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किला

सूची किला

राजस्थान के '''कुम्भलगढ़ का किला''' - यह एशिया के सबसे बड़े किलों में से एक है। शत्रु से सुरक्षा के लिए बनाए जानेवाले वास्तु का नाम किला या दुर्ग है। इन्हें 'गढ़' और 'कोट' भी कहते हैं। दुर्ग, पत्थर आदि की चौड़ी दीवालों से घिरा हुआ वह स्थान है जिसके भीतर राजा, सरदार और सेना के सिपाही आदि रहते है। नगरों, सैनिक छावनियों और राजप्रासादों सुरक्षा के लिये किलों के निर्माण की परंपरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है। आधुनिक युग में युद्ध के साधनों और रण-कौशल में वृद्धि तथा परिवर्तन हो जाने के कारण किलों का महत्व समाप्त हो गया है और इनकी कोई आवशकता नहीं रही। .

45 संबंधों: चित्तौड़गढ़ दुर्ग, चुनार का किला, एडिनबर्ग किला, तमिल, ताशक़ुरग़ान​, ताशक़ुरग़ान​ ताजिक स्वशासित ज़िला, तिमण गढ़, तुग़लक़ाबाद, दुर्ग, दीव किला, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, फोर्ट विलियम, बांतिय मियनचिय प्रान्त, भारत में पर्यटन, भारत के राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सूची, भारतीय स्थापत्यकला, मनीमाजरा, मांडलगढ़, मुरुद जंजीरा किला, मूरिश किला, रानी गाइदिन्ल्यू, रामसे बोल्टन, राजमहल, लास वेगास, लोनावला, लोआरे किला, शाही किला, जौनपुर, संतरी बुर्ज, जमरूद किला, जयपुर, जयपुर जिला, विंडसर कासल, खुरनक दुर्ग, गुलबर्ग किला, ग्वालियर का क़िला, ओरछा किला, ओस्त्रोग, कालिंजर दुर्ग, कुम्भलगढ़ दुर्ग, कुर्नूल जिला, कोता भारू, कोता किनाबालू, असीरगढ़, अंतरीप, उदगीर

चित्तौड़गढ़ दुर्ग

चित्तौड़गढ़ दुर्ग भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है जो भीलवाड़ा से कुछ किमी दक्षिण में है। यह एक विश्व विरासत स्थल है। चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी थी। इस किले ने इतिहास के उतार-चढाव देखे हैं। यह इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह है। इसने तीन महान आख्यान और पराक्रम के कुछ सर्वाधिक वीरोचित कार्य देखे हैं जो अभी भी स्थानीय गायकों द्वारा गाए जाते हैं। चित्तौड़ के दुर्ग को २०१३ में युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। .

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चुनार का किला

300px मिर्जापुर के चुनार में स्थित चुनार किला कैमूर पर्वत की उत्तरी दिशा में स्थित है। यह गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर बसा है। यह दुर्ग गंगा नदी के ठीक किनारे पर स्थित है। यह किला एक समय हिंदू शक्ति का केंद्र था। हिंदू काल के भवनों के अवशेष अभी तक इस किले में हैं, जिनमें महत्वपूर्ण चित्र अंकित हैं। इस किले में आदि-विक्रमादित्य का बनवाया हुआ भतृहरि मंदिर है जिसमें उनकी समाधि है। किले में मुगलों के मकबरे भी हैं। .

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एडिनबर्ग किला

एडिनबर्ग कासल(Edinburgh Castle, ब्रिटिश उच्चारण:एडिन्बर खास्ल्) अथवा एडिनबर्ग का किला, स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग शहर के मध्य में कासल रॉक नामक पहाड़ी पर स्थित एक गिरीदुर्ग(पहाड़ी किला) है। ऐतिहासिक तौर पर, इस किले के स्थान पर कमसेकम १२वीं सदी से एक शाही किले के होने के प्रमाण हैं। यह किला सन् १६३३ तक शाही निवास के रूप में सत्यापित रहा था। १५वीं सदी से, इस किले की रिहाइशी महत्व घटने लगी और १७वीं सदी से इसे मुख्यतः एक सैन्य ठिकाने के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। १९वीं सदी के बाद से इस किले के ऐतिहासिक महत्व के मद्देनज़र इसे स्कॉटलैंड के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय धरोहर क्र रूप में देखा जाने लगा, और तत्पश्चात् इस किले पर अनेक पुनःस्थापन परियोजनाएँ चलाई गयीं। स्कॉटियाई राजशाही के सबसे अहम गढ़ों में से एक होने के कारण, इस किले का अनेक ऐतिहासिक युद्धों और मुठभेड़ों में अहम भूमिका रही है, जिनमे स्कॉटिश स्वतंत्रता युद्ध और १७४५ की जैकोबीयाइ जागरण शामिल हैं। इस किले पर किये गए शोधों से पता चलता है की इस किले के ११०० वर्षों के इतिहास में इस पर कमसेकम २६ मुहासरे लगाये गए थे। आज यह किला स्कॉटलैंड का सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। २०१३ में इस किले को देखने के लिए कुल १४ लाख आगंतुक आये थे। इस किले को एडिनबर्ग अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव के एगींबुर्ग मिलिट्री टैटू के कार्यक्रम स्थल के रूप में उपयोग किया जाता है, जिसमे प्रत्येक वर्ष एडिनबर्ग, यूके तथा विदेशों से भी लाखों लोग आते हैं। इसकी ऐतिहारिक महत्ता और लोकप्रियता के मद्देनज़र इस किले को कई मायनों में एडिनबर्ग शहर तथा पूरे स्कॉटलैंड का प्रतीक भी माना जाता है। इस किले के प्रतिबिंब को एडिंबिरग नगर परिषद् तथा एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के कुलांकों में भी देखा जा सकता है। किले के गिने-चुने भवन हैं जो १६वीं सदी से पूर्वतीथ हैं, क्योंकि लैंग के मुहासिरे के समय तोपों की गोलाबारी द्वारा इस किले के अधिकांश इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस संदर्भ में सबसे विशिष्ट अपवादात्मक भवन सेंट मार्गारेट्स चैपल है, जोकि १२वीं साद से आबाद है, और इसे अक्सर एडिनबर्ग की सबसे पुरातन संरचना माना जाता है। इसके अलावा शाही महल और उसका "ग्रेट हॉल", दोनों हीं उस अवरोध से पूर्वतीथ हैं, हालांकि, ग्रेट हॉल के इंटीरियर्स मूल मध्य-विक्टोरियाइ काल से काफ़ी परिवर्तित हो चुके हैं। इसके अलावा यह किला, स्कॉटलैंड की राष्ट्रीय युद्ध स्मृति, राष्ट्रीय युद्ध संग्रहालय तथा स्कोटियाई राजपरिधानों की भी मेज़बानी करता है। आज भी इस किले के कुछ हिस्सों में ब्रिटिश सेना की उपस्थिति है, परंतु अब सेना की उपस्थिति केवल प्रशासनिक और पारंपरिक है। .

