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कुपोषण

सूची कुपोषण

अतिशय कुपोषण से ग्रसित एक बालक शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। अत: कुपोषण की जानकारियाँ होना अत्यन्त जरूरी है। कुपोषण प्राय: पर्याप्त सन्तुलित अहार के आभाव में होता है। बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं। इसके अलावा ऐसे पचासों रोग हैं जिनका कारण अपर्याप्त या असन्तुलित भोजन होता है। .

27 संबंधों: एनोरेक्सिया नर्वोज़ा, एस्कारियासिस, डेलेरियम त्रेमेंस, डेंगू बुख़ार, थर्मल प्रदूषण, न्यूमोनिया, प्राकृतिक चिकित्सा, पोषण, पीने का पानी, भारत में कुपोषण, भारत के सामाजिक-आर्थिक मुद्दे, भारत की स्वास्थ्य समस्याएँ (2009), भुखमरी, भूख, मध्यकर्णशोथ, मरुस्थलीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान केन्द्र, मानसिक विकलांगता, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, यक्ष्मा, शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body mass index), सूखा, जठरांत्र शोथ, व्रण, ऑस्टियोपोरोसिस, कुपोषणजन्य रोग, कोलकाता रेस्क्यू, अवसाद

एनोरेक्सिया नर्वोज़ा

क्षुधा अभाव (एनोरेक्सिया नर्वोज़ा) (AN) एक प्रकार का आहार-संबंधी विकार है जिसके लक्षण हैं - स्वस्थ शारीरिक वजन बनाए रखने से इंकार और स्थूलकाय हो जाने का डर जो विभिन्न बोधसंबंधी पूर्वाग्रहों पर आधारित विकृत स्व-छवि के कारण उत्पन्न होता है। ये पूर्वाग्रह व्यक्ति की अपने शरीर, भोजन और खाने की आदतों के बारे में चिंतन-मनन की क्षमता को बदल देते हैं। AN एक गंभीर मानसिक रोग है जिसमें अस्वस्थता व मृत्युदरें अन्य किसी मानसिक रोग जितनी ही होती हैं। यद्यपि यह मान्यता है कि AN केवल युवा श्वेत महिलाओं में ही होता है तथापि यह सभी आयु, नस्ल, सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के पुरूषों और महिलाओं को प्रभावित कर सकता है। एनोरेक्सिया नर्वोज़ा पद का प्रयोग महारानी विक्टोरिया के निजी चिकित्सकों में से एक, सर विलियम गल द्वारा 1873 में किया गया था। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक से हुई है: a (α, निषेध का उपसर्ग), n (ν, दो स्वर वर्णों के बीच की कड़ी) और orexis (ओरेक्सिस) (ορεξις, भूख), इस तरह इसका अर्थ है – भोजन करने की इच्छा का अभाव.

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एस्कारियासिस

एस्कारियासिस गोल कृमिएस्कारिस लम्ब्रीकॉइड्स परजीवी के कारण होने वाली बीमारी है। 85% से अधिक मामलों में संक्रमण के कोई लक्षण नहीं होते हैं, विशेष रूप से यदि कृमि का आकार छोटा हो। कृमियों की संख्या के साथ ही लक्षण भी बढ़ जाते हैं और बीमारी की शुरुआत में सांस की तकलीफ तथा बुखार हो सकता है। इनके पश्चात पेट की सूजन, पेट दर्द तथा डायरिया के लक्षण प्रकट हो सकते हैं। बच्चे इनसे सर्वाधिक प्रभावित हो जाते हैं, तथा इस आयुवर्ग में संक्रमण के कारण उचित रूप से वज़न न बढ़ना, कुपोषण तथा सीखने की क्षमता में कमी आ जाती है। संक्रमण ‘'एस्केरिस'’ के 'अंडे', जो मल द्वारा आते हैं, से दूषित भोजन या पेय खाने से होता है। अण्डों से कृमि आँतों में निकलते हैं, पेट की दीवार के माध्यम से छिद्र करके निकलते हैं, तथा रक्त के माध्यम से फेफड़ों की और बढ़ जाते हैं। वहाँ वे ऐल्वेली में प्रविष्ट हो कर ट्रेकीआ की और बढ़ जाते हैं, जहाँ से खांसने के कारण वे मुंह में आकर पुनः निगल लिए जाते हैं। इसके पश्चात लार्वा पेट से होते हुए पुनः आँतों में पहुँच जाते हैं, जहाँ वे वयस्क कृमि बन जाते हैं। रोकथाम के लिए स्वच्छता के स्तर को बढ़ाना आवश्यक है, जिसमें शौचालयों की संख्या तथा उन तक पहुँच को बढ़ाना तथा मल का उचित निस्तारण शामिल है। साबुन से हाथ धोना भी सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे क्षेत्रों में जहाँ 20% से अधिक जनसँख्या प्रभावित है, प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित अवधि पर उपचारित करने की संस्तुति की जाती है। संक्रमण की पुनरावृत्ति सामान्य है। इसके लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाई गयी दवाएं हैं एल्बेन्डोज़ोल, मीबेंडाज़ोल, लेवामीसोल अथवा पाईरैन्टेल पैमोट.

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डेलेरियम त्रेमेंस

डेलेरियम त्रेमेंस - मद्य-व्यसन से निवर्तन का प्रलाप- यह शराब से निवर्तन के वक़्त होता है। यह एक उग्र स्थिति है, जिस में रोगी को प्रलाप होता है। यह पहली बार १८१३ में वर्णित किया गया था। बेंजोडाइजेपाइन डेलेरियम त्रेमेंस के प्रलाप के लिए खास उपचार है।.

