मध्य पाषाण काल ​​के मानव बस्ती के साक्ष्य मिले हैं। इस क्षेत्र में नगरीय सभ्यता की शुरुआत 3000 से 2,000 ई.पू.

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अल्प तिगिन

अल्प तिगिन या अल्प तेगिन (फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Alp Tigin) ९६१ ईसवी से ९६३ ईसवी तक आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान के ग़ज़नी क्षेत्र का राजा था। तुर्क जाति का यह राजा पहले बुख़ारा और ख़ुरासान के सामानी साम्राज्य का एक सिपहसालार हुआ करता था जिसने उनसे अलग होकर ग़ज़नी की स्थानीय लवीक (Lawik) नामक शासक को हटाकर स्वयं सत्ता ले ली। इस से उसने ग़ज़नवी साम्राज्य की स्थापना करी जो आगे चलकर उसके वंशजों द्वारा आमू दरिया से लेकर सिन्धु नदी क्षेत्र तक और दक्षिण में अरब सागर तक विस्तृत हुआ। .

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अष्टमंगल

शंख, चक्र, मीन (मछली) आदि अष्टमंगल तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतिमा और उसके आगे रखे अष्टमंगल अष्टमांगालिक चिह्नों के समुदाय को अष्टमंगल कहा गया है। आठ प्रकार के मंगल द्रव्य और शुभकारक वस्तुओं को अष्टमंगल के रूप में जाना जाता है। सांची के स्तूप के तोरणास्तंभ पर उत्कीर्ण शिल्प में मांगलिक चिहों से बनी हुई दो मालाएँ अंकित हैं। एक में 11 चिह्न हैं - सूर्य, चक्र, पद्यसर, अंकुश, वैजयंती, कमल, दर्पण, परशु, श्रीवत्स, मीनमिथुन और श्रीवृक्ष। दूसरी माला में कमल, अंकुश, कल्पवृक्ष, दर्पण, श्रीवत्स, वैजयंती, मीनयुगल, परशु पुष्पदाम, तालवृक्ष तथा श्रीवृक्ष हैं। इनसे ज्ञात होता है कि लोक में अनेक प्रकार के मांगालिक चिह्नों की मान्यता थी। विक्रम संवत् के आरंभ के लगभग मथुरा की जैन कला में अष्टमांगलिक चिहों की संख्या और स्वरूप निश्चित हो गए। कुषाणकालीन आयागपटों पर अंकित ये चिह्न इस प्रकार है: मीनमिथुन, देवविमानगृह, श्रीवत्स, वर्धमान या शराव, संपुट, त्रिरत्न, पुप्पदाम, इंद्रयष्टि या वैजयंती ओर पूर्णघट। इन आठ मांगलिक चिह्नों की आकृति के ठीकरों से बना आभूषण अष्टमांगलिक माला कहलाता था। कुषाणकालीन जैन ग्रंथ अंगाविज्जा, गुप्तकालीन बौद्धग्रंथ महाव्युत्पत्ति ओर बाणकृत हर्षचरित में अष्टमांगलिक माला आभूषण का उल्लेख हुआ है। बाद के साहित्य और लोकजीवन में भी इन चिहों की मान्यता और पूजा सुरक्षित रही, किंतु इनके नामों में परिवर्तन भी देखा जाता है। शब्दकल्पद्रुम में उद्धृत एक प्रमाण के अनुसार सिंह, वृषभ, गज, कलश, व्यजन, वैजयंती, दीपक और दुंदुभी, ये अष्टमंगल थे।.

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अहीर (आभीर) वंश के राजा, सरदार व कुलीन प्रशासक

अहीर ('आभीर' शब्द से व्युत्पन्न) एक भारतीय जातीय समुदाय है, जो कि 'यादव' नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यादव व अहीर शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची माने गए हैं। अब तक की खोजों के अनुसार अहीर, आभीर अथवा यदुवंश का इतिहास भगवान विष्णु, अत्री, चन्द्र, तारा,बुध, इला, पुरुरवा-उर्वशी इत्यादि से सम्बद्ध है। तमिल भाषा के एक- दो विद्वानों को छोडकर शेष सभी भारतीय विद्वान इस बात से सहमत हैं कि अहीर शब्द संस्कृत के आभीर शब्द का तद्भव रूप है। प्राकृत-हिन्दी शब्दकोश के अनुसार भी अहिर, अहीर, आभीर व ग्वाला समानार्थी शब्द हैं। हिन्दी क्षेत्रों में अहीर, ग्वाला तथा यादव शब्द प्रायः परस्पर पर्यायवाची रूप में प्रयुक्त होते हैं। Quote: Ahir: Caste title of North Indian non-elite 'peasant'-pastoralists, known also as Yadav." Quote: "As far back as is known, the Yadava were called Gowalla (or one of its variants, Goalla, Goyalla, Gopa, Goala), a name derived from Hindi gai or go, which means "cow" and walla which is roughly translated as 'he who does'." वे कई अन्य नामो से भी जाने जाते हैं, जैसे कि गवली, घोसी या घोषी अहीर, तथा बुंदेलखंड में दौवा अहीर। ओडिशा में गौड व गौर के नाम से जाने जाते है, छत्तिशगड में राउत व रावत के नाम से जाने जाते है। अहीरों को विभिन्न रूपों से एक जाति, एक वंश, एक समुदाय, एक प्रजाति या नस्ल तथा एक प्राचीन आदिम जाति के रूप में उल्लेखित किया गया है। उन्होंने भारत व नेपाल के अनेक भागों पर राज किया है। .

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उत्तर प्रदेश का इतिहास

उत्तर प्रदेश का भारतीय एवं हिन्दू धर्म के इतिहास मे अहम योगदान रहा है। उत्तर प्रदेश आधुनिक भारत के इतिहास और राजनीति का केन्द्र बिन्दु रहा है और यहाँ के निवासियों ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभायी। उत्तर प्रदेश के इतिहास को निम्नलिखित पाँच भागों में बाटकर अध्ययन किया जा सकता है- (1) प्रागैतिहासिक एवं पूर्ववैदिक काल (६०० ईसा पूर्व तक), (2) हिन्दू-बौद्ध काल (६०० ईसा पूर्व से १२०० ई तक), (3) मध्य काल (सन् १२०० से १८५७ तक), (4) ब्रिटिश काल (१८५७ से १९४७ तक) और (5) स्वातंत्रोत्तर काल (1947 से अब तक)। .

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