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तमिल

एक तमिल परिवार श्रीलंका में तमिल बच्चे भरतनाट्यम तमिल एक मानमूल है, जिनका मुख्य निवास भारत के तमिलनाडु तथा उत्तरी श्री लंका में है। तमिल समुदाय से जुड़ी चीजों को भी तमिल कहते हैं जैसे, तमिल तथा तमिलनाडु के वासियों को भी तमिल कहा जाता है। तामिल, द्रविड़ जाति की ही एक शाखा है। बहुत से विद्वानों की राय है कि 'तामिल' शब्द संस्कृत 'द्राविड' से निकला है। मनुसंहिता, महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथों में द्रविड देश और द्रविड जाति का उल्लेख है। मागधी प्राकृत या पाली में इसी 'द्राविड' शब्द का रूप 'दामिलो' हो गया। तामिल वर्णमाला में त, ष, द आदि के एक ही उच्चारण के कारण 'दामिलो' का 'तामिलो' या 'तामिल' हो गया। शंकराचार्य के शारीरक भाष्य में 'द्रमिल' शब्द आया है। हुएनसांग नामक चीनी यात्री ने भी द्रविड देश को 'चि—मो—लो' करके लिखा है। तमिल व्याकरण के अनुसार द्रमिल शब्द का रूप 'तिरमिड़' होता है। आजकल कुछ विद्वानों की राय हो रही है कि यह 'तिरमिड़' शब्द ही प्राचीन है जिससे संस्कृतवालों ने 'द्रविड' शब्द बना लिया। जैनों के 'शत्रुंजय माहात्म्य' नामक एक ग्रंथ में 'द्रविड' शब्द पर एक विलक्षण कल्पना की गई है। उक्त पुस्तक के मत से आदि तीर्थकर ऋषभदेव को 'द्रविड' नामक एक पुत्र जिस भूभाग में हुआ, उसका नाम 'द्रविड' पड़ गया। पर भारत, मनुसंहिता आदि प्राचीन ग्रंथों से विदित होता है कि द्रविड जाति के निवास के ही कारण देश का नाम द्रविड पड़ा। तामिल जाति अत्यंत प्राचीन हे। पुरातत्वविदों का मत है कि यह जाति अनार्य है और आर्यों के आगमन से पूर्व ही भारत के अनेक भागों में निवास करती थी। रामचंद्र ने दक्षिण में जाकर जिन लोगों की सहायता से लंका पर चढ़ाई की थी और जिन्हें वाल्मीकि ने बंदर लिखा है, वे इसी जाति के थे। उनके काले वर्ण, भिन्न आकृति तथा विकट भाषा आदि के कारण ही आर्यों ने उन्हें बंदर कहा होगा। पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि तामिल जाति आर्यों के संसर्ग के पूर्व ही बहुत कुछ सभ्यता प्राप्त कर चुकी थी। तामिल लोगों के राजा होते थे जो किले बनाकर रहते थे। वे हजार तक गिन लेते थे। वे नाव, छोटे मोटे जहाज, धनुष, बाण, तलवार इत्यादि बना लेते थे और एक प्रकार का कपड़ा बुनना भी जानते थे। राँगे, सीसे और जस्ते को छोड़ और सब धातुओं का ज्ञान भी उन्हें था। आर्यों के संसर्ग के उपरांत उन्होंने आर्यों की सभ्यता पूर्ण रूप से ग्रहण की। दक्षिण देश में ऐसी जनश्रुति है कि अगस्त्य ऋषि ने दक्षिण में जाकर वहाँ के निवासियों को बहुत सी विद्याएँ सिखाई। बारह-तेरह सौ वर्ष पहले दक्षिण में जैन धर्म का बड़ा प्रचार था। चीनी यात्री हुएनसांग जिस समय दक्षिण में गया था, उसने वहाँ दिगंबर जैनों की प्रधानता देखी थी। तमिल भाषा का साहित्य भी अत्यंत प्राचीन है। दो हजार वर्ष पूर्व तक के काव्य तामिल भाषा में विद्यमान हैं। पर वर्णमाला नागरी लिपि की तुलना में अपूर्ण है। अनुनासिक पंचम वर्ण को छोड़ व्यंजन के एक एक वर्ग का उच्चारण एक ही सा है। क, ख, ग, घ, चारों का उच्चारण एक ही है। व्यंजनों के इस अभाव के कारण जो संस्कृत शब्द प्रयुक्त होते हैं, वे विकृत्त हो जाते हैं; जैसे, 'कृष्ण' शब्द तामिल में 'किट्टिनन' हो जाता है। तामिल भाषा का प्रधान ग्रंथ कवि तिरुवल्लुवर रचित कुराल काव्य है। .

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ताशक़ुरग़ान​

ताशक़ुरग़ान​ (सरिकोली:, तॉशक़ुरग़ॉन​; उइग़ुर:, ताशक़ूरग़ान बाज़िरी; चीनी: 塔什库尔干镇, ताशिकु'एरगन; अंग्रेज़ी: Tashkurgan) मध्य एशिया में चीन द्वारा नियंत्रित शिनजियांग प्रान्त के ताशक़ुरग़ान​ ताजिक स्वशासित ज़िले की राजधानी है। पाकिस्तान से पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र से आने वाले काराकोरम राजमार्ग पर यह पहला महत्वपूर्ण चीनी पड़ाव है। इस राजमार्ग पर सरहद पर स्थित ख़ुंजराब दर्रे की चीनी तरफ़ ताशक़ुरग़ान​ है और पाकिस्तानी तरफ़ सोस्त है।, Andrew Burke, pp.

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ताशक़ुरग़ान​ ताजिक स्वशासित ज़िला

ताशक़ुरग़ान​ ताजिक स्वशासित ज़िला जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग प्रान्त के काश्गर विभाग का एक ज़िला है। इसकी ८०% से अधिक आबादी ताजिक समुदाय की है। इस ज़िले की राजधानी ताशक़ुरग़ान​ शहर है जहाँ से पाक-अधिकृत कश्मीर से गुज़रकर पाकिस्तान व चीन को जोड़ने वाला काराकोरम राजमार्ग निकलता है।, Andrew Burke, pp.