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डेंगू बुख़ार

डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। समय पर करना बहुत जरुरी होता हैं. मच्छर डेंगू वायरस को संचरित करते (या फैलाते) हैं। डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों। डेंगू बुख़ार के कुछ लक्षणों में बुखार; सिरदर्द; त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द शामिल हैं। कुछ लोगों में, डेंगू बुख़ार एक या दो ऐसे रूपों में हो सकता है जो जीवन के लिये खतरा हो सकते हैं। पहला, डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार है, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं (रक्त ले जाने वाली नलिकाएं), में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स  (जिनके कारण रक्त जमता है) का स्तर कम होता है। दूसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम है, जिससे खतरनाक रूप से निम्न रक्तचाप होता है। डेंगू वायरस चार भिन्न-भिन्न प्रकारों के होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को इनमें से किसी एक प्रकार के वायरस का संक्रमण हो जाये तो आमतौर पर उसके पूरे जीवन में वह उस प्रकार के डेंगू वायरस से सुरक्षित रहता है। हलांकि बाकी के तीन प्रकारों से वह कुछ समय के लिये ही सुरक्षित रहता है। यदि उसको इन तीन में से किसी एक प्रकार के वायरस से संक्रमण हो तो उसे गंभीर समस्याएं होने की संभावना काफी अधिक होती है।  लोगों को डेंगू वायरस से बचाने के लिये कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। डेंगू बुख़ार से लोगों को बचाने के लिये कुछ उपाय हैं, जो किये जाने चाहिये। लोग अपने को मच्छरों से बचा सकते हैं तथा उनसे काटे जाने की संख्या को सीमित कर सकते हैं। वैज्ञानिक मच्छरों के पनपने की जगहों को छोटा तथा कम करने को कहते हैं। यदि किसी को डेंगू बुख़ार हो जाय तो वह आमतौर पर अपनी बीमारी के कम या सीमित होने तक पर्याप्त तरल पीकर ठीक हो सकता है। यदि व्यक्ति की स्थिति अधिक गंभीर है तो, उसे अंतः शिरा द्रव्य (सुई या नलिका का उपयोग करते हुये शिराओं में दिया जाने वाला द्रव्य) या रक्त आधान (किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रक्त देना) की जरूरत हो सकती है। 1960 से, काफी लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित हो रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यह बीमारी एक विश्वव्यापी समस्या हो गयी है। यह 110 देशों में आम है। प्रत्येक वर्ष लगभग 50-100 मिलियन लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित होते हैं। वायरस का प्रत्यक्ष उपचार करने के लिये लोग वैक्सीन तथा दवाओं पर काम कर रहे हैं। मच्छरों से मुक्ति पाने के लिये लोग, कई सारे अलग-अलग उपाय भी करते हैं।  डेंगू बुख़ार का पहला वर्णन 1779 में लिखा गया था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने यह जाना कि बीमारी डेंगू वायरस के कारण होती है तथा यह मच्छरों के माध्यम से संचरित होती (या फैलती) है। .

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थर्मल प्रदूषण

पोत्रेरो जेनेरेटिंग स्टेशन सेन फ्रांसिस्को खाड़ी में गर्म पानी निस्सरण करते हुए. सेलना, रॉबर्ट (2009). "पावर प्लांट का मछली मारने से रोकने की कोई योजना नहीं है।" सेन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल, 2 जनवरी 2009. थर्मल प्रदूषण किसी भी प्रकार के प्रदूषण की प्रक्रिया को कहा जायेगा जिससे व्यापक रूप में पानी के प्राकृतिक तापमान में बदलाव होता हो। थर्मल प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण बिजली संयंत्रों तथा औद्योगिक विनिर्माताओं द्वारा शीतलक पानी का प्रयोग करने से होता है। जब शीतलक हेतु प्रयोग किया गया पानी पुनः प्राकृतिक पर्यावरण में आता है तो उसका तापमान अधिक होता है, तापमान में बदलाव के कारण (क.) ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है (ख.) पारिस्थिथिकी तंत्र पर भी प्रभाव पड़ता है। नगरीय जल बहाव-- सड़कों और गाड़ियों को रखने के स्थानों से बहे पानी, ये सभी तापमान के बढ़ने के कारण हो सकते हैं। जब एक बिजली संयंत्र मरम्मत अथवा अन्य कारणों से खुलता और बंद होता है, तो इसकी वजह से मछलियां और अन्य तरह के जीवाणु जो की एक विशेष प्रकार के तापमान के आदि होते हैं, अचानक तापमान में हुई बढ़ोतरी से मर जाते हैं, इसे 'थर्मल झटका' कहा जाता है। थर्मल प्रदूषण का एक और कारण जलाशय तालाब/टंकी द्वारा बहुत ही ज्यादा ठन्डे पानी को उष्ण नदियों में बहाने से होता है। .

