8 संबंधों: तम्बाकू धूम्रपान, बालविकास, यौवनारम्भ, लड़की, शैक्षिक मनोविज्ञान, स्वप्नदोष, अमृता प्रीतम, 2011 की बॉलीवुड फ़िल्में।
तम्बाकू धूम्रपान
तम्बाकू धूम्रपान एक ऐसा अभ्यास है जिसमें तम्बाकू को जलाया जाता है और उसका धुआं या तो चखा जाता है या फिर उसे सांस में खींचा जाता है। इसका चलन 5000-3000 ई.पू.के प्रारम्भिक काल में शुरू हुआ। कई सभ्यताओं में धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान इसे सुगंध के तौर पर जलाया गया, जिसे बाद में आनंद प्राप्त करने के लिए या फिर एक सामाजिक उपकरण के रूप में अपनाया गया। पुरानी दुनिया में तम्बाकू 1500 के दशक के अंतिम दौर में प्रचलित हुआ जहां इसने साझा व्यापारिक मार्ग का अनुसरण किया। हालांकि यह पदार्थ अक्सर आलोचना का शिकार बनता रहा है, लेकिन इसके बावज़ूद वह लोकप्रिय हो गया। जर्मन वैज्ञानिकों ने औपचारिक रूप से देर से 1920 के दशक के अन्त में धूम्रपान और फेफड़े के कैंसर के बीच के संबंधों की पहचान की जिससे आधुनिक इतिहास में पहले धूम्रपान विरोधी अभियान की शुरुआत हुई। आंदोलन तथापि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दुश्मनों की सीमा में पहुंचने में नाकाम रहा और उसके बाद जल्द ही अलोकप्रिय हो गया। 1950 में स्वास्थ्य अधिकारियों ने फिर से धूम्रपान और कैंसर के बीच के सम्बंध पर चर्चा शुरू की। वैज्ञानिक प्रमाण 1980 के दशक में प्राप्त हुए, जिसने इस अभ्यास के खिलाफ राजनीतिक कार्रवाई पर जोर दिया। 1965 से विकसित देशों में खपत या तो क्षीण हुई या फिर उसमें गिरावट आयी। हालांकि, विकासशील दुनिया में बढ़त जारी है। तम्बाकू के सेवन का सबसे आम तरीका धूम्रपान है और तम्बाकू धूम्रपान किया जाने वाला सबसे आम पदार्थ है। कृषि उत्पाद को अक्सर दूसरे योगज के साथ मिलाया जाता है और फिर सुलगाया जाता है। परिणामस्वरूप भाप को सांस के जरिये अंदर खींचा जाता है फिर सक्रिय पदार्थ को फेफड़ों के माध्यम से कोशिकाओं से अवशोषित कर लिया जाता है। सक्रिय पदार्थ तंत्रिका अंत में रासायनिक प्रतिक्रियाओं को शुरू करती है जिससे हृदय गति, स्मृति और सतर्कता और प्रतिक्रिया की अवधि बढ़ जाती है। डोपामाइन (Dopamine) और बाद में एंडोर्फिन(endorphin) का रिसाव होता है जो अक्सर आनंद से जुड़े हुए हैं। 2000 में धूम्रपान का सेवन कुछ 1.22 बिलियन लोग करते थे। पुरुषों में महिलाओं की तुलना में धूम्रपान की संभावना अधिक होती हैं तथापि छोटे आयु वर्ग में इस लैंगिक अंतर में गिरावट आती है। गरीबों में अमीरों की तुलना में और विकसित देशों के लोगों में अमीर देशों की तुलना में धूम्रपान की संभावना अधिक होती है। धूम्रपान करने वाले कई किशोरावस्था में या आरम्भिक युवावस्था के दौरान शुरू करते हैं। आम तौर पर प्रारंभिक अवस्था में धूम्रपान सुखद अनुभूतियां प्रदान करता है, सकारात्मक सुदृढीकरण के एक स्रोत के रूप में कार्य करता है। एक व्यक्ति में कई वर्षों के धूम्रपान के बाद परिहार के लक्षण और नकारात्मक सुदृढीकरण उसे जारी रखने का प्रमुख उत्प्रेरक बन जाता है। .