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तिमण गढ़

तिमण गढ़ राजस्थान,भारत के करौली ज़िले में स्थित एक लोकप्रिय दुर्ग है। तीमंगढ़ किला, हिण्डौनसिटी के पास मासलपुर तहसील के अन्दर स्थित है। इतिहासकारों का मानना है कि यहाँ निर्मित ये किला 1100 ई में बनवाया गया था जो जल्द ही नष्ट कर दिया गया। इस किले को 1244ई में यदुवंशी राजा तीमंपल जो राजा विजय पाल के वंशज थे द्वारा दोबारा बनवाया गया था। लोगों का मानना है कि आज भी इस किले में अष्ठधातु की प्राचीन मूर्तियां, मिट्टी की विशाल और छोटी मूर्तियों को इस किले के मंदिर के नीचे छुपाया गया है। यहाँ बने मंदिरों की छतों और स्तंभों पर सुंदर ज्यामितीय और फूल के नमूने किसी भी पर्यटक का मन मोहने के लिए काफी हैं साथ ही यहाँ आने वाले पर्यटक मंदिर के स्तंभों पर अलग अलग देवी देवताओं की तस्वीरों को भी बनाया गया है जो प्राचीन कला का एक बेमिसाल नमूना है।कई रिकॉर्ड साइट से खोज की पुष्टि करते हैं कि किला 1196 और 1244 ई. के लोगों के बीच मुहम्मद गौरी बलों द्वारा कब्जा किया गया थाका मानना है कि वहाँ एक सागर झील के तल पर पारस पत्थर, किले के पक्ष में मौजूद है। इस साइट से प्राप्त कई रिकॉर्ड इस बात की पुष्टि करते हैं कि 1196 से 1244 के बीच इस किले पर मुहम्मद गौरी ने कब्ज़ा कर रखा था। लोगों का मानना है कि आज भी किले के पास स्थित सागर झील में पारस पत्थर है जिसके स्पर्श से कोई भी चीज सोने की हो सकती है। तिमण गढ़ का निर्माण तिसमानों ने करवाया था। .

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तुग़लक़ाबाद

तुगलकाबाद शहर की स्थापना गयासुद्दीन तुगलक ने की.

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दुर्ग

दुर्ग छत्तीसगढ़ प्रान्त के 27 जिलो मे तीसरा सबसे बड़ा जिला है। दुर्ग जिले के मुख्य शहर भिलाई और दुर्ग को सम्मिलित रूप से टि्वन सिटी कहा जाता है। भिलाई में लौह इस्पात संयंत्र की स्थापना के साथ ही दुर्ग का महत्व काफी बढ़ गया। शिवनाथ नदी के पूर्वी तट पर स्थित दुर्ग शहर के बीचोबीच से राष्ट्रीय राजमार्ग ६ (कोलकाता-मुंबई) गुजरती है। टि्वनसिटी के तौर पर दुर्ग-भिलाई शैक्षणिक और खेल केंद्र के रूप में न केवल प्रदेश में बल्कि देश में अपना स्थान रखता है। श्रेणी:छत्तीसगढ़ के नगर.

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दीव किला

दीव किला, जिसे स्थानीय रूप से पुर्तगाली किला भी कहा जाता है, भारत के पश्चिमी सागरतट पर दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश के दीव क्षेत्र में है। दीव शहर किले के पश्चिमी छोर पर स्थित है। यह किला यहाँ पर पुर्तगाली उपनिवेशी काल के दौरान बनाया गया था। इसका निर्माण सन् १५३५ में आरम्भ हुआ जब उस समय के गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने मुग़ल साम्राज्य के बादशाह हुमायूँ द्वारा इस क्षेत्र को अपने अधीन कर लेने के प्रयासों से बचने के लिये पुर्तगालियों के साथ रक्षा-सन्धि कर ली। सन् १५४६ तक इस किले को अधिक मज़बूत करने का काम लगातार चलता रहा। १५३७ से किले और दीव शहर पर पुर्तगाली नियंत्रण आरम्भ हो गया और यह ४२४ वर्षों तक रहा, जो विश्व में किसी भी स्थान के लिये सबसे लम्बा उपनिवेशी राजकाल था। दिसम्बर १९६१ में भारत सरकार ने "ऑपरेशन विजय" नामक सैन्य कार्यवाई में यहाँ पुर्तगाली राज अन्त कर के इस क्षेत्र का फिर से भारत में विलय कर लिया और उस समय की गोवा, दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश का भाग बनाया। गोवा को राज्य का दर्जा मिलने के बाद दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में संगठित करे गये। .

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प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

प्रतापगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है, इसे लोग बेल्हा भी कहते हैं, क्योंकि यहां बेल्हा देवी मंदिर है जो कि सई नदी के किनारे बना है। इस जिले को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी अहम माना जाता है। यहां के विधानसभा क्षेत्र पट्टी से ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं॰ जवाहर लाल नेहरू ने पदयात्रा के माध्यम से अपना राजनैतिक करियर शुरू किया था। इस धरती को रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि आचार्य भिखारीदास और राष्ट्रीय कवि हरिवंश राय बच्चन की जन्मस्थली के नाम से भी जाना जाता है। यह जिला धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी कि जन्मभूमि और महात्मा बुद्ध की तपोस्थली है। .

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फोर्ट विलियम

फोर्ट विलियम कोलकाता में हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर बना एक किला है, जिसे ब्रिटिश राज के दौरान बनवाया गया था। इसे इंग्लैंड के राजा विलियम तृतीय के नाम पर बनवाया गया था। इसके सामने ही मैदान है, जो कि किले का ही भाग है और कलकत्ता का सबसे बड़ा शहरी पार्क है। .

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बांतिय मियनचिय प्रान्त

बांतिय मियनचिय प्रान्त दक्षिणपूर्वी एशिया के कम्बोडिया देश का एक प्रान्त है। यह देश के पश्चिमोत्तर कोने में स्थित है और पश्चिम में पड़ोसी थाईलैण्ड देश के सा कैओ और बुरीरम प्रान्तों से सीमा रखता है। .

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भारत में पर्यटन

हर साल, 3 मिलियन से अधिक पर्यटक आगरा में ताज महल देखने आते हैं। भारत में पर्यटन सबसे बड़ा सेवा उद्योग है, जहां इसका राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6.23% और भारत के कुल रोज़गार में 8.78% योगदान है। भारत में वार्षिक तौर पर 5 मिलियन विदेशी पर्यटकों का आगमन और 562 मिलियन घरेलू पर्यटकों द्वारा भ्रमण परिलक्षित होता है। 2008 में भारत के पर्यटन उद्योग ने लगभग US$100 बिलियन जनित किया और 2018 तक 9.4% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ, इसके US$275.5 बिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है। भारत में पर्यटन के विकास और उसे बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय नोडल एजेंसी है और "अतुल्य भारत" अभियान की देख-रेख करता है। विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद के अनुसार, भारत, सर्वाधिक 10 वर्षीय विकास क्षमता के साथ, 2009-2018 से पर्यटन का आकर्षण केंद्र बन जाएगा.