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न्यूमोनिया

फुफ्फुसशोथ या फुफ्फुस प्रदाह (निमोनिया) फेफड़े में सूजन वाली एक परिस्थिति है—जो प्राथमिक रूप से अल्वियोली(कूपिका) कहे जाने वाले बेहद सूक्ष्म (माइक्रोस्कोपिक) वायु कूपों को प्रभावित करती है। यह मुख्य रूप से विषाणु या जीवाणु और कम आम तौर पर सूक्ष्मजीव, कुछ दवाओं और अन्य परिस्थितियों जैसे स्वप्रतिरक्षित रोगों द्वारा संक्रमण द्वारा होती है। आम लक्षणों में खांसी, सीने का दर्द, बुखार और सांस लेने में कठिनाई शामिल है। नैदानिक उपकरणों में, एक्स-रे और बलगम का कल्चर शामिल है। कुछ प्रकार के निमोनिया की रोकथाम के लिये टीके उपलब्ध हैं। उपचार, अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करते हैं। प्रकल्पित बैक्टीरिया जनित निमोनिया का उपचार प्रतिजैविक द्वारा किया जाता है। यदि निमोनिया गंभीर हो तो प्रभावित व्यक्ति को आम तौर पर अस्पताल में भर्ती किया जाता है। वार्षिक रूप से, निमोनिया लगभग 450 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है जो कि विश्व की जनसंख्या का सात प्रतिशत है और इसके कारण लगभग 4 मिलियन मृत्यु होती हैं। 19वीं शताब्दी में विलियम ओस्लर द्वारा निमोनिया को "मौत बांटने वाले पुरुषों का मुखिया" कहा गया था, लेकिन 20वीं शताब्दी में एंटीबायोटिक उपचार और टीकों के आने से बचने वाले लोगों की संख्या बेहतर हुई है।बावजूद इसके, विकासशील देशों में, बहुत बुज़ुर्गों, बहुत युवा उम्र के लोगों और जटिल रोगियों में निमोनिया अभी मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है। .

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प्राकृतिक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी / naturopathy) एक चिकित्सा-दर्शन है। इसके अन्तर्गत रोगों का उपचार व स्वास्थ्य-लाभ का आधार है - 'रोगाणुओं से लड़ने की शरीर की स्वाभाविक शक्ति'। प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत अनेक पद्धतियां हैं जैसे - जल चिकित्सा, होमियोपैथी, सूर्य चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, मृदा चिकित्सा आदि। प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचलन में विश्व की कई चिकित्सा पद्धतियों का योगदान है; जैसे भारत का आयुर्वेद तथा यूरोप का 'नेचर क्योर'। प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है, जिसका लक्ष्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के उचित इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण समाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्त्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक जीवन-शैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक संपूर्ण क्रांति है। इस प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक भोजन, विशेषकर ताजे फल तथा कच्ची व हलकी पकी सब्जियाँ विभिन्न बीमारियों के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों एवं गरीब देशों के लिये विशेष रूप से वरदान है। .

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पोषण

1.

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पीने का पानी

नल का पानी पीने का पानी या पीने योग्य पानी, समुचित रूप से उच्च गुणवत्ता वाला पानी होता है जिसका तत्काल या दीर्घकालिक नुकसान के न्यूनतम खतरे के साथ सेवन या उपयोग किया जा सकता है। अधिकांश विकसित देशों में घरों, व्यवसायों और उद्योगों में जिस पानी की आपूर्ति की जाती है वह पूरी तरह से पीने के पानी के स्तर का होता है, लेकिन वास्तविकता में इसके एक बहुत ही छोटे अनुपात का उपयोग सेवन या खाद्य सामग्री तैयार करने में किया जाता है। दुनिया के ज्यादातर बड़े हिस्सों में पीने योग्य पानी तक लोगों की पहुंच अपर्याप्त होती है और वे बीमारी के कारकों, रोगाणुओं या विषैले तत्वों के अस्वीकार्य स्तर या मिले हुए ठोस पदार्थों से संदूषित स्रोतों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह का पानी पीने योग्य नहीं होता है और पीने या भोजन तैयार करने में इस तरह के पानी का उपयोग बड़े पैमाने पर त्वरित और दीर्घकालिक बीमारियों का कारण बनता है, साथ ही कई देशों में यह मौत और विपत्ति का एक प्रमुख कारण है। विकासशील देशों में जलजनित रोगों को कम करना सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक प्रमुख लक्ष्य है। सामान्य जल आपूर्ति नेटवर्क पीने योग्य पानी नल से उपलब्ध कराते हैं, चाहे इसका उपयोग पीने के लिए या कपड़े धोने के लिए या जमीन की सिंचाई के लिए किया जाना हो.

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भारत में कुपोषण

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है.

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भारत के सामाजिक-आर्थिक मुद्दे

भारत विश्व का क्षेत्रफल अनुसार सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या अनुसार दूसरा सबसे बड़ा एक दक्षिण एशियाई राष्ट्र है। इसकी विकासशील अर्थव्यवस्था वर्तमान समय में विश्व की दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। 1991 के बड़े आर्थिक सुधारों के पश्चात भारत सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया तथा इसे नव औद्योगीकृत देशों में से एक माना जाता है। आर्थिक सुधारों के पश्चात भी भारत के समक्ष अभी भी कई सामाजिक चुनौतियाँ है जिनमें से प्रमुख सामाजार्थिक मुद्दे हैं: गरीबी, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद व आतंकवाद, कुपोषण और अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा। भारत में सामाजार्थिक मुद्दों से सम्बन्धित आँकड़ों का अभिलेख भारत सरकार का सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय रखता है। 1999 में स्थापित इस मंत्रालय का राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय हर वर्ष सामाजार्थिक सर्वेक्षण करता है जो कि दौरों के रूप में किया जाता है। इस सर्वेक्षण में थोड़े बहुत क्षेत्रों को छोड़ कर सम्पूर्ण भारत को शामिल किया जाता है। जिन क्षेत्रों को इस सर्वेक्षण से बहार रखा जाता है उनमें सम्मिलित हैं नागालैंड के वे आंतरिक गाँव जो बस मार्ग से पाँच किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्‍थित हैं व अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के वे गाँव जो पूर्ण रूप से अगम्‍य हैं। .