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बालविकास
रूसो ने बालकों की तीन अवस्थाओं की कल्पना की थी: शैशवावस्था, जो एक वर्ष से पाँच तक रहती है, बाल्यावस्था जो पाँच वर्ष से 12 वर्ष तक रहती है और किशोरावस्था जो 12 वर्ष से 20 वर्ष तक रहती है। आधुनिक मनोविश्लेषण विज्ञान के विशेषज्ञों ने रूसों की उक्त कल्पना का समर्थन बालक की कामवासना के विकास के आधार पर किया है। मनोविश्लेषण वैज्ञानिक बालक के मानसिक विकास में उसकी ज्ञानात्मक शक्तियों की प्रधानता न मानकर भावों की ही प्रधानता मानते हैं। मनुष्य के भावों के विकस के साथ ही उसकी अन्य मानसिक शक्तियों का विकास होता है। भाव वासना का सहगामी तत्व है। मनुष्य की मूल अथवा मुख्य वासना कामवासना है। अतएव जैसे जैसे उसका विकास होता है वैसे वैसे बालक का मानसिक विकास होता है। मनोविश्लेषकों के कथनानुसार बालक का वासनात्मक विकास पांच वर्ष की अवस्था में ही हो जाता है। इसके बाद उसकी काम वासना अंतर्हित हो जाती है। वह तेरह वर्ष में फिर से जाग्रत होती है और इस बार जाग्रत होकर सदा बढती ही रहती है। इसके कारण बालक का किशोर जीवन बड़े महत्व का होता है। इसके पूर्व के जीवन में बालक का भावात्मक विकास रुक जाता है, परंतु उसका शारीरिक और बौद्धिक विकास जारी रहता है। किशोरावस्था में बालक का सभी प्रकार का विकास पूर्णरूपेण होता है। उपर्युक्त बालमनोविकास की कल्पना एकांगी दिखाई देती है। अतएव बालमनोविज्ञान में विशेष रुचि रखने वाले मनोवैज्ञानिकों ने बालकों का सीधा निरीक्षण करके और उनके व्यवहारों के विषय में प्रयोग करके, जो निष्कर्ष निकाले वे अधिक महत्व के हैं। उन्होंने अपने दत्त निम्नलिखित सात विभागों में रखना अधिक उचित समझा है। बालविकास के अध्ययन के लिए बालजीवन निम्नलिखित सात विभागों में विभक्त कर लिया जाता है: (1) गर्भवासी, (2) नवजात शिशु, (3) एक वर्षीय शिशु, (4) डगमगाकर चलनेवाला, (5) पाठशालारोही, (6) कैशोरोन्मुख तथा (7) किशोर। .
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यौवनारम्भ
कालक्रमानुसार पुरुषों के वाह्य अंगों में यौनिक परिवर्तन मानव में यौवनारम्भ या वय:सन्धि (puberty) शारीरिक परिवर्तन की उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा कालक्रम में बच्चे से बढ़कर प्रजनन में समर्थ जवान बन जाता है। यौवनारम्भ की शुरूवात हार्मोनों के बनने से होती है। कालक्रमानुसार लड़कियों के वाह्य अंगों में यौनिक परिवर्तन .
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लड़की
मुस्कुराती हुई दो लड़कियां एक लड़की जन्म से बचपन और किशोरावस्था से लेकर वयस्क होने तक स्त्री मानव होती है। इस शब्द का उपयोग एक जवान महिला के लिए भी होता है। .