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भारत के राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सूची

भारत में, राष्ट्रीय महत्व के स्मारक, भारत में स्थित वे ऐतिहासिक, प्राचीन अथवा पुरातात्विक संरचनाएँ, स्थल या स्थान हैं, जोकि, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 किए अधीन, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के माध्यम से भारत की संघीय सरकार या राज्य सरकारों द्वारा संरक्षिक होती हैं। ऐसे स्मारकों को "राष्ट्रीय महत्व का स्मारक" होने के मापदंड, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा परिभाषित किये गए हैं। ऐसे स्मारकों को इस अधिनियम के मापदंडों पर खरा उतरने पर, एक वैधिक प्रक्रिया के तहत पहले "राष्ट्रीय महत्व" का घोषित किया जाता है, और फिर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के संसाक्षणाधीन कर दिया जाता है, ताकि उनकी ऐतिहासिक महत्व क्व मद्देनज़र, उनकी उचित देखभाल की जा सके। वर्त्तमान समय में, राष्ट्रीय महत्व के कुल 3650 से अधिक प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष देश भर में विद्यमान हैं। ये स्मारक विभिन्न अवधियों से संबंधित है जो प्रागैतिहासिक अवधि से उपनिवेशी काल तक के हैं, जोकि विभिन्न भूगोलीय स्थितियों में स्थित हैं। इनमें मंदिर, मस्जिद, मकबरे, चर्च, कब्रिस्तान, किले, महल, सीढ़ीदार, कुएं, शैलकृत गुफाएं, दीर्घकालिक वास्तुकला तथा साथ ही प्राचीन टीले तथा प्राचीन आवास के अवशेषों का प्रतिनिधित्व करने वाले स्थल शामिल हैं। इन स्मारकों तथा स्थलों का रखरखाव तथा परिरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विभिन्न मंडलों द्वारा किया जाता है जो पूरे देश में फैले हुए हैं। .

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भारतीय स्थापत्यकला

सांची का स्तूप अजन्ता गुफा २६ का चैत्य भारत के स्थापत्य की जड़ें यहाँ के इतिहास, दर्शन एवं संस्कृति में निहित हैं। भारत की वास्तुकला यहाँ की परम्परागत एवं बाहरी प्रभावों का मिश्रण है। भारतीय वास्तु की विशेषता यहाँ की दीवारों के उत्कृष्ट और प्रचुर अलंकरण में है। भित्तिचित्रों और मूर्तियों की योजना, जिसमें अलंकरण के अतिरिक्त अपने विषय के गंभीर भाव भी व्यक्त होते हैं, भवन को बाहर से कभी कभी पूर्णतया लपेट लेती है। इनमें वास्तु का जीवन से संबंध क्या, वास्तव में आध्यात्मिक जीवन ही अंकित है। न्यूनाधिक उभार में उत्कीर्ण अपने अलौकिक कृत्यों में लगे हुए देश भर के देवी देवता, तथा युगों पुराना पौराणिक गाथाएँ, मूर्तिकला को प्रतीक बनाकर दर्शकों के सम्मुख अत्यंत रोचक कथाओं और मनोहर चित्रों की एक पुस्तक सी खोल देती हैं। 'वास्तु' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वस्' धातु से हुई है जिसका अर्थ 'बसना' होता है। चूंकि बसने के लिये भवन की आवश्यकता होती है अतः 'वास्तु' का अर्थ 'रहने हेतु भवन' है। 'वस्' धातु से ही वास, आवास, निवास, बसति, बस्ती आदि शब्द बने हैं। .

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मनीमाजरा

मनीमाजरा (पंजाबी: ਮਨੀਮਾਜਰਾ, अंग्रेज़ी: Manimajra) भारत के उत्तर में स्थित चंडीगढ़ केन्द्र शासित प्रदेश में स्थित एक छोटा-सा क़स्बा है। यहाँ सिख साम्राज्य काल का एक ऐतिहासिक क़िला है जिसके कारण यह जगह मनीमाजरा क़िला भी कहलाती है। हरियाणा का पंचकुला शहर इसी के पास स्थित है। मनीमाजरा में एयरटेल, इन्फ़ोसिस और टेक महिन्द्रा जैसी कुछ कम्पनियों ने अपने कार्यालय बनाए हैं। .

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मांडलगढ़

मांडलगढ़ एक भारत के राजस्थान राज्य के भीलवाड़ा जिले का एक नगर है | .

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मुरुद जंजीरा किला

मुरुद-जंजीरा मुरुद-जंजीरा भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगड जिले के तटीय गाँव मुरुड में स्थित एक किला हैं। यह भारत के पश्चिमी तट का एक मात्र किला हैं, जो की कभी भी जीता जा सक्त था । यह किला 350 वर्ष पुराना है। स्‍थानीय लोग इसे मुस्लिम किला कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ अजेय होता है। माना जाता है कि यह किला पंच पीर पंजातन शाह बाबा के संरक्षण में है। शाह बाबा का मकबरा भी इसी किले में है। यह किला समुद्र तल से 90 फीट ऊंचा है। इसकी नींव 20 फीट गहरी है। यह किला सिद्दी जौहर द्वारा बनवाया गया था। इस किले का निर्माण 22 वर्षों में हुआ था। यह किला 22 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 22 सुरक्षा चौकियां है। ब्रिटिश, पुर्तगाली, शिवाजी, कान्‍होजी आंग्रे, चिम्‍माजी अप्‍पा तथा शंभाजी ने इस किले को जीतने का काफी प्रयास किया था, लेकिन कोई सफल नहीं हो सका। इस किले में सिद्दिकी शासकों की कई तोपें अभी भी रखी हुई हैं। जंजीरा का किला जाने के लिए ऑटोरिक्‍शा से मुरुड से राजपुरी जाना होता है। यहां से नाव द्वारा जंजीरा का किला जाया जा सकता है। एक व्‍यक्‍ित का नाव का किराया 20 रु.

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मूरिश किला

मूरिश किला जिब्राल्टर में स्थित एक एतिहासिक मध्ययुगीन किला है। इसमें कई इमारतें, द्वार, किलेबंद दीवारें व मशहूर टावर ऑफ़ होमेज व गेट हाउस शामिल है। इसमें स्थित टावर ऑफ़ होमेज जिब्राल्टर आने वाले यात्रियों को दूर से ही दिख जाता है। मूरिश किले का जिब्राल्टर में निर्माण मिरिनिद वंश ने करवाया था जिससे यह इबिरियाई पेनिज्वेला कि एक अद्वितीय वास्तु बन गया। किले के एक हिस्से में जिब्राल्टर का एच एम कारागृह भी स्थित था परन्तु उसे २०१० में स्थानांतरित कर दिया गया। .

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रानी गाइदिन्ल्यू

रानी गिडालू रानी गिडालू या रानी गाइदिन्ल्यू (Gaidinliu; 1915–1993) भारत की नागा आध्यात्मिक एवं राजनीतिक नेत्री थीं जिन्होने भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया। उनको भारत सरकार द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में सन १९८२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। http://pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx?relid.