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भारत की स्वास्थ्य समस्याएँ (2009)

वर्ष 2009 में भारत के लोगों को पोलियो, एचआईवी और मलेरिया जैसी चिरपरिचित बिमारियों के साथ ही स्वाइन फ्लू नामक नई बीमारी का भी सामना करना पडा। इस वर्ष की दस प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं- .

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भुखमरी

भूख से पीड़ित वियतनामी व्यक्ति, जिसे कि वहाँ के वियत कांग्रेस शिविर में भोजन से वंचित रखा गया था। विटामिन, पोषक तत्वों और ऊर्जा अंतर्ग्रहण की गंभीर कमी को भुखमरी कहते हैं। यह कुपोषण का सबसे चरम रूप है। अधिक समय तक भुखमरी के कारण शरीर के कुछ अंग स्थायी रूप से नष्ट हो सकते हैं और अंततः मृत्यु भी हो सकती है। अपक्षय शब्द भुखमरी के लक्षणों और प्रभाव की ओर संकेत करता है। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार, विश्व के संपूर्ण स्वास्थ के लिए भूख स्वयं में ही एक गंभीर समस्या है। भुखमरा डब्लूएचओ (WHO) यह भी कहता है कि अब तक शिशु मृत्यु के कुल में से आधे मामलों के लिए कुपोषण ही उत्तरदायी है। एफएओ (FAO) के अनुसार, वर्तमान में 1 बिलियन से भी ज्यादा लोग, या इस ग्रह पर प्रति छः में से एक व्यक्ति, भुखमरी से प्रभावित है। .

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भूख

भूख उस समय अनुभव होती है, जब खाना खाने की इच्छा होती है। परितृप्ति भूख का अभाव है। भूख की अनुभूति हाइपोथैल्मस से शुरु होती है जब यह हार्मोन छोड़ता है। यह हार्मोन यकृत के अभिग्राहक पर प्रतिक्रिया करती है। हालांकि एक सामान्य वयक्ति बिना भोजन के कई सप्ताहों तक जिंदा रह सकता है। भूख की अनुभूति भोजन के कुछ घंटों बाद शुरू हो जाती है और व्यक्ति असहज महसूस करने लगता है। भूख शब्द का इस्तेमाल व्यक्ति के सामाजिक स्तर को बताने के लिए किया जाता है। .

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मध्यकर्णशोथ

मध्यकर्णशोथ (लैटिन), कान के मध्य में होने वाली सूजन या मध्य कान के संक्रमण को कहते हैं। यह समस्या यूस्टेचियन ट्यूब नामक नलिका के साथ-साथ कर्णपटही झिल्ली और भीतरी कान के बीच के हिस्से में होती है। यह कान में होने वाली दो प्रकार की सूजनों में से एक है, जिसे आम भाषा में कान के दर्द के नाम से जाना जाता है; कान में होने वाली दूसरी सूजन बाह्यकर्णशोथ है। वैसे कान के संक्रमण के अलावा किसी दूसरी बीमारी की वजह से भी कान में दर्द हो सकता है, जैसे कोई भी कैंसर संरचना जिसका संबंध कान तक पहुंचने वाली किसी तंत्रिका से हो और एक ऐसी दाद जो कि हर्प्स जॉस्टर ओटिकस (herpes zoster oticus) में तब्दील हो सकती है। काफी दर्द होने के बावजूद मध्यकर्णशोथ ज्यादा खतरनाक नहीं है और आमतौर पर दो से छह सप्ताह में खुद ही ठीक हो जाता है। .

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मरुस्थलीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान केन्द्र

मरुस्‍थलीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्‍द्र (डीएमआरसी), भारत सरकार के स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के अंतर्गत जैव चिकित्‍सकीय अनुसंधान के लिए शीर्ष स्‍वायत संगठन, ‘भारतीय आयु‍र्विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (आईसीएमआर) का एक स्‍थायी संस्‍थान है। 27 जून 1984 को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा राजस्‍थान के जोधपुर शहर में इस केन्‍द्र की स्‍थापना की गई, ताकि देश की मरुस्‍थलीय क्षेत्र की स्‍वास्‍थ्‍य अनुसंधानिक आवश्‍यकताओं को पूरा किया जा सके। यह केन्‍द्र इस क्ष्‍ोत्र की मुख्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के शोध व अनुसंधान कार्यो, जैसे मलेरिया, कुपोषण, सिलीकोसिस, तपेदिक, अफीम मुक्ति, रोगवाहक पारिस्थितिकी अध्‍ययन, कीटनाशकों की प्रतिरोधकता, चिकित्‍सकीय उपयोग के पौधे आदि के अध्‍ययन में जुटा हुआ है। .