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शैक्षिक मनोविज्ञान
गिनतारा, अमूर्त वस्तुओं वस्तुओं को मूर्त बनाकर गणित की मूलभूत बातें सिखाने की युक्ति है। शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology), मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि मानव शैक्षिक वातावरण में सीखता कैसे है तथा शैक्षणिक क्रियाकलाप अधिक प्रभावी कैसे बनाये जा सकते हैं। 'शिक्षा मनोविज्ञान' दो शब्दों के योग से बना है - ‘शिक्षा’ और ‘मनोविज्ञान’। अतः इसका शाब्दिक अर्थ है - शिक्षा संबंधी मनोविज्ञान। दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। शिक्षा के सभी पहलुओं जैसे शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन, अनुशासन आदि को मनोविज्ञान ने प्रभावित किया है। बिना मनोविज्ञान की सहायता के शिक्षा प्रक्रिया सुचारू रूप से नहीं चल सकती। शिक्षा मनोविज्ञान से तात्पर्य शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने से है। शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान में व्यक्ति के व्यवहार, मानसिक प्रक्रियाओं एवं अनुभवों का अध्ययन शैक्षिक परिस्थितियों में किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसका ध्येय शिक्षण की प्रभावशाली तकनीकों को विकसित करना तथा अधिगमकर्ता की योग्यताओं एवं अभिरूचियों का आंकलन करना है। यह व्यवहारिक मनोविज्ञान की शाखा है जो शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने में प्रयासरत है। .
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स्वप्नदोष
अपने नाम के विपरीत स्वप्नदोष (Nocturnal emission) कोई दोष न होकर एक स्वाभाविक दैहिक क्रिया है जिसके अंतर्गत एक पुरुष को नींद के दौरान वीर्यपात (स्खलन) हो जाता है। यह महिने में अगर 1 या 2 बार ही हो तो सामान्य बात कही जा सकती है।और यह कहा जा सकता है कि कोई रोग नहीं है किन्तु यदि यह इससे ज्यादा बार होता है तो वीर्य की या शुक्र की हानि होती है और व्यक्ति को शारीरिक कमजोरी का अहसास होता है। क्योंकि यह शुक्र भी रक्त कणों से पैदा होता है। अतः अत्यधिक शुक्र क्षय व्यक्ति को कमजोर कर देता हैं। स्वप्नदोष, किशोरावस्था और शुरुआती वयस्क वर्षों में के दौरान होने वाली एक सामान्य घटना है, लेकिन यह उत्सर्जन यौवन के बाद किसी भी समय हो सकता है। आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक पुरुष स्वप्नदोष को अनुभव करे, जहां अधिकांश पुरुष इसे अनुभव करते हैं वहीं कुछ पूर्ण रूप से स्वस्थ और सामान्य पुरुष भी इसका अनुभव नहीं करते। स्वप्नदोष के दौरान पुरुषों को कामोद्दीपक सपने आ सकते हैं और यह स्तंभन के बिना भी हो सकता है। .
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अमृता प्रीतम
अमृता प्रीतम (१९१९-२००५) पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। पंजाब (भारत) के गुजराँवाला जिले में पैदा हुईं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग १०० पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण भी प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था। अमृता प्रीतम का जन्म १९१९ में गुजरांवाला पंजाब (भारत) में हुआ। बचपन बीता लाहौर में, शिक्षा भी वहीं हुई। किशोरावस्था से लिखना शुरू किया: कविता, कहानी और निबंध। प्रकाशित पुस्तकें पचास से अधिक। महत्त्वपूर्ण रचनाएं अनेक देशी विदेशी भाषाओं में अनूदित। १९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९५८ में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत, १९८८ में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार;(अन्तर्राष्ट्रीय) और १९८२ में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। उन्हें अपनी पंजाबी कविता अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ के लिए बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी। .
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2011 की बॉलीवुड फ़िल्में
यह बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्री द्वारा २०११ में निर्मित फ़िल्मों की सूची है। वर्ष के दौरान व्यावसायिक तौर पर एवं समीक्षकों की दृष्टि से विभिन्न सफल फ़िल्में जारी की गई। आठ फिल्मों ने भारतीय बॉक्स ऑफिस पर सबसे अधिक कमाई करने वाली शीर्ष 30 हिन्दी फ़िल्मों की सूची में जगह बनाई। प्रमुख दर्शनीय फ़िल्मों का संक्षिप्त विश्लेषण निम्न प्रकार है.