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रामसे बोल्टन

अंगूठाकार रामसे बोल्टन जॉर्ज आर आर मार्टिन द्वारा रचित काल्पनिक चरित्र थे। इनका दर्शन गेम ऑफ़ थ्रोन्स में किया जा सकता है। इन्हें धारावाहिक का सच्चा महानायक एवं सर्वश्रेष्ठ पात्र माना गया है। श्रीमान रामसे एक सामन्त की अवैध संतान थे। इस कारण बचपन से ही ये जनता के उपहास के पात्र बन गए। परंतु अपनी क्षमता एवं योग्यता के बल पर इन्होंने ड्रेडफोर्ट किले पर अपना अधिकार जमाया। इसके पश्चात श्रीमान रामसे ने उपहास करने वालों से प्रतिशोध लेना प्रारम्भ कर दिया। सर्वप्रथम उन्होंने एक अन्य राजपुत्र थियौन ग्रेयजोय को पराजय कर विंटरफेल किले पर आधिपत्य जमा लिया। कुछ समय पश्चात स्वयंभू सम्राट स्थानीश भारतीयन ने एक विशाल सेना के साथ विंटरफेल पर आक्रमण कर दिया। वीर रामसे ने केवल बीस सैनकों की टोली का नेतृत्व करते हुए आक्रमणकारियों का अन्न भंडार ध्वस्त कर दिया। एक दुष्ट तांत्रिक महिला ने स्थानीश को सुझाव दिया कि वीर रामसे को पराजय करने के लिए उसे अपने बेटी का बलिदान करना होगा। तांत्रिक के झांसे में आकर स्थानीश ने अपने फूल सी निरपराध कन्या को एक यज्ञ संस्कार में जीवित जला दिया। जब वीर रामसे ने यह सुना, तो उन्होंने स्थानीश सबक सिखाने की ठान ली। एक विशाल घुड़सवार सेना की सहायता से उन्होंने शत्रु की सेना को पराजय कर दिया। दुर्भाग्यवश वीर रामसे का रामराज्य अधिक समय तक नहीं टिका। अगले ही वर्ष जॉन स्नो की म्लेच्छ सेना ने विंटरफेल पर आक्रमण कर दिया। बड़ी ही क्रूरता से जॉन स्नो की बहन सांसा स्टार्क ने वीर रामसे को कुत्तों से काट-काट कर मरवा दिया। इस प्रकार इस महापुरुष का दुखद अंत हुआ। .

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राजमहल

जोधपुर का उम्मेद भवन महल या प्रासाद भव्य गृह को कहते हैं। किन्तु विशेष रूप से राजा या राज्य के सर्वोच्च सत्ताधीश के गृह को महल कहा जाता है। बहुत से ऐतिहासिक महलों का उपयोग आजकल संसद, संग्रहालय, होटल या कार्यालय के रूप में किया जा रहा है। भारत की प्राचीन वास्तुविद्या के अनुसार 'प्रासाद' लंबा, चौड़ा, ऊँचा और कई भूमियों का पक्का या पत्थर का घर को कहते हैं जिसमें अनेक शृंग, शृंखला, अंडकादि हों तथा अनेक द्वारों और गवाक्षों से युक्त त्रिकोश, चतुष्कोण, आयत, वृत्त शालाएँ हों। पुराणों में केवल राजाओं और देवताओं के गृह को प्रासाद कहा है। आकृति के भेद से पुराणों में प्रासाद के पाँच भेद किए गए हैं— चतुरस्र, चतुरायत, वृत्त, पृत्ताय और अष्टास्र। इनका नाम क्रम से वैराज, पुष्पक, कैलास, मालक और त्रिविष्टप है। भूमि, अंडक, शिखरादि की न्यूनाधिकता के कारण इन पाँचों के नौ नौ भेद माने गए हैं। जैसे, वेराज के मेरु, मंदर, विमान, भद्रक, सर्वतोभद्र, रुचक, नंदन, नंदिवर्धन और श्रीवत्स; पुष्पक के वलभी, गृहराज, शालागृह, मंदिर, विमान, ब्रह्ममंदिर, भवन, उत्तंभ और शिविकावेश्म; कैलास के वलय, दुंदुभि, पद्म, महापद्म, भद्रक सर्वतोभद्र; रुचक, नंदन, गुवाक्ष या गुवावृत्त; मालव के गज, वृषभ, हंस, गरुड़, सिंह, भूमुख, भूवर, श्रीजय और पृथिवीधर और त्रिविष्टप के वज्र, चक्र, मुष्टिक या वभ्रु, वक्र, स्वस्तिक, खड्ग, गदा, श्रीवृक्ष और विजय। .

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लास वेगास

लास वेगास; नेवादा का सबसे ज्‍़यादा आबादी वाला शहर है। क्‍लार्क काउंटी का स्थान है और जुआ, खरीदारी तथा शानदार खान-पान के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर जाना जाने वाला एक प्रमुख रिसोर्ट शहर है। स्‍वयं को दुनिया की मनोरंजन राजधानी के रूप में प्रचारित करने वाला लास वेगास, कसीनो रिसोर्ट्स की बड़ी संख्‍या और उनसे संबंधित मनोरंजन के लिए मशहूर है। अब यहां ज्‍़यादा-से-ज्‍़यादा लोग सेवानिवृत्ति के बाद और अपने परिवारों के साथ बस रहे हैं और यह संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका का 28वां सबसे ज्‍़यादा आबादी वाला शहर बन गया है। संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका के जनगणना ब्‍यूरो के अनुसार 2008 तक की इसकी जनसंख्‍या 558,383 थी। 2008 तक लास वेगास के महानगरीय क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्‍या 1,865,746 थी। 1905 में स्‍थापित लास वेगास को 1911 में आधिकारिक रूप से शहर का दर्जा दिया गया। उसके बाद इतनी प्रगति हुई कि 20वीं शताब्‍दी में स्थापित किया गया यह शहर सदी के अंत तक अमेरिका का सबसे ज्‍़यादा आबादी वाला शहर बन गया (19 वीं शताब्‍दी में यह दर्जा शिकागो को हासिल था).

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लोनावला

लोनावला या लोनावाला (मराठी: लोणावळा), भारतीय राज्य महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित एक पर्वतीय स्थल और नगर परिषद है। यह दो प्रमुख शहरों पुणे और मुंबई के बीच, पुणे से 64 किमी और मुंबई से 96 किमी की दूरी पर स्थित है। भारत भर में लोनावला इसकी प्रसिद्ध मिठाई चिक्की के लिए प्रसिद्ध है। यह पुणे और मुंबई के बीच के रेलमार्ग पर स्थित एक प्रमुख स्टेशन भी है। पुणे और मुंबई के बीच स्थित दोनों प्रमुख सड़कों, मुम्बई-पुणे द्रुतगति मार्ग और मुंबई-पुणे राजमार्ग पर भी यह पड़ता है। मानसून के दौरान यह जीवंत हो उठता है, जब चारों ओर हरियाली छा जाती है और सभी सूखे झरने और तालाब पानी से भर जाते हैं। .

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लोआरे किला

लोआरे किला (स्पेनी: Castillo de Loarre) स्पेन के लोआरे नगर में स्थित एक किला है। 1906 में इसको बीएन दे इन्तेरेस कुल्तूराल (सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय स्मारक) घोषित किया गया। .