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मानसिक विकलांगता

मानसिक विकलांगता (एमआर) एक व्यापक विकृति है, जो 18 वर्ष की आयु से पहले दो या दो से अधिक रूपांतरित व्यवहारों में और महत्वपूर्ण रूप से संज्ञानात्मक प्रक्रिया के विकार और न्यूनता के रूप में दिखता है। ऐतिहासिक रूप में इसे बौद्धिक क्षमता (आईक्यू) के 70 के भीतर होने के रूप में परिभाषित किया जाता है। कभी इसे लगभग पूरी तरह अनुभूति पर केंद्रित माना जाता था, पर अब इसकी परिभाषा में मानसिक क्रियाकलाप से संबंधित एक घटक और अपने वातावरण में व्यक्ति के कार्यात्मक कौशल दोनों को शामिल किया जाता है। .

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मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता

मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (Accredited Social Health Activist) जिसे संक्षेप में आशा भी कहते हैं, भारत में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रायोजित जननी सुरक्षा योजना से संबद्ध एक ग्रामीण स्तर की कार्यकर्त्री है। आशा का कार्य स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र के माध्यम से गरीब महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सेवाएँ प्रदान करना है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) योजना आशा के माध्यम से क्रियान्वित हो रही है। 2005 में आरंभ की गयी इस योजना का लक्ष्य 2012 तक पूरी तरह क्रियान्वित किये जाने का था। एक बार पूर्ण रूप से क्रियान्वित होने के पश्चात भारत के प्रत्येक गाँव में एक आशा की नियुक्ति आवश्यक होगी, इस लक्ष्य के अनुसार 10 राज्यों में लगभग 2.5 लाख आशा कर्मियों की आवश्यकता का अनुमान है। योजना भारत के 2012-13 के संघीय बजट के अनुसार आशा अब ग्रामीण स्वास्थ्य तथा स्वच्छता समिति की संयोजक होगी तथा कुपोषण संबंधी योजनाओं में भी सहायता करेगी। जनवरी 2013 के आँकड़ों के अनुसार भारत में आशा कर्मियों की कुल संख्या ८६३५०६ अनुमानित की गयी। .

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यक्ष्मा

यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग, एमटीबी या टीबी (tubercle bacillus का लघु रूप) एक आम और कई मामलों में घातक संक्रामक बीमारी है जो माइक्रोबैक्टीरिया, आमतौर पर माइकोबैक्टीरियम तपेदिक के विभिन्न प्रकारों की वजह से होती है। क्षय रोग आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह हवा के माध्यम से तब फैलता है, जब वे लोग जो सक्रिय टीबी संक्रमण से ग्रसित हैं, खांसी, छींक, या किसी अन्य प्रकार से हवा के माध्यम से अपना लार संचारित कर देते हैं। ज्यादातर संक्रमण स्पर्शोन्मुख और भीतरी होते हैं, लेकिन दस में से एक भीतरी संक्रमण, अंततः सक्रिय रोग में बदल जाते हैं, जिनको अगर बिना उपचार किये छोड़ दिया जाये तो ऐसे संक्रमित लोगों में से 50% से अधिक की मृत्यु हो जाती है। सक्रिय टीबी संक्रमण के आदर्श लक्षण खून-वाली थूक के साथ पुरानी खांसी, बुखार, रात को पसीना आना और वजन घटना हैं (बाद का यह शब्द ही पहले इसे "खा जाने वाला/यक्ष्मा" कहा जाने के लिये जिम्मेदार है)। अन्य अंगों का संक्रमण, लक्षणों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रस्तुत करता है। सक्रिय टीबी का निदान रेडियोलोजी, (आम तौर पर छाती का एक्स-रे) के साथ-साथ माइक्रोस्कोपिक जांच तथा शरीर के तरलों की माइक्रोबायोलॉजिकल कल्चर पर निर्भर करता है। भीतरी या छिपी टीबी का निदान ट्यूबरक्यूलाइन त्वचा परीक्षण (TST) और/या रक्त परीक्षणों पर निर्भर करता है। उपचार मुश्किल है और इसके लिये, समय की एक लंबी अवधि में कई एंटीबायोटिक दवाओं के माध्यम से उपचार की आवश्यकता पड़ती है। यदि आवश्यक हो तो सामाजिक संपर्कों की भी जांच और उपचार किया जाता है। दवाओं के प्रतिरोधी तपेदिक (MDR-TB) संक्रमणों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक बढ़ती हुई समस्या है। रोकथाम जांच कार्यक्रमों और बेसिलस काल्मेट-गुएरिन बैक्सीन द्वारा टीकाकरण पर निर्भर करती है। ऐसा माना जाता है कि दुनिया की आबादी का एक तिहाई एम.तपेदिक, से संक्रमित है, नये संक्रमण प्रति सेकंड एक व्यक्ति की दर से बढ़ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार, 2007 में विश्व में, 13.7 मिलियन जटिल सक्रिय मामले थे, जबकि 2010 में लगभग 8.8 मिलियन नये मामले और 1.5 मिलियन संबंधित मौतें हुई जो कि अधिकतर विकासशील देशों में हुई थीं। 2006 के बाद से तपेदिक मामलों की कुल संख्या कम हुई है और 2002 के बाद से नये मामलों में कमी आई है। तपेदिक का वितरण दुनिया भर में एक समान नहीं है; कई एशियाई और अफ्रीकी देशों में जनसंख्या का 80% ट्यूबरक्यूलाइन परीक्षणों में सकारात्मक पायी गयी, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी का 5-10% परीक्षणों के प्रति सकारात्मक रहा है। प्रतिरक्षा में समझौते के कारण, विकासशील दुनिया के अधिक लोग तपेदिक से पीड़ित होते हैं, जो कि मुख्य रूप से HIV संक्रमण की उच्च दर और उसके एड्स में विकास के कारण होता है। .