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शाही किला, जौनपुर

शाही किला (Royal Fort) गोमती के बाएं किनारे पर शहर के दिल में स्थित है। शाही किला फिरोजशाह ने १३६२ ई. में बनाया था इस किले के भीतरी गेट की ऊचाई २६.५ फुट और चौड़ाई १६ फुट है। केंद्रीय फाटक ३६ फुट उचा है। इसके एक शीर्ष पर वहाँ एक विशाल गुंबद है। शाही किला में कुछ आदि मेहराब रहते हैं जो अपने प्राचीन वैभव की कहानी बयान करते है। .

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संतरी बुर्ज

जर्मनी में एक संतरी बुर्ज संतरी बुर्ज या पर्यवेक्षण बुर्ज (अंग्रेज़ी: watchtower) ऐसे बुर्ज को कहा जाता है जिसका प्रयोग आसपास के क्षेत्र पर निगरानी रखने के लिए किया जाता हो। अक्सर ऐसे संतरी बुर्जों का प्रयोग फ़ौजी या जेल सम्बन्धी कारणों से किया जाता है। जहाँ बहुत से साधारण बुर्ज किसी ईमारत के साथ जुड़े होते हैं, वहाँ संतरी बुर्ज अक्सर इमारतों से अलग खड़े होते हैं और उनका निर्माण कभी-कभी क़िलेनुमा होता है ताकि उनपर तैनात पहरेदार ऊपर से शत्रुओं पर हमला कर सके और अपने क्षेत्र पर हुए आक्रमण से रक्षा कर सकें।, Esther Ken Achua Gwan, WestBow Press, 2010, ISBN 978-1-4497-0210-6,...

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जमरूद किला

जमरूद किला ख़ैबर दर्रे के मुख पर स्थित बाब-ए-ख़ैबर के पास स्थित एक क़िला है। प्रशासनिक रूप से यह पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा के संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र में पड़ता है। .

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जयपुर

जयपुर जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, भारत में राजस्थान राज्य की राजधानी है। आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना १७२८ में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। 2011 की जनगणना के अनुसार जयपुर भारत का दसवां सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India's Golden Triangle) का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली,आगरा और जयपुर आते हैं भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज (Triangle) का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है। शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। बाद में एक और द्वार भी बना जो 'न्यू गेट' कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह १११ फुट (३४ मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। पाँच भाग मध्य प्रासाद भाग को पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी ओर से घेरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शह के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वेधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं। जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम सम्मान से लिया जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। १९वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या १,६०,००० थी जो अब बढ़ कर २००१ के आंकड़ों के अनुसार २३,३४,३१९ और २०१२ के बाद ३५ लाख हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन-उद्योग आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नहीं मिलेगा। .

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जयपुर जिला

- जयपुर (राजस्थानी: जैपर) जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, भारत में राजस्थान राज्य की राजधानी है। आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना १७२८ में आंबेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। बाद में एक और द्वार भी बना जो न्यू गेट कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह १११ फुट (३४ मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। पाँच भाग मध्य प्रासाद भाग को पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी ओर से घेरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शह के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वेधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं। जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम आज भी प्रसिद्ध है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। १९वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या १,६०,००० थी जो अब बढ़ कर २००१ के आंकड़ों के अनुसार २३,३४,३१९ हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर की वास्तु के बारे में कहा जाता है, कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नही मिलेगा। .

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विंडसर कासल

विंड्सर कासल(Windsor Castle, ब्रिटिश उच्चारण:व़िन्ज़र् खास्ल्) अर्थात् विंड्सर किला, इंग्लैंड के बर्कशायर काउंटी के विंड्सर नामक स्थान में स्थित एक शाही किला है। यह वर्त्तमान समय में विश्व का विशालतम् रिहाइशी किला है, और इसे महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय द्वारा छुट्टियों में रहने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लंदन के बकिंघम पैलेस के माफ़िक़ इस पर स्वामित्व भी ब्रिटिश राजमुकुट के पास है। इस आलिशान एवं ऐतिहासिक किले का अंग्रेज़ी तथा ब्रिटिश राजपरिवार के साथ बेहद लंबा एवं गहरा रिश्ता रहा है। इस किले को प्राथमिक तौर पर 11वीं सदी में इंग्लैंड पर नॉर्मल आक्रमण के दौरान, नॉर्मन सेना ने नेता विलियम द कॉंकरर ने बनवाया गया था। हेनरी प्रथम के समय से ही इस महल को इंग्लिस्तान तथा ब्रिटेन के सभी शासकों द्वारा उपयोग किया जाता रहा है और यह यूरोप का सबसे लंबे समय तक इस्तेमाल होने वाला किला है। इस महल को विश्व भर में अपनी आलिशान राजकीय महलों की वास्तुकला के लिए जाना जाता है जिसके लिए यह प्राथमिक आधुनिक काल के दौरान से ही प्रशंसा का पात्र रही है। यह किला, थेम्स नदीके पास एक पहाड़ी ऊंचाईपर स्थितहै और मूलतः इसे थेम्सके इस, सामरिक तौरपर, महत्वपूर्ण क्षेत्रपर नॉर्मल वर्चस्व बनाए रखनेहेतु बनाया गयाथा। इसे मूलतः मॉट एंड बेली शैलीमें एक पहाड़ीपर तीन प्रकोष्ठोंके साथ बनाया गयाथा, जिसे धीरे-धीरे पथरीली किलेबंदीसे बदल दिया गया। 13वीं सदीके शुरुआतमें इस किलेने प्रथम बैरन युद्धके दौरान लंबी घेराबंदीका भी सामना कियाथा। राजा हेनरी तृतीयने उसी सदीके मध्यमें इस किलेके भीतर एक अत्यंत आलीशान शाही महल बनवाया, जिसे एडवर्ड तृतीयने औरभी शानदार बनानेमें अपना योगदान दिया। एडवर्डद्वारा कियागया यह उदारीकरण-योजना, मध्यकालीन इंग्लैंडका बहुमूल्यतम् गैर-धार्मिक निर्माणयोजना बानी। एडवर्ड द्वारा बनाया गया डिजाइन पूरे शून्य कालके दौरान बरकरार रहा। इसबीच राजा हेनरी अष्टम और रानी एलिजाबेथ प्रथम ने इस किले का शाही दरबार, राजकीय मनोरंजन और अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्यके लिए इस महल का अघिक उपयोग करना शुरू कर दिया। इस किलेने अंग्रेजी ग्रह युद्धकी उथल-पुथलका समयभी देखा, जब संसदीय बलों द्वारा इस महल को सैन्य मुख्यालय के रूप में इस्तेमाल किया गया था। साथ ही राजा चार्ल्स प्रथम को इसी महल में बंदी बना के रखा गया था। १६६० में राजतंत्र के पुनर्स्थापन के बाद चार्ल्स द्वितीय द्वारा इस किले का नवनिर्माण किया गया, इसमें शानदार बरूक शैली की इंटीरियर कलाकारी को जोड़ा गया, जिन्हें आज भी माना जाता है। 18वीं सदी में नज़रअंदाज़गी के बाद जॉर्ज तृतीय और चतुर्थ ने चार्ल्स द्वितीय के महल को नवनिर्मित करवाया जिसके कारण महलों की वर्तमान सजावट की गई, तत्पश्चात महारानी विक्टोरियाने भी कई छोटे-मोटे निर्माण करवाएं। द्वितीय विश्वयुद्ध में इस महल को शाही परिवार की पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल किया गया था। आज के समय, इस किलेमें करीब 500 लोग रहते और काम करते हैं और यह विश्व का सबसे बड़ा रिहायशी एवं कार्यशील किला है। .

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खुरनक दुर्ग

खुरनक दुर्ग (Khurnak Fort, खुरनक फ़ोर्ट) या खुरनक क़िला जम्मू और कश्मीर के अक्साई चिन क्षेत्र के दक्षिणी भाग में पांगोंग त्सो (झील) के उत्तरी छोर के पास स्थित एक क़िला है जो अब खंडहर अवस्था में है। यह भारत और तिब्बत की पारम्परिक सीमा के पास स्थित है और सन् १९५८ तक यहाँ एक भारतीय सैनिक चौकी थी जहाँ भारतीय सैनिक व पुलिस दस्ते समय-समय पर जाया करते थे। जुलाई १९५८ के बाद यहाँ चीन का क़ब्ज़ा हो गया जो १९६२ के भारत-चीन युद्ध से जारी रहा है। चीन अब इसे तिब्बत के न्गारी विभाग का भाग बताता है। १९६० में भारत व चीन के बीच हुई वार्ताओं में भारत ने अपन सम्प्रभुत्व स्थापित करने वाले अन्य सरकारी दस्तावेज़ों के साथ-साथ १९०८ की सेटलमेंट रिपोर्ट भी प्रस्तुत करी जिसमें प्रान्तीय सरकार द्वारा खुरनक में हुई कर-वसूली दर्ज थी। १९५६ में चीन ने जिस सीमा का दावा करा उसमें खुरनक भारत में दर्शाया गया था लेकिन १९६० में उसके नए दावे में खुरनक को भी तिब्बत में दर्शाया गया। .

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गुलबर्ग किला

गुलबर्ग किला उत्तर कर्नाटक के गुलबर्ग जिले में गुलबर्ग शहर में स्थित है। मूल रूप से इसका निर्माण वारंगल राजवंश के राज में राजा गुलचंद ने करवाया था। इसके बाद सन् 1347 में बहमनी राजवंश के अलाउद्दीन बहमन शाह ने दिल्ली सल्तनत के साथ संबंधों को तोड़ने के बाद इसे काफ़ी बड़ा करवाया था। बाद में किले के भीतर मस्जिदों, महलों, कब्रों जैसे इस्लामी स्मारकों और अन्य संरचनाओं का निर्माण हुआ। 1367 में किले के भीतर बनाया गया सभी ओर से बंद जामा मस्जिद मनोहर गुंबदों और मेहराबदार स्तंभों सहित फ़ारसी वास्तु शैली में निर्मित एक अद्वितीय संरचना है। यह 1327 से 1424 के बीच गुलबर्ग किले पर बहमनी शासन की स्थापना के उपलक्ष्य में बनाया गया था। यह 1424 तक बहमनी राज्य की राजधानी रहा, जिसके बाद बेहतर जलवायु परिस्थितियों के कारण राजधानी बीदर किले में ले जाई गयी। .

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ग्वालियर का क़िला

ग्वालियर का क़िला ग्वालियर शहर का प्रमुखतम स्मारक है। यह किला 'गोपांचल' नामक पर्वत पर स्थित है। किले के पहले राजा का नाम सूरज सेन था, जिनके नाम का प्राचीन 'सूरज कुण्ड' किले पर स्थित है। इसका निर्माण ८वीं शताब्दी में मान सिंह तोमर ने किया था। विभिन्न कालखण्डों में इस पर विभिन्न शासकों का नियन्त्रण रहा। गुजरी महल का निर्माण रानी मृगनयनी के लिए कराया गया था। वर्तमान समय में यह दुर्ग एक पुरातात्विक संग्रहालय के रूप में है। इस दुर्ग में स्थित एक छोटे से मन्दिर की दीवार पर शून्य (०) उकेरा गया है जो शून्य के लेखन का दूसरा सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है। यह शून्य आज से लगभग १५०० वर्ष पहले उकेरा गया था। .

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ओरछा किला

ओरछा किला भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ओरछा नामक स्थान पर बना एक किला है। इसका निर्माण सोलहवीं सदी में राजा रुद्र प्रताप सिंह ने शुरू करवाया था। .

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ओस्त्रोग

साइबेरिया के इरकुत्स्क शहर में प्रदर्शित एक ओस्त्रोग का पहरेदार बुर्ज ओस्त्रोग या ऑस्त्रोग​ (रूसी: остро́г, अंग्रेज़ी: Ostrog) रूसी भाषा में एक छोटे क़िले के लिए शब्द है, जो अक्सर लकड़ी के बने होते हैं और जिनमें सैनिक अस्थाई रूप से रहते हैं। ओस्त्रोगों के घेरे अक्सर पेड़ों के तनों को काटकर और तराशकर उनकी ४-६ मीटर ऊँची दीवार के रूप में होते थे। इसी वजह से इनका नाम रूसी भाषा के 'स्त्रोगात' (строгать, strogat) शब्द से आया है जिसका मतलब 'लकड़ी छीलना' होता है। ओस्त्रोगों के विपरीत रूस में पत्थर के बने बड़े क़िलों को 'क्रेमलिन' (кремль, kremlin) कहा जाता है।, Joseph Emerson Worcester, Cummings & Hilliard, 1823,...

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कालिंजर दुर्ग

कालिंजर, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित एक पौराणिक सन्दर्भ वाला, ऐतिहासिक दुर्ग है जो इतिहास में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है। कलिंजर नगरी का मुख्य महत्त्व विन्ध्य पर्वतमाला के पूर्वी छोर पर इसी नाम के पर्वत पर स्थित इसी नाम के दुर्ग के कारण भी है। यहाँ का दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस पर्वत को हिन्दू धर्म के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं, व भगवान शिव के भक्त यहाँ के मन्दिर में बड़ी संख्या में आते हैं। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद यह दुर्ग यहाँ के कई राजवंशों जैसे चन्देल राजपूतों के अधीन १०वीं शताब्दी तक, तदोपरांत रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे प्रसिद्ध आक्रांताओं ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बाद भी आरम्भिक मुगल बादशाह भी कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: मुगल बादशाह अकबर ने इसे जीता व मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्त वंश के तृतीय -५वीं शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्पकला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। .