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शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body mass index)

शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body mass index) (BMI), या क्वेटलेट सूचकांक, एक विवादास्पद सांख्यिकीय माप है जो एक व्यक्ति के भार और उंचाई की तुलना करता है। हालांकि यह वास्तव में शरीर की वसा की प्रतिशतता का मापन नहीं करता है, फिर भी यह व्यक्ति की लम्बाई के आधार पर उसके स्वस्थ शरीर के भार का अनुमान लगाता है। इसकी मापन और गणना की आसान पद्धति के कारण, यह एक आबादी में भार की समस्याओं को पता लगाने का सबसे व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने वाला नैदानिक उपकरण है, आमतौर पर यह पता लगाने का कि व्यक्तियों का भार जरुरत से कम है (underweight), जरुरत से अधिक है (overweight), या वे मोटापे (obese) के शिकार हैं। इसकी खोज 1830 और 1850 के बीच बेल्जियन पोलिमेथ एडोल्फ क्वेटलेट ने "सामाजिक भौतिकी" के विकास के दौरान की.

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सूखा

अकाल भोजन का एक व्यापक अभाव है जो किसी भी पशुवर्गीय प्रजाति पर लागू हो सकता है। इस घटना के साथ या इसके बाद आम तौर पर क्षेत्रीय कुपोषण, भुखमरी, महामारी और मृत्यु दर में वृद्धि हो जाती है। जब किसी क्षेत्र में लम्बे समय तक (कई महीने या कई वर्ष तक) वर्षा कम होती है या नहीं होती है तो इसे सूखा या अकाल कहा जाता है। सूखे के कारण प्रभावित क्षेत्र की कृषि एवं वहाँ के पर्यावरण पर अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है। इतिहास में कुछ अकाल बहुत ही कुख्यात रहे हैं जिसमें करोंड़ों लोगों की जाने गयीं हैं। अकाल राहत के आपातकालीन उपायों में मुख्य रूप से क्षतिपूरक सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे कि विटामिन और खनिज पदार्थ देना शामिल है जिन्हें फोर्टीफाइड शैसे पाउडरों के माध्यम से या सीधे तौर पर पूरकों के जरिये दिया जाता है।, बीबीसी न्यूज़, टाइम सहायता समूहों ने दाता देशों से खाद्य पदार्थ खरीदने की बजाय स्थानीय किसानों को भुगतान के लिए नगद राशि देना या भूखों को नगद वाउचर देने पर आधारित अकाल राहत मॉडल का प्रयोग करना शुरू कर दिया है क्योंकि दाता देश स्थानीय खाद्य पदार्थ बाजारों को नुकसान पहुंचाते हैं।, क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर लंबी अवधि के उपायों में शामिल हैं आधुनिक कृषि तकनीकों जैसे कि उर्वरक और सिंचाई में निवेश, जिसने विकसित दुनिया में भुखमरी को काफी हद तक मिटा दिया है।, न्यूयॉर्क टाइम्स, 9 जुलाई 2009 विश्व बैंक की बाध्यताएं किसानों के लिए सरकारी अनुदानों को सीमित करते हैं और उर्वरकों के अधिक से अधिक उपयोग के अनापेक्षित परिणामों: जल आपूर्तियों और आवास पर प्रतिकूल प्रभावों के कारण कुछ पर्यावरण समूहों द्वारा इसका विरोध किया जाता है।, न्यूयॉर्क टाइम्स, 2 दिसम्बर 2007, दी अटलांटिक .

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जठरांत्र शोथ

जठरांत्र शोथ (गैस्ट्रोएन्टराइटिस) एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है जिसे जठरांत्र संबंधी मार्ग ("-इटिस") की सूजन द्वारा पहचाना जाता है जिसमें पेट ("गैस्ट्रो"-) तथा छोटी आंत ("इन्टरो"-) दोनो शामिल हैं, जिसके परिणास्वरूप कुछ लोगों को दस्त, उल्टी तथा पेट में दर्द और ऐंठन की सामूहिक समस्या होती है। जठरांत्र शोथ को आंत्रशोथ, स्टमक बग तथा पेट के वायरस के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। हलांकि यह इन्फ्लूएंजा से संबंधित नहीं है फिर भी इसे पेट का फ्लू और गैस्ट्रिक फ्लू भी कहा जाता है। वैश्विक स्तर पर, बच्चों में ज्यादातर मामलों में रोटावायरस ही इसका मुख्य कारण हैं। वयस्कों में नोरोवायरस और कंपाइलोबैक्टर अधिक आम है। कम आम कारणों में अन्य बैक्टीरिया (या उनके जहर) और परजीवी शामिल हैं। इसका संचारण अनुचित तरीके से तैयार खाद्य पदार्थों या दूषित पानी की खपत या संक्रामक व्यक्तियों के साथ निकट संपर्क के कारण से हो सकता है। प्रबंधन का आधार पर्याप्त जलयोजन है। हल्के या मध्यम मामलों के लिए, इसे आम तौर पर मौखिक पुनर्जलीकरण घोल के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। अधिक गंभीर मामलों के लिए, नसों के माध्यम से दिये जाने वाले तरल पदार्थ की जरूरत हो सकती है। जठरांत्र शोथ प्राथमिक रूप से बच्चों और विकासशील दुनिया के लोगों को प्रभावित करता है। .