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कुम्भलगढ़ दुर्ग

कुम्भलगढ़ दुर्ग का विशालकाय द्वार; इसे '''राम पोल''' कहा जाता है। कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजस्थान ही नहीं भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ठ स्थान रखता है। उदयपुर से ७० किमी दूर समुद्र तल से १,०८७ मीटर ऊँचा और ३० किमी व्यास में फैला यह दुर्ग मेवाड़ के यशश्वी महाराणा कुम्भा की सूझबूझ व प्रतिभा का अनुपम स्मारक है। इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के द्वितीय पुत्र संप्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर १४४३ से शुरू होकर १५ वर्षों बाद १४५८ में पूरा हुआ था। दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है। बादल महल .

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कुर्नूल जिला

कुर्नूल भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश का एक जिला है। कुर्नूल तुंगभद्रा और हंद्री नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित आंध्र प्रदेश का एक प्रमुख जिला है। 12वीं शताब्‍दी में ओड्डार जब आलमपुर का निर्माण करने के लिए पत्‍थरों काटते थे तो यहां आकर उनको फिनिशिंग देते थे। 1953 से 1956 त‍क कुर्नूल आंध्रप्रदेश राज्‍य की राजधानी भी रहा। इसके बाद ही हैदराबाद यहां की राजधानी बनी। आज भी यहां विजयनगर राजाओं के शाही महल के अवशेष देख्‍ो जा सकते हैं जो 14वीं से 16वीं शताब्‍दी के बीच बने हैं। पारसी और अरबी शिलालेख भी यहां देखने को मिलते हैं जिससे यहां के महत्‍व का पता चलता है। .

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कोता भारू

कोता भारू (Kota Bharu) मलेशिया के केलंतन राज्य की राजधानी है और यह केलंतन के पारम्परिक राजपरिवार (सुल्तान और सुल्ताना) का घर भी है। इस शहर के नाम में "कोता" शब्द संस्कृत के "कोट" (अर्थ: क़िला) से और "भारू" मलय भाषा के "नये" अर्थ वाले शब्द से है, यानि शहर के नाम का अर्थ "नया क़िला" है। .

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कोता किनाबालू

कोता किनाबालू (Kota Kinabalu), जिसका पुराना नाम जेसेल्टन (Jesselton) था, दक्षिणपूर्व एशिया के मलेशिया देश के बोर्नियो द्वीप पर स्थित साबाह राज्य की राजधानी व सबसे बड़ा शहर है। यह बोर्नियो के दक्षिण चीन सागर के साथ लगे तट पर किनाबालू पर्वत के समीप स्थित है। इसके नाम में "कोता" संस्कृत के "कोट" (यानि क़िला) शब्द से आया है और "किनाबालू" समीपी पर्वत के नाम से लिया गया है। .

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असीरगढ़

असीरगढ़ मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित एक गांव है। असीरगढ का ऐतिहासिक क़िला बहुत प्रसिद्ध है। असीरगढ़ क़िला बुरहानपुर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर समुद्र सतह से 250 फ़ुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह क़िला आज भी अपने वैभवशाली अतीत की गुणगाथा का गान मुक्त कंठ से कर रहा है। इसकी तत्कालीन अपराजेयता स्वयं सिद्ध होती है। इसकी गणना विश्व विख्यात उन गिने चुने क़िलों में होती है, जो दुर्भेद और अजेय, माने जाते थे। इतिहासकारों ने इसका 'बाब-ए-दक्खन' (दक्षिण द्वार) और 'कलोद-ए-दक्खन' (दक्षिण की कुँजी) के नाम से उल्लेख किया है, क्योंकि इस क़िले पर विजय प्राप्त करने के पश्चात दक्षिण का द्वार खुल जाता था, और विजेता का सम्पूर्ण ख़ानदेश क्षेत्र पर अधिपत्य स्थापित हो जाता था। इस क़िले की स्थापना कब और किसने की यह विश्वास से नहीं कहा जा सकता। इतिहासकार स्पष्ट एवं सही राय रखने में विवश रहे हैं। कुछ इतिहासकार इस क़िले का महाभारत के वीर योद्धा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की अमरत्व की गाथा से संबंधित करते हुए उनकी पूजा स्थली बताते हैं। बुरहानपुर के 'गुप्तेश्वर  महादेव मंदिर' के समीप से एक सुंदर सुरंग है, जो असीरगढ़ तक लंबी है। ऐसा कहा जाता है कि, पर्वों के दिन अश्वत्थामा ताप्ती नदी में स्नान करने आते हैं, और बाद में 'गुप्तेश्वर' की पूजा कर अपने स्थान पर लौट जाते हैं। .

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अंतरीप

स्कॉटिश उच्चभूमि में स्थित एक अंतरीप अंतरीप, किसी समुद्र या कभी कभी भूमि से भी ऊपर की ओर उभरा हुये भूमि के भाग को कहते हैं। जब यह जल (अमूमन समुद्र) से उभरता है तो इसे प्रायद्वीप या रास कहा जाता है। अधिकतर अंतरीप, या तो किसी चट्टान के मुलायम हिस्सों के अपरदन के उपरांत बचे सख्त या कठोर हिस्सों से निर्मित होते हैं, या फिर यह दो नदी घाटियों के बीच जहां उनका संगम होता है, पर शेष बची उच्चभूमि होते हैं। ऐतिहसिक रूप से अपनी विशेष स्थिति और स्वाभाविक रक्षात्मक गुण के कारण कई किलों और दुर्गों का निर्माण अंतरीपों पर किया गया है। आयरलैंड के अंतरीप किले इस का एक उदाहरण है। .

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उदगीर

उदगीर का किला उदगिर भारत के महाराष्ट्र प्रदेश के लातूर जनपद का नगर एवं तहसील मुख्यालय एवं उपविभागीय मुख्यालय है। यह शिक्षा एवं महान किले के लिये प्रसिद्ध है। शहर आज एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र है। शहर जानवरों के बाजार के लिए भी जाना जाता है, ख़ासकर देवानी जाति के बैलों के लिए यह बाजार प्रसिद्ध है। यह शहर महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर स्थित है। यहाँ के शिवाजी विद्यालय, उदयगीरी विद्यालय और हवगीस्वामी विद्यालय आज पूरे देश मे अपनी अच्छी शिक्षा पद्धती के लिए जाने जाते है। भारतीय ध्वज के लिए लगने वाला सूती कपड़ा इसी शहर के खादी ग्रामोद्योग मे बनता है। इसी कपड़े से भारतीय ध्वज बनता है और देश मे हर जगह जहाँ ध्वजारोहण होता है, वहाँ यह ध्वज भेजा जाता है। इसके अलावा यहाँ साड़ी, कुर्ता-पायजामा, बेड शीट, सलवार, कुशन कवर और ढेर सारी खादी की चीज़े बनती है। .

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