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व्रण

एक बच्चे के पैर में अल्सर व्रण या अल्सर (Ulcer) शरीरपृष्ठ (body surface) पर संक्रमण द्वारा उत्पन्न होता है। इस संक्रमण के जीवविष (toxins) स्थानिक उपकला (epithelium) को नष्ट कर देते हैं। नष्ट हुई उपकला के ऊपर मृत कोशिकाएँ एवं पूय (pus) संचित हो जाता है। मृत कोशिकाओं तथा पूय के हट जाने पर नष्ट हुई उपकला के स्थान पर धीरे धीरे कणिकामय ऊतक (granular tissues) आने लगते हैं। इस प्रकार की विक्षति को व्रण कहते हैं। दूसरे शब्दों में संक्रमणोपरांत उपकला ऊतक की कोशिकीय मृत्यु को व्रण कहते है। किसी भी पृष्ठ के ऊपर, अथवा पार्श्व में, यदि कोई शोधयुक्त परिगलित (necrosed) भाग हो गया है, तो वहाँ व्रण उत्पन्न हो जाएगा। शीघ्र भर जानेवाले व्रण को सुदम्य व्रण कहते हैं। कभी-कभी कोई व्रण शीघ्र नहीं भरता। ऐसा व्रण दुदम्य हो जाता है, इसका कारण यह है कि उसमें या तो जीवाणुओं (bacteria) द्वारा संक्रमण होता रहता है, या व्रणवाले भाग में रक्त परिसंचरण (circulation of blood) उचित रूप से नहीं हो पाता। व्रण, पृष्ठ पर की एक कोशिका के बाद दूसरी कोशिका के नष्ट होने पर, बनता है। .

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ऑस्टियोपोरोसिस

अस्थिसुषिरता या ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) हड्डी का एक रोग है जिससे फ़्रैक्चर का ख़तरा बढ़ जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस में अस्थि खनिज घनत्व (BMD) कम हो जाता है, अस्थि सूक्ष्म-संरचना विघटित होती है और अस्थि में असंग्रहित प्रोटीन की राशि और विविधता परिवर्तित होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस को DXA के मापन अनुसार अधिकतम अस्थि पिंड (औसत 20 वर्षीय स्वस्थ महिला) से नीचे अस्थि खनिज घनत्व 2.5 मानक विचलन के रूप में परिभाषित किया है; शब्द "ऑस्टियोपोरोसिस की स्थापना" में नाज़ुक फ़्रैक्चर की उपस्थिति भी शामिल है। ऑस्टियोपोरोसिस, महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद सर्वाधिक सामान्य है, जब उसे रजोनिवृत्तोत्तर ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं, पर यह पुरुषों में भी विकसित हो सकता है और यह किसी में भी विशिष्ट हार्मोन संबंधी विकार तथा अन्य दीर्घकालिक बीमारियों के कारण या औषधियों, विशेष रूप से ग्लूकोकार्टिकॉइड के परिणामस्वरूप हो सकता है, जब इस बीमारी को स्टेरॉयड या ग्लूकोकार्टिकॉइड-प्रेरित ऑस्टियोपोरोसिस (SIOP या GIOP) कहा जाता है। उसके प्रभाव को देखते हुए नाज़ुक फ़्रैक्चर का ख़तरा रहता है, हड्डियों की कमज़ोरी उल्लेखनीय तौर पर जीवन प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। ऑस्टियोपोरोसिस को जीवन-शैली में परिवर्तन और कभी-कभी दवाइयों से रोका जा सकता है; हड्डियों की कमज़ोरी वाले लोगों के उपचार में दोनों शामिल हो सकती हैं। जीवन-शैली बदलने में व्यायाम और गिरने से रोकना शामिल हैं; दवाइयों में कैल्शियम, विटामिन डी, बिसफ़ॉसफ़ोनेट और कई अन्य शामिल हैं। गिरने से रोकथाम की सलाह में चहलक़दमी वाली मांसपेशियों को तानने के लिए व्यायाम, ऊतक-संवेदी-सुधार अभ्यास; संतुलन चिकित्सा शामिल की जा सकती हैं। व्यायाम, अपने उपचयी प्रभाव के साथ, ऑस्टियोपोरोसिस को उसी समय बंद या उलट सकता है। .

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कुपोषणजन्य रोग

कुपोषणजन्य रोग (Deficiency diseases or Nutrition disorders) वे रोग हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शरीर में आवश्यक पोषक पदार्थों की कमी के कारण उत्पन्न होते हैं। बेरीबेरी रोग इसका एक उदाहरण है। ये रोग प्राय: अधिक समय तक कुपोषण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। पोषक पदार्थों की कमी के बजाय उनकी अत्यधिक सेवन भी विषाक्तता जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है। इसी तरह अत्यधिक खाने से उत्पन्न हुआ मोटापा भी स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याओं को जन्म दे सकता है। .

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कोलकाता रेस्क्यू

कोलकाता रेस्क्यू जैक प्रेगेर द्वारा 1980 में स्थापित की गई कोलकाता, भारत में स्थित ब्रिटेन से दान प्राप्त करने वाली समाज-सेवी संस्था है। यह पश्चिम बंगाल में वंचित लोगों के लिए चिकित्सा, शिक्षा और सहायता सेवाओं को चलाती है। यह लोगों को हस्तशिल्प भी बनाने और बेचने के लिए प्रशिक्षित करती है। .

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अवसाद

अवसाद या डिप्रेशन का तात्पर्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मनोभावों संबंधी दुख से होता है। इसे रोग या सिंड्रोम की संज्ञा दी जाती है। आयुर्विज्ञान में कोई भी व्यक्ति डिप्रेस्ड की अवस्था में स्वयं को लाचार और निराश महसूस करता है। उस व्यक्ति-विशेष के लिए सुख, शांति, सफलता, खुशी यहाँ तक कि संबंध तक बेमानी हो जाते हैं। उसे सर्वत्र निराशा, तनाव, अशांति, अरुचि प्रतीत होती है। अवसाद के भौतिक कारण भी अनेक होते हैं। इनमें कुपोषण, आनुवांशिकता, हार्मोन, मौसम, तनाव, बीमारी, नशा, अप्रिय स्थितियों में लंबे समय तक रहना, पीठ में तकलीफ आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त अवसाद के ९० प्रतिशत रोगियों में नींद की समस्या होती है। मनोविश्लेषकों के अनुसार अवसाद के कई कारण हो सकते हैं। यह मूलत: किसी व्यक्ति की सोच की बुनावट या उसके मूल व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। अवसाद लाइलाज रोग नहीं है। इसके पीछे जैविक, आनुवांशिक और मनोसामाजिक कारण होते हैं। यही नहीं जैवरासायनिक असंतुलन के कारण भी अवसाद घेर सकता है। इसकी अधिकता के कारण रोगी आत्महत्या तक कर सकते हैं। इसलिए परिजनों को सजग रहना चाहिए और उनके परिवार का कोई सदस्य गुमसुम रहता है, अपना ज्यादातर समय अकेले में बिताता है, निराशावादी बातें करता है तो उसे तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। उसे अकेले में न रहने दें। हंसाने की कोशिश करें। मनोविश्लेषकों के अनुसार प्राकृतिक तौर पर महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अवसाद की शिकार कम बनती हैं, लेकिन अवांछित दबावों से वह इसकी शिकार हो सकती हैं। इस कारण प्रायः माना जाता है कि महिलाओं को अवसाद जल्दी आ घेरता है। इसके विपरीत पुरुष अक्सर अपनी अवसाद की अवस्था को स्वीकार करने से संकोच करते हैं। मोटे अनुमान के अनुसार दस पुरुषों में एक जबकि दस महिलाओं में हर पांच को अवसाद की आशंका रहती है। अवसाद का संबंध मस्तिष्क के उन्हीं क्षेत्रों द्वारा होता है, जहां से निद्रा चक्र और जागरण की अवस्था नियंत्रित होती है। अवसाद अक्सर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर्स की कमी के कारण भी होता है। न्यूरोट्रांसमीटर्स दिमाग में पाए जाने वाले रसायन होते हैं जो दिमाग और शरीर के विभिन्न हिस्सों में तारतम्यता स्थापित करते हैं। इनकी कमी से भी शरीर की संचार व्यवस्था में कमी आती है और व्यक्ति में अवसाद के लक्षण दिखाई देते हैं। इस तरह का अवसाद आनुवांशिक होता है। अवसाद के कारण निर्णय लेने में अड़चन, आलस्य, सामान्य मनोरंजन की चीजों में अरुचि, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन या कुंठा व्यक्ति में दिखाई पड़ते हैं। अवसाद के कारणों में इसका एक पूरक चिंता (एंग्ज़ायटी) भी है। इसके उपचार में योगासन में प्राणायाम बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। कई बार अतिरिक्त चिड़चिड़ापन, अहंकार, कटुता या आक्रामकता अथवा नास्तिकता, अनास्था और अपराध अथवा एकांत की प्रवृत्ति पनपने लगती है या फिर व्यक्ति नशे की ओर उन्मुख होने लगता है। ऐसे में जरूरी है कि हम किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करें। व्यक्ति को खुशहाल वातावरण दें। उसे अकेला न छोड़ें तथा छिन्द्रान्वेषण कतई न करें। उसकी रुचियों को प्रोत्साहित कर, उसमें आत्मविश्वास जगाएँ और कारण जानने का प्रयत्न करें। अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने गहन शोध के बाद यह दावा किया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार सकारात्मक सोच का अभ्यास करता है, तो वह उसके डिप्रेशन या अवसाद की स्थिति का एकमात्र इलाज हो सकता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ फैमेली फिजिशियन का कहना है कि लोगों को नकारात्मक नहीं सोचना चाहिए। न ही विफलता के भय को लेकर चिंतित होते रहना चाहिए। इनकी बजाय हमेशा सकारात्मक सोच दिमाग में रखना चाहिए जो होगा अच्छा होगा। घर में अन्य सदस्यों को अवसाद की बीमारी होने से भी यह परेशानी महिलाओं को जल्दी पकड़ती है। क्योंकि घर से लगाव पुरुषों के मुकाबले उन्हें ज्यादा होता है। इसके चलते कभी-कभी उनमें आत्महत्या की इच्छा जोर मारने लगती है। इसलिए पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अवसाद ज्यादा खतरनाक होता है। हालांकि मंदी और कॉम्पटीशन के दौर में डिप्रेशन अब युवाओं को भी अपना शिकार बनाने लगा है इसलिए कोशिश यह रखनी चाहिए कि आप खुशनुमा पलों की तलाश करें और सकारात्मक सोच रखें। इससे बचने के उपायों में व्यस्त रहकर मस्त रहना, अपने लिए समय निकालना, संतुलित आहार सेवन, अपने लिए समय निकालना और सामाजिक मेलजोल बढ़ाना मूल उपाय हैं। युवाओं में बढ़ता तनाव .

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